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bhai aur ek baat kehni thi bura mat manana..muze toh bas suman aur amar ka woh bond dekhna hai jo starting se tha jo ab kahi kho gaya hai..bahot time se unn dono ko ek sath dekhne ke liye aankhe taras gayi hai..!!
वाह एक साथ हैट्रिक अपडेट्स, बहुत ही शानदार। आखिर बाबूजी के सुमन के लिए शादी के प्रस्ताव ने दोनो की दिल की बात बहार निकल ही दी और उन्होंने भी एक पारखी की नजर से सब पहचाल लिया। पहले तो सुनील की जान ही निकल गई ये बात जान कर की इतना अच्छा रिश्ता आया है तो शायद सुमन हां न कर चुकी हो मगर जब पता चल की उसने हां नही कहा है तो अपने लड़के तो पंख लग गए फिर तो गाड़ी इसने टॉप गियर में दौड़ा दी।अंतराल - पहला प्यार - Update #9
फिर उसने कमरे के दरवाज़े के तरफ देखा - वो खुला हुआ था। दोनों में इतनी अंतरंग बातें हो रही थीं, और उसमे किसी तीसरे के लिए स्थान नहीं था। हाँ - काजल अवश्य ही बाहर थी, लेकिन वो कभी भी वापस आ सकती थी। बच्चों का स्कूल दूर नहीं था। वो नहीं चाहता था कि तीनों अचानक से घर आ जाएँ और उन दोनों को ऐसी हालत में देख कर कोई अजीब सी प्रतिक्रिया न देने लगें। वो कुछ भी सह सकता था, लेकिन अपनी सुमन को शर्मिंदा होते नहीं देख सकता था।
“एक सेकंड,” उसने कहा, बिस्तर से उठा, और दरवाज़े का परदा बंद कर के वापस माँ के पास आ गया। किवाड़ लगाने से संभव है कि काजल सोचने लगती कि अंदर क्या हो रहा है! वैसे, परदे से कोई सुरक्षा नहीं मिलती, लेकिन फिर भी शक तो कम हो ही जाता है।
वापस आ कर वो इस बार माँ के सामने नहीं, बल्कि पीछे की तरफ़ बैठा - कुछ इस तरह से कि उसके दोनों पैर माँ के दोनों तरफ़ हो गए। वो माँ के पीछे, उनके बहुत करीब बैठा - माँ की पूरी पीठ, उसके सीने और पेट से सट गई थी। उसका स्तंभित लिंग माँ की पीठ के निचले हिस्से पर चुभने लगा। उस कठोर सी छुवन से माँ के शरीर में झुरझुरी सी फैलने लगी - एक अज्ञात सा डर उनके मन में बैठने लगा। उधर सुनील के हाथ फिर से, माँ के ब्लाउज के ऊपर से, उनके स्तनों पर चले गए, और उसके होंठ माँ के कँधों, पीठ और गर्दन के पीछे चूमने में व्यस्त हो गए।
सुनील इस समय किशोरवय अधीरता से काम कर रहा था। माँ ने उसके प्रणय निवेदन को स्वीकारा नहीं था - लेकिन अस्वीकार भी नहीं किया था। न जाने क्यों उसको लग रहा था कि वो जो कुछ कर रहा था, वो सब कर सकता है। लेकिन अभी भी वो अपने दायरे में ही था। किन्तु माँ कुछ मना नहीं कर रही थीं, इसलिए उसकी हिम्मत बढ़ती जा रही थी। उसने कुछ देर उनके स्तनों को दबाया, और फिर उनकी ब्लाउज के बटन खोलने की कोशिश करने लगा! उसने जब ब्लाउज का नीचे का एक बटन खोला, तब कहीं जा कर माँ अपनी लकवाग्रस्त स्थिति से बाहर निकली। सुनील के हाथों पर अपना हाथ रखते हुए वो हकलाते, फुसफुसाते हुए बोलीं - नहीं, बोलीं नहीं, बल्कि अनुनय करी,
“न... न... नहीं!”
“अभी नहीं?” सुनील ने पूछा।
माँ ने ‘न’ में सर हिलाया।
“बाद में?” सुनील ने शरारत से, और बड़ी उम्मीद से पूछा!
माँ ने उत्तर में कुछ कहा नहीं।
उनके हाथ सुनील के हाथों पर थे, लेकिन उसको कुछ भी करने से रोकने में शक्तिहीन थे। अगर सुनील माँ को नग्न करना चाहता, तो कर लेता। माँ उसको रोक न पातीं। उधर माँ ने भी महसूस किया कि हाँलाकि सुनील बड़े आत्मविश्वास से यह सब कर रहा था, लेकिन उसके हाथ भी काँप रहे थे। उसकी भी साँसें बढ़ी हुई थीं। लेकिन वो सभ्य आदमी था। उसके संस्कार दृढ़ थे। सुनील ने माँ की बात की लाज रख ली, और उसने बटन खोलना छोड़ कर वापस से उनके स्तन थाम लिए। माँ इस बात से हैरान नहीं थी कि सुनील उनको, उनके सारे शरीर को ऐसे खुलेआम छू रहा था, लेकिन इस बात पर हैरान थी कि वो उसे खुद को ऐसे छूने दे रही थी, और उसको रोक पाने में इतनी शक्तिहीन महसूस कर रही थी।
सुनील ने उनके कन्धों और गर्दन पर कई सारे चुम्बन दे डाले। माँ अपने कान में सुनील की उखड़ी हुई गर्म सांसें सुन सकती थी, और महसूस कर सकती थीं। उनकी खुद की हालत भी बहुत बढ़िया नहीं थी। उनका शरीर काँप रहा था। उनका आत्मनियंत्रण उनका साथ ऐसे छोड़ देगा, उनको अंदाजा भी नहीं था।
कुछ देर ऐसे मौन प्रेमाचार के बाद, सुनील ने माँ के साथ अपने भविष्य का अपना दृष्टिकोण रखना जारी रखा,
“सुमन... मैं तुमको दुनिया जहान की खुशियाँ देना चाहता हूँ। मैं तुमको खूब खुश रखना चाहता हूँ! मैं तुमको खूब प्यार करना चाहता हूँ! बहुत खुशियाँ देना चाहता हूँ! उसके लिए मैं जो भी कुछ कर सकता हूँ, वो सब करना चाहता हूँ! बहुत प्यार करता हूँ मैं तुमसे! सच में! बहुत! बहुत!”
उसने माँ की गर्दन के पीछे कुछ चुम्बन दिए। माँ का सर न जाने कैसे सुनील की तरफ़ हो कर उसके कंधे पर जा कर टिक गया। उनकी साँसे बहुत तेज़ चल रही थीं। माँ ने कुछ कहा नहीं, लेकिन उनके मुँह से एक आह ज़रूर निकल गई। सुनील ने महसूस किया कि यह माँ के स्तन-मर्दन की प्रतिक्रिया थी।
“सुमन?” उसने बड़ी कोमलता से पूछा, “दर्द हो रहा है?”
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“इनको छोड़ दूँ?” उसने फिर पूछा।
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“धीरे धीरे करूँ?” उसने फिर पूछा।
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“मेरी सुमन... मेरी दुल्हनिया... कुछ तो बोलो!” इस बार उसने बहुत प्यार से पूछा।
माँ ने फिर भी कुछ नहीं कहा, लेकिन अपने लिए ‘मेरी दुल्हनिया’ शब्द सुन कर उनका दिल धमक गया।
“दुल्हनिया, इनको देखने का मेरा कितना मन है!”
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“तुम्हारे इन प्यारे प्यारे दुद्धूओं को नंगा कर दूँ?” सुनील ने इस बार उनको छेड़ा।
माँ ने तुरंत ही ‘न’ में सर हिला कर उसको मना किया।
सुनील समझ सकता था कि माँ को शायद सब अजीब लग रहा हो। लेकिन माँ ने ही उसको कहा था कि यही मौका है, और आज के बाद वो इतनी धैर्यवान नहीं रहेंगी। तो जब एक मौका मिला था, तो उसको गँवाना बेवकूफी थी। वो उसका पूरा इस्तेमाल कर लेना चाहता था। इसलिए उसने फिर से अपनी बात माँ के कान में बड़ी कोमलता से कहना जारी रखा,
“ठीक है! कोई बात नहीं! इतने सालों तक वेट किया है, तो कुछ दिन और सही!” सुनील ने कहा!
उसके कहने का अंदाज़ कुछ ऐसा था कि जैसे माँ का उसके सामने नग्न होना कोई अवश्यम्भावी घटना हो! आज नहीं हुई तो क्या हुआ? जल्दी ही हो जाएगी!
माँ की भी चेष्टाएँ अद्भुत थीं - यहाँ आने के बाद शायद ही कोई ऐसा दिन गया हो जब सुनील ने उनके स्तनों को न देखा हो। लतिका या आभा - दोनों में से कोई न कोई उनके स्तनों के लगा ही रहता अक्सर, और उस दौरान अनेक अवसर होते थे, जब उनके स्तन अनावृत रहते थे! लेकिन इस समय उनको सुनील के सामने नग्न होना, न जाने क्यों लज्जास्पद लग रहा था।
ऐसा क्या बदल गया दोनों के बीच? पुत्र और प्रेमी में संभवतः यही अंतर होता है। पुत्र को माता से स्तनपान की भिक्षा मिलती है, और प्रेमी को अपनी प्रेमिका के स्तनों के आस्वादन का सुख!
सुनील ने कहना जारी रखा, “मेरी सुमन, एक बात कहूँ?”
माँ ने कुछ नहीं कहा, बस आँखें बंद किये, अपना सर सुनील के कंधे पर टिकाए उसकी बातें सुनती रहीं। तो सुनील ने कहना जारी रखा,
“मेरी एक इच्छा है... मैं चाहता हूँ कि जब हमारे बच्चे हों, तब तुम उनको अपना दूध, अपना अमृत कई सालों तक पिलाओ... आठ साल... दस साल... हो सके तो इससे भी अधिक!” माँ के स्तनों को सहलाते और धीरे धीरे से निचोड़ते हुए उसने कहा, “जब तक इनमें दूध आए, तब तक! भैया को भी तुमने ऐसे ही पाला पोसा था! और अम्मा भी तो यही कर रही हैं।”
माँ के चूचक उनके ब्लाउज के कपड़े से उभर कर सुनील की हथेली में चुभ रहे थे। माँ ने बहुत लंबे समय में ऐसा अंतरंग एहसास महसूस नहीं किया था। सुनील की परिचर्या पर उनके मुंह से एक बहुत ही अस्थिर सी, कांपती हुई सी, धीमी सी आह निकलने लगी।
“दुल्हनिया?” इस बार सुनील ने बड़ी कोमलता और बड़े प्यार से माँ को पुकारा।
“हम्म?”
कमाल है न? माँ सुनील के ‘दुल्हनिया’ कहने पर प्रतिक्रिया दे रही थीं। शायद उनको अपनी इस स्वतः-प्रतिक्रिया के बारे में मालूम भी न चला हो!
“कैसा लग रहा है?”
माँ ने कोई उत्तर नहीं दिया।
“अच्छा लग रहा है?”
“उम्!”
विगत वर्षों में सुनील का व्यक्तित्व अद्भुत तरीकों से विकसित हुआ था। वो अब न केवल एक आदमी था, बल्कि एक आत्मविश्वासी आदमी भी था। वो जानता था कि वो क्या चाहता है। वो एक प्रभावशाली, दमदार प्रस्ताव बनाना जानता था। इस समय वो माँ को मेरी माँ के रूप में नहीं देख रहा था; बल्कि वो उनको एक ऐसी लड़की के रूप में देख रहा था, जिसमें उसको प्रेम-रुचि है। वो माँ को ऐसी लड़की के रूप में देख रहा था, जिसे वो अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करना पसंद करेगा। और जब माँ ने उसको आज का एक मौका दिया, तो पूरी हिम्मत, आत्मविश्वास, ईमानदारी और अधिकार के साथ वो उस मौके का पूरा लाभ उठा रहा था।
“दुल्हनिया, ब्लाउज खोल दूँ?” सुनील बड़ी उम्मीद भरी आवाज़ में फुसफुसाते हुए फिर से उनको अपनी आरज़ू बताई।
“न... न... नहीं।” माँ ने जैसे तैसे, किसी तरह एक बहुत ही कमजोर अनुरोध किया, “प... प... लीज... अ... भी... न... नहीं।”
“ठीक है!” सुनील ने सरसाहट भरी आवाज़ में कहा। घबराहट तो उसको भी उतनी ही हो रही थी, जितनी माँ को।
उधर, माँ के ज़हन में बहुत सी पुरानी यादें दौड़ती हुई आ गईं। उनको याद आया कि जब वो पहली बार डैड के साथ अकेली हुई थीं, तब उन्होंने उनको कैसे छुआ था। वो कमजोर महसूस कर रही थी, वो घबराहट महसूस कर रही थी, उनको डर लग रहा था। इस समय माँ ठीक वैसा ही, फिर से महसूस कर रही थी। बस, केवल इन दोनों अनुभवों के बीच का लगभग तीस वर्षों का अंतर था!
जब माँ डैड की पत्नी बन कर आई थीं, तब उनमें स्त्री-पुरुष के प्रेम की कोई परिकल्पना नहीं थी। वो विधि के हिसाब से अभी अभी शादी के योग्य हुई थीं। उससे पहले उनका किसी पुरुष से अंतरंग संपर्क नहीं हुआ था। उन दोनों के बीच में कोई भावनाएँ पनपतीं, उसके पहले ही वो गर्भवती हो गईं। तो यूँ समझ लीजिए कि माँ और डैड के प्रेम के मूल में मैं ही था - मैं ही वो कॉमन डिनोमिनेटर था जिसके कारण वो आपस में प्रेम की भावना बढ़ा पाए। मेरे कारण डैड ने देखा कि माँ कितनी ममतामई, कितनी स्नेही स्त्री हैं; मेरे कारण माँ ने देखा कि डैड अपने परिवार के लिए कितने समर्पित हैं, कितने अडिग हैं, कितने परिश्रमी हैं। दोनों के गुण एक दूसरे को भा गए। ऐसे ही उन दोनों में कालांतर में प्रगाढ़ता बढ़ी और प्रेम भी! वो कहते हैं न - हमारे देश में लड़का लड़की का पहले विवाह होता है... और अगर उनमें प्रेम होता है, तो वो विवाह के बाद होता है। वो बात माँ और डैड के लिए भी सत्य थी। इसी बात से माँ भी परिचित थीं - ख़ास कर स्वयं के लिए!
उन्होंने सुनील से संयम रखने का अनुरोध तो किया था, लेकिन उनको इस बात का कोई भरोसा नहीं था कि उनका अनुरोध सुनील को कैसा सुनाई दिया होगा, या उनको खुद को उस अनुरोध के बारे में कैसा महसूस हो रहा था। माँ के दिमाग के एक हिस्से को उम्मीद थी कि सुनील जो कर रहा है, वो करता रहे। जबकि एक दूसरे हिस्से को उम्मीद थी कि वो उन्हें अकेला छोड़ दे।
सुनील को भी माँ के उहापोह का एहसास हो गया होगा!
“अच्छा, मेरी सुमन - तुमको मुझ पर भरोसा है?”
माँ ने बड़े आश्चर्य से सुनील की तरफ़ देखा - ‘ये कैसा प्रश्न?’
समझिए कि यह प्रश्न किसी भी रिश्ते की अग्नि परीक्षा होती है। अगर भरोसा नहीं, विश्वास नहीं, तो प्रेम नहीं हो सकता! सुनील पर अविश्वास न करने का आज तक तो कोई कारण नहीं मिला। उनको सुनील पर भरोसा तो था ही! अगर यह सम्बन्ध न बने, तो भी! माँ का सर स्वतः ही ‘हाँ’ में हिल गया।
“ऐसे नहीं!” उसने बड़े दुलार से कहा, “बोल कर बताओ!”
“हाँ!” माँ घबरा गईं - इस बात को स्वीकार करना समझिए एक तरीके से उनके और सुनील के सम्बन्ध के नवांकुर को जल और खाद देने समान था, “भरोसा है!”
“तो अगर मैं तुमसे कुछ कहूँ, तो तुम मेरा भरोसा कर लोगी?”
माँ ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया, लेकिन कुछ कहा नहीं।
“तो दुल्हनिया मेरी, मुझे अपनी ब्लाउज के बटन खोलने दो…”
“लेकि…” माँ कुछ कहने वाली हुईं, कि सुनील ने बीच में टोका,
“दुल्हनिया, मैं केवल बटन खोलूँगा, और कुछ नहीं! प्रॉमिस!” सुनील ने कहा, कुछ देर माँ के उत्तर का इंतज़ार किया, और फिर उसने बड़ी कोमलता, बड़े स्नेह और बड़े आदर से बोला, “समझ लो, कि यह मेरा तुम्हारे लिए मेरे प्यार का इम्तहान है!”
माँ उहापोह में पड़ गईं - अगर वो सुनील को मना करती हैं, तो उसके लिए साफ़ साफ़ संकेत है कि उनको उस पर भरोसा नहीं। और अगर मना नहीं करती हैं, तो सुनील दूसरा आदमी बन जायेगा, जो उनकी ब्लाउज के बटन खोलेगा! कैसा धर्म-संकट है ये!
उसने कहा और कुछ देर इंतज़ार कर के कहा, “कर दूँ?”
“ठ… ठीक है!” माँ ने थूक गटकते हुए स्वीकृति दे दी। न जाने क्यों? शायद वो खुद भी देखना चाहती थीं कि क्या यह व्यक्ति अपनी बात का, और उनके सम्मान का मान रख सकता है या नहीं!
सुनील समझ रहा था, कि उसके प्रयासों का माँ पर एकदम सही प्रभाव पड़ रहा है। उसने माँ से अपने प्रेम की, और उनसे विवाह करने की अपनी इच्छा व्यक्त कर दी थी, और वो जानता था कि उसने अपनी उम्मीदवारी के लिए बड़ा मजबूत मामला बनाया है। अपने मन में वो पहले से ही खुद को माँ का प्रेमी मान चुका था, और इसलिए वो उनके प्रेमी के ही रूप में कार्य करना चाहता था। उसे यह विश्वास था कि सुमन उसे ऐसा कुछ भी करने से रोक देगी, जो उनको पसंद नहीं है। वास्तव में, माँ के लिए उसके इरादे शुद्ध प्रेम वाले ही थे; लेकिन माँ जैसी सुंदरी से वो बेचारा एक अदना सा आदमी दूरी बनाए रखे भी तो कैसे?
सुनील मुस्कुराया, और उसने धीरे धीरे, एक एक कर के उसने माँ की ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए, और अपने वायदे के अनुसार, उनके दोनों पटों को बिना उनके स्तनों से हटाए उनके स्तनों के बीच, सीने पर अपना हाथ फिराया। गज़ब की अनुभूति! कैसी चिकनी कोमल त्वचा! एकदम कोमल कोमल, बेहद बारीक बारीक रोएँ! अप्सराओं के बारे में जैसी कहानियाँ सुनी और पढ़ी थीं, उसकी सुमन बिलकुल वैसी ही थी! अब तो आत्मनियंत्रण की जो थोड़ी बहुत गुंजाईश थी, वो भी जाती रही।
माँ से किए वायदे के अनुरूप उसने उनके स्तनों को नग्न करने का प्रयास तो बंद कर दिया, लेकिन उनके शरीर पर अपने प्रेम की मोहर लगाने में उसके कोई कोताही नहीं बरती। और ऐसे ही चूमते चूमते वो फिर से उनके सामने आ गया। उसको उनकी ब्लाउज की पटों के बीच उनका सीना दिखा। बिलकुल शफ़्फ़ाक़ त्वचा! साफ़! शुद्ध! उसके दिल में करोड़ों अरमान एक साथ जाग गए! लेकिन क्या कर सकता था वो? अपने ‘जीवन के प्यार’ से वायदा जो किया था - अब उसको निभाना तो पड़ेगा ही, न? उसने चेहरा आगे बढ़ा कर माँ के दोनों स्तनों के बीच के भाग को - जो इस समय अनावृत था, उसको चूम लिया।
“दुल्हनिया? इनको भी चूम लूँ?” उसने बड़ी उम्मीद से कहा, “ब्लाउज के ऊपर से ही?”
माँ ने बड़ी निरीहता से उसको देखा - न तो वो उसको मना कर सकीं और न ही उसको अनुमति दे सकीं।
“बस एक बार, मेरी दुल्हनिया?”
माँ को मालूम था कि सुनील की दशा उस समय कैसी होगी! सही बात भी है - अगर कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को ऐसी हालत में देखे, तो स्वयं पर नियंत्रण कैसे धरे? संभव ही नहीं है। और उस पर भी वो उनसे अनुरोध कर रहा था। अपनी बिगड़ी हुई, ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति में भी माँ का दिल पसीज गया। उनका सर बस हल्का सा ‘हाँ’ में हिला।
बस फिर क्या था, सुनील के होंठ तत्क्षण माँ के ब्लाउज के ऊपर से उभरे हुए एक चूचक पर जा कर जम गए!
पहली बार! सुनील के जीवन में पहली बार माँ के स्तन उसके मुँह में थे!
काफ़ी पहले से ही माँ सुनील को अपना स्तनपान करने की पेशकश करती आई थीं - और सुनील हमेशा ही उस पेशकश को मना करता रहा था। लेकिन आज बात अलग थी... आज सुनील ने उसकी माँग करी थी, और माँ झिझक रही थीं। और क्यों न हो? माँ की पहले की पेशकश और सुनील की अभी की चेष्टा में ज़मीन और आसमान का अंतर था। आज से पहले माँ की स्तनपान की पेशकश ममता से भरी हुई थी - उसको स्वीकारने का मतलब था उनका बेटा बन जाना। लेकिन सुनील हमेशा से ही उनका प्रेमी बनना चाहता था, उनका पति बनना चाहता था।
माँ को ऐसा लगा कि जैसे सुनील के होंठों से उत्पन्न हो कर विद्युत की कोई तरंग उनके पूरे शरीर में फैल गई हो। और उस तरंग का झटका ऐसा था कि जैसे उनकी जान ही निकल जाए!
सुनील का उनके स्तनों को प्रेम करने का अंदाज़ प्रेमी वाला था - पुत्र वाला नहीं! अगर उनको थोड़ी भी शंका बची हुई थी, तो वो अब जाती रही। वो सुनील के लिए उसकी प्रियतमा ही थीं! माँ इस बात से अवश्य प्रभावित हुईं कि अगर सुनील चाहता, तो अपनी उंगली की एक छोटी सी हरकत मात्र से उनके स्तनों को निर्वस्त्र कर सकता था। लेकिन उसने वैसा कुछ भी नहीं किया! छोटी छोटी बातें, लेकिन उनका कितना बड़ा प्रभाव! सही ही कहते हैं - अगर किसी के चरित्र के बारे में जानना हो, तो बस ये देखें कि वो छोटी छोटी बातों पर कैसी प्रतिक्रिया देता है।
फिर वो पीछे हट गया। एकाएक।
“सुमन... मेरी प्यारी दुल्हनिया... तुम मेरा प्यार हो… मेरा सच्चा प्यार… मेरे जन्म जन्मांतर का प्यार!” सुनील ने बड़े प्रेम से, लेकिन ज़ोर देकर कहा, “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। और तुमको मैं बहुत रेस्पेक्ट भी करता हूँ! और मैं अपनी पूरी उम्र करता रहूँगा। तुम मेरे लिए एकदम परफेक्ट हो, और मुझे उम्मीद है कि मैं भी तुम्हारे लिए कम से कम ‘सही’ तो हूँ!”
उसने बहुत प्यार से माँ के गालों को सहलाया, “मैंने अभी जो कुछ भी किया, वो सिर्फ इसलिए किया क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। बहुत प्यार! मैं हमारे बीच बहुत मजबूत बंधन महसूस करता हूँ। इतने सालों से मैं केवल तुम्हारे साथ ही अपना जीवन बिताने का सपना देख रहा हूँ। मुझे तुमसे प्यार है। अगर तुम मेरी किसी बात पर भरोसा कर सकती हो, तो प्लीज मेरा विश्वास करो कि मैंने तुम्हारे अलावा कभी भी किसी और लड़की को देखा तक नहीं है। किसी और लड़की के बारे में सोचा तक नहीं!”
उसने माँ के माथे को चूमा। माँ को फिर से वही, अपनी त्वचा झुलसने और चुम्बन का उनकी त्वचा में समाने का एहसास हुआ।
“मैं तुमको अपनी मानता हूँ! ... और उम्मीद करता हूँ कि तुम भी मुझको अपना मान लोगी!” उसने मनुहार किया, फिर मुस्कुरा कर बोला, “मैं अब जा रहा हूँ... और अगर मैं यह बात पहले कहने में चूक गया हूँ, तो एक बार और सुनो : मैं तुमसे प्यार करता हूँ सुमन... बहुत प्यार! और मैं हमेशा तुमको प्यार करता रहूँगा! अपनी उम्र भर! मैं चाहता हूँ... और मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी पत्नी बन जाओ। प्लीज इस बारे में सोचो।”
उसने एक नज़र भर के माँ को एक आखिरी बार और देखा, उनके गालों को प्यार से छुआ, और “आई लव यू” बोल कर कमरे से बाहर निकल गया।
सुनील के कमरे से बाहर जाने ही जैसे माँ को होश आया - उन्होंने फौरन अपने कपड़े दुरुस्त किए और अपनी ब्लाउज के बटन लगाए। उनकी साँसे भारी भारी हो गई थीं, और उनके दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं। बड़े यत्न से वो अपने आप को सामान्य करने की कोशिश करने लगीं; और साथ ही साथ सुनील ने जो कुछ उनसे कहा था, और किया था, उस पर विचार करने लगीं। ठन्डे दिमाग से सोचने पर उनको लगा कि सुनील ने जो कुछ भी उनके साथ किया था, जो कुछ भी उनसे कहा था, वो सब जायज़ था। उसकी सभी बातों में ईमानदारी थी, और उसकी हरकतों में शरारत थी। सुनील ने उनको ऐसे छुआ था जैसे कि वो हमेशा से ही उसकी हों - उसकी प्रेमिका और उसकी पत्नी!
माँ यह सब सोच कर शर्म से काँप गईं।
शायद सुनील अपनी बातें उनसे कहने से पहले ही उनको अपनी पत्नी के रूप में देखने लगा है!
शायद सुनील पहले से ही उनके बारे में ऐसा सोच रहा है।
माँ ने सोचा, कि अगर उनकी उम्र अधिक नहीं होती - अगर वो सुनील की हम-उम्र होतीं, तो क्या वो तब भी सुनील से शादी करने के विचार पर इतनी झिझक महसूस करती? शायद नहीं! ‘शायद नहीं’ का क्या मतलब? बिलकुल भी नहीं झिझकतीं! सुनील सचमुच बहुत ही हैंडसम, आत्मविश्वासी, मर्दाना और हिम्मती आदमी था! वो एक मेहनती और गौरवान्वित आदमी भी था। सर्वगुण संपन्न है सुनील! एक काबिल आदमी है वो! उसके साथ वैवाहिक जीवन में माँ को आर्थिक सुरक्षा भी मिलेगी, जो उनके एक छोटे से संसार के निर्माण की अनुमति देगा। माँ यह सब सोचते समय इस बात को भूल गईं कि उनके दिए गए पैसों से ही मैंने अपना बिज़नेस खड़ा किया था, और उस बिजनेस में मेजर शेयरहोल्डिंग के कारण, वो अपनी जानकारी और आँकलन से कहीं अधिक संपन्न और समृद्ध महिला थीं, और आगे और भी अधिक समृद्ध होने वाली थीं! लेकिन उनको उस बात से कोई सरोकार ही नहीं था जैसे! माँ के संस्कार में पति का धन ही पत्नी का धन होता है! तो अगर उनका अगला आशियाना बनेगा, तो सुनील के साथ! और इन सभी बातों से सबसे बड़ी, सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि सुनील उनसे प्यार करता है! बहुत प्यार! और यह बात अब उनके मानस पटल पर पूरी तरह से स्पष्ट हो चली थी।
सुखी विवाह के लिए सभी ‘महत्वपूर्ण’ बातें जब इतनी अनुकूल थीं, तो वो सुनील से शादी करने में इतनी संकोच क्यों कर रही थीं? क्या उनका यह पूर्वाग्रह किसी विधवा के पुनर्विवाह की हठधर्मिता के कारण था? या फिर एक बड़ी उम्र की महिला का एक छोटे उम्र के आदमी से शादी करने की हठधर्मिता के कारण था? सुनील सही कहता है - उनको इस बात की परवाह क्यों करनी चाहिए कि दूसरे क्या सोचते हैं, या क्या कहते हैं? अगर उनके लोग, उनका परिवार सुनील के साथ उनकी शादी को स्वीकार कर सकते हैं, तो उनको एक खुशहाल विवाहित जीवन जीने का एक और प्रयास क्यों नहीं करना चाहिए? वो क्यों न अपने मन की वर्षों से दबी हुई इच्छाओं को पूरा करें? ऐसी कौन सी अनहोनी इच्छा है उनकी? वो बस अपना एक बड़ा सा परिवार ही तो चाहती हैं - कई सारी महिलाओं की यही इच्छा होती है! उनकी जब शादी हुई, तब से वो बस सुहागिन ही मरना चाहती थीं - मतलब जीवन पर्यन्त विवाहिता रहना चाहती थीं, और अभी भी उनकी यही इच्छा है! सारी विवाहित महिलाओं की यही इच्छा होती है! यह सब कोई अनोखी इच्छाएँ तो नहीं है! और सुनील उनकी यह इच्छाएँ पूरी करना चाहता है - वो उनको विधि-पूर्वक अपनी पत्नी बनाना चाहता है। जब उसके इरादे साफ़ हैं, तो उनको संशय क्यों हो?
लेकिन अगर सुनील केवल उनके साथ सिर्फ कोई खेल खेल रहा हो, तो?
यह एक अविश्वसनीय विचार था, क्योंकि उनको मालूम था कि सुनील बहुत ही शरीफ़ और सौम्य व्यक्ति है! लेकिन कौन जाने? इस उम्र में बहुत से लड़कों को न जाने कैसी कैसी फंतासी होने लगती है। उनके शरीर में हॉर्मोन उबाल मार रहे होते हैं, और ऐसे में वो किसी भी औरत को अपने नीचे लिटाने में ही अपनी मर्दानगी समझते हैं! सुनील अभी अभी हॉस्टल से लौटा है। क्या पता - वहाँ रहते रहते कहीं उसका व्यक्तित्व न बदल गया हो?
वो कहते हैं न, देयर इस नो फूल लाइक एन ओल्ड फूल?
अगर ऐसा है, तो वो खुद को मूर्ख तो नहीं बनाना चाहेगी, है ना? वो भी इस उम्र में! ऐसी बेइज़्ज़ती के साथ वो एक पल भी जी नहीं सकेंगी! लेकिन सुनील के व्यवहार, उसके आचार को देख कर ऐसा लगता तो नहीं। आदमी परखने में ऐसी भयंकर भूल तो नहीं होती! और ये तो अपने सामने पला बढ़ा लड़का है! वो उनके साथ, अपनी अम्मा के साथ, और अपने भैया के साथ ऐसा विश्वासघात क्यों करेगा?
वाह एक साथ हैट्रिक अपडेट्स, बहुत ही शानदार।
आखिर बाबूजी के सुमन के लिए शादी के प्रस्ताव ने दोनो की दिल की बात बहार निकल ही दी और उन्होंने भी एक पारखी की नजर से सब पहचाल लिया। पहले तो सुनील की जान ही निकल गई ये बात जान कर की इतना अच्छा रिश्ता आया है तो शायद सुमन हां न कर चुकी हो
मगर जब पता चल की उसने हां नही कहा है तो अपने लड़के तो पंख लग गए फिर तो गाड़ी इसने टॉप गियर में दौड़ा दी।
माना की सुनील का प्यार सच्चा है और वो दिलो जान से सुमन को चाहता है मगर सुमन का संसय भी गलत नहीं है क्या बता अभी जो भी सुनील बोल या कह रहा है वो प्यार से जायदा हार्मोनल चेंज और जिस तरह की जिंदगी सुमन और बाबूजी जीते आए है उसका परिणाम हो। सुमन सुनील की जिंदगी की पहली पराई स्त्री है जिसको उसने इतने बेबाक और खुले रूप से देखा है बेपर्दा तो आकर्षण स्वाभाविक है और जब घर में हिंकोई इतना एप्रोचेबल लगे तो इंसान बाहर किसी और आकर्षित भी नही होगा और एफर्ट भी नही करेगा जब तक घर की तरफ से ना ना हो जाए।
तो काफी हद तक सुमन भी सही है
मगर सुनील का प्यार सच्चा है जैसा वो बोलता है तो फिर दोनो की जिंदगी काफी शानदार होने वाली है।
मगर अभी तो सुमन ने हो हां नही कहा है मगर अनजाने में वो सुनील को धीरे धीरे स्वीकार भी कर रही है जैसे की सुनील।के लिए आप का प्रयोग करना ना की तू या तुम। उसकी बातो और स्पर्श का विरोध ना करना कहीं ना कहीं सुमन की मौन स्वीकृति जता रहा है और सुनील के विश्वास को भी बढ़ा रहा है।
मगर जब तक सुमन अपनेऊंह से हां नही बोलती तब तक सब अटकलें ही है तो देखना होगा की आगे क्या होता है।
प्रेम की भावनाओ से ओत प्रोत शानदार अपडेट्स avsji भाई
हम तो शुरू से ही साथ है दोस्तLib am भाई साहब - सबसे पहले बहुत बहुत धन्यवाद! आपको पढ़ कर पसंद आया, यह जान कर बहुत ख़ुशी हुई!
और, आपके सारे के सारे कमेंट्स बिलकुल सही हैं, और सटीक हैं!
हाँ - उस बात से सुनील और सुमन दोनों को ही एक पर्सपेक्टिव मिला।
और प्यार की शिद्दत के बारे में भी थोड़ी समझ आई!
लड़का ही तो है! नादान! लेकिन सच्चा लग रहा है वो!
नादान होने में कोई बुराई नहीं। प्यार भी तो मासूम वस्तु होता है!
सही बात है - और कई स्थान पर सटीक भी। लेकिन अरेंज्ड मैरिज भी तो लिमिटेड स्कोप में ही की जाती है न?
जाति, वर्ण, जान-पहचान इत्यादि ही देख कर? लव में भी यही होता है - वर्क प्लेस, आस पास इत्यादि! पूरी दुनिया देख कर, सारे प्रकार के सैंपल इकठ्ठा कर के प्यार नहीं हो सकता!
इसलिए सुनील का आकर्षण स्वाभाविक है - ठीक उसी प्रकार हुआ होगा, जैसा आप कह रहे हैं। लेकिन बात आकर्षण से परे हट कर, सच्चे प्रेम की हो रही है।
सच्चा प्रेम है, या नहीं? बात बस इतनी ही है!
जी बिलकुल! एक अलग ही, और अनिश्चित से मोड़ पर है वो अपने जीवन के।
उसका संशय करना जायज़ है।
हाँ। सुनील की सच्चाई पर बहुत कुछ टिका है।
अगर वो धोखेबाज़ है, तो न केवल सुमन, बल्कि अपनी माँ, और अमर के साथ भी भीषण धोखा देने वाला है। अगर ऐसा है तो यह सोचना चाहिए कि अपनी जड़ें काट कर, कोई कितनी देर जीवित रह सकता है?
आप बिलकुल सही हैं।
जैसा कि मैंने लिखा, उसकी बड़ी ही अनिश्चिति वाली स्थिति है!
सुनील तो उसके मौन को ही स्वीकृति मान चला है!
नादान है लड़का! उसकी गलती माफ़ की जाए या नहीं?
बहुत बहुत धन्यवाद भाई!
मुझे पूरी उम्मीद थी कि सबसे पहले आप ही इन अपडेट्स को पढ़ेंगे, और कमेंट्स करेंगे!
और बिलकुल वही हुआ
मिलते हैं जल्दी ही!
nice update..!!अंतराल - पहला प्यार - Update #7
कमरे के अंदर का माहौल, भावनात्मक रूप से बहुत ही भारी हो चला था, कि इतने में मुख्य दरवाज़े की घंटी बजी।
उसकी आवाज़ सुन कर सुनील और माँ जैसे किसी तन्द्रा से जागे! सुनील और माँ दोनों ही चौंक कर ठिठक गए। सुनील बाहर की तरफ़ देखने के लिए माँ से अलग हो गया। माँ को यह अवसर ठीक लगा - वो उठीं, और तत्परता से दरवाज़े की ओर बढ़ीं! काजल, चूँकि वो रसोई में थी, इसलिए उसको दरवाज़े तक आने में समय लगा। दरवाज़ा खुलने पर माँ ने देखा, कि देवयानी के डैडी - मतलब मेरे ससुर जी खड़े थे। बेचारे बूढ़े तो पहले ही हो गए थे, लेकिन पिछले कुछ समय में वो और भी बूढ़े हो गए थे।
“अरे, बाबू जी, आप?” माँ ने प्रसन्न होते हुए कहा, और अपने सर को पल्लू से ढँकते हुए उनके चरण स्पर्श करने लगीं, “प्रणाम!”
“सौ…” वो कहते कहते ठिठके, “जीती रहो बेटी! हमेशा खुश रहो!”
“आप कैसे हैं?”
“तुमको लोगों को देखने की इच्छा थी! इसलिए चला आया। अब बहुत अच्छा हो जाऊँगा!” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।
उनकी बातें बड़ी सच्ची होती थीं। शादी के समय से ही उन्होंने माँ और काजल को बेटी समान ही समझा - रिश्ते में भले ही वो उनकी समधन थीं। प्रेमजन्य रिश्ते, सामाजिक रिश्तों से काफी अलग हो सकते हैं। वो आते, और माँ और काजल के साथ देर तक बतियाते, और दोनों बच्चों के साथ बच्चों की ही भाँति खेलते। सच में, वो यहाँ आ कर खुश हो कर ही वापस जाते। और हमारे यहाँ उनको परिवार के मुखिया जैसा ही आदर, सम्मान, और प्रेम मिलता।
इतने में काजल भी आ गई : उसने भी उनके चरण स्पर्श करते हुए कहा, “क्या बाबू जी! जाइए - हम नहीं करते आपसे बातें!”
“जीती रहो बेटी! अरे बिटिया, अपनी ही बेटियाँ बातें न करेंगी, तो इस बाप का क्या होगा?” उन्होंने बड़े लाड़ से काजल के सर पर आशीर्वाद वाला हाथ फिराते हुए कहा।
“तो फिर आप इतने दिनों बाद क्यों आए?”
“अरे बच्चे! एक काम में बहुत बिजी हो गया था।” वो हँसते हुए बोले, “अब उस काम में थोड़ी दिशा मिली है! उसी सिलसिले में ही तो मिलने चला आया!”
काजल मुस्कुराई, “आईये न! बिना खाना खिलाए न जाने दूँगी! हर बार का बहाना है आपका।”
वो भावुक हो गए, “सच में! मैं तो इतनी प्यारी बच्चियाँ पा कर धन्य हो गया! एक बेटी खोई ज़रूर, लेकिन दो और भी तो हैं मेरी!”
“बिलकुल हैं बाबू जी,” माँ ने कहा, “ये आपका घर है! आप हमारे मुखिया हैं। हम आपकी ही छत्रछाया में हैं! इस बात पर तो कोई भी संदेह नहीं करेगा!”
“ईश्वर तुमको हमेशा खुश रखें बेटी!” उन्होंने बड़े स्नेह से माँ के सर पर हाथ फेरा।
सुनील भी आया और उसने भी उनके पैर छुए, “जीते रहो सुनील बेटे! भई, तुम्हारे आने से न, इस घर में एक अलग ही तरह की ख़ुशी आ गई है सुनील! मेरी बिटिएँ ऐसे चहक कर बातें करने लगी हैं!”
वो केवल मुस्कुराया। माँ भी मुस्कुराईं। काजल भी।
“कब है जॉइनिंग बेटा?”
“बस यही तीन चार हफ़्तों में अंकल जी!”
“बहुत बढ़िया! बहुत बढ़िया! घर के बच्चे जब तरक्की करते हैं न, तो क्या आनंद आता है! मारे घमंड के सीना चौड़ा हो जाता है!”
उनकी बात पर सभी मुस्कुरा दिए। सोचने वाली बात थी न - वो खुद आई ए एस ऑफ़िसर रह चुके थे। देश में युवक युवतियों के लिए एक आई ए एस ऑफ़िसर बनना सबसे बड़ा एस्पिरेशन होता है! और वो बात कर रहे थे सुनील के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने की उपलब्धि पर होने वाले गर्व की! उनकी बात में कोई बनावट नहीं थी। वो वाकई हमारी तरक्की को देख कर गौरान्वित होते थे!
कुछ देर इधर उधर की बातें, और एक दूसरे का कुशल क्षेम पूछने के बाद काम की बात पर चर्चा होने लगी।
“सुमन बेटा, काजल बेटा, तुम लोगों से एक ज़रूरी बात करने आया था आज!”
“जी बाबू जी! कहिए न?” माँ कुछ कह पातीं, कि काजल तपाक से बोली।
वो मुस्कुराए, “देख बेटा, मैंने तुम दोनों, और अपनी जयंती और पिंकी में कभी कोई अंतर नहीं समझा! तुम चारों को एक समान समझा, माना, और प्यार किया! और आज भी तुम सभी की चिंता मुझे एक समान ही है!”
“बाबू जी, यह कोई कहने वाली बात है! क्या हो गया? कहिए न? मन में किसी तरह की दुविधा मत लाईये!”
“बिटिया, बुरा मत मानना! लेकिन थोड़ी पर्सनल सी बात है।”
“बाबू जी, जो भी कुछ है, आप हमारा कुछ भला सोच कर ही यह बात कहने आए हैं! कहिए न?” माँ ने कहा।
“काजल बेटा... सुमन... मैं... सुमन बेटा... तुम्हारे लिए एक रिश्ते की बात ले कर आया हूँ!”
“क्या?” काजल आश्चर्य से बोली।
माँ और सुनील के दिल धक् कर के दो पल के लिए रुक गए। यह तो बेहद अप्रत्याशित सी बात हो गई! दोनों के मुँह से एक शब्द भी बोल नहीं निकले!
ससुर जी कहते रहे, “सुमन, बेटा... लड़का - मेरा मतलब है कि ग्रूम, एक आई ए एस ऑफ़िसर है! देखा भाला है। तुमसे बस चार पाँच साल ही बड़ा है! उसकी वाइफ की डेथ कोई तीन साल पहले हो गई थी। उसकी एक बेटी है, बारह साल की! बिलकुल पुचुकी जैसी प्यारी और चंचल!”
उन्होंने कहा और कुछ देर चुप रहे। वहाँ उपस्थित सभी लोगों के चेहरे पर आने जाने वाले भावों को वो पढ़ते रहे।
“तुम कहो, तो बात चलाऊँ? अच्छा, देखा भाला लड़का है!”
कुछ देर माँ ने कुछ भी नहीं कहा। उनके चेहरे का रंग उतर गया था - आँखों में एक डर, और चेहरे पर उलझन वाले भाव! उनसे कुछ कहते ही नहीं बन रहा था। ससुर जी ने भी देखा - माँ झिझक रही थीं, लेकिन उनकी झिझक एक अलग प्रकार की थी।
माँ को इतना चुप देख कर काजल ने ही कहा, “बाबू जी, यह तो बहुत अच्छा मैच ले आए आप! मेरी दीदी जिसके भी घर जाएगी, उस घर की किस्मत पर चार चाँद लगा देगी!”
“निःसंदेह बेटा!” ससुर जी खुश से लगे, “इसीलिए तो मुझे सुमन के लिए वो लड़का पसंद आया। किसी ऐसे वैसे से थोड़े ही न इसकी शादी की बात करूँगा!”
“क्या कहती हो दीदी?”
काजल की बात पर माँ जैसे कहीं दूर से वापस आई हों। उनकी निगाहें सुनील के ऊपर पड़ीं। उसके चेहरे पर भी माँ के जैसे ही हाव भाव थे! दोनों के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं। दोनों की नज़रें दो पलों के लिए एक दूसरे में जैसे समां गईं। माँ का गला ख़ुश्क हो गया। उनसे कुछ कहते न बना।
“आई नो, इट इस अ वैरी बिग डिसिशन! इसलिए थोड़ा सोच लो!” उन्होंने कुछ सोचते हुए कहा।
माँ ने अभी भी कुछ नहीं कहा। काजल भी चुप हो गई। सभी को ऐसे चुप चाप बैठे देख कर ससुर जी ही बोले,
“अच्छा तो मैं अब चलता हूँ!” कह कर वो उठने लगे!
“अरे ऐसे कैसे बाबू जी,” काजल ने मनुहार करते हुए कहा, “खाना खा लीजिए, फिर जाइए! मैंने कहा है न - ऐसे तो नहीं जाने दूँगी! आप हमेशा ही बिना खाये चले जाते हैं!”
कह कर काजल तेजी से रसोई में चली गई। बाकी तीनों वहीं रह गए। कुछ देर चुप्पी के बाद,
“सुनील बेटा,” ससुर जी ने कहा, “कुछ पल थोड़ा बाहर चले जाओ! मैं सुमन से कुछ बातें कह दूँ?”
सुनील बड़े अनमने ढंग से उठा, और झिझकते हुए बाहर चला गया। ऐसे बुज़ुर्ग के अनुरोध पर वो कुछ कह भी नहीं सकता था। माँ उसको बाहर जाते हुए बड़ी कातरता से देखती रहीं। कुछ बोलीं नहीं।
‘हे भगवान, कैसी घोर समस्या!’
“सुमन, मेरी बिटिया रानी, मैं तुमको किसी मुसीबत में नहीं डालना चाहता था... लेकिन अब तो बात बाहर आ ही गई है!”
“नहीं बाबू जी,” माँ ने गहरी साँस भरते हुए कहा, “क्या ही मुसीबत है! कुछ भी तो नहीं!”
“है न बेटे - एक तरफ रेशनल सम्बन्ध है, जो मैं अभी तुम्हारे लिए लाया हूँ! यह सम्बन्ध समाज को बड़ी आसानी से मान्य हो जाएगा!” वो थोड़ा ठहरे, “अगर मुझे तुम्हारे प्यार के बारे में मालूम होता तो मैं... तो मैं... यह सब कहता ही न!”
“ज्जीईई? म... म्म्मेरा प्यार?” माँ हकलाने लगीं, “अ... आ... आप क्या कह रहे हैं!”
“और नहीं तो क्या?” वो बड़े वात्सल्य से मुस्कुराए, “मेरी बिटिया रानी, मेरी आँखें ऐसे ही बूढ़ी थोड़े ही हो गईं! कुछ दुनिया तो इन्होने भी देखी हैं!”
“ब... ब... बाबू जी, मैं क़... कुछ समझी नहीं!”
“मेरी प्यारी बेटी है न तू! इसीलिए शर्मा रही है! सयानी बेटियाँ तो अपने बाप से यह सब कहने में झिझकती ही हैं! कोई बात नहीं। लेकिन एक बात सच सच बताना मुझे बेटा - नहीं तो बड़ा अपमान होगा मेरा!” उन्होंने कहा, “तेरी मुस्कान... तेरे चेहरे की रौनक... तेरी खुशियों का कारण... अपना सुनील ही है न?”
“बाबू जी?” माँ हतप्रभ थीं!
“सच सच कहना?”
माँ से कुछ कहते न बना। उन्होंने बस अपनी आँखें नीची कर लीं।
ससुर जी को बहुत कुछ समझ में आ गया : उनका संदेह सही था! वो बोले, “उसने तुझको प्रोपोज़ किया?”
माँ से फिर से कुछ कहते न बना।
“बोल न बेटे? मैं तेरा बाप नहीं हूँ, न सही! लेकिन बाप से कम भी नहीं हूँ! कुछ तो भरोसा रख मुझ पर?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“उसने तुझको प्रोपोज़ किया?”
“जी बाबू जी!” माँ ने झिझकते हुए कहा।
“और तूने? मेरा मतलब तूने स्वीकार कर लिया?”
माँ ने कुछ नहीं कहा। स्वीकार तो नहीं किया, लेकिन इंकार भी कहाँ किया?
“हम्म, समझ गया!”
माँ को समझ नहीं आ रहा था कि इस विषय पर वो ससुर जी से कैसे बात करें! लेकिन उन्होंने माँ को जिस तरह का विश्वास दिलाया था, उससे उनका हौसला थोड़ा बढ़ा। वैसे भी वो एक पारम्परिक महिला थीं। अपने ऊपर किसी बड़े का हाथ महसूस कर के उनको थोड़ा ढाढ़स बँधा।
“मैं... मैं क्या करूँ बाबू जी?” उन्होंने बड़ी हिम्मत कर के कहा।
“किस बारे में?”
“यही सब!” माँ फिर से झिझकने लगीं। वो और क्या बोलें? अगर ‘बाबू जी’ को इतना अनुभव है, तो बिना कुछ कहे ही समझ क्यों नहीं लेते?
ससुर जी समझदार ही नहीं, बल्कि बहुत दयालु व्यक्ति भी थे। उनके अंदर भी बहुत स्नेह था।
“देख बेटा, जब मेरी वाइफ की डेथ हुई थी, तब मुझे भी बहुत अकेलापन महसूस हो रहा था। लेकिन मेरे दोनों बच्चे बहुत छोटे थे तब। और मैंने सौतेली माँओं की ऐसी ऐसी कहानियाँ देखी और सुनी थीं, कि मेरी हिम्मत नहीं हुई। इसलिए मैंने अकेलेपन को ही स्वीकार लिया। और क्या करता?”
कहते हुए उन्होंने माँ की प्रतिक्रिया देखी - माँ सतर्क हो कर सुन रही थीं।
“लेकिन कठिन होता है अकेलापन! बड़ा कठिन। सोचा था कि वाइफ की यादों के सहारे, और जयंती और पिंकी के सहारे अपनी ज़िन्दगी बिता दूँगा! मैं न जाने कैसे भूल गया कि उन दोनों की अपनी भी एक ज़िन्दगी है, और होगी! उनके हस्बैंड्स होंगे, बच्चे होंगे! वो अपना संसार सम्हालेंगी, कि मेरी देखभाल करेंगीं?” उन्होंने थोड़ा रुक कर कहा, “मेरी जॉब ऐसी थी कि मेरा अधिकतर समय काम में ही बीत जाता था। लेकिन फिर...”
उन्होंने माँ को देखा। माँ अपनी तर्जनी से, अपने अँगूठे को कुरेदते हुए, और अपनी आँखें नीची किये हुए उनकी बातें सुन रही थीं।
“ये कंपनी लगाने का ख़याल भी उसी अकेलेपन से भागने के कारण आया! सोचा कि बुढ़ापे में इसी काम के सहारे समय निकल जाएगा! लेकिन फिर समझ में आया कि कितना कठिन काम है कंपनी सम्हालना भी! अमर न होता, तो न जाने क्या होता!” वो जैसे एक अलग ही तरह की यादों के सागर में गोते लगा रहे थे। फिर वहाँ से वापस आते हुए बोले, “लेकिन सच में बहुत कठिन है यूँ अकेले रहना! एक तरह से मेरा काम ही मेरा प्यार रहा है पूरी ज़िन्दगी! और सच सच कहूँ?”
माँ ने उनको देखा।
ससुर जी बोले, “अगर मुझे एक और बार प्यार मिला होता न, तो मैं उसको अपना लेता! बहुत न सोचता! इसीलिए मेरी बच्ची, तुझे अगर प्यार मिल रहा है न, तो तू उसको अपना ले!”
माँ का सर घूम गया। सामाजिक वर्जनाएँ, सुनील और उनका सम्बन्ध, काजल और उनका सम्बन्ध! कैसे होगा यह सब?
“लेकिन बाबू जी, सोचिए न! कहाँ मैं, और कहाँ वो?”
“कहाँ तुम? कहाँ वो?” ससुर जी ने निष्पक्ष भाव से कहा, “कहाँ हो तुम दोनों? सुनील तो अपना देखा भाला लड़का है न! कितने सालों से तो जानती हो तुम उसको! मैं भी तो इतने सालों से देखता आया हूँ उसको! बहुत अच्छा लड़का है। मुझे उस पर गर्व है। मेहनती है, सच्चा है! और क्या चाहिए?”
“यह सब कुछ है बाबू जी,” माँ का दिल बैठ रहा था, “और सारी परेशानी की जड़ भी तो यही है न! मैं उसको इतने सालों से न जानती, तो ऐसी दिक्कत भी तो न होती! माँ जैसी हूँ मैं उसकी! आप इस बात से इंकार करेंगे?”
“बिलकुल भी नहीं! लेकिन तुम माँ तो नहीं हो न उसकी!”
“लेकिन बाबू जी! ऐसे कैसे होगा सब? पति पत्नी का रिश्ता खेल थोड़े ही होता है! मैं उसके साथ वो सब... कैसे...” माँ ने बड़े संकोच से कहा।
“नहीं बेटे - पति पत्नी का रिश्ता कोई खेल नहीं होता। लेकिन प्यार होता है, तो सब हो जाता है बेटे! प्यार की छुवन होती ही ऐसी है कि यह सभी बातें - ये झिझक जो तुम बयान कर रही हो - छोटी लगने लगती हैं! जो लोग प्यार के बूते अपना संसार बनाते हैं न, वो बहुत खुश रहते हैं!” ससुर जी ने माँ को समझाते हुए कहा, “देखो, शंका का प्रेम में कोई स्थान नहीं है। सुनील को तुमसे प्रेम है, वो तो मुझे समझ में आ गया है। और तुमको भी उसके प्यार के लिए बड़ी इज़्ज़त तो है - मतलब अगर तुमने अभी तक उसके प्रोपोज़ल को माना नहीं है, तो रिजेक्ट भी नहीं किया है!”
माँ ससुर जी की बातें सुन कर आश्चर्यचकित थीं! इनको इतना सब कैसे मालूम? कैसे अंदाज़ा लगा किया उन्होंने?
ससुर जी कह रहे थे, “नहीं तो अब तक तुम मेरे प्रोपोज़ल के रिएक्शन में तुम कुछ तो कहती ही! या तो हाँ कहती, या न! कुछ तो कहती! कुछ तो पूछती। लेकिन जब मैंने तुम्हारे रिश्ते की बात कही, तब तुम्हारा भी, और सुनील का भी सबसे पहला रिएक्शन एक दूसरे को देखने वाला था - ऐसा लगा कि जैसे तुम दोनों से ही कोई अज़ीज़ चीज़ माँग ली गई हो!”
माँ कुछ न बोलीं। सच बात पर कैसे विरोध करें वो! वैसे भी झूठ वो बोल नहीं पाती थीं।
कुछ क्षण चुप रहने के बाद ससुर जी ने कहा, “अच्छा, काजल को मालूम है क्या इस बारे में?”
“जी? जी नहीं!” माँ ने बहुत ही कोमल और धीमी आवाज़ में कहा।
ससुर जी ने कुछ पल रुक कर माँ को देखा, जैसे कि वो कुछ कहना चाहते हों। लेकिन उन्होंने खुद को वो कहने से रोक लिया।
“मेरी बच्ची, तुम पर मैं कोई जबरदस्ती नहीं करूँगा। तुम्हारा बड़ा हूँ, पिता समान हूँ, इसलिए तुम्हारा सुख चाहता हूँ, तुमको हमेशा खुश देखना चाहता हूँ! पिछले कुछ समय से तुमको खुश देख कर मैं बहुत प्रसन्न था! और आज तुम्हारी ख़ुशी और तुम्हारे चेहरे की मुस्कान का राज़ भी जान गया! इसलिए मैं तो यही कहूँगा कि तुम दोनों साथ हो लो!”
“लेकिन बाबू जी… ‘उनकी’ यादों को भुला देना... ‘उनको’ भुला देना... यह सब कहाँ तक ठीक होगा?”
“लेकिन बेटे, ऐसा थोड़े ही होता है! अपने अमर को ले लो - जब गैबी की डेथ हुई, तब सभी उसको फिर से शादी करने की सलाह दे रहे थे। है कि नहीं?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“तो अमर से पूछना, क्या पिंकी के आने से क्या उसके दिल से गैबी की यादें चली गईं? क्या उसने गैबी को भुला दिया?” ससुर जी ने कहा, “जहाँ तक मैंने देखा, पिंकी और अमर अपने आप में खुश थे, दोनों में बहुत प्यार था, और दोनों एक दूसरे की बहुत इज़्ज़त भी करते थे! प्यार और इज़्ज़त न होता दोनों के बीच, तो मैं उन दोनों की शादी न होने देता। और एक बात कहूँ?”
“जी बाबू जी?”
“मैं पक्के यकीन से कह सकता हूँ कि उसके दिल से न तो गैबी की यादें गई हैं, और न ही पिंकी की! और न ही कभी जाएँगी! प्यार को ऐसे ही बलवान नहीं कहा जाता!”
“लेकिन बाबू जी, मैं ‘उनकी’ यादों के सहारे क्यों न रह लूँ?”
“बिलकुल रह लो! लेकिन अगर सच्चा प्यार न मिले तब! फिर कोई ऑप्शन ही नहीं है न। मैं तो यही कहूँगा, बस! जब प्यार मिल रहा हो, तो निःसंकोच उसको अपना लो! बेटी हो मेरी तुम! बहुत अच्छे काम किये होंगे कि मुझे तुम सभी अपने परिवार के जैसे मिले!”
“बाबू जी, आइए!” इतने में काजल ने कमरे में आते हुए कहा, “खाना लगा दिया है!”
ससुर जी ने बड़े प्यार से माँ के सर पर अपना हाथ फिराया, और काजल की तरफ मुखातिब होते हुए बोले, “हाँ बेटा, चलो!” फिर माँ से, “सुमन बेटे, चलो!”
खाना खाते समय माँ चुप चाप ही रहीं। ससुर जी और सुनील पूरे समय बातें करते रहे। काजल बीच बीच में उस चर्चा में सम्मिलित हो जाती। ससुर जी ने महसूस तो किया कि हाँलाकि सुनील उनकी बातों का उत्तर दे तो रहा था, लेकिन बार बार उसकी नज़रें बस माँ के ही चेहरे पर उठने बैठने वालों भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थीं।
चलते चलते उन्होंने काजल से कहा, “बेटा, जयंती पूछ रही थी तुम्हारे और सुमन के लिए! तुम दोनों आते ही नहीं कभी!”
“हाँ बाबू जी, आपका यह इल्ज़ाम सही है!”
“बेटे इलज़ाम नहीं! कभी कभी आ जाया करो!” उन्होंने बड़े स्नेह से कहा, “जयंती भी तुमको अपना मानती है। काम में बिजी हो जाती है बेचारी! तुम्हारा घर है वो भी! मिल लिया करो कभी कभी! तुम सभी को खुश देखता हूँ, तो जोश आ जाता है!” उन्होंने अपनी नम होती हुई आँखों को पोंछा।
जब वो जा रहे थे, तब सभी ने फिर से उनके पैर छुवे! उन्होंने सभी को ‘खुश रहो’ वाला आशीर्वाद दिया और चले गए।
उनके जाने के बाद काजल भी बच्चों को स्कूल से लाने का कह कर चली गई।
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अंतराल - पहला प्यार - Update #8
काजल के जाने के बाद घर का माहौल और भी भारी हो गया। न तो माँ, और न ही सुनील - समझ पा रहे थे कि अब क्या बातें हों? सुनील के प्रेम की पतंग तो उड़ने से पहले ही धूल चाटती हुई प्रतीत हो रही थी। उसको ऐसा महसूस हो रहा था कि जब ईश्वर ही नहीं चाहते, तो उसको प्रेम का सपना दिखाया ही क्यों गया? क्यों सुमन के नाम की लौ उसके दिल में जलाई! बेचारे का हौसला ही टूटने लगा। बस एक आखिरी बात कहने की हिम्मत बची हुई थी।
“आई गेस,” सुनील ने घर में अकेले होते ही, बड़े उदास स्वर में, लेकिन जबरदस्ती ही मुस्कराते हुए, माँ से कहा, “तुम्हारी सारी प्रॉब्लम सॉल्व हो गई!”
माँ ने भी बड़े उदास आँखों से सुनील को देखते हुए, लगभग फुसफुसाते हुए कहा, “कौन सी प्रॉब्लम?”
“मैं! और कौन?” सुनील अभी भी मुस्कुरा रहा था - लेकिन उसके चेहरे पर ‘हार’ की निराशा साफ़ झलक रही थी, “आई ए एस के सामने मेरी क्या बिसात?” सुनील कह तो रहा था, लेकिन उसका दिल डूबा जा रहा था। उसकी आवाज़ में यह भाव स्पष्ट सुनाई दे रहा था। माँ के दिल में एक टीस सी उठी।
“मैंने उसके लिए हाँ तो नहीं कहा!” माँ ने जैसे सफ़ाई देते हुए कहा।
‘क्या?’ सुनील के कानों में यह बात गूंजी, ‘सच में?’
“क्या सच?” सुनील जैसे अचानक ही खुश हो गया - जो उदासी तब से उसके चेहरे पर छाई हुई थी, सब एक ही पल में गायब हो गई! और यह कोई छल नहीं था - कोई नाटक नहीं था। उसके अंदर की ख़ुशी साफ़ दिखाई दे रही थी!
माँ ने फीकी सी मुस्कान दी।
“लेकिन... लेकिन उसको कंसीडर करोगी?”
माँ ने ‘न’ में सर हिलाया।
“ओह सुमन, मेरी प्यारी सुमन! थैंक यू, थैंक यू!” कह कर उसने माँ को अपने आलिंगन में भर लिया और एक बार फिर से उनके होंठों को चूम लिया।
माँ इस अचानक ही बदले हुए घटनाक्रम से दो-चार नहीं हो पाईं! हाँ, उन्होंने ससुर जी के लाए हुए रिश्ते के लिए हाँ नहीं कही थी, लेकिन सुनील के प्रोपोज़ल के लिए भी तो हाँ नहीं कही थी!
“मेरी सुमन,” सुनील की आवाज़ अचानक ही संजीदा हो गई, ठीक वैसी ही जैसी कि ससुर जी के आने से पहले थी, “मेरी बात तुमको बच्चों जैसी लग सकती है, लेकिन मुझको बस एक मौका दो तुमसे शादी करने का! मैं दुनिया का सबसे अच्छा - मेरा मतलब - सबसे अधिक प्यार करने वाला हस्बैंड बन के दिखाऊँगा! तुमको - तुम्हारे माथे पर चिंता की एक शिकन भी नहीं आने दूँगा! तुम्हारे चेहरे पर ख़ुशी की रौनक हमेशा बनाए रखूँगा!”
माँ कुछ बोल न पाईं। वो क्यों इतना बेबस महसूस कर रही थीं? क्यों उनको आघात लगा जब ससुर जी ने उनको शादी के एक नए प्रोपोज़ल के बारे में बताया? क्यों उनको सुनील की बातें इतना सुकून दे रही थीं?
“आई लव यू सुमन!” सुनील की आवाज़ कहीं बहुत दूर से आती सुनाई दी, “बहुत!”
माँ के होंठों पर मुस्कान की एक रेखा आ गई।
“क्या तुम भी... क्या तुम भी...?” सुनील ने बड़ी उम्मीद से पूछा, “बोलो न सुमन? कुछ तो कहो?”
“आई डू नॉट.........” माँ ने कँपकँपाती आवाज़ में, फुसफुसाते हुए कहा, और कुछ क्षणों तक रुकने के बाद, “नॉट लव यू!”
“सुमन?” जब सुनील को माँ की बात थोड़ा समझ आई, तब उसका स्वर उत्साह और ख़ुशी से भर उठा, “ओह सुमन! आई ऍम द लकीएस्ट मैन टुडे! सुमन! आई लव यू!”
एक तो माँ शर्म के कारण सीधी बात नहीं बोल पा रही थीं, और उधर सुनील कही हुई बात से अधिक समझ रहा था। सुनील के उत्साह और प्रसन्नता के कारण माँ की साँसें तेज हो गईं। सुनील के प्यार की आरामदायक तपन को वो महसूस कर पा रही थीं। लेकिन अगर दोनों के बीच का रिश्ता आगे बढ़ना था, तब उनको भी अपने दिल के दरवाज़े को खोलना ही था। कम से कम माँ को सुनील को ले कर थोड़ी स्वीकृति तो हुई।
“मैं हमेशा से भगवान से बस यही माँगता था कि मुझे दुनिया की सबसे सुन्दर, सबसे गुणी बीवी मिले.... और आज भगवान ने मेरी प्रार्थना मान ली! अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए!” सुनील ने कहा, और चुप हो गया!
दोनों ने कुछ देर कुछ भी नहीं कहा। फिर माँ ने ही वो चुप्पी तोड़ी, “कुछ पक्का हो, उसके पहले... एक बार... थोड़ा सोच लेना चाहिए? नहीं?”
“क्या अभी भी पक्का नहीं है?” सुनील ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, और फिर तुरंत ही गंभीर होते हुए, और बड़े आदरपूर्वक बोला, “किस बारे में सोचना है?”
“अ... आप” माँ हिचकते हुए बोलीं, “आप जो रिश्ता चाहते हैं…”
“क्यों? अब क्या सोचना? मुझे कुछ भी नहीं सोचना!”
माँ कुछ देर चुप रहीं, फिर बोलीं, “हर जवान लड़का, एक जवान लड़की चाहता है अपने लिए!”
सुनील को माँ की बात समझ आ रही थी! लेकिन इस बारे में सोचना कैसा? उसने उनसे कहा तो था कि एक लम्बे अर्से से वो उनको प्यार करते चला आ रहा था। उसने बड़े स्नेह से कहा,
“सुमन, मुझे तुम्हारे सामने न तो कोई जवान लड़की दिखी जिसको मैं प्यार करूँ और न ही मुझे कोई चाहिए! मेरे मन में तो बस एक ही प्यारी सी, सुन्दर सी लड़की बसी है, और वो हो तुम!”
“ले... लेकिन... मैं मैं आपसे कितनी बड़ी हूँ!”
“ओह्हो! तो क्या?”
“कुछ ही सालों में मैं बूढ़ी हो जाऊँगी!”
सुनील तपाक से बोला, “कुछ सालों बाद भी, हमारे बीच उम्र का उतना ही फासला रहेगा जितना कि अब है! उस कारण से मेरे प्यार में कोई कमी नहीं आने वाली! मैं तुमको जितना आज प्यार करता हूँ, कल उससे अधिक प्यार करूँगा! हर रोज़, पिछली रोज़ से थोड़ा अधिक प्यार!” सुनील ने उनके गालों को प्यार से सहलाते हुए कहा, “यह बात सच है! आई प्रॉमिस!”
सुनील की बात में सच्चाई थी।
लेकिन फिर माँ खोई हुई सी, संकोच करती हुई बोलीं, “ले... लेकिन अगर... अगर... मैं फिर से माँ नहीं बन पाई तो?”
सुनील के शरीर में इस बात को सुनते ही सनसनी दौड़ गई। एक ऐसी अद्भुत सी उत्तेजना, कि वो न जाने क्या कर बैठता! लेकिन उसने जैसे तैसे खुद पर नियंत्रण रखा! माँ की बात की गहराई भी उसको समझ में आ रही थी। उनको डर था कि जवानी के जोश में सुनील कोई ऐसा निर्णय न ले ले जिसके कारण उसको पछताना पड़े। वो एक ऐसी स्थिति होगी जिसमे वो दोनों की केवल दुःखी होते रहेंगे!
“सुमन! मेरी प्यारी! मानता हूँ कि मुझे बच्चे पसंद हैं! लेकिन उनके पहले मुझे तुम चाहिए - तुम्हारा साथ! तुम मिल जाओ, तो कोई तमन्ना बाकी नहीं! तुम्हारे अलावा न तो मैंने कभी किसी लड़की की तरफ़ आँख उठा कर देखा, और न ही किसी और को कभी चाहा! मेरे दिल में, मेरे मन में, जो मेरे जीवन का प्यार है, मेरी इंस्पिरेशन है, मैं उस लड़की को अपनी धर्मपत्नी बना कर अपनी पूरी ज़िन्दगी बिता देना चाहता हूँ! वही मेरी ख़ुशी है! उससे अधिक कुछ नहीं चाहिए! कुछ मिल जाए तो भगवान का प्रसाद है! लेकिन तुम मिल जाओ, तो बस, मेरी सारी आस पूरी हो जाएगी समझो!” सुनील रुका - भावावेश में वो काँप रहा था, “अगर हमारे नसीब में बच्चों का सुख लिखा है, तो वो मिलेगा! अगर नहीं लिखा है, तो भी मैं हँसते हँसते उसको स्वीकार करूँगा! इस बात पर मुझे कभी कोई दुःख नहीं होगा!”
अप्रत्याशित सी बात थी - न तो सुनील ने सोचा था, और न ही सुमन ने! इसलिए उसके उत्तर की सच्चाई ने दोनों को ही भावुक कर दिया। सुनील अपने दिल की बातें बोल कर बेहद सुकून महसूस कर रहा था। प्यार का इज़हार - यह बड़ी बात है! सुनील ने देखा - माँ की आँखों के कोने से आँसू की एक बूँद उभर रही थी। सुनील को यह गँवारा न हुआ कि उसके कारण माँ की आँखों में आँसू आयें! बात बदलनी पड़ेगी।
“लेकिन मुझे लगता तो नहीं, कि ऐसा कुछ होगा!” सुनील के कहा और अपना हाथ बढ़ाया।
सुनील की भावुक बातों से माँ उबर भी नहीं पाई थीं, कि उनको अपने स्तनों पर सुनील के हाथों का हल्का और कोमल सा स्पर्श महसूस हुआ। कल काजल की कही हुई बात पर माँ के दिमाग में जो अक्स खिंच आया था, अब वही सब मूर्त रूप में उनके साथ घटित हो रहा था। माँ अपने साथ ऐसा कुछ भी नहीं होने देतीं; लेकिन न जाने क्यों, न जाने कैसे, वो इस समय इतनी असहाय हो चलीं थीं, और इतनी निर्बल हो चली थीं। कुछ देर पहले, वो इस स्थिति पर जिस तरह का नियंत्रण महसूस कर रही थीं, इस समय वैसा नहीं कर पा रही थीं।
एक लम्बे अर्से से माँ के स्तनों को ले कर सुनील के मन में उत्सुकता थी।
‘वो कैसे होंगे?’
‘उनका आकार कैसा होगा?’
‘उनकी महक कैसी होगी?’
‘उनका स्वाद कैसा होगा?’
‘उनको छूने पर कैसा महसूस होगा?’
इत्यादि!
कभी कभी हमको (कुछ लोगों को हमेशा ही) ऐसा होता है न कि किसी लड़की/महिला को देख कर ऐसा लगता है कि काश इनके स्तन दिख जाएँ, तो हम धन्य हो जाएँ! माँ को देख कर सुनील को भी यही भाव आता था। ऐसा नहीं है कि उसने माँ के स्तन न देखे हों - अनगिनत बार देखा है, जब लतिका माँ के स्तनों का आस्वादन करती है। लेकिन उस अवस्था में सुमन केवल लतिका की ‘माँ’ होती है। माँ के रूप में स्त्री में एक तरह का देवत्व होता है। उस अवस्था में उसको केवल सम्मान के साथ देखा जा सकता है - आसक्ति के साथ नहीं [कम से कम आपका यह नाचीज़ लेखक ऐसा ही सोचता है - जब अंजलि - मेरी पत्नी - हमारे बच्चों को स्तनपान कराती है, तो बहुत अद्भुत दृश्य बनता है। एक अलग ही तरीके की शांति होती है तीनों के ही चेहरों पर! सच में - उस समय अंजलि किसी देवी समान ही लगती है मुझे]। आज से पहले उसने कभी माँ के स्तनों को छुआ तक भी नहीं।
वैसे तो शायद सुनील खुद पर नियंत्रण कर पाता, लेकिन माँ के प्रश्नों और चुम्बनों के बाद तो जैसे उसका आत्मनियंत्रण जाता रहा, और वो ये हिमाकत कर बैठा!
“ओह कितने शानदार हैं ये...!” सुनील ने फुसफुसाते हुए माँ के ठोस और सुडौल स्तनों की प्रशंसा कही, “सुमन, आई ऍम सॉरी कि बिना तुम्हारी इज़ाज़त के मैं इनको छू रहा हूँ,” उसने एक स्तन को बहुत धीरे से दबाते हुए कहा, “लेकिन प्लीज मुझे ऐसा कर लेने दो…”
सुनील अगर कठोरता से माँ के स्तनों का मर्दन करता, तो शायद माँ किसी प्रकार का विरोध भी करतीं। लेकिन उसके कोमल, शिष्ट स्पर्श ने तो जैसे उनकी जान ही निकाल दी। और वो उस समय जिस आत्मविश्वास के साथ अपनी इच्छाओं को पूरा कर रहा था, वो अविश्वशनीय था! माँ का हाथ उठा, और सुनील के हाथ के ऊपर आ गया - लेकिन इससे अधिक कुछ भी नहीं! माँ के अंदर सुनील का विरोध करने की शक्ति जैसे अचानक ही गायब हो गई थी। उनको जैसे लकवा सा मार गया हो - वो अपने शरीर में अपरिचित से स्पंदन उठते महसूस तो कर रही थीं, लेकिन अपना शरीर हिला पाने में खुद को अक्षम महसूस कर रहीं थीं! बिना उनके विरोध के, सुनील माँ के स्तनों को टटोलने, उनका अनुभव करने के लिए स्वतंत्र था।
सुनील माँ के स्तनों की प्रशंसा बुदबुदाता रहा, “कितने फर्म हैं... रियली, दे आर अ मार्वल ऑफ़ वोमनहुड दैट नो स्कल्पटर कुड हैव एवर होप्ड टू अचीव!”
[किसी शिल्पकार के लिए एक सुन्दर और सुडौल स्त्री की मूर्ति का निर्माण करना, और उसके सौंदर्य को पूरी तरह से दर्शा पाना, उसकी कला का सबसे बड़ा प्रमाण है। सुनील के कहने का तात्पर्य यह था कि सुमन का सौंदर्य ऐसा अद्वितीय है कि उसकी नक़ल कर पाना किसी के भी बस की बात नहीं!]
सुनील ने बड़े काव्यात्मक ढंग से माँ के रूप की प्रशंसा की। उसने कुछ देर माँ के कुछ कहने का इंतजार किया - उसको उम्मीद थी कि माँ उसकी बात पर कोई तो प्रतिक्रिया देगी, लेकिन जब उन्होंने कुछ नहीं कहा, तो सुनील ने आगे कहा,
“ये तुम्हारे प्यारे प्यारे से दूध! ऐसा नहीं हो सकता कि ये फिर से दूध से न भर जाएँ!” वो बोलता जा रहा था, “जागते हुए एक सपना देखा है मैंने - कि तुम मेरी बीवी हो, और हमारे बच्चों की माँ हो! सच में - वो सपना नहीं, वो तो मुझे ईश्वरीय प्रसाद लगता है! पूरा तो होगा!”
सुनील ने उनको चूमा और आगे कहा, “तुम मेरे संसार का सेंटर हो, मेरी जान! तुम मिल जाओ तो क्या क्या नहीं कर सकता मैं! तुम सुख हो! मैंने तो जो कहना था, कह ही दिया है! अब सब तुम्हारे ही हाथों में है! प्लीज़ मेरी बन जाओ!”
माँ की ज़बान को लकवा मार गया था अब तक! लतिका का बालपन सा छुवन, काजल का सहेली जैसा छुवन - वो दोनों भाव सुनील की छुवन में थे ही नहीं। वो तो प्रेमी की तरह छू रहा था उनको।
“मेरी सुमन, थोड़ा सोचो... तुम्हारे ये दोनों शानदार दूध एक बार फिर से अमृत से भरे हुए होंगे…” उसने कहा और माँ के स्तनों को सहलाया, “तुमने इतने सालों तक भैया को अपना दूध पिलाया... और देखो, वो कितने बढ़िया आदमी बन कर निकले? हेल्दी, हैंडसम एंड इंटेलिजेंट! तुम हमारे बच्चों को भी ऐसे ही बहुत सालों तक दूध पिलाना... वो भी भैया के जैसे ही होंगे!” वो मुस्कुराया।
माँ अब चौंकने से भी परे जा चुकी थीं; सुनील जो भी कर रहा था, जो भी कह रहा था - वो सब कुछ उनके लिए अभूतपूर्व था! वो लगभग लकवाग्रस्त सी बैठी रहीं, और सुनील फिलहाल अपनी मर्ज़ी की हरकतें करता रहा। सुनील का स्पर्श जहाँ घुसपैठिया स्वभाव का था, वहीं उसमें एक तरह की शिष्टता भी थी। उसके छूने का अंदाज़ बिलकुल भी अश्लील नहीं था। वो उनको शुद्ध प्रेम की भावना से छू रहा था - ठीक वैसे ही जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को छूता है! इसलिए अब उनका शरीर सुनील के स्पर्श पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देने लगा था। माँ के दोनों चूचक, बढ़ते रक्त प्रवाह के कारण अब खड़े हो गए थे, और उसकी हथेलियों पर चुभने लग रहे थे। हालाँकि वो सुन्न बैठी हुई थी, लेकिन इस समय वो जोर से साँस भर रही थी; उनका दिल तेजी से धड़क रहा था!
उधर सुनील उनको उन दोनों के भविष्य के बारे में अपनी अनोखी अंतर्दृष्टि देता जा रहा था,
“भैया कितने स्ट्रांग, कितने इंटेलीजेंट हैं! उनका नुनु भी तो कितना मज़बूत है! सब कुछ तुम्हारे लंबे समय तक दूध पिलाने के कारण हुआ है... और तुमने अम्मा को भी यही सब करने की सीख दी थी... उसका असर देखोगी…?”
सुनील ने कहा, और मुस्कुराते हुए माँ का हाथ अपने हाथों में लिया, और धीरे से उसे अपने होजरी के पतलून के ऊपर से अपने लिंग पर रख दिया। सुनील का लिंग इस समय पूरी तरह खड़ा हुआ था! उसको छूते ही माँ ने हिचकिचाहट में अपना हाथ तुरंत पीछे खींच लिया। लेकिन उस क्षणिक स्पर्श से ही उनको पता चल गया कि सुनील का पुरुषांग, डैड के पुरुषांग से कहीं अधिक बड़ा है।
“अरे! क्या हो गया सुमन? ये तुम्हारा ही है! केवल तुम्हारा ही अधिकार है इस पर। अगर ये तुमको आनंद नहीं दे सकता, तो इसका इस्तेमाल कहीं और नहीं होने वाला!” सुनील ने कहा, “समझ गई मेरी सुमन?”
वो सब तो ठीक है, लेकिन सुनील की यह हरकत, एक अजीब सी हरकत थी! ऐसे थोड़े न होता है! फिर भी, न जाने कैसे, सुनील की इस हिमाकत पर माँ नाराज़ भी नहीं हो पा रही थीं। यह सब... यह सब इतना गड्ड-मड्ड कैसे हो गया?
“मैं तुम्हें हमेशा खुश रखूँगा…”
‘मुझे खुश रखेंगे? कैसे? उनका इशारा अपने लिंग की तरफ तो नहीं है?’ माँ सोच रही थीं।
‘इनसे सम्भोग? हे भगवान्! एक माँ की तरह जिस लड़के को मैंने पाल पोस कर बड़ा किया, अब उसी लड़के से… अपने बेटे जैसे लड़के के साथ सम्भोग! कैसा अजीब सा लगेगा! मैं यह सब कैसे कर सकती हूँ? ओह! लेकिन अगर ये मेरे पति बन गए, फिर? फिर तो इनका जो मन करेगा, वो मेरे साथ करेंगे ही न! पति का अपनी पत्नी पर पूर्ण अधिकार होता है! उन दोनों के बीच में कोई पर्दा नहीं होता! पति अपनी पत्नी से प्रेम करता ही है; पति अपनी पत्नी को नग्न करता ही है; पति अपनी पत्नी के साथ प्रेम सम्भोग तो करता ही है! तभी तो उनकी संतानें होती हैं! तभी तो उनका संसार बनता है! हे प्रभु! यह सब क्या हो रहा है मेरे साथ? कैसे कर पाऊँगी मैं ये सब!’
अपने लिंग को ले कर सुनील की यह नितांत और निर्लज्ज उद्घोषणा माँ ही तो क्या, किसी भी स्वाभिमानी महिला के लिए खीझ और क्रोध दिलाने वाली रही होगी। लेकिन माँ को न तो क्रोध आ रहा था, और न ही खीझ! इस समय, सुनील की यह उद्घोषणा निर्लज्ज ही सही, लेकिन बहुत प्रासंगिक थी।
सुनील माँ को यह समझाने की कोशिश कर रहा था कि वो उनके लिए एक बढ़िया, एक सक्षम जीवन साथी था - शारीरिक तौर पर भी, भावनात्मक तौर पर भी, और आर्थिक तौर पर भी! और जाहिर है, कि वो अपने प्रयास में सफल भी हो रहा था। उसके इस निर्लज्ज हरकत पर भी माँ विरोध में एक शब्द भी नहीं बोल पा रही थीं। उनका जो भी अंतर्द्वंद्व था, वह केवल इस बात पर टिका हुआ था कि सुनील उनके बेटे जैसा था... वो काजल का बेटा था, जिसको वो अपने बेटे जैसा मानती आई थीं!
यह बात सही थी, लेकिन यह बात विरोध करने का कोई मज़बूत आधार नहीं दे रही थी। उसके प्रोपोज़ल को केवल इसलिए नहीं ठुकराया जा सकता कि वो काजल का बेटा है!
सुनील की हरकतों से माँ की साड़ी का आँचल नीचे ढलक गया था। उनकी साँसे धौंकनी के जैसे चल रही थीं और उसी तर्ज़ पर उनका सीना ऊपर नीचे हो रहा था। कामुक दृश्य! उफ़्फ़ - कैसे स्त्री की घबराहट किसी पुरुष में कामुकता की आँच को भड़का सकती है! उसने माँ के आँचल को परे हटा कर उनके सीने और पेट को नग्न कर दिया। बैठे हुए रहने पर भी लगभग सपाट पेट! वसा की कैसी भी अतिरिक्त मात्रा नहीं थी वहाँ!
सुनील ने बड़े प्यार से माँ के पेट को सहलाया, “हमारे दो बच्चे होंगे…” कहते हुए वो रुका, मुस्कुराया, और फिर कहना जारी रखा, “... हाँ, कम से कम दो बच्चे तो होंगे!” वो कुछ इस तरह बोला जैसे वो खुद ही उन दोनों के भविष्य की योजना बना कर, खुद ही उस योजना को स्वीकृति दे रहा हो, “तुम चाहो तो और भी कर लेंगे… लेकिन भई, दो बच्चे तो चाहिए!”
उसने यह बात कुछ इस अंदाज़ से कही कि जैसे माँ के साथ उसकी शादी हो चुकी हो!
फिर उसने बड़े प्रेम से माँ के दोनों गालों को अपने दोनों हाथों में थाम कर कहा, “सुमन, आई लव यू! जब भी मैं हमारे बच्चों के बारे में सोचता हूँ न, तो हमेशा सोचता हूँ कि वो तुम पर जाएँ! तुम पर जाएँगे तो वो खूब सुन्दर होंगे... बिलकुल तुम्हारी तरह सुंदर और प्योर! बिलकुल तुम्हारी तरह भोले भाले, और प्यारे!”
उसने कहा और उनके माथे पर बड़े स्नेह से चूम लिया। उस चुम्बन से माँ को भी उनके लिए उसके शुद्ध प्रेम की अनुभूति हुई।
सुनील के छूने का अंदाज़ ऐसा था कि उनको स्वयं को ले कर गन्दगी वाला भाव नहीं आ रहा था। उनको ऐसा बिलकुल भी नहीं लग रहा था कि उनके साथ कुछ ग़लत हो रहा है। हाँ, एक नए प्रेमी के लिए सुनील थोड़ा अग्रवर्ती (फॉरवर्ड) अवश्य था, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसके अंदाज़ में गन्दगी, अशिष्टता, या छिछलापन हो! उसके विपरीत, सुनील के स्पर्श और चुम्बन में शिष्टता, प्रेम, आदर और स्नेह, सब मिला जुला था।
माँ ने जब फिर से कुछ नहीं कहा, तो उसने उनके दोनों कपोलों को कोमलता से दबा कर उनके होंठों पर अपना चुम्बन जड़ दिया - कुछ ऐसे कि चुम्बन के समय माँ के दोनों होंठ चोंच की भाँति बाहर निकल आए और सुनील के मुँह में समां गए! इस चुम्बन को एक क्यूट चुम्बन बोला जा सकता है, लेकिन माँ शर्म से गड़ी जा रही थीं। उनसे न तो कुछ कहा जा रहा था, और न ही कुछ किया ही जा पा रहा था। सुनील के मुँह को अपने मुँह पर महसूस कर के उनको अजीब सा, अपरिचित सा लग रहा था। लेकिन खराब नहीं।
“ओह सुमन... मेरी प्यारी सुमन! आज का दिन कितना स्पेशल है! कितने सालों से मैंने यह सब बातें अपने अंदर दबा कर रखी हुई थीं - लेकिन आज भगवान ने यह सब कहने का मौका दे ही दिया!” वो मुस्कुराया।
लेकिन माँ तो जैसे कुछ भी कह पाने या कर पाने में अवश थीं।
“मेरा कितना मन है - इट इस लाइक माय फॉरएवर ड्रीम - कि तुम और मैं हमेशा के लिए एक हो जाएँ! कि तुम और मैं... मेरा मतलब, हमारी शादी हो जाए! हमारे प्यारे प्यारे बच्चे हों! सोच के ही मन खुश हो जाता है! मेरी प्यारी सुमन… मेरी जान सुमन!” कहते हुए सुनील झुका, और माँ के पेट को प्यार से चूमते हुए बोला, “... मेरे होने वाले बच्चों का पालना है ये…”
फिर माँ के सम्मुख आ कर उसने मुस्कुराते हुए उनको देखा, “क्या हुआ मेरी सुमन? ... कुछ बोलो न... तुमको मेरी बातों से बुरा लग रहा है क्या?”
माँ को खैर बुरा तो नहीं लग रहा था। लेकिन सब कुछ अनोखा सा, कुछ अपरिचित सा, ज़रूर लग रहा था। इसलिए उनको अजीब लग रहा था - लेकिन बुरा नहीं। एक तो सुनील उनको ऐसे अंतरंग तरीके से छू रहा था, कि जैसे उन्होंने उन दोनों के रिश्ते के लिए ‘हाँ’ कर दी हो। लेकिन सच में, ‘न’ करने का कोई कारण भी तो नहीं दिख रहा था उनको। सुनील का प्रणय निवेदन इतना शक्तिशाली था कि माँ उसके प्रवाह में बह चली थीं! इसलिए उनको बुरा तो बिलकुल भी नहीं लग रहा था। बस सब कुछ अस्पष्ट सा था! माँ कभी झूठ नहीं बोल पातीं थी! उन्होंने पूरी उम्र भर कभी भी झूठ नहीं बोला - कम से कम मेरे संज्ञान में तो नहीं! यह गुण, उनके भोले और साफ़ व्यक्तित्व का एक अभिन्न हिस्सा था!
लिहाज़ा, उन्होंने बस बहुत ही हल्का सा, ‘न’ में सर हिला कर इशारा किया। शायद उनसे यह अनायास ही हो गया हो। लेकिन वो हल्का सा, अस्पष्ट सा संकेत, सुनील को जैसे किला फ़तेह करने जैसा लगा।
वो मुस्कुराया, और उसने माँ के एक गाल को बड़े स्नेह से छुआ।
nice updates..!!अंतराल - पहला प्यार - Update #9
फिर उसने कमरे के दरवाज़े के तरफ देखा - वो खुला हुआ था। दोनों में इतनी अंतरंग बातें हो रही थीं, और उसमे किसी तीसरे के लिए स्थान नहीं था। हाँ - काजल अवश्य ही बाहर थी, लेकिन वो कभी भी वापस आ सकती थी। बच्चों का स्कूल दूर नहीं था। वो नहीं चाहता था कि तीनों अचानक से घर आ जाएँ और उन दोनों को ऐसी हालत में देख कर कोई अजीब सी प्रतिक्रिया न देने लगें। वो कुछ भी सह सकता था, लेकिन अपनी सुमन को शर्मिंदा होते नहीं देख सकता था।
“एक सेकंड,” उसने कहा, बिस्तर से उठा, और दरवाज़े का परदा बंद कर के वापस माँ के पास आ गया। किवाड़ लगाने से संभव है कि काजल सोचने लगती कि अंदर क्या हो रहा है! वैसे, परदे से कोई सुरक्षा नहीं मिलती, लेकिन फिर भी शक तो कम हो ही जाता है।
वापस आ कर वो इस बार माँ के सामने नहीं, बल्कि पीछे की तरफ़ बैठा - कुछ इस तरह से कि उसके दोनों पैर माँ के दोनों तरफ़ हो गए। वो माँ के पीछे, उनके बहुत करीब बैठा - माँ की पूरी पीठ, उसके सीने और पेट से सट गई थी। उसका स्तंभित लिंग माँ की पीठ के निचले हिस्से पर चुभने लगा। उस कठोर सी छुवन से माँ के शरीर में झुरझुरी सी फैलने लगी - एक अज्ञात सा डर उनके मन में बैठने लगा। उधर सुनील के हाथ फिर से, माँ के ब्लाउज के ऊपर से, उनके स्तनों पर चले गए, और उसके होंठ माँ के कँधों, पीठ और गर्दन के पीछे चूमने में व्यस्त हो गए।
सुनील इस समय किशोरवय अधीरता से काम कर रहा था। माँ ने उसके प्रणय निवेदन को स्वीकारा नहीं था - लेकिन अस्वीकार भी नहीं किया था। न जाने क्यों उसको लग रहा था कि वो जो कुछ कर रहा था, वो सब कर सकता है। लेकिन अभी भी वो अपने दायरे में ही था। किन्तु माँ कुछ मना नहीं कर रही थीं, इसलिए उसकी हिम्मत बढ़ती जा रही थी। उसने कुछ देर उनके स्तनों को दबाया, और फिर उनकी ब्लाउज के बटन खोलने की कोशिश करने लगा! उसने जब ब्लाउज का नीचे का एक बटन खोला, तब कहीं जा कर माँ अपनी लकवाग्रस्त स्थिति से बाहर निकली। सुनील के हाथों पर अपना हाथ रखते हुए वो हकलाते, फुसफुसाते हुए बोलीं - नहीं, बोलीं नहीं, बल्कि अनुनय करी,
“न... न... नहीं!”
“अभी नहीं?” सुनील ने पूछा।
माँ ने ‘न’ में सर हिलाया।
“बाद में?” सुनील ने शरारत से, और बड़ी उम्मीद से पूछा!
माँ ने उत्तर में कुछ कहा नहीं।
उनके हाथ सुनील के हाथों पर थे, लेकिन उसको कुछ भी करने से रोकने में शक्तिहीन थे। अगर सुनील माँ को नग्न करना चाहता, तो कर लेता। माँ उसको रोक न पातीं। उधर माँ ने भी महसूस किया कि हाँलाकि सुनील बड़े आत्मविश्वास से यह सब कर रहा था, लेकिन उसके हाथ भी काँप रहे थे। उसकी भी साँसें बढ़ी हुई थीं। लेकिन वो सभ्य आदमी था। उसके संस्कार दृढ़ थे। सुनील ने माँ की बात की लाज रख ली, और उसने बटन खोलना छोड़ कर वापस से उनके स्तन थाम लिए। माँ इस बात से हैरान नहीं थी कि सुनील उनको, उनके सारे शरीर को ऐसे खुलेआम छू रहा था, लेकिन इस बात पर हैरान थी कि वो उसे खुद को ऐसे छूने दे रही थी, और उसको रोक पाने में इतनी शक्तिहीन महसूस कर रही थी।
सुनील ने उनके कन्धों और गर्दन पर कई सारे चुम्बन दे डाले। माँ अपने कान में सुनील की उखड़ी हुई गर्म सांसें सुन सकती थी, और महसूस कर सकती थीं। उनकी खुद की हालत भी बहुत बढ़िया नहीं थी। उनका शरीर काँप रहा था। उनका आत्मनियंत्रण उनका साथ ऐसे छोड़ देगा, उनको अंदाजा भी नहीं था।
कुछ देर ऐसे मौन प्रेमाचार के बाद, सुनील ने माँ के साथ अपने भविष्य का अपना दृष्टिकोण रखना जारी रखा,
“सुमन... मैं तुमको दुनिया जहान की खुशियाँ देना चाहता हूँ। मैं तुमको खूब खुश रखना चाहता हूँ! मैं तुमको खूब प्यार करना चाहता हूँ! बहुत खुशियाँ देना चाहता हूँ! उसके लिए मैं जो भी कुछ कर सकता हूँ, वो सब करना चाहता हूँ! बहुत प्यार करता हूँ मैं तुमसे! सच में! बहुत! बहुत!”
उसने माँ की गर्दन के पीछे कुछ चुम्बन दिए। माँ का सर न जाने कैसे सुनील की तरफ़ हो कर उसके कंधे पर जा कर टिक गया। उनकी साँसे बहुत तेज़ चल रही थीं। माँ ने कुछ कहा नहीं, लेकिन उनके मुँह से एक आह ज़रूर निकल गई। सुनील ने महसूस किया कि यह माँ के स्तन-मर्दन की प्रतिक्रिया थी।
“सुमन?” उसने बड़ी कोमलता से पूछा, “दर्द हो रहा है?”
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“इनको छोड़ दूँ?” उसने फिर पूछा।
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“धीरे धीरे करूँ?” उसने फिर पूछा।
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“मेरी सुमन... मेरी दुल्हनिया... कुछ तो बोलो!” इस बार उसने बहुत प्यार से पूछा।
माँ ने फिर भी कुछ नहीं कहा, लेकिन अपने लिए ‘मेरी दुल्हनिया’ शब्द सुन कर उनका दिल धमक गया।
“दुल्हनिया, इनको देखने का मेरा कितना मन है!”
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“तुम्हारे इन प्यारे प्यारे दुद्धूओं को नंगा कर दूँ?” सुनील ने इस बार उनको छेड़ा।
माँ ने तुरंत ही ‘न’ में सर हिला कर उसको मना किया।
सुनील समझ सकता था कि माँ को शायद सब अजीब लग रहा हो। लेकिन माँ ने ही उसको कहा था कि यही मौका है, और आज के बाद वो इतनी धैर्यवान नहीं रहेंगी। तो जब एक मौका मिला था, तो उसको गँवाना बेवकूफी थी। वो उसका पूरा इस्तेमाल कर लेना चाहता था। इसलिए उसने फिर से अपनी बात माँ के कान में बड़ी कोमलता से कहना जारी रखा,
“ठीक है! कोई बात नहीं! इतने सालों तक वेट किया है, तो कुछ दिन और सही!” सुनील ने कहा!
उसके कहने का अंदाज़ कुछ ऐसा था कि जैसे माँ का उसके सामने नग्न होना कोई अवश्यम्भावी घटना हो! आज नहीं हुई तो क्या हुआ? जल्दी ही हो जाएगी!
माँ की भी चेष्टाएँ अद्भुत थीं - यहाँ आने के बाद शायद ही कोई ऐसा दिन गया हो जब सुनील ने उनके स्तनों को न देखा हो। लतिका या आभा - दोनों में से कोई न कोई उनके स्तनों के लगा ही रहता अक्सर, और उस दौरान अनेक अवसर होते थे, जब उनके स्तन अनावृत रहते थे! लेकिन इस समय उनको सुनील के सामने नग्न होना, न जाने क्यों लज्जास्पद लग रहा था।
ऐसा क्या बदल गया दोनों के बीच? पुत्र और प्रेमी में संभवतः यही अंतर होता है। पुत्र को माता से स्तनपान की भिक्षा मिलती है, और प्रेमी को अपनी प्रेमिका के स्तनों के आस्वादन का सुख!
सुनील ने कहना जारी रखा, “मेरी सुमन, एक बात कहूँ?”
माँ ने कुछ नहीं कहा, बस आँखें बंद किये, अपना सर सुनील के कंधे पर टिकाए उसकी बातें सुनती रहीं। तो सुनील ने कहना जारी रखा,
“मेरी एक इच्छा है... मैं चाहता हूँ कि जब हमारे बच्चे हों, तब तुम उनको अपना दूध, अपना अमृत कई सालों तक पिलाओ... आठ साल... दस साल... हो सके तो इससे भी अधिक!” माँ के स्तनों को सहलाते और धीरे धीरे से निचोड़ते हुए उसने कहा, “जब तक इनमें दूध आए, तब तक! भैया को भी तुमने ऐसे ही पाला पोसा था! और अम्मा भी तो यही कर रही हैं।”
माँ के चूचक उनके ब्लाउज के कपड़े से उभर कर सुनील की हथेली में चुभ रहे थे। माँ ने बहुत लंबे समय में ऐसा अंतरंग एहसास महसूस नहीं किया था। सुनील की परिचर्या पर उनके मुंह से एक बहुत ही अस्थिर सी, कांपती हुई सी, धीमी सी आह निकलने लगी।
“दुल्हनिया?” इस बार सुनील ने बड़ी कोमलता और बड़े प्यार से माँ को पुकारा।
“हम्म?”
कमाल है न? माँ सुनील के ‘दुल्हनिया’ कहने पर प्रतिक्रिया दे रही थीं। शायद उनको अपनी इस स्वतः-प्रतिक्रिया के बारे में मालूम भी न चला हो!
“कैसा लग रहा है?”
माँ ने कोई उत्तर नहीं दिया।
“अच्छा लग रहा है?”
“उम्!”
विगत वर्षों में सुनील का व्यक्तित्व अद्भुत तरीकों से विकसित हुआ था। वो अब न केवल एक आदमी था, बल्कि एक आत्मविश्वासी आदमी भी था। वो जानता था कि वो क्या चाहता है। वो एक प्रभावशाली, दमदार प्रस्ताव बनाना जानता था। इस समय वो माँ को मेरी माँ के रूप में नहीं देख रहा था; बल्कि वो उनको एक ऐसी लड़की के रूप में देख रहा था, जिसमें उसको प्रेम-रुचि है। वो माँ को ऐसी लड़की के रूप में देख रहा था, जिसे वो अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करना पसंद करेगा। और जब माँ ने उसको आज का एक मौका दिया, तो पूरी हिम्मत, आत्मविश्वास, ईमानदारी और अधिकार के साथ वो उस मौके का पूरा लाभ उठा रहा था।
“दुल्हनिया, ब्लाउज खोल दूँ?” सुनील बड़ी उम्मीद भरी आवाज़ में फुसफुसाते हुए फिर से उनको अपनी आरज़ू बताई।
“न... न... नहीं।” माँ ने जैसे तैसे, किसी तरह एक बहुत ही कमजोर अनुरोध किया, “प... प... लीज... अ... भी... न... नहीं।”
“ठीक है!” सुनील ने सरसाहट भरी आवाज़ में कहा। घबराहट तो उसको भी उतनी ही हो रही थी, जितनी माँ को।
उधर, माँ के ज़हन में बहुत सी पुरानी यादें दौड़ती हुई आ गईं। उनको याद आया कि जब वो पहली बार डैड के साथ अकेली हुई थीं, तब उन्होंने उनको कैसे छुआ था। वो कमजोर महसूस कर रही थी, वो घबराहट महसूस कर रही थी, उनको डर लग रहा था। इस समय माँ ठीक वैसा ही, फिर से महसूस कर रही थी। बस, केवल इन दोनों अनुभवों के बीच का लगभग तीस वर्षों का अंतर था!
जब माँ डैड की पत्नी बन कर आई थीं, तब उनमें स्त्री-पुरुष के प्रेम की कोई परिकल्पना नहीं थी। वो विधि के हिसाब से अभी अभी शादी के योग्य हुई थीं। उससे पहले उनका किसी पुरुष से अंतरंग संपर्क नहीं हुआ था। उन दोनों के बीच में कोई भावनाएँ पनपतीं, उसके पहले ही वो गर्भवती हो गईं। तो यूँ समझ लीजिए कि माँ और डैड के प्रेम के मूल में मैं ही था - मैं ही वो कॉमन डिनोमिनेटर था जिसके कारण वो आपस में प्रेम की भावना बढ़ा पाए। मेरे कारण डैड ने देखा कि माँ कितनी ममतामई, कितनी स्नेही स्त्री हैं; मेरे कारण माँ ने देखा कि डैड अपने परिवार के लिए कितने समर्पित हैं, कितने अडिग हैं, कितने परिश्रमी हैं। दोनों के गुण एक दूसरे को भा गए। ऐसे ही उन दोनों में कालांतर में प्रगाढ़ता बढ़ी और प्रेम भी! वो कहते हैं न - हमारे देश में लड़का लड़की का पहले विवाह होता है... और अगर उनमें प्रेम होता है, तो वो विवाह के बाद होता है। वो बात माँ और डैड के लिए भी सत्य थी। इसी बात से माँ भी परिचित थीं - ख़ास कर स्वयं के लिए!
उन्होंने सुनील से संयम रखने का अनुरोध तो किया था, लेकिन उनको इस बात का कोई भरोसा नहीं था कि उनका अनुरोध सुनील को कैसा सुनाई दिया होगा, या उनको खुद को उस अनुरोध के बारे में कैसा महसूस हो रहा था। माँ के दिमाग के एक हिस्से को उम्मीद थी कि सुनील जो कर रहा है, वो करता रहे। जबकि एक दूसरे हिस्से को उम्मीद थी कि वो उन्हें अकेला छोड़ दे।
सुनील को भी माँ के उहापोह का एहसास हो गया होगा!
“अच्छा, मेरी सुमन - तुमको मुझ पर भरोसा है?”
माँ ने बड़े आश्चर्य से सुनील की तरफ़ देखा - ‘ये कैसा प्रश्न?’
समझिए कि यह प्रश्न किसी भी रिश्ते की अग्नि परीक्षा होती है। अगर भरोसा नहीं, विश्वास नहीं, तो प्रेम नहीं हो सकता! सुनील पर अविश्वास न करने का आज तक तो कोई कारण नहीं मिला। उनको सुनील पर भरोसा तो था ही! अगर यह सम्बन्ध न बने, तो भी! माँ का सर स्वतः ही ‘हाँ’ में हिल गया।
“ऐसे नहीं!” उसने बड़े दुलार से कहा, “बोल कर बताओ!”
“हाँ!” माँ घबरा गईं - इस बात को स्वीकार करना समझिए एक तरीके से उनके और सुनील के सम्बन्ध के नवांकुर को जल और खाद देने समान था, “भरोसा है!”
“तो अगर मैं तुमसे कुछ कहूँ, तो तुम मेरा भरोसा कर लोगी?”
माँ ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया, लेकिन कुछ कहा नहीं।
“तो दुल्हनिया मेरी, मुझे अपनी ब्लाउज के बटन खोलने दो…”
“लेकि…” माँ कुछ कहने वाली हुईं, कि सुनील ने बीच में टोका,
“दुल्हनिया, मैं केवल बटन खोलूँगा, और कुछ नहीं! प्रॉमिस!” सुनील ने कहा, कुछ देर माँ के उत्तर का इंतज़ार किया, और फिर उसने बड़ी कोमलता, बड़े स्नेह और बड़े आदर से बोला, “समझ लो, कि यह मेरा तुम्हारे लिए मेरे प्यार का इम्तहान है!”
माँ उहापोह में पड़ गईं - अगर वो सुनील को मना करती हैं, तो उसके लिए साफ़ साफ़ संकेत है कि उनको उस पर भरोसा नहीं। और अगर मना नहीं करती हैं, तो सुनील दूसरा आदमी बन जायेगा, जो उनकी ब्लाउज के बटन खोलेगा! कैसा धर्म-संकट है ये!
उसने कहा और कुछ देर इंतज़ार कर के कहा, “कर दूँ?”
“ठ… ठीक है!” माँ ने थूक गटकते हुए स्वीकृति दे दी। न जाने क्यों? शायद वो खुद भी देखना चाहती थीं कि क्या यह व्यक्ति अपनी बात का, और उनके सम्मान का मान रख सकता है या नहीं!
सुनील समझ रहा था, कि उसके प्रयासों का माँ पर एकदम सही प्रभाव पड़ रहा है। उसने माँ से अपने प्रेम की, और उनसे विवाह करने की अपनी इच्छा व्यक्त कर दी थी, और वो जानता था कि उसने अपनी उम्मीदवारी के लिए बड़ा मजबूत मामला बनाया है। अपने मन में वो पहले से ही खुद को माँ का प्रेमी मान चुका था, और इसलिए वो उनके प्रेमी के ही रूप में कार्य करना चाहता था। उसे यह विश्वास था कि सुमन उसे ऐसा कुछ भी करने से रोक देगी, जो उनको पसंद नहीं है। वास्तव में, माँ के लिए उसके इरादे शुद्ध प्रेम वाले ही थे; लेकिन माँ जैसी सुंदरी से वो बेचारा एक अदना सा आदमी दूरी बनाए रखे भी तो कैसे?
सुनील मुस्कुराया, और उसने धीरे धीरे, एक एक कर के उसने माँ की ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए, और अपने वायदे के अनुसार, उनके दोनों पटों को बिना उनके स्तनों से हटाए उनके स्तनों के बीच, सीने पर अपना हाथ फिराया। गज़ब की अनुभूति! कैसी चिकनी कोमल त्वचा! एकदम कोमल कोमल, बेहद बारीक बारीक रोएँ! अप्सराओं के बारे में जैसी कहानियाँ सुनी और पढ़ी थीं, उसकी सुमन बिलकुल वैसी ही थी! अब तो आत्मनियंत्रण की जो थोड़ी बहुत गुंजाईश थी, वो भी जाती रही।
माँ से किए वायदे के अनुरूप उसने उनके स्तनों को नग्न करने का प्रयास तो बंद कर दिया, लेकिन उनके शरीर पर अपने प्रेम की मोहर लगाने में उसके कोई कोताही नहीं बरती। और ऐसे ही चूमते चूमते वो फिर से उनके सामने आ गया। उसको उनकी ब्लाउज की पटों के बीच उनका सीना दिखा। बिलकुल शफ़्फ़ाक़ त्वचा! साफ़! शुद्ध! उसके दिल में करोड़ों अरमान एक साथ जाग गए! लेकिन क्या कर सकता था वो? अपने ‘जीवन के प्यार’ से वायदा जो किया था - अब उसको निभाना तो पड़ेगा ही, न? उसने चेहरा आगे बढ़ा कर माँ के दोनों स्तनों के बीच के भाग को - जो इस समय अनावृत था, उसको चूम लिया।
“दुल्हनिया? इनको भी चूम लूँ?” उसने बड़ी उम्मीद से कहा, “ब्लाउज के ऊपर से ही?”
माँ ने बड़ी निरीहता से उसको देखा - न तो वो उसको मना कर सकीं और न ही उसको अनुमति दे सकीं।
“बस एक बार, मेरी दुल्हनिया?”
माँ को मालूम था कि सुनील की दशा उस समय कैसी होगी! सही बात भी है - अगर कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को ऐसी हालत में देखे, तो स्वयं पर नियंत्रण कैसे धरे? संभव ही नहीं है। और उस पर भी वो उनसे अनुरोध कर रहा था। अपनी बिगड़ी हुई, ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति में भी माँ का दिल पसीज गया। उनका सर बस हल्का सा ‘हाँ’ में हिला।
बस फिर क्या था, सुनील के होंठ तत्क्षण माँ के ब्लाउज के ऊपर से उभरे हुए एक चूचक पर जा कर जम गए!
पहली बार! सुनील के जीवन में पहली बार माँ के स्तन उसके मुँह में थे!
काफ़ी पहले से ही माँ सुनील को अपना स्तनपान करने की पेशकश करती आई थीं - और सुनील हमेशा ही उस पेशकश को मना करता रहा था। लेकिन आज बात अलग थी... आज सुनील ने उसकी माँग करी थी, और माँ झिझक रही थीं। और क्यों न हो? माँ की पहले की पेशकश और सुनील की अभी की चेष्टा में ज़मीन और आसमान का अंतर था। आज से पहले माँ की स्तनपान की पेशकश ममता से भरी हुई थी - उसको स्वीकारने का मतलब था उनका बेटा बन जाना। लेकिन सुनील हमेशा से ही उनका प्रेमी बनना चाहता था, उनका पति बनना चाहता था।
माँ को ऐसा लगा कि जैसे सुनील के होंठों से उत्पन्न हो कर विद्युत की कोई तरंग उनके पूरे शरीर में फैल गई हो। और उस तरंग का झटका ऐसा था कि जैसे उनकी जान ही निकल जाए!
सुनील का उनके स्तनों को प्रेम करने का अंदाज़ प्रेमी वाला था - पुत्र वाला नहीं! अगर उनको थोड़ी भी शंका बची हुई थी, तो वो अब जाती रही। वो सुनील के लिए उसकी प्रियतमा ही थीं! माँ इस बात से अवश्य प्रभावित हुईं कि अगर सुनील चाहता, तो अपनी उंगली की एक छोटी सी हरकत मात्र से उनके स्तनों को निर्वस्त्र कर सकता था। लेकिन उसने वैसा कुछ भी नहीं किया! छोटी छोटी बातें, लेकिन उनका कितना बड़ा प्रभाव! सही ही कहते हैं - अगर किसी के चरित्र के बारे में जानना हो, तो बस ये देखें कि वो छोटी छोटी बातों पर कैसी प्रतिक्रिया देता है।
फिर वो पीछे हट गया। एकाएक।
“सुमन... मेरी प्यारी दुल्हनिया... तुम मेरा प्यार हो… मेरा सच्चा प्यार… मेरे जन्म जन्मांतर का प्यार!” सुनील ने बड़े प्रेम से, लेकिन ज़ोर देकर कहा, “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। और तुमको मैं बहुत रेस्पेक्ट भी करता हूँ! और मैं अपनी पूरी उम्र करता रहूँगा। तुम मेरे लिए एकदम परफेक्ट हो, और मुझे उम्मीद है कि मैं भी तुम्हारे लिए कम से कम ‘सही’ तो हूँ!”
उसने बहुत प्यार से माँ के गालों को सहलाया, “मैंने अभी जो कुछ भी किया, वो सिर्फ इसलिए किया क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। बहुत प्यार! मैं हमारे बीच बहुत मजबूत बंधन महसूस करता हूँ। इतने सालों से मैं केवल तुम्हारे साथ ही अपना जीवन बिताने का सपना देख रहा हूँ। मुझे तुमसे प्यार है। अगर तुम मेरी किसी बात पर भरोसा कर सकती हो, तो प्लीज मेरा विश्वास करो कि मैंने तुम्हारे अलावा कभी भी किसी और लड़की को देखा तक नहीं है। किसी और लड़की के बारे में सोचा तक नहीं!”
उसने माँ के माथे को चूमा। माँ को फिर से वही, अपनी त्वचा झुलसने और चुम्बन का उनकी त्वचा में समाने का एहसास हुआ।
“मैं तुमको अपनी मानता हूँ! ... और उम्मीद करता हूँ कि तुम भी मुझको अपना मान लोगी!” उसने मनुहार किया, फिर मुस्कुरा कर बोला, “मैं अब जा रहा हूँ... और अगर मैं यह बात पहले कहने में चूक गया हूँ, तो एक बार और सुनो : मैं तुमसे प्यार करता हूँ सुमन... बहुत प्यार! और मैं हमेशा तुमको प्यार करता रहूँगा! अपनी उम्र भर! मैं चाहता हूँ... और मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी पत्नी बन जाओ। प्लीज इस बारे में सोचो।”
उसने एक नज़र भर के माँ को एक आखिरी बार और देखा, उनके गालों को प्यार से छुआ, और “आई लव यू” बोल कर कमरे से बाहर निकल गया।
सुनील के कमरे से बाहर जाने ही जैसे माँ को होश आया - उन्होंने फौरन अपने कपड़े दुरुस्त किए और अपनी ब्लाउज के बटन लगाए। उनकी साँसे भारी भारी हो गई थीं, और उनके दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं। बड़े यत्न से वो अपने आप को सामान्य करने की कोशिश करने लगीं; और साथ ही साथ सुनील ने जो कुछ उनसे कहा था, और किया था, उस पर विचार करने लगीं। ठन्डे दिमाग से सोचने पर उनको लगा कि सुनील ने जो कुछ भी उनके साथ किया था, जो कुछ भी उनसे कहा था, वो सब जायज़ था। उसकी सभी बातों में ईमानदारी थी, और उसकी हरकतों में शरारत थी। सुनील ने उनको ऐसे छुआ था जैसे कि वो हमेशा से ही उसकी हों - उसकी प्रेमिका और उसकी पत्नी!
माँ यह सब सोच कर शर्म से काँप गईं।
शायद सुनील अपनी बातें उनसे कहने से पहले ही उनको अपनी पत्नी के रूप में देखने लगा है!
शायद सुनील पहले से ही उनके बारे में ऐसा सोच रहा है।
माँ ने सोचा, कि अगर उनकी उम्र अधिक नहीं होती - अगर वो सुनील की हम-उम्र होतीं, तो क्या वो तब भी सुनील से शादी करने के विचार पर इतनी झिझक महसूस करती? शायद नहीं! ‘शायद नहीं’ का क्या मतलब? बिलकुल भी नहीं झिझकतीं! सुनील सचमुच बहुत ही हैंडसम, आत्मविश्वासी, मर्दाना और हिम्मती आदमी था! वो एक मेहनती और गौरवान्वित आदमी भी था। सर्वगुण संपन्न है सुनील! एक काबिल आदमी है वो! उसके साथ वैवाहिक जीवन में माँ को आर्थिक सुरक्षा भी मिलेगी, जो उनके एक छोटे से संसार के निर्माण की अनुमति देगा। माँ यह सब सोचते समय इस बात को भूल गईं कि उनके दिए गए पैसों से ही मैंने अपना बिज़नेस खड़ा किया था, और उस बिजनेस में मेजर शेयरहोल्डिंग के कारण, वो अपनी जानकारी और आँकलन से कहीं अधिक संपन्न और समृद्ध महिला थीं, और आगे और भी अधिक समृद्ध होने वाली थीं! लेकिन उनको उस बात से कोई सरोकार ही नहीं था जैसे! माँ के संस्कार में पति का धन ही पत्नी का धन होता है! तो अगर उनका अगला आशियाना बनेगा, तो सुनील के साथ! और इन सभी बातों से सबसे बड़ी, सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि सुनील उनसे प्यार करता है! बहुत प्यार! और यह बात अब उनके मानस पटल पर पूरी तरह से स्पष्ट हो चली थी।
सुखी विवाह के लिए सभी ‘महत्वपूर्ण’ बातें जब इतनी अनुकूल थीं, तो वो सुनील से शादी करने में इतनी संकोच क्यों कर रही थीं? क्या उनका यह पूर्वाग्रह किसी विधवा के पुनर्विवाह की हठधर्मिता के कारण था? या फिर एक बड़ी उम्र की महिला का एक छोटे उम्र के आदमी से शादी करने की हठधर्मिता के कारण था? सुनील सही कहता है - उनको इस बात की परवाह क्यों करनी चाहिए कि दूसरे क्या सोचते हैं, या क्या कहते हैं? अगर उनके लोग, उनका परिवार सुनील के साथ उनकी शादी को स्वीकार कर सकते हैं, तो उनको एक खुशहाल विवाहित जीवन जीने का एक और प्रयास क्यों नहीं करना चाहिए? वो क्यों न अपने मन की वर्षों से दबी हुई इच्छाओं को पूरा करें? ऐसी कौन सी अनहोनी इच्छा है उनकी? वो बस अपना एक बड़ा सा परिवार ही तो चाहती हैं - कई सारी महिलाओं की यही इच्छा होती है! उनकी जब शादी हुई, तब से वो बस सुहागिन ही मरना चाहती थीं - मतलब जीवन पर्यन्त विवाहिता रहना चाहती थीं, और अभी भी उनकी यही इच्छा है! सारी विवाहित महिलाओं की यही इच्छा होती है! यह सब कोई अनोखी इच्छाएँ तो नहीं है! और सुनील उनकी यह इच्छाएँ पूरी करना चाहता है - वो उनको विधि-पूर्वक अपनी पत्नी बनाना चाहता है। जब उसके इरादे साफ़ हैं, तो उनको संशय क्यों हो?
लेकिन अगर सुनील केवल उनके साथ सिर्फ कोई खेल खेल रहा हो, तो?
यह एक अविश्वसनीय विचार था, क्योंकि उनको मालूम था कि सुनील बहुत ही शरीफ़ और सौम्य व्यक्ति है! लेकिन कौन जाने? इस उम्र में बहुत से लड़कों को न जाने कैसी कैसी फंतासी होने लगती है। उनके शरीर में हॉर्मोन उबाल मार रहे होते हैं, और ऐसे में वो किसी भी औरत को अपने नीचे लिटाने में ही अपनी मर्दानगी समझते हैं! सुनील अभी अभी हॉस्टल से लौटा है। क्या पता - वहाँ रहते रहते कहीं उसका व्यक्तित्व न बदल गया हो?
वो कहते हैं न, देयर इस नो फूल लाइक एन ओल्ड फूल?
अगर ऐसा है, तो वो खुद को मूर्ख तो नहीं बनाना चाहेगी, है ना? वो भी इस उम्र में! ऐसी बेइज़्ज़ती के साथ वो एक पल भी जी नहीं सकेंगी! लेकिन सुनील के व्यवहार, उसके आचार को देख कर ऐसा लगता तो नहीं। आदमी परखने में ऐसी भयंकर भूल तो नहीं होती! और ये तो अपने सामने पला बढ़ा लड़का है! वो उनके साथ, अपनी अम्मा के साथ, और अपने भैया के साथ ऐसा विश्वासघात क्यों करेगा?