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उफ्फ क्या ही शिद्दत है सुनील की चाहत में और अब ये शिद्दत सुमन को भी नजर आ रही है बस उसके अपने अंतर्द्वंद ही खतम नही हो रहे है और उसको आगे नहीं बढ़ने दे रहे है। मगर अब धीरे धीरे सुमन भी खुल रही है, पुरानी पीढ़ा और दर्द धीरे धीरे आंसुओ के साथ बह रहा है। सुनील की निष्ठा और प्यार की गहराई अब सुमन को समझ आ रही है और शायद अब वो उस पर थोड़ा सीरियसली सोच भी रही है। लगता तो है की जल्द ही सुमन के खुद के बनाए अवरोध जल्दी ही टूट जायेंगे मगर अमर इस बात को कैसे लेगा वो देखना अभी बाकी है। बहुत है सुंदर अपडेट्स।अंतराल - पहला प्यार - Update #12
काजल के जाने के बाद सुनील ने रसोई में जा कर माँ के लिए खाने की थाली खुद ही तैयार की - कद्दू की सब्ज़ी, घी से चुपड़ी दो रोटियाँ - माइक्रोवेव ओवन में थोड़ा गरम कर के, और बूरा शक्कर, सलाद, दही, और आम का अचार! थाली में से माँ कुछ भी अपनी पसंद का खा सकती थीं। दरअसल, थाली में सब कुछ माँ की पसंद का ही था। एक प्लेट में उसने अलग से जामुन, लीची, और आम रखा हुआ था कि यदि उनका खाना खाने का मन न हो, तो कम से कम फ़ल ही खा लें।
खाने की प्लेट्स को एक ट्रे में रख कर उसने माँ के कमरे के दरवाज़े पर दस्तक दी - आम तौर पर माँ के कमरे का दरवाज़ा बंद नहीं रहता, लेकिन फिर उनको एकांत देने के लिए, उनको कोई परेशान नहीं करता।
“काजल, मेरा मन नहीं है!” दरवाज़े पर दस्तक सुन कर, माँ ने कोमल, लेकिन थके हुए स्वर में कहा।
“मैं हूँ!” सुनील ने उत्तर दिया।
अंदर से कोई उत्तर नहीं आया।
“अंदर आ जाऊँ?”
अंदर से फिर से कोई उत्तर नहीं आया।
“सुमन?”
माँ ने फिर से कुछ नहीं कहा।
“ठीक है, मैं आ रहा हूँ अंदर!”
सुनील ने कहा, और दरवाज़ा धीरे से धकेल कर खोल दिया, और उनके कमरे के अंदर आ गया। अंदर आ कर सुनील ने देखा, कि माँ बिस्तर पर उठ कर बैठी तो हैं, लेकिन ऐसा लग रहा था, कि जैसे बस एक क्षण पहले ही वो बिस्तर में मुँह छुपाए हुए रो रहीं थीं। उनके गालों पर आँसुओं की रेखा साफ़ दिख रही थी।
सुनील ने फिलहाल उस बात को अनदेखा किया। वो आ कर माँ के पास, उनके बिस्तर पर बैठा और खाने की ट्रे भी वहीं अपने बगल रख दी।
“सुमन,” उसने स्नेह से कहना शुरू किया, “अम्मा ने बताया कि तुमने कुछ खाया ही नहीं!”
माँ ने कुछ कहा नहीं लेकिन पूरी संभ्रांतता से अपनी उंगली से अपने आँसू पोंछे! वो नहीं चाहती थीं कि कोई उनको ऐसे रोते हुए देखे। उन्होंने गहरी साँस ली - लेकिन उसमें से सिसकने की आवाज़ साफ़ सुनाई दी।
“मेरी तबियत नहीं हो रही है खाने की!” माँ ने भर्राये हुए स्वर में कहा।
“अरे, लेकिन बिना खाए पिए कैसे चलेगा?” सुनील ने कोमल, स्नेही, प्रेम भरे, किन्तु अधिकार वाले स्वर में कहा, “मेरी सुमन... मेरी प्यारी दुल्हनिया, तुम मुझसे नाराज़ हो, वो ठीक है, लेकिन उसका गुस्सा खाने पर तो मत उतारो! तुम ऐसे नाराज़ रहोगी तो बेचारे कद्दू के दिल पर क्या बीतेगी?” उसने ठिठोली करी।
माँ ने कुछ प्रतिक्रिया नहीं दी। सुनील का हास्य-बाण व्यर्थ चला गया। लेकिन वो ऐसे हार मानने वालों में से नहीं था।
“नाराज़ हो दुल्हनिया?” उसने पूछा।
माँ थोड़ा झिझकीं - शायद अपने लिए दुल्हनिया शब्द का सम्बोधन सुन कर! लेकिन फिर उन्होंने ‘न’ में सर हिलाया।
“उदास हो?”
माँ ने फिर से ‘न’ में सर हिलाया।
वो मुस्कुराया, “भूख लगी है?”
माँ ने इस बार कुछ नहीं कहा। वो सुनील का खेल समझ रही थीं। और उनको न जाने क्यों सुनील का सान्निध्य पा कर अच्छा भी लग रहा था।
“दुल्हनिया,” सुनील ने बड़े प्यार से कहा, “अगर तुम ऐसे भूखी रहोगी, तो मेरी क्या हालत होगी? तुम्हारी तबियत बिगड़ जाएगी तो मेरे दिल पर क्या बीतेगी? तुम्हारी आस में ही तो जी रहा हूँ - और अगर तुमको ही कुछ हो गया, तो फिर मेरा कौन सहारा है? बोलो?”
सुनील बड़ी कोमलता, स्नेह, और प्रेम से माँ को ऐसे समझा रहा था जैसे किसी बच्चे को समझाया जाता है।
अब माँ इस बात पर क्या बोलतीं! अगर सुनील उनको अपनी पत्नी मानता है, तो बात उसकी बिलकुल सही है - पति पत्नी तो एक दूसरे का सहारा होते ही हैं! उसमें कोई गलत बात नहीं है। एक और बात माँ के दिमाग में आई - सुनील की बातों से ऐसा तो नहीं लगता कि वो उनके साथ कोई खेल खेल रहा हो! उसकी बातों में सच्चाई झलक रही थी। वो सच में उनको चाहता है। सच में - वो उनके साथ, और अपने भैया, और अपनी अम्मा के साथ ऐसी दग़ाबाज़ी तो नहीं करेगा!
“आओ - रेडी हो जाओ - मैं खिलाता हूँ खाना!” सुनील ने बड़े दुलार से कहा, और अपने हाथ से एक कौर बना कर प्यार से माँ की तरफ बढ़ाया।
माँ झिझकी - उनकी आँखों से फिर से आँसू की बड़ी बड़ी बूँदें गिरने लगीं। मुझको, और काजल को तो उन्होंने कैसे आसानी से मना कर दिया था, लेकिन न जाने क्यों, वो सुनील को मना ही नहीं कर पा रही थीं।
“अरे मेरी प्यारी सी, भोली सी दुल्हनिया,” सुनील ने कौर को वापस थाली में रखा, और अपनी हथेली के पिछले वाले भाग से माँ के आँसू पोंछने लगा, “क्या हो गया तुमको? क्या सोच रही हो?”
उसने बड़े प्यार से कहा और कह कर माँ को अपने आलिंगन में बाँध लिया। माँ भी न जाने किस प्रेरणा से सुनील के आलिंगन में आ गईं, और उसके सीने में मुँह छुपाए कुछ देर तक सुबकती रहीं। इस बीच वो माँ को समझाता रहा, दुलारता रहा और चूमता रहा। जब अंततः उनका सुबकना कम हुआ, तो वो सुनील से अलग होते हुए स्वयं ही अपने आँसू पोंछने को हुईं। लेकिन सुनील ने उसके पहले ही उनकी आँखों को चूम कर उनके आँसू पी लिए।
बड़ी ही आश्चर्यजनक और प्रेम भरी अभिव्यक्ति! ऐसा तो उनके साथ पहले कभी नहीं हुआ! डैड ने भी उनसे इस तरह से प्रेम का इज़हार नहीं किया कभी।
“बस... बस... अब और नहीं रोना!” उसने बड़े प्यार और अधिकार से कहा, “आओ... मैं तुमको खाना खिला दूँ!”
थोड़ा झिझकते, थोड़ा सुबकते हुए माँ ने अपना मुँह खोल दिया। सुनील ने मुस्कुराते हुए वो कौर उनके मुँह में डाल दिया। माँ खाने लगीं। लेकिन वो चुप थीं। जाने क्या सोच रही थीं!
“क्या सोच रही हो?” उसने पूछा।
“कुछ नहीं!” माँ ने उदासी से कहा।
“नहीं बताओगी?” सुनील ने बड़े ही कातर स्वर से कहा।
माँ पहले कहना चाहती थीं कि वो किस अधिकार से उनको खाना खिलाना चाहता है - लेकिन यह ख़याल आते ही अगले ही क्षण उनको अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया। उस उत्तर के संज्ञान से उनको शर्म भी आई, और अपने ऊपर थोड़ी खीझ भी हुई। ऐसी उहापोह की स्थिति उन्होंने कभी नहीं झेली।
माँ ने बहुत प्रयत्न किया यह सोचने में कि वो सुनील के प्रश्न पर कैसी प्रतिक्रिया दें; लेकिन फिर उनसे कुछ कहते नहीं बना और उन्होंने ‘न’ में सर हिलाया। जैसे भोले भाले बच्चे रूठ कर नखरे या नाराज़गी दिखाते हैं, वैसे ही। उनके मन में नाराज़गी नहीं होती - वो केवल प्यार चाहते हैं, दुलार चाहते हैं। माँ की इस भोली अदा पर सुनील मुस्कुराए बिना नहीं रह सका। उसका मन हुआ कि माँ को अपने सीने में भींच कर उनका मीठा सा मुँह चूम ले! लेकिन बड़ी मेहनत से उसने यह इच्छा दबाई। सुनील ने फिर उनको दूसरा कौर खिलाया। माँ को इस बीच सोचने का कुछ और अवसर मिल गया।
कुछ पलों के बाद वो एक फीकी सी मुस्कान के साथ बोली, “आप मेरा इतना ध्यान मत रखा करिए!”
माँ सुनील को ‘आप’ कह कर बुला रही थीं। शायद उनको भी यह बात न ध्यान में रही हो। उनके अवचेतन में कहीं न कहीं सुनील उनके पति का रूप ले चुका था! वो एक सम्पूर्ण पुरुष था, और उनसे प्रेम करता था। उसने अपने मन की बात माँ से कह दी थी। अब उन दोनों के सम्बन्ध पर आखिरी निर्णय माँ को लेना था। उसी कारण से माँ के मन में अन्तर्द्वन्द्व चल रहा था। इतना बड़ा निर्णय था! इस तरह के बड़े निर्णय उन्होंने पहले अकेले नहीं लिए थे - कोई न कोई उनके साथ था, उनकी मदद करने को! उनके हाँ या न पर उनका जीवन बदलने वाला था - सदा के लिए। शायद इसीलिए उनको डर था, संशय था।
“मैं तुम्हारा ध्यान नहीं रखूँ, तो और किसको रखने दूँ?” सुनील ने फिर से मुस्कुराते हुए, स्नेही, किन्तु अधिकार भरे स्वर में कहा, और इस बार उसने बूरा शक्कर में रोटी का कौर लपेट कर उनको खिलाया। माँ को अन्य मिठाइयाँ तो नहीं, लेकिन बूरा शक्कर बहुत पसंद आती थी। सुनील को अपनी पसंदीदा चीज़ को खिलाते देख, माँ शरम से खाने लगीं।
“आप कुछ समझते ही नहीं!” उन्होंने कौर को ख़तम कर के कहा।
“क्या नहीं समझता?” सुनील बड़े धैर्य से, लेकिन उसी स्नेही स्वर में बोला, “मैंने जन्म जन्मांतर तक तुम्हारा साथ देने का वचन दिया है - खुद को और तुमको! फिर अभी शुरुवात में ही कैसे पीछे हट जाऊँ? मैं तुमको बहुत प्यार करता हूँ, मेरी जान!” वो मुस्कुराया।
‘मेरी जान’ यह शब्द सुन कर माँ के हृदय में एक धमक सी हुई। माँ पहली बार सुनील को एक अलग दृष्टि से देखने लगीं। उन तीन ही क्षणों में उनके मन में न जाने कितने विचार आए और गए।
‘कितनी आसानी से, कितनी सहजता से बीहैव करते हैं ये!’
सुनील भी माँ को खुद की तरफ़ देखते हुए देखता है; फिर थाली में कुछ देखते हुए कहता है, “अरे, दही तो खाया ही नहीं!”
कह कर वो उनको चम्मच से दही खिलाने लगा। माँ के होंठों पर एक फीकी सी, लेकिन प्यारी सी मुस्कान आ गई। ऐसे करते करते एक रोटी ख़तम हो गई, और दूसरी शुरू।
वो बोला, “एक बात पूछूँ सुमन, बुरा तो नहीं मानोगी?”
माँ सुनील की ओर ऐसे देखने लगीं, जैसे बिना कहे ही कह रही हों, ‘पूछो, जो पूछना हो!’
“प्यार करना कोई बुरी बात है क्या?”
माँ कुछ क्षण चुप रहीं, फिर नजरें झुकाए हुए बोली, “नहीं! बुरी बात क्यों होने लगी? लेकिन समय... और खुद की पहचान रखते हुए ही प्यार करना ठीक होता है।”
“प्यार करने का कोई समय होता है भला? मुझे तो लगता है कि जिस समय किसी से प्यार हो जाए, वही सही समय है। लेकिन ‘खुद की पहचान’ का क्या मतलब है?” माँ की झुकी हुई नज़रों का कारण ढूँढ़ते हुए सुनील ने कहा।
“अगर प्यार हो जाए, तो पूरी ईमानदारी से हो! ऐसे नहीं कि दो दिन का आकर्षण, और उसके बाद कुछ नहीं!”
सुनील ने माँ की तरफ ऐसे देखा कि जैसे उसको उनकी पूरी बात समझ में न आई हो।
माँ ने कहना जारी रखा, “मतलब यह कि अगर प्रेम कर ही लिया है, तो फिर अपने प्रेमी के संग ही प्रेम रहे! प्रेम का ‘पालन’ होना चाहिए, उसका ‘निर्वाह’ नहीं! यह नहीं कि आज एक के साथ, कल दूसरे के साथ!”
“तुम मुझे वैसा समझती हो?”
माँ ने ‘न’ में सर हिलाया, “नहीं! मैं आपके लिए नहीं, अपने बारे में कह रही हूँ!”
“मैं समझा नहीं!”
“मैंने अपना सब कुछ ‘उनको’ सौंप दिया था। मेरा अस्तित्व, मेरा प्रेम, सब कुछ ‘वो’ ही थे। अब जब ‘वो’ नहीं हैं, तो मैं ‘उनसे’ कैसे अलग हो जाऊँ! मैं ‘उनसे’ कैसे दग़ाबाज़ी कर दूँ?” माँ ने कहा।
उनकी आँखों में फिर से आँसू आ गए।
‘ओह, तो सुमन के दुःख और उदासी का कारण बाबूजी की यादें है!’ सुनील ने सोचा।
“लेकिन सुमन, बाबूजी तो अब नहीं हैं न!” सुनील ने कहा - बड़ी कोमलता से - कुछ इस तरह कि माँ के दिल को ठेस न लगे, “और फिर उनसे इतर हो जाने के लिए तुमको कौन कह रहा है? तुम्हारे मन में उनके लिए जो प्रेम, जो सम्मान है, उसको तुम सुरक्षित रखो! बरकरार रखो। मुझे नहीं लगता कि ऐसा करने से तुम्हारे अंदर जो प्यार का सागर है, वो खाली हो जाएगा!”
“आपको बुरा नहीं लगेगा?”
“किस बात का?”
“यही कि मेरे मन में किसी दूसरे आदमी की छवि बसी हुई है! जो सब आप पाना चाहते हैं, वो कोई और पा चुका है?”
“बुरा क्यों लगेगा?” सुनील ने बहुत शांत और स्थिर स्वर में कहा, “मेरी दुल्हनिया, सबसे पहली बात तो यह है कि मेरे लिए, बाबूजी कोई दूसरे आदमी नहीं हैं! न तो कभी वो दूसरे थे, और न ही कभी होंगे! वो हम सबके हैं, और हम सबके मन में बसे हुए हैं। मैं उनका बहुत आदर सम्मान करता हूँ, और अपनी उम्र भर करता रहूँगा! उनका मेरे जीवन में जो स्थान है, वो कभी नहीं बदलने वाला!”
वो आगे कहने से पहले थोड़ा ठहरा, “और जहाँ तक पाने खोने वाली बात है, बाबूजी तुम्हारे हस्बैंड थे! और एक हस्बैंड अपनी बीवी को प्यार नहीं करेगा, तो और कौन करेगा? मैं भी तो तुम्हारा हस्बैंड बनना चाहता हूँ! जब मेरा यह सपना साकार हो जाएगा, तब मैं भी तुमको खूब प्यार करूँगा! तुमको हमेशा खुश रखूँगा!”
माँ उसकी बात पर सकुचा गईं।
सुनील थोड़ा रुका, फिर कुछ सोच कर बोला, “मेरी सुमन, एक बात तो बताना मुझे... बिना बुरा माने और बिलकुल सच सच - क्या तुमको मेरी बातों से यह लग रहा है, कि मैं तुम्हारी वर्जिनिटी लेना चाहता हूँ?”
वर्जिनिटी - या शुचिता - का अर्थ केवल शारीरिक शुचिता (कौमार्य) से नहीं है। माँ का कौमार्य तो कोई तीस साल पहले ही जाता रहा था। यहाँ शुचिता का संकेत माँ के पतिव्रता होने से है। पूरी उम्र वो डैड के लिए समर्पित रही थीं। ऐसे में किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना उनको कष्टप्रद लग रहा था।
माँ ने कुछ कहा नहीं, बस अपनी नज़रें नीची कर लीं। माँ झूठ नहीं बोल पाती थीं। उनका सर बहुत हल्का सा ‘हाँ’ में हिल गया।
सुनील के दिल में एक कचोट सी हुई, लेकिन वो केवल मुस्कुराया, और फिर से बड़े स्नेह से बोला, “अगर तुमको ऐसा लगता है, तो तुमने मेरे प्यार को अभी तक समझा नहीं! लेकिन इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है दुल्हनिया - मैं हूँ ही इतना बेवक़ूफ़, कि मैं तुमको समझा ही नहीं पा रहा हूँ!”
माँ ने सुनील की तरफ देखा। उनको थोड़ी ग्लानि तो हुई कि उन्होंने सुनील के प्रेम की सच्चाई को गलत समझ लिया।
“और जहाँ तक बाबूजी की बात है, मैं उनको तुम्हारी लाइफ से रीप्लेस करने थोड़े न आया हूँ! मैं तो बस तुम्हारे दिल में, तुम्हारे जीवन में अपनी, खुद की एक जगह बनाना चाहता हूँ!” वो मुस्कुराया, “मैं तुमको प्यार करता हूँ - यह मेरी सच्चाई है। दुनिया की कोई ताकत इस सच्चाई को बदल नहीं सकती। और मुझे मालूम है, कि मुझे भी तुम्हारा प्यार पूरी ईमानदारी से मिलेगा। क्योंकि मैं खुद भी तुमको पूरी ईमानदारी से प्यार करूँगा - करता हूँ!”
सुनील की इस बात पर माँ के चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ गए।
“लेकिन मैं... मेरे पास आपको देने के लिए कुछ भी नया नहीं है!” माँ ने उदासी वाले भाव से कहा।
अधिकतर पुरुषों की सबसे बड़ी इच्छा होती है उनको एक ‘कुमारी’ लड़की का संग मिले। वो चाहते हैं कि उनको ऐसी लड़की मिले जिसका ‘कौमार्य’ उनसे मिलने के पहले तक सुरक्षित रहे, और जिसको वो ‘भंग’ कर सकें! यही उनके जीवन में सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। शायद माँ को सुनील भी उसी श्रेणी में लगा हो। लेकिन ऐसा था नहीं। उसका प्यार दर्शाने का तरीका अलग हो सकता है, लेकिन प्यार तो उसे था!
“प्यार भी नहीं?” सुनील ने तपाक से कहा।
उसकी बात पर माँ निरुत्तर हो गईं।
“सुमन... मेरी दुल्हनिया,” सुनील ने पूरे धैर्य के साथ कहा, “तुम मुझसे ये सब बातें कह रही हो न, इससे ही मुझे मालूम हो जाता है कि तुम्हारे अंदर कितना प्यार है! मुझे बस वही चाहिए! केवल तुम्हारा साथ, और तुम्हारा प्यार! पूरा... सारा प्यार मिल जाए, तो क्या मज़ा! कैसी बढ़िया किस्मत होगी मेरी फिर तो! लेकिन थोड़ा भी मिल जाए न, वो भी मेरे लिए बहुत है! अपनी सर आँखों पर रखूँगा मैं वो नेमत! जीवन भर का साथ, जीवन भर का प्यार! मुझे मालूम है, तुम्हारा प्यार इस घर में सब किसी पर बरसता है! मैं किसी के हिस्से का प्यार नहीं लेना चाहता! बस, मेरा वाला (उसने मुस्कुराते हुए कहा)! उतना ही! और तुम्हारे प्यार का भण्डार तो ऐसा है जो केवल बढ़ता जाता है, कभी कम नहीं होता!”
माँ के दिल में एक कचोट सी होने लगी। सच में - उन्होंने सुनील के प्यार को बहुत कम कर के आँका था। उसकी चाहत कोई किशोरवय वाली चाहत नहीं थी - आज यहाँ, और कल वहाँ।
सुनील कह रहा था, “मैं अगर केवल तुम्हारे पाँवों का आलता भी बन जाऊँ न मेरी जान, तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा।”
सुनील की बातों में, उसके लहज़े में ऐसी शिष्टता थी, इतना गांभीर्य था कि माँ उसके प्रभाव से अछूती न रह सकीं। सुनील और खुद को ले कर उनके मन में जो संदेह थे, वो अब बहुत कम हो चले थे। माँ ने उसको स्वीकार कर ही लिया था।
“आपको अजीब नहीं लगता?”
“किस बात पर?”
“यही कि मैं आपकी माँ से भी बड़ी हूँ उम्र में?”
“अरे यार सुमन,” सुनील हँसते हुए बोला, “तुम तो अभी भी वहीं पर अटकी हुई हो! माना कि बचपन में तुमने मुझे माँ की तरह पाला है, मुझे पढ़ाया लिखाया, मुझे एक तरह से सेया है! लेकिन अब सिचुएशन थोड़ी बदल गई है!” वो कुछ सोच कर मुस्कुराया, “तुम मुझे प्यार करो न! किसने मना किया? मैं चाहता भी तो वही हूँ! मैं तुमको बस अपने उस प्यार का रूप बदलने को बोल रहा हूँ! तुमने इतने सालों से हम पर अपनी ममता बरसाई है! बिलकुल एक माँ की ही तरह! इस बात को एक्सेप्ट करने में मुझे कोई हिचकिचाहट नहीं। क्यों होगी? ये तो सच्चाई है ही! लेकिन अब मेरी ख़्वाइश है - और विनती भी - कि अब तुम मेरी पत्नी बन कर मुझसे प्यार करो, और मैं तुमको तुम्हारे पति के रूप में तुमको प्यार करूँ। मैं अब बस इतना ही चाहता हूँ कि हम दोनों अपना एक छोटा सा संसार बसाएँ, और उसमें हँसी ख़ुशी रहें!”
सुनील की बात इतनी ईमानदार थी कि माँ के खुद के संशय के बादल छँटने लगे। वो कुछ बोलीं नहीं, लेकिन इस समय वो मन में बहुत हल्का महसूस कर रही थीं। सुनील के साथ अपने भविष्य को ले कर उनको सम्भावनाएँ दिखने लगी थीं! सुनील उनको खाना खिलाता रहा, और कुछ देर में दूसरी रोटी भी ख़तम हो गई।
“लीची, जामुन, या आम?” सुनील ने मुस्कुराते हुए कहा, “या एक और रोटी!”
लेकिन माँ कुछ सुन नहीं रहीं थीं। यह सब बहुत नया नया था, और सब कुछ इतनी जल्दी जल्दी हो रहा था कि उन पर सुनील की इन प्रेम भरी बातों का भावनात्मक बोझ बहुत अधिक हो गया था - उनकी आँखों से फिर से आँसू ढलकने लगे। किसी पीड़ा के कारण नहीं, बस यूँ ही!
“हे!” सुनील ने कहा, और उनको अपने आलिंगन में ले कर बोला, “सुमन... मेरी प्यारी सी, भोली सी सुमन... मेरी सोनी दुल्हनिया! अब और रोना नहीं है! बिलकुल भी नहीं रोना है! प्रेम सबसे बड़ी चीज़ है सुमन! मुझे तुमसे प्रेम है। तुम मेरी बन जाओ! बस! मैं तुमको बहुत बहुत प्यार करूँगा! अभी भी करता हूँ, और हमेशा करता रहूँगा! और मुझे मालूम है कि तुम भी मुझसे बहुत प्यार करोगी।”
उसने बड़े प्रेम से कहा, और माँ के माथे को चूम लिया, “आई लव यू!”
पहली बार माँ उसके ‘आई लव यू’ कहने पर मुस्कुराई थीं! यह बात सुनील से छुपी न रह सकी।
“तुम भी मुझको ‘आई लव यू’ करती हो?” उसने किसी छोटे बच्चे की भाँति बड़े उत्साह, बड़ी उम्मीद से पूछा।
माँ का दिल लरज़ गया। लेकिन उन्होंने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया। सुनील की प्यारी बातें! माँ ने झूठ नहीं कहा था - उनकी मुस्कराहट में ही उनकी सच्चाई थी। सुनील का स्थान उनके मन में बदल चुका था। और उनके भी मन में सुनील के लिए प्यार का अंकुर पनप गया था।
सुनील खुश हो गया; और फिर उनके आँसू पोंछ कर बोला, “अब बोलो - जामुन? या लीची? या आम??”
माँ उसकी बात पर मुस्कुराए बिना नहीं रह सकीं। वो अचानक ही बहुत हल्का महसूस करने लगीं।
“तीनों!” माँ ने बड़ी कोमलता से कहा; बहुत देर के बाद उनकी बोली में भी मुस्कराहट थी।
“ये हुई न बात!” कह कर वो उनको एक एक कर के फल खिलाने लगा।
“सब मुझे ही मत खिला दीजिए - आप भी तो खाइए?”
“मुझे खाते देखना चाहती हो, तो तुमको ही खिलाना पड़ेगा!”
माँ शर्म से मुस्कुराईं और उन्होंने सुनील को पहले लीची खिलाई, जो उसने खा ली; फिर उन्होंने उसको जामुन खिलाया, जो उसने खा लिया; फिर उन्होंने आम की फाँकी उसकी ओर बढ़ाई।
आम की फाँकी उसने नहीं खाई।
“दुल्हनिया,” सुनील ने शरारत से कहा, “ये नहीं, ‘वो’ वाले आम!”
“कौन वाले?” माँ ने न समझते हुए प्लेट की तरफ देखा।
“वो अमृत रस वाले, जो तुम्हारी ब्लाउज में क़ैद हैं!”
उसकी बात पर माँ के चेहरे पर शर्म की लालिमा दौड़ गई।
“धत्त!”
“अरे, दिन में तो छूने दे रही थी, और अभी ‘धत्त’ कह रही हो!”
“मैं कहाँ छूने दे रही थी? आप ही जबरदस्ती कर रहे थे!”
“तुम नहीं छूने दे रही थी?” कह कर सुनील ने माँ की साड़ी का आँचल उनके सीने से ढलका दिया।
माँ ने ‘न’ में सर हिलाया! उनका दिल अचानक ही तेजी से धड़कने लगा।
सुनील उनकी ब्लाउज के बटन खोलते हुए बोला, “मैं जबरदस्ती कर रहा था?”
माँ फिर से नर्वस हो गईं। माँ नर्वस तो थीं, लेकिन उनके होशोहवास अभी कायम थे। दोपहर के जैसी उनकी हालत नहीं थी।
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“अभी भी जबरदस्ती कर रहा हूँ?”
माँ ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“मुझे रोकना चाहती हो?”
माँ ने ‘न’ में सर हिलाया।
“लेकिन मेरे सामने नंगा होने में शर्म आएगी?” सुनील रुक ही नहीं रहा था, और उनकी ब्लाउज के बटन खोलता रहा।
माँ ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“पुचुकी तो रोज़ इनको पीती है! तब नहीं आती शर्म?”
“अपनी बेटी से कैसी शर्म?” माँ ने कह तो दिया, लेकिन फिर उनको तुरंत समझ आ गया कि उन्होंने क्या कह दिया। अगर सुनील से उनको शर्म आ रही थी तो वो इसलिए कि अब वो उसको अपने बेटे के रूप में नहीं देखतीं।
“हम्म, लेकिन अपने होने वाले हस्बैंड से आती है?”
माँ ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया - बहुत ही हौले से।
“जब हमारी शादी हो जाएगी, तब भी मेरे सामने नंगा होने में शर्म आएगी?”
माँ शर्म से लाल हो गईं, लेकिन फिर से उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाया!
“अरे यार! ये तो बड़ी दिक्कत वाली बात है! फिर सब कुछ कैसे होगा?” वो खिलवाड़ वाले अंदाज़ में बोला।
“क्या करना चाहते हैं आप?” माँ ने कहा - भली भाँति जानते हुए कि सुनील क्या करना चाहता है उनके साथ।
“अपनी दुल्हनिया को प्यार!”
माँ शर्म से पानी पानी हो गईं। लेकिन उन्होंने कहा, “मुझको शर्म आ रही है!”
“ओह दुल्हनिया, लेकिन मैं क्या करूँ? मैं रुकना चाहता हूँ, लेकिन रुक नहीं पा रहा हूँ! ... अच्छा, देखूँगा नहीं - ये देखो,” उसने अपनी आँखें मींच कर बंद करते हुए कहा, “मैंने अपनी आँखें बंद कर ली हैं! देखूँगा नहीं, बस छूने का मन है!”
माँ सुनील की ऐसी चेष्टाओं को रोक ही नहीं पा रही थीं।
“पक्का!” सुनील ने उनको भरोसा दिलाया।
उन्होंने उसको शरमाते हुए देखा - सच में सुनील की आँखें बंद थीं, और वो इस समय उनकी ब्लाउज का आखिरी बटन खोल रहा था। वो अगर अपनी आँखें बंद न भी करता, तो भी माँ उसको रोक न पातीं।
“सु... सुनिए... आ...आप आँखें मत बंद कीजिए,” माँ ने सुझाया, “बस लाइट बंद कर दीजिए!”
“पक्का दुल्हनिया?”
माँ शर्म से पानी पानी हो चली थीं, लेकिन वो भी चाहती थीं कि सुनील अपने मन का आनंद पा सके। वो जानती थीं कि जब प्रेमी और प्रेमिका के बीच की भावनाएँ बलवती होती हैं, तो उनका निकास होना, उनकी अभिव्यक्ति होना आवश्यक है। अपनी प्रेमिका को नग्न देखना, एक प्रेमी को अद्भुत संतुष्टि प्रदान करती है।
उन्होंने बड़े हौले से ‘हाँ’ में सर हिलाया। सुनील बड़ी प्रसन्नता से मुस्कुराया, और भाग कर कमरे की लाइट बुझा कर वापस माँ के पास लौट आया।
लाइट तो गुल हो गई, लेकिन कमरे में पूरी तरह से अन्धकार नहीं हुआ था। बाहर से छन छन कर बड़ी मद्धिम सी रौशनी अंदर आ रही थी। और कुछ नहीं, लेकिन माँ के शरीर की आकृति दिखाई दे रही थी। उसने उनकी ब्लाउज उतार फेंकी।
माँ ने इस समय ब्रा नहीं पहनी हुई थी। शरीर का ऊर्ध्व भाग नग्न होते ही माँ की आँखें स्वतः ही बंद हो गईं। अपने युवा प्रेमी के जोश का सामना करने का सामर्थ्य नहीं था उनके पास! सुनील को माँ के शरीर का रंग तो ठीक से नहीं मालूम हुआ, लेकिन उसको बाकी सब साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था कि उनके स्तनों की गोलाईयाँ कैसी हैं, उनके एरोला का आकार कैसा है, उनके चूचक कितने ऊर्ध्व हैं, इत्यादि! सुनील ने माँ के दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों में ले कर दबाया। माँ के स्तनों के चूचक कड़े हो कर उसकी हथेलियों में चुभ रहे थे। अद्भुत स्तन - विरोधाभासों से भरे हुए - ठोस, लेकिन कोमल; गोलार्द्धों पर ठन्डे, लेकिन चूचकों पर गर्म, चिकने!
अब सुनील से रहा नहीं गया। माँ का एक चूचक उसके मुँह में आते ही माँ की आह निकल गई। कुछ ही दिनों में ही बात कहाँ की कहाँ पहुँच गई थी। कुछ दिनों पहले सुनील कुछ करने की हिम्मत न कर पाता, और अब माँ उसको रोकने का सोच भी नहीं पा रही थीं। कुछ देर तक तो माँ ने बर्दाश्त किया, लेकिन फिर उनकी हिम्मत जवाब दे गई। सुनील के चूषण और चुम्बन में जो आग्रह था, उसमे इतना बल था कि माँ बिस्तर पर चित हो कर गिर गईं।
सुनील माँ के ऊपर आ गया। उसकी श्रोणि, माँ की श्रोणि पर रगड़ खाने लगी। ऐसी रगड़, जिससे माँ पूरी तरह वाकिफ़ थीं। उसका लिंग पूरी तरह से उत्तेजित हो गया था, और उसकी कठोरता माँ अपनी श्रोणि पर साफ़ महसूस कर रही थीं। घटनाक्रम अचानक ही ख़तरनाक क्षेत्र में चला गया।
“सु... सुनिए... सम्हालिए अपने आप को!” माँ ने कोमलता से सुनील को चेताते हुए कहा, “प्लीज़?”
तब जा कर सुनील को होश आया।
वाक़ई - अचानक से उसका अपने आप से नियंत्रण समाप्त हो गया था। अच्छा हुआ कि सुमन ने उसको रोक लिया। वो माँ के ऊपर से हट तो गया, लेकिन उसने उनके स्तनों को प्रेम करना बंद नहीं किया। सच में, प्रकृति ने माँ को अद्भुत नेमत दी थी, और माँ ने उस नेमत को न केवल सम्हाल कर रखा हुआ था, बल्कि उनको उनके उत्कृष्ट रूप में रखा हुआ था। कुछ देर उसने माँ के स्तनों को ऐसे ही प्यार करने के बाद, जब उसकी इच्छा शांत हो गई, तो वो उनके ऊपर से हट गया।
“दुल्हनिया?”
“जी?”
“ब्लाउज किधर है?”
“आपने ही कहीं फेंक दी!” माँ ने झिझकते हुए कहा।
“ओह!” उसने कहा, फिर कुछ सोच कर माँ की साड़ी के आँचल को ही उनके स्तनों पर दो तीन बार लपेट दिया, जिससे उनके स्तन ढँक जाएँ! माँ को यह देख कर बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ! सच में, वो कोशिश कर रहा था कि अपनी बात बनाए रखे। अंततः वो उठा, और उठ कर उसने कमरे की बत्ती वापस जला दी।
“दुल्हनिया, थैंक यू!”
माँ शर्माते हुए मुस्कुराईं - दबी हुई सी मुस्कान!
“लेकिन एक गड़बड़ हो गई!”
माँ ने प्रश्नवाचक दृष्टि सुनील पर डाली।
“तेरे दुद्धूओं पर खाने की जूठन लग गई!”
माँ शर्माते हुए मुस्कुराईं - दबी हुई सी मुस्कान!
“और मेरी जूठन भी!”
माँ और भी अधिक शर्मा गईं, लेकिन कुछ बोलीं नहीं। सुनील मुस्कुराया। उसने माँ को और न छेड़ने का सोचा और कहा,
“मेरी रानी,” उसने माँ के दोनों गालों को अपने हाथों में थामते हुए कहा, “अभी सो जाओ! और, अगर हो सके तो सपने में मुझे देखना!” उसने प्यार से कहा और उनके होंठों को चूम लिया।
एक लम्बे अर्से के बाद माँ को रोमांस का अनुभव हो रहा था, और उस अनुभव में बहुत रोमांच भी था! ऐसे तो कुछ उन्होंने सोचा भी नहीं था कि उनके साथ ये सब कुछ होगा भी! लेकिन वास्तविकता ये थी कि यह सब कुछ उनके साथ हो रहा था, और बड़ी तेजी के साथ हो रहा था। घटनाक्रम के इस तीव्र प्रवाह को नियंत्रित करने में वो खुद को असमर्थ महसूस कर रही थीं।
उनको और छेड़ने की सुनील ने कोई कोशिश नहीं करी। और इस बात पर माँ को फिर से घोर आश्चर्य हुआ!
“तो मैं चलूँ?” उसने माँ को गहरे से देखते हुए पूछा।
माँ ने जब कुछ कहा नहीं, तो सुनील ने गहरी साँस भरी और उठने लगा।
माँ से रहा नहीं गया, “बैठिए न! कुछ देर और?”
“सच में?” सुनील की मुस्कान बहुत चौड़ी हो गई।
माँ ने शर्मा कर ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“ठीक है! लेकिन एक शर्त पर!”
माँ ने अचरज से उसको देखा, ‘अब कौन सी शर्त?’
“और वो यह,” वो बोलता रहा, “कि मैं तुम्हारी गोदी में सर रख कर लेटूँगा!”
“ठीक है!” कह कर माँ ने पालथी मार ली, जिससे सुनील को उनकी गोदी में सर रखने को मिल सके।
जब उसने अपना सर माँ की गोद में रखा, तो बोला, “आह दुल्हनिया! कितना सुख है!”
माँ मुस्कुरा दीं।
“कितना पुराना सपना आज पूरा हो रहा है!”
माँ मुस्कुराईं, लेकिन मन ही मन वो हँस रही थीं, ‘हा हा! कैसे कैसे सीधे सरल सपने भी हैं इनके!’
“दुल्हनिया, मेरे साथ तुम जॉगिंग किया करो! बड़ा मज़ा आता है सच में!” कुछ देर चुप रहने के बाद उसने कहा।
“ठीक है!” माँ बोलीं, “लेकिन साड़ी में जॉगिंग थोड़ा अजीब लगेगा!”
“अरे, तो साड़ी किसने कहा पहनने को? मैं कल ही ले आता हूँ छोटी सी निक्कर! वो पहन कर करना जॉगिंग? कल ले लेंगे?”
माँ मुस्कुराईं, “मैं छोटी निक्कर में दौड़ूंगी?”
“क्यों क्या प्रॉब्लम है उसमें?” सुनील साड़ी के ऊपर से ही उनकी जाँघें सहलाते हुए बोला, “दौड़ने से ये मसल्स और मज़बूत हो जाएँगीं!” और उनके सीने के ऊपर उनके दिल को छू कर बोलता रहा, “और कार्डिओ-वस्कुलर स्ट्रेंथ भी बढ़ जाएगी!”
“आप मुझे रनर बनाना चाहते हैं?” माँ अचानक ही संयत हो गई थीं, और ऐसी बकवास बातों के आदान प्रदान का आनंद उठा रही थीं।
सच में - सुनील के साथ कितना आराम महसूस होता है! उन्होंने दिल में सोचा।
“नहीं तो! लेकिन रनर बनने में बुराई भी क्या है! मैं तो बस यह चाहता हूँ कि तुम्हारी हेल्थ हमेशा ए-वन रहे! बढ़िया हेल्दी रहोगी, तभी तो हमारे कई सारे, हेल्दी हेल्दी बच्चे होंगे!”
इस बात पर माँ फिर से शर्मा गईं और कुछ बोल न सकीं।
कुछ देर दोनों ने कुछ नहीं कहा, फिर सुनील अचानक ही माँ की गोद में पलट गया। अब उसका चेहरा माँ की योनि से बिलकुल सटा हुआ था। उसने साड़ी के ऊपर से ही कई बार माँ की योनि को चूम लिया। सुनील की इस हरकत पर माँ के सब्र का बाँध टूट गया - उनको रति-निष्पत्ति हो गई, और उनकी योनि में से कामरस बह निकला। और वो बेचारी कुछ कह भी न सकी! इतने लम्बे अर्से के बाद उनको यह अनुभूति हुई थी - डैड के साथ भी हमेशा नहीं होती थी। माँ को भी अपना यह अप्रत्याशित चरमोत्कर्ष अनुभव कर के बहुत आश्चर्य हुआ!
‘‘इन्होने’ अभी तक कुछ किया भी नहीं, फिर भी!’
“दुल्हनिया मेरी, मुझे तेरा तो नहीं मालूम, लेकिन मैं तो हमारे मिलन की घड़ी के बारे में सोच सोच कर ही बेकरार हो जाता हूँ!”
उसने एक बार फिर से साड़ी के ऊपर से ही माँ की योनि पर चूमा, और फिर माँ के चेहरे की ओर देखा।
चरमोत्कर्ष के आनंद पर पहुँच कर उनकी आँखें बंद हो गई थीं, और मुँह हल्का सा खुल गया था! उनकी ऐसी हालत देख कर वो भी समझ गया कि माँ की दशा भी बेकरारी ही वाली है। लेकिन उसको माँ की ‘बेकरारी’ की ‘मात्रा’ का ज़रा भी संज्ञान नहीं था! उसको अभी भी सेक्स का कोई प्रैक्टिकल अनुभव नहीं था, और स्त्री के चरम-आनंद के बारे में कुछ ख़ास मालूम नहीं था। चरमोत्कर्ष पर पहुँची हुई स्त्री की भाव-भंगिमाओं के बारे में उसको कुछ नहीं मालूम था। वो कुछ देर कुछ बोला नहीं, बस माँ को उनकी कमर से थामे उनकी गोदी में सर रखे लेटा रहा। कुछ देर के बाद वो अपना मन मार कर उनकी गोद से उठ गया।
“अ... अब मैं कैसे सोऊँगा, दुल्हनिया?” सुनील ने इतना ही कहा, और कमरे से बाहर चला गया।
माँ इस बार उसको रोक न सकीं। कोई बहाना ही नहीं था।
हाँ, लेकिन बाहर जाते जाते उसके निक्कर के सामने का उभार उनको साफ़ दिखाई दिया। वो शर्म से गड़ गईं। उनको शर्म भी आ रही थी, और इस बात का संज्ञान भी था कि यह उनके सम्बन्ध का भविष्य भी है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
माँ को हस्त-मैथुन करना नहीं आता था। कभी उसकी आवश्यकता ही नहीं पड़ी, इसलिए उनको इस बात का ज्ञान ही नहीं था कि स्त्रियाँ भी हस्त-मैथुन कर सकती हैं। होश सम्हालते ही डैड का साथ मिल गया, और तब से ले कर अब तक माँ की प्रत्येक यौन और कामुक आवश्यकताओं को डैड ने यथासम्भव पूरा किया। उनके जाने के बाद माँ को कामुक विचार कभी कभी ही आए। माँ ने वैधव्य में भी साधना ढूंढ निकाली, और अपनी काम इच्छाओं पर लगाम कस ली।
लेकिन सुनील के छेड़ने से माँ के मन के और शरीर के हर तार झनझना गए थे। उनको मालूम नहीं था कि अपने शरीर में उठने वाली कामुक तरंगों को वो कैसे शांत करें! सुनील तो चला गया, लेकिन उनके मन में एक कसक सी रह गई!
माँ उसी अवस्था में कोई पंद्रह मिनट बैठी रहीं, खुद को शांत करती रहीं। फिर जब उनके गले की खुश्की बहुत बढ़ गई, तो बिस्तर से उठ कर पानी पीने लगीं। तब उन्होंने बिस्तर पर गीले धब्बे को देखा - तब उनको समझ आया कि उनकी योनि से इतना कामरस निकला था कि बिस्तर भी गीला हो गया था। फिर साड़ी का क्या हुआ होगा! उन्होंने जल्दी से आईने में पलट कर देखा - हाँ, साड़ी भी गीली थी। कोई आश्चर्य नहीं!
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“अभी भी जबरदस्ती कर रहा हूँ?”
माँ ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“मुझे रोकना चाहती हो?”
माँ ने ‘न’ में सर हिलाया।
uff ye romance, bas yu hi chalta rahe, kabhi khatam na ho“मेरी सुमन... मेरी प्यारी दुल्हनिया
उफ्फ क्या ही शिद्दत है सुनील की चाहत में और अब ये शिद्दत सुमन को भी नजर आ रही है बस उसके अपने अंतर्द्वंद ही खतम नही हो रहे है और उसको आगे नहीं बढ़ने दे रहे है। मगर अब धीरे धीरे सुमन भी खुल रही है, पुरानी पीढ़ा और दर्द धीरे धीरे आंसुओ के साथ बह रहा है। सुनील की निष्ठा और प्यार की गहराई अब सुमन को समझ आ रही है और शायद अब वो उस पर थोड़ा सीरियसली सोच भी रही है। लगता तो है की जल्द ही सुमन के खुद के बनाए अवरोध जल्दी ही टूट जायेंगे मगर अमर इस बात को कैसे लेगा वो देखना अभी बाकी है। बहुत है सुंदर अपडेट्स।
uff ye romance, bas yu hi chalta rahe, kabhi khatam na ho
चैप्टर ४. ....प्रकरण - ४.१ लकी इन लव ।
गैबी की मौत न सिर्फ अमर के लिए बल्कि हम रीडर्स के लिए भी काफी असहनीय था । लेकिन मौत ही तो सबसे बड़ी सच्चाई है । देर सबेर सभी को मौत से रूबरू होना ही है । दुःख तब ज्यादा होता है जब लोग भरी जवानी में ही मर जाते हैं । यह विधाता का रचा हुआ ऐसा खेल है जिसमें किसी का कोई वश नहीं चलता ।
जीवन एक ऐसा रंगमंच है जहां किरदार आते हैं और अपना अपना रोल प्ले करते हुए निकलते जाते हैं ।
अमर की जिंदगी में देवयानी का आगमन एक बार फिर से खुशियों के सौगात का आना था । एक ही फर्म में काम करने से मेल मुलाकात तो होनी ही थी । पर मसूरी की पिकनिक ट्रीप में दोनों एक दूसरे के करीब आना शुरू हुए ।
अब यह अमर की तकदीर की कहें या उसके बड़ी उम्र वाली युवतियों के प्रति आकर्षण , उम्र में बड़ी लड़कियों से ही उसे मोहब्बत हुआ ।
बचपन को बाद कर दें तो गैबी उससे उम्र में दो साल बड़ी थी और काजल बारह साल । देवयानी भी नौ साल बड़ी ही मिली ।
काजल और देवयानी तो उसके मां की हम उम्र निकली ।
वैसे भी कहा ही जाता है कि कम उम्र के लड़कों को बड़ी उम्र की लड़कियां ज्यादा पसंद आती है और बड़े मैच्योर आदमी को कम उम्र की लड़कियां । विपरीतलिंगी स्वाभाविक लक्षण है यह ।
वैसे देवयानी बहुत ही परिपक्व और सुलझा हुआ युवती लगी मुझे । मेहनती तो है ही । इसी वजह से एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर आसीन भी है । उनके लाइफ में भी एक लड़का आया था लेकिन दगाबाज निकला वो । इसीलिए फिर कभी किसी लड़के के करीब नहीं गई ।
बत्तीस साल तक उन्होंने अपने को कन्ट्रोल में रखा और यह कोई मामूली चीज नहीं थी । अमर की पर्सनालिटी , कैरेक्टर , काम के प्रति समर्पण और वाक्चातुर्य से प्रभावित होकर दूसरी बार उसे अपना फ्रैंड बनाया । दोस्ती परवान चढ़ती गई और दोनों ने एक दूसरे को अपने दिलों में स्थान दे दिया ।
सिनेमा थियेटर से दुरियां नजदीकियां में बदलने लगी और अमर के फ्लैट में दोनों ने एक दूसरे को खुद में विलीन कर लिया ।
इसके बाद दोनों के लिए सब कुछ वाह वाह ही रहा । देवयानी की बड़ी बहन जयंती के साथ साथ उनके पिता श्री आलोक जी का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ एवं अमर के माता पिता का सहर्ष स्वीकृति भी ।
सभी अपडेट्स बेहद ही खूबसूरत थे अमर भाई ।
रिश्तों के भावनात्मक पक्ष दर्शाने में आप का जवाब नहीं ।
सेक्सुअल सीन्स भी जरूरत के अनुसार कामुक रखा आपने ।
कुछ चीजें ऐसी थी जो यथार्थ को दर्शाता था । जैसे अमर और देवयानी का सेक्स करते हुए चरम सुख प्राप्त करने के पहले समय एवं प्रहार काउंट करना....राजा हिन्दुस्तानी मूवी देखते वक्त बोरियत महसूस करना.... कहानी में अमर का संवेदनशील पक्ष दिखाना वगैरह ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट एंड
जगमग जगमग ।
कशमकश, जद्दोजहद, एक संघर्ष अपने भीतर अपने आपसे, समाज की रीति रिवाज सेअंतराल - पहला प्यार - Update #10
सुनील के कमरे से बाहर निकलने के कोई पाँच मिनट बाद काजल, दोनों बच्चों के साथ घर आती है! आते ही सीधे माँ के कमरे में प्रवेश करते हुए बोली,
“दीदी? परसों पुचुकी के स्कूल में पैरेंट-टीचर मीटिंग है।”
माँ का ध्यान कहीं और ही था। वो अपने विचारों के अन्तर्द्वन्द्व में पड़ी थीं, और शायद ही काजल की कोई बात सुन रही थीं। उन्होंने काजल को कुछ कहते हुए सुना।
“चलोगी?” काजल कुछ कह रही थी।
“अ हहां?”
“मैंने कहा पुचुकी के स्कूल चलोगी?” काजल ने दोहराया, “परसों?”
माँ ने काजल की बात तो सुनी, लेकिन उसका कोई उत्तर न दे सकीं! माँ इस समय सीधे नहीं सोच सकती थी। उनका दिमाग कहीं और था।
“अरे क्या हुआ? तुम्हारे चेहरे का रंग क्यों उड़ गया है?”
“कुछ नहीं, का... काजल” माँ हिचकिचाते हुए बोलीं, “मुझे कुछ अजीब सा लग रहा है।”
“अरे? क्या हो गया? तबियत तो ठीक है? पानी ले आऊँ?”
माँ ने ‘न’ में सर हिलाया। काजल ने अपनी हथेली के पिछले वाले भाग से माँ का माथा छुआ। सच में, उनके शरीर का तापमान बढ़ गया था और रक्तचाप भी! बेचैनी ऐसी, कि पूछो मत। दिमाग में झंझावात चल रहे थे, वो अलग!
“अरे थोड़ा टेम्प्रेचर तो लग रहा है! हुआ क्या है? सुनील से झगड़ा हो गया क्या?”
‘काजल ने ऐसा क्यों कहा?’ माँ ने सोचा।
“न... न... नहीं तो! ऐसे क्यों पूछ रही हो?” उन्होंने प्रत्यक्षतः कहा।
“अभी कल ही, तुम दोनों एक दूसरे से बात नहीं कर रहे थे, और अभी फिर से तुम ऐसी हो गई! कुछ कहा क्या उसने? बुलाऊँ उसको?” काजल ने बड़े चिंतातुर तरीके से आवाज़ लगाई, “सु…”
“नहीं!” माँ ने काजल की बात को बीच में काटते हुए कहा, “कुछ नहीं हुआ, काजल। बस तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही है।” माँ ने बहाना बनाया, “मेरे साथ कुछ देर बैठ जाओ... प्लीज़?”
“हाँ हाँ! इसमें प्लीज़ वाली क्या बात है?” काजल ने कहा, और माँ के माथे को अपनी हथेली के पीछे वाले भाग से फिर से छू कर बोली, “दीदी, टेम्प्रेचर है, लेकिन हल्का सा! चाय पिलाऊँ? अदरक वाली?”
“नहीं काजल, बस मेरे साथ बैठ जाओ!”
काजल ने बात को आगे नहीं बढ़ाया, और माँ के साथ ड्राइंग हॉल में आ गई। माँ यह सोच रही थीं कि कहीं सुनील भी वहीं न हो - लेकिन उसको न देख कर वो थोड़ा संयत हुईं। वो समझ नहीं पा रही थीं कि अगर सुनील वहाँ हुआ, तो वो उससे नज़रें कैसे मिलाएँगी। इतना कुछ हो गया था उन दोनों के बीच। उन दोनों का सम्बन्ध पुराना वाला कुछ भी शेष नहीं रह गया था। एक नए सम्बन्ध का अंकुर फूट निकला था। माँ यह बात समझ रही थीं, और इसी बात से उनको व्याकुलता महसूस हो रही थी। सुनील के रहने पर वो उससे नज़रें छुपाने लगतीं, और न रहने पर न जाने कैसे वो उसको अपने पास होने की इच्छा करतीं। इस लुका छिपी के खेल में सामान्य हो कर जीना कठिन लग रहा था।
खैर, ड्राइंग हॉल में बैठ कर, उन्हें बेहतर महसूस कराने के लिए काजल उनसे बातें करने लगी। काजल के साथ बात कर के माँ को थोड़ा आराम मिला। उनके मन की उधेड़बुन कुछ कम हुई। काजल बहुत लंबे समय से उनकी सबसे अच्छी और सबसे करीबी दोस्त थी। डैड के बाद काजल ही माँ की अंतरंग सहेली थी। जैसे वो डैड से अपने मन की सारी बातें बोल देती थीं, वैसे ही काजल से भी बहुत सारी बातें बोल देती थीं - लगभग सारी बातें - निन्यानवे प्रतिशत। इतना तो उन्होंने मुझे भी कभी नहीं कहा। काजल को माँ की सभी बातें मालूम थीं। उनके बारे में बहुत ही कम - लगभग नगण्य - बातें ऐसी थीं, जो काजल को न मालूम हों! दोनों इतनी अंतरंग थीं कि एक दूसरे के सामने पूर्ण नग्न होना दोनों के सामान्य सी बात थी।
इस समय भी वो काजल से यह सभी बातें शेयर करना चाहती थीं! वो काजल को बताना चाहती थीं कि सुनील और उनके बीच में कुछ बदल गया है। वो उनसे शादी करने को इच्छुक है, और उनका खुद का भी संकल्प ढहता हुआ महसूस हो रहा है। इसी बात से उनको घबराहट भी हो रही है। यह सभी बातें वो बड़ी शिद्दत से काजल को बताना चाहती थीं, लेकिन कुछ कह नहीं पा रही थीं! उनको बेहद अधिक हिचक हो रही थी। और हो भी क्यों न? आखिर सुनील काजल का एक ही लड़का है! उसके भविष्य को लेकर, उसके विवाह को लेकर काजल के न जाने कैसे कैसे, सुन्दर सुन्दर अरमान होंगे! कई सारे सपने होंगे! कहीं ऐसा न हो कि काजल यह सोचने लगे कि वो उसके बेटे पर डोरे डाल रही हैं! कहीं इस बात से काजल उनसे नाराज़ हो जाए, और उनका तिरस्कार कर दे!
वो काजल की डाँट बर्दाश्त कर लेंगी, उसकी जली कटी बातें बर्दाश्त कर लेंगी, उसकी मार बर्दाश्त कर लेंगीं! लेकिन अगर काजल से उनकी दोस्ती टूट गई, तो माँ टूट जाएँगी! एक काजल ही तो है, जिससे वो अपने मन की बातें कर पाती हैं! एक काजल ही तो है इस संसार में उनकी सहेली! काजल की नज़र से वो गिरना नहीं चाहती थीं।
**
जब पुचुकी और मिष्टी स्कूल से वापस आए तो इस बार काजल ने ही दोनों को सम्हाला। माँ को चिंतित और किसी उधेड़बुन में पड़ी हुई देख कर काजल भी और लतिका भी - दोनों ही चिंतित थे। माँ नहीं चाहती थीं कि उनके कारण किसी को भी कैसी भी परेशानी हो, लेकिन वो कुछ कर भी तो नहीं पा रही थीं। आज का दिन उनके जीवन का एक बेहद महत्वपूर्ण दिन बन गया था - तनाव का भी। वो एक भीषण निर्णय से अपने साक्षात्कार से भ्रमित हो गई थीं। यह एक ऐसा निर्णय था, जो उनको लेना ही था। या तो हाँ कहनी थी, या फिर न। बिना उत्तर दिए तो छुटकारा नहीं मिलना था उनको।
**
शाम को :
स्कूल से आए हुए लतिका को चार घंटे हो चले थे। आज से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि उसकी मम्मा ने इतनी देर तक उससे बात न करी हो, या उसकी तरफ देखा भी न हो। जब से वो आई थी, वो देख रही थी कि मम्मा बेचारी परेशान सी लग रही हैं। उनका मन कहीं और ही था। गुमसुम सी - उदास नहीं - बस गुमसुम! थोड़ा बहुत तो उसके भी बाल-मन को समझ में आ रहा था। वो छोटी थी, लेकिन ऐसी छोटी नहीं कि मानव भावनाओं को न समझे। उसको समझ में आ रहा था कि उसके दादा ने उनको प्रोपोज़ कर दिया है, और शायद इसीलिए वो परेशान हैं।
काजल अक्सर ही लतिका को माँ के कमरे में भेज देती थी, जब वो उदास या परेशान सी रहती थीं। आज नहीं। आज लतिका स्वयं गई। अपनी होने वाली बोऊ-दी पर उसका इतना हक़ तो है ही!
“मम्मा?”
“हाँ बेटू?” माँ के मुँह से स्वतः ही ये शब्द निकल आए।
“देखिए मैं आपके लिए चाय लाई हूँ।”
“ओह मेरी बच्ची, इधर आ जा!” माँ ने अपने आँसुओं को नियंत्रित करने की असफल कोशिश करते हुए कहा।
लतिका ने चाय का कप माँ के बिस्तर के बगल साइड टेबल पर रखा और आ कर उनके सीने से चिपक गई।
“क्या हो गया मम्मा, आप ऐसी उदास उदास सी क्यूँ हैं आज?”
“कुछ नहीं बेटू, बहुत सी पुरानी बातें याद आ रही थीं बस! और कुछ नहीं!”
“लेकिन आप रो रही हो!”
“नहीं मेरी जान! मैं नहीं रो रही हूँ!”
“पक्का न मम्मा?”
“हाँ मेरी पुचुकी, पक्का!”
“दादा ने तो कुछ नहीं कहा न आपको?”
“ऐसे क्यों पूछ रही है बेटू?”
“अम्मा ने मुझे बताया कि आपका और दादा का झगड़ा हो गया। अगर सच में झगड़ा हुआ है तो मुझे बताइए - मैं दादा से फिर कभी बात नहीं करूँगी! सच्ची!”
“नहीं मेरी बेटू, उनसे मेरा कोई झगड़ा नहीं हुआ!”
“ओके!” लतिका ने खुश होते हुए कहा, “तो फिर आप ऐसे उदास सी, गुमसुम सी क्यों बैठी हैं?”
“पता नहीं बेटू! उदास नहीं हूँ! बस, यूँ ही, मन अजीब सा हो गया है!”
“अजीब सा? मतलब गन्दा गन्दा?”
“नहीं बेटू, बस, थोड़ा कन्फ्यूज़्ड!”
इस बात पर लतिका समझ नहीं पाई कि वो क्या बोले।
“मम्मा?” लतिका ने कुछ देर के बाद कहा।
“हाँ मेरी बच्ची?”
“आप चाय पी लीजिए!”
माँ ने मुस्कुराने की कोशिश तो करी, लेकिन उनकी आँखों से आँसू ढलक आए।
“क्या हो गया मम्मा!” लतिका ने इस बार माँ को अपने सीने में समेट लिया।
“कुछ नहीं बेटा, कुछ नहीं!” माँ ने खुद को सम्हालते हुए कहा।
कुछ देर की चुप्पी के बाद लतिका बोली, “मम्मा, मैं आपको हमेशा प्यार करूँगी।”
“आई नो मेरी बच्ची!”
माँ ने कहा और अपने को सम्हालते हुए चाय पीनी शुरू कर दी। चाय ठंडी हो गई थी, लेकिन लतिका इतने प्यार से लाई थी कि माँ उसको पिए बिना नहीं रह सकती थीं।
“आपने ठंडी चाय क्यों पी ली?” लतिका की तेज़ नज़र से कुछ छुपा पाना आसान नहीं था।
“तू लाई थी न, इसलिए!”
“ओह मम्मा! आप भी न! आप बहुत स्वीट हैं!” लतिका ने माँ के दोनों गालों को चूमते हुए कहा, “एकदम मीठी! आई लव यू सो मच!”
“आई लव यू टू मेरी जान!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।
लतिका का जादू काम करने लग ही गया अंत में!
“मम्मा, आप ऐसे उदास उदास मत रहा करिए! आपका मन जब भी सैड हो न, मुझे बोल दिया करिए। मैं आपको जोक्स सुनाऊँगी, गाना सुनाऊँगी, आपको डांस दिखाऊँगी - लेकिन कभी उदास नहीं रहने दूँगी!”
“हा हा! हाँ मेरी बच्ची! आई नो!” माँ ने लतिका को अपने सीने में भींचते हुए कहा, “तू तो मेरी जान है, जान! लेकिन मैं उदास नहीं हूँ! बस कुछ बातें सोच रही हूँ! सोच रही हूँ कि इतना सोचना भी चाहिए, या नहीं!”
“मम्मा, आप न हँसती मुस्कुराती ही अच्छी लगती हैं! सुन्दर सुन्दर!” लतिका ने बड़े लाड़ से कहा, “इसलिए आप को सोचना भी है न, तो मुस्कुराते हुए सोचिए! आपको आपके जैसे ही ब्यूटीफुल थॉट्स आएँगे!”
लतिका की बातें इतनी सीधी, सच्ची और प्यारी सी थीं कि माँ मुस्कुरा दीं।
“हाँ मम्मा! देखिए न - आपके चेहरे पर आ कर स्माइल भी सुन्दर लगने लगती है!”
“ओह मेरी बच्ची! आई ऍम सॉरी! आज दिन भर तुमको प्यार भी नहीं कर पाई मैं!” माँ ने उसको अपने सीने में भींचते हुए कहा, “इधर आ - मेरे सीने से लग जा मेरी जान!”
“मम्मा, आप कभी मुझे सॉरी मत बोलिए! यू आर द बेस्ट! मुझे आपसे हमेशा केवल प्यार ही मिला है! आई लव यू, एंड आई रेस्पेक्ट यू सो मच !”
“आई नो माय हनी!”
“सच में मम्मा!” लतिका ने अपना प्यार दोहराया।
“आई नो हनी! आई नो!” माँ मुस्कुराईं, और अपना आँचल उतारते हुए बोलीं, “आ जा! मेरे बेटू को दुद्धू पिला दूँ?”
लतिका ने उत्साह से ‘हाँ’ में सर हिलाया और माँ की गोद में एडजस्ट हो गई। माँ अपनी ब्लाउज के बटन खोलने लगीं।
“मम्मा? मुझे आपके ब्रेस्ट्स पीने में जो सुख मिलता है न, वो अम्मा के ब्रेस्ट्स पीने में भी नहीं मिलता!”
माँ लतिका की बात पर मुस्कुराईं। लतिका उनके साथ ऐसे बर्ताव करती जैसे कि वो उन्ही की ही बेटी हो! बिलकुल वैसा ही अधिकार दिखाती थी वो माँ पर!
“सच में बेटू?” माँ ममता से विह्वल होते हुए बोलीं।
“हाँ मम्मा!”
तब तक माँ के दोनों स्तन स्वतंत्र हो गए।
लतिका ने उनका एक स्तन सहलाते हुए कहा, “मम्मा, आई रियली विश दैट दे हैड मिल्क इन देम! स्वीट एंड डिलीशियस मिल्क!”
माँ मुस्कुराईं, “सच में?”
“यस मम्मा!”
माँ मुस्कुराईं और बड़ी धीमी - जैसे कोई राज़ की बात बताने वाली हों, वैसी - आवाज़ में बोलीं, “दे मे अगेन स्टार्ट टू हैव मिल्क इन देम... लेकिन उसके लिए मुझे शादी करनी होगी!”
“आई नो मम्मा!” लतिका ने बड़े सयानेपन से कहा, “जब आप और आपके हस्बैंड - दोनों खूब प्यार करेंगे, तभी तो आप प्रेग्नेंट होंगी!”
“अरे, किसने बताया तुझे ये सब?” माँ आश्चर्यचकित हो गईं लतिका के ज्ञान पर, लेकिन उन्होंने उससे बड़े प्यार से पूछा।
“अम्मा ने!”
“अच्छा जी? और क्या क्या बताया उन्होंने?”
“यही कि जब लड़कियाँ प्रेग्नेंट होती हैं, तब उनके ब्रेस्ट्स में मिल्क आता है!”
“हम्म्म!”
“मम्मा?”
“हाँ बेटू?” माँ अब उसकी बातों पर मुस्कुराने लगी थीं।
“मैं भी प्रेग्नेंट होऊँगी?”
“हाँ बेटू! बिलकुल होओगी! लेकिन उसके लिए पहले तू बड़ी हो जा! पढ़ लिख ले, खूब खेल कूद ले! फिर तू किसी बहुत अच्छे से लड़के की बीवी, उसके घर की बहू बनेगी न, तब!” माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, “तेरी शादी किसी राजकुमार से करूँगी मैं! तब होगी तू प्रेग्नेंट!”
“हाँ मम्मा! आई विल मैरी अ वैरी गुड एंड हैंडसम मैन!” लतिका ने ऐसे कहा जैसे कि वो बहुत बड़ी हो गई हो।
“हा हा हा! ठीक है दादी माँ! कर लेना! लेकिन अभी दुद्धू पीना है या नहीं?”
“यस मम्मा!” लतिका ने कहा और माँ के स्तन पीने लगी।
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कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ पेअंतराल - पहला प्यार - Update #11
उस रात :
“सुनील?” रात्रि भोजन के कुछ समय बाद, काजल सुनील के कमरे में आते हुए बोली।
“हाँ अम्मा?”
“सब ठीक तो है?”
“हाँ अम्मा! क्यों, क्या हुआ? आप ऐसे क्यों पूछ रही हो?”
काजल ने एक नज़र भर कर सुनील को देखा और फिर कहा,
“नहीं, बस ऐसे ही पूछा।” और फिर एक क्षण रुक कर आगे जोड़ा, “अच्छा एक बात तो बता, तूने मेरी होने वाली बहू को प्रोपोज़ तो कर दिया है न?”
“हा हा हा! हाँ अम्मा! कर दिया है!”
“सच्ची?” काजल प्रसन्न होते हुए बोली, “क्या बोला उसने?” उसने उत्सुकतावश पूछा।
“अभी कुछ बताया नहीं। शायद एक दो दिन में सोच कर बताएगी। मैंने अचानक से प्रोपोज़ किया न अम्मा, इसलिए वो थोड़े असमंजस में है। सोचने के लिए उसको कुछ टाइम तो चाहिए न!”
“हाँ हाँ! बिलकुल। लेकिन दिन में तू जितना खुश था, वो देख कर तो लग रहा है कि पॉजिटिव ही है सब कुछ?”
“अम्मा! थोड़ा सब्र तो करो! हा हा हा! एक दो दिन में हमको मालूम हो जाएगा, कि वो तुम्हारी बहू बनेगी भी या नहीं!”
“हाँ ठीक है। अच्छा एक बात तो बता, दीदी से तेरा कोई झगड़ा हुआ है क्या?”
“झगड़ा! नहीं अम्मा! उनसे क्यों झगड़ा करूँगा? उनसे तो मैं झगड़ा कर ही नहीं सकता। क्या हो गया?”
“देखो - मैं साफ़ साफ़ अपनी बात कहती हूँ। कल भी तुम दोनों एक दूसरे से बात नहीं कर रहे थे, और आज भी! जब बच्चों को स्कूल से ले कर आई, तब से वो गुमसुम सी है।” काजल ने चिंतातुर होते हुए कहा, “पुचुकी ने उसको मनाया तो, लेकिन अभी भी अनमनी सी लग रही है। उसने कुछ खाया भी नहीं अभी तक!”
“कुछ खाया नहीं? अरे! ऐसे कैसे? तबियत तो ठीक है?”
“हाँ! बुखार जैसा तो नहीं लग रहा है। इसलिए मुझे लगा कि तूने ही कुछ कहा होगा। तूने ही उससे झगड़ा किया होगा! इसीलिए बेचारी मुँह लटकाए बैठी है!”
“अम्मा, मैं इतना खराब हूँ क्या!”
“देख - वो सब मुझे नहीं मालूम। लेकिन, मुझसे तो कोई झगड़ा नहीं हुआ है उसका। अमर नहीं समझा पा रहे हैं, लतिका नहीं मना पा रही है। तुम्ही से ही हुआ होगा गड़बड़ कुछ! मुझे केवल दीदी की ही चिंता है! उसने खाना नहीं खाया, अनमनी सी है! मुझे तो डर है कि कहीं फिर से डिप्रेशन...! मुझे बहुत चिंता हो रही है!”
“नहीं अम्मा! ऐसे अशुभ अशुभ न बोलो! डिप्रेशन नहीं होगा। तुम तुरंत ही सबसे बुरा बुरा मत सोचने लगा करो। हो सकता है कि वो कुछ सोच रही हों। या हो सकता है कि उनको बाबूजी की याद आ गई हो। कुछ भी हो सकता है। लेकिन हाँ! वो खाना नहीं खायेंगी, तो कमज़ोर तो ज़रूर हो जाएँगी! रुको, मैं देखता हूँ! अगर वो नाराज़ हैं, तो मैं उनको मनाने की कोशिश करता हूँ! कुछ नहीं तो खाना तो ज़रूर खिला दूँगा!”
“हाँ, ठीक है! मेरी तो सुन ही नहीं रही है! न जाने क्या बात है! तू देख ले। अगर तुझसे मान जाए तो!”
“अम्मा, तुम कद्दू की सब्ज़ी बनाओगी, तो किसको पसंद आएगी?”
“अरे! कद्दू में क्या बुराई है! आज से पहले तो सभी खा ही लेते हैं।” काजल ने बुरा मानते हुए कहा, लेकिन फिर सम्हल कर बोली, “कुछ और बना दूँ? अधिक समय नहीं लगेगा।”
माँ के स्वास्थ्य के लिए वो कुछ भी कर सकती थी।
“हा हा! नहीं अम्मा! मैं मज़ाक कर रहा था। तुम जाओ और जा कर सो जाओ। मैं देखता हूँ!”
“देख लेगा न?”
“हाँ अम्मा! तुम चिंता न करो!”
“पक्का!”
“पक्का अम्मा - अगर मुझ पर भरोसा नहीं है तो तुम ही खिला दो!” सुनील ने हँसते हुए कहा।
“अरे मुझसे या किसी और से तो मानी ही नहीं न!”
“तो फिर!? मुझे करने दो, अपने तरीके से! ठीक है?”
“ठीक है बाबा! सवेरे पूछूँगी कि दीदी ने खाया या नहीं!”
“ठीक है मेरी माँ! हा हा!”
“अगर वो खाना नहीं खाई न, तो कल तुझे भी खाना नहीं मिलेगा!”
“अरे बाप रे!” सुनील ने हँसते हुए कहा, और रसोई में जाने लगा।
**
जब काजल मेरे कमरे में आई, तब मैं दोनों बच्चों को एनिड ब्लाइटन की लिखी ‘फेमस फाइव एंड द गोल्डन गैलीअन’ नाम की एक चित्र-कथा पढ़ कर सुना रहा था। शाम को जब माँ खाने की टेबल पर नहीं आईं तो मुझे उनकी तबियत को ले कर चिंता हुई। मैंने उनसे अपनी चिंता का ज़िक्र भी किया, लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि उनका पेट भरा हुआ सा लग रहा है, इसलिए वो कुछ नहीं खाएँगी। अगर मन हुआ तो कुछ फल खा लेंगी। ठीक भी है - वैसे भी गर्मी में मेरी भी भूख कम हो जाती है। थोड़ी अनमनी सी लग रही थीं वो, लेकिन ऐसा नहीं लग रहा था कि वो डिप्रेस्ड हैं। इसलिए मैंने बात को बहुत तूल नहीं दिया।
देवयानी की मृत्यु के बाद मेरे खुद के व्यवहार में थोड़े परिवर्तन से आ गए थे।
सच में - मैं उसकी मृत्यु का ढंग से शोक भी नहीं मना सका था। एक के बाद एक, तीक्ष्ण शूल मेरे सीने में धँसते चले गए थे। एक के बाद एक, इतनी सारी ज़िम्मेदारियाँ मेरे सर पर आन पड़ी थीं। डैड के जाने बाद और भी आफ़त हो गई! आभा को देखना, तिस पर माँ को भी देखना। यह सब आपको मालूम है। मेरे खुद के शोक, और माँ के अवसाद ने हमारे बीच एक गड्ढा सा बना दिया था। अब हम पहले जैसे बातें नहीं कर पाते थे। माँ कम बोलतीं, ठीक से अपने विचार नहीं रख पातीं, और जैसे किसी शेल में चली गई हों। अपने आप में ही सिमट कर रहतीं। समय होता तो मैं कोशिश भी करता। लेकिन काम करना भी आवश्यक था। मेरी बेटी की ज़िम्मेदारी और माँ की भी सम्हालने में मेरा समय निकल जाता। ऐसा नहीं है कि मैं नहीं चाहता था कि मैं अपनी माँ के करीब फिर से हो जाऊँ, लेकिन उस इच्छा पर क्रियान्वयन नहीं कर पा रहा था।
काजल ने कमरे में प्रवेश किया, तो हमारी हालत देख कर मुस्कुराई। दोनों बच्चे नंगू पंगू हो कर मेरे पास थे - आभा मेरे ऊपर बैठी या लेटी हुई थी, और लतिका मेरे सामने की तरफ, मुझसे चिपक कर लेटी हुई, चित्र-कथा को निहार रही थी। दोनों ही मगन हो कर कहानी सुन रहे थे। मैं खुद भी शिष्टाचार के चलते पजामा पहने हुए था - अन्यथा सोते समय तो नग्न ही रहता हूँ। काजल ने आ कर, अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया। कमरे में वातानुकूलन चल रहा था। उसकी ठंडक और शांति में दोनों ही बच्चे राहत महसूस कर रहे थे, और चुपचाप स्टोरी टाइम का आनंद उठा रहे थे। मैं कोशिश कर के यथासंभव, अपना समय दोनों की परवरिश में लगाना चाहता था, जिससे पहले जैसी मूर्खता न हो मुझसे। खैर!
काजल भी मेरे बगल आ कर बैठ गई, और कहानी सुनने लगी। कहानी चार बच्चों के साहस और बुद्धिमत्ता पर आधारित थी। ‘फेमस फाइव’ में पाँचवा था उनका पालतू कुत्ता। चित्र-कथा के चित्र बड़े सुन्दर थे! कोई आश्चर्य नहीं कि दोनों बच्चों के साथ साथ काजल भी चुप हो कर कहानी का आनंद ले रही थी। कहानी अंग्रेजी में थी, जिसको मैं आवश्यकतानुसार अनुवाद कर के दोनों को समझा रहा था। लतिका का शाब्दिक ज्ञान बढ़ रहा था - वो किसी किसी स्थान पर मुझको रोक कर उस शब्द का अर्थ पूछती, या फिर उसका पर्यायवाची बता कर पूछती कि क्या वो सही है। अच्छा लगा - माँ के रूप में उसको एक बहुत ही कुशल शिक्षिका मिली थीं। खैर, जल्दी ही कहानी ख़तम हो गई।
“मिष्टी बेटा,” काजल ने पूछा, “आज पापा के पास लेटना है?”
“हाँ!” मिष्टी ने बाल-सुलभ चंचलता से कहा।
“ठीक है,” काजल अपनी ब्लाउज के बटन खोलते हुए बोली, “और पुचुकी, तुमको?”
वो कुछ कहती कि मिष्टी ने अपनी मीठी मीठी बोली में कहा, “दीदी भी यहीं पर सोयेगी, अम्मा!”
“अच्छी बात है!” कह कर काजल ने अपना ब्लाउज उतार दिया, और मेरे सामने मुखातिब हो कर लेट गई। सोने से पहले दोनों बच्चों को स्तनपान का सुख मिलता था।
“चलो बच्चों, दुद्धू पी लो!” मैंने कहा, तो दोनों झटपट से काजल के स्तनों से जा लगे।
काजल द्वारा दोनों बच्चों को इस प्रकार से स्तनपान कराना बड़ा सुखकारी दृश्य था। उसके चेहरे पर ममता, संतुष्टि, और सुख के ऐसे अनोखे भाव थे, कि लगता कि उसको देवत्व मिल गया हो। काजल भी मेरे दिन के बारे में पूछ रही थी - कि दिन कैसा था, क्या क्या हुआ, क्या खाया इत्यादि!
कुछ देर के बाद लतिका दूध पीना रोक कर मुझसे कहती है, “अंकल, आप भी दुद्धू पियेंगे?”
“म... मैं?” इस अचानक से प्रश्न पर मैं चौंक गया।
“हाँ! दादा भी तो पीते हैं अम्मा का दूध! फिर आप क्यों नहीं?”
अब मैं उसको क्या समझाता कि मैं और उसकी अम्मा क्या क्या करते हैं!
“हा हा... नहीं बेटा! तुम पी लो! इससे तुमको शक्ति मिलेगी! हड्डियाँ मज़बूत होंगी तुम दोनों की!”
“आई ऍम फुल!” लतिका ने अपने पेट पर हाथ फिराते हुए कहा, “आई विल स्लीप नाऊ!”
“मी टू!” लतिका की पूँछ को भी उसका अनुसरण करना होता है न, इसलिए आभा को भी तुरंत ही नींद आ गई।
सच में दोनों बच्चे कुछ ही देर में सो गए।
मैं काजल के अनावृत स्तनों को देख कर इच्छा से मुस्कुराया। वो समझते हुए बोली, “तो तुम इतना संकोच क्यों कर रहे हो?”
सच में! मैं कब से इतना संकोची हो गया?
मेरे अंदर भी बहुत कुछ बदल गया था। खैर, मुझे वापस पुराने दिनों में लौट जाने के लिए बहुत मशक्कत नहीं करनी पड़ी। जल्दी ही काजल के दोनों स्तन दूध से खाली हो गए, और मैं और काजल पूर्ण नग्न हो कर गुत्थम-गुत्थ हो गए। इधर उसकी योनि में मेरा लिंग प्रविष्ट हुआ, और उधर उसके गले से एक मीठी सिसकारी निकल गई।
**
सिर्फ एक ही शब्दअंतराल - पहला प्यार - Update #12
काजल के जाने के बाद सुनील ने रसोई में जा कर माँ के लिए खाने की थाली खुद ही तैयार की - कद्दू की सब्ज़ी, घी से चुपड़ी दो रोटियाँ - माइक्रोवेव ओवन में थोड़ा गरम कर के, और बूरा शक्कर, सलाद, दही, और आम का अचार! थाली में से माँ कुछ भी अपनी पसंद का खा सकती थीं। दरअसल, थाली में सब कुछ माँ की पसंद का ही था। एक प्लेट में उसने अलग से जामुन, लीची, और आम रखा हुआ था कि यदि उनका खाना खाने का मन न हो, तो कम से कम फ़ल ही खा लें।
खाने की प्लेट्स को एक ट्रे में रख कर उसने माँ के कमरे के दरवाज़े पर दस्तक दी - आम तौर पर माँ के कमरे का दरवाज़ा बंद नहीं रहता, लेकिन फिर उनको एकांत देने के लिए, उनको कोई परेशान नहीं करता।
“काजल, मेरा मन नहीं है!” दरवाज़े पर दस्तक सुन कर, माँ ने कोमल, लेकिन थके हुए स्वर में कहा।
“मैं हूँ!” सुनील ने उत्तर दिया।
अंदर से कोई उत्तर नहीं आया।
“अंदर आ जाऊँ?”
अंदर से फिर से कोई उत्तर नहीं आया।
“सुमन?”
माँ ने फिर से कुछ नहीं कहा।
“ठीक है, मैं आ रहा हूँ अंदर!”
सुनील ने कहा, और दरवाज़ा धीरे से धकेल कर खोल दिया, और उनके कमरे के अंदर आ गया। अंदर आ कर सुनील ने देखा, कि माँ बिस्तर पर उठ कर बैठी तो हैं, लेकिन ऐसा लग रहा था, कि जैसे बस एक क्षण पहले ही वो बिस्तर में मुँह छुपाए हुए रो रहीं थीं। उनके गालों पर आँसुओं की रेखा साफ़ दिख रही थी।
सुनील ने फिलहाल उस बात को अनदेखा किया। वो आ कर माँ के पास, उनके बिस्तर पर बैठा और खाने की ट्रे भी वहीं अपने बगल रख दी।
“सुमन,” उसने स्नेह से कहना शुरू किया, “अम्मा ने बताया कि तुमने कुछ खाया ही नहीं!”
माँ ने कुछ कहा नहीं लेकिन पूरी संभ्रांतता से अपनी उंगली से अपने आँसू पोंछे! वो नहीं चाहती थीं कि कोई उनको ऐसे रोते हुए देखे। उन्होंने गहरी साँस ली - लेकिन उसमें से सिसकने की आवाज़ साफ़ सुनाई दी।
“मेरी तबियत नहीं हो रही है खाने की!” माँ ने भर्राये हुए स्वर में कहा।
“अरे, लेकिन बिना खाए पिए कैसे चलेगा?” सुनील ने कोमल, स्नेही, प्रेम भरे, किन्तु अधिकार वाले स्वर में कहा, “मेरी सुमन... मेरी प्यारी दुल्हनिया, तुम मुझसे नाराज़ हो, वो ठीक है, लेकिन उसका गुस्सा खाने पर तो मत उतारो! तुम ऐसे नाराज़ रहोगी तो बेचारे कद्दू के दिल पर क्या बीतेगी?” उसने ठिठोली करी।
माँ ने कुछ प्रतिक्रिया नहीं दी। सुनील का हास्य-बाण व्यर्थ चला गया। लेकिन वो ऐसे हार मानने वालों में से नहीं था।
“नाराज़ हो दुल्हनिया?” उसने पूछा।
माँ थोड़ा झिझकीं - शायद अपने लिए दुल्हनिया शब्द का सम्बोधन सुन कर! लेकिन फिर उन्होंने ‘न’ में सर हिलाया।
“उदास हो?”
माँ ने फिर से ‘न’ में सर हिलाया।
वो मुस्कुराया, “भूख लगी है?”
माँ ने इस बार कुछ नहीं कहा। वो सुनील का खेल समझ रही थीं। और उनको न जाने क्यों सुनील का सान्निध्य पा कर अच्छा भी लग रहा था।
“दुल्हनिया,” सुनील ने बड़े प्यार से कहा, “अगर तुम ऐसे भूखी रहोगी, तो मेरी क्या हालत होगी? तुम्हारी तबियत बिगड़ जाएगी तो मेरे दिल पर क्या बीतेगी? तुम्हारी आस में ही तो जी रहा हूँ - और अगर तुमको ही कुछ हो गया, तो फिर मेरा कौन सहारा है? बोलो?”
सुनील बड़ी कोमलता, स्नेह, और प्रेम से माँ को ऐसे समझा रहा था जैसे किसी बच्चे को समझाया जाता है।
अब माँ इस बात पर क्या बोलतीं! अगर सुनील उनको अपनी पत्नी मानता है, तो बात उसकी बिलकुल सही है - पति पत्नी तो एक दूसरे का सहारा होते ही हैं! उसमें कोई गलत बात नहीं है। एक और बात माँ के दिमाग में आई - सुनील की बातों से ऐसा तो नहीं लगता कि वो उनके साथ कोई खेल खेल रहा हो! उसकी बातों में सच्चाई झलक रही थी। वो सच में उनको चाहता है। सच में - वो उनके साथ, और अपने भैया, और अपनी अम्मा के साथ ऐसी दग़ाबाज़ी तो नहीं करेगा!
“आओ - रेडी हो जाओ - मैं खिलाता हूँ खाना!” सुनील ने बड़े दुलार से कहा, और अपने हाथ से एक कौर बना कर प्यार से माँ की तरफ बढ़ाया।
माँ झिझकी - उनकी आँखों से फिर से आँसू की बड़ी बड़ी बूँदें गिरने लगीं। मुझको, और काजल को तो उन्होंने कैसे आसानी से मना कर दिया था, लेकिन न जाने क्यों, वो सुनील को मना ही नहीं कर पा रही थीं।
“अरे मेरी प्यारी सी, भोली सी दुल्हनिया,” सुनील ने कौर को वापस थाली में रखा, और अपनी हथेली के पिछले वाले भाग से माँ के आँसू पोंछने लगा, “क्या हो गया तुमको? क्या सोच रही हो?”
उसने बड़े प्यार से कहा और कह कर माँ को अपने आलिंगन में बाँध लिया। माँ भी न जाने किस प्रेरणा से सुनील के आलिंगन में आ गईं, और उसके सीने में मुँह छुपाए कुछ देर तक सुबकती रहीं। इस बीच वो माँ को समझाता रहा, दुलारता रहा और चूमता रहा। जब अंततः उनका सुबकना कम हुआ, तो वो सुनील से अलग होते हुए स्वयं ही अपने आँसू पोंछने को हुईं। लेकिन सुनील ने उसके पहले ही उनकी आँखों को चूम कर उनके आँसू पी लिए।
बड़ी ही आश्चर्यजनक और प्रेम भरी अभिव्यक्ति! ऐसा तो उनके साथ पहले कभी नहीं हुआ! डैड ने भी उनसे इस तरह से प्रेम का इज़हार नहीं किया कभी।
“बस... बस... अब और नहीं रोना!” उसने बड़े प्यार और अधिकार से कहा, “आओ... मैं तुमको खाना खिला दूँ!”
थोड़ा झिझकते, थोड़ा सुबकते हुए माँ ने अपना मुँह खोल दिया। सुनील ने मुस्कुराते हुए वो कौर उनके मुँह में डाल दिया। माँ खाने लगीं। लेकिन वो चुप थीं। जाने क्या सोच रही थीं!
“क्या सोच रही हो?” उसने पूछा।
“कुछ नहीं!” माँ ने उदासी से कहा।
“नहीं बताओगी?” सुनील ने बड़े ही कातर स्वर से कहा।
माँ पहले कहना चाहती थीं कि वो किस अधिकार से उनको खाना खिलाना चाहता है - लेकिन यह ख़याल आते ही अगले ही क्षण उनको अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया। उस उत्तर के संज्ञान से उनको शर्म भी आई, और अपने ऊपर थोड़ी खीझ भी हुई। ऐसी उहापोह की स्थिति उन्होंने कभी नहीं झेली।
माँ ने बहुत प्रयत्न किया यह सोचने में कि वो सुनील के प्रश्न पर कैसी प्रतिक्रिया दें; लेकिन फिर उनसे कुछ कहते नहीं बना और उन्होंने ‘न’ में सर हिलाया। जैसे भोले भाले बच्चे रूठ कर नखरे या नाराज़गी दिखाते हैं, वैसे ही। उनके मन में नाराज़गी नहीं होती - वो केवल प्यार चाहते हैं, दुलार चाहते हैं। माँ की इस भोली अदा पर सुनील मुस्कुराए बिना नहीं रह सका। उसका मन हुआ कि माँ को अपने सीने में भींच कर उनका मीठा सा मुँह चूम ले! लेकिन बड़ी मेहनत से उसने यह इच्छा दबाई। सुनील ने फिर उनको दूसरा कौर खिलाया। माँ को इस बीच सोचने का कुछ और अवसर मिल गया।
कुछ पलों के बाद वो एक फीकी सी मुस्कान के साथ बोली, “आप मेरा इतना ध्यान मत रखा करिए!”
माँ सुनील को ‘आप’ कह कर बुला रही थीं। शायद उनको भी यह बात न ध्यान में रही हो। उनके अवचेतन में कहीं न कहीं सुनील उनके पति का रूप ले चुका था! वो एक सम्पूर्ण पुरुष था, और उनसे प्रेम करता था। उसने अपने मन की बात माँ से कह दी थी। अब उन दोनों के सम्बन्ध पर आखिरी निर्णय माँ को लेना था। उसी कारण से माँ के मन में अन्तर्द्वन्द्व चल रहा था। इतना बड़ा निर्णय था! इस तरह के बड़े निर्णय उन्होंने पहले अकेले नहीं लिए थे - कोई न कोई उनके साथ था, उनकी मदद करने को! उनके हाँ या न पर उनका जीवन बदलने वाला था - सदा के लिए। शायद इसीलिए उनको डर था, संशय था।
“मैं तुम्हारा ध्यान नहीं रखूँ, तो और किसको रखने दूँ?” सुनील ने फिर से मुस्कुराते हुए, स्नेही, किन्तु अधिकार भरे स्वर में कहा, और इस बार उसने बूरा शक्कर में रोटी का कौर लपेट कर उनको खिलाया। माँ को अन्य मिठाइयाँ तो नहीं, लेकिन बूरा शक्कर बहुत पसंद आती थी। सुनील को अपनी पसंदीदा चीज़ को खिलाते देख, माँ शरम से खाने लगीं।
“आप कुछ समझते ही नहीं!” उन्होंने कौर को ख़तम कर के कहा।
“क्या नहीं समझता?” सुनील बड़े धैर्य से, लेकिन उसी स्नेही स्वर में बोला, “मैंने जन्म जन्मांतर तक तुम्हारा साथ देने का वचन दिया है - खुद को और तुमको! फिर अभी शुरुवात में ही कैसे पीछे हट जाऊँ? मैं तुमको बहुत प्यार करता हूँ, मेरी जान!” वो मुस्कुराया।
‘मेरी जान’ यह शब्द सुन कर माँ के हृदय में एक धमक सी हुई। माँ पहली बार सुनील को एक अलग दृष्टि से देखने लगीं। उन तीन ही क्षणों में उनके मन में न जाने कितने विचार आए और गए।
‘कितनी आसानी से, कितनी सहजता से बीहैव करते हैं ये!’
सुनील भी माँ को खुद की तरफ़ देखते हुए देखता है; फिर थाली में कुछ देखते हुए कहता है, “अरे, दही तो खाया ही नहीं!”
कह कर वो उनको चम्मच से दही खिलाने लगा। माँ के होंठों पर एक फीकी सी, लेकिन प्यारी सी मुस्कान आ गई। ऐसे करते करते एक रोटी ख़तम हो गई, और दूसरी शुरू।
वो बोला, “एक बात पूछूँ सुमन, बुरा तो नहीं मानोगी?”
माँ सुनील की ओर ऐसे देखने लगीं, जैसे बिना कहे ही कह रही हों, ‘पूछो, जो पूछना हो!’
“प्यार करना कोई बुरी बात है क्या?”
माँ कुछ क्षण चुप रहीं, फिर नजरें झुकाए हुए बोली, “नहीं! बुरी बात क्यों होने लगी? लेकिन समय... और खुद की पहचान रखते हुए ही प्यार करना ठीक होता है।”
“प्यार करने का कोई समय होता है भला? मुझे तो लगता है कि जिस समय किसी से प्यार हो जाए, वही सही समय है। लेकिन ‘खुद की पहचान’ का क्या मतलब है?” माँ की झुकी हुई नज़रों का कारण ढूँढ़ते हुए सुनील ने कहा।
“अगर प्यार हो जाए, तो पूरी ईमानदारी से हो! ऐसे नहीं कि दो दिन का आकर्षण, और उसके बाद कुछ नहीं!”
सुनील ने माँ की तरफ ऐसे देखा कि जैसे उसको उनकी पूरी बात समझ में न आई हो।
माँ ने कहना जारी रखा, “मतलब यह कि अगर प्रेम कर ही लिया है, तो फिर अपने प्रेमी के संग ही प्रेम रहे! प्रेम का ‘पालन’ होना चाहिए, उसका ‘निर्वाह’ नहीं! यह नहीं कि आज एक के साथ, कल दूसरे के साथ!”
“तुम मुझे वैसा समझती हो?”
माँ ने ‘न’ में सर हिलाया, “नहीं! मैं आपके लिए नहीं, अपने बारे में कह रही हूँ!”
“मैं समझा नहीं!”
“मैंने अपना सब कुछ ‘उनको’ सौंप दिया था। मेरा अस्तित्व, मेरा प्रेम, सब कुछ ‘वो’ ही थे। अब जब ‘वो’ नहीं हैं, तो मैं ‘उनसे’ कैसे अलग हो जाऊँ! मैं ‘उनसे’ कैसे दग़ाबाज़ी कर दूँ?” माँ ने कहा।
उनकी आँखों में फिर से आँसू आ गए।
‘ओह, तो सुमन के दुःख और उदासी का कारण बाबूजी की यादें है!’ सुनील ने सोचा।
“लेकिन सुमन, बाबूजी तो अब नहीं हैं न!” सुनील ने कहा - बड़ी कोमलता से - कुछ इस तरह कि माँ के दिल को ठेस न लगे, “और फिर उनसे इतर हो जाने के लिए तुमको कौन कह रहा है? तुम्हारे मन में उनके लिए जो प्रेम, जो सम्मान है, उसको तुम सुरक्षित रखो! बरकरार रखो। मुझे नहीं लगता कि ऐसा करने से तुम्हारे अंदर जो प्यार का सागर है, वो खाली हो जाएगा!”
“आपको बुरा नहीं लगेगा?”
“किस बात का?”
“यही कि मेरे मन में किसी दूसरे आदमी की छवि बसी हुई है! जो सब आप पाना चाहते हैं, वो कोई और पा चुका है?”
“बुरा क्यों लगेगा?” सुनील ने बहुत शांत और स्थिर स्वर में कहा, “मेरी दुल्हनिया, सबसे पहली बात तो यह है कि मेरे लिए, बाबूजी कोई दूसरे आदमी नहीं हैं! न तो कभी वो दूसरे थे, और न ही कभी होंगे! वो हम सबके हैं, और हम सबके मन में बसे हुए हैं। मैं उनका बहुत आदर सम्मान करता हूँ, और अपनी उम्र भर करता रहूँगा! उनका मेरे जीवन में जो स्थान है, वो कभी नहीं बदलने वाला!”
वो आगे कहने से पहले थोड़ा ठहरा, “और जहाँ तक पाने खोने वाली बात है, बाबूजी तुम्हारे हस्बैंड थे! और एक हस्बैंड अपनी बीवी को प्यार नहीं करेगा, तो और कौन करेगा? मैं भी तो तुम्हारा हस्बैंड बनना चाहता हूँ! जब मेरा यह सपना साकार हो जाएगा, तब मैं भी तुमको खूब प्यार करूँगा! तुमको हमेशा खुश रखूँगा!”
माँ उसकी बात पर सकुचा गईं।
सुनील थोड़ा रुका, फिर कुछ सोच कर बोला, “मेरी सुमन, एक बात तो बताना मुझे... बिना बुरा माने और बिलकुल सच सच - क्या तुमको मेरी बातों से यह लग रहा है, कि मैं तुम्हारी वर्जिनिटी लेना चाहता हूँ?”
वर्जिनिटी - या शुचिता - का अर्थ केवल शारीरिक शुचिता (कौमार्य) से नहीं है। माँ का कौमार्य तो कोई तीस साल पहले ही जाता रहा था। यहाँ शुचिता का संकेत माँ के पतिव्रता होने से है। पूरी उम्र वो डैड के लिए समर्पित रही थीं। ऐसे में किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना उनको कष्टप्रद लग रहा था।
माँ ने कुछ कहा नहीं, बस अपनी नज़रें नीची कर लीं। माँ झूठ नहीं बोल पाती थीं। उनका सर बहुत हल्का सा ‘हाँ’ में हिल गया।
सुनील के दिल में एक कचोट सी हुई, लेकिन वो केवल मुस्कुराया, और फिर से बड़े स्नेह से बोला, “अगर तुमको ऐसा लगता है, तो तुमने मेरे प्यार को अभी तक समझा नहीं! लेकिन इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है दुल्हनिया - मैं हूँ ही इतना बेवक़ूफ़, कि मैं तुमको समझा ही नहीं पा रहा हूँ!”
माँ ने सुनील की तरफ देखा। उनको थोड़ी ग्लानि तो हुई कि उन्होंने सुनील के प्रेम की सच्चाई को गलत समझ लिया।
“और जहाँ तक बाबूजी की बात है, मैं उनको तुम्हारी लाइफ से रीप्लेस करने थोड़े न आया हूँ! मैं तो बस तुम्हारे दिल में, तुम्हारे जीवन में अपनी, खुद की एक जगह बनाना चाहता हूँ!” वो मुस्कुराया, “मैं तुमको प्यार करता हूँ - यह मेरी सच्चाई है। दुनिया की कोई ताकत इस सच्चाई को बदल नहीं सकती। और मुझे मालूम है, कि मुझे भी तुम्हारा प्यार पूरी ईमानदारी से मिलेगा। क्योंकि मैं खुद भी तुमको पूरी ईमानदारी से प्यार करूँगा - करता हूँ!”
सुनील की इस बात पर माँ के चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ गए।
“लेकिन मैं... मेरे पास आपको देने के लिए कुछ भी नया नहीं है!” माँ ने उदासी वाले भाव से कहा।
अधिकतर पुरुषों की सबसे बड़ी इच्छा होती है उनको एक ‘कुमारी’ लड़की का संग मिले। वो चाहते हैं कि उनको ऐसी लड़की मिले जिसका ‘कौमार्य’ उनसे मिलने के पहले तक सुरक्षित रहे, और जिसको वो ‘भंग’ कर सकें! यही उनके जीवन में सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। शायद माँ को सुनील भी उसी श्रेणी में लगा हो। लेकिन ऐसा था नहीं। उसका प्यार दर्शाने का तरीका अलग हो सकता है, लेकिन प्यार तो उसे था!
“प्यार भी नहीं?” सुनील ने तपाक से कहा।
उसकी बात पर माँ निरुत्तर हो गईं।
“सुमन... मेरी दुल्हनिया,” सुनील ने पूरे धैर्य के साथ कहा, “तुम मुझसे ये सब बातें कह रही हो न, इससे ही मुझे मालूम हो जाता है कि तुम्हारे अंदर कितना प्यार है! मुझे बस वही चाहिए! केवल तुम्हारा साथ, और तुम्हारा प्यार! पूरा... सारा प्यार मिल जाए, तो क्या मज़ा! कैसी बढ़िया किस्मत होगी मेरी फिर तो! लेकिन थोड़ा भी मिल जाए न, वो भी मेरे लिए बहुत है! अपनी सर आँखों पर रखूँगा मैं वो नेमत! जीवन भर का साथ, जीवन भर का प्यार! मुझे मालूम है, तुम्हारा प्यार इस घर में सब किसी पर बरसता है! मैं किसी के हिस्से का प्यार नहीं लेना चाहता! बस, मेरा वाला (उसने मुस्कुराते हुए कहा)! उतना ही! और तुम्हारे प्यार का भण्डार तो ऐसा है जो केवल बढ़ता जाता है, कभी कम नहीं होता!”
माँ के दिल में एक कचोट सी होने लगी। सच में - उन्होंने सुनील के प्यार को बहुत कम कर के आँका था। उसकी चाहत कोई किशोरवय वाली चाहत नहीं थी - आज यहाँ, और कल वहाँ।
सुनील कह रहा था, “मैं अगर केवल तुम्हारे पाँवों का आलता भी बन जाऊँ न मेरी जान, तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा।”
सुनील की बातों में, उसके लहज़े में ऐसी शिष्टता थी, इतना गांभीर्य था कि माँ उसके प्रभाव से अछूती न रह सकीं। सुनील और खुद को ले कर उनके मन में जो संदेह थे, वो अब बहुत कम हो चले थे। माँ ने उसको स्वीकार कर ही लिया था।
“आपको अजीब नहीं लगता?”
“किस बात पर?”
“यही कि मैं आपकी माँ से भी बड़ी हूँ उम्र में?”
“अरे यार सुमन,” सुनील हँसते हुए बोला, “तुम तो अभी भी वहीं पर अटकी हुई हो! माना कि बचपन में तुमने मुझे माँ की तरह पाला है, मुझे पढ़ाया लिखाया, मुझे एक तरह से सेया है! लेकिन अब सिचुएशन थोड़ी बदल गई है!” वो कुछ सोच कर मुस्कुराया, “तुम मुझे प्यार करो न! किसने मना किया? मैं चाहता भी तो वही हूँ! मैं तुमको बस अपने उस प्यार का रूप बदलने को बोल रहा हूँ! तुमने इतने सालों से हम पर अपनी ममता बरसाई है! बिलकुल एक माँ की ही तरह! इस बात को एक्सेप्ट करने में मुझे कोई हिचकिचाहट नहीं। क्यों होगी? ये तो सच्चाई है ही! लेकिन अब मेरी ख़्वाइश है - और विनती भी - कि अब तुम मेरी पत्नी बन कर मुझसे प्यार करो, और मैं तुमको तुम्हारे पति के रूप में तुमको प्यार करूँ। मैं अब बस इतना ही चाहता हूँ कि हम दोनों अपना एक छोटा सा संसार बसाएँ, और उसमें हँसी ख़ुशी रहें!”
सुनील की बात इतनी ईमानदार थी कि माँ के खुद के संशय के बादल छँटने लगे। वो कुछ बोलीं नहीं, लेकिन इस समय वो मन में बहुत हल्का महसूस कर रही थीं। सुनील के साथ अपने भविष्य को ले कर उनको सम्भावनाएँ दिखने लगी थीं! सुनील उनको खाना खिलाता रहा, और कुछ देर में दूसरी रोटी भी ख़तम हो गई।
“लीची, जामुन, या आम?” सुनील ने मुस्कुराते हुए कहा, “या एक और रोटी!”
लेकिन माँ कुछ सुन नहीं रहीं थीं। यह सब बहुत नया नया था, और सब कुछ इतनी जल्दी जल्दी हो रहा था कि उन पर सुनील की इन प्रेम भरी बातों का भावनात्मक बोझ बहुत अधिक हो गया था - उनकी आँखों से फिर से आँसू ढलकने लगे। किसी पीड़ा के कारण नहीं, बस यूँ ही!
“हे!” सुनील ने कहा, और उनको अपने आलिंगन में ले कर बोला, “सुमन... मेरी प्यारी सी, भोली सी सुमन... मेरी सोनी दुल्हनिया! अब और रोना नहीं है! बिलकुल भी नहीं रोना है! प्रेम सबसे बड़ी चीज़ है सुमन! मुझे तुमसे प्रेम है। तुम मेरी बन जाओ! बस! मैं तुमको बहुत बहुत प्यार करूँगा! अभी भी करता हूँ, और हमेशा करता रहूँगा! और मुझे मालूम है कि तुम भी मुझसे बहुत प्यार करोगी।”
उसने बड़े प्रेम से कहा, और माँ के माथे को चूम लिया, “आई लव यू!”
पहली बार माँ उसके ‘आई लव यू’ कहने पर मुस्कुराई थीं! यह बात सुनील से छुपी न रह सकी।
“तुम भी मुझको ‘आई लव यू’ करती हो?” उसने किसी छोटे बच्चे की भाँति बड़े उत्साह, बड़ी उम्मीद से पूछा।
माँ का दिल लरज़ गया। लेकिन उन्होंने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया। सुनील की प्यारी बातें! माँ ने झूठ नहीं कहा था - उनकी मुस्कराहट में ही उनकी सच्चाई थी। सुनील का स्थान उनके मन में बदल चुका था। और उनके भी मन में सुनील के लिए प्यार का अंकुर पनप गया था।
सुनील खुश हो गया; और फिर उनके आँसू पोंछ कर बोला, “अब बोलो - जामुन? या लीची? या आम??”
माँ उसकी बात पर मुस्कुराए बिना नहीं रह सकीं। वो अचानक ही बहुत हल्का महसूस करने लगीं।
“तीनों!” माँ ने बड़ी कोमलता से कहा; बहुत देर के बाद उनकी बोली में भी मुस्कराहट थी।
“ये हुई न बात!” कह कर वो उनको एक एक कर के फल खिलाने लगा।
“सब मुझे ही मत खिला दीजिए - आप भी तो खाइए?”
“मुझे खाते देखना चाहती हो, तो तुमको ही खिलाना पड़ेगा!”
माँ शर्म से मुस्कुराईं और उन्होंने सुनील को पहले लीची खिलाई, जो उसने खा ली; फिर उन्होंने उसको जामुन खिलाया, जो उसने खा लिया; फिर उन्होंने आम की फाँकी उसकी ओर बढ़ाई।
आम की फाँकी उसने नहीं खाई।
“दुल्हनिया,” सुनील ने शरारत से कहा, “ये नहीं, ‘वो’ वाले आम!”
“कौन वाले?” माँ ने न समझते हुए प्लेट की तरफ देखा।
“वो अमृत रस वाले, जो तुम्हारी ब्लाउज में क़ैद हैं!”
उसकी बात पर माँ के चेहरे पर शर्म की लालिमा दौड़ गई।
“धत्त!”
“अरे, दिन में तो छूने दे रही थी, और अभी ‘धत्त’ कह रही हो!”
“मैं कहाँ छूने दे रही थी? आप ही जबरदस्ती कर रहे थे!”
“तुम नहीं छूने दे रही थी?” कह कर सुनील ने माँ की साड़ी का आँचल उनके सीने से ढलका दिया।
माँ ने ‘न’ में सर हिलाया! उनका दिल अचानक ही तेजी से धड़कने लगा।
सुनील उनकी ब्लाउज के बटन खोलते हुए बोला, “मैं जबरदस्ती कर रहा था?”
माँ फिर से नर्वस हो गईं। माँ नर्वस तो थीं, लेकिन उनके होशोहवास अभी कायम थे। दोपहर के जैसी उनकी हालत नहीं थी।
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“अभी भी जबरदस्ती कर रहा हूँ?”
माँ ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“मुझे रोकना चाहती हो?”
माँ ने ‘न’ में सर हिलाया।
“लेकिन मेरे सामने नंगा होने में शर्म आएगी?” सुनील रुक ही नहीं रहा था, और उनकी ब्लाउज के बटन खोलता रहा।
माँ ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“पुचुकी तो रोज़ इनको पीती है! तब नहीं आती शर्म?”
“अपनी बेटी से कैसी शर्म?” माँ ने कह तो दिया, लेकिन फिर उनको तुरंत समझ आ गया कि उन्होंने क्या कह दिया। अगर सुनील से उनको शर्म आ रही थी तो वो इसलिए कि अब वो उसको अपने बेटे के रूप में नहीं देखतीं।
“हम्म, लेकिन अपने होने वाले हस्बैंड से आती है?”
माँ ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया - बहुत ही हौले से।
“जब हमारी शादी हो जाएगी, तब भी मेरे सामने नंगा होने में शर्म आएगी?”
माँ शर्म से लाल हो गईं, लेकिन फिर से उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाया!
“अरे यार! ये तो बड़ी दिक्कत वाली बात है! फिर सब कुछ कैसे होगा?” वो खिलवाड़ वाले अंदाज़ में बोला।
“क्या करना चाहते हैं आप?” माँ ने कहा - भली भाँति जानते हुए कि सुनील क्या करना चाहता है उनके साथ।
“अपनी दुल्हनिया को प्यार!”
माँ शर्म से पानी पानी हो गईं। लेकिन उन्होंने कहा, “मुझको शर्म आ रही है!”
“ओह दुल्हनिया, लेकिन मैं क्या करूँ? मैं रुकना चाहता हूँ, लेकिन रुक नहीं पा रहा हूँ! ... अच्छा, देखूँगा नहीं - ये देखो,” उसने अपनी आँखें मींच कर बंद करते हुए कहा, “मैंने अपनी आँखें बंद कर ली हैं! देखूँगा नहीं, बस छूने का मन है!”
माँ सुनील की ऐसी चेष्टाओं को रोक ही नहीं पा रही थीं।
“पक्का!” सुनील ने उनको भरोसा दिलाया।
उन्होंने उसको शरमाते हुए देखा - सच में सुनील की आँखें बंद थीं, और वो इस समय उनकी ब्लाउज का आखिरी बटन खोल रहा था। वो अगर अपनी आँखें बंद न भी करता, तो भी माँ उसको रोक न पातीं।
“सु... सुनिए... आ...आप आँखें मत बंद कीजिए,” माँ ने सुझाया, “बस लाइट बंद कर दीजिए!”
“पक्का दुल्हनिया?”
माँ शर्म से पानी पानी हो चली थीं, लेकिन वो भी चाहती थीं कि सुनील अपने मन का आनंद पा सके। वो जानती थीं कि जब प्रेमी और प्रेमिका के बीच की भावनाएँ बलवती होती हैं, तो उनका निकास होना, उनकी अभिव्यक्ति होना आवश्यक है। अपनी प्रेमिका को नग्न देखना, एक प्रेमी को अद्भुत संतुष्टि प्रदान करती है।
उन्होंने बड़े हौले से ‘हाँ’ में सर हिलाया। सुनील बड़ी प्रसन्नता से मुस्कुराया, और भाग कर कमरे की लाइट बुझा कर वापस माँ के पास लौट आया।
लाइट तो गुल हो गई, लेकिन कमरे में पूरी तरह से अन्धकार नहीं हुआ था। बाहर से छन छन कर बड़ी मद्धिम सी रौशनी अंदर आ रही थी। और कुछ नहीं, लेकिन माँ के शरीर की आकृति दिखाई दे रही थी। उसने उनकी ब्लाउज उतार फेंकी।
माँ ने इस समय ब्रा नहीं पहनी हुई थी। शरीर का ऊर्ध्व भाग नग्न होते ही माँ की आँखें स्वतः ही बंद हो गईं। अपने युवा प्रेमी के जोश का सामना करने का सामर्थ्य नहीं था उनके पास! सुनील को माँ के शरीर का रंग तो ठीक से नहीं मालूम हुआ, लेकिन उसको बाकी सब साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था कि उनके स्तनों की गोलाईयाँ कैसी हैं, उनके एरोला का आकार कैसा है, उनके चूचक कितने ऊर्ध्व हैं, इत्यादि! सुनील ने माँ के दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों में ले कर दबाया। माँ के स्तनों के चूचक कड़े हो कर उसकी हथेलियों में चुभ रहे थे। अद्भुत स्तन - विरोधाभासों से भरे हुए - ठोस, लेकिन कोमल; गोलार्द्धों पर ठन्डे, लेकिन चूचकों पर गर्म, चिकने!
अब सुनील से रहा नहीं गया। माँ का एक चूचक उसके मुँह में आते ही माँ की आह निकल गई। कुछ ही दिनों में ही बात कहाँ की कहाँ पहुँच गई थी। कुछ दिनों पहले सुनील कुछ करने की हिम्मत न कर पाता, और अब माँ उसको रोकने का सोच भी नहीं पा रही थीं। कुछ देर तक तो माँ ने बर्दाश्त किया, लेकिन फिर उनकी हिम्मत जवाब दे गई। सुनील के चूषण और चुम्बन में जो आग्रह था, उसमे इतना बल था कि माँ बिस्तर पर चित हो कर गिर गईं।
सुनील माँ के ऊपर आ गया। उसकी श्रोणि, माँ की श्रोणि पर रगड़ खाने लगी। ऐसी रगड़, जिससे माँ पूरी तरह वाकिफ़ थीं। उसका लिंग पूरी तरह से उत्तेजित हो गया था, और उसकी कठोरता माँ अपनी श्रोणि पर साफ़ महसूस कर रही थीं। घटनाक्रम अचानक ही ख़तरनाक क्षेत्र में चला गया।
“सु... सुनिए... सम्हालिए अपने आप को!” माँ ने कोमलता से सुनील को चेताते हुए कहा, “प्लीज़?”
तब जा कर सुनील को होश आया।
वाक़ई - अचानक से उसका अपने आप से नियंत्रण समाप्त हो गया था। अच्छा हुआ कि सुमन ने उसको रोक लिया। वो माँ के ऊपर से हट तो गया, लेकिन उसने उनके स्तनों को प्रेम करना बंद नहीं किया। सच में, प्रकृति ने माँ को अद्भुत नेमत दी थी, और माँ ने उस नेमत को न केवल सम्हाल कर रखा हुआ था, बल्कि उनको उनके उत्कृष्ट रूप में रखा हुआ था। कुछ देर उसने माँ के स्तनों को ऐसे ही प्यार करने के बाद, जब उसकी इच्छा शांत हो गई, तो वो उनके ऊपर से हट गया।
“दुल्हनिया?”
“जी?”
“ब्लाउज किधर है?”
“आपने ही कहीं फेंक दी!” माँ ने झिझकते हुए कहा।
“ओह!” उसने कहा, फिर कुछ सोच कर माँ की साड़ी के आँचल को ही उनके स्तनों पर दो तीन बार लपेट दिया, जिससे उनके स्तन ढँक जाएँ! माँ को यह देख कर बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ! सच में, वो कोशिश कर रहा था कि अपनी बात बनाए रखे। अंततः वो उठा, और उठ कर उसने कमरे की बत्ती वापस जला दी।
“दुल्हनिया, थैंक यू!”
माँ शर्माते हुए मुस्कुराईं - दबी हुई सी मुस्कान!
“लेकिन एक गड़बड़ हो गई!”
माँ ने प्रश्नवाचक दृष्टि सुनील पर डाली।
“तेरे दुद्धूओं पर खाने की जूठन लग गई!”
माँ शर्माते हुए मुस्कुराईं - दबी हुई सी मुस्कान!
“और मेरी जूठन भी!”
माँ और भी अधिक शर्मा गईं, लेकिन कुछ बोलीं नहीं। सुनील मुस्कुराया। उसने माँ को और न छेड़ने का सोचा और कहा,
“मेरी रानी,” उसने माँ के दोनों गालों को अपने हाथों में थामते हुए कहा, “अभी सो जाओ! और, अगर हो सके तो सपने में मुझे देखना!” उसने प्यार से कहा और उनके होंठों को चूम लिया।
एक लम्बे अर्से के बाद माँ को रोमांस का अनुभव हो रहा था, और उस अनुभव में बहुत रोमांच भी था! ऐसे तो कुछ उन्होंने सोचा भी नहीं था कि उनके साथ ये सब कुछ होगा भी! लेकिन वास्तविकता ये थी कि यह सब कुछ उनके साथ हो रहा था, और बड़ी तेजी के साथ हो रहा था। घटनाक्रम के इस तीव्र प्रवाह को नियंत्रित करने में वो खुद को असमर्थ महसूस कर रही थीं।
उनको और छेड़ने की सुनील ने कोई कोशिश नहीं करी। और इस बात पर माँ को फिर से घोर आश्चर्य हुआ!
“तो मैं चलूँ?” उसने माँ को गहरे से देखते हुए पूछा।
माँ ने जब कुछ कहा नहीं, तो सुनील ने गहरी साँस भरी और उठने लगा।
माँ से रहा नहीं गया, “बैठिए न! कुछ देर और?”
“सच में?” सुनील की मुस्कान बहुत चौड़ी हो गई।
माँ ने शर्मा कर ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“ठीक है! लेकिन एक शर्त पर!”
माँ ने अचरज से उसको देखा, ‘अब कौन सी शर्त?’
“और वो यह,” वो बोलता रहा, “कि मैं तुम्हारी गोदी में सर रख कर लेटूँगा!”
“ठीक है!” कह कर माँ ने पालथी मार ली, जिससे सुनील को उनकी गोदी में सर रखने को मिल सके।
जब उसने अपना सर माँ की गोद में रखा, तो बोला, “आह दुल्हनिया! कितना सुख है!”
माँ मुस्कुरा दीं।
“कितना पुराना सपना आज पूरा हो रहा है!”
माँ मुस्कुराईं, लेकिन मन ही मन वो हँस रही थीं, ‘हा हा! कैसे कैसे सीधे सरल सपने भी हैं इनके!’
“दुल्हनिया, मेरे साथ तुम जॉगिंग किया करो! बड़ा मज़ा आता है सच में!” कुछ देर चुप रहने के बाद उसने कहा।
“ठीक है!” माँ बोलीं, “लेकिन साड़ी में जॉगिंग थोड़ा अजीब लगेगा!”
“अरे, तो साड़ी किसने कहा पहनने को? मैं कल ही ले आता हूँ छोटी सी निक्कर! वो पहन कर करना जॉगिंग? कल ले लेंगे?”
माँ मुस्कुराईं, “मैं छोटी निक्कर में दौड़ूंगी?”
“क्यों क्या प्रॉब्लम है उसमें?” सुनील साड़ी के ऊपर से ही उनकी जाँघें सहलाते हुए बोला, “दौड़ने से ये मसल्स और मज़बूत हो जाएँगीं!” और उनके सीने के ऊपर उनके दिल को छू कर बोलता रहा, “और कार्डिओ-वस्कुलर स्ट्रेंथ भी बढ़ जाएगी!”
“आप मुझे रनर बनाना चाहते हैं?” माँ अचानक ही संयत हो गई थीं, और ऐसी बकवास बातों के आदान प्रदान का आनंद उठा रही थीं।
सच में - सुनील के साथ कितना आराम महसूस होता है! उन्होंने दिल में सोचा।
“नहीं तो! लेकिन रनर बनने में बुराई भी क्या है! मैं तो बस यह चाहता हूँ कि तुम्हारी हेल्थ हमेशा ए-वन रहे! बढ़िया हेल्दी रहोगी, तभी तो हमारे कई सारे, हेल्दी हेल्दी बच्चे होंगे!”
इस बात पर माँ फिर से शर्मा गईं और कुछ बोल न सकीं।
कुछ देर दोनों ने कुछ नहीं कहा, फिर सुनील अचानक ही माँ की गोद में पलट गया। अब उसका चेहरा माँ की योनि से बिलकुल सटा हुआ था। उसने साड़ी के ऊपर से ही कई बार माँ की योनि को चूम लिया। सुनील की इस हरकत पर माँ के सब्र का बाँध टूट गया - उनको रति-निष्पत्ति हो गई, और उनकी योनि में से कामरस बह निकला। और वो बेचारी कुछ कह भी न सकी! इतने लम्बे अर्से के बाद उनको यह अनुभूति हुई थी - डैड के साथ भी हमेशा नहीं होती थी। माँ को भी अपना यह अप्रत्याशित चरमोत्कर्ष अनुभव कर के बहुत आश्चर्य हुआ!
‘‘इन्होने’ अभी तक कुछ किया भी नहीं, फिर भी!’
“दुल्हनिया मेरी, मुझे तेरा तो नहीं मालूम, लेकिन मैं तो हमारे मिलन की घड़ी के बारे में सोच सोच कर ही बेकरार हो जाता हूँ!”
उसने एक बार फिर से साड़ी के ऊपर से ही माँ की योनि पर चूमा, और फिर माँ के चेहरे की ओर देखा।
चरमोत्कर्ष के आनंद पर पहुँच कर उनकी आँखें बंद हो गई थीं, और मुँह हल्का सा खुल गया था! उनकी ऐसी हालत देख कर वो भी समझ गया कि माँ की दशा भी बेकरारी ही वाली है। लेकिन उसको माँ की ‘बेकरारी’ की ‘मात्रा’ का ज़रा भी संज्ञान नहीं था! उसको अभी भी सेक्स का कोई प्रैक्टिकल अनुभव नहीं था, और स्त्री के चरम-आनंद के बारे में कुछ ख़ास मालूम नहीं था। चरमोत्कर्ष पर पहुँची हुई स्त्री की भाव-भंगिमाओं के बारे में उसको कुछ नहीं मालूम था। वो कुछ देर कुछ बोला नहीं, बस माँ को उनकी कमर से थामे उनकी गोदी में सर रखे लेटा रहा। कुछ देर के बाद वो अपना मन मार कर उनकी गोद से उठ गया।
“अ... अब मैं कैसे सोऊँगा, दुल्हनिया?” सुनील ने इतना ही कहा, और कमरे से बाहर चला गया।
माँ इस बार उसको रोक न सकीं। कोई बहाना ही नहीं था।
हाँ, लेकिन बाहर जाते जाते उसके निक्कर के सामने का उभार उनको साफ़ दिखाई दिया। वो शर्म से गड़ गईं। उनको शर्म भी आ रही थी, और इस बात का संज्ञान भी था कि यह उनके सम्बन्ध का भविष्य भी है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
माँ को हस्त-मैथुन करना नहीं आता था। कभी उसकी आवश्यकता ही नहीं पड़ी, इसलिए उनको इस बात का ज्ञान ही नहीं था कि स्त्रियाँ भी हस्त-मैथुन कर सकती हैं। होश सम्हालते ही डैड का साथ मिल गया, और तब से ले कर अब तक माँ की प्रत्येक यौन और कामुक आवश्यकताओं को डैड ने यथासम्भव पूरा किया। उनके जाने के बाद माँ को कामुक विचार कभी कभी ही आए। माँ ने वैधव्य में भी साधना ढूंढ निकाली, और अपनी काम इच्छाओं पर लगाम कस ली।
लेकिन सुनील के छेड़ने से माँ के मन के और शरीर के हर तार झनझना गए थे। उनको मालूम नहीं था कि अपने शरीर में उठने वाली कामुक तरंगों को वो कैसे शांत करें! सुनील तो चला गया, लेकिन उनके मन में एक कसक सी रह गई!
माँ उसी अवस्था में कोई पंद्रह मिनट बैठी रहीं, खुद को शांत करती रहीं। फिर जब उनके गले की खुश्की बहुत बढ़ गई, तो बिस्तर से उठ कर पानी पीने लगीं। तब उन्होंने बिस्तर पर गीले धब्बे को देखा - तब उनको समझ आया कि उनकी योनि से इतना कामरस निकला था कि बिस्तर भी गीला हो गया था। फिर साड़ी का क्या हुआ होगा! उन्होंने जल्दी से आईने में पलट कर देखा - हाँ, साड़ी भी गीली थी। कोई आश्चर्य नहीं!
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कशमकश, जद्दोजहद, एक संघर्ष अपने भीतर अपने आपसे, समाज की रीति रिवाज से
आपने कहा था यह एक सच्ची कहानी है l शायद हो l
मैं संदेह नहीं करना चाहता
पर सच कहूँ मैं जिसे अनैतिक समझ रहा था आप उसे नैतिकता के सीमाओं में बांध कर प्रस्तुत कर रहे हैं l
मैं पहली बार सुमन मनोभाव को समझ रहा हूँ l पर सच्चाई यह भी है उसके भीतर यह भाव को सुनील ने जगाया है
देखते हैं क्या होता है आगे
कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ पे
कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ पे
दो पल मिलते हैं, साथ-साथ चलते हैं
ऐसा मोड़ कभी न आये, कहीं बच के निकल ना जाएं
कितने अजीब रिश्ते हैं...
सिर्फ एक ही शब्द
अल्टीमेट
इसके आगे कोई कमेंट करना मेरे बस की बात नहीं