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प्रकरण - ४ & ५...... अनुभाग - " अनमोल तोहफा " और " त्रिशूल "
अनमोल तोहफा के बाद ये कैसा त्रिशूल घोंप दिया आपने भाई ! एक बार फिर से हमारे दिल को छलनी कर दिया आपने ।
देवयानी और अमर के पिता जी की मौत हजम ही नहीं हो रहा है मुझसे । इतने कम उम्र में ही मौत !
पहले गैबी की मौत फिर देवयानी की मौत और फिर पिताजी की मौत । इसके अलावा गैबी के गर्भ में पल रही बच्चे की मौत और काजल के नवजात शिशु की मौत ।
इतना दर्द चंद सालों के भीतर ही कैसे कोई बर्दाश्त कर सकता है ! क्या बीत रहा होगा अमर पर !
मुझे समझ ही नहीं आ रहा है कि इस घड़ी को कैसे व्यक्त करूं !
कितना अच्छा लग रहा था कि देवयानी ने एक लक्ष्मी को जन्म दिया था । कितना अच्छा महसूस हो रहा था कि फ्रांस में भी मरी ने अमर के बच्चे को जन्म दिया ।
कितना बढ़िया लग रहा था ....अमर के मां बाप , देवयानी की बहन डैडी , काजल और उसके बच्चे सभी लक्ष्मी आने की खुशियां मना रहे थे । पर्व त्यौहार मना रहे थे ।
अमर और देवयानी का फ्रांस जाना और गेल - मरी और नन्हें बालक राॅबीन के साथ छुट्टियां मनाना.... मानवता का रिश्ता कायम करना... एक दूसरे के बच्चे का अभिभावक बनना... उसके बाद दोनों पति पत्नी का आस्ट्रेलिया जाना.....सब कुछ कितना प्यारा एहसास था ! ऐसा लगता था जैसे भगवान ने इनके जीवन में अब सिर्फ खुशियां ही खुशियां देनी है ।
लेकिन उन्हें क्या पता था कि खुशियों के पल क्षणभंगुर होते हैं । इंसान का असल साथी दुख ही होता है ।
देवयानी की मौत और उसके मौत से पहले उसकी भावभंगिमा मुझे आहत कर गई । सिर्फ छत्तीस साल की उम्र में ही स्वर्ग सिधार गई । लेकिन मुझे खुशी है कि वो अपनी मृत्यु से पहले तक एक जिंदादिल इंसान बनकर रही । छोटी सी उम्र में ही वो सब हासिल की जो उसने ख्वाइश की थी । मान सम्मान , धन दौलत , अच्छी नोकरी , अच्छा हसबैंड , एक प्यारी बच्ची , कुछ सेक्सुअल फैंटेसी , विदेश भ्रमण , अच्छी बहन , अच्छे सास ससुर , काजल जैसी फ्रैंड , दोस्त जैसे पिता....सब कुछ मिला उसे ।
अमर के डैड की मृत्यु भी हार्ट अटैक की वजह से हो गई और कारण कहीं ना कहीं देवयानी की आकस्मिक मौत ही रही होगी ।
इनकी भी उम्र अभी मरने की नहीं थी । दुःख तो बहुत होता है लेकिन हम और कर भी क्या सकते हैं ! मौत ऊपर वाले के हाथ में होता है । नशेड़ी भंगेडी को सौ साल जीवन दे दे और जिसने कभी नशा या खराब भोजन ही नहीं किया हो उसे अल्पायु में ही उठा ले !
आज ही मैंने कोमल रानी के एंटरटेनमेंट थ्रिड पर सुर्यकांत निराला जी के लिए एक पोस्ट किया है । तीन वर्ष की आयु में उनकी मां का देहांत हो गया । बीस वर्ष की आयु में पिता का छत्रछाया उठ गया । प्रथम विश्व युद्ध के समय भीषण महामारी की वजह से उनकी पत्नी , बेटी , भाई , भाभी और चाचा का निधन हो गया । आर्थिक स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब । फिर भी आजीवन लोगों की मदद करते रहे और अपने दर्द भरी कविताओं से हमारे आंखों में पानी लाते रहे ।
प्रेरणा देती है ऐसे महापुरुष की जीवनी।
सभी अपडेट्स बहुत ही सुन्दर थे अमर भाई । यह ऐसी कहानी है जहां अब तक दुःख ही ज्यादा देखा है मैंने ।
हिंदी आप की तो बेहतरीन है ही ।
अगर हम अपनी भावनाएं किसी अन्य भाषा में व्यक्त करते हैं तो वो ह्रदय से नहीं बल्कि दिमाग से व्यक्त होता है जिसमें आपकी भावनाओं की मृत्यु हो जाती है । अपनी मातृभाषा और अपनी मिट्टी से हमेशा जुड़े हुए रहना चाहिए ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट एंड
जगमग जगमग ।
Sirf 4 update padhna baki hai..Ek gamble khel diya aap ne apne store me. Ek aisa classical film bana diya jo bahut mushkil se hi hit hoti hai.हाँ - यही! "क्या बीत रही होगी अमर पर"?
इस घटना के बाद की कहानी का बहुत कुछ इसी बात पर निर्भर करता है।
इस प्रकार की लयबद्ध दुर्घटनाओं के बाद कोई सामान्य प्रकार से कैसे जिए? कैसे रहे?
अत्यंत कठिन और असंभव के बीच का जीवन हो गया होगा अमर का। है कि नहीं?
सही बात है। दुःख तो अपना साथी है - सुख है एक छाँव ढलती।
इसीलिए आवश्यक है कि प्रतिपल होने वाली छोटी छोटी खुशियों को समेट लिया जाए। जिससे किसी बड़ी ख़ुशी का मुँह न ताका जाए।
हाँ - यह तो पूरी तरह से सत्य है। गैबी के मुकाबले, देवयानी जी का जीवन अधिक संपन्न बीता।
कोई आस अधूरी न रही। गैबी की कई सारी आस अधूरी रह गईं। गैबी का जीवन पढ़ कर दुःख अधिक होता है।
देवयानी का पढ़ कर लगता है कि वाह, क्या बढ़िया लाइफ रही!
जी भाई - यह तो न जाने कितना ही देखा है मैंने। जो साफ़ सुथरा जीवन व्यतीत करता है, उसको कैंसर जैसी बीमारियों से जाते देखा मैंने।
और जो रोज़ बोतल की बोतल धकेल जाते हैं, वो बिंदास जी रहे हैं। क्या कैंसर!
निराला जी तो हिंदी रचनाओं के ऐसे मूर्धन्य हस्ती हैं, कि उनके सम्मान में कुछ लिखना भी एक तरह से हिमाकत है!
जी भाई! अमर के जीवन में दुःख तो बहुत ही है।
घाटे का सौदा बनता जा रहा है। बेचारा अभी तक टूटा नहीं है, शायद वही एक गनीमत है!
कहाँ भाई? बस, थोड़ा बहुत लिखने का प्रयास करता रहता हूँ!
और कहीं कोई पढ़ने से रहा। तो बस, यहीं अपनी हिंदी में लिखने की तमन्ना पूरी कर रहा हूँ।
यह बात तो आपकी पूरे सोलह आने सही है।
लेकिन कैसा दुर्भाग्य - आज कल लोगों को न हिंदी पढ़ना आता है, और न ही लिखना!
मातृभाषा मात्र भाषा बन कर रह गई है।
महा दुर्भाग्य तो यह है कि स्सालों को अंग्रेजी भी पढ़नी लिखनी नहीं आती।
धोबी का कुत्ता, न घर का, न घाट का!
बहुत बहुत धन्यवाद मित्र!
आप बहुत तेजी से कहानी के साथ ताल में ताल मिलाने वाले हैं।![]()
Wrote something... Not very satisfied.wen update avsji?![]()
अगर चार ही अपडेट बचे हैं तो फिर कुछ बचा नहीं।Sirf 4 update padhna baki hai..Ek gamble khel diya aap ne apne store me. Ek aisa classical film bana diya jo bahut mushkil se hi hit hoti hai.
But kya hi kahani likha hai aap ne ! Mughe bahut bahut jyada pasand aaya. Sunday ko tippani karta hu.
प्रकरण - 5 अंतराल
अनुभाग - 5.2 स्नेहलेप
अनुभाग - 5.3 पहला प्यार
इस बार हमने अमर का नहीं , सुनील और कुसुम के बीच पनपते हुए प्रेम कहानी को पढ़ा । एक ऐसी प्रेम कहानी जो लीक से कहीं हटकर थी । उम्र का लम्बा गैप था दोनों के बीच ।
वैवाहिक सम्बन्ध उम्र के मोहताज नहीं होते । महत्वपूर्ण यह है कि दोनों एक दूसरे को कितना समझते हैं और कितना आदर करते हैं । दोनों का एक दूसरे के प्रति कैसा व्यवहार है । दोनों एक दूसरे की गलतियों की जगह खूबियों पर कितना ध्यान देते हैं ।
हमारा भारतीय समाज, संस्कृति इस बात का उदाहरण है कि सम्बन्धों का सफल होना उम्र से ज्यादा आपसी स्नेह और रवैया पर निर्भर करता है ।
यह सही है कि प्रेम जातीय, धार्मिक , आर्थिक, सामाजिक और उम्र के बंधन मे नही बंधा होता । लेकिन फिर भी एक सफल दाम्पत्य जीवन के लिए कुछ मापदंड भी तय किए गए हैं ।
चूंकि यहां बात उम्र की है इसलिए इस पर ही विचार करते है । भारतीय समाज मे शादी-ब्याह की न्यूनतम उम्र लड़कियां की 18 और लड़कों की 21 साल निर्धारित की गई है । लड़कियां 12 -14 उम्र मे प्यूबर्टी पर पहुंच जाती है । वो लड़कों से पहले मैच्योर होती है । जबकि लड़के 14-17 साल मे प्यूबर्टी तक पहुंच पाते है ।
महिलाओ पर हार्मोंस की वजह से उम्र का जल्द असर होने लगता है। अगर पति पत्नि एक उम्र के होंगे तो पत्नि, पति से ज्यादा बुढ़ी दिखेंगी।
इसके अलावा रिस्पेक्ट की फीलिंग्स, एक दूसरे के प्रति आकर्षण, सेक्सुअल एक्टिविटी, संतान जननोत्पति की क्षमता वैगेरह बहुत से ऐसे कारण है जिसकी वजह से हम कह सकते हैं कि लड़कियों की उम्र लड़कों से कम होनी चाहिए।
शायद किसी रिसर्च मे यह लिखा हुआ था कि अगर लड़का और लड़की के उम्र मे 20 साल का गैपिंग हो तो 95% शादी-ब्याह टूट जाया करती है। हमारे यहां 1-5 साल का उम्र का अंतराल शादी-ब्याह के लिए परफेक्ट माना गया है।
वैसे तो पेज थ्री मे हम सेलीब्रेटी के मैरिज के बारे मे अक्सर पढ़ते आए हैं। दस- पन्द्रह साल तो आम बात है कुछ दिनों पहले 20 - 26 सालों तक का भी अन्तर देखा है। कहीं लड़का बहुत ही ज्यादा उम्र का है तो कहीं लड़की ज्यादा उम्र की है।
सुनील के प्रेम पर जरा भी संदेह नहीं है लेकिन इस बात को स्वीकार करने मे भी झिझक नही है कि इन दोनों की शादी मे दाम्पत्य जीवन का सुख लम्बे समय तक का भी नही है।
कहानी कमर्शियल ना होकर क्लासिकल ज्यादा लगा मुझे। और यह हमे पता ही है कि क्लासिकल के रीडर या दर्शक एक सीमित वर्ग मे होते है।
ऐसा जोखिम उठाना एक गेमब्ल ही तो है। ऐसा ही एक रिस्क राज कपूर जी ने मेरा नाम जोकर फिल्म बनाकर लिया था और ऐसा ही गेमब्ल यश चोपड़ा साहब ने लम्हे बनाकर लिया था।
दोनों ही मूवी अव्वल दर्जे की थी। क्लासिकल लव स्टोरी थी। समीक्षक द्वारा भरपूर सराही गई फिल्म थी लेकिन सफलता के पैमाने पर असफल करार कर दी गई।
दर्शक इस बात को पचा ही नही सके कि एक कम उम्र का लड़का अपने ही महिला शिक्षक से प्रेम करने लगा।
एक नायक अपने सपनो की रानी के बेटी से ही प्रेम कर बैठा।
इस कहानी मे आप ने वैसा ही शमां बांधा है और उसी कलात्मक सौंदर्य से हमे अभिभूत किया है।
अगर प्रेम का अंतिम पड़ाव शादी है
तो प्रेमी युगल के बीच शारीरिक आकर्षण एंव वासना स्वभाविक ही कहा जाएगा।
सुमन जी की अभी इतनी भी उम्र ज्यादा नही हो गई है कि वो अपनी शारीरिक भूख ही महसूस न कर सकें। मुझे तो लगता है वो अभी भी चार पांच संतान उत्पन्न कर सकती है।
एक वैधव्य का जीवन व्यतीत करना किसी भी औरत के लिए एक अभिशाप के समान है।
मुझे ताज्जुब होता है कि आप के दोस्त के जीवन मे इतने सारे ट्विस्ट आए हुए हैं और अगर यह सब वास्तव मे सत्य है तो इसमे कोई शक नही कि उनकी कहानी दुनिया की अनूठी कहानियों मे से एक है।
इन अनुभाग मे अमर का कोई ज्यादा महत्वपूर्ण रोल नही था। काजल, लतिका और आभा का रोल अधिकांशत: सहायक किरदारों के रूप मे रहा। पुरी कहानी सुनील और सुमन जी पर ही केंद्रित रहा।
इन अनुभाग मे कुछ चीजें खटका भी। सुनील का अमर की मां को सुमन और दुल्हनिया के नाम से संबोधित करना। मुझे लगता है कि उसे सुमन ना कहकर सुमन जी के नाम से संबोधित करना चाहिए था। वो उम्र मे और तजुर्बे मे उससे बहुत आगे है। जब तक वो खुद उसे उनके नाम से संबोधित करने के लिए ना कहें तब तक सुनील को सुमन जी कहकर ही सम्बोधित करना चाहिए। एक पति भी नई नवेली दुल्हन से शुरुआत मे पुरी तरह खुल नहीं पाता।
इसके अलावा यह पुरा अनुभाग चूंकि सुमन और सुनील पर केन्द्रित था अत: यह अनुभाग अमर के नजरिए से नहीं होना चाहिए था। अच्छा होता यह थर्ड पर्सन या लेखक के प्वाइंट आफ भिव से लिखा गया होता।
ऐसा होने से सुमन और सुनील के अंतरंग पल और भी खुलकर लिखा जा सकता था।
मुझे यह कहानी और आप के लिखने का स्टाइल बहुत ज्यादा पसंद आया।
कहानी चूंकि रोमांस कैटेगरी मे है इसलिए रीडर की संख्या न्यूनतम है।
जबकि कहानी के अंदर सेक्सुअल एक्टिविटी की कमी भी नही है।
आप की लेखनी देखकर साफ पता चलता है कि इस क्षेत्र मे काफी एक्सपीरियंस है आपका।
ग्रेट वर्क भाई।
आउटस्टैंडिंग।
सभी अपडेट बहुत बहुत खुबसूरत थे। और जगमग जगमग भी।
वेटिंग नेक्स्ट।
Absolutely main aap ke kahani ke saath saath chalunga.बहुत बहुत धन्यवाद संजू भाई जी!
कुसुम नहीं, सुमन! नामों में पर्यायवाची नहीं चलता! हा हा हा!
जी भाई!
इस बात से तो मैं कत्तई सहमत नहीं हूँ। अधिकतर शादियों में पति पत्नी के बीच ढेले भर का भी स्नेह नहीं होता।
लोग शादियां निभाते हैं - माँ बाप के कारण, समाज के कारण, अपनी इमेज बचाने/सम्हालने के कारण। बहुत कम दम्पतियों में स्नेह/प्रेम होता है!
प्रेम और शादी में अंतर है। बहुत बड़ा अंतर।
यह व्यवस्था हमारे यहाँ ही है। अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड इत्यादि में लड़का लड़की की उम्र में शादी के समय अंतर नहीं है।
अट्ठारह के होते ही शादी कर सकते हैं। कुछ अपवादों में उससे भी कम उम्र में कर सकते हैं।
अच्छी बात यह है कि आज कल लड़की की उम्र अक्सर अधिक देखने को मिल रही है - सेलिब्रिटी शादियों में।
पहले तो साठ साल के बुड्ढों का जैसे अपने से चालीस साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ रोमांस सामान्य सी बात थी।
प्रियंका - निक, अर्जुन - मलाईका, कैटरीना - विकी, बिपाशा - करन इत्यादि ने कम से कम बड़ी उम्र की दुल्हनों को थोड़ा सा सामान्य तो बनाया है।
लेकिन अभी भी समाज में इसकी स्वीकृति नहीं है। न जाने क्यों।
कभी कभी सुखी जीवन के दो पल, एक नीरस जीवन से अधिक मूल्यवान होते हैं।
मेरी कहानियों के पाठक वैसे ही बहुत सीमित हैं। अम्मा चोदने की कहानी लिखूं तो न जाने कितने ही दुम हिलाते चले आएँगे।
लेकिन वो सब मैं लिख नहीं पाता। उसका खामियाज़ा उठाना पड़ता है।
एक के बाद एक फ्लॉप कहानियों को लिखने का एक रिकॉर्ड है मेरे पास! हा हा हा हा हा हा!
हाँ - अब समझा आपके पहले वाले कमेंट को!
वैसे, अगर मैं बेटे द्वारा माँ के साथ सम्भोग की कहानी लिखूँ तो तुरंत हिट हो जाएगी कहानी!
ऐसी छिनाल जनता है इस फोरम पर!
ऐसा महसूस करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
मेरे रेगुलर रीडर्स भी कहानी छोड़ कर भग गए! हा हा हा हा!
नहीं - प्रेम का आखिरी पड़ाव शादी नहीं है। शादी का प्रेम से बहुत कम ही लेना देना है।
शादी बस एक सामाजिक सरोकार है, जिसमें एक जोड़े को साथ रहने की, अपने संसार की सृष्टि करने की सामाजिक अनुमति मिलती है।
हाँ। यह तो प्रकृति प्रदत्त नेमत है।
तैंतालीस की हैं सुमन इस समय। इसलिए एक दो संतानें करने की क्षमता तो है।
शारीरिक भूख तो रजोनिवृत्ति के बाद भी रहती है।
यह एक बात भारतीय समाज के लिए सत्य है। विधवा का जीवन इतना कठिन होता है, कि एक समय में स्त्री, जिसका पति मृत हो जाता, अपने पति की लाश के साथ ही जल जाना उचित समझती थी। हाँ - आज कुछ परिस्थितियाँ बदली हैं। लेकिन फिर भी, बिना किसी साथी के, इतना लम्बा जीवन कैसे व्यतीत करे कोई?
बहुत सी बातें सत्य हैं, और कुछ बातें गल्प! लेकिन अमर की कहानी वाकई अनूठी है।
उनके जीवन में बदलाव आएगा - लेकिन यह एक अंतराल है। बहुत सी बातें होने वाली हैं उनके साथ।
आपकी सुविधा के लिए बता दूँ, अमर भाई साहब, और नई भाभी जैसा युगल मैंने अभी तक नहीं देखा! एक दूजे के लिए बिलकुल!
बड़े स्नेही हैं दोनों! मुझे और अंजलि को इतना प्यार मिला है उनसे कि क्या कहूँ!
जी! यह बात सही है। मैंने बहुत पहले भी लिखा था कि हाँलाकि कहानी अमर पर ही एंकर्ड है, लेकिन वो कहानी के "हीरो" नहीं हैं।
समय समय पर कहानी के अन्य किरदार प्रमुखता से सामने आते हैं।
इस बात के लिए धन्यवाद। मैंने भी इस बारे में बहुत सोचा। लेकिन नाम के बाद "जी" लगाना, बहुत औपचारिक हो जाता है।
एक व्यक्ति जिसने अपने जीवन में इतना बड़ा दाँव खेल दिया हो कि उसके जीवन में उथल पुथल मच जाए, उसको ऐसी औपचारिकताओं की क्या आवश्यकता?
नाम से बुलाना अपनापन है, दुल्हनिया कह कर बुलाना एक अधिकारबोध और स्वीकृति! मुझे ठीक लगा, इसलिए मैंने वैसे लिखा - पाठक अपना अपना समझ लें!![]()
यह बहुत सटीक अंतर्दृष्टि दी आपने! आगे ख़याल रखूँगा।
यह विचार आया नहीं कभी!
जर्रानवाज़िश का बहुत बहुत शुक्रिया संजू भाई!
हा हा हा हा! न्यूनतम से भी न्यून है! हा हा हा हा हा हा!
रोमांस का मतलब 'सेक्स न होना' कब से होने लगा?
फिर तो कोई अन्य केटेगरी ही खोलनी पड़ेगी दादा! हा हा!
अरे! हा हा! ऐसा क्या लिख दिया मैंने?
बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी! अब आप कहानी के साथ चल सकेंगे!
शीघ्र ही अगला उपडेट आएगा - आज रात या फिर कल।
यथाशीघ्र अगला उपडेट डालूँगा। ऐसे भी दोएक ही पाठक हैं। वो इंतज़ार कर लेंगे!![]()
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