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wen update avsji?
Absolutely main aap ke kahani ke saath saath chalunga.
Nirash hone ki jarurat nahi hai...khud par Biswas kijiye. Kisi dusre se certificate line ki koi bhi jarurat nahi hai.
Waise Harshit bhai ki story par bhi 3-4 log hi hai aur IP madam ke story par bhi same etne log hi hai.
Jinme Leon, Death king aur mere alawa kabhi kabhar aur koi reader darshan de deta hai.
Yug purush ki kahani dekhiye..readers hai hi nahi....unhone to yaha tak kah diya tha ki mere liye sirf 2 readers hi kafi hai....main aur Harshit bhai.
Aap bindash likhiye. Main last tak aap ke saath khada rahunga.
अंतराल - पहला प्यार - Update #13
अगले दिन :
आज सुबह अपने कमरे के दरवाज़े पर दस्तक सुन कर ही माँ की नींद खुली। उनींदी सी ही उठ कर जब बाहर आईं तो सुनील को देख कर थोड़ा अचकचा गईं और शर्मा भी गईं। देर से नींद खुली थी उनकी। देर से मतलब - यह उनके सुबह की दौड़ शुरू करने का समय था। मतलब - सामान्य दिनों से कोई पैंतालीस मिनट देर। वो भी सुनील ने उठाया, इसलिए। शरीर में मीठा मीठा सा दर्द हो रहा था - शायद आलस्य के कारण, या फिर बहुत सुकून की अनुभूति कर के सोने के कारण!
माँ के उनींदे सौंदर्य का अवलोकन कर के पहले तो सुनील उसी में खो गया, लेकिन फिर अपने को सम्हालते हुए बोला, “आज दौड़ने नहीं चलना है?”
तब तक काजल जाग कर अपने कमरे से बाहर आ गई थी। शायद सुनील की सवेरे की खट पट सुन कर उठ गई थी, और उसको चुप कराने के लिए बाहर आई थी। वैसे भी काजल और मैं रात में देर से ही सोए थे, इसलिए नींद अभी भी बाकी थी।
“अरे क्या हमेशा दौड़ाता रहता है उसको!” काजल उनींदे और अलसाए हुए स्वर में बोली, “एक दिन थोड़ा आराम कर लेगी, तो क्या हर्ज़ा है? तू भी सो जा!”
सुनील ने अपनी अम्मा को देखा - उनींदी सी, अलसाई हुई, और थोड़ा उखड़ी हुई! हाँ - काजल की बात तो सही है, एक दिन अगर न दौड़े तो क्या हो जाएगा? शरीर को भी व्यायाम से यदि एक दो दिनों का आराम दे दिया जाए, तो व्यायाम का लाभ मिलता है।
“ठीक है अम्मा! तुम सो जाओ!” उसने काजल से कहा; काजल उसकी बात सुन कर वापस अपने कमरे में चली गई। फिर वो माँ की तरफ़ मुखातिब होते हुए बड़े स्नेह से बोला, “तुम भी सो जाओ, दुल्हनिया! नहीं जाते आज कहीं!”
माँ के अलसाए हुए से होंठों पर एक कम्पन आ गया। कल रात की बातें याद आ गईं। वो कुछ कहतीं, लेकिन कह नहीं सकीं। बस इतना ही बोलीं,
“और आप?”
“कुछ नहीं! बैठता हूँ! शायद कुछ काम करूँगा। नहीं तो न्यूज़पेपर पढ़ूँगा!”
माँ, कुछ सोच कर, “मैं आती हूँ, थोड़ी देर में!”
“अरे कोई बात नहीं! एक दिन ब्रेक लेने से सेहत खराब नहीं होने वाली!”
“नहीं! वो बात नहीं। हमेशा का... आजल [काजल का नाम लेते हुए माँ हिचक गईं] ही घर का सब काम करती है। आज मैं कर लेती हूँ!”
सुनील मुस्कुराया, “मैं हेल्प करूँ?”
माँ केवल मुस्कुराईं - कुछ बोली नहीं।
**
एक बेहद ही लम्बे अंतराल के बाद मुझे सेक्स करने की इस तरह की अनुभूति हुई थी। एक तरह से विरक्ति हो गई थी सेक्स से। लेकिन कल रात काजल के साथ सम्भोग करने के बाद मुझे एक अनोखी तृप्ति महसूस हुई थी! बहुत दिनों के बाद आज मेरे मन को ऐसी शांति महसूस हो रही थी। कल रात पहली बार सेक्स कर के, थोड़ा सुस्ताने के बाद, दोनों बच्चों को मेरे कमरे में ही सोता हुआ छोड़ कर हम काजल के कमरे में चले गए थे, जहाँ काजल और मैंने एक बार फिर से सम्भोग किया। इसीलिए कल रात में सोने में इतनी देर हो गई।
सुनील को समझा कर जब काजल वापस बिस्तर में आई, तब उसकी आहट सुन कर मैं कुनमुनाया।
“उम्म्म?”
“कुछ नहीं! सो जाओ!”
“क्या हुआ?” मैं आधी नींद में बड़बड़ाया।
“कुछ नहीं! सुनील खटपट कर रहा था। बस इसीलिए!”
“हम्म्म!”
शरीर इतना आराम से था कि मेरा लिंग भी उत्तेजित था। सुबह सुबह वैसे भी लिंग में उत्तेजना रहती थी है, जिसको मॉर्निंग वुडी के नाम से जाना जाता है। काजल ने उसको पकड़ कर सहलाते हुए थोड़े छेड़ने वाले अंदाज़ में कहा,
“क्या इरादे हैं जी?”
“नेक तो बिलकुल भी नहीं!” मैं नींद से थोड़ा बाहर आ गया था।
“दो बार करने के बाद भी?”
“हा हा!” मैंने हाथ बढ़ा कर काजल का एक स्तन अपने हाथ में पकड़ लिया, “एक टाइम था जब तीन चार बार कर लेता था, तब भी मन नहीं भरता था!”
“अब भी क्या हो गया? करो न तीन चार बार!” काजल ने मुझे उकसाया, “आज ऑफिस मत जाओ! यहीं रह जाओ - छुट्टी! खूब मज़े करेंगे!”
“हा हा हा!”
“और नहीं तो क्या!” उसने कहा और अपनी ब्लाउज के बटन खोलने लगी।
कुछ ही देर में काजल भी मेरी ही तरह पूर्ण नग्न हो कर मेरे बगल लेटी हुई थी। मेरा पूर्ण स्तंभित लिंग अभी भी उसके ही हाथ में था, और वो उसको बड़े प्रेम से सहला रही थी।
“क्या हुआ काजल?”
“कुछ नहीं!”
“कुछ तो है।”
“उम्म... हाँ - शायद है! बताऊँगी!” कह कर उसने मेरे लिंग को अपने मुँह में भर लिया, और मुझे एक असंभव से मुख-मैथुन का सुख देने लगी। कोई दस मिनट के बाद मैं स्वर्ग की सैर कर रहा था, और मेरे लिंग का लावा निकल कर काजल के मुँह में समां रहा था। गले से संतुष्टि की सिसकारियाँ छूट रही थीं। और काजल बिना किसी हिचक के मेरे वीर्य को निगलती जा रही थी।
कुछ देर सुस्ताने के बाद मैंने कहा, “अब तुम लेटो, मैं करता हूँ!”
“अरे अमर,” उसने मुझको चूमते हुए कहा, “हर बार लेन देन करने की ज़रुरत नहीं है! कल दो बार हो गया, मैं सुखी हो गई! बस, इतना ही चाहिए था!”
“सच में?”
“हा हा! हाँ! सच में!”
“ओके! अब बोलो, क्या कहना चाहती थी?”
“कुछ ख़ास नहीं! बस यही कि इस बार बच्चों की छुट्टियाँ शुरू होते ही कहीं घूम आते हैं! कितने महीने हो गए न!”
“हाँ काजल! सच है। मैं ही काम में इतना बिजी हो गया था कि तुम सभी को घुमाने भी नहीं ले जा पाया!”
“वो सब मत सोचो! बीती बातें हैं सब। आगे की बात देखते हैं।”
“कैसे न सोचूँ? तुमने क्या कुछ नहीं किया है हमारे लिए!”
“अच्छा जी! तो अब आप ऐसी बातें करेंगे?” काजल ने मुस्कुराते हुए कहा, “परिवार में हम एक दूसरे के लिए नहीं करते कुछ?”
“हाँ! परिवार तो तुम हो हमारी! बस, मेरे साथ शादी नहीं करना चाहती! वैसे तो परिवार हो!”
“हा हा! साहब जी, कभी अपने अलावा दीदी की भी सोच लिया कीजिए!”
“हाँ काजल। ये बात तो सही कही तुमने। न जाने कैसे माँ और मैं दूर हो गए हैं। पहले कितना खुल कर हम दोनों बातें कर लेते थे। बहुत खुश रहते थे! लेकिन अब! न जाने क्या हो गया है! न जाने कैसे हो गया है।”
“कुछ नहीं हुआ है। माँ और बेटे में क्या दूरी? सुनील कितने दिनों बाद वापस आया - लेकिन मुझे कभी ऐसा लगा ही नहीं कि हम दोनों में कोई दूरी है!”
“क्या सच में काजल?” मुझे यह सुन कर अच्छा लगा, “यह तो बहुत अच्छी बात है।”
“हाँ न! और तो और, उसको अभी भी मेरे दूध का चस्का है!” काजल ने चुहल करते हुए कहा, “समझाना पड़ेगा कि अब उसकी उम्र अपनी माँ का नहीं, बीवी का दूध पीने की है!”
“हा हा हा हा हा! तुम भी न काजल! माँ का दूध पीने की भी भला कोई उम्र होती है?”
“वो तो है! तुम भी लग जाओ दीदी के सीने से - पुराने समय जैसे! सारी दूरियाँ, सारे गिले शिकवे दूर हो जाएँगे!” काजल मेरे बालों को बिगाड़ते हुए बोली, “माँ है वो! अपने बच्चों के लिए उसकी ममता की कोई सीमा नहीं होती!”
मैं मुस्कुराया, “शायद ऐसा करूँ! वैसे, सुनील मेरे मुकाबले कितना सरल है! कितनी आसानी से उसने सबको अपना मुरीद बना लिया है! पहले लगता था कि वो कितना सीरियस लड़का है!”
“तुम भी उतने ही सरल हो। सुनील अभी संसार के जंजाल में नहीं फँसा है। और तुम, बस काम में व्यस्त हो और कुछ नहीं! इन छोटी छोटी बातों से रिश्तों के गाढ़ेपन में अंतर नहीं आता!”
मैं मुस्कुराया - काजल की सरलता, मुझको समझाने का उसका तरीका... सब कितना सरल, कितना सटीक था, “थैंक यू काजल! यू आर माय बेस्ट! तुम हमेशा से मेरी एंकर रही हो!”
“आगे भी रहूँगी! इस परिवार की ख़ुशियों से बढ़ कर मेरे लिए और कुछ भी नहीं!”
“यह भी कोई कहने वाली बात है।”
“तो आज छुट्टी मार लूँ?”
“हाँ! बिलकुल। यहीं रह जाओ आज! थोड़ा आराम कर लो। दीदी से बात करो। बच्चों के संग खेलो!”
“ठीक है!” फिर कुछ याद करते हुए, “अच्छा, कल माँ ने खाना खा लिया था?”
“हाँ! सुनील ने उनको खिला दिया था!” काजल ने बताया, “रात में जब पानी पीने उठी, तो देखा कि किचन में खाली प्लेट्स रखी हुई थीं!”
मैंने हँसते हुए कहा, “अमेजिंग है सुनील! हमारे कहने पर माँ ने नहीं खाया, लेकिन उसके कहने पर मान गई!”
“है न अच्छी बात?” काजल मुस्कुराई, और मेरा हाथ पकड़ कर, मुझे अपनी ओर खींचते हुए बोली।
“बहुत!”
“कभी कभी सोचती हूँ कि दीदी के लिए सुनील जैसा ही कोई मिल जाए!”
“क्या? हा हा हा हा! तुम भी न काजल!”
“क्यों? ऐसा क्या कह दिया मैंने?”
“काजल! छोटा है वो!”
“हाँ तो? तुम भी तो हो! उम्र ने तो तुमको कभी नहीं रोका!”
“हाँ वो बात भी है!” मैं कहते कहते हठात रुका, “कुछ है जो तुम मुझे बताना चाहती हो?”
“नहीं! क्यों? कुछ भी नहीं!” काजल ने सामान्य स्वर में कहा, और फिर आगे जोड़ा, “अच्छा, चलो - जो कुछ करना है, कर लो जल्दी से! दोनों लाडो रानियाँ उठने वाली होंगी।”
उसकी बात पर मैं मुस्कुराया, और उसको अपने में समेटने लगा।
**
“दुल्हनिया,” सुनील ने रसोई में प्याज काटते हुए दबी हुई आवाज़ में माँ से कहा, “यहाँ कैसा अच्छा लगता है न! बँगला है, बगीचा है, ढेर सारे फूल पौधे हैं! वहाँ, मुंबई में तो सब बदल जाएगा! वहाँ कहाँ ऐसा बाग़ बगीचा मिलेगा! इस घर को बहुत मिस करोगी न?”
“क्यों? मैं क्यों मिस करने लगी?” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।
“अरे!” सुनील ने चौंकने की एक्टिंग करते हुए कहा, “अपने नए घर नहीं चलोगी?”
“नया घर? पर कहाँ?”
“मुंबई में! मेरे साथ! हम तुम एक साथ? नहीं चलोगी?”
“मैंने ‘हाँ’ तो नहीं कही!” माँ ने शरमाते हुए कहा।
“तुमने ‘न’ भी तो नहीं कही!” सुनील ने खींसे काढ़ते हुए कहा।
तब तक प्याज का तीखापन उसकी आँखों में चुभने लगा, और उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे। उसके कारण नाक भी बंद हो गई - सो अलग।
“और इतनी सी ही बात पर आप रोने लगे?” माँ ने सुनील की टाँग खींची। अचानक ही चीज़ें सामान्य होने लगीं।
“दुल्हनिया, अगर तुम साथ हो तो कभी नहीं!” सुनील ने बड़ी संजीदगी से कहा, “और वैसे भी ये ख़ुशी वाले आँसू हैं!”
“ख़ुशी के?”
“हाँ न! अभी प्याज के पकौड़े नहीं बनेंगे इनके?”
“अच्छा जी? तो आज आप न तो दौड़ेंगे ही, और तो और, ऊपर से पकौड़े भी खाएँगे?” माँ ने उसको छेड़ा, “ऐसे मस्ती करेंगे तो तोंद निकल आएगी आपकी!”
“अय्यो! गड़बड़ हो जाएगा फिर तो! ऐसी सेक्सी और सुन्दर सी बीवी का हस्बैंड कोई तोंदू! नहींईईई!” सुनील ने एक्टिंग करी।
इस बात पर माँ की हंसी निकल गई। उतने में काजल भी रसोई में आ गई।
“क्या हो गया?” काजल ने उनके हंसी मज़ाक में शामिल होते हुए कहा, “हमको भी मालूम पड़े!”
“कुछ नहीं अम्मा! मैंने इनसे कहा कि आज प्याज के पकौड़े बनाते हैं, तो ये कह रही हैं कि पकौड़े खा कर मेरी तोंद निकल आएगी!”
“हा हा हा हा! सही तो कह रही है। वैसे, शादी के पहले सभी लड़के स्लिम ट्रिम रहते हैं। लेकिन शादी होते ही अपनी बीवी का प्यार पा कर मोटे हो जाते हैं!” काजल भी बोलने लगी, “वैसे थोड़ी सी तोंद अच्छी लगती है। सोचो, कभी तेरी बीवी तेरे पेट पर सर रख कर सोना चाहे, तो?”
“हा हा हा हा! अम्मा! तुम्हारा प्लान भी न! कितना आगे का होता है!” सुनील हँसते हुए बोला, “वैसे, अम्मा, सुना था कि शादी के बाद तो बीवियाँ मोटी होती हैं!”
“मार खाएगा तू अब!” काजल ने कहा, और जा कर माँ को अपने आलिंगन में भर कर उनका माथा चूम लिया।
काजल माँ का लाड़ ऐसे करती नहीं थी, इसलिए माँ को भी आश्चर्य हुआ।
काजल कह रही थी, “खा खा कर मोटाने, और एक बच्चे को अपनी कोख में पालने में अंतर होता है बच्चू! लेकिन तुमको क्या? तुमको थोड़े ही करना है यह सब! अपनी बीवी से पूछना!”
तब तक मैं भी आभा और लतिका को अपनी गोदी में (मतलब एक एक हाथ में लादे) साथ में उठाए हुए रसोई पहुँच गया।
“अरे वाह! आज तो पूरी मण्डली ही लगी हुई है यहाँ!”
मुझे देख कर माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, “अरे अमर! आज ऑफिस नहीं जाना है बेटे?”
“नहीं माँ! सोचा कि आज आराम कर लेता हूँ!”
“बहुत अच्छा सोचा!” माँ ने काजल की तरफ़ एक अर्थपूर्ण दृष्टि डालते हुए कहा, “आज सभी साथ में रहेंगे!”
काजल माँ को अपनी तरफ़ देखते हुए देख कर मुस्कुराई। जब परिवार में प्रेम रहता है, तभी सुख मिलता है!
“हाँ भैया! आज खूब मज़े करते हैं!” सुनील बोला।
मज़े की बात सुन कर लतिका के कान तुरंत खड़े हो गए, “हाँ, मैं भी छुट्टी ले लेती हूँ!”
“ऐ!” काजल ने उसको आँखें दिखाते हुए कहा, “चुपचाप स्कूल जा! दो दिनों में छुट्टी होने वाली है, फिर पूरे दो महीना हमारी नाक में दम करेगी तू। कम से कम दो दिन तो चैन मिले!”
अपनी अम्मा की बात सुन कर लतिका का मुँह लटक गया! मैंने उसको ऐसे देखा तो उसको चूमते हुए कहा, “कोई बात नहीं बेटा! आप दो और दिन स्कूल चली जाओ! इस बीच हम छुट्टियों में घूमने जाने का कोई बढ़िया सा प्लान करेंगे! ओके?”
“जी! ठीक है, अंकल!” वो खुश होते हुए बोली।
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बच्चों को तैयार कर के, नाश्ता करा कर, और स्कूल के लिए भिजवा कर मैं माँ के कमरे में आया। आज सवेरे से ही माँ बहुत प्रसन्न लग रही थीं, और मुझको देख कर जब उन्होंने मुस्कान दी, तब मुझे वही, पुरानी वाली मुस्कान ही दिखाई दी। सच में - उनको ऐसे, खुले तरीके से मुस्कुराता देख कर कितने दिन बीत गए थे। आज बहुत सुकून हुआ!
“कैसी हो माँ?”
“बहुत अच्छी बेटे!” माँ ने अखबार को बिस्तर पर रखते हुए कहा, “मेरी चिंता मत किया करो! मैं बिलकुल अच्छी हो गई हूँ!”
मैं मुस्कुराया, “हाँ माँ! अब मैं भी यह कह सकता हूँ!”
“इधर आ! मेरे पास बैठ!” कह कर माँ ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने बगल मुझे बैठा लिया, “बहुत समय हो गया न! मेरे कारण तुमको, तुम सभी को बहुत तकलीफ हुई है!”
ये क्या कह दिया माँ ने? मेरे उनके लिए कुछ करने से मुझे क्या तकलीफ होने लगी भला?
“माँ, अभी आपने यह कह दिया। लेकिन अब आगे यह कभी मत कहिएगा! मुझे पालने में आपने क्या क्या तकलीफ सही है, क्या वो मुझे नहीं मालूम?” मैंने भावावेश में आ कर कहा, “और मैंने जो कुछ किया, वो बहुत कम है। मैं और भी बहुत कुछ कर सकता था, और भी बहुत कुछ करना चाहिए था! लेकिन मेरी ही कोशिश में कमी रह गई!”
“नहीं रे! ऐसे मत बोल! तू मेरा राजा बेटा है! सच में! तुमको देख कर गर्व होता है मुझे। तुम्हारी माँ होने का अभिमान होता है मुझको।” माँ ने मेरे बालों को सहलाते हुए कहा, “इतने दुःखों से घिरे होने के बावज़ूद तुमने हम सभी को सम्हाला! इतना सब बोझ तुम्हारे कन्धों पर है - उसके बावजूद! बेटा मिले, तो तुम्हारे जैसा! कुलदीपक!”
“कहाँ माँ! सब कुछ काजल ने किया है!” मैंने सर हिलाते हुए कहा, और फिर आगे जोड़ा, “और सुनील ने! कुछ बहुत अच्छे काम किए होंगे मैंने कभी जो काजल हमारी लाइफ में आई! सच में, वो कभी मुझे इस घर से अलग लगी ही नहीं।”
माँ ने मुझे ऐसे देखा कि जैसे वो कुछ कहना चाहती हों, लेकिन कुछ बोलीं नहीं।
“क्या हुआ माँ?”
“कुछ नहीं बेटा! तुम्हारी बात पर ही सोच रही थी।” माँ जैसे अपने शब्दों को नाप तौल कर कह रही थीं, “वो लोग हमसे अलग कहाँ हैं ही!”
“हाँ माँ! वही तो!” मैंने अपने मन की बात कह दी, “कुछ बहुत अच्छे काम किए होंगे कि काजल का साथ मिला!”
माँ ने एक गहरी साँस भरी, और फिर बात पलटते हुए बोलीं, “तुम बताओ बेटे, तुम कैसे हो?”
“मैं ठीक हूँ माँ,” मैंने एक गहरा निःश्वास भरते हुए कहा, “बस आपसे दूर हो जाने के कारण दुःखी हूँ! और कुछ नहीं!”
“ऐ बच्चे!” माँ ने मुझको अपने सीने में समेटते हुए कहा, “क्या हो गया तुमको? तुम मेरा अंश हो! तुम और मैं कैसे दूर हो सकते हैं? यह हो ही नहीं सकता! दुनिया की कोई भी शक्ति इस सच्चाई को झुठला ही नहीं सकती!”
“आई नो माँ! लेकिन पता नहीं माँ! मन में अच्छा नहीं लगता! और मन की बात सबसे सच्ची होती है!” मैंने पूरी संजीदगी और सच्चाई से कहा, “मुझे आपकी और केयर करनी चाहिए थी!”
“बेटू,” माँ ने बहुत दिनों बाद मुझे इस नाम से बुलाया, “मैंने तुमको समझाया तो! यह सब मत सोचो! तुमने मेरा बहुत केयर किया है। जितना तुम्हारे लिए पॉसिबल था, उससे कहीं अधिक! मुझे सच में तुम पर गर्व है। कितना राजा बेटा है मेरा! तुमने मेरे दूध की लाज रखी है। उसका सम्मान बढ़ाया है। इससे अधिक एक माँ को कुछ नहीं चाहिए!”
माँ ने कहा और मेरे सर को चूम लिया। माँ की बात भावनात्मक रूप से बड़ी भारी थी। मैंने भी माँ के स्तनों में मुँह छुपाए हुए उनको चूम लिया।
“अच्छा, अब ऐसे चोरी चोरी से अपनी माँ का दूध पियोगे?” माँ ने बड़े दुलार से कहा, “इस पर तो तुम्हारा अधिकार है बच्चे!”
उनकी बात पर मैं उनकी तरफ़ देख कर मुस्कुराया। माँ ने मेरे माथे को चूम लिया। काजल की बात याद हो आई। सच में - माँ के सीने से लग जाओ - क्या दूरी? क्या शिकवे? मैंने उनकी ब्लाउज के ऊपर से ही अंदाज़े से उनके एक चूचक को मुँह में ले कर चुभलाया।
“अरे मेरा बच्चा,” माँ ने मुझे दुलारते हुए कहा, “दूधू पीना भी भूल गया क्या?” फिर अपने स्तन से मुझे दूर करते हुए वो आगे बोलीं, “एक सेकंड!”
आगे जो उन्होंने किया वो कोई आश्चर्य वाला काम नहीं था। उन्होंने अपने ब्लाउज के बटन खोल कर अपने एक चूचक को मेरे मुँह में दे दिया। हे प्रभु! कितने साल बीत गए थे माँ के स्तनों का आशीर्वाद लिए! गुलाब की भीनी भीनी महक से मन आनंदित हो गया। जाहिर सी बात है, माँ के नहाने वाले साबुन का कमाल था यह! खैर, वो सब बिना वजह के डिटेल्स हैं। ख़ास बात यह थी कि माँ के स्तनों से लगने से मैं वाकई वापस उनसे जुड़ गया हुआ महसूस करने लगा। काजल बिलकुल सही थी - माँ और बेटे के बीच कोई दुराव हो ही नहीं सकता।
“याद रखो,” माँ बड़े स्नेह से, बड़ी कोमलता से बोलीं, “तुम अभी भी मेरे बेटे हो, और हमेशा रहोगे! मेरी ममता तुमसे अलग हो ही नहीं सकती कभी!”
कुछ देर माँ के स्तनों का पान करने के बाद जब मैं उनसे अलग हुआ तो बोला, “थैंक यू माँ!”
“चल, अपनी माँ को थैंक यू करेगा अब?”
“आपका आशीर्वाद है न माँ - कैसे न करूँ?”
“बारिश के लिए कभी थैंक यू बोलते हो?” माँ ने मेरे बालों को बिगाड़ते हुए कहा, “माँ का प्यार भी तो बारिश के समान होता है न! रिमझिम बरसता हुआ, सुख देता हुआ!”
माँ से बातों में जीतना कठिन होता था - है - उनको अपने पुराने वाले फॉर्म में वापस आता हुआ देख कर अच्छा लगा। ममतामई बात पर बहस कर के मैं उनकी बात की महत्ता को कम नहीं करना चाहता था। माँ वैसे भी गंभीर बातों को ऐसे नटखट और सरल तरीके से समझाती थीं, कि लगता भी नहीं था कि बात सीख गए! लेकिन उनकी सिखाई बातें आज तक मन के गहरे में बैठी हुई हैं। पिछले कुछ समय से उन्होंने चुप्पी साध ली थी - जैसे किसी विषय पर उनकी कोई राय ही न हो। लेकिन उनको ऐसे समझाते, हँसते - मुस्कुराते देख कर मेरे दिल में ठंडक पड़ गई।
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इन दोनों अपडेट्स को पढ़ाअंतराल - पहला प्यार - Update #14
बहुत दिनों बाद ऐसा कुछ हुआ था। माँ तैयार हो कर, स्वयं ही मंदिर जाने के लिए तैयार हुई थीं। मेरे लिए यह एक नई बात थी। आज मौसम सुहाना और सुन्दर था - थोड़े बादल घिरे हुए थे, और हलकी सी ठंडी बयार चल रही थी। उसी बयार के साथ सोंधी सोंधी महक आ रही थी - मतलब, कहीं पास ही बारिश हुई थी। मैं और सुनील बच्चों के साथ खेल रहे थे, और काजल घर के आवश्यक कार्यों में व्यस्त थी। आज का दिन बड़ा अच्छा बीता था - मुझे भी जिस आराम की आवश्यकता थी, वो मुझको मिल गया था। माँ के साथ अपने बिगड़े हुए सम्बन्ध को सुधारने के बाद मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था।
माँ आज बहुत खुश थीं। उनकी ख़ुशी के कई सारे कारण थे। जीवन के मुश्किल भरे सफ़र में उनके एक जीवन साथी की सम्भावना बन गई थी, और बढ़ गई थी। यह एक अच्छी बात हो चली थी। और फिर, उनका मेरे साथ सम्बन्ध अचानक से ही सुधर गया था - उनकी नज़र में शायद ही वो कभी बिगड़ा हो - लेकिन इतना ही बहुत था कि कम से कम मैं वैसा नहीं सोच रहा था। उनका स्वास्थ्य सुधर गया था - लगभग पहले जैसा हो गया था। उनका दिल बहुत हल्का सा हो गया था - यह कहना कि उनके पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे, बिलकुल सटीक होगा। वो खुश थीं, और इसीलिए आज उन्होंने फीकी सी साड़ी नहीं पहनी थी। आज उन्होंने सरसों वाले पीले और हरे रंग की साड़ी पहनी थी। उनको ऐसे तैयार हुए देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा।
“अरे वाह दीदी! बढ़िया! हाँ - ऐसे ही रंग बिरंगी साड़ियाँ पहना करो न!” काजल ने उनको देखते ही मेरे मन की बात कह दी, “वैसे, किधर को चली सवारी?”
“मंदिर!” माँ ने एक छोटा सा उत्तर दिया - मुस्कुराते हुए, “अ आ... त... तुम भी चलो?”
माँ को समझा नहीं कि वो काजल को आप कहें, या तुम, अम्मा कहें, या काजल? अगर उनको सुनील के साथ अपने भविष्य को स्वीकारना था, तो यह भी उसी भविष्य की सच्चाई थी। काजल उनकी सास होने वाली थी। इसलिए उनको हिचक हुई। जो उनके मुँह से निकल सका, वो बोल दीं।
“नहीं नहीं! बहुत काम हैं आज तो। तुम हो आओ!” काजल ने कहा।
“अमर, बेटे, तुम चलोगे मेरे साथ?”
“कल एक क्लाइंट के साथ मीटिंग है माँ - उसके लिए थोड़ा तैयारी करनी थी!” मैंने कहा।
मुझे लगा कि माँ मायूस हो जाएँगी, लेकिन वैसा नहीं हुआ। शायद वो अकेली ही जाना चाहती थीं। मैं वापस अंदर चला गया - बच्चों के संग कुछ देर खेल कर, कल की मीटिंग की तैयारी करनी थी।
“क्यों न सुनील को साथ लेती जाओ?” उधर काजल ने सुझाया, “मैं उसको कह देती हूँ - सुनील?” कह कर काजल ने सुनील को आवाज़ लगाई।
“जी अम्मा?”
“इधर आओ!”
जब सुनील वहाँ आया तो काजल ने कहा, “जाओ, इसके साथ मंदिर हो आओ!”
सुनील ने पहले तो माँ को देखा, फिर अपनी अम्मा को और फिर बोला, “जी!”
“अरे वाह! सभ्य हो गया है मेरा बेटा तो!” काजल मुस्कुराते हुए बोली, “तुम्हारी सोहबत का असर हो गया है लगता है, दीदी!”
माँ कुछ न बोलीं, और सुनील केवल मुस्कुरा दिया।
काजल फिर कुछ सोच कर आगे बोली, “बस मुझे दो मिनट दो! मैं अभी आई!” और अपने कमरे में चली गई।
“दुल्हनिया,” सुनील ने दबी आवाज़ में माँ के कान में कहा, “तुम खूब सुन्दर लग रही हो। जैसी हो, वैसी!”
माँ वैसे भी सुनील से नज़रें नहीं मिला पा रही थीं। उसकी बात पर उनकी नज़रें और भी झुक गईं। वो अभी से ही नई-नवेली दुल्हन के जैसी महसूस करने लगी थीं। सब कुछ कितना जाना पहचाना सा, लेकिन कितना अनजाना भी!
“कुछ बोलो भी?” सुनील ने उनको छेड़ा।
माँ कुछ कहतीं, उसके पहले ही लतिका कमरे में आते हुए बोली, “मम्मा, मंदिर से मेरे लिए दो लड्डू चाहिए!”
बच्चे हमेशा उत्सुक रहते हैं कि उनके बड़े कहाँ जा रहे हैं। और अगर गुंजाईश होती है, तो मौके पर चौका मारना नहीं छोड़ते। जैसे ही लतिका ने सुना कि उसकी मम्मा मंदिर जा रही हैं, उसको मिठाई खाने का एक सुअवसर मिलता हुआ दिखने लगा। आभा भी कोई पीछे नहीं रहने वाली थी।
अपनी दीदी की देखा-देखी वो भी बोली, “मुझे भी मम्मा - ओह नॉट मम्मा - दादी!”
“मेरे बच्चों को लड्डू चाहिए?” सुनील ने आभा को लाड़ करते हुए कहा, “अरे तुम दोनों तो खुद ही मेरे लड्डू हो,” सुनील ने बारी बारी से दोनों के गाल चूमते हुए कहा, “म्मुआहहह! आह! आह! मीठे मीठे! प्यारे प्यारे! गोल गोल लड्डू! तुमको क्यों लड्डू चाहिए?”
सुनील की हरकत पर दोनों बच्चे खिलखिला कर हँसने लगे।
“दादा, नो चीटिंग!” लतिका ठुनकते हुए बोली, वो जानती थी कि बिना कहे भी उसके लिए लड्डू अवश्य आएँगे, “लड्डू चाहिए!”
“हाँ हाँ मेरी माँ, लेता आऊँगा!” सुनील हथियार डालते हुए बोला, “लेकिन, वापस आ कर दोनों को खाऊँगा! बारी बारी!”
“नहींननननन!” लतिका अपने गालों को अपनी हथेलियों से ढँकते हुए सुनील से दूर भागने लगी। और आभा उसकी इस हरकत पर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी। मेरा घर इन दोनों बच्चों की हंसी से गुलज़ार रहता है हमेशा!
माँ भी उनको हँसते देख कर हँसने लगीं। फिर थोड़ा सम्हल कर, थोड़ा लजा कर बोलीं,
“आपको बच्चे बहुत पसंद हैं, न?”
“बहोत! और ये दोनों तो मेरी जान हैं, जान!” सुनील बड़े वात्सल्य भाव से बोला, “और वो इसलिए क्योंकि दोनों में ही तुम्हारी छाया है - पुचुकी तो छुटकू वर्शन ऑफ़ यू है! हूबहू तुम! और मिष्टी, वो तो खैर, तुम्हारा ही खून है!”
माँ सुनील की बात पर शर्म से मुस्कुरा दीं। वो समझ रही थीं कि सुनील का इशारा किस ओर है!
“आज देवी माँ से तुम्हे माँगूँगा दुल्हनिया - तुम्हे और तुम्हारे लिए हमेशा बस ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ!” सुनील पूरे निष्कपट भाव से बोला।
माँ के गाल सुनील की बात पर सेब जैसे लाल हो गए।
“मैं खुश हूँ!” माँ ने लजाते हुए कहा।
दोनों कुछ और कहते सुनते, कि इतने में काजल वहाँ आ गई।
सुनील के हाथों में एक छोटी सी डिबिया दे कर वो सुनील से बोली, “बेटा, इसको देवी माँ के चरणों में रख देना। यह प्रसाद बन जाए तो वापस ले आना! किसी को देना है!”
“क्या है अम्मा? और किसको देना है?”
“अरे, उपहार है! मेरी एक सहेली के यहाँ शादी है न। बहू को पहनाऊँगी!”
“ओह!” सुनील थोड़ा अचरज करते हुए बोला, “जी अम्मा! ठीक है!”
“और तू पहले ठीक से तैयार तो हो जा। दोनों साथ में जा रहे हो। इसके साथ जाने लायक तो बन जा!” काजल ने सुनील को उलाहना दी।
सुनील भाग कर अपने कमरे में गया और जल्दी से अपनी शर्ट बदल कर वापस आ गया। उसको ऐसी जल्दी में भागते देख कर काजल को हँसी आ गई। माँ क्या कहतीं - बस, संकोच में वहीं खड़ी रहीं।
दोनों बाहर निकलने ही वाले थे कि काजल ने सुनील को छतरी थमा दी। काजल माँ का ख़याल कुछ इस तरह रखती थी कि जैसे वो खुद ही उनकी माँ हो। घर से बाहर आ कर आज माँ को बहुत अच्छा लगा। अवसाद के चरम पर उनको घर की दीवारों के बीच में एक तरह की भावनात्मक सुरक्षा महसूस होती थी। लेकिन अब, जब वो काफी हद तक अवसाद को मिटा सकी थीं, तब बाहर की खुली हवा में उनको बहुत सुखद लग रहा था। जब तक दोनों मंदिर पहुँचे, तब तक हल्की बारिश होने लगी। रिमझिम वर्षा हवा के साथ बहते हुए तेज फुहारों में बदल गई।
सुन्दर माहौल!
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यह मंदिर दिल्ली के जाने माने मंदिरों में से एक था - माँ वहाँ अक्सर ही जाती रहती थीं। मेरे ससुर जी के कारण हम लोगों की वहाँ के संस्थापक बाबा जी से काफ़ी बढ़िया जान पहचान हो गई थी। लेकिन उनकी कोई तीन साल पहले मृत्यु हो गई थी। फिर भी, हमारा वहाँ आना जाना कम नहीं हुआ था। माँ और डैड जब भी यहाँ आते, उस मंदिर में दर्शन करने प्रतिदिन जाते। तो वो दोनों भी पहचान वाले हो गए थे।
माँ वैसे तो किसी ही तरीके के वीआईपी उपचार से कतराती थीं, लेकिन उनको पहचानने वाले वहाँ कई लोग थे। मंदिर का कम से कम आधा स्टाफ़ उनको पहचानता था। पहचान के ही किसी पुजारी ने उन दोनों को मंदिर के गर्भगृह में लिवा लाया, और उनसे पूजा कराई। साथ ही साथ काजल की दी हुई डिबिया को माता के चरणों में चढ़ाया। दरअसल उस डिबिया में सोने की एक जंज़ीर थी। माँ उस जंज़ीर को पहचान गईं - काजल ने उसको अपनी होने वाली बहू के लिए बनवाया था। काजल को क्या हो गया है अचानक, माँ यह सोच रही थीं। इतने शौक से बनवाई हुई जंज़ीर वो किसी और को देने वाली है! कमाल है! अब इसको माँ की मूर्खता समझें, या भोलापन - उनको एक पल के लिए भी यह नहीं सूझा कि हो सकता है कि काजल यह उनको ही देना चाहती हो। अभी भी वो खुद को काजल की बहू के मूर्त रूप में नहीं देख पा रही थीं।
खैर, उन्होंने अपनी पूजा प्रार्थना ख़तम करी। पूजा कर के उन्होंने अपने बगल खड़े सुनील को देखा - जो पूरी गंभीरता से, आँखें बंद किये, गहरे ध्यान में, अपने हाथों को जोड़ कर भगवान के सामने खड़ा था।
‘ओह, कैसी अनोखी शांति है ‘इनके’ चेहरे पर!’ माँ का दिल लरज गया, ‘कितने हैंडसम लगते हैं ‘ये’!’
कुछ देर में सुनील ने अपनी आँखें खोलीं। उसको आँखें खोलता देख कर माँ तुरंत ही ईश्वर की प्रतिमा की ओर सम्मुख हो गईं, कि कहीं उनकी चोरी न पकड़ ली जाए। लेकिन सुनील का सारा ध्यान अपने आराध्य पर ही रहा। उसने भगवान के चरणों में माथा टेका, फिर पलट कर उसने माँ के पैर छुए। माँ उसकी इस हरकत पर न केवल शर्मा गईं बल्कि उनको बहुत अजीब सा भी लगा।
‘‘इन्होने’ मेरे पैर क्यों छुए?’
खैर, पूजा ख़तम करने के बाद और दान पेटिका में कुछ चढ़ावा डाल कर, और डिबिया ले कर दोनों वापस आने लगे।
“आपने मेरे पैर क्यों छुए?” माँ से रहा नहीं गया - चलते हुए उन्होंने पूछ ही लिया।
“दुल्हनिया, मैं तुमको बहुत प्यार करता हूँ, तुमसे शादी करना चाहता हूँ - लेकिन केवल इसी कारण से मेरे मन में तुम्हारे लिए आदर कम नहीं हो जाएगा! मैंने तुमसे बहुत कुछ सीखा है। दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ मुझे तुमसे मिली है - प्यार!” सुनील बड़ी गंभीरता से बोला, “और, हमारी नई लाइफ की शुरुवात इस देवी के आशीर्वाद के बिना नहीं हो सकती - इसलिए! वैसे भी अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेने में क्या शर्म?”
“हस्बैंड अपनी वाइफ के पैर थोड़े ही छूते हैं!” माँ ने बहुत शरमाते हुए उसको समझाया।
“अभी मेरी वाइफ थोड़े ही बनी हो!” सुनील ने मुस्कुराते हुए कहा, “जब बन जाओगी, तब की तब देखेंगे!”
“तो फिर आप जो सब कुछ मेरे साथ करते हैं, वो किस हक़ से करते हैं?”
“प्रेमी के!” वो तपाक से बोला, “अभी हम कोर्टशिप वाले पीरियड में हैं मेरी जान!”
माँ के होंठों पर एक शर्म वाली हँसी फ़ैल गई। हँसते हँसते ही वो बोलीं, “आप और आपकी बातें! अच्छा सुनिए, अपनी चहेतियों के लिए लड्डू लेना न भूलिएगा!”
“तुमको लगता है कि केवल दो दो लड्डुओं से काम हो जाएगा मेरी लाडलियों का?” सुनील भी हँसते हुए बोला, “पूरी दूकान ले कर जाना पड़ेगा वापस घर!” उसने कहा, और दोनों पास की मिठाई की दूकान की तरफ़ चलने लगे।
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जब दोनों वापस आए, तब तक मैं अपने काम में व्यस्त था। मेरे स्टडी की खिड़की से बाहर का दृश्य दिखता था। मंदिर जाते समय माँ को ऐसी सुन्दर सी साड़ी और हल्का सा मेकअप पहने देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा। कितनी सुन्दर लग रही थीं मेरी माँ! लगभग पहले के जैसी! मतलब दो तीन साल पहले नहीं - करीब पंद्रह बीस साल पहले जैसी! बहुत सुन्दर हैं मेरी माँ! सच में - दुःख और अवसाद के बादल छँटने के साथ उनकी सुंदरता साफ़ दिखाई दे रही थी। एक लम्बे अंतराल के बाद मैंने उनके होंठों पर मुस्कान, और चेहरे पर जीवन की दमक देखी थी।
‘कैसी सुन्दर सी लगती थी मेरी माँ! क्या हालत हो गई है बेचारी की!’ मैंने सोचा... लेकिन फिर कुछ आश्चर्यचकित करने वाला दृश्य नोटिस किया।
बारिश में दोनों ही गीले हो गए थे - छतरी की हालत देख कर लग रहा था कि किसी तेज़ हवा में वो छतिग्रस्त हो गई थी। बात वो नहीं थी - सुनील और माँ साथ साथ ऐसे चल रहे थे जैसे कोई गहरी दोस्ती हो दोनों में! हँसते मुस्कुराते! माँ जैसी हो गई थीं, मुझे लगता था कि वो इस अवस्था में मेरे सामने भी न आतीं। लेकिन आज वो अलग ही लग रही थीं। बढ़िया! मानता हूँ कि सुनील और माँ की दोस्ती मेरे लिए एक नई सी बात थी! लेकिन मैंने इस बात को वैसे बहुत सीरियसली नहीं लिया। हाँ - इस बात को मैं पूरी तरह स्वीकार करता हूँ कि सुनील के आने से माँ पर कई सकारात्मक प्रभाव पड़े थे। जहाँ काजल ने उनको अवसाद के गर्त में और गहरे गिरने से बचाया था, वहीं सुनील ने उनको उस गर्त से बाहर लाने में एक अहम् भूमिका अदा करी थी। ऐसे में अगर दोनों में मित्रता हो गई है, तो क्या गलत हो गया? इन फैक्ट, यह तो बहुत ही अच्छी बात है। जैसे काजल उनकी सखी सहेली है, वैसे ही सुनील भी उनका दोस्त! अच्छी बात है। उधर लतिका भी तो माँ को अपनी माँ जैसा ही ट्रीट करती है। जबकि उन दोनों में रिश्ता ही क्या था?
माँ को जो भी ख़ुशी मिल पाए, उनको ले लेना चाहिए। हर ख़ुशी पर उनका हक़ है - उन्होंने कोई ऐसा काम नहीं किया कि उनको किसी तरह का कष्ट, या दुःख भोगना पड़े।
कल की मीटिंग के बारे में सुनील से थोड़ा बात चीत करने लगा। मैं चाहता था कि वो भी मेरे साथ चले, और उससे बातचीत कर ले। मैं सुनील से बोला,
“सुनील, यार कल मीटिंग और प्रेजेंटेशन है। थोड़ा मेरे साथ बैठोगे? तैयारी हो जाएगी मेरी!”
“हाँ भैया। बिलकुल। बस मुझे पाँच मिनट दीजिए। मैं कपड़े चेंज कर के तुरंत आया!”
उधर लतिका और आभा माँ को घेर कर मिठाई की ज़िद करने लगे। दोनों मेरी आँखों के तारे थे। लड़कियाँ वैसे भी किसी भी घर की रौनक होती हैं - और अगर लड़कियाँ इन दोनों परियों के जैसी प्यारी प्यारी, मीठी मीठी हों, तो कौन आदमी दुःखी हो सकता है भला? शाम को दोनों बच्चियाँ, सुनील और मैं - चारों जने देर तक कुछ भी मूर्खतापूर्ण वाले खेल खेलते रहे थे। और कितना मज़ा आया था! सच में - यह काम और बार करना चाहिए मुझे।
माँ दोनों बच्चों को बारी बारी से मिठाईयाँ खिला रही थीं। सच में, उन दोनों का केवल दो लड्डुओं से काम नहीं चलने वाला था। दोनों वापस आते समय चार पैकेट मिठाईयाँ लाए थे। और दोनों नन्ही चंचल शैतानें कुछ ही देर में हर डब्बे से कम से कम एक चौथाई मिठाईयाँ चट कर गईं। वैसे बच्चे अगर मीठा न खाएँगे, तो और कौन खाएगा?
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कपड़े बदलने के लिए माँ ने अभी बस अपनी साड़ी और पेटीकोट उतारी ही थी, कि लतिका उनके कमरे में आ जाती है। हमारे बच्चों को प्राइवेसी का कोई तुक नहीं समझ में आता था। उसकी मम्मा केवल चड्ढी पहने हुए बहुत क्यूट सी लग रही थीं।
“मम्मा?”
“हाँ बेटू,” कह कर माँ ने पलट कर देखा तो दरवाज़े पर लतिका को खड़े पाया।
लतिका की आदत थी कहीं भी, किसी के साथ भी सो जाने की। आभा ज्यादातर काजल के साथ सोती थी - क्योंकि काजल उसको सोने से पहले स्तनपान कराती थी, और बस कभी कभी ही माँ के साथ। लेकिन लतिका कभी भी, कहीं भी चली जाती थी, और सो जाती थी।
“हाS मम्मा - यू लुक सो क्यूट!” उसने चहकते हुए कहा।
माँ को तब ध्यान आया कि उनकी कैसी अवस्था थी। माँ शायद इतनी नग्नावस्था में लतिका से सामने कभी नहीं आई थीं। बारिश हो जाने से गर्मी की रात में थोड़ी राहत मिल रही थी! लेकिन हमेशा की ही तरह लतिका नंगू पंगू ही थी।
“चल, क्यूट की बच्ची!”
“हाँ - मैं हूँ न आपकी ही बच्ची!” लतिका ने बड़े लाड़ से कहा, फिर बोली, “मम्मा, आपको सूसू हो गया है क्या?”
“नन्ननहीं तो,” माँ हकलाते हुए बोली, “क्यों?”
“फिर आपकी कच्छी गीली गीली क्यूँ है?”
“बारिश में भीग गई हूँ बेटू!” माँ ने शर्माते हुए कहा।
“ओह, मम्मा! आई शुड हैव गॉन विद यू, इंस्टेड ऑफ़ दादा!”
माँ उसकी बातों पास मुस्कुराए बिना नहीं रह पाती थीं। लतिका थी भी तो खूब प्यारी! उसकी बातों पर बिना मुस्कुराए, बिना हँसे रहे ही नहीं जा सकता।
“हा हा हा!”
“कम मम्मा! रिमूव दिस गीलू गीलू कच्छी, एंड कम टू बेड ! आई विल स्लीप विद यू टुनाइट!”
“अरे, बट आई नीड टू हैव फ़ूड!”
“ओके, बट लाई विद मी टिल आई स्लीप?”
माँ ने लतिका की बात का अनुसरण किया - उन्होंने कमरे की बत्ती बुझाई, अपनी चड्ढी उतारी, और लतिका के बगल आ कर बिस्तर पर लेट गईं। दोनों मम्मा - बेटी / बोऊ-दी - ननद एक जैसी हो गईं।
“मम्मा, आप न्यूड हो कर बहुत सुन्दर लगती हैं!”
“हा हा हा! अच्छा जी? आपको सब दिखता है?”
“हाँ न! एकदम मॉडल जैसी लगती हैं आप!”
आप चाहे कुछ सोचें, लेकिन बच्चों की बातों की भोली सच्चाई को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। अपने बारे में सच सच जानना हो, तो किसी बच्चे से पूछें।
“हा हा हा! थैंक यू बेटू!”
लतिका ने उनका एक स्तन सहलाते हुए कहा, “मम्मा, आपके ब्रेस्ट्स भी बहुत क्यूट हैं, आपके ही जैसे!”
“क्या हो गया बच्चे?”
“मम्मा आई वांट टू ड्रिंक योर मिल्क!”
“तो पी लो न बेटू! मैंने कब मना किया है तुमको?”
“नहीं मम्मा! आई मीन, आई वांट टू ड्रिंक योर मिल्क... योर रियल मिल्क! योर एक्चुअल, स्वीट, एंड डिलीशियस मिल्क!”
“लेकिन मैंने तुमको बताया तो कि उसके लिए मुझे पहले शादी करनी होगी!” माँ ने उसका एक गाल प्यार से खींचते हुए और उसका मुँह चूमते हुए कहा।
“आई नो मम्मा!”
“हम्म्म, फिर किस से करूँ शादी? बताओ? कोई है आपकी नज़र में?”
“हम्म!” लतिका गहरी सोच में पड़ने का नाटक करने लगी।
“अब आई बात समझ में दादी माँ?”
“ओह, सो द प्रॉब्लम इस यू डोंट हैव अ प्रॉपर ग्रूम!”
“यस! टेल मी, डू यू हैव समवन इन योर फ्रेंड सर्किल?” माँ ने मज़ाक में पूछा।
“आई लाइक आयुष,” लतिका ने भी तपाक से बोल दिया, “ही इस काइंड ऑफ़ क्यूट!”
“काइंड ऑफ़ क्यूट?” माँ ने उसको छेड़ा, “यू वांट मी टू मैरी सम वन हू इस जस्ट काइंड ऑफ़ क्यूट?”
लतिका को समझ में आया कि हाँ उसकी मम्मा के लिए बेस्ट मैन चाहिए, उससे कम कुछ नहीं चलेगा, “यू आर राइट मम्मा! उसका साइड का एक दाँत टूटा हुआ है। ओन्ली अ हैंडसम ग्रूम विल बी सूटेबल फॉर यू! नो! नॉट हिम!”
माँ उसकी भोली सी बात पर हँसने लगीं, “चल, अब सो जा! बहुत रात हो गई!”
“नो! वेट न मम्मा! अंशुमान इस गुड लुकिंग!”
वो लतिका का बेस्ट फ्रेंड था, और क्लास में हमेशा फर्स्ट आता था। माँ को मालूम था उसके बारे में।
“बट ही फाइट्स विद यू!” लतिका अक्सर उसकी शिकायत घर आ कर करती थी, “हमारी शादी के बाद वो तुमसे झगड़ा करेगा, तो मैं उससे प्यार नहीं करूँगी। और प्यार नहीं करूँगी तो हमारे बच्चे कैसे होंगे?” माँ भी लतिका के खेल में शामिल हो गई थीं, “और... और अगर उसने तुमको दुद्धू पिलाने से मना कर दिया तो?”
“हाँ! ही कैन डू दैट मम्मा! ही कैन बी वैरी मीन!”
“और हमारी शादी के बाद तुम उसको क्या कह कर बुलाओगी?” माँ ने लतिका को छेड़ा, “डैडी?”
“ओह यक!”
“हा हा हा हा! चल अब सो जा!”
लेकिन लतिका ऐसे हार मानने वाली नहीं थी, “मम्मा?”
“हा हा हा, हाँ बेटू?”
“आप दादा से शादी कर लो न!” लतिका ने इतने भोलेपन से यह बात कही कि माँ समझ ही नहीं पाईं कि लतिका शरारत कर रही है, या सीरियस है, “ही इस हैंडसम! ही इस अ बिट डार्क कलर्ड, बट ही लुक्स हैंडसम! ही लव्स मी, ही लव्स यू! एंड ही लव्स एवरीवन! एंड आई विल नॉट माइंड कालिंग हिम डैडी!”
“सो जा बेटू,” माँ बड़े शांत स्वर में बोलीं - सुनील का नाम सुन कर उनको घबराहट नहीं हुई इस बार!
“सच में मम्मा! एंड आई विल आल्सो नॉट माइंड कालिंग यू माय बोऊ-दी!” लतिका ने अचूक दाँव मारा, “आई थिंक दादा विल लव यू खूब!”
“सच में बेटू?” माँ ने बड़े धीमे स्वर में कहा।
“हाँ मम्मा! आई थिंक ही लव्स यू!” लतिका ने फिर से कहा, “एंड... आई विल लव टू हैव यू ऍस माय बोऊ-दी!”
“हम्म्म!”
माँ लतिका की बात पर सोच में पड़ गईं कि कहीं सुनील ने ही तो लतिका को नहीं भेजा है उनको उलझाने!
“मम्मा?”
“हाँ बच्चे?”
“आई वंस सॉ अंकल एंड अम्मा मेकिंग लव!” लतिका ने मेरे और काजल के अंतरंग सम्बन्ध के बारे में खुलासा करते हुए कहा।
“ओह गॉड!”
“नो मम्मा! इट वास ऑलराइट! आई कुड सी दैट अम्मा वास वेरी हैप्पी! अंकल मेड अम्मा वेरी हैप्पी!”
माँ को अचम्भा हुआ, लेकिन फिर भी उन्होंने खुद को संयत करते हुए कहा, “तो आपको सब मालूम है?”
“सब नहीं, लेकिन कुछ कुछ तो मालूम है!” लतिका ने सयानेपन से कहा।
“क्या मालूम है आपको?” माँ जानना चाहती थीं कि लतिका कहीं किसी और बात को ‘लव मेकिंग’ से कन्फ्यूज़ तो नहीं कर रही है।
“व्हाट आई सॉ वास दैट अंकल वास थ्रस्टिंग हिज पीनस इन अम्मा!” लतिका ने कहा, और फिर अचानक ही भोलेपन से पूछ लिया, “नहीं मालूम होना चाहिए क्या मम्मा?”
“मालूम होना चाहिए मेरी बेटू, लेकिन अभी नहीं! इट इस टू अर्ली फॉर यू!”
“यू वर मैरीड एट फोर्टीन! आई ऍम टेन!” लतिका ने माँ को समझाते हुए कहा।
“जी दादी माँ! समझ गई!” माँ ने फिर से लतिका को छेड़ा - उनको हैरत हुई कि आज वो अपनी पुचुकी के साथ कैसा व्यवहार कर रही थीं! जैसे भाभी और ननद के बीच हँसी मज़ाक होता है, ठीक वैसा ही, “लेकिन तुम्हारी शादी चौदह में नहीं होने वाली! समझ जाओ मेरी लाडो रानी!”
लेकिन लतिका को तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था, “मम्मा, दादा विल आल्सो मेक यू वैरी हैप्पी!”
“अच्छा जी?”
“यस मम्मा!”
“चल अपने दादा की पूँछ! सो जा अब!” माँ ने बात बदलने की गरज से कहा।
“मम्मा, आई थिंक ही रियली रियली लव्स यू!” लतिका ने कुछ देर चुप रह कर कहा।
“सच में?” माँ के मुँह से अनायास ही यह दो शब्द निकल पड़े।
“आई स्वेर मम्मा! ही लव्स यू सो मच!”
“हम्म्म, और मैं उनसे शादी कर लूंगी, तो तुमको अच्छा लगेगा?”
“बहुत अच्छा लगेगा मम्मा! आई विल बी सो हैप्पी!” लतिका माँ को चूमते हुए बोली, “आप दोनों के बेबीज़ भी बहुत क्यूट होंगे!”
“हम्म्म! यू वांट मी टू हैव बेबीज विद योर दादा?”
“यस मम्मा! इट विल बी अमेज़िंग - डोंट यू थिंक सो?”
“हम्म, एंड यू वांट योर दादा टू मेक लव विद मी द वे अंकल मेड लव विद योर अम्मा?”
लतिका बोली, “मम्मा, आप कितनी उदास उदास रहती हैं! इफ दादा कैन मेक यू हैप्पी, देन यस - आई वांट हिम टू मेक लव टू यू एक्साक्ट्ली लाइक अंकल मेड लव टू अम्मा! आई वांट यू टू बी वेरी हैप्पी!”
“एंड डू यू थिंक दैट ही कैन मेक मी हैप्पी?”
“आप दादा के साथ कितना हँसती मुस्कुराती हैं!” लतिका ने पूरी स्पष्टता से कहा, “आप बाहर नहीं जाती थीं कभी! गाना नहीं गाती थीं कभी। अपने लिए नए कपड़े नहीं लेती थीं। लेकिन उनके कहने पर आप सब करने लगी हैं। ही मेक्स यू हैप्पी! आई नो यू एन्जॉय हिज कंपनी! एंड आई थिंक यू लव हिम एस वेल!”
बच्चों से कुछ छुपा नहीं रहता : उनको मनुष्य की सहज वृत्तियाँ खूब समझ आती हैं।
लतिका ने कहना जारी रखा “सो यस, आई नो दैट ही विल मेक यू वेरी हैप्पी!”
“हम्म... सोचेंगे बेटू, सोचेंगे!”
“पक्का न, मम्मा?”
“हाँ बेटू, पक्का! आई प्रॉमिस!”
“आई लव यू, मम्मा! ऑलवेज! आप अगर मेरी बोऊ-दी नहीं भी बनती हो, तब भी मैं आपको बहुत प्यार करूँगी। लेकिन उस केस में आप दादा से बेटर ग्रूम से शादी करना!”
लतिका ने कहा, और अपनी मम्मा के एक चूचक से जा लगी!
‘‘इनसे’ बेहतर ग्रूम कहाँ मिलेगा भला? प्रेम सबसे बड़ी बात है! मुझसे इतना प्रेम करने वाला भला और कौन हो सकता है?’
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लतिका की भोली बातें, सुनील के साथ बिताया हुआ समय, उसकी प्रेम भरी बातें - माँ को रात भर तड़पाती रहीं। जैसे तैसे वो सो तो गईं लेकिन आज रात भी सपने में उनके सुनील ही सुनील छाया हुआ था। उनको अचरज हुआ कि सवेरे उठ कर उनको अपना जो भी सपना याद आया, उन सभी में सुनील ही सुनील था! और जब वो बिस्तर से उठीं, तो उन्होंने देखा कि रात भर उनकी योनि से कामरस का ऐसा स्राव हुआ कि बिस्तर पर बिछे चादर पर एक बड़ा सा गीला धब्बा बन गया था! लतिका तब तक कमरे से जा चुकी थी। मतलब उसने भी उनकी वो दशा देख ली होगी।
‘हे भगवान्!’
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तो सुनील के दिल की आग ने उसकी दुल्हनिया के दिल में भी प्यार का जीरो वाट का बल्ब टिमटिमा दिया है अब देखना है की ये बल्ब कब हेलोजन लाईट बन कर चमकता है। आसार तो लग रहे है की जल्द ही गरज के साथ मूसलाधार बारिश होने वाली है। बहुत ही शानदार avsji भाईअंतराल - पहला प्यार - Update #14
बहुत दिनों बाद ऐसा कुछ हुआ था। माँ तैयार हो कर, स्वयं ही मंदिर जाने के लिए तैयार हुई थीं। मेरे लिए यह एक नई बात थी। आज मौसम सुहाना और सुन्दर था - थोड़े बादल घिरे हुए थे, और हलकी सी ठंडी बयार चल रही थी। उसी बयार के साथ सोंधी सोंधी महक आ रही थी - मतलब, कहीं पास ही बारिश हुई थी। मैं और सुनील बच्चों के साथ खेल रहे थे, और काजल घर के आवश्यक कार्यों में व्यस्त थी। आज का दिन बड़ा अच्छा बीता था - मुझे भी जिस आराम की आवश्यकता थी, वो मुझको मिल गया था। माँ के साथ अपने बिगड़े हुए सम्बन्ध को सुधारने के बाद मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था।
माँ आज बहुत खुश थीं। उनकी ख़ुशी के कई सारे कारण थे। जीवन के मुश्किल भरे सफ़र में उनके एक जीवन साथी की सम्भावना बन गई थी, और बढ़ गई थी। यह एक अच्छी बात हो चली थी। और फिर, उनका मेरे साथ सम्बन्ध अचानक से ही सुधर गया था - उनकी नज़र में शायद ही वो कभी बिगड़ा हो - लेकिन इतना ही बहुत था कि कम से कम मैं वैसा नहीं सोच रहा था। उनका स्वास्थ्य सुधर गया था - लगभग पहले जैसा हो गया था। उनका दिल बहुत हल्का सा हो गया था - यह कहना कि उनके पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे, बिलकुल सटीक होगा। वो खुश थीं, और इसीलिए आज उन्होंने फीकी सी साड़ी नहीं पहनी थी। आज उन्होंने सरसों वाले पीले और हरे रंग की साड़ी पहनी थी। उनको ऐसे तैयार हुए देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा।
“अरे वाह दीदी! बढ़िया! हाँ - ऐसे ही रंग बिरंगी साड़ियाँ पहना करो न!” काजल ने उनको देखते ही मेरे मन की बात कह दी, “वैसे, किधर को चली सवारी?”
“मंदिर!” माँ ने एक छोटा सा उत्तर दिया - मुस्कुराते हुए, “अ आ... त... तुम भी चलो?”
माँ को समझा नहीं कि वो काजल को आप कहें, या तुम, अम्मा कहें, या काजल? अगर उनको सुनील के साथ अपने भविष्य को स्वीकारना था, तो यह भी उसी भविष्य की सच्चाई थी। काजल उनकी सास होने वाली थी। इसलिए उनको हिचक हुई। जो उनके मुँह से निकल सका, वो बोल दीं।
“नहीं नहीं! बहुत काम हैं आज तो। तुम हो आओ!” काजल ने कहा।
“अमर, बेटे, तुम चलोगे मेरे साथ?”
“कल एक क्लाइंट के साथ मीटिंग है माँ - उसके लिए थोड़ा तैयारी करनी थी!” मैंने कहा।
मुझे लगा कि माँ मायूस हो जाएँगी, लेकिन वैसा नहीं हुआ। शायद वो अकेली ही जाना चाहती थीं। मैं वापस अंदर चला गया - बच्चों के संग कुछ देर खेल कर, कल की मीटिंग की तैयारी करनी थी।
“क्यों न सुनील को साथ लेती जाओ?” उधर काजल ने सुझाया, “मैं उसको कह देती हूँ - सुनील?” कह कर काजल ने सुनील को आवाज़ लगाई।
“जी अम्मा?”
“इधर आओ!”
जब सुनील वहाँ आया तो काजल ने कहा, “जाओ, इसके साथ मंदिर हो आओ!”
सुनील ने पहले तो माँ को देखा, फिर अपनी अम्मा को और फिर बोला, “जी!”
“अरे वाह! सभ्य हो गया है मेरा बेटा तो!” काजल मुस्कुराते हुए बोली, “तुम्हारी सोहबत का असर हो गया है लगता है, दीदी!”
माँ कुछ न बोलीं, और सुनील केवल मुस्कुरा दिया।
काजल फिर कुछ सोच कर आगे बोली, “बस मुझे दो मिनट दो! मैं अभी आई!” और अपने कमरे में चली गई।
“दुल्हनिया,” सुनील ने दबी आवाज़ में माँ के कान में कहा, “तुम खूब सुन्दर लग रही हो। जैसी हो, वैसी!”
माँ वैसे भी सुनील से नज़रें नहीं मिला पा रही थीं। उसकी बात पर उनकी नज़रें और भी झुक गईं। वो अभी से ही नई-नवेली दुल्हन के जैसी महसूस करने लगी थीं। सब कुछ कितना जाना पहचाना सा, लेकिन कितना अनजाना भी!
“कुछ बोलो भी?” सुनील ने उनको छेड़ा।
माँ कुछ कहतीं, उसके पहले ही लतिका कमरे में आते हुए बोली, “मम्मा, मंदिर से मेरे लिए दो लड्डू चाहिए!”
बच्चे हमेशा उत्सुक रहते हैं कि उनके बड़े कहाँ जा रहे हैं। और अगर गुंजाईश होती है, तो मौके पर चौका मारना नहीं छोड़ते। जैसे ही लतिका ने सुना कि उसकी मम्मा मंदिर जा रही हैं, उसको मिठाई खाने का एक सुअवसर मिलता हुआ दिखने लगा। आभा भी कोई पीछे नहीं रहने वाली थी।
अपनी दीदी की देखा-देखी वो भी बोली, “मुझे भी मम्मा - ओह नॉट मम्मा - दादी!”
“मेरे बच्चों को लड्डू चाहिए?” सुनील ने आभा को लाड़ करते हुए कहा, “अरे तुम दोनों तो खुद ही मेरे लड्डू हो,” सुनील ने बारी बारी से दोनों के गाल चूमते हुए कहा, “म्मुआहहह! आह! आह! मीठे मीठे! प्यारे प्यारे! गोल गोल लड्डू! तुमको क्यों लड्डू चाहिए?”
सुनील की हरकत पर दोनों बच्चे खिलखिला कर हँसने लगे।
“दादा, नो चीटिंग!” लतिका ठुनकते हुए बोली, वो जानती थी कि बिना कहे भी उसके लिए लड्डू अवश्य आएँगे, “लड्डू चाहिए!”
“हाँ हाँ मेरी माँ, लेता आऊँगा!” सुनील हथियार डालते हुए बोला, “लेकिन, वापस आ कर दोनों को खाऊँगा! बारी बारी!”
“नहींननननन!” लतिका अपने गालों को अपनी हथेलियों से ढँकते हुए सुनील से दूर भागने लगी। और आभा उसकी इस हरकत पर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी। मेरा घर इन दोनों बच्चों की हंसी से गुलज़ार रहता है हमेशा!
माँ भी उनको हँसते देख कर हँसने लगीं। फिर थोड़ा सम्हल कर, थोड़ा लजा कर बोलीं,
“आपको बच्चे बहुत पसंद हैं, न?”
“बहोत! और ये दोनों तो मेरी जान हैं, जान!” सुनील बड़े वात्सल्य भाव से बोला, “और वो इसलिए क्योंकि दोनों में ही तुम्हारी छाया है - पुचुकी तो छुटकू वर्शन ऑफ़ यू है! हूबहू तुम! और मिष्टी, वो तो खैर, तुम्हारा ही खून है!”
माँ सुनील की बात पर शर्म से मुस्कुरा दीं। वो समझ रही थीं कि सुनील का इशारा किस ओर है!
“आज देवी माँ से तुम्हे माँगूँगा दुल्हनिया - तुम्हे और तुम्हारे लिए हमेशा बस ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ!” सुनील पूरे निष्कपट भाव से बोला।
माँ के गाल सुनील की बात पर सेब जैसे लाल हो गए।
“मैं खुश हूँ!” माँ ने लजाते हुए कहा।
दोनों कुछ और कहते सुनते, कि इतने में काजल वहाँ आ गई।
सुनील के हाथों में एक छोटी सी डिबिया दे कर वो सुनील से बोली, “बेटा, इसको देवी माँ के चरणों में रख देना। यह प्रसाद बन जाए तो वापस ले आना! किसी को देना है!”
“क्या है अम्मा? और किसको देना है?”
“अरे, उपहार है! मेरी एक सहेली के यहाँ शादी है न। बहू को पहनाऊँगी!”
“ओह!” सुनील थोड़ा अचरज करते हुए बोला, “जी अम्मा! ठीक है!”
“और तू पहले ठीक से तैयार तो हो जा। दोनों साथ में जा रहे हो। इसके साथ जाने लायक तो बन जा!” काजल ने सुनील को उलाहना दी।
सुनील भाग कर अपने कमरे में गया और जल्दी से अपनी शर्ट बदल कर वापस आ गया। उसको ऐसी जल्दी में भागते देख कर काजल को हँसी आ गई। माँ क्या कहतीं - बस, संकोच में वहीं खड़ी रहीं।
दोनों बाहर निकलने ही वाले थे कि काजल ने सुनील को छतरी थमा दी। काजल माँ का ख़याल कुछ इस तरह रखती थी कि जैसे वो खुद ही उनकी माँ हो। घर से बाहर आ कर आज माँ को बहुत अच्छा लगा। अवसाद के चरम पर उनको घर की दीवारों के बीच में एक तरह की भावनात्मक सुरक्षा महसूस होती थी। लेकिन अब, जब वो काफी हद तक अवसाद को मिटा सकी थीं, तब बाहर की खुली हवा में उनको बहुत सुखद लग रहा था। जब तक दोनों मंदिर पहुँचे, तब तक हल्की बारिश होने लगी। रिमझिम वर्षा हवा के साथ बहते हुए तेज फुहारों में बदल गई।
सुन्दर माहौल!
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यह मंदिर दिल्ली के जाने माने मंदिरों में से एक था - माँ वहाँ अक्सर ही जाती रहती थीं। मेरे ससुर जी के कारण हम लोगों की वहाँ के संस्थापक बाबा जी से काफ़ी बढ़िया जान पहचान हो गई थी। लेकिन उनकी कोई तीन साल पहले मृत्यु हो गई थी। फिर भी, हमारा वहाँ आना जाना कम नहीं हुआ था। माँ और डैड जब भी यहाँ आते, उस मंदिर में दर्शन करने प्रतिदिन जाते। तो वो दोनों भी पहचान वाले हो गए थे।
माँ वैसे तो किसी ही तरीके के वीआईपी उपचार से कतराती थीं, लेकिन उनको पहचानने वाले वहाँ कई लोग थे। मंदिर का कम से कम आधा स्टाफ़ उनको पहचानता था। पहचान के ही किसी पुजारी ने उन दोनों को मंदिर के गर्भगृह में लिवा लाया, और उनसे पूजा कराई। साथ ही साथ काजल की दी हुई डिबिया को माता के चरणों में चढ़ाया। दरअसल उस डिबिया में सोने की एक जंज़ीर थी। माँ उस जंज़ीर को पहचान गईं - काजल ने उसको अपनी होने वाली बहू के लिए बनवाया था। काजल को क्या हो गया है अचानक, माँ यह सोच रही थीं। इतने शौक से बनवाई हुई जंज़ीर वो किसी और को देने वाली है! कमाल है! अब इसको माँ की मूर्खता समझें, या भोलापन - उनको एक पल के लिए भी यह नहीं सूझा कि हो सकता है कि काजल यह उनको ही देना चाहती हो। अभी भी वो खुद को काजल की बहू के मूर्त रूप में नहीं देख पा रही थीं।
खैर, उन्होंने अपनी पूजा प्रार्थना ख़तम करी। पूजा कर के उन्होंने अपने बगल खड़े सुनील को देखा - जो पूरी गंभीरता से, आँखें बंद किये, गहरे ध्यान में, अपने हाथों को जोड़ कर भगवान के सामने खड़ा था।
‘ओह, कैसी अनोखी शांति है ‘इनके’ चेहरे पर!’ माँ का दिल लरज गया, ‘कितने हैंडसम लगते हैं ‘ये’!’
कुछ देर में सुनील ने अपनी आँखें खोलीं। उसको आँखें खोलता देख कर माँ तुरंत ही ईश्वर की प्रतिमा की ओर सम्मुख हो गईं, कि कहीं उनकी चोरी न पकड़ ली जाए। लेकिन सुनील का सारा ध्यान अपने आराध्य पर ही रहा। उसने भगवान के चरणों में माथा टेका, फिर पलट कर उसने माँ के पैर छुए। माँ उसकी इस हरकत पर न केवल शर्मा गईं बल्कि उनको बहुत अजीब सा भी लगा।
‘‘इन्होने’ मेरे पैर क्यों छुए?’
खैर, पूजा ख़तम करने के बाद और दान पेटिका में कुछ चढ़ावा डाल कर, और डिबिया ले कर दोनों वापस आने लगे।
“आपने मेरे पैर क्यों छुए?” माँ से रहा नहीं गया - चलते हुए उन्होंने पूछ ही लिया।
“दुल्हनिया, मैं तुमको बहुत प्यार करता हूँ, तुमसे शादी करना चाहता हूँ - लेकिन केवल इसी कारण से मेरे मन में तुम्हारे लिए आदर कम नहीं हो जाएगा! मैंने तुमसे बहुत कुछ सीखा है। दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ मुझे तुमसे मिली है - प्यार!” सुनील बड़ी गंभीरता से बोला, “और, हमारी नई लाइफ की शुरुवात इस देवी के आशीर्वाद के बिना नहीं हो सकती - इसलिए! वैसे भी अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेने में क्या शर्म?”
“हस्बैंड अपनी वाइफ के पैर थोड़े ही छूते हैं!” माँ ने बहुत शरमाते हुए उसको समझाया।
“अभी मेरी वाइफ थोड़े ही बनी हो!” सुनील ने मुस्कुराते हुए कहा, “जब बन जाओगी, तब की तब देखेंगे!”
“तो फिर आप जो सब कुछ मेरे साथ करते हैं, वो किस हक़ से करते हैं?”
“प्रेमी के!” वो तपाक से बोला, “अभी हम कोर्टशिप वाले पीरियड में हैं मेरी जान!”
माँ के होंठों पर एक शर्म वाली हँसी फ़ैल गई। हँसते हँसते ही वो बोलीं, “आप और आपकी बातें! अच्छा सुनिए, अपनी चहेतियों के लिए लड्डू लेना न भूलिएगा!”
“तुमको लगता है कि केवल दो दो लड्डुओं से काम हो जाएगा मेरी लाडलियों का?” सुनील भी हँसते हुए बोला, “पूरी दूकान ले कर जाना पड़ेगा वापस घर!” उसने कहा, और दोनों पास की मिठाई की दूकान की तरफ़ चलने लगे।
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जब दोनों वापस आए, तब तक मैं अपने काम में व्यस्त था। मेरे स्टडी की खिड़की से बाहर का दृश्य दिखता था। मंदिर जाते समय माँ को ऐसी सुन्दर सी साड़ी और हल्का सा मेकअप पहने देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा। कितनी सुन्दर लग रही थीं मेरी माँ! लगभग पहले के जैसी! मतलब दो तीन साल पहले नहीं - करीब पंद्रह बीस साल पहले जैसी! बहुत सुन्दर हैं मेरी माँ! सच में - दुःख और अवसाद के बादल छँटने के साथ उनकी सुंदरता साफ़ दिखाई दे रही थी। एक लम्बे अंतराल के बाद मैंने उनके होंठों पर मुस्कान, और चेहरे पर जीवन की दमक देखी थी।
‘कैसी सुन्दर सी लगती थी मेरी माँ! क्या हालत हो गई है बेचारी की!’ मैंने सोचा... लेकिन फिर कुछ आश्चर्यचकित करने वाला दृश्य नोटिस किया।
बारिश में दोनों ही गीले हो गए थे - छतरी की हालत देख कर लग रहा था कि किसी तेज़ हवा में वो छतिग्रस्त हो गई थी। बात वो नहीं थी - सुनील और माँ साथ साथ ऐसे चल रहे थे जैसे कोई गहरी दोस्ती हो दोनों में! हँसते मुस्कुराते! माँ जैसी हो गई थीं, मुझे लगता था कि वो इस अवस्था में मेरे सामने भी न आतीं। लेकिन आज वो अलग ही लग रही थीं। बढ़िया! मानता हूँ कि सुनील और माँ की दोस्ती मेरे लिए एक नई सी बात थी! लेकिन मैंने इस बात को वैसे बहुत सीरियसली नहीं लिया। हाँ - इस बात को मैं पूरी तरह स्वीकार करता हूँ कि सुनील के आने से माँ पर कई सकारात्मक प्रभाव पड़े थे। जहाँ काजल ने उनको अवसाद के गर्त में और गहरे गिरने से बचाया था, वहीं सुनील ने उनको उस गर्त से बाहर लाने में एक अहम् भूमिका अदा करी थी। ऐसे में अगर दोनों में मित्रता हो गई है, तो क्या गलत हो गया? इन फैक्ट, यह तो बहुत ही अच्छी बात है। जैसे काजल उनकी सखी सहेली है, वैसे ही सुनील भी उनका दोस्त! अच्छी बात है। उधर लतिका भी तो माँ को अपनी माँ जैसा ही ट्रीट करती है। जबकि उन दोनों में रिश्ता ही क्या था?
माँ को जो भी ख़ुशी मिल पाए, उनको ले लेना चाहिए। हर ख़ुशी पर उनका हक़ है - उन्होंने कोई ऐसा काम नहीं किया कि उनको किसी तरह का कष्ट, या दुःख भोगना पड़े।
कल की मीटिंग के बारे में सुनील से थोड़ा बात चीत करने लगा। मैं चाहता था कि वो भी मेरे साथ चले, और उससे बातचीत कर ले। मैं सुनील से बोला,
“सुनील, यार कल मीटिंग और प्रेजेंटेशन है। थोड़ा मेरे साथ बैठोगे? तैयारी हो जाएगी मेरी!”
“हाँ भैया। बिलकुल। बस मुझे पाँच मिनट दीजिए। मैं कपड़े चेंज कर के तुरंत आया!”
उधर लतिका और आभा माँ को घेर कर मिठाई की ज़िद करने लगे। दोनों मेरी आँखों के तारे थे। लड़कियाँ वैसे भी किसी भी घर की रौनक होती हैं - और अगर लड़कियाँ इन दोनों परियों के जैसी प्यारी प्यारी, मीठी मीठी हों, तो कौन आदमी दुःखी हो सकता है भला? शाम को दोनों बच्चियाँ, सुनील और मैं - चारों जने देर तक कुछ भी मूर्खतापूर्ण वाले खेल खेलते रहे थे। और कितना मज़ा आया था! सच में - यह काम और बार करना चाहिए मुझे।
माँ दोनों बच्चों को बारी बारी से मिठाईयाँ खिला रही थीं। सच में, उन दोनों का केवल दो लड्डुओं से काम नहीं चलने वाला था। दोनों वापस आते समय चार पैकेट मिठाईयाँ लाए थे। और दोनों नन्ही चंचल शैतानें कुछ ही देर में हर डब्बे से कम से कम एक चौथाई मिठाईयाँ चट कर गईं। वैसे बच्चे अगर मीठा न खाएँगे, तो और कौन खाएगा?
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कपड़े बदलने के लिए माँ ने अभी बस अपनी साड़ी और पेटीकोट उतारी ही थी, कि लतिका उनके कमरे में आ जाती है। हमारे बच्चों को प्राइवेसी का कोई तुक नहीं समझ में आता था। उसकी मम्मा केवल चड्ढी पहने हुए बहुत क्यूट सी लग रही थीं।
“मम्मा?”
“हाँ बेटू,” कह कर माँ ने पलट कर देखा तो दरवाज़े पर लतिका को खड़े पाया।
लतिका की आदत थी कहीं भी, किसी के साथ भी सो जाने की। आभा ज्यादातर काजल के साथ सोती थी - क्योंकि काजल उसको सोने से पहले स्तनपान कराती थी, और बस कभी कभी ही माँ के साथ। लेकिन लतिका कभी भी, कहीं भी चली जाती थी, और सो जाती थी।
“हाS मम्मा - यू लुक सो क्यूट!” उसने चहकते हुए कहा।
माँ को तब ध्यान आया कि उनकी कैसी अवस्था थी। माँ शायद इतनी नग्नावस्था में लतिका से सामने कभी नहीं आई थीं। बारिश हो जाने से गर्मी की रात में थोड़ी राहत मिल रही थी! लेकिन हमेशा की ही तरह लतिका नंगू पंगू ही थी।
“चल, क्यूट की बच्ची!”
“हाँ - मैं हूँ न आपकी ही बच्ची!” लतिका ने बड़े लाड़ से कहा, फिर बोली, “मम्मा, आपको सूसू हो गया है क्या?”
“नन्ननहीं तो,” माँ हकलाते हुए बोली, “क्यों?”
“फिर आपकी कच्छी गीली गीली क्यूँ है?”
“बारिश में भीग गई हूँ बेटू!” माँ ने शर्माते हुए कहा।
“ओह, मम्मा! आई शुड हैव गॉन विद यू, इंस्टेड ऑफ़ दादा!”
माँ उसकी बातों पास मुस्कुराए बिना नहीं रह पाती थीं। लतिका थी भी तो खूब प्यारी! उसकी बातों पर बिना मुस्कुराए, बिना हँसे रहे ही नहीं जा सकता।
“हा हा हा!”
“कम मम्मा! रिमूव दिस गीलू गीलू कच्छी, एंड कम टू बेड ! आई विल स्लीप विद यू टुनाइट!”
“अरे, बट आई नीड टू हैव फ़ूड!”
“ओके, बट लाई विद मी टिल आई स्लीप?”
माँ ने लतिका की बात का अनुसरण किया - उन्होंने कमरे की बत्ती बुझाई, अपनी चड्ढी उतारी, और लतिका के बगल आ कर बिस्तर पर लेट गईं। दोनों मम्मा - बेटी / बोऊ-दी - ननद एक जैसी हो गईं।
“मम्मा, आप न्यूड हो कर बहुत सुन्दर लगती हैं!”
“हा हा हा! अच्छा जी? आपको सब दिखता है?”
“हाँ न! एकदम मॉडल जैसी लगती हैं आप!”
आप चाहे कुछ सोचें, लेकिन बच्चों की बातों की भोली सच्चाई को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। अपने बारे में सच सच जानना हो, तो किसी बच्चे से पूछें।
“हा हा हा! थैंक यू बेटू!”
लतिका ने उनका एक स्तन सहलाते हुए कहा, “मम्मा, आपके ब्रेस्ट्स भी बहुत क्यूट हैं, आपके ही जैसे!”
“क्या हो गया बच्चे?”
“मम्मा आई वांट टू ड्रिंक योर मिल्क!”
“तो पी लो न बेटू! मैंने कब मना किया है तुमको?”
“नहीं मम्मा! आई मीन, आई वांट टू ड्रिंक योर मिल्क... योर रियल मिल्क! योर एक्चुअल, स्वीट, एंड डिलीशियस मिल्क!”
“लेकिन मैंने तुमको बताया तो कि उसके लिए मुझे पहले शादी करनी होगी!” माँ ने उसका एक गाल प्यार से खींचते हुए और उसका मुँह चूमते हुए कहा।
“आई नो मम्मा!”
“हम्म्म, फिर किस से करूँ शादी? बताओ? कोई है आपकी नज़र में?”
“हम्म!” लतिका गहरी सोच में पड़ने का नाटक करने लगी।
“अब आई बात समझ में दादी माँ?”
“ओह, सो द प्रॉब्लम इस यू डोंट हैव अ प्रॉपर ग्रूम!”
“यस! टेल मी, डू यू हैव समवन इन योर फ्रेंड सर्किल?” माँ ने मज़ाक में पूछा।
“आई लाइक आयुष,” लतिका ने भी तपाक से बोल दिया, “ही इस काइंड ऑफ़ क्यूट!”
“काइंड ऑफ़ क्यूट?” माँ ने उसको छेड़ा, “यू वांट मी टू मैरी सम वन हू इस जस्ट काइंड ऑफ़ क्यूट?”
लतिका को समझ में आया कि हाँ उसकी मम्मा के लिए बेस्ट मैन चाहिए, उससे कम कुछ नहीं चलेगा, “यू आर राइट मम्मा! उसका साइड का एक दाँत टूटा हुआ है। ओन्ली अ हैंडसम ग्रूम विल बी सूटेबल फॉर यू! नो! नॉट हिम!”
माँ उसकी भोली सी बात पर हँसने लगीं, “चल, अब सो जा! बहुत रात हो गई!”
“नो! वेट न मम्मा! अंशुमान इस गुड लुकिंग!”
वो लतिका का बेस्ट फ्रेंड था, और क्लास में हमेशा फर्स्ट आता था। माँ को मालूम था उसके बारे में।
“बट ही फाइट्स विद यू!” लतिका अक्सर उसकी शिकायत घर आ कर करती थी, “हमारी शादी के बाद वो तुमसे झगड़ा करेगा, तो मैं उससे प्यार नहीं करूँगी। और प्यार नहीं करूँगी तो हमारे बच्चे कैसे होंगे?” माँ भी लतिका के खेल में शामिल हो गई थीं, “और... और अगर उसने तुमको दुद्धू पिलाने से मना कर दिया तो?”
“हाँ! ही कैन डू दैट मम्मा! ही कैन बी वैरी मीन!”
“और हमारी शादी के बाद तुम उसको क्या कह कर बुलाओगी?” माँ ने लतिका को छेड़ा, “डैडी?”
“ओह यक!”
“हा हा हा हा! चल अब सो जा!”
लेकिन लतिका ऐसे हार मानने वाली नहीं थी, “मम्मा?”
“हा हा हा, हाँ बेटू?”
“आप दादा से शादी कर लो न!” लतिका ने इतने भोलेपन से यह बात कही कि माँ समझ ही नहीं पाईं कि लतिका शरारत कर रही है, या सीरियस है, “ही इस हैंडसम! ही इस अ बिट डार्क कलर्ड, बट ही लुक्स हैंडसम! ही लव्स मी, ही लव्स यू! एंड ही लव्स एवरीवन! एंड आई विल नॉट माइंड कालिंग हिम डैडी!”
“सो जा बेटू,” माँ बड़े शांत स्वर में बोलीं - सुनील का नाम सुन कर उनको घबराहट नहीं हुई इस बार!
“सच में मम्मा! एंड आई विल आल्सो नॉट माइंड कालिंग यू माय बोऊ-दी!” लतिका ने अचूक दाँव मारा, “आई थिंक दादा विल लव यू खूब!”
“सच में बेटू?” माँ ने बड़े धीमे स्वर में कहा।
“हाँ मम्मा! आई थिंक ही लव्स यू!” लतिका ने फिर से कहा, “एंड... आई विल लव टू हैव यू ऍस माय बोऊ-दी!”
“हम्म्म!”
माँ लतिका की बात पर सोच में पड़ गईं कि कहीं सुनील ने ही तो लतिका को नहीं भेजा है उनको उलझाने!
“मम्मा?”
“हाँ बच्चे?”
“आई वंस सॉ अंकल एंड अम्मा मेकिंग लव!” लतिका ने मेरे और काजल के अंतरंग सम्बन्ध के बारे में खुलासा करते हुए कहा।
“ओह गॉड!”
“नो मम्मा! इट वास ऑलराइट! आई कुड सी दैट अम्मा वास वेरी हैप्पी! अंकल मेड अम्मा वेरी हैप्पी!”
माँ को अचम्भा हुआ, लेकिन फिर भी उन्होंने खुद को संयत करते हुए कहा, “तो आपको सब मालूम है?”
“सब नहीं, लेकिन कुछ कुछ तो मालूम है!” लतिका ने सयानेपन से कहा।
“क्या मालूम है आपको?” माँ जानना चाहती थीं कि लतिका कहीं किसी और बात को ‘लव मेकिंग’ से कन्फ्यूज़ तो नहीं कर रही है।
“व्हाट आई सॉ वास दैट अंकल वास थ्रस्टिंग हिज पीनस इन अम्मा!” लतिका ने कहा, और फिर अचानक ही भोलेपन से पूछ लिया, “नहीं मालूम होना चाहिए क्या मम्मा?”
“मालूम होना चाहिए मेरी बेटू, लेकिन अभी नहीं! इट इस टू अर्ली फॉर यू!”
“यू वर मैरीड एट फोर्टीन! आई ऍम टेन!” लतिका ने माँ को समझाते हुए कहा।
“जी दादी माँ! समझ गई!” माँ ने फिर से लतिका को छेड़ा - उनको हैरत हुई कि आज वो अपनी पुचुकी के साथ कैसा व्यवहार कर रही थीं! जैसे भाभी और ननद के बीच हँसी मज़ाक होता है, ठीक वैसा ही, “लेकिन तुम्हारी शादी चौदह में नहीं होने वाली! समझ जाओ मेरी लाडो रानी!”
लेकिन लतिका को तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था, “मम्मा, दादा विल आल्सो मेक यू वैरी हैप्पी!”
“अच्छा जी?”
“यस मम्मा!”
“चल अपने दादा की पूँछ! सो जा अब!” माँ ने बात बदलने की गरज से कहा।
“मम्मा, आई थिंक ही रियली रियली लव्स यू!” लतिका ने कुछ देर चुप रह कर कहा।
“सच में?” माँ के मुँह से अनायास ही यह दो शब्द निकल पड़े।
“आई स्वेर मम्मा! ही लव्स यू सो मच!”
“हम्म्म, और मैं उनसे शादी कर लूंगी, तो तुमको अच्छा लगेगा?”
“बहुत अच्छा लगेगा मम्मा! आई विल बी सो हैप्पी!” लतिका माँ को चूमते हुए बोली, “आप दोनों के बेबीज़ भी बहुत क्यूट होंगे!”
“हम्म्म! यू वांट मी टू हैव बेबीज विद योर दादा?”
“यस मम्मा! इट विल बी अमेज़िंग - डोंट यू थिंक सो?”
“हम्म, एंड यू वांट योर दादा टू मेक लव विद मी द वे अंकल मेड लव विद योर अम्मा?”
लतिका बोली, “मम्मा, आप कितनी उदास उदास रहती हैं! इफ दादा कैन मेक यू हैप्पी, देन यस - आई वांट हिम टू मेक लव टू यू एक्साक्ट्ली लाइक अंकल मेड लव टू अम्मा! आई वांट यू टू बी वेरी हैप्पी!”
“एंड डू यू थिंक दैट ही कैन मेक मी हैप्पी?”
“आप दादा के साथ कितना हँसती मुस्कुराती हैं!” लतिका ने पूरी स्पष्टता से कहा, “आप बाहर नहीं जाती थीं कभी! गाना नहीं गाती थीं कभी। अपने लिए नए कपड़े नहीं लेती थीं। लेकिन उनके कहने पर आप सब करने लगी हैं। ही मेक्स यू हैप्पी! आई नो यू एन्जॉय हिज कंपनी! एंड आई थिंक यू लव हिम एस वेल!”
बच्चों से कुछ छुपा नहीं रहता : उनको मनुष्य की सहज वृत्तियाँ खूब समझ आती हैं।
लतिका ने कहना जारी रखा “सो यस, आई नो दैट ही विल मेक यू वेरी हैप्पी!”
“हम्म... सोचेंगे बेटू, सोचेंगे!”
“पक्का न, मम्मा?”
“हाँ बेटू, पक्का! आई प्रॉमिस!”
“आई लव यू, मम्मा! ऑलवेज! आप अगर मेरी बोऊ-दी नहीं भी बनती हो, तब भी मैं आपको बहुत प्यार करूँगी। लेकिन उस केस में आप दादा से बेटर ग्रूम से शादी करना!”
लतिका ने कहा, और अपनी मम्मा के एक चूचक से जा लगी!
‘‘इनसे’ बेहतर ग्रूम कहाँ मिलेगा भला? प्रेम सबसे बड़ी बात है! मुझसे इतना प्रेम करने वाला भला और कौन हो सकता है?’
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लतिका की भोली बातें, सुनील के साथ बिताया हुआ समय, उसकी प्रेम भरी बातें - माँ को रात भर तड़पाती रहीं। जैसे तैसे वो सो तो गईं लेकिन आज रात भी सपने में उनके सुनील ही सुनील छाया हुआ था। उनको अचरज हुआ कि सवेरे उठ कर उनको अपना जो भी सपना याद आया, उन सभी में सुनील ही सुनील था! और जब वो बिस्तर से उठीं, तो उन्होंने देखा कि रात भर उनकी योनि से कामरस का ऐसा स्राव हुआ कि बिस्तर पर बिछे चादर पर एक बड़ा सा गीला धब्बा बन गया था! लतिका तब तक कमरे से जा चुकी थी। मतलब उसने भी उनकी वो दशा देख ली होगी।
‘हे भगवान्!’
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धन्यवाद मेरे भाईइन दोनों अपडेट्स को पढ़ा
बस चार शब्दों के बीच आपने बड़ी शालीनता से परोसा है
आह
दाह
चाह
राह
इन चार शब्दों के इर्द गिर्द आशाएं, भावनाएँ इच्छायें उम्र और सामाजिक बंधनों से बहुत आगे ले गए हैं
जिसके लिए एक पांचवां शब्द बनता है, जो बार बार दोहराया जा सकता है
वाह वाह वाह
हा हा हा!! देखते हैं भाई।तो सुनील के दिल की आग ने उसकी दुल्हनिया के दिल में भी प्यार का जीरो वाट का बल्ब टिमटिमा दिया है अब देखना है की ये बल्ब कब हेलोजन लाईट बन कर चमकता है। आसार तो लग रहे है की जल्द ही गरज के साथ मूसलाधार बारिश होने वाली है। बहुत ही शानदार avsji भाई
ये क्या था? दो dots!
सेम कॉमेंट्स दो बार पोस्ट हो गए थे तो इसलिए एक को ऐसा कर दिया अब कॉमेंट्स डिलीट का ऑप्शन तो है नही अपने पासये क्या था? दो dots!