अचिन्त्य - Update # 11
अनेकों विचार आ जा रहे थे - और सारे के सारे अपरिचित से! ऐसे अपरिचित से विचारों के कारण मेरे दिल की धड़कनें और भी बढ़ गईं। मैं और लतिका - ये तो असंभव सा विचार था। अपनी बेटी जैसी लड़की से कैसे? यह सब कोई मज़ाक थोड़े ही होता है। लेकिन अम्मा सीरियस थीं... पूरी तरह!
‘बाप रे!’
‘ऐसे कैसे?’ ‘
... लेकिन... लेकिन माँ और पापा भी तो...’
‘ओफ़्फ़ सब कितना गड्डमड्ड है!’
मेरी नज़र अम्मा पर पड़ी। वो कुछ कह रही थीं,
“हम्म?” मैंने वर्तमान में आते हुए पूछा।
“मैंने कहा, जब से आई हूँ, तब से तुझको दूध भी नहीं पिलाया! ... और तूने भी एक बार भी नहीं पूछा!”
मैं नर्वस हो कर मुस्कुराया।
“चाहिए?” अम्मा ने कहा।
मैंने नर्वस हो कर ही ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“आ जा मेरा बेटा!”
“अम्मा... यहाँ?” मैंने आश्चर्य से फुसफुसाया।
“और कहाँ?” अम्मा ने मुझको आँखें दिखाईं।
झूठ-मूठ ही। वो शायद ही कभी मुझसे नाराज़ हुई हों! न तो अम्मा, और न ही माँ मुझसे नाराज़ हुई हैं कभी! ऐसा लगता है कि इन दोनों को केवल प्यार करना आता है। दोनों अगर कभी मुझसे नाराज़ भी होंगी, तो प्यार के कारण ही!
“हा हा... ठीक है अम्मा!”
मन तो मेरा हमेशा ही रहता है! दुग्धपूरित चूचकों से फूट कर जब नरम गरम दूध मुँह में आता है, तो ऐसी अद्भुत फ़ीलिंग आती है जिसका शब्दों में व्याख्यान नहीं किया जा सकता! वो ही इस सुख को जानते हैं, जिन्होंने बड़े हो कर स्तनपान का लाभ लिया हो! मैं ज़मीन से उठ कर सोफ़े पर बैठने को हुआ तो वो बोलीं,
“ऐ... लतिका की तरह तू भी पसीने से लथपथ है। ... ये सब उतार... नहीं तो मुझे मत छू!”
“अम्मा... उतार तो दूँ... ले... लेकिन अम्मा... यहाँ तो कोई भी आ जाएगा! ... सब ओपन में है!”
वैसे ये बात बेबुनियाद थी। घर में सभी को सब पता था! बस, ससुर जी ही थे, जिन्होंने कभी मुझको यह करते देखा नहीं था। मालूम होना अलग बात है, और आँखों देखना अलग।
लेकिन... बात वो नहीं थी - बात दरअसल यह थी, कि लतिका का मानस चित्र सोच सोच कर लिंग में स्तम्भन होने लगा था। एक बहुत लम्बे अंतराल के बाद मेरे लिंग में स्तम्भन हो रहा था, लिहाज़ा, उस पर से मेरा नियंत्रण ही चला गया था। ऐसा लग रहा था कि उसमें अपने आप ही जीवन शक्ति भर गई हो!
“तो? ऐसे कौन से अजनबी हैं यहाँ जो तुझे नंगा देख लेंगे, तो तेरा कुछ हो जाएगा?”
“अम्मा!”
“चुप कर...” अम्मा ने मुझको सीधा खड़े रहने का इशारा किया, और सबसे पहले चड्ढी समेत मेरा लोअर उतारते हुए बोलीं, “तेरे पापा और मम्मी तो नहीं शर्माते मुझसे... और तू आया है बड़ा...”
“मैं भी नहीं शर्मा रहा हूँ अम्मा!”
शर्मा तो रहा था - जब से अम्मा को मैंने अम्मा माना था, तब से उनके सामने ये नहीं हुआ था। शर्म तो आ ही रही थी। मन की बातें अवश्य ही कोई न पढ़ सके, लेकिन मन की बातों के कारण लिंग पर जो प्रभाव पड़ा था, अब वो अम्मा के सामने था। प्रत्यक्ष को क्या प्रमाण? लेकिन उन्होंने उस बारे में कुछ भी नहीं कहा। बस मेरी दशा देख कर मुस्कुराईं।
“हाँ, शर्माना भी मत!” फिर मज़ाक करते हुए बोलीं, “और फिर ये तो मेरा हक़ है!” उन्होंने टी-शर्ट उतारते हुए कहा।
“पूरा हक़ है अम्मा!”
“और... वैसे भी नुनु को हवा लगते रहनी चाहिए! ... हेल्दी हेल्दी रहता है सब!” उन्होंने मेरे लिंग को और वृषणों को सहलाते हुए समझाया।
जैसे मुझे यह सब समझाने की कोई आवश्यकता थी! जैसे मैं कोई छोटा बालक था! न जाने अपने ‘बुज़ुर्गों’ की नज़र में मैं कब बड़ा होऊँगा! इतनी बड़ी कंपनी चला रहा हूँ, लेकिन जैसे ही इनके सामने आ जाओ, वो सब बातें जैसे मायने ही नहीं रखतीं! वैसे, सच में, इन लोगों की नज़र में बड़ा होने का मन होता भी नहीं! अम्मा, माँ, पापा, डैडी, और दीदी - ये सभी लोग मुझको प्यार भी तो इतना अधिक करते हैं। डर सा लगता है कि अगर बड़ा हो गया, तो इस प्यार से वंचित रह जाऊँगा!
पंखे की हवा से पसीना जल्दी सूख गया, और तब मैं अम्मा की गोद में लेट गया। उनकी गोद में सर रखते ही जैसे दुनिया जहान की चिंताएँ बहने लगीं। एकदम से हल्का लगने लगा। इसीलिए तो इतना बड़ा हो कर भी स्तनपान करने के लोभ से खुद को रोक नहीं पाता था मैं! एक अलग ही तरह की शांति मिलती थी मुझे... अलौकिक!
“अमर... बेटे...” अम्मा ने ब्लाउज़ उतारते हुए कहा, “मुझे मालूम है कि मेरी बातें सुन कर तुझे अजीब सा लग रहा होगा! सोच रहे होगे कि ये बुढ़िया क्या कह रही है!”
“क्या अम्मा...”
“... लेकिन सच कहूँ?” अम्मा ने मेरी बात को अनसुना करते हुए कहना जारी रखा, “मुझे ऐसा लगता है न, कि हम दोनों परिवारों का ख़ून पूरी तरह से मिल जाना ही हमारी नियति है... सुमन और सुनील साथ हो गए! ... अब तू और लतिका भी साथ हो ले, तो मेरे दिल को सुकून आ जाए!”
“अम्मा ऐसे कैसे होता है? ... कितनी छोटी है वो मुझसे!” मैंने तर्क दिया।
“तेरा बाप, तेरी माँ से बाईस साल छोटा है... तो?”
इस बात पर मैं क्या बोल पाता!
“वो दोनों क्या खुश नहीं हैं? दोनों में प्यार नहीं है? दोनों का भरा पूरा परिवार नहीं है? तुझे सुनील से बाप का प्यार नहीं मिलता? क्या कमी है उन दोनों के सम्बन्ध में?”
सही बात है - इसमें उम्र के अंतर वाला तर्क तो बेकार है।
“सच सच बता बेटे, तेरा मन नहीं होता?”
“किस बात का अम्मा?” मैंने बहाना किया!
मुझे अच्छे से मालूम था कि अम्मा क्या पूछ रही थीं। वो भी जानती थीं कि मैं बहाना कर रहा हूँ।
“स्त्री का संग पाने का... उसका प्यार पाने का... संतान का सुख पाने का!”
“अम्मा...” मैंने फिर से उनकी बात टालने का प्रयास किया, “प्यार तो मुझको खूब मिलता है... बहुत! ... आपसे और माँ से। इस उम्र में जो मैं करता हूँ, वो कोई सोच भी सकता है भला?”
“ये तो हम माँओं का प्यार है तेरे लिए बेटे,” अम्मा ने अपने दुग्धपूरित स्तन पर मेरा हाथ रखते हुए कहा, “... लेकिन जिस सुख, जिस प्रेम की बात मैं कर रही हूँ, वो हम माँएँ तो नहीं दे सकतीं न तुझे!”
मैंने उनके स्तनों को देखते हुए कहा, “मुझे अब वो चाहिए भी नहीं अम्मा!”
“क्यों नहीं चाहिए भला?” अम्मा थोड़ा अपसेट सी हो गईं... शायद मेरी बात से निराश हो गईं हों, “तुम्हारे लिए तुम्हारे सुख के लिए कुछ सपने देख लिए तो क्या गलत कर दिया मैंने?”
जो आपके लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर चुका हो, अगर वो आपके कारण दुःखी हो जाए, तो अच्छा नहीं लगता। मेरा दिल बैठ गया।
“... ऐसे मत करो बेटे! अभी तेरी माँएँ हैं... हमको भी अभी बहुत ममता लुटानी है... मैं अपनी गोदी में अपने परपोता - परपोती को खिलाना चाहती हूँ! ... मैं चाहती हूँ कि तुझको सुख मिले!”
“हा हा... अम्मा... मेरी प्यारी अम्मा... आपका दूध पीने को मिल रहा है, मैं खूब सुखी हूँ!” कह कर मैंने उनके एक चूचक को मुँह में ले लिया।
“मालूम था कि तू यही कहेगा...”
“अम्मा?”
“बोल?”
“अगर... अगर आप सच में चाहती हैं कि... तो आदेश दीजिए अम्मा!”
“आदेश नहीं दूँगी बच्चे... तब तू मेरी बात टाल नहीं सकेगा। ... इसलिए इस मामले में आदेश तो कभी नहीं दूँगी!” अम्मा ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा, “तू लतिका और अपना नाम साथ में ले भी नहीं पा रहा है... ऐसी हालत में मैं आदेश कैसे दूँ?”
“ओह अम्मा!”
“मैंने पहले भी कहा है न - अगर तू लतिका को चाहता है न, तब मैं तेरी और उसकी शादी कर दूँगी!!”
मैंने कुछ नहीं कहा।
“लेकिन, अगर लतिका तुझे पसंद नहीं है, फिर इस बात में जबरदस्ती नहीं हो सकती!” अम्मा ने निराशा से कहा, “... वैसे अगर तुझे कोई और पसंद है, तो बता दे न... मुझको बस तेरी ख़ुशी चाहिए!”
“कोई भी नहीं पसंद है अम्मा...”
मेरा मन भी उतर गया। अम्मा के दुग्धपूरित स्तन सामने थे लेकिन दूध की एक बूँद भी पी न सका। न माँ का, और न ही अम्मा का! कितने पास... और कितने दूर!
अम्मा हठात ही मुस्कुराईं, “मेरा बेटा... मेरा राजा बेटा!” फिर अचानक ही उठते हुए, “चल आ जा!”
“कहाँ अम्मा?”
“पहले की ही तरह तुझको नहला देती हूँ आज... फिर उसके बाद तुझे दूध पिलाऊँगी, आराम से!” अम्मा ने कहा, और तेजी से अपनी ब्लाउज के बटन बंद कर के अपने कपड़े व्यवस्थित करने लगीं।
“मैं नहा लूँगा अम्मा... खुद से!”
“नो बहस!”
“जो आज्ञा माते!” कह कर मैं उनके पीछे चलने लगा।
वो तो अम्मा की उपस्थिति ही थी कि मेरा लिंग अर्धस्तम्भित अवस्था में था फिलहाल, नहीं तो उस पर मेरा नियंत्रण ही नहीं बन पा रहा था! जब एक वांछित (desirable) लड़की की कल्पना ऐसे वांछित रूप में हो जाए, तो फिर आदमी को अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण हो भी तो कैसे? लेकिन अम्मा के पीछे उस हालत में चलना बेहद शर्मसार कर देने वाला था। मन में बस यही आ रहा था कि कोई उस समय बाहर न आ जाए!
मैं और अम्मा चलते हुए गुसलखाने तक आए ही थे, कि उसी समय लतिका अपने सीने पर एक पतली सी तौलिया लपेटे हुए गुसलखाने से बाहर निकली। उसके बाल गीले थे, जिसको वो एक दूसरी तौलिया से सुखाने की कोशिश कर रही थी। ऐसा कुछ भी सेक्सी जैसा नहीं था जो वो कर रही थी! लेकिन वो मादक मानस-छवि, और अब ये दृश्य... इन दोनों तस्वीरों का बड़ा भयंकर प्रभाव पड़ा मुझ पर!
लतिका ने पल भर को मेरी तरफ़ देखा तो पहले तो उसके गाल थोड़े लाल से हो गए, और फिर उसकी आँखें आश्चर्य से चौड़ी हो गईं। वो तेजी से मुड़ी - लेकिन मुझे ऐसा लगा कि उसके होंठों पर एक क्षीण मुस्कान भी आ गई थी।
मैं झेंप गया। बस... इसी बात का डर था मुझको। ये मेरे माँ बाप को समझ ही नहीं आता और मुझको बच्चों के जैसे ट्रीट करते हैं! पता नहीं क्यों नहीं समझते कि उनके सामने नग्न होना एक अलग बात है, लेकिन अपने से छोटों के सामने बिलकुल अलग! लेकिन थोड़ा बेहतर लगा कि कम से कम वो अपने कमरे की तरफ़ जाने लगी।
उसी क्षण मुझे देवयानी की याद हो आई। वो भी लतिका के जैसे ही करती थी। बाथरूम से बाहर आती, तो या तो तौलिया लपेटे, या फिर नग्न! और छुट्टी में तो नग्न हमेशा ही रहती!
लतिका अपने कमरे की ओर जा रही थी... और मैं उसको जाते हुए देखने लगा। तौलिया उसके सीने से बंधा हुआ था, और बहुत चौड़ा नहीं था। लिहाज़ा, वो केवल उसके नितम्बों को ही ढँके हुए था, और उसकी आधी से अधिक जाँघें खुली ही हुई थीं। ऐसा नहीं है कि मुझे लतिका के शरीर के आकार प्रकार का अंदाज़ा न हो - बहुत अच्छे से है! लेकिन उसको इस तरह से अनावृत देखना, यह एक अलग ही दृश्य था!
“आ जा,” अम्मा ने कहा और मुझको हाथ से पकड़ कर बाथरूम में ले आईं।
मैं शर्म से पानी पानी हो गया था अब तक - मेरा लिंग पूरी तरह से स्तंभित हो गया था। लतिका का मुझ पर ऐसा प्रभाव! और वो भी उसकी माँ के सामने!
‘ओफ्फ... न जाने अम्मा क्या सोचेंगी!’
मैंने अपने मन पर नियंत्रण करने की बहुत कोशिश करी, लेकिन न जाने कैसे उस पर प्रभाव कम होने के बजाय अधिक हो रहा था। और अम्मा थीं कि कुछ कह ही नहीं रही थीं। बस मुस्कुरा रही थीं।
“अरे मेरा जवान बेटा... क्या हो गया?” अंत में उन्होंने जब मुझको ऐसी रंजीदा हालत में देखा, तो बोलीं।
“पता नहीं अम्मा... न जाने कैसे ये...” मैंने बहाने करना शुरू किया।
“लतिका को देख कर नहीं हुआ?”
सत्य को क्या प्रमाण चाहिए?
“सॉरी अम्मा!” उनसे झूठ कैसे कहूँ?
“अरे इसमें सॉरी की क्या बात है? ... सुन्दर सी है... तुझे भी तो सुन्दर लगती है!”
“बहुत सुन्दर है अम्मा! ... लेकिन उसको देख कर मुझे ऐसे थोड़े ही होना चाहिए!”
“क्यों? बच्ची थोड़े ही है वो!”
“बच्ची नहीं है अम्मा... ले लेकिन हमारे लिए तो बच्ची है न?”
“मेरी बच्ची है... तेरी नहीं!”
“अम्मा! हाँ... ठीक है... लेकिन मेरे सामने ही तो बड़ी हुई है वो!”
“ऐसे तो तेरा बाप भी तेरे और तेरी माँ के सामने ही बड़ा हुआ है! उसको ले कर तो तुझे ऐसा वैसा नहीं लगा कभी!”
“ओह अम्मा!”
इस बात पर क्या बहस करूँ?
“देख बेटे... अच्छा जीवनसाथी होना चाहिए! ये उम्र वुम्र के फेर में न पड़ो!” अम्मा ने मुझको समझाते हुए कहा, “उसको पसंद करो, तो सही कारणों से... नापसंद करो, तो सही कारणों से! मैं बस इतना ही कहना चाहती हूँ!”
अम्मा ने कहा, और चुप हो गईं। मैं भी कुछ कह न सका!
“कितने दिनों बाद हुआ ये?” अम्मा ने कुछ पलों बाद पूछा।
“बहुत समय हो गया अम्मा!” मैंने गहरी साँस भरी, “बहुत समय!”
अम्मा को भी शायद इस बात से दुःख हुआ, “तो... तो तुम देख लो इसको... मैं थोड़ी देर में आती हूँ?”
अब तो शर्म आने के लिए भी कुछ नहीं बचा था। फिर भी शर्म आ गई।
“नहीं अम्मा... आप कहीं मत जाईए!” मैंने नर्वस होते हुए, जैसे तैसे कहा, “बस इसको पकड़ लीजिए कुछ देर...”
मुझे उम्मीद थी कि उनके स्पर्श से शायद मेरी कामुक फ़ीलिंग्स शांत हो जाएँ! मेरा मन इतना भी कमज़ोर नहीं था कि अम्मा जैसी मेरी आदरणीया के सामने मेरी ऐसी फ़ज़ीहत होती रहे। अम्मा ने मेरी बात को समझते हुए मेरे लिंग को पकड़ लिया। ममता के शीतल स्पर्श का प्रभाव तेजी से हुआ। कुछ ही पलों में लिंग की कठोरता क्षीण होने लगी, और वो वापस अपने सामान्य आकार में लौटने लगा।
अम्मा मुस्कुराईं, “मेरा बेटा है तू...” उन्होंने कहा, और मुझको चूम लिया, “मेरा प्यारा बेटा!”
मुझको नहलाने का उपक्रम सामान्य रहा - अगर एक माँ द्वारा अपने जवान बेटे को नहलाना सामान्य कहा जा सकता है तो! शरीर से तो सामान्य हो गया, लेकिन मन में एक अलग ही तरह की उथल पुथल मच गई थी। बहुत ही बुनियादी सवाल मन में उठ रहे थे - अम्मा मेरे और लतिका के बारे में ऐसे क्यों सोच रही थीं? क्या अंतर आ गया था अचानक ही? लतिका को ले कर मेरे मन में जो भ्रमित करने वाली भावनाएँ आ रही थीं, वो किस कारण से थीं? पापा और माँ को ले कर इतने भ्रमित करने वाले प्रश्न कभी नहीं उठे - उन दोनों के विवाह के समय कितना ठीक लगा था सब! दोनों को एक दूसरे से प्रेम है, दोनों बालिग़ हैं, तो फिर शादी करने में क्या हर्ज़? यही दलील दी थी मैंने! और इसी दलील पर सभी रिश्तों से लड़ भी लिया था। उनको अपना पापा मानने में भी उम्र वाला लॉजिक सामने नहीं लाया मैंने कभी! फिर लतिका के लिए क्यों?
अम्मा सही कह रही थीं - उम्र कोई कारण नहीं है। लतिका को पसंद करना या नापसंद करना उसकी उम्र नहीं, उसके गुणों के कारण होना चाहिए। यह तो हुई मेरी बात! लेकिन अगर लतिका के मन में कुछ हैं ही नहीं, तो? मतलब, शादी करने के लिए लतिका के भी मन में भी मेरे लिए वैसी ही भावनाएँ होनी चाहिए। एक हाथ से ताली तो नहीं बजती न! अचानक ही मन में विचार आया कि कहीं लतिका ने ही तो कुछ नहीं कह दिया अम्मा से!
कमरे में आ कर मैंने अम्मा से पूछने की हिम्मत कर ही ली, “अम्मा?”
मेरे शरीर पर बॉडी-आयल लगाते हुए अम्मा ने कहा, “हम्म?”
“आप अचानक से मेरे और लतिका के बारे में क्यों सोचने लगीं? ... क्या उसने कुछ कहा है? ... उसके मन में कुछ है?”
“मुझे कैसे मालूम होगा?” अम्मा ने दो-टूक अंदाज़ में कहा, “तुम दोनों को साथ में देख कर मुझे सुनील और बहू जैसा लगा इसलिए मैंने कह दिया! क्यों... अब अपने ही घर में अपने मन का नहीं कह सकती क्या?”
‘बाप रे!’
“नहीं नहीं अम्मा... मैंने वैसा कुछ नहीं कहा! आपको पूरा अधिकार है!”
“हाँ! वैसे... अगर तुझे उसके मन की बातें जानना है, तो पूछ ले न उसी से!”
“य्ये कैसे अम्मा!”
“देख बेटे... अगर जीवन भर साथ देने की बातें करनी हैं, तो पहला कदम तो उठाना ही पड़ेगा न! वो मैं नहीं करने वाली तुम्हारे बिहाफ़ पर... कम से कम तुम उसके मन की बातें पूछ लो...” अम्मा ने सुझाया।
मेरे सर को प्यार से सहलाते हुए वो आगे बोलीं, “लेकिन... सबसे पहले ये सोचो कि क्या तुमको लतिका का साथ चाहिए? तुमको वो अच्छी लगती है, वो तो मैंने देख लिया,” अम्मा ने अर्थपूर्वक कहा, “लेकिन... उसके साथ ज़िन्दगी गुजारना चाहोगे?”
मैं कुछ कह न सका - यह प्रश्न बड़ा विकराल था। इतने सालों से लतिका और मैं एक ही छत के नीचे रह रहे थे, जी रहे थे - प्रेमपूर्वक! एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि वो कभी भी हमसे दूर हो सकती है। लेकिन जब अम्मा ने उसकी शादी की बात कही, तो न जाने क्यों खालीपन जैसा महसूस हुआ - जैसे, अगर वो नहीं रही, तो न जाने हम कैसे रहेंगे! हम, मतलब मैं और आभा दोनों! आभा को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगेगा, यह तो मुझे अच्छे से मालूम है। लेकिन मैं? मुझको कैसा लगेगा?
घर में एक वीरानगी फैली हुई महसूस हुई! बहुत ही खराब सा लगा वो सोच कर!
गाला सूख गया!
अम्मा ने मुझको बिस्तर पर लाते हुए कह रही थीं, “मेरे बच्चे... कुछ सवालों के जवाब तो तुमको ही ढूँढने होंगे! ठीक से सोच लो... लतिका के बारे में तुमको सब मालूम ही है! और उसको भी तुम्हारे बारे में। बस, यह देखना है कि तुम दोनों के बीच प्यार की गुंजाईश है, या नहीं। उसके बाद हम लोग तो हैं ही... हम सब तुम्हारे बड़े हैं... तुम्हारी ख़ुशियाँ चाहते हैं! हम तो यही चाहते हैं कि तुम्हारा घर बसे, आगे बढ़े! ... तुम्ही लोगों से ही तो हमारा वंश आगे बढ़ेगा!”
अम्मा ने हमेशा मुझको सही मार्ग दिखाया था... हमेशा से ही! और आज कोई अपवाद नहीं था।
“ठीक आछे?” अम्मा ने पूछा।
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया। इतनी देर में पहली बार मुस्कुराया मैं। भावनात्मक रूप से सब भारी भारी था, लेकिन जब रास्ता दिखता है, तो हिम्मत बँधी रहती है।
“अब आओ,” अम्मा ने ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा, “इतनी देर तरसाया है तुमको,”
अमृत की धारा जब गले को सींचने लगी, तो यह ख़याल आए बिना नहीं रह सका कि लतिका के साथ दाम्पत्य कैसा होगा?
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