• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

Status
Not open for further replies.

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,193
23,426
159
b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c

प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
Last edited:

KinkyGeneral

Member
331
628
93
बहुत बहुत धन्यवाद मेरे भाई!
💜

न जाने कैसे इस कहानी से किसी को भी इन्सेस्ट वाली शिक्षा मिल सकती है! कमाल ही है!
दुखद

इस कहानी को पर्याप्त समय न दे पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
कोई बात नहीं भैया, कहानी तो आप अच्छी गति से बढ़ा रहे हैं आगे।

एक लम्बा अपडेट देने वाला हूँ, इसलिए समय लग रहा है।
वाह, फिर तो मौज हो जाएगी। :happy:

एक अपडेट लिखा था, लेकिन कहानी जिस तरह से बदली है, वो बेकार हो गया। :)
आराम से लिखिए, कोई जल्दी थोड़े ना है अपने को। 💕
 
  • Love
Reactions: avsji

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,342
16,921
144
कुछ दिन मैं आपके इस पन्ने से दूर क्या रहा कहानी को कुछ दूर तक आप ले आए हैं
जहां अमर को सुनील के द्वारा यह मालुम पड़ा कि लतिका की भी ख्वाहिश है अमर से विवाह करने की
लतिका के प्रति हालात और उसे अम्मा और माँ ने एक तरह से आसक्ति जगा दी है कि उसके भीतर अब भावनायें उमड़ने लगे हैं
लतिका का छत पर अंधेरे में अमर से घुमा फ़िरा कर बात करना बहुत ही बढ़िया रहा
अब लगता है कहानी बहुत जल्द निर्णायक मोड़ लेने वाली है
प्रतीक्षा रहेगी अगले अपडेट के लिए
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,342
16,921
144
Rathyatra GIF

पवित्र रथयात्रा की शुभकामनाएं
 
  • Love
Reactions: avsji

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,193
23,426
159
कुछ दिन मैं आपके इस पन्ने से दूर क्या रहा कहानी को कुछ दूर तक आप ले आए हैं
जहां अमर को सुनील के द्वारा यह मालुम पड़ा कि लतिका की भी ख्वाहिश है अमर से विवाह करने की
लतिका के प्रति हालात और उसे अम्मा और माँ ने एक तरह से आसक्ति जगा दी है कि उसके भीतर अब भावनायें उमड़ने लगे हैं
लतिका का छत पर अंधेरे में अमर से घुमा फ़िरा कर बात करना बहुत ही बढ़िया रहा
अब लगता है कहानी बहुत जल्द निर्णायक मोड़ लेने वाली है
प्रतीक्षा रहेगी अगले अपडेट के लिए

लिख रहा हूं। बहुत सा लिखा हुआ काटना पड़ा, इसलिए देरी हो रही है।
कल ही अपडेट दे पाना संभव होगा लगता है।
साथ बने रहें। अब आखिरी सफ़र की शुरुआत होने वाली है 🙂🙂🙂
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,193
23,426
159
अचिन्त्य - Update # 15


अगला दिन अम्मा के यहाँ जाने, और फिर वापस आ कर दिल्ली जाने की व्यस्तता में ही बीता।

पहले तो अम्मा के यहाँ इतना आनंद आया कि उनके घर से निकलने का मन ही नहीं कर रहा था - ये केवल मेरा ही नहीं, बल्कि सभी का ही हाल था। अपनी बात कहूँ, तो मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। उसके दो कारण थे - एक तो यह कि सभी को छोड़ कर जाने में दिल बैठा जा रहा था, और दूसरा यह कि लतिका को ले कर मुझको जो नया संज्ञान मिला था, उससे दो चार होना आसान काम नहीं था! जब कोई अचानक ही आपका ‘लव इंटरेस्ट’ बन जाता है, तब उसके साथ अचानक ही सब कुछ बदल जाता है! उसको देखने का नज़रिया, उसकी बातों का असर... सब कुछ! यहाँ सभी लोगों की उपस्थिति में लतिका से बातें कर पाना आसान था; लेकिन कल जब हम दिल्ली में होंगे, तब? तब कैसे बात करूंगा उससे? हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी कैसी होगी? यह तो पता ही था कि अब लतिका और मेरे बीच सब कुछ बदल गया है, लेकिन फिर भी एक उधेड़बुन तो बनी ही हुई थी मेरे मन में! रात का कुछ समय सामान पैक करने में बीत गया। मिष्टी शाम से ही सभी से रूठी हुई थी - जैसे सभी उसके गुनहगार हों! बच्चों को प्यार मिलता है, तो वो और प्यार की तलाश करने लगते हैं। उसका दोष भी क्या हो? कमोवेश यही हाल, आदित्य, आदर्श और अभया का भी था। बड़ी ‘बहन’ को ऐसे देख कर सभी बच्चे रोनी सूरत बना कर बैठे हुए थे। रात, बड़ी देर तक उनको बहलाने फुसलाने में ही बीत गई।

हम - ससुर जी, लतिका, आभा और मैं - सोमवार को सुबह सुबह की सबसे पहली फ्लाइट ले कर दिल्ली आ गए। मिष्टी और लतिका दोनों को पढ़ाई ज्वाइन करनी थी, और मुझको ऑफ़िस जाना था। हम चारों सीधा मेरे घर गए, और ससुर जी को आज यहीं पर रुक जाने को कहा। उन्होंने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया - इधर उधर भागने से बेहतर था कि वो दो तीन दिन यहीं रुक जाते। जयंती दी और उनका परिवार अभी भी गोवा में ही था, इसलिए बेहतर था कि वो साथ ही रहते। कामवाली आ कर खाना पका देती उनके और सबके लिए, इसलिए उनका यहीं रहना ठीक था। वापस आ कर मन नहीं लग रहा था। इतना सुन्दर सप्ताहांत बीता था अपने परिवार के साथ कि वापस चले जाने का मन हो रहा था मेरा। लेकिन क्या करें, काम करना भी तो ज़रूरी है!


*


अगले कुछ सप्ताह पंख लगा कर उड़ गए!

लतिका का आम व्यवहार बहुत नहीं बदला! कुछ बातें अवश्य ही बदल गईं। उसके अंदर मुझको ले कर जो थोड़ी बहुत झिझक थी, वो जाती रही। दिनचर्या उसकी अभी भी पहले ही जैसी थी, लेकिन मेरे साथ, उसका व्यवहार अब पहले से अधिक आश्वस्त हो गया था। उसके व्यवहार में एक ‘अधिकार-बोध’ दिखाई देने लगा था। अम्मा, माँ और पापा से हरी झण्डी मिलने के बाद उसको अपनी ‘पसंद’ पर भरोसा हो गया था। लिहाज़ा, अब वो मुझको शिष्ट और दबे-छुपे संकेत देने लगी थी। वो क्षण क्षण पर मंद मंद मुस्कान, कभी कभी बातों ही बातों में मुझको ‘गलती’ से छू लेना, पुनः वो थोड़े छोटे, और मनोहारी कपड़े, जैसे कि, मिडी स्कर्ट पहनना! घर में और रौनक रहने लगी! मेरे कपड़ों पर वो टिप्पणी भी करती कि मुझ पर ये वाला रंग अच्छा लगेगा; वो शर्ट अच्छी लगेगी; आज पैंट नहीं, जीन्स पहने इत्यादि! ये छोटे छोटे परिवर्तन ऑफ़िस में भी लोगों ने नोटिस किए। अच्छा लगता था। एक अलग ही तरह की तरंग और उमंग जीवन में आने लगी थी।

लेकिन शायद मैं ही था जिसको अपनी किस्मत पर भरोसा नहीं था। अभी भी सही दिशा ने किसी धक्के की आवश्यकता थी मुझको!

ऐसे में मैंने जयंती दी से किसी सप्ताहाँत मुलाक़ात करी। उन्होंने हमेशा की ही तरह मेरा हाल चाल लिया, और पुराने दिन याद किए। बातचीत के बहुत अंत में, और उनके बहुत कुरेदने पर, मैंने बहुत हिचकते हुए उनको बताया कि घर में सभी चाहते हैं कि मैं लतिका से शादी कर लूँ।

“पर तुम क्या चाहते हो?” दी ने दो-टूक शब्दों में मुझसे पूछा।

समझ नहीं आया कि मैं क्या उत्तर दूँ।

“दीदी... चाहता तो अब मैं भी हूँ कि मैं भी फिर से घर बसाऊँ... ख़ुश रहूँ...”

“लेकिन?”

“लेकिन... दीदी... डर लगता है अब!”

“किस बात से?”

“पहले गैबी... फिर डेवी... अब...”

“क्या तुमको इस बात का डर है कि उन दोनों के जैसे लतिका भी...” दीदी ने मेरे मन की बात कह दी।

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“ओह बेटा...” दीदी ने दुःखी होते हुए मेरे हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा, “ऐसे क्यों सोचते हो तुम? ... ठीक है... मान लिया कि कुछ समय के लिए तुम्हारी क़िस्मत ख़राब थी! ... लेकिन ये मान लेना कि क़िस्मत हमेशा खराब ही रहेगी, ये तो बड़ी बेवकूफ़ी वाली बात है न!”

ये तो मैं भी समझ रहा था।

“वैसे भी... अगर एक दिन के लिए भी सच्चा प्यार मिले न, तो ख़ुशी ख़ुशी ले लेना चाहिए!”

“वही तो दीदी,” मैंने तुरंत कहा, “गैबी के बाद मैंने सोचा भी नहीं था कि मुझको सच्चा प्यार फिर से मिलेगा... लेकिन फिर देवयानी मिली! ... दो दो बार मिला है मुझको सच्चा प्यार!”

“दो बार मिला, तो फिर तीसरी बार क्यों नहीं मिल सकता? ... तुम बार बार खराब किस्मत, खराब किस्मत कहते तो रहते हो, लेकिन तुम ये भी तो सोचो न कि उस खराब किस्मत के दौरान ही तुमको दो दो बार सच्चा प्यार मिला है!” उन्होंने समझाते हुए कहा, “... गलत कह रही हूँ?”

“नहीं दीदी!”

“इसलिए ये सब मत सोचो... बेवकूफ़ी में भगवान के दिए उपहार मत ठुकराओ! ... लतिका बहुत अच्छी है! मैं कह रही हूँ... और मैं मिष्टी की सगी मौसी हूँ! ... मेरा भगवान जानता है कि पिंकी के जाने के बाद मैं उसको अपनी बेटी बना के पालना चाहती थी। ... लेकिन मैंने लतिका को देखा है... वो कितने डिवोशन से उसको पालती आई है, प्रभु! ... और ये तब से है, जब वो खुद इतनी छोटी सी थी! इतना प्यार, इतनी ममता, और इतनी कोमलता है उसके अंदर!”

मैंने कुछ नहीं कहा।

“अमर... बेटे... तुम... तुम्हारा परिवार... तुम्हारा नया परिवार... बाहर से देखने वालों के लिए अजीब हो सकता है, लेकिन उनमें इतना प्यार भरा हुआ है कि उनके सामने किसी बात का कोई मोल ही नहीं है! ... शायद इसीलिए तुमको भगवान ने इतना कुछ दिया है। इतना प्यार करने वाला परिवार हो किसी के साथ, तो उसको किस बात की कमी रह सकती है?”

मेरी आँखों से आँसू टपक पड़े।

“बस एक ही सदस्य की कमी है... तुम्हारे लिए वाइफ की! समझे? मिष्टी की चिंता न करो! लतिका के रूप में उसको उसकी माँ मिली चुकी है! कोई कमी है, तो बस तुम्हारी लाइफ में ही है।”

“आप सब हैं... क्या कमी है?”

“हर तरह का प्यार चाहिए न? इमोशनल... फिजिकल... तुम और पिंकी तो कितने एक्टिव थे! ... हेल्दी लाइफ के लिए हेल्दी सेक्स लाइफ तो होनी चाहिए ही न!”

उनकी बात सुन कर मेरे गाल शर्म से लाल हो गए। शायद दीदी को मेरी झिझक दिखाई दे गई। वो बोलीं,

“... पता है, एंड आई विल बी वैरी ऑनेस्ट विद यू... जब मैंने दीदी और सुनील की शादी की पॉसिबिलिटी की बात डैडी के मुँह से सुनी, तो बड़ा अजीब लगा था मुझको! ... ये बात सुन कर शायद तुमको बुरा भी लगे... एंड आई ऍम सॉरी फॉर दैट! क्योंकि मैं भी आम लोगों के ही जैसी थी... मुझे सुनील का प्यार, उसके प्यार की सच्चाई समझ ही नहीं आई! ... जब मैंने ये सब सुना, तो सोचा कि कोई टीनएज फंतासी होगी उसकी!”

अगर दीदी ने ये सब सोचा, तो क्या गलत किया? सभी यही सोच रहे थे! मैं भी तो गुस्सा हो गया था - क्षणिक ही सही, लेकिन गुस्सा तो हुआ ही था।

“... दीदी पर हँसी भी आई कि बुढ़ापे में क्या बेवकूफ़ी करने निकली है! ऐसा भी कहीं होता है भला? ... जिसको अपने बच्चे की तरह पाल पोस कर बड़ा किया, अब वो उसके बच्चे करेगी? मैं उनको समझाना चाहती थी कि ऐसी बेवकूफ़ी न करे वो... जग-हँसाई होगी! ... लेकिन अच्छा हुआ कि मेरे कुछ कहने या करने से पहले ही डैडी ने मुझको समझा दिया! ... जब डैडी ने मुझको समझाया, तब थोड़ा थोड़ा समझ में आया कि प्यार क्या होता है!”

ओह, तो मतलब ससुर जी को मुझसे पहले पता था पापा और माँ के प्यार के बारे में? क्या क्या छुपाया गया है मुझसे?

“... तब आई प्यार की समझ मुझे!” दीदी कह रही थीं, “... तब समझ में आया कि तुम्हारे और पिंकी के बीच क्या था! ... वैसा ही भोला, वैसा ही सच्चा प्यार तुम्हारे और गैबी के बीच भी रहा होगा! ... सोचो! इतने साल बाद मुझको समझ में आया कि प्यार क्या होता है... और कहने को मैं इतनी बड़ी हो गई थी! ... सच में, मैं तुम सभी से बहुत सीखती हूँ!”

दीदी कुछ पलों के लिए रुकीं, फिर बोलीं, “देयर इस अ रीज़न कि डैडी लतिका को अपनी बेटी मानते हैं... दीदी को और काजल को अपनी बेटी मानते हैं... शायद मुझको बुरा लगना चाहिए, लेकिन बुरा ही नहीं लगता मुझे! ... वो बेटियाँ ही तो हैं उनकी! ... केवल जन्म लेने से थोड़े ही रिश्ते बनते हैं... प्यार से निभाने से बनते हैं।”

कह कर वो थोड़ी देर के लिए चुप हो गईं। मैंने ही चुप्पी तोड़ी।

“तो मैं क्या करूँ दीदी?”

“सोच के प्यार मत करो बेटा! बस प्यार करो! ... भगवान ने तुमको एक और मौका दिया है... तो जैसे पहले किया था, बस वैसे ही, एक और बार प्यार करो! ... लतिका बहुत प्यारी है... बहुत! तुमको बहुत सुख देगी! और मेरा दिल कहता है कि तुम्हारे परिवार को, तुम्हारे नाम को बढ़ाने में उसका बड़ा रोल रहेगा!” दीदी ने मुस्कुराते हुए, और मेरे सर के बालों को बिगाड़ते हुए कहा।

मैं थोड़ा नर्वस हो कर मुस्कुराया।

“सबसे पहले तो एक्सेप्ट करो कि तुम भी उसको चाहते हो... फिर, उसको भी एहसास कराओ कि तुम उसको चाहते हो! अपने प्यार को परवान चढ़ने दो! ... खुश रहने का मौका मिला है, तो खुश होवो! समझे? ऑल द बेस्ट!”


*


भारत के चौंतीसवें राष्ट्रीय खेल दो साल पहले ही हो जाने चाहिए थे। लेकिन उनको अब तक पाँच बार टाला जा चुका था! कारण? वही पुराना... अपने देश की विश्वविख्यात समस्या! ये राष्ट्रीय खेल, झारखण्ड में होने थे, और वहाँ खेल संबंधी बुनियादी ढांचे, जैसे कि विभिन्न खेलों और प्रतियोगिताएं के लिए स्टेडियम, सड़क, प्रतियोगियों के लिए निवास इत्यादि, को पूर्व-निर्धारित तारीखों पर, समय पर, बनाया नहीं जा सका था। बार बार टलने के और निरंतर अनिश्चितता के कारण, और क्या खेल होंगे भी या नहीं, इन कारणों से कई शीर्ष स्तर के खिलाड़ियों ने इस बार इन खेलों में भाग न लेने का फैसला ले लिया था, जो कि बहुत अच्छी बात नहीं थी। अच्छी बात यह थी कि झारखण्ड के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री ने इस बार वायदा किया था, कि इन खेलों में अब और देरी या और स्थगन नहीं होगा। वो राष्ट्रीय खेलों को अपने निर्वाचन की प्राथमिकता बनाना चाहते थे।

ऐसे में हमको भी लतिका की तैयारियों पर फ़ोकस करने में कठिनाई हो रही थी। कोई तय तारिख होती है, तो खिलाड़ी चाहते हैं कि जिस दिन प्रतियोगिता हो, उस दिन उनका सबसे बेहतरीन प्रदर्शन सामने आए - न उसके पहले, और न उसके बाद! ऐसे में अगर बार बार तारीख बदलती रहे, तो अपनी प्रैक्टिस कैसी करनी है, समझ नहीं आती! चोटिल होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं। आखिरकार, हमें पता चला कि राष्ट्रीय खेल फरवरी में होंगे! अच्छी बात है! जब एक निश्चित समयरेखा होती है, तो खिलाड़ी अधिक फ़ोकस से काम करते हैं। लतिका भी खूब मेहनत करने लगी। बढ़िया बात यह भी थी कि उसके ग्रेजुएशन के फाइनल एक्साम्स खेलों के दो-तीन महीने बाद होंगे! मतलब किसी भी बात में नुकसान नहीं होना था।

मैं लतिका की तैयारियों में और अधिक सक्रिय हो गया। मैं उसके साथ दौड़ता; उसे चुनौती देता; और उसकी शारीरिक कंडीशनिंग में उसकी मदद करता! एक पर्सनल ट्रेनर और न्यूट्रिशन कोच भी रखा। हमारी मेहनत रंग ला रही थी, क्योंकि अब लतिका सौ मीटर की दौड़, बारह सेकण्ड में दौड़ने लगी थी! ये बहुत रोमाँच भरा परिणाम था! हमको और भी आनंद मिला, जब उसे दिल्ली सरकार से बताया गया कि वो विभिन्न दौड़ों में दिल्ली राज्य का प्रतिनिधित्व करेगी! क्या बात है!

*

आभा की जाड़ों की छुट्टियाँ हुईं, तो प्लान बना कि क्यों न कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर चलें, छुट्टियाँ मनाने! आईडिया बड़ा अच्छा था। अब तो मुझको भी यूँ परिवार के साथ समय व्यतीत करने में बड़ा आनंद मिलता था। वो पहली जैसी भागम-भाग वाली भावना नहीं रह गई थी। बिज़नेस बढ़िया जम गया था; मेरी टीम बढ़िया थी - मुझ अकेले से कहीं अधिक क़ाबिल! तो उनके भरोसे छोड़ा जा सकता था सब कुछ!

अब चूँकि फ़रवरी में नेशनल गेम्स शुरू हो जाने वाले थे, और उसके लिए जो शिविर लगता, उसमें लतिका को हिस्सा लेना पड़ता। इसलिए ये छुट्टी बड़े अच्छे मौके पर आई थी। लतिका की कंडीशनिंग के लिए भी अच्छा था कि वो अपनी कमर-तोड़ ट्रेनिंग से थोड़ा ब्रेक लेती! ट्रेनिंग करते रहना ज़रूरी था, लेकिन शरीर को अपना बेस्ट परफॉरमेंस देने के लिए सही कंडीशन में होना आवश्यक है।

कहाँ जाएँ छुट्टी के लिए - इस बात पर आभा ने सुझाया कि क्यों न हम किसी बीच पर छुट्टियाँ मनाते हैं? ये भी अच्छा था - गरम जगह पर चोटिल होने की कम सम्भावना होती है; दिल्ली की हाड़-कंपाऊ ठण्ड से भी कुछ दिनों के लिए ही सही, लेकिन निज़ात मिलती है। सब ठीक था, लेकिन, मेरी हालत वही मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक वाली है [कोई पाठक इस मुहावरे को रिपोर्ट मत देना... इसमें साम्प्रदायिकता वाली कोई बात नहीं है]!

मैंने पापा को कॉल किया, कि मुंबई आ जाऊँ? तो उन्होंने कहा कि ज़रूर आ जाओ... लेकिन उन्होंने मुझको समझाया कि अगर इस ट्रिप में लतिका के साथ थोड़ा रोमांटिक होने का आईडिया है, तो क्यों न गोवा चलो? दो तीन कमरे किसी बढ़िया रिसोर्ट में बुक कर लेंगे, और मज़े करेंगे? उसके बाद अगर मन करे, तो मुंबई आ कर रहूँ! उनका आईडिया बढ़िया था। हम तीनों ने गोवा कभी देखा भी नहीं था, इसलिए सहमति बनी कि छुट्टियों के लिए वो एक अच्छी जगह थी! लिहाज़ा, हम तीनों नियत समय पर दिल्ली से गोवा के लिए रवाना हो गए।

*
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,193
23,426
159
अचिन्त्य - Update # 16


पापा ने दक्षिण गोवा के एक रिसोर्ट में तीन कमरे बुक किए थे। दक्षिण गोवा में शोर-गुल, भीड़, और गहमा गहमी कम रहती है। परिवारों के लिए अधिक मुफ़ीद जगह है। माँ और पापा की फ्लाइट हमसे दो घण्टे पहले ही पहुँच गई थी, लिहाज़ा, वो हमसे पहले ही रिसोर्ट पहुँच गए थे! और उन्होंने वहाँ पहुँच कर एक कमरा सभी बच्चों के लिए, एक उन दोनों के लिए, और एक मेरे और लतिका के लिए व्यवस्थित करवा दिया था। बच्चों के कमरे में केवल गद्दे रखवा दिए गए थे, और बाकी भारी फर्नीचर हटवा दिए गए थे, जिससे उनको कूदने फाँदने में चोट न लगे। चार बच्चे थे, और इसलिए उनको इस तरह की उछल कूद करने से कोई रोक नहीं सकता था। बस, हमारा विचार यही था कि आभा आ कर तीनों बच्चों की देख-रेख कर सकती है, उनकी गार्जियन बन सकती है! बच्चों का कमरा पापा और माँ वाले कमरे से सटा हुआ था, और दोनों कमरे दरअसल एक फैमिली विला का हिस्सा थे! अच्छी बात थी। मेरा और लतिका का कमरा उनके बगल था, और अलग था।

जब हम रिसोर्ट पहुँचे, तो माँ और पापा ने हमको अपना और हमारा कमरा दिखाया। इस व्यवस्था को देख कर लतिका शर्माने लगी। मैं भी झेंप गया था, लेकिन मैं पापा के साथ थोड़ा अलग चला गया।

लतिका को अकेली पाते ही माँ ने उसको छेड़ा,

“क्यों मेरी ननदिया,” माँ ने उसके कान में फुसफुसाते हुए छेड़ा, “बढ़िया अरेंजमेंट है न?”

“क्या मम्मा!”

“अच्छा जी, तो आज हम आपकी मम्मा हैं... बोऊ-दी नहीं?”

लतिका के गाल और भी लाल हो गए।

“देख... भगवान की कृपा रही, तो जल्दी ही मैं तेरी परमानेंट मम्मा बन जाऊँगी, और तेरे दादा बन जाएँगे तेरे पापा! ... कम से कम तब तक के लिए तो मुझे मेरी एकलौती ननदिया से छेड़खानी कर लेने दे!”

“हा हा... कर लीजिए बोऊ-दी, जैसी छेड़-खानी करने का आपका मन हो!” लतिका ने हँसते हुए माँ के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले कर कहा, “लेकिन रहना तो मुझे आपके आँचल तले ही है!”

“हा हा... अच्छा देख, ये इंतजाम इसलिए किया है हमने, क्योंकि हमको न तो तुझसे, और न ही अमर से कोई उम्मीद है! ... मतलब... हमको पक्का यकीन है कि तुम दोनों ने अभी तक कुछ भी किया नहीं होगा! ... अरे कुछ करना तो छोड़ो, हाथ भी नहीं पकड़ा होगा एक दूसरे का!” माँ ने फिर से उसको छेड़ा, “तो ये मौका है... यहाँ आराम है, सुन्दर सी जगह है... थोड़ा अपने जलवे दिखा उसको! ... जिया में आग लगने दे उसके...”

“ओओओहहहह... मतलब जैसे आप दादा को अपने जलवे दिखा कर उनके जिया में आग लगाती हैं, बोऊ-दी?” इतनी छेड़खानी से वो भी तंग आ गई, और वो भी माँ को छेड़ने लगी।

“हा हा... मेरे जैसी क्यों? मुझसे कुछ बेहतर कर न ननदिया! ... जवान है तू तो!”

“आपकी जवानी में क्या कमी है बोऊ-दी? ... आप तो इतनी सेक्सी हैं...” लतिका माँ को छेड़ती हुई बोली, “और आपका रूप...”

वो ये बात बोलती बोलती थोड़ा सा ठिठकी, और फिर जैसे माँ के किसी अदृश्य रूप का अवलोकन करती हुई बोली, “बोऊ-दी! क्या बात है! आपका रूप तो और भी निखर आया है! ... आप कितनी सुन्दर लग रही हैं, आपको कोई आईडिया भी है?” कहते हुए उसने माँ के एक स्तन पर अपना हाथ रखा, “और ये भी पहले से थोड़े सॉफ़्ट लग रहे हैं! सच में!”

लतिका की बात से माँ के गालों पर लज्जा की रंगत चढ़ गई। लेकिन, बोलीं वो कुछ भी नहीं।

“क्या बात है बोऊ-दी? बताइए न!” लतिका अभी भी धीमी आवाज़ में बोल रही थी, लेकिन उसका उत्साह देखने वाला था।

“अभी नहीं... बाद में!” माँ ने मुस्कुराते हुए, दबी हुई आवाज़ में कहा।

माँ के कहने के अंदाज़ में कुछ था, जो रहस्यमय था। लतिका के दिमाग में जैसे अचानक ही बल्ब जल गया हो! उसका संदेह शायद सही है!

बोऊ-दी! ... क्या सच में!?”

उत्तर में माँ के होंठों पर एक चमकदार मुस्कान आ गई!

वाओ!” कह कर लतिका माँ से लिपट गई, “ओह बोऊ-दी बोऊ-दी... आई ऍम सो हैप्पी! ... यू आर गॉड्स मिरेकल! आप सच में हमको ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ देने आई हैं!”

“थैंक यू बेटा...” माँ मुस्कुराईं।

“ओह गॉड! दिस इस सच अ हैप्पी न्यूज़! वाओ! ... आप ख़ुश तो हैं न बोऊ-दी?”

“बहुत!” माँ ने लज्जा से मुस्कुराते हुए कहा, “... अनएक्सपेक्टेड... कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा कुछ होगा, लेकिन...”

“कब पता चला?”

“दो सप्ताह पहले!”

“ओह बोऊ-दी! यू आर वंडरफुल...” लतिका के मन में माँ के लिए और भी प्यार उमड़ आया, “आई लव यू सो वैरी मच! ... वैसे... कौन सा महीना है?”

“चौथा...”

“शुरू हुआ है?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“वाओ बोऊ-दी! आई लव यू सो मच माय बोऊ-दी! दादा इस सो लकी टू हैव यू... देखो न... कण्ट्रोल ही नहीं होता उनसे!”

“हा हा!”

“किस किस को पता है?”

“इनको... और... अब तुमको!”

“ओह बोऊ-दी... आई लव यू!” लतिका ने बड़ी सावधानी से, लेकिन बड़े जोश में आ कर माँ को अपने आलिंगन में बाँध लिया, और उतने ही उत्साह से चहकते हुए बोली, “कब बताएँगे सबको?”

“जल्दी ही!” माँ ने कहा, “इसी वेकेशन के दौरान...”

लतिका ने उनको चूम लिया।


*


दिसंबर के अंत में गोवा जाना, मतलब क्रिसमस और नए साल के उत्साह की गहमा-गहमी से भी दो-चार होना। दक्षिण गोवा में उत्तर गोवा के मुकाबले कहीं अधिक शांति थी, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि नीरवता छाई रहती है वहाँ! अच्छी भीड़ हो ही जाती है। ऐसे में यह अच्छी बात थी कि रिसोर्ट का अपना प्राइवेट बीच था। कमरों में सामान रखते ही हम सभी सीधा बीच पर चले आए। बहुत बड़ा तो नहीं, लेकिन प्राइवेट बीच होने के कारण वहाँ साफ़ सफ़ाई थी, और अपेक्षाकृत बहुत सुरक्षित भी था।

मिष्टी अपने लिए मोनोकिनी और लतिका अपने लिए बिकिनी लाई हुई थी। आदित्य, आदर्श, और अभया बिना किसी कपड़े के बीच का आनंद ले सकते थे। माँ ने निक्कर और टी-शर्ट पहनी हुई थी, और पापा और मैं अपने अपने स्विमिंग ट्रंक लाए थे। लतिका ने माँ की टी-शर्ट और निक्कर देख कर आपत्ति जताई, और उनसे अपने लिए भी बिकिनी लेने की ज़िद करने लगी। माँ ने शुरू शुरू में हील हुज्जत करी, लेकिन फिर पापा की अनुशंसा पर वो मान गईं। रिसोर्ट में ही एक छोटी सी दुकान थी, वहीं से माँ ने भी अपने लिए बिकिनी ले ली।

बिकिनी में दो भाग होते हैं : ऊपर पहनने के लिए ब्रा जैसा टॉप, और नीचे के लिए चड्ढी। अगर बिकिनी पहन कर तैराकी करनी है, तो वो लायक्रा या इसी तरह के सिंथेटिक मटेरियल का बना होता है, लेकिन अगर केवल पानी में डुबकी लगानी है, तो सिंथेटिक और प्राकृतिक दोनों प्रकार के फैब्रिक्स का इस्तेमाल कर के बनाया जाता है।

हम सब बीच में डुबकी लगाने पहुँच गए। मैंने लतिका को भी, और माँ को भी बिकिनी पहने हुए, अपने जीवन में पहली बार देखा था! माँ और पापा के गोवा हनीमून की तस्वीरें और वीडियोस मैंने देखे हुए थे - कई तस्वीरों और वीडियोस में माँ ने बिकिनी पहनी हुई थी। और बेहद सुन्दर और आकर्षक लग रही थीं। माँ ने इस समय जो बिकिनी पहनी हुई थी, उसको उनके हनीमून के समय वाली बिकिनियों के मुकाबले ‘मॉडेस्ट’ कहना चाहिए। वो लैवेंडर रंग की थी। पहनने पर उनके स्तनों और श्रोणि का अधिकतर हिस्सा ढँका हुआ था, और बिकिनी का कपड़ा भी आरामदायक लग रहा था। हाँ, माँ के उस रूप का पापा पर जो असर होना चाहिए था, बिल्कुल वैसा ही हो रहा था! वो बार बार माँ को देख रहे थे, उनको छू रहे थे; कभी वो उनको अपने आलिंगन में ले रहे थे, तो कभी उनको चूम रहे थे। बढ़िया है यार! ऐसा ही प्रेम भरा जीवन होना चाहिए विवाहित जोड़ों का!

लतिका की बिकिनी माँ की बिकिनी से बेहद भिन्न थी। वो सफ़ेद रंग की थी, लिहाज़ा बिकिनी के टॉप में उसके स्तनों के आकार के साथ साथ उसके उभरे हुए चूचक भी साफ़ समझ में आ रहे थे। उस रूप में उसको देख कर, आज मुझको पहली बार समझ आया कि लतिका का सौंदर्य ‘क़यामत’ था! कहते हैं न, ख़ंजर चलना - बस, वही हालत मेरी हो गई थी। और मुझे पक्का यकीन है कि लतिका भी जानती थी कि उसका शरीर मेरे सामने प्रदर्शित हो रहा था, और वो देख कर मेरी क्या दशा हो रही थी। उसकी भोली आँखों, होंठों, और मुस्कान में वैसा कँटीला तीखापन हो सकता था, आज मैंने देख लिया था। लतिका का वो सेक्सी रूप देख कर मेरा हलक़ सूख गया!

‘बाप रे!’

पाठक दोस्तों - यह बहुत ही अन्यायपूर्ण बात है! सबसे पहली बात यह है कि समस्त जीव-जन्तुओं में, सम्भवतः एक मानव-जाति ही ऐसी है, जिसमें मादाएँ नर के मुक़ाबले कहीं अधिक सुन्दर होती हैं; और दूसरी बात यह है कि मानव मादाएँ चाहे कितनी भी भोली हों, उनको प्रकृति ने जैसे सिखा पढ़ा कर भेजा होता है, कि अपने रूप सौंदर्य और कमनीय हाव-भाव से अपने मानव नर का ‘नर-संहार’ कैसे करना है! ऐसा हो ही नहीं सकता कि लतिका को नहीं पता था कि उसका यह मादक और उत्तेजक रूप मेरे ऊपर कैसा प्रभाव डाल रहा था। सभी के सामने मेरी बेइज़्ज़ती न हो जाए, इसलिए मैं तेजी से पानी के भीतर चला गया।

समुद्री लहरों में खड़े हो कर अपने आप ही हँसी ख़ुशी और खिलखिलाहट आने लगती है। प्रकृति ने हामो ऐसा डिज़ाइन किया हुआ है शायद! समुद्री पानी में डूबना, उतराना; पैरों तले खिसकती रेत पर अपना बैलेंस बनाना इत्यादि आनंद-दायक काम हैं। ये और भी आनंद-दायक हो जाते हैं, जब आपके सभी स्नेही स्वजन आपके साथ होते हैं। तो हमने खूब देर तक पानी में अपनी अठखेलियों का आनंद उठाया। बच्चे तो सभी पूरे समय बस चहक ही रहे थे। बहुत देर तक खेलने के बाद एक समय ऐसा आया कि अचानक ही हम सभी को भूख लगने लगी। ऐसा होता है - पानी शरीर से काफ़ी ऊर्जा ले सकता है।

हम समुद्र से निकल कर रिसोर्ट में ही बीच पर लगे शॉवर के फ़ौव्वारों से रेत और समुद्री पानी धो कर, और स्वयं को या तो तौलियों या फिर बाथरोब से ढँक कर, नहाने के लिए अपने अपने कमरों में चले गए।

“आप नहाएँगे पहले?” लतिका ने पूछा - यह प्रश्न नहीं था, बल्कि एक सुझाव था।

मैंने आपसे कहा न, उसके व्यवहार में एक अधिकार-बोध आ गया था। उसके कहने का मतलब था कि मैं पहले नहा लूँ।

मैं बाथरूम में शॉवर करने चला गया। दरवाज़ा बंद नहीं किया, बस हल्के से भेड़ लिया। मैं शावर के नीचे आ कर खड़ा हुआ ही था कि लतिका भी अपनी स्विम बिकिनी पहने मेरे पीछे आ कर खड़ी हो गई।

“नहला दूँ?” उसने बहुत हल्के से पूछा - शावर की आवाज़ में उसकी आवाज़ दब सी गई।

“उम्म्म?” मैं सुन नहीं पाया।

तब तक उसका हाथ मेरे स्विम-ट्रंक की इलास्टिक पर पहुँच गया और उसको नीचे उतारने लगा। लतिका के अंदाज़ में ऐसी अनभ्यस्त अनिश्चितता थी कि मेरा मन कामुकता से भर उठा। परिणामस्वरूप मेरा लिंग बस तीन चार सेकण्ड्स में ही अपने पूरे उत्थान पर स्तंभित हो गया। अपने पूर्ण स्तम्भन में, मेरे लिंग की लतिका की कलाई से कहीं अधिक थी, और लम्बाई उसकी हथेली के बराबर थी! उत्तेजना के मारे मेरे लिंग में बड़ी मात्रा में रक्त बह रहा था, और उसकी नसें स्पष्ट रूप से फूली हुई दिखाई दे रहीं थीं। अपने उत्तेजित रूप में, मुझको मेरा लिंग बदसूरत सा लगता है! लेकिन शायद लतिका को वैसा नहीं लग रहा था।

ऐसा नहीं है कि लतिका ने मुझको पूर्ण नग्न पहले कभी नहीं देखा - अनगिनत बार देखा है। लेकिन जैसा मैंने पहले भी लिखा है, जब आप किसी को अपने ‘लव इंटरेस्ट’ के रूप में देखने लगते हैं, तब उसके साथ अचानक ही सब कुछ बदल जाता है!

लतिका ने कुछ कहा नहीं; उसने बस अपनी हथेली को मेरे लिंग पर लिपटा कर अपने होंठों को मेरे होंठों से सटा दिया। सच में मुझसे कुछ नहीं हो सकता था। मैं लतिका को आज से पहले भी ‘छोटा’ ही मानता आया था, लेकिन वो मेरे लिए अपने प्रेम-संज्ञान के बाद से, स्वयं को मेरे समकक्ष समझने लगी थी - पति पत्नी बराबर ही तो होते हैं! शायद इसीलिए उसके मेरे प्रति व्यवहार में वो अभिकार-बोध उपस्थित था। शायद इसीलिए उसने आज मेरे साथ पहल करी।

ओह, वो प्रथम चुम्बन! पूरे शरीर में करंट दौड़ गया, ऐसा मालूम हुआ!

उसकी महक, उसका स्वाद... कैसा अभूतपूर्व था! वो स्वयं भी उत्तेजित थी! उसकी साँसें भी मेरी साँसों के समान तेजी से चल रही थीं। हमारा पहला चुम्बन कम से कम दो मिनट तो चला ही होगा - ऐसा चुंबकीय आनंद था उसमें! शायद इसलिए भी क्योंकि आज बरसों बाद मुझको किसी स्त्री का संग मिला था! जब हमारा चुम्बन टूटा, तो हम दोनों ही गहरी गहरी साँसे भरते हुए, लज्जा से मुस्कुरा रहे थे। मुझको अधिक लज्जा आ रही थी, क्योंकि एक तो मैं लतिका के सामने पूरा नंगा खड़ा था, और दूसरा मेरा लिंग उसके हाथ में उफ़ान भर रहा था। न स्त्री का संग, न ही हस्त-मैथुन! ऐसे में मैं न जाने कब से भरा बैठा था। लतिका का स्पर्श पा कर मेरा लिंग जैसे नन्हे बच्चे की भाँति मचल उठा! अब वो अपनी सारी कला, अपने सारे नखरे लतिका को दिखाना चाहता था।

लेकिन अचानक उठी मचल, अचानक ही ख़तम भी हो जाती है। लतिका ने मेरे लिंग को कोमलता से पकड़ कर बस कुछ बार ही अपना हाथ आगे पीछे किया था कि शरीर में संचित वीर्य बाहर आने को तड़प उठा। और अगले तीन चार बार ही में पिछले बीस बाइस दिनों का संचित कोष अपने पूरे बल से किसी विस्फोट के मानिंद बाहर निकल पड़ा। लतिका अपनी हथेली पर उस दबाव को महसूस कर के चौंक भी गई। वो इस बात के लिए तैयार नहीं थी। पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, और फिर पाँचवा स्खलन उसी के ऊपर जा कर गिरा।

मेरी आँखें बंद हो गई थीं...

आनंद, राहत, लज्जा...

थोड़ा संयत हुआ, तो इस बार मैंने पहल कर के लतिका के चेहरे को अपने हाथों में भरा, और फिर से उसके कोमल होंठों को चूमने लगा। दीपावली में रोपी गई इच्छा अब फिर से जागृत होने लगी। मैंने उसके बिकिनी टॉप के बैंड को पकड़ा, और उसको उसके स्तनों के ऊपर उठाने की कोशिश करने लगा। लतिका के हाथ तुरंत ही मेरे हाथों के ऊपर आ गए। जो मैं कर रहा था उसको रोकने के लिए!

मेरी आँखें खुलीं और लतिका की आँखों से मिलीं।

उसने आँखों में ही ‘न’ करने की विनती करी।

जिससे प्रेम करो, उसकी हर बात मानो! यह बात अम्मा ने भी, और माँ ने भी मुझको सिखाई थी। मैं मान गया। लेकिन विनती उसको नग्न न करने की थी... प्रेम करने से मना करने के लिए थोड़े ही थी!

मैंने झुक कर उसके दोनों स्तनों को उसकी बिकिनी टॉप के ऊपर से ही बारी बारी से चूमा, और फिर एक स्तन का चूचक अपने मुँह में भर के चूसने लगा! जहाँ माँ और अम्मा के स्तनों से मीठा दूध मिलता है, वहीं लतिका के बिकिनी टॉप के कारण समुद्री खारेपन का स्वाद आने लगा। लेकिन उस खारेपन के कारण आनंद में कोई कमी नहीं थी!

उसको यूँ छेड़ते हुए वो गाना याद आ गया : समुन्दर में नहा के और भी नमकीन हो गई हो!

सच में, समुन्दर में नहा कर लतिका के सौंदर्य का नमक और भी बढ़ गया था! हमारे ऊपर शावर चल रहा था, तो वो खारापन लगातार धुलता भी जा रहा था। लेकिन फिर भी आनंद में कोई कमी नहीं थी। न जाने कब तब मैंने उसके दोनों स्तनों को पिया! इन सब बातों की कोई गणना थोड़े ही की जाती है! काम-क्रीड़ा तो तब तक चलती है, जब तक कि दोनों खिलाड़ी न जीत जाएँ!

जैसा कि मुझे उम्मीद थी, लतिका को भी मेरे द्वारा आज अपना पहला ओर्गास्म मिल ही गया। उसकी गहरी गहरी साँसें, और थरथराता हुआ जिस्म इस बात की गवाही दे रहे थे!

अभी तक हम दोनों ने ही कुछ भी नहीं कहा था। काम का ज्वार थोड़ा कम हुआ तो हमने नहाने का उपक्रम किया। बाकी लोगों को समय लगना था - चार बच्चे, और पापा और माँ! सभी को तैयार होने में समय लगना ही था। लिहाज़ा हमारे पास भी समय था। कुछ समय पहले ज़ोर की भूख अचानक ही गायब हो गई! मैं नहा कर पहले निकला। लतिका को बालों पर शैम्पू भी करना था, इसलिए वो मुझसे देर तक नहाने वाली थी। वैसे भी वो नहीं चाहती थी कि मैं उसको नग्न देखूँ, तो फिर बाथरूम में क्या करने को रुकूँ? मैं बाहर निकल आया।

“सुनिए?” कोई दस मिनट बाद लतिका की आवाज़ आई।

पहली बार हम में से किसी ने कुछ बोला।

“हाँ?”

“टॉवल दे दीजिए!”

“ओके,” मैंने कहा, और बाथरूम के दरवाज़े के पीछे से बाहर निकले हुए उसके हाथ पर मैंने तौलिया थमा दी।

हाँ हाँ, फाइव स्टार होटलों में बाथरूम में ही तौलिए रखे जाते हैं। लेकिन हम लोगों ने बीच पर यही तौलिए इस्तेमाल कर लिए थे। कुछ देर बाद लतिका बाथरूम से बाहर निकली।

आधे गीले आधे सूखे बाल, और साँवले शरीर पर सीने से ले कर जाँघों तक लिपटी झक सफ़ेद तौलिया! बाहर निकलते ही उसने मुझको देखा और मुस्कुरा उठी। कारण? मैं अभी भी नग्न था। मेरा लिंग फिर से उत्तेजना के मारे उठा हुआ था।

“क्या हो गया मेरी जान?” उसने बड़ी ही कोमलता से पूछा।

ऐसा सुकून मिला इस बात को सुन कर कि शब्दों में कैसे बयान करूँ, समझ ही नहीं आ रहा है। सच में! क्या किस्मत है मेरी! तीसरी बार प्यार की बहार आई है जीवन में! और कैसी सुन्दर! कैसी भोली! कैसी अनूठी!

“कण्ट्रोल ही नहीं हो रहा है, लतिका!”

वो मुझे मेरा हाथ पकड़ कर बिस्तर पर लाई, और मुझको बिस्तर पर बैठाते हुए बोली, “आपको पता है न कि मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया!

बड़ा सुखद एहसास था इस बात को मानना! मुस्कान आ गई मेरे चेहरे पर!

आई ऍम सेविंग माइसेल्फ फॉर यू... फॉर आवर वेडिंग डे... नाईट!” उसने कहा, “मैं... मैं चाहती हूँ कि आप मुझको पहली बार... वैसे देखें... तो हमारी शादी के बाद देखें...”

मैंने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

उसकी बात पर मुझे हैरत भी हुई, और अपने उतावलेपन से निराशा भी!

“लेकिन... मैं समझती हूँ! ... अगर मैं... आप उसके पहले भी मुझसे किसी तरह का सुख चाहते हैं, तो बताइए!”

उसने कहा और बिस्तर पर अपने सीने के बल लेट कर उसने अपना तौलिया खोल दिया।

लतिका के शरीर का पृष्ठभाग पूरी तरह से अनावृत हो कर मेरे सामने था।

‘ओह! कैसी कमाल की है मेरी दुल्हन!’ यह विचार मेरे मन में आए बिना नहीं रह सका।

मैंने कुछ देर तक उसको निहारा और अपना पूरा आत्मबल अपनी कामुक इच्छाओं पर नियंत्रण करने पर लगा दिया। हाँ, लतिका के लिए मेरे मन में कामुक इच्छाएँ थीं, लेकिन उसके चरित्र, उसके व्यवहार, और उसके लिए मेरे मन में अगाध सम्मान भी था!

मुझे लतिका से प्यार था! बहुत प्यार!

मैंने उसके ऊपर झुक कर उसकी पीठ को चूमा और कहा,

“आई लव यू, लतिका... आई लव यू!”

*
 
Last edited:

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
3,944
5,030
144
बहुत शानदार और गुढ़ शब्द का उचित प्रयोग
अभिकार
अभिकारक यह विज्ञान से संबंधित शब्द है। रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेने वाले पदार्थों को अभिकारक कहते हैं।

अभीकारकों से मिलकर उत्पाद बनते हैं।
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
3,944
5,030
144
avsji भाई साहब, प्रेम कि अभिव्यक्ति के पुर्व ही... संभोग क्रिया का प्रदर्शन ... भाई जी कथा कुछ अनकही रह गई ऐसा प्रतीत होता है।

लतिका का विवाह प्रस्ताव का अनुमोदन कर लेना वो भी पुरुष पात्र के निवेदन के पुर्व??? मन में कई अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गया

स्वप्न तो नहीं देख रहे अमर सिंह जी????
 
Last edited:

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
19,250
39,861
259
अचिन्त्य - Update # 15


अगला दिन अम्मा के यहाँ जाने, और फिर वापस आ कर दिल्ली जाने की व्यस्तता में ही बीता।

पहले तो अम्मा के यहाँ इतना आनंद आया कि उनके घर से निकलने का मन ही नहीं कर रहा था - ये केवल मेरा ही नहीं, बल्कि सभी का ही हाल था। अपनी बात कहूँ, तो मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। उसके दो कारण थे - एक तो यह कि सभी को छोड़ कर जाने में दिल बैठा जा रहा था, और दूसरा यह कि लतिका को ले कर मुझको जो नया संज्ञान मिला था, उससे दो चार होना आसान काम नहीं था! जब कोई अचानक ही आपका ‘लव इंटरेस्ट’ बन जाता है, तब उसके साथ अचानक ही सब कुछ बदल जाता है! उसको देखने का नज़रिया, उसकी बातों का असर... सब कुछ! यहाँ सभी लोगों की उपस्थिति में लतिका से बातें कर पाना आसान था; लेकिन कल जब हम दिल्ली में होंगे, तब? तब कैसे बात करूंगा उससे? हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी कैसी होगी? यह तो पता ही था कि अब लतिका और मेरे बीच सब कुछ बदल गया है, लेकिन फिर भी एक उधेड़बुन तो बनी ही हुई थी मेरे मन में! रात का कुछ समय सामान पैक करने में बीत गया। मिष्टी शाम से ही सभी से रूठी हुई थी - जैसे सभी उसके गुनहगार हों! बच्चों को प्यार मिलता है, तो वो और प्यार की तलाश करने लगते हैं। उसका दोष भी क्या हो? कमोवेश यही हाल, आदित्य, आदर्श और अभया का भी था। बड़ी ‘बहन’ को ऐसे देख कर सभी बच्चे रोनी सूरत बना कर बैठे हुए थे। रात, बड़ी देर तक उनको बहलाने फुसलाने में ही बीत गई।

हम - ससुर जी, लतिका, आभा और मैं - सोमवार को सुबह सुबह की सबसे पहली फ्लाइट ले कर दिल्ली आ गए। मिष्टी और लतिका दोनों को पढ़ाई ज्वाइन करनी थी, और मुझको ऑफ़िस जाना था। हम चारों सीधा मेरे घर गए, और ससुर जी को आज यहीं पर रुक जाने को कहा। उन्होंने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया - इधर उधर भागने से बेहतर था कि वो दो तीन दिन यहीं रुक जाते। जयंती दी और उनका परिवार अभी भी गोवा में ही था, इसलिए बेहतर था कि वो साथ ही रहते। कामवाली आ कर खाना पका देती उनके और सबके लिए, इसलिए उनका यहीं रहना ठीक था। वापस आ कर मन नहीं लग रहा था। इतना सुन्दर सप्ताहांत बीता था अपने परिवार के साथ कि वापस चले जाने का मन हो रहा था मेरा। लेकिन क्या करें, काम करना भी तो ज़रूरी है!


*


अगले कुछ सप्ताह पंख लगा कर उड़ गए!

लतिका का आम व्यवहार बहुत नहीं बदला! कुछ बातें अवश्य ही बदल गईं। उसके अंदर मुझको ले कर जो थोड़ी बहुत झिझक थी, वो जाती रही। दिनचर्या उसकी अभी भी पहले ही जैसी थी, लेकिन मेरे साथ, उसका व्यवहार अब पहले से अधिक आश्वस्त हो गया था। उसके व्यवहार में एक ‘अधिकार-बोध’ दिखाई देने लगा था। अम्मा, माँ और पापा से हरी झण्डी मिलने के बाद उसको अपनी ‘पसंद’ पर भरोसा हो गया था। लिहाज़ा, अब वो मुझको शिष्ट और दबे-छुपे संकेत देने लगी थी। वो क्षण क्षण पर मंद मंद मुस्कान, कभी कभी बातों ही बातों में मुझको ‘गलती’ से छू लेना, पुनः वो थोड़े छोटे, और मनोहारी कपड़े, जैसे कि, मिडी स्कर्ट पहनना! घर में और रौनक रहने लगी! मेरे कपड़ों पर वो टिप्पणी भी करती कि मुझ पर ये वाला रंग अच्छा लगेगा; वो शर्ट अच्छी लगेगी; आज पैंट नहीं, जीन्स पहने इत्यादि! ये छोटे छोटे परिवर्तन ऑफ़िस में भी लोगों ने नोटिस किए। अच्छा लगता था। एक अलग ही तरह की तरंग और उमंग जीवन में आने लगी थी।

लेकिन शायद मैं ही था जिसको अपनी किस्मत पर भरोसा नहीं था। अभी भी सही दिशा ने किसी धक्के की आवश्यकता थी मुझको!

ऐसे में मैंने जयंती दी से किसी सप्ताहाँत मुलाक़ात करी। उन्होंने हमेशा की ही तरह मेरा हाल चाल लिया, और पुराने दिन याद किए। बातचीत के बहुत अंत में, और उनके बहुत कुरेदने पर, मैंने बहुत हिचकते हुए उनको बताया कि घर में सभी चाहते हैं कि मैं लतिका से शादी कर लूँ।

“पर तुम क्या चाहते हो?” दी ने दो-टूक शब्दों में मुझसे पूछा।

समझ नहीं आया कि मैं क्या उत्तर दूँ।

“दीदी... चाहता तो अब मैं भी हूँ कि मैं भी फिर से घर बसाऊँ... ख़ुश रहूँ...”

“लेकिन?”

“लेकिन... दीदी... डर लगता है अब!”

“किस बात से?”

“पहले गैबी... फिर डेवी... अब...”

“क्या तुमको इस बात का डर है कि उन दोनों के जैसे लतिका भी...” दीदी ने मेरे मन की बात कह दी।

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“ओह बेटा...” दीदी ने दुःखी होते हुए मेरे हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा, “ऐसे क्यों सोचते हो तुम? ... ठीक है... मान लिया कि कुछ समय के लिए तुम्हारी क़िस्मत ख़राब थी! ... लेकिन ये मान लेना कि क़िस्मत हमेशा खराब ही रहेगी, ये तो बड़ी बेवकूफ़ी वाली बात है न!”

ये तो मैं भी समझ रहा था।

“वैसे भी... अगर एक दिन के लिए भी सच्चा प्यार मिले न, तो ख़ुशी ख़ुशी ले लेना चाहिए!”

“वही तो दीदी,” मैंने तुरंत कहा, “गैबी के बाद मैंने सोचा भी नहीं था कि मुझको सच्चा प्यार फिर से मिलेगा... लेकिन फिर देवयानी मिली! ... दो दो बार मिला है मुझको सच्चा प्यार!”

“दो बार मिला, तो फिर तीसरी बार क्यों नहीं मिल सकता? ... तुम बार बार खराब किस्मत, खराब किस्मत कहते तो रहते हो, लेकिन तुम ये भी तो सोचो न कि उस खराब किस्मत के दौरान ही तुमको दो दो बार सच्चा प्यार मिला है!” उन्होंने समझाते हुए कहा, “... गलत कह रही हूँ?”

“नहीं दीदी!”

“इसलिए ये सब मत सोचो... बेवकूफ़ी में भगवान के दिए उपहार मत ठुकराओ! ... लतिका बहुत अच्छी है! मैं कह रही हूँ... और मैं मिष्टी की सगी मौसी हूँ! ... मेरा भगवान जानता है कि पिंकी के जाने के बाद मैं उसको अपनी बेटी बना के पालना चाहती थी। ... लेकिन मैंने लतिका को देखा है... वो कितने डिवोशन से उसको पालती आई है, प्रभु! ... और ये तब से है, जब वो खुद इतनी छोटी सी थी! इतना प्यार, इतनी ममता, और इतनी कोमलता है उसके अंदर!”

मैंने कुछ नहीं कहा।

“अमर... बेटे... तुम... तुम्हारा परिवार... तुम्हारा नया परिवार... बाहर से देखने वालों के लिए अजीब हो सकता है, लेकिन उनमें इतना प्यार भरा हुआ है कि उनके सामने किसी बात का कोई मोल ही नहीं है! ... शायद इसीलिए तुमको भगवान ने इतना कुछ दिया है। इतना प्यार करने वाला परिवार हो किसी के साथ, तो उसको किस बात की कमी रह सकती है?”

मेरी आँखों से आँसू टपक पड़े।

“बस एक ही सदस्य की कमी है... तुम्हारे लिए वाइफ की! समझे? मिष्टी की चिंता न करो! लतिका के रूप में उसको उसकी माँ मिली चुकी है! कोई कमी है, तो बस तुम्हारी लाइफ में ही है।”

“आप सब हैं... क्या कमी है?”

“हर तरह का प्यार चाहिए न? इमोशनल... फिजिकल... तुम और पिंकी तो कितने एक्टिव थे! ... हेल्दी लाइफ के लिए हेल्दी सेक्स लाइफ तो होनी चाहिए ही न!”

उनकी बात सुन कर मेरे गाल शर्म से लाल हो गए। शायद दीदी को मेरी झिझक दिखाई दे गई। वो बोलीं,

“... पता है, एंड आई विल बी वैरी ऑनेस्ट विद यू... जब मैंने दीदी और सुनील की शादी की पॉसिबिलिटी की बात डैडी के मुँह से सुनी, तो बड़ा अजीब लगा था मुझको! ... ये बात सुन कर शायद तुमको बुरा भी लगे... एंड आई ऍम सॉरी फॉर दैट! क्योंकि मैं भी आम लोगों के ही जैसी थी... मुझे सुनील का प्यार, उसके प्यार की सच्चाई समझ ही नहीं आई! ... जब मैंने ये सब सुना, तो सोचा कि कोई टीनएज फंतासी होगी उसकी!”

अगर दीदी ने ये सब सोचा, तो क्या गलत किया? सभी यही सोच रहे थे! मैं भी तो गुस्सा हो गया था - क्षणिक ही सही, लेकिन गुस्सा तो हुआ ही था।

“... दीदी पर हँसी भी आई कि बुढ़ापे में क्या बेवकूफ़ी करने निकली है! ऐसा भी कहीं होता है भला? ... जिसको अपने बच्चे की तरह पाल पोस कर बड़ा किया, अब वो उसके बच्चे करेगी? मैं उनको समझाना चाहती थी कि ऐसी बेवकूफ़ी न करे वो... जग-हँसाई होगी! ... लेकिन अच्छा हुआ कि मेरे कुछ कहने या करने से पहले ही डैडी ने मुझको समझा दिया! ... जब डैडी ने मुझको समझाया, तब थोड़ा थोड़ा समझ में आया कि प्यार क्या होता है!”

ओह, तो मतलब ससुर जी को मुझसे पहले पता था पापा और माँ के प्यार के बारे में? क्या क्या छुपाया गया है मुझसे?

“... तब आई प्यार की समझ मुझे!” दीदी कह रही थीं, “... तब समझ में आया कि तुम्हारे और पिंकी के बीच क्या था! ... वैसा ही भोला, वैसा ही सच्चा प्यार तुम्हारे और गैबी के बीच भी रहा होगा! ... सोचो! इतने साल बाद मुझको समझ में आया कि प्यार क्या होता है... और कहने को मैं इतनी बड़ी हो गई थी! ... सच में, मैं तुम सभी से बहुत सीखती हूँ!”

दीदी कुछ पलों के लिए रुकीं, फिर बोलीं, “देयर इस अ रीज़न कि डैडी लतिका को अपनी बेटी मानते हैं... दीदी को और काजल को अपनी बेटी मानते हैं... शायद मुझको बुरा लगना चाहिए, लेकिन बुरा ही नहीं लगता मुझे! ... वो बेटियाँ ही तो हैं उनकी! ... केवल जन्म लेने से थोड़े ही रिश्ते बनते हैं... प्यार से निभाने से बनते हैं।”

कह कर वो थोड़ी देर के लिए चुप हो गईं। मैंने ही चुप्पी तोड़ी।

“तो मैं क्या करूँ दीदी?”

“सोच के प्यार मत करो बेटा! बस प्यार करो! ... भगवान ने तुमको एक और मौका दिया है... तो जैसे पहले किया था, बस वैसे ही, एक और बार प्यार करो! ... लतिका बहुत प्यारी है... बहुत! तुमको बहुत सुख देगी! और मेरा दिल कहता है कि तुम्हारे परिवार को, तुम्हारे नाम को बढ़ाने में उसका बड़ा रोल रहेगा!” दीदी ने मुस्कुराते हुए, और मेरे सर के बालों को बिगाड़ते हुए कहा।

मैं थोड़ा नर्वस हो कर मुस्कुराया।

“सबसे पहले तो एक्सेप्ट करो कि तुम भी उसको चाहते हो... फिर, उसको भी एहसास कराओ कि तुम उसको चाहते हो! अपने प्यार को परवान चढ़ने दो! ... खुश रहने का मौका मिला है, तो खुश होवो! समझे? ऑल द बेस्ट!”


*


भारत के चौंतीसवें राष्ट्रीय खेल दो साल पहले ही हो जाने चाहिए थे। लेकिन उनको अब तक पाँच बार टाला जा चुका था! कारण? वही पुराना... अपने देश की विश्वविख्यात समस्या! ये राष्ट्रीय खेल, झारखण्ड में होने थे, और वहाँ खेल संबंधी बुनियादी ढांचे, जैसे कि विभिन्न खेलों और प्रतियोगिताएं के लिए स्टेडियम, सड़क, प्रतियोगियों के लिए निवास इत्यादि, को पूर्व-निर्धारित तारीखों पर, समय पर, बनाया नहीं जा सका था। बार बार टलने के और निरंतर अनिश्चितता के कारण, और क्या खेल होंगे भी या नहीं, इन कारणों से कई शीर्ष स्तर के खिलाड़ियों ने इस बार इन खेलों में भाग न लेने का फैसला ले लिया था, जो कि बहुत अच्छी बात नहीं थी। अच्छी बात यह थी कि झारखण्ड के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री ने इस बार वायदा किया था, कि इन खेलों में अब और देरी या और स्थगन नहीं होगा। वो राष्ट्रीय खेलों को अपने निर्वाचन की प्राथमिकता बनाना चाहते थे।

ऐसे में हमको भी लतिका की तैयारियों पर फ़ोकस करने में कठिनाई हो रही थी। कोई तय तारिख होती है, तो खिलाड़ी चाहते हैं कि जिस दिन प्रतियोगिता हो, उस दिन उनका सबसे बेहतरीन प्रदर्शन सामने आए - न उसके पहले, और न उसके बाद! ऐसे में अगर बार बार तारीख बदलती रहे, तो अपनी प्रैक्टिस कैसी करनी है, समझ नहीं आती! चोटिल होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं। आखिरकार, हमें पता चला कि राष्ट्रीय खेल फरवरी में होंगे! अच्छी बात है! जब एक निश्चित समयरेखा होती है, तो खिलाड़ी अधिक फ़ोकस से काम करते हैं। लतिका भी खूब मेहनत करने लगी। बढ़िया बात यह भी थी कि उसके ग्रेजुएशन के फाइनल एक्साम्स खेलों के दो-तीन महीने बाद होंगे! मतलब किसी भी बात में नुकसान नहीं होना था।

मैं लतिका की तैयारियों में और अधिक सक्रिय हो गया। मैं उसके साथ दौड़ता; उसे चुनौती देता; और उसकी शारीरिक कंडीशनिंग में उसकी मदद करता! एक पर्सनल ट्रेनर और न्यूट्रिशन कोच भी रखा। हमारी मेहनत रंग ला रही थी, क्योंकि अब लतिका सौ मीटर की दौड़, बारह सेकण्ड में दौड़ने लगी थी! ये बहुत रोमाँच भरा परिणाम था! हमको और भी आनंद मिला, जब उसे दिल्ली सरकार से बताया गया कि वो विभिन्न दौड़ों में दिल्ली राज्य का प्रतिनिधित्व करेगी! क्या बात है!

*

आभा की जाड़ों की छुट्टियाँ हुईं, तो प्लान बना कि क्यों न कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर चलें, छुट्टियाँ मनाने! आईडिया बड़ा अच्छा था। अब तो मुझको भी यूँ परिवार के साथ समय व्यतीत करने में बड़ा आनंद मिलता था। वो पहली जैसी भागम-भाग वाली भावना नहीं रह गई थी। बिज़नेस बढ़िया जम गया था; मेरी टीम बढ़िया थी - मुझ अकेले से कहीं अधिक क़ाबिल! तो उनके भरोसे छोड़ा जा सकता था सब कुछ!

अब चूँकि फ़रवरी में नेशनल गेम्स शुरू हो जाने वाले थे, और उसके लिए जो शिविर लगता, उसमें लतिका को हिस्सा लेना पड़ता। इसलिए ये छुट्टी बड़े अच्छे मौके पर आई थी। लतिका की कंडीशनिंग के लिए भी अच्छा था कि वो अपनी कमर-तोड़ ट्रेनिंग से थोड़ा ब्रेक लेती! ट्रेनिंग करते रहना ज़रूरी था, लेकिन शरीर को अपना बेस्ट परफॉरमेंस देने के लिए सही कंडीशन में होना आवश्यक है।

कहाँ जाएँ छुट्टी के लिए - इस बात पर आभा ने सुझाया कि क्यों न हम किसी बीच पर छुट्टियाँ मनाते हैं? ये भी अच्छा था - गरम जगह पर चोटिल होने की कम सम्भावना होती है; दिल्ली की हाड़-कंपाऊ ठण्ड से भी कुछ दिनों के लिए ही सही, लेकिन निज़ात मिलती है। सब ठीक था, लेकिन, मेरी हालत वही मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक वाली है [कोई पाठक इस मुहावरे को रिपोर्ट मत देना... इसमें साम्प्रदायिकता वाली कोई बात नहीं है]!


मैंने पापा को कॉल किया, कि मुंबई आ जाऊँ? तो उन्होंने कहा कि ज़रूर आ जाओ... लेकिन उन्होंने मुझको समझाया कि अगर इस ट्रिप में लतिका के साथ थोड़ा रोमांटिक होने का आईडिया है, तो क्यों न गोवा चलो? दो तीन कमरे किसी बढ़िया रिसोर्ट में बुक कर लेंगे, और मज़े करेंगे? उसके बाद अगर मन करे, तो मुंबई आ कर रहूँ! उनका आईडिया बढ़िया था। हम तीनों ने गोवा कभी देखा भी नहीं था, इसलिए सहमति बनी कि छुट्टियों के लिए वो एक अच्छी जगह थी! लिहाज़ा, हम तीनों नियत समय पर दिल्ली से गोवा के लिए रवाना हो गए।

*
बहुत सुंदर, जयंती और अमर के बीच का संवाद...


अद्भुत
 
Status
Not open for further replies.
Top