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अखीरकार.....अचिन्त्य - Update # 16
पापा ने दक्षिण गोवा के एक रिसोर्ट में तीन कमरे बुक किए थे। दक्षिण गोवा में शोर-गुल, भीड़, और गहमा गहमी कम रहती है। परिवारों के लिए अधिक मुफ़ीद जगह है। माँ और पापा की फ्लाइट हमसे दो घण्टे पहले ही पहुँच गई थी, लिहाज़ा, वो हमसे पहले ही रिसोर्ट पहुँच गए थे! और उन्होंने वहाँ पहुँच कर एक कमरा सभी बच्चों के लिए, एक उन दोनों के लिए, और एक मेरे और लतिका के लिए व्यवस्थित करवा दिया था। बच्चों के कमरे में केवल गद्दे रखवा दिए गए थे, और बाकी भारी फर्नीचर हटवा दिए गए थे, जिससे उनको कूदने फाँदने में चोट न लगे। चार बच्चे थे, और इसलिए उनको इस तरह की उछल कूद करने से कोई रोक नहीं सकता था। बस, हमारा विचार यही था कि आभा आ कर तीनों बच्चों की देख-रेख कर सकती है, उनकी गार्जियन बन सकती है! बच्चों का कमरा पापा और माँ वाले कमरे से सटा हुआ था, और दोनों कमरे दरअसल एक फैमिली विला का हिस्सा थे! अच्छी बात थी। मेरा और लतिका का कमरा उनके बगल था, और अलग था।
जब हम रिसोर्ट पहुँचे, तो माँ और पापा ने हामो अपना कमरा दिखाया। इस व्यवस्था को देख कर लतिका शर्माने लगी। मैं भी झेंप गया था, लेकिन मैं पापा के साथ थोड़ा अलग चला गया।
लतिका को अकेली पाते ही माँ ने उसको छेड़ा,
“क्यों मेरी ननदिया,” माँ ने उसके कान में फुसफुसाते हुए छेड़ा, “बढ़िया अरेंजमेंट है न?”
“क्या मम्मा!”
“अच्छा जी, तो आज हम आपकी मम्मा हैं... बोऊ-दी नहीं?”
लतिका के गाल और भी लाल हो गए।
“देख... भगवान की कृपा रही, तो जल्दी ही मैं तेरी परमानेंट मम्मा बन जाऊँगी, और तेरे दादा बन जाएँगे तेरे पापा! ... कम से कम तब तक के लिए तो मुझे मेरी एकलौती ननदिया से छेड़खानी कर लेने दे!”
“हा हा... कर लीजिए बोऊ-दी, जैसी छेड़-खानी करने का आपका मन हो!” लतिका ने हँसते हुए माँ के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले कर कहा, “लेकिन रहना तो मुझे आपके आँचल तले ही है!”
“हा हा... अच्छा देख, ये इंतजाम इसलिए किया है हमने, क्योंकि हमको न तो तुझसे, और न ही अमर से कोई उम्मीद है! ... मतलब... हमको पक्का यकीन है कि तुम दोनों ने अभी तक कुछ भी किया नहीं होगा! ... अरे कुछ करना तो छोड़ो, हाथ भी नहीं पकड़ा होगा एक दूसरे का!” माँ ने फिर से उसको छेड़ा, “तो ये मौका है... यहाँ आराम है, सुन्दर सी जगह है... थोड़ा अपने जलवे दिखा उसको! ... जिया में आग लगने दे उसके...”
“ओओओहहहह... मतलब जैसे आप दादा को अपने जलवे दिखा कर उनके जिया में आग लगाती हैं, बोऊ-दी?” इतनी छेड़खानी से वो भी तंग आ गई, और वो भी माँ को छेड़ने लगी।
“हा हा... मेरे जैसी क्यों? मुझसे कुछ बेहतर कर न ननदिया! ... जवान है तू तो!”
“आपकी जवानी में क्या कमी है बोऊ-दी? ... आप तो इतनी सेक्सी हैं...” लतिका माँ को छेड़ती हुई बोली, “और आपका रूप...”
वो ये बात बोलती बोलती थोड़ा सा ठिठकी, और फिर जैसे माँ के किसी अदृश्य रूप का अवलोकन करती हुई बोली, “बोऊ-दी! क्या बात है! आपका रूप तो और भी निखर आया है! ... आप कितनी सुन्दर लग रही हैं, आपको कोई आईडिया भी है?” कहते हुए उसने माँ के एक स्तन पर अपना हाथ रखा, “और ये भी पहले से थोड़े सॉफ़्ट लग रहे हैं! सच में!”
लतिका की बात से माँ के गालों पर लज्जा की रंगत चढ़ गई। लेकिन, बोलीं वो कुछ भी नहीं।
“क्या बात है बोऊ-दी? बताइए न!” लतिका अभी भी धीमी आवाज़ में बोल रही थी, लेकिन उसका उत्साह देखने वाला था।
“अभी नहीं... बाद में!” माँ ने मुस्कुराते हुए, दबी हुई आवाज़ में कहा।
माँ के कहने के अंदाज़ में कुछ था, जो रहस्यमय था। लतिका के दिमाग में जैसे अचानक ही बल्ब जल गया हो! उसका संदेह शायद सही है!
“बोऊ-दी! ... क्या सच में!?”
उत्तर में माँ के होंठों पर एक चमकदार मुस्कान आ गई!
“वाओ!” कह कर लतिका माँ से लिपट गई, “ओह बोऊ-दी बोऊ-दी... आई ऍम सो हैप्पी! ... यू आर गॉड्स मिरेकल! आप सच में हमको ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ देने आई हैं!”
“थैंक यू बेटा...” माँ मुस्कुराईं।
“ओह गॉड! दिस इस सच अ हैप्पी न्यूज़! वाओ! ... आप ख़ुश तो हैं न बोऊ-दी?”
“बहुत!” माँ ने लज्जा से मुस्कुराते हुए कहा, “... अनएक्सपेक्टेड... कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा कुछ होगा, लेकिन...”
“कब पता चला?”
“दो सप्ताह पहले!”
“ओह बोऊ-दी! यू आर वंडरफुल...” लतिका के मन में माँ के लिए और भी प्यार उमड़ आया, “आई लव यू सो वैरी मच! ... वैसे... कौन सा महीना है?”
“चौथा...”
“शुरू हुआ है?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“वाओ बोऊ-दी! आई लव यू सो मच माय बोऊ-दी! दादा इस सो लकी टू हैव यू... देखो न... कण्ट्रोल ही नहीं होता उनसे!”
“हा हा!”
“किस किस को पता है?”
“इनको... और... अब तुमको!”
“ओह बोऊ-दी... आई लव यू!” लतिका ने बड़ी सावधानी से, लेकिन बड़े जोश में आ कर माँ को अपने आलिंगन में बाँध लिया, और उतने ही उत्साह से चहकते हुए बोली, “कब बताएँगे सबको?”
“जल्दी ही!” माँ ने कहा, “इसी वेकेशन के दौरान...”
लतिका ने उनको चूम लिया।
*
दिसंबर के अंत में गोवा जाना, मतलब क्रिसमस और नए साल के उत्साह की गहमा-गहमी से भी दो-चार होना। दक्षिण गोवा में उत्तर गोवा के मुकाबले कहीं अधिक शांति थी, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि नीरवता छाई रहती है वहाँ! अच्छी भीड़ हो ही जाती है। ऐसे में यह अच्छी बात थी कि रिसोर्ट का अपना प्राइवेट बीच था। कमरों में सामान रखते ही हम सभी सीधा बीच पर चले आए। बहुत बड़ा तो नहीं, लेकिन प्राइवेट बीच होने के कारण वहाँ साफ़ सफ़ाई थी, और अपेक्षाकृत बहुत सुरक्षित भी था।
मिष्टी अपने लिए मोनोकिनी और लतिका अपने लिए बिकिनी लाई हुई थी। आदित्य, आदर्श, और अभया बिना किसी कपड़े के बीच का आनंद ले सकते थे। माँ ने निक्कर और टी-शर्ट पहनी हुई थी, और पापा और मैं अपने अपने स्विमिंग ट्रंक लाए थे। लतिका ने माँ की टी-शर्ट और निक्कर देख कर आपत्ति जताई, और उनसे अपने लिए भी बिकिनी लेने की ज़िद करने लगी। माँ ने शुरू शुरू में हील हुज्जत करी, लेकिन फिर पापा की अनुशंसा पर वो मान गईं। रिसोर्ट में ही एक छोटी सी दुकान थी, वहीं से माँ ने भी अपने लिए बिकिनी ले ली।
बिकिनी में दो भाग होते हैं : ऊपर पहनने के लिए ब्रा जैसा टॉप, और नीचे के लिए चड्ढी। अगर बिकिनी पहन कर तैराकी करनी है, तो वो लायक्रा या इसी तरह के सिंथेटिक मटेरियल का बना होता है, लेकिन अगर केवल पानी में डुबकी लगानी है, तो सिंथेटिक और प्राकृतिक दोनों प्रकार के फैब्रिक्स का इस्तेमाल कर के बनाया जाता है।
हम सब बीच में डुबकी लगाने पहुँच गए। मैंने लतिका को भी, और माँ को भी बिकिनी पहने हुए, अपने जीवन में पहली बार देखा था! माँ और पापा के गोवा हनीमून की तस्वीरें और वीडियोस मैंने देखे हुए थे - कई तस्वीरों और वीडियोस में माँ ने बिकिनी पहनी हुई थी। और बेहद सुन्दर और आकर्षक लग रही थीं। माँ ने इस समय जो बिकिनी पहनी हुई थी, उसको उनके हनीमून के समय वाली बिकिनियों के मुकाबले ‘मॉडेस्ट’ कहना चाहिए। वो लैवेंडर रंग की थी। पहनने पर उनके स्तनों और श्रोणि का अधिकतर हिस्सा ढँका हुआ था, और बिकिनी का कपड़ा भी आरामदायक लग रहा था। हाँ, माँ के उस रूप का पापा पर जो असर होना चाहिए था, बिल्कुल वैसा ही हो रहा था! वो बार बार माँ को देख रहे थे, उनको छू रहे थे; कभी वो उनको अपने आलिंगन में ले रहे थे, तो कभी उनको चूम रहे थे। बढ़िया है यार! ऐसा ही प्रेम भरा जीवन होना चाहिए विवाहित जोड़ों का!
लतिका की बिकिनी माँ की बिकिनी से बेहद भिन्न थी। वो सफ़ेद रंग की थी, लिहाज़ा बिकिनी के टॉप में उसके स्तनों के आकार के साथ साथ उसके उभरे हुए चूचक भी साफ़ समझ में आ रहे थे। उस रूप में उसको देख कर, आज मुझको पहली बार समझ आया कि लतिका का सौंदर्य ‘क़यामत’ था! कहते हैं न, ख़ंजर चलना - बस, वही हालत मेरी हो गई थी। और मुझे पक्का यकीन है कि लतिका भी जानती थी कि उसका शरीर मेरे सामने प्रदर्शित हो रहा था, और वो देख कर मेरी क्या दशा हो रही थी। उसकी भोली आँखों, होंठों, और मुस्कान में वैसा कँटीला तीखापन हो सकता था, आज मैंने देख लिया था। लतिका का वो सेक्सी रूप देख कर मेरा हलक़ सूख गया!
‘बाप रे!’
पाठक दोस्तों - यह बहुत ही अन्यायपूर्ण बात है! सबसे पहली बात यह है कि समस्त जीव-जन्तुओं में, सम्भवतः एक मानव-जाति ही ऐसी है, जिसमें मादाएँ नर के मुक़ाबले कहीं अधिक सुन्दर होती हैं; और दूसरी बात यह है कि मानव मादाएँ चाहे कितनी भी भोली हों, उनको प्रकृति ने जैसे सिखा पढ़ा कर भेजा होता है, कि अपने रूप सौंदर्य और कमनीय हाव-भाव से अपने मानव नर का ‘नर-संहार’ कैसे करना है! ऐसा हो ही नहीं सकता कि लतिका को नहीं पता था कि उसका यह मादक और उत्तेजक रूप मेरे ऊपर कैसा प्रभाव डाल रहा था। सभी के सामने मेरी बेइज़्ज़ती न हो जाए, इसलिए मैं तेजी से पानी के भीतर चला गया।
समुद्री लहरों में खड़े हो कर अपने आप ही हँसी ख़ुशी और खिलखिलाहट आने लगती है। प्रकृति ने हामो ऐसा डिज़ाइन किया हुआ है शायद! समुद्री पानी में डूबना, उतराना; पैरों तले खिसकती रेत पर अपना बैलेंस बनाना इत्यादि आनंद-दायक काम हैं। ये और भी आनंद-दायक हो जाते हैं, जब आपके सभी स्नेही स्वजन आपके साथ होते हैं। तो हमने खूब देर तक पानी में अपनी अठखेलियों का आनंद उठाया। बच्चे तो सभी पूरे समय बस चहक ही रहे थे। बहुत देर तक खेलने के बाद एक समय ऐसा आया कि अचानक ही हम सभी को भूख लगने लगी। ऐसा होता है - पानी शरीर से काफ़ी ऊर्जा ले सकता है।
हम समुद्र से निकल कर रिसोर्ट में ही बीच पर लगे शॉवर के फ़ौव्वारों से रेत और समुद्री पानी धो कर, और स्वयं को या तो तौलियों या फिर बाथरोब से ढँक कर, नहाने के लिए अपने अपने कमरों में चले गए।
“आप नहाएँगे पहले?” लतिका ने पूछा - यह प्रश्न नहीं था, बल्कि एक सुझाव था।
मैंने आपसे कहा न, उसके व्यवहार में एक अधिकार-बोध आ गया था। उसके कहने का मतलब था कि मैं पहले नहा लूँ।
मैं बाथरूम में शॉवर करने चला गया। दरवाज़ा बंद नहीं किया, बस हल्के से भेड़ लिया। मैं शावर के नीचे आ कर खड़ा हुआ ही था कि लतिका भी अपनी स्विम बिकिनी पहने मेरे पीछे आ कर खड़ी हो गई।
“नहला दूँ?” उसने बहुत हल्के से पूछा - शावर की आवाज़ में उसकी आवाज़ दब सी गई।
“उम्म्म?” मैं सुन नहीं पाया।
तब तक उसका हाथ मेरे स्विम-ट्रंक की इलास्टिक पर पहुँच गया और उसको नीचे उतारने लगा। लतिका के अंदाज़ में ऐसी अनभ्यस्त अनिश्चितता थी कि मेरा मन कामुकता से भर उठा। परिणामस्वरूप मेरा लिंग बस तीन चार सेकण्ड्स में ही अपने पूरे उत्थान पर स्तंभित हो गया। अपने पूर्ण स्तम्भन में, मेरे लिंग की लतिका की कलाई से कहीं अधिक थी, और लम्बाई उसकी हथेली के बराबर थी! उत्तेजना के मारे मेरे लिंग में बड़ी मात्रा में रक्त बह रहा था, और उसकी नसें स्पष्ट रूप से फूली हुई दिखाई दे रहीं थीं। अपने उत्तेजित रूप में, मुझको मेरा लिंग बदसूरत सा लगता है! लेकिन शायद लतिका को वैसा नहीं लग रहा था।
ऐसा नहीं है कि लतिका ने मुझको पूर्ण नग्न पहले कभी नहीं देखा - अनगिनत बार देखा है। लेकिन जैसा मैंने पहले भी लिखा है, जब आप किसी को अपने ‘लव इंटरेस्ट’ के रूप में देखने लगते हैं, तब उसके साथ अचानक ही सब कुछ बदल जाता है!
लतिका ने कुछ कहा नहीं; उसने बस अपनी हथेली को मेरे लिंग पर लिपटा कर अपने होंठों को मेरे होंठों से सटा दिया। सच में मुझसे कुछ नहीं हो सकता था। मैं लतिका को आज से पहले भी ‘छोटा’ ही मानता आया था, लेकिन वो मेरे लिए अपने प्रेम-संज्ञान के बाद से, स्वयं को मेरे समकक्ष समझने लगी थी - पति पत्नी बराबर ही तो होते हैं! शायद इसीलिए उसके मेरे प्रति व्यवहार में वो अभिकार-बोध उपस्थित था। शायद इसीलिए उसने आज मेरे साथ पहल करी।
ओह, वो प्रथम चुम्बन! पूरे शरीर में करंट दौड़ गया, ऐसा मालूम हुआ!
उसकी महक, उसका स्वाद... कैसा अभूतपूर्व था! वो स्वयं भी उत्तेजित थी! उसकी साँसें भी मेरी साँसों के समान तेजी से चल रही थीं। हमारा पहला चुम्बन कम से कम दो मिनट तो चला ही होगा - ऐसा चुंबकीय आनंद था उसमें! शायद इसलिए भी क्योंकि आज बरसों बाद मुझको किसी स्त्री का संग मिला था! जब हमारा चुम्बन टूटा, तो हम दोनों ही गहरी गहरी साँसे भरते हुए, लज्जा से मुस्कुरा रहे थे। मुझको अधिक लज्जा आ रही थी, क्योंकि एक तो मैं लतिका के सामने पूरा नंगा खड़ा था, और दूसरा मेरा लिंग उसके हाथ में उफ़ान भर रहा था। न स्त्री का संग, न ही हस्त-मैथुन! ऐसे में मैं न जाने कब से भरा बैठा था। लतिका का स्पर्श पा कर मेरा लिंग जैसे नन्हे बच्चे की भाँति मचल उठा! अब वो अपनी सारी कला, अपने सारे नखरे लतिका को दिखाना चाहता था।
लेकिन अचानक उठी मचल, अचानक ही ख़तम भी हो जाती है। लतिका ने मेरे लिंग को कोमलता से पकड़ कर बस कुछ बार ही अपना हाथ आगे पीछे किया था कि शरीर में संचित वीर्य बाहर आने को तड़प उठा। और अगले तीन चार बार ही में पिछले बीस बाइस दिनों का संचित कोष अपने पूरे बल से किसी विस्फोट के मानिंद बाहर निकल पड़ा। लतिका अपनी हथेली पर उस दबाव को महसूस कर के चौंक भी गई। वो इस बात के लिए तैयार नहीं थी। पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, और फिर पाँचवा स्खलन उसी के ऊपर जा कर गिरा।
मेरी आँखें बंद हो गई थीं...
आनंद, राहत, लज्जा...
थोड़ा संयत हुआ, तो इस बार मैंने पहल कर के लतिका के चेहरे को अपने हाथों में भरा, और फिर से उसके कोमल होंठों को चूमने लगा। दीपावली में रोपी गई इच्छा अब फिर से जागृत होने लगी। मैंने उसके बिकिनी टॉप के बैंड को पकड़ा, और उसको उसके स्तनों के ऊपर उठाने की कोशिश करने लगा। लतिका के हाथ तुरंत ही मेरे हाथों के ऊपर आ गए। जो मैं कर रहा था उसको रोकने के लिए!
मेरी आँखें खुलीं और लतिका की आँखों से मिलीं।
उसने आँखों में ही ‘न’ करने की विनती करी।
जिससे प्रेम करो, उसकी हर बात मानो! यह बात अम्मा ने भी, और माँ ने भी मुझको सिखाई थी। मैं मान गया। लेकिन विनती उसको नग्न न करने की थी... प्रेम करने से मना करने के लिए थोड़े ही थी!
मैंने झुक कर उसके दोनों स्तनों को उसकी बिकिनी टॉप के ऊपर से ही बारी बारी से चूमा, और फिर एक स्तन का चूचक अपने मुँह में भर के चूसने लगा! जहाँ माँ और अम्मा के स्तनों से मीठा दूध मिलता है, वहीं लतिका के बिकिनी टॉप के कारण समुद्री खारेपन का स्वाद आने लगा। लेकिन उस खारेपन के कारण आनंद में कोई कमी नहीं थी!
उसको यूँ छेड़ते हुए वो गाना याद आ गया : समुन्दर में नहा के और भी नमकीन हो गई हो!
सच में, समुन्दर में नहा कर लतिका के सौंदर्य का नमक और भी बढ़ गया था! हमारे ऊपर शावर चल रहा था, तो वो खारापन लगातार धुलता भी जा रहा था। लेकिन फिर भी आनंद में कोई कमी नहीं थी। न जाने कब तब मैंने उसके दोनों स्तनों को पिया! इन सब बातों की कोई गणना थोड़े ही की जाती है! काम-क्रीड़ा तो तब तक चलती है, जब तक कि दोनों खिलाड़ी न जीत जाएँ!
जैसा कि मुझे उम्मीद थी, लतिका को भी मेरे द्वारा आज अपना पहला ओर्गास्म मिल ही गया। उसकी गहरी गहरी साँसें, और थरथराता हुआ जिस्म इस बात की गवाही दे रहे थे!
अभी तक हम दोनों ने ही कुछ भी नहीं कहा था। काम का ज्वार थोड़ा कम हुआ तो हमने नहाने का उपक्रम किया। बाकी लोगों को समय लगना था - चार बच्चे, और पापा और माँ! सभी को तैयार होने में समय लगना ही था। लिहाज़ा हमारे पास भी समय था। कुछ समय पहले ज़ोर की भूख अचानक ही गायब हो गई! मैं नहा कर पहले निकला। लतिका को बालों पर शैम्पू भी करना था, इसलिए वो मुझसे देर तक नहाने वाली थी। वैसे भी वो नहीं चाहती थी कि मैं उसको नग्न देखूँ, तो फिर बाथरूम में क्या करने को रुकूँ? मैं बाहर निकल आया।
“सुनिए?” कोई दस मिनट बाद लतिका की आवाज़ आई।
पहली बार हम में से किसी ने कुछ बोला।
“हाँ?”
“टॉवल दे दीजिए!”
“ओके,” मैंने कहा, और बाथरूम के दरवाज़े के पीछे से बाहर निकले हुए उसके हाथ पर मैंने तौलिया थमा दी।
हाँ हाँ, फाइव स्टार होटलों में बाथरूम में ही तौलिए रखे जाते हैं। लेकिन हम लोगों ने बीच पर यही तौलिए इस्तेमाल कर लिए थे। कुछ देर बाद लतिका बाथरूम से बाहर निकली।
आधे गीले आधे सूखे बाल, और साँवले शरीर पर सीने से ले कर जाँघों तक लिपटी झक सफ़ेद तौलिया! बाहर निकलते ही उसने मुझको देखा और मुस्कुरा उठी। कारण? मैं अभी भी नग्न था। मेरा लिंग फिर से उत्तेजना के मारे उठा हुआ था।
“क्या हो गया मेरी जान?” उसने बड़ी ही कोमलता से पूछा।
ऐसा सुकून मिला इस बात को सुन कर कि शब्दों में कैसे बयान करूँ, समझ ही नहीं आ रहा है। सच में! क्या किस्मत है मेरी! तीसरी बार प्यार की बहार आई है जीवन में! और कैसी सुन्दर! कैसी भोली! कैसी अनूठी!
“कण्ट्रोल ही नहीं हो रहा है, लतिका!”
वो मुझे मेरा हाथ पकड़ कर बिस्तर पर लाई, और मुझको बिस्तर पर बैठाते हुए बोली, “आपको पता है न कि मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ?”
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया!
बड़ा सुखद एहसास था इस बात को मानना! मुस्कान आ गई मेरे चेहरे पर!
“आई ऍम सेविंग माइसेल्फ फॉर यू... फॉर आवर वेडिंग डे... नाईट!” उसने कहा, “मैं... मैं चाहती हूँ कि आप मुझको पहली बार... वैसे देखें... तो हमारी शादी के बाद देखें...”
मैंने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
उसकी बात पर मुझे हैरत भी हुई, और अपने उतावलेपन से निराशा भी!
“लेकिन... मैं समझती हूँ! ... अगर मैं... आप उसके पहले भी मुझसे किसी तरह का सुख चाहते हैं, तो बताइए!”
उसने कहा और बिस्तर पर अपने सीने के बल लेट कर उसने अपना तौलिया खोल दिया।
लतिका के शरीर का पृष्ठभाग पूरी तरह से अनावृत हो कर मेरे सामने था।
‘ओह! कैसी कमाल की है मेरी दुल्हन!’ यह विचार मेरे मन में आए बिना नहीं रह सका।
मैंने कुछ देर तक उसको निहारा और अपना पूरा आत्मबल अपनी कामुक इच्छाओं पर नियंत्रण करने पर लगा दिया। हाँ, लतिका के लिए मेरे मन में कामुक इच्छाएँ थीं, लेकिन उसके चरित्र, उसके व्यवहार, और उसके लिए मेरे मन में अगाध सम्मान भी था!
मुझे लतिका से प्यार था! बहुत प्यार!
मैंने उसके ऊपर झुक कर उसकी पीठ को चूमा और कहा,
“आई लव यू, लतिका... आई लव यू!”
*
बहुत शानदार और गुढ़ शब्द का उचित प्रयोग
अभिकार
अभिकारक यह विज्ञान से संबंधित शब्द है। रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेने वाले पदार्थों को अभिकारक कहते हैं।
अभीकारकों से मिलकर उत्पाद बनते हैं।
avsji भाई साहब, प्रेम कि अभिव्यक्ति के पुर्व ही... संभोग क्रिया का प्रदर्शन ... भाई जी कथा कुछ अनकही रह गई ऐसा प्रतीत होता है।
लतिका का विवाह प्रस्ताव का अनुमोदन कर लेना वो भी पुरुष पात्र के निवेदन के पुर्व??? मन में कई अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गया
स्वप्न तो नहीं देख रहे अमर सिंह जी????
गज़ब ढाह दिया भैयाजी, दिल की धड़कन घोड़े की रफ़्तार सी भगा दी आज तो। एक दम दिल थाम के पढ़ा लतिका का रोमांस।
अमर के ज़रिए ही प्यार की अनुभूति की है और हर बार आनंद आ जाता है।
वो कहते हैं ना living vicariously through others, मेरा भी यही हाल है।![]()
भले ही वर्तनी की अशुद्धि कहें... परन्तु शब्द भावनाओं की उचित व्याख्या कर रहे हैं...उमाकांत भाई साहब, आपने मेरी एक स्पेलिंग मिस्टेक पर पूरा फ़साना लिख दिया!
लिखना चाहता था अधिकार, लिख गया अभिकार!
Sorry for the typo! कितनों को सिखाता रहता हूँ की वर्तनी ठीक रखो, लेकिन अपने में ही गड़बड़ हो जाती है!
लेकिन अगर लगभग तेरह लाख शब्दों की कहानी में एक प्रतिशत भी गड़बड़ वर्तनी हो, तो भी हज़ारों में गड़बड़ियाँ मिल जाएँगी!
वही हुआ यहाँ! लीजिए, मैंने भी एक फ़साना लिख दिया!
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लतिका और अमर के इन प्रेम भरे अंतरंग लम्हों ने अमीर खुसरो साहब की एक उत्कृष्ट रचना की याद दिला दी ।
" जिहाल - ए - मिस्कीं मकुन तगाफुल ,
दुराये नैना बनाये बतिंया
कि ताब - ए - हिजरां नदारम ऐ जान ,
न लेहो काहे लगाये छतियां "
( आंखे चुराकर और बातें बनाकर मेरी बेवसी की उपेक्षा न कर । बिछड़ने की तपन से मेरी जान निकल रही है। तुम मुझे अपनी बांहो मे क्यों नही भर लेते ! )
इश्क की निश्छलता और पवित्रता से कोई इंकार नही कर सकता
लेकिन प्रेम के इस तत्व मे वासना की मौजूदगी भी अवश्यंभावी है।
दोनो ने एक दूसरे की भाव- भंगिमा महसूस कर लिया था और शायद यही कारण था कि दोनो गोवा मे एक दूसरे के नजदीक आ गए।
चलिए आखिरकार अमर और लतिका की प्रेम कहानी सक्सेस हो ही गई।
लेकिन दुख इस बात का रहा कि जहां सभी जवान महिलाओ ने भर भर कर अमर को अपना दूध पिलाया वहीं जयंती दीदी ने कंजूसी कर दी। जयंती दीदी ने अमर को अपने दूध से मरहूम कर बिल्कुल ही अच्छा नही किया ।![]()
वैसे अपडेट हमेशा की तरह खूबसूरत और जबरदस्त था।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग।
प्यार की उत्कृष्ट रचना,जवाब ही नहीं आपका ,लतिका और अमर की प्रेम कहानी को आप जिस मुकाम पर धीरे धीरे लाये हे उसको बंया करने के लिए शब्द ही नहीं हे एक कविता मेने पढ़ी थी
तुम्हें औषध मिले, पीर न मिले
दृष्टि मिले, दृश्य न मिले
नींदें मिलें, स्वप्न न मिले
गीत मिलें, धुन न मिले
नाव मिले, नदी न मिले
प्रिय!
तुम पर प्रेम के हज़ार कोड़े बरसें
तुम्हारी पीठ पर एक नीला निशान तक न मिले
मुझ जैसी नासमझ को समझा रहे हे आप की ,आप नीरस हे ,आप तो प्रेम पुजारी हे प्रेम को आपसे बेहतर कौन समझ सकता हे बंया कर सकता हे ,में तो वैसे ही इधर उधर प्रेम को समझने के लिए भटकती रहती ,हू ,पढ़ती रहती हू ,अच्छा लगता हे तो लिख लेती हु ,वैसे मुझे प्रेम बहुत पसंद हे ,नीरज जी की ये लाइन्स मेरे मन को बहुत छूती हेधन्यवाद जूही! बहुत बहुत धन्यवाद!
किसने लिखी है ये कविता? अधिकतर पंक्तियों का अर्थ गूढ़ है बहुत! समझा नहीं कि आशीर्वाद है या श्राप (वैसे श्राप नाम की कहानी शुरू करी है हाल ही में -- उस पर भी कृपादृष्टि डालें)? वो दृष्टि ही कैसी, जो दृश्य न देखे? वो नींदें कैसी, जिनमें स्वप्न न हों? वो गीत कैसे, जो धुन में न सधें? वो नाव ही कैसी, तो सूखी भूमि पर पड़ी हो? और वो प्रेम ही कैसा, जिसमें पीड़ा न हो!
मेरे जैसे नीरस आदमी के सर के ऊपर से चली गई!