अचिन्त्य - Update # 17
मेरे ऊपर कामुक भावनाओं का ज्वार बहुत तेजी से चढ़ा था, लेकिन जैसे तैसे कर के मैंने स्वयं पर नियंत्रण किया। बहुत कठिन था लतिका जैसी सुन्दर लड़की से दूर रह पाना! ख़ास कर के तब, जब मैं अपनी समस्त प्रेमिकाओं के साथ विवाह से पूर्व सम्बन्ध बनाने का आदी रह चुका हूँ! लेकिन, न तो मैं उसका विश्वास ही तोड़ना चाहता था, और न ही उसके प्रण को। लतिका अब अपनी ही है - हमारे विवाह के लिए सभी का आशीर्वाद भी है और सभी की रज़ामंदी भी! इसलिए हमारे विवाह के लिए इंतज़ार करने में कोई खराबी नहीं थी - उल्टा वो एक तरह की मीठी तपस्या थी। लेकिन इंतज़ार का फल मीठा होता है! कुछ वर्षों पहले गैबी ने भी इसी तरह का प्रण लिया था। उस प्रण का निर्वहन न केवल गैबी के लिए ही, बल्कि मेरे लिए भी कठिन सिद्ध हुआ था। लेकिन फिर मिलन का ऐसा अद्भुत आनंद आया था, वो सभी पाठक जानते ही हैं! अगर मैं तब स्वयं को साध सकता था, तो अब भी कर सकता हूँ। ऐसा सोच कर मैंने अपने मन को थोड़ा समझाया!
मन को जैसे तैसे समझा तो लिया, लेकिन वो अलग बात है कि मेरे अंदर ही अंदर काम की आग सुलग रही थी। ऐसे में पापा और माँ ने बहुत गड़बड़ किया है हम दोनों को एक कमरा दे कर... शायद वो चाहते थे कि हमारे बीच का अनाड़ीपन निकल जाए! लेकिन लतिका की चाहत ने गड़बड़ कर दिया था। ये तो वही बात हुई न कि चिंगारी के स्रोत के पास पेट्रोल का पात्र खोल कर रख दिया गया था! कभी न कभी विस्फ़ोट होना ही था! कैसे सम्हालूँगा खुद को?
खैर, सम्हालना तो था ही, लिहाज़ा, जैसे तैसे मैंने स्वयं को सम्हाला। जल्दी ही तैयार हो कर हम दोनों लंच करने के लिए पापा माँ और बच्चों को लिवाने उनके कमरे गए। उनके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया, तो थोड़ी देर बाद अंदर से पापा की आवाज़ आई,
“यस?”
“पापा... हम लोग हैं!”
“ओह, अच्छा अच्छा... आओ बच्चों!” कह कर उन्होंने दरवाज़ा खोल दिया।
अंदर देखा, तो सभी बच्चे भी लगभग तैयार हो गए थे। बाक़ियों का नहीं मालूम, लेकिन मुझको अब बहुत तेज से भूख लग रही थी। अगर अगले आधे घंटे में कुछ नहीं खाया, तो पेट के चूहे हाथी बन जाएँगे - ऐसा लग रहा था। लतिका की हालत भी कमोवेश मेरे जैसी ही थी।
“अरे दादा, आना नहीं है, जाना है,” लतिका ने पापा को छेड़ते हुए कहा, “बहुत भूख लग रही है... चलो न!”
“बेटा... बस थोड़ी ही देर...”
“आप सब चलिए न,” माँ ने पापा से कहा, “... मैं और अभया आते हैं आप लोगों के पीछे ही...”
“अरे बोऊ-दी,” लतिका ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “थोड़ी देर तो हम वेट कर लेंगे... आपके बिना दादा का मन लगेगा ही नहीं! हा हा!”
“अबे! जब देखो तब मुझे छेड़ती रहती है!” पापा ने विनोदपूर्वक अपनी बहन से कहा, “... अगर मैं अपनी दुल्हनिया के बिना नहीं रह पाता, तो नहीं रह पाता! उसमें कौन सी गलत बात है?”
“कोई ग़लत बात नहीं है दादा... आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू... एंड आई वांट माय हस्बैंड आल्सो टू बी दिस मच मैडली इन लव विद मी! ... लेकिन अभी चलो न! बहुत देर हो रही है... मैं बोऊ-दी के साथ आ जाऊँगी! डोंट वरी! शी वोन्ट बी लॉस्ट!” लतिका की छेड़खानी अभी भी बंद नहीं हुई, “कम से कम पहले पहुँच कर आप लोग आर्डर तो दे दीजिए...”
“ठीक है मेरी माँ,” कहते हुए पापा बाहर चलने को तैयार हो गए, “... आओ बच्चों! खाना खाते हैं!”
जब तक माँ, लतिका और आदर्श डाइनिंग एरिया में आए, तब तक हमने सभी के लिए लंच का आर्डर दे दिया था। बड़ा रिसोर्ट था, इसलिए कहीं पर भी भीड़ या गहमागहमी कम थी। आरामदायक जगह थी; मेरा प्लान बन गया... भर पेट खाना खाऊँगा, और फिर स्विमिंग पूल के बगल लेट कर, बियर पीते हुए बढ़िया धूप सकूँगा! आदमियों की इच्छाएँ भी बड़ी मामूली सी होती हैं। वैसे, बाहर रहने का एक और कारण था - एक कमरे में लतिका और मैं, एक साथ अकेले... न जाने क्या हो!
थोड़ी देर में माँ, लतिका और अभया भी वहाँ आ गए। माँ ने घुटने तक लम्बी, फ़ीके पीले और गुलाबी रंग की एक सन-ड्रेस पहनी हुई थी, जिसमें सामने की तरफ़ ऊपर से नीचे बटन लगे हुए थे। देखने में तो वो एक सामान्य सी मिडी जैसी ड्रेस थी, लेकिन माँ पर गज़ब रूप से फ़ब रही थी। पतले सूती कपड़े की होने के कारण वो थोड़ी पारदर्शी भी थी - मुझको समझ आ रहा था कि माँ ने पैंटीज़ पहनी हुई हैं, लेकिन ब्रा नहीं! अपने पुराने दिनों की यादें ताज़ा हो आईं - जब हम दोनों शाम की पूजा के लिए जाते, और मैं उनसे स्तनपान कराने को कहता, तब भी वो केवल ब्लाउज ही पहने होती थीं, और उसके अंदर कुछ नहीं।
पुरानी बातें! तब से अब तक कितने सारे अंतर आ गए थे हमारे जीवन में!
“पापा,” मैंने पापा की तरफ़ मुखातिब हो कर कहा, “आपका कुछ असर तो हुआ है माँ पर!”
“क्यों? क्या हो गया बेटा?” पापा ने उत्सुकतावश कहा।
“अरे!” पापा के साथ माँ भी बोल पड़ीं।
मैंने पापा से कहा, “जब मैं छोटा था, तो माँ खाने में बाहर का शायद ही कुछ मँगाती हों! सब कुछ घर पर ही पकता था। ... लेकिन अब... आपके साथ तो माँ बड़ी एक्सेप्टिंग हो गई हैं, बाहर का खाने पीने को ले कर...”
“सबसे पहली बात बेटे कि तुम मेरे बड़े बेटे हो, और मेरे लिए तो छोटे ही रहोगे, चाहे कितने भी बड़े हो जाओ...” मैं पापा की बात पर मुस्कुराया, “... और दूसरी बात, चूँकि हम सभी इस समय बाहर ही हैं, इसलिए तुम्हारी माँ को नया नया एक्सपीरियंस करने में कोई ऐतराज़ नहीं है। ... जहाँ तक घर की बात है, तो अभी भी वो हमको पूरी तरह से घर का ही खाना खिलाती हैं! ... बाहर का बेहद कम... बस कभी कभी!”
माँ उनकी बात पर प्रसन्नता से मुस्कुराईं। अच्छी बात है... कुछ बातें बदलनी नहीं चाहिए!
“वैसे दादा,” लतिका ने मुस्कुराते हुए, और अर्थपूर्वक कहा, “जब घर का खाना इतना स्वादिष्ट हो, तब बाहर के खाने को खाना क्या, देखें भी क्यों?”
“हाँ हाँ! वो तो है!” पापा ने न समझते हुए कहा।
मैं भी लतिका की बात नहीं समझा और आगे बोला, “... और भी एक चेंज है... माँ का ड्रेसिंग सेन्स भी बदल गया है पापा... मतलब बहुत इम्प्रूव हो गया है! ... अब वो कितने सुन्दर सुन्दर और मॉडर्न कपड़े पहनती हैं!”
“हाँ बेटा,” पापा ने गर्व से कहा, “ये बात तो है... इस बात का क्रेडिट तो लूँगा मैं! ... इनको यहाँ तक लाने में बहुत मशक्कत करनी पड़ी है मुझे!”
“अच्छा जी!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।
“हाँ बोऊ-दी! ... इस बात का क्रेडिट दादा को मिलना चाहिए!” लतिका भी बोली।
हम बातें कर ही रहे थे कि इसी बीच हमारा खाना आ गया! खाना देखते ही मुझे ऐसा लगा कि जैसे खाना नहीं, बड़ी राहत आ गई! पहले कौर में न केवल पेट की ही, बल्कि काम की भूख भी थोड़ी शांत हो गई। सभी लोगों से बात करते हुए भोजन करने का आनंद ही कुछ और है।
खाने के समय मैंने एक बात नोटिस करी कि लतिका, पापा को बड़े अर्थपूर्ण तरीके से देख रही थी। पापा भी मुस्कुरा रहे थे... और माँ भी! कोई तो राज़ की बात थी, इतनी बात तो पक्की थी! मुझे लगा कि शायद इस बात कर दोनों एक दूसरे को देख रहे थे कि मैं और लतिका एक कमरे में बंद थे इस पूरी छुट्टियों के दौरान! लेकिन,
“अमर बेटे,” पापा ने खाते खाते अचानक ही कहा, “पुचुकी... मिष्टी... आदि बेटा... तुम सबको एक बहुत ही सुन्दर सी ख़बर सुनानी थी...”
“अरे वाह!” मैंने उत्साहित होते हुए कहा, “क्या बात है पापा?”
“बात यह है बेटा...” पापा ने थोड़ा हिचकते हुए बताया, “... कि मैं और आपकी मम्मी... हम दोनों... एक बार फिर से... यू नो...”
मुझे समझ तो आ गया, लेकिन फिर भी पापा को छेड़ने की गरज से मैंने आश्चर्यचकित होने की नौटंकी करते हुए कहा,
“व्हाट!!! आप दोनों डिवोर्स ले रहे हो?”
“अरे नहीं यार!” पापा ने चौंकते हुए कहा, “कैसी बातें करते हो तुम बेटे... अपनी ज़िन्दगी की लौ से दूर हो सकूँगा कभी?”
“तो फिर? बताईये न... आप इतना हिचक क्यों रहे हैं! कहिए न!”
मेरी बात पर माँ हँसने गई थीं। लतिका भी! उसको पहले से ही मालूम था, इसलिए उसको भी मज़ा आया कि मैंने मौके पर उसके दादा की टांग खींच दी। तो एक तरह से हम दोनों एक ही टीम में थे।
“बता ही तो रहा था... वो... हम दोनों फिर से मम्मी पापा बनने वाले हैं!”
“व्हाट!” मुझको वाक़ई यह सुन कर आश्चर्य हुआ!
‘माँ अभी भी माँ बन सकतीं थीं! वाक़ई आश्चर्य की बात थी!’
“हाँ... हमारा भी यही रिएक्शन था जब हमको मालूम पड़ा!” पापा ने कहा, “हमको लगता था कि अपनी अभया ही हमारी आखिरी संतान होगी! और हम इस बात से संतुष्ट थे। ... लेकिन...”
“लेकिन... आप बोऊ-दी को इतना परेशान करते हैं, उसका कुछ तो परिणाम आएगा ही न!” लतिका ने फिर से पापा को छेड़ा।
मैंने देखा कि लतिका ने बड़े प्यार से माँ को उनके कंधे से पकड़ कर अपने साइड से चिपका कर, अपने आलिंगन में बाँध लिया था, और उनको बड़े प्यार से चूम रही थी। माँ मंद मंद मुस्कुरा रही थीं, और मुझको बड़े लाड़ से देख रही थीं।
“येएएएएएए...” आभा ने बहुत अधिक खुश होते हुए अपनी प्रसन्नता व्यक्त करी, “ओह दादा... दादी... आई ऍम सो हैप्पी!”
“थैंक यू बेटे,” माँ ने बड़े प्रेम से उसको देखा।
“थैंक यू मेरी जान!” पापा ने कहा।
“हाँ दादा,” लतिका ने भी कहा, “दिस इस अ ग्रेट न्यूज़! ... बधाई हो बोऊ-दी!”
“वाओ!” मैंने कहा, “कोन्ग्रेचुलेशन्स पापा... कोन्ग्रेचुलेशन्स माँ!”
मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था, “वाओ!”
“बेटे,” पापा ने जैसे थोड़ा खेद-भरे स्वर में कहा, “तुमको भी लगता होगा न... कि तेरे बाप का अपने ऊपर कोई कण्ट्रोल ही नहीं है...”
“पापा...” मैंने उनकी बात काटते हुए बीच में कहा, “आप कैसी बातें कर रहे हैं! ... आई ऍम वैरी हैप्पी! आपके लिए भी... और माँ के लिए भी... और हम सबके लिए भी!”
“... मतलब... तुम नाराज़ तो नहीं हो?”
“नाराज़? ओह पापा... जिस दिन आप माँ को इस तरह से प्यार करना बंद कर देंगे न, उस दिन मैं होऊँगा आपसे नाराज़! हाँ...”
“हा हा!”
“नहीं पापा... सच में! हँसने वाली कोई बात ही नहीं है... और यह भी सच है कि आप दोनों को ही देख कर मुझको सच्चे, स्ट्रांग प्यार में वापस यकीन होने लगा है! ... आई लव यू!”
“आई लव यू टू मेरा बेटा...” पापा ने बड़े लाड़ से कहा।
“माँ,” फिर मैंने माँ की तरफ़ मुखातिब हो कर कहा, “आई ऍम सो हैप्पी... यू रियली आर अमेज़िंग!”
मैंने अपनी कुर्सी से उठ कर और उनके बगल बैठ कर प्यार से उनके पेट को सहलाया, और फिर उसको चूम कर बोला, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स!”
माँ ने पूरी ममता और स्नेह से मुझको देखा, और फिर मेरा चेहरा अपनी हथेलियों में ले कर मेरे होंठों को चूमा, और कहा, “थैंक यू सो मच मेरा बेटू... थैंक यू सो मच!”
“बोऊ-दी बिल्कुल गॉड्स मिरेकल हैं!” लतिका बोली, “इनके कारण हमको कितनी सारी ख़ुशियाँ मिलीं हैं!”
“हाँ...” पापा बोले, “इस बात से मैं रत्ती भर इंकार नहीं कर सकता। ... मेरी सुमन साक्षात् भगवान का प्रसाद है!”
“हा हा... आप लोग भी न...” माँ ने शर्माते हुए कहा।
“नहीं बोऊ-दी... यह एक बड़ी बात है! ... और बहुत ख़ुशी की बात भी!”
“कौन सा महीना है माँ?” मैंने पूछा।
“चौथा बेटे...”
“नाइस...”
“क्या दादा जी?” लतिका ने फिर से पापा को छेड़ना शुरू कर दिया, “मेरी इतनी भोली सी, प्यारी सी बोऊ-दी हैं... लेकिन आप इनको छेड़ते ही रहते हैं!”
“हा हा!” पापा ने कहा, “... सुन्दर सी भी तो हैं...”
“हाँ पापा! ... कण्ट्रोल ही नहीं होता न माँ को देख कर!”
“हा हा! नहीं होता बेटे, नहीं होता!”
“मत करिए कोई कण्ट्रोल...”
“व्ही आर सो हैप्पी!” लतिका ने कहा।
सच में - उस दिन बड़ी ख़ुशी मिली थी!
माँ का एक भरे पूरे परिवार का सपना न केवल साकार हो रहा था, बल्कि स्वस्थ तरीके से अभी भी फल फूल रहा था! और यह बात किसी चमत्कार से कम नहीं थी। दादी माँ तो बहुत खुश होंगी!
“दादी माँ को बताया माँ?” मैंने पूछा।
“नहीं बेटे... अभी नहीं!” माँ लज्जा से मुस्कुराती हुई बोलीं, “बहुत डाँटेंगी वो मुझे!”
“अरे वो क्यों?” लतिका बीच में माँ के बचाव में कूद पड़ी, “इतनी सुन्दर सी ख़बर सुन कर वो भला कैसे और भला क्यों डाँटेंगी आपको?”
“इसलिए कि मैंने इतने दिन उनसे ये खबर छुपाए रखी!”
“नहीं बोऊ-दी! वो आपसे नाराज़ हो ही नहीं सकतीं!” लतिका ने बड़े लाड़ से कहा, “भला कोई अपनी सबसे प्यारी बिटिया से नाराज़ हो सकता है कभी?”
फिर अचानक से उनको छेड़ती हुई वो बोली, “और वैसे भी, अम्मा और बापू भी तो ट्राई कर रहे हैं...”
“क्या!” पापा ने चौंकते हुए कहा।
“और क्या?” लतिका ने पापा को फिर से छेड़ा, “आपको क्या लगता है? एक आप ही हैं, जो अपनी दुल्हनिया से पागलों की तरह प्यार करते हैं?”
“हा हा हा! तू भी न पुचुकी...”
*
खाने पर इतना खुशनुमा माहौल हो गया था कि खाने का ज़ायका कई गुणा बढ़ गया।
“अब मैं बस यही चाहती हूँ कि तुम दोनों की शादी भी हो जाए!” माँ ने कहा।
“हाँ बेटा... तुम और पुचुकी जितना जल्दी हो सके, शादी कर लो!”
मैंने पापा और माँ की बात पर लतिका को देखा... वो मुस्कुरा रही थी। अचानक ही मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा। क्या किस्मत थी मेरी - घूम फिर कर मेरी सभी फेवरेट महिलाओं के गुणों वाली लड़की मिल गई थी! लतिका में माँ और अम्मा - दोनों के ही गुण थे! न केवल तन की सुंदरता बल्कि मन की भी! सच में - मैं किस्मत का रोना रोता रहा हूँ, लेकिन किस्मत ने मुझको अद्भुत स्त्रियों का प्रेम दिया था! अब कोई शिकायत शेष नहीं थी! बस, अब यही इच्छा थी कि लतिका और मैं साथ हो जाएँ और एक लम्बे समय तक अपनी शादी-शुदा ज़िन्दगी का आनंद लें!
“हाँ माँ... मैं तो तैयार हूँ!” मेरे मुँह से तपाक से निकल गया।
“पुचुकी बेटा,” पापा ने कहा, “कुछ कहो?”
“क्या कहूँ दादा? ... मैं भी तो चाहती हूँ... लेकिन...”
“लेकिन?”
“लेकिन... गेम्स हैं फरवरी में... और फिर मार्च अप्रैल में एक्साम्स... उसके बाद कभी भी...” कहते कहते लतिका के साँवले गालों पर गुलाबी रंगत चढ़ गई।
“अप्रैल... नहीं... मई में कर लें?” माँ ने पापा से मंत्रणा करी।
“हाँ...” पापा सोचते हुए बोले, फिर मेरी तरफ़ मुखातिब हो कर बोले, “बेटे, जुलाई कैसा रहेगा? जून में डिलीवरी होगी... इसलिए!”
“कभी भी पापा!”
“हाँ दादा... जुलाई ठीक रहेगा!” लतिका ने माँ को चूमते हुए कहा, “वैसे भी, बिना मम्मा का दूधू पिये मैं दुल्हन नहीं बनूँगी!”
“हा हा हा... एक तू और एक तेरा दुद्धू प्रेम!” माँ ने हँसते हुए कहा, “बिना उसके तुम दोनों की शादी होने भी नहीं दूँगी!”
“येएएएएए...” लतिका हर्ष से बोली!
“अब तू अपनी गृहस्थी सम्हाल... अपनी बेटी को सम्हाल! ... मेरे बेटे को सम्हाल...”
“सम्हाल लूँगी...” लतिका ने मुझको प्यार से देखा, फिर अचानक ही उसकी आँखों में शरारत वाले भाव आ गए, “... आपका बेटा, मेरा भी तो बेटा है...”
“आएँ... तेरा बेटा?”
“और क्या! आपका बेटा... मेरा भतीजा...!”
“हा हा हा!”
“हा हा हा!”
“हा हा हा!”
*