- 4,192
- 23,425
- 159
Last edited:
Bahut hi khubsurat updateअचिन्त्य - Update # 17
मेरे ऊपर कामुक भावनाओं का ज्वार बहुत तेजी से चढ़ा था, लेकिन जैसे तैसे कर के मैंने स्वयं पर नियंत्रण किया। बहुत कठिन था लतिका जैसी सुन्दर लड़की से दूर रह पाना! ख़ास कर के तब, जब मैं अपनी समस्त प्रेमिकाओं के साथ विवाह से पूर्व सम्बन्ध बनाने का आदी रह चुका हूँ! लेकिन, न तो मैं उसका विश्वास ही तोड़ना चाहता था, और न ही उसके प्रण को। लतिका अब अपनी ही है - हमारे विवाह के लिए सभी का आशीर्वाद भी है और सभी की रज़ामंदी भी! इसलिए हमारे विवाह के लिए इंतज़ार करने में कोई खराबी नहीं थी - उल्टा वो एक तरह की मीठी तपस्या थी। लेकिन इंतज़ार का फल मीठा होता है! कुछ वर्षों पहले गैबी ने भी इसी तरह का प्रण लिया था। उस प्रण का निर्वहन न केवल गैबी के लिए ही, बल्कि मेरे लिए भी कठिन सिद्ध हुआ था। लेकिन फिर मिलन का ऐसा अद्भुत आनंद आया था, वो सभी पाठक जानते ही हैं! अगर मैं तब स्वयं को साध सकता था, तो अब भी कर सकता हूँ। ऐसा सोच कर मैंने अपने मन को थोड़ा समझाया!
मन को जैसे तैसे समझा तो लिया, लेकिन वो अलग बात है कि मेरे अंदर ही अंदर काम की आग सुलग रही थी। ऐसे में पापा और माँ ने बहुत गड़बड़ किया है हम दोनों को एक कमरा दे कर... शायद वो चाहते थे कि हमारे बीच का अनाड़ीपन निकल जाए! लेकिन लतिका की चाहत ने गड़बड़ कर दिया था। ये तो वही बात हुई न कि चिंगारी के स्रोत के पास पेट्रोल का पात्र खोल कर रख दिया गया था! कभी न कभी विस्फ़ोट होना ही था! कैसे सम्हालूँगा खुद को?
खैर, सम्हालना तो था ही, लिहाज़ा, जैसे तैसे मैंने स्वयं को सम्हाला। जल्दी ही तैयार हो कर हम दोनों लंच करने के लिए पापा माँ और बच्चों को लिवाने उनके कमरे गए। उनके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया, तो थोड़ी देर बाद अंदर से पापा की आवाज़ आई,
“यस?”
“पापा... हम लोग हैं!”
“ओह, अच्छा अच्छा... आओ बच्चों!” कह कर उन्होंने दरवाज़ा खोल दिया।
अंदर देखा, तो सभी बच्चे भी लगभग तैयार हो गए थे। बाक़ियों का नहीं मालूम, लेकिन मुझको अब बहुत तेज से भूख लग रही थी। अगर अगले आधे घंटे में कुछ नहीं खाया, तो पेट के चूहे हाथी बन जाएँगे - ऐसा लग रहा था। लतिका की हालत भी कमोवेश मेरे जैसी ही थी।
“अरे दादा, आना नहीं है, जाना है,” लतिका ने पापा को छेड़ते हुए कहा, “बहुत भूख लग रही है... चलो न!”
“बेटा... बस थोड़ी ही देर...”
“आप सब चलिए न,” माँ ने पापा से कहा, “... मैं और अभया आते हैं आप लोगों के पीछे ही...”
“अरे बोऊ-दी,” लतिका ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “थोड़ी देर तो हम वेट कर लेंगे... आपके बिना दादा का मन लगेगा ही नहीं! हा हा!”
“अबे! जब देखो तब मुझे छेड़ती रहती है!” पापा ने विनोदपूर्वक अपनी बहन से कहा, “... अगर मैं अपनी दुल्हनिया के बिना नहीं रह पाता, तो नहीं रह पाता! उसमें कौन सी गलत बात है?”
“कोई ग़लत बात नहीं है दादा... आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू... एंड आई वांट माय हस्बैंड आल्सो टू बी दिस मच मैडली इन लव विद मी! ... लेकिन अभी चलो न! बहुत देर हो रही है... मैं बोऊ-दी के साथ आ जाऊँगी! डोंट वरी! शी वोन्ट बी लॉस्ट!” लतिका की छेड़खानी अभी भी बंद नहीं हुई, “कम से कम पहले पहुँच कर आप लोग आर्डर तो दे दीजिए...”
“ठीक है मेरी माँ,” कहते हुए पापा बाहर चलने को तैयार हो गए, “... आओ बच्चों! खाना खाते हैं!”
जब तक माँ, लतिका और आदर्श डाइनिंग एरिया में आए, तब तक हमने सभी के लिए लंच का आर्डर दे दिया था। बड़ा रिसोर्ट था, इसलिए कहीं पर भी भीड़ या गहमागहमी कम थी। आरामदायक जगह थी; मेरा प्लान बन गया... भर पेट खाना खाऊँगा, और फिर स्विमिंग पूल के बगल लेट कर, बियर पीते हुए बढ़िया धूप सकूँगा! आदमियों की इच्छाएँ भी बड़ी मामूली सी होती हैं। वैसे, बाहर रहने का एक और कारण था - एक कमरे में लतिका और मैं, एक साथ अकेले... न जाने क्या हो!
थोड़ी देर में माँ, लतिका और अभया भी वहाँ आ गए। माँ ने घुटने तक लम्बी, फ़ीके पीले और गुलाबी रंग की एक सन-ड्रेस पहनी हुई थी, जिसमें सामने की तरफ़ ऊपर से नीचे बटन लगे हुए थे। देखने में तो वो एक सामान्य सी मिडी जैसी ड्रेस थी, लेकिन माँ पर गज़ब रूप से फ़ब रही थी। पतले सूती कपड़े की होने के कारण वो थोड़ी पारदर्शी भी थी - मुझको समझ आ रहा था कि माँ ने पैंटीज़ पहनी हुई हैं, लेकिन ब्रा नहीं! अपने पुराने दिनों की यादें ताज़ा हो आईं - जब हम दोनों शाम की पूजा के लिए जाते, और मैं उनसे स्तनपान कराने को कहता, तब भी वो केवल ब्लाउज ही पहने होती थीं, और उसके अंदर कुछ नहीं।
पुरानी बातें! तब से अब तक कितने सारे अंतर आ गए थे हमारे जीवन में!
“पापा,” मैंने पापा की तरफ़ मुखातिब हो कर कहा, “आपका कुछ असर तो हुआ है माँ पर!”
“क्यों? क्या हो गया बेटा?” पापा ने उत्सुकतावश कहा।
“अरे!” पापा के साथ माँ भी बोल पड़ीं।
मैंने पापा से कहा, “जब मैं छोटा था, तो माँ खाने में बाहर का शायद ही कुछ मँगाती हों! सब कुछ घर पर ही पकता था। ... लेकिन अब... आपके साथ तो माँ बड़ी एक्सेप्टिंग हो गई हैं, बाहर का खाने पीने को ले कर...”
“सबसे पहली बात बेटे कि तुम मेरे बड़े बेटे हो, और मेरे लिए तो छोटे ही रहोगे, चाहे कितने भी बड़े हो जाओ...” मैं पापा की बात पर मुस्कुराया, “... और दूसरी बात, चूँकि हम सभी इस समय बाहर ही हैं, इसलिए तुम्हारी माँ को नया नया एक्सपीरियंस करने में कोई ऐतराज़ नहीं है। ... जहाँ तक घर की बात है, तो अभी भी वो हमको पूरी तरह से घर का ही खाना खिलाती हैं! ... बाहर का बेहद कम... बस कभी कभी!”
माँ उनकी बात पर प्रसन्नता से मुस्कुराईं। अच्छी बात है... कुछ बातें बदलनी नहीं चाहिए!
“वैसे दादा,” लतिका ने मुस्कुराते हुए, और अर्थपूर्वक कहा, “जब घर का खाना इतना स्वादिष्ट हो, तब बाहर के खाने को खाना क्या, देखें भी क्यों?”
“हाँ हाँ! वो तो है!” पापा ने न समझते हुए कहा।
मैं भी लतिका की बात नहीं समझा और आगे बोला, “... और भी एक चेंज है... माँ का ड्रेसिंग सेन्स भी बदल गया है पापा... मतलब बहुत इम्प्रूव हो गया है! ... अब वो कितने सुन्दर सुन्दर और मॉडर्न कपड़े पहनती हैं!”
“हाँ बेटा,” पापा ने गर्व से कहा, “ये बात तो है... इस बात का क्रेडिट तो लूँगा मैं! ... इनको यहाँ तक लाने में बहुत मशक्कत करनी पड़ी है मुझे!”
“अच्छा जी!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।
“हाँ बोऊ-दी! ... इस बात का क्रेडिट दादा को मिलना चाहिए!” लतिका भी बोली।
हम बातें कर ही रहे थे कि इसी बीच हमारा खाना आ गया! खाना देखते ही मुझे ऐसा लगा कि जैसे खाना नहीं, बड़ी राहत आ गई! पहले कौर में न केवल पेट की ही, बल्कि काम की भूख भी थोड़ी शांत हो गई। सभी लोगों से बात करते हुए भोजन करने का आनंद ही कुछ और है।
खाने के समय मैंने एक बात नोटिस करी कि लतिका, पापा को बड़े अर्थपूर्ण तरीके से देख रही थी। पापा भी मुस्कुरा रहे थे... और माँ भी! कोई तो राज़ की बात थी, इतनी बात तो पक्की थी! मुझे लगा कि शायद इस बात कर दोनों एक दूसरे को देख रहे थे कि मैं और लतिका एक कमरे में बंद थे इस पूरी छुट्टियों के दौरान! लेकिन,
“अमर बेटे,” पापा ने खाते खाते अचानक ही कहा, “पुचुकी... मिष्टी... आदि बेटा... तुम सबको एक बहुत ही सुन्दर सी ख़बर सुनानी थी...”
“अरे वाह!” मैंने उत्साहित होते हुए कहा, “क्या बात है पापा?”
“बात यह है बेटा...” पापा ने थोड़ा हिचकते हुए बताया, “... कि मैं और आपकी मम्मी... हम दोनों... एक बार फिर से... यू नो...”
मुझे समझ तो आ गया, लेकिन फिर भी पापा को छेड़ने की गरज से मैंने आश्चर्यचकित होने की नौटंकी करते हुए कहा,
“व्हाट!!! आप दोनों डिवोर्स ले रहे हो?”
“अरे नहीं यार!” पापा ने चौंकते हुए कहा, “कैसी बातें करते हो तुम बेटे... अपनी ज़िन्दगी की लौ से दूर हो सकूँगा कभी?”
“तो फिर? बताईये न... आप इतना हिचक क्यों रहे हैं! कहिए न!”
मेरी बात पर माँ हँसने गई थीं। लतिका भी! उसको पहले से ही मालूम था, इसलिए उसको भी मज़ा आया कि मैंने मौके पर उसके दादा की टांग खींच दी। तो एक तरह से हम दोनों एक ही टीम में थे।
“बता ही तो रहा था... वो... हम दोनों फिर से मम्मी पापा बनने वाले हैं!”
“व्हाट!” मुझको वाक़ई यह सुन कर आश्चर्य हुआ!
‘माँ अभी भी माँ बन सकतीं थीं! वाक़ई आश्चर्य की बात थी!’
“हाँ... हमारा भी यही रिएक्शन था जब हमको मालूम पड़ा!” पापा ने कहा, “हमको लगता था कि अपनी अभया ही हमारी आखिरी संतान होगी! और हम इस बात से संतुष्ट थे। ... लेकिन...”
“लेकिन... आप बोऊ-दी को इतना परेशान करते हैं, उसका कुछ तो परिणाम आएगा ही न!” लतिका ने फिर से पापा को छेड़ा।
मैंने देखा कि लतिका ने बड़े प्यार से माँ को उनके कंधे से पकड़ कर अपने साइड से चिपका कर, अपने आलिंगन में बाँध लिया था, और उनको बड़े प्यार से चूम रही थी। माँ मंद मंद मुस्कुरा रही थीं, और मुझको बड़े लाड़ से देख रही थीं।
“येएएएएएए...” आभा ने बहुत अधिक खुश होते हुए अपनी प्रसन्नता व्यक्त करी, “ओह दादा... दादी... आई ऍम सो हैप्पी!”
“थैंक यू बेटे,” माँ ने बड़े प्रेम से उसको देखा।
“थैंक यू मेरी जान!” पापा ने कहा।
“हाँ दादा,” लतिका ने भी कहा, “दिस इस अ ग्रेट न्यूज़! ... बधाई हो बोऊ-दी!”
“वाओ!” मैंने कहा, “कोन्ग्रेचुलेशन्स पापा... कोन्ग्रेचुलेशन्स माँ!”
मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था, “वाओ!”
“बेटे,” पापा ने जैसे थोड़ा खेद-भरे स्वर में कहा, “तुमको भी लगता होगा न... कि तेरे बाप का अपने ऊपर कोई कण्ट्रोल ही नहीं है...”
“पापा...” मैंने उनकी बात काटते हुए बीच में कहा, “आप कैसी बातें कर रहे हैं! ... आई ऍम वैरी हैप्पी! आपके लिए भी... और माँ के लिए भी... और हम सबके लिए भी!”
“... मतलब... तुम नाराज़ तो नहीं हो?”
“नाराज़? ओह पापा... जिस दिन आप माँ को इस तरह से प्यार करना बंद कर देंगे न, उस दिन मैं होऊँगा आपसे नाराज़! हाँ...”
“हा हा!”
“नहीं पापा... सच में! हँसने वाली कोई बात ही नहीं है... और यह भी सच है कि आप दोनों को ही देख कर मुझको सच्चे, स्ट्रांग प्यार में वापस यकीन होने लगा है! ... आई लव यू!”
“आई लव यू टू मेरा बेटा...” पापा ने बड़े लाड़ से कहा।
“माँ,” फिर मैंने माँ की तरफ़ मुखातिब हो कर कहा, “आई ऍम सो हैप्पी... यू रियली आर अमेज़िंग!”
मैंने अपनी कुर्सी से उठ कर और उनके बगल बैठ कर प्यार से उनके पेट को सहलाया, और फिर उसको चूम कर बोला, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स!”
माँ ने पूरी ममता और स्नेह से मुझको देखा, और फिर मेरा चेहरा अपनी हथेलियों में ले कर मेरे होंठों को चूमा, और कहा, “थैंक यू सो मच मेरा बेटू... थैंक यू सो मच!”
“बोऊ-दी बिल्कुल गॉड्स मिरेकल हैं!” लतिका बोली, “इनके कारण हमको कितनी सारी ख़ुशियाँ मिलीं हैं!”
“हाँ...” पापा बोले, “इस बात से मैं रत्ती भर इंकार नहीं कर सकता। ... मेरी सुमन साक्षात् भगवान का प्रसाद है!”
“हा हा... आप लोग भी न...” माँ ने शर्माते हुए कहा।
“नहीं बोऊ-दी... यह एक बड़ी बात है! ... और बहुत ख़ुशी की बात भी!”
“कौन सा महीना है माँ?” मैंने पूछा।
“चौथा बेटे...”
“नाइस...”
“क्या दादा जी?” लतिका ने फिर से पापा को छेड़ना शुरू कर दिया, “मेरी इतनी भोली सी, प्यारी सी बोऊ-दी हैं... लेकिन आप इनको छेड़ते ही रहते हैं!”
“हा हा!” पापा ने कहा, “... सुन्दर सी भी तो हैं...”
“हाँ पापा! ... कण्ट्रोल ही नहीं होता न माँ को देख कर!”
“हा हा! नहीं होता बेटे, नहीं होता!”
“मत करिए कोई कण्ट्रोल...”
“व्ही आर सो हैप्पी!” लतिका ने कहा।
सच में - उस दिन बड़ी ख़ुशी मिली थी!
माँ का एक भरे पूरे परिवार का सपना न केवल साकार हो रहा था, बल्कि स्वस्थ तरीके से अभी भी फल फूल रहा था! और यह बात किसी चमत्कार से कम नहीं थी। दादी माँ तो बहुत खुश होंगी!
“दादी माँ को बताया माँ?” मैंने पूछा।
“नहीं बेटे... अभी नहीं!” माँ लज्जा से मुस्कुराती हुई बोलीं, “बहुत डाँटेंगी वो मुझे!”
“अरे वो क्यों?” लतिका बीच में माँ के बचाव में कूद पड़ी, “इतनी सुन्दर सी ख़बर सुन कर वो भला कैसे और भला क्यों डाँटेंगी आपको?”
“इसलिए कि मैंने इतने दिन उनसे ये खबर छुपाए रखी!”
“नहीं बोऊ-दी! वो आपसे नाराज़ हो ही नहीं सकतीं!” लतिका ने बड़े लाड़ से कहा, “भला कोई अपनी सबसे प्यारी बिटिया से नाराज़ हो सकता है कभी?”
फिर अचानक से उनको छेड़ती हुई वो बोली, “और वैसे भी, अम्मा और बापू भी तो ट्राई कर रहे हैं...”
“क्या!” पापा ने चौंकते हुए कहा।
“और क्या?” लतिका ने पापा को फिर से छेड़ा, “आपको क्या लगता है? एक आप ही हैं, जो अपनी दुल्हनिया से पागलों की तरह प्यार करते हैं?”
“हा हा हा! तू भी न पुचुकी...”
*
खाने पर इतना खुशनुमा माहौल हो गया था कि खाने का ज़ायका कई गुणा बढ़ गया।
“अब मैं बस यही चाहती हूँ कि तुम दोनों की शादी भी हो जाए!” माँ ने कहा।
“हाँ बेटा... तुम और पुचुकी जितना जल्दी हो सके, शादी कर लो!”
मैंने पापा और माँ की बात पर लतिका को देखा... वो मुस्कुरा रही थी। अचानक ही मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा। क्या किस्मत थी मेरी - घूम फिर कर मेरी सभी फेवरेट महिलाओं के गुणों वाली लड़की मिल गई थी! लतिका में माँ और अम्मा - दोनों के ही गुण थे! न केवल तन की सुंदरता बल्कि मन की भी! सच में - मैं किस्मत का रोना रोता रहा हूँ, लेकिन किस्मत ने मुझको अद्भुत स्त्रियों का प्रेम दिया था! अब कोई शिकायत शेष नहीं थी! बस, अब यही इच्छा थी कि लतिका और मैं साथ हो जाएँ और एक लम्बे समय तक अपनी शादी-शुदा ज़िन्दगी का आनंद लें!
“हाँ माँ... मैं तो तैयार हूँ!” मेरे मुँह से तपाक से निकल गया।
“पुचुकी बेटा,” पापा ने कहा, “कुछ कहो?”
“क्या कहूँ दादा? ... मैं भी तो चाहती हूँ... लेकिन...”
“लेकिन?”
“लेकिन... गेम्स हैं फरवरी में... और फिर मार्च अप्रैल में एक्साम्स... उसके बाद कभी भी...” कहते कहते लतिका के साँवले गालों पर गुलाबी रंगत चढ़ गई।
“अप्रैल... नहीं... मई में कर लें?” माँ ने पापा से मंत्रणा करी।
“हाँ...” पापा सोचते हुए बोले, फिर मेरी तरफ़ मुखातिब हो कर बोले, “बेटे, जुलाई कैसा रहेगा? जून में डिलीवरी होगी... इसलिए!”
“कभी भी पापा!”
“हाँ दादा... जुलाई ठीक रहेगा!” लतिका ने माँ को चूमते हुए कहा, “वैसे भी, बिना मम्मा का दूधू पिये मैं दुल्हन नहीं बनूँगी!”
“हा हा हा... एक तू और एक तेरा दुद्धू प्रेम!” माँ ने हँसते हुए कहा, “बिना उसके तुम दोनों की शादी होने भी नहीं दूँगी!”
“येएएएएए...” लतिका हर्ष से बोली!
“अब तू अपनी गृहस्थी सम्हाल... अपनी बेटी को सम्हाल! ... मेरे बेटे को सम्हाल...”
“सम्हाल लूँगी...” लतिका ने मुझको प्यार से देखा, फिर अचानक ही उसकी आँखों में शरारत वाले भाव आ गए, “... आपका बेटा, मेरा भी तो बेटा है...”
“आएँ... तेरा बेटा?”
“और क्या! आपका बेटा... मेरा भतीजा...!”
“हा हा हा!”
“हा हा हा!”
“हा हा हा!”
*
बहुत बढ़िया, खूबसूरत अपडेट avsji भाई। पारवरिक है मजाक वाला माहौल और बहुत सी बातों का क्लियर होना। अब जून जुलाई का इंतजार है।
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....अचिन्त्य - Update # 17
मेरे ऊपर कामुक भावनाओं का ज्वार बहुत तेजी से चढ़ा था, लेकिन जैसे तैसे कर के मैंने स्वयं पर नियंत्रण किया। बहुत कठिन था लतिका जैसी सुन्दर लड़की से दूर रह पाना! ख़ास कर के तब, जब मैं अपनी समस्त प्रेमिकाओं के साथ विवाह से पूर्व सम्बन्ध बनाने का आदी रह चुका हूँ! लेकिन, न तो मैं उसका विश्वास ही तोड़ना चाहता था, और न ही उसके प्रण को। लतिका अब अपनी ही है - हमारे विवाह के लिए सभी का आशीर्वाद भी है और सभी की रज़ामंदी भी! इसलिए हमारे विवाह के लिए इंतज़ार करने में कोई खराबी नहीं थी - उल्टा वो एक तरह की मीठी तपस्या थी। लेकिन इंतज़ार का फल मीठा होता है! कुछ वर्षों पहले गैबी ने भी इसी तरह का प्रण लिया था। उस प्रण का निर्वहन न केवल गैबी के लिए ही, बल्कि मेरे लिए भी कठिन सिद्ध हुआ था। लेकिन फिर मिलन का ऐसा अद्भुत आनंद आया था, वो सभी पाठक जानते ही हैं! अगर मैं तब स्वयं को साध सकता था, तो अब भी कर सकता हूँ। ऐसा सोच कर मैंने अपने मन को थोड़ा समझाया!
मन को जैसे तैसे समझा तो लिया, लेकिन वो अलग बात है कि मेरे अंदर ही अंदर काम की आग सुलग रही थी। ऐसे में पापा और माँ ने बहुत गड़बड़ किया है हम दोनों को एक कमरा दे कर... शायद वो चाहते थे कि हमारे बीच का अनाड़ीपन निकल जाए! लेकिन लतिका की चाहत ने गड़बड़ कर दिया था। ये तो वही बात हुई न कि चिंगारी के स्रोत के पास पेट्रोल का पात्र खोल कर रख दिया गया था! कभी न कभी विस्फ़ोट होना ही था! कैसे सम्हालूँगा खुद को?
खैर, सम्हालना तो था ही, लिहाज़ा, जैसे तैसे मैंने स्वयं को सम्हाला। जल्दी ही तैयार हो कर हम दोनों लंच करने के लिए पापा माँ और बच्चों को लिवाने उनके कमरे गए। उनके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया, तो थोड़ी देर बाद अंदर से पापा की आवाज़ आई,
“यस?”
“पापा... हम लोग हैं!”
“ओह, अच्छा अच्छा... आओ बच्चों!” कह कर उन्होंने दरवाज़ा खोल दिया।
अंदर देखा, तो सभी बच्चे भी लगभग तैयार हो गए थे। बाक़ियों का नहीं मालूम, लेकिन मुझको अब बहुत तेज से भूख लग रही थी। अगर अगले आधे घंटे में कुछ नहीं खाया, तो पेट के चूहे हाथी बन जाएँगे - ऐसा लग रहा था। लतिका की हालत भी कमोवेश मेरे जैसी ही थी।
“अरे दादा, आना नहीं है, जाना है,” लतिका ने पापा को छेड़ते हुए कहा, “बहुत भूख लग रही है... चलो न!”
“बेटा... बस थोड़ी ही देर...”
“आप सब चलिए न,” माँ ने पापा से कहा, “... मैं और अभया आते हैं आप लोगों के पीछे ही...”
“अरे बोऊ-दी,” लतिका ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “थोड़ी देर तो हम वेट कर लेंगे... आपके बिना दादा का मन लगेगा ही नहीं! हा हा!”
“अबे! जब देखो तब मुझे छेड़ती रहती है!” पापा ने विनोदपूर्वक अपनी बहन से कहा, “... अगर मैं अपनी दुल्हनिया के बिना नहीं रह पाता, तो नहीं रह पाता! उसमें कौन सी गलत बात है?”
“कोई ग़लत बात नहीं है दादा... आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू... एंड आई वांट माय हस्बैंड आल्सो टू बी दिस मच मैडली इन लव विद मी! ... लेकिन अभी चलो न! बहुत देर हो रही है... मैं बोऊ-दी के साथ आ जाऊँगी! डोंट वरी! शी वोन्ट बी लॉस्ट!” लतिका की छेड़खानी अभी भी बंद नहीं हुई, “कम से कम पहले पहुँच कर आप लोग आर्डर तो दे दीजिए...”
“ठीक है मेरी माँ,” कहते हुए पापा बाहर चलने को तैयार हो गए, “... आओ बच्चों! खाना खाते हैं!”
जब तक माँ, लतिका और आदर्श डाइनिंग एरिया में आए, तब तक हमने सभी के लिए लंच का आर्डर दे दिया था। बड़ा रिसोर्ट था, इसलिए कहीं पर भी भीड़ या गहमागहमी कम थी। आरामदायक जगह थी; मेरा प्लान बन गया... भर पेट खाना खाऊँगा, और फिर स्विमिंग पूल के बगल लेट कर, बियर पीते हुए बढ़िया धूप सकूँगा! आदमियों की इच्छाएँ भी बड़ी मामूली सी होती हैं। वैसे, बाहर रहने का एक और कारण था - एक कमरे में लतिका और मैं, एक साथ अकेले... न जाने क्या हो!
थोड़ी देर में माँ, लतिका और अभया भी वहाँ आ गए। माँ ने घुटने तक लम्बी, फ़ीके पीले और गुलाबी रंग की एक सन-ड्रेस पहनी हुई थी, जिसमें सामने की तरफ़ ऊपर से नीचे बटन लगे हुए थे। देखने में तो वो एक सामान्य सी मिडी जैसी ड्रेस थी, लेकिन माँ पर गज़ब रूप से फ़ब रही थी। पतले सूती कपड़े की होने के कारण वो थोड़ी पारदर्शी भी थी - मुझको समझ आ रहा था कि माँ ने पैंटीज़ पहनी हुई हैं, लेकिन ब्रा नहीं! अपने पुराने दिनों की यादें ताज़ा हो आईं - जब हम दोनों शाम की पूजा के लिए जाते, और मैं उनसे स्तनपान कराने को कहता, तब भी वो केवल ब्लाउज ही पहने होती थीं, और उसके अंदर कुछ नहीं।
पुरानी बातें! तब से अब तक कितने सारे अंतर आ गए थे हमारे जीवन में!
“पापा,” मैंने पापा की तरफ़ मुखातिब हो कर कहा, “आपका कुछ असर तो हुआ है माँ पर!”
“क्यों? क्या हो गया बेटा?” पापा ने उत्सुकतावश कहा।
“अरे!” पापा के साथ माँ भी बोल पड़ीं।
मैंने पापा से कहा, “जब मैं छोटा था, तो माँ खाने में बाहर का शायद ही कुछ मँगाती हों! सब कुछ घर पर ही पकता था। ... लेकिन अब... आपके साथ तो माँ बड़ी एक्सेप्टिंग हो गई हैं, बाहर का खाने पीने को ले कर...”
“सबसे पहली बात बेटे कि तुम मेरे बड़े बेटे हो, और मेरे लिए तो छोटे ही रहोगे, चाहे कितने भी बड़े हो जाओ...” मैं पापा की बात पर मुस्कुराया, “... और दूसरी बात, चूँकि हम सभी इस समय बाहर ही हैं, इसलिए तुम्हारी माँ को नया नया एक्सपीरियंस करने में कोई ऐतराज़ नहीं है। ... जहाँ तक घर की बात है, तो अभी भी वो हमको पूरी तरह से घर का ही खाना खिलाती हैं! ... बाहर का बेहद कम... बस कभी कभी!”
माँ उनकी बात पर प्रसन्नता से मुस्कुराईं। अच्छी बात है... कुछ बातें बदलनी नहीं चाहिए!
“वैसे दादा,” लतिका ने मुस्कुराते हुए, और अर्थपूर्वक कहा, “जब घर का खाना इतना स्वादिष्ट हो, तब बाहर के खाने को खाना क्या, देखें भी क्यों?”
“हाँ हाँ! वो तो है!” पापा ने न समझते हुए कहा।
मैं भी लतिका की बात नहीं समझा और आगे बोला, “... और भी एक चेंज है... माँ का ड्रेसिंग सेन्स भी बदल गया है पापा... मतलब बहुत इम्प्रूव हो गया है! ... अब वो कितने सुन्दर सुन्दर और मॉडर्न कपड़े पहनती हैं!”
“हाँ बेटा,” पापा ने गर्व से कहा, “ये बात तो है... इस बात का क्रेडिट तो लूँगा मैं! ... इनको यहाँ तक लाने में बहुत मशक्कत करनी पड़ी है मुझे!”
“अच्छा जी!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।
“हाँ बोऊ-दी! ... इस बात का क्रेडिट दादा को मिलना चाहिए!” लतिका भी बोली।
हम बातें कर ही रहे थे कि इसी बीच हमारा खाना आ गया! खाना देखते ही मुझे ऐसा लगा कि जैसे खाना नहीं, बड़ी राहत आ गई! पहले कौर में न केवल पेट की ही, बल्कि काम की भूख भी थोड़ी शांत हो गई। सभी लोगों से बात करते हुए भोजन करने का आनंद ही कुछ और है।
खाने के समय मैंने एक बात नोटिस करी कि लतिका, पापा को बड़े अर्थपूर्ण तरीके से देख रही थी। पापा भी मुस्कुरा रहे थे... और माँ भी! कोई तो राज़ की बात थी, इतनी बात तो पक्की थी! मुझे लगा कि शायद इस बात कर दोनों एक दूसरे को देख रहे थे कि मैं और लतिका एक कमरे में बंद थे इस पूरी छुट्टियों के दौरान! लेकिन,
“अमर बेटे,” पापा ने खाते खाते अचानक ही कहा, “पुचुकी... मिष्टी... आदि बेटा... तुम सबको एक बहुत ही सुन्दर सी ख़बर सुनानी थी...”
“अरे वाह!” मैंने उत्साहित होते हुए कहा, “क्या बात है पापा?”
“बात यह है बेटा...” पापा ने थोड़ा हिचकते हुए बताया, “... कि मैं और आपकी मम्मी... हम दोनों... एक बार फिर से... यू नो...”
मुझे समझ तो आ गया, लेकिन फिर भी पापा को छेड़ने की गरज से मैंने आश्चर्यचकित होने की नौटंकी करते हुए कहा,
“व्हाट!!! आप दोनों डिवोर्स ले रहे हो?”
“अरे नहीं यार!” पापा ने चौंकते हुए कहा, “कैसी बातें करते हो तुम बेटे... अपनी ज़िन्दगी की लौ से दूर हो सकूँगा कभी?”
“तो फिर? बताईये न... आप इतना हिचक क्यों रहे हैं! कहिए न!”
मेरी बात पर माँ हँसने गई थीं। लतिका भी! उसको पहले से ही मालूम था, इसलिए उसको भी मज़ा आया कि मैंने मौके पर उसके दादा की टांग खींच दी। तो एक तरह से हम दोनों एक ही टीम में थे।
“बता ही तो रहा था... वो... हम दोनों फिर से मम्मी पापा बनने वाले हैं!”
“व्हाट!” मुझको वाक़ई यह सुन कर आश्चर्य हुआ!
‘माँ अभी भी माँ बन सकतीं थीं! वाक़ई आश्चर्य की बात थी!’
“हाँ... हमारा भी यही रिएक्शन था जब हमको मालूम पड़ा!” पापा ने कहा, “हमको लगता था कि अपनी अभया ही हमारी आखिरी संतान होगी! और हम इस बात से संतुष्ट थे। ... लेकिन...”
“लेकिन... आप बोऊ-दी को इतना परेशान करते हैं, उसका कुछ तो परिणाम आएगा ही न!” लतिका ने फिर से पापा को छेड़ा।
मैंने देखा कि लतिका ने बड़े प्यार से माँ को उनके कंधे से पकड़ कर अपने साइड से चिपका कर, अपने आलिंगन में बाँध लिया था, और उनको बड़े प्यार से चूम रही थी। माँ मंद मंद मुस्कुरा रही थीं, और मुझको बड़े लाड़ से देख रही थीं।
“येएएएएएए...” आभा ने बहुत अधिक खुश होते हुए अपनी प्रसन्नता व्यक्त करी, “ओह दादा... दादी... आई ऍम सो हैप्पी!”
“थैंक यू बेटे,” माँ ने बड़े प्रेम से उसको देखा।
“थैंक यू मेरी जान!” पापा ने कहा।
“हाँ दादा,” लतिका ने भी कहा, “दिस इस अ ग्रेट न्यूज़! ... बधाई हो बोऊ-दी!”
“वाओ!” मैंने कहा, “कोन्ग्रेचुलेशन्स पापा... कोन्ग्रेचुलेशन्स माँ!”
मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था, “वाओ!”
“बेटे,” पापा ने जैसे थोड़ा खेद-भरे स्वर में कहा, “तुमको भी लगता होगा न... कि तेरे बाप का अपने ऊपर कोई कण्ट्रोल ही नहीं है...”
“पापा...” मैंने उनकी बात काटते हुए बीच में कहा, “आप कैसी बातें कर रहे हैं! ... आई ऍम वैरी हैप्पी! आपके लिए भी... और माँ के लिए भी... और हम सबके लिए भी!”
“... मतलब... तुम नाराज़ तो नहीं हो?”
“नाराज़? ओह पापा... जिस दिन आप माँ को इस तरह से प्यार करना बंद कर देंगे न, उस दिन मैं होऊँगा आपसे नाराज़! हाँ...”
“हा हा!”
“नहीं पापा... सच में! हँसने वाली कोई बात ही नहीं है... और यह भी सच है कि आप दोनों को ही देख कर मुझको सच्चे, स्ट्रांग प्यार में वापस यकीन होने लगा है! ... आई लव यू!”
“आई लव यू टू मेरा बेटा...” पापा ने बड़े लाड़ से कहा।
“माँ,” फिर मैंने माँ की तरफ़ मुखातिब हो कर कहा, “आई ऍम सो हैप्पी... यू रियली आर अमेज़िंग!”
मैंने अपनी कुर्सी से उठ कर और उनके बगल बैठ कर प्यार से उनके पेट को सहलाया, और फिर उसको चूम कर बोला, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स!”
माँ ने पूरी ममता और स्नेह से मुझको देखा, और फिर मेरा चेहरा अपनी हथेलियों में ले कर मेरे होंठों को चूमा, और कहा, “थैंक यू सो मच मेरा बेटू... थैंक यू सो मच!”
“बोऊ-दी बिल्कुल गॉड्स मिरेकल हैं!” लतिका बोली, “इनके कारण हमको कितनी सारी ख़ुशियाँ मिलीं हैं!”
“हाँ...” पापा बोले, “इस बात से मैं रत्ती भर इंकार नहीं कर सकता। ... मेरी सुमन साक्षात् भगवान का प्रसाद है!”
“हा हा... आप लोग भी न...” माँ ने शर्माते हुए कहा।
“नहीं बोऊ-दी... यह एक बड़ी बात है! ... और बहुत ख़ुशी की बात भी!”
“कौन सा महीना है माँ?” मैंने पूछा।
“चौथा बेटे...”
“नाइस...”
“क्या दादा जी?” लतिका ने फिर से पापा को छेड़ना शुरू कर दिया, “मेरी इतनी भोली सी, प्यारी सी बोऊ-दी हैं... लेकिन आप इनको छेड़ते ही रहते हैं!”
“हा हा!” पापा ने कहा, “... सुन्दर सी भी तो हैं...”
“हाँ पापा! ... कण्ट्रोल ही नहीं होता न माँ को देख कर!”
“हा हा! नहीं होता बेटे, नहीं होता!”
“मत करिए कोई कण्ट्रोल...”
“व्ही आर सो हैप्पी!” लतिका ने कहा।
सच में - उस दिन बड़ी ख़ुशी मिली थी!
माँ का एक भरे पूरे परिवार का सपना न केवल साकार हो रहा था, बल्कि स्वस्थ तरीके से अभी भी फल फूल रहा था! और यह बात किसी चमत्कार से कम नहीं थी। दादी माँ तो बहुत खुश होंगी!
“दादी माँ को बताया माँ?” मैंने पूछा।
“नहीं बेटे... अभी नहीं!” माँ लज्जा से मुस्कुराती हुई बोलीं, “बहुत डाँटेंगी वो मुझे!”
“अरे वो क्यों?” लतिका बीच में माँ के बचाव में कूद पड़ी, “इतनी सुन्दर सी ख़बर सुन कर वो भला कैसे और भला क्यों डाँटेंगी आपको?”
“इसलिए कि मैंने इतने दिन उनसे ये खबर छुपाए रखी!”
“नहीं बोऊ-दी! वो आपसे नाराज़ हो ही नहीं सकतीं!” लतिका ने बड़े लाड़ से कहा, “भला कोई अपनी सबसे प्यारी बिटिया से नाराज़ हो सकता है कभी?”
फिर अचानक से उनको छेड़ती हुई वो बोली, “और वैसे भी, अम्मा और बापू भी तो ट्राई कर रहे हैं...”
“क्या!” पापा ने चौंकते हुए कहा।
“और क्या?” लतिका ने पापा को फिर से छेड़ा, “आपको क्या लगता है? एक आप ही हैं, जो अपनी दुल्हनिया से पागलों की तरह प्यार करते हैं?”
“हा हा हा! तू भी न पुचुकी...”
*
खाने पर इतना खुशनुमा माहौल हो गया था कि खाने का ज़ायका कई गुणा बढ़ गया।
“अब मैं बस यही चाहती हूँ कि तुम दोनों की शादी भी हो जाए!” माँ ने कहा।
“हाँ बेटा... तुम और पुचुकी जितना जल्दी हो सके, शादी कर लो!”
मैंने पापा और माँ की बात पर लतिका को देखा... वो मुस्कुरा रही थी। अचानक ही मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा। क्या किस्मत थी मेरी - घूम फिर कर मेरी सभी फेवरेट महिलाओं के गुणों वाली लड़की मिल गई थी! लतिका में माँ और अम्मा - दोनों के ही गुण थे! न केवल तन की सुंदरता बल्कि मन की भी! सच में - मैं किस्मत का रोना रोता रहा हूँ, लेकिन किस्मत ने मुझको अद्भुत स्त्रियों का प्रेम दिया था! अब कोई शिकायत शेष नहीं थी! बस, अब यही इच्छा थी कि लतिका और मैं साथ हो जाएँ और एक लम्बे समय तक अपनी शादी-शुदा ज़िन्दगी का आनंद लें!
“हाँ माँ... मैं तो तैयार हूँ!” मेरे मुँह से तपाक से निकल गया।
“पुचुकी बेटा,” पापा ने कहा, “कुछ कहो?”
“क्या कहूँ दादा? ... मैं भी तो चाहती हूँ... लेकिन...”
“लेकिन?”
“लेकिन... गेम्स हैं फरवरी में... और फिर मार्च अप्रैल में एक्साम्स... उसके बाद कभी भी...” कहते कहते लतिका के साँवले गालों पर गुलाबी रंगत चढ़ गई।
“अप्रैल... नहीं... मई में कर लें?” माँ ने पापा से मंत्रणा करी।
“हाँ...” पापा सोचते हुए बोले, फिर मेरी तरफ़ मुखातिब हो कर बोले, “बेटे, जुलाई कैसा रहेगा? जून में डिलीवरी होगी... इसलिए!”
“कभी भी पापा!”
“हाँ दादा... जुलाई ठीक रहेगा!” लतिका ने माँ को चूमते हुए कहा, “वैसे भी, बिना मम्मा का दूधू पिये मैं दुल्हन नहीं बनूँगी!”
“हा हा हा... एक तू और एक तेरा दुद्धू प्रेम!” माँ ने हँसते हुए कहा, “बिना उसके तुम दोनों की शादी होने भी नहीं दूँगी!”
“येएएएएए...” लतिका हर्ष से बोली!
“अब तू अपनी गृहस्थी सम्हाल... अपनी बेटी को सम्हाल! ... मेरे बेटे को सम्हाल...”
“सम्हाल लूँगी...” लतिका ने मुझको प्यार से देखा, फिर अचानक ही उसकी आँखों में शरारत वाले भाव आ गए, “... आपका बेटा, मेरा भी तो बेटा है...”
“आएँ... तेरा बेटा?”
“और क्या! आपका बेटा... मेरा भतीजा...!”
“हा हा हा!”
“हा हा हा!”
“हा हा हा!”
*
चूंकि आपने अपने इस कहानी मे स्तनपान पर काफी कुछ फोकस किया है और संयोग वश फिलहाल चल रहे अगस्त माह के पहले हफ्ते को ' विश्व स्तनपान दिवस ' के रूप मे भी मनाया जाता है इसलिए इस विषय पर थोड़ा-बहुत मै भी कुछ कहना चाहता हूं।
स्तनपान कराने पर मां और बच्चे दोनो की सेहत को कई फायदें मिलते है। लेकिन हमारे भारतीय समाज मे अक्सर ही देखा जाता है कि स्तनपान से जुड़ी कई तरह की बातें कही जाती है जिनमे से आधी सच तो आधी मिथक से ज्यादा कुछ नही होती।
कहा जाता है कि हर मां स्तनपान करवा सकती है जबकि ऐसा नही है। कई महिलाएं मेडिकल कंडीशंस से गुजरती है और इस चलते वे स्तनपान नही करा पाती है। ऐसे मे महिलाओं को यह उलाहना देना कि वे स्तनपान क्यों नही करवा पा रही है जबकि बाकी सभी माएं करवा लेती है , गलत है।
स्तनपान कराने से स्तन डैमेज या खराब नही होते। इनका आकार जस का तस रह सकता है। स्तन का आकार बढ़ता भी है तो वह प्राकृतिक प्रक्रिया के चलते होता है ना कि स्तनपान कराने से।
और यह हम जानते ही है कि बच्चों के लिए मां का दूध कितना मायने रखता है।
अपडेट के अनुसार लतिका ने नेशनल गेम्स मे काफी बेहतर परफॉर्म किया पर संयोग से एशियन गेम्स के लिए क्वालीफाई न कर पाई। शायद मुझे लगता है शादी के बाद वो गेम्स से तौबा कर लेगी पर फिजिकल ट्रेनिंग करती रहेगी।
रांची मै कई बार जा चुका हूं। वहां मेरे कई रिलेटिव रहते है। जहां तक कोयला की बात है , वो झरिया , हजारीबाग और धनबाद के क्षेत्रों मे अधिक पाया जाता है। मै कोयला खादान जो जमीन से सैंकड़ो फीट नीचे होता है , डोली के थ्रू जा चुका हूं। शायद आपने ' काला पत्थर ' फिल्म देखा होगा। ये सत्य घटना पर आधारित फिल्म थी। चासनाला जो धनबाद के पास मे ही है , खादान मे पानी भर जाने से कई लोगों की मौत हो गई थी। वैसे बंगाल के ' रानीगंज ' का कोयला हिन्दुस्तान के सबसे उच्च क्वालिटी का कोयला है।
बहुत जल्द लतिका और अमर एक डेट पर जाने वाले है। वैसे यह सब औपचारिकता ही है क्योंकि दोनो साथ साथ कई वर्षों से एक साथ ही रह रहे है और एक दूसरे की प्लस और माइनस प्वाइंट को बखुबी समझते है।
बहुत खुबसूरत अपडेट अमर भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
चलिए फरवरी बीत गई, अब जून जुलाई का इंतजार है।अचिन्त्य - Update # 18
अपने परिवार के साथ आभा की जाड़ों की छुट्टियाँ बिता कर मुझको एक अलग ही तरह का आनंद मिला! न केवल अपनी ‘मंगेतर’ के करीब आने का अवसर ही मिला, बल्कि अपनी बेटी, और अपने दूसरे भाईयों और बहन को भी निकटता से जानने और समझने का अवसर भी मिला। आदित्य, आदर्श, और अभया में माँ और पापा दोनों के ही गुण आए थे - तीनों बड़े सौम्य और शांत स्वभाव के बच्चे थे। आम बच्चों की तरह आदतन और बिना-वज़ह रोना धोना नहीं करते थे वो... बहुत नन्हे थे, तब भी नहीं। और हो भी क्यों न? जब माँ बाप दोनों ऐसे शांत और सौम्य स्वभाव के हों, तो बच्चे भी स्वाभाविक रूप से उन्ही के ही जैसे होंगे। तीनों बच्चे इतने सभ्य थे कि मुझे एक बार फिर से अफ़सोस होने लगा कि क्यों मैं उनके साथ पहले इतना घुला-मिला नहीं! ख़ैर, जो बीत गया सो बीत गया! आगे ऐसी गलती न करूँ, इस बात की गाँठ मैंने मन ही मन बाँध ली।
कभी कभी मुझको ऐसा लगता कि यह सब जीवन जीने का एक गूढ़ ज्ञान था, जो मेरे माता पिता मुझको दे रहे थे... या फिर, देना चाह रहे थे। अपने आसान तरीक़ों से, जीवन में किन बातों की सबसे बड़ी महत्ता है, वो मुझको समझा रहे थे। वैसे अगर देखा जाय, तो मेरे लिए ये सब एक तरह से सामयिक ज्ञान था, क्योंकि जल्दी ही मेरी और लतिका की शादी होने वाली थी। उसके बाद हमारा खुद का परिवार बनता और बढ़ता! उस समय गलती नहीं होनी चाहिए! परिवार बढ़ने से याद आया - माँ की प्रेग्नेंसी जहाँ आश्चर्यचकित करने वाली थी, वहीं वो हम सभी के लिए बड़ी प्रसन्नता का भी विषय थी।
अम्मा ने जब यह खबर सुनी, तो वो ख़ुशी के मारे पागल हो गईं! उनको लगा था कि गाँव के पुराने मंदिर के महंत जी की भविष्यवाणी कोई पत्थर की लक़ीर थी, और शायद अभया के बाद अब माँ को कोई और संतान न हों। लेकिन माँ के ऊपर ईश्वरीय कृपा ने उस बात को गलत साबित कर दिया था। अपनी वंशबेल में पनपने वाली अगली लता के पैदा होने की राह संजोए हुए अम्मा, माँ की बड़ी देखभाल करतीं। इस हेतु अम्मा, सत्यजीत जी, और गार्गी अब माँ और पापा के साथ ही रहते। माँ को इस बात से बहुत सम्बल मिला। और भी अच्छी बात हुई - साथ रहने से पापा और सत्यजीत जी को भी करीब आने में बड़ी मदद मिली। जैसे मैं और पापा एक समय के बाद इतने करीब हो गए कि हमारे बीच के उम्र के इतने अन्तर के बावज़ूद हमारा रिश्ता बाप-बेटे वाला हो गया, ठीक उसी तरह पापा और सत्यजीत जी भी अंततः बाप-बेटा जैसे ही बन गए।
अम्मा ने जब माँ के साथ रहने की बात छेड़ी, तो माँ ने ही ज़िद कर के अम्मा की बहू, माधवी, और उसके दोनों बच्चों को भी अपने ही घर बुला कर, अपने ही साथ रहने को आमंत्रित किया। पाठकों को ज्ञात होगा कि दीपावली के समय वो प्रेग्नेंट थी - दरअसल, माधवी माँ से दो महीने पहले प्रेग्नेंट हुई थी, इसलिए उसकी भी देखभाल माँ के जितनी ही आवश्यक थी! रिश्ते के हिसाब से देखें, तो वो माँ की बहन लगती थी! लेकिन उन दोनों के बीच की प्रगाढ़ता अब जा कर बढ़ी थी। हाँलाकि माँ बहुत पहले से ही अम्मा को अपनी माँ मान चुकी थीं, और सत्यजीत जी का भी आदर वो अपने ससुर जैसा ही करती थीं। लेकिन पापा और सत्यजीत के बीच और उनके और माधवी के बीच इस नए सिरे से मज़बूत हुए सम्बन्ध के बाद, और अब एक ही छत के नीचे साथ रहते हुए, अब सभी के सम्बन्ध में भी अत्यंत प्रगाढ़ता आ गई।
माँ ने जो परिपाटी चलाई थी, उसको अम्मा ने भी भली भाँति आत्मसात कर लिया था। इसलिए माँ को यह जान कर सुखद आश्चर्य हुआ कि अम्मा अपनी ‘छोटी बहू’ को भी अपनी ‘बड़ी बहू’ के ही जैसे, बड़े प्यार और लाड़ से रखती थीं!
“बहू,” अम्मा ने मुंबई वाले घर में रहने की पहली ही सुबह आवाज़ लगाई।
“आई अम्मा...” माधवी और माँ दोनों ने एक साथ उत्तर दिया, और एक दूसरे को देख कर खिलखिला कर हँस दीं।
दोनों ही रसोई में काम कर रही थीं, और अपने हाथ पोंछते हुए दोनों अम्मा के पास जा कर खड़ी हो गईं।
“बोलिए अम्मा?”
“क्या तुम दोनों आराम नहीं करोगी?” अम्मा ने दोनों को प्यार से डाँटा, “... यहाँ मैं सोच सोच कर हैरान परेशान हूँ कि मेरी दोनों बहुएँ खुश खुश रहे, आराम से रहें, और यहाँ ये दोनों हैं कि आराम करना ही नहीं चाहतीं!”
“ऐसा नहीं है अम्मा,” माँ ने हँसते हुए कहा, “... बहुत आराम है! काम ही क्या है? ... और वैसे भी, हाथ पाँव चलते रहने चाहिए! कुछ नहीं किया, तो बहुत मोटी हो जाऊँगी!”
“मोटी होती है, तो हो जा मोटी...”
“फिर आपका बेटा ही शिकायत करेगा!”
“शिकायत करेगा तो मार मार कर उसके चूतड़ लाल कर दूँगी!” अम्मा ने धमकाया।
उनकी बात पर माँ और माधवी, दोनों हँसने लगीं!
माधवी बोली, “हाँ दीदी! ... आप सही कहती हो! ... मुझको भी इसी बात का डर लगा रहता है! ... वैसे भी, इतनी मोटी हो गई हूँ अभी से...”
“ये देखो! बस चौबीस की हुई है, और इसको मोटापे का डर है! ... सही मात्रा में खाना खाओ! अपने बच्चों को खूब दूध पिलाओ! फालतू चर्बी बचेगी ही नहीं! समझी?” अम्मा ने माधवी को प्यार से समझाया, “चल... आ जा मेरे पास...”
माधवी ने अम्मा की बात पर माँ को देख कर कहा, “अम्मा... अभी... यहाँ?”
“और क्या? अभी नहीं तो कब?” अम्मा ने अपनी ब्लाउज़ के बटन खोलते हुए कहा, “... ओह, अब समझी! अपनी दीदी के कारण शरमा रही है तू? ... अरे मत शरमा! ... उसको तो तुझसे कहीं पहले से अपना दूध पिला रही हूँ!”
“क्या! हा हा!” माधवी ने हँसते हुए माँ से पूछा, “अम्मा सच कह रही हैं दीदी?”
माँ उत्तर में बस मुस्कुराती हुई हँस दीं।
“सच नहीं तो क्या झूठ? आ जा...” अम्मा ने कहा, और अपना ब्लाउज़ उतार दिया।
जब माधवी उनके सामने आई, तो अम्मा ने वैसे ही जैसे वो माँ के साथ करती थीं, झटपट उसके कपड़े उतार दिए। माँ के सामने नग्न होते समय उसको शर्म तो बहुत आई, लेकिन जब थोड़ी ही देर में, जब माँ के भी सारे कपड़े उतर गए, तो उसको सामान्य सा लगने लगा। उसको गर्भावस्था में यूँ नग्न देख कर माँ को भी अपनी गर्भावस्था का ध्यान हो आया।
“तुम खूब सुन्दर हो माधवी!” माँ बोलीं।
“थैंक यू दीदी!” वो बोली, “... लेकिन आपके सामने कोई बिसात नहीं है मेरी!”
“मेरी दोनों बहुएँ खूब सुन्दर हैं... और बहुत गुणी भी! इसीलिए तो मेरे दोनों बेटे इनको इतना चाहते हैं!” अम्मा ने बड़े लाड़ से कहा।
“अम्मा...”
“अच्छा... अब सुनो! ... आज से तुम दोनों सुबह उठने से ले कर रात सोने तक, हर तीन से चार घण्टे पर मेरा दूध पियोगी...” अम्मा ने लगभग आदेश देते हुए कहा, “... और घर का कोई काम नहीं करोगी!”
“लेकिन अम्मा,”
माँ बोलने को हुईं, लेकिन अम्मा ने उनको डाँटा, “चुप! और... रसोई का कोई भी भारी काम नहीं करोगी!”
“जी अम्मा!” माधवी ने कहा।
“लेकिन एक्सरसाइज तो कर सकते है न अम्मा?” माँ ने जैसे अम्मा से अनुनय-विनय किया हो।
“हाँ! वो जैसे पहले करती थी, वैसे ही करती रहो! ... उसके लिए कौन मना करता है?”
“थैंक यू अम्मा!”
“और बच्चे अम्मा?” माधवी ने कहा, “गार्गी?”
आदित्य और माधवी के बड़े बेटे ने अब स्तनपान करना लगभग बंद ही कर दिया था। दोनों ही सात साल से बड़े हो गए थे, और अब दोनों ही अपनी अपनी माँओं के स्तनों से पोषण लेना अपने से नीचे समझने लगे थे। उनकी देखा-देखी आदर्श भी रह रह कर स्तनपान करने में आना-कानी करने लग गया था। और इस तरह से उन तीनों माँओं के बीच केवल तीन ही स्तनपान करने वाले बच्चे थे - हम वयस्क बच्चों को छोड़ कर!
“बच्चों को तुम दोनों मिल कर देख लो...”
“जी अम्मा,” माधवी ने कहा।
“चलो आ जाओ बच्चों! दूध पी लो...” अम्मा ने कहा, तो दोनों बहुएँ आनंद से अपनी सास का दूध पीने लगीं।
*
मेरे और लतिका के जीवन में छुट्टियों के बाद से कोई और अंतरंग बात या घटना नहीं हुई। छुट्टियों के बाद से लतिका का सारा ध्यान नेशनल गेम्स पर ही केंद्रित हो गया। मैं भी चाहता था कि जिस काम के लिए लतिका ने बर्सों तपस्या करी थी, उसमें वो सफ़ल हो। एक तरह से बहुत अच्छा हुआ, कि हमने सपरिवार छुट्टियाँ मना लीं! क्योंकि गेम्स के लिए हर राज्य का अपना अपना ट्रेनिंग शिविर लग रहा था, जिसमें कमर-तोड़ ट्रेनिंग होने वाली थी। लिहाज़ा, छुट्टियों के कारण उसके शरीर की बेहतरीन कंडीशनिंग हो गई थी और ट्रेनिंग में उसका परफॉरमेंस भी सुधर रहा था।
नेशनल गेम्स झारखण्ड की राजधानी राँची में हो रहे थे। हम सभी लतिका की दौड़ों को देखने के लिए शामिल होना चाहते थे, लेकिन अम्मा ने अपनी दोनों बहुओं को यात्रा करने से साफ़ मना कर दिया। वो थोड़ा सा भी रिस्क नहीं लेना चाहती थीं। अपनी अपनी माँओं के न आ पाने के कारण बच्चे भी घर पर ही रह गए। लतिका इस बात को समझती थी, इसलिए उसने इस बात के लिए कोई शिकायत नहीं करी। लेकिन हाँ - उसने अपनी बोऊ-दी से वायदा लिया कि वो टीवी पर उसका परफॉरमेंस ज़रूर देखेंगी। यह बात कहने को कोई आवश्यकता नहीं थी - माँ वैसे भी आज कल पूरा समय नेशनल गेम्स से जुड़ी हर खबर देखती थीं।
लतिका का प्रदर्शन देखने के लिए अम्मा, सत्यजीत जी, गार्गी, और पापा उपस्थित थे। मैं और आभा भी राँची जाने की तैयारी में थे। आभा ने तो अपने स्कूल में ढिंढ़ोरा पीट दिया था। उसके स्कूल में शायद ही कोई हो, जो ये बात न जानता हो कि उसकी होने वाली मम्मी गेम्स में पार्टिसिपेट कर रही हैं! आभा अब दसवीं में थी, और उसके भी बोर्ड एक्साम्स होने वाले थे। लेकिन इस अनोखे अवसर पर उसको स्कूल से कुछ दिनों की छुट्टी दे दी गई थी।
उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में यात्रा करने की दृष्टि से फरवरी एक अच्छा समय नहीं है! एक तो लगभग पूरे क्षेत्र में हाड़ कंपाने वाला मौसम बना रहता है। और ऊपर से लगातार कोहरा बना रहता है, जिससे आप प्राकृतिक नज़रों का आनंद नहीं ले पाते। दृश्यता कम हो जाती है। लेकिन अगर किसी कारण से मौसम गुलाबी जाड़े वाला हो जाय, तो आनंद आ जाता है। लतिका तब तक शिविर नहीं छोड़ सकती थी जब तक कि उसकी सारी दौड़ें पूरी न हो जाएँ!
लेकिन हम सभी थोड़ी मौज-मस्ती कर सकते थे। मेरा मन नहीं था, लेकिन लतिका ने ही ज़ोर दिया कि एक बार आए हैं इधर, तो आस पास घूम लेने में कोई बुराई नहीं है। वैसे भी आभा अपने अभी तक के जीवन में कभी किसी वन्यजीव अभयारण्य में नहीं गई थी। इसलिए हमने सोचा कि राँची पहुँचते ही हम सब पहले बेतला वन्यजीव अभयारण्य देख आएँ। उसके बाद राँची में लतिका के प्रदर्शन का आनंद लेकर उसी के साथ वापस घर लौट जाएँगे। यह एक अच्छा प्लान था। लेकिन मुझे लगा कि यह कोई बहुत बढ़िया निर्णय नहीं था। मुझे नहीं लगता कि झारखण्ड वन्य-जीवों के अवलोकन के लिए उत्तम स्थानों में से है। बड़े ही लम्बे अर्से से कोयले और अन्य खनिजों के लिए झारखण्ड की भूमि का दोहन किया जाता रहा है, जिसका नकारात्मक प्रभाव वहाँ की भूमि के प्राकृतिक संतुलन पर पड़ा है।
जैसा कि हमने देखा, बेतला राष्ट्रीय उद्यान में हिरणों की प्रचुर संख्या है। अन्य जानवर कम ही दिखे। खैर, आभा उन्हें देखकर बहुत उत्साहित हुई और गार्गी भी! मुझे लगता है कि बच्चों को जितना जल्दी हो सके, प्रकृति के संपर्क में लाया जाना चाहिए, ताकि उनमें प्रकृति के प्रति सराहना और सहानुभूति विकसित हो सके! राँची हवाई अड्डे से बेतला तक सड़क से हमें लगभग छः घंटे लगे। जैसे ही हम राष्ट्रीय उद्यान में दाखिल हुए, हमको हिरणों के बहुत सारे झुंड दिखे। कई तो हमारे बहुत करीब आ कर घास चर रहे थे। उतना देखना भी बहुत ही सुंदर दृश्य था! बढ़िया, घने हरे पेड़! हमारी थकी हुई आँखें तृप्त हो गईं! जैसे-जैसे हम उद्यान के और अंदर बढ़े, हमें जंगली भैसे, बंदर, मोर, और कई प्रकार के पक्षी दिखाई देने लगे। वन रक्षकों ने हमें बताया कि यदि हम भाग्यशाली रहे, तो हम जंगली हाथियों को भी देख सकते हैं, बशर्ते हमारे अंदर पर्याप्त धैर्य हो। वो अलग बात है कि हमारे रहने के दौरान हमको एक भी हाथी नहीं दिखा। हम जंगल के अंदर ही, फारेस्ट गेस्ट हाउस में रह रहे थे। गेस्ट हाउस के कमरे साधारण से ही थे, लेकिन जंगल के अंदर रहने के कारण पूरा रोमांच बना हुआ था।
जंगलों के अंदर रातें तेजी से ढलने लगती हैं। हमने रात का खाना खाया और सोने चले गये। पहले तो गार्गी और आभा बहुत उत्साहित थे, लेकिन जैसे-जैसे रात होने लगी, और जंगली जानवरों की तरह तरह की आवाजें सुनाई देने लगीं, दोनों बच्चे डरने लगे। खैर, अम्मा साथ में थीं, इसलिए उन्होंने दोनों को लोरी गा कर सुला दिया। अम्मा एक अद्भुत महिला थीं... मैं बहुत भाग्यशाली था कि उनका साथ बना हुआ था। वो अभी भी हम सभी का ख्याल रख रही थीं, जैसे वो हमेशा करती थीं। सच में, उनका होना हमारे पूरे परिवार के लिए स्वयं भगवान का आशीर्वाद था!
*
लतिका ने को अपनी दो स्प्रिंटिंग इवेंट्स में एक सिल्वर (रजत) और एक ब्रोंज (काँस्य) मैडल (पदक) मिला! सच में - हमारे पूरे परिवार के लिए बेहद गर्व और उल्लास का समय था वो! चीख चीख कर पापा, मेरा, और आभा का गला बैठ गया! हमारा उत्साह देख कर दर्शक स्टैंड में उपस्थित अन्य लोग भी बड़े उत्साहित थे। बहुत बहुत मज़ा आया! अन्य खेलों में भी बड़ा आनंद आया क्योंकि हमारी अपनी भी जीती हुई थी! वो अलग बात है कि एशियाई गेम्स के लिए खिलाड़ियों का चयन पहले ही हो चुका था, और उस लिस्ट में लतिका नहीं थी। वैसे, ये बात हम भी जानते और समझते थे। एशियाई खेलों के हिसाब से लतिका का स्तर अभी भी कम ही था। लेकिन, ये उपलब्धि भी कोई कम नहीं थी। मैंने निर्णय लिया कि घर जा कर इसका पूरा जश्न मनाएँगे हम सभी! मैंने पहले ही लतिका के लिए रनिंग शूज अमेरिका से मंगवाए थे जो मैं नेशनल गेम्स के बाद उसको उपहार में देना चाहता था। जब अपनी प्रतियोगिता से लतिका को छुट्टी मिली, तब मैंने उसको वो जूते भेंट में दिए और उसके माथे को सबके सामने चूम लिया। मेरे इतने सभ्य प्रेम-प्रदर्शन पर सभी मुस्कुराए बिना न रह सके!
*
पापा ने मुझसे इन दिनों एक बार पूछा कि क्या गोवा के बाद मैं और लतिका डेट पर गए हैं! मैं भी चौंक गया इस प्रश्न पर! लेकिन सच बात तो यही थी कि हम आज तक एक बार भी डेट पर नहीं गए थे। मेरा बना हुआ मुँह देख कर पापा सब समझ गए, और मुझे समझाते हुए उन्होंने मुझे लतिका के साथ डेट पर जाने को कहा। विवाह से पहले सेक्स करने से अधिक आवश्यक है एक दूसरे को जानना और समझना। उन्होंने अपने और माँ के बारे में भी विस्तार में बताया कि कैसे वो हर दिन, घण्टों माँ के साथ बिताते थे, और उनके बारे में हर छोटी - बड़ी बात जानने का प्रयास करते थे। उसका लाभ यह हुआ कि जब समय आया, तब वो माँ के साथ उस स्तर पर जुड़ सके, जैसा किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था।
ठीक है - तय रहा! दिल्ली वापस जा कर लतिका को पहली बार डेट पर ले जाना है!
*
Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....अचिन्त्य - Update # 18
अपने परिवार के साथ आभा की जाड़ों की छुट्टियाँ बिता कर मुझको एक अलग ही तरह का आनंद मिला! न केवल अपनी ‘मंगेतर’ के करीब आने का अवसर ही मिला, बल्कि अपनी बेटी, और अपने दूसरे भाईयों और बहन को भी निकटता से जानने और समझने का अवसर भी मिला। आदित्य, आदर्श, और अभया में माँ और पापा दोनों के ही गुण आए थे - तीनों बड़े सौम्य और शांत स्वभाव के बच्चे थे। आम बच्चों की तरह आदतन और बिना-वज़ह रोना धोना नहीं करते थे वो... बहुत नन्हे थे, तब भी नहीं। और हो भी क्यों न? जब माँ बाप दोनों ऐसे शांत और सौम्य स्वभाव के हों, तो बच्चे भी स्वाभाविक रूप से उन्ही के ही जैसे होंगे। तीनों बच्चे इतने सभ्य थे कि मुझे एक बार फिर से अफ़सोस होने लगा कि क्यों मैं उनके साथ पहले इतना घुला-मिला नहीं! ख़ैर, जो बीत गया सो बीत गया! आगे ऐसी गलती न करूँ, इस बात की गाँठ मैंने मन ही मन बाँध ली।
कभी कभी मुझको ऐसा लगता कि यह सब जीवन जीने का एक गूढ़ ज्ञान था, जो मेरे माता पिता मुझको दे रहे थे... या फिर, देना चाह रहे थे। अपने आसान तरीक़ों से, जीवन में किन बातों की सबसे बड़ी महत्ता है, वो मुझको समझा रहे थे। वैसे अगर देखा जाय, तो मेरे लिए ये सब एक तरह से सामयिक ज्ञान था, क्योंकि जल्दी ही मेरी और लतिका की शादी होने वाली थी। उसके बाद हमारा खुद का परिवार बनता और बढ़ता! उस समय गलती नहीं होनी चाहिए! परिवार बढ़ने से याद आया - माँ की प्रेग्नेंसी जहाँ आश्चर्यचकित करने वाली थी, वहीं वो हम सभी के लिए बड़ी प्रसन्नता का भी विषय थी।
अम्मा ने जब यह खबर सुनी, तो वो ख़ुशी के मारे पागल हो गईं! उनको लगा था कि गाँव के पुराने मंदिर के महंत जी की भविष्यवाणी कोई पत्थर की लक़ीर थी, और शायद अभया के बाद अब माँ को कोई और संतान न हों। लेकिन माँ के ऊपर ईश्वरीय कृपा ने उस बात को गलत साबित कर दिया था। अपनी वंशबेल में पनपने वाली अगली लता के पैदा होने की राह संजोए हुए अम्मा, माँ की बड़ी देखभाल करतीं। इस हेतु अम्मा, सत्यजीत जी, और गार्गी अब माँ और पापा के साथ ही रहते। माँ को इस बात से बहुत सम्बल मिला। और भी अच्छी बात हुई - साथ रहने से पापा और सत्यजीत जी को भी करीब आने में बड़ी मदद मिली। जैसे मैं और पापा एक समय के बाद इतने करीब हो गए कि हमारे बीच के उम्र के इतने अन्तर के बावज़ूद हमारा रिश्ता बाप-बेटे वाला हो गया, ठीक उसी तरह पापा और सत्यजीत जी भी अंततः बाप-बेटा जैसे ही बन गए।
अम्मा ने जब माँ के साथ रहने की बात छेड़ी, तो माँ ने ही ज़िद कर के अम्मा की बहू, माधवी, और उसके दोनों बच्चों को भी अपने ही घर बुला कर, अपने ही साथ रहने को आमंत्रित किया। पाठकों को ज्ञात होगा कि दीपावली के समय वो प्रेग्नेंट थी - दरअसल, माधवी माँ से दो महीने पहले प्रेग्नेंट हुई थी, इसलिए उसकी भी देखभाल माँ के जितनी ही आवश्यक थी! रिश्ते के हिसाब से देखें, तो वो माँ की बहन लगती थी! लेकिन उन दोनों के बीच की प्रगाढ़ता अब जा कर बढ़ी थी। हाँलाकि माँ बहुत पहले से ही अम्मा को अपनी माँ मान चुकी थीं, और सत्यजीत जी का भी आदर वो अपने ससुर जैसा ही करती थीं। लेकिन पापा और सत्यजीत के बीच और उनके और माधवी के बीच इस नए सिरे से मज़बूत हुए सम्बन्ध के बाद, और अब एक ही छत के नीचे साथ रहते हुए, अब सभी के सम्बन्ध में भी अत्यंत प्रगाढ़ता आ गई।
माँ ने जो परिपाटी चलाई थी, उसको अम्मा ने भी भली भाँति आत्मसात कर लिया था। इसलिए माँ को यह जान कर सुखद आश्चर्य हुआ कि अम्मा अपनी ‘छोटी बहू’ को भी अपनी ‘बड़ी बहू’ के ही जैसे, बड़े प्यार और लाड़ से रखती थीं!
“बहू,” अम्मा ने मुंबई वाले घर में रहने की पहली ही सुबह आवाज़ लगाई।
“आई अम्मा...” माधवी और माँ दोनों ने एक साथ उत्तर दिया, और एक दूसरे को देख कर खिलखिला कर हँस दीं।
दोनों ही रसोई में काम कर रही थीं, और अपने हाथ पोंछते हुए दोनों अम्मा के पास जा कर खड़ी हो गईं।
“बोलिए अम्मा?”
“क्या तुम दोनों आराम नहीं करोगी?” अम्मा ने दोनों को प्यार से डाँटा, “... यहाँ मैं सोच सोच कर हैरान परेशान हूँ कि मेरी दोनों बहुएँ खुश खुश रहे, आराम से रहें, और यहाँ ये दोनों हैं कि आराम करना ही नहीं चाहतीं!”
“ऐसा नहीं है अम्मा,” माँ ने हँसते हुए कहा, “... बहुत आराम है! काम ही क्या है? ... और वैसे भी, हाथ पाँव चलते रहने चाहिए! कुछ नहीं किया, तो बहुत मोटी हो जाऊँगी!”
“मोटी होती है, तो हो जा मोटी...”
“फिर आपका बेटा ही शिकायत करेगा!”
“शिकायत करेगा तो मार मार कर उसके चूतड़ लाल कर दूँगी!” अम्मा ने धमकाया।
उनकी बात पर माँ और माधवी, दोनों हँसने लगीं!
माधवी बोली, “हाँ दीदी! ... आप सही कहती हो! ... मुझको भी इसी बात का डर लगा रहता है! ... वैसे भी, इतनी मोटी हो गई हूँ अभी से...”
“ये देखो! बस चौबीस की हुई है, और इसको मोटापे का डर है! ... सही मात्रा में खाना खाओ! अपने बच्चों को खूब दूध पिलाओ! फालतू चर्बी बचेगी ही नहीं! समझी?” अम्मा ने माधवी को प्यार से समझाया, “चल... आ जा मेरे पास...”
माधवी ने अम्मा की बात पर माँ को देख कर कहा, “अम्मा... अभी... यहाँ?”
“और क्या? अभी नहीं तो कब?” अम्मा ने अपनी ब्लाउज़ के बटन खोलते हुए कहा, “... ओह, अब समझी! अपनी दीदी के कारण शरमा रही है तू? ... अरे मत शरमा! ... उसको तो तुझसे कहीं पहले से अपना दूध पिला रही हूँ!”
“क्या! हा हा!” माधवी ने हँसते हुए माँ से पूछा, “अम्मा सच कह रही हैं दीदी?”
माँ उत्तर में बस मुस्कुराती हुई हँस दीं।
“सच नहीं तो क्या झूठ? आ जा...” अम्मा ने कहा, और अपना ब्लाउज़ उतार दिया।
जब माधवी उनके सामने आई, तो अम्मा ने वैसे ही जैसे वो माँ के साथ करती थीं, झटपट उसके कपड़े उतार दिए। माँ के सामने नग्न होते समय उसको शर्म तो बहुत आई, लेकिन जब थोड़ी ही देर में, जब माँ के भी सारे कपड़े उतर गए, तो उसको सामान्य सा लगने लगा। उसको गर्भावस्था में यूँ नग्न देख कर माँ को भी अपनी गर्भावस्था का ध्यान हो आया।
“तुम खूब सुन्दर हो माधवी!” माँ बोलीं।
“थैंक यू दीदी!” वो बोली, “... लेकिन आपके सामने कोई बिसात नहीं है मेरी!”
“मेरी दोनों बहुएँ खूब सुन्दर हैं... और बहुत गुणी भी! इसीलिए तो मेरे दोनों बेटे इनको इतना चाहते हैं!” अम्मा ने बड़े लाड़ से कहा।
“अम्मा...”
“अच्छा... अब सुनो! ... आज से तुम दोनों सुबह उठने से ले कर रात सोने तक, हर तीन से चार घण्टे पर मेरा दूध पियोगी...” अम्मा ने लगभग आदेश देते हुए कहा, “... और घर का कोई काम नहीं करोगी!”
“लेकिन अम्मा,”
माँ बोलने को हुईं, लेकिन अम्मा ने उनको डाँटा, “चुप! और... रसोई का कोई भी भारी काम नहीं करोगी!”
“जी अम्मा!” माधवी ने कहा।
“लेकिन एक्सरसाइज तो कर सकते है न अम्मा?” माँ ने जैसे अम्मा से अनुनय-विनय किया हो।
“हाँ! वो जैसे पहले करती थी, वैसे ही करती रहो! ... उसके लिए कौन मना करता है?”
“थैंक यू अम्मा!”
“और बच्चे अम्मा?” माधवी ने कहा, “गार्गी?”
आदित्य और माधवी के बड़े बेटे ने अब स्तनपान करना लगभग बंद ही कर दिया था। दोनों ही सात साल से बड़े हो गए थे, और अब दोनों ही अपनी अपनी माँओं के स्तनों से पोषण लेना अपने से नीचे समझने लगे थे। उनकी देखा-देखी आदर्श भी रह रह कर स्तनपान करने में आना-कानी करने लग गया था। और इस तरह से उन तीनों माँओं के बीच केवल तीन ही स्तनपान करने वाले बच्चे थे - हम वयस्क बच्चों को छोड़ कर!
“बच्चों को तुम दोनों मिल कर देख लो...”
“जी अम्मा,” माधवी ने कहा।
“चलो आ जाओ बच्चों! दूध पी लो...” अम्मा ने कहा, तो दोनों बहुएँ आनंद से अपनी सास का दूध पीने लगीं।
*
मेरे और लतिका के जीवन में छुट्टियों के बाद से कोई और अंतरंग बात या घटना नहीं हुई। छुट्टियों के बाद से लतिका का सारा ध्यान नेशनल गेम्स पर ही केंद्रित हो गया। मैं भी चाहता था कि जिस काम के लिए लतिका ने बर्सों तपस्या करी थी, उसमें वो सफ़ल हो। एक तरह से बहुत अच्छा हुआ, कि हमने सपरिवार छुट्टियाँ मना लीं! क्योंकि गेम्स के लिए हर राज्य का अपना अपना ट्रेनिंग शिविर लग रहा था, जिसमें कमर-तोड़ ट्रेनिंग होने वाली थी। लिहाज़ा, छुट्टियों के कारण उसके शरीर की बेहतरीन कंडीशनिंग हो गई थी और ट्रेनिंग में उसका परफॉरमेंस भी सुधर रहा था।
नेशनल गेम्स झारखण्ड की राजधानी राँची में हो रहे थे। हम सभी लतिका की दौड़ों को देखने के लिए शामिल होना चाहते थे, लेकिन अम्मा ने अपनी दोनों बहुओं को यात्रा करने से साफ़ मना कर दिया। वो थोड़ा सा भी रिस्क नहीं लेना चाहती थीं। अपनी अपनी माँओं के न आ पाने के कारण बच्चे भी घर पर ही रह गए। लतिका इस बात को समझती थी, इसलिए उसने इस बात के लिए कोई शिकायत नहीं करी। लेकिन हाँ - उसने अपनी बोऊ-दी से वायदा लिया कि वो टीवी पर उसका परफॉरमेंस ज़रूर देखेंगी। यह बात कहने को कोई आवश्यकता नहीं थी - माँ वैसे भी आज कल पूरा समय नेशनल गेम्स से जुड़ी हर खबर देखती थीं।
लतिका का प्रदर्शन देखने के लिए अम्मा, सत्यजीत जी, गार्गी, और पापा उपस्थित थे। मैं और आभा भी राँची जाने की तैयारी में थे। आभा ने तो अपने स्कूल में ढिंढ़ोरा पीट दिया था। उसके स्कूल में शायद ही कोई हो, जो ये बात न जानता हो कि उसकी होने वाली मम्मी गेम्स में पार्टिसिपेट कर रही हैं! आभा अब दसवीं में थी, और उसके भी बोर्ड एक्साम्स होने वाले थे। लेकिन इस अनोखे अवसर पर उसको स्कूल से कुछ दिनों की छुट्टी दे दी गई थी।
उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में यात्रा करने की दृष्टि से फरवरी एक अच्छा समय नहीं है! एक तो लगभग पूरे क्षेत्र में हाड़ कंपाने वाला मौसम बना रहता है। और ऊपर से लगातार कोहरा बना रहता है, जिससे आप प्राकृतिक नज़रों का आनंद नहीं ले पाते। दृश्यता कम हो जाती है। लेकिन अगर किसी कारण से मौसम गुलाबी जाड़े वाला हो जाय, तो आनंद आ जाता है। लतिका तब तक शिविर नहीं छोड़ सकती थी जब तक कि उसकी सारी दौड़ें पूरी न हो जाएँ!
लेकिन हम सभी थोड़ी मौज-मस्ती कर सकते थे। मेरा मन नहीं था, लेकिन लतिका ने ही ज़ोर दिया कि एक बार आए हैं इधर, तो आस पास घूम लेने में कोई बुराई नहीं है। वैसे भी आभा अपने अभी तक के जीवन में कभी किसी वन्यजीव अभयारण्य में नहीं गई थी। इसलिए हमने सोचा कि राँची पहुँचते ही हम सब पहले बेतला वन्यजीव अभयारण्य देख आएँ। उसके बाद राँची में लतिका के प्रदर्शन का आनंद लेकर उसी के साथ वापस घर लौट जाएँगे। यह एक अच्छा प्लान था। लेकिन मुझे लगा कि यह कोई बहुत बढ़िया निर्णय नहीं था। मुझे नहीं लगता कि झारखण्ड वन्य-जीवों के अवलोकन के लिए उत्तम स्थानों में से है। बड़े ही लम्बे अर्से से कोयले और अन्य खनिजों के लिए झारखण्ड की भूमि का दोहन किया जाता रहा है, जिसका नकारात्मक प्रभाव वहाँ की भूमि के प्राकृतिक संतुलन पर पड़ा है।
जैसा कि हमने देखा, बेतला राष्ट्रीय उद्यान में हिरणों की प्रचुर संख्या है। अन्य जानवर कम ही दिखे। खैर, आभा उन्हें देखकर बहुत उत्साहित हुई और गार्गी भी! मुझे लगता है कि बच्चों को जितना जल्दी हो सके, प्रकृति के संपर्क में लाया जाना चाहिए, ताकि उनमें प्रकृति के प्रति सराहना और सहानुभूति विकसित हो सके! राँची हवाई अड्डे से बेतला तक सड़क से हमें लगभग छः घंटे लगे। जैसे ही हम राष्ट्रीय उद्यान में दाखिल हुए, हमको हिरणों के बहुत सारे झुंड दिखे। कई तो हमारे बहुत करीब आ कर घास चर रहे थे। उतना देखना भी बहुत ही सुंदर दृश्य था! बढ़िया, घने हरे पेड़! हमारी थकी हुई आँखें तृप्त हो गईं! जैसे-जैसे हम उद्यान के और अंदर बढ़े, हमें जंगली भैसे, बंदर, मोर, और कई प्रकार के पक्षी दिखाई देने लगे। वन रक्षकों ने हमें बताया कि यदि हम भाग्यशाली रहे, तो हम जंगली हाथियों को भी देख सकते हैं, बशर्ते हमारे अंदर पर्याप्त धैर्य हो। वो अलग बात है कि हमारे रहने के दौरान हमको एक भी हाथी नहीं दिखा। हम जंगल के अंदर ही, फारेस्ट गेस्ट हाउस में रह रहे थे। गेस्ट हाउस के कमरे साधारण से ही थे, लेकिन जंगल के अंदर रहने के कारण पूरा रोमांच बना हुआ था।
जंगलों के अंदर रातें तेजी से ढलने लगती हैं। हमने रात का खाना खाया और सोने चले गये। पहले तो गार्गी और आभा बहुत उत्साहित थे, लेकिन जैसे-जैसे रात होने लगी, और जंगली जानवरों की तरह तरह की आवाजें सुनाई देने लगीं, दोनों बच्चे डरने लगे। खैर, अम्मा साथ में थीं, इसलिए उन्होंने दोनों को लोरी गा कर सुला दिया। अम्मा एक अद्भुत महिला थीं... मैं बहुत भाग्यशाली था कि उनका साथ बना हुआ था। वो अभी भी हम सभी का ख्याल रख रही थीं, जैसे वो हमेशा करती थीं। सच में, उनका होना हमारे पूरे परिवार के लिए स्वयं भगवान का आशीर्वाद था!
*
लतिका ने को अपनी दो स्प्रिंटिंग इवेंट्स में एक सिल्वर (रजत) और एक ब्रोंज (काँस्य) मैडल (पदक) मिला! सच में - हमारे पूरे परिवार के लिए बेहद गर्व और उल्लास का समय था वो! चीख चीख कर पापा, मेरा, और आभा का गला बैठ गया! हमारा उत्साह देख कर दर्शक स्टैंड में उपस्थित अन्य लोग भी बड़े उत्साहित थे। बहुत बहुत मज़ा आया! अन्य खेलों में भी बड़ा आनंद आया क्योंकि हमारी अपनी भी जीती हुई थी! वो अलग बात है कि एशियाई गेम्स के लिए खिलाड़ियों का चयन पहले ही हो चुका था, और उस लिस्ट में लतिका नहीं थी। वैसे, ये बात हम भी जानते और समझते थे। एशियाई खेलों के हिसाब से लतिका का स्तर अभी भी कम ही था। लेकिन, ये उपलब्धि भी कोई कम नहीं थी। मैंने निर्णय लिया कि घर जा कर इसका पूरा जश्न मनाएँगे हम सभी! मैंने पहले ही लतिका के लिए रनिंग शूज अमेरिका से मंगवाए थे जो मैं नेशनल गेम्स के बाद उसको उपहार में देना चाहता था। जब अपनी प्रतियोगिता से लतिका को छुट्टी मिली, तब मैंने उसको वो जूते भेंट में दिए और उसके माथे को सबके सामने चूम लिया। मेरे इतने सभ्य प्रेम-प्रदर्शन पर सभी मुस्कुराए बिना न रह सके!
*
पापा ने मुझसे इन दिनों एक बार पूछा कि क्या गोवा के बाद मैं और लतिका डेट पर गए हैं! मैं भी चौंक गया इस प्रश्न पर! लेकिन सच बात तो यही थी कि हम आज तक एक बार भी डेट पर नहीं गए थे। मेरा बना हुआ मुँह देख कर पापा सब समझ गए, और मुझे समझाते हुए उन्होंने मुझे लतिका के साथ डेट पर जाने को कहा। विवाह से पहले सेक्स करने से अधिक आवश्यक है एक दूसरे को जानना और समझना। उन्होंने अपने और माँ के बारे में भी विस्तार में बताया कि कैसे वो हर दिन, घण्टों माँ के साथ बिताते थे, और उनके बारे में हर छोटी - बड़ी बात जानने का प्रयास करते थे। उसका लाभ यह हुआ कि जब समय आया, तब वो माँ के साथ उस स्तर पर जुड़ सके, जैसा किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था।
ठीक है - तय रहा! दिल्ली वापस जा कर लतिका को पहली बार डेट पर ले जाना है!
*
अमर भाई बहुत शानदार अपडेट दिया आपने.अचिन्त्य - Update # 18
अपने परिवार के साथ आभा की जाड़ों की छुट्टियाँ बिता कर मुझको एक अलग ही तरह का आनंद मिला! न केवल अपनी ‘मंगेतर’ के करीब आने का अवसर ही मिला, बल्कि अपनी बेटी, और अपने दूसरे भाईयों और बहन को भी निकटता से जानने और समझने का अवसर भी मिला। आदित्य, आदर्श, और अभया में माँ और पापा दोनों के ही गुण आए थे - तीनों बड़े सौम्य और शांत स्वभाव के बच्चे थे। आम बच्चों की तरह आदतन और बिना-वज़ह रोना धोना नहीं करते थे वो... बहुत नन्हे थे, तब भी नहीं। और हो भी क्यों न? जब माँ बाप दोनों ऐसे शांत और सौम्य स्वभाव के हों, तो बच्चे भी स्वाभाविक रूप से उन्ही के ही जैसे होंगे। तीनों बच्चे इतने सभ्य थे कि मुझे एक बार फिर से अफ़सोस होने लगा कि क्यों मैं उनके साथ पहले इतना घुला-मिला नहीं! ख़ैर, जो बीत गया सो बीत गया! आगे ऐसी गलती न करूँ, इस बात की गाँठ मैंने मन ही मन बाँध ली।
कभी कभी मुझको ऐसा लगता कि यह सब जीवन जीने का एक गूढ़ ज्ञान था, जो मेरे माता पिता मुझको दे रहे थे... या फिर, देना चाह रहे थे। अपने आसान तरीक़ों से, जीवन में किन बातों की सबसे बड़ी महत्ता है, वो मुझको समझा रहे थे। वैसे अगर देखा जाय, तो मेरे लिए ये सब एक तरह से सामयिक ज्ञान था, क्योंकि जल्दी ही मेरी और लतिका की शादी होने वाली थी। उसके बाद हमारा खुद का परिवार बनता और बढ़ता! उस समय गलती नहीं होनी चाहिए! परिवार बढ़ने से याद आया - माँ की प्रेग्नेंसी जहाँ आश्चर्यचकित करने वाली थी, वहीं वो हम सभी के लिए बड़ी प्रसन्नता का भी विषय थी।
अम्मा ने जब यह खबर सुनी, तो वो ख़ुशी के मारे पागल हो गईं! उनको लगा था कि गाँव के पुराने मंदिर के महंत जी की भविष्यवाणी कोई पत्थर की लक़ीर थी, और शायद अभया के बाद अब माँ को कोई और संतान न हों। लेकिन माँ के ऊपर ईश्वरीय कृपा ने उस बात को गलत साबित कर दिया था। अपनी वंशबेल में पनपने वाली अगली लता के पैदा होने की राह संजोए हुए अम्मा, माँ की बड़ी देखभाल करतीं। इस हेतु अम्मा, सत्यजीत जी, और गार्गी अब माँ और पापा के साथ ही रहते। माँ को इस बात से बहुत सम्बल मिला। और भी अच्छी बात हुई - साथ रहने से पापा और सत्यजीत जी को भी करीब आने में बड़ी मदद मिली। जैसे मैं और पापा एक समय के बाद इतने करीब हो गए कि हमारे बीच के उम्र के इतने अन्तर के बावज़ूद हमारा रिश्ता बाप-बेटे वाला हो गया, ठीक उसी तरह पापा और सत्यजीत जी भी अंततः बाप-बेटा जैसे ही बन गए।
अम्मा ने जब माँ के साथ रहने की बात छेड़ी, तो माँ ने ही ज़िद कर के अम्मा की बहू, माधवी, और उसके दोनों बच्चों को भी अपने ही घर बुला कर, अपने ही साथ रहने को आमंत्रित किया। पाठकों को ज्ञात होगा कि दीपावली के समय वो प्रेग्नेंट थी - दरअसल, माधवी माँ से दो महीने पहले प्रेग्नेंट हुई थी, इसलिए उसकी भी देखभाल माँ के जितनी ही आवश्यक थी! रिश्ते के हिसाब से देखें, तो वो माँ की बहन लगती थी! लेकिन उन दोनों के बीच की प्रगाढ़ता अब जा कर बढ़ी थी। हाँलाकि माँ बहुत पहले से ही अम्मा को अपनी माँ मान चुकी थीं, और सत्यजीत जी का भी आदर वो अपने ससुर जैसा ही करती थीं। लेकिन पापा और सत्यजीत के बीच और उनके और माधवी के बीच इस नए सिरे से मज़बूत हुए सम्बन्ध के बाद, और अब एक ही छत के नीचे साथ रहते हुए, अब सभी के सम्बन्ध में भी अत्यंत प्रगाढ़ता आ गई।
माँ ने जो परिपाटी चलाई थी, उसको अम्मा ने भी भली भाँति आत्मसात कर लिया था। इसलिए माँ को यह जान कर सुखद आश्चर्य हुआ कि अम्मा अपनी ‘छोटी बहू’ को भी अपनी ‘बड़ी बहू’ के ही जैसे, बड़े प्यार और लाड़ से रखती थीं!
“बहू,” अम्मा ने मुंबई वाले घर में रहने की पहली ही सुबह आवाज़ लगाई।
“आई अम्मा...” माधवी और माँ दोनों ने एक साथ उत्तर दिया, और एक दूसरे को देख कर खिलखिला कर हँस दीं।
दोनों ही रसोई में काम कर रही थीं, और अपने हाथ पोंछते हुए दोनों अम्मा के पास जा कर खड़ी हो गईं।
“बोलिए अम्मा?”
“क्या तुम दोनों आराम नहीं करोगी?” अम्मा ने दोनों को प्यार से डाँटा, “... यहाँ मैं सोच सोच कर हैरान परेशान हूँ कि मेरी दोनों बहुएँ खुश खुश रहे, आराम से रहें, और यहाँ ये दोनों हैं कि आराम करना ही नहीं चाहतीं!”
“ऐसा नहीं है अम्मा,” माँ ने हँसते हुए कहा, “... बहुत आराम है! काम ही क्या है? ... और वैसे भी, हाथ पाँव चलते रहने चाहिए! कुछ नहीं किया, तो बहुत मोटी हो जाऊँगी!”
“मोटी होती है, तो हो जा मोटी...”
“फिर आपका बेटा ही शिकायत करेगा!”
“शिकायत करेगा तो मार मार कर उसके चूतड़ लाल कर दूँगी!” अम्मा ने धमकाया।
उनकी बात पर माँ और माधवी, दोनों हँसने लगीं!
माधवी बोली, “हाँ दीदी! ... आप सही कहती हो! ... मुझको भी इसी बात का डर लगा रहता है! ... वैसे भी, इतनी मोटी हो गई हूँ अभी से...”
“ये देखो! बस चौबीस की हुई है, और इसको मोटापे का डर है! ... सही मात्रा में खाना खाओ! अपने बच्चों को खूब दूध पिलाओ! फालतू चर्बी बचेगी ही नहीं! समझी?” अम्मा ने माधवी को प्यार से समझाया, “चल... आ जा मेरे पास...”
माधवी ने अम्मा की बात पर माँ को देख कर कहा, “अम्मा... अभी... यहाँ?”
“और क्या? अभी नहीं तो कब?” अम्मा ने अपनी ब्लाउज़ के बटन खोलते हुए कहा, “... ओह, अब समझी! अपनी दीदी के कारण शरमा रही है तू? ... अरे मत शरमा! ... उसको तो तुझसे कहीं पहले से अपना दूध पिला रही हूँ!”
“क्या! हा हा!” माधवी ने हँसते हुए माँ से पूछा, “अम्मा सच कह रही हैं दीदी?”
माँ उत्तर में बस मुस्कुराती हुई हँस दीं।
“सच नहीं तो क्या झूठ? आ जा...” अम्मा ने कहा, और अपना ब्लाउज़ उतार दिया।
जब माधवी उनके सामने आई, तो अम्मा ने वैसे ही जैसे वो माँ के साथ करती थीं, झटपट उसके कपड़े उतार दिए। माँ के सामने नग्न होते समय उसको शर्म तो बहुत आई, लेकिन जब थोड़ी ही देर में, जब माँ के भी सारे कपड़े उतर गए, तो उसको सामान्य सा लगने लगा। उसको गर्भावस्था में यूँ नग्न देख कर माँ को भी अपनी गर्भावस्था का ध्यान हो आया।
“तुम खूब सुन्दर हो माधवी!” माँ बोलीं।
“थैंक यू दीदी!” वो बोली, “... लेकिन आपके सामने कोई बिसात नहीं है मेरी!”
“मेरी दोनों बहुएँ खूब सुन्दर हैं... और बहुत गुणी भी! इसीलिए तो मेरे दोनों बेटे इनको इतना चाहते हैं!” अम्मा ने बड़े लाड़ से कहा।
“अम्मा...”
“अच्छा... अब सुनो! ... आज से तुम दोनों सुबह उठने से ले कर रात सोने तक, हर तीन से चार घण्टे पर मेरा दूध पियोगी...” अम्मा ने लगभग आदेश देते हुए कहा, “... और घर का कोई काम नहीं करोगी!”
“लेकिन अम्मा,”
माँ बोलने को हुईं, लेकिन अम्मा ने उनको डाँटा, “चुप! और... रसोई का कोई भी भारी काम नहीं करोगी!”
“जी अम्मा!” माधवी ने कहा।
“लेकिन एक्सरसाइज तो कर सकते है न अम्मा?” माँ ने जैसे अम्मा से अनुनय-विनय किया हो।
“हाँ! वो जैसे पहले करती थी, वैसे ही करती रहो! ... उसके लिए कौन मना करता है?”
“थैंक यू अम्मा!”
“और बच्चे अम्मा?” माधवी ने कहा, “गार्गी?”
आदित्य और माधवी के बड़े बेटे ने अब स्तनपान करना लगभग बंद ही कर दिया था। दोनों ही सात साल से बड़े हो गए थे, और अब दोनों ही अपनी अपनी माँओं के स्तनों से पोषण लेना अपने से नीचे समझने लगे थे। उनकी देखा-देखी आदर्श भी रह रह कर स्तनपान करने में आना-कानी करने लग गया था। और इस तरह से उन तीनों माँओं के बीच केवल तीन ही स्तनपान करने वाले बच्चे थे - हम वयस्क बच्चों को छोड़ कर!
“बच्चों को तुम दोनों मिल कर देख लो...”
“जी अम्मा,” माधवी ने कहा।
“चलो आ जाओ बच्चों! दूध पी लो...” अम्मा ने कहा, तो दोनों बहुएँ आनंद से अपनी सास का दूध पीने लगीं।
*
मेरे और लतिका के जीवन में छुट्टियों के बाद से कोई और अंतरंग बात या घटना नहीं हुई। छुट्टियों के बाद से लतिका का सारा ध्यान नेशनल गेम्स पर ही केंद्रित हो गया। मैं भी चाहता था कि जिस काम के लिए लतिका ने बर्सों तपस्या करी थी, उसमें वो सफ़ल हो। एक तरह से बहुत अच्छा हुआ, कि हमने सपरिवार छुट्टियाँ मना लीं! क्योंकि गेम्स के लिए हर राज्य का अपना अपना ट्रेनिंग शिविर लग रहा था, जिसमें कमर-तोड़ ट्रेनिंग होने वाली थी। लिहाज़ा, छुट्टियों के कारण उसके शरीर की बेहतरीन कंडीशनिंग हो गई थी और ट्रेनिंग में उसका परफॉरमेंस भी सुधर रहा था।
नेशनल गेम्स झारखण्ड की राजधानी राँची में हो रहे थे। हम सभी लतिका की दौड़ों को देखने के लिए शामिल होना चाहते थे, लेकिन अम्मा ने अपनी दोनों बहुओं को यात्रा करने से साफ़ मना कर दिया। वो थोड़ा सा भी रिस्क नहीं लेना चाहती थीं। अपनी अपनी माँओं के न आ पाने के कारण बच्चे भी घर पर ही रह गए। लतिका इस बात को समझती थी, इसलिए उसने इस बात के लिए कोई शिकायत नहीं करी। लेकिन हाँ - उसने अपनी बोऊ-दी से वायदा लिया कि वो टीवी पर उसका परफॉरमेंस ज़रूर देखेंगी। यह बात कहने को कोई आवश्यकता नहीं थी - माँ वैसे भी आज कल पूरा समय नेशनल गेम्स से जुड़ी हर खबर देखती थीं।
लतिका का प्रदर्शन देखने के लिए अम्मा, सत्यजीत जी, गार्गी, और पापा उपस्थित थे। मैं और आभा भी राँची जाने की तैयारी में थे। आभा ने तो अपने स्कूल में ढिंढ़ोरा पीट दिया था। उसके स्कूल में शायद ही कोई हो, जो ये बात न जानता हो कि उसकी होने वाली मम्मी गेम्स में पार्टिसिपेट कर रही हैं! आभा अब दसवीं में थी, और उसके भी बोर्ड एक्साम्स होने वाले थे। लेकिन इस अनोखे अवसर पर उसको स्कूल से कुछ दिनों की छुट्टी दे दी गई थी।
उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में यात्रा करने की दृष्टि से फरवरी एक अच्छा समय नहीं है! एक तो लगभग पूरे क्षेत्र में हाड़ कंपाने वाला मौसम बना रहता है। और ऊपर से लगातार कोहरा बना रहता है, जिससे आप प्राकृतिक नज़रों का आनंद नहीं ले पाते। दृश्यता कम हो जाती है। लेकिन अगर किसी कारण से मौसम गुलाबी जाड़े वाला हो जाय, तो आनंद आ जाता है। लतिका तब तक शिविर नहीं छोड़ सकती थी जब तक कि उसकी सारी दौड़ें पूरी न हो जाएँ!
लेकिन हम सभी थोड़ी मौज-मस्ती कर सकते थे। मेरा मन नहीं था, लेकिन लतिका ने ही ज़ोर दिया कि एक बार आए हैं इधर, तो आस पास घूम लेने में कोई बुराई नहीं है। वैसे भी आभा अपने अभी तक के जीवन में कभी किसी वन्यजीव अभयारण्य में नहीं गई थी। इसलिए हमने सोचा कि राँची पहुँचते ही हम सब पहले बेतला वन्यजीव अभयारण्य देख आएँ। उसके बाद राँची में लतिका के प्रदर्शन का आनंद लेकर उसी के साथ वापस घर लौट जाएँगे। यह एक अच्छा प्लान था। लेकिन मुझे लगा कि यह कोई बहुत बढ़िया निर्णय नहीं था। मुझे नहीं लगता कि झारखण्ड वन्य-जीवों के अवलोकन के लिए उत्तम स्थानों में से है। बड़े ही लम्बे अर्से से कोयले और अन्य खनिजों के लिए झारखण्ड की भूमि का दोहन किया जाता रहा है, जिसका नकारात्मक प्रभाव वहाँ की भूमि के प्राकृतिक संतुलन पर पड़ा है।
जैसा कि हमने देखा, बेतला राष्ट्रीय उद्यान में हिरणों की प्रचुर संख्या है। अन्य जानवर कम ही दिखे। खैर, आभा उन्हें देखकर बहुत उत्साहित हुई और गार्गी भी! मुझे लगता है कि बच्चों को जितना जल्दी हो सके, प्रकृति के संपर्क में लाया जाना चाहिए, ताकि उनमें प्रकृति के प्रति सराहना और सहानुभूति विकसित हो सके! राँची हवाई अड्डे से बेतला तक सड़क से हमें लगभग छः घंटे लगे। जैसे ही हम राष्ट्रीय उद्यान में दाखिल हुए, हमको हिरणों के बहुत सारे झुंड दिखे। कई तो हमारे बहुत करीब आ कर घास चर रहे थे। उतना देखना भी बहुत ही सुंदर दृश्य था! बढ़िया, घने हरे पेड़! हमारी थकी हुई आँखें तृप्त हो गईं! जैसे-जैसे हम उद्यान के और अंदर बढ़े, हमें जंगली भैसे, बंदर, मोर, और कई प्रकार के पक्षी दिखाई देने लगे। वन रक्षकों ने हमें बताया कि यदि हम भाग्यशाली रहे, तो हम जंगली हाथियों को भी देख सकते हैं, बशर्ते हमारे अंदर पर्याप्त धैर्य हो। वो अलग बात है कि हमारे रहने के दौरान हमको एक भी हाथी नहीं दिखा। हम जंगल के अंदर ही, फारेस्ट गेस्ट हाउस में रह रहे थे। गेस्ट हाउस के कमरे साधारण से ही थे, लेकिन जंगल के अंदर रहने के कारण पूरा रोमांच बना हुआ था।
जंगलों के अंदर रातें तेजी से ढलने लगती हैं। हमने रात का खाना खाया और सोने चले गये। पहले तो गार्गी और आभा बहुत उत्साहित थे, लेकिन जैसे-जैसे रात होने लगी, और जंगली जानवरों की तरह तरह की आवाजें सुनाई देने लगीं, दोनों बच्चे डरने लगे। खैर, अम्मा साथ में थीं, इसलिए उन्होंने दोनों को लोरी गा कर सुला दिया। अम्मा एक अद्भुत महिला थीं... मैं बहुत भाग्यशाली था कि उनका साथ बना हुआ था। वो अभी भी हम सभी का ख्याल रख रही थीं, जैसे वो हमेशा करती थीं। सच में, उनका होना हमारे पूरे परिवार के लिए स्वयं भगवान का आशीर्वाद था!
*
लतिका ने को अपनी दो स्प्रिंटिंग इवेंट्स में एक सिल्वर (रजत) और एक ब्रोंज (काँस्य) मैडल (पदक) मिला! सच में - हमारे पूरे परिवार के लिए बेहद गर्व और उल्लास का समय था वो! चीख चीख कर पापा, मेरा, और आभा का गला बैठ गया! हमारा उत्साह देख कर दर्शक स्टैंड में उपस्थित अन्य लोग भी बड़े उत्साहित थे। बहुत बहुत मज़ा आया! अन्य खेलों में भी बड़ा आनंद आया क्योंकि हमारी अपनी भी जीती हुई थी! वो अलग बात है कि एशियाई गेम्स के लिए खिलाड़ियों का चयन पहले ही हो चुका था, और उस लिस्ट में लतिका नहीं थी। वैसे, ये बात हम भी जानते और समझते थे। एशियाई खेलों के हिसाब से लतिका का स्तर अभी भी कम ही था। लेकिन, ये उपलब्धि भी कोई कम नहीं थी। मैंने निर्णय लिया कि घर जा कर इसका पूरा जश्न मनाएँगे हम सभी! मैंने पहले ही लतिका के लिए रनिंग शूज अमेरिका से मंगवाए थे जो मैं नेशनल गेम्स के बाद उसको उपहार में देना चाहता था। जब अपनी प्रतियोगिता से लतिका को छुट्टी मिली, तब मैंने उसको वो जूते भेंट में दिए और उसके माथे को सबके सामने चूम लिया। मेरे इतने सभ्य प्रेम-प्रदर्शन पर सभी मुस्कुराए बिना न रह सके!
*
पापा ने मुझसे इन दिनों एक बार पूछा कि क्या गोवा के बाद मैं और लतिका डेट पर गए हैं! मैं भी चौंक गया इस प्रश्न पर! लेकिन सच बात तो यही थी कि हम आज तक एक बार भी डेट पर नहीं गए थे। मेरा बना हुआ मुँह देख कर पापा सब समझ गए, और मुझे समझाते हुए उन्होंने मुझे लतिका के साथ डेट पर जाने को कहा। विवाह से पहले सेक्स करने से अधिक आवश्यक है एक दूसरे को जानना और समझना। उन्होंने अपने और माँ के बारे में भी विस्तार में बताया कि कैसे वो हर दिन, घण्टों माँ के साथ बिताते थे, और उनके बारे में हर छोटी - बड़ी बात जानने का प्रयास करते थे। उसका लाभ यह हुआ कि जब समय आया, तब वो माँ के साथ उस स्तर पर जुड़ सके, जैसा किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था।
ठीक है - तय रहा! दिल्ली वापस जा कर लतिका को पहली बार डेट पर ले जाना है!
*