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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अहो avsji भाई, बेहतरीन उपलब्धि... देवनागरी में लिखे ०२ अपडेट... खैर आप का रिकॉर्ड उससे ज्यादा का है...

इस मामले में आपके समक्ष मात्र komaalrani जिज्जी ही ठहर पाती हैं... आप ही के समान कुछ और भी अद्वितीय अद्भुत क्षमता वाले लेखक हैं परंतु उनकी लेखनी में निरन्तरता का अथाह अभाव है।

अब कथानक अंतिम चरणों में है, परन्तु आप से असीम अनंत अपेक्षाएं हैं।

साधुवाद जय जय

उमाकांत भाई साहब - आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
लिखना तो कुछ ऐसा चाहता हूँ, जो पाठक लोग रुपए / पैसे दे कर पढ़ें (मतलब कि मेरी क़िताब), लेकिन हिंदी में साहित्य लेखन और पठन पाठन की स्थिति सही नहीं है।
इसलिए ये लुगदी साहित्य लिख कर मन बहला लेता हूँ। कुछ लोगों का मनोरंजन हो जाता है, बस बहुत है!
 

Tiger 786

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पहला प्यार - विवाह प्रस्ताव – Update #5


गैबी ने मुझे एक तरीके से कमरे के अंदर धकेल दिया, और दूसरे कमरे में सुनील और लतिका के साथ सोने चली गई। मैं थोड़ा नर्वस हो कर कमरे के अंदर आया। अँधेरा था। मैंने काजल का नाम पुकारा। रात के कोई बारह बज रहे होंगे! जब उसने कुछ नहीं कहा, तो मैंने फिर से कहा,

“काजल?”

“क्या है?” उसने बड़े रूखे तरीके से जवाब दिया! स्पष्ट था कि वो खुश नहीं थी।

“काजल, क्या मैं तुमसे कुछ देर बात कर सकता हूँ?”

“क्यों? तुम्हारी पत्नी ने क्या कहा?” उसने फिर से रूखेपन से जवाब दिया। मैंने कमरे की लाइट जलाई।

“काजल... मेरी प्यारी काजल, प्लीज ऐसे मत बनो। तुम्हें पता है कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। है ना? क्या मैंने कभी भी तुम्हें अपने परिवार से बाहर माना? प्लीज मुझे बताओ? प्लीज?”

काजल कुछ मिनटों के लिए चुप रही, और आखिर में बोली, “अगर तुम मुझसे इतना प्यार करते हो, तो पहले कहा क्यों नहीं?”

“मैं क्या कह सकता था? क्या तुम भूल गई कि तुमने मुझसे कहा था कि तुम शादी-शुदा हो, और तुम्हारी योनि सिर्फ तुम्हारे पति की है?”

“लेकिन अगर तुम मुझे इतना प्यार करते हो, तो तुम भी मुझे बता सकते थे न, कि तुम मुझसे प्यार करना चाहते हो?”

“मैं कैसे बताता तुमको? मैं तुमसे प्यार करता हूँ, और मैं तुम्हारा बहुत सम्मान भी करता हूँ। तुमको ये बात नहीं मालूम है? तुमने एक बार मुझसे कुछ कह दिया - बस, वो हो गया समझो। मैं तुम्हें किसी भी तरह की चोट कैसे पहुँचा सकता हूँ? मैं ऐसा तो सोच भी नहीं सकता हूँ ...!” मेरी भी आवाज का स्वर थोड़ा सा बढ़ गया।

“इतना ज़ोर से मत बोलो... बच्चे और दीदी सुन कर परेशान हो जायेंगे!”

“आई ऍम सॉरी, काजल” मैंने कहा, और उसको कुछ देर तक मनाता, समझाता रहा! अंत में, वो मुस्कुराई, बिस्तर से उठी, मेरे पास आई, मेरा हाथ अपने हाथ में लिया, और मुझे अपने आलिंगन में लिया।

फिर वो आलिंगन तोड़ कर, फर्श पर एक गद्दा, तकिया और कंबल की व्यवस्था करने लगी। मुझे समझ नहीं आया कि वो क्यों ऐसा कर रही है। फिर काजल ने ही कहा,

“लेट जाओ और सो जाओ।” उसने मुझे आदेश जैसा दिया।

“तुम मेरे साथ नहीं लेटोगी?” मैंने उसको दिखावटी मासूमियत से छेड़ा।

“सो जाओ अब! तुम्हारी जल्दी ही शादी होने वाली है! अब दूसरी औरतों का लोभ करना बंद कर दो।” उसने मजाक में मुझे डांटा।

“दूसरी औरत? तुम? तुम दूसरी औरत हो? काजल, मेरी काजल - तुम मेरे लिए हमेशा मेरी पहली औरत हो! सच में! तुम मेरी हो!” मैंने बड़ी संजीदगी से कहा!

मेरी बात पर काजल खिलखिला कर हंसती है!

“मेरे अमर,” काजल ने एक गहरी साँस ले कर कहना शुरू किया, “मैंने कब इस बात से इंकार किया? तुम मेरे हो, और मैं तुम्हारी! ये बात तो सच ही है। तुम्हारे पास होती हूँ, तो ऐसी स्वतन्त्रता महसूस करती हूँ, कि अपनी ही किस्मत से डाह होने लगता है। और मेरे बच्चे - मैंने तुमको नहीं बताया, लेकिन सुनील तो तुमको ही अपना पिता मानता है।”

उसने मेरे गालों को प्यार से छुआ, “मूरख हूँ मैं! तुम्हारा प्यार मुझे हमेशा मिलता रहा, लेकिन मैं ही उसको वापस न दे पाई!”

“कैसी बातें कर रही हो काजल? प्यार है, तो उसमे लेन देन कैसा? कोई ज़रूरी नहीं है कि हम सेक्स करें। तुम मेरे साथ हो, मेरे लिए यही बहुत है! तुम बस मेरा साथ देने का वायदा करो मुझे!”

“कभी नहीं छोडूँगी तुम्हारा साथ।” काजल ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम भगाओगे, तब भी नहीं छोड़ूंगी! सच में!” उसने कहा, और अपने पैरों के पंजे पर खड़े हो कर मेरे माथे को चूम लिया।

मैं इस बात को महसूस कर रहा था - अगर मुझे विवाह से पहले किसी से सेक्स करना है, तो वो काजल के अलावा और किसी के साथ नहीं हो सकता! काजल ही है, जिसने एक तरह से मुझे परिपक्व [मैच्योर] होते हुए देखा है! तो उसको प्यार कर के, उसको यौन सुख दे कर, मैं भी उसको खुश करना चाहता था। मैंने उसका एक हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ रखा था, उसकी आँखों में बहुत देर तक देखा, और फिर उसे मेरे साथ बिस्तर पर बैठने को कहा। मैंने जिस तरह अपना अनुरोध किया, मुझे काजल अंदर तक पिघल गई। शायद उसके भीतर भी प्रेम की इच्छा प्रज्वलित हो गई होगी। उसकी आँखों में कुछ करने की इच्छा दिख रही थी।

हम दोनों ही कुछ देर के लिए एक दूसरे को यूँ ही देखते रहे - थोड़ी सी हिचकिचाहट, थोड़ा सा संकोच! हमारी साँसें तेज़ चलने लगीं थीं। अब जब हम कुछ निषिद्ध करने जा रहे थे, तो न जाने क्यों, एक घबराहट सी महसूस हो रही थी। आज के बाद काजल और मेरा सम्बन्ध हमेशा के लिए बदल जायेगा! आखिर कब तक ऐसे अनिश्चित से रहते हम, इसलिए मैंने उसके प्यारे स्तनों को उजागर करने के लिए अपना हाथ बढ़ाया! काजल ने अभी भी साड़ी के नीचे कुछ भी नहीं पहना था! दोनों कमरों में हीटर चल रहा था, इसलिए कमरे में थोड़ी सी, आरामदायक गर्माहट थी और स्वेटर पहनने की ज़रुरत नहीं थी। मैंने जैसे ही उसकी साड़ी उसके सीने से हटाई, उसका सुंदर नंगा शरीर मेरे सामने उजागर हो गया।

आज उसे नग्न देखने में कुछ अलग सा महसूस हो रहा था। मैंने काजल को अनगिनत बार नग्न देखा था, लेकिन जैसे ही उसके स्तन दिखाई दिए, मुझे प्लेबॉय और डेबोनेयर पत्रिकाओं में पोज़ देती हुई मॉडल्स की याद आ गई! मेरा लिंग तुरन्त ही स्तंभित हो गया। उसने अजीब सी नज़रों से मेरी तरफ देखा! जैसे उसको भी समझ आ रहा था कि अब हम एक दूसरे के लिए कुछ और बनने वाले थे। मैं जल्दी जल्दी अपनी शर्ट के बटनों खोलने लगा - अब हमारे मिलन के बीच किसी भी वस्तु का कोई काम नहीं था। जब मैंने अपना पजामा नीचे सरकाया, और मेरा सख्त लिंग बाहर निकला, तो वह गर्व से मुस्कुराई, और बोली,

“तुम जब मुझे ऐसे देखते हो, तो मुझे लगता है कि मैं दुनिया की सबसे सुन्दर औरत हूँ!”

“हह? कोई शक? लेकिन मैं ‘कैसे देखता हूँ’ तुमको?” मैंने कहा।

“हा हा हा! जब तुझे देख कर तुम्हारा नुनु ऐसा हो जाता है! कठोर! बलशाली...! और जिस तरह से तुम मुझे देखते हो! एक अलग तरह की लालसा - दीदी कैसे कण्ट्रोल करती हैं, मुझे समझ ही नहीं आता! उनकी जगह मैं होती, तो....” उसने पूरा कहा नहीं कि गैबी की जगह वो होती तो क्या करती! कुछ कहने की ज़रुरत ही नहीं थी। अब बस हम कुछ ही देर में वो सब करने वाले ही थे, तो कहने की क्या ज़रुरत?

“तुम हमेशा मुझे इतना सुंदर महसूस कराते हो।” उसने कहा।

“तुम बहुत सुंदर हो!” मैंने कहा।

वाकई, काजल बहुत सुन्दर थी। अगर उसके शरीर के रंग के पार कोई देख सकता, तो समझ जाता कि इस बात में पूरी सच्चाई थी। मेरे दिमाग में अभी भी वो मॉडल्स घूम रही थीं,

“तुम उन मॉडल्स की तरह ही सुंदर सी हो! और सेक्सी भी!”

काजल को समझ नहीं आया कि मैं क्या कह रहा था। मैंने भी उसको बहुत स्पष्टीकरण देने की ज़रुरत नहीं समझी!

“अमर....” उसने बड़ी कोमलता से कहा, “जब से मैंने तुम्हारे लिए काम करना शुरू किया है, तब से तुम काफी बढ़ गए हो ... मैच्योर हो गए हो!” उसने कहा, और बड़े प्यार से मेरे लिंग को सहलाया, “तुम बहुत सुंदर मर्द हो, और दीदी भी बहुत लकी है, कि वो तुम्हारी है!”

यह आखिरी वाला उसने थोड़ा उदास होकर कहा था। संभव है कि अपने लम्पट पति और मेरी तुलना कर के, वो अपने भाग्य को कोस रही हो। उसका हाथ, मेरे कठोर, स्तंभित लिंग पर ऊपर - नीचे खिसक रहा था, और मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।

“कहो तो तुमसे भी शादी कर लूँ?”

मेरी बात सुन कर वो अचानक ही रुक गई। मैंने नाखुशी में ‘अरे’ कहा, तो वो हँसने लगी। वो बिस्तर से उठी और दरवाजा बंद कर के मेरे सामने आकर खड़ी हो गई। इससे पहले कि वो कुछ भी करती या कहती, मैंने उसे अपने ऊपर खींच लिया, और एक गर्म स्मूच के साथ उसके होंठों को सील कर दिया, और साथ ही साथ उसके बचे हुए कपड़े उतारने लगा। इतने दिनों की अंतरंगता होने के बावज़ूद, हमने एक दूसरे को इस तरह से कभी नहीं चूमा था। आखिर कौन इस बात पर विश्वास कर सकता है?

जब हमारे होंठों एक दूसरे का स्पर्श किया, तो स्वतः ही वो खुल गए - जैसे यह होना ही चाहिए। मैंने उसके होंठों को अपने मुँह में भर कर कुछ देर चूमा, तो काजल भी मेरे होठों को थोड़ा सा काटने की कोशिश करने लगी। तभी उसकी जीभ मेरे होठों पर चली, तो मैंने आश्चर्य से अपना मुंह खोल दिया। मुझे नहीं मालूम था कि काजल चुम्बन क्रिया में इतनी सिद्धहस्त हो सकती है। सच में, उसका पति किस्मत वाला था। लेकिन अब उसकी किस्मत के सितारे ग़ायब हो रहे थे। काजल अब मेरी होने जा रही थी। उसने अपना सर थोड़ा टेढ़ा किया, तो उसकी जीभ मेरे मुँह के अंदर जाने लगी। उसकी चंचल जीभ मेरे मुँह के अंदर चारों ओर जा रही थी - यह बहुत ही कामुक हरक़त थी। मैंने शुरू में सोचा था कि कहीं काजल इस फ्रेंच-किस के कारण घिना न जाए, लेकिन ऐसा हुआ नहीं! उल्टा, वो खुद ही बढ़ चढ़ कर इस खेल में हिस्सा ले रही थी। मैंने भी प्रतिक्रिया में अपनी जीभ को जितना गहरा हो सका, उतना गहरा उसके मुँह के अंदर डाल दिया। जब मैंने ऐसा किया, तो उसने मुझे अपने आलिंगन में इतनी अधिक बल से भींचा, कि मुझे आश्चर्य होने लगा कि उसके इस दुबले, पतले शरीर में इतना बल भी है! काश मैं हमारे चुम्बन के बारे में और विस्तार से बता सकता! इस समय मैं केवल इतना कह सकता हूँ, कि उसके होंठों ने उसकी खुद की उत्तेजना की भविष्यवाणी कर दी थी, और अब वो मेरे लिंग पर अपनी श्रोणि को रगड़ रही थी! उधर, उसका वस्त्र-हरण जारी था।

मैंने उसकी साड़ी को उसके पेटीकोट से खींच कर अलग कर दिया, और उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल कर, उसे पूरी तरह से नग्न कर दिया। काजल का पूर्ण नग्न सौंदर्य किसी भी व्यक्ति की आंखों के लिए सुखदाई होता! उसके उन्नत स्तनों पर गर्व से उठे हुए चूचक, चीख चीख कर उसकी उत्तेजना की कहानी बयान कर रहे थे! मैंने उसे उसके नितंबों से पकड़कर, उसकी योनि की झिर्री को चाटा, और उसकी योनि-द्वार के दोनों कपाटों को धीरे से अलग किया, और अपना मुँह सीधे स्रोत से लगा कर उसके अमृत का स्वाद चखने लगा। काजल ने कामुकता से कराहते हुए मेरा चेहरा अपनी योनि की ओर और भींच लिया। उसको चरमोत्कर्ष तक पहुँचने के लिए बहुत इंतजार नहीं करना पड़ा। वो पहले से ही कामोत्तेजना के बारूदी भंडार पर बैठी हुई थी - छः महीने से! घोर आश्चर्य है! है न?

जैसे ही रति निष्पत्ति का समय आया, वो डगमगा गई - मानों उसके पैरों में अब जान ही न बची हुई हो! अगर मैं उसको सहारा न देता, तो वो भहरा कर शायद ज़मीन पर ही गिर जाती। उसका पूरा शरीर थरथरा रहा था, लेकिन माकन तब तक उसके यौवन का रस पीता रहा, जब तक उसका चरमोत्कर्ष का ज्वार ठंडा नहीं पड़ गया। फिर मैंने उसको बिस्तर पर लिटा दिया। काजल मुस्कुराई, और उसने मुझे सम्भोग निमंत्रण देते हुए, अपने दोनों पैरों को फ़ैला दिया। उसको लगा होगा कि अब मैं उसके अंदर आ जाऊँगा, लेकिन मैंने वापस अपना मुँह उसकी सरस योनि से सटा दिया। न जाने मुझे क्यों लगा कि अभी उसने ठीक से अपना चरम आनंद नहीं महसूस किया है। और मैं सही था।

आखिर कितनी ही स्त्रियों को अपने जीवन में चरम-सुख [ओर्गास्म] मिलता है? ज्यादातर पति/प्रेमी, बस अपना लिंग ठोंक कर अंदर बाहर करते हैं, और निवृत्त हो कर सो जाते हैं। काजल भी कोई अपवाद नहीं थी। उसका लम्पट, बेवड़ा पति भी यही करता था। तो जब काजल को अपना ओर्गास्म महसूस हुआ, वो न केवल आश्चर्यचकित रह गई, बल्कि थोड़ा डर भी गई। उसका ओर्गास्म काफी तीव्र था। जब वो अपने चरमोत्कर्ष के विमान की सवारी कर रही थी, वो उसकी दसों उँगलियाँ मेरे बालों को खींच रहीं थीं - मानों मुझसे रहम का अनुनय विनय कर रही हों - मानों वो कह रही हो कि मैं अब उसके ऊपर आ जाऊँ! यह एक स्पष्ट संकेत था कि वह चाहती थी कि मैं यह मौखिक सेवा अब बंद कर दूं। खैर, समय तो ठीक था - मेरा लिंग भी उसके अंदर जाना चाहता था। पूरा खेल ही इसी बात के लिए खेला जा रहा था। मैं भी उस समय इतना बेशर्म हो गया था कि, मैं गैबी के बारे में सब भूल गया था - न तो मुझे उसका ध्यान था, और न ही इस बात का कि वो बगल के कमरे में सो (?) रही थी! मेरा पूरा ध्यान बस केवल काजल पर ही केंद्रित था। काजल अब शरमा रही थी, और शायद अब जल्दी ही होने वाले हमले का पूर्वानुमान लगा रही थी। हमने पहले कभी उसके यौन अनुभवों के बारे में बात नहीं की, और मुझे यकीन था कि मेरे साथ होने वाले सम्भोग की तुलना अपने पति के साथ अपने पिछले अनुभवों से करेगी। लेकिन क्या यह बात कोई मायने रखती है? मैं बस यह कोशिश करूँगा की मैं और काजल, दोनों ही हमारे पहले समागम का पूरा आनंद उठा सकें!

उसकी वासना भरी आँखों को कामना से देखते हुए, मैंने धीरे से अपने लिंग को उसके गंतव्य में सरका दिया। ओह भगवान! काजल को मालूम था कि यह मेरा सम्भोग का पहला मौका है, इसलिए उसको मेरी मदद करनी होगी। उसने मुझे ठीक से पोजीशन बनाने, और मुझे पूरी तरह से सही जगह पर बिठाने के लिए अपने कूल्हों को थोड़ा सा उठाया। उसने हमारे होने वाले मिलन के पूर्वानुमान में एक गहरी सांस ली। मैं रुक गया ताकि वो खुद को तैयार कर सके।

काजल फुसफुसाई, “आओ”, और मुझे अपने अंदर लेने के लिए उसने अपना कूल्हा थोड़ा थोड़ा सा मेरे लिंग की तरफ़ दबाया।

उसकी हर हरकत के साथ मेरा लिंग उसकी योनि की गहराई में थोड़ा थोड़ा जाने लगा। जैसे जैसे मेरा लिंग उसके अंदर जाता, उसकी आँखें बड़ी होती जातीं, क्योंकि उसको समझ आ रहा था कि मेरा लिंग उसके अभी तक के अनुभवों के हिसाब से बड़ा है, और जैसे जैसे वो अंदर जा रहा है, उसकी योनि के होंठों को निर्दयता से फैला रहा है - ठीक उसी तरह जैसे एक गर्म चाकू मक्खन के बट्टे में घुस जाता है। कुछ ही देर में मुझे उसकी सहजता पस्त होती दिखी, और विरोध शुरू हो गया - उसकी योनि की मांसपेशियों की जकड़, मेरे लिंग की लम्बाई, जो उसके भीतर पैवस्त थी, पर महसूस होने लगी। लेकिन अब इतनी दूर आ कर, हमारा सम्भोग रुकने वाला नहीं था। तो मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए। और बस मैं इस अद्भुत स्त्री के साथ रमण करने लगा। मैंने धीमी गति से अंदर और बाहर होना शुरू कर दिया, और जल्दी ही सही लय पकड़ ली। काजल कामुक उन्माद में अपना सर इधर उधर करते छटपटाने लगी, और बंगाली भाषा में न जाने क्या क्या बड़बड़ाने लगी। उसकी योनि ने मेरे लिंग को इतने बलपूर्वक जकड़ रखा था, जिसकी मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी।

अद्भुत अनुभव!

‘काजल वाकई अद्भुत है! उसमे वो सब गुण हैं, जो मैं सोच सकता हूँ।’

जल्द ही, काजल मेरे शक्तिशाली धक्कों को महसूस करने लगी, और उसकी पकड़ ढीली पड़ने लगी। उसका सहज, आतंरिक विरोध पस्त हो गया। और वो भी अब अपने नए साथी के साथ मैथुन का आनंद उठाने लगी। उसकी साँसें तेज़ी से आने जाने लगीं, और उसकी हथेली मेरे धक्कों के साथ खुल और बंद होने लगी। इस समय उसका पूरा शरीर हरकत में आ गया था - यह केवल उसकी योनि के साथ सम्भोग नहीं हो रहा था, बल्कि उसका पूरा शरीर इसमें रम गया था। उसकी आँखें एक अलग ही उन्माद में चढ़ी हुई थीं। साथ ही साथ वो न जाने क्या क्या बुदबुदा रही थी - उसमे मेरा भी नाम था। मखमल सी, नरम गरम योनि का मर्दन करने का मेरा पहला अनुभव था - मैंने खुद को जल्दी ही अपने खुद के चरमोत्कर्ष के कगार पर खड़ा पाया। योनि में मैथुन करने का आनंद, हाथ द्वारा प्रदान की जाने वाले मैथुन से नहीं मिल सकता! मैं तेजी से स्खलन के करीब जाने लगा - मैं अपना बीज अब उसके गर्भ की सुरक्षा में जमा कर देना चाहता था। मैंने धक्कों की गति बढ़ा दी।

इस अचानक हुए त्वरण [acceleration] ने काजल को कामुक आनंद पर्वत के शिखर पर फेंक दिया। मैं भी अब अपने स्खलन पर नियंत्रण नहीं रख सका, और काजल के गर्भ में अपना वीर्य भरने लगा। मेरे लिंग से न जाने कितना वीर्य एक गोले बाद दूसरा भरने लगा। यह एक खतरनाक काम था - काजल गर्भवती हो सकती थी। लेकिन न जाने क्यों लगा कि मुझे काजल के भीतर ही स्खलित होना चाहिए, और न जाने क्यों लगा कि काजल भी यही चाहती थी। मैंने अपने खाली हाथ से उसके स्तनों को बारी बारी से निचोड़ना शुरू कर दिया, विशेष रूप से उसके चूचकों पर! उसके चूचकों को मसलते ही जैसे वो अपने आनंद पर्वत के शिखर से लुढ़कने लगी। मेरे गर्म वीर्य को अपनी गहराईयों में महसूस करने, और उसके स्तनों से खेलते हुए मेरे हाथों को महसूस करने के सम्मिलित प्रभाव ने काजल को अपने सम्भोग के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा दिया। जैसे ही काजल को रति-निष्पत्ति का आनंद आया, उसके दोनों चूचकों से दूध की पतली पतली धाराएँ निकलने लगीं। यह एक बेहद कामोत्तेजक दृश्य था। जैसे-जैसे उसके पूरे शरीर में आनंद की लहरें आती रहीं, वो आनंद से कराहती रही, काँपती रही, और चीखती रही!

जब मैंने महसूस किया कि काजल की कामोत्तेजना कम हो रही है, तब मैंने अपना लिंगमुण्ड उसकी भगशेफ पर जोर से रगड़ा, और उसकी उत्तेजना को बढ़ाने के लिए उसके चूचकों को बाहर खींचकर दबाया। दूध की धाराएँ मिल कर एक हो गईं। काजल ने मेरी आँखों में गहराई से देखा। उसको देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उसने उस सुखमय आनंद के लिए मेरे सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया हो। मैंने इतना वीर्य स्खलित किया था कि वो उसकी योनि से निकल कर नीचे चादर पर टपकने लगा। मुझे पता था कि हमारा प्रथम सम्भोग अब खत्म हो गया था, लेकिन मैं फिलहाल उससे बाहर नहीं निकलना चाहता था! इसलिए मैंने अपने नरम पड़ते लिंग को वापस उसके अंदर ठेल दिया। लिंग का स्तम्भन लगभग जा चुका था, इसलिए काजल की योनि को फिर से भेदना अभी काफी कठिन था। तो मैंने उसके ऊपर उसके ऊपर से उतरने का फैसला किया, और थक कर उसके बगल बिस्तर पर लुढ़क गया। कुछ क्षणों के बाद, जब सारी इन्द्रियाँ पुनः जागृत हुईं, तब मैंने काजल के मुँह पर एक गहरा चुंबन दिया।
Bohot badiya update
 
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Tiger 786

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पहला प्यार - विवाह प्रस्ताव – Update #6


हम दोनों कुछ भी बोलने से पहले थोड़ा सुस्ताने लगे। काजल ही पहले बोली,

ओरे बाबा रे! मोरे गेलो!” उसने एक साँस भरी, “मेरे शेर! तुमने मेरे सारे कस-बल खोल दिए! लेकिन सच में, मुझे बहुत अच्छा लग रहा है! मेरी योनि ऐसी खिंची जैसे मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह संभव है! और यह तब, जब मैं दो बच्चों की माँ हूँ!”

उसने शरमाते और खिलखिलाते हुए कहा।

“दीदी (गैबी) बहुत भाग्यशाली है! उसे खुश रखना। मुझे पता है कि तुम उसे खुश रखोगे!”

काजल बिना रुके, अनवरत, कुछ न कुछ बोले चली जा रही थी - शायद सम्भोग के बाद की शर्मिंदगी या अधीरता के कारण! तो मैंने उसको चुप कराने के लिए उसके होंठ पर एक चुंबन दे दिया। काजल पहले तो चुप हो गई, फिर हँसने लगी। हमारा मैथुन बहुत श्रमसाध्य था - मुझे एहसास हुआ कि अचानक ही हम दोनों बेहद थक गए थे। मेरा पेय तो मेरे सामने ही था - मैंने अपना मुँह काजल के चूचक पर लगाया और उसका मीठा दूध पीने लगा। कुछ देर में दूध आना लगभग बंद हो गया, तो मैं दूसरा स्तन धीरे धीरे से पीने लगा। धीरे धीरे शरीर की थकावट कम होने लगी - यही प्रभाव काजल के ऊपर भी दिख रहा था। फिर भी मुझे लग रहा था कि उसके मन में बहुत कुछ चल रहा है, जो कि जल्दी ही सामने आ गया।

“तुम जानते हो अमर…” काजल अन्यमनस्क सी बोली, “कभी-कभी मेरी सहेलियाँ मुझसे पूछती हैं कि मैं उस उजड्ड, लफ़ंगे के साथ कैसे निभा रही हूँ! ..... गरीब होने में कुछ भी गलत नहीं है, न कोई ख़राबी! लेकिन काम न करना, निठल्ले बैठे रहना, और केवल दूसरे लोगों के पैसे पर जीना गलत है। हरामख़ोरी है। वह ऐसा व्यवहार करता है जैसे वह सभी का मालिक हो! कुछ नहीं करता है। एक नौकरी से दूसरी नौकरी में - जैसे कपड़े बदल रहा हो... और ऊपर से रंडीबाज़ी! जो दो पैसे घर आते हैं सब उड़ा देता है हरामखोर! जब सुनील के एडमिशन की बात आई, तो उसने कुछ भी नहीं किया। बाप ऐसा होता है क्या.....?”

गुस्से से कही हुई इस बात पर काजल का शरीर काँपने लगा। मैंने उसको संयत करने के लिए अपने आलिंगन में भर लिया और सहलाया। कुछ देर के बात वो कुछ संयत हुई,

“लेकिन फिर हमारी लाइफ में तुम आए! किसी फ़रिश्ते के जैसे। तुमने हमको बचाया! वरना सुनील का क्या होता? उसकी पढ़ाई लिखाई का क्या होता? वो भी कहीं मजदूरी कर रहा होता, और वो हरामखोर उसके पैसे भी उड़ा रहा होता। और तुम - तुम सुनील को पढ़ाते हो, उसके साथ खेलते हो, उसको सिखाते हो! बिलकुल जैसे किसी अच्छे बाप को करना चाहिए!”

काजल की आँखों से आँसू गिरने लगे; मैंने उसका दूध पीना रोक दिया। वो इतनी गंभीर बातें कर रही थी, तो मैं बचकानी हरकत कर के उसका मूड ऑफ़ नहीं करना चाहता था। उसने कहना जारी रखा,

“सच में! हमको तो तुम्ही ने सम्हाला।” और फिर कुछ सोच कर चुप हो गई, फिर शर्म से मुस्कुराई, “अमर, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ! और बहुत आदर भी! आज मैंने जो भी किया, उसी प्यार और आदर की निशानी के रूप में किया। कभी कभी सोचती हूँ कि कितना अच्छा होता, अगर हम तुम जुड़े होते - हम एक परिवार होते!”

“हम हैं एक परिवार, काजल! तुम और तुम्हारे बच्चे, क्या मेरे कुछ नहीं हो? माँ और डैड, दोनों ही तुम सब को कितना प्यार करते हैं! उन्होंने क्या तुमको किसी अलग नज़र से देखा है कभी?”

काजल मुस्कुराई, “इसीलिए तो कहती हूँ - मेरी किस्मत भी अच्छी है! उतनी अच्छी नहीं, लेकिन ख़राब तो बिलकुल नहीं! इसी प्यार के कारण ही तो मैं तुम्हारे संग ‘करने’ के लिए मरी जा रही थी!”

“काजल .... मेरी काजल, तुम्हें कुछ भी करने की ज़रुरत नहीं है। तुमने पहले ही मुझे बहुत प्यार और खुशियाँ दी हैं! मुझे तो तुम्हारा शुक्रिया करना चाहिए, जो तुम मुझे इस तरह से सम्हालती हो; मुझ से इस तरह से प्यार करती हो!”

हम एक दूसरे के आलिंगन में बंधे, कुछ देर तक अपने अपने परिवारों के बारे में बात करते रहे। हमारे प्रथम सम्भोग में क्षय ऊर्जा थकावट, और उससे उत्पन्न होने वाले सुख के भाव से हमको नींद तो आ रही थी, लेकिन फिर भी हम देर रात तक बातें करते रहे। बीच बीच में मैं उसके स्तनों को खाली भी करता जाता। जहाँ मैं स्वादिष्ट दूध का पान कर रहा था, वहीं बेचारी काजल केवल पानी से ही काम चला रही थी। फिर हम दोनों को ही लगा कि एक एक कप चाय हो जाती, तो आनंद आता। तो काजल बिस्तर से उठी, और दबे पाँव रसोई की ओर चल दी। गैबी के कमरे का दरवाज़ा बंद था, इसलिए उनके जागने का डर कम था।

मैं भी उसके पीछे पीछे ही चल दिया। काजल ने पूरी निर्वस्त्र हो कर ही चाय बनाई। इस बात का डर तो था कि कोई बाहर की खिड़की से देख न ले, लेकिन आधी रात के बाद कौन ऐसी ताका झाँकी करता है? चाय बनाते समय उसके हर अंग को मैं छूता रहा, सहलाता रहा। चाय बन जाने पर हम दोनों ने साथ ही में चाय पी और वापस बिस्तर में लेट गए। मैंने काजल का हाथ लिया और अपने इस समय कोमल हो चले लिंग पर रख दिया, और बड़ी कोमलता से उसके पूरे शरीर को सहलाने लगा। काजल भी उतनी ही कोमलता से मेरा लिंग सहलाने लगी। एक दूसरे को ऐसे सहलाते हुए, हमने बातचीत भी को भी जारी रखा। हमको बहुत अच्छा लग रहा था! इस तरह का अनुभव बहुत सुकून देने वाला हो सकता है। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हमने अभी अभी विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाया है - बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे काजल और मैं खुद भी विवाहित हों। हम बहुत देर तक ऐसी ही छोटी छोटी बातें करते रहे। जब हमारी बातें भी समाप्त हो गईं, तब हम प्रेमियों की भाँति एक दूसरे को चूम कर, एक दूसरे की बाहों में सो गए। मुझको तो बड़ी गहरी नींद आई - लेकिन न जाने क्यों ऐसा लगा जैसे काजल ने नींद के दौरान कई बार मुझे चूमा, और मेरे कान में “थैंक यू” कहा!

और फिर अचानक ही नींद खुली - अभी तो भोर ही हो रही थी, और अभी भी अंधेरा था! शायद सुबह के पाँच बजे जैसा कुछ था। मैं उठा। रात में बहुत सारा द्रव पीने से पेशाब करने की मजबूरी! मैंने लाइट नहीं जलाई, क्योंकि मैं काजल, या किसी और को जगाना नहीं चाहता था। मैं बाथरूम में गया, पेशाब से राहत ली, और फिर गैबी को देखने के लिए मास्टर बेडरूम में चला गया। बिस्तर पर गैबी, सुनील और लतिका एक लाइन से सो रहे थे। मैंने न जाने क्या सोच कर रजाई का कोना उठाया, और गैबी को चेक किया। हम्म... जैसी कि उम्मीद थी, गैबी कमर के ऊपर नंगी थी।

‘स्साले सुनील! मेरी बीवी के साथ चांस ले लिया!’ मैंने सोचा और मुस्कुराया।

मैं वापस आ कर काजल के साथ लेट गया। पेशाब करने से पहले मेरा लिंग कठोर था, और मुझे एहसास हुआ कि मेरा लिंग अभी भी उतना ही कठोर था। इस दीर्घकालीन स्तम्भन के कारण उसमे हल्का सा दर्द भी होने लग गया था - उसको अपने गंतव्य की तलाश थी, जिसको भेद कर उसको थोड़ा शांति मिल सके! जब तलवार उग्र हो जाए, रक्त-पिपासु जाए, तब उसको शांत करने के लिए एक आरामदायक म्यान में डाल देना चाहिए। काजल के वही म्यान थी, जिसकी मेरी उग्र तलवार को तलाश थी! मैंने यह भी नहीं सोचा कि मैं जो कर रहा हूँ, क्या वो ठीक है या नहीं, और सोती हुई काजल के ऊपर वापस चढ़ गया।

सोते समय, उसके पैर बंद हो गए थे, और मुझे उन्हें फैलाने के लिए उसके पैरों के बीच अपना घुटना रखना पड़ा, ताकि मैं उसके पैरों के बीच जा सकूं। मैंने महसूस किया कि अपने शरीर पर हलचल महसूस कर के उसका सिर हिल रहा है, और वो नींद में कुछ बड़बड़ा रही है। मैंने अपना लिंग उसकी योनिद्वार पर सहलाया। मैं यह देख कर चकित रह गया कि काजल का छिद्र अभी भी चिकना था - हालाँकि उसकी चिकनाई मेरे गर्म लिंग पर ठंडी ठंडी महसूस हो रही थी। थोड़ा सा बल लगाने पर लिंगमुण्ड, उसकी योनि के दरवाज़ों को खोलता हुआ अंदर घुसने लगा! ‘वाह! अपार आनंद!’ मैंने लिंग को पूरा अंदर तक घुसाया, और फिर बाहर निकाला - काजल के पैर जैसे स्वतःप्रेरणा से खुलते चले गए। लिंग की पूरी लंबाई पर काजल की योनि का चिकना घर्षण! ‘अद्भुत आनंद’! मैं धीरे धीरे उसके अंदर और बाहर होने लगा। काजल जागने लगी। मैं उसकी सांसों में होने वाले बदलाव सुन सकता था। नींद में ही उसके हाथ मेरी बाहों पर आ कर रुके और उसी को थामे वो आँखें बंद किये जागती रही। फिर उसने अपने घुटने ऊपर की तरफ़ मोड़ लिए, और मुझे और जगह देने के लिए उसके हाथ सरक कर मेरी पीठ पर आ गए।

“मम्म... बहुत अच्छा लग रहा है।” उसने बुदबुदाया।

जैसे जैसे वो जाग रही थी, उसकी मुझको अपने और पास लाने की कोशिश और बढ़ती जा रही थी। उसने अपने दाहिने हाथ से मुझको अपनी तरफ़ और खींचने की कोशिश करी, और बाएं हाथ से, जहाँ हम इस समय जुड़े हुए थे, वहाँ छूती है। मैं थोड़ा सा बाहर निकल कर उसको मेरा स्तम्भन छूने को देता हूँ।

“उम्म्म्म!” उसके गले से गुनगुनाने जैसी आवाज़ आई।

काजल को किस बात पर आनंद आ रहा था, उसको तो वो ही जाने। लेकिन उसकी उँगलियों गाँठें मेरे पेट पर चुभ रहे थे और धक्का लगाने पर मुझे पेट पर दर्द हो रहा था। शायद उसको अचानक ही यह एहसास हुआ - और उसने अपना हाथ वहाँ से हटा लिया। मैंने बाहर से अंदर एक शक्तिशाली धक्का लगाया - काजल की आह निकल गई। मेरी इस हरकत से जैसे उसके यौवन रस के स्रोत पर लगा बाँध टूट गया हो - और अचानक से ही उसकी योनि से कामरस निकलने लगा। बड़ी सुखदायक गर्मी और चिकनाई थी। ऐसी मीठी यंत्रणा महसूस करते हुए, काजल ने अपने होंठ काट लिए, और उसके हाथ, बड़े प्रेम-पूर्वक मेरे सर पर आ गए। हमारे शरीरों के रसायनों की मिश्रित गंध आने लगी थी। जैसे ही मैंने अगला पूरा धक्का लगाया, काजल ने मेरे सर को अपने स्तनों की ओर दबाया। हाँ, इसको तो मैं भूल ही गया था! उसके स्तन तो उसके मीठे मीठे दूध से भरे होंगे अब!

“पी लो!” उसने कराहती हुई आवाज में कहा।

मैंने जब अपना सर नीचे किया, तो ठीक अपनी नाक के सामने दूध और कामोत्तेजन से सूजा हुआ उसका चूचक पाया। मैंने सहर्ष उसको चारों ओर से अपने होंठों में बंद कर के सुरक्षित कर लिया, और उसको चूसने लगा। काजल की मत्त आवाज़ ने मुझे भी मत्त कर दिया और मेरे अंडकोषों की हलचल बता रही थी कि वे तन गए थे! उस अवस्था में उसके अंदर धक्के लगाना और एक ही समय में उसका दूध पीना कठिन था! लेकिन मैं ये दोनों ही आनंददायक कार्य बंद नहीं करना चाहता था। काजल के हाथ मेरे नितम्बों पर आ कर स्थापित हो गए, और वो अपने हाथों से मुझे धक्के मारने के लिए प्रेरित करने लगी। खुद को थोड़ा सा व्यवस्थित करने के बाद मैंने पाया कि एक पोजीशन में मैं धक्के लगाना और दुग्धपान करना - दोनों ही एक साथ कर सकता हूँ। सौभाग्य से, उस पोजीशन में मैं हर धक्के के साथ उसके भगशेफ को कुचलने और रगड़ने में भी कामयाब हो पा रहा था, जो पहले संभव नहीं था। भूख तो लगी ही हुई थी, इसलिए मैं एक भूखे बच्चे की तरह दूध चूस रहा था, और साथ ही साथ काजल को इस अनोखे सम्भोग का अद्भुत अनुभव भी करा रहा था। थोड़ी देर में काजल ऐसी कामुक आवाज़ें निकालने लगी कि मेरे खुद के अंदर उसको तेजी से भोगने की भावना बलवती होने लगी। तो मेरे धक्कों की गति तेज हो गई। काजल भी उन्मुक्त हो कर इस प्रातःकालीन सम्भोग का आनंद उठा रही थी। न जाने कब की दबी लालसा इस समय उसकी कराहों, रुदन, और आहों के रूप में बाहर आ रही थी। जल्दी ही मेरे शरीर में भी कामोन्माद के चरम के ठीक पहले वाली अनुभूति होने लगी। बस दो और पलों बाद मैं आनंदातिरेक से कराह उठा - मेरा जीवनदायक और सुखदायक द्रव, मेरे लिंग के माध्यम से प्रवाहित हो कर काजल के गर्भ में स्थापित होने लगा।

उस समय मेरे लिए काजल की कोख को अपने वीर्य से भरने से बड़ा कोई अन्य काम नहीं था! मैं बस यही चाहता था - संभव है कि काजल भी ठीक यही चाहती थी। मैंने एक बात और देखी - काजल पर वीर्य का बहुत ही शांतिदायक प्रभाव पड़ता है। सम्भोग के बाद कल रात भी वो काफी शांत लग रही थी। इस समय भी, जब उसका गर्भ मेरे वीर्य से भर गया, तो वो ज़ोर से मुस्कुराई और खुशी ख़ुशी मुझसे लिपट कर सो गई। मैंने कुछ देर आराम किया, और कोई हरकत नहीं करी। मुझे डर था कि वो कहीं जाग न जाय। जब काजल गहरी नींद में सो गई, वो फिर मैं उठकर अपने दैनिक क्रियाकलापों को करने लगा।

लेकिन वो बहुत देर नहीं सोई। मेरे उठने के कोई दस मिनट बाद ही काजल भी उठ गई! आज तो मैं नंगा ही घर में घूम रहा था। जब काजल ने मुझे इस तरह से घर के चारों ओर घूमते देखा, तो वह शरमा गई। कमरे से बाहर निकलने से पहले उसने अपना ब्लाउज और पेटीकोट पहन लिया था। साड़ी पहनने की जरूरत उसको महसूस नहीं हुई। मैं उसे इस तरह से देखकर स्पष्ट रूप से प्रसन्न था। जब वह मेरे पास आई, तो मैंने बड़े प्यार से उसके होंठों को चूमा। उसने भी बड़े प्यार से मेरा सर पकड़ कर, और मेरे बालों में अपनी उंगलियाँ घुमाते हुए उस चुम्बन का उत्तर दिया। चुम्बन टूटने के बाद उसने मुझे अपने आलिंगन में ज़ोर से भींच लिया! उसके स्तन मेरी छाती से दब रहे थे। मैं उनकी कोमलता को महसूस कर रहा था और उनसे निकलने वाले मीठे मीठे दूध का स्वाद याद करने लगा!

“ओह अमर!” उसने शर्म से फुसफुसाते हुए कहा, “मेरी तो सुहागरात हो गई! .... तुमने मुझे ऐसे चोदा है कि....”

उसने अपना वाक्य पूरा नहीं किया। लेकिन उसको कुछ भी कहने की ज़रुरत भी नहीं थी। मुझे मालूम था कि मैंने काजल को उत्तम यौन-सुख की अनुभूति कराई है। मेरा हाथ ऊपर चला गया - उसके स्तन पर। मैं थोड़ा नीचे झुका और मैंने अपना चेहरा उसके स्तनों पर फिराया। काजल कराह उठी। काजल की शर्म काफी कम हो गई थी, और मैं देख सकता था कि वो अपनी भावनाएं अब अधिक प्रदर्शित कर रही थी। उसकी प्रतिक्रिया को देखकर, मैंने बारी बारी से, ब्लाउज के ऊपर से ही उसके दोनों स्तनों को चूमा। उसके चूचक पुनः जागृत हो कर चौकन्ने हो गए।

“ओह …” वो कराही, “अमर! बदमाश कहीं के! तुम्हारा पेट नहीं भरता?” वो कह तो रही थी, लेकिन खुद मेरे सर को अपने स्तनों में भींच रही थी। उसको खुद भी मुझे स्तनपान कराना अच्छा लगता है!

“ये बिलकुल मीठे, रसीले आमों की जोड़ी हैं ... और तुमको तो मालूम ही है कि इन आमों को मैं उम्र भर खा सकता हूँ!” मैंने उसे चिढ़ाया।

“फिर... आह्ह्ह... जितना तुम्हारा मन हो, जब भी तुम्हारा मन हो, इनको पिओ!” उसने कहा।

जिस तरह से मैं उससे लिपटा था, वो काम करना असंभव था। मैं काजल से एक फुट ऊँचा था, और हाँलाकि मैं उसके स्तनों पर दावत उड़ा रहा था, लेकिन फिर भी, मेरा पूरा शरीर उसके चारों ओर लिपटा हुआ था। उस स्थिति में, मेरा स्तंभित लिंग भी उसकी जांघों पर चुभ रहा था। काजल ने उसे छूने के लिए अपना हाथ बढ़ाया।

“हे भगवान! तुम फिर से तैयार हो! हा हा हा! कमाल का नुनु है! वाह! मेरे शेर!” काजल मेरे पूरी तरह से खड़े लिंग को देखकर दंग रह गई! अगर मैंने फिर से उसको भोगने की इच्छा दिखाई, तो क्या होगा! उसने सोचा।

“ये नुनु है?”

वो मुस्कुराई, और ‘न’ में सर हिलाई।

“तो फिर क्या है?”

“लौड़ा! मज़बूत लौड़ा!” उसने फुसफुसाते हुए कहा, जिससे केवल मैं सुन सकूँ, “इतना बड़ा... इतना गर्म... इतना मोटा!”

“तुम्हें मेरा लौड़ा अपने अंदर बढ़िया लगता है?” दो बार संभोग करने के बाद यह प्रश्न बेमानी हो जाता है।

“ओह! तुम्हें नहीं पता कि कितना अच्छा लगता है! इसको अंदर लेने में जान निकल जाती है, लेकिन जब बाहर निकल जाता है तो सब खाली खाली सा हो जाता है! और.... मैं.... मुझे.... तुमको फिर से अपने अंदर लेने का मन है!” उसकी आँखें शरारत से चमक उठीं।

मैंने धीरे से काजल को अपनी ओर खींच लिया, और उसके होठों पर एक नरम चुम्बन दिया। काजल मेरी इस प्यार भरी अभिव्यक्ति से अछूती नहीं रही,

“अमर.... मेरे अमर! तुमने आज मुझे फिर से अपने औरत होने का एहसास दिलाया है। तुमको मालूम है? तुमने मुझे ऐसे प्यार किया है कि मेरे प्यार भी भूख भी बढ़ गई। तुमने मुझे चाहे जाने का एहसास कराया है! ज़िन्दगी में आज पहली बार ऐसा महसूस कर रही हूँ! तुम्हारी दीवानी तो मैं बहुत दिनों से हूँ .... अगर हमारा मिलन नहीं हुआ होता, तो मैं पागल हो जाती!”

“काजल, तुम बहुत प्यारी और दयालु हो।”

मैं उसके बालों में अपनी उँगलियाँ फिराई, और उसके होंठों, गालों, और माथे पर थोड़े और नरम चुंबन दिए। उसने अपनी आँखें बंद कर ली, और अपने ऊपर बरस रहे प्यार का आनंद लेती रही।

“बहुत अच्छा लगता है जब तुम मुझे इस तरह से प्यार करते हो! ... मेरा आदमी ... उसने मुझे इस तरह से कभी प्यार ही नहीं किया!” तो आखिरकार, मेरी और उसके पति की तुलना वाली बात आ ही गई, “वो केवल मेरे अंदर चार धक्के लगाता है, और फिर सो जाता है। तुमने मुझे आज औरत होने का एहसास कराया है!”

“काजल, कहो तो तुमसे भी शादी कर लूँ?”

“हा हा! अच्छा जी! मतलब आप दो दो लड़कियों को सताना चाहते हैं?”

“हाँ! जितना हो सके, उतनी लड़कियों को सुख मिले, तो क्या गलत है?”

“कोई गलत नहीं है! भगवान् करे कि तुमको ऐसे ही सुख मिले!”

“हा हा हा! अरे काजल, तुम तो सीरियस हो गई!”

“नहीं! मैं सच में चाहती हूँ, कि तुमको खूब सुख मिले। तुमको जब भी मेरी ज़रुरत हो, मुझसे ज़रूर कहना। मैं हमेशा तुम्हारे साथ खड़ी रहूँगी!”

मैं उसकी बात समझ रहा था, और उसकी भावनाएँ भी। लेकिन मैं ज्यादा बात नहीं करना चाहता था - मुझे उसके दूधिया स्तनों को चूसने में बहुत मज़ा आ रहा था! लेकिन मैं उन्हें ब्लाउज के कपड़े के ऊपर से चूस रहा था। उसके स्तनों से निकलते दूध ने उसके ब्लाउज को पहले ही गीला कर दिया था। जैसा कि मैंने बताया, काजल ने केवल ब्लाउज और पेटीकोट पहना हुआ था, इसलिए, मुझे उनसे छुटकारा पाने की जरूरत थी।

“फिलहाल तो मैं तुमको नंगा करना चाहता हूँ!”

“हा हा हा! बोका!”

मैं उसकी कमर पर अपना हाथ बढ़ाया, और उसके पेटीकोट की डोरी खोल दी; बाकी का काम गुरुत्वाकर्षण ने कर दिखाया, और काजल नीचे से नग्न हो गई। उसकी सांसें भारी हो रही थीं और उसकी हर सांस के साथ उसके स्तन ऊपर-नीचे हो रहे थे। ओह भगवान्! ऐसी सुन्दर स्त्री को ऐसे कपड़ों में रखना ही घोर पाप है - घोर अन्याय है! मैंने जल्दबाज़ी में उसका ब्लाउज खोलना शुरू कर दिया। इतनी बार काजल के कपड़े उतारने के बाद भी हर बार नया सा लगता है - इस समय भी मेरे अंदर बहुत अधिक आत्म-संयम नहीं था। मैं जितनी बार हो सकता था, काजल के साथ कामुक सम्भोग करने को तैयार बैठा था। उसी उत्तेजना के कारण मेरे हाथ काँप रहे थे, और मेरा शरीर भी काँप रहा था। कुछ देर संघर्ष करने के बाद मैंने आखिरकार उसका ब्लाउज खोल दिया और उसके शरीर से अलग कर दिया। काजल खिलखिला कर हंस पड़ी,

“हा हा हा हा हा! मेरे अमर! इतनी ब्याकुलता! ये तो सिर्फ मेरी ब्लाउज थी।” उसने हँसते हुए कहा।

फिर उसने मुझे अपनी ओर खींच लिया। मैंने उसके शानदार स्तनों में अपना चेहरा डुबो लिया और एक-एक करके उनसे अमृत चूसने लगा। काजल ख़ुशी के मारे किलकारियाँ भरने लगी। मैं जब अपनी जीभ से उसके चूचकों को छेड़ता और चुभलाता, तब उसका शरीर कुछ ऐसे काँप जाता जैसे उसको बिजली के झटके लग रहे हों। उसने अपनी पीठ पीछे की तरफ झुकाई, और खुशी से कराह उठी।

कुछ देर बाद उसने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा, “अमर, एक बार और करो?”

‘बड़ी ख़ुशी से!’ मैंने मन ही मन सोचा, और उसे अपनी बाँहों में उठा लिया, और अपने कमरे की ओर चलने लगा। दूसरी ओर काजल एक नटखट लड़की की तरह व्यवहार कर रही थी। उसने बड़े प्यार से मेरे बाल खींचे, और मेरा चेहरा अपने पास ले आई।

“मुझे कस के चोदो! मेरे अंदर ही अपना बीज छोड़ना!” उसने मुझसे कहा।

जब मैंने उसे बिस्तर पर लिटा दिया, तो वह पहले से ही कामाग्नि में जल रही थी। तीसरी बार! मज़ा आ गया!

“जल्दी से मेरे अंदर आ जाओ, अमर! अब मैं और इंतजार नहीं कर सकती …”

बिस्तर पर लेटी हुई वो बार-बार अपनी कमर ऊपर उठा रही थी - यह दिखाने के लिए कि मुझे अपने अंदर लेने के लिए उसके अंदर कैसी प्रचंड इच्छा थी। उसकी योनि पर काले घने बाल उसकी योनि के होंठों को छुपा रहे थे। मैंने धीरे से उसके चीरे को सहलाया - मेरी उंगली गीली हो गई! काजल पूरी तरह तैयार थी! फिर से! मेरे स्पर्श पर वो खुशी से कराह उठी! काजल बिस्तर पर लेटी हुई थी - सूरज की झीनी झीनी रौशनी में उसके नंगे शरीर को देखना अद्भुत था। काजल को आप ‘raw beauty’ कह सकते हैं - प्राकृतिक सुंदरता! कोई बनावट नहीं। कोई मेकअप नहीं। ख़ालिस सौंदर्य! मैंने उसके ऊपर लेटते हुए अपने हाथों को उसके कंधों पर उसकी पीठ के पीछे एक अर्ध-आलिंगन में रखा। मेरा सीना उसके स्तनों से मिला, हमारे पेट एक दूसरे के खिलाफ दब रहे थे, मेरी जांघें उसकी जांघों पर टिकी हुई थीं, और मेरा लिंग उसके श्रोणि पर, उसकी योनि पर टिका हुआ था! यह एक सम्पूर्ण आलिंगन था। मेरा लिंग अपने घर में जाने के लिए व्याकुल हो रहा था। काजल भी मेरे की जैसी बेचैन थी। उसने अपनी योनि को मेरे लिंग पर दबाया।

“अंदर आओ न!” उसने वासना भरी मीठी आवाज में कहा।

उसने मुझे प्रवेश देने के लिए अपने पैरों को चौड़ा किया, मेरे लिंग को पकड़ लिया, और अपने योनि के होंठों के बीच रख दिया।

“काजल, मेरी जान .... मैं तुम्हारा कौन हूँ?”

वो पहले तो ठहरी, फिर मुस्कुराई, और बोली, “तुम मेरे सब कुछ हो!” फिर मुझे चूम कर बोली, “मेरे दोस्त हो! मेरे भाई हो! मेरे साजन हो! तुम सब कुछ हो!”

“आई लव यू, काजल!”

“अब और सताओ - धक्का लगाओ! इसे मेरे अंदर ले आओ।”

मैंने एक ज़ोर का धक्का मारा, और एक ही झटके में उसके अंदर पूरे का पूरा समां गया। मुझे मालूम नहीं था, लेकिन उस धक्के में वाकई बहुत अधिक शक्ति थी। उस धक्के से हमा दोनों के ही श्रोणि आधार पूरी तरह से जुड़ गए। काजल जोर से चिल्लाई, और उसकी आँखों से आँसू निकल गए।

“शह्ह्ह…” मैंने उसको चुप कराया।

“आह्ह्ह! हे भगवान! ऐसे बेदर्दी से न करो - दर्द होता है।” उसने शिकायत की।

मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए - उतनी ज़ोर से तो नहीं, लेकिन धीरे भी नहीं। काजल जोर-जोर से कराह रही थी और चिल्ला रही थी, जैसे कि उसको किसी के सुनने या हमारे पकड़े जाने की कोई चिंता ही न हो! कुछ हद यह निर्भयता ठीक भी थी! गैबी को पहले से ही पता था कि हम क्या कर रहे हैं - और बाकी तीनों में केवल उसी को सम्भोग की समझ थी। सुनील को नहीं पता था, कि उसकी माँ और उसके ‘भैया’ के बीच में क्या हो रहा है। अब ऐसे में अगर वो उठ कर हमें ऐसे देख लेता है, तो? इन ख़यालों के साथ साथ एक और ख़याल दिमाग में आया - काजल को जैसा दर्द हो रहा था, उसको देख कर मैं हैरान रह गया। पहली बात तो यह थी कि हाँलाकि मैं उसे पिछले छः घंटे से भी कम समय में तीसरी बार भोग रहा था, उसकी योनि पूरी तरह से कामरस से भीगी हुई थी - लेकिन, वो फिर भी दर्द महसूस कर रही थी। क्या मेरा लिंग सच में इतना बड़ा और मोटा था? मुझे इस बात का ठीक ठीक पता नहीं था। यह भी संभव है कि इतनी कम देर में इतनी अधिक बार सम्भोग होने के कारण काजल की योनि आहत हो गई हो? खैर, वो सब बाद में देखेंगे - फिलहाल मैं अपनी गति को बढ़ाते हुए उसकी योनि से अंदर-बाहर होने लगा। शुरू शुरू में धीमी - फिर मध्यम - फिर तेज, और फिर बहुत तेज गति! समय बीतने पर उसका दर्द कम होता गया, और वो फिर से खुशी से कराहने लगी। अपने चरम आनंद को नियंत्रित करने के लिए काजल अपने निचले होंठ को अपने दांतों से दबा रही थी। उसे इस तरह से संतुष्ट और व्यभिचारिणी के रूप में देखना बहुत ही सुखद दृश्य था। मुझे यह देखकर बहुत संतोष हुआ कि मैं उसे इतना आनंद दे पा रहा हूं।

उसकी योनि से अब रस रिसने लगा। यह एक स्वर्गीय अनुभव था। हम दोनों अपने नग्न शरीरों के परस्पर आलिंगन का भरपूर आनंद ले रहे थे। हम हर अंग पर जुड़े हुए थे - आमने-सामने, छाती से छाती, पेट से पेट, जांघ से जांघ, और हमारे जननांग, अनादिकालीन प्रेम के शाश्वत कार्य में बद्ध थे। मैं उसकी योनि की आरामदायक गहराई का आनंद लेते हुए उसके शरीर के अंदर-बाहर हो रहा था। उसने मेरे नितंबों को अपने हाथों से जकड़ लिया, और मुझे अपनी योनि की ओर दबाने लगी।

“और तेज़, और तेज़ अमर... मेरे साजन, और तेज़।” उसने कामुकता से कहा।

तो मैंने उसको भोगने की गति कुछ और बढ़ा दी। काजल बिना किसी पूर्व चेतावनी के अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई। आनंद के शिखर पर पहुँचते ही वो कामुकता से चीख पड़ी। हमारे सम्भोग ने हमारी काम अभिव्यक्ति को जंगली बना दिया। मुझे पता था कि इस घर में तो क्या, यहां तक कि पास पड़ोस में भी हर कोई काजल की चीख सुन सकता है! लेकिन काजल की चीख इस बात की भी उद्घोषणा कर रही थी कि मैं किसी स्त्री के साथ सम्भोग कर रहा था, और वो स्त्री उस सम्भोग का पूरा आनंद उठा रही थी। मैं काजल से पहले स्खलित न होने के लिए खुद को नियंत्रित कर तो रहा था, लेकिन यह काम बड़ा मुश्किल साबित हो रहा था। मैंने अपना ऊपरी शरीर उसके ऊपर से उठा लिया और उसे कूल्हों से पकड़ कर उठा लिया, और थोड़ा तेज से धक्के लगाने लगा। काजल ने मुझे अपने पूरा अंदर तक पहुँचने के लिए अपनी जाँघों को यथासंभव चौड़ा कर लिया। मैं उसकी टांगों के बीच तेजी से दोलन करने लगा। प्रत्येक धक्के के साथ, उसके दोनों स्तन हिंसक रूप से ऊपर-नीचे हो रहे थे। मेरा बिस्तर चरमरा गया। उसकी चूड़ियाँ बज रही थीं, और पायलें भी। और सबसे बढ़ कर यह बात कि वो ज़ोर ज़ोर से कराह रही थी और पूरी बेशर्मी से अपने आनंद, और अपनी आकाँक्षाओं का ज्ञापन दे रही थी। यह सब इतना कामुक था कि मैं खुद को रोक नहीं सकता था।

मेरा स्खलन भी बलपूर्वक आया। मैंने अपने जीवन रस को काजल की कोख की गहराई में उड़ेल दिया, और सब कुछ भाग्य पर छोड़ दिया। मेरे स्खलित होते ही, काजल ने कराहते हुए मेरे नितंबों को अपने पैरों से जकड़ लिया। आनंद और परमानंद की लहरें हमारे शरीर में दौड़ती रहीं। इस समय हमारे गुप्तांग एक ही स्वर में धड़क रहे थे। मेरा लिंग उसकी योनि में मेरे बीज का छिड़काव कर रहा था, उसकी योनि उसको दुह रही थी। जब मैं पूरी तरह से स्खलित हो गया, तो मैं थक कर उसके ऊपर ही लेट गया और उसके स्तनों को जोर से दबाने लगा। काजल मेरी पीठ पर हाथ रखकर मुझे अपने में भींच रही थी। हम दोनों बहुत देर तक ऐसे ही लेटे रहे। मुझे उम्मीद थी कि मैंने काजल को उसके पूरे जीवन के सबसे अच्छे ओर्गास्म दिए होंगे। मुझे गर्व था कि एक दो बच्चों की माँ को मैंने इस तरह से संतुष्ट किया है। हम पूरी तरह से निश्चिंत पड़े हुए थे - एक दूसरे का हाथ थामे - न कोई डर, न कोई चिंता! कुछ समय बाद, मेरा लिंग नरम हो कर बाहर निकल गया!
Lazwaab update
 

Tiger 786

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पहला प्यार - विवाह प्रस्ताव – Update #9


अंत में काजल की बारी आई। यह शर्म की बात थी कि हम सब उसे अभी तक नग्न नहीं देख पाए थे। इसलिए, मैंने निर्वत्र होने में उसकी मदद की। वह सुनील के सामने नग्न होने में शर्मा रही थी! इसलिए वो अभी भी अपने सारे कपड़े पहने हुए थी, जबकि बाकी के हम तीनों नग्न अवस्था में थे। तो शीघ्र ही काजल भी हम तीनों की तरह नंगी हो गई। सुनील दोनों महिलाओं की तुलना करने से खुद को रोक नहीं पाया। उसकी अम्मा की शारीरिक रचना बिलकुल उसकी दीदी की तरह ही थी! लेकिन फिर भी उन दोनों के शरीर में काफ़ी अंतर थे - दीदी की तुलना में उसकी अम्मा के स्तन बड़े थे, उसकी योनि (हाँलाकि सुनील को अभी यह शब्द नहीं मालूम था) भी बड़ी थी, और नितम्ब चौड़े थे। साथ ही साथ काजल की योनि के होंठ मोटे थे, जबकि गैबी के होंठ पतले थे। गैबी की योनि के विपरीत, काजल की योनि के योनि-पुष्प की पंखुड़ियाँ बाहर दिखाई दे रही थीं! फिर भी, एक ऐसी महिला, जिसके दो बच्चे थे, उसके लिए काजल अभी भी अत्यंत सुगठित और सुन्दर दिखती थी!

मैंने ठिठोली करते हुए सुनील से पूछा कि वह किसका दूध पीना पसंद करेगा, तो उसने उत्तर में कहा कि वो अपनी अम्मा का दूध पीना पसंद करेगा। ठीक भी है - यह बिल्कुल भी बुरा विकल्प नहीं है! वो ही क्या, हम सभी काजल का ही दूध पीना पसंद करते। गैबी के स्तनों में अभी भी और विकास होने की पर्याप्त गुंजाइश थी! ख़ैर, नहाने के बाद हम सब नंगे नंगे और भीगे हुए बाथरूम से बाहर आ गए। काजल स्पष्ट रूप से अपने इस माँ वाले रोल का भरपूर आनंद उठा रही थी! मुझे तो लग रहा था कि वो इस समय यह भी भूल गई थी कि उसका अपना एक अलग घर है। उसने जल्दी से सुनील को पोंछ कर सुखाया, और फिर मुझे भी पोंछने लगी। गैबी ने खुद को पोंछ कर सुखाया - बाथरूम में खड़े खड़े काफी समय हो गया था, इसलिए ठंडक लगने का डर भी था। जब सुनील का शरीर सूख गया, तो वो पूरे घर में उछल-उछल कर भागने लगा, बिना इस बात की परवाह किए कि वो अभी भी नग्न था! उधर उसकी अम्मा मुझे पोंछ रही थी। सबसे अंत में काजल ने खुद को पोंछ कर सुखाया। यह सब दस मिनट से कम समय में हो गया। अब कपड़े पहनने का उपक्रम! मैं कुछ भी पहनने के मूड में नहीं था, इसलिए मैंने बस काजल को अपनी ओर खींच लिया, जो मेरे ही समान नग्न थी, और उसके स्वादिष्ट स्तनों को पीना शुरू कर दिया, और मेरे हाथ की उँगलियाँ उसकी योनि में व्यस्त हो गईं - वो उसकी सिलवटों से खेल रही थीं, उसके भगशेफ को छेड़ रही थीं, और उसकी गहराई का नाप रही थीं।

दूसरी ओर गैबी ने मुझे पहली बार काजल के साथ ऐसा करते हुए देखा, तो जाहिर सी बात है कि वो भी उस दृश्य को अपने सामने घटते देख कर बहुत उत्सुक थी। वो हमको देखने लगी... शायद इस बात का मूल्यांकन करने के लिए कि मैं प्यार कैसे करता हूँ, मेरा स्टाइल क्या है, और वो मुझसे क्या क्या होने की उम्मीद करे। शालीनता के कारण उसने पैंटी पहनी हुई थी। जब मैं काजल के साथ काम में व्यस्त था, तो सुनील हमारे कमरे के अंदर आ गया। जैसे ही उसने मुझे अपनी अम्मा का दूध पीते देखा, उसका उछलना कूदना तुरंत बंद हो गया।

“नहीईईईई.....” वो ठुनठुनाया, “अम्मा को छोड़ दो…” और अपनी अम्मा को पीछे से पकड़कर उसे मुझसे अलग करने की कोशिश करने लगा।

“सुनील, बेटा,” काजल बोली, उसकी आवाज़ बहुत ही अस्थिर थी, “तुमने भी तो दीदी का दूध पिया था न? तो, अगर भैया मेरा दूध पी रहे हैं, तो क्या गलत है…”

यह कैसा तर्क था!

“नहीईईईई.....” वो फिर से ठुनठुनाया, “मैंने दीदी का दूध नहीं पिया!”

“तुमने पिया था, झूठे!” गैबी ने इसको छेड़ा।

“नहीं... मैंने नहीं पिया!”

“नहीं पिया था, तो जाओ और अब पियो!” काजल ने जैसे तैसे कहा।

इस पर गैबी ने कहा, “दीदी! तुम उसको ऐसा करने के लिए कैसे कह सकती हो?”

लेकिन काजल गैबी की बात नहीं सुन रही थी - उसने अपनी आँखें बंद कर ली थीं और मेरे चूसने का और और मेरे हाथ का आनंद ले रही थी। गैबी ने हथियार डाल दिए,

“ये वो सब कर रहा है जो केवल मेरे पति को करना चाहिए... समझे मिस्टर?” गैबी ने मुझसे शिकायत करते हुए कहा।

“बिलकुल करूँगा, माय डार्लिंग! बस हमारी शादी वाले दिन का इंतज़ार करो! तुमको हमारा मिलन याद रहेगा। प्रॉमिस!” मैंने कहा, और वापस काजल मे व्यस्त हो गया।

गैबी कर भी क्या सकती थी? यह दण्ड तो उसने खुद को ही दिया हुआ था। उसने अपना सिर हिलाया और सुनील को ऊँगली के इशारे से बुलाया।

“चाहिए?” उसने पूछा।

सुनील ने तुरंत ‘हाँ’ में सर हिलाया और गैबी के एक चूचक पर अपना मुँह रख दिया। मुझे यकीन है कि उसको आनंद तो आया... क्योंकि उसकी तारीफ बेहद सकारात्मक थी,

“उम्म…” स्वाद लेते हुए सुनील बोला, “दीदी, आपकी चूची खूब कोमल है ... और मीठी! किशमिश की तरह! नहीं नहीं... किशमिश नहीं ... कलाकंद की तरह!”

उसकी इस टिप्पणी पर मैंने सुनील की तरफ देखा - कमाल है! उसको यह शब्द मालूम था!

“सुनील,” काजल ने उसको चेताया, “ऐसे शब्द नहीं बोलते!”

मैंने गैबी की ओर देखा; वो मुस्कुरा रही थी और सुनील को प्रोत्साहित कर रही थी। सुनील पीने के बजाय गैबी के चूचक चाट रहा था। गैबी की सांसें अजीब तरह से गहरी और आनंददायक हो गई थीं। मुझे यकीन है कि सुनील को भी समझ में आ गया था कि दीदी को उसके मुंह और जीभ से एक ‘अलग’ तरीके का आनंद मिल रहा है। गैबी ने बाद में सुनील से कहा कि उसके स्तनों को पीना एक बहुत ही व्यक्तिगत और अंतरंग काम था, और उसे इस बारे में कभी भी, किसी को भी नहीं बताना चाहिए। सुनील तुरंत सहमत हो गया। गैबी और काजल दोनों ही हमारे नटखट खेल में उसकी मिलीभगत से बहुत खुश और हैरान थे।

“हम बाद में कभी फिर से करेंगे, ठीक है?” गैबी ने सुनील के गालों को सहलाते हुए कहा, “और, इसका ज़िक्र किसी से भी मत करना! ठीक है? चलो, अब, हम कपड़े पहन लेते हैं।”

मुझे यह देख कर घोर आश्चर्य हुआ कि मैं फिर से स्तंभित हो रहा था। वाकई आश्चर्य वाली बात है! मेरा मतलब - इतने कम समय में इतने सारे इरेक्शन होना - यह अद्भुत था!! मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरे साथ क्या हो रहा है, और कैसे हो रहा है। गैबी के साथ मेरी सेक्स लाइफ एकदम मदमस्त होने वाली थी, यह तो पक्की बात थी। अब मैं सच में और इंतजार नहीं कर सकता था कि वो मेरी ब्याहता पत्नी बन जाए! मैं बिस्तर के किनारे पर बैठ गया और काजल को अपनी गोद में बैठने में मदद की, और ऐसा करते हुए मैंने अपने लिंग को अपने हाथ से सहारा दे कर पकड़ लिया, जिससे जब वो मेरे ऊपर बैठे, मेरा लिंग उसके अंदर घुस जाए। दो जोड़ी आँखों ने हमें ऐसा करते देखा। जब आपके पास दर्शक हों, तो एक खूबसूरत महिला से प्यार करना बड़ा ही रोमांचक हो जाता है - शायद यह स्तम्भन भी दर्शको के कारण ही हुआ हो? क्या पता! मैंने काजल को धीमी गति में भोगना शुरू कर दिया। यह मजेदार है कि हमने अपने प्रेम-आलाप को जितना संभव हो उतना विवेकपूर्ण बनाने की कोशिश की, और आवाज़ें बेहद कम निकाल रहे थे।

यह रोमांचक था... एक कुटिल तरीके से।

भले ही सुनील को सेक्स के बारे में न मालूम हो, लेकिन उसको समझ में आ गया था कि उसकी अम्मा और मेरे बीच में जो कुछ भी हो रहा था, वो बहुत ही खास था! उस दिन के उसके अपने खुद के अनुभव जितना खास! वो यह भी समझ गया था कि उसकी अम्मा, जो सुख मेरे साथ अनुभव कर रही थी, वो भी उसके लिए बहुत खास था। काजल बहुत खुश दिखाई दे रही थी, और उसके साथ जो हो रहा था, वो संभव है कि वही उसकी खुशी का स्रोत हो! गैबी ने देखा कि जहां काजल और मैं जुड़े हुए थे, वहाँ, उसकी योनि पूरी तरह से खुल गई थी, और मेरा लिंग धीरे-धीरे से अंदर और बाहर हो रहा था। सुनील ने देखा कि कैसे मैं काजल के स्तनों पर दावत उड़ा रहा था, तो उसने भी ऐसा ही करने का फैसला किया। उस समय तक गैबी ने शर्ट पहन ली थी, और सुनील को भी शर्ट पहना चुकी थी।

उसने गैबी की ओर अपना चेहरा घुमाया, और उसकी शर्ट के बटन खोलने लगा,

“क्या कर रहे हो!” गैबी ने हिसहिसाते हुए कहा।

उसने कुछ कहा नहीं, लेकिन जल्दी ही शर्ट के ऊपर के चार बटन खुल गए, और उसने फिर से गैबी के चूचकों को चूमा,

“ये लो!” गैबी फुसफुसाई, “फिर से....!”

सुनील खुशी से उसके स्तन चूसने लगा। कुछ ही पलों में वो ऊब गया और गैबी के बगल आ कर बैठ गया। गैबी ने प्यार से उसके गालों को चूमा और उसको बाकी के कपड़े पहनाए। इस बीच वो निरंतर हमको देख रहा था - ख़ास तौर पर वहाँ, जहाँ मैं और काजल जुड़े हुए थे। वो समझ गया कि यह बहुत ही अंतरंग है, कुछ ऐसा राज़ जिसे गुप्त रखा जाना चाहिए, और यह कुछ ऐसा है जिसे वो आने वाले लंबे समय तक नहीं भूल पाएगा! मैं पहले से ही उत्तेजना में कांप रहा था। मुझे नहीं लगता कि मैंने काजल के अंदर कुछ भी स्खलन किया - यह सत्र दस मिनट से अधिक भी नहीं चला, लेकिन यह अब तक का सबसे रोमांचक और संतुष्टिदायक सत्र था। मुझे बहुत आनंद आया, काजल को बहुत आनंद आया!

एक बार जब काजल और मैं संतुष्ट हो गए, तो गैबी, सुनील और मैंने बारी बारी से काजल के स्तन पिए। जो थोड़ा बहुत बच गया, वो लतिका के हिस्से आया। यह काजल का स्नेह ही था जिसके कारण वो हम पर अपना मातृत्व बरसा रही थी। मुझे नहीं मालूम कि तब उसे क्या और कैसा लगा होगा। वो बेचारी पिछले दो घंटे से नग्न थी। लेकिन फिर भी हम सभी की मन-मर्ज़ी को सहती रही। फिर अंत में, वो कपड़े पहन सकी। हम सभी बहुत संतुष्ट थे! हम सभी बहुत खुश थे। मैं सभी को एक बढ़िया से रेस्तरां में ले गया, और वहाँ दोपहर का भोजन किया। उसके बाद मैंने काजल और उसके दोनों बच्चों को उनके घर छोड़ दिया, और उसे उस दिन के लिए छुट्टी दे दी! हालाँकि वो शाम को घर आना चाहती थी, लेकिन उसको आराम की आवश्यकता थी।
Awesome update
 

KinkyGeneral

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अरे उसके पहले फिलहाल ये 6500+ शब्दों का अपडेट हाज़िर है।
जय हो भैया जी, जय हो। आनंद से सराबोर कर दिये एक बार फिर। 💕
काजल अम्मा अकेली रह गईं, उनके लिए थोड़ा बुरा लगा। जल्दी से उनको भी एक और नन्हे मुन्ने की प्राप्ति हो जाये।:love2:
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Please update Bhai....
Aur intejar nahi hota...
हां भाई, घर और काम में व्यस्तता और दो कहानियों के कारण इस पर काम लगभग रुक गया।
लेकिन जल्दी ही आएगा अपडेट। सुंदर सा, और बड़ा सा।
तब तक प्लीज श्राप पढ़िए 😀
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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कहानी का यह अपडेट कोई पाँच सप्ताह बाद आया है - कारण बहुत से हैं। परिवार पर सामान्य से अधिक ध्यान, काम, और दूसरी कहानी ‘श्राप’ पर अधिक फोकस हुआ है। इस बीच कहानी को थोड़ा बहुत भूल भी गए। शायद पढ़ने में थोड़ा तारतम्य न ठीक लगे - लेकिन प्रयास यह है कि ऐसी सम्भावना कम से कम हो। यह हिस्सा मैंने और अंजलि ने मिल कर लिखा है, लेकिन उसकी एडिटिंग मैंने करी है। इसके बाद दो या तीन अपडेट और, और बस - मोहब्बत का सफ़र समाप्त! साथ में बने रहें तब तक!


अचिन्त्य - Update #27


लतिका और मेरी शादी तक के वो दो तीन महीने पूरी तरह से मौज-मस्ती, उल्लास और खुशियों से सराबोर रहे!

बड़े समय बाद मेरे जीवन में ऐसा समय आया था, कि जिसमें लगभग हर दिन आनंददायक हो गया था। लगभग रोज़ ही कुछ न कुछ बढ़िया होता मेरे साथ; कोई न कोई अच्छी खबर आती; बिज़नेस में नए नए क्लाएंट्स मिलते; या फिर बस, हँसी ख़ुशी का माहौल रहता। एक बात की आशंका थी कि कहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी लतिका के फाइनल एक्साम्स करवाने में लेट-लतीफ़ न हो जाए। लेकिन किसी ईश्वरीय अनुकम्पा से एक्साम्स समय पर शुरू हो कर नियत समय पर चल रहे थे। उस कारण भी मन को शांति थी कि सब बढ़िया होगा।

कभी कभी लगता है कि दस - साढ़े दस साल पहले अगर भाग्य ने मेरे हृदय में त्रिशूल न भोंका होता, तो मुझे अपने जीवन में हर पल घटने वाली आनंददायक घड़ियों का आभास भी न होता। कहा भी गया है - ‘भय बिनु होइ न प्रीति’ - जब तक हम पूरी तरह से विरोधाभासी परिस्थितियों में नहीं पड़ते हैं, तब तक हमको अपनी वर्तमान की स्थिति का उचित अभिमूल्यन नहीं आता है। हाँ - अवश्य ही गैबी और उसके साथ मेरी संतान, मेरी दूसरी संतान, डेवी, और डैड - एक के बाद एक कर के चले गए और यह सभी मेरे जीवन की अपूरणीय क्षतियाँ हैं। लेकिन इन्ही घटनाओं के कारण ही मेरे जीवन को एक अलग दिशा भी मिली। पहले तो मुझे अम्मा का निःस्वार्थ प्यार मिला; ससुर जी की पितामह-तुल्य, वटवृक्ष जैसी क्षत्रछाया मिली; एक सफल उद्यमी बनने और कई लोगों को रोज़गार देने का सौभाग्य मिला; माँ के पुनः सौभाग्यवती बनने और अपनी बरसों से दबी छुपी कोमल इच्छाओं को पूरा होते देखने का सुअवसर भी मिला; छोटे छोटे बच्चों का पिता समान बड़ा भाई बनने का सौभाग्य मिला; पापा के रूप में पुनः पिता का साया और स्नेह मिला; और साथ ही साथ मिला एक भरा पूरा स्नेही परिवार!

यह सभी बातें वरदान ही तो थीं। मेरे जीवन में जो भी आया, उसने बिना किसी शर्त के मुझसे प्रेम किया। यह बड़ी बात है। लेकिन यह सभी बातें तब समझ में आती हैं, जब जीवन में ठहर कर सोचने का अवसर मिलता है। पिछले कुछ वर्षों से जीवन में ठहराव आया - वो भी एक वरदान है! अन्यथा, मैं अपनी एकलौती बेटी को, एक सुन्दर सी युवती बनने की दहलीज़ पर जाते हुए देख न पाता। अपनी संतान को बड़ा होते देखना एक अलग ही सुख है। और अब - एक और वरदान! लतिका के संग जीवन बिताने का!

तो क्यों न हो खुशियों का माहौल? और, इस बार तो बातें पहले से भी अलग थीं! ख़ुशी केवल मेरी और लतिका की शादी को ले कर ही नहीं, बल्कि माँ के पुनः माँ बनने की भी थी! हाँलाकि माँ की प्रेग्नेंसी में उनका स्वास्थ्य लगभग पहले के ही समान था, लेकिन चूँकि वो इस समय बावन साल की थीं, इसलिए उनकी गाईनाकोलॉजिस्ट थोड़ी सतर्क हो कर चल रही थी। लेकिन हर जाँच में माँ और उनके बच्चे दोनों की ही सभी रिपोर्ट्स नार्मल ही निकल रही थीं। उनका व्यायाम नियमित था, और रहन सहन भी। रूटीन जीवन में कोई बदलाव नहीं आया था। मुझे बहुत शुरू में जो अंदेशा था, उसके कहीं विपरीत माँ और पापा दोनों में प्रेम पहले से भी अधिक प्रगाढ़ हो गया था। और सबसे अच्छी बात यह थी कि उनके प्रेम में परस्पर आकर्षण आज भी पहले जैसा ही था - या शायद पहले से अधिक। वो दोनों अभी भी सम्भोग का आनंद उठाते थे - हमेशा की ही तरह, लगभग प्रतिदिन! भारतीय पति-पत्नी और उनके डॉक्टर्स प्रेग्नेंसी के समय न जाने क्यों सम्भोग से परहेज़ करने की सलाह देने लगते हैं, लेकिन सच तो यह है कि अगर प्रेग्नेंसी में कोई समस्या या जटिलता न हो, तो सम्भोग करना और भी आनंददायक हो जाता है, और डिलीवरी तक का सफ़र सरल (जिन्होंने किया है, या जो करते हैं, उनको पता है)!

हाँ - लेकिन एक बदलाव की बात अवश्य थी, जो मैंने नोटिस करी। हाँलाकि पापा दिखाते नहीं थे, लेकिन उनको माँ की प्रेग्नेंसी को ले कर, अंदर ही अंदर थोड़ा सा डर अवश्य था। कारण? हाँलाकि हर जाँच में माँ और उनके बच्चे दोनों की ही सभी रिपोर्ट्स नार्मल निकल रही थीं, लेकिन जानने समझने वाले पापा से बोलते रहते थे कि वो इस बार थोड़ा अधिक ध्यान रखें, क्योंकि माँ की बढ़ी हुई उम्र के कारण, उनको और उनके बच्चे दोनों को ही सामान्य से अधिक ख़तरा हो सकता है। जब किसी से बहुत अधिक प्रेम होता है, तो उनको खोने की आशंका से इस तरह के डर आने लाज़मी ही हैं।

लेकिन माँ को जैसे अपनी प्रेग्नेंसी और उससे सम्बंधित होने वाले संभावित जोखिमों की कोई परवाह ही नहीं थी। वो तो इस बात से आनंदित थीं, कि इतने सालों के बाद घर में कोई शादी हो रही थी। लतिका को ले कर उन्होंने कभी जो सपने सँजोए थे, वो उनके परिवार के साथ ही पूरे हो रहे थे। वो जल्दी ही उनके ही परिवार का हिस्सा बनने वाली थी। वो इसी बात से बड़ी आनंदित थीं। माँ अच्छे से थीं। लेकिन पापा को यूँ अकेले अकेले डरा हुए देखना मुझे अच्छा न लगता। मैं कुछ कुछ कर के पापा के डर को दूर रखने की कोशिश करता था; उनको खुश रखने की कोशिश करता; उनको समझाता कि वो किसी भी प्रकार का डर अपने मन में न पालें!

एक दिन, रात्रि भोजन के बाद मैंने पापा और माँ से कहा,

“माँ... पापा... आज रात मैं आप दोनों के साथ सोऊँगा।”

उन दोनों को कभी इस बात पर आपत्ति हुई ही नहीं, तो आज क्यों होने लगेगी?

“इधर आ मेरा बेटा...” पापा बहुत प्यार से बोले, और मुझे माथे पर चूमते हुए बोले, “मैं तो हमेशा ही कहता हूँ कि हमारे साथ ही सोया कर... लेकिन एक तू है जो न जाने क्यों झिझकता रहता है अभी भी...”

“नहीं पापा...”

“बड़ा हो गया है न...” माँ ने कहा।

“कितना बड़ा हो गया है भाग्यवान...? अपनी माँ और अपने पापा से भी बड़ा...”

कभी कभी ऐसा होता है, जब पापा की इस तरह की बातें सिली सी लगती हैं। बड़ा तो मैं हूँ... कम से कम पापा से तो! लेकिन उनकी नज़र में मैं उनका बड़ा बेटा हूँ। उनसे मुझको पिता वाला ही प्यार मिलता है। इसलिए अधिकतर समय मुझे उनका ऐसा कुछ कहना बहुत अच्छा लगता है। जब बात बात में मैं उनके या माँ के आलिंगन में बंध जाता हूँ, तो मुझे ऐसा सुकून मिलता है कि क्या कहूँ!

“अरे बेटे, माँ बाप के आगे बच्चे कब से बड़े होने लगे,” ससुर जी ने भी टिप्पणी की।

“हाँ... देखिए न बाबूजी,” माँ बोलीं, “... ये मेरे तीनों छुटकू अब हमारे साथ सोना ही नहीं चाहते... लेकिन अपने मन का क्या कहूँ? अपने बच्चों को दुलार करने का मन होता है... माँ हूँ... इसलिए अपने बच्चों को प्यार करने के लिए तरसती रहती हूँ...”

पापा और माँ दोनों ससुर जी को इतना आदर देते थे कि अब उनका स्थान ससुर से उठ कर पितामह जैसा हो गया था मेरे जीवन में। वो सच में हमारे परिवार के वटवृक्ष बन गए थे।

“सुमन बिटिया ठीक कहती है बेटे... और वैसे भी, तुम तो हमारे सबसे अच्छे बेटे हो!” ससुर जी ने कहा।

ससुर जी जब हमारे साथ रहने को आए, तब मुझे मन ही मन एक चिंता सता रही थी कि न जाने वो हमारे परिवार के ‘खुलेपन’ को देख कर क्या सोचेंगे या कहेंगे! वो वृद्ध थे - जीवन को ले कर उनके मन में अपना ही नज़रिया था। उनसे यह अपेक्षा करना कि वो बदल जाएँ - उचित नहीं था। बहुत संभव था कि परिवार के न्यूडिस्ट व्यवहार को ले कर उनको आपत्ति हो सकती थी। इसलिए हमने सोच रखा था कि अगर उनको कोई ऐतराज़ होगा, तो हम उस तरह रहना बंद कर देंगे... कम से कम उनके सामने तो। शुरू शुरू में उनको हमारे ‘खुलेपन’ को देख कर थोड़ा अटपटा सा लगा ज़रूर था, लेकिन उन्होंने उस पर कोई आपत्ति नहीं जताई। आदित्य, आदर्श या अभया उनके सामने नंगे चले जाते थे, तो उनको अटपटा नहीं लगता था। लेकिन जब मिष्टी और लतिका ने भी उनके सामने नग्न होना शुरू किया, तब उनको लगा कि यह हमारी जीवन शैली है। उधर माँ और पापा ने भी संभवतः उनको सब बता दिया होगा। आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने हमारे इस रवैये को स्वीकार कर लिया। अगर सब खुश हैं, सुरक्षित हैं, और अगर सबके बीच में प्यार बढ़ता है, तो उनको किसी बात से कोई ऐतराज़ नहीं था...। उनके लिए उनके बच्चों की ख़ुशी सबसे महत्वपूर्ण थी। लतिका ने भी शादी से पहले मेरे सामने नग्न न होने का पूर्वाग्रह छोड़ दिया - सबसे अधिक मेरा हक़ था उस पर! ऐसे में वो मुझको वंचित नहीं रख सकती थी।

ससुर जी से मेरी इस जीवनशैली के बारे में कभी कोई बात नहीं हुई... बस, एक बार माँ ने उनके सामने मुझे नग्न कर के स्तनपान कराया। उन्होंने इस बाबत कुछ नहीं कहा - बस, समझते हुए मुस्कुराये और हम दोनों से सामान्य रूप से बातें करते रहे। हमारे लिए उनकी इतनी ही स्वीकृति पर्याप्त थी। एक वो दिन था, और आज का दिन है! वो भी मुझे छोटा बच्चा बनाने में पीछे नहीं रहते थे। घर में अब हम सब ‘बच्चे’ नग्न रहने में हिचकते नहीं थे। हाँ - यह अवश्य था कि माँ और पापा शिष्टाचार के नाते ससुर जी के सामने नग्न नहीं होते थे, और ससुर जी भी कभी नहीं। माँ पापा के नग्न न होने का शायद एक प्रैक्टिकल कारण भी था - माँ को नग्न देख कर पापा उत्तेजित हो जाते हैं, और वो नहीं चाहते कि ‘बाबूजी’ के सामने उनकी ‘वैसी’ हालत हो। माँ भी उनके सामने पूर्ण नग्न होने से बचती हैं - हाँ, अगर हम बच्चों को स्तनपान करना हो, तो वो उनकी उपस्थिति में भी कभी मना नहीं करतीं।

“इसलिए,” उन्होंने कहना जारी रखा, “कम से कम तुम अपने माँ बाप का साथ न छोड़ना...”

“डैडी... ये देखिए! आप भी मेरे पीछे पड़ गए...” मैंने हँसते हुए कहा, “मैंने तो खुद ही बोला है कि मैं माँ पापा के पास सोऊँगा आज... फिर भी!”

“आज ही नहीं, रोज़...” वो बोले।

“डैडी,” मिष्टी ने कहा, “आप अपनी मम्मा के साथ सोइये, और मैं अपनी मम्मा के साथ...”

लतिका ने हँसते हुए मिष्टी को अपने आलिंगन में भर लिया। मैंने भी बाहें पसार कर मुझे माँ के आलिंगन में भरने का अनुरोध किया, तो माँ ने भी मुझे अपने आलिंगन में भर लिया।

“आSS मेरा बेटू,” माँ ने लाड़ से कहा, “... मेरा सबसे प्यारा बेटा है... मेरी सब बातें मानता है!”

लतिका ने ये सुनते ही तपाक से कहा, “मम्मा... ये तो चीटिंग है... आप कहती थीं कि मैं आपकी बेटू हूँ... सबसे प्यारी...”

“तो क्यों नहीं आती मेरे पास? हम्म?”

“हा हा... मम्मा, ये तो इमोशनल ब्लैकमेलिंग है... मैं तो हमेशा आपके ही पास होती हूँ! ... ठीक है, मैं अपनी बड़ी बेटी को सुला कर आती हूँ...”

“ठीक है...”

“अच्छा बच्चों,” ससुर जी ने उठते हुए कहा, “मैं भी सो जाता हूँ... गुड नाईट बच्चों!”

“गुड नाईट डैडी...” मैंने कहा, और उठने लगा।

बाकी लोगों ने भी उनको शुभ-रात्रि कह कर विदा ली।

“माँ... मुझको बस दस मिनट दीजिए,” मैंने माँ से कहा, “ऑफिस का एक बहुत छोटा सा, लेकिन ज़रूरी काम फ़िनिश कर के आपकी शरण में आ जाऊँगा।”

“ठीक है बेटे...”

बीस मिनट बाद जब मैं माँ पापा के कमरे में पहुँचा, तो वहाँ लतिका पहले से ही मौजूद थी। बच्चों को सुला कर वो शायद एक दो मिनट पहले ही आई थी। लतिका पूरी तरह से नग्न थी और माँ के स्तन से दूध पी रही थी। समझ में आता है कि पापा माँ को नग्न देख कर क्यों हमेशा उत्तेजित हो जाते हैं। जब इतनी सुन्दर सी, इतना प्रेम करने वाली पत्नी हो किसी की, तो अपनी पत्नी को नग्न देख कर वो आदमी उत्तेजित हुए बिना नहीं रह सकेगा। लिहाज़ा उसको यूँ देख कर मेरे लिंग में भी उत्तेजना की लहर दौड़ गई... माँ पापा की मौजूदगी में भी!

“आ जा बेटा...” माँ ने कहा।

मैं भी माँ के पास बड़े हक़ से जा कर उनका स्तनपान करने लगा। माँ बारी बारी से हम दोनों के सर को चूम लेतीं। दूध पीते हुए हमारे चेहरे बहुत पास थे - हम एक दूसरे की साँसों की महक को महसूस कर पा रहे थे। पिछले कुछ दिनों से लतिका से लिपट कर सोने का मन हो रहा था - उसका भी ऐसा ही मन था। लेकिन कुछ न कुछ ऐसा हो जाता कि हमारी इच्छा पूरी ही न हो पाती। मैं माँ पापा के सामने स्वयं पर बहुत नियंत्रण रखता हूँ, लेकिन जब उत्तेजना एक हद से अधिक समय के लिए दबा कर रखी जाए, तो कभी न कभी सर उठा ही लेती है। फिलहाल मेरे साथ भी यही हो रहा था। मेरा लिंग हर बीतते क्षण के साथ और कड़क होता जा रहा था और अब मेरा उस पर से कोई भी नियंत्रण समाप्त हो गया था।

माँ ने देखा कि मेरी क्या हालत हो गई थी। उनको मालूम था कि कोई चार साल पहले रचना के साथ के बाद, मैं कभी भी किसी रेलशनशिप में नहीं पड़ा। एक समय था जब मेरी बेहद सक्रिय और सफल सेक्स लाइफ थी। लेकिन एक लम्बे समय से सब सूखा सूखा था मेरे जीवन में! उनको शायद मुझ पर दया आ गई, तो उन्होंने लतिका का हाथ पकड़ा और मेरे स्तंभित लिंग पर रख दिया। लतिका तुरंत समझ गई कि उसके हाथ में क्या आ गया है। उसने नीचे देखा तो मेरे लिंग की हालत देखी। वो पहले तो झिझकी, लेकिन उसने लिंग से हाथ हटाया नहीं, लेकिन और कुछ किया भी नहीं। माँ ने ही उसकी मुट्ठी को मेरे लिंग पर आगे पीछे फिराते हुए उसको यूँ ही करने का प्रोत्साहन दिया, तो लतिका अपनी शर्म छोड़ कर धीरे धीरे वैसा ही करने लगी।

“दुल्हनिया,” पापा ने माहौल को सामान्य रखने की गरज से कहा, “... अम्मा के जैसे बिहैव कर रही हो आज तो!”

“अम्मा के जैसे? ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?” माँ ने पूछा।

“अरे... हमारे बेटा बहू... दोनों को साथ में दूध पिला रही हो...” पापा बोले, “अम्मा की ही तरह...”

“अरे...” पापा की बात पर मैंने चौंकने का नाटक करते हुए पापा से पूछा, “तो क्या अम्मा आप और माँ... दोनों को... साथ में...?”

जबकि यह बात हम सभी को पता थी। मैं भी माँ और पापा को छोटे बच्चों की तरह अम्मा के स्तनों से लगा हुआ कई बार देखा था। हाँ, वो अलग बात थी कि मेरे आते ही मुझे तरजीह मिल जाती थी।

“और नहीं तो क्या!” पापा ने बड़े अभिमान से बताया।

“पापा,” मैंने कहा, “... आप अपने और माँ के रोमांस के बारे में बताईए न कुछ?”

“हा हा...”

“पापा... आप हर बार टाल जाते हैं! ... कुछ तो बताईये! ऐसे थोड़े ही होता है।” मैंने ज़ोरदार अपील करी।

“क्या कहती हो जानेमन,” पापा ने माँ से कहा, “बता दें बेटे को?”

“चुप रहिए... आप भी बच्चों के साथ बच्चे बन जाते हैं!”

“बोऊ-दी, डोंट बी अ स्पॉइल स्पोर्ट!” लतिका ने भी ठुनकते हुए कहा, “बताओ न दादा!”

लतिका को मुझसे कहीं अधिक मालूम था माँ और पापा के रोमांस के बारे में! वो भी चाहती थी कि मुझे पता चले कुछ। इसलिए उसने भी मेरा समर्थन किया।

“भाग्यवान देखो न...” पापा माँ के सामने बिस्तर पर बैठ कर उनके पैरों को अपने ऊपर रखते हुए बोले, “बच्चे ज़िद कर रहे हैं! ... थोड़ा बहुत बता देता हूँ न!”

बताने का मूड उनका भी था ही। माँ भी कोई इसके विरोध में नहीं थीं। ख़ास कर अब, जब हम अपने इस छोटे से संसार में अच्छे से सुरक्षित थे। मुझे पापा की यह हरकत बहुत क्यूट सी लगी। प्यार करना एक बात है, लेकिन पापा माँ को लाड़ भी बहुत करते हैं। माँ की ख़ुशियों के पीछे इस बात का भी बड़ा योगदान है।

“इनके पाँव मुझे बहुत सुन्दर लगते हैं,” पापा ने माँ के पैरों को चूमते हुए कहा, “... वैसे तो इनका सब कुछ ही बहुत सुन्दर है, लेकिन पाँव मुझे बहुत पसंद हैं!”

“बस पाँव ही दादा,” लतिका ने खिलखिला कर हँसते हुए कहा।

“चुप!” माँ ने उसको डाँटा... ऐसी अंतरंग बातें बाहर आने से उनको शर्म आ रही थी, “बदमाश!”

“... तो इनको प्रोपोज़ करने के लिए भी मैंने पाँव का ही सहारा लिया,” पापा ने लतिका की बात को नज़रअंदाज़ कर दिया, और फिर से माँ के पाँव चूमते हुए बोले, “राजकुमार का वो फेमस डॉयलाग मारा...”

“फिर पापा?” मैंने हँसते हुए पूछा।

“उसी डॉयलाग का असर था कि इनको लगा कि मैं शायद सीरियस हूँ...”

“हा हा... शायद!”

“और क्या! ... पूरा इंटरव्यू लिया था इन्होने!”

“मैंने कब लिया आपका इंटरव्यू?” माँ ने ऐतराज़ जताया।

लेकिन पापा पूरी तरंग में थे!

माँ के ऐतराज़ को नज़रअंदाज़ करते हुए बोले, “ये मुझको बोलीं, ‘जो कहना है आज ही कह दो... आज जितनी पेशेंट फिर नहीं रहूँगी कभी...!’

“और आपने मौके पे चौका मार दिया...” मैंने हँसते हुए कहा।

“चौका वौका नहीं... बस, जैसे तैसे अपना विकेट बचा पाया बेटा!” पापा भी हँसते हुए बोले।

“आप और आपकी कहानियाँ...” माँ को वैसे तो पुरानी बातें याद कर के रोमाँच हो रहा था, लेकिन वो ये बात जाहिर नहीं होने देना चाहती थीं, “बच्चों को कुछ भी अनर्गल बता रहे हैं...!”

“अनर्गल? ... अरे जानते हो अमर बेटे? बाबूजी इनके लिए एक आई ए एस लड़का ढूंढ लाए थे...”

“क्या?” मैं चौंका।

“और क्या! ... तुम्हे नहीं मालूम?”

मुझे यह बात वाक़ई नहीं मालूम थी। मैंने ‘न’ में सर हिलाया।

“ये तो गलत बात है! ये सब बातें मुझे किसी ने भी नहीं बताईं!”

“हा हा! उस मुझे लगा कि मेरा पत्ता साफ़ हो गया... सोचो न बेटे... जिस दिन अपनी मेहबूबा को प्रोपोज़ करो, उसी दिन तुम्हारा कम्पटीशन भी आ खड़ा हो, तो कैसा लगेगा तुमको?”

“बाप रे पापा! यू आर सो ब्रेव...”

“हा हा... सच में, उस समय मुझे लगा कि बस भई, काम ख़तम हो गया मेरा! ... लेकिन उस इंटरव्यू का बढ़िया इम्प्रैशन पड़ा था इन पर... इसलिए मेरा विकेट बच गया!” पापा ने हँसते हुए कहा।

माँ का चेहरा शर्म से लाल हो गया था अब तक।

“ओह, आई ऍम सो हैप्पी, पापा!” मैंने पूरी ईमानदारी से कहा, “... मैं आपके अलावा किसी और को पापा न कह पाता...”

“अरे! तुम मेरे बेटे हो... मेरे! ... किसी और को पापा क्यों कहोगे?” पापा ने माँ को देख कर आगे कहा, “है न दुल्हनिया?”

माँ मुस्कुराईं और उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“पापा,” मैंने थोड़ा सीरियस हो कर पूछा, “एक बात पूछूँ आपसे?”

“हाँ बेटा...”

“... आपको माँ कब से पसंद हैं?”

पापा ने मुझे देखा फिर माँ को। यही सवाल वो पहले भी सुन चुके थे - लेकिन माँ से।

“बुरा तो नहीं मानेगा मेरा बेटा?”

पापा...” मैंने कुछ इस लहज़े में कहा कि जैसे उनकी बात सुन कर मुझे अच्छा नहीं लगा, “यू नो हाऊ आई फ़ील अबाउट यू! फिर मैं आपकी बात का बुरा क्यों मानूँगा? आप मेरे पापा हैं... बट आई जस्ट वांट टू नो! क्यूरिऑसिटी... दैट्स ऑल!”

उन्होंने सर हिलाया, और बोले, “यही कोई सोलह सत्रह साल से...?”

वाओ!” मैंने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा, “तो माँ आपके बचपन का प्यार हैं?”

“हा हा... हाँ... लेकिन तब ये मुझे अपना बेटा बनाना चाहती थीं!” पापा हँसते हुए बोले, “... लेकिन...”

“लेकिन?”

“लेकिन मुझे तो इनके साथ अपना संसार बनाना था न! मुझे इनसे अपने बेटा बेटी चाहिए थे... हमारे प्यार की निशानियाँ! तो फिर इनका बेटा कैसे बनता?”

मैं मुस्कुराया।

“अम्मा भी इनको बेटी के जैसे चाहती थीं... इन पर जाहिर नहीं होने देती थीं, लेकिन पसंद इनको बहुत करती थीं! ... मुझसे हमेशा ही कहतीं, कि ‘दीदी’ से अच्छी बहू नहीं मिल सकती किसी को!” पापा ने बताया, “मुझे तब पक्का यकीन हो गया कि मेरी पसंद सबसे अच्छी है!”

पापा की बात पर माँ शर्म और गर्व दोनों भावों से मुस्कुराईं।

“आSS... दिस इस सो क्यूट दादा!” लतिका बोली।

“लेकिन पापा... माँ ने आपका प्यार कब एक्सेप्ट किया?”

“उसी दिन... शायद एक कम्पटीशन आने पर इनको मेरी वैल्यू समझ में आई हो...” पापा हँसते हुए बोले।

“हाँ हाँ... सब गप्प सुनाते रहिए बच्चों को!” माँ ने पापा की छेड़खानी का मीठा विरोध किया, “... मैंने तो बाबूजी का प्रपोजल कंसीडर भी नहीं किया था...”

“आप कंसीडर करतीं भी तो कैसे माँ?” मैंने मंत्रमुग्ध हो कर कहा, “अनजाने ही सही, लेकिन आपको भी तो पापा से प्यार हो ही गया था न?”

माँ ने कुछ कहा नहीं लेकिन उनके गाल लाल हो गए।

“बोलिए न बोऊ-दी?”

“मैं कंफ्यूस हो गई थी बच्चों... ये तो उस समय मेरे लिए बच्चे जैसे ही तो थे, इसलिए इनके मुँह से वो सब बातें सुनना बड़ा अजीब लग रहा था। लेकिन... लेकिन जब थोड़ा ठहर के सोचा, तो यह ज़रूर समझ में आया कि ये सीरियस हैं...”

“वो कैसे लगा आपको?”

“बहुत सी बातें थीं बेटा... इन्होने जिस तरह से पहले दिन से मुझे डिप्रेशन से निकालने के लिए खुद को झोंक दिया... जिस तरह से ये मुझसे बातें करते थे... जिस तरह से ये मुझे देखते थे... ऐसी ही बहुत सी बातें!” माँ जैसे पुराने दिनों को फिर से जीने लगीं, “... मैंने इनको डिसकरेज करने की कितनी कोशिश करी... पता है?

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“इनको हमेशा से बच्चे बहुत पसंद रहे हैं... तो मैंने इनको यहाँ तक भी कह दिया कि बूढ़ी हो गई हूँ मैं... अगर बच्चे नहीं हो पाएँगे, तो...”

“फ़िर?”

माँ थोड़ा सा झिझकीं और शरमाईं, फिर बोलीं, “इन्होने मुझसे कहा कि ‘सुमन... मेरे लिए पहले तुम हो... कुछ न हो लेकिन तुम रहो... और अगर हमारे नसीब में बच्चे हैं, तो होंगे ही... न हुए, तो भी मुझे कोई दुःख नहीं होगा, क्योंकि तुम मेरे साथ होगी!’”

“बाप रे दादा... हाऊ प्राउड आई ऍम ऑफ़ यू!” लतिका गर्व और आश्चर्य से बोली, “दैट वास सो मैच्योर ऑफ़ यू टू से!”

“प्यार करता हूँ...” पापा ने फिर से माँ के पैरों को चूम कर कहा, “प्यार की ताक़त बहुत बड़ी होती है! ... सब सिखा देती है!”

“आप माँ से केवल प्यार ही नहीं, बल्कि उनको दुलार भी बहुत करते हैं!”

“हा हा... दुलार मैं नहीं, अम्मा करती हैं... मैं तो बस इनको खुश रखने की कोशिश करता हूँ! बस! बीवी खुश, तो लाइफ खुश! ... पता है बेटा, जिस दिन हमारी इंगेजमेंट हुई थी, उसी दिन से अम्मा ने ठान लिया कि वो अपनी शोन चिरैया बहू को अपना अमृत देंगी!”

“हाँ हाँ... जैसे आपको कुछ मिलता ही नहीं!” माँ बोलीं।

“हाँ मिलता है... अम्मा साथ ही साथ पिला देती हैं!”

“माँ,” मैंने माँ से कहा, “आप कुछ भी कह लें, लेकिन यू आर सो लकी एंड सो लव्ड!”

“आई नो...” माँ ने सहमत होते हुए कहा।

“बिल्कुल हैं... कुछ महीनों से अम्मा का सारा प्यार केवल इनको ही मिलता है! मुझे नहीं!” पापा ने बताया।

“हाँ! अम्मा का प्यार है... उनका मन जिसको देने का करेगा, उसको देंगी! ... आप क्यों जलते हैं?” माँ ने कहा।

“जल नहीं रहा हूँ जानेमन! ... बात निकल आई, तो बता रहा था!”

“जलन तो साफ़ दिखाई दे रही है दादा...”

“तू अपना काम कर...”

“हाँ हाँ... कर रही हूँ! वैसे दादा, आप कुछ भी कह लो...” लतिका भी पापा को छेड़ने लगी - वो अपनी मम्मा - बोऊ-दी की पूँछ थी, और हमेशा उन्ही की तरफ़दारी करती थी, “... लेकिन, जलने की बड़ी तेज़ बू आ रही है दादा...”

“नंगू नंगू बाबा...” पापा ने लतिका को शेम शेम करने की कोशिश करी।

“ये वाला नहीं चलेगा दादा... मैं तो आप दोनों के सामने हमेशा नंगी रह सकती हूँ! ... इसलिए ये कह कर आप मुझे नहीं छेड़ सकते!” लतिका माँ की गोद में सेटल होते हुए पापा को छेड़ती हुई बोली, “छेड़ना चाहो तो छेड़ लो, लेकिन मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा... और, उससे आपका जलना कम थोड़े ही हो जाएगा!”

लतिका की इस बात पर पापा निरुत्तर हो गए।

“हा हा... आप दोनों न!” माँ ने वापस लतिका को अपने स्तन से चिपकाते हुए कहा, “बिलकुल बच्चों जैसे झगड़ते हैं...”

“झगड़ा नहीं दुल्हनिया, प्यार है ये...” पापा ने कहा और लतिका के पुट्ठे पर दाँत से काट लिया।

“आऊ... दादा! नॉट फनी!”

वेरी फनी...” कह कर पापा ने उसका दूसरे पुट्ठे पर भी काट लिया।

“आऊ!! बोऊ-दी देखिए... आपका हस्बैंड कटखना कूकुर बन गया है!”

अपने लिए ऐसी छेड़खानी पर पापा ने फिर से उसके पुट्ठे को काटा।

“दादा... दुखता है!” लतिका ने जहाँ काटा गया था, वहाँ सहलाते हुए कहा।

“ओह सॉरी बेटा...” कह कर जहाँ काटा था वहाँ चूम लिया।

उधर लतिका के सहलाने पर मेरा लिंग अपने पूर्ण उत्थान पर था। माँ ने जब मेरी हालत को देखा तो लतिका को छेड़ने लगीं,

“ओ मेरी ननदिया... मेरे बेटे के छुन्नू की ऐसी हालत कर के छोड़ मत... इसका टेक केयर करना तेरी ज़िम्मेदारी है!” माँ ने लतिका को छेड़ते हुए वापस उसका हाथ मेरे लिंग पर रख दिया।

बोऊ-दी!” लतिका ने शर्म से झिझकते हुए कहा।

“क्या बोऊ-दी!” पापा ने तुरंत ही सूत्र पकड़ लिया अपनी बहन को छेड़ने का, “सही तो कह रही हैं तेरी बोऊ-दी... मेरे बेटे की देखभाल तुमको ही तो करनी है!”

“हाँ तो कर लूँगी न... मैंने कब मना किया? ... लेकिन पहले आप हमारी शादी तो करवाओ!”

“हाँ हाँ! अब समय ही कितना है? कुछ ही हफ़्ते हैं बस...” माँ ने आनंदित होते हुए कहा।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अचिन्त्य - Update #28


“अच्छा, तुम दोनों बच्चों आराम से दुद्धू पियो... मैं ज़रा तुम दोनों की तस्वीर ले लूँ!”

“वो क्यों पापा?”

“तुम तीनों बहुत प्यारे लग रहे हो, इसलिए!”

पापा ने कहा और कैमरा निकाल कर उसमें कोई सेटिंग करने लगे।

फिर हम तीनों की तस्वीरें उतारते हुए उन्होंने कहा, “हमारा परिवार न... बहुत प्यारा है... और मैं चाहता हूँ कि हम हमेशा ऐसे ही रहें!”

“हाँ... ये बात तो आपने सही कही! ... नज़र न लग जाए मेरे बच्चों को!” माँ बोलीं।

“बोऊ-दी! आपकी नज़र अब हमको लगेगी!”

“हा हा हा...” माँ ने हँसते हुए कहा, “अच्छा एक बात बता मुझे... तू मुझे बोऊ-दी कहना कब बंद करेगी?”

“कभी नहीं!” लतिका ने तपाक से उत्तर दिया, “आप पहले मेरी बोऊ-दी हो, फिर सासू माँ!”

“अरे... लेकिन बोऊ-दी बनने से पहले जो मम्मा मम्मा कह कर मेरे आगे पीछे रहा करती थी, वो?”

“हाँ वो भी ठीक है! ... मम्मा... बोऊ-दी... और अब, माँ!” लतिका बोली, “आप तो हर रूप में मेरी माँ ही हैं!”

माँ मुस्कुराईं और लतिका के माथे को चूम कर बोलीं, “हाँ! वो तो मैं हूँ!”

“लेकिन बोऊ-दी, मेरा तो डिमोशन हो गया...”

“वो कैसे?”

“देखिए न... आपके बेटे से शादी कर के मैं अपनी ही अम्मा की पोती बनने वाली हूँ!”

“हा हा... बड़ा प्यारा सा डिमोशन है न? मेरा भी तो ऐसा ही हुआ न... पहले मैं अम्मा की माँ थी, फिर उनकी दीदी बनी, और अब, बेटी! ... लेकिन उनकी बेटी बन के मुझे जो आनंद मिला है, वो पहले कभी नहीं मिला!”

“हाँ... आप तो अम्मा की शोन चिरैया हैं...”

“हाँ... तेरे साथ भी ऐसा ही होगा! कुछ डिमोशन मिलेगा, तो कुछ प्रोमोशन... अभी तू लड़की है, फिर माँ बनेगी! ... और मेरी शोन चिरैया तो तू है ही!”

“ओह मम्मा... आई लव यू!”

“लव यू टू बेटू...”

कुछ देर मैं और लतिका आनंद से माँ के स्तनों से दूध का आनंद लेते रहे। हाँलाकि अब माँ को पहले से अधिक दूध बन रहा था, लेकिन फिर भी, जब दो वयस्क दूध पीते हैं, तो स्तन जल्दी से खाली हो जाते हैं।

“दुद्धू खम्म हो गया बेटू,” माँ ने हम दोनों को बारी बारी से चूमते हुए, बड़े दुलार से कहा।

“खम्म हो गया?” पापा जो कुछ देर से अलग थलग पड़े हुए थे, अचानक की जागृत हो गए, “बढ़िया! बेटे, चलो अब तुम अपनी दुल्हनिया को पकड़ो... और मुझे मेरी दुल्हनिया पकड़ने दो!”

“व्हा... हा हा हा...” माँ हँसती हुई बोली, “आप भी न! बच्चों के सामने भी...”

अपने दादा की बात सुन कर लतिका शर्म से लाल हो गई।

मुझे वो सुझाव उम्दा लगा। लेकिन वो बाद में!

“पापा,” मैंने उनकी बात को फिलहाल नज़रअंदाज़ कर के कहा, “आप दोनों ने इस बार मैटरनिटी शूट करवाया?”

“अरे कहाँ बेटे... इस बार तो फुर्सत ही नहीं मिली! ट्रांसफर के चक्कर में...”

“हाँ हाँ... कोई बात नहीं!” मैंने उनकी बात काटते हुए कहा, “चलिए, मैं करता हूँ आप दोनों का मैटरनिटी शूट!”

“अभी?”

“तो और कब?”

“अरे बेटे, हम तैयार ही नहीं हैं... और सोने का टाइम भी हो गया है!” माँ ने कहा।

“माँ... पापा... आप दोनों को तैयार होने या मेकअप करने की कोई ज़रुरत नहीं है! ऐसे ही बहुत सुन्दर लगते हैं आप... और अभी बस एक छोटा सा इंटिमेट शूटिंग कर लेते हैं आप दोनों की!”

“धत्त...” माँ शर्मा गईं।

“अरे नहीं भाग्यवान,” पापा को आईडिया अच्छा लगा, “ये तो बढ़िया विचार है! ... बताओ बेटे क्या करना है?”

“कुछ भी अलग नहीं पापा... बस, माँ को प्यार से किस करना है आपको!”

“बस?” पापा ने निराश होने का नाटक करते हुए कहा, “मुझे लगा और भी करने का स्कोप है!”

“हा हा... हाँ, स्कोप है, लेकिन बाद में!”

थोड़ा मनाने पर माँ फ़ोटो शूट के लिए तैयार हो गईं।

इंटिमेट शूटिंग थी, इसलिए मेरे कुछ मनाने पर वो निर्वस्त्र हो गईं। पापा हिचक रहे थे कि अपने बेटे और छोटी बहन के सामने कैसे करें? लिहाज़ा उन दोनों को सहज होने देने की गरज से मैंने कमरे की बत्ती ऑफ कर दी, और एक हल्की सी बत्ती इस तरह जला दी कि बस उनकी छाया दिखाई दे, वो दोनों नहीं। तब जा कर पापा भी निर्वस्त्र हुए।

मैंने डिजिटल कैमरे से उन दोनों की कुछ बड़ी ही रचनात्मक, श्वेत-श्याम छाया-आकृतियाँ खींचीं। कुछ चित्रों में पापा माँ के उभरे हुए गर्भ को चूम रहे थे, तो किसी में वो उसके स्तनों को, तो किसी में उनके होंठों को! जब पापा ने उन तस्वीरों को कैमरे की स्क्रीन पर देखा, तो बहुत खुश हुए। मैटरनिटी शूट का आईडिया बड़ा मस्त लगा उनको। कुछ ऐसी ही और तस्वीरें उतारी मैंने। कुछ तस्वीरों में इनका लिंग पूरी तरह से उत्तेजित दिख रहा था - अब समझ आया कि वो निर्वस्त्र होने में क्यों हिचक रहे थे।

लतिका उनकी हालत देख कर हँसने लगी।

“अबे चुप!” पापा ने उसको डाँटा।

“पापा, इट्स ओके!” मैंने कहा, “आपके बच्चों को भी तो पता चलना चाहिए न...”

“बदमाश... क्या पता चलना चाहिए बच्चों को?”

ऐसे हँसी मज़ाक से माहौल हल्का हो गया और मैंने उन दोनों की कई सारी तस्वीरें उतारीं। कुछ देर में जब उन दोनों को थोड़ी सहजता हुई, तब कमरे की बत्ती भी जला दी। कुछ तस्वीरों में वो माँ के पीछे, उनके स्तन अपनी हथेलियों से छुपा कर खड़े हुए थे, तो कुछ में माँ उनकी गोदी में बैठी हुई थीं। बड़ी सुन्दर तस्वीरें आई थीं।

मैंने वो सब सभी को दिखाते हुए कहा, “कल और निकालूँगा... आप दोनों फ़ैशनेबल कपड़े पहन कर तैयार हो जाइयेगा! हम सब भी होंगे फोटोशूट में!”

“हाँ! ये तो बहुत अच्छा है!” पापा ने कहा, “मुझे ठीक से सिखा देना बेटे कि फोटोग्राफी कैसे करते हैं... तुम्हारा और लतिका का प्रेगनेंसी शूट मैं ही करूँगा!”

“हा हा! ठीक है पापा,” मैंने हँसते हुए उत्तर दिया और कमरे से निकलने लगा।

“अरे, कहाँ जा रहा है?”

“अपने कमरे में पापा!”

“यहीं सो जा न! ... तू भी पुचुकी... यहीं रुक जा!”

“ओके दादा!” वो तुरंत तैयार हो गई, और भाग के माँ के सीने से लग गई।

“अरे बस भी कर लालची लड़की...” पापा ने फिर से उसको छेड़ा, “कुछ मेरे लिए भी छोड़ दे!”

उत्तर में लतिका ने उनको जीभ निकाल कर और अपने दोनों कानों पर अँगूठा सटा कर अपनी उँगलियाँ हिलाते हुए चिढ़ाया। लेकिन फिर उन पर दया कर के वो माँ पर से हट गई।

“आइये दादा जी,” उसने बड़े नाटकीय अंदाज़ में कहा, “सम्हालिए अपनी दुल्हनिया को!”

अंततः पापा को अपनी पत्नी के साथ अंतरंग होने का अवसर मिल ही गया। पापा माँ को आँख मारते हुए बिस्तर पर आए और उनके एक स्तन को थोड़ा दबाते हुए बोले,

“दुल्हनिया मेरी... आई लव यू!”

और फिर उनके स्तनों को चूमने और चूसने लगे। अपने प्रेम द्वारा प्रेम किए जाने का एहसास ऐसा होता है जो कोई अन्य नहीं दे सकता। पापा के होंठों का स्पर्श पा कर माँ की आँखें बंद हो गईं। हमको स्तनपान कराते समय उनके चेहरे पर जो ममता वाला भाव आता है, वो तो यूँ चुटकी बजाते ही गायब हो गया था, और अब उनके चेहरे पर वासना साफ़ साफ़ दिखाई देने लगी थी। पापा को चोरी छुपे माँ के स्तनों को प्यार करते मैंने देखा है, लेकिन यूँ अपने बगल बैठ कर कभी नहीं।

उनकी उत्तेजना भी चरम पर थी, और मेरी भी... और इस समय हम दोनों के पास अपनी अपनी दुल्हनिया थीं!

इस घर में यह सबसे बड़ा बिस्तर था - किंग साइज़। लिहाज़ा, इस पर जगह भी बहुत थी। माँ पापा जानबूझ कर बिस्तर के एक तरफ़ थे शायद, जिससे मुझे और लतिका को समुचित स्थान मिल सके। मैंने देखा कि लतिका कभी उनकी तरफ़ देखती, तो कभी मेरी तरफ! मैंने भी हाथ बढ़ा कर उसके एक स्तन पर रखा, तो उसने चौंक कर मेरी तरफ़ देखा। वो कुछ कहती या करती, उसके पहले उसका भी एक चूचक मेरे मुँह में समां गया। साथ ही मेरा हाथ उसकी योनि के साथ छेड़खानी करने लगा।

अपने फोरप्ले के दौरान माँ लतिका की अपेक्षाकृत स्थिर थीं - शायद गर्भावस्था के कारण! लेकिन लतिका का शरीर, मेरी इस छेड़खानी से छटपटाने लगा। छटपटाने भी लगा और उत्तेजनावश थरथराने भी! अच्छा संकेत था यह - बहुत साफ़ सी बात थी कि लतिका भी उत्तेजित थी और सम्भोग के लिए पूरी तरह से तैयार थी। थोड़ी ही देर में वो बिस्तर पर चित हो कर गिर गई और मैं उसके ऊपर आ गया। मेरा लिंग उसकी योनि पर दस्तख दे रहा था और मैं वहाँ की गीली चिकनाई को अपने लिंग पर महसूस कर रहा था।

उधर माँ की हालत भी कमोवेश लतिका जैसी ही थी। पापा और माँ को गर्भावस्था के दौरान भी सम्भोग करने का बड़ा अनुभव था। जब डेवी गर्भवती थी, तब हमने कोई जोखिम न लेते हुए सम्भोग न करने का तय किया था। और जब भी हम सम्भोग करते, या तो वो मौखिक आनंद होता, या फिर मैं उँगलियों से देवयानी को परम सुख देता। डर लगा रहता कि कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाय! लेकिन पापा और माँ को सम्भोग करने से थोड़ा भी परहेज़ नहीं था। हाँ, वो सतर्क हो कर सम्भोग करते कि गर्भ में पल रहे बच्चे को चोट न लगे, लेकिन बाकी सब पहले जैसा ही था। माँ भी उत्तेजित थीं। एक बात मैंने नोटिस करी, और वो यह कि माँ पापा दोनों ही सम्भोग करते हुए बहुत सारी बातें करते थे, लेकिन आज दोनों ही असामान्य तरीके से चुप थे। शायद इसलिए क्योंकि बगल में मैं और लतिका भी थे। केवल आनंदमई कामुक कराहें ही निकल रही थीं।

मैं समझ रहा था कि उनका खेल बहुत देर नहीं चलेगा, क्योंकि मेरा और लतिका का खेल भी बहुत देर तक नहीं चलने वाला था। हम चारों की ही उत्तेजना अपने शिखर पर थी। मैथुन शुरू होने ही वाला था। माँ हमारी तरफ करवट कर के लेट गईं और पापा उनके पीछे। यह एक आरामदायक पोजीशन थी - इसको स्पून पोजीशन भी कहा जाता है। पापा ने स्वयं को माँ के पीछे कुछ इस तरह व्यवस्थित किया कि माँ का पैर उनके पैर पर आ गया और उनकी जाँघ खुल गई। इससे पापा को माँ की योनि में प्रवेश करने का स्थान भी मिल गया।

पापा को माँ की योनि में प्रवेश करते देखना एक सपनीला सा अनुभव था। आज से पहले जब भी मैंने इनको सम्भोग करते देखा था, तब केवल सम्भोग करने के दौरान देखा था। लेकिन आज उनकी प्रणयलीला का सब कुछ मेरे सामने ही हो रहा था। आश्चर्य की बात यह थी कि हाँलाकि वो दोनों लगभग रोज़ ही सम्भोग करते थे, लेकिन फिर भी माँ की योनि पापा के लिंग के लिए छोटी लग रही थी। हाँ, लेकिन एक बात थी कि उनका लिंग सरलता से अंदर फिसल गया। अंदर प्रविष्ट होने पर पापा ने माँ को भोगने में एक क्षण भी व्यर्थ नहीं किया और बड़ी तसल्ली वाले लय में वो दोनों सम्भोग करने लगे।

मैंने लतिका की तरफ देखा - वो भी उन्ही दोनों को देख रही थी। उसने मेरी तरफ़ देखा - और हमारी आँखें चार हो गईं।

मैंने आँखों के ही इशारे से पूछा, ‘क्या?’

उसने आँखों और सर के इशारे से कहा, ‘हाँ’!

मैंने फिर से आँखों के इशारे से पूछा, ‘पक्का?’

उसने इस बार सर हिला कर इशारा किया, ‘हाँ!’

पता तो था कि चूँकि यह लतिका का पहला सम्भोग है तो दर्द होगा ही! लेकिन इस बार अच्छी बात यह थी कि उसकी योनि अच्छी तरह से चिकनी हो गई थी, और शायद अपनी बोऊ-दी को देख कर उसकी भी हिम्मत बंध गई थी। हाँलाकि आकार के अनुपात में मैं और लतिका, माँ और पापा के मुकाबले विषम थे, लेकिन वो सब मायने नहीं रखता। अपने सामने एक प्रेमी जोड़े का जीता जागता उदाहरण देख कर लतिका भी अब हमारी एक दूसरे के प्रति प्रतिबद्धता को पुख़्ता कर लेना चाहती थी।

मैंने खुद को लतिका की जाँघों के बीच व्यवस्थित किया और उसकी योनि को अपनी तर्जनी और अँगूठे से फैलाया। मैंने एक बार फिर से लतिका को देखा - उसकी आँखों में भय नहीं था। वो सम्भोग करना चाहती थी। आधा काम-युद्ध तो मनोस्थिति से ही जीता-हारा जाता है। अगर डर होगा, तो सम्भोग का आनंद नहीं लिया जा सकता। अगर डर नहीं, संकोच नहीं, तो आनंद ही आनंद है! मैंने शिश्नाग्र को उसकी योनि के मुहाने पर टिकाया और थोड़ा ज़ोर लगाया। पिछली बार के मुकाबले इस बार कम अवरोध महसूस हुआ। एक और धक्का - और अचानक ही मेरे लिंग की आधी लम्बाई लतिका की योनि में समां गई! लतिका अब मेरी थी!

“आह्ह्ह... अम्मा!” लतिका बहुत कोशिश कर के भी अपने दर्द की उद्घोषणा करने से न रोक सकी।

लतिका की कराह सुन कर माँ की आँखें भी खुलीं। उन्होंने मुझे लतिका के ऊपर देखा, तो स्वयं ही उनकी आँखें नीचे की तरफ़ चली गईं। हम दोनों को यूँ जुड़ा हुआ देख कर उनको अवश्य ही बहुत सुकून मिला होगा। वो मुस्कुराईं। पापा भी एक क्षण को रुक गए और हमारी तरफ देख कर मुस्कुराए। उन्होंने मुझे ‘थम्ब्स अप’ दिखाया और वापस माँ के साथ सम्भोग करने में व्यस्त हो गए।

माँ ने अपना हाथ बढ़ा कर लतिका का हाथ पकड़ लिया। उधर अब तक मैं सात आठ धक्के लगा चुका था। अब मेरा लिंग पूरी तरह से लतिका के अंदर तक जाने लगा था।

लतिका ने माँ की तरफ देखा,

“मम्मा,” वो बुदबुदाते हुए बोली, “इट हैपेंड मम्मा...

उसकी आँखों के कोनों से आँसू की एक पतली सी लकीर निकल रही थी, जो संभवतः आरंभिक तकलीफ के कारण हुई थी। इतना तो होना ही था, इसलिए मैं घबराया नहीं।

“हाँ बेटू... कॉन्ग्रैचुलेशन्स...”

लतिका लगभग पूरे सम्भोग के दौरान माँ का हाथ थामे रही। मैंने खुद को इस तरह से व्यवस्थित किया हुआ था कि मैं लतिका को भोगते हुए उसके स्तन भी चूस और चूम रहा था। मैंने भी आराम से सम्भोग करने का सोचा। छोटी योनि में अंदर बाहर होना सरल नहीं होता - योनि और लिंग दोनों ही चोटिल हो सकते हैं। इसलिए कम गति से ही सम्भोग करना ठीक था। मैं और कुछ नहीं सोच रहा था, बस यह कि लतिका हमारे प्रथम संसर्ग का पूरा पूरा आनंद उठाए। पहला सम्भोग अनुभव सबसे यादगार होता है, और मैं चाहता था कि मैं इस अनुभव को इतना आनंदमय बना दूँ, कि हमारे प्रथम सम्भोग की अमिट छाप लतिका के मन पर पड़ जाय।

लतिका के होंठों को चूमते, उसके कानों में ‘आई लव यू’ ‘आई लव यू’ कहते, उसके स्तनों को चूमते चूसते हुए मैं आराम से धक्के लगाता रहा। जब भी मुझे स्खलन का आभास होता, मैं कुछ देर रुक जाता और फिर से धक्के लगाने लगता। अनुभव से कह सकता हूँ कि हमारे पूरे सम्भोग के दौरान लतिका कम से कम दो बार अपने ओर्गास्म का सुख प्राप्त कर सकी।

उधर माँ पापा का सम्भोग कोई दस मिनट तक चला। पापा का उद्देश्य भी माँ को आनंद पहुंचाने का ही रहता है। वो दबी घुटी ‘हम्म’ ‘हम्म’ की आवाज़ें निकालते हुए माँ की योनि में ही स्खलित हो गए।

माँ के होंठों को चूम कर वो बोले, “... मज़ा आया दुल्हनिया?”

“बहुत...” माँ के गले से कूजन निकला। वो वाकई संतुष्ट हो गई थीं।

‘क्या बात है!’

कैमरा पास ही में रखा हुआ था। पापा ने न जाने क्या सोच कर मेरी और लतिका की तस्वीरें निकाल लीं। मुझे पता चला, लेकिन लतिका को नहीं - क्योंकि अपने दूसरे ओर्गास्म के आनंद में उसकी आँखें बंद हो गई थीं।

माँ पापा को रोक रही थीं, “करने दीजिए न...” उन्होंने फुसफुसा कर पापा को रोका।

पापा ने भी ‘हाँ’ में सर हिला कर कैमरा अलग रख दिया।

अंततः मेरा भी स्खलन निकट आ ही गया। मैंने एक बार सोचा कि बाहर स्खलित होता हूँ, लेकिन मन में वो सही नहीं लगा। लतिका मेरे मन में केवल मेरी प्रेमिका के ही रूप में नहीं, बल्कि पत्नी के रूप में भी स्थापित हो चुकी थी। और पति पत्नी के बीच जीवनप्रद रसायनों का आदान-प्रदान होना लाज़मी ही है। मैंने उसका चूचक चूसना छोड़ कर उसके होंठों को चूमना शुरू कर दिया। और उधर मेरा स्खलन भी होने लगा। कई बार, बड़े बड़े प्रस्फोटों में मेरा वीर्य लतिका की कोख में जमा हो गया। अंततः निढाल हो कर मैं उसके ऊपर ही ढेर हो गया।

कुछ देर तक तो ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे कानों में एक शांत संगीत बज रहा हो। ऐसी अनोखी अनुभूति। फिर मैं वापस धरातल पर आया और अपने नीचे लेटी लतिका का ध्यान आया। वो अभी भी गहरी गहरी साँसे ले रही थी। सम्भोग के दौरान अपने साथी को परम सुख दे पाना बहुत अच्छा लगता है।

“शादी मुबारक हो मेरे बच्चों!” पापा हमको बधाइयाँ दे रहे थे।

मैं उनकी बात पर मुस्कुराया! हाँ, सच भी तो है। एक तरह से लतिका और मेरा गन्धर्व विवाह तो हो ही गया था। और उस विवाह भी तो थे - माँ और पापा! बड़ी सुखद सी अनुभूति हुई। लतिका संग अमर! ईश्वर से एक बार यही प्रार्थना करी कि लतिका से मेरा साथ मरते दम तक न छूटे। बस!

“थैंक यू पापा...”

माँ ने कुछ नहीं कहा, बस, लतिका और मेरे माथे को बारी बारी चूम लिया। फिर बोलीं,

“चलो... अब दोनों जने सो जाओ! ... कल पुचुकी का एग्जाम भी तो है!”

माँ की बात सुन कर हम दोनों को ही याद आया!

‘ओ तेरी! हाँ... भूल ही गए थे!’

लव यू माँ... गुड नाईट मम्मी पापा...” मैंने उठते हुए कहा।

“गुड नाईट बेटे...” दोनों ने कहा, “लेकिन जा कहाँ रहे हो? ... आज तो हमारे साथ सोने की बात हुई थी न?”

“ओह हाँ!” कह कर मैं वापस लतिका को अपने आलिंगन में भर कर बिस्तर पर लेट गया।

“गुड नाईट बोऊ-दी... दादा...” लतिका ने मेरी इस हरकत पर हँसते हुए कहा।

“गुड नाईट बच्ची...” दादा बोले।

कुछ ही देर में हम सभी को गहरी नींद आ गई।

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