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वाकई नीरा बुद्धू हैनींव - पहली लड़की - Update 1
आज कल देखता हूँ तो पाता हूँ कि बच्चों के लिए अपनी शुरुआती किशोरावस्था में ही किसी प्रकार का ‘रोमांटिक’ संबंध रखना काफी औसत बात है। मैं और मेरी पत्नी अभी हाल ही में इस बारे में मजाक कर रहे थे। हम एक शॉपिंग मॉल में थे, जब मैंने देखा कि एक बमुश्किल से किशोर-वय जोड़ा एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए है, और एक दूसरे के साथ रोमांटिक अभिनय कर रहा है। मुझे यकीन है कि उन्हें शायद पता भी नहीं है कि यह सब क्या है, या यह कि वे एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हैं भी या नहीं। कम से कम मैंने तो उस उम्र में विपरीत लिंग के लिए आकर्षण या सेक्स की भावना कभी नहीं महसूस करी। मैंने इन दोनों ही मोर्चों पर शून्य था।
कॉलेज से पहले, मैंने कभी भी विपरीत लिंग के साथ किसी भी तरह के संबंध बनाने के बारे में नहीं सोचा था। वो भावना ही नहीं आती थी। कॉलेज में आने के बाद पहली बार मुझे ऐसा आकर्षण महसूस हुआ। उस लड़की का नाम रचना था। रचना एक बुद्धिमान लड़की थी... और उसके स्तन! ओह! मेरे लिए यह आश्चर्य की बात थी कि उस उम्र में रचना के पास इतनी अच्छी तरह से विकसित स्तनों की जोड़ी थी! पहले मुझे लगता था कि स्तन का आकार, लड़की की उम्र पर निर्भर करता है। लेकिन अब मुझे मालूम है कि अच्छा भोजन और स्वस्थ जीवन शैली स्तनों के आकर पर अपना अपना प्रभाव डालते हैं। रचना ने मुझे बाद में बताया कि उसके स्तनों की जोड़ी अन्य लड़कियों से कोई अलग नहीं है। बात सिर्फ इतनी थी कि उसने उन्हें ब्रा में बाँध कर रखा नहीं हुआ है।
रचना मेरे स्कूल में नई नई आई थी। उसके पिता और मेरे डैड एक ही विभाग में काम करते थे, और उसका परिवार हाल ही में इस कस्बे में स्थानांतरित हुआ था। जैसा कि मैंने पहले ही बताया है, उसे मेरे ही स्कूल में दाखिला लेना था। और कोई ढंग का विकल्प नहीं था वहाँ। जब मैंने पहली बार रचना को देखा, तो मैं उसके बारे में सोच रहा था कि वह कितनी सुंदर दिखती है। निःसंदेह, मैं उससे दोस्ती करना चाहता था। मेरे लिए यह करना एक दुस्साहसिक काम था, क्योंकि मुझे इस मामले में किसी भी तरह का अनुभव नहीं था। और तो और मुझे यह भी नहीं पता था कि लड़कियों से ठीक से बात कैसे की जाए! यह समस्या केवल मेरी नहीं, बल्कि स्कूल के लगभग सभी लड़कों की थी। स्कूल में लड़के ज्यादातर लड़कों के साथ ही बातचीत करते थे और लड़कियाँ, लड़कियों के साथ! माँ डैड को छोड़ कर मेरी अन्य वयस्कों के साथ बातचीत आमतौर पर केवल पढ़ाई के बारे में और मुझसे पाठ्यक्रम से प्रश्न पूछने तक ही सीमित थी। तो कुल मिला कर पास लड़कियों से बातचीत और संवाद करने में कोई भी कौशल नहीं था।
जब इस तरह की बाधा होती है, तो लड़कियों से दोस्ती करने वाले सपने पूरे नहीं होते। ऐसे सपने तब ही पूरे हो सकते हैं जब आपके जीवन में ईश्वरीय हस्तक्षेप हो। तो इस मामले में मुझे एक ईश्वरीय हस्तक्षेप मिला। मैं पढ़ाई लिखाई में अच्छा था - वास्तव में - बहुत अच्छा। एक दिन, हमारी क्लास टीचर, जो हमारी हिंदी (साहित्य, व्याकरण, कविता और संस्कृत) की शिक्षिका भी थीं, ने दो दो छात्रों के स्टडी ग्रुप्स बना दिए, ताकि हम एक दूसरे के साथ प्रश्न-उत्तर रीवाइस कर सकें। सौभाग्य से रचना मेरे साथ जोड़ी गई थी। क्या किस्मत! बिलारी के भाग से छींका टूटा! तो, हम आपस में प्रश्नोत्तर कर रहे थे, और बीच बीच में कभी-कभी बात भी कर रहे थे।
ऐसे ही एक बार मैंने कुढ़ते हुए कहा, “ये लङ्लकार नहीं, लण्ड लकार है..” [लकार संस्कृत भाषा में ‘काल’ को कहते हैं, और लङ्लकार भूत-काल है]
मैंने बस लिखे हुए एक शब्द के उच्चारण को भ्रष्ट किया था। लेकिन उतने में ही अर्थ का अनर्थ हो गया। मैंने सचमुच में यह नादानी में किया था, और मुझे इस नए शब्द का क्या नहीं मालूम था। यह कोई शब्द भी था, मुझे तो यह भी नहीं मालूम था। रचना मेरी बात सुन कर चौंक गई। सबसे पहले तो उसको मेरी बात पर विश्वास ही नहीं हुआ। वो मुझे एक ईमानदार और सभ्य व्यक्ति समझती थी। मैंने आज तक एक भी गाली-नुमा शब्द नहीं बोला था। बेशक, रचना हैरान थी कि मैंने ऐसा शब्द कैसे बोल दिया। खैर, अंततः उसने मुझसे कहा,
“नहीं अमर, हम ऐसी बात नहीं करते।”
“क्यों क्या हुआ?”
“क्या तुम इसका मतलब नहीं जानते?”
“किसका मतलब?”
“इसी शब्द का... जो तुमने अभी अभी कहा।”
“शब्द? कौन सा? तुम्हारा मतलब लण्ड से है?”
“हाँ - वही। और इसे ज़ोर से मत बोलो। कोई सुन लेगा।”
“सुन लेगा? अरे, लेकिन मुझे पता ही नहीं है कि इसका क्या मतलब है! क्या इसका कोई मतलब भी होता है?” मैं वाकई उलझन में था।
बाद में, लंच ब्रेक के दौरान रचना ने मुझे ‘लण्ड’ शब्द का अर्थ बताया। मुझे आश्चर्य हुआ कि एक लिंग का ऐसा नाम भी हो सकता है। जब मैंने उसे बताया कि लिंग के लिए मुझे जो एकमात्र शब्द पता था वह था ‘छुन्नी’, तो वो ज़ोर ज़ोर से वह हँसने लगी। उसने मुझे समझाया छोटे लड़कों के लिंग को छुन्नी या छुन्नू कह कर बुलाते हैं। लड़कियों के पास छुन्नी नहीं होती है। उसने मुझे यह भी बताया कि बड़े लड़कों और आदमियों के लिंग को लण्ड कहा जाता है। यह कुछ और नहीं, बस छुन्नी है, जिसका आकार बढ़ सकता है, और सख़्त हो सकता है। एक दिलचस्प जानकारी! है ना?
“अच्छा, एक बात बताओ। तुम्हारा छुन्नू ... क्या उसका आकार बढ़ता है?” रचना ने उत्सुकता से पूछा।
मुझे थोड़ा हिचकिचाहट सी हुई कि मेरी सहपाठिन मुझसे ऐसा प्रश्न पूछ रही है, फिर भी मैंने उसके प्रश्न की पुष्टि करी, “हाँ! बढ़ता तो है, लेकिन कभी-कभी ही ऐसा होता है।” फिर कुछ सोच कर, “रचना यार, तुम किसी को बताना मत!”
“अरे ये तो अच्छी बात है। छुन्नू का आकार तो बढ़ना ही चाहिए। इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं है। इसका मतलब है कि तुम अब एक आदमी में बदल रहे हो!” रचना से मुस्कुराते हुए मुझसे कहा, “वैसे मैं क्यों किसी को यह सब बताऊँगी?”
“नहीं! बस ऐसे ही कहा, तुमको आगाह करने के लिए। माँ और डैड को भी नहीं मालूम है न, इसलिए!”
“हम्म्म!”
“रचना?”
“हाँ?”
“एक बात कहूँ?”
“हाँ! बोलो।”
“तुम्हारे ... ये जो ... तुम्हारे दूध हैं न, वो मेरी माँ जैसे हैं।”
“सच में?”
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“हम्म इसका मतलब आंटी के दूध छोटे हैं।”
“हैं?”
“हाँ! मेरी मम्मी के मुझसे दो-गुनी साइज़ के होंगे। बाल-बच्चे वाली औरतों के दूध तो बड़े ही होते हैं न!”
“ओह!”
“मेरे उतने बड़े नहीं हैं। बाकी लड़कियों जितने ही हैं। लेकिन मैं शर्ट के नीचे केवल शमीज़ पहनती हूँ। बाकी लड़कियाँ ब्रा भी पहनती हैं!”
“ओह?”
रचना ने मेरा उलझन में पड़ी शकल देखी और हँसते हुए बोली, “तुमको नहीं मालूम कि ब्रा और शमीज़ क्या होती है?”
“नहीं!” मैं शरमा गया।
“कोई बात नहीं। बाद में कभी बता दूँगी। लेकिन एक बात बताओ, तुमको हमारे ‘दूध’ में इतना इंटरेस्ट क्यों है?” रचना ने मेरी टाँग खींची।
“उनमे से दूध निकलता है न, इसलिए!”
“बुद्धू हो तुम!” रचना ने हँसते हुए प्रतिकार किया, “मेरे ख़याल से ये शरीर के सबसे बेकार अंगों में से एक हैं। सड़क पर निकलो तो हर किसी की आँखें इनको ही घूरती रहती हैं। ब्रा पहनो तो दर्द होने लगता है। ठीक से दौड़ भी नहीं सकती, क्योंकि दौड़ने पर ये उछलते हैं, और दर्द करते हैं। तुम लोग तो अपनी छाती खोल कर बैठ सकते हो, लेकिन हमको तो इन्हे ढँक कर रखना पड़ता है!”
जाहिर सी बात है, रचना अपने स्तनों पर चर्चा नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैंने इस मामले को आगे नहीं बढ़ाया। लेकिन उस दिन के बाद से मैं और रचना बहुत अच्छे दोस्त बन गए। जब एक दूसरे की अंतरंग बातें मालूम होती हैं, तब मित्रता में प्रगाढ़ता आ जाती है।
उन दिनों लड़कियों का अपने सहपाठी लड़कों के घर आना जाना एक असामान्य सी बात थी। लेकिन एक अच्छी बात यह हुई कि हमारी माएँ एक दूसरे की बहुत अच्छी दोस्त बन गई थीं। क्योंकि जैसा कि मैंने आपको पहले भी बताया था कि हमारे पिता एक ही विभाग में थे। चूंकि, कक्षा में, रचना और मैं स्टडी पार्टनर थे, इसलिए हमारे माता-पिता के लिए हमें घर पर भी साथ पढ़ने की अनुमति देना तार्किक रूप से ठीक था। इसलिए, रचना और मैं दोनों ही एक-दूसरे के घर पढ़ाई के लिए जाते थे। वैसे रचना ही थी जो अक्सर मेरे घर आती थी, क्योंकि उसे मेरी माँ के हाथ का खाना बहुत पसंद था और वह उसका स्वाद लेने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी। उसकी माँ भी इसके लिए उसको रोकती नहीं थीं।
जानता हूं मानता भी हूँभाई साहब, ये कहानी तब की है जब लोगों में सरलता बाकी थी; और बच्चों में भोलापन था!
अंतरंग बातों में परदा था। शर्म और लिहाज़ था।
आज कल तो लगता है कि लौंडे लौंडियाँ बस सेक्स करने के लिए ही पैदा हुए हैं।
खैर, ये कोई सामाजिक दस्तावेज़ नहीं है, बस एक व्यक्ति के निजी अनुभवों का मसालेदार विवरण है।
उम्मीद है कि आपको आनंद आ रहा है
बहुत बहुत धन्यवाद भाई!बहुत ही मस्त स्टोरी
शानदार अपडेट हैं avsji।
Avsji, एक सुझाव है। आप इस कहानी में गांव के और किस्से डालिए। चाचीजी और गांव की अन्य महिलाओं के किस्से रसप्रद रहेंगे। कहानी बढ़िया जा रही हैं। आपको पढ़ना मतलब दिल को बहलाना। काफी सुखद लगता हैं आपका लेखन । आप भावनाओ को शब्दो में व्यक्त करते हैं वो कमाल है।
Is week ka update kab tak aayega avsji??
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