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ह्म्म्म्म पहला नशा पहला खुमारनींव - पहली लड़की - Update 2
एक दिन रचना मेरे घर आई, और हमने अपना अध्ययन सत्र शुरू किया। हमने अपना होमवर्क किया, और अगले दिन के लिए लेसन पढ़ लिया। आज यह सब बहुत जल्दी ही हो गया था, और अचानक ही, हमारे पास करने के लिए कुछ नहीं था। रचना अपने घर जाने के बजाय टालमटोल करने लगी।
ऐसा नहीं है कि मुझे उसका साथ पसंद नहीं था। मैं भी चाहता था कि वो जितना संभव है, मेरे साथ रहे।
“क्या तुम कुछ खेलना चाहती हो?” मैंने कुछ देर बाद पूछा।
“जैसे क्या?”
“लूडो?” मैंने सुझाव दिया।
उसने सर हिलाया, “ठीक है।”
हम कुछ देर तक लूडो खेले, लेकिन यह चार लोगों के साथ बैठ कर खेलने जैसा मजेदार नहीं था। बस एक काम चलाऊ खेल था। हम लगभग आधे घंटे तक खेले, और फिर जल्दी से ऊबने लगे। अगर उसको रोकना का कोई बहाना नहीं है, तो जाहिर सी बात है कि उसे अपने घर के लिए निकल जाना चाहिए। मैंने आह भरी।
“क्या हुआ?” उसने पूछा।
“ऊब गया यार! मेरा मतलब है, लूडो खेलना मजेदार है, लेकिन एक दो बार ही!”
“हाँ... और तुम्हारे पास टीवी भी नहीं है।” उसने कहा।
मेरे माँ और डैड ने टीवी नहीं खरीदने का फैसला किया - हमारे पास मनोरंजन के लिए केवल एक रेडियो और एक कैसेट प्लेयर था, और हम बस कभी कभार ही फिल्मों के लिए बाहर जाते थे, शायद साल में दो तीन बार।
“हाँ।” मैंने कुछ देर सोचा, “ठीक है, कुछ और है, जो तुम खेलना चाहती हो?”
“क्यों?” उसने इठलाते हुए पूछा।
“तुम्हारे साथ मुझे अच्छा लगता है!” में पूरी संजीदगी से कहा।
वो मुस्कुराई। उसने एक पल के लिए कुछ सोचा और फिर कहा, “अगर तुम चाहो तो हम कुछ नया खेल खेल सकते हैं।”
“क्या?” मुझे उत्सुकता हुई।
“तुम्हें वो दिन याद है जब तुम क्लास में लण्ड - लण्ड चिल्ला रहे थे?”
“मैं चिल्ला नहीं रहा था।” उस दिन को याद करके मुझे शर्म आ रही थी। मासूमियत एक अनमोल वस्तु है। जितना अधिक आप जानने लगते हैं, आप उतने ही अधिक जागरूक होते जाते हैं, और उतनी ही मासूमियत आप खोने लगते हैं।
“ठीक है ठीक है! अच्छा बाबा, तुम चिल्ला नहीं रहे थे।” उसने दाँत निपोरते हुए कहा।
“लेकिन तुम खेलने के बारे में क्या कह रही थी?”
“सोच रही थी कि क्या तुम मुझे अपनी छुन्नी से खेलने दे सकते हो?”
“क्या! क्या तुम पागल हो गई हो? माँ देखेगी, तो मुझे और तुम्हें मार डालेगी।”
“अमर, तुम डरते क्यों हो? तुम्हारी माँ अपनी पड़ोसी से बात कर रही हैं, और उनके लौटने में कुछ समय लगेगा।”
रचना की इच्छा! ऐसे कैसे मैं उसके सामने नंगा हो जाऊँ? मैं अनिश्चय से घबराया हुआ था और सबसे बड़ी बात, शर्मिंदा था। माँ और डैड के सामने नंगा होना एक बात है, लेकिन अपनी सहपाठिन के सामने कैसे?
“अच्छा,” उसने अपना मास्टरस्ट्रोक मारा, “अगर मैं तुम्हें अपना दूध (स्तन) देखने दूँ तो? क्या कहते हो?”
‘क्या सच में?’ मैंने सोचा! यह एक बड़ी साहसी बात थी। ऐसी बात आज तक किसी भी लड़की ने मुझसे नहीं कही थी।
“क्या!” मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि वो मुझे अपने स्तन दिखाने की बात कह रही थी।
रचना ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा, “तुम मुझे नंगा देखना चाहती हो?”
“नहीं …” मैंने झूठ बोल दिया।
रचना ने मुँह बनाते हुए कहा, “तू झूठ बोल रहा है अमर।”
“नहीं!” मैंने विरोध किया। लेकिन आवाज़ में दम नहीं था।
“मैं साफ़ देख रही हूँ कि तुम झूठ बोल रहे हो ... तुम्हारी छुन्नी देखो - उसका आकार बढ़ रहा है!” उसने मेरी दशा का मज़ाक उड़ाते हुए कहा।
“क्या …!” मैंने नीचे देखा; मेरे निक्कर के अंदर मेरा छुन्नू एक छोटा सा तम्बू बना रहा था। कोई भी देख कर समझ सकता था।
“बोलो फिर? तुम मुझे नंगी देखना चाहते हो, या नहीं?”
बात तो उसकी सोलह आने सही थी, “ठीक है, हाँ, ठीक है!” मैं बुदबुदाया।
“क्या ठीक है?” रचना ने खिंचाई करने है मधुरता से पूछा।
“देखना चाहता हूँ,” मैंने कहा, “तुमको नंगा!”
“हा हा हा! उसके लिए, माई डीयर फ्रेंड, तुम्हे पहले मुझको अपनी छुन्नी दिखानी होगी।”
मैंने कुछ कहा नहीं। क्या कहता? रचना ने अपना हाथ बढ़ाया। मेरे दोनों टाँगों पर निक्कर का निचला सिरा पकड़ कर उसने नीचे की तरफ खींच लिया। निक्कर के नीचे मैं कुछ भी नहीं पहनता था। मुझे लगता है कि रचना भी यह बात जान गई थी। अचानक ही मेरी साँसें तेज़ तेज़ चले लगीं - जैसे कि मैं कोई लंबी दूरी की दौड़ दौड़ कर आया था। मेरी दिल की धड़कन बहुत बढ़ गई थी। मुझे पक्का यकीन है कि वह मेरे दिल की धड़कन सुन सकती थी। निक्कर का बैण्ड मेरे पुट्ठों से होते हुए नीचे सरक आया और उसी के साथ मेरा लिंग भी उसको ‘सल्यूट’ करते हुए बाहर निकल आया। उसका रंग भी मेरे शरीर के रंग के जैसा ही था - गेहुँआ, चिकना और बिना बालों वाला! मेरा लिंग उसके सामने हिल रहा था, और मेरे दिल की हर धड़कन के साथ साथ स्पंदन कर रहा था। उस समय यह लगभग तीन इंच लंबा था, और यथासंभव स्तंभित था। ऐसा लग रहा था कि यह अपनी ही चमड़ी पर जोर दे रहा हो। नीचे, मेरे अंडकोष ऊपर की तरफ खिंचे हुए लग रहे थे। रचना ने मेरे अंडकोषों को अपने हाथ में लिया।
मैंने साँस छोड़ी और एक पल के लिए अपनी सांस रोक ली। जो भी कुछ हो रहा था, वो मेरे लिए बिलकुल अनोखा अनुभव था। रचना ने मेरे चेहरे की तरफ देखा, और अपने दूसरे हाथ से मेरा निक्कर पूरी तरह उतार दिया। अब मैं केवल शर्ट पहने बैठा था। मेरा लिंग मेरे पैरों के बीच खड़ा हुआ, लगभग काँप रहा था। मेरा लिंग ही क्या, मेरा पूरा शरीर ही काँप रहा था। और मेरी सांसें लगभग धौंकनी के जैसे चल रही थीं। उसने मुझे और मेरी नंगेपन को बड़ी दिलचस्पी से देखा। लगभग दो-तीन मिनट के मूल्यांकन के बाद, उसने अपना फैसला सुनाया,
“कितना सुंदर है।”
‘सुन्दर है!’
सुन्दर ऐसा शब्द है जो किसी भी पुरुष की मर्दानगी को चुनौती दे सकता है। और वैसे भी लिंग जैसे अंग के लिए ‘सुन्दर’ एक अनुचित शब्द लगता है। लेकिन जब यह शब्द कोई सुन्दर सी लड़की बोलती है, तो अच्छा लगता है। अपने लिंग की बधाई सुन कर जाहिर सी बात है, कि मुझे अच्छा लगा।
“यह अभी तक यह एक लण्ड (परिपक्व लिंग) नहीं बना है, लेकिन है बहुत सुंदर!”
“तुमको कैसे मालूम कि ये लण्ड नहीं बना?” मैं रचना की बात से आहत हो गया था, इसलिए मैंने विरोध करना शुरू कर दिया।
लेकिन उसने बीच में मुझे टोकते हुए कहा, “अमर, मैंने अपने डैडी को... कई बार देखा है। जब वो रात में मेरी मम्मी को चोदते हैं - मेरा मतलब, मम्मी से प्यार करते है, तो कभी-कभी पानी पीने के लिए रसोई में नंगे ही आ जाते हैं। उनको नहीं मालूम, लेकिन मैंने उनको नंगा देखा है। मैंने उन्हें मम्मी की चुदाई करते देखा है। इसलिए मैं मुझे लगता है कि मैं दोनों को कम्पेयर कर सकती हूँ। तुम्हारा साइज़ डैडी के साइज़ का लगभग आधा है। लम्बाई में भी, और मोटाई में भी। डैडी का लण्ड बड़ा और ... बदसूरत भी! तुम्हारा छुन्नू छोटा और सुंदर है!”
रचना ने पूरी ईमानदारी से अपनी बात रखी। बात तो ठीक थी - मेरा शरीर अभी भी लड़कों जैसा ही था। पुरुषों का शरीर बढ़ जाता है और भर जाता है। तो ठीक है - मेरा भी वैसे ही हो जायेगा।
“थैंक यू!” मैंने कहा।
“मैं ... मैं इसको छू लूँ?”
“क्या?” मुझे समझा नहीं कि रचना क्या छूना चाहती है।
“तुम्हारी छुन्नी”
“ओके! लेकिन, यह साफ नहीं है।”
माँ ने मुझे अपनी छुन्नी की अच्छी देखभाल करना सिखाया था। उन्होंने मुझे पेशाब करने का ‘सही तरीका’ सिखाया था और मुझे यह भी समझाया था कि उसके बाद इसे साफ करना चाहिए। लेकिन जब मैं स्कूल में होता हूँ, तब इस सलाह पर अमल करना संभव नहीं है। और चूँकि लड़के तो लड़के होते हैं - वे हमेशा वह नहीं करते जो उनकी माँ उन्हें करने के लिए कहती हैं।
“कोई बात नहीं!”
रचना ने कहा और फिर उसने मेरे लिंग को पकड़ लिया। उसने इस बार पूरी तरह से उसकी जाँच की - उसने मेरे अंडकोष को भी पकड़ रखा था, और लिंग के साथ साथ उसकी भी नाप तौल कर रही थी। मैंने उसे सावधान रहने के लिए कहा, क्योंकि अधिक दबाने से वो मुझे चोट पहुँचा सकती थी। उसने बहुत सावधानी से, बड़ी कोमलता से मेरे नाज़ुक अंगों की पड़ताल करी। मुझे खुद भी उसकी उँगलियों की छुवन बहुत अच्छी लग रही थी! उसने मेरे लिंग की पुष्टता और दृढ़ता का परीक्षण करने के लिए हल्के से दबाया, और फिर जैसे संतुष्ट हो कर, उसने मेरे लिंग के सिरे को पकड़ कर हल्का सा हिलाया और कहा,
“बहुत सुन्दर है! और मुझे पसंद भी है।”
“हम्म?”
“ये, लल्लूराम!” इस बार उसने मेरे लिंग के सिरे को को अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच लिया, और उसे थोड़ा सा हिलाया, और कहा, “मुझे तुम्हारी छुन्नी पसंद है।”
“मुझे तंग मत करो।” मैंने विरोध किया।
“अरे! कहाँ तंग कर रही हूँ! सच में अमर, तुम नंगे हो कर इतने सुंदर लगते हो, मुझे तो पता ही नहीं था।”
मैं इस पूरे घटनाक्रम के दौरान आश्चर्यजनक तरीके से उत्साहित हो रहा था। मुझे मालूम नहीं है कि वह यौन उत्तेजना थी या केवल रचना के सामने नग्न होने का रोमांच। लेकिन उस वक्त मेरे लिंग में काफी खून प्रवाहित हो रहा था। परिणामस्वरुप, मेरा लिंग झटके खाने लगा। रचना ने यह देखा,
“अरे देखो तो!” वह मुस्कुराई, “ये भी खुश है अपनी बढ़ाई सुन कर!”
Adolescenceनींव - पहली लड़की - Update 7
कुछ दिनों बाद, डैड हमें एक फिल्म देखने ले गए। क्योंकि हम लोग फ़िल्में देखने बहुत कम ही जाते थे, इसलिए फ़िल्म वाले दिन कुछ अलग होते थे। आज के मल्टीप्लेक्स जैसा मामला नहीं था तब। एक ही थिएटर था हमारे कस्बे में - सवेरे उनमे एडल्ट फ़िल्में लगती थीं। नहीं, बहुत एक्साइटमेन्ट की ज़रुरत नहीं। एडल्ट फ़िल्में मतलब बिलकुल छिछोरी, दोयम दर्जे की, दोअर्थी संवाद वाली फ़िल्में। तब ठरकी लोगों को उतने में ही मज़ा आ जाता था। गन्दा संदा सा रहता था अंदर - पान की पीक इधर उधर साफ़ देखी जा सकती थी। बीड़ी की गंध जैसे वहाँ समां ही गई थी। शायद इसीलिए डैड वहाँ जाना नहीं चाहते थे। लेकिन मुझे इन सब बातों से फ़र्क़ नहीं पड़ता था - हम बस बाहर जा रहे हैं, वही बहुत बड़ी बात थी मेरे लिए। फिल्म के बाद हम अक्सर बाज़ार में पैदल चलते, गैरज़रूरी खरीदारी करते, और बाहर खाना या चाट आदि खाते थे। मैं जितना माँ से प्यार करता था, उतना ही डैड से भी करता था। डैड बिलकुल भी सख्त नहीं थे, बल्कि वो भी माँ के सामान ही शांत और स्नेही स्वभाव के थे। डैड मेरी पढ़ाई में मेरी मदद भी करते थे, और एक दो साल पहले तक मेरे साथ खेला भी करते थे। फिल्म के अगले दिन रविवार था, इसलिए हमने अगला दिन हर तरह की मस्ती करते हुए बिताया। रचना आज नहीं आई थी। वो भी रविवार को अपने ही घर पर रहती थी। रात होते-होते मैं इतना थक गया था कि खाना खाते ही सो गया।
रात में मेरी नींद तब टूटी, जब मैंने उनके कमरे से आती हुई अजीब सी आवाजें सुनीं। मैं बिस्तर से उठा और उनके बेडरूम के दरवाजे तक गया, और दरवाज़े पर दस्तख़त देने ही वाला था कि मैंने उन दोनों की आहें सुनीं। मैं रुक गया, और बस दरवाज़े के बिलकुल बगल आ कर खड़ा हो गया कि उनकी बातें सुन सकूँ। माँ ने रचना को जो शिक्षा दी थी, यह उसके बिलकुल उलट थी, लेकिन जिज्ञासा का क्या करें?
“आह मेरी जान! मज़ा आ गया! जवानी के दिन याद आ गए!” वह मेरे डैड थे।
“हा हा हा! हम अभी भी जवान हैं, मिस्टर!”
“हा हा हा - हाँ, मेरा मतलब यह था कि आज बहुत दिनों बाद इतनी जबरदस्त तरीके से तेरे साथ सेक्स किया! मैं भूल गया था कि इतनी सारी एनर्जी से सेक्स करने में कितना मज़ा आता है!”
तो मेरे माँ और डैड ‘प्यार’ कर रहे थे!
मैं अपने घुटनों पर बैठ गया और सुनने की कोशिश की। वे जोर से बात नहीं कर रहे थे, इसलिए मैं केवल बस दबी हुई आवाज़ें और उनके बिस्तर की लयबद्ध तरीके से आगे पीछे खिसकने की आवाज़ सुन सकता था।
“सुनो जी, आपको और बच्चे चाहिए क्या?”
“आएँ! यह तुमको क्या सूझी?”
“नहीं, मैं बस पूछ रही हूँ। यदि आप और बच्चे चाहते हैं, तो अभी कर लेते हैं।”
“नहीं जान! मैं एक बच्चे से ही बहुत खुश हूँ। खर्च बढ़ रहा है। जल्द ही अमर ग्रेजुएशन शुरू करेगा, और इसके लिए बहुत सारे रुपयों की ज़रुरत पड़ेगी। एक और बच्चा पालने जितना वेतन नहीं मिलता। मुझे लगता है कि हम एक अमर को ही ठीक से पाल लें, बस बहुत है!”
उन्होंने कुछ मिनटों तक कुछ नहीं कहा ... कमरे से केवल बिस्तर की लयबद्ध आवाज़ें ही आ रही थीं।
“लेकिन सच में! हमारा बेटा तेजी से बड़ा हो रहा है। अच्छा लगता है! हा हा हा! अभी मानों कल तक ही घर भर में नंगा हो कर दौड़ता और खेलता था! और अब देखो!”
“हा हा हा! आपको ही ऐसा लगता है, क्योंकि आप दिन भर तो ऑफिस में रहते हैं न! आपका बेटा अभी भी घर में नंगा ही रहता है!”
“क्या? हा हा हा! बदमाश है! इतने बड़े लड़के को क्या अभी भी नंगा रहना चाहिए? ... और क्या उसे अभी भी तुम्हारा दूध पीना चाहिए? मेरा मतलब है कि अब तो उसे अपनी उम्र की लड़कियों के दूध देखने में इंटरेस्ट होना चाहिए! है न?” डैड ने कहा; उनकी आवाज़ में गुस्से वाला भाव नहीं था। वो बस चिंतित थे।
“हाँ, आपकी बात ठीक है। वैसे उसको अब लड़कियों में इंटरेस्ट आने लग गया है। मुझे रचना बहुत पसंद है। वह बहुत सुंदर और अच्छी लड़की है। अमर के लिए वो ठीक रहेगी!”
“अरे मेरी जान! तुम तो कितना आगे का सोचने लगी! हाँ, रचना एक अच्छी लड़की है... लेकिन उसको अपना दूध पिला कर तुमने उसे अपनी बेटी बना लिया है! हा हा हा!”
“अच्छा जी! इस हिसाब से तो आप भी मेरे बेटे हो गए!”
“हाँ माँ!” पापा ने माँ को चिढ़ाया।
‘क्या! पिताजी माँ के स्तन पीते हैं ?!’ एक और नई बात!
माँ ने हँसते हुए कहा, “सच कहूँ तो, मुझे उन दोनों को साथ में दूध पिलाना अच्छा लगा! दोनों के पीने का तरीका बहुत अलग है! ... पहली बार तो उसने इसके लिए रिक्वेस्ट करी थी, लेकिन अब वो इसकी डिमांड करती है ... जैसे कि वो सचमुच में मेरी अपनी बेटी है ... हा हा।”
“हा हा हा हा! अरे यार, मैं तुमको अमर को ब्रेस्टफीड बंद करने के लिए कह रहा हूँ, और यहाँ तुम एक और बच्चे को लिस्ट में जोड़ने की बात कर रही हो!” डैड ने विनोदपूर्वक कहा।
“हा हा! हाँ ... नहीं ... नहीं ... आप सही कह रहे हैं। मुझे अब यह सब बंद कर देना चाहिए …”
मुझे अचानक ही माँ की चिहुँकने और आहें भरने की आवाज़ आई; बिस्तर की चरमराहट थोड़ी तेज़ हो गई। जब थोड़ी शांति हुई तो माँ बोलीं,
“लेकिन मैं किसी और बात से चिंतित नहीं हूँ। मैं बस चाहती हूँ कि दोनों बच्चे अपने तरीक़े से सब कुछ डिस्कवर करें, और सुरक्षित रहें!”
“हम्म्म! क्या रचना... यहाँ खुश रहती है?”
“हाँ, मुझे तो ऐसा लगता है। अमर और रचना दोनों एक-दूसरे की संगत में रहते हैं! और खुश रहते हैं!”
“अच्छी बात है!”
“वो तो अब रचना के भी निप्पल चूसता है?”
“क्या! शैतान लड़का! हा हा हा ... लेकिन यह सुनकर मुझे बहुत राहत मिली है। उसे अपनी उम्र की लड़कियों पर ध्यान देना चाहिए ... अपनी मां पर नहीं।”
बिस्तर की कुछ और चरमराती हुई आवाज़ें आईं।
“क्या मैं ‘शर्मा’ से बात करूँ, इस बारे में?” डैड रचना के डैडी की बात कर रहे थे।
“नहीं, अभी नहीं! मुझे डर लगता है कि कहीं वो लोग कुछ उल्टा पुल्टा न कर दें! वो काफ़ी दकियानूसी लोग हैं और शायद वो यह सब बातें न समझ पाएँ। मुझे रचना बहुत पसंद है ... पसंद क्या, मैं उसको अपनी ही बेटी समान प्यार करती हूँ, और मैं नहीं चाहती कि उसको किसी तरह की हानि हो।”
फिर वे कुछ देर चुप रहे; बस बिस्तर की चरमराहट की आवाज़ें आती रहीं।
माँ ने कहा, “लेकिन मुझे इस बात का अफ़सोस होता है कि जल्दी ही मेरे बच्चे मेरा दूध पीना छोड़ देंगे!”
“अरे क्यों? इसमें अफ़सोस वाली क्या बात है? यह तो नेचुरल है। जहाँ तक मुझे मालूम है, अमर की उम्र का कोई लड़का अपनी माँ का दूध नहीं पीता!”
“आपने जो सोलह साल तक तक पिया था, उसका क्या?” मेरी माँ ने डैड को चिढ़ाया।
“अरे मेरी बात अलग है जानेमन! और माँ के लगभग तुरंत बाद ही तुम मुझे मिल गई! तुम अमर के लिए परेशान मत होवो! अच्छा लड़का है! मेहनती है, इंटेलीजेंट है। व्यवहारिकता समय के साथ साथ आती है। अभी उसका फोकस पढ़ाई लिखाई पर है। वहीं फोकस रहे, तो अच्छा है। वो लड़की कहीं भागी नहीं जा रही है!”
“सबसे पहले तो आप उसे ‘वो लड़की’ कहना बंद कीजिए ... उसे उसके नाम से बुलाइये या बेटी कहिए…” माँ ने प्रसन्नतापूर्वक विरोध किया।
उसी समय डैड ने एक लंबी, संतुष्ट ‘आह्ह्ह्ह’ वाली आवाज़ निकाली। उसके बाद सब कुछ शांत हो गया। कुछ पलों तक मैंने इंतजार किया, लेकिन और कोई आवाज़ नहीं आई। मैं बस जाने ही वाला था कि माँ की आवाज आई,
“लेकिन मुझे लगता है कि आपको उससे बात करनी चाहिए [माँ हँसने लगीं]। मैं उसे बहुत कुछ बता सकती हूँ, लेकिन आपको भी कुछ सिखाना चाहिए! उसे बहुत कम मालूम है। पता नहीं, अभी तक उसने हाथ से करना शुरू किया या नहीं!”
माँ की इस बात पर दोनों एक साथ हँसने लगे। मुझे समझ ही नहीं आया कि क्यों!
“तो, मेरा बेटा अब बड़ा हो गया है! हा हा हा!”
ह्म्म्म्म पहला नशा पहला खुमार
Adolescence
कहानी के नायक के लिएनींव - पहली लड़की - Update 3
रचना ने फिर से मेरे लिंग को फिर से अपने हाथ में पूरी तरह से पकड़ लिया और अपने हाथ को पीछे की तरफ थोड़ा सा खिसकाया। ऐसा करने से मेरा शिश्नमुण्ड थोड़ा दिखने लगा। मेरे लिंग का स्तम्भन बहुत मजबूत नहीं था; बच्चों में होने वाले स्तम्भनों से थोड़ा अधिक ही होगा - बस। उसको एक ‘क्यूट इरेक्शन’ कहा जा सकता है। उधर रचना पूरे उत्साह के साथ आज हाथ आए हुए लिंग का पूरा मुआयना कर लेना चाहती थी। उसने एक बार फिर से अपने हाथ को पीछे की तरफ धक्का दिया। इस बार लिंग मुण्ड पूरी तरह से उजागर हो गया। उसने हो सकता है कि पहली बार किसी लिंग को इतने करीब से देखा हो, लेकिन यहां तक कि मैंने ख़ुद भी पहली बार अपने इस अंग की बनावट पर इतने करीब से ध्यान दिया - उसका रंग वैसा था जैसे किसी गोरी चमड़ी पर बैंगनी-गुलाबी रंग मिला दिया गया हो! एक दिलचस्प रंग! और भी एक नई बात महसूस हुई - इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मुझे पहली बार नितांत नग्नता महसूस हुई। यह पूरा अनुभव ही अलग था - बिलकुल अनूठा। लिंग मुण्ड के पीछे कुछ मैल जैसा जमा हुआ था। रचना ने मुझे वो दिखाया और कहा कि नहाते समय मैं स्किन को ऐसे ही पीछे कर के उसको साफ़ कर लिया करूँ। उसकी बात का कोई जवाब देते बन नहीं रहा था। रचना एक दोस्त थी, एक सहपाठी थी, और संभव है कि वो मुझे स्कूल में सभी की हँसी का पात्र भी बना सकती थी। लेकिन फिर भी, न जाने क्यों, मुझे उसके साथ सुरक्षित महसूस हो रहा था करती थी।
“मम्म…” रचना प्यार से मुस्कुराई, “यह बहुत प्यारा है! समझे बुद्धूराम?”
मेरी तन्द्रा टूटी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ! रचना ने जितना मन चाहा, मेरे लिंग की अच्छी तरह से छानबीन करी और फिर अंत में उसको छोड़ दिया। वह यह देख कर थोड़ी निराश तो ज़रूर थी कि उसका आकार अभी उतना नहीं बढ़ पा रहा था, जितना कि उसके पिता का होता था, वो इस बात को ले कर बहुत खुश भी थी कि आज उसने वो काम किया है, जिसको समाज द्वारा निषिद्ध माना जाता था। मैं अभी तक कुछ भी करने, कुछ भी कहने की अवस्था में नहीं आ पाया था - माँ या डैड के सामने नंगा होना, और रचना के सामने नंगा होना मेरे लिए बिलकुल अलग बात थी।
रचना ने मुझे मुस्कुराते हुए, अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा। मेरे दिल की धमक और साँसों की धौंकनी अभी तक चल रही थी। उसको समझ आ गया कि मुझ बुद्धू से कुछ नहीं होने वाला है, और जो भी करना है उसको ही करना है। रचना ने आगे जो, किया वह मेरे लिए बिलकुल अविश्वसनीय था। अपने वादे के मुताबिक उसने अपनी फ्रॉक का हेम पकड़ा, और उसको उठाते हुए, अपने सर से हो कर अपने शरीर से उतार लिया। अगर माँ इस समय मेरे कमरे में आ जातीं, तो हमारे साथ न जाने क्या करतीं। खैर, मैंने देखा कि उसने अपने फ्रॉक के नीचे एक सफेद रंग की शमीज़ और एक होज़री वाली चड्ढी पहन रखी थी। उसने अपना फ्रॉक कुर्सी पर टांग दिया, और हंसती हुई उसने अपनी फ़्रॉक की ही तरह अपनी शमीज़ को भी उतार दिया। अब रचना मेरे सामने लगभग नंगी खड़ी थी। मेरे सामने जो नज़ारा था, उसका ठीक से बयान करना मुश्किल है। आज पहली बार मैंने माँ के अलावा किसी और के स्तन देखे थे! साहित्य में सुन्दर स्त्रियों के स्तनों को अक्सर ही ‘चक्रवाक पक्षियों’ के जोड़े की उपमा दी जाती है। माँ के स्तनों को ‘चक्रवाक पक्षियों’ का जोड़ा कहा जा सकता है, लेकिन रचना के स्तन उनके जैसे नहीं थे। सबसे पहली बात, मेरे आंकलन के विपरीत, रचना के स्तन, माँ के स्तनों से छोटे थे। माँ के स्तन गोलाकार थे, लेकिन रचना के स्तन शंक्वाकार थे। उसकी त्वचा बिलकुल साफ़ थी, बिना किसी दाग़ के। उसके चूचक मटर के दाने जितने बड़े थे और उनके गिर्द एरिओला का आकार एक रुपये के नए सिक्के से अधिक नहीं था। रचना गोरी तो थी ही, लिहाज़ा, उसके चूचक और एरिओला की रंगत गहरे नारंगी रंग लिए हुए थी - लगभग ‘एम्बर’ रंग जैसी। रचना मेरे सामने नंगी खड़ी हुई थी और मुझे अपने स्तनों को बहुत करीब से देखने दे रही थी। मुझे यह सोच कर बहुत आश्चर्य हुआ कि इतने सुंदर अंग उसके लिए इतने असुविधाजनक कैसे हो सकते हैं! यह लगभग अविश्वसनीय बात थी! सच कहूँ तो अपनी नग्नता में रचना बिलकुल परी जैसी लग रही थी... बेहद खूबसूरत!
उसकी दिव्य सुंदरता को देख कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया! मैंने नर्वस हो कर अपने होंठ चाट लिए। मैंने महसूस किया कि मैं अपने खुद के नंगेपन की वजह से नहीं, बल्कि रचना के नंगेपन के कारण घबराया हुआ था। आत्मविश्वास से लबरेज़ सुंदरता का किसी मेरे जैसे निरीह मनुष्य पर ऐसा प्रभाव पड़ सकता है। वह बहुत खूबसूरत लग रही थी! मैं उठा और उसके करीब आ गया : इतना करीब कि वह मेरी सांसों को अपने चूचक पर महसूस कर सकती थी। मेरे हाथ काँप रहे थे, और मेरी साँसें हांफती हुई सी आ रही थी। रचना अपना ‘अंग प्रदर्शन’ बंद कर दे, उसके पहले मैं उसके चूचक को मुँह में ले लेने के लिए ललचा गया था। मैंने अपना सिर थोड़ा नीचे किया और अपने होंठों को उसके चूचक पर धीरे से फिराया।
“पी लो,” उसने फुसफुसाते हुए मुझसे कहा।
‘हम्म्म’ तो रचना को कहीं जाने की कोई जल्दी नहीं थी। अब मैं थोड़ा आश्वस्त हो गया। रचना भी चाहती थी कि मैं उसके चूचकों को चूसूँ और पी लूँ। मैंने अपना मुंह खोला और उस एक चूचक को अपने होंठों में ले कर अपनी जीभ को उसके एरिओला के चारों ओर घुमाया। रचना को यह नहीं मालूम था कि मुझे स्तनों को चूसना और पीना अच्छी तरह से आता है। मैंने रचना के चूचक को अपने मुँह में भर कर चूसा, और जितना ही मैं उसको चूसता, वह उतना ही कड़ा होता जाता। वैसे मुझे मालूम था कि उसका चूचक ठीक इसी तरह से व्यवहार करेगा। माँ के चूचक भी ठीक इसी तरह व्यवहार करते थे। मैंने उसका स्तन पीते हुए उसके चेहरे की ओर देखा और पाया कि उसने अपनी आँखें बंद कर ली हैं। रचना ने कहा था कि लड़कियों में छुन्नी नहीं होता। मुझे उत्सुकता हुई और मैंने अपना हाथ उसके पेट के नीचे उसकी जाँघों के बीच फिराया। जैसे ही मैंने अपनी उँगलियाँ उसके जाँघों के जोड़ पर फिराया, मुझे उसकी कही हुई बात पर यकीन हो गया। वाकई, रचना के पास पास लिंग नहीं था!
मेरे छूने का रचना पर एक नया प्रभाव पड़ा - वो मेरे कान में हलके से कराह उठी, तो मैंने अपना हाथ वहां से हटा लिया। वह मुस्कुराई और उसने जल्दी से अपनी चड्ढी भी नीचे सरका दी। मेरे सामने पूरी तरह से नंगी होने वाली पहली लड़की! उस क्षण से पहले मैं यही सोचता रहा था कि लड़के और लड़कियों में केवल स्तनों का ही फर्क होता है, लेकिन जो मैं देख रहा था, वो मेरे लिए बिलकुल नया था। हमारे शरीरों में इतनी समानता थी, लेकिन फिर भी बहुत सारी असमानता भी थी। हमारे बीच इतना अंतर देखकर मैं चकित रह गया था। उसकी कमर क्षेत्र की बनावट मेरे जैसी ही थी, लेकिन अलग भी थी।
“तुम इससे सूसू कैसे करती हो?” छुन्नी की जगह एक चीरे को देखते हुए मैंने अविश्वसनीय रूप से पूछा।
“बैठ कर... ऐसे।” उसने बैठ कर मुझे दिखाया।
मैंने दिलचस्पी से यह देखा। बात तो समझ में आ गई, लेकिन फिर भी, मुझे ऐसा लगा जैसे उसे एक महान अनुभव से वंचित कर दिया गया हो। मेरा मतलब, हम लड़कों को देखो - कहीं भी अपनी गन निकाल कर गोली चला देते हैं! उस सुख का मुकाबला इस चीरे से तो मिलने से रहा! और तो और, आप अपने छुन्नू से सूसू करते हुए दीवार पर चित्र भी बना सकते हैं। काश, लड़कियों को इस तरह का मजा मिल पाता - मैंने सोचा। लेकिन एक बात तो थी - रचना की योनि का दृश्य मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। उसके स्तनों की ही भाँति उसकी योनि को देखने के लिए मैं उसके पास आ गया। रचना बैठी हुई थी, और मैं उसकी योनि के सामने आ कर लेट गया। उसकी योनि पर हल्के हल्के, कोमल, रोएँदार बाल थे। मैं उसके इतना करीब था कि मैं व्यावहारिक रूप से उसके बाल गिन सकता था। मुझे बड़ी नाइंसाफी लगी - रचना के बाल थे और मेरे नहीं! उसकी योनि की होंठनुमा संरचना इतनी आकर्षक लग रही थी कि मेरा मन हुआ कि उसको चूम लूँ। लेकिन सूसू करने वाली जगह को चूमा थोड़े ही जाता है!
“इसको क्या कहते हैं?”
“उम्म्म, योनि?”
“हम्म! लण्ड जैसा कोई वर्ड नहीं है इसके लिए?”
“है। लेकिन सुन कर बहुत ख़राब लगता है।”
“क्या है? मुझे बताओ न, प्लीज!”
“चूत कहते हैं!”
“ओह!”
“लेकिन तुम अच्छे लड़के हो। तुम यह वर्ड मत यूज़ करना।”
“ठीक है!”
मैंने देखा कि रचना की योनि के ऊपर वाले हिस्से पर ही बाल थे, उसकी चूत के दोनों होंठों पर कोई बाल नहीं थे। मैं और करीब आ गया। एक गहरी साँस भरने पर मुझे उसके साबुन की महक आने लगी। मन तो बहुत था, लेकिन मैंने उसके गुप्तांगों को छुआ नहीं, क्योंकि मेरे पास ऐसा करने की हिम्मत नहीं हुई। खैर - यह एक बड़ा दिन था मेरे लिए। आज स्त्री और पुरुष के लिंगों के बीच के अंतर का मेरा पहला परिचय था!
“क्या तुमको मालूम है कि छुन्नी किस काम आती है?” उसने पूछा।
“सूसू करने के लिए! और क्या?”
“नहीं, तुम बेवक़ूफ़ हो! केवल सूसू करना ही इसका काम नहीं है!” कह कर वो ठठाकर हँसने लगी।
उसकी हँसी सुन कर अगर माँ आ जातीं, तो न जाने क्या क्या हो जाता! मैं उस उम्र में खुद को सर्वज्ञाता समझता था। इसलिए कोई मुझे ‘बेवक़ूफ़’ कहे, तो मुझे गुस्सा आना तो लाज़मी है!
“अच्छा! तो बुद्धिमान जी, आप ही मुझे बताएं कि इसका क्या काम है?”
“ज़रूर! तुम्हारी छुन्नी यहाँ जाती है…” उसने अपनी योनि के चीरे की तरफ़ इशारा किया।
“क्या? क्या सच में? क्यों?”
“हाँ। बिलकुल! जब ये यहाँ जाता है, तो बच्चे पैदा होते हैं।”
“क्या? बच्चे इस तरह से पैदा होते हैं?”
“हाँ! आदमी अपना बीज अपनी छुन्नी के रास्ते से औरत की योनि में बो देता है। औरत उस बीज को नौ महीने अपनी कोख में सम्हाल कर रखती है। और नौ महीने बाद बच्चा पैदा करती है। तुमको क्या लगा कि और किस तरह से पैदा होते हैं?”
मुझे क्या लगता? मुझको तो इस बारे में कोई भी ज्ञान नहीं था। लेकिन रचना से अपनी हार कैसे मान लूँ?
“तुम को कैसे मालूम?”
“मैंने मम्मी डैडी को ऐसा करते हुए देखा है।”
“वे दोनों ऐसा करते हैं?”
“हाँ!”
“मतलब तुम्हारे डैडी तुम्हारी मम्मी की कोख में अपना बीज बोते हैं?”
“हाँ!”
“लेकिन फिर तुम उनकी इकलौती संतान कैसे हो? अभी तक उनको कोई और बच्चे क्यों नहीं हुए?”
बात तो मेरी सही थी। मेरे तार्किक बयान ने रचना को पूरी तरह से निहत्था कर दिया। यह सच था - रचना अपने घर में इकलौती संतान थी। और अगर उसने जो कहा वह सही था, तो उसके और भाई-बहन होने चाहिए। इसलिए, मेरे हिसाब से बच्चे रचना के बताए तरीके से तो नहीं पैदा होने वाले! मुझे यह असंभव लग रहा था। वैसे भी उसकी योनि के चीरे में कोई जगह ही नहीं दिख रही थी, और न ही कुछ अंदर जाने की जगह! मुझे कोई ऐसा रास्ता नहीं दिख रहा था कि जिसमें से उसकी छोटी उंगली भी अंदर जा सके। छुन्नी तो बहुत दूर की बात है।
मुझ अनाड़ी को यह नहीं मालूम था कि योनि भेदन के लिए लिंग का स्तंभित होना आवश्यक है। बेशक, रचना को मुझसे कहीं अधिक ज्ञान था, लेकिन उसके खुद के ज्ञान और समझ की सीमा थी। इसलिए, जैसा कि अक्सर होता है, अच्छी तरह से जानने के बावजूद, रचना मेरे तर्कों का विरोध नहीं कर सकी। मैं मूर्ख था - मुझे चाहिए था कि मैं रचना से कहूँ कि मैं उसकी योनि में प्रवेश करना चाहता हूँ। लेकिन अपनी खुद की मूर्खता में मैंने इतना बढ़िया मौका गँवा दिया। फिर भी, रचना के यौवन की मासूमियत की अपनी ही खूबी और अपनी ही मस्ती थी, और उसके दर्शन कर के मुझे बहुत ख़ुशी मिली।
बहरहाल, हमारी छोटी सी बहस ने हम दोनों को फिर से होश के धरातल पर ला खड़ा किया, और हमने झट से अपने अपने कपड़े पहन लिए। फिर उसने अपनी किताबें उठाईं और अपने घर चली गई। रास्ते में उसकी मुलाकात मेरी माँ से हुई।
“आंटी, मैंने अमर को दूध पिला दिया है।” उसने जाते जाते माँ से कहा।
मैंने जब उसको यह कहते सुना, तो मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ! क्या उसने सच में ऐसा कहा! रचना की हिम्मत का कोई अंत नहीं था!
“ठीक है बेटा, बाय!” मेरी माँ ने कहा और उसे विदा किया।