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जवानी दीवानी परेशानीनींव - पहली लड़की - Update 5
हमारी अंतिम बोर्ड परीक्षा ख़तम होने के एक दिन बाद रचना मेरे घर आई। परीक्षाओं के बाद वो जब भी घर आती थी, तो सवेरे ही आ जाती थी, और लगभग शाम होने तक हमारे ही यहाँ रहती थी। उसकी मम्मी भी कहती थीं कि समझ नहीं आता कि रचना का घर कौन सा है! तो उस दिन भी रचना मेरे घर पर थी। लंच के कुछ ही देर बाद का समय था। उत्तर भारत में गर्मी के मौसम में हवा और तापमान बहुत ही जल्दी बहुत गर्म हो जाता है। तो उस दिन भी बहुत गर्मी थी। मेरी माँ ने उस दिन बहुत ही स्वादिष्ट खाना पकाया था। रचना माँ के हाथ के खाने की बहुत बड़ी फैन थी। माँ कुछ भी बना दें, रचना को वो सब खाना ही खाना था। तो हमने अभी अभी खाना खाया था, तो उसके और गर्मी के मिले जुले प्रभाव से मैं और रचना दोनों ही बहुत आलस महसूस कर रहे थे। हमने लंच ड्राइंग रूम में किया था : कमरे के सभी पर्दे खींचे हुए थे। गर्मियां तब भी गर्म होती थीं, लेकिन तब वैसा प्रदूषण नहीं था, जैसा कि अब है। उस गर्मी में पसीना आता था, थकावट होती थी, लेकिन फिर भी उस गर्मी में एक तरह का आनंद था। उस गर्मी में किसी पेड़ की छाया में बैठ जाने से ही बहुत राहत हो जाती थी। बस लू से बचना होता था, और उससे बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पी लेना ही काफी था। बढ़ते प्रदूषण के कारण आज कल की गर्मी तो बर्दाश्त ही नहीं हो पाती।
ड्राइंग रूम में हम तीनों ने कुछ देर तक कैरम खेला (माँ और रचना एक टीम में थे, और मैं अकेला)। हम कुछ समय तक खेले, लेकिन जल्द ही यह खेल भी उबाऊ हो गया। माँ भी जल्दी हो ऊब गईं और हम सब के लिए बेल का शरबत बनाने चली गईं। पिताजी ने हाल ही में एक रेफ्रिजरेटर खरीदा था, और उसके उत्साह में माँ इसका अधिक से अधिक उपयोग करना चाहती थीं। तो अब हमको गर्मियों में बर्फ और ठंडा पानी मिल जाता था... दूध, दही, और खाना अधिक समय तक रह जाते थे। उन दिनों बिजली की आपूर्ति बेहद ही ग़ैरभरोसेमन्द थी - कभी कभी ही आती थी ... दिन में बारह घण्टे तक बिजली नहीं रहती थी। आप बिजली की आपूर्ति पर भरोसा नहीं कर सकते, खासकर गर्मियों के दौरान।
“अरे यार! कितनी गर्मी है!” रचना बोली, “आज तो कमरे में भी दिक्कत हो रही है!”
“हाँ यार! बहुत गर्मी है... अभी तो और गर्मी बढ़ेगी।” मैंने रचना की बात से सहमति जताई, “और दो महीने में तो उमस भी बढ़ जाएगी।”
“हाँ... हे! मैं कपड़े उतार दूँ?” वह शरारत से फुसफुसाई।
“क्या! पागल है तू! माँ यहीं हैं, घर पर ही। सोचा कि तुमको याद दिला दूँ!”
“हाँ हाँ। याद है मुझे। तू डरता बहुत है। तुम्हारी माँ बहुत अच्छी हैं! मुझे तो लगता है कि वो हमें कुछ नहीं कहेंगीं। मुझे तो लगता है कि वो इस बात को एक मज़ाक के तौर पर लेंगीं …” रचना ने कहा, और फिर सोच कर बोली, “मैं ही क्या, तू भी नंगा हो जा। वो हम दोनों को साथ में नंगा नंगा देखेंगी, तो उनको और हँसी आएगी। क्या कहता है?”
“तू मरवाएगी मुझे अपने साथ साथ! माँ हमको डाँटेंगी... डाँटेंगी क्या, मुझे तो लगता है कि शायद वो हम दोनों को पीट भी देंगी। इससे भी बदतर यह होगा कि वो डैडी से से हमारी इस हरकत की शिकायत भी कर देंगी!”
“ऐसा कुछ नहीं होगा। ट्रस्ट मी! मुझे तुम्हारी माँ का व्यवहार तुमसे ज्यादा समझ में आता है। वो हम दोनों से प्यार करती हैं और मुझे तो लगता है कि वो खुश होंगीं!”
“तू मरवायेगी यार मुझे!”
“अरे डर मत! इतनी अच्छी माँ हैं तेरी, लेकिन फ़िर भी इतना फट्टू है तू! चल, मेरे साथ साथ तू भी अपने कपड़े उतार दे।”
अब मैं पशोपेश में पड़ गया। माँ के सामने नंगा होना कोई बड़ी बात नहीं थी। रचना के सामने नंगा होने में भी दिक्कत नहीं थी। लेकिन हम दोनों उनके सामने ऐसे? मन में मुझे लग रहा था कि माँ को कोई आपत्ति नहीं होगी, लेकिन फिर भी न जाने क्यों यह एक बहुत बड़ा जोखिम लग रहा था। अगर माँ नाराज़ हो गईं तो? अगर उन्होंने इस बात की शिकायत डैडी से या रचना के माँ-बाप से कर दी तो? अगर डैडी नाराज़ हो गए तो बहुत मार मारेंगे! काम जोखिम भरा तो था, लेकिन अगर माँ ने कोई आपत्ति नहीं की और उनको हँसी आए, तो यह सब करने योग्य था। रचना मुझे देखते हुए अपने कपड़े उतार रही थी। पिछली बार उसको नंगा देखे कुछ समय हो गया था, और मुझे उसको फिर से पूरी तरह से नग्न देखने की इच्छा थी। तो, माँ और हमारे बीच की अंतरंगता को कुछ और कदम नज़दीक लाने की जिज्ञासा ने मुझ पर काबू पा लिया, और मैं भी अपने कपड़े उतारने लगा। कुछ ही देर में हम दोनों पूरी तरह से नग्न हो गए। फ़र्श ठंडी थी - हमने कैरम बोर्ड को ज़मीर पर रख दिया, और ज़मीन पर पालथी मार कर बैठ गए। चूतड़ों को ठंडक लगी, तो शरीर का बढ़ा हुआ तापमान थोड़ा कम हुआ।
बेशक, अब जो भी कुछ होने वाला था, उसकी प्रत्याशा में मैं उत्साहित था और परिणामस्वरूप, मेरा लिंग थोड़ा थोड़ा खड़ा होने लगा। मेरी हालत देख कर रचना हँसने लगी, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं। जब माँ शर्बत के गिलास लेकर कमरे में आईं, तो हम दोनों को पूरा नंगा देखकर वाकई हैरान रह गईं। लेकिन, मुझे हैरानी इस बात पर हुई कि वो ‘केवल’ हैरान हुईं थीं, चौंक नहीं गईं थीं। माँ की प्रतिक्रिया ऐसी थी जैसे हमने जो भी कुछ किया, वो बहुत सामान्य सी बात हो,
“अरे! ये क्या?” माँ ने कहा, “बहुत गर्मी लग रही थी क्या?”
“जी आंटी!”
“हाँ, आज है भी बहुत गर्मी! लाइट भी चली गई है। अमर, पर्दे खोल दो। थोड़ी हवा ही आ जाएगी!”
“ठीक है माँ,” मैंने कहा और परदे खोल दिए।
घर के सामने आँगन में अमरुद के दो घने पेड़ लगे हुए थे। परदे खोल तो दिए, लेकिन हवा बिलकुल स्थिर थी। इसलिए गर्मी से कोई लाभ नहीं हुआ।
“कोई बात नहीं,” माँ ने हमको शरबत के गिलास थमाते हुए कहा, “ये पियो, थोड़ी राहत मिलेगी।”
सच में, बेल का शरबत पीते ही गले और शरीर में तरावट आने लगी।
“आंटी, ये शरबत भी आपकी ही तरह स्वीट है!” रचना ने माँ पर मक्खन मारा, “मेरा तो मन होता है कि मैं यहीं रहूँ! आपके साथ! पूरा दिन, पूरी रात!”
“हा हा हा!” माँ उसकी बात पर हँसे बिना न रह सकीं, “तो रहो न! किसने मना किया है?”
“मम्मी ने! वो तो अभी से कहने लगीं हैं कि समझ नहीं आता कि मेरा घर कहाँ है - यहाँ, या वहाँ!”
“तुम्हारी मम्मी सोंचती बहुत हैं।” माँ ने प्यार से कहा, “वैसे तुम दोनों ऐसे बहुत प्यारे लग रहे हो।”
“सच में आंटी?” रचना अपने दाँत निपोरते हुए बोली, “ये अमर तो बोल रहा था कि आप हमको ऐसे देखेंगी, तो हमारी बहुत पिटाई करेंगी!”
“अच्छा? मैंने कब तेरी पिटाई करी अमर?”
“कभी भी नहीं, माँ! आपने तो मेरे कान भी नहीं उमेठे कभी, और न ही कभी डाँटा!”
“सच में आंटी?”
माँ बस मुस्कुरा दीं।
“और मेरा तो कोई दिन नहीं जाता जिस दिन मुझे मम्मी से, या डैडी से, या दोनों से डाँट न पड़े! गनीमत यह है कि अब मैं जवान हो गई हूँ कर के मेरी पिटाई नहीं करते वो!”
रचना की बात सुन कर माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, “जवान तो तू हो गई है बेटा! जवान और खूब सुन्दर!” और रचना के गालों को प्यार से सहलाया। रचना उनकी इस प्यार भरी हरकत पर खुश हो गई।
“रचना जवान हो गई है क्या माँ? कैसे?”
“अरे तू निरा बुद्धू ही है! ये देख न, कितने सुन्दर सुन्दर दूध हैं मेरी बिटिया के!” कहते हुए माँ की नज़र उसकी योनि पर भी पड़ी। रचना बस मुस्कुरा दी। लेकिन उसके गाल शर्म से लाल हो गए थे।
“माँ, मैं जवान हुआ हूँ या नहीं?”
“हाँ मेरे लाल, तू भी जवान हो गया है!”
माँ की बात सुन कर रचना खिलखिला कर हंसने लगी। मैंने उसके हंसने पर बुरा सा मुँह बनाया।
“कितनी प्यारी सी बच्ची है!” माँ ने हमारी हरकतों को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, “तू जिसके पास जाएगी, वो कितना भाग्यशाली होगा!”
“मैं किसके पास जाऊँगी, आंटी जी?” रचना को माँ की बात समझ में आ गई थी, लेकिन फिर भी वो विनम्र होने का दिखावा कर रही थी।
“अरे, जिसकी तू बीवी बनेगी, वो - वो बहुत लकी होगा। और तू किसी दिन एक बहुत अच्छी माँ भी बनेगी!”
“वो क्यों माँ?” मैंने पूछा।
“कितनी सुन्दर, कितनी सुशील है, इसलिए! बेटा, रचना का व्यवहार अच्छा है, और वो बहुत ही अफेक्शनेट लड़की है... और बच्चों को बड़ा करने के लिए बहुत प्यार चाहिए!”
मैं मुस्कुराया। माँ की बात तो सही थी - माँ और डैडी ने मुझे प्यार से सराबोर कर के पाला पोसा था और बड़ा किया था। माँ भी मुस्कुराईं,
“जब रचना बिटिया को बच्चे होंगे न, तो इनमें से ढेर सारा दूध निकलेगा,” माँ ने हल्के से उसके स्तनों को छू कर कहा।
अब यह मेरे लिए एक दिलचस्प बात थी। मतलब माँ बनने पर ही दूध आता है! इंटरेस्टिंग! मैं यह जानता था कि माँ के स्तन, रचना के स्तनों से बड़े थे। तो क्या माँ के स्तन मेरे पैदा होने के कारण बड़े हुए थे? क्या रचना भी जब माँ बनेगी, तो उसके स्तन भी माँ के स्तनों के जैसे ही बड़े हो जाएंगे? मैंने पूछ लिया।
अपने स्तनों के बारे में इस खुली चर्चा से रचना थोड़ी शर्मिंदा तो हुई, लेकिन इस सब के लिए उसे ही दोषी ठहराया जाना चाहिए। किसने कहा था कि नंगी हो कर बैठो?
माँ बोलीं, “बिलकुल हो सकता है। अधिकतर औरतों के दूध बच्चा होने पर थोड़े तो बढ़ ही जाते हैं। और मुझे लगता है कि रचना बिटिया के दूध मुझसे बड़े हो जाएँगे। जब मैं उसकी उम्र की थी, तब मेरे उससे छोटे थे!”
“क्या सच में आंटी?” रचना के साथ साथ मैं खुद भी यह सुन कर हैरान रह गया।
“हाँ बेटा!
मैंने कभी माँ के बारे में उनकी उम्र के लिहाज से नहीं सोचा। माँ सिर्फ माँ थीं मेरे लिए। लेकिन उनकी बात ने मेरा दृष्टिकोण थोड़ा बदल सा दिया।
“माँ, तो क्या रचना के बच्चे भी हो सकते हैं अभी?” मैंने एक और प्रश्न पूछा।
माँ ने रचना को देखा, रचना ने शर्म से मुस्कुराते हुए अपनी नज़रें झुका लीं। माँ स्नेह से मुस्कुराईं। हम तीनों में से मैं ही सबसे मूर्ख था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि दोनों के बीच आँखों ही आँखों में क्या बातें हो गईं।
“हाँ! जवान होना और किसे कहते हैं?” माँ मुस्कुराई।
यह एक आश्चर्यजनक खबर थी! ‘क्या बात है! रचना के बच्चे हो सकते हैं!’ यह एक बड़ी बात थी। यह जान कर रचना के लिए मेरा सम्मान कई गुना बढ़ गया। कितनी अद्भुत बात थी... है ना? मुझे यह भी जान कर अच्छा लगा कि वो कई बातें जिन्हें हम इन दिनों वर्जित मानते हैं, मैं अपने माँ और डैड के साथ उन बातों पर चर्चा कर सकता था। मुझे तो लगने लगा था कि उनके लिए कोई विषय वर्जित नहीं था और न ही है। वे बस इतना चाहते थे कि उनका परिवार सुरक्षित रहे। बस इतना ही। उन्होंने मुझे कुछ भी करने से कभी नहीं रोका। पालन पोषण के उनके इस तरीके का मुझ पर न तो कोई बुरा प्रभाव पड़ा, और न ही हमको किसी तरह का नुकसान हुआ।
“रचना, जब तुम्हारे पास दूध होगा, तो मैं भी पियूँगा!” मैंने रचना से कहा।
“लेकिन बेटा, उसके लिए रचना को पहले माँ बनना होगा!” रचना के कुछ भी कहने से पहले माँ ने मेरा जो संदेह था, उसको यकीन में बदल दिया।
“ओह! ऐसा क्या?”
“ऑन्टी जी, अमर को तो यह भी नहीं मालूम कि बच्चे कैसे पैदा होते हैं!” रचना ने मुझे चिढ़ाया - आखिर में उसको मेरे ज्ञान पर अपनी श्रेष्ठता दिखाने का मौका मिल ही गया। लेकिन मैं मैदान ऐसे कैसे छोड़ दूँ? मैंने अपने कुतर्क से उसको पहले भी निःशस्त्र किया था, तो अब भी कर सकता था।
“माँ, वह कहती है कि जब मेरी छुन्नी उसके चीरे के अंदर जाएगी, तभी उसको बच्चे होंगे!” मैंने अपनी शर्मिंदगी को छिपाने की कोशिश कर रहा था। मुझे अभी भी यकीन था कि उसकी जानकारी निराधार थी।
Bahut hi mast likha hai bhaiपहला प्यार - विवाह - Update #12
“गुड मॉर्निंग, स्लीपीहेड्स। क्या कल रात तुम दोनों बच्चे ठीक से सोए?” कमरे से बाहर निकलते ही माँ की आवाज़ आई।
माँ, अपने सबसे शरारती अंदाज़ में बड़ी चंचलता से हमको देख रही थीं, और मुस्कुरा रही थीं! उनकी मुस्कान ऐसी थी जैसे वो कह रही हों कि उनको अच्छी तरह मालूम था कि हम कमरे से बाहर आने से पहले क्या कर रहे थे। वैसे भी, यह ज्यादा आश्चर्य की बात नहीं है - गैबी और मैं, जैसे चिल्ला चिल्ला कर सम्भोग कर रहे थे, माँ और डैड तो क्या, अब तक पूरे गांव को पता चल गया होगा कि हम क्या कर रहे थे। कमरे से बाहर निकलने से पहले हमने बहुत ही कैजुअल कपड़े पहन लिए थे। गैबी ने एक जोड़ी थर्मल लेगिंग और एक स्वेटशर्ट पहन रखी थी, और मैंने एक थर्मल लोअर और स्वेटशर्ट पहन रखी थी। अब हर समय तो भारी भारी कपड़े और ज़ेवर थोड़े न पहने रहेगी वो! हमने देखा, डैड कोई किताब पढ़ने का ‘नाटक’ कर रहे थे।
“माँ!” मैंने मज़ाकिया अंदाज़ में विरोध किया, “हम बच्चे किस एंगल से दिखते हैं? और, आपकी जानकारी के लिए... कल रात हम बच्चे बनाने की कोशिश कर रहे थे!”
इस बात पर गैबी ने मुझे कोहनी मारी।
“हाँ हाँ! तुम्हारे डैड और मैंने, और काजल ने - हम सबने सुना।” माँ ने मुझको छेड़ते हुए कहा, “हमने बड़ी अच्छी तरह सुना कि तुम कैसे आधी रात से ही अपनी नई नवेली दुल्हन को भ्रष्ट कर रहे हो।”
तब तक गैबी माँ के पास पहुँच गई, और उसने माँ के पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया,
“जीती रहो मेरी बच्ची, सदैव प्रसन्न रहो। स्वस्थ रहो और आनंद से रहो!” उन्होंने दिल खोल कर उसको अपनी आशीष दी, “एक माँ के लिए उसकी संताने हमेशा बच्चे ही लगती हैं! समझे?” उन्होंने मुझसे कहा।
“और मैं तुमको बता दूँ,” माँ ने कहना जारी रखा, “हम... मतलब, तुम्हारे डैड और मैं, प्यारे प्यारे बच्चों के दादा-दादी बनने का इंतज़ार तो कर रहे हैं! इसलिए, अपनी कोशिश जारी रखो, जिससे जल्दी ही हमारी मनोकामना पूरी हो!”
माँ की बात पर मुझको बहुत हँसी आई, और लेकिन बेचारी गैबी शर्मा कर माँ से लिपट गई। गैबी माँ की मदद करने के लिए जल्दी बाहर आना चाहती थी, लेकिन इस समय तक कुछ भी करने के लिए कुछ नहीं बचा था। सारा काम या तो माँ ने, या फिर काजल ने ख़तम कर दिया होगा। और ऐसा तो है नहीं कि माँ गैबी - अपनी नई नई बहू - से कुछ भी करने के लिए कहतीं! लेकिन गैबी को बुरा लगा कि एक तरफ तो वो गुलछर्रे उड़ा रही थी, और दूसरी तरफ माँ को घर का काम करना पड़ रहा था।
“माँ, इसने मुझे बाहर ही नहीं आने दिया।” उसने शर्मीली आवाज में माँ से मेरी शिकायत की।
“और अगर तुम अपने कमरे से सुबह-सुबह ही बाहर आ जाती न बेटा, तो मैं तुम्हारे पिछवाड़े को मार मार कर लाल कर देती, और फिर तुमको वापस तुम्हारे कमरे में भेज देती!”
मेरी हँसी के ठहाके फूट पड़े! मुझे आश्चर्य हुआ कि माँ इस तरह की बात भी कर सकती हैं! उनका विनोदी स्वभाव सभी जानते हैं, लेकिन यह नया था। जैसा मैं पहले भी कह रहा था, मुझे लगता है कि शादी करने के बाद बहुत कुछ बदल जाता है। मैं अब कोई छोटा लड़का नहीं था, इसलिए अब माँ मेरे साथ ऐसा, दोस्त जैसा, व्यवहार कर रही थीं। हाँलाकि माँ ने मज़ाक किया था - किसी को मारना तो दूर, वो किसी से ऊँची आवाज़ में बात तक नहीं करती थीं, और न ही किसी से कभी भी अभद्र भाषा में बात ही करती थीं! लेकिन फिर भी गैबी को लगा कि शायद माँ उसको सच में मारतीं। इसलिए वो थोड़ा शर्मिंदा हो गई।
गैबी को ऐसे देख कर माँ मुस्कुराईं, उसके माथे पर चूमा, और फिर उसने उसे अपने गले से लगा कर बोलीं,
“मेरी बच्ची, यह तुम्हारे विवाहित जीवन का सबसे कीमती समय है! सबसे मीठा समय! इसीलिए इसको ‘मधुमास’ कहते हैं! तुम दोनों इस समय को, जितना संभव हो, एक दूसरे के साथ बिताओ! अपने नए जीवन का आनंद उठाओ! घर के काम काज होते रहते हैं, और होते रहेंगे। उनमे कभी कमी नहीं आती, और न ही आएगी। फिलहाल तो, तुम दोनों बस एक दूसरे के सान्निध्य का आनंद उठाओ!”
माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, “भगवान् करे, कि तुम दोनों अपने विवाहित जीवन का ढेर सारा आनंद उठाओ! मैं मानती हूँ कि विवाह के दौरान पति पत्नी को कई सारे संघर्ष झेलने पड़ते हैं, और कई सारे सुखों का आनंद भी मिलता है, लेकिन इन सबके लिए तुमको बल अपने इन्ही सुखमय दिनों में ही मिलेगा! इसलिए खूब आनंद उठाओ!”
माँ की इस नसीहत के दौरान डैड बस चुपचाप मुस्कुराते रहे।
जब गैबी उनके चरण स्पर्श करने के लिए गई, तो उन्होंने उसको ढेर सारा आशीर्वाद दिया और उसके माथे पर चूमा। सब कुछ सामान्य सा ही लग रहा था कि अचानक ही, गैबी के भावनाओं का बाँध टूट गया, और वो बेकाबू होकर रोने लगी। अचानक हुए उस भावनात्मक विस्फोट का कारण कोई भी नहीं समझ पाया, लेकिन फिर अचानक ही हमको समझ आया - संभव था कि गैबी ने अपने जीवन में इतने अधिक पारिवारिक प्रेम का पहले कभी अनुभव नहीं किया हो। तो आज सवेरे से ही उसके परिवार का हर सदस्य उसको इतना प्यार दे रहा था, इसलिए उसको रोना आ गया होगा। गैबी को सांत्वना देने की कोई आवश्यकता नहीं थी, इसलिए माँ ने बस उसे बड़े प्यार से अपने स्नेही आलिंगन में भर लिया, और उसको यूँ ही पकड़े हुए वो उसके बालों को सहलाती रहीं, और उसके माथे को चूमती रहीं। कुछ देर रोने के बाद, जब उसकी भावनाओं का ज्वार थमा, तो वो सामान्य हो गई, और माँ ने हमें नाश्ता करने लिए बैठने को कहा।
घर में बस एक छोटी सी मेज़ (टेबल) ही थी (गांवों में लोग फर्श पर बैठकर खाते हैं, जो आसन के हिसाब से बेहतर लगता है - लेकिन यह न तो मेरे लिए आरामदायक था, और न ही गैबी के लिए; इसलिए डैड ने हमारे लिए यह अस्थाई व्यवस्था कर दी)! वह टेबल किसी स्टैण्डर्ड डाइनिंग टेबल का कोई तिहाई जितनी ही लम्बी थी। माँ ने हमारे लिए उसी मेज़ पर नाश्ते की व्यवस्था कर दी थी। डैड पहले ही नाश्ता कर चुके थे, और उन्होंने कहा कि वो अपने कुछ पुराने दोस्तों से मिलने के लिए बाहर जा रहे हैं। उन पर सामाजिक सरोकार का बहुत बोझ रहता है। माँ भी बाहर जाना चाहती थीं, लेकिन आज नहीं निकलीं। विवाह की व्यवस्था करने में वो काफ़ी थक गईं थीं।
“माँ, काजल कहाँ है।” मैंने नाश्ता करते समय पूछा।
“सो रही है! बेचारी इतनी थक गई थी, कि मैंने उसे जबरदस्ती कर के सुला दिया। नहीं तो मानती ही न!”
माँ की यह बात सच में अभूतपूर्व थी - वो सबका ध्यान रखतीं थीं!
“और सुनील और लतिका?”
“लतिका काजल के ही साथ सो रही है। सुनील अपना नाश्ता पहले ही खा चुका है, और बाहर कहीं खेल रहा है। नए नए दोस्त बन गए हैं न उसके!”
कुछ देर बाद माँ ने गैबी से पूछा, “क्या इसने ‘वो’ नोटिस किया?”
माँ ने जिस भी चीज़ का इशारा किया था, वो सोच कर गैबी के गाल शर्म से लाल हो गए! उसने सर हिला कर ‘नहीं’ का संकेत दिया। मैंने क्या नोटिस नहीं किया? ये तो सोचने वाली बात है! सब तो देख लिया - ऐसा क्या रह गया मुझसे?
माँ ने हँसते हुए कहा, “मैं तो ये जानती ही थी! मैंने तुमसे कहा था, है ना? ये आदमी लोग बस कुछ चीज़ें ही देख पाते हैं। उसके अलावा और कुछ नहीं... कुछ ही चीजें! हा हा!”
गैबी ने एक शर्मीली मुस्कान के साथ मेरी ओर देखा। कुछ देर तक तो दिमाग की बत्ती बुझी रही, लेकिन फिर वो अचानक ही जली - मुझे समझ आ गया कि माँ और गैबी किस बारे में बात कर रही हैं। जब मेहंदी कलाकार दुल्हन को सजाते हैं, तो वे आमतौर पर उसके हाथों पर दूल्हे का नाम लिख देते हैं।
‘आह - तो गैबी की हथेली पर मेरा नाम लिखा है!’ - मैंने तुरंत गैबी के दोनों हाथ पकड़ लिए, और उनमे अपना नाम ढूंढने लगा। लेकिन काफी देर देखने के बाद भी मुझे मेरा नाम नहीं दिखा। तब तक दोनों ही मेरी हालत पर हँसने लगीं। समझ में आ गया कि मेरा नाम, गैबी की हथेली पर नहीं है! फिर मुझे याद आया कि माँ ने कहा था कि ‘कुछ चीज़ों’ के अतिरिक्त आदमी लोग कुछ और नहीं देख पाते!
‘हे भगवान! इसका मतलब गैबी की योनि पर कोई ख़ास पैटर्न बना हुआ है!’
“गैबी... ज़रा एक पल के लिए उठो तो!”
“क्या?”
“अरे! उसे शांति से नाश्ता करने दो।” माँ ने अपना विरोध जताया।
“अरे यार! एक बार उठो तो सही! बस एक बार के लिए।” मैंने ज़िद करी।
वह उठ गई! उसके चेहरे पर अनिश्चितता के भाव थे, कि मैं क्या करने वाला था। उसका शक बेबुनियाद नहीं था, क्योंकि जैसे ही वो उठी, मैंने तुरंत ही उसकी लेगिंग को सरका कर उसके नितंबों से नीचे कर दी। मुझे पता था कि गैबी ने अपनी लेगिंग और स्वेटशर्ट के नीचे कुछ नहीं पहना हुआ था। अचानक ही गैबी वहाँ खड़ी थी - नंगी, अनिश्चित, और मुझ पर और माँ पर घोर अविश्वास देख रही थी।
“हनी!” गैबी ने शिकायत करते हुए, और स्पष्ट रूप से शर्मिंदा होते हुए कहा, “तुम क्या कर रहे हो?”
“बस एक मिनट रुको! मुझे देखने तो दो।”
माँ मेरी हरकत पर हँसने लगी। मैंने गैबी को अपनी तरफ घुमाया, जिससे उसकी योनि मेरे सामने आए, और मैं उस पर बने मेहंदी पैटर्न को देखने लगा। माँ मेरी बदमाशी पर ठहाके लगा रही थीं। ज़रुरत नहीं थी, लेकिन फिर भी मैंने उसके होठों को थोड़ा सा फैलाया। और फिर मैंने देखा - मेंहदी के उन जटिल पैटर्न के बीच, गैबी की योनि पर मेरा नाम लिखा हुआ था! क्या बात है!
“बहू को छोड़ दो, बेशर्म कहीं के!” माँ ने हंसते हुए कहा।
लेकिन मुझे माँ के डाँटने (?) की परवाह नहीं थी। मैं वहाँ अपना नाम लिखा देख कर मुस्कुराया, और मुस्कुराते हुए मैंने गैबी को देखा। मेरी मुस्कान संक्रामक थी। गैबी भी मुझे मुस्कुराते देख कर मुस्कुरा दी। माँ भी हम दोनों को ऐसे देख कर मुस्कुराने लगीं। मैंने अपनी माँ को देख कर कहा,
“गैबी बहुत सुंदर है... है ना, माँ?”
मेरी माँ ने जवाब दिया, “बहुत ही प्यारी है! बहुत ही सुंदर है!” और मुस्कुराईं, “मेरी बेटी है ये ... हमेशा खुश रखना इसको!”
माँ की बात सुन कर गैबी और मैं, दोनों ही मुस्कुराने लगे। माँ का अपनापन, उनका स्नेह! संसार में यदि कहीं प्रेम और स्नेह का अथाह सागर है, तो वो मेरी माँ हैं!
‘हाँ! मैं रखूँगा हमेशा खुश मेरी गैबी को!’ मैंने कुछ कहा नहीं, लेकिन अपने मन में मैंने प्रण लिया।
मैं झुक गया और उसकी योनि के होंठों को कई बार चूमा, और यहाँ तक कि उसे एक बार शरारत में चाट भी लिया, और फिर उसे जाने दिया। अंतरंग स्नेह (जिसमें थोड़ी बहुत वासना भी थी) के इस तरह के खुले और सार्वजनिक प्रदर्शन पर गैबी बहुत शर्मिंदा थी, लेकिन आनंद तो उसको भी खूब आया।
“बेशर्म कहीं के! तुमने उसे तो पूरा नंगा कर दिया, लेकिन खुद तो अभी भी कपड़े पहने हुए हो। यह तो बहुत अनुचित है, है ना गैबी बेटा?”
“पूरी तरह से अनुचित है, माँ। एक नंबर का बदमाश है आपका बेटा... मुझसे उम्र में छोटा होने के बावजूद मुझ पर हावी रहता है। मुझ पर हुकुम चलाता है! असल में तो इसको नंगा रहना चाहिए हर समय... मुझे नहीं।”
“बहू, ठीक है कि मेरा बेटा उम्र में तुमसे छोटा है, लेकिन है तो तुम्हारा पति ही न! लेकिन बात तुम्हारी सही है - चलो मिस्टर! अपनी पैंट उतारो!”
अब ये कोई बड़ी बात थोड़े ही थी। मैंने अपना लोअर नीचे सरका दिया, और अपना तनावपूर्ण लिंग प्रकट कर दिया।
“नोसा सेन्होरा (‘मदर ऑफ़ गॉड’ - अक्सर क्रिस्तान लोग इस तरह से प्रभु को याद करते हैं)! माँ - देखो न! इसका छुन्नू फिर से तैयार है!” गैबी ने एक नकली झुंझलाहट दिखाते हुए, अपनी आँखें घुमाईं।
माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरी प्यारी बिटिया रानी, कितना बड़ा सौभाग्य है तुम्हारा कि तुमको एक ऐसा पति मिला है, जो इतनी जल्दी और इतनी बार तैयार हो जाता है।”
“माँ, मैं निश्चित रूप से बहुत भाग्यशाली हूँ... और मुझे इसके लिए आपको धन्यवाद कहना चाहिए!”
गैबी के लिए मेरे कामुक प्रेम में इतना पागलपन था कि, वो भी उत्तेजित हो उठी। उसके गाल शर्म से लाल सेब जैसे हो गए! गैबी के कभी सोचा भी नहीं था कि यह सब कुछ - जो यहाँ हो रहा है - ब्राजील जैसे अधिक खुले वातावरण में भी ऐसा संभव था! भारत जैसे अत्यंत रूढ़िवादी वातावरण में तो यह सब कुछ सोचना ही असंभव है। लेकिन यह सब हो रहा था। और सबसे अच्छी बात, अब गैबी को आनंद भी आ रहा था। उसकी झिझक लगभग समाप्त हो चली थी। हमारे परस्पर प्रेम को देख कर माँ भी बहुत प्रसन्न थीं। मेरी माँ एक ऐसी व्यक्ति हैं, जो हमेशा ही किसी भी व्यक्ति में उसका सर्वश्रेष्ठ प्रारूप देखती हैं, और ढूंढती हैं।
“हाँ! वो बात तो है! इधर तो आओ, मेरे छोटे से बदमाश!” माँ ने मुझे अपने पास बुलाया।
मैं माँ के पास गया - उन्होंने बड़े प्यार से मेरे लिंग को थाम कर थोड़ा सा सहलाया, और गैबी से कहा, “मुझे माफ कर देना गैबी बेटा, मुझे अब तुम्हारे पति को इस तरह नहीं छूना चाहिए। लेकिन मुझे अपने अमर पर बहुत गर्व है!”
“माँ, आप माफ़ी मत पूछिए! आपका बेटा है - आपको जैसा मन करे, आप वैसा करिए। मुझे ज़रा भी ऐतराज नहीं है। और वैसे भी, इस समय इसको और लेने की मेरे अंदर हिम्मत नहीं है। बहुत थक गई हूँ।”
“बेटा, तुम अच्छा खाना खाया करो, और थोड़ा मज़बूत बनो। यहाँ का खाना बेसिक है - मसालेदार नहीं है, लेकिन इसमें ताक़त खूब है। एक मजबूत शरीर बनाने के लिए इस खाने से सभी सही पोषण मिलता है।” माँ ने कहा और मेरे लिंग को थोड़ा दबाया - वो टस से मस नहीं हुआ, “ऐसे!” उन्होंने मुस्कुराते हुए जोड़ा।
गैबी भी मुस्कुरा दी। माँ जो कर रहीं थीं, वो थोड़ा निर्लज्जतापूर्ण तो था, लेकिन उसमे उनकी भावनाओं में कोई खोट नहीं था। लिहाज़ा इसको ऐसे देखना चाहिए कि माँ बस मेरे शरीर की जाँच कर रही थीं, और मुझ पर गर्व महसूस कर रही थीं। उनके काम करने का तरीका हमेशा ही ममतामय और स्नेहयुक्त होता है। जिनको हमारे बारे में न मालूम हो, उनको यह सब कामुक लग सकता है, लेकिन ऐसा कुछ है नहीं। उन्होंने कहा,
“मैं बहुत खुश हूँ, कि अब तुम दोनों एक साथ हो। मेरा सपना था कि बहू जैसी ही कोई परी मेरे घर बहू बन कर आए! और मेरा सपना पूरा हो गया!”
गैबी के गालों पर एक सुंदर सा ब्लश आ जाता है; वो बोली, “माँ, मैं भी आपको - आप सब को पाकर बहुत खुश हूँ! डैडी, यू, एंड माय हस्बैंड! ... आई मस्ट थैंक यू फॉर बर्थिंग हिम! और ... आपका प्यार मेरे लिए सब कुछ है। सच कहूँ, तो मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ। अपनी माँ से कहीं ज्यादा!”
गैबी की बात पर मेरी माँ की आँखें भर आईं, “ओह बेटा, तुम मेरी ही बेटी हो। तुम कभी भी... एक पल के लिए भी नहीं... यह मत सोचना कि तुम मेरी बेटी नहीं हो। मैं बहुत खुश हूँ कि भगवान ने तुम्हारे जैसा प्रसाद मेरी झोली में डाल दिया है!”
गैबी उठकर माँ के पास गई, और उनके गले से लिपट गई। और पुनः भारी भावनाओं के ज्वार से वशीभूत हो कर, वो फिर से रोने लगी। माँ की आँखों में भी ढेर सारे आँसू आ गए थे। लेकिन अपने गले से लगाए हुए ही माँ ने उसकी पीठ को सहला कर, उसको प्यार से समझाना शुरू कर दिया,
“बस मेरी बच्ची! बस! अब मत रो! और यह तो हमारे लिए बहुत खुशी का अवसर है! है न? अब हम सब साथ हैं। हमें यह अवसर ऐसे रोते हुए बर्बाद नहीं करना चाहिए! मेरी रानी बिटिया!”
गैबी ने सुबकते हुए हँसने की कोशिश करी, और माँ को बड़े प्रेम से देखा। और फिर उसने बड़े प्यार से माँ से कहा,
“आई लव यू माँ!”
माँ भी, सुबकते हुए धीरे से बोलीं, “आई लव यू टू, बेटा!”
हमने खाने की कोशिश की, लेकिन गैबी अपने रोने और सिसकने के बीच में केवल कुछ ही कौर खा सकी। माँ ने अंत में उससे कहा, “प्यारी बिटिया, अपना खाना खा ले! अच्छा खायेगी, तो तेरे दूधू का साइज थोड़ा बढ़ेगा!”
माँ का उद्देश्य यह था कि वो थोड़ा हंसी मज़ाक करेंगी, तो गैबी पहले के जैसे हँसने बोलने लगेगी। उनकी इस कोशिश का सकारात्मक प्रभाव पड़ा। गैबी एक आखिरी बार और सुबकी, और फिर हंसने लगी। उसने कहा,
“लेकिन माँ, अमर मेरे बूब्स को - जिस साइज के वो हैं, वैसे ही पसंद करते हैं! है ना, पतिदेव?”
“बिलकुल,” मैंने उसकी ओर मुस्कुराते हुए देखा, “और जितना मुँह में आ जाए, उतना ठीक है - उससे अधिक तो बर्बादी है।”
माँ अपने सहज शरारती लहजे में, अपने स्तनों को नीचे से उठाते हुए बोली, “हम्म्म! फिर तो, अगर मैं तुम्हारे तर्क के अनुसार जाऊँ, तो तुम्हारे डैड का मुँह बहुत बड़ा है!”
“हा हा हा हा!”
माँ से इस तरह की बहस में पार पाना लगभग नामुमकिन है! अगर मैं उनकी बात पर कुछ कहता, तो मुझे यकीन है कि हमको कुछ और सुनना पड़ता। इसलिए हमने इस विषय को छोड़ दिया। मैंने अपना नाश्ता समाप्त कर लिया था, इसलिए, मैंने गाँव में थोड़ा घूमने का फैसला किया ... अब हर समय तो मैं घर के अंदर नहीं रह सकता था, न। बाहर ठंड का मौसम अच्छा था - गुलाबी गुलाबी! और ऐसे मौसम में टहलना बहुत अच्छा होगा, साथ ही, गाँव के लोगों से मिलना भी ज़रूरी था! आखिर, सभी ने हमारी शादी पर इतना प्यार, समर्थन और उत्साह दिखाया था।
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धन्यवाद भाईBahut hi sundar aur bariki se varnan kiya aapne
Bahut aanand aaya
Dhanyavad