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Erotica मोहे रंग दे

komaalrani

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भाभी हो जाने दो ,


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मुझ से ज्यादा , कम्मो और जब तक तीन बार उसने नहीं बोला ,

" चूँची भैया को दूंगी , दूँगी दूँगी "

तब तक हम दोनों ने नहीं छोड़ा , हाँ उसकी इस बात की भी पूरी वीडियो रिकार्डिंग हुयी।



लेकिन अभी तो चार आने का भी खेल नहीं हुआ था , कम्मो की उँगलियों का जादू तो बचा था और मुझे भी ननद से होली खेलना था।

कम्मो ने नीचे का मोर्चा सम्हाला ,

पैंटी खुल के फर्श पर जहाँ ब्रा गिरी पड़ी थी


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उसकी हथेली , गुड्डी की चुनमुनिया पर और जोबन दोनों मेरे हवाले।


कन्या रस लेने की ट्रेनिंग मेरी भाभियों ने अच्छी तरह दे दी थी मुझे , होली में , गाँव में कोई भी सादी बियाह हो तो रतजगे में ,

कच्ची कली के कच्चे अनार का रस लेने के साथ , मैं उसे समझा भी रही थी तैयार भी कर रही थी ,

" देख तेरे भइया ऐसे रस लेते हैं , पक्के रसिया हैं , अब तो तूने हाँ कर ही दी है उन्हें अपने जोबना का दान देने का , ... देखना , खुद टाँगे फैला देगी सच। "


कभी हलके हलके मैं उसके बस आ रहे उरोज सहलाती तो कभी कस के दबा देती , मसल देती , आखिर मेरे कितने देवरों का , अपने मोहल्ले के कितने लौंडों का ये जोबन दिल जला रहे होंगे ,... बीच बीच में निप्स फ्लिक कर देती ,


पिंच कर देती ,


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और फिर मेरे होंठों और हाथों ने हिस्सा बाँट लिया ,


एक होंठों के हवाले दूसरा हाथ के ,

हलके हलके चुम्बन लेती , उरोजों के एकदम बेस से मेरे होंठ सहलाते चूमते ,चूसते धीरे धीरे ऊपर की ओर बढे और गच्चाक से उस कच्ची कली के निप्स मेरे होंठों के बीच में


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होंठों ने बस बहुत हलके से दबा रखा था और जीभ से बस बीच बीच में फ्लिक कर देती , और कुछ देर बाद गियर बदला

कस कस के मैंने चूसना शुरू किया और साथ में जीभ भी अब कस कस के नाच रही थी निप्स के टिप पर ,




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गुड्डी रानी की आँखे बंद हो गयीं , जोबन पथरा गए थे ,

वो सिसक रही थी , मस्ता रही थी ,



दूसरे उभार को मैं बांयें हाथ से हलके हलके सहला रही , थी दबा रही थी ,

" हे तेरे भइया तो इससे भी बहुत ज्यादा , सच , एकदम मैं तो कुछ भी नहीं ,.. अब तो तूने हाँ कर दी है , और वो बिचारे तो इत्ता ललचाते हैं सिर्फ सोच सोच के आज जब ये दोनों कच्ची अमिया उन्हें मिलेगी देखना कितने खुश होंगे , सच ,... और जब एक बार उनका हाथ , उनके होंठ लगेगा , तू एकदम पागल हो जाएगी , इत्ता मस्त आकर देंगे , सच्ची , ... जो चाहे वो बाजी लगा ले। "



मेरे दाएं हाथ ने नीचे का रुख किया जहाँ अब तक कम्मो आग लगा रही थी

धीमी आंच पर कड़ाही गरम करने में वो माहिर थी ,हलके हलके बस गदोरी से ननद रानी की गुलाबो को सहला रही थी , उसे ऊँगली करने की जल्दी नहीं

लेकिन इस सहलाने , रगड़ने से ही गुड्डी की चुनमिनिया गीली हो गयी थी , और उसके बाद बस दोनों पुत्तियों को पकड़ के आपस में हलके हलके रगड़ना शुरू किया तो ननद रानी ने पानी फेंकना शुरू कर दिया ,


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बस तर्जनी का पहला पोर उसने अंदर किया और उसमें ही गुड्डी रानी की चीख निकल गयी , लेकिन जल्दी ही वो चीख सिसकियों में बदल गयी ,

और अब मेरा हाथ भी मैदान में था , उसकी क्लिट , मैं बस अंगूठे से उसे छू रही थी ,


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गुड्डी एकदम झड़ने के करीब पहुंच जाती तो कम्मो रुक जाती और कुछ देर बाद फिर चालू हो जाती , कभी अब वो हलके हलके ऊँगली करती तो कभी फुद्दी को रगड़ती , और उसकी ऊँगली हटती तो मेरी ऊँगली काम पर लग जाती ,...

एक बार जब वो एकदम झड़ने के कगार पर हो गयी तो मैंने सोचा झाड़ दूँ बहुत तड़प रही है , तो कम्मो ने इशारे से मना कर दिया ,

मेरी और कम्मो की उँगलियाँ गुड्डी के पानी से एकदम गीली हो गयी थीं , ...



दो चार बार के बाद गुड्डी खुद बोलने लगी ,

भाभी हो जाने दो ,
 
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komaalrani

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अपने भइया से


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मेरी और कम्मो की उँगलियाँ गुड्डी के पानी से एकदम गीली हो गयी थीं , ...

दो चार बार के बाद गुड्डी खुद बोलने लगी , भाभी हो जाने दो ,



" अरे तेरे भैया आएंगे न उनसे झड़वा लेना , बोल झड़वाएगी अपने भइया से , ... "

मैंने अपनी गर्मायी, बौराई ननदिया को उकसाया

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बेचारी झेंप गयी लेकिन जब हम दोनों ने मिल के उसे बहुत तंग किया तो बोली मुझसे



" भाभी , आपके सैंया ही पीछे हट जाएंगे ,... "

" चल इतना छिनरपना न कर , है हिम्मत तो एक बार बोल दे , जोर से ,... "

कम्मो ने उसे और चढ़ाया



और गुड्डी ने बोल ही दिया , आखिर ,... की वो अपने भइया से चुदवायेगी ,.... बस अबकी तो हम दोनों ने ,..

लेकिन कम्मो ने उसे साथ में हड़काया ,

" मेरे देवर की जिम्मेदारी मेरी , लेकिन स्साली भाइचॉद अगर जरा भी छिनरपना किया न तो तेरी स्साली गाँड़ भी मरवाउंगी , और उसके बाद खुद अपनी मुट्ठी से भी तेरी गाँड़ मारूंगी कोहनी तक पेलुँगी , हचक के चोदवाना होगा , ... खुद बोली हो तुम ,... "

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एक बार गुड्डी रानी फिर झड़ने के कगार पर थी , लेकिन मेरा फोन बज उठा ,

उन्ही का था ,.... मिस्ड काल , मैंने उन्हें बोल रखा था घर में आने के पांच मिनट पहले मिस्ड काल



" देख तेरे यार का है , अब तो तूने बोल भी दिया है , बस तीन चार दिन बाद होली हैं फड़वा ले ,... "

कह के अबकी एक पोर मैंने जोर से पेल दी ,


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वो जोर से चीखी ,

लेकिन तब तक सीढ़ी पर पैरों की आवाज आ रही थी , गुड्डी को बगल के छोटे कमरे में मैंने और कम्मो ने छिपा दिया


तभी उनकी दरवाजा खटखटाने की आवाज हुयी ,

कम्मो ने ही दरवाजा खोला।


और उन के घुसते ही कम्मो ने उन्हें दबोच लिया , साथ में गालियों की बौछार
 
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komaalrani

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आ गया आने वाला

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तभी उनकी दरवाजा खटखटाने की आवाज हुयी ,


कम्मो ने ही दरवाजा खोला।

और उन के घुसते ही कम्मो ने उन्हें दबोच लिया , साथ में गालियों की बौछार ,



" स्साले भोंसड़ी वाले , बनारस अपनी बहिनिया क सौदा करने गए थे , दालमंडी ( बनारस की रेड लाइट एरिया ) में कोठे पे बैठाओगे ,... अरे पहले उसकी नथ उसकी खुद उतार दो , फिर बैठाओ ,.... की भौजी से डर के भाग गए थे , आज घर में भौजी महतारी नहीं है तो कम्मो भौजी आज बिना गाँड़ मारे छोड़ेंगी नहीं , स्साले , बहनचोद , गाँड़ तो चिकने तेरी मारी ही जायेगी , ससुराल में सलहज तो मारेंगे ही , लौण्डेबाज भी बहुत होंगे वहां। "


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गालियों के साथ साथ जिस तरह से पीछे से उनकी पीठ पर वो चोली फाडू अपने बड़े बड़े जोबन अपने देवर की पीठ पर रगड़ रही थीं , किसी की भी हालत खराब हो जाती , ये बेचारे तो ,...


पर बच के निकलना कोई इनसे सीखे ,



कम्मो की ऊँगली पर चिकना चमकता रस उन्हें दिखा और उन्होंने बात बदलने की कोशिश की ,

" काहो भौजी , देवर से छुपा छुपा के कौन मिठाई खा रही थी , बहुत जबरदस्त रस लगा है। "



" अरे ख़ास रसगुल्ला हो , ला तुंहु चाटा "

कम्मो ने बोला

और ऊँगली सीधे उनके मुंह में ,

मुश्किल से मैं हंसी दबा पा रही थी , उनकी ममेरी बहन की चूत की चासनी उनके मुंह में , और वो मजे से चाट रहे थे ,


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और कम्मो उनकी भौजाई चटवा रही थी , ननद की बुर की चासनी उसके भइया से चटवाये , इससे ज्यादा मजे की बात भाभी के लिए क्या हो सकती थी ,



पर कम्मो इतने पर रुकने वाली नहीं थी ,



" हे तुमहू क्या याद करोगे आज इस रसगुल्ले का पूरा स्वाद चखा दूंगी , ... "और फर्श पर पड़ी गुड्डी की चड्ढी उठा के बोली ,

" चला तब तक रसगुल्ला के डब्बे से चलाय ला , ... " और उनकी ममेरी बहन की चड्ढी सीधे उनके मुंह पे।


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मान गयी मैं कम्मो को , उसने बोला था की मैं उसके ऊपर छोड़ दूँ , और सच वो भी न बस पन्दरह बीस मिनट में

कुछ तो उसकी बातें और उस भी बढ़कर उसकी ऊँगली और बड़े बड़े गदराये कड़े कड़े जोबन का जादू ,



अपनी उँगलियों से उसने इनकी शर्ट के बटन खोल कर शर्ट उसी फर्श पर जहाँ उनकी बहन की ब्रा छितरी पड़ी थी , कम्मो की बदमाश उँगलियाँ अब उनके निप्स कभी सहलातीं , कभी नोच लेतीं , एक हाथ पैंट के अंदर घुसा पिछवाड़े को सहलाती , दरार में ऊँगली से रगड़ती ,



बात उसने ये बनायी की उसकी एक बाजी लगी है , एक स्साली से , ( आखिर गुड्डी पर हमारे भाई चढ़ते तो स्साली ही तो होगी वो ) और कम्मो ने जो रूप बताया , किसी ने गुड्डी को एक बार भी देखा होता तो समझ जाता की उसी की बात हो रही है , खूब गोरी , छोटे छोटे लेकिन खूब कड़े कड़े जोबन , एकदम कसी कच्ची कली , अभी तक किसी ने छुआ भी नहीं ,


कम्मो ने तरह तरह की कसमें दिलवाई , उनसे दुहरावायी ,...


मैंने भी कम्मो की बात में हाँ में हाँ मिलाई , सच में एकदम कमसिन , मेरी सहेली ( गुड्डी मेरी सहेली भी तो थी , लेकिन मेरी सहेली के होने के नाते उनकी साली का भी रिश्ता बन गया )

तबतक उनकी पैंट भी उतर गयी , कम्मो ने मुझे इशारा किया और एक ग्लास डबल भांग वाली ठंडाई जो उनकी बहन को पिलाई गयी थी मैंने उन्हें भी ,

और तबतक कम्मो ने उनका तनता मूसल सम्हाल लिया , होली में तो कितनी बार कम्मो भौजी ने अपने देवर के मूसल को खोल के रंग रगड़ा था , सुपाड़ा सहलाया था ,


और कम्मो की उंगलिया , कम्मो की बातें , कच्ची उम्र वाली साली की बात ,

एक झटके में कम्मो ने सुपाड़ा खोल दिया।

अब वो पूरे एक बित्ते का अपने असली रूप में ,

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komaalrani

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कम्मो की शर्त

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और कम्मो की उंगलिया , कम्मो की बातें , कच्ची उम्र वाली साली की बात ,



एक झटके में कम्मो ने सुपाड़ा खोल दिया।

अब वो पूरे एक बित्ते का अपने असली रूप में ,



और कम्मो ने शर्त बताई ,

कच्ची है तो झिल्ली तो फटेगी ही , लेकिन कम्मो ने शर्त ये लगाई है की सिर्फ तीन बार में पूरा मूसल ठेल देना है ,

पहली बार में सुपाड़ा

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दूसरी बार में आधा , और झिल्ली फट जानी चाहिए और


तीसरी बार में जड़ तक मूसल अंदर , तोहरी भौजाई की इज्जत का सवाल है ,


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पहले तो वो जोश में आ गए , लेकिन फिर उनकी मन में हिचक आ गयी



" आप तो कह रही थीं की कच्ची उम्र की कच्ची कली तो , एक बार में , मेरा इतना ,... "



" तुंहु न , आखिर तोहार भौजी हूँ , ... ओकर फैलावे क सटावे क जिम्मेदारी मेरी है , बस ओकरे बाद जितनी ताकत हो तोहरे कमर में मार दिहा धक्का , चिल्लाई तो चिल्लाय दिहा , ... "

कम्मो ने रास्ता बताया।

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सच में भौजी के लिए अपनी कुँवारी ननद की बुर जबरन फैला के उसमें उसके भइया का लंड सटाने से ज्यादा मजा क्या हो सकता है , ...

मैंने भी अपना रोल निभाया ,

" हे तानी उस स्साली की शर्त भी तो बता दो, उसने कहा था, इनकी आँख पर पट्टी कस के बंधी होनी चाहिए "


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मेरी जिमेदारी 'बछिया ' को तैयार करने की थी , और कम्मो की जिम्मेदारी सांड़ को ,



आज कुछ भी हो जाय 'सांड़' को ' बछिया ' पर चढ़ाना ही था ,
 
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chodumahan

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दो वर्ष,

यह कहानी अप्रेल २०१९ में शुरू हुयी थी ,

और तीसरी कसम की तरह मैंने कसम खायी थी, ये कहानी फागुन के दिन चार और जोरू के गुलाम की तरह उपन्यास की साइज की नहीं होगी।

एक ऐसे फोरम के बंद होने से जिसके बारे में न लिखने वाले सोचते थे न पढ़ने वाले की वो बंद होगा पर उसके बंद होने से वो कहानी /उपन्यास अधूरा ही रह गया खैर अब इस फोरम में उसे फिर से शरू कर के ,...

दोनों, फागुन के दिन चार और जोरू का गुलाम मेरे लेखे ( एम् एस वर्ड , मंगल फ़ॉन्ट , साइज ११ ) १००० पन्ने से ज्यादा थे, पीडीफ में भी शायद ८०० या उससे ज्यादा और अगर कभी पुस्तकाकार छपें तो भी ४०० -५०० पन्ने से कम नहीं,

इसलिए मैंने पहली सीमा तय की आकर की, १००० पृष्ठों से बड़ी नहीं होगी

और कथावस्तु भी सीधी सादी एक नव युवा दम्पति की कहानी,

न कोई रोमांस ( विवाह पूर्व का ) न कोई चक्कर , न सीरियल सेक्स , न इन्सेस्ट

अधिकतर पति पत्नी के रंग में डूबने उतराने की कहानी ( हाँ क्षेपक के तौर पर, कुछ प्रसंग जरूर आ गए हैं , देवर और ननद की सहेली , कम्मो लेकिन वो कहानी के अभिन्न अंग ही है )

कहानी की शुरुआत ही होली के जिक्र से हुयी थी और मैंने कहा था की ससुराल में ( मेरी ) होली मेरी तीसरी होली है , और यह भाग सिर्फ पूर्वपीठिका भर शायद था ,

पर कहनियां बच्चो की तरह होती हैं या जवान होती लड़कियों की तरह किसी की बात मानी हैं उन्होंने जो मेरे बात मानती ,

और जैसे लड़कियां जब बड़ी होनी शुरू होती हैं तो झट्ट से बड़ी हो जाती हैं , बस यही हाल इस कहानी की है , ...

पर एक ऐसे कहानी जो न पेज टर्नर है , न जिसमें कोई सस्पेंस हैं न टैबू , सेक्स भी अधिकतर पति पत्नी का ,...

हाँ घर का माहौल है , एक विस्मृत से हो रहे संयुक्त परिवार का जहाँ सास अपने बेटे से ज्यादा नयी बहु का साथ देती है, बेटी से ज्यादा दुलार देती है, जेठानी न सिर्फ छेड़खानी में साथ देती है बल्कि देवरानी उसकी पक्की सहेली है,

पर अब यह कहानी करीब ९०० पन्नो के आस पास पहुँच रही है , ( वर्ड में टाइप करने में )

हाँ एक बात की सफाई , ..

होली का मौसम हो , फागुन लग गया हो और होली के प्रसंग न हों ,...इसलिए पिछले १००- १५० पन्नो से ये कहानी थोड़ी बहुत होली पूर्व होली के माहौल में मुड़ गयी ,


नहीं नहीं , ये कहानी अभी ख़तम नहीं हो रही , कुछ दिन और आप का साथ रहेगा इस कहानी के साथ

पर दो वर्ष लंबा

यह समय है आप सबको धन्यवाद देने का इस यात्रा में सहभागी होने का

और ये थोड़ी अलग ढंग की कहानी होने पर पर , इसे पंसद करने के लिए , कमेंट करने के लिए

कृतग्यता व्यक्त करने का
ऐसा लगता है जैसे कि अभी कल ही बात है.....
और विषय वस्तु तो वही पति-पत्नी ....लेकिन प्रस्तुतिकरण और अंदाजे बयां एकदम अलग...
अलग अलग पात्र भी जरुरी होते हैं नहीं तो एकरूपता हो जाती है और पाठकों का ध्यान भटकने लगता है...
गाँव की ठेंठ प्रस्तुति मन के साथ तन को भी गुदगुदा देती है...
और सबसे बड़ी बात... पात्रों के बीच सम्वाद की विविधता....और हरेक परिवेश के अनुसार मानवीय भावनाओं विस्तृत प्रदर्शन....
आप all rounder हैं भौजी...
कृतज्ञ तो हम पाठकों को होना चाहिए जो ऐसे रचनाकार के कृति का लाभ उठा रहे हैं....
लेकिन फिर भी मेरा एक आग्रह है कोई सीमा न रखें ... न पृष्ठ की ...न समय की और न ही भावनाओं की...
कहना तो बहुत कुछ चाहता हूँ लेकिन शब्द नहीं मिल रहे... बाकी आप शब्द बिना कहे भी आप खुद समझ लेंगी तो बहुत कृपा होगी....
धन्यवाद
 

komaalrani

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ऐसा लगता है जैसे कि अभी कल ही बात है.....
और विषय वस्तु तो वही पति-पत्नी ....लेकिन प्रस्तुतिकरण और अंदाजे बयां एकदम अलग...
अलग अलग पात्र भी जरुरी होते हैं नहीं तो एकरूपता हो जाती है और पाठकों का ध्यान भटकने लगता है...
गाँव की ठेंठ प्रस्तुति मन के साथ तन को भी गुदगुदा देती है...
और सबसे बड़ी बात... पात्रों के बीच सम्वाद की विविधता....और हरेक परिवेश के अनुसार मानवीय भावनाओं विस्तृत प्रदर्शन....
आप all rounder हैं भौजी...
कृतज्ञ तो हम पाठकों को होना चाहिए जो ऐसे रचनाकार के कृति का लाभ उठा रहे हैं....
लेकिन फिर भी मेरा एक आग्रह है कोई सीमा न रखें ... न पृष्ठ की ...न समय की और न ही भावनाओं की...
कहना तो बहुत कुछ चाहता हूँ लेकिन शब्द नहीं मिल रहे... बाकी आप शब्द बिना कहे भी आप खुद समझ लेंगी तो बहुत कृपा होगी....
धन्यवाद


Thanks sooooooooooooo much, kya kahun main,...next post soon

मेरी दो कहानियां ऐसी हैं जिनमें मैंने सीमाओं को तोड़ने की कोशिश की बल्कि तोड़ भी दिया, मजा पहली होली का ससुराल में, एक छोटी कहानी लेकिन जिसमें रिश्तों और टैबू की दीवारें टूटीं ( सास-दामाद) और किंक भी पहली बार , और उसके बाद जोरू का गुलाम जो लिखी ही फेम डोम और सीसिफिकेशन के आधार पर गयी पहले अंग्रेजी में सिर्फ इस लिए की भारतीय परिवेश पर आधारित इस तरह की कहानियां नहीं थीं और हिंदी में थोड़ा सा फेम डॉम सॉफ्ट हुआ बल्कि वो एस एम् टी आर ( शी मेक्स द रूल ) में बदल गयी, लेकिन छोड़ दें तो ज्यादातर कहानियों में एक सीमा का मैंने निर्वाह किया , और दो कहानियों , इस में और शादी ससुराल और हनीमून में तो एकदम परपंरा का भी , और शायद इसीलिए ये कहानी थोड़ी अलग भी है , इसी तरह लला फिर अइयो खेलन होरी में भी , रोमांस थोड़ा सा अवसाद और फिर सुखान्त होने का पुट है,

इसलिए कई बार पाठक /पाठिकाओं की मांग पूरा करना कठिन रहता है , हाँ बंधन कहीं टूटते हैं तो होली के प्रंसंग में जहाँ मेरी लेखनी मेरे कब्जे में नहीं रहती , कई बार लेकिन होली में भी बंधन रहे तो होली क्या हुयी,

खैर चलिए अब अगली पोस्ट का आनंद लीजिये
 
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komaalrani

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'बछिया '


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मैंने भी अपना रोल निभाया ,

" हे तानी उस स्साली की शर्त भी तो बता दो, उसने कहा था, इनकी आँख पर पट्टी कस के बंधी होनी चाहिए "

…..

मेरी जिमेदारी 'बछिया ' को तैयार करने की थी , और कम्मो की जिम्मेदारी सांड़ को ,


आज कुछ भी हो जाय 'सांड़' को ' बछिया ' पर चढ़ाना ही था ,

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मेरी बछिया सिकुड़ी , दबकी , घबड़ायी बगल के कमरे में दुबकी बैठी थी , अपने हाथों से दोनों नए आये छोटे छोटे जोबन को छुपाने की कोशिश करती ,

नहीं नहीं हम लोगों ने उसके सब कपडे नहीं उतारे थे सिर्फ टॉप और स्कर्ट उठाके काम चला लिया था , हाँ ब्रा और पैंटी जरूर और बाद में कम्मो ने टॉप भी , स्कर्ट वो अभी पहने थी ,...

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पहले तो मैंने उसे गुदगुदी लगाई , कान में फूका , गाल पर हलकी सी चुम्मी ली , चपत लगाई , फिर धीमे से बोली


" हे अभी तो खुद परेशान हो रही थी , भौजी झाड़ दो , झाड़ दो , अब आगया है झाड़ने वाला तो घबड़ा रही है , तेरी दोनों सहेलिया कब की फड़वा चुकी ,.... चल यार , .... "



" नहीं नहीं भाभी , "

उसने अपने दोनों हाथों से पलंग जिस पर वो बैठी उसे कस के पकड़ने की कोशिश की , बस उसके दोनों कच्चे टिकोरे खुल गए और मेरी चांदी हो गयी ,

किसी लड़की की चूँचिया बस मेरे हाथ में आ जाये , दो मिनट में उसे पनिया देने की ट्रिक मेरी गाँव की भाभियों ने मुझे नौवें दर्जे में ही सिखा दी थी , निप्स को कैसे फ्लिक करें , कैसे कभी दबाएं , कभी सहलाएं ,

और मेरी 'बछिया ' मेरी ननद , इनकी ममेरी बहन दो मिनट में गरमा गयी , पनिया गयी ,

उसे गुदगुदी बहुत लगती थी , मेरा एक हाथ उसकी जांघों पर ,... वो खिलखिलाने लगी , फिर तो मेरी हथेली जांघों के बीच , अपनी गदोरी से मैं वहां रगड़ने लगी , पहले से पनिया रही थी , अब तो एकदम गीली ,....


" देख यार , कभी न कभी तो फटनी ही है तो आज ,... मौका भी है , दस्तूर भी है ,... "

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मेंने सारे टोने टोटके पहले से कर लिए थे अपनी इस छोटी ननद के साथ , उनके गन्ने का पूरा रस , इसे पिला चुकी थी , उन्ही के सामने ,

उन्हें भी मालूम था की उनकी सीधी साधी बहिनिया उनका गाढ़ा वीर्य रस घोंट रही है ,

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और उनकी बहन को भी ,

इनकी सास ने नहीं मेरी सास ने ये टोटका बताया था , किसी मर्द की मलाई अगर किसी कुँवारी लड़की को पिला दो तो बस उस लड़की की गुलाबो पर उस मर्द के खूंटे का नाम लिख जाता है , और अगर उस मरद को उस कुँवारी लड़की की चासनी चटा दो , तो फिर तो खुद ही वो ,...

मुझे मालूम था की इनकी मस्त चढ़ती जवानी में बौराई बहिनिया आने वाली है, बस इनके मोटे कड़े खूंटे को मैंने जम के चूसा , कटोरी से भी ज्यादा रबड़ी मलाई मेरे मुंह में , और बिना ज़रा भी खुद घोंटे इनके सामने ही मेरे मुंह से इनकी बहिनिया के मुंह में ,

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इसकी चासनी भी भी मैंने पहले भी चटाई थी इन्हे और आज कम्मो ने भी अपने 'सांड़ ' को ,...

इसने तो उनके मसल की कितनी फोटुएं देखी थी , और मुझे उसे घोटते हुए भी , मन तो उसका कर ही रहा था , बस डर लग रहा था ,
और ये बात उसकी बात से भी जाहिर हो गयी , ...



" भाभी ,... लेकिन ,... लेकिन दर्द बहुत होगा। "

एकदम डरती कांपती थरथराती आवाज में , रुक रुक कर , सहमी हुयी , ...

जैसे किसी बकरी के बच्चे को अंदाज लग जाए की अब उसे छूरी के नीचे जाना है ,


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komaalrani

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बस दस मिनट

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जैसे किसी बकरी के बच्चे को अंदाज लग जाए की अब उसे छूरी के नीचे जाना है ,

और इस बकरी को तो भोंथरी छुरी के नीचे ,


लेकिन उसके बिना खाने वाले को मजा कैसे आएगा ,...



मैंने भी न उसे झूठा ढांढस दिलाया , न झूठ बोला , साफ़ साफ़ बोली मैं ,

" दर्द तो होगा ही जब फटेगी ननद रानी "



और मैं और कम्मो दोनों चाहती थी ,

ये खूब चीखे चिल्लाये , गाँड़ पटके, नौ नौ टेसुए बहाये ,

जैसे पानी के बाहर निकलने पर मछली की हालत होती है उस तरह तड़फड़ाये ,... और कम्मो का सांड़ , कस के इस बछिया को दबोचे रहे ,

भले ही ये रोती रहे , चीखती रही , इसकी कच्ची कसी चूत फ़ट कर फचफचा कर खूब खून फेंके ,...


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अरे नयी ननदें जब गौने से लौटती हैं , तो मेरे गाँव में सारी भौजाइयां , करोद करोद कर कैसे दर्द हुआ जब फटी ,...

और यहाँ तो जब ननद की फटेगी तो दो दो भौजाइयां , साथ साथ सामने देख्नेगी कैसे चीखती है ये ,

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और सिर्फ दो भौजाइयां ही नहीं ,... मैंने अपने मायके रीतू भाभी को पांच मिनट पहले बता दिया था जब उनके नन्दोई आये तभी ,बस लाइव टेलीकास्ट होगा

सिर्फ इनकी साली , सलहज ही नहीं , इनकी सास भी इन्तजार कर रही थीं , कैसे ये अपनी ममेरी बहन की फाड़ते हैं , और फिर आगे के लिए वीडियो रिकार्डिंग भी



लेकिन फिर मैंने थोड़ा उसे छेड़ा ,



" हे मुझे भी तो दर्द हुआ था , "

वो थोड़ा सा मुस्करायी , बोली , हाँ बहुत जोर से चीखी थीं दस बजकर सताइस मिनट है न भाभी , ...

मेरी सारी ननदें बाहर छत पर कान फाड़े खड़ी थीं ,

" चल उठ न , फिर मैं और तेरी कम्मो भाभी रहेंगी न साथ में , क्यों घबड़ा रही है , "

मैंने खींच कर उसे उठाया ,



वो खड़ी तो हुयी लेकिन एक बार फिर चलते चलते सहम गयी ,



" नहीं भाभी , नहीं , हिम्मत नहीं पड़ रही है , प्लीज भाभी रहने दीजिये , नहीं ,... "

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" अरे यार तुझे क्या करना है , अच्छा एक काम कर मेरी गारंटी , बस दस मिनट के लिए मेरी बात मान ले , उसके बाद तेरी वाली ,... जो तू चाहे ,... तुझे कुछ नहीं करना है , बस निहुर जाना टाँगे फैला कर , ... कस के दोनों हाथ से पलंग का सिरहाना पकडे रखना ,... और हाँ आंखे बंद , बल्कि अभी से आँख बंद , .. मैं हूँ न तुझे हाथ पकड़ा के ले भी चल रही हूँ , बस जहाँ जैसे कहूँगी निहुर जाना , दोनों हाथ से कस के पकड़ लेना , उसके बाद तुझे पता भी नहीं चलेगा , सच्ची , ... भाभी पर विशवास है की नहीं , ... "


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" है भाभी , ... "

अब उसने आँखे तो बंद कर ली , लेकिन चेहरे पर दर्द का डर अभी भी था ,...

मैंने उसकी ऊँगली पकड़ ली और उसे लेकर ,..

दस मिनट की बात मैंने इस लिए की थी की एक बार इनका मोटा सुपाड़ा इसकी कुंवारी चूत में धंस जाता तो न ये कुछ कर पाती न इसके भैया ,

फिर तो कम्मो थी न ,...

जब हम दोनों मेरे कमरे में आये ,



'सांड ' सचमुच में एकदम तन्नाया , बौराया ,..
 

chodumahan

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Thanks sooooooooooooo much, kya kahun main,...next post soon

मेरी दो कहानियां ऐसी हैं जिनमें मैंने सीमाओं को तोड़ने की कोशिश की बल्कि तोड़ भी दिया, मजा पहली होली का ससुराल में, एक छोटी कहानी लेकिन जिसमें रिश्तों और टैबू की दीवारें टूटीं ( सास-दामाद) और किंक भी पहली बार , और उसके बाद जोरू का गुलाम जो लिखी ही फेम डोम और सीसिफिकेशन के आधार पर गयी पहले अंग्रेजी में सिर्फ इस लिए की भारतीय परिवेश पर आधारित इस तरह की कहानियां नहीं थीं और हिंदी में थोड़ा सा फेम डॉम सॉफ्ट हुआ बल्कि वो एस एम् टी आर ( शी मेक्स द रूल ) में बदल गयी, लेकिन छोड़ दें तो ज्यादातर कहानियों में एक सीमा का मैंने निर्वाह किया , और दो कहानियों , इस में और शादी ससुराल और हनीमून में तो एकदम परपंरा का भी , और शायद इसीलिए ये कहानी थोड़ी अलग भी है , इसी तरह लला फिर अइयो खेलन होरी में भी , रोमांस थोड़ा सा अवसाद और फिर सुखान्त होने का पुट है,

इसलिए कई बार पाठक /पाठिकाओं की मांग पूरा करना कठिन रहता है , हाँ बंधन कहीं टूटते हैं तो होली के प्रंसंग में जहाँ मेरी लेखनी मेरे कब्जे में नहीं रहती , कई बार लेकिन होली में भी बंधन रहे तो होली क्या हुयी,

खैर चलिए अब अगली पोस्ट का आनंद लीजिये
किसी लेखक का ही कहा हुआ मैं भी दोहराना चाहता हूँ...
"रचना तो स्वान्तः सुखाय होनी चाहिए"
हाँ थोड़ा-बहुत जहाँ संभव हो पाठकों की बात रख लेनी चाहिए...लेकिन कहानी जो सोच कर शुरू की गई हो उसमें आमूल चूल परिवर्तन न हो...
होली में तो किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए...इसलिए लेखनी बेधडक और बेबाक हो रस और रंग का मजा आ जाता है....
बस आप लिखती रहें और हमें कृतार्थ करती रहें..
 
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komaalrani

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किसी लेखक का ही कहा हुआ मैं भी दोहराना चाहता हूँ...
"रचना तो स्वान्तः सुखाय होनी चाहिए"
हाँ थोड़ा-बहुत जहाँ संभव हो पाठकों की बात रख लेनी चाहिए...लेकिन कहानी जो सोच कर शुरू की गई हो उसमें आमूल चूल परिवर्तन न हो...
होली में तो किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए...इसलिए लेखनी बेधडक और बेबाक हो रस और रंग का मजा आ जाता है....
बस आप लिखती रहें और हमें कृतार्थ करती रहें..


Thanks so much
 
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