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अब उसने आँखे तो बंद कर ली , लेकिन चेहरे पर दर्द का डर अभी भी था ,...
मैंने उसकी ऊँगली पकड़ ली और उसे लेकर ,..दस मिनट की बात मैंने इस लिए की थी की एक बार इनका मोटा सुपाड़ा इसकी कुंवारी चूत में धंस जाता तो न ये कुछ कर पाती न इसके भैया , फिर तो कम्मो थी न ,...
जब हम दोनों मेरे कमरे में आये ,
'सांड ' सचमुच में एकदम तन्नाया , बौराया ,... कम्मो की ऊँगली का जादू ,... और कम्मो गाँव का सुद्ध कोल्हू का पेरा सरसों का तेल , लेकिन सिर्फ सुपाड़े पर,
एक बार सुपाड़ा अटक गया,धंस गया फिर तो जितना रगड़ता हुए घिसटते हुए जाएगा उतना ही दर्द के मारे ये गाँड़ पटकेगी,चिलायेगी,... सुपाड़ा उनका मोटा भी कितना था, और यहाँ उसकी चीख सुनने वाला था कौन उसकी भौजाइयों के अलावा,
सुपाड़ा उनका मोटा भी कितना था,
और ऊपर से कम्मो ने शर्त लगा दी थी, अगर पहले धक्के में ही सुपाड़ा नहीं अंदर गया तो बस समझ लो , देवर भाभी की कुट्टी पक्की वाली, तो आज तो वो पूरा कमर का जोर, और उनकी कमर का जोर मुझसे ज्यादा कौन जानता था
' बछिया ' मेरी घबड़ा रही थी , डर से काँप रही थी , सिकुड़ी जा रही थी ,
और 'सांड़' एकदम बेताब था , बावला हुआ जा रहा था , उसका बित्ते भर का खूंटा जैसे तन कर गज भर का हो गया था , उसे 'बछिया' की महक मिल गयी थी
जैसे मैंने कहा बस वो निहुर के ,
मैंने उसकी टांगों बीच अपनी टाँगे डाल अच्छी तरह से , चौड़े से फैलवा दी , जितना वो फैला सकती थी , उससे भी ज्यादा ,... उसके मुलायम पेट के नीचे दो मोटे मोटे कुशन रख दिए ,... जिससे 'सांड ' का धक्का सीधे वहीँ ,
स्कर्ट मैंने मोड़ कर छल्ले की तरह अपनी ननद की कटीली पतली कमरिया में फंसा दिया , अच्छी तरह अब कित्ते भी धक्के लगे वो ढीली नहीं होने वाली थी , और हलके से दुलार से उसके छोटे छोटे कसे चूतड़ सहलाते हुए मेरी दो उँगलियाँ उसकी गुलाबो की दरार के बीच धंस गयी ,
गुलाबो मेरी 'बछिया' की दूबदूबा रही थी , यानी मन मेरी 'बछिया' का भी कर रहा था , लेकिन 'सांड़ ' से डर रही थी ,...
कम्मों ने मेरी ओर इशारा किया , ' बछिया' की गुलाबो की ओर , मैं उसे कस के फैला दूँ ,....
मैंने दोनों अंगूठे से उसे फ़ैलाने की कोशिश की , लेकिन कम्मो को मजा नहीं आया , वो खुद अपने 'सांड़ ' को छोड़ कर मेरी ' बछिया' के पास आयी
और मान गयी मैं कम्मो को कितनी बेरहमी से , कितना कस के चियारा उसने मेरी ननद की बुर को , दोनों अंगूठे अंदर डाल के दोनों फांके बाहर की ओरपूरी तरह से फैला रखा था ,
मेरी बछिया दर्द से बिलबिला रही थी , लेकिन उसके बिना इतना मोटा सुपाड़ा ,... मैंने कम्मो की सांड़ की ओर देखा ,
क्या मोटा तन्नाया सुपाड़ा था , कड़ुवा तेल से चुपड़ा चपचपाता ,...
और आँखों पर उनकी ममेरी बहन की ब्रा पैंटी के साथ एक और खूब मोटी सी काली पट्टी , सच में उन्हें कुछ नहीं दिख रहा होगा ,...
मैंने अपने हाथ से ' सांड़ ' का खूंटा पकड़ा और दुबदुबाती अपनी ' बछिया ' की बिल पर सेट कर दिया,
मेरी बछिया दर्द से बिलबिला रही थी , लेकिन उसके बिना इतना मोटा सुपाड़ा ,... मैंने कम्मो की सांड़ की ओर देखा ,
क्या मोटा तन्नाया सुपाड़ा था , कड़ुवा तेल से चुपड़ा चपचपाता ,...
और आँखों पर उनकी ममेरी बहन की ब्रा पैंटी के साथ एक और खूब मोटी सी काली पट्टी , सच में उन्हें कुछ नहीं दिख रहा होगा ,...
मैंने अपने हाथ से ' सांड़ ' का खूंटा पकड़ा और दुबदुबाती अपनी ' बछिया ' की बिल पर सेट कर दिया,
कम्मो ने बेदर्दी से बिल पूरी तरह फैला रखी थी , वो बेचारी निहुरि जैसे कोई ' बछिया ' पहली बार 'सांड़' के नीचे आ रही हो ,
कम्मो ने मुझे इशारा किया और मैंने उनके दोनों हाथ पकड़ कर ' उसकी ' पतली कटीली कमरिया पर रख दी , उन्होंने कस के दबोच लिया ,
" पेल स्साले कस के "
फुसफुसाती हुयी कम्मो ने उन्हें ललकारा ,
बस कमरे का फर्श नहीं फटा , ...
बाहर फागुनी बयार में झूमते पलाश के पेड़ रुक गए ,
हवा थम गयी , ...
गजब की ताकत , उससे भी दसगुना जोश , ...
उईईईईई , ...
मेरी ननद की चीख कमरे से गूँज उठी , ... लेकिन उससे पहले कम्मो पहले से ही तैयार थी , उसकी तगड़ी हथेली ने उसका मुंह कस के भींच लिया ,
वो दर्द से तड़प रही थी , बिलख रही थी , बड़ी बड़ी कजरारी आँखों में आंसू तैर रहे थे ,
मैं उसकी पीठ सहला रही थी , हिम्मत बंधा रही थी और कनखियों से देख रही थी , उसके भइया का मोटा तगड़ा खूब बड़ा सा सुपाड़ा , तीन चौथाई से ज्यादा अंदर धंसा ,
मेरी निगाह वहीँ चिपकी ,
वो पुश कर रहे थे , .... सूत सूत सरक सरक कर , घिसकता , धंसता अंदर ,
पूरी ताकत से वो ठेल रहे थे ,
वो तड़प रही थी , दर्द के मारे बिसूर रही थी पर कम्मो ने कस के उसका मुंह भींच रखा था ,
मैंने भी दोनों हाथों से कस के अपनी' 'बछिया ' की कमर को जकड रखा था , जिससे वो इंच भर भी इधर उधर न सरक सके ,
गप्पांक
सटाक
पूरा सुपाड़ा अंदर था ,
कम्मो ने मेरी ओर देखा , मैंने बिन बोले ही इशारा किया ,
घोंट लिया इसने पूरा सुपाड़ा ,...
बस कम्मो ने मुंह पर से हाथ हटा लिया , जैसे कह रही हो अब चिल्लाने दो स्साली को , पटकने दो चूतड़ ,अब सुपाड़ा पूरा घुस गया है , लाख कमर झटके चूतड़ पटके , अब निकलने वाला नहीं है ,
मेरी ननद हलके हलके कहर रही थी , बिसूर रही थी , मैं हलके हलके उसकी पीठ सहला रही थी , उसकी कमर सहला रही थी , उसके कान में फुसफुसा रही थी
" अब काहें का दर्द , तूने पूरा मोटा तो घोंट लिया , बस अब थोड़ा सा ढीला कर , उधर से ध्यान हटा दे , कस के निहुरी हुयी , हाँ बस , जरा सा टांगे और फैला न , बस ,... हाँ देखों अब दर्द ख़त्म , मज़ा शुरू। "
मैं उसे फुसला बहला रही थी और अब कम्मो एक बार फिर से 'सांड़' के पास ,
मुझे मालूम था की असली दर्द तो अभी बाकी है , जब झिल्ली फटेगी , जब कली फूल बनेगी , तब ,...
और कनखियों से देख रही थी , कैसे कम्मो अपने ' सांड़ ' को उकसा रही थी , गरमा रही थी , भड़का रही थी ,
उसके दोनों बड़े बड़े जोबन इनकी पीठ पर रगड़ रहे थे , फिर उसकी उँगलियों ने नीचे जाकर इनकी बॉल्स के पास , उँगलियों से सहलाया , दबाया और कान में कुछ बोला ,
कम्मो अपने ' सांड़ ' को उकसा रही थी , गरमा रही थी , भड़का रही थी ,
उसके दोनों बड़े बड़े जोबन इनकी पीठ पर रगड़ रहे थे , फिर उसकी उँगलियों ने नीचे जाकर इनकी बॉल्स के पास , उँगलियों से सहलाया , दबाया और कान में कुछ बोला ,
क्या ताकत वाला धक्का था , कस के मेरी बछिया की कमर पकड़ कर ,
ओह्ह उफ़
बाहर चल रही हवा रुक गयी ,
खिड़की का शीशा चटक गया , इतनी जोर से चीखी उनकी छोटी बहिनिया ,
उईईईईई ओह्ह्ह्हह्ह नहीं , उईईईईई
कम्मो ने आँख के इशारे से मना कर दिया , चीखने दे स्साली को , ...
आधे शहर में तो नहीं लेकिन आधे मोहल्ले में जरूर मेरी छोटी ननद की चीख सुनाई दी होगी ,
लेकिन उनकी ससुराल में उनकी बहन की फटने की चीख पूरी तेजी से सुनाई पड़ी ,
मैंने अपने कैमरे को इस तरह से सेट किया था की लाइव टेलीकास्ट सीधे उनकी ससुराल में हो रहा था , सलहज साली को छोड़िए , उनकी सास , नाउन , उसकी बिटिया , नाउन की बहू सब ,
और मैं क्लोज अप वीडयो , स्टिल सब ननद रानी के मोबाइल से ही , और उससे कम्मो के फोन पर , उसकी मेरे , इनके सबके फोन पर , ... और कल कोई चेक भी करता , तो सब की रिकार्डिंग और ट्रांसमिशन उसी के फोन से मिलता ,...
उईईईईई उईईईईई , अबकी चीख पहली बार से भी तेज थी ,
मैं उसकी पीठ सहला रही थी , उसे हिम्मत दिला रही थी , धक्का अब रुक गया था , आलमोस्ट छह इंच से ज्यादा घुस गया था , ...
रुक रुक कर अभी भी चीखे निकल रही थीं ,
एक बूँद , दो बूँद खून , ...खूंटे पर ,
अब मुझे लगा कम्मो की सोच के बारे में , कितना सही किया उसने इनकी आँख पर ये जबरदस्त पट्टी बाँध के ,
एक बूँद खून इनसे बर्दाश्त नहीं होता , यहाँ तो , ....
तभी फचफचा कर इनकी बहन की कसी कुँवारी कच्ची चूत ने खून फेंक दिया ,...
कम्मो मुस्करा रही थी , इसारे से मुझे बोली , घबड़ा मत ,
मैं भी समझ रही थी , एक तो उमर की बारी , कच्ची और दूसरी उसकी झिल्ली भी थोड़ी , ... फिर कभी उसने खुद भी कस के ऊँगली नहीं किया था की ,...
मेरी ननद रानी की जाँघों पर बुर पर हर जगह खून दिख रहा था ,
मैंने ननद को पुचकारना शुरू किया , इनके दोनों हाथ तो कमर पर थे पर मैंने गुड्डी की छोटी छोटी चूचियों को हलके हलके सहलाना शुरू किया , कभी दुलार से उसके गाल सहला देती ,
चीखें अब तक रुक रुक कर आती हिचकियों में बदल गयी थी ,
अब हलकी हलकी मस्ती की सिसकियाँ भी बीच बीच में सुनाई देती ,
पर भौजाई को तो ननद की चीखें ही हैं खास तौर पर जब ननद का भाई नन्दोई बनकर अपनी बहन की कुँवारी कच्ची बिल में मोटा मूसल पेल रहा हो
जब ननद रानी की चीखें एकदम रुक गयीं , तो कम्मो ने मामला अपने हाथ में ले लिया , बस देवर का खूंटा और उनकी कलाई ,
जब ननद रानी की चीखें एकदम रुक गयीं , तो कम्मो ने मामला अपने हाथ में ले लिया , बस देवर का खूंटा और उनकी कलाई ,
बार बार गोल गोल , जहाँ झिल्ली फटी थी , बस ठीक उसी जगह , रगड़ता , घिसटता , ... थोड़ा आगे बढ़ जाता तो फिर उसी चोटिल जगह पर
और अब चीखें और तेज , बार बार ,...
कुछ देर तंग कर के कम्मो ने अपना हाथ हटा लिया और इन्होने हलक हलके धक्के शुरू किये ,
उन धक्को का असर मुझसे ज्यादा कौन जानता था ,
थोड़ी देर में वही असर इस कच्ची कली पर भी पड़ने लगा , दर्द की जगह मस्ती ने ले ली ,
दो चार मिनट के बाद अचानक कम्मो को याद आया , बात तो एकदम जड़ तक ठेलने की थी और दो ढाई इंच अभी भी मूसल बाहर था ,
मैं खुद पहली बार तो छोड़िये पहली रात भी , ..अगले दिन ,... बहुत मुश्किल से पूरा घोंट पायी थी ये बित्ते भर का खूंटा , और ये कच्ची कली , उमरिया की बारी , पहली बार में ही ,
पर कम्मो तो कम्मो, जब तक कुँवारी कच्ची ननद की फट के चिथड़ा न करवा दे तो कौन भौजाई , उहो , ननद के भइया से ,...
खूंटा उनका न सिर्फ बित्ते भर का था और मोटा भी बहुत ,... उनकी भौजी ने अपने देवर से तीन तिरबाचा भरवाया था , ... पूरा जड़ तक ठेलेंगे ,
और बस कम्मो , ... गालियों की बरसात , और उस के साथ कम्मो का हाथ और उँगलियाँ भी ,
पिछवाड़े कम्मो सहला रही थी , फिर एक साथ दो उँगलियाँ अंदर और ,
" भोंसड़ी के , तोहरी महतारी की गांड तोहरे ससुर से मरवाईं , स्साले ये बाकी का अपनी महतारी के भोसड़े के लिए बचा रखा है , अरे पेल पूरा ,"
कुछ उनकी भौजाई की गालियों का असर , कुछ पिछवाड़े में घुसी दोनों उँगलियों का असर ,
घच्चाक ,
जो मूसल आधे से ज्यादा बाहर उन्होंने निकाल दिया था अब एक झटके में जड़ तक ,
और एक बार फिर मेरी ननद की चीख ,
उईईईईई उईईईईई
दर्द से उसकी देह सिहर गयी , वो तो मैंने कस उसकी देह दबोच रखी थी वरना वो जिस तरह से छटपटा रही थी , फिसलने की कोशिश कर रही थी , मैंने दोनों हाथों से उसकी कुँवारी देह को पूरी ताकत से पकड़ रखा था , एकदम हिलने भी नहीं दे रही थी , लेकिन जिस तरह से वो तड़प रही थी ,
पर वो तड़प ,... मुझे विश्वास नहीं हुआ , उसकी देह हवा में पत्ते की तरह काँप रही थी ,छोटी छोटी चूँचियाँ पत्थर की तरह कड़ी , चेहरे पर एक अलग तरह की मस्ती
चीख सिस्कियों में बदल गयी थी , और मेरी ननद झड़ रही थी ,
उनके लंड का धक्का , सीधे उसकी बच्चेदानी पर लगा था , और उसका वही असर हुआ , जो होना था ,
मैं कम्मो की और देख कर मुस्करायी , वो अपने सांड के पास , मैं अपनी बछिया के पास , .., हम दोनों ने आँखों में हाई फाइव किया , मान गयी मैं कम्मो को
मेरा कहना था की ये कच्ची कली पहली बार में पूरा नहीं घोट पाएगी ,
लेकिन कम्मो ने बोला था की स्साली घोंटेंगी भी अपने भइया का पूरा मूसल और झड़ेगी भी , जो जितना शर्माती है , नखड़े बनाती है वो स्साली एकदम पक्की छिनार होती हैं और ये देखना पहले अपने भइया का घोंटेंगी , फिर हम दोनों के भइया का , ... पक्की छिनार निकलेगी , बस एक बार घोंट ले ,... स्साली
और और क्या झड़ रही थी मस्ती से मेरी ननद , उसकी आँखे पूरी तरह बंद थी , गुलाबो दुबदूबा रही थी , मस्ती से देह काँप रही थी ,
उनके खूंटे ने भी महसूस किया किस तरह , गुलाबो कस कस के उसे भींच रही है , चिपक रही है ,
एक पल के के लिए वो रुके , लेकिन कम्मो ने उन्हें पीछे से पकडे कान में क्या फूंका की एक एक बार फिर धक्के चालू हो गए ,
एक पल के के लिए वो रुके , लेकिन कम्मो ने उन्हें पीछे से पकडे कान में क्या फूंका की एक एक बार फिर धक्के चालू हो गए ,
उनके दोनों हाथ पतली कमर पर थे , आँखों पर कस के पट्टी बंधी थी , दिख तो कुछ पड़ नहीं रहा था , हाँ उनके हाथ कुछ जैसे ढूंढ रहे थे ,
मैं समझ गयी बस कमर से हटाकर उनके हाथ दोनों छोटे छोटे मस्त जोबन पर ,
कुछ देर तक तो सहलाते रहे वो फिर कस के मसलते , धक्के पर धक्के ,
एक बार फिर ननद मेरी कभी दर्द से चीखती तो कभी मजे से
निहुरा के मारना उनकी फेवरिट पोज थी ,
एक बार फिर से फागुन की मस्तानी हवा चल रही थी , बाहर पलाश खिले हए थे , और मेरी ननद मेरे साजन के नीचे दबी चुद रही थी ,
अब उनके साथ मेरी और कम्मो की उँगलियाँ भी कभी ननद रानी के जोबन पर तो कभी बिल पर ,
थोड़ी देर तक ,
मैं ये नहीं कहूँगी की वो धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी लकिन दर्द के साथ हल्का हलका मजा भी ,
अब वो पूरे जोश के साथ , और एक बार फिर मेरी ननद झड़ने के कगार पर , और कम्मो ने कुछ उन्हें उकसाया चिढ़ाया ,
हर धक्का सीधे बच्चेदानी पर , और ननद एक बार फिर झड़ रही थी ,...
आधे घंटे तक बिना रुके वो , धक्के पर धक्का , ... और जब ननद रानी तीसरी बार झड़ना शुरू कर दी , तो मेरी बछिया की गुलाबो ने कस के कम्मो के सांड के खूंटे को कस के भींचना शुरू किया और अब की वो भी
झड़ते समय तो उनकी आँखे वैसे ही बंद हो जाती थी , पर कम्मो ने उनकी आँख पर बंधी पट्टी खोल दी , और उकसाया ,
" अरे तनी आपन माल को देख तो लो , कइसन मस्त तोहार माल घोंट रही है, तोहार बहिनिया "
वो इस हालत में थे की बाहर निकाल भी नहीं सकते थे , पिचकारी बार बार दूध मलाई छोड़ रही थी , और मैं और कम्मो उन्हें छेड़ रहे थे ,
क्यों मजा आया बहिन चोद, बहिनिया को चोद के,
क्या हचक हचक के अपनी बहिन क कुँवारी कोरी बुर फाड़े हो , बहिन चोद
थोड़ी देर बाद ,... मैं और कम्मो , भइया बहिनी को छोड़कर नीचे उतर आये थे ,