- 22,324
- 58,179
- 259
जरूर कीजिये और जल्दी कीजिये
आपके कल्पनालोक में डूबने के अनुभव बड़ा रसपूर्ण है
Thanks for nice words
जरूर कीजिये और जल्दी कीजिये
आपके कल्पनालोक में डूबने के अनुभव बड़ा रसपूर्ण है
मज़ा आ गयाखड़ी खड़ी
पहली बार मैं खड़ी खड़ी चुदवा रही थी , लेकिन उसने जिस तरह से मुझे पकड़ रखा था , मेरा सारा बोझ उसके हाथों में , उसकी देह पर ,
जिस पर मैंने अपनी पूरी जिंदगी का बोझ डाल दिया था ,
और अब जब लंड पूरी तरह अंदर घुस गया था ,
उनका एक हाथ मेरे जोबन पर और दूसरा मेरी कमर पर , जहाँ से उनकी ऊँगली सरक कर मेरी गुलाबो का हालचाल ले लेता था ,
मेरी गुलाबो खुद सिकुड़ कर उनके खूंटे को दबोच रही थी , जैसे अब बाहर नहीं निकलने देगी ,
मैंने पीछे मुड़ कर उन्हें चूम लिया ,
थोड़ी देर में जिस तरह उन का मूसल मेरे अंदर घुसा था , उनकी जीभ मेरे मुंह में , और मैं कस कस के चूस रही थी ,
इसी स्वाद के लिए तो मैं तरस रही थी हफ्ते भर से ,
ऊपर वाले होंठ में ,
नीचे वाले होंठ में
उन्होंने दोनों हाथों से कस के मुझे पकड़ लिया था और अब हलके हलके धक्के मार रहे थे ,
सच में खड़े खड़े चुदवाने का मजा ही अलग था ,
उनकी तरह मुझे भी डॉगी पोज में मजा बहुत आता था , इसलिए इन्हे चिढ़ाकर , उकसा कर , उनकी बहनों का नाम ले ले कर , ...
पर जब वो कुतिया बना के मुझे लेते थे तो बस , मैं उन्हें देख नहीं पाती थी ,
अभी तो मैं मुड़ के न सिर्फ उन्हें देख रही थी बल्कि कस के के उन्हें चूम रही थी ,
अपने मुंह में घुसी उनकी जीभ कस के चूस रही थी ,
मेरा एक हाथ भी , गुलाबो पर , ... और उसमें अंदर बाहर हो रहे मूसल को छू देता था ,
में अपनी देह उनकी देह पर रगड़ रही थी
मैं पलंग के सिरहाने खड़ी थी , एक हाथ से सिरहाना पकड़े , उसका सपोर्ट लिए ,
मैंने एक पैर मोड़ कर , घुटने के बल , पलंग पर रख दिया था ,
और एक हाथ उस लड़के की गर्दन पर , .... जो बहुत बहुत बदमाश था , ... और उतना ही प्यारा भी ,...
धक्के लगाने का काम अगर उसका था
तो मुड़ कर चुम्मा लेने का मेरा , कभी उसकी जीभ मेरे मुंह में , तो कभी मेरी जीभ उसके मुंह में , कभी मैं उसके होंठों को जीभ को चूसती ,
तो कभी वो ,
इस चुम्मा चाटी के साथ जो उसकी फेवरिट चीज़ थी , और जो मेरी देह में भी आग लगा देती थी ,
वो काम उसका एक हाथ कर रहा था ,
जोबन मर्दन ,
कभी वो हलके हलके सहलाते तो कभी अचानक पूरी ताकत से रगड़ने मसलने लगते , तो कभी अंगूठे से निपल फ्लिक करते ,
और हाँ , धक्के रुकने का नाम नहीं ले रहे थे ,
पहली बार मैं खड़े हो कर चुदवा रही थी
पहली बार वो खड़े हो कर चोद रहे थे ,
एक नया मजा ,
लेकिन साथ में वो दुष्ट मुझे आज झड़ने नहीं दे रहा था , ...एक बार तो मैं पहले ही झड़ गयी थी ,
मुझे याद है मायके में एक बड़ी उम्र की भाभी थीं , वो , ... उन्होंने एक बात बतायी थी , ...
१०० में दो चार लड़कियां ही होंगी , जिनका मर्द उन्हें झाड़ने के बाद ही झड़ता होगा , वरना तो ,...
तो लड़की को झूठ मूठ का बहाना बनना पड़ता है , वरना मरद को बुरा लगता है , और अगर कभी मरद ने पहले औरत को झाड़ दिया ,...
तो समझो वो औरत बहुत सौभाग्यशाली है ,
यहाँ तो पहली रात से ही कम से कम तीन बार मैं झड़ जाती तो कहीं उनका नंबर आता और वो भी हर बार हम दोनों साथ
मेरी देह बार बार गिनगीना जाती , १५ मिनट से ऊपर हो गए थे उन्हें खड़े खड़े मुझे चोदते , साथ में मस्त जोबन मर्दन , ...
पर जब उन्हें अहसास होता है मैं डिस्चार्ज होने वाली हूँ , वो धक्के और तेज कर देते , पर आखिरी मिनट ,
जब मेरी आँखे मूंदने लगती , देह ढीली पड़ने लगती
वो बदमाश कचकचा के वो कभी मेरी चूँची कचकचा के काट लेते तो कभी गालों पे दांत गड़ा देते , हफ्ते भर तो ये निशान छूटने वाली नहीं थे ,
लेकिन उस समय दर्द के मारे मेरा झड़ना रुक जाता , ... ओर
वो जहाँ काटते वही चूम चूम के जैसे मरहम लगा देते , तो कभी चाट के , ... पर थोड़ी देर में अगली बार फिर , ठीक उसी जगह दुगुनी जोर से काट लेते ,
फिर तो उस निशान के मिटने का सवाल ही नहीं था ,
और मैं चाहती भी नहीं थी , की ये मीठे मीठे निशान मिटे उनके अगले बार आने तक इन्ही निशानों को देख के ये पल रोज रोज याद आएंगे ,
सासु जी और जेठानी की तो कोई बात नहीं , वो देखेंगी , मुस्कराएंगी , ...
और मैं शर्म से अपनी निगाहें नीचे कर लूंगी ,
हाँ छेड़ने वाली तो सिर्फ ननदें होती हैं , ...और यहाँ सिर्फ वही गुड्डी थी , एलवल वाली।
कुछ देर बाद उन्होंने मुझे पलंग पर ही निहुरा दिया और पीछे से घच्चाघच , सटासट
लेकिन एक पोज में न उनका मन भरता न मेरा , कुछ देर में हम दोनों पलंग पर थे ,
वो मेरे ऊपर , मुझे दुहरा कर ,
क्या क्यों धुनिया धुनाई करेगा , हर बार पूरा खूंटा बाहर निकलता , हर बार उस मोटे सुपाड़े का धक्का मेरी बच्चेदानी पर ,
थोड़ी देर में मैं झड़ने लगेगी , और कस के मैंने उन्हें अपनी बांहों में बाँध लिया ,
साथ में वो भी ,
बड़ी देर तक वो झड़ते , ... रुकते , फिर झड़ने लगते , और फिर
हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में बंधे चिपके , सटे न वो अलग होना चाहते थे न मैं ,...
और मैं अपने नितम्बों को पूरी ताकत से ऊपर उठाये , जाँघों को फैलाये, उनकी हर बूँद रोप रही थी , जिससे एक बूँद भी बाहर न छलके ,
छलकने का सवाल भी नहीं था ,
उनका मोटा लौंड़ा , किसी सकरी बोतल में घुसे मोटे कॉक की तरह , अंदर धंसा ठूंसा , घुसा, सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी से चिपका ,
दो वर्ष,
यह कहानी अप्रेल २०१९ में शुरू हुयी थी ,
और तीसरी कसम की तरह मैंने कसम खायी थी, ये कहानी फागुन के दिन चार और जोरू के गुलाम की तरह उपन्यास की साइज की नहीं होगी।
एक ऐसे फोरम के बंद होने से जिसके बारे में न लिखने वाले सोचते थे न पढ़ने वाले की वो बंद होगा पर उसके बंद होने से वो कहानी /उपन्यास अधूरा ही रह गया खैर अब इस फोरम में उसे फिर से शरू कर के ,...
दोनों, फागुन के दिन चार और जोरू का गुलाम मेरे लेखे ( एम् एस वर्ड , मंगल फ़ॉन्ट , साइज ११ ) १००० पन्ने से ज्यादा थे, पीडीफ में भी शायद ८०० या उससे ज्यादा और अगर कभी पुस्तकाकार छपें तो भी ४०० -५०० पन्ने से कम नहीं,
इसलिए मैंने पहली सीमा तय की आकर की, १००० पृष्ठों से बड़ी नहीं होगी
और कथावस्तु भी सीधी सादी एक नव युवा दम्पति की कहानी,
न कोई रोमांस ( विवाह पूर्व का ) न कोई चक्कर , न सीरियल सेक्स , न इन्सेस्ट
अधिकतर पति पत्नी के रंग में डूबने उतराने की कहानी ( हाँ क्षेपक के तौर पर, कुछ प्रसंग जरूर आ गए हैं , देवर और ननद की सहेली , कम्मो लेकिन वो कहानी के अभिन्न अंग ही है )
कहानी की शुरुआत ही होली के जिक्र से हुयी थी और मैंने कहा था की ससुराल में ( मेरी ) होली मेरी तीसरी होली है , और यह भाग सिर्फ पूर्वपीठिका भर शायद था ,
पर कहनियां बच्चो की तरह होती हैं या जवान होती लड़कियों की तरह किसी की बात मानी हैं उन्होंने जो मेरे बात मानती ,
और जैसे लड़कियां जब बड़ी होनी शुरू होती हैं तो झट्ट से बड़ी हो जाती हैं , बस यही हाल इस कहानी की है , ...
पर एक ऐसे कहानी जो न पेज टर्नर है , न जिसमें कोई सस्पेंस हैं न टैबू , सेक्स भी अधिकतर पति पत्नी का ,...
हाँ घर का माहौल है , एक विस्मृत से हो रहे संयुक्त परिवार का जहाँ सास अपने बेटे से ज्यादा नयी बहु का साथ देती है, बेटी से ज्यादा दुलार देती है, जेठानी न सिर्फ छेड़खानी में साथ देती है बल्कि देवरानी उसकी पक्की सहेली है,
पर अब यह कहानी करीब ९०० पन्नो के आस पास पहुँच रही है , ( वर्ड में टाइप करने में )
हाँ एक बात की सफाई , .. होली का मौसम हो , फागुन लग गया हो और होली के प्रसंग न हों ,...इसलिए पिछले १००- १५० पन्नो से ये कहानी थोड़ी बहुत होली पूर्व होली के माहौल में मुड़ गयी , नहीं नहीं , ये कहानी अभी ख़तम नहीं हो रही , कुछ दिन और आप का साथ रहेगा इस कहानी के साथ पर दो वर्ष लंबा
यह समय है आप सबको धन्यवाद देने का इस यात्रा में सहभागी होने का और ये थोड़ी अलग ढंग की कहानी होने पर पर , इसे पंसद करने के लिए , कमेंट करने के लिए कृतग्यता व्यक्त करने का
आपकी कहानी 1000 पृष्ठों से ऊपर हो चुकी है, जो की आपकी निर्धारित सीमा ऊपर जा चुकी है।
धन्यवाद।
.
.
सच में, यह समय हैं, आपको धन्यवाद देने का, इतनी सिंपल कहानी को, इतना आगे, इतनी भव्यता के साथ, आगे बढ़ाने का सामर्थ्य, आप के अलावा सोच भी नहीं सकते।दो वर्ष,
यह कहानी अप्रेल २०१९ में शुरू हुयी थी ,
और तीसरी कसम की तरह मैंने कसम खायी थी, ये कहानी फागुन के दिन चार और जोरू के गुलाम की तरह उपन्यास की साइज की नहीं होगी।
एक ऐसे फोरम के बंद होने से जिसके बारे में न लिखने वाले सोचते थे न पढ़ने वाले की वो बंद होगा पर उसके बंद होने से वो कहानी /उपन्यास अधूरा ही रह गया खैर अब इस फोरम में उसे फिर से शरू कर के ,...
दोनों, फागुन के दिन चार और जोरू का गुलाम मेरे लेखे ( एम् एस वर्ड , मंगल फ़ॉन्ट , साइज ११ ) १००० पन्ने से ज्यादा थे, पीडीफ में भी शायद ८०० या उससे ज्यादा और अगर कभी पुस्तकाकार छपें तो भी ४०० -५०० पन्ने से कम नहीं,
इसलिए मैंने पहली सीमा तय की आकर की, १००० पृष्ठों से बड़ी नहीं होगी
और कथावस्तु भी सीधी सादी एक नव युवा दम्पति की कहानी,
न कोई रोमांस ( विवाह पूर्व का ) न कोई चक्कर , न सीरियल सेक्स , न इन्सेस्ट
अधिकतर पति पत्नी के रंग में डूबने उतराने की कहानी ( हाँ क्षेपक के तौर पर, कुछ प्रसंग जरूर आ गए हैं , देवर और ननद की सहेली , कम्मो लेकिन वो कहानी के अभिन्न अंग ही है )
कहानी की शुरुआत ही होली के जिक्र से हुयी थी और मैंने कहा था की ससुराल में ( मेरी ) होली मेरी तीसरी होली है , और यह भाग सिर्फ पूर्वपीठिका भर शायद था ,
पर कहनियां बच्चो की तरह होती हैं या जवान होती लड़कियों की तरह किसी की बात मानी हैं उन्होंने जो मेरे बात मानती ,
और जैसे लड़कियां जब बड़ी होनी शुरू होती हैं तो झट्ट से बड़ी हो जाती हैं , बस यही हाल इस कहानी की है , ...
पर एक ऐसे कहानी जो न पेज टर्नर है , न जिसमें कोई सस्पेंस हैं न टैबू , सेक्स भी अधिकतर पति पत्नी का ,...
हाँ घर का माहौल है , एक विस्मृत से हो रहे संयुक्त परिवार का जहाँ सास अपने बेटे से ज्यादा नयी बहु का साथ देती है, बेटी से ज्यादा दुलार देती है, जेठानी न सिर्फ छेड़खानी में साथ देती है बल्कि देवरानी उसकी पक्की सहेली है,
पर अब यह कहानी करीब ९०० पन्नो के आस पास पहुँच रही है , ( वर्ड में टाइप करने में )
हाँ एक बात की सफाई , ..
होली का मौसम हो , फागुन लग गया हो और होली के प्रसंग न हों ,...इसलिए पिछले १००- १५० पन्नो से ये कहानी थोड़ी बहुत होली पूर्व होली के माहौल में मुड़ गयी ,
नहीं नहीं , ये कहानी अभी ख़तम नहीं हो रही , कुछ दिन और आप का साथ रहेगा इस कहानी के साथ
पर दो वर्ष लंबा
यह समय है आप सबको धन्यवाद देने का इस यात्रा में सहभागी होने का
और ये थोड़ी अलग ढंग की कहानी होने पर पर , इसे पंसद करने के लिए , कमेंट करने के लिए
कृतग्यता व्यक्त करने का
सच में, यह समय हैं, आपको धन्यवाद देने का, इतनी सिंपल कहानी को, इतना आगे, इतनी भव्यता के साथ, आगे बढ़ाने का सामर्थ्य, आप के अलावा सोच भी नहीं सकते।
आगे भी ऐसे ही आगे बढ़ाते रहो। इसी विश्वास के साथ