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Erotica मोहे रंग दे

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Happy Rita Moreno GIF by American Masters on PBS
 
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Jaqenhghar5

Harami_Rajesh
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ऐसे कमेंट पर तो पूरी कहानी न्योछावर है, मैं क्या कहूं , बस निवेदन कर सकती हूँ , समय निकाल कर मेरी बाकी कहानियों को भी हो सके तो पढ़ें और अपना मंतव्य भी बताएं, आभार, कोटिशः आभार,

एक नयी कहानी शुरू की है- छुटकी, दीदी की ससुराल में हो सके तो उसका भी रस लें, लिंक दे रही हूँ

बिल्कुल बिल्कुल महोदया❤️ अब तो आपकी कहानियां ढूंढ ढूंढ कर पढ़ रहा हूँ। सोने से पहले आपकी कोई कहानी न पढूं तो नींद नहीं आएगी❤️ कमाल है आपकी लिखावट 🙏 प्रणाम
 
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komaalrani

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komaalrani

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Thanks for gracing this thread
 

komaalrani

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बिल्कुल बिल्कुल महोदया❤️ अब तो आपकी कहानियां ढूंढ ढूंढ कर पढ़ रहा हूँ। सोने से पहले आपकी कोई कहानी न पढूं तो नींद नहीं आएगी❤️ कमाल है आपकी लिखावट 🙏 प्रणाम
हो सके तो मेरी नयी कहानी,...

छुटकी - होली, दीदी की ससुराल में,....

के लिए थोड़ा वक्त निकालिएगा और अपने कमेंट से भी उत्साहित करियेगा,.लिंक भी दे रही हूँ , एक बार फिर से असीम आभार


https://xforum.live/threads/छुटकी-होली-दीदी-की-ससुराल-में.77508/
 

8cool9

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one of the sexiest & erotic story i have ever read.......
Thanks Komal Bhabhi for this awesome experience....
Now looking forwarded for छुटकी - होली, दीदी की ससुराल में,....
 
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komaalrani

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one of the sexiest & erotic story i have ever read.......
Thanks Komal Bhabhi for this awesome experience....
Now looking forwarded for छुटकी - होली, दीदी की ससुराल में,....
sure , please do read and oblige me with your wonderful comments in छुटकी - होली, दीदी की ससुराल में,....
 

chodumahan

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मज़े बनारस के











पश्यन्ती,



एक बार फिर मन में वही उथल पुथल,... वाक् भले ही होंठो, जिह्वा तालू और कंठ के संयोजन से निकलता हो, समझी जाने वाली ध्वनियों, शब्दों का रूप लेता हो , अर्थ के साथ हम तक पहुंचता हो, लेकिन उपजता तो वह विचार के रूप में है , हमारे चैतन्य होने का प्रमाण भी है और सम्प्रेषण का साधन भी, ... और वह जन्म लेता है मूलाधार चक्र से, ध्वनि के चार रूप हैं , जो हम सुनते हैं , जिसके जरिये बातचीत करते हैं, वह है वैखरी, ध्वनि का भौतिक और सबसे स्थूल रूप, लेकिन जो विचार या चेतना के रूप में, सबसे बीज रूप में जब यह जन्म लेती है तो उसका रूप परा है, पर वह अति सूक्ष्म होती है , उसके बाद है पश्यन्ती। यदि यह जागृत है, शब्द रूप लेने से पहले ही हम उसे देख सकते हैं , और यह नाभि के स्तर पर जब विचार पहुंचता है उस समय, यानी क्या कहना है उसका मन में तो जन्म होगया पर अभी वह शब्दों का रूप अभी नहीं ले पाया है.

और शब्दों की एक सीमा है, वह विचारों को अभिव्यक्त तो करते हैं पर उसे सीमित भी करते हैं और कई बार अर्थ और विचार में अंतर् भी हो जाता है।

पश्यन्ति और वाक् के बीच मध्यमा का स्थान है, हृदय स्थल पर।

पश्यन्ती की स्थिति में शब्द और उसके अर्थ में कोई अंतर् नहीं होता और विचार का आशय, तत्वर और सहज होता है। इसमें क्या कहने योग्य है, क्या नैतिकता के आवरण में छिपा लें , ऐसा कुछ भी नहीं होता वह शुद्ध रूप में मन की बात होती है, यह वाक् स्फोट का एक सीधा साक्षात्कार होता है, जो कोई कहना चाहता है वह सब सुनाई पड़ता है। और उस स्तर तक विचारों में बुद्धि का हस्तक्षेप, सही गलत का अवरोध नहीं होता है , कामना सीधे सीधे अभिव्यक्त होती है,

और मैं भी उनकी बात सुन पा रहा था , इसका सीधा अर्थ है , ... पश्यन्ति का गुण उनके अंदर तो था ही,वाक् की इस स्थिति को सुनने, समझने की शक्ति उनके आशीष से मेरे अंदर भी बिन कहे सुनने की, सीधे मन से मेरे मन तक पल बना के पहुंचने का रास्ता बन गया था।

दूर किसी घाट से गंगा आरती की हलकी हलकी आवाज गूँज रही थी, नाव नदी के बीचोबीच बस मध्धम गति से चल रही थी, रात हो चली थी इसलिए और कोई नाव भी आसपास नहीं दिख रही थी, हाँ किसी घाट पर जरूर कुछ कुछ लोग नज़र आ रहे थे, मंदिरों के शिखर, घंटो की आवाजें, चढ़ती हुयी रात के धुँधलके में दिख रहे थे. आज आसमान एकदम साफ़ था और चाँद भी पूरे जोबन पर,... कभी मैं आसमान में छिटके तारों को देखता कभी नदी में नहाती चांदनी को , मस्त फगुनहाटी बयार चल रही थी, हवा में फगुनाहट घुली थी, और मेरे मन तन पर भी, ...
पढ़ कर मजा आ गया...
हिंदी साहित्त्य की कोई भी विधा हो ..
ऐसा लगता है आप सबमें पारंगत है....
कई ऐसे शब्द जिन्हें पढ़े या देखे हुए बहुत समय गुजर गया है....
उन्हें पढ़ के सुखद आश्चर्य हुआ...

और आपका शब्दकोष भंडार भी बहुत ही विस्तृत है...
साथ हीं उचित स्थान पर इनका प्रयोग आपके उच्च कोटि के लेखक/लेखिका होने का प्रमाण है....
मेरा शत-शत नमन है आपको....
 
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