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विपरीत रति
स्मर-समरोचित-विरचित-वेशा।
गलित-कुसुम-वर-विलुलित-केशा
शोभित है युवती री कोई।
हरि से विलस रही जो खोई॥
कोई सुन्दर रमणी काम-संग्राम के अनुकूल वेश धारण कर मधुरिपु के साथ विलास कर रही है। रतिक्रीड़ा में उसके केशपाश ढीले होकर इधर-उधर लहरा रहे हैं, उसमें से ग्रंथित पुष्प भी झर गये हैं।
स्मरसमर-रतिकेलि को स्मर-समर कहा गया है। रतिक्रीड़ा में रति-विमर्दन आदि क्रिया होती है, जिससे नायिका का कबरी बन्धन खुल जाता है, उसमें सन्निहित पुष्प झर जाते हैं, विशृंखलित हो जाते हैं।
........
समरति में स्त्री वीर्य धारण कर गर्भवती होती है। विपरीत रति में पुरुष उर्ध्वरेता हो ब्रह्मपद प्राप्त करता है। आसन के अर्थ में विपरीत रति कामशास्त्रियों की सूझ होगी। उसके सौंदर्य पक्ष को स्वीकार करते हुए भी कवियों ने विपरीत रति के आध्यात्मिक संकेत ही दिए हैं।
उरसि मुरारे उपहितहारे धन इव तरल बलाके
तडिदिवपीते रतिविपरीते राजसि सुकृत विपाके।।
बिनती रति बिपरीत को करो परसि पिय पाइ।
हँसि अनबोलैं ही दियौ ऊतरु दियौ बुताइ॥341॥
परसि = स्पर्श कर, छूकर। प्रिय = प्रीतम। पाइ = पैर। अनबोलैं ही = बिना कुछ कहे ही। ऊतरु दियो = जवाब दिया। दियौ बुताइ = दीपक बुझाकर।
प्रीतम ने (नायिका के) पैर छूकर विपरीत रति के लिए विनती की। (इस पर नायिका ने) बिना कुछ मुँह से बोले ही (केवल) हँसकर दीपक बुझाकर उत्तर दे दिया (कि मैं तैयार हूँ, लीजिए-चिराग भी गुल हुआ!)
मेरे बूझत बात तूँ कत बहरावति वाल।
जग जानी बिपरीत रति लखि बिंदुली पिय भाल॥342॥
कत = क्यों। बहरावति = बहलाती है, चकमा देती है। जग जानी = दुनिया जान गई। बिंदुली = टिकुली, चमकी या सितारा।
मेरे पूछने पर अरी बाला! तू क्यों चकमा देती है? प्रीतम के ललाट में (तेरी) टिकुली देखकर संसार जान गया कि (तुम दोनों ने) विपरीत रति की है।
नोट - विपरीत रति में ऊपर रहने के कारण नायिका की टिकुली गिरकर नीचे पड़े हुए नायक के ललाट पर सट गई।
परयो जोर विपरीत रति , सूरत करत रणधीर।
बाजत कटि की किन्कडि , मौन रहत मंजीर।
बिहारी सतसई
..........................
कुछ देर तड़पाने के बाद मैंने अपने निप्स नीचे करके उनके लिप्स के पास ,
लेकिन टच जस्ट एक टच , और फिर मैंने ऊपर हटा लिया और उन्हें छेड़ना शुरू कर दिया ,
" हे लोगे , ... "
" हाँ दो न , ... "
बहुत तड़प रहा था बेचारा।
" मैं इसकी नहीं उसकी बात कर रही हूँ , "
अपने हाथों से मैं अपने निप्स फ्लिक करती बोली ,
समझ तो वो गए थे लेकिन शरमा रहे थे , ....
' जिसकी छोटी छोटी है , एलवल में रहती है , ... तुम्ही तो कहते थे की उसकी अभी छोटी है , बोल लेगा न ,... "
वो एकदम शरम से बीर बहूटी ,...
" अच्छा चल ये तो बता दे , किसके बारे में बोल रही हूँ , .. बोल न ,... "
अब मुश्किल से बोल फूटे उनके ,
" गुड्डी की ,... "
"गुड्डी की क्या ,.. "
मैंने और चिढ़ाया
" गुड्डी की ,... "
वो हिचक रहे थे लेकिन जैसे मैं उन्हें देख रही थी , वो समझ गए की रात भर वो तड़पेंगे लेकिन मैं दूंगी नहीं , ... और बूब्स और उभार बोलने से काम नहीं चलेगा
' बोलो न ,.. " मैं फिर बोली और उन्हें बोलना पड़ा ,
"गुड्डी की चूँची "
यही तो मैं चाहती थी , एक बार अपनी ममेरी बहन के बारे में ऐसा बोलना शुरू कर दें , फिर तो सोचना और उसके बाद ,...
बस मारे ख़ुशी के मैंने उन्हें इनाम दे दिया ,
मेरी निप्स सीधे उनके लिप्स के बीच ,
जैसे पहली बार लिक कर रहे हों , ऐसे चाट चूस रहे थे थे , ...
उनका मुंह बंद था लेकिन मेरा तो खुला था , उनके बाल बिगाड़ते , अपने लम्बे नाख़ून उनके गाल पे चुभाते मैं बोली ,
' उफ़ उफ़्फ़ , कैसे चूसते हो , ... ओह्ह ,.. चलो ऐसे ही उसकी कच्ची अमिया भी कुतरवाउंगी , बहुत जल्दी ,.. सच में बहुत मज़ा आएगा मेरे बालम को
ननद के , कच्चे टिकोरों में ,... "
फिर तो जैसे उनके तन बदन में आग लग गयी हो जैसे , खूंटा उनका खड़ा था और मेरी गुलाबो सीधे उसके ऊपर ग्राइंड कर रही थी ,
मैं बहुत तड़पी थी इस मोटे मूसलचंद के लिए , और अब मैं तड़पा रही थी।
मैंने गुलाबो की दोनों फांके थोड़ी अलग की अपनी ऊँगली से और एक बार फिर सीधे खड़े बौराये सुपाड़े पर , बहुत हलका सा अंदर घुसा ,
और था भी वो कितना मोटा , पहाड़ी आलू ऐसा ,
उनका तो पता नहीं लेकिन मैं पागल हो गयी , सुपाड़े के टच से , पर मैंने अपने पर कंट्रोल किया और बस वैसे ही , हलके हलके ,
पागल वो भी हो रहे थे , नीचे से उचक रहे थे , उचका रहे थे ,
पर मैंने कस के अपने दोनों हाथों से उनके कन्धों को दबोच रखा था
और हलके हलके अपनी गुलाबो को उनके आधे घुसे हुए सुपाड़े पर भींच रही थी उसे दबोच रही थी , उन्हें देख कर मुस्करा रही थी ,
और उनकी आँखों में जबरदस्त प्रणय निवेदन था किसी तरह मैं और , पूरा अंदर ,...
मन तो मेरा भी यही कर रहा था , और मैंने अपनी पूरी ताकत से अपनी देह को उनके ऊपर दबाया ,
और मुझे अहसास हुआ कितनी ताकत लगती होगी पूरा सुपाड़ा अंदर ठेलने में
और लेकिन अब वो भी साथ दे रही थी , और मैं उन्हें नहीं रोक भी रही थी , दो तीन धक्कों के बाद ,
पूरा सुपाड़ा मेरी रसमलाई ने घोंट लिया।
और अब मैदान उन्होंने सम्हाल लिया था ,
उनके दोनों हाथ मेरी पतली कमर पर कस के पकडे जकड़े , ... मुझे वो अपनी ओर खींच रहे थे
मैं भी उन्हें पकड़ के अपनी पूरी ताकत से अपने को उस मोटे मूसलचंद के ऊपर ,..
सूत सूत कर वो अंदर जा रहा था , ...
था भी तो वो मोटा बांस बहुत लम्बा , पूरे मेरे बित्ते की साइज का ,
मेरी और उनकी दोनों की पूरी ताकत के बाद भी सुपाड़े के बाद मुश्किल से एक डेढ़ इंच घुस पाया होगा ,
आधे से ज्यादा अभी भी बाकी था ,
अब मुझसे नहीं रहा जा था , ...
मेरी आँखों ने उनकी आँखों से बिन बोले कुछ कहा ,
और उनकी आँखे तो शादी के पहले से ही बिन बोले मेरी आँखों की हर बात समझ लेती थीं , बस
अगले ही पल , वो ऊपर , मैं नीचे ,... एक पल के लिए वो रुके ,
सच में देखने में बात करने में वो लड़का जितना भी अनाड़ी लगे , लेकिन था पूरा खिलाड़ी ,...
एक सूत भी जो बाहर सरका हो
स्मर-समरोचित-विरचित-वेशा।
गलित-कुसुम-वर-विलुलित-केशा
शोभित है युवती री कोई।
हरि से विलस रही जो खोई॥
कोई सुन्दर रमणी काम-संग्राम के अनुकूल वेश धारण कर मधुरिपु के साथ विलास कर रही है। रतिक्रीड़ा में उसके केशपाश ढीले होकर इधर-उधर लहरा रहे हैं, उसमें से ग्रंथित पुष्प भी झर गये हैं।
स्मरसमर-रतिकेलि को स्मर-समर कहा गया है। रतिक्रीड़ा में रति-विमर्दन आदि क्रिया होती है, जिससे नायिका का कबरी बन्धन खुल जाता है, उसमें सन्निहित पुष्प झर जाते हैं, विशृंखलित हो जाते हैं।
........
समरति में स्त्री वीर्य धारण कर गर्भवती होती है। विपरीत रति में पुरुष उर्ध्वरेता हो ब्रह्मपद प्राप्त करता है। आसन के अर्थ में विपरीत रति कामशास्त्रियों की सूझ होगी। उसके सौंदर्य पक्ष को स्वीकार करते हुए भी कवियों ने विपरीत रति के आध्यात्मिक संकेत ही दिए हैं।
उरसि मुरारे उपहितहारे धन इव तरल बलाके
तडिदिवपीते रतिविपरीते राजसि सुकृत विपाके।।
बिनती रति बिपरीत को करो परसि पिय पाइ।
हँसि अनबोलैं ही दियौ ऊतरु दियौ बुताइ॥341॥
परसि = स्पर्श कर, छूकर। प्रिय = प्रीतम। पाइ = पैर। अनबोलैं ही = बिना कुछ कहे ही। ऊतरु दियो = जवाब दिया। दियौ बुताइ = दीपक बुझाकर।
प्रीतम ने (नायिका के) पैर छूकर विपरीत रति के लिए विनती की। (इस पर नायिका ने) बिना कुछ मुँह से बोले ही (केवल) हँसकर दीपक बुझाकर उत्तर दे दिया (कि मैं तैयार हूँ, लीजिए-चिराग भी गुल हुआ!)
मेरे बूझत बात तूँ कत बहरावति वाल।
जग जानी बिपरीत रति लखि बिंदुली पिय भाल॥342॥
कत = क्यों। बहरावति = बहलाती है, चकमा देती है। जग जानी = दुनिया जान गई। बिंदुली = टिकुली, चमकी या सितारा।
मेरे पूछने पर अरी बाला! तू क्यों चकमा देती है? प्रीतम के ललाट में (तेरी) टिकुली देखकर संसार जान गया कि (तुम दोनों ने) विपरीत रति की है।
नोट - विपरीत रति में ऊपर रहने के कारण नायिका की टिकुली गिरकर नीचे पड़े हुए नायक के ललाट पर सट गई।
परयो जोर विपरीत रति , सूरत करत रणधीर।
बाजत कटि की किन्कडि , मौन रहत मंजीर।
बिहारी सतसई
..........................
कुछ देर तड़पाने के बाद मैंने अपने निप्स नीचे करके उनके लिप्स के पास ,
लेकिन टच जस्ट एक टच , और फिर मैंने ऊपर हटा लिया और उन्हें छेड़ना शुरू कर दिया ,
" हे लोगे , ... "
" हाँ दो न , ... "
बहुत तड़प रहा था बेचारा।
" मैं इसकी नहीं उसकी बात कर रही हूँ , "
अपने हाथों से मैं अपने निप्स फ्लिक करती बोली ,
समझ तो वो गए थे लेकिन शरमा रहे थे , ....
' जिसकी छोटी छोटी है , एलवल में रहती है , ... तुम्ही तो कहते थे की उसकी अभी छोटी है , बोल लेगा न ,... "
वो एकदम शरम से बीर बहूटी ,...
" अच्छा चल ये तो बता दे , किसके बारे में बोल रही हूँ , .. बोल न ,... "
अब मुश्किल से बोल फूटे उनके ,
" गुड्डी की ,... "
"गुड्डी की क्या ,.. "
मैंने और चिढ़ाया
" गुड्डी की ,... "
वो हिचक रहे थे लेकिन जैसे मैं उन्हें देख रही थी , वो समझ गए की रात भर वो तड़पेंगे लेकिन मैं दूंगी नहीं , ... और बूब्स और उभार बोलने से काम नहीं चलेगा
' बोलो न ,.. " मैं फिर बोली और उन्हें बोलना पड़ा ,
"गुड्डी की चूँची "
यही तो मैं चाहती थी , एक बार अपनी ममेरी बहन के बारे में ऐसा बोलना शुरू कर दें , फिर तो सोचना और उसके बाद ,...
बस मारे ख़ुशी के मैंने उन्हें इनाम दे दिया ,
मेरी निप्स सीधे उनके लिप्स के बीच ,
जैसे पहली बार लिक कर रहे हों , ऐसे चाट चूस रहे थे थे , ...
उनका मुंह बंद था लेकिन मेरा तो खुला था , उनके बाल बिगाड़ते , अपने लम्बे नाख़ून उनके गाल पे चुभाते मैं बोली ,
' उफ़ उफ़्फ़ , कैसे चूसते हो , ... ओह्ह ,.. चलो ऐसे ही उसकी कच्ची अमिया भी कुतरवाउंगी , बहुत जल्दी ,.. सच में बहुत मज़ा आएगा मेरे बालम को
ननद के , कच्चे टिकोरों में ,... "
फिर तो जैसे उनके तन बदन में आग लग गयी हो जैसे , खूंटा उनका खड़ा था और मेरी गुलाबो सीधे उसके ऊपर ग्राइंड कर रही थी ,
मैं बहुत तड़पी थी इस मोटे मूसलचंद के लिए , और अब मैं तड़पा रही थी।
मैंने गुलाबो की दोनों फांके थोड़ी अलग की अपनी ऊँगली से और एक बार फिर सीधे खड़े बौराये सुपाड़े पर , बहुत हलका सा अंदर घुसा ,
और था भी वो कितना मोटा , पहाड़ी आलू ऐसा ,
उनका तो पता नहीं लेकिन मैं पागल हो गयी , सुपाड़े के टच से , पर मैंने अपने पर कंट्रोल किया और बस वैसे ही , हलके हलके ,
पागल वो भी हो रहे थे , नीचे से उचक रहे थे , उचका रहे थे ,
पर मैंने कस के अपने दोनों हाथों से उनके कन्धों को दबोच रखा था
और हलके हलके अपनी गुलाबो को उनके आधे घुसे हुए सुपाड़े पर भींच रही थी उसे दबोच रही थी , उन्हें देख कर मुस्करा रही थी ,
और उनकी आँखों में जबरदस्त प्रणय निवेदन था किसी तरह मैं और , पूरा अंदर ,...
मन तो मेरा भी यही कर रहा था , और मैंने अपनी पूरी ताकत से अपनी देह को उनके ऊपर दबाया ,
और मुझे अहसास हुआ कितनी ताकत लगती होगी पूरा सुपाड़ा अंदर ठेलने में
और लेकिन अब वो भी साथ दे रही थी , और मैं उन्हें नहीं रोक भी रही थी , दो तीन धक्कों के बाद ,
पूरा सुपाड़ा मेरी रसमलाई ने घोंट लिया।
और अब मैदान उन्होंने सम्हाल लिया था ,
उनके दोनों हाथ मेरी पतली कमर पर कस के पकडे जकड़े , ... मुझे वो अपनी ओर खींच रहे थे
मैं भी उन्हें पकड़ के अपनी पूरी ताकत से अपने को उस मोटे मूसलचंद के ऊपर ,..
सूत सूत कर वो अंदर जा रहा था , ...
था भी तो वो मोटा बांस बहुत लम्बा , पूरे मेरे बित्ते की साइज का ,
मेरी और उनकी दोनों की पूरी ताकत के बाद भी सुपाड़े के बाद मुश्किल से एक डेढ़ इंच घुस पाया होगा ,
आधे से ज्यादा अभी भी बाकी था ,
अब मुझसे नहीं रहा जा था , ...
मेरी आँखों ने उनकी आँखों से बिन बोले कुछ कहा ,
और उनकी आँखे तो शादी के पहले से ही बिन बोले मेरी आँखों की हर बात समझ लेती थीं , बस
अगले ही पल , वो ऊपर , मैं नीचे ,... एक पल के लिए वो रुके ,
सच में देखने में बात करने में वो लड़का जितना भी अनाड़ी लगे , लेकिन था पूरा खिलाड़ी ,...
एक सूत भी जो बाहर सरका हो