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खड़ी खड़ी
पहली बार मैं खड़ी खड़ी चुदवा रही थी , लेकिन उसने जिस तरह से मुझे पकड़ रखा था , मेरा सारा बोझ उसके हाथों में , उसकी देह पर ,
जिस पर मैंने अपनी पूरी जिंदगी का बोझ डाल दिया था ,
और अब जब लंड पूरी तरह अंदर घुस गया था ,
उनका एक हाथ मेरे जोबन पर और दूसरा मेरी कमर पर , जहाँ से उनकी ऊँगली सरक कर मेरी गुलाबो का हालचाल ले लेता था ,
मेरी गुलाबो खुद सिकुड़ कर उनके खूंटे को दबोच रही थी , जैसे अब बाहर नहीं निकलने देगी ,
मैंने पीछे मुड़ कर उन्हें चूम लिया ,
थोड़ी देर में जिस तरह उन का मूसल मेरे अंदर घुसा था , उनकी जीभ मेरे मुंह में , और मैं कस कस के चूस रही थी ,
इसी स्वाद के लिए तो मैं तरस रही थी हफ्ते भर से ,
ऊपर वाले होंठ में ,
नीचे वाले होंठ में
उन्होंने दोनों हाथों से कस के मुझे पकड़ लिया था और अब हलके हलके धक्के मार रहे थे ,
सच में खड़े खड़े चुदवाने का मजा ही अलग था ,
उनकी तरह मुझे भी डॉगी पोज में मजा बहुत आता था , इसलिए इन्हे चिढ़ाकर , उकसा कर , उनकी बहनों का नाम ले ले कर , ...
पर जब वो कुतिया बना के मुझे लेते थे तो बस , मैं उन्हें देख नहीं पाती थी ,
अभी तो मैं मुड़ के न सिर्फ उन्हें देख रही थी बल्कि कस के के उन्हें चूम रही थी ,
अपने मुंह में घुसी उनकी जीभ कस के चूस रही थी ,
मेरा एक हाथ भी , गुलाबो पर , ... और उसमें अंदर बाहर हो रहे मूसल को छू देता था ,
में अपनी देह उनकी देह पर रगड़ रही थी
मैं पलंग के सिरहाने खड़ी थी , एक हाथ से सिरहाना पकड़े , उसका सपोर्ट लिए ,
मैंने एक पैर मोड़ कर , घुटने के बल , पलंग पर रख दिया था ,
और एक हाथ उस लड़के की गर्दन पर , .... जो बहुत बहुत बदमाश था , ... और उतना ही प्यारा भी ,...
धक्के लगाने का काम अगर उसका था
तो मुड़ कर चुम्मा लेने का मेरा , कभी उसकी जीभ मेरे मुंह में , तो कभी मेरी जीभ उसके मुंह में , कभी मैं उसके होंठों को जीभ को चूसती ,
तो कभी वो ,
इस चुम्मा चाटी के साथ जो उसकी फेवरिट चीज़ थी , और जो मेरी देह में भी आग लगा देती थी ,
वो काम उसका एक हाथ कर रहा था ,
जोबन मर्दन ,
कभी वो हलके हलके सहलाते तो कभी अचानक पूरी ताकत से रगड़ने मसलने लगते , तो कभी अंगूठे से निपल फ्लिक करते ,
और हाँ , धक्के रुकने का नाम नहीं ले रहे थे ,
पहली बार मैं खड़े हो कर चुदवा रही थी
पहली बार वो खड़े हो कर चोद रहे थे ,
एक नया मजा ,
लेकिन साथ में वो दुष्ट मुझे आज झड़ने नहीं दे रहा था , ...एक बार तो मैं पहले ही झड़ गयी थी ,
मुझे याद है मायके में एक बड़ी उम्र की भाभी थीं , वो , ... उन्होंने एक बात बतायी थी , ...
१०० में दो चार लड़कियां ही होंगी , जिनका मर्द उन्हें झाड़ने के बाद ही झड़ता होगा , वरना तो ,...
तो लड़की को झूठ मूठ का बहाना बनना पड़ता है , वरना मरद को बुरा लगता है , और अगर कभी मरद ने पहले औरत को झाड़ दिया ,...
तो समझो वो औरत बहुत सौभाग्यशाली है ,
यहाँ तो पहली रात से ही कम से कम तीन बार मैं झड़ जाती तो कहीं उनका नंबर आता और वो भी हर बार हम दोनों साथ
मेरी देह बार बार गिनगीना जाती , १५ मिनट से ऊपर हो गए थे उन्हें खड़े खड़े मुझे चोदते , साथ में मस्त जोबन मर्दन , ...
पर जब उन्हें अहसास होता है मैं डिस्चार्ज होने वाली हूँ , वो धक्के और तेज कर देते , पर आखिरी मिनट ,
जब मेरी आँखे मूंदने लगती , देह ढीली पड़ने लगती
वो बदमाश कचकचा के वो कभी मेरी चूँची कचकचा के काट लेते तो कभी गालों पे दांत गड़ा देते , हफ्ते भर तो ये निशान छूटने वाली नहीं थे ,
लेकिन उस समय दर्द के मारे मेरा झड़ना रुक जाता , ... ओर
वो जहाँ काटते वही चूम चूम के जैसे मरहम लगा देते , तो कभी चाट के , ... पर थोड़ी देर में अगली बार फिर , ठीक उसी जगह दुगुनी जोर से काट लेते ,
फिर तो उस निशान के मिटने का सवाल ही नहीं था ,
और मैं चाहती भी नहीं थी , की ये मीठे मीठे निशान मिटे उनके अगले बार आने तक इन्ही निशानों को देख के ये पल रोज रोज याद आएंगे ,
सासु जी और जेठानी की तो कोई बात नहीं , वो देखेंगी , मुस्कराएंगी , ...
और मैं शर्म से अपनी निगाहें नीचे कर लूंगी ,
हाँ छेड़ने वाली तो सिर्फ ननदें होती हैं , ...और यहाँ सिर्फ वही गुड्डी थी , एलवल वाली।
कुछ देर बाद उन्होंने मुझे पलंग पर ही निहुरा दिया और पीछे से घच्चाघच , सटासट
लेकिन एक पोज में न उनका मन भरता न मेरा , कुछ देर में हम दोनों पलंग पर थे ,
वो मेरे ऊपर , मुझे दुहरा कर ,
क्या क्यों धुनिया धुनाई करेगा , हर बार पूरा खूंटा बाहर निकलता , हर बार उस मोटे सुपाड़े का धक्का मेरी बच्चेदानी पर ,
थोड़ी देर में मैं झड़ने लगेगी , और कस के मैंने उन्हें अपनी बांहों में बाँध लिया ,
साथ में वो भी ,
बड़ी देर तक वो झड़ते , ... रुकते , फिर झड़ने लगते , और फिर
हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में बंधे चिपके , सटे न वो अलग होना चाहते थे न मैं ,...
और मैं अपने नितम्बों को पूरी ताकत से ऊपर उठाये , जाँघों को फैलाये, उनकी हर बूँद रोप रही थी , जिससे एक बूँद भी बाहर न छलके ,
छलकने का सवाल भी नहीं था ,
उनका मोटा लौंड़ा , किसी सकरी बोतल में घुसे मोटे कॉक की तरह , अंदर धंसा ठूंसा , घुसा, सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी से चिपका ,
पहली बार मैं खड़ी खड़ी चुदवा रही थी , लेकिन उसने जिस तरह से मुझे पकड़ रखा था , मेरा सारा बोझ उसके हाथों में , उसकी देह पर ,
जिस पर मैंने अपनी पूरी जिंदगी का बोझ डाल दिया था ,
और अब जब लंड पूरी तरह अंदर घुस गया था ,
उनका एक हाथ मेरे जोबन पर और दूसरा मेरी कमर पर , जहाँ से उनकी ऊँगली सरक कर मेरी गुलाबो का हालचाल ले लेता था ,
मेरी गुलाबो खुद सिकुड़ कर उनके खूंटे को दबोच रही थी , जैसे अब बाहर नहीं निकलने देगी ,
मैंने पीछे मुड़ कर उन्हें चूम लिया ,
थोड़ी देर में जिस तरह उन का मूसल मेरे अंदर घुसा था , उनकी जीभ मेरे मुंह में , और मैं कस कस के चूस रही थी ,
इसी स्वाद के लिए तो मैं तरस रही थी हफ्ते भर से ,
ऊपर वाले होंठ में ,
नीचे वाले होंठ में
उन्होंने दोनों हाथों से कस के मुझे पकड़ लिया था और अब हलके हलके धक्के मार रहे थे ,
सच में खड़े खड़े चुदवाने का मजा ही अलग था ,
उनकी तरह मुझे भी डॉगी पोज में मजा बहुत आता था , इसलिए इन्हे चिढ़ाकर , उकसा कर , उनकी बहनों का नाम ले ले कर , ...
पर जब वो कुतिया बना के मुझे लेते थे तो बस , मैं उन्हें देख नहीं पाती थी ,
अभी तो मैं मुड़ के न सिर्फ उन्हें देख रही थी बल्कि कस के के उन्हें चूम रही थी ,
अपने मुंह में घुसी उनकी जीभ कस के चूस रही थी ,
मेरा एक हाथ भी , गुलाबो पर , ... और उसमें अंदर बाहर हो रहे मूसल को छू देता था ,
में अपनी देह उनकी देह पर रगड़ रही थी
मैं पलंग के सिरहाने खड़ी थी , एक हाथ से सिरहाना पकड़े , उसका सपोर्ट लिए ,
मैंने एक पैर मोड़ कर , घुटने के बल , पलंग पर रख दिया था ,
और एक हाथ उस लड़के की गर्दन पर , .... जो बहुत बहुत बदमाश था , ... और उतना ही प्यारा भी ,...
धक्के लगाने का काम अगर उसका था
तो मुड़ कर चुम्मा लेने का मेरा , कभी उसकी जीभ मेरे मुंह में , तो कभी मेरी जीभ उसके मुंह में , कभी मैं उसके होंठों को जीभ को चूसती ,
तो कभी वो ,
इस चुम्मा चाटी के साथ जो उसकी फेवरिट चीज़ थी , और जो मेरी देह में भी आग लगा देती थी ,
वो काम उसका एक हाथ कर रहा था ,
जोबन मर्दन ,
कभी वो हलके हलके सहलाते तो कभी अचानक पूरी ताकत से रगड़ने मसलने लगते , तो कभी अंगूठे से निपल फ्लिक करते ,
और हाँ , धक्के रुकने का नाम नहीं ले रहे थे ,
पहली बार मैं खड़े हो कर चुदवा रही थी
पहली बार वो खड़े हो कर चोद रहे थे ,
एक नया मजा ,
लेकिन साथ में वो दुष्ट मुझे आज झड़ने नहीं दे रहा था , ...एक बार तो मैं पहले ही झड़ गयी थी ,
मुझे याद है मायके में एक बड़ी उम्र की भाभी थीं , वो , ... उन्होंने एक बात बतायी थी , ...
१०० में दो चार लड़कियां ही होंगी , जिनका मर्द उन्हें झाड़ने के बाद ही झड़ता होगा , वरना तो ,...
तो लड़की को झूठ मूठ का बहाना बनना पड़ता है , वरना मरद को बुरा लगता है , और अगर कभी मरद ने पहले औरत को झाड़ दिया ,...
तो समझो वो औरत बहुत सौभाग्यशाली है ,
यहाँ तो पहली रात से ही कम से कम तीन बार मैं झड़ जाती तो कहीं उनका नंबर आता और वो भी हर बार हम दोनों साथ
मेरी देह बार बार गिनगीना जाती , १५ मिनट से ऊपर हो गए थे उन्हें खड़े खड़े मुझे चोदते , साथ में मस्त जोबन मर्दन , ...
पर जब उन्हें अहसास होता है मैं डिस्चार्ज होने वाली हूँ , वो धक्के और तेज कर देते , पर आखिरी मिनट ,
जब मेरी आँखे मूंदने लगती , देह ढीली पड़ने लगती
वो बदमाश कचकचा के वो कभी मेरी चूँची कचकचा के काट लेते तो कभी गालों पे दांत गड़ा देते , हफ्ते भर तो ये निशान छूटने वाली नहीं थे ,
लेकिन उस समय दर्द के मारे मेरा झड़ना रुक जाता , ... ओर
वो जहाँ काटते वही चूम चूम के जैसे मरहम लगा देते , तो कभी चाट के , ... पर थोड़ी देर में अगली बार फिर , ठीक उसी जगह दुगुनी जोर से काट लेते ,
फिर तो उस निशान के मिटने का सवाल ही नहीं था ,
और मैं चाहती भी नहीं थी , की ये मीठे मीठे निशान मिटे उनके अगले बार आने तक इन्ही निशानों को देख के ये पल रोज रोज याद आएंगे ,
सासु जी और जेठानी की तो कोई बात नहीं , वो देखेंगी , मुस्कराएंगी , ...
और मैं शर्म से अपनी निगाहें नीचे कर लूंगी ,
हाँ छेड़ने वाली तो सिर्फ ननदें होती हैं , ...और यहाँ सिर्फ वही गुड्डी थी , एलवल वाली।
कुछ देर बाद उन्होंने मुझे पलंग पर ही निहुरा दिया और पीछे से घच्चाघच , सटासट
लेकिन एक पोज में न उनका मन भरता न मेरा , कुछ देर में हम दोनों पलंग पर थे ,
वो मेरे ऊपर , मुझे दुहरा कर ,
क्या क्यों धुनिया धुनाई करेगा , हर बार पूरा खूंटा बाहर निकलता , हर बार उस मोटे सुपाड़े का धक्का मेरी बच्चेदानी पर ,
थोड़ी देर में मैं झड़ने लगेगी , और कस के मैंने उन्हें अपनी बांहों में बाँध लिया ,
साथ में वो भी ,
बड़ी देर तक वो झड़ते , ... रुकते , फिर झड़ने लगते , और फिर
हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में बंधे चिपके , सटे न वो अलग होना चाहते थे न मैं ,...
और मैं अपने नितम्बों को पूरी ताकत से ऊपर उठाये , जाँघों को फैलाये, उनकी हर बूँद रोप रही थी , जिससे एक बूँद भी बाहर न छलके ,
छलकने का सवाल भी नहीं था ,
उनका मोटा लौंड़ा , किसी सकरी बोतल में घुसे मोटे कॉक की तरह , अंदर धंसा ठूंसा , घुसा, सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी से चिपका ,