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Erotica मोहे रंग दे

komaalrani

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सुबह सुबह


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सुबह सुबह सारे मर्दों की आदत होती है , इनकी तो और ,...

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शायद पांच बजा था इनका खूंटा एकदम तन्नाया पीछे से मेरे चूतड़ के बीच ठोकर मार रहा था ,

न इन्हे कुछ कहने की जरुरत पड़ी , न इशारा करने की , ... मैं खुद समझ गयी।

बस वही इनकी फेवरिट पोज़ , कुतिया वाली ,

मैं बिस्तर पर निहुर गयी ,

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दोनों हाथों के सहारे झुकी , मेरे नितम्ब हवा में उठे , ... जाँघे खूब फैली और खुलीं ,

पहले तो मुझे इस पोज में बहुत दर्द होता था , एकदम रगड़ रगड़ के घिसटते हुए जाता था ,


लेकिन इस समय एक फायदा था , पिछली बार जो ये मेरी बिल में झड़े थे ,

मैंने एक एक बूँद अपनी चूत निचोड़ कर अंदर बचा ली थी , '


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और रीतू भाभी की बाकी बातों की तरह ये बात भी एक काम की थी कि मर्द की मलाई से बढ़िया कोई चिकनाई नहीं होती , ...


और मैं समझ रही थी की सुबह सुबह बिना कुतिया बनाये ये लड़का छोड़ने वाला नहीं है , बस बुर एकदम अंदर तक चिकनी थी ,


लेकिन इनका वो भी तो , ...

ये केयरिंग बहुत थे ,




पहले हलके से मेरी दोनों फांको को फैलाया ,


फिर उसमें हलके से अपने सुपाड़े को सटा के , एक धक्का हलके से मारा ,

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वही धक्का किसी की जान लेने लिए के काफी था

पर मैं जोर से होंठों को दांत से काट कर सारा दर्द पी गयी। दो चार धक्के में सुपाड़ा जब अंदर अड़स गया तो बस ,



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जो दोनों हाथ उन्होंने कस के मेरी पतली कमरिया पर दबोच रखा था , एक मेरे जोबन पर ,

डॉगी पोज के यही तो मजे थे , हचक हचक के चोदने के साथ मेरे दोनों उभार , जब मैं झुकी रहती थी तो मसलने रगड़ने के लिए , ...

कुछ देर बाद मैं भी साथ देने लगी ,


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उनके हर धक्के का जवाब धक्के के साथ , कभी अपनी प्रेम गली सिकोड़ लेती इनके मोटे डंडे पर ,

जाड़े की रात का यही तो फायदा है , सुबह खूब देर से होती है , ...


और आज बाहर कुछ कुहासा सा भी था , खिड़की से कुछ भी नहीं दिख रहा था


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लेकिन सुबह कितनी भी देर से हो , मन यही करता था की बस ,... सुबह हो ही न , ...

हम दोनों एक दूसरे की बांहों में चिपके , एक दूसरे की देह में धंसे बस ऐसे ही पड़े रहें ,..


और आज तो मेरा मन नहीं कर रहा था , ...




मैं जानती थी जैसे ही दिन हुआ , कुछ देर बाद ये लड़का फुर्र हो जाएगा , ... फिर हफ्ते भर इन्तजार। ,

लेकिन इस समय तो वो मजे ले रहे थे मैं मजे ले रही थी ,


उनके धक्को की ताकत और रफ़्तार बढ़ गयी ,

दरेरता , रगड़ता घिसटता , और हर चार पांच धक्के के बाद एक जोरदार धक्का , सीधे मेरी बच्चेदानी पर ,

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मैं चीख पड़ती , सिसक पड़ती

और उनका धक्का और जबरदस्त होता , ...



इत्ते दिनों में ये बात वो समझ गए थे की चुदवाती हुयी लड़की की चीख , कराह दर्द नहीं मजे की पहचान होती है ,



लेकिन ये लड़का जो पहले दिन इतना सीधा लग रहा था , एक से एक नयी नयी बदमाशियां सीख रहा था ,

आप कह सकते हैं मेरी संगत का असर , और आप गलत नहीं होएंगे , पर

असली गुरु उनकी थी ,


उनकी सलहज , ... मेरी रीतू भाभी , जो रोज सुबह उनसे रिपोर्ट भी लेती थीं और अपनी ननद की और दुरगत कराने के नए नए तरीके अपने नन्दोई को सिखाती थीं


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बस , आज पता नहीं क्यों उन्होंने अपनी दोनों टाँगे मेरी टांगो के अंदर डाल कर , मेरी दोनों टांगों को खूब अच्छे से फैला दिया ,



मेरी जाँघे एकदम से फैली थी लेकिन अब तो एकदम खुली , फटी पड़ रही थीं , और मैं समझ गयी

उन्होंने धक्के की रफ़्तार बढ़ा दी , और जब लंड जड़ तक अड़स जाता ,


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तो मेरी खुली जाँघों के नीचे से हाथ लगाकर कभी मेरी गुलाबो को छू देते सहला देते तो कभी क्लिट को ,

एक हाथ तो उनका लगातार मेरे नए नए आये उभारों को मसल रगड़ रहा ही था , ...



पर जबतक मुझे असली बदमाशी समझ में आये , बहुत देर हो गयी थी

खूंटा जड़ तक धंसा था , सुपाड़ा एकदम मेरी बच्चेदानी को रगड़ता ,

और उन्होंने अपनी दोनों टांगों को बाहर निकाल कर , कैंची ऐसे , मेरी दोनों टांगों के बाहर और हलके हलके दबाना शुरू किया , बस थोड़ी देर में मेरी दोनों टाँगे एकदम सटी , जाँघे चिपकी हुयी और कैंची की तरह उन्होंने अपनी दोनों टाँगे ऐसे फंसा रखी थी मेरी टांगो के बीच , मैं लाख कोशिश करूँ , टाँगे जरा भी नहीं फैला सकती थी ,

और नतीजा ये हुआ की जाँघे भी एकदम चिपक गयी , गनीमत थी की खूंटा अभी आलरेडी पूरा धंसा हुआ था ,

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पर वही मैं गलत थी ,

अब जब उन्होंने खूंटा निकालना शुरू किया तो बस ,

वो दर्द हुआ मैं बता नहीं सकती , मेरी सहेली एकदम चिपकी , जैसे पहली रात को मेरी हालत थी एकदम वैसे ही ,

पर वो हलके हलके , जिस तरह निकाल रहे थे , उसी में मेरी जान निकल रही थी , आधे से ज्यादा बाहर निकाल कर , जब उन्होंने ठेलना शुरू किया ,

और वो एकदम कसी चिपकी मेरी चूत को फाड़ता , घिसटता , ...


दर्द से मेरी हालत खराब हो रही थी , पर , ... वो धकेलते पेलते जा रहे थे

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लेकिन असली असर दूसरा हो रहा था ,


मजे से मेरी हालत ख़राब हो रही थी ,


मैं एकदम झड़ने के करीब पहुँच गयी ,


पर वो उसी तरह मेरी जाँघों को भींचे , कस के चोदते रहे , जिस तरह से रगड़ते हुए , फाड़ते हुए लंड घुस रहा था ,

और दो मिनट के अंदर मैं झड़ गयी , ...


पर वो बदमाश उसी तरह , मेरी दोनों जाँघों को दबोचे , भींचे कस कस के धक्के मार के , हचक हचक के चोदता रहा पेलता रहा ,

मेरी एक बार फिर से हालत खराब हो रही थी , गनीमत थी , उन्होंने अपनी टांगो को पहले तो ढीला किया , फिर , पहले की तरह बाहर निकाल लिया , मैंने भी जाँघे फैला ली ,

कुछ देर के लिए वो रुके , मेरा मतलब सिर्फ ये है की चुदाई रुकी ,

मेरे जोबन की मसलाई , गालों की चुमायी उसी तरह जारी रही , ...

और मैं एक बार फिर से गरम हो गयी , ... पर जब तक मैंने ग्रीन सिग्नल नहीं दिया ,

अपनी और से धक्के मार के , उनकी ओर गर्दन मोड़ के प्यार से नहीं देखा उन्हें उकसाते , अपनी चूत को लंड पे भींच के ,


उन्होंने फिर से धक्के मारने शुरू नहीं किये , फिर तो न उन्हें जल्दी थी , न मुझे , ... मैं वैसे ही एक बार झड़ चुकी थी ,

डॉगी पोज में सिर्फ एक दिक्कत थी मैं उन्हें चूम नहीं सकती थी , न उन्हें बाँहों में ले सकती थी , पर उस का इलाज मैंने ढूंढ लिए था , मेरे गोल गोल नितम्ब और मेरी सहेली
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मैं उनके धक्के के जवाब में धक्के मारती , जब मूसलचंद एकदम अंदर घुस जाते , तो मैं उसके बेस पर अपनी सहेली को रगड़ती , जोर जोर से से उसे भींचती

न उन्हें टाइम का अंदाज था न मुझे , बस देर तक वो चोदते रहे मैं चुदती रही ,

और अगली बार जब मैं झड़ी तो साथ साथ में मेरे साजन भी , मेरे अंदर पूस की रात में सावन भादों की बारिश हो रही थी ,

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मैं भी साथ साथ सिकुड़ती रही , उन्हें भींचती रही , मेरी देह ढीली हो गयी थी आँखे मूंद गयी , बस सिर्फ उन्हें , उनके झड़ने , गिरने को अपने अंदर मह्सूस कर रही थी ,



कुछ देर तक मैं वैसे ही अपने हाथों और पैरों के सहारे , ... लेकिन देह ऐसी हो रही थी ,

कटे पेड़ की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी मैं , और साथ में वो भी मेरे साथ बिस्तर पर , ... उसी तरह

लेकिन अभी उनके दोनों हाथ मेरे दोनों जुबना पर , और वो बदमाश बांस मेरे अंदर घुसा , धंसा , ...


बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे ,

फिर जब उन्होंने निकाला तो मैंने एक बार फिर अपनी गुलाबो को कस के भींच लिया , एक बूँद भी बाहर नहीं निकलने दी।

हम दोनों एक दुसरे की बाँहों में थोड़ी देर रहे , फिर मेरी निगाह इनकी कलाई घड़ी पर पड़ी , साढ़े छह बज रहे थे ,





" बेड टी हो जाये , ... " मैंने उन्हें उकसाया।
 

komaalrani

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हम दोनों एक दुसरे की बाँहों में थोड़ी देर रहे , फिर मेरी निगाह इनकी कलाई घड़ी पर पड़ी , साढ़े छह बज रहे थे ,


" बेड टी हो जाये , ... " मैंने उन्हें उकसाया।

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मैं जानती थी , अब ये आ गए हैं तो बेड टी बनाने का काम इनका , पहले दिन से ही मुझे बेड टी यही पिलाते थे , और इनकी सबसे पहली तारीफ़ भी सुहागरात के अगले दिन वाली सुबह मैंने इनकी सास से यही की थी ,

" आपके दामाद चाय बहुत अच्छी बनाते हैं "

पर रीतू भाभी इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी अपनी ननद को , मम्मी के हाथ से फोन ले कर पूछा ,

" चाय वाय तो ठीक है , पर बोल चोदते कैसे हैं , कितनी बार चोदा "



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मैं जानती थी स्पीकर फोन आन होगा , मम्मी भी ,... लेकिन मेरे मायके में मम्मी से ऐसा कई छुपाव दुराव नहीं था ,


लेकिन बजाय बेड टी बनाने के उन्होंने बहाना बना दिया

" यार चल पहले ब्रश , फ्रेश हो जाते हैं।

" अरे ब्रश करवाने वाली है न , "मैं बोली और उनके ऊपर चढ़ गयी

फिर मेरी जीभ सीधे उनके मुंह में , उनके दांतो के ऊपर , गिन कर ३२ बार पूरे। रगड़ रगड़ कर ब्रश करवा दिया अपनी जीभ से

पर वो मानने वाले नहीं थी और थोड़ी देर में हम दोनों बाथरूम में

तीसरी रात के बाद से ही बाथरूम में हम दोनों साथ साथ , ... पहले दिन तो वो मुझे गोद में उठा के ले गए थे उसके बाद , मैं खुद उनके साथ ,

बिस्तर पर से सीधे , जैसे बिस्तर पर उसी हालत में , निसुते , नंग धड़ंग ,


बाथरूम में

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जैसा मुझे उम्मीद थी वो अपना टूथ ब्रश नहीं लाये थे ,
 

Jaipara

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Abki bar bhi har bar ki tarah update ki quality A+ hai par aapne abhi bar quantity kam rakhi hai

Jaldi se quantity puri kijiye

Thanks for A+ quality update
 
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Abki bar bhi har bar ki tarah update ki quality A+ hai par aapne abhi bar quantity kam rakhi hai

Jaldi se quantity puri kijiye

Thanks for A+ quality update
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but i love comments ....direct from the heart
 
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