Alexander
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आआआहशावर में
ये नहीं था की शावर में मैं पहले नहीं चुदी थी , ....
जब मेहमान चले गए थे , फिर हम दोनों को कोई जल्दी नहीं होती थी ,
हर दूसरे तीसरे ये शावर में मेरा बाज़ा बजा देते थे ,
कभी शावर में ही
तो कभी बाथ टब के सहारे झुका के , ...
और बाथरूम भी था कितना बड़ा , ...
छोटे मोटे बैडरूम से बड़ा , बड़ा सा शावर का एरिया , कर्टेन ,..
और बाथ टब तो इतना बड़ा , हम दोनों आराम से साथ साथ न सिर्फ नहा लेते थे बल्कि ' बाकी सब कुछ भी ' एकदम आराम से ,
आदमकद शीशे में 'सब कुछ ' दिखता था ,
जब मैं जिस दिन उतरी थी इस घर में , एक मेरी गाँव की जेठानी थी , उन्होंने सब के सामने खुल कर सीख दे दी थी ,
" देख तू आयी है चुदवाने , तेरे घरवालों ने भेजा है चुदवाने ,... तो अब शरम लिहाज की उमर गयी , मजे ले के मस्ती से चोदवाओ "
और मैंने उनकी सीख गांठ बाँध ली ,
और पहली मुलाकात में ही मैंने तय कर लिया था , जो इस लड़के को अच्छा लगेगा , ...
लेकिन ये लड़का भी न , इसे सिर्फ एक चीज पसंद थी ,
मैं , ...
चौबीसो घंटे , सातों दिन , ..
और जब मैं पास में होती थी तो बस उसका सिंगल प्वाइंट प्रोग्राम ,
मन तो मेरा भी उसके पास आते ही करने लगता था , लेकिन , इस लड़के में एक बहुत बड़ी प्रॉब्लम भी थी ,
वो अपनी परवाह एकदम नहीं करता था ,
मैं अगर ध्यान न दूँ तो जनाब उलटी शर्ट पहन के निकल जाएँ , मैंने एक दो बार कहा भी तो उलटे उसी ने मुझे पर , बोला
" उस के लिए तुम हो तो ,"
एक दिन मैंने जेठानी जी से भी कहा , तो वो भी यहीं बोलीं ,
" तुझे किस लिए लायी हूँ , ... "
वही बात शावर में भी हुयी , मन तो उनका बहुत कर रहा था , फिर मैंने उन्हें छेड़ा भी कितना था , 'सु सु ' करते समय , उनके पिछवाड़े ऊँगली करके ,...
पर मैं जानती थी एक बार तो , और वहीँ शावर के नीचे , ....
हम दोनों की देह में साबुन लगा था और फिर सटासट सटासट ,
पहले तो मैं नहीं नहीं करती रही पर उसके बाद , मैं भी धक्के का जवाब धक्के से ,
कुछ देर तक तो खड़े खड़े , फिर वहीँ शावर के नीचे निहुराकर ,
लेकिन गलती मेरी ही थी ,
झड़ने के बाद मैं वहीँ शावर में चूम चूम कर चूस कर उसे साफ़ करने लगी
और खूंटा फिर खड़ा
और ये बाथरूम में ही फिर एक राउंड के मूड में
लंड एकदम तन्नाया , फनफनाया , ... देख के मेरा मन गीला हो रहा था , ...
पर ,
मैंने कहा न उनकी हर बात की जिम्मेदारी मेरी ,
अब सोचिये कल ब्रेकफास्ट के बाद इस लड़के ने कुछ खाया नहीं था ( थोड़ी सी रबड़ी जो मैंने खिलाई थी उसकी तो चौगुनी मलाई निकलवा ली थी ),.. फिर साढ़े चार बजे बनारस से इनकी फ्लाइट थी , तीन बजे पहुंचना होगा ,
आजमगढ़ से कम से कम ढाई घंटे लगता था ,
मतलब साढ़े बारह बजे के पहले इन्हे निकलना चाहिए , ... उसके पहले खाना , ...
फिर मेरी सासू जी और जेठानी भी कुछ देर तो इनसे बात करेंगी , साढ़े ग्यारह , ... बस चार साढ़े चार घंटे बचे होंगे , ... यहाँ से निकल कर नीचे जाकर कुछ नाश्ता बना के लाऊँ ,... इसे तो मैं मिल जाऊं बस ,...
उन्होंने कोशिश की पर मैंने टाल दिया , उसी मोटे खूंटे को पकड़ कर उन्हें शावर से बाहर निकाल के लायी ,
" हे बहुत चयास लग रही है , चल पहले चाय पिला , बहुत दिन होगये तेरे हाथ की चाय पिए "
" पर चाय के बाद ,.. "
वो भी न , ..उन्हें तो
और मैंने प्रॉमिस कर दिया , ...
" हाँ मिलेगा , मिलेगा , ... अब वो एलवल वाली तो इत्ती सुबह आएगी नहीं , ... "
मैं भी जानती थी , ये लड़का छोड़ेगा नहीं , पर अभी तो ,...
और टॉवल लेके उन्हे पोंछने लगी , रगड़ रगड़ कर , पर क्या करूँ , उन्हें देख के बिना शरारत किये मेरे हाथ नहीं मानते थे ,
उसपर से उनके बबल बॉटम , चिकने , वहां रगड़ते पोंछते , मैंने एक ऊँगली में टॉवेल लपेट कर , सीधे उनके पिछवाड़े वाले छेद में , अंदर डाल के रगड़ रगड़ के
" हे इसे भी साफ साफ़ रखो , क्या पता इस चिकने को कहीं ,... "
हम दोनों वापस बेडरूम में टॉवल पहने निकल आये
और सीधे वैसे ही साथ लगे किचनेट में , वो चाय बनाते रहे , और मैं उन्हें छेड़ती रही , कभी उस एलवल वाली का नाम ले ले के , तो कभी उनके पिछवाड़े को ले के , कोहबर की बातें याद दिला के , ...
चाय पीते समय लेकिन मैं एकदम घबड़ा गयी ,
मेरी निगाह घड़ी पर गयी और मुझे एक बात भी याद आगयी। ,
साढ़े सात बज रहे थे ,
आआआह
एकदम काममय माहौल बना दिया आपने।
xossip का काफी पुराना रीडर हूँ , पर कभी कोई रिप्लाई नहीं किया . आपकी कहानिया पढ़ी थी मैंने , xossip पर ही , मायके में होली वाली , उसी समय आपकी लेखनी हृदय में अंकित सी हो गयी थी . आपके श्रृंगार रस का कोई तोड़ नहीं . ये कहानी पढ़ी तो खुद को रोक नहीं पाया .... बस आपकी कहानी को मंत्रमुग्ध अवस्था सा हो कर पढता हूँ . बहुत ही अच्छी लेखिका है आप . ऐसे ही लिखते रहिये ....