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Horror यक्षिणी

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Episode 3

अंधेरे की गोद में, लड़की ने उसका हाथ पकड़ लिया, उसे घने जंगल से दूर लेकर खुले मैदान में ले गई। लहरों की लय साहिल पर टूटने की धुन उनके सफर को शांतता का एक मधुर संगीत दे रही थी।

ठंडी हवा ने एक नमक और आनंद का एहसास लेकर आया, जंगल के आखिरी असर को साफ कर देते हुए। जब वे हाथ में हाथ डालकर चल रहे थे, लड़की की उपस्थिति ने रात को एक जादुई और संभावनाएँ भरे अंदाज़ में भिगोने का एहसास कराया।

वे साहिल तक पहुँचे, जहाँ रेत उनके पांवों के नीचे ठंडी और स्वागत कर रही थी। लड़की ने उसे देखने के लिए मुख मोड लिया, उसकी आँखें चाँद की हल्की चमक को प्रतिबिम्बित कर रही थी। बिना एक शब्द कहे, उसने कदम बढ़ाया, उनके शरीर एक-दूसरे से लगने वाले थे, और उसने उसके सीने पर हाथ रखा। इस पल की गहराई में एक अनोखा एहसास था, कुछ महत्वपूर्ण और अव्यक्त होने का वादा।

व्यक्ति के दिल की धड़कन तेज हो गई, जब उसका स्पर्श उसमें एक चिंगारी जलाने लगा। लड़की की उंगलियाँ उसके सीने पर एक नाजुक रास्ता बनाती थी, उसका स्पर्श एक एहसास की खाल छोड़ गया था जो उसकी आत्मा में उतर गया। लहरों की आवाज़ दूर से सुनाई दी, अपनी धड़कनों की मधुर संगीत से दबा दी गई थी।

नरम चाँदनी में, उनकी आँखें फिर से मिली, एक मौन समझ में आयी। लड़की की होंठों पर एक मुस्कान थी, शैतानी और बुलावा का मिश्रण। एक साहसी लेकिन अनिवार्य आकर्षण के साथ, उसने उसे पानी के किनारे की तरफ ले गयी।

लहरें उनके पांवों के नीचे टकरा रही थीं, जैसे फोम और रेत का एक खेलकूद। जब पानी वापस चला गया, एक चमकदार निशान छोड़कर, लड़की ने उसे देखा, सिर्फ ये दो व्यक्ति इस ब्रह्मांड के इस अलग कोने में बचे थे।

उनके होंठों ने एक बार फिर मिला, एक रिश्ता जो भौतिक सीमा से पार था। नमक और इच्छा के स्वाद ने उनके चुम्बन में मिश्रित था, जैसे समुद्र खुद इस पल को समझाने के लिए अपनी बुनाई दे रहा हो। उनकी भावनाओं का साहिल की तरह ऊंचा-नीचा होना जैसे झड़ता और वापस होता, जैसे साहिल को छू लेती हुई लहरें।

जब वे दूर हुए, लड़की की आँखें एक ऐसी गहराई थी जो शब्द कभी नहीं पहुँच सकते थे। फिर से उसने उसका हाथ पकड़ लिया, उसे साहिल पर ले जाते हुए। उनके ऊपरवाले सितारे चुपके से मंजूरी देनेवाले थे, जैसे ब्रह्मांड खुद इस अद्भुत मिलन को उत्पन्न करने के लिए साजिश की हो।

वे साहिल पर चलना जारी रखते थे, उनके पैरों के निशान लहरों के पैरों के साथ मिल रहे थे। रात ने उनको अपनी जादूई गोद में बंध लिया था, एक समय-हीन्शव अध्याय जो चुराई हुई राज़ और चुरा ली गई निगाहों की भाषा में लिखा गया था।

लड़की ने उसे अपने साथ लेकर वापस रेत वाले हिस्से की ओर ले गयी। रेत पर चल कर, वे वापस उन अनजानी जगह की ओर जा रहे थे, जहाँ एक अलग प्रकार की इंटिमेसी का आभास था।

धीरे-धीरे, लड़की ने उसका हाथ छूआ, उसे साथ ले जाते हुए। उनका स्पर्श एक सहज प्रेम और आनंद का एहसास जगा रहा था, जैसे रेत की हर एक डाली से उनके बीच का रिश्ता महसूस हो। वे वापस उस कोने की ओर आए जहाँ पहले उन्होंने एक-दूसरे को पाया था।

लड़की ने उसे देखा, उनकी आँखों में एक मधुर मुस्कान थी, जैसे वो एक राज़ को अपने साथ लेकर आई हो। उन्होंने एक अद्भुत समझ से एक पल के लिए हाथ बढ़ाया, और फिर धीरे से अपनी वस्त्राएँ निकाली।

उनकी वस्त्रों का स्पर्श हल्का और आनंदमय था, जैसे वायुमंडल ने उनके शरीर को प्यार से स्पर्श किया हो। उनका मुख भी मुस्कुराता हुआ था, एक खुली और स्वाभाविक मुस्कुराहट, जैसे उन्होंने अपने आप को सबसे बिना शर्म के दिखा दिया हो।

उस पल, वे दोनों एक अलग रौशनी में घिरे हुए थे, एक अनोखी रात में, वे एक-दूसरे को देख रहे थे, उनके शरीर के हर एक हिस्से को नए अंदाज़ से समझते हुए। यह पल उनकी आंतरिक इच्छाओं को जगाने वाला था, जैसे वह दोनों एक-दूसरे की ख्वाहिशों की तरफ खींच रहे हो।

वस्त्रों को हटा कर, वे अब एक-दूसरे के सामने खुले हुए थे, अपने असली रूप में। उनकी शरीर की हर एक रेखा, हर एक खिंचाव, रेत के नीचे छुपी सच्चाई, सब कुछ खुले हुए थे। यह एक अनमोल पल था, जहां दोनों एक-दूसरे के साथ थे, लेकिन एक-दूसरे के साथ जुड़कर भी।

उनकी आँखों में एक गहराई थी, एक प्रेम से भरपूर नज़र जो शब्दों से पार थी। वे दोनों एक-दूसरे के आस-पास घूमते रहे, एक अनोखे एहसास में, जैसे जहां में उनके अलावा और कुछ नहीं था।

इस तरह, दोनों एक-दूसरे के साथ एक विशेष पल में घूम रहे थे, रेत वाले साहिल पर, चाँदनी के नीचे। यह रात उन्हें अपनी मिठास में लपेट कर रखी थी, जैसे उन्होंने एक नए जहां की खोज में एक-दूसरे को पा लिया हो, एक अनोखी कहानी के एक नए प्रश्न की शुरुआत की हो।

लड़की ने धीरे से उसे पीछे धकेला, जिसके कारण वह रेत पर झुक गया। उनके बीच एक प्यार भरा पल था, जहां उनका मिलन एक नए रंग में रंग रहा था। लड़की ने उसे धकेलते हुए उसके ऊपर बैठ गई, उसके शरीर को अपने प्रेम से स्पर्श करते हुए।

रेत के नीचे झुका हुआ, वह व्यक्ति अब उस पल की तरफ झुका हुआ था, जहां लड़की ने उसे अपने प्रेम और आकर्षण से अपने बंधन में बांध लिया था। उनके शरीर की गर्मी, सैंड के स्पर्श से मिल कर, एक नए प्रकार की आहट थी, जिसे महसूस करना उनके लिए एक अनुभव था।

लड़की ने उसके सीने को अपने हाथों से स्पर्श किया, उसकी आँखों में प्रेम और व्यक्तुता का आभास था। उसके होंठ मुस्कुराए, उसके चेहरे पर उसने अपने भावनाओं को बयान किया। जैसे उनका मन उसके साथ एक अद्भुत खेल खेल रहा हो।

व्यक्ति ने अपने हाथों को उसके पीठ के नीचे रख दिया, उसके होंठ उसके शरीर पर झूल रहे थे। उन्होंने अपने शरीर को उसके साथ जोड़ दिया, जैसे उनका मिलन एक नए सफर की शुरुआत थी। उनके बीच एक अनोखा प्रेम और समझ थी, जिसे शब्दों से बयान करना मुश्किल था। इस प्यार भरे पल में, दोनों एक-दूसरे के पास और एक-दूसरे के लिए ही बने थे। उनका साथ एक अनोखे और गहरी बातें सुनाने वाला था, जो शब्दों से पार था।

ऐसे ही, दोनों एक-दूसरे के साथ रेत वाले साहिल पर लेटे थे। उनके बीच एक मधुर प्रेम और आनंद भरा माहौल था, जहां प्यार और आकर्षण का रिश्ता नए प्रश्नों से भरा हुआ था।

लड़की ने धीरे से उसके पेट पर बैठ गई, उसके शरीर को अपने शरीर से मिला दिया। पर अचानक उसने अपना असली चेहरा दिखाया, जो उसे डर से भर दिया। उसके बड़े नाखून उसके हाथ में चमक रहे थे, व्यक्ति का चेहरा दहशत से भर गया, उसने देखा कि लड़की का रूप अब भयानक और डरावना हो चुका था। उसके असली चेहरे पर उसका दिलासा हो रहा था, जो पहले वह नहीं जान पाया था। उसके बड़े नाखून और डरावनी आंखें उसका समय भटकने लगा था, और उसने भयानक तरीके से उसके ऊपर आक्रमण किया।

व्यक्ति की आंखें दर्द से चमक उठी, जब उसने महसूस किया कि उसका दिल बाहर निकल रहा है। उसने एक व्यथा भरी चीख निकाली, पर जल्दी ही उसका दर्द और तड़प ख़त्म हो गया। उसका शरीर धीरे-धीरे बेचैन हो गया, और फिर वह आख़िरी साँस लेकर चुप हो गया।

लड़की ने उस व्यक्ति की मौत को देखा, उसके चेहरे पर डर और विचेद का अनुभव था। फिर, उसने उसके शरीर को पकड़कर चिल्लाया, "यक्षिणी तेरी मौत!" उसकी आवाज़ आसमान तक पहुंची, जैसे उसने किसी अद्भुत शक्ति का सामना किया हो। उसकी आँखों में एक भयानक खिलखिलाहट थी, जैसे वह उसके अंत को आनंदित कर रही हो।

लड़की ने फिर जोर से चिल्लाया, उसके चेहरे पर एक खौफनाक मुस्कान थी। उसने उसके छाती से खून निकलने लगाया, जैसे वह उसके शरीर का आख़िरी रस चूस रही हो। खून रेत पर गिरने लगा, एक भयानक दृश्य बनाते हुए। उसकी चीखने की आवाज़ समुंदर की लहरों में घुल गई, जैसे वह किसी भयानक शक्ति का प्रतिनिधित्व कर रही हो।
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Episode 4

मणिपुर, गुजरात का एक छोटा सा गाँव, प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर होते हुए, आधुनिक जगत की शोर-गुल से दूर, शांतिपूर्ण और कल्याण का एक सुरम्य स्थल था। यह गाँव एक प्यारा सा बसेरा था, न बड़ा न छोटा, जहाँ जीवन की गति पेड़ों के झूलते ताल में बसी हुई थी, जैसे वह जीवन की धारा के साथ खेल रहा हो। गाँव का हृदय एक छोटे से बाजार के आसपास बसा हुआ था, जिसमें विविध दुकानें ताजगी उत्पादों और कुशल कलाकारों की कलाओं की प्रदर्शनी में लगी थी। बाजार की गलियों में गाँव वालों की व्यापारिक गतिविधियों का संवाद होता था, वे हँसी-खेले, जब वे अपने दैनिक काम में व्यस्त रहते थे।

निकटत्वरिति, गाँव के अस्पताल ने नगरीकों के स्वास्थ्य और कल्याण की आशा के रूप में उनके समर्थन की ओर संकेत किया। उसकी सफेद दीवारें सुबह के सूर्य की किरणों में चमक रही थीं, जबकि निष्कलंक चिकित्सा कर्मियों ने नगरीकों की शांति और सुरक्षा के लिए निरंतर प्रयास किए।

बस कुछ ही कदम दूर, पुलिस स्टेशन एक सुरक्षा और संरक्षण का प्रतीक था। स्टेशन की मौजूदगी ने हर किसी को याद दिलाया कि गाँव में शांति की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।

बस कदम की थोड़ी दूरी पर, गाँव में एक छोटे से स्कूल के रूप में शिक्षा का प्रतीक खड़ा था, जिसमें बच्चों की हंसी का प्रकाश दिखता था, उनकी उत्साहित मानसिकता ने ज्ञान की धारा को स्वागत किया जैसे स्पंज से पानी बह जाता है। स्कूल के प्लेग्राउंड से बच्चों की खिलखिलाहट सुनाई देती थी, गाँव के बेहतर भविष्य की आशा को याद दिलाती हुई।

हालांकि, गाँव की सबसे रोचक विशेषता पुरानी हवेली थी, जो गाँव के परिधि में स्थित थी, जैसे कि किसी रहस्यमय और मोहक स्थल का दर्शन हो। वक़्त ने इसकी महिमा की दीवारों को बर्बाद किया, लेकिन उसमें एक अद्वितीय चर्म था जो गाँव को उसके अतीत से जोड़ने का आभास दिलाता था। हवेली की सामुद्रिक समाधाना ने समुंद्र के अनगिनत दृश्यों का दर्शन कराया, समुंद्र की संगीतमय लहरों की ध्वनि गाँव की शांति और प्राकृतिक सुंदरता को और भी आकर्षक बनाती थी। गाँव के अतीत और वर्तमान के बीच खिंचाव के रूप में, यह समुंद्र गाँव वालों की मनोयोग्यता को उत्कृष्टता के साथ जोड़ता था। जब समुंद्र की लहरें गाँव के किनारे पर आती थीं, तो गाँव वाले उनकी अनंतता और रहस्यमयता के साथ अपने आप को जुड़े महसूस करते थे।

इसी तरह, सुबह के साथ ही गाँव की सांस्कृतिक विरासत की अनदेखी महत्वपूर्णता को पुनः उजागर करती थी। सड़कों पर चलती हुई सुबह की पहली किरनें गाँव वालों के मनोबल को बढ़ाती थी, जबकि बच्चों की हंसी और रमणिकता गाँव के वातावरण को और भी प्रसन्न कर देती थी। समुंद्रिक संपत्ति और गाँव की आदर्श जीवन शैली के संगमसर योग ही थे, जिनके कारण यह छोटा सा गाँव अत्यधिक अद्भुत और अनूठा बन गया था।
Adbhut
 

vicky4289

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Episode 8
तभी कमरे में कोई आया, एक युवा लड़का। उसकी जवानी और ऊर्जा से भरपूर प्रतिमा उसके बढ़ते हुए होंठों पर पलकें बिछाती थी। उसके बाल केवल थोड़ी में हलके सी उन्नति के अंदाज में गिरे हुए थे और उसकी दृष्टि में एक अत्यधिक समझ और उत्साह दिखता था।

वह आरामदायक जींस और टी-शर्ट में था, जिनसे उसकी कूल और नवागन्तुक शैली का परिचय होता था। उसकी टी-शर्ट पर उसकी स्वाद को प्रकट करने वाले छोटे से पैटर्न थे, जो उसकी विशेष और आकर्षक प्रतिमा को बढ़ाते थे।

उसके आकर्षक और फिट आकृति वाली जींस उसके युवावस्था और ऊर्जा की कहानी कह रही थी। उसकी पैरों में सामान्यतः कैजुअल जूते थे, जिनकी चढ़ाई उसके नौजवान और सुरमा दिखने की भावना को बढ़ावा देती थी।

वह अपने युवा आवाज़ और स्थिर नजरिये के साथ बोला, "कैसे हो, सब ठीक?" उसके विश्वासपूर्ण आदर्श और जोशपूर्ण रूप से उसने उसकी उपस्थिति को साकार किया।

अजय ने उसकी ओर मुड़कर देखते हुए कहा, "वेदांत! तुम कब आए?" वेदांत का चेहरा सुर्खियों में आ गया, उसकी धड़कती हुई आँखों में उत्साह की जलक थी। उसके बाल धीरे-धीरे उसकी आँखों को छू रहे थे, जैसे एक अद्वितीय कला की रचना हो। उसका चेहरा निखरा हुआ था, और यह लग रहा था कि वह अपने बार्ड को लेकर गर्मियों के एक छुट्टी का आनंद उठा रहा हो। उसकी आँखों में युवाओं की खोजी जोश और उत्साह दिख रहा था, जो उसकी नवयुवकता की प्रतिनिधि थी।

सरपंच ने उसकी ओर देखते हुए उसके मुँह को चिढ़ा दिया। उनके चेहरे पर विशेष रूप से एक तरह की असहमति की छाया थी, जैसे कि उनकी आत्मा को वेदांत की उपस्थिति से विरेचना हो।

सरपंच का वेदांत के प्रति अयोग्यता का कारण उनके पिता के कारण था। वेदांत के पिता और सरपंच के बीच विवाद और टकराव के स्रोत रहे हैं। उनकी विचारधारा, आदर्शों और प्रशासनिक दृष्टिकोण में विभिन्नताओं ने सरपंच और उनके बीच एक कठिन संबंध को जन्म दिया था।

वेदांत, अपने पिता के बेटे होने के कारण, अक्सर इस दुर्घटनाग्रस्त स्थिति में फंसते थे। उन्हें अपने पिता के प्रतिष्ठा और विचारों का बोझ उठाना पड़ता था, जिसने उनके और सरपंच के बीच में एक दरार पैदा की थी। सरपंच नहीं समझ पाते थे कि वेदांत को अपने पिता के कार्यों और दृष्टिकोण से अलग करें, और इसके कारण वे बचपन से ही उनके और वेदांत के बीच की संबंधों पर एक छाया डाल दी गई थी।

यदि वेदांत के व्यक्तिगतता और संभावनाओं को देखा जाए, तो सरपंच का वेदांत के प्रति आपत्ति केवल एक व्यक्तिगत शत्रुता नहीं था, बल्कि यह वर्षों से मौजूदा आदर्शों के साथ एक विचारधारा के टकराव का परिणाम था। वेदांत की उपस्थिति सरपंच के लिए उन विवादों की याद दिलाती थी, जिन्होंने उनका गुजरा हुआ काल परिभाषित किया था, और इसके कारण वे वेदांत को देखते वक्त अपने भावनाओं के प्रति प्रभावित होने से बच नहीं सकते थे।

अजय: "तुम कब आए?"

वेदांत: "कल रात ही आ गया हूँ।"

अजय: "तो तुम पूरी रात कहाँ रहे?"

वेदांत की आँखों में एक सुंदर सी मुस्कान खिल उठी, और धीरे से बताता हैं, "हवेली में रुका हु।"

सरपंच के चेहरे पर एक बार फिर से आतंक की छाया छा गई। उनके दिल में वे पुराने विवाद और असमंजस के संस्मरण जल उठे, जो उनके और वेदांत के पिता के बीच में हुए थे। वेदांत की उपस्थिति उन्हें फिर से उस दरार की याद दिलाती थी, जिसने उनके और उनके पिता के बीच की संबंधों को चिढ़ा दिया था।

वेदांत ने अपनी ताई जी को मिलने के लिए कदम बढ़ाए। उनकी ताई का नाम आशा था, और वह सरपंच की पत्नी थी। जब वेदांत उनके पास पहुँचा, तो आशा की आँखों में खुशी की चमक दिख उठी। वेदांत के आगमन से उनके चेहरे पर विशेष तरह की मुस्कान खिली।

आशा के पास बैठी थी अजय की पत्नी माया और उनकी बेटी, शीला। शीला का पेशा एक नर्स के रूप में था और वह गाँव के अस्पताल में काम करती थी। उसके व्यवसायिक और नैतिक मूल्यों के साथ, वह गाँव के लोगों के बीच बड़ी सम्मानित थी।

आशा ने वेदांत का स्वागत किया और उनके साथ बात करते समय उनकी खुशी दिखाई दी। वेदांत को देखकर आशा की आँखों में उसके बेटे की यादें आ गईं। वह अपने बेटे की मूर्ति में उन्हें देख रही थी, जिससे उन्हें खुशी की अनूठी अनुभूति हो रही थी।

सरपंच की तुलना में, आशा ने वेदांत को एक सामान्य और स्नेहपूर्ण व्यक्ति के रूप में देखा। उनके बीच के इतिहासिक और परिपक्व विवादों के बावजूद, वह वेदांत की सामाजिक और पारिवारिक स्थिति को ध्यान में नहीं रखती थी, बल्कि उन्होंने उनके साथ एक आत्मिक और निष्कल्पित संवाद की शुरुआत की।

आशा ने अपनी भाषा में एक छोटी सी गोदवना दी और वेदांत से पूछा, "तुम कहाँ रुके हुए हो?"

वेदांत ने विनम्रता से उत्तर दिया, "ताईजी, मैं हवेली में ही रुका हूँ।"

उसके उत्तर से आशा के चेहरे पर एक छलकती हुई उदासी की छाया दिखाई दी। उसकी आँखों में व्यक्त हो रही थी उस अचानक खोई हुई उम्मीद और आशा, जो वेदांत के वक्तव्य की ओर से उसके दिल की गहराइयों में छिपी थी।

"हवेली में?" आशा ने उसके साथ एक मिश्रित भावना के साथ पूछा, "और हमारे साथ क्यों नहीं?"

वेदांत ने एक आलोचनात्मक व्यंग्य द्वारा उत्तर दिया, "आपको तो पता ही है, मेरी और ताऊजी की बनती नहीं है।"

उसके वक्तव्य ने आशा के दिल में एक दरार का दर्द उत्पन्न किया। उसके आँखों में वेदांत के सत्यता से संताप और खुद के प्रति निष्ठाओं की चिंता दिखाई दी। वो महसूस कर रही थी कि वेदांत ने उसकी जिंदगी में किसी नई स्थिति की शुरुआत की हो सकती है, जिससे उसकी परिप्रेक्ष्य में और भी अधिक तनाव और संघर्ष आ सकते हैं।

वेदांत ने अपनी ताईजी से विद्या भाभी के बारे में पूछा, जो पिछले 15 सालों से पागल हो गई हैं। विद्या की मानसिक स्थिति बहुत ही दुखद और विचलित थी। उसके पति की अचानक मृत्यु के बाद से उसकी जिंदगी में एक असहायता की भावना छा गई थी, जिसने उसके मानसिक स्वास्थ्य को गहराई से प्रभावित किया था। विद्या के मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति और बिगड़ी हुई स्थिति के कारण उसकी रोज़ाना की जिंदगी में भी असामान्य परिवर्तन दिखाई देते थे। वह कभी खाने के लिए उत्सुक नहीं होती थी, उसे नींद नहीं आती थी और उसके मन में अवसाद की भावना बनी रहती थी।

वेदांत और विद्या, देवर-भाभी के रूप में, एक-दूसरे के साथ एक अच्छी दोस्ती के रिश्ते को बरकरार रखते थे। दोनों एक-दूसरे के साथ अपने मन की बातों को खोलकर बातें करते थे। वे अक्सर एक-दूसरे के साथ मस्ती करते थे, हंसी-मजाक में समय बिताते थे।

आशा की जिंदगी में उसके बेटे "अभी" की मृत्यु के बाद एक गहरा दर्द और दुख हावी हो गया था। उसका बेटा उसके लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसने उसकी जिंदगी को सजीव और उत्साहपूर्ण बनाया था। उसके बेटे की मृत्यु ने उसके दिल में अंधेरे का संचार किया, और उसे एक विशेष प्रकार के शोक में डाल दिया था, उपर से विद्या का पागलपन उसके दर्द को ओर भी बढा देता था

आशा वेदांत के शब्दों में खोई थी जब वह विद्या के बारे में बात कर रहे थे। तभी पीछे से एक गंभीर और गुस्से भरी आवाज सुनाई देती है, जिसने सबका ध्यान केंद्रित किया।

"किसे पूछ कर तुमने हवेली खोली है?" सरपंच की आवाज में तनाव और सख्ती थी।

वेदांत कुछ पल के लिए थम जाता हैं, जैसे कि वह सोच रहा हो कि कैसे उत्तर दें। फिर धीरे से उसने कहा, "किसे पूछ कर मतलब, वो हवेली मेरे पापा की थी, और उनकी मृत्यु के बाद अब वह मेरी हवेली है।"

"तुम्हें पता भी है तुमने क्या किया है?" सरपंच की आवाज में नाराजगी थी, और उनकी निगाहें वेदांत पर तीव्रता से टिकी थीं।

वेदांत कुछ नहीं बोलता उनके चेहरे पर दुख और उबाऊ था। वह एक पल के लिए स्थिरता से सरपंच की ओर देखता हैं, फिर बिना कुछ कहे वहाँ से जाने लगता हैं।

सरपंच आशा की ओर मुड़कर कहते हैं, "इससे बताओ, आज इसकी वजह से किसी की जान गई है।" उनके आवाज में गुस्से के साथ एक गहरी चिंता भी थी, जैसे कि उनके अंदर कुछ तबाही का संकेत हो रहा हो।
 

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क्या में पिछले अपडेट देवनागरी में चेंज करदु?
भाई अगर कर दो तो मेहरबानी रहेगी
 

vicky4289

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Episode 9
पिछली रात


रात के अंधकार में, वेदांत अकेले सीट पर बैठकर ट्रेन की पटरियों पर सांपती दौड़ती हुई आगे बढ़ रहा था। उसके चेहरे पर विचारों की गहराईयों में खोए हुए थे, जैसे कि वह अपने आत्मा के साथ कुछ अन्य दुनियाओं में डूबा हुआ था। सिर्फ अंधेरे ही दिख रहे थे, बाहरी दुनिया का कुछ भी पता नहीं चल रहा था।

ट्रेन धीरे-धीरे अपनी गति कम कर रही थी, जैसे कि वह किसी महत्वपूर्ण स्थान पर पहुँच रही हो। बिलकुल अचानक, उसने बाहर देखा - एक पल के लिए उसकी दृष्टि ट्रेन के खिड़कियों से बाहर गई, और वह एक स्थानीय स्टेशन के बोर्ड पर "मणिपुर" लिखा देखता है। ट्रेन थम जाती है और धीरे-धीरे रुकने लगती है, जैसे कि वह अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही हो।

वेदांत धीरे से खड़ा होता है और अपने सामान को लेकर ट्रेन के द्वार तक जाता है। जैसे ही वह स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म पर पैर रखता है, उसके चेहरे पर ठंडे हवे का स्पर्श महसूस होता है। वह धीरे-धीरे प्लेटफ़ॉर्म से बाहर चलने लगता है, और उसकी कदमों की ध्वनि खाली स्टेशन में गूंजती है।

स्टेशन के बाहर निकलते ही उसे यह अनुभव हुआ कि ट्रेन से उतरने के बाद, उसके अलावा और कोई यात्री नहीं था। रात के आंधकार में, इस सुनसान प्लेटफ़ॉर्म पर सिर्फ खालीपन छायी हुई थी। कोई टैक्सी नहीं थी, कोई ऑटो रिक्शा नहीं था। वेदांत के सामने एक अनपेक्षित और अजनबी स्थिति खड़ी थी।

उसने अपने आसपास देखा, लेकिन वह कोई साधारण यातायात के साधन नहीं देख सका। उसके सामने सड़कों पर गहरी अंधकार छाया हुआ था, और उसकी आँखों के सामने केवल अस्पष्ट और अज्ञात दिशाएँ थीं। वह अपनी जगह से हिला नहीं, बल्कि विचारों में डूबा रहा था कि अब आगे क्या करना चाहिए।

कुछ ही क्षणों के ठहराव के बाद, उसने सोचा कि अब उसे पैदल ही आगे बढ़ जाना चाहिए। वह अपने सामान को लेकर चलने की दिशा में बढ़ा। रात के अंधकार में, सिर्फ उसकी जूतों की आवाज़ आ रही थी, और कभी-कभी दूर किसी कुत्ते के भोंकने की आवाज़ आती थी।

उसके कदम सड़क की धूल पर धीरे-धीरे टकराते थे, जैसे उसका हर कदम इस अजनबी स्थान की पुष्टि करने की कोशिश कर रहा हो। चलते-चलते, उसके कदम रुक गए।

वेदांत ने दूर खड़े एक आदमी को देखा, जो उसे देख रहा था। उसके नजरों में कुछ अजीब सा था, जो वेदांत को असहज महसूस हुआ। रास्ते की एक ओर होकर वेदांत आगे बढ़ने लगा। जैसे ही वह उस आदमी के पास से गुजरा, उस आदमी ने अचानक से चिल्लाकर कहा, "तू खुद की मौत को जेब में डालने आया है क्या, भाग जा यहाँ से भाग जा।"

वेदांत उसके शब्दों से चौंक गया। आदमी की आवाज़ में कुछ अनजाना सा डर था, जो उसके दिल को बेहला रहा था। वह थोड़ी देर तक स्थिर रहकर आदमी की ओर देखता रहा। उसके हुलिया को देखकर सोचा कि शायद कोई पागल होगा। उसके विचारों में यह ख्याल आया कि ऐसे असामान्य आदमी से दूर रहना ही बेहतर होगा। वेदांत का हृदय तेजी से धड़क रहा था, और उसने जल्दी से रास्ते की दूसरी ओर बढ़ना शुरू किया। वह उस घटित घटना को पीछे छोड़ने का प्रयास कर रहा था, लेकिन आदमी की आवाज़ और उसके चिल्लाने के शब्द उसके दिमाग में अब भी घूम रहे थे।

चलते-चलते वो बीच पर पहुँच जाते हैं, जहाँ किनारे पर बनी थी उसकी हवेली। रात के अंधेरे में, समुंदर की लहरों की मनमानी के साथ टूटती हुई आवाज़ सुनाई दे रही थी, जैसे वे खुद के भीतर के आवाज़ों की तलाश में खोए जा रहे हो।

हवेली का संरचनात्मक निर्माण समुंदर की लहरों के साथ मिलकर एक अनूठा दृश्य प्रस्तुत कर रहा था। हवेली की ऊँची दीवारों पर छत से लटकते हुए झूले और वृक्षों की छाया में बने रहस्यमयी माहौल को और भी माधुर्य दे रहे थे। वातावरण में व्याप्त शांति और सुकून वेदांत के मन को भी आत्मा की तलाश में ले जाती थी। हवेली के पास की रेतीली समुंदर किनारा उसे अपनी मौन प्रकृति की ओर आकर्षित कर रहा था, जैसे कि वह वहाँ के सुन्दर दृश्यों के साथ मिलकर एक हो रहा हो।

वेदांत हवेली के मुख्य गेट तक पहुँचते ही, उनके दिल में एक अजीब सी उत्तेजना उठने लगती है। वे हवेली को देखकर स्वाद और गंध के साथ अपने बचपन के खेल, अपने माता-पिता के साथ बिताए गरमियों के दिन, और उनके संग गुजारे हुए प्यारे पलों की यादें ताजगी के साथ महसूस करते हैं। वेदांत के चेहरे पर उन खुशियों का छाया होता है, लेकिन उसके आँखों में एक गहरी उदासी भी होती है, जो उसके दिल की गहराइयों में छिपी है।

उनकी आँखों से आंसू टपकने को तैयार होते हैं, लेकिन वे उन्हें रोक लेते हैं। वे वहीं खड़े होकर हवेली की ओर देखते हैं, उनके दिल में उम्मीदों की किरन जलती है कि शायद वो बचपन के दिन वापस लौट सकते हैं। लेकिन उनकी आँखों के दीप्ति में उनका दर्द छिपा होता है, उनकी यादों का ताजगी के साथ मिलता है।

वेदांत की आंखों से एक आँसू टूट कर बह जाता है, जैसे उनकी आत्मा हवेली की ओर खींच रही हो, लेकिन उन्होंने खुद को संभाल लिया है। वे अपने दिल के गहराईयों में उन सुखद पलों को बसाते हैं, जो उन्हें यह याद दिलाते हैं कि उनकी जिन्दगी में कितनी खासीयत है, और वे खुद भी उन्हें खो चुके हैं।

वेदांत फिर गेट खोलकर, हवेली के आँगन से होते हुए मुख्य द्वार तक आते हैं, और अपनी जेब से चाबी निकालकर दरवाजा खोलते हैं। रात के अंधेरे में हवेली का माहौल डरावना लगता है, पर अपने बचपन के घर होने की वजह से उसे कुछ फर्क नहीं पड़ता। वह लाइट की स्विच ढूंढ़कर उसे चालू करता है। तो हॉल में प्रकाश छानक जाता है।

हॉल की रौशनी ने उसके दिल को आश्रय दिलाया, लेकिन वह अभी भी वही दरवाजे पर खड़ा है, जहाँ उसने अपने बचपन के कई पल बिताए हैं। हवेली के हॉल में एक गहरा शांति का माहौल है, और वेदांत की सांसें उस शांति को महसूस करती हैं। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ता है, हॉल के एक कोने में एक पुरानी तस्वीर को देखता है, जिसमें उसके माता-पिता और वह खुद खिलखिलाते हुए दिखते हैं।

वेदांत के दिल में उनकी यादें ताजगी के साथ बसी होती हैं, और उनकी आँखों से गुजरी बीती बचपन की यादें उसे अपनी जिन्दगी की महत्वपूर्ण वक्त के साथ मिलाती हैं। उसके चेहरे पर विचलितता और आनंद का मिश्रण होता है, जैसे कि वह अपने गुजरे हुए समय के साथ फिर से जुड़ गया हो।

वह थके होने के कारण वही हॉल में सोफ़े पर सो जाने का सोचता है, हवेली के मुख्य द्वार को बंद करके। सोफ़े की धुल जटक के, वही सो जाता है। पर करीब एक घंटे बाद, किसी की दर्दभरी चीख सुनकर, उसकी नींद खुल जाती है। जैसे कि किसी का दिल निकाल लिया गया हो। वह बाहर जाकर देखता है, पर उसे कुछ नहीं दिखता। वह इस घटना को अपना सपना मानकर फिर से सो जाता है।

उसकी आँखों में उदासी और विचलितता की छाया होती है, जैसे कि उसने कुछ अजीब और भयानक देख लिया हो। वह मन में अनगिनत सवालों के साथ बिताए गए समय के खोज में डूबता है, जब वह सोफ़े पर लेटकर उस दिवारे की ओर देखता था जिसमें उसकी माता-पिता की तस्वीर थी।

उसके दिल में उत्कंठा और दर्द होता है। वह अपने असमंजस में डूबकर बहुत ही गहरे विचारों में खो जाता है, समय की आवाज़ को अपने कानों में महसूस करता है, और फिर सोने की कोशिश करता है, अपने सपनों के साथ।
 

vicky4289

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नमस्कार दोस्तों

हमारी यक्षिणी के मानव रूप से मिलें, जिसकी कल्पना मैंने की है और AI तकनीक का उपयोग करके बनाया गया है

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