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Incest ये तो सोचा न था…

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अपडेट दर अपडेट नये नये धमाके होते जा रहे हैं । गुत्थियां सुलझने की जगह और भी ज्यादा उलझती जा रही हैं ।
पुणे में शादी के समय से ही जुगल के साथ अजीब घटनाएं घट रही है । झनक तो एक पहेली की तरह है ही ।
और चांदनी की बिमारी भी बहुत कुछ बयां कर रही है ।

इधर जगदीश के साथ भी बहुत कुछ घटित हो रहा है । शालिनी उन्हें सेड्यूस करने में लगी हुई है पर समझदार होने के बावजूद भी जगदीश समझ नहीं पा रहे है । पता नहीं क्यों !

दोनों भाई का किरदार बहुत ही लाजवाब क्रिएट किया है आपने । मुझे ऐसा लगता है जैसे अतीत में बहुत कुछ छुपा हुआ है । अभी जो कुछ उनके साथ विचित्र घटनाएं घट रही है उसका ताल्लुक अतीत से जुड़ा हुआ लगता है ।

वैसे जगदीश और शालिनी के बीच स्लो सिडक्शन का जो गेम चल रहा है वो आउटस्टैंडिंग है । बहुत उम्दा लिखा है आपने ।

सभी अपडेट्स बेहद ही शानदार थे ।
और , एक सौ पेज पुरे होने पर आपको हार्दिक बधाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ब्रदर ।
 
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Ek number

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३२ – ये तो सोचा न था…

[(३१ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
झनक का स्कर्ट उसकी जांघों तक ऊपर उठ चुका था…

जुगल ने देखा की वो झनक के करीब गया और उसने झनक का स्कर्ट खींच कर निकाल ही दिया…

और झनक के नग्न अनुपम सौंदर्य को निहारने लगा…

जुगल ने खुद को यह सब करते हुए कभी सोचा न था… ]


जुगल

जुगल की हालत पिंजरे में कैद हिरन जैसी थी. रात को शराब के नशे में उसने क्या किया वो उसे बिल्कुल याद नहीं आ रहा था. झनक की स्कर्ट उसने निकाल दी यह झनक ने पापा उसे सीसीटीवी पर दिखा रहे थे… जुगल एकदम से खड़ा हो गया. सरदार जी ने कोम्युटर पर चल रही फुटेज को पोज़ में रोक कर जुगल से पूछा.

‘क्या हुआ?’

‘यह मैं आप के सामने नहीं देख पाऊंगा. मैंने क्या किया मुझे याद नहीं - आप को जो सजा देनी हो दे दीजिये, इसे बंद कर दीजिये प्लीज़-’

तभी झनक उस कमरे में आई. सरदार जी ने जुगल से कहा.

‘ओये? बैठ जा. ये कोई ब्लू फिल्म है जो तुम अकेले में देखना चाहते हो?’ फिर झनक से कहा. ‘आ जा तू भी. देख. तेरे दोस्त ने कल रात क्या कांड किया.’

झनक ने बैठते हुए जुगल से कहा. ‘मैंने बोला था तुमको की हर कमरे में सीसीटीवी है.’

जुगल कुछ बोल नहीं पाया.

‘अब बैठ भी जाओ! या पापा के पैरों में पड़ने का इरादा है?’

यह सुन सरदार जी ने झनक के सामने देखा. झनक ने कहा.

‘मैंने बताया था ना आपको मैं कपडे बदल रही थी तब ये मेरे कमरे में आ गया था. मैं बिलकुल नंगी थी. फिर दोबारा मिला तो मेरे पैर पड़ गया और कहने लगा की गलती हो गई…’

‘देखते है कल इसने क्या गलती की…’

कहते हुए सरदार जी ने सीसीटीवी फुटेज चलाना शुरू किया. जुगल विवश हो कर बैठ पड़ा. - आज ये बाप बेटी मेरा भरता बना कर ही मानेंगे - यह सोचते हुए.

***


जगदीश

अस्पताल के उस वॉर्ड में शालिनी अर्ध नग्न अवस्था में जगदीश के सामने लेटी हुई थी. कपड़ो के पर्दो के पार्टीशन ने उन दोनों को दुनिया से काट कर एक दूजे के सामने अकेला कर दिया था…

जगदीश ने उसे टुकुर टुकुर निहार रहे शालिनी के उस स्तन को देखा जिस पर उसने दवाई मलनी थी…और एक पल के लिए वो आंखें मूंद गया.

ये शालिनी का वही स्तन था जो साजन भाई के कहने पर शालिनी ने अपनी कुर्ती से बाहर कर के जगदीश को दिखाया था और जगदीश जिसे देख हतप्रभ और उत्तेजित हो गया था.

आज वही स्तन जगदीश के सामने नग्न था. पर आज यह उत्तेजना जगाने के सबब नग्न नहीं था. बल्कि उस घायल स्तन को आज दुरुस्ती अफ़ज़ाई की उम्मीद थी…

इंसान के मन की सोचने की गति रौशनी के फैलावे से भी तेज होती है. इस एक पल में जगदीश ने यह भी याद कर लिया की ऐसी ही नाजुक स्थिति में शालिनी ने अपनी हया और अपने संकोच को दरकिनार करते हुए उसके टेस्टिकल का मसाज किया था. शालिनी को किस क्षोभ को सहन पड़ा होगा उस बात का अब उसे अंदाजा आया… जगदीश ने आंखें खोली और शालिनी के सामने देख मुस्कुराया.

‘क्या सोच रहे हो भैया?’ शालिनी ने पूछा.

‘एक बात पुछु?’

‘दवाई? वो कब लगाओगे?’

‘लगाऊंगा. पहले बताओ, मोहिते ने तूलिका की जो बातें की वो सुन कर तुम मुझ पर गुस्सा हो गई थी- वो क्यों?’

‘गुस्सा नहीं आएगा? वो चुड़ैल आप पर चान्स मार रही है, आप को छेड़ रही है, आपका चुम्मा जबरदस्ती ले रही है और आप अमीर नवाबजादे की तरह अपना खजाना लुटाते जा रहे हो, न उसे रोकते हो न मुझे कुछ बताते हो.’

‘तुम्हें बता कर क्या करता? मतलब उससे क्या होता?’

‘क्या होता मतलब? मुझे कोई परवाह नहीं कोई क्या सोचेगा उस बात की, मैंने उसे आड़े हाथ लेकर पूछा होता की तुम क्या मेरे जेठ जी को पब्लिक प्रॉपर्टी समझ रही हो क्या? ख़बरदार अगर इनके सामने भी देखा तो!’

यह सुन क्र जगदीश जोरों से हंस पड़ा. शालिनी ने आहत होते हुए पूछा.

‘इसमें हंसने वाली कौन सी बात है?’

‘तुम उसे यह कहती के मैं तुम्हारा जेठ जी हूं ?’

‘ओह हां, यह तो मैं भूल ही गई थी…’ शालिनी ने शर्माकर अपना एक हाथ अपनी आंखों पर ढंकते हुए कहा.

जगदीश ने शालिनी की आंखों पर से उसका हाथ हटाते हुए कहा. ‘बाद में शर्माना, अभी मुझ से बात करो.’

‘बात ही तो कर रही हूं.’

‘बात करते करते यूं आंखें बंद कर दोगी तो बात कैसे होगी?’

‘शर्म आ जाए तो क्या करूं, शर्माने भी नहीं दोगे?’

‘बहुत शर्मा लिया, अब बताओ, तूलिका से तुम क्या कहती?’

‘बोलती की मेरे पति से तुम दूर रहो-’

‘मेरा पति! ऐसा बोल देती?’

‘ओ भैया… जाओ ना, क्यों छेड़ रहे हो मुझे…’ फिर से लजा कर अपना मुंह दूसरी ओर करते हुए शालिनी ने कहा.

जगदीश ने झुक कर अपना चेहरा शालिनी के सामने रखा. शालिनी ने अपना चेहरा फिर एक हाथ से छुपाते हुए कहा.

‘हटो मुझे शर्म आ रही है..’

‘पर किस बात की शर्म ये तो बताओ? तुम मुझ पर तो बडी भड़क रही थी की -आप से तो बाद में बात करूंगी - और जब तूलिका से बात करने की बारी आई तो शर्मा रही हो? शालिनी ये तो कोई बात नहीं हुई ! गैरों पे करम अपनों पे सितम?’

‘अब आप पर मैं ने कौन सा सितम कर दिया, बताओगे?’

‘ठीक से बात ही नहीं करती बार बार लजा रही हो, यह सितम नहीं?’

‘कोई बात नहीं करनी, अब सीधा आप को दिखा दूंगी की उस तूलिका का मैं क्या करती हूं , अब कोई ऐसी वैसी कोई हरकत ! उसकी ख़ैर नहीं.’

‘अच्छा छोडो तूलिका की बात, पर तुम क्या कह रही थी मेरे बारे में की मैं अगर किसी लड़की के साथ बिना कपड़ो के मिलु तब भी मुझ पर शक नहीं करोगी! इतना भरोसा है मुझ पर?’

‘भैया, इन तीन दिनों में मैंने आप को बहुत जान लिया.’

‘अच्छा ! क्या क्या जान लिया, बताओ.’

‘मैंने ऐसे बहुत कम मर्द देखे है जो सामने औरत खड़ी हो और उसकी छाती की ओर नजर न डाले…’

‘ओके तो?’

‘अभी दस मिनिट से मैं आपके सामने हूं और मेरी छाती बिना कपड़ो के खुली हुई है और आप ने अब तक एक नजर भी नहीं डाली, लगातार मुझ से बात किये जा रहे हो, मुझ पर, मेरे चहेरे की ओर ही आपकी नजर है - ऐसा मर्द मिलना मुश्किल है इतना तो मैं समझती हूं.’

‘अरे हां, मैं तो बातों में लग गया, दवाई लगाना तो भूल ही गया…’

‘कुछ भूल नहीं गए, आप अब बहाने मत निकालो, मैं जानती हूं यह काम आप कर ही नहीं सकते.’

‘अरे, कर क्यों नहीं सकता!’

‘मेरी नंगी छाती आप देख नहीं सकते तो दवाई लगाने के लिए छुओगे कैसे!’

‘ओह… अब ऐसी बात भी नहीं, मैं कोशिश तो कर ही सकता हूं.’

‘देख ली आप की कोशिश.’ कहते हुए शालिनी ने अपनी छाती वॉर्डरोब से ढंकते हुए कहा. ‘नर्स को बुलाइए. दर्द होगा पर दवाई तो उसके अलावा लगने से रही.’

‘ठीक है. बुलाता हूं नर्स को.’ कहते हुए जगदीश बाहर गया.

शालिनी के मन में एक अजीब निराशा फ़ैल गई.

कुछ ही पल में नर्स और जगदीश लौटे.

नर्स ने पूछा. ‘लगा दी दवाई? ‘

शालिनी ने कहा. ‘नहीं.’ और जगदीश ने कहा. ‘लगा दी.’

नर्स ने दोनों को बारी बारी देखते हुए आश्चर्य से पूछा. ‘लगाई या नहीं?’

जगदीश ने कहा. ‘आप चेक कर लीजिए, ठीक से लगाई है क्या?’

नर्स ने शालिनी का वॉर्डरोब खोला. शालिनी को ताजुब्ब हुआ की जेठ जी ‘दवाई लगाई.’ ऐसा क्यों बोल रहे है?

नर्स ने शालिनी के स्तन को बारीकी से देख, खुश हो कर कहा. ‘एकदम परफेक्ट लगाई है आपने दवाई सर, थैंक यु.’

‘इन्हो ने कोई दवाई नहीं लगाई सिस्टर, ये तो मेरे साथ गप्पे हांक रहे थे.’

नर्स ने स्मित करते हुए शालिनी से कहा. ‘मेडम आप खुद देख लो ना?’

शालिनी ने अपना घायल स्तन जांचा, उस पर दवाई लगी हुई थी.

‘ये कब लगाई आपने!’ शालिनी ने हैरत से जगदीश को पूछा.

‘तुम से बात करते हुए. तुम्हें बातों में इसी लिए उलझाया ताकि तुम्हे पता न चले की मैं दवाई लगा रहा हूं. अगर पता चलता तो दर्द होने का डर था.’

‘पर देखे बिना कैसे क्या? आप तो मेरे साथ बात करते हुए एक पल भी नजर यहां वहां नहीं किये !’ शालिनी ने अपना स्तन देखते हुए पूछा. उसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था,

‘दवाई तो उंगली से लगानी थी, देखने की क्या जरूरत? अगर देखने की कोशिश करता तो तुम्हे पता चल जाता की मैं दवाई लगा रहा हूं.’

शालिनी दंग रह गई. नर्स शालिनी का वॉर्डरोब ठीक से ढंकते हुए हंस कर बोली. ‘अब हम लोगो को दवाई कैसे लगाने का वो आप से ट्रेनिंग लेना पड़ेगा सर, आप कैसा ट्रिक किया की मेडम को पता भी नहीं चला और आपने दवाई लगा दिया!’

जगदीश सिर्फ हंस दिया. नर्स जाते हुए शालिनी से बोली. ‘आप तो बहुत लकी हो मेडम!’

नर्स के जाने के बाद शालिनी ने जगदीश से पूछा. ‘ये कैसे किया आपने ? आप मेरे स्तन को मुझे पता न चले उस तरह कैसे छू लिए!’

‘यह सब तुम से ही सीखा हूं शालिनी.’ शालिनी के करीब बैठते हुए जगदीश ने कहा. ‘तुम ने भी मेरे छोटे महाराज के सिपाहियों की कितनी नजाकत से मालिश की थी? मुझे भी पता नहीं चला था.’

‘उस वक्त तो आप मारे दर्द के सो गए थे… ‘

‘हम्म. तुम जाग रही थी इसलिए कठिन तो था पर हो गया.’ जगदीश ने मुस्कुराते हुए कहा.

‘ओफ्फो. मैंने तो सोच कर रखा था की जैसे ही आप मेरे स्तन को छुओगे, मैं जोर जोर से झूठमूठ का चीखूंगी…पर वो तो मेरी मन की मन में ही रह गई…’

‘ओह! तुम चीखती तो फिर मेरे लिए उंगली के बजाय जीभ से दवाई लगाने की नौबत आती!’

‘अरे! ये दवाई कोई जीभ पर नहीं लगा सकता.’

‘तुम जीभ पर सरसों का तेल लगा सकती हो और मैं यह दवाई जीभ पर नहीं लगा सकता?’

‘भैया, यह तेल नहीं, दवाई है -पता नहीं इस में क्या क्या रसायन मिले होंगे! इसे जीभ पर लगाना खतरा हो सकता है.’

‘अभी तो तुम कह रही थी की मेरे बारे में बहुत कुछ जानती हो! इतना खतरा मैं लेता या नहीं ? बताओ?’

शालिनी शर्मा गई.

‘अब बताओ भी, फिर क्यों शर्मा गई?’

‘मान गई भैया, आप कुछ भी कर सकते हो.’ कह कर शालिनी ने जगदीश की छाती में अपना मुंह छिपाते हुए कहा. ‘जो आदमी किसी औरत की छाती पर अपनी उंगलियां फेरे और उस औरत को पता न चलने दे वो कुछ भी कर सकता है…’

***


जुगल

सीसीटीवी फुटेज ज्यों ज्यों आगे बढ़ता गया, जुगल नर्वस होता गया. कहीं मैंने झनक के साथ संभोग तो नहीं कर डाला रात को! हे भगवान अब क्या होगा ? अपने नाख़ून चबाते हुए जुगल देख रहा था की रात को उसने क्या किया था…

फुटेज में : जुगल ने झनक की स्कर्ट निकाल दी फिर उसके दोनों पैरो को खोला…

जुगल ने यह देख अपनी आंखें मूंद ली.. आधी मिनट के बाद डरते हुए उसने कोम्युटर स्क्रीन की ओर देखा तो झनक के दो पैरो के बीच में अपने दोनों हाथों की कोहनी टिका कर अपना चेहरा अपनी हथेलीओ पर सटा कर वो झनक की योनि का बारीकी से मुआयना कर रहा था !

फुटेज में : एक दो मिनट जुगल ने झनक की योनि को निहारा फिर झनक के टॉप को गले तक ऊपर किया और झनक के सुंदर स्तनों को देखने लगा.

जुगल को खुद को आश्चर्य हुआ : मैं कर क्या रहा हूं…

अचानक सरदार जी ने फुटेज को रोक दिया और कोम्युटर बंद कर दिया.

जुगल ने आश्चर्य से सरदार जी की ओर देखा. झनक ने पूछा. ‘क्या हुआ पापा? बंद क्यों कर दिया?’

‘आगे है ही नहीं कुछ देखने जैसा. यह बंदा कभी तुम्हारी योनि देख रहा है, कभी छाती… और इसने कुछ किया ही नहीं. आधा घंटा यूं ध्यान से देखा जैसे सुबह उठ कर तुम्हारे फिगर के बारे में एक्ज़ाम देने वाला हो - फिर लुढ़क कर सो गया.’ सरदार जी ने कहा.

‘जुगल?’ झनक ने जुगल से गुस्से में कहा.

जुगल ने झनक की ओर देखा.

‘तुम मुझे समझते क्या हो?’

जुगल कुछ बोले उससे पहले सरदार जी उठ कर जाने लगे. झनक ने पूछा. ‘कहां जा रहे हो? क्या चाहिए?’

‘मुझे कोफ़ी चाहिए.’

‘आप बैठिए, मैं बना लाती हूं.’ झनक उठते हुए बोली.

‘जुगल के लिए भी ले आना, हम दोनों को जरूरी बात करनी है…’ कह कर टेरेस की ओर जाते हुए सरदार जी ने कहा. ‘आओ जुगल.’

***


जगदीश

जगदीश शालिनी के वॉर्ड से बाहर आया. और सुभाष की खबर लेने गया. सुभाष को अभी होश नहीं आया था. मोहिते डॉक्टर से बात कर रहा था, जगदीश भी उनसे जुड़ गया. डॉक्टर ने कहा की रिकवरी पॉज़िटिव है. डॉक्टर से मोहिते और कुछ टेक्निकल बातें करने लगा. जगदीश डॉक्टर की केबिन से बाहर आ कर सोचने लगा की जुगल और चांदनी से मुझे फोन पर बात कर लेनी चाहिए -

दिक्क्त यह थी की बात क्या करें ? जो हुआ है वो बताया जा सकता है? बताना चाहिए? जुगल सह पाएगा ?

***


जुगल

झनक तीनो के लिए कोफ़ी ले कर टेरेस पर आई.

सरदार जी ने कोफ़ी का सीप लेते हुए कहा.

‘जुगल.’

जुगल ने सरदार जी की ओर देखा.

‘अपने भाई को फोन लगाओ…’

‘अब क्या मेरे भैया से मेरी शिकायत करोगे?

‘अरे घोंचू- चांदनी की ट्रीटमेंट के लिए उसका यहां होना जरूरी है.’

‘नहीं अंकल, मैं भाभी की इस हालत के बारे में भैया को नहीं बता सकता.’

‘बताना पड़ेगा जुगल, कोई चारा नहीं. चांदनी को सेक्स्युअल एब्यूज़ की वजह से सदमा लगा है. इसकी ट्रीटमेंट के लिए उसके पति का मौजूद होना निहायत जरूरी है.’

‘और तुम्हारा भाई आये तब तक डॉक्टर से मिल लो, अभी एक घंटे में आप लोग चांदनी को लेकर निकलो. मैंने डॉक्टर को फोन कर दिया है.’

जुगल सोच में पड़ गया. : दिक्क्त यह थी की बात क्या करें ? जो हुआ है वो बताया जा सकता है? बताना चाहिए? भैया सह पायेंगे ?

दोनों भाई सोच रहे थे की जो कभी सोचा न था वो हो रहा है - क्या बात करें?




(३२ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)
Behtreen update
 

rakeshhbakshi

I respect you.
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३३ – ये तो सोचा न था…

[(३२ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
‘बताना पड़ेगा जुगल, कोई चारा नहीं. चांदनी को सेक्स्युअल एब्यूज़ की वजह से सदमा लगा है. इसकी ट्रीटमेंट के लिए उसके पति का मौजूद होना निहायत जरूरी है.’

‘और तुम्हारा भाई आये तब तक डॉक्टर से मिल लो, अभी एक घंटे में आप लोग चांदनी को लेकर निकलो. मैंने डॉक्टर को फोन कर दिया है.’

जुगल सोच में पड़ गया. : दिक्क्त यह थी की बात क्या करें ? जो हुआ है वो बताया जा सकता है? बताना चाहिए? भैया सह पायेंगे ?

दोनों भाई सोच रहे थे की जो कभी सोचा न था वो हो रहा है - क्या बात करें? ]


जगदीश

जगदीश ने जुगल को कॉल लगाने से पहले अपने मामाजी को फोन लगाया…

इंदौर

इंदौर शहर के बिज़नेस सेंटर पालिका बाज़ार प्लाज़ा कम्पाउंड की पारस स्टील्स की ऑफिस में लैंडलाइन फोन की रिंग बजी. कंपनी के बॉस पारस नाथ बिष्ट ने फोन उठाया. उनके भानजे जगदीश का फोन था.

‘बोलो बेटा.’ पारस नाथ ने कहा.

‘मामाजी, आप की हेल्प चाहिए.’

‘क्या हुआ?’

‘मामाजी एक मिनट - में आप को फिर से कॉल करता हूं. ‘

मामाजी कुछ पूछे उससे पहले फोन कट गया.

***

जगदीश

जगदीश मामाजी से फोन पर कुछ बताये उससे पहले एक नर्स दौड़ कर जगदीश के पासा कर बोली.

‘प्लीज़ सर, जल्दी से आइए….’

जगदीश टेन्स हो गया.

‘मामाजी एक मिनट - मैं आप को फिर से कॉल करता हूं.‘ कह कर फोन काट कर जगदीश ने नर्स से पूछा. ‘क्या हुआ?’

‘प्लीज़ मेरे साथ आइए.’ नर्स तेजी से अस्पताल के कॉरिडोर में बढ़ते हुए बोली. ‘आपकी मैडम को बहुत पेईन हो रहा है…’

वॉर्ड में गया तो शालिनी उसकी एकटक राह देख रही थी.

जगदीश ने बेड पर बैठ कर शालिनी का हाथ अपने हाथ में लेकर मृदुता से पूछा. ’क्या हो रहा है?’

‘दर्द हो रहा है…’

‘कहां ? बांह में?’

शालिनी ने ना में सर हिलाया.

‘छाती में?’

शालिनी ने फिर ना में सर हिलाया.

‘और कहां हो सकता है!’ जगदीश को आश्चर्य हुआ.

‘बताती हूं, गुस्सा मत होना…’

‘तुम्हे दर्द हो रहा है तो मैं गुस्सा क्यों करूंगा ! बोलो क्या हुआ?’

‘आप को देखने का जी कर रहा था…’

जगदीश देखता रह गया. फिर पूछा.

‘मतलब दर्द नहीं हो रहा था?’

‘क्या बोलती सिस्टर को? उनको देखना है बुला लाओ?’ बोलते हुए शालिनी ने शर्मा कर अपना मुंह छिपा लिया.

जगदीश को एकदम से सुझा नहीं की शालिनी को क्या कहे. उसने अगल बगल देखा तो नर्स आपस में उनको देख सरगोशी करते हुए हंस रही हो ऐसा उसे लगा. उसने शालिनी की ओर देखा.

शालिनी ने डरते हुए पूछा.’नाराज हो?’

‘नहीं.’ जगदीश ने मुस्कुराके कहा.’सोचता हूं, चांदनी को यहीं बुला लूं...’

‘सच?’ शालिनी उत्साह में आ गई. ‘दी आएगी तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’

‘हां, तुम्हें भी एक कंपनी मिल जाएगी और मुझे कुछ काम से जाना है, मैं भी निकल पाऊंगा.’

‘आप मेरी वजह से फंस गए हो क्या?’ शालिनी ने गिरे हुए चेहरे के साथ पूछा.

‘फंस नहीं गया, क्यों उल्टा मतलब निकाल रही हो!’

‘अच्छा अच्छा नहीं फंसे हो बस ? आप नाराज मत होइए… प्लीज़.’

‘मैं चांदनी से बात करके आता हूं, ठीक है? जाऊं?’

शालिनी ने स्मित करते हुए ‘हां’ में सर हिलाया. जगदीश वॉर्ड के बाहर आया.

***


इंदौर

फिर फोन बजा. पारस नाथ बिष्ट ने देखा तो जगदीश नहीं बल्कि जुगल का था.

‘मामाजी एक हेल्प चाहिए.’

‘क्या हुआ?’ दोनों भाइओ की एक जैसी शुरुआत से पारस नाथ थोड़े टेन्स हो गए.

‘मुझे महीने भर के लिए कंपनी के काम से कहीं भेज रहे हो ऐसा बड़े भैया को बताना है...’

‘ओह!’ पारस नाथ ने इतना ही कहा. जुगल कभी झूठ नहीं बोलता था. अगर किसी झूठ में वो उनको भी शामिल कर रहा है तो मामला गंभीर है. उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं पूछते हुए कहा. ‘ठीक है, मैं कह दूंगा की तुम्हे महीने भर के लिए कलकत्ता भेजा है. ठीक है?’

‘बहुत शुक्रिया मामाजी. ये बात शालिनी को भी पता नहीं चलनी चाहिए कि मैं कलकत्ता नहीं गया- आप और मेरे सिवा यह किसी को भी भनक तक नहीं आनी चाहिए.’

‘जुगल, सब ठीक तो है?’

‘ठीक नहीं पर मैं ठीक कर लूँगा. फिर सब बात आपको बताता हूं.’

‘बेटा, पैसे है तुम्हारे पास?’

‘है. बस इतना एक महिना सम्हाल लो...’

‘कोई फिकर मत कर और लगे की मामला हाथ से जा रहा है तो आधी रात को भी मुझे फोन कर सकता है- ठीक है?’

‘मामाजी... थैंक्स, रखता हूं.’ जुगल की आवाज से पता चल रहा था की उसकी आवाज में आंसू का गीलापन उसे बोलने नहीं दे रहा था इसलिए उसने फोन काटा. सब शुभ हो ऐसी पारस नाथ ने मन ही मन में प्रार्थना की.

फोन रखते ही जगदीश का कॉल आया.

‘हां बेटा, तुझे कोई हेल्प चाहिए थी?’

एक पल के लिए जगदीश हिचकिचाया. मामाजी को कहना था की हफ्तेभर के लिए जुगल को कंपनी के काम से कहीं भेज दो.अर्जंट तौर पर. -यह विनती वो मामाजी से करना चाहता था पर उसे यह बात कहने में अटपटा लग रहा था. शालिनी के घावों की रिकवरी होने में एक हफ्ता लग जाएगा. जुगल को यह सब बातें जगदीश नहीं बताना चाहता था. डोक्टर ने कहा था की हप्तेभर में शालिनी के जिस्म पर से जख्म पर से निशाँ एकदम फीके पड़ जायेंगे. एक हप्ते का समय कैसे खड़ा किया जाय? इसलिए उसने मामाजी को फोन किया था, जैसे तैसे बात करने की हिम्मत जुटाई तो नर्स ने बात नहीं करने दी. और अब जब फिर से फोन लगाया तो जगदीश को बात कहना जम नहीं रहा था...

‘जगदीश? हल्लो?’

‘हां , मामाजी...’

‘कुछ बोलो भई...बात क्या है?

‘कोई नहीं वो जुगल-’ फिर जगदीश रुक गया, आगे क्या बोलना यह उसे सुझा नहीं.

‘जुगल अब एक महीने बाद मुंबई आएगा जगदीश, अचानक मुझे उसे कलकत्ता भेजना पड़ा.’

‘ओह!’ जगदीश ने राहत की सांस लेते हुए कहा.

‘क्या हुआ? जुगल का कोई जरूरी काम था क्या?’

‘नहीं उसका फोन नहीं लग रहा तो चिंता हो रही थी. अच्छा हुआ आपने बता दिया...’

‘और तो कोई बात नहीं ना?’

‘नहीं मामाजी, सब ठीक है.’

‘वो औरत से कुछ पता चला? गोविंद को होश आया?’

अचानक जगदीश को हुस्न बानो और अस्पताल में पड़े गोविंद मामा की याद आई... लाइफ में इतना कुछ हो रहा था की सब ऊपर नीचे हो गया था...

‘वो औरत की दिमागी हालत अभी खस्ता ही है, पर मुंबई आने से पहले एक बार फिर मैं उससे बात करने की कोशिश करूंगा .’

‘ठीक है, आ जाओ फिर बात करते है.’

‘जी मामाजी.’ कह कर जगदीश ने फोन रखा.


***


जगदीश

जुगल खुद महीने भर के लिए शालिनी से मिल नहीं पायेगा यह सुन कर जगदीश के मन से एक बड़ा बोज सा उतर गया था. अब चांदनी से क्या बात करें? क्या सच में उसे यहां बुला लेना चाहिए? हां यही ठीक रहेगा, चांदनी को समझाया जा सकता है की पिछले तीन दिनों में क्या गड़बड़ी हुई और कैसे वो और शालिनी फंस गए थे. चांदनी शालिनी के साथ रहेगी, अगर यहां से डॉक्टर शालिनी को डिस्चार्ज दे दे तो दोनों साथ में मुंबई भी जा सकते है. और मैं हुस्न बानो और गोविंद मामा से एक बार मिलने निकल जाऊंगा....

यह सोच कर जगदीश ने चांदनी को फोन लगाया पर चांदनी का फोन बंद है ऐसा मैसेज आया. जगदीश उलझ गया की कल रात से चांदनी का फोन बंद क्यों आ रहा है? इतने में जुगल का फोन आया. जुगल ने कलकत्ता जा रहा हूं यह बात की, जगदीश ने कहा की वो तो मामाजी से पता चला पर चांदनी कहां है उसका फोन ही नहीं लग रहा. जुगल ने कहा.

‘चांदनी भाभी का फोन पानी में गिर गया था, बंद हो गया है, मेरे साथ है लो बात करो.’

‘हल्लो’

‘हल्लो चांदनी?’

‘आप तो शादी में पहुंचे ही नहीं?’

‘अरे सब गड़बड़ हो गया.क्या बताऊ तुम्हे- पर ये तुम्हारी आवाज को क्या हो गया?’

‘अरे वो ही गलती से बर्फ वाला पानी पी लिया सो आवाज बैठ गई है..’

‘चांदनी, खुद को किस बात से तकलीफ होती है यह कोई कैसे भूल सकता है?’ जगदीश ने चिढ कर कहा.

‘जी, सॉरी बाबा, अब सुनो मुझे कल से ले कर सत्ताविस दिनों के लिए नासिक जाना है. मैं सोचती हूं यहीं से चली जाऊं.’

‘नासिक! क्यों ?’

‘विपश्यना शिबिर है... कई दिनों से मुझे विपश्यना के लिए जाना था... तो चली ही जाती हूं, अगर आप को कोई एतराज़ न हो तो-’

‘ठीक है, एतराज़ वाली कोई बात नहीं पर तुम्हारी तैयारी है? ऐसे बाहर से ही जा रही हो?’

‘विपश्यना में कोई चीज की जरूरत ही नहीं पड़ती...’

‘ठीक है, टेक केयर. विपश्यना ख़तम होते मुझे कोल करना मैं लेने आ जाऊंगा.’

‘ओके. जुगल से बात करनी है?’

‘हां.’ फिर जगदीश ने जुगल से कुछ फॉर्मल बातें की और फोन काटा. इस बात की ख़ुशी के साथ की चीजे अपने आप सेट हो गई, जुगल से कोई झूठ नहीं बोलना पड़ा. पर चांदनी को उसने मीस किया. खेर, चांदनी को कई दिनों से विपश्यना के लिए जाना ही था.

अब आगे क्या करना है? – यह जगदीश सोच रहा था की उसे मोहिते आता हुआ दिखा.

***

जुगल

‘अच्छा हुआ तुमे याद आ गया की तुम्हारी भाभी को बर्फ की एलर्जी है, अपना पत्ता चल गया.’ झनक ने जुगल से खुश होते हुए कहा. पर जुगल खुश नहीं दिख रहा था.

‘मिल गया न करीब एक महिना जुगल ! अब क्यों परेशान हो? इतने समय में चांदनी भाभी जरुर ठीक हो जायेगी...’

‘हां.’ जुगल ने छोटा सा जवाब दिया.

झनक समज गई, जुगल को झूठ बोलने की पीड़ा हो रही है.

***


जगदीश

‘अब तुलिका कैसी है?’

तुलिका को बुखार आ गया था, अस्पताल में एक बेड पर उसे आराम करने की व्यवस्था कर दी थी.

‘बुखार कम हुआ है पर अभी भी है और वो जिद कर रही है की अब यहां नहीं रुकना, अस्पताल में उसका दम घुटता है. अब यह कोई अपना गांव तो है नहीं! और सुभाष को डिस्चार्ज मिलने तक तुलिका को वापस अपने गांव भी भेज नहीं सकते. उसे कहां ले जाऊं? थोड़ी दुरी पर एक सरकारी गेस्ट हाउस है. मैंने जुगाड़ लगा कर वहां एक कमरे का इंतजाम किया है. डॉक्टर से बात कर के वहीं ले जाता हूं.’

‘अच्छी बात है, कितनी दूरी पर है ये गेस्ट हाउस?’

‘नजदीक ही है – यहां से आठ या दस किलोमीटर....’

‘मोहिते! तुम पगला गए हो? सुभाष यहां ट्रीटमेंट ले रहा है और उसकी पत्नी को तू दस किलोमीटर दूर ठहेरायेगा?’

‘पर कोई चारा भी तो नहीं जगदीश, और कहां रुके?’

‘अरे? यहां मैंने ‘कदंब रिसोर्ट’ की बहुत सारी एड देखी, ये रिसोर्ट बिलकुल आसपास में ही है ना?’

‘ओ भाई! जरा जमीन पर आओ. रिसोर्ट अमीर लोगों की अय्याशी के लिए होते है. वहां का एक दिन का भाड़ा पता है?’

‘हां भाडा जरा ज्यादा होगा पर कभी कभी हमें एडजस्ट करना पड़ता है...’

‘नहीं.’ मोहिते ने दृढ़ आवाज में कहा. पर जगदीश ने उसकी एक न सुनी और ‘कदंब रिसोर्ट’ में एक छोटा सा आउट हाउस बुक करा ही लिया. जब मोहिते ने आपत्ति उठाई तब जगदीश ने कहा. ‘मुझको और शालिनी को भी आराम करने के लिए जगह चाहिए ना? शालिनी भी अस्पताल से ऊब गई होगी...’ तब मोहिते के पास कोई दलील नहीं बची.

***

मोहिते


‘कदंब रिसोर्ट’ के आलिशान आउटहाउस के मुलायम गद्दे पर तुलिका कंबल ओढ़ कर सोई थी. उसका बुखार अभी गया नहीं था.

इतने महेंगे आउट हाउस में मोहिते कभी रुका नहीं था. डबल बेड वाले चार बड़े बड़े कमरे थे बीच में एक बड़ा होल था. फ़ूड सर्विस और दूसरी सेवा के लिए इंटरकॉम था, बाहर सुंदर बगीचा था.

और इतनी बड़ी जगह में अभी वो और उसकी बहन तुलिका दो ही जन रुके हुए थे. तुलिका तो सोई हुई थी, सो मोहिते को लग रहा था यहां अभी वो अकेला ही है.

रिसोर्ट की फ़ूड सर्विस बहुत अच्छी थी. ऑर्डर करते ही दस मिनट में चाय और ब्रेड बटर आ गए थे.चाय पीते हुए मोहिते जगदीश के साथ की बातें याद कर रहा था.

‘तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है की तूलिका मुझ में सेक्सुअली इंटरस्टेड है ?’ मोहिते ने पूछा था.

‘तूलिका को पता नहीं कि हम अच्छे दोस्त है. उसे लगा होगा की कोई नया नया पहचान वाला है.. तभी उसने इतना बड़ा झूठ बोल दिया की मैं उस पर लाइन मारता हूं…. उसने ये कभी नहीं सोचा होगा की तुम उस पर भरोसा न कर के मेरी बात पर विश्वास करोगे…’

‘पर ऐसी बातों से उसे क्या फायदा ?’

‘अगर कोई उसे सेक्सुअलि एब्यूज़ करता है और यह वो तुम्हे बताती है तो तुम्हारा ध्यान उसकी सेक्स अपील पर जाएगा - यह एक लॉजिक हो सकता है…’

मोहिते यह सुन सोच में पड़ गया.

‘अच्छा एक बात बताओ, तुमने मुझे यह कहा कि तुम्हारा एक कलीग मुझे और शालिनी को मुंबई ले जाएगा.. कलीग के साथ उसकी बीवी भी होगी… मोहिते - तुमने यह नहीं बताया की तुम्हारे बहन और जीजा हमें मुंबई ले जाएंगे! ऐसा क्यों ? ‘

‘ ऍक्च्युली मैं तूलिका से बात नहीं करता, तूलिका की शादी को चार साल हो गए. और पिछले तीन साल से हम लोग बात नहीं करते…इसलिए मैंने बताया नहीं था की ये मेरे बहन और जीजा है..’

‘अरे ऐसा क्यों?’

‘एक बार किसी बात पर हमारा झगड़ा हो गया फिर मैंने बात करना बंद कर दिया… अब तो ये भी याद नहीं की वो कौनसी बात थी जिस पर हमारा झगड़ा हुआ था.. अगर ये सुभाष के साथ ऐसा जानलेवा हादसा नहीं हुआ होता तो अब भी हम बात नहीं कर रहे होते…’

‘अब तुमने क्या सोचा है?’

‘समझ में नहीं आता की तूलिका को क्या कहु?’

‘मेरी बात मानो तो उसे समझने की कोशिश करो. हो सकता है की मेरा अंदाज़ा गलत हो. हो सकता है कोई और वजह से तूलिका ने ऐसी बात की हो…’

मोहिते सुनता रहा.

जगदीश ने आगे कहा. ‘किसी भी हाल में तूलिका पर गुस्सा मत होना. उसके साथ तल्खी से पेश मत आना. उसकी बातें सुन लेना. समझ में आये तो ठीक, न समझ में आए तो भी ठीक.‘

‘पर गुस्सा आये ऐसा वो करे तो भी गुस्सा न करूं ? ये क्या बात हुई?’ मोहिते ने पूछा.

‘वैसे भी हमारी औरतें बहुत कुछ सहती है मोहिते, उन पर हम लोग और बोजा तो न बढ़ाएं ?’

इस बात का मोहिते कोई जवाब नहीं दे पाया था.

***


सब चीजें कंट्रोल में नजर आ रही थी.

-तूलिका ने ग़लतफ़हमी खड़ी करने की कोशिश की पर मोहिते और जगदीश उस बात में फंसे नहीं.

-जुगल से शालिनी कैसे घायल हुई यह बात छुपाने में जगदीश कामयाब रहा.

-जगदीश को जुगल ने यह पता नहीं चलने दिया की चांदनी की स्थिति क्या हो गई है.

पर तूलिका, मोहिते , जगदीश, शालिनी, जुगल और चांदनी के साथ अगले कुछ घंटों में क्या बवंडर होने वाला है यह किसी को नहीं पता.

-जुगल का जो पहलू झनक के घर पर खुला उससे न की सिर्फ जुगल बल्कि जगदीश को भी फर्क पड़ने वाला है यह किसी को भी अंदाजा नहीं.

जिस तरह शतरंज की बाजी में घोड़ा ढाई कदम ही चलता है पर सारा सेटिंग हिला देता है - क्योंकि वो टेढ़ा चलता है.

उस तरह जीवन की बाजी में सेक्स यह ढाई अक्षर का तत्व सारा सेटिंग हिला देता है - क्योंकि यह भी टेढ़ा चलता है.

-सब चीजें कंट्रोल में नजर आ रही थी.

पर यह तूफ़ान के पहले की शांति थी.


(३३ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)
 

Ek number

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३३ – ये तो सोचा न था…

[(३२ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
‘बताना पड़ेगा जुगल, कोई चारा नहीं. चांदनी को सेक्स्युअल एब्यूज़ की वजह से सदमा लगा है. इसकी ट्रीटमेंट के लिए उसके पति का मौजूद होना निहायत जरूरी है.’

‘और तुम्हारा भाई आये तब तक डॉक्टर से मिल लो, अभी एक घंटे में आप लोग चांदनी को लेकर निकलो. मैंने डॉक्टर को फोन कर दिया है.’

जुगल सोच में पड़ गया. : दिक्क्त यह थी की बात क्या करें ? जो हुआ है वो बताया जा सकता है? बताना चाहिए? भैया सह पायेंगे ?

दोनों भाई सोच रहे थे की जो कभी सोचा न था वो हो रहा है - क्या बात करें? ]


जगदीश

जगदीश ने जुगल को कॉल लगाने से पहले अपने मामाजी को फोन लगाया…

इंदौर

इंदौर शहर के बिज़नेस सेंटर पालिका बाज़ार प्लाज़ा कम्पाउंड की पारस स्टील्स की ऑफिस में लैंडलाइन फोन की रिंग बजी. कंपनी के बॉस पारस नाथ बिष्ट ने फोन उठाया. उनके भानजे जगदीश का फोन था.

‘बोलो बेटा.’ पारस नाथ ने कहा.

‘मामाजी, आप की हेल्प चाहिए.’

‘क्या हुआ?’

‘मामाजी एक मिनट - में आप को फिर से कॉल करता हूं. ‘

मामाजी कुछ पूछे उससे पहले फोन कट गया.


***

जगदीश

जगदीश मामाजी से फोन पर कुछ बताये उससे पहले एक नर्स दौड़ कर जगदीश के पासा कर बोली.

‘प्लीज़ सर, जल्दी से आइए….’

जगदीश टेन्स हो गया.

‘मामाजी एक मिनट - मैं आप को फिर से कॉल करता हूं.‘ कह कर फोन काट कर जगदीश ने नर्स से पूछा. ‘क्या हुआ?’

‘प्लीज़ मेरे साथ आइए.’ नर्स तेजी से अस्पताल के कॉरिडोर में बढ़ते हुए बोली. ‘आपकी मैडम को बहुत पेईन हो रहा है…’

वॉर्ड में गया तो शालिनी उसकी एकटक राह देख रही थी.

जगदीश ने बेड पर बैठ कर शालिनी का हाथ अपने हाथ में लेकर मृदुता से पूछा. ’क्या हो रहा है?’

‘दर्द हो रहा है…’

‘कहां ? बांह में?’

शालिनी ने ना में सर हिलाया.

‘छाती में?’

शालिनी ने फिर ना में सर हिलाया.

‘और कहां हो सकता है!’ जगदीश को आश्चर्य हुआ.

‘बताती हूं, गुस्सा मत होना…’

‘तुम्हे दर्द हो रहा है तो मैं गुस्सा क्यों करूंगा ! बोलो क्या हुआ?’

‘आप को देखने का जी कर रहा था…’

जगदीश देखता रह गया. फिर पूछा.

‘मतलब दर्द नहीं हो रहा था?’

‘क्या बोलती सिस्टर को? उनको देखना है बुला लाओ?’ बोलते हुए शालिनी ने शर्मा कर अपना मुंह छिपा लिया.

जगदीश को एकदम से सुझा नहीं की शालिनी को क्या कहे. उसने अगल बगल देखा तो नर्स आपस में उनको देख सरगोशी करते हुए हंस रही हो ऐसा उसे लगा. उसने शालिनी की ओर देखा.

शालिनी ने डरते हुए पूछा.’नाराज हो?’

‘नहीं.’ जगदीश ने मुस्कुराके कहा.’सोचता हूं, चांदनी को यहीं बुला लूं...’

‘सच?’ शालिनी उत्साह में आ गई. ‘दी आएगी तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’

‘हां, तुम्हें भी एक कंपनी मिल जाएगी और मुझे कुछ काम से जाना है, मैं भी निकल पाऊंगा.’

‘आप मेरी वजह से फंस गए हो क्या?’ शालिनी ने गिरे हुए चेहरे के साथ पूछा.

‘फंस नहीं गया, क्यों उल्टा मतलब निकाल रही हो!’

‘अच्छा अच्छा नहीं फंसे हो बस ? आप नाराज मत होइए… प्लीज़.’

‘मैं चांदनी से बात करके आता हूं, ठीक है? जाऊं?’

शालिनी ने स्मित करते हुए ‘हां’ में सर हिलाया. जगदीश वॉर्ड के बाहर आया.

***


इंदौर

फिर फोन बजा. पारस नाथ बिष्ट ने देखा तो जगदीश नहीं बल्कि जुगल का था.

‘मामाजी एक हेल्प चाहिए.’

‘क्या हुआ?’ दोनों भाइओ की एक जैसी शुरुआत से पारस नाथ थोड़े टेन्स हो गए.

‘मुझे महीने भर के लिए कंपनी के काम से कहीं भेज रहे हो ऐसा बड़े भैया को बताना है...’

‘ओह!’ पारस नाथ ने इतना ही कहा. जुगल कभी झूठ नहीं बोलता था. अगर किसी झूठ में वो उनको भी शामिल कर रहा है तो मामला गंभीर है. उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं पूछते हुए कहा. ‘ठीक है, मैं कह दूंगा की तुम्हे महीने भर के लिए कलकत्ता भेजा है. ठीक है?’

‘बहुत शुक्रिया मामाजी. ये बात शालिनी को भी पता नहीं चलनी चाहिए कि मैं कलकत्ता नहीं गया- आप और मेरे सिवा यह किसी को भी भनक तक नहीं आनी चाहिए.’

‘जुगल, सब ठीक तो है?’

‘ठीक नहीं पर मैं ठीक कर लूँगा. फिर सब बात आपको बताता हूं.’

‘बेटा, पैसे है तुम्हारे पास?’

‘है. बस इतना एक महिना सम्हाल लो...’

‘कोई फिकर मत कर और लगे की मामला हाथ से जा रहा है तो आधी रात को भी मुझे फोन कर सकता है- ठीक है?’

‘मामाजी... थैंक्स, रखता हूं.’ जुगल की आवाज से पता चल रहा था की उसकी आवाज में आंसू का गीलापन उसे बोलने नहीं दे रहा था इसलिए उसने फोन काटा. सब शुभ हो ऐसी पारस नाथ ने मन ही मन में प्रार्थना की.

फोन रखते ही जगदीश का कॉल आया.

‘हां बेटा, तुझे कोई हेल्प चाहिए थी?’

एक पल के लिए जगदीश हिचकिचाया. मामाजी को कहना था की हफ्तेभर के लिए जुगल को कंपनी के काम से कहीं भेज दो.अर्जंट तौर पर. -यह विनती वो मामाजी से करना चाहता था पर उसे यह बात कहने में अटपटा लग रहा था. शालिनी के घावों की रिकवरी होने में एक हफ्ता लग जाएगा. जुगल को यह सब बातें जगदीश नहीं बताना चाहता था. डोक्टर ने कहा था की हप्तेभर में शालिनी के जिस्म पर से जख्म पर से निशाँ एकदम फीके पड़ जायेंगे. एक हप्ते का समय कैसे खड़ा किया जाय? इसलिए उसने मामाजी को फोन किया था, जैसे तैसे बात करने की हिम्मत जुटाई तो नर्स ने बात नहीं करने दी. और अब जब फिर से फोन लगाया तो जगदीश को बात कहना जम नहीं रहा था...

‘जगदीश? हल्लो?’

‘हां , मामाजी...’

‘कुछ बोलो भई...बात क्या है?

‘कोई नहीं वो जुगल-’ फिर जगदीश रुक गया, आगे क्या बोलना यह उसे सुझा नहीं.

‘जुगल अब एक महीने बाद मुंबई आएगा जगदीश, अचानक मुझे उसे कलकत्ता भेजना पड़ा.’

‘ओह!’ जगदीश ने राहत की सांस लेते हुए कहा.

‘क्या हुआ? जुगल का कोई जरूरी काम था क्या?’

‘नहीं उसका फोन नहीं लग रहा तो चिंता हो रही थी. अच्छा हुआ आपने बता दिया...’

‘और तो कोई बात नहीं ना?’

‘नहीं मामाजी, सब ठीक है.’

‘वो औरत से कुछ पता चला? गोविंद को होश आया?’

अचानक जगदीश को हुस्न बानो और अस्पताल में पड़े गोविंद मामा की याद आई... लाइफ में इतना कुछ हो रहा था की सब ऊपर नीचे हो गया था...

‘वो औरत की दिमागी हालत अभी खस्ता ही है, पर मुंबई आने से पहले एक बार फिर मैं उससे बात करने की कोशिश करूंगा .’

‘ठीक है, आ जाओ फिर बात करते है.’

‘जी मामाजी.’ कह कर जगदीश ने फोन रखा.


***


जगदीश

जुगल खुद महीने भर के लिए शालिनी से मिल नहीं पायेगा यह सुन कर जगदीश के मन से एक बड़ा बोज सा उतर गया था. अब चांदनी से क्या बात करें? क्या सच में उसे यहां बुला लेना चाहिए? हां यही ठीक रहेगा, चांदनी को समझाया जा सकता है की पिछले तीन दिनों में क्या गड़बड़ी हुई और कैसे वो और शालिनी फंस गए थे. चांदनी शालिनी के साथ रहेगी, अगर यहां से डॉक्टर शालिनी को डिस्चार्ज दे दे तो दोनों साथ में मुंबई भी जा सकते है. और मैं हुस्न बानो और गोविंद मामा से एक बार मिलने निकल जाऊंगा....

यह सोच कर जगदीश ने चांदनी को फोन लगाया पर चांदनी का फोन बंद है ऐसा मैसेज आया. जगदीश उलझ गया की कल रात से चांदनी का फोन बंद क्यों आ रहा है? इतने में जुगल का फोन आया. जुगल ने कलकत्ता जा रहा हूं यह बात की, जगदीश ने कहा की वो तो मामाजी से पता चला पर चांदनी कहां है उसका फोन ही नहीं लग रहा. जुगल ने कहा.

‘चांदनी भाभी का फोन पानी में गिर गया था, बंद हो गया है, मेरे साथ है लो बात करो.’

‘हल्लो’

‘हल्लो चांदनी?’

‘आप तो शादी में पहुंचे ही नहीं?’

‘अरे सब गड़बड़ हो गया.क्या बताऊ तुम्हे- पर ये तुम्हारी आवाज को क्या हो गया?’

‘अरे वो ही गलती से बर्फ वाला पानी पी लिया सो आवाज बैठ गई है..’

‘चांदनी, खुद को किस बात से तकलीफ होती है यह कोई कैसे भूल सकता है?’ जगदीश ने चिढ कर कहा.

‘जी, सॉरी बाबा, अब सुनो मुझे कल से ले कर सत्ताविस दिनों के लिए नासिक जाना है. मैं सोचती हूं यहीं से चली जाऊं.’

‘नासिक! क्यों ?’

‘विपश्यना शिबिर है... कई दिनों से मुझे विपश्यना के लिए जाना था... तो चली ही जाती हूं, अगर आप को कोई एतराज़ न हो तो-’

‘ठीक है, एतराज़ वाली कोई बात नहीं पर तुम्हारी तैयारी है? ऐसे बाहर से ही जा रही हो?’

‘विपश्यना में कोई चीज की जरूरत ही नहीं पड़ती...’

‘ठीक है, टेक केयर. विपश्यना ख़तम होते मुझे कोल करना मैं लेने आ जाऊंगा.’

‘ओके. जुगल से बात करनी है?’

‘हां.’ फिर जगदीश ने जुगल से कुछ फॉर्मल बातें की और फोन काटा. इस बात की ख़ुशी के साथ की चीजे अपने आप सेट हो गई, जुगल से कोई झूठ नहीं बोलना पड़ा. पर चांदनी को उसने मीस किया. खेर, चांदनी को कई दिनों से विपश्यना के लिए जाना ही था.

अब आगे क्या करना है? – यह जगदीश सोच रहा था की उसे मोहिते आता हुआ दिखा.

***


जुगल

‘अच्छा हुआ तुमे याद आ गया की तुम्हारी भाभी को बर्फ की एलर्जी है, अपना पत्ता चल गया.’ झनक ने जुगल से खुश होते हुए कहा. पर जुगल खुश नहीं दिख रहा था.

‘मिल गया न करीब एक महिना जुगल ! अब क्यों परेशान हो? इतने समय में चांदनी भाभी जरुर ठीक हो जायेगी...’

‘हां.’ जुगल ने छोटा सा जवाब दिया.

झनक समज गई, जुगल को झूठ बोलने की पीड़ा हो रही है.

***


जगदीश

‘अब तुलिका कैसी है?’

तुलिका को बुखार आ गया था, अस्पताल में एक बेड पर उसे आराम करने की व्यवस्था कर दी थी.

‘बुखार कम हुआ है पर अभी भी है और वो जिद कर रही है की अब यहां नहीं रुकना, अस्पताल में उसका दम घुटता है. अब यह कोई अपना गांव तो है नहीं! और सुभाष को डिस्चार्ज मिलने तक तुलिका को वापस अपने गांव भी भेज नहीं सकते. उसे कहां ले जाऊं? थोड़ी दुरी पर एक सरकारी गेस्ट हाउस है. मैंने जुगाड़ लगा कर वहां एक कमरे का इंतजाम किया है. डॉक्टर से बात कर के वहीं ले जाता हूं.’

‘अच्छी बात है, कितनी दूरी पर है ये गेस्ट हाउस?’

‘नजदीक ही है – यहां से आठ या दस किलोमीटर....’

‘मोहिते! तुम पगला गए हो? सुभाष यहां ट्रीटमेंट ले रहा है और उसकी पत्नी को तू दस किलोमीटर दूर ठहेरायेगा?’

‘पर कोई चारा भी तो नहीं जगदीश, और कहां रुके?’

‘अरे? यहां मैंने ‘कदंब रिसोर्ट’ की बहुत सारी एड देखी, ये रिसोर्ट बिलकुल आसपास में ही है ना?’

‘ओ भाई! जरा जमीन पर आओ. रिसोर्ट अमीर लोगों की अय्याशी के लिए होते है. वहां का एक दिन का भाड़ा पता है?’

‘हां भाडा जरा ज्यादा होगा पर कभी कभी हमें एडजस्ट करना पड़ता है...’

‘नहीं.’ मोहिते ने दृढ़ आवाज में कहा. पर जगदीश ने उसकी एक न सुनी और ‘कदंब रिसोर्ट’ में एक छोटा सा आउट हाउस बुक करा ही लिया. जब मोहिते ने आपत्ति उठाई तब जगदीश ने कहा. ‘मुझको और शालिनी को भी आराम करने के लिए जगह चाहिए ना? शालिनी भी अस्पताल से ऊब गई होगी...’ तब मोहिते के पास कोई दलील नहीं बची.


***

मोहिते


‘कदंब रिसोर्ट’ के आलिशान आउटहाउस के मुलायम गद्दे पर तुलिका कंबल ओढ़ कर सोई थी. उसका बुखार अभी गया नहीं था.

इतने महेंगे आउट हाउस में मोहिते कभी रुका नहीं था. डबल बेड वाले चार बड़े बड़े कमरे थे बीच में एक बड़ा होल था. फ़ूड सर्विस और दूसरी सेवा के लिए इंटरकॉम था, बाहर सुंदर बगीचा था.

और इतनी बड़ी जगह में अभी वो और उसकी बहन तुलिका दो ही जन रुके हुए थे. तुलिका तो सोई हुई थी, सो मोहिते को लग रहा था यहां अभी वो अकेला ही है.

रिसोर्ट की फ़ूड सर्विस बहुत अच्छी थी. ऑर्डर करते ही दस मिनट में चाय और ब्रेड बटर आ गए थे.चाय पीते हुए मोहिते जगदीश के साथ की बातें याद कर रहा था.

‘तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है की तूलिका मुझ में सेक्सुअली इंटरस्टेड है ?’ मोहिते ने पूछा था.

‘तूलिका को पता नहीं कि हम अच्छे दोस्त है. उसे लगा होगा की कोई नया नया पहचान वाला है.. तभी उसने इतना बड़ा झूठ बोल दिया की मैं उस पर लाइन मारता हूं…. उसने ये कभी नहीं सोचा होगा की तुम उस पर भरोसा न कर के मेरी बात पर विश्वास करोगे…’

‘पर ऐसी बातों से उसे क्या फायदा ?’

‘अगर कोई उसे सेक्सुअलि एब्यूज़ करता है और यह वो तुम्हे बताती है तो तुम्हारा ध्यान उसकी सेक्स अपील पर जाएगा - यह एक लॉजिक हो सकता है…’

मोहिते यह सुन सोच में पड़ गया.

‘अच्छा एक बात बताओ, तुमने मुझे यह कहा कि तुम्हारा एक कलीग मुझे और शालिनी को मुंबई ले जाएगा.. कलीग के साथ उसकी बीवी भी होगी… मोहिते - तुमने यह नहीं बताया की तुम्हारे बहन और जीजा हमें मुंबई ले जाएंगे! ऐसा क्यों ? ‘

‘ ऍक्च्युली मैं तूलिका से बात नहीं करता, तूलिका की शादी को चार साल हो गए. और पिछले तीन साल से हम लोग बात नहीं करते…इसलिए मैंने बताया नहीं था की ये मेरे बहन और जीजा है..’

‘अरे ऐसा क्यों?’

‘एक बार किसी बात पर हमारा झगड़ा हो गया फिर मैंने बात करना बंद कर दिया… अब तो ये भी याद नहीं की वो कौनसी बात थी जिस पर हमारा झगड़ा हुआ था.. अगर ये सुभाष के साथ ऐसा जानलेवा हादसा नहीं हुआ होता तो अब भी हम बात नहीं कर रहे होते…’

‘अब तुमने क्या सोचा है?’

‘समझ में नहीं आता की तूलिका को क्या कहु?’

‘मेरी बात मानो तो उसे समझने की कोशिश करो. हो सकता है की मेरा अंदाज़ा गलत हो. हो सकता है कोई और वजह से तूलिका ने ऐसी बात की हो…’

मोहिते सुनता रहा.

जगदीश ने आगे कहा. ‘किसी भी हाल में तूलिका पर गुस्सा मत होना. उसके साथ तल्खी से पेश मत आना. उसकी बातें सुन लेना. समझ में आये तो ठीक, न समझ में आए तो भी ठीक.‘

‘पर गुस्सा आये ऐसा वो करे तो भी गुस्सा न करूं ? ये क्या बात हुई?’ मोहिते ने पूछा.

‘वैसे भी हमारी औरतें बहुत कुछ सहती है मोहिते, उन पर हम लोग और बोजा तो न बढ़ाएं ?’

इस बात का मोहिते कोई जवाब नहीं दे पाया था.

***


सब चीजें कंट्रोल में नजर आ रही थी.

-तूलिका ने ग़लतफ़हमी खड़ी करने की कोशिश की पर मोहिते और जगदीश उस बात में फंसे नहीं.

-जुगल से शालिनी कैसे घायल हुई यह बात छुपाने में जगदीश कामयाब रहा.

-जगदीश को जुगल ने यह पता नहीं चलने दिया की चांदनी की स्थिति क्या हो गई है.

पर तूलिका, मोहिते , जगदीश, शालिनी, जुगल और चांदनी के साथ अगले कुछ घंटों में क्या बवंडर होने वाला है यह किसी को नहीं पता.

-जुगल का जो पहलू झनक के घर पर खुला उससे न की सिर्फ जुगल बल्कि जगदीश को भी फर्क पड़ने वाला है यह किसी को भी अंदाजा नहीं.

जिस तरह शतरंज की बाजी में घोड़ा ढाई कदम ही चलता है पर सारा सेटिंग हिला देता है - क्योंकि वो टेढ़ा चलता है.

उस तरह जीवन की बाजी में सेक्स यह ढाई अक्षर का तत्व सारा सेटिंग हिला देता है - क्योंकि यह भी टेढ़ा चलता है.

-सब चीजें कंट्रोल में नजर आ रही थी.

पर यह तूफ़ान के पहले की शांति थी.


(३३ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)
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Rajesh Sarhadi

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जिस तरह शतरंज की बाजी में घोड़ा ढाई कदम ही चलता है पर सारा सेटिंग हिला देता है - क्योंकि वो टेढ़ा चलता है.

उस तरह जीवन की बाजी में सेक्स यह ढाई अक्षर का तत्व सारा सेटिंग हिला देता है - क्योंकि यह भी टेढ़ा चलता है.
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mastmast123

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Boss, sex बन नहीं रहा है, कुछ तो लण्ड खडा हो हमारा, आप तो रोमांटिक लिखने पर तुले हो, incest कहाँ हो रहा है, भले ही चुदाई ना करवाओ लेकिन erotic बातें action घर्षण गांड चूत लंड का, आपने तो दोनों भाईयों को संत साधु बना दिया, और ये क्या thriller लिखने लग गए, ये कोई सेक्स स्टोरी है या supense थ्रिलर,,, यार कुछ तो justyfy करो incest कैटेगरी को , अब इतना भी मत बनाओ हमको बेव,,,,, फ,,,
 

sexyswati

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यूं ही कुछ बातें शेयर कर रहा हूं.

पिछले प्रकरण ( ३१ प्रकरण) को २७,००० व्यू मिले है.

इतने सारे लोग कहानी पढ़ते होंगे?

पता नहीं.

पर अगर दस हजार लोग भी पढ़ रहे है तो यह मेरे लिए बहुत बड़ी प्राप्ति है.

रोज के लंबे लंबे प्रकरण लिख कर खो सा जाता हूं. संतुलन टूट तो नहीं रहा? संवाद ठीक लिखे जा रहे है? इन्फर्मेशन में लोचे तो नहीं ? वर्णन होना चाहिए उतना है? कम है? ज्यादा है? कहानी में शृंगार रस है या नहीं? किरदार विश्वसनीय लग रहे है या नहीं? उनका व्यवहार सहज तो है?

यह सारे सवाल बारहां होते है जिसका जवाब तय करना मुश्किल हो जाता है. प्रतिक्रिया इसलिए महत्वपूर्ण है. प्रतिक्रिया पाठक अपने हिसाब से देते है. कभी कभी तो एक या दो ही शब्द होते है. कभी जो लिखा गया उस बारे में न हो कर आगे क्या होगा इस बारे में पाठक अंदाजा लिखते है. कभी कुछ और.

मैं हर प्रतिक्रिया में जो पिछले जो प्रकरण मैंने पोस्ट किया वो कहाँ तक कितना पहुंचा यह समझने की कोशिश करता हूं. कभी कभी लगता है कि ठीक जा रहा है पर ज्यादातर कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता. खेर.

शायद मुझे ब्रेक लेना चाहिए.

शायद रोज के एक प्रकरण का तरीका बदलना चाहिए.

शायद मैं बहुत जल्दबाजी में लिख रहा हूं.

शायद ये शायद वो….

कुल मिला कर मैं एक विश्वसनीय कहानी लिखना चाहता हूं…

आप लोगों से विनती है की हो सके उतनी विस्तृत प्रतिक्रिया दें …

______________/\______________________
हाय राकेशजी

आपकी स्टोरी तो मै कई दिनोसे पढ़ रही हु। पर कमेन्ट पहलीबार कर रही हु

लाजबाब स्टोरी है जनाब आपकी। .... आपकी लेखन शैली की कायल हो चुकी हु

यु धीरे धीरे रोमैंटिक तरीकेसे आगे बढ़ना , बाकि स्टोरीज से बहुत अलग है .... बहोत खूब

एक सुझाव था ,सस्पेंस की जगह रोमांस थोड़ा और बढ़ाइए , मुख्य पात्रो को छोड़ बाकि (जैसे झनक और जुगल , तूलिका और मोहिते ) पत्रोंके सेक्सुअल प्रसंग आये तो सोने पे सुहागा हो।

शालिनी और जगदीश तथा चांदनी और जुगल का मिलान कितना मनोहारी होगा इसकी कल्पना से ही पानी छूटने लगता है...

लगे रहो

शुभकामनाओ के साथ
स्वाति
 
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