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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

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होली घर आंगन की , देवर का सिंगार पटार

( फागुन का दिन चार से )

किसी भाभी ने घड़ी देख ली और घबड़ाने लगी।

अरे एक बजने वाला है। अबहीं कालोनी में जाना है देर हो रही है।

हर साल होली की शुरूआत के बाद सभी ननद भाभियां, कालोनी में जहाँ से लड़कियां औरतें नहीं आ पाती थी वहां जाती थी और फिर उन सबकी ऐसी तैसी।

बस क्या था। पल भर में साड़ी वालियों ने अपनी साड़ी लपेट ली। कुछ के फटे ब्लाउज़ बचे थे वो भी पहन लिए। साया, ब्रा पैंटी तो सबके खेत रहे थे। टाप और स्कर्ट वालियों ने बस फटे टाप को किसी तरह ऊपर बाँध लिया। ब्रा पैंटी उनकी तो भाभियों ने चिथड़े चिथड़े कर दी थी। हाँ रंग से गीले होने से टाप और साड़ियां दोनों पारदर्शी हो गई थी और उभारों से एकदम चिपकी। लेकिन सबसे बुरी हालत मेरी थी।

मेरे तो सारे कपड़े फाड़ दिए गए थे। मैंने बोला- “मैं क्या पहनूंगा?”

तो एक लड़की बोली- “ऐसे ही चलिए…”

लेकिन भाभी ने गुड्डी की ओर देखा तो वो मेरी बचत में आ गई। मेरा पिछवाड़ाडा सहलाते हुए बोली,

" अरे नहीं अब ये मेरी जिम्मेदारी है। बीस आने में मेरी मम्मी ने खरीदा है बोली लगाकर। अगर किसी लौंडेबाज की नजर पड़ गई तो, रात तक चार बच्चो के माँ की तरह हो जायेगी। लेकिन मेरे पास लड़कों के कपड़े तो हैं नहीं। जो है वो। "

और थोड़ी देर में मेरा श्रृंगार उन दुष्टों ने मिलकर शुरू कर दिया और इसमें लड़कियां और भाभियां दोनों मिली थी-



रसिया को नार बनाऊँगी रसिया को।

सारा माहौल इसी गाने से गूंज गया था। मिश्रायिन भाभी और मेरी भाभी, सारी भाभियों को ललकार रही थी। और भाभियों के साथ लड़कियां भी इस अभियान में जुट गई थी। मैं बिचारा एक फटे पेटीकोट को, टावेल की तरह लपेट के, अपनी बची खुची लाज सम्हालने में लगा था।

और इस अभियान की पहल कर रही थी। और कौन- गुड्डी। वो एक पैकेट लेकर आई जिसमें एक साड़ी थी और भी बहुत कुछ, जिसके बारे में कल रात मैंने उससे पूछा था। तो उसने मुझे घुड़क दिया था- “तुमसे मतलब?”

और मेरी भाभी भी। मुश्कुराकर आँख नचाकर बोली, अरे मालूम हो जायेगा कल।

वो पैकेट जब खुला तो उसमें से क्या नहीं निकला।

वो सब स्प्रिंग लोडेड गहने, आर्टिफिशयल, जो कल गुड्डी ने मेरे पैसे से मुझसे ही खरीदवाये थे। चूड़ियां, मेकअप का सामान, ब्रा और एक और बंद पैकेट। गुड्डी के साथ उसकी ताजा बनी सहेली, लतिका (वही समोसेवाली) शामिल थी और लतिका ने एक-दो और लड़कियों को बुला लिया था की इसे नेल आर्ट्स बहुत अच्छी आती है। गाइडेंस रीतू भाभी की थी।

पैर के श्रृंगार में शीला भाभी और कालोनी की एक-दो और भाभियां। शीला भाभी ने तो महावर की पूरी बोतल मेरे दोनों पैरों पे खाली कर दी, खूब गाढा चौड़ा उनके साथ एक भाभी रच रच के ऐसे डिजाइन बना रही थी। जैसे गौने की दुल्हन के बनाते हैं (और अगले दिन उसकी ननदें चिढ़ाती हैं, जब दुल्हे के माथे पे वही महावर लगी नजर आती है। क्यों भाभी रात में भैया से पैर छुलवा रही थी क्या)

पैरों पे सुहागरात के पहले एक ग्राम्या का जो श्रृंगार होता है वो चल रहा था। तो मेरे हाथों पे लतिका और उस की हम उम्र सहेलियां हाथों में पूरा शहरी ब्यूटी पारलर खुल गया था। एक हाथ में लतिका तो दूसरे में उसकी सहेली। पिंक नेल पैंट डिजाइन बनाकर और साथ में कलाई तक वही डिजाइने। तब तक रीतू भाभी की निगाह मेरे तम्बू में बम्बू पे पड़ गई।

और लतिका से वो बोली- “अरे इसका इलाज तो कर…”


लतिका ने तने खड़े जंग बहादुर को देखा। तो पहले तो वीर बहूटी हो गई। फिर कुछ शर्माते कुछ लजाते बोली-

“ये तो। मैंने अभी तो किया। लेकिन इस पे तो कुछ असर ही नहीं पड़ता…”

रीतू भाभी हँसते-हँसते दुहरी हो गईं बोली
" तू तो ना मेरी पक्की ननद है। तुझे सपने में भी ना अपने भाइयों के खड़े औजार ही नजर आते हैं। अरे मेरे देवर का हथियार है ऐसे थोड़े ही सोने वाला है। मैं बताती हूँ।"


और उन्होंने लतिका की सहेली के बाल से उसके पिंक साटिन रिबन खोल लिए और लतिका को कुछ समझाया। फिर क्या था लतिका और उसके सहेली ने पहले तो फटे चिथड़े पेटीकोट का वो आवरण हटाया। दोनों के मुँह से एक साथ निकल गया वाउ। सो हाट।

रीतू भाभी ने प्यार से दोनों को हड़काया- अरे सालियों, छिनारों लार बाद में टपकाना। तेरा भाई है जब चाहे तब घोंट लेना। पहले जो बताया है वो काम करो। और वो दोनों किशोरियां, कच्ची कलियां काम पे लग गई। वो दोनों झुकी 'अपने काम' में लगी थी।

और मैं उनके फटे, टाप्स से झांकते बड़े-बड़े टिकोरे निहार रहा था।

और तभी उन दोनों की बात से पता चला की दोनों नवीं में गई थी अभी। और उनकी क्लास की चंडाल चौकड़ी ने ये तक किया था की जिसकी पहले फटेगी। वही क्लास की हेड गर्ल बनेगी और लतिका की सबसे पहले फटी। और भाभियों के साथ कित्ती उसकी सहेलियों के फोन पे उसका वीडियो सबूत था। वो दोनों इसका मतलब गूंजा और गुड्डी की मझली बहन के बराबर उम्र की थी। इसका मतलब उन दोनों सालियों पे भी मैं नंबर लगा सकता था।

लतिका जोर से मेरे जंगबहादुर को दबाकर मेरे जांघ से चिपका के सटाए हुए थी। और उसकी सहेली (रीमा नाम था उसका) उसे अपनी गुलाबी रिबन से मेरे जांघ से बाँध रही थी कसकर। रिबन खतम हो गया। लेकिन मेरा आठ इंची का सुपाड़ा अभी भी खुला था। लतिका की सहेली उससे भी एक हाथ आगे थी बोली- यार एक आइडिया है और मेरे खुले सुपाड़े से झांकते पी-होल (मूत्र छिद्र) के ठीक नीचे उसने गुलाबी लिपस्टिक से एक स्माइली बना दी।

दोनों किशोरियां खुलकर खिलखिला के हँसी अपने बाड़ी आर्ट को देखकर। लेकिन लतिका बोली यार ये खुल सकता है कुछ और करना पड़ेगा और उसकी निगाह रीमा की कमर की ओर पड़ी। रीमा ने मुश्कुराते हुए ना ना कहा। लेकिन लतिका कहाँ सुनाने वाली थी। उसने दोनों हाथों से उसकी स्कर्ट उठायी और थांग खिंच दी। बस दो इंच की गुलाबी, लेसी पट्टी की तरह।

और रीमा का भरत पुर भी एकदम मस्त चिक्कन मक्खन, गुलाबी बस दो-चार ताजा निकलेकरसर के फूल की तरह सुनहली बस निकलती हुई झांटे। उसे देखकर जंग बहादुर एकदम विप्लव पे उतारू। दोनों किशोरियों ने तुरंत थांग से उसे दुबारा रैप किया और तब तक गुड्डी आ गई उनकी सहायता करने को। आखीरकार, जंग बहादुर की मालेकिन तो वही थी।


वो एक मेडिकल टेप का बण्डल लायी थी। और अब तीनों ने मिलकर उसे अच्छी तरह कसकर टेप कर दिया। रीमा की निगाहें आँगन में कुछ ढूँढ़ रही थी। और उसने किसी ननद की पैंटी देख ली। आँगन फटी चिथड़ी ब्रा पैंटी पेटीकोट से पटा पडा था।

और वो एक पैंटी उठाकर ले आई और तीनों ने मिलकर मुझे पहना दिया और जोर से हाई फाइव कर के बोली- अब ये बच्चू काबू में आ गए और उसके बाद वो तीनों काम पे जुट गईं। वही चूडियां जो कल गुड्डी ने मुझसे खरीदवाई थी, लाल हरी। लतिका और रीमा तो चूड़ी पहनाने वालियों को भी मात कर रही थी। वही चिढ़ाना, वही अदा, उसी तरह उंगलियों को मोड़कर एक के बाद एक चूड़ी। मैंने एक-दो के बाद मना कर दिया। तो गुड्डी ने चढ़ाया उन दोनों को-

“अरे कल ये खुद खुशी खुशी अपनी पसंद से खरीद के ले आये थे। अब नखड़ा बना रहे हैं, पहनाओ कुहनी तक…”
 

komaalrani

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रसिया को नार बनाओ जी,





गुड्डी ने चढ़ाया उन दोनों को- “अरे कल ये खुद खुशी खुशी अपनी पसंद से खरीद के ले आये थे। अब नखड़ा बना रहे हैं, पहनाओ कुहनी तक…”

उन दोनों को तो बस। गाँव की नई दुलहन की तरह सिरफ चूड़ियां ही नहीं कंगन, बाजूबंद। लतिका (वही 'समोसेवाली') ने छेड़ा। अरे रात भर चुरुमुर करेगी ये चूड़ियां। उधर आँगन में भाभियां लहक लहक के गा रही थी-


रसिया को नार बनाओ जी, रसिया को।

सिर पे उढ़ाय सुरंग रंग चुनरी।

अरे सिर पे उढ़ाय सुरंग रंग चुनरी।

उर चोली पहनाओ री

रसिया को नार बनाओ जी, रसिया को।




साथ में रीमा, लतिका, गुड्डी और एक-दो भाभियां कल जो गुड्डी आर्टिफिशियल ज्वेलरी खरीद के लायी थी। बस उसे पहनाने में जुटी थी। चूड़ी, कंगन और बाजूबंद के बाद अब नाक और कान का नम्बर था, रीमा ने कान में बड़े-बड़े झुमके पहनाये और लतिका ने छोटी सी नथुनी। एकदम सोने की लग रही थी। बीच में छोटा सा मोती।

मुझे चिढ़ाते हुए बोली,

" आप ने मेरी नथ उतारी और मैं आपको नथ पहना रही हूँ। "

लतिका और रीमा वास्तव में मेकअप में एक्सपर्ट थी। हाई चीक बोनस बना दी उन्होंने फिर रीमा ने आँखों का जिम्मा लिया। मस्करा, लाइनर, काजल कुछ भी नहीं छोड़ा और लतिका ने होंठों पे लाइनर, लिपस्टिक, लिप ग्लास, एकदम लड़की टाइप जैसे ब्राइडल मेकअप करते हैं वैसे।

उधर रीतू भाभी ने पैरों में चौड़ी, एक हजार घुंघरु वाली पाजेब पहना दी। मैंने बिछुआ पहनने में जो कुछ नाटक किया। तो डांट पड़ गई। और किसकी। गुड्डी की। सुहागिन की निशानी है ये। खबरदार और पांचो उंगलियों में घुँघर वाला बिछुआ। और उधर शीला भाभी ने मुझे चिढ़ाते हुए गाना शुरू कर दिया। मेरी भाभी भी साथ में और बाकी भी। यहाँ तक की रीमा और लतिका भी-



अरे घुंघुर वाला बिछुआ अजबे बना, अरे छोटे घुंघुर वाला।

ये बिछुआ पहने हमरे आनंद की बहना अरे देवर की बहना।

इ बिछुआ पहने रंजी छिनारी, अरे साल्ली रंजी छिनरी

अरवट बाजे, करवट बाजे, अरे चौका पे रोटी बेलावत बाजे

अरे टंगिया उठाय चुदावत बाजे, हमरे देवर के संग चुदावत बाजे

लौड़ा रोज पेलावत बाजे, अरे छोटे घुंघुर वाला।




अब कपड़ों का नम्बर आया और शीला भाभी ने गुड्डी जो साड़ी लायी थी और आँगन से किसी भाभी का गिरा पेटीकोट उतारकर पहना दिया। चोली पहनाने का काम गुड्डी ने किया लेकिन सब लोग चिल्लाये अरे पहले अन्दर वाला।

गुड्डी हँसकर बोली मुझे याद है बस नाप रही थी और फिर ब्रा। वही जो दुकान पे सेल्सगर्ल ने मुझसे मेरी बनियाइन का नंबर पूछ के दिया था बस वही पैकेट। मेरी भाभी भी मैदान में पीछे नहीं थी। गुड्डी से बोली। अरे तुझे कल कुछ बोल था ना बाजार से लाने के लिए।


गुड्डी बोली,

अरे आप घबड़ाए मत। आपके देवर का श्रृंगार कम लिंग परिवर्तन पूरा होगा। गारंटी कोई पहचान नहीं सकता। शाम को कालीन गंज (मेरे शहर का रेड लाईट एरिया) में इनको बैठा दीजियेगा तो सौ दो सौ कमा लायेगे।

उसने अपना बंद पैकेट खोलकर दो टेनिस की बाल निकाली उस पे दो बहुत छोटी-छोटी कंचे की गोलिया चिपकाई। उन्हें ब्रा के अंदर रखकर टेप से चिपका दिया। और अब वो हाफ कप पुश अप पैडेड ब्रा, के अनार जब चिपक गए तो लतिका के साथ मिलकर मुझे पहले वो पहनाया फिर चोली।

“हे अभी एक चीज बची है। दुल्हन का सिंदूरदान तो हुआ ही नहीं।

उस काम के लिए और कौन आता। गुड्डी ने ढेर सारा सिन्दूर मेरी सीधी मांग में भर दिया। कुछ क्या काफी कुछ मेरे नाक पे गिर गया…” गुड्डी ने चिढ़ाया।

फिर शीला भाभी ने- “अरे सास बहुत प्यार करेगी तोहका। जिस दुलहन की नाक पे सिन्दूर गिर जाता है ना उस की सास उस को हर तरह से प्यार करती है…”

गुड्डी ने सिन्दूर की डिबिया फिर लतिका और रीमा को भी पकड़ा दी। बोली-

“चल चल मैं मिल बाँट के खाने में विश्वास रखती हूँ, और जब तेरी शादी हो जायेगी न तो नंदोई पे पहले मैं नम्बर लगाऊँगी…”

किसी भाभी ने बोला- “अरे शादी होने में तो बहुत दिन लगेगा इन दोनों के…”

गुड्डी हँसकर बोली- “अरे यारों की तो लाइन लगी रहेगी ना। तो टेम्पोरेरी नंदोई ही सही…”

रीमा और लतिका ने भी एक एक चुटकी सिन्दूर डाल ही दिया। रीमा के गाल पिंच कर के मैं बोला- “हे सिंदूर दान तो हो गया अब सुहागरात?”

वो भी डरने वाली नहीं थी, हँसकर बोली- “जब चाहिए…”

हम लोगों की टोली घर से बाहर निकलकर के कालोनी में पहुँची। निकलने के पहले मुझे गुड्डी ने शीशा दिखाया। मैं खुद को नहीं पहचान पाया। मुझे भाभियों की टीम में शामिलकर लिया गया था और मिश्रायिन भाभी सबसे ये बोलती थी की मैं भाभी के मायके की हूँ।
 

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भांग ड्रिंक
20230315-015152
Nice pics
 
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गुड्डी
Perfect HOLI Pics
 

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पात्रों के मनोविज्ञान में भी आप पारंगत हैं...
मन्मथ तो मन को ही मथता है

लेकिन आप ऐसे पारखी रस सिद्ध पाठक भी चाहिए जो हीरे और कांच में फरक कर सकें
 
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कालोनी की होली

(फागुन के दिन चार से)



होली का माहौल मोहल्ले में और भी रंगीन था। और जब हम लोगों की टोली घर से निकली जोबन के मद से मदमाती, गदराती, खेली खायी भाभियां, तितली सी उड़ती, चिड़िया सी चहकती, उछलती, मचलती, उनकी ननदें और लड़कियां।

पुराना जमाना होता तो राजा इन्दर के अखाड़े की, लालपरी और सब्जपरी की उपमा शायद ठीक होती। लेकिन अभी तो ये कहा जा सकता है की जैसे किसी चैनेल की या फिल्मी होली पार्टी से स्टार होने वाली स्टार रंगों में लथपथ निकलती है। बस इसी तरह रंग के साथ भंग और वोदका और रम के नशे में चूर। फर्क सिर्फ ये था की इस टोली की होली तन और मन की भी हुई थी। शायद ही किसी के कपड़े फटने से बचे हों और जो थोड़े बहुत थे। वो बस सारे उभारों से चिपके, कटावों को झलकाते और आग लग रहा थे। सब लाल गुलाल लग रहा था पलाश के दहकते, जलते वन ही चले आ रहे हो हों। वो गाल जिन्हें छूने के लिए सूरज की किरणें भी इजाजत मांगती थी, जिन्हें देखकर गुलाब भी शर्मा जाते थे। जिनके बारे में ये कहा जाता था।




अल्लारे उनके फूलों-से गालों की ताजगी,

धूप आइने की देखकर कुम्हलाये जाती है।




वो रंगों से लाल पीले। खूब रगड़े मसले रुखसार होली की मस्ती से दहक रहे थे। जिन स्कूल जाती लड़कियों से नए आये जोबन का उभार, निखार सम्हाले नहीं सम्हलता था। बार-बार दुपट्टा इस कदर इस रूप से डालती थी की किसी लड़के की नजर न पड़ जाए। भाभियों ने उनके जोबन ऐसे लुटे थे। अब दुपट्टे और ब्रा ने तो साथ छोड़ा, टाप, फ्राक भी फटी चिथड़ी, रंगों से चिपकी, उन नए आये उभारों को नुमायां ज्यादा कर रही। और छुपा कम रही थी। और उनके चलने का अंदाज भी बता रहा थी की इस होली में वो कैशोर्य के आँगन से बाहर निकलकर, भोलेपन की दहलीज पारकर अब शोख अदाओं, छेड़खानी और मनुहार के, इस तरह से ना कहने की अदा की अगला समझ जाय की वो हाँ ही है, जवानी के मजे लेने की मस्त दुनियां में आ गई थी और छुपा कम रही थी गौने के रात की बाद दुल्हन की जो हाल होती है।






उसे लगता है हर निगाह उसकी रात की गुस्ताखियों का शोखियों का हर कदम के साथ स्वाद ले रही है,



आज बिरज में होरी रे रसिया, होरी रे रसिया बरजोरी से रसिया,

अपने अपने घर से निकरी कोई सांवर कोई गोरी रे रसिया।



और घर से बाहर निकलते ही। होली है के नारे हुड़दंगियों की टोली। गली के दोनों और छतों पे जो लड़कियों औरतों का झुण्ड था। बाल्टियों से पानी और रंग, पिचकारियों की फुहारे, रंगों भरे गुब्बारे, तन मन और गीला हो गया।

मैं रीतू भाभी, लतिका और रीमा के साथ था और गुड्डी सीधे मिश्रायिन भाभी की अंडरस्टडी के तौर पे और मिश्रायिन भाभी ने जो गुर आज तक किसी को नहीं सिखाये थे, अपनी इस पटु शिष्या को ना सिर्फ सिखाये बल्की अपने सामने करवाए भी।

गुड्डी अपने से उम्र में चौदह साल बड़ी, शादीशुदा ससुराल से कबड्डी खेलकर आई, एक से एक तीस-बत्तीस साल की प्रौढ़ा, ननदों को भी पछाड़ रही थी। लेस्बियन रेसलिंग, होली की गालियां हो या एक साथ होली की हूँ तू तू में अकेले ननदों के झुरमुट में घुस के दो-चार के कपड़े फाड़कर आना हो। गुड्डी की जोश और स्फूर्ति और मिश्रायिन भाभी की ट्रेनिंग और ट्रिक। उसके उम्र वाली कमसिन कन्यायें तो वैसे ही हाथ खड़ी कर देती थी। कर लो जो करना हो।

लड़कियों की इस होली में आदमी नहीं घुसते थे। हाँ दूर से देह से भीगे चिपके रंग से लथपथ कपड़ों में कटाव, उभार, झलकते हुए जोबन, एक दूसरे से जूझती औरतें लड़कियां, कपड़े के अन्दर हाथ डालकर गोलाईयां मिजवाती नापती, दबाती, मीजती, लड़कियां।





वो देखना ही उनके लिए होली का अनन्य सुख था।

हाँ हम लोगों की टोली, पीछे के रास्ते से कालोनी में गई तो इसलिए होली के हुड़दंगियों, हुरियारों से तो हम बचे रहे। लेकिन अगर कोई इक्का दुक्का कम उमर का लड़का पकड़ में आ गया तो भाभियां उसे रगड़े बिना नहीं छोड़ती थी। आखीरकार, देवर जो लगता। पैंट के अन्दर भी, आगे भी पीछे भी और उससे उसके बहन की नाम की दस पांच गालियां दिलवा के ही उसे छोड़ती।

लेकिन मेरा बड़ा फायदा हो गया, लतिका और रीमा के चलते। कालोनी में जहां कोई रंगीन बाला दिखती, जवानी के देहलीज पे खड़ी, थोड़ी लजाती, सकुचाती, झिझकती, शर्माती। उसकी रगड़ाई और सब कुछ। 'सिखाने दिखाने' का काम मेरा।

लतिका मुझे समझाती, उकसाती।

ये नीले फ्राक वाली, बहुत सीधी बनती है, कहती है इसको ऐसी वैसी बातें पसंद नहीं, लड़कों के नाम से कन्नी काटती है, छूने को छोडो कोई लड़का कमेंट भी पास कर दे तो एफ आई आर लेकर खड़ी हो जाती है।



बस दो-चार भाभियां उसे दौडातीं, जैसे हांका करते हैं। वो हिरणी भागकर लतिका और रीमा की और दौड़ती और मैं पीछे से उसे गपुच लेता। मेरा बायां हाथ काफी होता उसके हाथ पकड़ने के लिए। फिर मैं उसे थोड़ी देर छटपटाने देता और जब वो थक हार के खड़ी हो जाती।

तो पहले तो गोरे गोरे किशोर गालों का रस, और साथ में उसके कानों में ऐसी वैसी बातें जो वो अपनी सहेलियों से करने में शर्माती सकुचाती, गोलाइयों की नाप। किसने और कितनों ने उसके जोबन का रस लूटा है। वो धत्त धत्त करती रहती और मैं कहता चल कोई बात नहीं मैं खुद नाप लेता हूँ और फिर गीले देह से पहले तो ऊपर से जोबन रस का सुख और फिर एक झटके में फ्राक के अंदर हाथ।




मुसीबत में जैसे दोस्त भी साथ छोड़ देते हैं। उसी तरह फ्राक के बटन भी चट चट और मेरा हाथ अन्दर। जो नीति भाभियों ने मेरे घर के आँगन में की थी ननदों को ब्रा के कवच से मुक्त करने की। पहले वो और फिर गोरे कबूतर। उनके पंख लाल पीले रंगे जाते। पक्के रंगों से। खास तौर पे जब उन कबूतरों की ललछांह चोंच मैं दबाता, दबोचता, तो जिस तरह वो सिसकती चीखती। लतिका, रीमा से छुड़ाने की गुहार करती। लेकिन वो दोनों शोख हँसती, मुझसे कहती की जरा कबूतरों को हवा तो खिलाओ, पिंजरे से साल बरस के दिन, बाहर तो निकालो। और मैं कौन होता था मना करने वाला। चरर्र। फ्राक का ऊपरी हिस्सा फट के मेरे हाथ में, रंगा पुता कबूतर बाहर।

और साथ में लतिका और रीमा के हाथ में मोबाइल। स्नैप स्नैप। उड़ने को बेताब गोरे गुदाज कबूतर। मेरे हाथों से दबे मसले जा रहे कबूतर।

और फिर वो किशोरी कबूल कर लेती लतिका और रीमा के गैंग को जवाइन करने के लिए। लेकिन बचत इतने से भी नहीं। उसी के साथ मेरा दूसरा हाथ पैंटी का दुश्मन। उसे भी अलग कर लेता और उंगलियां सीधे रसमलाई का रस ही नहीं लेती, उसे चाट चाट कर उसे दिखाती। भरतपुर स्टेशन के अन्दर घुसकर जब तक वहां भी रंगाई पुताई न हो। वो नहीं बचती।

और फिर लतिका रीमा के साथ वो मिलकर अगला शिकार खुद पकड़वाती और ब्रा पैंटी फाड़ने का जिम्मा उसका। जैसे कई चिट फंड स्कीम में होता है की आप जिसे मेंबर बनायंगे, जब वो नया मेंबर बना लेगा तो आपका फायदा बस वही और फिर मोबाइल का इश्तेमाल, अन कहीं धमकियां और असली बात लड़कियों के झुरमुट में होली के मंजर में सब रंगी पुती भंग के नशे में मस्त। कौन देखता है कौन क्या कर रहा है और जो पहरेदार थी वो भी तो किसी और के साथ वही सब कर रही थी।



शायद ही कालोनी की कोई लड़की बची होगी जिसके उरोज कितने गदरा गएं हैं, कटाव, उभार कैसे हैं। मेरी उंगलियों ने नहीं देखा या रसमलाई का रस नहीं लिया। जो बड़ी उम्र की लड़कियां या शादी शुदा ननदें थी वो बाकी भाभियों के जिम्मे और कच्ची कली कचनार की। को होली का रस और देह का सुख सिखाने की जिम्मेदारी मेरी।
 
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