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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

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ना भूली वो होली











होली हो और साली न हो, बहुत ना इंसाफी है। होली हो, साली हो और उसकी चोली न खुले, बहुत ना इंसाफी है। चोली में हाथ घुसे, और साली की गाली न हो, बहुत ना इंसाफी है। जीजा और साली की होली, नंदोई और सलहज की होली, ननद और भाभी की होली।

ससुराल में मची पहली होली का धमाल, एक साली की जुबानी, कैसे खेली जीजा ने होली? कैसे खोली जीजा ने चोली? और फिर क्या-क्या खुला?

थैंक्स, और अब शुरू होती है कहानी, होली जीजा साली की।




***** *****साली की जुबानी



जब मैं जवानी की दहलीज पर कदम रख ही रही थी की तब से ही भाभी मुझे छेड़ती थीं कि तुमने अब तक चुदवाना नहीं शुरू किया। ठीक है अगर इंटर पास होने के पहले तूने इंटरकोर्स नहीं किया, तब तक तुमने नहीं चुदवाया तो तुम्हारी चूत का उद्घाटन मुझे अपने सैंयां यानी तुम्हारे भैय्या से करवाना पड़ेगा।

लेकिन इसकी नौबत नहीं आई।

मैं बारहवें में जाने वाली थी। जो कहते हैं न जवानी की रातें मुरादों के दिन, बस वही दिन। लम्बी, गोरी, गालों पर गुलाब खिल रहे थे, और चोली के उभार… बस यूँ कहूं कि सारी सहेलियां मुझे देखकर जलती थीं, और सारे लड़के मरते थे।





और वह मेरी पहली होली थी, जीजा के साथ।

बसन्त की बयार, बाहर पलाश दहक रहे थे और अन्दर मेरी चोली के… बस बिना बात कि अन्गड़ाई लेती थी, बार-बार शीशे के सामने खड़ी होती थी। कभी जोबन के उभार अच्छे लगते, कभी खुद शर्मा जाती, कभी मन करता कि बस कोई कस के पकड़कर दबा ले, दबोच ले।



कुछ दिन पहले जब मेरी बड़ी दीदी की शादी हुई थी तो हम लोगों ने खूब जमकर गालियां सुनायीं और मैंने जीजाजी से कोहबर मैं शर्त मनवा ली कि वोह होली में जरूर आयेगें, और दो-चार दिन रहेंगे। पर होली के कुछ दिन पहले उनका फोन आया कि उन्हें होली कि शाम को ही कहीं बाहर जाना है। इसलिये उनका आना थोड़ा मुश्किल है।

मैंने उनसे रिक्वेस्ट की, कि कम से कम थोड़ी देर के लिये दीदी के साथ आ जायें। फिर यह तय हुआ कि, वह होली को सुबह आ जायेंगे और होली खेलकर दोपहर को वापस चले जायेंगे। होली के एक दिन पहले से ही हम लोग तैयारियां कर रहे थे। ढेर सारा गुलाल, अबीर और रंग, जीजा को रंगने के लिये एकदम पक्के पेंट, भांग वाली गुझिया, ठन्डाई और सारा इन्तजाम मैंने किया।

होली के पहले वाली रात मैं और भाभी देर रात तक किचेन में ही लगे रहे, जिससे कि होली वाले दिन के लिये कोई काम बाकी न रहे।

होली की सुबह कपड़े खराब हो जाने के डर से मैंने हल्के रंग की एक पुरानी फ्राक पहनी, पर पुरानी होने के कारण वह थोड़ी छोटी और बहुत टाईट थी जिससे मेरे उभार और उभरकर सामने आ रहे थे। रंग से बचने के लिए मैं हाथ पैर पर वैसलीन लगा रही थी।

तभी भाभी ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा-

“नन्द रानी, जरा नीचे वाले इलाके में भी, अन्दर तक उंगली डालकर लगा लो और अगर शर्म लग रही हो तो मैं लगा दूं…”



भाभी कि सलाह मानकर, पैन्टी सरकाकर मैंने वहां भी वैसलीन लगा ली। झांटें तो मैंने कल रात ही साफ-सूफ कर ली थी। मेरी कोई प्लानिगं नहीं थी, पर क्या पता? अपनी कुँवारी गुलाबी टाईट चूत देखकर तो एक बार मैं भी शर्मा गई। पर धीरे से मैंने लैबिया को फैलाकर खूब वैसलीन लगायी।

एक प्लास्टीक के पाउच में मैंने सारे रंग रख लिये और दो रंग से भरी बाल्टी छत पर रख ली। वहीं मैं और भाभी ईंतजार करने लगे। होली का हुड़दंग शुरू हो गया था।



आज न छोडेगें हम हमजोली, खेलेगें हम होली,

चाहे भीगे तेरी चुनरिया चाहे भीगे रे चोली,


लाउडस्पीकर पर फिल्मी होली गानों की आवाज, चारों ओर रंग, गुलाल, पिचकारियां, टोली बना-बनाकर लड़के रंग, हुडदंग, मचा रहे थे, बीच-बीच में कबीर… कबीरा सा रा र… और नाम ले-लेकर गालियां, पर आज गालियां भी अच्छी लग रही थीं। तभी मैंने अपना नाम सुना-

नकबेसर कागा ले भागा, सैंयां अभागा ना जागा,

उड़-उड़ कागा संगीता की चोलिया पे बैठा…


भाभी ने इशारा किया, नन्द रानी देखो तुम्हारा ‘वह’ (वह मेरी गली के मोड़ पर रहता था और रोज वहां खड़ा रहना, मेरे स्कूल के टाईम पर, अक्सर मेरे पीछे-पीछे जाना, छेड़ना, शायद उसी ने मुझे पहली बार जवानी आने का एहसास कराया था। मैं उसको लिफ्ट नहीं देती थी, पर सबको मालूम था कि वह मेरा दीवाना है)।

मैंने छिपने की कोशिश की पर भाभी ने मुझे धक्का देकर सामने कर दिया। उसने मुझे देखकर गाना पूरा किया…


उड़-उड़ कागा संगीता की चोलिया पे बैठा, अरे, जोबना का सब रस ले भागा।

और एक रंग भरा गुब्बारा सीधे मेरे ऊपर फेंका, जो ठीक मेरे बायें जोबन पर लगा और वह एकदम रंग से लाल हो गया। मैं एकदम सिहर गई और उसने और उसके साथियों ने फिर जोर से गाया-





अरे, बुर वाली, बुरा न मानो होली है।

उड़-उड़ कागा संगीता की स्कर्ट पे बैठा,

अरे, बुरिया का सब रस ले भागा।

नकबेसर कागा ले भागा, सैंयां अभागा ना जाग।

भाभी ने मुझे रंग भरी बाल्टी पकड़ा दी और मैंने भी ठीक उसके ऊपर डाल दी। भाभी ने मेरे रंगे उरोज को कस के दबाया और चिढ़ाया- “नन्द रानी शुरुआत तो अच्छी हो गई है…”
 
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***** *****जीजाजी



हम लोगों को पता ही नहीं चला पर जीजाजी पीछे वाले दरवाजे से आ गये थे। झट से मैं और भाभी नीचे आये। हमने प्लान किया था कि हम दोनों मिलकर जीजाजी को रगड़ेंगे, पर वह प्लान ही रह गया।

दीदी ने भाभी को पकड़ लिया और जीजा ने मुझे।



जीजा पहले ही अपने हाथों में गाढ़ा लाल रंग लगाकर आये थे और उन्होंने झट से मेरे कुँवारे गालों को दबोच लिया और मेरे गुलाबी गालों की रगड़ाई मसलाई चालू हो गई। मैंने अपने हाथों से उनका हाथ छुड़ाने की कोशिश की पर कोई असर नहीं हुआ। पहली बार मेरे टीन गालों पर किसी मर्द का हाथ पड़ा और बस ऐसा लग रहा था कि… रंग ऊपर लग रहा था और गीली मैं नीचे हो रही थी। उनका हाथ गाल से नीचे सरका तो मैं समझी की…

पर असल निशाना तो कहीं और था। जब तक मैं समझ पाती, उनकी उगंलियां मेरे कुँवारे उभारों के ऊपरी भाग को, फ्राक के अन्दर घुसकर रंग रही थीं।

मैं कांप उठी।

जीजा ने जोर लगाकर और अन्दर हाथ डालकर मेरी कलियों को रंगना, मसलना, रगड़ना शुरू कर दिया। शर्म भी लग रही थी, अच्छा भी लग रहा था। मैं ऊपर-ऊपर हाथ छुड़ाने कि कोशिश कर रही थी पर मन यही कह रहा था कि…



जीजाजी ने मेरा एक जोबन अब अच्छी तरह फ्राक के अदंर पकड़ लिया था और दूसरा वह फ्राक के ऊपर से ही दबा रहे थे। उन्होंने मेरी टीन ब्रा खोलने की कोशिश करते हुए कहा-

“कब तक इन कबूतरों को अन्दर बन्द करके रखोगी?”

उन्हें क्या पता कि इन्हें इत्ते दिनों से मैंने उन्हीं के लिये सम्हाल कर रखा था। ब्रा खोलकर उन्होंने खूब ढेर सारा सूखा रंग, ऊपर से ब्रा के अन्दर डाल दिया और अब मेरे दोनों जोबनों की रगड़ाई मसलाई करने लगे।
जब मेरी कोशिशों का कोई असर नहीं हुआ तो मदद के लिये मैंने भाभी कि ओर देखा, पर वहां तो हालत और गड़बड़ थी।



**** *****लुट गयो जुबना, साल्ली का



चेहरे पे तो दोनों लोगों के अच्छी तरह से रंगे पुते थे ही, भाभी ने दीदी के ब्लाउज में अच्छी तरह हाथ डाल रखा था और दीदी भी, भाभी के ब्लाउज के बटन खोलने की कोशिश कर रही थीं। आँचल तो दोनों के पूरी तरह से हटे हुए थे।

मेरा ध्यान उधर था और इधर जीजा का एक रंग पुता हाथ मेरे फ्राक के अन्दर पहुंच गया।

जब तक मैं सम्हलूं, मेरी जांघ पे हाथ ऊपर पहुंचाकर, उन्होंने मेरी पैन्टी के ऊपर से मेरी… कसकर दबोच लिया और ऊपर से ही रंग लगाने लगे। मैं एकदम गिनगिना गई। एक हाथ ऊपर मेरी जवानी की कलियों को रगड़ मसल रहा था, और दूसरा मेरी कुँवारी जाघों के बीच… पर जीजा की दुष्ट उगंलियों को इससे सतोष थोड़े ही था। मैनें अपनी जाघें कसकर सिकोड़ रखी थीं। लेकिन वह पैन्टी के भीतर घुसकर मेरे गुलाबी लैबिया को भी लाल करने लगीं।

इस दोहरी मार से मैं एकदम बेकाबू हो गई। कुछ शर्म और लाज के मारे और कुछ… मुझे ऐसा कभी नहीं लगा था। मेरा पूरा शरीर कंट्रोल से बाहर हो रहा था। मेरी जांघें अपने आप फैल रही थीं।

और जीजा ने इसका फायदा उठाकर अपनी उगंली की टिप मेरी… मेरी योनी में डाल दिया। मुझे ऐसा लगा जैसे कि कोई 440 वोल्ट का झटका लगा हो। थोड़ी देर बाद मैं थोड़ा सम्हली और दोनों हाथों से उनका हाथ हटाने की कोशिश करने लगी।



पर भाभी मेरी मदद को आ गईं। उन्होंने रंग भरी एक बाल्टी उठाकर जीजा पर फेंकी।

पर मेरे जीजाजी भी कम चालू चीज नहीं थे, उन्होंने मुझे आगे कर दिया और सारा रंग मेरे ऊपर पड़ा और वो भी ज्यादा मेरे सीने पर। जीजा ने चालाकी से जो सूखा रंग मेरे जोबन पर लगाया था वह अब पूरी तरह गीला होकर… और ब्रा तो उन्होंने न सिर्फ खोली थी बल्कि मेरे सीने से अच्छी तरह से हटा दी थी। इसलिये अब मेरा टीन जोबन न सिर्फ रंग से अच्छी तरह लाल हो गया था, बल्कि भीगी फ्राक से चिपक करके पूरी तरह से दिख रहा था।

लेकिन अब वह भाभी को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे, इसलिये मैं फ्री हो गई। जीजा ने तो मुझे अच्छी तरह हर जगह रंग दिया था, पर वह सूखे ही बचे थे और अब मेरा मौका था। मैंने अपने खास पेंट की ट्यूब निकाली और दो रंग मिलाकर हथेली पर ढेर सारा गाढ़ा रंग बनाया, खूब गाढ़ा लाल और कई दिन तक न छूटे ऐसा।

जीजाजी ने भाभी को दोनों हाथों से बल्की साफ-साफ कहूं तो, भाभी के दोनों भरे-भरे स्तनों को पकड़ रखा था, पर भाभी भी बिना उसकी कोई फिक्र किये, उनके सीने पर रंग लगा रही थीं।

मेरे लिये पूरा मौका था। मैंने अपने दोनों हाथों से उनके गालों पर अच्छी तरह से रंग लगाना शुरू कर दिया। उनका पूरा चेहरा मैं अपनी मर्जी से रंग रही थी। यहां तक की उनका मुँह खुलवाकर दांतों पर भी मैंने लाल रंग से मंजन कराया।

दीदी पूरी तरह न्यूट्रल थीं, इसलिये अब हम दोनों जीजा पर भारी पड़ रहे थे। छीना-झपटी में भाभी की चूंचियां ब्लाउज से बाहर भी थोड़ी निकल आई थीं, और जीजा ने उन्हें खूब रगड़कर रंगा था। पर भाभी ने भी उन्हें टापलेस कर दिया और हम दोनों ने मिलकर उनके हाथ अच्छी तरह पीछे बांध दिये। भाभी ने कड़ाही की कालिख से खूब पक्का काला रंग बनाया था। वह उसे लेने गईं।

और मैं जीजा से अपना बदला निकालने लगी। दोनों हाथों में पेंट लगाकर मैं पीछे से, खड़ी होकर उनके पेट, सीने, हाथ हर जगह रंग लगाने लगी। उनके दोनों निप्पल्स को (जैसे वह मेरे जोबन को रगड़ रहे थे वैसे ही, बल्की उससे भी कसकर) रगड़ते हुए मैंने जीजाजी को चिढ़ाया- “क्यों जीजू, आप तो सिर्फ टाप में हाथ डाल रहे थे और हम लोगों ने तो आपको टापलेस ही कर दिया…”

जीजा- “अच्छा, अभी इतना उछल रही थी, जरा सा मैंने रंग लगा दिया था तो…” जीजा ने शिकायत के टोन में कहा।

मैं- “अरे, वो तो मैं आपको बुद्धू बना रही थी…” दोनों हाथों से निप्पल्स को दबाते हुए मैंने फिर चिढ़ाया।

जीजा- “ठीक है, अबकी जब मैं डालूंगा न, तब तुम चाहे जित्ता चिल्लाना, मैं छोड़ने वाला नहीं…”

जीजा की बात को बीच में ही काटते हुए मैंने कहा- “अरे ठीक है जीजू… डाल लीजियेगा, जित्ता मन कहे डाल लीजियेगा, आपकी यह साली डरने वाली नहीं, होली तो होती ही है डालने डलवाने के लिये, पर अभी तो आप डलवाइये…” उनकी पीठ पर खूब कसकर अपने उभारों को दबाते हुए और निचले भाग को भी उनके पीछे रगड़ते हुये मैंने उन्हें चैलेंज किया।

तब तक भाभी कालिख के साथ आ गई थीं और उनके आधे मुँह पर खूब जमकर उसे रगड़ने लगीं।

मैं- “क्यों जीजाजी किसके साथ मुँह काला किया?” मैनें उन्हें फिर छेड़ा।

दीदी- “अरे और किसके साथ? उसी स्साली, मेरी छिनाल नन्द के साथ…” अब तक हम लोगों की चुपचाप होली देखती, दीदी ने बोला।
 
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साली, सलहज एक साथ



जीजा का आधा मुँह काला था और बाकी आधे पर मैं सफेद वार्निश का पेंट लगा रही थी।

भाभी जो अब पीठ पर काला रंग लगा रही थीं, बोल पडीं- “अरे नन्दें तो साल्ली सब कि सब होती ही हैं बचपन की छिनाल, ये क्यों नहीं कहती की मेरे नंदोई ही बहनचोद हैं बल्कि साथ-साथ…”

ये कहते हुए उन्होंने अपना कालिख लगा हुआ हाथ उनके पिछवाड़े डाल दिया और- “गान्डू हैं…” कहकर अपनी बात पूरी की।

जीजा की चिहुंक से हम लोगों को अन्दाज लग गया कि भाभी ने कहां रंग लगाया है।

भोले स्वर में भाभी ने कहा- “अरे, नन्दोई जी, एक उंगली में ही… मुझे तो मालूम था कि आप बचपन के गान्डू हैं। लगता है प्रैक्टिस छूट गई है। खैर… मैं करवा देती हूं…”

बेचारे जीजाजी, उनके दोनों हाथ बंधे थे और साली और सलहज दोनों… भाभी खूब जमकर पिछवाड़े अन्दर तक और मैं भी खूब जमकर… मैंने सिर में खूब सूखा रंग और बाकी हर जगह अपना पक्का पैंट… जीजा की अच्छी हालत हो रही थी।

भाभी तभी एक बाल्टी में रंग भरकर ले आयीं। जीजाजी के ‘वहां’ इशारा करते हुए, बोलीं- “यह जगह अब तक लगता है बची है…”

(सुबह की भांग की दो-दो गुझिया, जीजा ने मेरी चूची की जो रगड़ायी की, होली का माहौल, मैं भी बेशर्म हो गई थी)

मैं- “हां भाभी…” कहकर मैंने उनका पाजामा आगे की ओर खींच दिया, और भाभी ने पूरी बाल्टी का रंग ‘उसके’ ऊपर उड़ेल दिया। पर भाभी ने फिर कहा- “अरे, वहां पेन्ट भी तो लगाओ…” और उन्होंने मेरा पेंट लगा हाथ जीजाजी के पाजामे में डालकर ‘उसे’ पकड़ा दिया।

पहली बार मेरे कुँवारे, टीन हाथों ने ‘उसे’ छुआ था और मैं एकदम सिहर गई। मेरी पूरी देह में मस्ती छा गई। लेकिन मैं घबड़ा, शर्मा रही थी… वह खूब कड़ा… बड़ा… लग रहा था।

भाभी ने फोर्स करते हुये कहा-

“अरे, होली के दिन साली जीजा का लण्ड पकड़ने में शर्मायेगी तो… कैसे चलेगा? अभी चूत में जायेगा तो चूतर उठा-उठा करके लीलोगी…”

और उन्होंने मेरे हाथ में लण्ड पकड़ा ही दिया।

मैं भी मस्ती में लण्ड में रगड़कर पेंट लगाने लगी।

इसी बीच जीजाजी ने अपना हाथ छुड़ा लिया। पर जब तक वह पकड़ पाते हम आंगन के दूसरे छोर पर थे। जीजा ने रंग भरी बाल्टी उठाई और सीधे भाभी के रसीले जोबन पर निशाना लगाकर फेंका। पर भाभी भी कम थोड़े ही थीं, उन्होंने भी जीजा के मेरे हाथ लगने के बाद खड़े पाजामा फाड़ते, टेंटपोल पर फेंका।

तब तक जीजू के निशाने पे मैं आ गई थी। उन्होंने मेरे किशोर उभरते हुए उभारों पर इस तरह रंग फेंका कि, मैं एकदम गीली हो गई। ब्रा तो पहले ही हट गई थी और अब मेरी चूचियां टाइट और गीली फ्राक से चिपक कर एकदम साफ दिख रही थीं। जब तक मैं संभलती जीजा के दूसरे वार ने ठीक मेरी जांघों के बीच रंग की धार डाल दी।

मैं उत्तेजना से एकदम कांप गई। उस समय तो अगर मुझे जीजा पकड़कर… तो मैं…

पर भाभी ने बोला- “अरे तू भी तो डाल… और हाँ ठीक निशाने पे…”

मैं भी एकदम बेशर्म हो गई थी। मैंने भी जीजू के पाजामे के अन्दर से झलकते खड़े लण्ड पर सीधे रंग भरी बाल्टी डाल दी।

देर तक गीले रंगों की होली चलती रही। जीजा टापलेस तो थे ही, मेरे और भाभी के ‘ठीक निशाने’ पर डाले गये रंग से ‘उनका’ एक बित्ते का… खूंटा सा खड़ा… साफ दिख रहा था। और मेरी भी पुरानी टाईट, झीनी फ्राक देह से ऐसी चिपकी थी कि… पूरा जोबन का उभार… और नीचे भी गोरी-गोरी जांघें… फ्राक एकदम टांगों के बीच चिपकी हुई थी।

जीजू बस ऐसे जोश में थे कि लग रहा था कि उनका बस चले तो मुझे वहीं चोद दें (और उस हालत में, मैं मना भी नहीं करती)।



पर तभी एक गड़बड़ हो गई। भाभी ने एक बाल्टी रंग दीदी के ऊपर भी डाल दिया। और फिर तो दीदी ने भाभी को पकड़ लिया और उन दोनों के बीच नो होल्ड्स बार्ड होली चालू हो गई। मैं अकेली रह गई।
 
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***** *****पकड़ी गई



पर तभी एक गड़बड़ हो गई। भाभी ने एक बाल्टी रंग दीदी के ऊपर भी डाल दिया। और फिर तो दीदी ने भाभी को पकड़ लिया और उन दोनों के बीच नो होल्ड्स बार्ड होली चालू हो गई।

मैं अकेली रह गई।

जीजा की मुश्कान देखकर मैं भांप गई कि उन्होंने मेरी हालत समझ ली है। उन्होंने जेब से पेंट निकाला और अपने हाथ पर मला। मैं कातर हिरणी की तरह भागी, पर कितना भाग पाती। उन्होंने मुझे पकड़ लिया। उन्हें अब कोई जल्दी नहीं थी। उन्होंने एक हाथ से मेरी दोनों कलाईयां पकड़ लीं और दूसरे हाथ से फ्राक के सारे हुक धीरे-धीरे खोल दिये। मेरे कुँवारे उभारों को पहले तो वह धीरे-धीरे सहलाते रहे फिर उन्होंने कसकर रगड़ते हुये, मेरे टेनिस बाल साइज, उभरते हुए, किशोर जोबन का पूरा मजा लेना शुरू कर दिया।

कभी वह कसकर दबा देते, कभी निप्पल्स को पकड़कर खींच देते। फ्राक उठने से, उनका जोश… लोहे सा कड़ा… सीधे मेरे चूतड़ों के बीच… उनकी चाहत का और मेरी नई आई जवानी का एहसास करा रहा था। बाहर होली का हल्ला पूरे पीक पर था और अन्दर फागुन का नशा मेरे तन में, मन में छा रहा था। मेरी चूचियों पर जीजू का हाथ, शर्म भी लग रही थी। और मन कर रहा थ कि बस… जीजू ऐसे रगड़ते ही रहें।

उन्होंने मेरा हाथ छोड़ा तो मुझे ऐसा लगा कि शायद अब मैं फ्री हो गई, पर… उस हाथ से उन्होंने मेरे छोटे-छोटे, कसे-कसे, चूतड़ों पर रंग लगाना शुरू कर दिया। जब तक मैं सम्हलती, पैंटी में हाथ डालकर उन्होंने मेरी कुँवारी गुलाबी सहेली को भी दबोच लिया। वहां खूब रंग लगाने के बाद उनकी शरारती उंगलियां मेरे भगोष्ठों में जवानी का नशा जगाने लगीं।

उनका अगूंठा मेरे क्लिट को छेड़ रहा था। ऊपर जोबन की रगड़ाई, मसलाई और नीचे… जीजा ने एक उगंली मेरी कसी कली में, खूब जोर से घुसा दी। उनकी उगंली की टिप जो मेरी चूत के अन्दर थी, अब अच्छी तरह से आगे पीछे हो रही थी। मैं मस्ती से पागल हो रही थी। अनजाने में ही मैं अपना चूतड़ उनके लण्ड पर रगड़ रही थी। पर किसी तरह मैं बोली- “जीजू, प्लीज… निकाल लीजिये…”

जीजू- “क्या? अभी तो मैंने डाला भी नहीं है साली जी…” कसकर चूची दबाते हुये, जीजू ने चिढ़ाया।

मैं- “और… क्या डालेंगें…” उसी मूड में मैंने भी, उनके खूंटे पर पीछे धक्का देते हुए पूछा।

जीजू- “यह लण्ड… तुम्हारी चूत में…” उन्होंने भी धक्का लगाते हुए जवाब दिया।

मैं- “नहीं… वह दीदी की चीज है… वहीं डालिये…” हँसते हुए मैं बोली।

जीजू- “नहीं… आज तो दीदी की छोटी दीदी की बुर में जायेगा…” जीजा बोले।

मैं- “अच्छा, तो आपका मतलब है की, आपकी दीदी यानी कि, दीदी की नन्द… उसके साथ तो आप पहले से ही…”

मेरी बात काटकर, जीजू ने मेरी चूची कसकर दबाते हुये इत्ती जोर का धक्का मारा कि मुझे लगा कि उनका लण्ड, पैंटी फाड़कर सीधे मेरी बुर में समा जायेगा।

जीजू बोले- “अच्छा तो तुम भी… अब तो तुम्हारी कुँवारी चूत फाड़कर ही दम लूंगा…”
तभी काफी जोर का हल्ला हुआ, पड़ोस की भाभियां बाहर से धक्का दे रही थीं। इस हगांमे का फायदा उठाकर, मैं छुड़ाकर सीधे छत पर भाग गई। मेरा सीना अभी भी धड़क रहा था।
 
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***** *****छत पर



बाहर, रंगों के साथ होली के गाने, और, कबीर के साथ गालियों की बौछार हो रही थी। मैंने नीचे झांककर देखा तो, मिश्रा भाभी, दूबे भाभी के साथ 3-4 और पड़ोस की भाभियां थीं। रंगे-पुते होने के कारण जिनके चेहरे साफ नहीं दिख रहे थे।

मिश्रा भाभी तो अपनी लम्बी कद काठी और खूब भारी (कम से कम 38डी) उरोजों के कारण अलग ही दिखती थीं, और गन्दे मजाक करने में तो वह सबसे आगे थीं। उन सब लोगों ने पहले दीदी को घेरा।

किसी ने कहा कि- “अरे नन्दोई कहां हैं?”

दूबे भाभी बोलीं- “अरे, पहले नन्द साल्ली से निपट लें, नन्दोई की गाण्ड तो बाद में मारनी ही है…” और उन्होंने दीदी की साड़ी खींच ली। मिश्रा भाभी ने भी सीधे ब्लाउज पर हाथ डाला और बोला- “देखूं, शादी के बाद दबवा-दबवा कर मम्मे कित्ते बढ़े हैं…” पर दीदी भी कम नहीं थी। उन्होंने भी उनके मम्मे पकड़ लिये। छीना झपटी में दोनों के ब्लाउज फट गये। मिश्रा भाभी ब्रा में बंद अपनी क्वीन साइज चूचियां से दीदी की चूचियां दबाने लगीं।

दीदी ने भी जोर से उनकी चूची को दबाया और बोलीं- “लगता है, कई दिनों से मेरे भैया ने चूची मर्दन नहीं किया है, चलिये मैं मसल देती हूं…”

मुझे पता ही नहीं चला कि कब जीजू छत पर आ गये और उन्होंने मुझे पीछे से पकड़कर मेरा चूची मर्दन शुरू कर दिया। उन्होंने मुझे वहीं लिटा दिया और फ्राक खोलकर मेरे जोबन को आजाद कर दिया। अन्दर, बाहर होली का हुड़दंग, जीजा की की गई मेरी रगड़ाई, मस्ती से मेरी आँखें मुंदी जा रही थी। मुझे पता ही नहीं चला कि कब जीजा ने मेरी पैन्टी उतारी, कब मेरी टांगें उठाकर अपने कन्धों पर रख ली।

मैं मना कर रही थी- “नहीं… जीजू नहीं…”

पर हम दोनों को मालूम था कि मेरा मना करना कित्ता असली है? मुझे तब पता चला जब जीजा की मोटी पिचकारी मेरे निचले गुलाबी होंठों पर रगड़ने लगी। थोड़ी देर उसे छेड़ने के बाद जीजा ने मेरे दोनों कन्धे पकड़कर एक जोर का धक्का मारा।

दर्द के मारे मुझे दिन में तारे दिखने लगे पर जब तक मैं संभलती, जीजा ने उससे भी जोरदार, दूसरा धक्का मार दिया। रोकने के बाद भी मेरे मुँह से चीख निकल गई। नीचे इतना हंगामा चल रहा था कि किसी को पता नहीं चलने वाला था।

जीजू ने मुझे चूम लिया और मेरे मम्मों को सहलने लगे। मुझे समझाते हुये बोले- “बस अब और दर्द नहीं होगा…”

मैं कुछ नहीं बोली।

जीजू घबड़ा कर बोले- “क्यों, बहुत ज्यादा दर्द हो रहा है, निकाल लूं?”

मैं मुश्कुरा पड़ी और चूतर उठाकर नीचे से हल्का धक्का लगाते हुए बोली- “क्यों, जीजू इत्ती जल्दी। मुझे तो लग रहा था कि… आपकी पिचकारी में बहुत रंग है और आप खूब देर तक… लगता है सारा रंग आपने दीदी की नन्द के साथ…”

जीजू- “अच्छा साली, अभी बताता हूं, अभी दिखता हूं अपनी पिचकारी की ताकत? तेरी फुद्दी को चोद-चोदकर भोंसड़ा बनाता हूं…” कहकर उन्होंने दोनों चूचियों को पकड़कर पूरी ताकत से धक्का मारा कि मेरी चूत अन्दर तक हिल गई। कभी वो मेरी दोनों चूचियों को कसकर रगड़ते, कभी उनका एक हाथ मेरी क्लिट को छेड़ता।

मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरा दर्द मस्ती में बदल गया और मैं भी धीरे-धीरे, नीचे से चूतर हिलाकर जीजू का साथ देने लगी। जैसे ही जीजू को यह अन्दाज लगा उन्होंने चुदाई का टेम्पो बढ़ा दिया। अब उनका लण्ड करीब-करीब पूरा बाहर निकालते और फिर वह उसे अन्दर पेल देते। जब वह चूत को फैलाते, रगड़ते हुए अन्दर घुसता।

पहली बार मेरी चूत लण्ड का मजा ले रही थी। दर्द तो हो रहा था पर मजा भी इत्ता आ रह था कि… बस मन कर रहा था जीजू ऐसे ही चोदते रहें।

जब मैंने नीचे झांका तो वहां तो… मिश्रा भाभी ने दीदी का साया उठा दिया था और वह अपनी चूत दीदी की चूत पर घिस रहीं थीं। पीछे से दूबे भाभी रंग लगाकर दीदी के मम्मे ऐसे मसल रही थीं… कि जीजू भी उत्ते जोर से मेरे मम्मे नहीं मसल रहे थे।

पर यह देखकर जीजू को भी जोश आ गया और वह खूब कस के मेरी चूचियों कि रगड़ाई करने लगे। उनका लण्ड अब धक्के मारता तो वह मेरी क्लिट भी रगड़ता और… मैं तो कई बार…

पर काफी देर की चुदाई के बाद जीजा की पिचकारी ने रंग डाला। उनके सफेद रंग ने मेरी काम कटोरी भर दी बल्की रंग बहकर मेरी जाघों पर भी बह रहा था। कुछ देर बाद मैं उठी और अपने कपड़े पहने। पर तब तक सीढ़ी पर मुझे भाभी लोगों की आने की आवाज सुनाई पड़ी।

मैं तो बचकर नीचे उतर आई पर, बेचारे जीजू पकड़े गये।
 
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komaalrani

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होली के मौके पे सोनिया की एक कविता*



जब सरसती है चूत शर्माकर,

पनीली रसीली भरमाई सी,

चुदास चुलबुली हरजाई सी,

सिसकती सिसियाती सरसाई सी,

महकती महकाती फूलों के उपवन सी,

तड़पती पिचकारी के लिए, लौड़े सी,

तरसती गाढ़ी मलाई के लिए, भांग मिली सी।





मन करता है कोई आकर भींच ले,

भर के बाँहों में सींच दे,

मुह को मुखरस से,

चूत को लण्डरस से,

मसलकर चूचियां चिंचोड़ दे,

पूरी देह बुरी तरह निचोड़ दे,





चढ़ के बदन पर रौंद दे बेदर्द कोई,

एक उतरे तो दूजा चढ़े - जैसे बारात कोई,

फगुनाहट आँखों में - नींद खोई,

बदन में दर्द, रग-रग में पीड़ा पोई,



टपकती चूत- बिन मौसम बरसात,

रिसती रस बूँद - मानो चूत रोई।

कोई मर्द आये ले पिचकारी लौड़े की,

मेरे हर छेद में भर दे दवा असरदार लौड़े की,

गला तर हो जाए, पिला दे मुँह से लौड़े की,

गाण्ड करे तोबा, जो पड़े चोट लौड़े की,



जब लगी हो लाइन - हर साइज हर रंग के लौड़े हों,

दीदी - होली तभी होती है,

गाढ़े सफेद वीर्य की छूटती धारों से सनी चूचियां हों,


झांटें हों उलझी सी लौड़े के संग, तभी होली होती है।

* (अभी जैसे इस फोरम में आरूषी जी की कविताओं ने धूम मचा रखी है,

पिछले फोरम में सोनिया जी भी कहानियों के साथ अपनी कविता पेश करती थी और मेरी इस होली की कहानी के साथ उन्होंने होली के मौसम में ये कविता पोस्ट की थी}
 

Shetan

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साली, सलहज एक साथ



जीजा का आधा मुँह काला था और बाकी आधे पर मैं सफेद वार्निश का पेंट लगा रही थी।

भाभी जो अब पीठ पर काला रंग लगा रही थीं, बोल पडीं- “अरे नन्दें तो साल्ली सब कि सब होती ही हैं बचपन की छिनाल, ये क्यों नहीं कहती की मेरे नंदोई ही बहनचोद हैं बल्कि साथ-साथ…”

ये कहते हुए उन्होंने अपना कालिख लगा हुआ हाथ उनके पिछवाड़े डाल दिया और- “गान्डू हैं…” कहकर अपनी बात पूरी की।

जीजा की चिहुंक से हम लोगों को अन्दाज लग गया कि भाभी ने कहां रंग लगाया है।

भोले स्वर में भाभी ने कहा- “अरे, नन्दोई जी, एक उंगली में ही… मुझे तो मालूम था कि आप बचपन के गान्डू हैं। लगता है प्रैक्टिस छूट गई है। खैर… मैं करवा देती हूं…”

बेचारे जीजाजी, उनके दोनों हाथ बंधे थे और साली और सलहज दोनों… भाभी खूब जमकर पिछवाड़े अन्दर तक और मैं भी खूब जमकर… मैंने सिर में खूब सूखा रंग और बाकी हर जगह अपना पक्का पैंट… जीजा की अच्छी हालत हो रही थी।

भाभी तभी एक बाल्टी में रंग भरकर ले आयीं। जीजाजी के ‘वहां’ इशारा करते हुए, बोलीं- “यह जगह अब तक लगता है बची है…”

(सुबह की भांग की दो-दो गुझिया, जीजा ने मेरी चूची की जो रगड़ायी की, होली का माहौल, मैं भी बेशर्म हो गई थी)

मैं- “हां भाभी…” कहकर मैंने उनका पाजामा आगे की ओर खींच दिया, और भाभी ने पूरी बाल्टी का रंग ‘उसके’ ऊपर उड़ेल दिया। पर भाभी ने फिर कहा- “अरे, वहां पेन्ट भी तो लगाओ…” और उन्होंने मेरा पेंट लगा हाथ जीजाजी के पाजामे में डालकर ‘उसे’ पकड़ा दिया।

पहली बार मेरे कुँवारे, टीन हाथों ने ‘उसे’ छुआ था और मैं एकदम सिहर गई। मेरी पूरी देह में मस्ती छा गई। लेकिन मैं घबड़ा, शर्मा रही थी… वह खूब कड़ा… बड़ा… लग रहा था।

भाभी ने फोर्स करते हुये कहा-


“अरे, होली के दिन साली जीजा का लण्ड पकड़ने में शर्मायेगी तो… कैसे चलेगा? अभी चूत में जायेगा तो चूतर उठा-उठा करके लीलोगी…”

और उन्होंने मेरे हाथ में लण्ड पकड़ा ही दिया।

मैं भी मस्ती में लण्ड में रगड़कर पेंट लगाने लगी।

इसी बीच जीजाजी ने अपना हाथ छुड़ा लिया। पर जब तक वह पकड़ पाते हम आंगन के दूसरे छोर पर थे। जीजा ने रंग भरी बाल्टी उठाई और सीधे भाभी के रसीले जोबन पर निशाना लगाकर फेंका। पर भाभी भी कम थोड़े ही थीं, उन्होंने भी जीजा के मेरे हाथ लगने के बाद खड़े पाजामा फाड़ते, टेंटपोल पर फेंका।

तब तक जीजू के निशाने पे मैं आ गई थी। उन्होंने मेरे किशोर उभरते हुए उभारों पर इस तरह रंग फेंका कि, मैं एकदम गीली हो गई। ब्रा तो पहले ही हट गई थी और अब मेरी चूचियां टाइट और गीली फ्राक से चिपक कर एकदम साफ दिख रही थीं। जब तक मैं संभलती जीजा के दूसरे वार ने ठीक मेरी जांघों के बीच रंग की धार डाल दी।

मैं उत्तेजना से एकदम कांप गई। उस समय तो अगर मुझे जीजा पकड़कर… तो मैं…

पर भाभी ने बोला- “अरे तू भी तो डाल… और हाँ ठीक निशाने पे…”

मैं भी एकदम बेशर्म हो गई थी। मैंने भी जीजू के पाजामे के अन्दर से झलकते खड़े लण्ड पर सीधे रंग भरी बाल्टी डाल दी।

देर तक गीले रंगों की होली चलती रही। जीजा टापलेस तो थे ही, मेरे और भाभी के ‘ठीक निशाने’ पर डाले गये रंग से ‘उनका’ एक बित्ते का… खूंटा सा खड़ा… साफ दिख रहा था। और मेरी भी पुरानी टाईट, झीनी फ्राक देह से ऐसी चिपकी थी कि… पूरा जोबन का उभार… और नीचे भी गोरी-गोरी जांघें… फ्राक एकदम टांगों के बीच चिपकी हुई थी।

जीजू बस ऐसे जोश में थे कि लग रहा था कि उनका बस चले तो मुझे वहीं चोद दें (और उस हालत में, मैं मना भी नहीं करती)।



पर तभी एक गड़बड़ हो गई। भाभी ने एक बाल्टी रंग दीदी के ऊपर भी डाल दिया। और फिर तो दीदी ने भाभी को पकड़ लिया और उन दोनों के बीच नो होल्ड्स बार्ड होली चालू हो गई। मैं अकेली रह गई।
Wah kya seen banaya he. Sali ke hath me jija ka khuta. Or jija ke pichhvade me unke sahlaj ne ungli ghused di. Amezing
 

Shetan

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होली के मौके पे सोनिया की एक कविता*



जब सरसती है चूत शर्माकर,

पनीली रसीली भरमाई सी,

चुदास चुलबुली हरजाई सी,

सिसकती सिसियाती सरसाई सी,

महकती महकाती फूलों के उपवन सी,

तड़पती पिचकारी के लिए, लौड़े सी,

तरसती गाढ़ी मलाई के लिए, भांग मिली सी।





मन करता है कोई आकर भींच ले,

भर के बाँहों में सींच दे,

मुह को मुखरस से,

चूत को लण्डरस से,

मसलकर चूचियां चिंचोड़ दे,

पूरी देह बुरी तरह निचोड़ दे,





चढ़ के बदन पर रौंद दे बेदर्द कोई,

एक उतरे तो दूजा चढ़े - जैसे बारात कोई,

फगुनाहट आँखों में - नींद खोई,

बदन में दर्द, रग-रग में पीड़ा पोई,




टपकती चूत- बिन मौसम बरसात,

रिसती रस बूँद - मानो चूत रोई।

कोई मर्द आये ले पिचकारी लौड़े की,

मेरे हर छेद में भर दे दवा असरदार लौड़े की,

गला तर हो जाए, पिला दे मुँह से लौड़े की,

गाण्ड करे तोबा, जो पड़े चोट लौड़े की,




जब लगी हो लाइन - हर साइज हर रंग के लौड़े हों,

दीदी - होली तभी होती है,

गाढ़े सफेद वीर्य की छूटती धारों से सनी चूचियां हों,


झांटें हों उलझी सी लौड़े के संग, तभी होली होती है।

* (अभी जैसे इस फोरम में आरूषी जी की कविताओं ने धूम मचा रखी है,

पिछले फोरम में सोनिया जी भी कहानियों के साथ अपनी कविता पेश करती थी और मेरी इस होली की कहानी के साथ उन्होंने होली के मौसम में ये कविता पोस्ट की थी}
Maza aa gaya komalji. Dill khush kar diya
 

komaalrani

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और एक जीजा साली की होली का वीडियो यू ट्यूब से




जीजा जी ने रंग दी साली को होली खेली

 
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