• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

Well-Known Member
22,209
57,763
259


भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






Teej-Anveshi-Jain-1619783350-anveshi-jain-2.jpg





तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
गुड्डी, भाभी और कौन बनेगी उनकी देवरानी




बाहर भाभी और गुड्डी की खिलखिलाहट बढ़ गई थी। मेरे लिए खुद को रोकना बहुत मुश्किल हो रहा था, इसलिए मैं बाहर आ गया। मेरी आँखें कार्टून कैरेक्टर्स की तरह गोल-गोल घूमने लगी। दोनों मुश्कुरा रही थी। भाभी ने गुड्डी के कंधे पे सहेलियों की तरह हाथ रखा हुआ था।


और मुझे देखकर भाभी और जोर से मुश्कुराने लगी। और साथ में गुड्डी भी। भाभी ने गुड्डी की और देखा जैसे पूछ रही हों बता दें और गुड्डी ने आँखों ही आँखों में हामी भर दी।

भाभी ने मुझे देखा, कुछ पल रुकीं और बोला, तुम्हारे लिए खुशखबरी है।

मैं इन्तजार कर रहा था उनके बोलने का। एक पल रुक के वो बोली- “मैंने, तुम्हारे लिए। अपनी देवरानी सेलेक्ट कर ली है…”



मैंने गुड्डी की ओर देखा उसकी आँखों में खुशी छलक रही थी।
मैं एक पल के लिए रुका फिर कुछ हिम्मत कर कुछ सोचकर बोला- “जी… लेकिन कौन? नाम क्या है?”

दोनों, भाभी और गुड्डी, एक साथ शेक्सपियर की तरह बोली-

“नाम, नाम में क्या रखा है? क्या करोगे नाम जानकर?”

और मैं चुप हो गया।

“देवरानी मेरी है की तुम्हारी, तुम क्या करोगे नाम जानकर…”

भाभी, मुश्कुराते हुए मेरी नाक पकड़ कर बोली। गुड्डी किसी गुरु ज्ञानी की तरह, गंभीरता पूर्वक, सहमती में सिर हिला रही थी। भाभी ने नाक छोड़ दी, फिर बोली-

“लेकिन अभी बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है, मैंने चुन लिया है, लेकिन वो तो माने। उसकी भी शर्ते हैं। अगर तुम मानोगे तभी बात पक्की हो सकती है…”

मैं फिर सकते में आ गया। ये क्या बात हुई। मैं कुछ बोलता इसके पहले भाभी ने गुड्डी से कहा-

“सुना दो ना इसको शर्ते। अब अगर ये मान गए तो बात बन जायेगी। वरना सिर्फ मेरे चुनने से थोड़ी ही कुछ होता है…”

गुड्डी ने एक पल सीधे मेरी आँखों में देखा। जैसे पूछ रही हो। बोलो है हिम्मत। और फिर उसने शर्त सुना दी।

“पहली शर्त है। जोरू का गुलाम बनना होगा। पूरा…”



भाभी ने संगत दी। बोलो है मंजूर वर्ना रिश्ता कैंसल।

मैंने धीमे से कहा- “हाँ…”

और वो दोनों एक साथ बोली- “हमने नहीं सुना।

मैंने अबकी जोर से और पूरा कहा। हाँ मंजूर है।

और वो दोनों खिलखिला पड़ी। लेकिन गुड्डी ने फिर एक्सप्लेन किया। और जोरू का मतलब सिर्फ जोरू का नहीं, ससुराल में सबका। साली, सलहज सास। सबकी हर बात बिना सोचे माननी होगी।

मैंने फिर हाँ बोल दिया।

भाभी बोली, तलवें चटवायेंगी सब तुमसे। गुड्डी अकेले में बोलती तो मैं उसे करारा जवाब देता लेकिन भाभी थी।
मैंने मुश्कुराकर हाँ बोल दिया।


भाभी बड़ी जोर से मुश्कुरायीं और गुड्डी से बोली- “सुन वैसे तो कोई भी हाँ हाँ कर देगा। एकाध टेस्ट तो लेकर देख…”

और गुड्डी ने जैसे पहले से सोच रखा था तुरन्त बोली- “उट्ठक बैठक। कान पकड़कर 100 तक। "





और मैं तुरन्त चालू हो गया। कान पकड़कर 1, 2, 3, 6,

भाभी हँसते हुए गुड्डी से बोली- “तू भी इसका साथ दे रही है क्या। इत्ता आसान टेस्ट ले रही है। मैं होती तो सैन्डल पे नाक तो रगड़वाती ही।

और उधर मैं चालू था 21, 22, 23, 24। लेकिन गुड्डी ने बोला चलो मान गए हम लोग की तुम बन सकते हो जोरू के गुलाम।

और भाभी ने जोड़ा। चलो अब मैं बोल दूंगी उसको। और अब उसने कर दी दया तो रिश्ता पक्का।


गुड्डी ने भी हामी भरी और वो दोनों लोग किचेन की ओर मुड़ ली।

और कुछ देर बाद शीला भाभी जिन्होंने मेरी मन की बात कही थी मेरी भाभी से , मेरी तो जिंदगी भर हिम्मत नहीं पड़ती, वो
जवानी के इस पड़ाव पर विपरीत सेक्स के साथ छेड़ छाड़ का मजा..
जहाँ रगड़ाई करने को भाभी भी मौजूद हों...
और दोनों की मिल के जुगलबंदी...
ये आपकी कहानियों को एक कहानी के रूप में परिपूर्ण करता है....
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
मनौती



तब तक शीला भाभी ने आवाज दी और गुड्डी मुझे खींचकर बाहर लायी। शीला भाभी फ्रेश साड़ी वाड़ी पहनकर तैयार खड़ी थी। और अब मैंने ध्यान से देखा तो।

गुड्डी भी आज बहुत ही ट्रेडिशनल ड्रेस में, शलवार सूट में तैयार खड़ी थी, यहाँ तक की उसने चुन्नी भी डाल रखी थी। लेकिन उससे ना उसका जोबन छुप रहा था और रूप। बल्की टाईट कुर्ती में और छलक रहा था। चुन्नी भी उसने एकदम गले से चिपका रखी थी।



लेकिन उसकी कोहनी तक भरी भरी चूड़ियां, कंगन, आँखों में शोख काजल, और नितम्बों तक लहराती चोटी में लाल परिंदा। मेरी निगाहें उससे एकदम चिपकी थी और मेरी चोरी शीला भाभी ने पकड़ ली-


“हे मेरी बिन्नो को क्यों नजर लगा रहे हो, अभी डीठोना लगाती हूँ…”

मैं झेंप गया और उन्होंने बात बदल कर मुझसे बोला- “मंदिर चलना है पैसा वैसा लिया है की नहीं?”

मैंने गुड्डी की ओर देखा, मेरा पर्स, कार्ड सब कुछ उसी के पास था।

गुड्डी ने मेरी ओर देखा और बोला- “तुम्हारा पर्स कहाँ है, मैं अपना तो सम्हालकर रखती हूँ और अपने झोले ऐसे लेडीज पर्स में से उसने पर्स निकाला, काल वैलेट फूला, ढेर सारे कार्ड। मेरा पर्स मुझी को दिखाती वो बोली- “ये देखो मैंने अपना पर्स कित्ता संभाल कर रखा है और एक तुम हो। चलो 10 रूपये ले लो चलो जल्दी…” \

और पर्स से निकालकर उसने मुझे पकड़ा दिया और चल पड़ा मैं उस सारंग नयनी के पीछे-पीछे।

मैं सोच रहा था। मेरा पर्स इसके पास। मेरे कपड़े वार्डरोब इसके पास। मेरा दिल इसके पास। मैं सोचने लगा की और उसके बदले में। तब तक वो शोख मुड़ी और मेरी ओर देखकर मुश्कुराने लगी। अगर ये सब देकर भी ये नाजनीन मिल जाय। हमेशा के लिए तो घाटे का सौदा नहीं मैंने सोचा।


बस मेरे मन में हमेशा यही डर नाच रहा था की पता नहीं भाभी ने क्या फैसला किया। गुड्डी लेकिन जिस तरह देख रही थी मेरी ओ मीठी निगाहों से।

“अचानक मंदिर जाने का प्रोग्राम, क्यों किस लिए…” मैंने शीला भाभी से पूछा।

“क्यों? हर चीज जानना जरूरी है क्या?” गुड्डी ने घूर कर कहा। शीला भाभी बोल रही थी, गुड्डी की ओर इशारा करके-

“अरे इसकी मन की इच्छा पूरी हुई, पुरानी मनौती। इसलिए…”





मैं कुछ और पूछता की गुड्डी ने शीला भाभी को भी चुप करा दिया- “भाभी। आप भी ना…”


मंदिर पास में था हम लोग घुस ही रहे थे की मेरे फोन पे मेसेज आया। मैंने उन लोगों को बोला की वो हो आयें मैं यहाँ तब तक कुछ बात कर लेता हूँ। लेकिन गुड्डी हाथ पकड़कर खींचते हुए अन्दर ले गई और शीला भाभी भी बोली-

“हे नखड़ा ना करो लाला इसके साथ क्या पता तोहरो इच्छा पूरी हो रही हो चलो दो मिनट हाथ जोड़ लो…”

और वहाँ हम लोगों के कुछ बोलने से पहले शीला भाभी पंडित जी से ना जाने क्या बातें कर रही थी।

हम लोगों के पहुँचते ही हँसकर बोली- “पंडितजी जरा इन लोगों की जोड़े से पूजा कराइयेगा…”

गुड्डी ने अपनी चुन्नी, जैसे ही वो मंदिर में घुसी थी सिर पर ओढ़ ली थी। पूरी तरह ढँक कर जैसे दुल्हन। हम दोनों साथ-साथ मंदिर में बैठे थे, वो मेरे बांये। और उसके बगल में शीला भाभी। और जैसे ही शीला भाभी ने कहा इन दोनों की जोड़े से पूजा कराईयेगा, मेरे तो कुछ समझ में नहीं आया लेकिन गुड्डी बिना सकपकाए, मुझसे धीरे से बोली- “रुमाल है तुम्हारे पास, सिर पर रख लो…”

रुमाल तो था नहीं। लेकिन गुड्डी ने अपनी चुन्नी मेरे सिर पर डाल दी, और मुझे कनखियों से देखकर हल्के से मुश्कुरा दी।

शीला भाभी मेरी ओर आई और हल्के से हड़का के बोली-

“सटकर बैठो एकदम। हाँ…” और फिर उन्होंने चुन्नी मेरे ऊपर एडजस्ट कर दी, जिससे वो सरके नहीं और पंडित जी से मुश्कुराकर कहा-

“बस गाँठ जोड़ने की कसर है…”

पंडित जी भी मुश्कुराकर बोले- “अरे ये चुन्नी है ना बस इनके शर्ट में फँसा दीजिये और इनकी कुर्ती में। हाँ बस हो गई गाँठ…”

शीला भाभी मेरे कान में बोली- “अब ये गाँठ खुलनी नहीं चाहिए और मांग लो इसको…”



“एकदम भाभी…”


मैं मुश्कुराकर बोला। अपने दिल की बात तो मैं उनसे कह ही चुका था। और भाभी से मेरी अर्जी लगाने का काम उन्हीं के जिम्मे था। इसलिए उनसे क्या पर्दा। चुन्नी ना हिले इसलिए हम दोनों अब एकदम सटकर बैठे थे हम दोनों की देह तो सटी थी ही, गाल तक छू जा रहे थे। गुड्डी की चूड़ियों और कंगन की खनखन, कान के झुमकों की रन झुन, मेरे कानों में पड़ रही थी। इत्ती प्यारी लग रही थी वो की। और जब वो चोरी चोरी मुझे उसे देखते देखती। तो वो भी मीठी-मीठी निगाहों में मुश्कुरा देती।


पंडित जी की हिदायतें चालू हो गईं। पूरी पूजा में ऐसे ही बैठे रहना, गाँठ हिलनी भी नहीं चाहिए। और उन्होंने पहले गुड्डी के हाथ में कलावा बांधा, फिर उसी के बचे हिस्से से मुझे भी बाँध दिया। गुड्डी का हाथ उन्होंने नीचे रखवाया, उसके ऊपर मेरा हाथ और फिर सबसे ऊपर गुड्डी का बायां हाथ। और फिर कहा आज ये सारी पूजा तुम लोग जुड़े हुए हाथ से ही करोगे।

पूजा लम्बी चली लेकिन जल छिड़कने से लेकर सारे काम जुड़े हुए हाथ से हुए। फिर उन्होंने मन्त्र पढ़ा, गुड्डी से कहा अपना नाम गोत्र सब बोलो और जो मन में हो वो मांग लो। तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी।


गुड्डी ने आँखें बंद कर ली पर पंडित जी बोले नहीं आँखें खोल कर और जो चीज चाहिए वो अगर कहीं आसपास में हो तो उसकी ओर देख लेने मात्र से। इच्छा बहुत जल्द पूरी होती है।

गुड्डी की लजीली शर्मीली आँखें मेरी ओर मुड़ी, पल भरकर लिए उसने मुझे देखा और पलकें झुका ली।

और जब मेरा नंबर आया तो मैंने गुड्डी को मांग लिया। और खुलकर उसे नदीदे लालचियों की तरह देखा। वो कनखियों से मीठी-मीठी मुश्कुरा रही थी। भगवान जी तो अंतर्यामी होते हैं लेकिन जिस तरह से मैं देख रहा था कोई कुछ ना समझता हो वो भी समझ गया होगा की मुझे क्या चाहिये। जब पंडित जी ने प्रसाद दिया लड्डू का तो मुझे बोला। की मैं गुड्डी को अपने हाथ से खिलाऊं। शीला भाभी ने गुड्डी के कान में कुछ कहा और वो मुश्कुराई।

जैसे ही मैंने लड्डू गुड्डी के मुँह में डाला, शर्माते लजाते थोड़ा सा मुँह खोला था उसने। लड्डू तो उसने बाद में खाया मेरी उंगली पहले काट ली। फिर पंडित जी ने गुड्डी से कहा की वो बचा हुआ लड्डू अपने हाथ से मुझे खिला दे और अबकी फिर गुड्डी ने अपने हाथ में लगा हुआ लड्डू मेरे गाल में पोत दिया।

तुम लोगों की जोड़ी इस लड्डू से भी मीठी होगी पंडित जी ने आशीर्वाद दिया। उनके पैर भी हम लोगों ने अपने हाथ साथ-साथ जोड़ के छुए।

उन्होंने आशीर्वाद दिया। अब तुम लोग हर काम इसी तरह जोड़े से करना।

शीला भाभी ने जब चुन्नी अलग की तो वो गुड्डी से बोली- “आज मैं नाउन का काम कर रही हूँ। गाँठ बांधने और छोड़ने का बड़ा तगड़ा नेग होता है…”

“अरे एकदम… इनसे ले लीजियेगा ना… मैं बोल दूंगी…” मेरी ओर देखते हुए आँख नचाकर वो बोली।

शीला भाभी पंडित जी से कुछ और बात करने के लिए रुक गई थी हम दोनों बाहर की ओर निकल आये। मंदिर के बाहरी हिस्से में एक बड़ा सा शीशा लगा था। मैं और गुड्डी उसी के सामने रुक कर देखने लगे। मैंने उसकी पतली कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया और शीशे में देखते हुए पूछा-

“हे ये जोड़ी कैसी लग रही है…”

“बहुत अच्छी…” गुड्डी बोली।

उसने अभी भी चुन्नी अपने सिर पे घूँघट की तरह डाल रखी थी। उसे दुलहन की तरह पकड़, शीशे में देखती वो बोली- “और ये दुल्हन…”



“दुनियां की सबसे प्यारी सबसे सुन्दर दुलहन…” मैंने बोला।

फिर कुछ रुक कर मैंने धीरे से कहा- “लेकिन ये दुल्हन मुझे मिल जाए…”

“मिल जाएगी, मिल जाएगी। चिंता मत करो। अब तो भगवान जी ने भी आशीर्वाद दे दिया है…” वो हँसकर बोली। गुड्डी ने फिर सीरियस होकर पूछा- “क्या तुमको सच में जून में छुट्टी नहीं मिल पाएगी…”

“नहीं असल में। असल में मैं बेवकूफ हूँ। वो जाड़े की लालच में…” मैंने अपनी गलती कबूली।

“वो कोई नई बात नहीं है। लेकिन तुम मेरी बात का जवाब दो। छुट्टी मिल पाएगी की नहीं तुम ट्रेनिंग की बात कर रहे थे…” गुड्डी ने फिर पूछा।

“हाँ। नहीं। असल में उस समय से तो मेरी फील्ड ट्रेनिंग स्टार्ट हो जायेगी। मोस्ट प्राबेबली बनारस में ही, डी॰बी॰ के ही अंडर में और फील्ड ट्रेनिंग में तो सब कुछ उन्हीं के ऊपर रहेगा। फिर। इसलिए छुट्टी का ऐसा कुछ वो नहीं है। मैंने बोला ना। जाड़े…”

मेरी बात गुड्डी ने बीच में काट दी। उसकी आँखें चमक उठी। वो बोली- “बनारस में, तब तो घर में ही रहना, हम लोगों के पास। कोई रेस्टहाउस वाउस नहीं। समझ लो। वैसे कित्ते दिन की ट्रेनिंग होगी वहां…”

“मैं सब वहीं कर लूंगा तो 7-8 महीने की तो होगी ही…” मैंने समझाया।

वो फिर मुद्दे पे आ गई- “तो इसका मतलब। छुट्टी का ऐसा कुछ नहीं है 14-15 दिन की मिल जायेगी ना…”

“हाँ कर लूंगा जुगाड़…” मैंने सिर हिलाया।

“और उसके बाद भी तो तुम बनारस में ही रहोगे ना। फिर क्या? तो तुम गाँव से डर गए या आम के बाग से…” हँसकर वो सारंग नयनी बोली।

फिर बिना मेरे जवाब के इंतजार के वो बोली- “तुम भी ना जाड़े की रात के इन्तजार में। नवम्बर में लगन आती है जाड़े में। पूरे 6 महीने का घाटा हो जाता तुमको। तुम भी ना। सच में बुद्धू राम हो…”

बात उसकी सही थी मैं क्या बोलता।
अब तो होने वाले पति का पर्स क्या सबकुछ संभाल के रखना होगा गुड्डी को...
और छुट्टी का जुगाड़ तो बनाना हीं पड़ेगा... ये समय.. मौसम और हवा भी तो नजाकत बरसाती है....
 
  • Like
Reactions: Shetan

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
इंतजार



वो फिर मुद्दे पे आ गई- “तो इसका मतलब। छुट्टी का ऐसा कुछ नहीं है 14-15 दिन की मिल जायेगी ना…”

“हाँ कर लूंगा जुगाड़…” मैंने सिर हिलाया।

“और उसके बाद भी तो तुम बनारस में ही रहोगे ना। फिर क्या? तो तुम गाँव से डर गए या आम के बाग से…” हँसकर वो सारंग नयनी बोली।

फिर बिना मेरे जवाब के इंतजार के वो बोली- “तुम भी ना जाड़े की रात के इन्तजार में। नवम्बर में लगन आती है जाड़े में। पूरे 6 महीने का घाटा हो जाता तुमको। तुम भी ना। सच में बुद्धू राम हो…”

बात उसकी सही थी मैं क्या बोलता।

फिर वही बोली- “तुम जानते हो बिचारी तुम्हारी भाभी। कुछ सोचकर उन्होंने बोला होगा। कित्ता तुम्हारा ख्याल रखती हैं। वो…” बात तो गुड्डी की सोलहो आना सही थी। लेकिन अब तो तीर छूट चुका था। बिगड़ी बात बनाना अगर किसी को आता था तो वो गुड्डी को आता था। वो मेरे कंधे पे हाथ रखकर मुश्कुराकर बोली-

“अब हम जैसे ही लौटेंगे ना। मेरे साथ। तुम बोल देना की तुम्हारी छूट्टी की बात हो गई है। मिल जायेगी जून में आराम से छुट्टी और तुमको कोई ऐतराज नहीं है जून में। शादी से…”

गुड्डी से मैंने कहा- “लेकिन तुम भी चलना मेरे साथ जब भाभी से मैं ये कहूंगा। कुछ बात होगी तो तुम सम्हाल लेना। अकेले मैं मैं फिर कुछ गड़बड़ ना कर दूँ…”

“और क्या?” मुश्कुराते हुए वो सुमंगली बोली- “तुम्हारे भरोसे मैं इतनी इम्पार्टेंट चीज नहीं छोड़ने वाली। करा लिया ना था तुमने अपना 6 महीने का घाटा और गरमी के बाद सावन भी तो आता है। सावन सूना चला जाता ना…”

तब तक शीला भाभी आती दिख गईं और मैंने उन्हें छेड़ा- “क्यों भाभी कहीं पंडित जी से कुछ स्पेशल प्रसाद तो नहीं लेने लग गईं थी आप…”

“तुम्हारा ही काम करवा रही थी। कुंडली दी थी भाभी ने तुम्हारी मिलवाने के लिए। और सगुन…”

उनकी बात काटते मैं बोला- “मेरी कुंडली तो भाभी के पास थी लेकिन वो लड़की की…”

“तुम्हें आम खाने से मतलब है या…” अबकी गुड्डी ने बात काटी।

“आम और ये…” अब शीला भाभी चौंकी।

“अरे गरमी का सीजन आने दीजिये। कैसे नहीं खायेंगे। खायेंगे ये और खिलाऊँगी मैं। लेकिन कुंडली का क्या हुआ। मिली की नहीं…” गुड्डी उतावली हो रही थी।

“मिल गई बहुत अच्छी मिली। पंडित जी तो कह रहे थे की ये जोड़ी ऊपर से बनकर आई है। दुनियां में कोई ताकत नहीं जो रोक सके इन दोनों का मिलन। सोलह के सोलह गुण मिल गए हैं…”

शीला भाभी बहुत खुश हो रही थी। लेकिन जब तक हम दोनों कुछ बोलते एक खतरनाक बात बोल दी-

“लेकिन, लड़की के लिए एक मुसीबत है…” वो बड़ी सीरियसली बोली- “और पंडित जी ने बताया है की इसका कोई उपाय भी नहीं है…”

“मतलब?” मैं और गुड्डी साथ-साथ बोले।

“अरे इसका शुक्र बहुत ही उच्च स्थान का है। पंडित जी बोले की इतना ऊँचा शुक्र उन्होंने आज तक नहीं देखा…” वो बोली।

“मतलब?” हम दोनों फिर साथ-साथ बोले।

अब वो मुश्कुराई और मेरी और मुँह करके बोली- “मतलब ये की। तुम दुलहिन के ऊपर चढ़े रहोगे हरदम। ना दिन देखोगे ना रात। बिना नागा…”

मैं और शीला भाभी दोनों गुड्डी की और देखकर मुश्कुराए।

और गुड्डी बीर बहूटी हो गई। अब शीला भाभी फिर मेरी ओर मुखातिब हुई और बोली-

“लेकिन असली अच्छी खबर तुम्हारे लिए है। पंडित जी ने कहा है। लड़की रूप में अप्सरा है, भाग्य में लक्ष्मी है। जिस घर में उसका प्रवेश होगा उस घर की भाग्य लक्ष्मी उदित हो जायेगी। वहां किसी चीज की कमी नहीं रहेगी और सबसे बड़ी बात। भाग्य तो तुम्हारा वैसे ही बली है लेकिन जिस दिन से उसका साथ होगा। वह महाबली हो जाएगा, तुम्हारी सारी मन की बातें बिना मांगे पूरी होंगी, नौकरी, पोस्टिंग…”

गुड्डी ये सब बातें सुनके कभी खुश होती तो कभी ब्लश करती। फिर बात बदलते हुए मुझसे बोली- “इत्ती देर से तुम्हरा दो-दो मोबाइल लादे फिर रही हूँ लो…” और उसने अपना पर्स खोलकर मेरे मोबाइल मुझे पकड़ा दिये। पूजाकर समय, उसने मेरे मोबाइल लेकर साइलेंट पे करके अपने पर्स में रख लिए थे।

लेकिन शीला भाभी चालू थी- “एक बात और तोहार भाभी कहें थी की पंडित जी से पूछे की- “लेकिन ओहमें कुछ गड़बड़ निकल गया…”

अब मैं परेशान, गुड्डी के चेहरे पे भी हवाइयां। हम दोनों शीला भाभी की ओर देख रहे थे। और वो चुप। आखीरकार, मैंने पूछा- “क्या बात है भाभी बताइए ना…”

“अरे लगन की तारीख। एह साल 25 मई से 15 जून तक जबर्दस्त लगन है। लेकिन जाड़ा में शुक्र डूबे हैं। एह लिए अब ओकरे बाद अगले साल अप्रैल के बाद लगन शुर होई। और जून त तू मना कै दिहे हया। त लम्बा इन्तजार कराय के पड़े दुलहिन के लिए…”




इतना इंतजार तो खैर मुझसे नहीं होने वाला था। मैं और गुड्डी एक दूसरे की ओर देखकर मुश्कुराए। गुड्डी ने आँखों में मुझे बरज दिया की मैं अभी कुछ ना बोलूं। वो सीधे मुझे भाभी के पास ले जाती और मैं उन्हें बताता की मुझे छुट्टी गरमी में मिल जायेगी। मैं सिर्फ शीला भाभी की ओर देखकर मुश्कुरा दिया
भाग्य तो बली है हीं...
लेकिन बाहुबली या यूं कहें कि महाबली... होने से दुल्हन के दिन रैन चैन से बीतेंगे....
जाड़े की रातें तो लंबी होती है.. लेकिन गर्मियों में बारात.. अमराई का मजा कहाँ मिलेगा...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
छुट्टी



मैंने फोन लगाया लेकिन घबड़ा रहा कैसे छुट्टी मांगू, १७ मई से मेरी ट्रेनिंग थी बनारस में, और छुट्टी ट्रेनिंग पीरियड में वही देते लेकिन मिलेगी नहीं मिलेगी मैं सोच रहा था बोलूं। ना बोलूं। बोलूं। फिर बोल दिया- “कुछ छुट्टी मिल सकती है ट्रेनिंग में…”

“कब। कहीं शादी वादी तो नहीं कर रहे हो…” हँसकर वो बोले।

“हाँ। वही…” हिम्मत करके मैंने बोल दिया।

“किससे वही जिसके हास्टेल में दिन में तीन चिट्ठी आती थी। मिलवाया तो था तुमने। वही ना जिसने तुम्हें होस्टेज वाली सिचुएशन में ऊपर भेजा था…”


मैंने हाँ बोला।

“लड़की अच्छी है। एक तो उसे खाने का टेस्ट है। उस दिन तुम समोसे खाते चले गए। लेकिन उसने तारीफ भी की। टेस्ट है उसमें। कितने दिन की छुट्टी चाहिये अब एक महीने की मत मांग लेना। कब से चाहिए…” वो बोले।

मेरे दिमाग में शीला भाभी ने पंडित जी से जो लगन की तारीखें पूछीं थी, तुरंत कौंध गई। 25 मई से 15 जून तक, उसके बाद अप्रेल में अगले साल। तक सन्नाटा तो सबसे अच्छी तो 25 मई ही है। और मैं भाभी को समझा दूंगा की। जितना देर करेंगी। उता बारिश का खतरा। मैंने झट से बोल दिया- “सर। बीस मई से…” (मैंने ये भी सोच लिया था की मुझे बनारस में जवाइन सतरह मई को करना है। सुबह कर लूंगा। 18, 19, वैसे भी शनिवार, रविवार है। और छूट्टी तो सोमवार से ही शरू होगी। तो भाभी जो हम लोगों के घर के रसम रिवाज की बात कर रही थी तो वो भी निपट जाएगा। वो जब कहेंगी मैं आ जाऊँगा। सात दिन पूरे मिलेंगे)।



वो लगता है दूसरे फोन पे किसी से बात कर रहे थे, फिर बोले- “बीस मई। ओके कब तक…”



“वो। अट्ठारह जून तक सर…” मैंने बहुत हिम्मत करके बोल ही दिया।



उनका दूसरा फोन बज रहा था।



“ओके। बीस मई से अट्ठारह जून। और कुछ…” उन्होंने पूछा।



“बस एक बात। असल में मुझे घर पे बताना होगा। फिर वो लड़की वालों से बात करेंगे और सब अरेंजमेंट। तो अगर आप छुट्टी का सैंक्शन एस॰एम॰एस॰ कर देते तो…” मैंने और हिम्मत कर ली।


“एक मिनट जरा रुको। मुझे नोट कर लेने दो। ओके अभी एस॰एम॰एस॰ कर दूंगा और तुम छुट्टी की अर्जी मेल कर देना मुझे…”

उन्होंने फोन रखा और मैंने तुरंत छुट्टी की अर्जी उन्हें मेल की। दो मिनट में एस॰एम॰एस॰ आया, उनके आफिस से की मेरी 28 हफ्ते की फील्ड ट्रेनिंग बनारस में है सत्रह मई से डिटेल प्रोग्राम मेल और फैक्स किया जा रहा है। मैं फोन को घूर रहा था। और ठीक दो मिनट बाद दूसरा एस॰एम॰एस॰ योर लीव हैज बीन सैंकसंड फ्राम ट्वेंटी मई टू एट्टीन जून।

बड़ी देर तक मैं उसे देखता रहा। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। और मैंने तुरंत उसे गुड्डी को फारवर्ड किया। दोनों मेसेज।

बीस जून से उसका कालेज खुल रहा था। तो इसका मतलब की तब तक तो वो बनारस उसे लौट ही आना है। और मेरी छुट्टी भी तभी खतम हो रही थी। मतलब हम दोनों साथ-साथ लौटेंगे और उसने ये भी बोला था की पूरी ट्रेनिंग। मैं बजाय रेस्टहाउस में रहने के उसके घर पे ही रहूँ।
वाह .. बॉस हो तो ऐसा...
एकदम दिलदार...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
दिन तारीख पक्की




अभी एक परेशानी बाकी थी भाभी से तो मैंने साफ़ मना कर दिया था की गर्मी में छुट्टी नहीं मिलेगी, ट्रेनिंग होती है और ट्रेनिंग में एक दिन की भी छुट्टी मिलनी मुश्किल , अब कैसे बात बदलूंगा की छुट्टी मिल गयी लेकिन और कौन हल करता परेशानी वही गुड्डी

उसी के साथ मैं भाभी के पास गया पर हिम्मत नहीं पड़ी तो वापस जा रहा था पर गुड्डी थी न साथ में
“क्या बात है?” भाभी ने मुझसे पूछा।

मैं हिचक रहा था की गुड्डी ही बोली- “इन्हें कुछ कहना है इसलिए…”

“तू बड़ी वकील बन गई है इसकी…” हँसकर आँख तरेरते, भाभी गुड्डी से बोली और मुझसे बोली- “हाँ बोलो ना, क्या कहना है?”



मैंने पहले थूक गटका, फिर सोचा कैसे शुरू करूँ और हिम्मत करके बोलने ही वाला था की भाभी ने ही रोक दिया और गुड्डी से पूछा- “शापिंग हो गई, मिल गई सब चीजें?”


“हाँ एकदम और इनकी पसंद की, जिससे बाद में ये नखड़ा ना करें…” गुड्डी मुझे देखते हुए मंद-मंद मुश्कुराकर बोली।


जब तक मैं सन्दर्भ प्रसंग समझता, भाभी मेरी ओर मुड़ी और बोली- “हाँ अब बोलो क्या कह रहे थे?”


“भाभी बस मेरी समझ में नहीं आ रहा है। कैसे बोलूं मुझसे बड़ी गलती हो गई…” हिचकिचाते हुए मैं बोला- “भाभी वो खाने के समय मैंने। आपने पूछा था ना की गर्मी में गाँव में। तो वही मैंने बोल दिया था ना। की की। छुट्टी नहीं मिल पाएगी तो…”


“अरे तो इसमें इतना परेशान होने की कौन सी बात है। छुट्टी नहीं मिलेगी गरमी में। तो जाड़े में कर लेंगे। और लड़की वालों से बात कर लेंगे की तुम्हें गाँव की शादी नहीं पसंद है। तो उन्हें दिक्कत तो बहुत होगी लेकिन करेंगे कुछ वो जुगाड़ शहर से शादी करने का। तुम मत परेशान हो…” और भाभी मुड़ गईं।

गुड्डी मुझे घूरे जा रही थी। और मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा था की क्या करूँ। फिर मैंने डी॰बी॰ का छुट्टी सैंक्शन वाला मेसेज खोलकर मोबाइल भाभी की ओर बढ़ा दिया।

उन्होंने उसको देखा, पढ़ा और फिर। मुझे लौटा दिया। “मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। तुम खुद साफ-साफ क्यों नहीं बता देते…” वो बोली।

“वो छुट्टी मेरी…” मैंने बोला फिर रुक गया।

“क्या हुआ छुट्टी नहीं मिली। तो कोई बात नहीं जाड़े में। तुमने मुझसे पहले भी कहा था की नवम्बर दिसम्बर…” भाभी आराम से बोली।

गुड्डी दांत पीस रही थी।

“नहीं नहीं वही मैं कह रहा था की जब अभी हम लोग गए थे तो मैंने अपने बास से बात की सब बात समझाई। तो वो गरमी में छुट्टी के लिए मान गए हैं…” मैं जल्दी-जल्दी बोला।

अब भाभी रुक के ध्यान से सुनते हुए बोली-

“ऐसे थोड़े ही। ये तो लगन पे होगा ना। और फिर दो-वार दिन की छुट्टी से काम नहीं चलेगा मैंने तुम्हें बता दिया था। तीन दिन की बरात, 4 दिन रसम रिवाज। कब से छुट्टी मिलेगी…”

'


“20 मई से…” मैंने बताया।

उन्हह कुछ सोचा उन्होंने, फिर बोली- “और कब तक?”

“28 दिन की पूरी। 18 जून तक की। असल में मेरी ट्रेनिंग बनारस में लग गई है। करीब छ सात महीने की। सत्रह मई से है उसे मैं बनारस में जवाइन कर लूँगा। बीस से छुट्टी ही है अगर आप कहेंगी, कोई बात होगी तो। सतरह को शुक्रवार है। तो अगले दो दिन तो वैसे भी। अगर आप कहेंगी तो मैं 20 से एक-दो दिन पहले भी आ जाऊँगा। तो इसलिए छुट्टी वाली परेशानी अब नहीं हैं…” अबकी मैं पूरी बात बोल-कर ही रुका।

भाभी ने कुछ सोचा फिर बोलीं मैंने शीला भाभी से कहा था की पंडित जी से पूछ लें की लगन कब है? कुछ पता लगाया उन्होने ? कुंडली भी दी थी की कुंडली देख के अच्छी लगन विचरवा लें।


“पचीस मई से पन्दरह जून तक उनको पंडित जी ने बताया था। और ये भी कहा था की पच्चीस की लगन बहुत अच्छी है। और फिर गाँव की बरात। जित्ता देर होगा कहीं बारिश वारिश। तो लड़की वालों को भी…”अबकी बिना देर किये जैसे जैसे शीला भाभी ने बताया था लगन के बारे में वैसे ही बता दिया और मिर्च मसाला अपनी ओर से जिससे पहली लगन को ही

मेरी बात काटकर भाभी मुश्कुराकर बोली-

“अच्छा अभी से लड़की वालों की तरफदारी चालू हो गई। वैसे बात तुम्हारी सही है। लेकिन एक बार मुझे उनसे बात करनी पड़ेगी ना। पर। फिर कुछ उन्हें याद आया। खुलकर मुश्कुराकर वो बोली-

“छुट्टी के साथ ये बात भी तो थी, गाँव में तीन दिन की बरात, वो भी आम के बाग में। तो उसमें तो कोई परेशानी नहीं है…”

गुड्डी मुझे देखकर खिस्स-खिस्स मुश्कुरा रही थी।


“नहीं नहीं भाभी ऐसा कुछ नहीं है। मुझे क्यों परेशानी होगी गाँव में बारात से। गाँव की शादी में तो और…” मैंने बात बनाने की कोशिश की।



“यही तो…” खिलखिलाते हुए मेरी नाक पकड़कर जोर से हिलाते हुए भाभी बोली-

“जबर्दस्त रगड़ाई होगी तुम्हारी। तुम्हारे भैया के साथ तो कुछ मुर्रुवत हो गई थी। लेकिन तेरे साथ नहीं होने वाली। डेढ़ दिन का कोहबर होता है हमारे गाँव में। और गालियां वालियां तो छोटी बात हैं। वहां तुमसे गालियां गवाई जायेगीं तुम्हारे मायके वालों के लिए। चलो खैर उसकी कोई चिंता नहीं। मुझे एक से एक आती है। तुम्हें सब सिखा दूंगी…” (सुना तो मैंने भी था इस कोहबर की शर्त के बारे में। शादी के बाद लड़के को लड़की वाले के घर में ही रोक लिया जाता है। और ससुराल की सभी औरतें सालियां। सास, सलहज, उसके पास रहती है और दुलहन भी। जब दुल्हन की विदाई होती है तब लड़का उसके साथ ही निकलता है। माना ये जाता है की इससे दुल्हा ससुराल में घुल मिल जाता है। आखीरकार, दुलहन तो जिंदगी भरकर लिए जाती है अपनी ससुराल। लेकिन मैंने ये भी सुना था की ये सब रस्म अब पुराने जमाने की बातें हो गई।)




मेरी नाक अभी भी भाभी के हाथ में थी और गुड्डी खिलखिला के हँस रही थी।

भाभी चिढ़ाते हुए बोली- “डर तो नहीं गए भैया। वरना अभी मैंने बात नहीं की है। फिर वही जाड़े वाली बात शहर की शादी की…”


उनकी बात काटकरके मैं तुरंत बोला-

“नहीं नहीं भाभी प्लीज। ऐसा कुछ नहीं है। आपकोई चेंज वेंज की बात मत करिएगा। मुझे कोई दिक्कत नहीं है गरमी की शादी और गाँव में। आखीरकार, हर जगह की अपनी रस्म रिवाज है। मैं रैगिंग समझ लूँगा। एक-दो दिन की क्या बात है?”

“जी नहीं…” भाभी ने तुरंत समझाया।

“उसकोहबर की रगड़ाई के सामने, बड़ी से बड़ी रैगिंग बच्चों का खेल है। और तुम्हारे साथ तुम्हारे मायके से कोई कजिन वजिन जो कुँवारी हो बस वही रह सकती है। और उसकी खूब रगड़ाई होगी खुलकर। बस यही है की मैं नहीं देख पाऊँगी…”

गुड्डी बड़ी देर से चुप थी, बोली- “अरे ऐसा कुछ नहीं है। वीडियो रिकार्डिंग करा लेंगे ना। कोई इनकी साली वाली ही कर देगी। फिर आप ही क्यों इनके सारे मायके वाले देखेंगे बड़ी स्क्रीन पर…”



भाभी ने खुशी से गुड्डी की पीठ थपथपाई और बोली ये हुई ना बात आज जब मैं लड़की वालों से बात करूँगी ना। तो ये भी बोल दूंगी। फिर मेरी और मुड़कर बोली-

“इसलिए मैं तुमसे कह रही थी ना की शादी के 6-7 दिन पहले आ जाओ। तो अपने घर की तो रसम जो होगी सो होगी। मैं तुम्हें तुम्हारे ससुराल के लिए भी ट्रेन कर दूंगी…”

मेरी सांस वापस आई। मुझे मालूम था की जाड़े में कोई लगन वगन है नहीं। अगली लगन अप्रैल यानी साल भर से ज्यादा का इन्तजार और अगर 25 मई वाली बात बन गई तो बस सवा दो महीने के बाद। एकदम। मैंने तुरंत भाभी की बात में हामी भरी।

“आप एकदम सही सोच रही थी। मैंने कहा ना मैं ही बेवकूफ हूँ। अगर 25 की बात पक्की होती है ना तो मैं 18 को ही आपके हवाले हो जाऊंगा। पूरे सात दिन। जो भी रसम हो ट्रेनिंग हो सब आँख कान मूंद कर…”


“एकदम…” अबकी भाभी ने मेरा कान पकड़ा। और 27 की रात को मैं तुम्हें अपनी देवरानी के हवाले कर दूंगी। उसके बाद पूरा कब्ज़ा उसका…”


मैंने सब कुछ मना डाला। चलिए मेरी बात रह गई।

लेकिन भाभी ने फिर एक सवाल दाग दिया- “हाँ और वो आम के बाग वाली बात। गाँव में बारात तो वही रुकती है और वैसे भी बहुत बड़ी बाग है वो डेढ़ दो सौ पेड़ होंगे कम से कम। खूब घने दशहरी, कलमी सब तरहकर। और उस समय तो लदा लद भरे होंगे। और तुम्हें तो इतना परहेज है और अगर कहीं तुम्हारी साली सलहज को मालूम पड़ गया तो। फिर तो…”

मैंने उनकी बात काटकर कहा- “भाभी चलेगा बल्की दौड़ेगा। अरे नेचुरल और आर्गेनिक का जमाना है। तो मुझे आम के बाग से भी ऐसा कुछ नहीं। फिर ससुराल में साली सलहज टांग तो खिचेंगी ही यही तो ससुराल का मजा है…”



भाभी और गुड्डी मेरे इस धाराप्रवाह बात को सुनकर, एक दूसरे को देखकर आँखों ही आँखों में मुश्कुरायीं और फिर बोली- “तूने इतनी सब बातें बोल दी मैं कन्फुज हो गई। एक बार में सब साफ-साफ समझा दो तो मैं अभी लड़की वालों से बात करके डेट फाइनल कर दूँ…”



मैं समझ गया था की भाभी मुझे रगड़ रही है वो मेरे से सब सुनना चाहती हैं। मुझे मंजूर था। मैंने सब बातें एक बार फिर से दिमाग में बिठाई और उन्हें पकड़कर बोल दिया- “भाभी मेरी अच्छी भाभी, मुझे गरमी की गाँव में शादी, और आम के बाग में बारात सब मंजूर है। सौ बार मंजूर है। मुझे मई जून में पूरे अट्ठाईस दिन की छुट्टी मिल गई है, बीस मई से और अगर आप पच्चीस मई की शादी तय करती हैं तो मैं अट्ठारह को ही आपके पास आ जाऊँगा। तो बस अब आप इसी गरमी में फाइनल कर दीजिये ना। और बेस्ट होगा पच्चीस मई को…”

भाभी मुश्कुरायीं और गुड्डी से बोली।


“देखा ये आदमी अभी दो घंटे पहले क्या बोल रहा था, ये नहीं वो नहीं छुट्टी नहीं। और अभी। दुल्हन पाने के लिए आदमी कुछ भी करने को तैयार रहता है…”

गुड्डी ने खिलखिला कर जवाब दिया।


भाभी ने खुशी से मुझे बांहों में भर लिया। और बोली- “

मैं आज ही सब पक्का कर दूंगी और तुम मेरी सारी बातें मान गए तो चलो एक बात तुम्हारे लिए…” फिर गुड्डी की ओर मुड़कर बोली-

“हे तुम मत सुनना। उधर मुँह करो। कुछ सुना क्या?”

“नहीं आप कुछ बोल रही थी क्या? मुझे तो कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा…” गुड्डी भी उसी अंदाज में बोली।


भाभी ने मेरे कान में कहा, लेकिन पूरे जोर से- “चल तेरा फायदा करवा देती हूँ। रोज रात में ठीक नौ बजे मेरी देवरानी तुम्हारे हवाले, पूरे बारह घंटे के लिए। बाहर से ताला बंद करके चाभी मैं अपने पास रखूंगी जिससे मेरी कोई छिनाल ननद आकर तंग ना करे। और अगर तुमने मेरी सब बातें अच्छी तरह मानी। और उसे ज्यादा तंग नहीं किया ना…”

“ज्यादा तंग मतलब भाभी…” मैंने पूछा और गुड्डी की ओर देखा।


वो मुश्कुरा रही थी और कान फाड़े सुन रही थी।

“अरे ज्यादा मतलब। तीन-चार बार से ज्यादा। अब नई दुलहन है और वो भी इत्ती प्यारी तो, तीन-चार बार तो बनता है।

“हाँ और जैसा मैं कह रही थी की तुम मेरी बात मानोगे तो। दिन में भी दो-तीन घंटे के लिए छोड़ दूंगी अपनी देवरानी को, बाकी समय दूर-दूर से ललचाना…”

फिर भाभी ने मुश्कुराकर गुड्डी से पूछा- “हे तूने तो कुछ नहीं सुना…” और बड़े भोलेपन से गुड्डी ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाते हुए कहा- “आपने कुछ कहा था क्या? मैंने तो कुछ नहीं सुना…”


“ठीक किया। "

और फिर वो मुझसे बोली- “तुम भी चलो। तुमने मेरे लिए बहुत काम बढ़ा दिया है। आज ही मुझे सब फाइनल करना है। पहले पंडित जी से बात करके। तुम कौन सी डेट बोल रहे थे। पच्चीस मई ना। हाँ तो पहले पंडित जी से तय करके फिर लड़की वालों से बात करनी होगी। और एक बार उन्होंने हाँ कर दी तो बाकी इंतजाम…” और भाभी ने अपनी फोन नम्बर की डायरी उठायी। ये हम दोनों के लिए इंडिकेशन था की अब हम चलें। बाहर निकलते ही मैंने और गुड्डी ने जोर से “हाई फाईव” किया। एक बार नहीं तीन बार। और उसके बाद मैंने कसकर गुड्डी को बाहों में भींच लिया।

मेरा एक हाथ कसकर उसके नितम्ब को दबोचे था और दूसरा, पीठ पर। और पुच पुच पुच। पांच बार मैंने उसकी किस्सी ले ली खूब जोर-जोर से। और हम लोग सीढ़ी से नीचे उतरने लगे। लेकिन रास्ते में ही उसे मैंने फिर रोक लिया। और बाहों में दबोच कर। बोला- “हे तुझसे एक बात कहनी है…”

“बोल ना…” मुझे अपनी बांहों में भींचती वो बोली।

और अबकी जो मैंने चूमना शुरू किया तो गिना नहीं। और साथ में बोलता गया- “तुम बहुत अच्छी हो सबसे अच्छी। तुम बहुत अच्छी हो। आई लव यू। आई लव यू…”

कुछ देर बाद मुश्कुराकर वो बोली- “चलो चालीस बार हो गया। बाकी रात में और हम लोगों ने आलिंगन छोड़ दिया लेकिन फिर मैं बोला- “तुम ना होती न तो मैं इत्ता कन्फुज हो रहा था झिझक भी लग रही थी की भाभी से कैसे बोलूं?”

“तभी तो मैं थी वहां मेरे प्यारे बुद्धू…” गुड्डी ने नाक पकड़ कर कहा और बोली- “मुझे लग रहा था। और आज तुम गड़बड़ कर देते न तो सम्हालना बहुत मुश्किल होता…”

“और अब तो तुम हरदम मेरे पास जाड़ा, गर्मी बरसात, रहोगी एकदम पास…” और ये कहकर मैंने उसे फिर से बाहों में पकड़ने की कोशिश की।




लेकिन वो मछली की तरह फिसल कर अगली सीढ़ी पर चली गई और अपनी कजरारी आँखें नचाते, हाथों में परांदा घुमाते बोली- “हिम्मत है तुम्हारी दूर होने की। लेकिन अभी ज्यादा इमोशनल मत होओं।
गुड्डी के वकील बनने से पहले हीं जज साहिबा ने भांजी मार दी...
डेढ़ दिन का कोहबर... यहाँ तो कुछ हीं घंटे के कोहबर में (मोहे रंग दे) हवा टाईट कर दी गई...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
होलिका दहन और शीला भाभी



ये फागुन सच में मेरे लिए खास था और उससे भी ख़ास था आज का दिन. आज दोपहर में मैंने हिम्मत कर के गुड्डी के बारे में अपने मन की बात खाने के पहले शीला भाभी से कही, उन्होंने भाभी से बात की और खाने के बाद भाभी ने गुड्डी की मम्मी से बात कर के फैसला भी कर लिया, मुझे बता भी दिया , और फिर मंदिर कुंडली, छुट्टी और दिन तारीख पक्की,... थोड़ी देर में ही होलिका दहन होने वाला था।

तक भाभी की आवाज आई। अरे एक घंटे के बाद होलिका जलने का समय हो जाएगा सबको उबटन लगाया की नहीं?

(हमारे यहाँ परंपरा है की होलिका दहन में उबटन या बुकवा लगाकर, जो निकलता है शरीर से, वो होलिका में जलाने वाली बाकी सामग्री के साथ जाता है, इसमें परिवार के सभी लोगों का और मान्यता ये है की इसके साथ जो भी पिछले वर्ष का मैल है, मलिन है तन का मन का सब होलिका के साथ जल जाता है। ज्यादातर लोग अब उबटन लगवाना नहीं चाहते। इसलिए बस पैर की उंगलियों में लगाकर इति श्री कर ली जाती है)

शीला भाभी ने भाभी से बोला की बस मैं बचा हूँ। क्योंकि मैं कुछ काम कर रहा था। कंप्यूटर पे। भाभी ने शीला भाभी को ललकारा। अरे वो अपना काम करता, आप अपना काम करती। इतना काफी था। भाभी एक बड़े से कटोरे में उबटन लेकर आ धमकी और जमीन पे एक चटाई बिछा दी- “बोली आ जाओ…”

भाभी अभी भी बाहर से पलीता लगा रही थी, " सभी पैरों में लगाइयेगा।"



जब तक मैं कहूँ। भाभी सिर्फ उंगली पे ही लगाइयेगा। उन्होंने पूरा हथेली भर लेकर सीधे घुटने पर और वहां से नीचे तक लगाना शुरू कर दिया।

“अरे भाभी आपने तो पूरा ही…”

जब मेरी बात काटकर खिलखिलाते, हुए उन्होंने बोला तो मैं उन्हें सुनता और देखता दोनों रह गया। शीला भाभी ने अपना आँचल कमर में लपेट लिया था, इसलिए अब बिना किसी रोक टोक के, उनके 36डीडी साइज के गुदाज, गदराये जोबन, चोली कट ब्लाउज़ से बाहर झाँक रहे थे, बल्की निकलने को उतावले हो रहे थे। दोनों उभारों के बीच का क्लीवेज तो पूरा दिख ही रहा था। आलमोस्ट निप्स तक उभार भी दिख रहे थे और यही नहीं उबटन लगाने के लिए वो जिस तरह मेरे पैरों पे झुकी, थी दोनों जोबन और छलक कर बाहर आ रहे थे। साथ ही उन्होंने अपनी साड़ी भी उबटन लगने से खराब ना हो, इसलिए अपने घुटनों के ऊपर कर ली थी। उनकी गोरी, सख्त, कसी-कसी मांसल पिंडलियां भी साफ दिख रही थी और कभी वो ज्यादा झुकती तो, चिकनी रसीली। गुदाज जांघें भी उपर तक।

और ये देखकर वही हुआ जो होना था। मैंने तो किसी तरह अपने ऊपर कंट्रोल रखा। लेकिन जंगबहादुर बौरा गए। पूरे 90 डिग्री और ऊपर से शीला भाभी की बातें और उंगलियों का जादू। खिलखिलाते हुए वो बोली-


“लाला एतने दिन से तोहैं, समझा रही हूँ की आधा तीहा में ना तो लड़की को मजा आता है और ना तुमको आयेगा। एह्लिये। तुम चाहे जो बोलो मैं तो पूरै लगाऊँगी…”

फिर मुझे याद आया की शीला भाभी ने मेरा इतना बड़ा काम किया और मैंने इनसे एक बार भी थैंक्स नहीं किया। अगर वो भाभी से गुड्डी के बारे में नहीं बोलती। मेरी तो जुबान खुलती नहीं और भाभी कहीं इधर-उधर रिश्ता तय कर देती तो कितनी मुश्किल होती। फिर उन्होंने सिर्फ भाभी से सिफारिश ही नहीं की। बल्की भाभी का इशारा मिलते ही हम दोनों लोगों को मंदिर ले गईं। कुंडली मिलवा दी और लगन भी निकलवा दी। मैंने जैसे ही उनसे रिक्वेस्ट की दो घंटे के अन्दर सब कुछ पक्का।

मैंने भी भाभी के अंदाज में बोला- “भाभी, आप बोलें और गलत। इ कैसे हो सकता है। फिर एह टाइम तो आप ऊपर हैं और हम नीचे। आप लगा रही हैं और हम लगवा रहे हैं। ता आधे जाएगा की पूरा इ तो आप ही तय करियेगा…”

शीला भाभी अबकी पूरा खुलकर हँसी और मुझे छेड़ कर बोली- “लाला, तुम समझते ता हो लेकिन इतनी देर से। लेकिन मैं तो पूरा ही लगाऊँगी और जहाँ मर्जी वहां लगाऊँगी। आगे भी और पीछे भी अब चाहे तुम सीधे से लगवा लो, चाहे जबरदस्ती…”

मैं फिर बोला- “भाभी, आज आप हमारा बहुत बड़ा काम करा दी। आप नहीं मदद करती तो बहुत मुश्किल था, गुड्डी से। अब हम ता मारे लिहाज के भाभी से बोलते नहीं और उ कहीं और अगर रिश्ते की बात कर लेती त केतना मुश्किल हो जाता। लेकिन इ सब आप का कमाल है…”


शीला भाभी तो खुशी से फूलकर बोली- “अरे लाला, देवर के काम अगर भौजाई नहीं आएगी तो कौन आएगा। और खासकर एह तरहकर काम में और हम तो बोले उनसे की आप देवरानी, देवरानी करती हैं, गोद में छोरा नगर ढिंढोरा। अरे देवर के आपके पसंद है, घर गाँव की लड़की है। देखी सुनी। सुन्दर, हर चीज में निपुण। बस पक्का कर लीजिये। मैं खुद जाकर मंदिर से कुंडली, लगन की साइत सब पूछ के आऊँगी। फिर आप लड़की के माँ बाप से बात कर लीजिये। अउर असली कमाल ता देवरजी तू कहीं की बिना हिचके सब बात पहलवें मान गए। गरमी क बियाह, उहो गाँव में। तीन दिन क बरात, उहो आम के बाग में…”



फिर दूसरे पैर पे उबटन लगाने लगी।

मैंने हँसकर कहा- “भाभी। उ छोरी के लिए मैं गाँव क्या पताल में जाने को तैयार था। नाक रगड़ने को तैयार था।

शीला भाभी बोली- “अरे कोहबर में देखना नाक क्या, बहुत चीज तुमसे रगड़वाऊँगी। लेकिन छोरी तुम बहुत अच्छी चुने है और साथ में बोनस…”

“बोनस मतलब भाभी…”
शीला भाभी की उंगलियां। अब गुरिल्ला सिपाहियों की तरह मेरे शार्ट के अन्दर भी उबटन लगाते घुस जा रही थी। और मेरे बाल्स को अबकी उसने स्क्रैच कर दिया और वो हँसकर बोली-

“अरे लाला दो दो सालियां भी तो हैं तुम्हारी…”

“अरे भाभी, मैंने बहुत बुरा सा मुँह बनाया- “कहाँ। अभी बहुत छोटी हैं इससे तीन साल छोटी…”

“यहीं तो तुम गड़बड़ा जाते हो। अरे साल्ली साल्ली होती है। चाहे छोटी हो चाहे बड़ी। एक बात गाँठ बांध लो लड़कियां, लड़कों से जल्दी जवान होती हैं। फिर छोटी हो तब भी। रिश्ते के नाते खुलकर मजाक वजाक शुरू कर देना। अपने हाथ से दबा दबाकर नीम्बू से नारंगी तो बना सकते हो। फिर कभी पकड़ा देना। लेकिन तुम शर्माते बहुत हो। देखना। जिसको तुम छोटी कह रहे हो ना, उससे तुम्हारी क्या दुर्गत करवाती हूँ कोहबर में। साली है। उसी से गाली दिल्वाऊँगी। भूल गए उस दिन खाने पे गुड्डी की गाली और गाँव में जो तुम्हारी सालियां सुनाएंगी ना। चौगुनी मिर्च होगी उसमें…”


शीला भाभी बुकवा लगाते बोलीं

भाभी की बात में तो दम था लेकिन- “लेकिन भाभी…” मैंने बोला। “अरे लेकन वेकिन कुछ नहीं…” भाभी ने समझाया।

“अरे छुटकियों के सामने। जो बड़ी वाली हैं। तुम्हारी चचेरी, ममेरी, मौसेरी सालियां। उनके साथ खुलके खेलो, मजे लो, गोद में बैठा के दबाओ, चुम्मा लो मजे लो। बस देख देखकर छुटकियों के भी मिर्ची लगेगी और तुम उन सबों को बख्स भी दो। वो तुम्हें नहीं छोड़ने वाली…”




ये बात तो भाभी की सोलहो आना सही थी। गुड्डी ने खुद मुझे कसम दिला दी थी की जो उसकी ममेरी, मौसेरी बहनें हैं, सबके साथ और कभी उन सबने मजाक में शर्त लगा ली थी। वो सब हम उमर थी, एक-दो साल छोटी बड़ी बहनें कम सहेलिया ज्यादा। शर्त ये थी की जिसकी शादी पहले होगी। उसके हसबैंड के साथ वो सब। अब चांस की बात ये थी की गुड्डी की शादी सबसे पहले हो रही थी और जैसे ही मेरी उन होने वाली सालियों को पता चलेगा। गुड्डी के लिए मुसीबत।

“अच्छा ये बताओ। गुड्डी का पेट कब फुलाओगे। पुराना जमाना होता तो जेठ में बियाह होता, तो फागुन लगते लगते। घर में केंहाँ-केंहाँ। शादी के दो महीने के अन्दर अगर दुलहिन को उल्टी न शुरू हो तो रोज दस बात सास सुनाएगी। लेकिन कितना दिन दो साल- तीन साल?”


भाभी ने पूछ लिया।

बात तो भाभी की सही थी। मैंने गुड्डी से पूछा भी नहीं था। लेकिन जो मैं सोचता था तो मैंने बोल दिया- “भाभी। कम से कम तीन साल बाद…”

अब भाभी ने अपना गणित दिखाया जो एकदम सही था- “तीन साल ना। ता एक बात सुन लो। आखिरी तीन-चार महीने कौन काम देखेगा घर का और उसके बाद भी एक-दो महीने तो कौन काम देखेगा। तुम्हारी कोई छोटी बहन तो है नहीं। तुम्हारी सास अपने घर और बच्चों को छोड़कर तो आ नहीं सकती इतने दिन के लिए। तो कौन आएगा?” शीला भाभी ने फिर पूछा।

अब इतना दूर तक तो मैंने सोचा नहीं कभी। फिर भी दिमाग लगाकर बोला- “और कौन आएगा। उसकी छोटी बहन को ही बुलायेगे। मौसी बनेगी तो कुछ मेहनत तो करनी होगी और जहाँ तक उसकी पढ़ायी का सवाल है। तो उसका एडमिशन तो मैं करा ही सकता हूँ…” मैंने बोला।

“सही सोचा तुमने, छोटी बहन साथ रहेगी तो गुड्डी का भी मन बहला रहेगा और तुम उसके उपर सब जिम्मेदारी भी सौंप सकते हो और अगर उसका एडमिशन करा दोगे, फिर तो उसे लौटने की भी कोई चिंता नहीं रहेगी। लेकिन एक बात तुम्हें मैं साफ-साफ बता दूँ। केतनो पढाई किये हो इ ना मालूम होगा तुमको की आखिरी चार महीना। डाक्टर, मिड वाइफ तुमको पास फटकने भी नहीं देगी और बच्चा होवे के भी दो महीने के बाद तक यानी छ: महीना…”

और अब भाभी की उंगलियां जाँघों पे उबटन लगाते-लगाते सीधे शार्ट में घुस गईं और उन्होंने मुट्ठी में जंगबहादुर को पकड़ लिया और ऊपर-नीचे करते पूछने लगी-

“तो लाला। छ: महीना इसका क्या करोगे। और एक बार इसको रोज हलवा पूड़ी की आदत लग जाय ता इतना लम्बा व्रत, फिर क्या करोगे। साधू सन्यासी तो बन नहीं सकते, और अगर कहीं बाहर इधर-उधर मुँह मारा। तो पकड़े गए तो बदनामी और उसके अलावा भी तरह-तरह की मुसीबत। अच्छा छोड़ो। तुम का कह रहे थे की तुम्हरी साली, गुड्डी से केतना छोट है?”



“तीन साल…” मैंने जवाब दिया।

“अभी हम लोग केतना दिन आगे की बात कर रहे हैं। जब गुड्डी पेट से। और डिलीवरी के पहले तोहें आपन साली के बुलावे के प्लान हौ…”

भाभी किसी वकील की तरह सवाल कर रही थी थी। और मुझे जवाब देना ही था- “तीन साल के आसपास, भाभी…” अब मैं पकड़ा गया।


“हूँ। वो बोली। त मतलब ओह्ह… समय का उमर होगा उसका। उहै ना जो आज गुड्डी का है। त अब दो महीने में तुम्हारा जब लगन हो जाएगा। तो दिन रात कब्बडी होगी, बिना नागा, और होनी भी चाहिए। इस उमर में मजा ना लोगे तो कब लोगे। ता अब सोच लो की आधा साल का उपवास करना है की साली के साथ मजा लेना है…” एक बार फिर कसकर जंगबहादुर को दबाते हुए उन्होंने पूछा।

जंगबहादुर, पूरी तरह तने, जोश में थे और मैंने बिना हिचकिचाए जवाब दे दिया- “भाभी साली के साथ मजा लेना है…”



“यही बात तो मैं भी कह रही थी…” वो बोली।

“और इसके लिए अबहीं से जरा उससे खुलकर मजाक करना, गोदी में बैठाना, गाल पे हाथ फेरना थोड़ा बहुत मींजना। अरे मर्द का हाथ पड़ने से जुबना पे उभार बहुत जल्द आता है। यही तो बोनस का फायदा है…” और ये ज्ञान देने के साथ ही भाभी ने दोनों हाथों से पकड़ कर मेरी शार्ट नीचे खींच दी। और जंगबहादुर आजाद होकर कुतुबमीनार की तरह बाहर हो गए। और साथ ही शीला भाभी ने कटोरे का सारा बचा खुचा उबटन अपनी दोनों हथेलियों में लेकर। मेरे खड़े लिंग पे लगाना शुरू कर दिया।

“अरे भाभी इ का। इहाँ थोड़ी। अरे छोडिये ना…” मैंने जोर लगाया लेकिन शीला भाभी की पकड़ से छूटना आसान है क्या?

ऊपर से वो बोली- “एतना तो गौने का दुलहिन ना शर्मात। लौंडियों को भी मात कर दिए हो लाला, लजाने में। तोहार तो कोहबर में रगड़ाई बहुत जरूरी है। अरे इ जब होलिका में जाई ता होलिका माई आशीर्वाद दिहें की नए संवत में खूब नई-नई, कसी-कसी कच्ची चूत मिलेगी…”


“अरे भाभी। जो आप की मदद से एक मिल रही है मई में वो बहुत है…” मुश्कुराते हुए मैंने कहा।

दोनों से हाथों से लिंग पे उबटन, मथानी की तरह रगड़ते हुए वो बोली- “अरे उ त परमानेंट है और साथ में साली, सलहज, सावन में आओगे न ससुरारी, गावं में…” वो बोली

“हाँ गुड्डी कह रही थी उनके यहाँ कोई रसम होती है। लड़की शादी के बाद अपना पहला सावन गाँव में, मायके में मनाती है। फिर लड़का आकर लेता है। कोई पूजा होती है वो दूल्हा-दुलहन साथ-साथ करते हैं। इसलिए मुझे भी एक हफ्ते के लिए आना होगा…” मैंने कबूल किया।

“तब दिलाऊँगी मैं तुम्हें गाँव का मजा। आखीरकार, गाँव के दामाद हो। गन्ने के खेत और अमराई का मजा। डबलबेड भूल जाओगे। सारी लड़कियां तो तुम्हारी सालियां लगेंगी और उनकी भौजाई सलहज। कली का भी मजा लेना। और खेली खायी का भी…” वो बोली।

और तब तक उबटन का काम हो गया और मैंने शार्ट ठीक किया। जो लगाने के बाद गिरा था वो उन्होंने एक कागज में इकठ्ठा किया और निकल गईं। (यही होलिका में ड़ाला जाता था, बाकी और सामान के साथ।)

तब तक बाहर से गुड्डी की आवाज सुनाई पड़ी।
शीला भाभी तो शील भंग करके हीं रहेंगी...

“हाँ गुड्डी कह रही थी उनके यहाँ कोई रसम होती है। लड़की शादी के बाद अपना पहला सावन गाँव में, मायके में मनाती है। फिर लड़का आकर लेता है। कोई पूजा होती है वो दूल्हा-दुलहन साथ-साथ करते हैं। इसलिए मुझे भी एक हफ्ते के लिए आना होगा…” मैंने कबूल किया।

“तब दिलाऊँगी मैं तुम्हें गाँव का मजा। आखीरकार, गाँव के दामाद हो। गन्ने के खेत और अमराई का मजा। डबलबेड भूल जाओगे। सारी लड़कियां तो तुम्हारी सालियां लगेंगी और उनकी भौजाई सलहज। कली का भी मजा लेना। और खेली खायी का भी…” वो बोली।


गाँव का असली मजा रह हीं गया था...
लेकिन उम्मीद है कि इस बार...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
गुड्डी और होलिका दहन






भाभी ने गुड्डी को आवाज लगाई। वो बाहर निकली और पीछे-पीछे मैं। भाभी गुड्डी को कुछ समझा रही थी। ट्रेडिशनल कपड़े, जोड़े से बस ये दो शब्द मेरे पकड़ में आये।

गुड्डी बड़ी गंभीरता से एक-एक बात सुन रही थी और सिर हिला रही थी, फिर उसने भाभी से पूछा- “शलवार सूट…”

तो वो मुश्कुराकर बोली- “हाँ एकदम। और मुड के मुझसे बोला। होलिका में तुम चले जाना, गुड्डी के साथ और होलिका में डालने के लिए शीला भाभी ने सब सामान इकठ्ठा किया है। उनसे ले लेना…” उन्होंने गुड्डी को कपड़े के लिए बोला था तो मैंने भी पूछ लिया कपड़े कौन से पहनूं?”


और भाभी ने गुड्डी की ओर इशारा किया। अब मैं नहीं इससे पूछो और किचेन की ओर चली गईं। गुड्डी मुझे खींचकर कमरे में ले गई और दरवाजा बंद कर सिटकिनी भी बंद कर दी- “हे सिटकिनी क्यों बंद कर दी?” मैंने हैरान होकर पूछा। आलमारी खोलकर कपड़े निकालती वो बोली- “क्यों क्या दरवाजा खुला रखके अपनी भौजाइयों के सामने कपड़ा बदलने का मन था…”

मैं जो कुछ बोलने वाला था। वो पलंग पे पड़े कपड़ों को देखकर मुँह में ही रह गया। कुरता पाजामा, वो भी बड़ा रंगीन किस्म का, कढ़ाईदार।

“हे ये पहनकर बाहर। तुम्हें तो मालूम है मैं कुरता पजामा सिर्फ सोने के लिए पहनता हूँ। और ये भी रंगीन…” मैंने कुछ बोलने की कोशिश की लेकिन उसने चुप करा दिया।

“तुम यार नखड़ा बहुत करते हो। एक बार बनारस में हम लोगों के साथ रहना शुरू कर दो ना। तुम्हारी सारी आदतें सुधार देंगे। और वहां होलिका में कोई तुम्हारीबहन थोड़ी होगी जो तुम्हारा नाड़ा खोल देगी। तुम उतारते हो या मैं उतारूँ तुम्हारे कपड़े…”

और मैंने चुपचाप उतारने शुरू कर दिए। और उसने आलमारी से अपने कपड़े निकालने शुरू कर दिए। चिकन के काम की एक दुप्याजी, हाफ स्लीव की कुर्ती, मैचिंग पाजामी, एक पिंक ब्रा और पैंटी। अब मेरी बारी थी। मैंने उसकी ब्रा पैंटी वापस अलमारी में डाल दी और बोला-


“चल मैंने तेरी बात मान ली। इत्ता तू भी मेरी…”

“तू भी क्या याद करेगा किसी बनारस वाली से पाला पड़ा था और बिना ब्रा और पैंटी के कुर्ती, पाजामी पहन ली। गले में एक चुन्नी भी ले ली। लेकिन गले से एकदम चिपकी।


आज बहुत दिन बाद मैंने बाइक इश्तेमाल की थी। गुड्डी उछल कर बाइक पे मेरे पीछे बैठ गई, और मुश्कुराकर बोली-

“अब मैं समझी। तुम क्यों मुझे बिना 'कवच' के ला रहे थे…” और अपना मतलब साफ करते हुए, उसने अपने किशोर ब्रा रहित उभार मेरी पीठ में गड़ा दिए और जैसे ये काफी नहीं था, उसका एक हाथ मेरी कमर को कसकर पड़े हुए था और दूसरा हाथ मेरी जांघ सहला रहा था और धीरे-धीरे जांघ के ऊपर। मैं क्यों मौका चूकता ब्रेक लगाने का। लेकिन होलिका वाली जगह बहुत दूर नहीं थी। इसलिए।

लेकिन मैंने लांग टर्म इन्वेस्टमेंट कर लिया ये पूछ के- “हे होलिका के बाद लांग ड्राइव…”

उसका जो हाथ जांघ के ऊपरी हिस्से में टहल रहा था। सीधे जांघ के बीच पहुँच गया और उसने जोर से गपुच लिया। साथ में अपने होंठ मेरे कान के पास रगड़ते बोली- “नेकी और पूछ पूछ…”

हम लोग होलिका वाली जगह पे पहुँच गए थे। और बाइक से उतरते ही गुड्डी का तुरंत 'रूपांतरण' हो गया। चुन्नी सीधे सिर पे। सिर ही नहीं बल्की चेहरा भी थोड़ा ढंका और हाथों में कुहनी तक भर भरकर चूड़ियां, गाढ़ी नेल पालिश, लाल परांदा, एकदम दुल्हन सी। उसके हाथ में होलिका में डालने वाला सारा सामान था और मेरे साथ न सिर्फ सटकर। बल्की मेरे हाथों में हाथ लेकर वो सामग्री डाली और मुझसे इशारा किया की मैं होलिका से मांग लूँ।

मैंने हल्के से बोला- “जल्दी से हमेशा के लिए ये लड़की…”

गुड्डी ने उकसाया- “और भी कुछ मांग लो…”

मैंने बोला- (मुझे शीला भाभी की बातें याद आ गईं) और मैंने बोला साथ में बोनस भी।

गुड्डी जोर से मुश्कुराई और कुछ-कुछ बुदबुदाती रही। मैने देखा कई पति पत्नी। जोड़े में होलिका के चारों ओर चक्कर काट रहे थे। पांच चक्कर हमने भी काटे उनकी तरह। होलिका हो और गालियां ना हो ये हो नहीं सकता। तो साथ में जोगीड़ा। कबीर सब चल रहे थे।


औरतें पूजा करके एक ओर खड़ी थी और आदमी दूसरी ओर, और होलिका की पूजा करके गुड्डी उधर ही चली गई। मैंने देखा मिश्रायिन भाभी और उन्होंने गुड्डी को तुरंत अपने संरक्षण में ले लिया।

मिश्रायिन भाभी, मेरी भाभी की पक्की दोस्त, उनकी गाइड और मर्दमार और औरत मार दोनों।




उम्र में भाभी से 6-7 साल बड़ी। तीस-बत्तीस के आसपास, दीर्घ स्तना और दीर्घ नितम्बा दोनों, ऊपर 38डीडी और नीचे चालीस से कम क्या होगा। होली में देवर और ननद दोनों उनसे कांपते। लेकिन भाभी के चलते अब गुड्डी उनके कवर में थी। वरना होलिका जलाते समय जितनी गाली गलौज आदमी करते हैं, उससे कम औरते नहीं। बस यही है की वो आपस में और बहुत धीमी आवाज में मजाक करेंगी। इधर-उधर दबायेंगी, चिकोटी काटेंगी और इसलिए गुड्डी थोड़ी सेफ थी। होलिका जली, धू-धू कर के।




जोर से लोगों ने आवाज लगायी- “होलिका माई जर गईं। बुर चोदा इ कह गईं…”


होलिका की लपटें थोड़ी धीमी पड़ने लगी थी और गाने की आवाजें थोड़ी तेज और साथ में हल्ला भी। कुछ लोग अबीर गुलाल भी उड़ा रहे थे। और तब तक फिर लोगों ने होली के फेरे लेने शुरू कर दिए। और साथ में जोर-जोर से गालियां। कहा जाता है की इस समय अगर गाली ना दो तो होलिका माई गुस्सा हो जाती हैं और फिर आपकी इच्छा पूरी नहीं होती।


गुड्डी दौड़ के मेरे पास आ गई और मेरे साथ-साथ फेरे लेने लगी। एक प्लेट में किसी ने अबीर गुलाल रखा था बस एक मुट्ठी उठाकर सीधे मेरे चेहरे पे, बालों में और हँसकर जोर से मुझसे बोली-

“तेरी बहन के बुर में मेरे मर्द का लण्ड। चोद चोद के उसको सचमुच की रंडी बना दो…” इतना हल्ला था की सिर्फ बगल वाले की आवाज भी मुश्किल से सुनाई दे रही थी।

मैंने भी उसी प्लेट से गुलाल उठाकर सीधे उसकी कुर्ती के अन्दर। ब्रा तो थी नहीं। अब चिकन की झलकती कुर्ती से अब गदराये मस्त जोबन साफ झलक रहे थे और मैंने साथ में उसके गाल मलते हुए कहा।-

“तेरे मर्द का लण्ड, उसके सारे ससुराल वालियों की बुर में…”

हम लोग होलिका का आखिरी चक्कर लगा रहे थे। और गुड्डी ने मुड के कहा, हँसते हुए-

“ठीक। लेकिन अगर कोई ससुराल वाली बची तो देख लेना मैं अपने सब ससुराल वालियों का नंबर लगवा दूंगी…”




होलिका की आँच बहुत धीमी हो गई थी कहीं कहीं लपटें उठ रही थी। और कहीं कहीं अंगारे दमक रहे थे। गुड्डी ने मुझे उकसाया। होलिका की गरम राख के लिए।

(मान्यता थी की होलिका बुझने के पहले अगर जो सबसे पहले राख निकाल लेता है। उस राख में कुछ जादुई गुण होते हैं। टोना टोटका और भी बहुत कुछ।)

अब लोग तो प्रेमिका के लिए आसमान से सितारे तोड़ने की बातें करते हैं। तो ये तो सिर्फ राख है और मैंने अपने हाथों से दो मुट्ठी राख निकाल ली। और गुड्डी तो गुड्डी थी, उसने वो पैकेट जिसमें होलिका में डालने वाला सामान लायी सम्हाल कर रखा था। बस उसी को मेरे सामने खोल दिया और मैंने राख उसमें। रख दी। “थोड़ा सा और…” वो सारंग नयनी बोली, और एक ओर इशारा किया। उधर कुछ छोटी-छोटी लकड़ियां बस बहुत हल्के से जल रही थी।

अब धीमे-धीमे होलिका की लपट पूरी बुझ चुकी थी। बस एक-दो लपटें कहीं कहीं हवा के झोंके के साथ उठती थी।

गालियों, जोगीड़े का शोर पूरे जोर पे था। तभी लाईट चली गई। मैंने गुड्डी को कसकर बांहों में भींच लिया। हंगामा अपने पूरे जोर पे था। बस एक-दो लपटें और चौदहवीं के चाँद की रोशनी में बस हल्का-हल्का दिख रहा था।


गुड्डी ने चुन्नी से अपना सिर अभी भी अच्छे से ढँक रखा था। मेरा एक हाथ उसके नितम्बों पे और दूसरा चिकन के गुलाबी कुर्ती से झांकते उभार पे। मैंने उसे हल्के से चूम लिया और बोला-

“तेरी और तेरी सारी मायके वालियों की चूत में, तेरे मर्द का लण्ड…”

“एकदम…” हँसकर वो बोली, बिना नागा और मायके वालियोंके साथ मेरी ससुराल वालियों में भी " …”



तब तक मैंने देखा की अँधेरे का फायदा उठाकर औरतों की टोली में मस्ती चालू हो गई थी। मिश्रायिन भाभी ने तो एक लड़की के (गुड्डी से भी थोड़ी छोटी रही होगी) के फ्राक में हाथ डालकर बस अभी उभरते उभार को कचकचा के दबाना शुरू कर दिया था। तो उनकी एक सहेली ने एक लड़की के टाप में हाथ डाल दिया था। होलिका की आखिरी लपट भी बुझ गई थी।

(कहा जाता है की होलिका माई से कहीं गई बातें तभी पूरी होती है। अगर जब आप होलिका की आखिरी लपट देखकर जायं) और मुझे लगा की कहीं औरतों के उस गोल में कोई गुड्डी पे ही न हमला बोल दे। मैंने गुड्डी को इशारा किया की हम लोग अँधेरे में बाहर निकल आये और हम सीधे बाइक पे और दस मिनट में हमारी बाइक शहर के बाहरी भाग से निकल रही थी।

“हे ये किधर आ रहे हो…” गुड्डी ने पीछे से मुझे जोर से दबोचते पूछा।

“मेरी मर्जी। मेरी दुल्हन है मैं चाहे जहाँ ले जाऊं…”

और गुड्डी ने और कसकर मुझे पीछे से भींच लिया। उसके किशोर उभार बार-बार मेरी पीठ पे रगड़ रहे थे। और अब हम लोग जिस सड़क पे थे वो पूरी तरह सूनसान थी। बस दोनों ओर गेंहूँ की सुनहली बालें, गन्ने के घने खेत और आम के बाग। थोड़े बहुत बादल चाँद से छेड़खानी कर रहे थे। तेज हवा चल रही थी और सड़क के दोनों ओर दूर-दूर गाँवों में कहीं होलिका जलने की हल्की सो रोशनी दिखाई देती तो कहीं से होली के मस्त गानों की, चौताल और धमार की आवाज छन-छन के आ रही थी। गुड्डी ने मेरी बात का जवाब मेरे इयर लोबस पे एक हल्के से किस से दिया।

मैंने बाइक की रफ्तार और तेज कर दी। और बोला- “मेरी दुल्हन, जानती हो बहुत सुन्दर सी, बहुत प्यारी सी है। खूब मीठी भी। लेकिन दो महीने में उस बिचारी की बहुत दुर्दशा होने वाली है। दिन रात बिना नागा…”

और उसके मस्त उभारों ने मेरी बात का जवाब दिया मेरी पीठ पे जोर से रगड़कर और साथ में उसके बदमाश हाथ सीधे बस मेरे जंगबहादुर के ऊपर, पकड़ा, रगड़ा, दबा दिया और बोली-

“होने दो ना तुम्हें क्या। जो उसके दुल्हे को अच्छा लगता है। वो करेगा…”

और उसकी इस बात पर मैंने बाइक एक पगडण्डी पे मोड़ दी।


धड़धड़ाते हुए नीचे। दोनों और सरपत लगे हुए।




अब सड़क भी दिखनी बंद हो गई। वो पगडण्डी इतने नीचे आ गई थी। फिर बस एक मेंड सी और वो जहाँ खतम हुई। वहां एक खूब घनी अमराई। आम के बौर की मस्त महक और बगल में गन्ने के खेत।



आदमी से कम से कम डेढ़ गुनी उंचाई के। इतने घने की कोई दो-चार फिट दूर भी हो तो दिखाई पड़ना तो दूर कोशिश करने पे भी पता ना चले

आम के पेड़ भी बहुत पुराने मोटे पेड़, डालियां भी खूब मोटी मोटी। एकदम कई तो जमीन के पास। इतनी चौड़ी की कोई उसपे लेट भी ले। हल्की-हल्की मद मस्त फगुनाहट भरी पुरवाई बह रही थी।ऊपर से आम के बौरों की महक।



चांदनी, पत्तों से छन-छन कर बहुत झीनी-झीनी आ रही थी और बादल का अगर कोई छोटा टुकड़ा भी चाँद से खिलवाड़ करने लगता, तो बस काली चादर फैल जाती। घटाटोप अन्धकार। बाइक की सारी लाइटें मैंने पहले ही बंद कर दी थी और मैंने गुड्डी को इशारे से बाइक पे पीछे से आगे आने को कहा। और वह चपला तुरंत किसी बाइकर गर्ल की तरह। आगे अपना सिर थोड़ा पीछे झुकाए, दोनों मस्त जोबन ऊपर उभारे और अपनी लम्बी गोरी टांगें मेरी टांगों में फँसाए। छलकती चांदनी उसके उरोजों से खेल रही थी।

कौन रुक सकता था।


और मैंने झुक के उसके होंठों से एक चुम्बन चुरा लिया। लेकिन अगला चुम्बन हक से। मैंने अपने दोनों बाइक की हैंडल पकड़े हाथों का तकिया सा बना, उसके सिर को सहारा दे रखा था। मेरे होंठ गुड्डी के रसीले गुलाबी होंठों से चिपके रस ले रहे थे और मेरी जीभ उसके मखमली मुँह में अन्दर घुसी, उसकी जीभ से खिलवाड़ कर रही थी, मुख रस ले रही थी। लेकिन जीभ एक बार रस लेने लगे तो कहाँ रुकती है। अब मेरे हाथों ने गुड्डी की गुलाबी कुर्ती बस ऊपर उठा दी और दो-दो चाँद एक साथ दिखने लगे। आम के पत्ते से छन के बरसती चांदनी में। फिर पहले तो मेरे लालची हाथ ने फिर मुँह ने, एक-एक अपने कब्जे में कर लिए।





चाँद शर्मा गया या शायद कोई नटखट बादल हम दोनों की प्रेम लीला को देखने को बेताब था। पूरा अँधेरा छा गया। लेकिन मेरे लिए गुड्डी के रूप की ज्योत्सना ही बहुत थी।

मैं कभी उसके निपल चूसता तो कभी चून्चियां जोर से दबा देता, मसल देता। जोबन का रस लेते लेते मैंने गुड्डी के कान में कहा-

“ये बहनचोद चाँद भी ना। ऐन मौके पे टार्च बंद कर दिया…”

“ये बिचारे चाँद को क्यों गाली देते हो?” खिलखिला के गुड्डी बोली।

“ऊप्स मैं तो भूल ही गया था की चाँद तेरे मामा है तो इनकी बहन चोदने का मतलब?”

और गुड्डी ने मेरा मुँह बंद कर दिया। मेरे सिर को खींचकर अपने सीने पे वो ले गई और एक बार फिर उसका खड़ा उत्तेजित निपल मेरे मुँह में और गुड्डी का मस्त निपल मेरे मुँह में हो। तो बस सब कुछ भूल कर मैं बस उसे चूस रहा था, चुभला रहा था। मेरी जीभ उसे नीचे से ऊपर तक चाट रही थी। और उसका कुर्ती से खुला दूसरा जोबन मेरी मुट्ठी में कैद था।

मैं हल्के-हल्के दबा रहा था सहला रहा था और गुड्डी मेरे कमेंट पे कमेंट कर रही थी-

“मेरे मामा की बहन मतलब मेरी मम्मी। सीधे सीधे क्यों नहीं बोलते अगर हिम्मत है तो। अगर मम्मी को पता चला गया ना तो ऐसी हाल-चाल लेंगी तुम्हारी, तुम्हारी सारे मायके वालियों की, गधे घोड़े तक से रिश्ता जोड़ देंगी। परपराते फिरोगे और अगर उनको तुम्हारा इरादा कहीं पता चल गया ना। तो तुम भले भूल सुधार करो, वो नहीं छोड़ने वाली बिना तेरी नथ उतारे। तुम गों गों करते रहना। ऐसी रगड़ाई करेंगी ना वो की…”



सुन तो मैं सब रहा था लेकिन ना मेरी जवाब देने की हिम्मत थी ना औकात और मेरा मुँह तो वैसे ही गुड्डी ने बंद कर रखा था। अपने रसीले उरोजों से। और अब मेरा दूसरा हाथ भी बिजी हो गया था। गुड्डी की दोनों खुली जांघों के बीच, पाजामी के ऊपर से, एकदम गीली। इसका मतलब था की वो भी पनिया गई है। और मैंने पाजामी के ऊपर से ही उसकी रामप्यारी को दबोच लिया बहुत जोर से फुदक रही थी। लेकिन अब मेरी उंगलियां उसे दबा रही थी, रगड़ रही थी। और हथेली का बेस उसे घिस रहा था। मस्ती से गुड्डी की आँखें बंद हो रही थी। लेकिन इससे ज्यादा उस बाइक पे घुप्प अँधेरे में मुश्किल था।

लेकिन तब तक गुड्डी के मामा, चन्दा मामा ने कुछ कृपा की ना जाने उन्हें अपनी भानजी पे दया आ गई या होने वाले दामाद पर। पूरी चांदनी एक साथ। सारी अमराई दिख रही थी।

और अगले पल हम एक आम के पेड़ की मोटी सी डाली पे बैठे थे। असल में डाली पे मैं बैठा था। और गुड्डी मेरी गोद में। उसकी दोनों टांगें फैली मेरी कमर को लपेटे, आमने सामने। गुड्डी का एक हाथ मेरी पीठ को पकड़े। और मेरा एक हाथ उसकी कमर पे, उसे अपनी ओर खींचे।

हवा थोड़ी तेज हो गई थी। कभी कभी कुछ आम के बौर झर कर, झरती चांदनी के साथ हमारे ऊपर भी गिर रहे थे। गुड्डी की गुलाबी चिकन की कामदार कुर्ती उठी हुई थी और उसके उभार कभी मेरे होंठो, और कभी मेरे हाथों के बीच और वो मुझे फेस करती हुई बैठी थी। तो मेरे लिए बाकी काम भी आसान थे। मेरा हाथ अब सीधे पाजामी के अंदर, उसकी रामप्यारी को प्यार से सहला रहा था, छेड़ रहा था।

और गुड्डी तो गुड्डी थी। उसने मेरे जंगबहादुर, मेरे क्या अब वो तो उसके ज्यादा थे को आजाद कर दिया था। और अपनी किशोर लम्बी गोरी उंगलियों से कभी दबाती, कभी आगे-पीछे करती। मैंने गुड्डी के होंठों पे किस करते बोला- “सुन,जानती है मेरा मन करता है। बहुत दिनों से करता था…”

“क्या?”

“की ऐसी खुली हवा में, बाग में बस तुम मेरी बांहों में हो और मैं तुम्हें…”

मेरी बात काटकर झट उसने ताना दिया- “आम के बाग में बारात में तो दस बार सोच रहे थे…”

“मान तो गया ना मैं…” उसके होंठों को चूमता बोला मैं।

“और बोलो?” अब उसकी आवाज हस्की हो गई थी।

“तुम मेरी बांहों में हो। मैं तुम्हें ऐसी खुली हवाओं में चूमता रहूँ…”

“और?”

“तुम्हारे रसीले उरोजों का रस लेता रहूँ। इन मस्त उभारों का सुख…”

“और?” वो बहुत हल्के से बोली। उसकी सांसे लम्बी होती जा रही थी।

“तुम्हें खूब प्यार करूँ कचकचा कर…”

“और?” वो मुझे चढ़ा रही थी, उकसा रही थी। उत्तेजना से उसके उरोज पथरा गए थे।


अब मुझसे भी नहीं रहा जा रहा था मेरी तरजनी की टिप सटाक से उसकी मस्त गीली कसी चूत में घुस गई। और मैंने उसे कसकर भींचते कहा- “और मैं ऐसी खुली हवा में रात के अँधेरे में, बाग में तुम्हें। तुम्हें चोद दूँ। हचक-हचक के चोदूँ…”

गुड्डी की जीभ की नोक मेरे कान में सुरसुरी कर रही थी। उसने जोर से अपने उभार मेरे सीने में दबाते हुए, कसकर मेरे लण्ड को अपनी गोरी मुट्ठी में भींच लिया और बोली- “और?”

“और चोदता रहूँ। चोदता रहूँ। रात भर…” मैं बोला साथ में मेरी आधी उंगली अब उसकी गीली चुनमुनिया में अन्दर-बाहर हो रही थी। सिर्फ पत्तों की सरसराहट, हम दोनों के दिल की धड़कन और चुम्बनों की आवाजें सुनाई पड़ी रही थी।

चन्दा मामा ने टार्च बंद कर दी थी। शायद अपनी भांजी की काम क्रीडा से शर्मा गए थे। या बैटरी खतम हो गई थी। पता नहीं। पर घटाटोप अँधेरा था और हम दोनों एक दूसरे को सिर्फ उंगलियों से, होंठों से और दिल से देख रहे थे। तभी। गुड्डी अचानक मेरे कान में फुसफुसाई-

“हो जाएगा…” एकदम एवमस्तु वाले अंदाज में। मेरे कुछ समझ में नहीं आया। गुड्डी एकदम मेरे कान में अपने गरम होंठ सटाकर बोल रही थी।

हमारे गाँव वाले घर पे, एक ऐसा ही बाग है। इसकी तिगुनी चौगुनी बड़ी बाग है आम की और इससे भी ज्यादा घनी। दिन में मुश्किल से दिखता है और चारों ओर से घिरी परिंदा भी पर ना मार पाए ऐसी। मैं समझ गया ये उसी बाग की बात कर रही है। जहाँ बारात टिकने वाली थी। लेकिन फिर मेरी समझ में कुछ नहीं आया- “लेकिन बारात में कैसे। हम और तुम…”

“अरे तुम ना एकदम बुद्धू हो। बारात की बात कौन कर रहा है। और फिर शादी वाली रात से तो तुम हम लोगों के कब्जे में हो जाओगे। कोहबर में। फिर तेरी विदाई मेरे साथ ही होगी, तीन दिन बाद। मैं सावन की बात कर रही थी।

मैंने बोला था ना की हमारे यहाँ एक रस्म है की लड़की पहला सावन मायके में गुजारती है। फिर लड़का आकर उसे ले जाता है। उसके पहले दोनों देवी की पूजा करने जाते हैं और मायके का मतलब गाँव। तो मैं लम्बा तो नहीं जाऊँगी लेकिन हफ्ते दस दिन मुझे जाना ही पड़ेगा। उसी समय…”

“हफ्ते दस दिन…” मैं बोला और अचानक उदास हो गया।

“यार तेरे बिना पांच मिनट मन नहीं लगता। दस दिन कैसे कटेंगे?”


गुड्डी ने मुझे कसकर अपनी मृणाल बांहों में भींच लिया। और बोली- “जानती हूँ मैं और मेरा कौन सा मन लगता है तेरे बिना। लेकिन कोई रास्ता है क्या। रसम तो निभानी होगी न और मैं सिर्फ दस दिनों के लिए तो जाऊँगी। और फिर तुम थोड़ा जल्दी आ जाना। गाँव में सावन गुजारना मेरे साथ। फिर मुझे लेकर आ जाना…”

गुड्डी ना। जहाँ कोई रास्ता ना दिखे उसकी बात रास्ता दिखा देती है और मुझे भी रास्ता सूझ गया। मैंने गुड्डी को किस करते हुए धीरे से बोला- “मान लो तुम्हें दस दिन बारह दिन, जित्ते दिन भी रहना हो मैं छुट्टी ले लूँ। तुम्हारे साथ चलूँ। फिर तुम्हें विदा करा के ले आऊंगा। जब भी साइत होगी। लेकिन तुम्हारे घर वाले या मम्मी किसी को बुरा तो नहीं लगेगा…”

गुड्डी ने मुझे बाहों में भींच लिया पूरे जोर से और पागलों की तरह चूमते बोली- “ये हुई ना बात। तुम एकदम और मम्मी को बुरा क्यों लगेगा। वो तो ईत्ती खुश होंगी की, और उन से ज्यादा खुश होंगी मेरी सहेलियां और कजिन्स। वो मुझे तो पास फटकने नहीं देंगी। कहेंगी की तुम तो रोज चिपकी रहती हो। अब इत्ते दिन हमारा नंबर है…”

फिर अचानक वो सीरियस हो गई- “लेकिन तुम्हारा मजाक भी बनेगा। कोई कहेगा, जोरू का गुलाम है, तो कोई बोलेगा बीबी के बिना एक मिनट नहीं रह सकता…”


और अब मेरी बारी उसे बाहों में भींचने की थी- “सही तो है, बोलने दो ना। इत्ती मुश्किल से तो मिली है। और इतनी प्यारी सुन्दर तो क्यों छोडू मैं एक मिनट के लिए। और फिर जोरू का गुलाम हूँ तो किसी को क्या?” और मैंने गुड्डी के गुलाब से गालों पर दस चुम्मी ले ली।
गुड्डी का सुधार कार्यक्रम तो लगता है जिंदगी भर चलता रहेगा...
आखिर बुद्धू से पाला जो पड़ा है...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
Is kahani ko me guddi ki najariye se bahot jyada mahesus kar rahi hu. Guddi ki mashumiyat bhare pyare qute face ko. Or shadi jese vo gath bandhne se ho gai ho. Ek dusre ko laddu khilate wakt shararat ankho me dekhna. Fir pandit ji se ashirvad. Or is vale update me to jese vaivahik jivan shuru hi kar diya ho. Budhu kahika. Muje bahot maza aa raha he. Love it.

Screenshot-20230329-162345 IMG-20230329-162326 IMG-20230329-162311 IMG-20230329-162257 IMG-20230329-162231 IMG-20230329-162214 IMG-20230329-162159 IMG-20230329-162146 IMG-20230329-162124 IMG-20230329-162105 IMG-20230329-162045 IMG-20230329-162021 IMG-20230329-162003 IMG-20230329-161952 IMG-20230329-161941
लेकिन मुझे रीत ज्यादा पसंद आई...
चुलबुली.. शरारती... जिंदा दिल ... और ऊर्जा से भरपूर...
prompt decision...
 

Shetan

Well-Known Member
15,024
40,231
259
लेकिन मुझे रीत ज्यादा पसंद आई...
चुलबुली.. शरारती... जिंदा दिल ... और ऊर्जा से भरपूर...
prompt decision...
Muje uski kahani. Hone vale foji se pyar. I love foji
 
Top