इंतजार
वो फिर मुद्दे पे आ गई- “तो इसका मतलब। छुट्टी का ऐसा कुछ नहीं है 14-15 दिन की मिल जायेगी ना…”
“हाँ कर लूंगा जुगाड़…” मैंने सिर हिलाया।
“और उसके बाद भी तो तुम बनारस में ही रहोगे ना। फिर क्या? तो तुम गाँव से डर गए या आम के बाग से…” हँसकर वो सारंग नयनी बोली।
फिर बिना मेरे जवाब के इंतजार के वो बोली- “तुम भी ना जाड़े की रात के इन्तजार में। नवम्बर में लगन आती है जाड़े में। पूरे 6 महीने का घाटा हो जाता तुमको। तुम भी ना। सच में बुद्धू राम हो…”
बात उसकी सही थी मैं क्या बोलता।
फिर वही बोली- “तुम जानते हो बिचारी तुम्हारी भाभी। कुछ सोचकर उन्होंने बोला होगा। कित्ता तुम्हारा ख्याल रखती हैं। वो…” बात तो गुड्डी की सोलहो आना सही थी। लेकिन अब तो तीर छूट चुका था। बिगड़ी बात बनाना अगर किसी को आता था तो वो गुड्डी को आता था। वो मेरे कंधे पे हाथ रखकर मुश्कुराकर बोली-
“अब हम जैसे ही लौटेंगे ना। मेरे साथ। तुम बोल देना की तुम्हारी छूट्टी की बात हो गई है। मिल जायेगी जून में आराम से छुट्टी और तुमको कोई ऐतराज नहीं है जून में। शादी से…”
गुड्डी से मैंने कहा- “लेकिन तुम भी चलना मेरे साथ जब भाभी से मैं ये कहूंगा। कुछ बात होगी तो तुम सम्हाल लेना। अकेले मैं मैं फिर कुछ गड़बड़ ना कर दूँ…”
“और क्या?” मुश्कुराते हुए वो सुमंगली बोली- “तुम्हारे भरोसे मैं इतनी इम्पार्टेंट चीज नहीं छोड़ने वाली। करा लिया ना था तुमने अपना 6 महीने का घाटा और गरमी के बाद सावन भी तो आता है। सावन सूना चला जाता ना…”
तब तक शीला भाभी आती दिख गईं और मैंने उन्हें छेड़ा- “क्यों भाभी कहीं पंडित जी से कुछ स्पेशल प्रसाद तो नहीं लेने लग गईं थी आप…”
“तुम्हारा ही काम करवा रही थी। कुंडली दी थी भाभी ने तुम्हारी मिलवाने के लिए। और सगुन…”
उनकी बात काटते मैं बोला- “मेरी कुंडली तो भाभी के पास थी लेकिन वो लड़की की…”
“तुम्हें आम खाने से मतलब है या…” अबकी गुड्डी ने बात काटी।
“आम और ये…” अब शीला भाभी चौंकी।
“अरे गरमी का सीजन आने दीजिये। कैसे नहीं खायेंगे। खायेंगे ये और खिलाऊँगी मैं। लेकिन कुंडली का क्या हुआ। मिली की नहीं…” गुड्डी उतावली हो रही थी।
“मिल गई बहुत अच्छी मिली। पंडित जी तो कह रहे थे की ये जोड़ी ऊपर से बनकर आई है। दुनियां में कोई ताकत नहीं जो रोक सके इन दोनों का मिलन। सोलह के सोलह गुण मिल गए हैं…”
शीला भाभी बहुत खुश हो रही थी। लेकिन जब तक हम दोनों कुछ बोलते एक खतरनाक बात बोल दी-
“लेकिन, लड़की के लिए एक मुसीबत है…” वो बड़ी सीरियसली बोली- “और पंडित जी ने बताया है की इसका कोई उपाय भी नहीं है…”
“मतलब?” मैं और गुड्डी साथ-साथ बोले।
“अरे इसका शुक्र बहुत ही उच्च स्थान का है। पंडित जी बोले की इतना ऊँचा शुक्र उन्होंने आज तक नहीं देखा…” वो बोली।
“मतलब?” हम दोनों फिर साथ-साथ बोले।
अब वो मुश्कुराई और मेरी और मुँह करके बोली- “मतलब ये की। तुम दुलहिन के ऊपर चढ़े रहोगे हरदम। ना दिन देखोगे ना रात। बिना नागा…”
मैं और शीला भाभी दोनों गुड्डी की और देखकर मुश्कुराए।
और गुड्डी बीर बहूटी हो गई। अब शीला भाभी फिर मेरी ओर मुखातिब हुई और बोली-
“लेकिन असली अच्छी खबर तुम्हारे लिए है। पंडित जी ने कहा है। लड़की रूप में अप्सरा है, भाग्य में लक्ष्मी है। जिस घर में उसका प्रवेश होगा उस घर की भाग्य लक्ष्मी उदित हो जायेगी। वहां किसी चीज की कमी नहीं रहेगी और सबसे बड़ी बात। भाग्य तो तुम्हारा वैसे ही बली है लेकिन जिस दिन से उसका साथ होगा। वह महाबली हो जाएगा, तुम्हारी सारी मन की बातें बिना मांगे पूरी होंगी, नौकरी, पोस्टिंग…”
गुड्डी ये सब बातें सुनके कभी खुश होती तो कभी ब्लश करती। फिर बात बदलते हुए मुझसे बोली- “इत्ती देर से तुम्हरा दो-दो मोबाइल लादे फिर रही हूँ लो…” और उसने अपना पर्स खोलकर मेरे मोबाइल मुझे पकड़ा दिये। पूजाकर समय, उसने मेरे मोबाइल लेकर साइलेंट पे करके अपने पर्स में रख लिए थे।
लेकिन शीला भाभी चालू थी- “एक बात और तोहार भाभी कहें थी की पंडित जी से पूछे की- “लेकिन ओहमें कुछ गड़बड़ निकल गया…”
अब मैं परेशान, गुड्डी के चेहरे पे भी हवाइयां। हम दोनों शीला भाभी की ओर देख रहे थे। और वो चुप। आखीरकार, मैंने पूछा- “क्या बात है भाभी बताइए ना…”
“अरे लगन की तारीख। एह साल 25 मई से 15 जून तक जबर्दस्त लगन है। लेकिन जाड़ा में शुक्र डूबे हैं। एह लिए अब ओकरे बाद अगले साल अप्रैल के बाद लगन शुर होई। और जून त तू मना कै दिहे हया। त लम्बा इन्तजार कराय के पड़े दुलहिन के लिए…”
इतना इंतजार तो खैर मुझसे नहीं होने वाला था। मैं और गुड्डी एक दूसरे की ओर देखकर मुश्कुराए। गुड्डी ने आँखों में मुझे बरज दिया की मैं अभी कुछ ना बोलूं। वो सीधे मुझे भाभी के पास ले जाती और मैं उन्हें बताता की मुझे छुट्टी गरमी में मिल जायेगी। मैं सिर्फ शीला भाभी की ओर देखकर मुश्कुरा दिया