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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

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शीला भाभी और भोर का सपना








जैसे ही मैंने उनकी बड़ी बड़ी चूँची पकड़ के करारा धक्का मारा वो अशीषती बोलीं,...

" ऐसे ही धक्का, गुड्डी की सास के भोंसडे में मारना, उनको गौने की रात याद आ जाएगी,... "



" अरे भाभी ये क्या कह रही हैं , मैंने उन्हें चेताया, गुड्डी की सास मतलब,... "

" मतलब, मादरचोद,... अपनी माँ का भोंसड़ा मारोगे,... " और क्या पीछे की ओर अपने बड़े बड़े चूतड़ कर के उन्होंने कस के धक्का मारा और मेरे लंड को प्यार से निचोड़ लिया, फिर पूछा, तोहार सास क्या कही थीं,...

" वो भी यही कह रही थीं लेकिन मज़ाक,... " मैंने बोला पर मेरे लंड को निचोड़ती अपनी बुर सिकोड़ती वो बोलीं, अरे मजाक समधन समधन का होता है तोहसे कहीं मतलब अब तो होगा ही,... "

फिर दुलार से बोली,

" अरे लाला काहें परेशान हो रहे तोहार सास हैं न बस कउनो बहाना कर के अपनी समधन को बुलाएंगी, फिर तोहार चचिया सास, गाँव क , पकड़ के उनकर टांग फैलाय के, और तोहार सलहज कुल पकड़ के मुठिया के तोहार खड़ा कर के सटाय देंगी, बस धक्क्का मार देना, नहीं तो सलहज कुल आपन मुठ्ठी से जब तोहार गाँड़ मरिहैं तो खुदे गप्पांक से अंदर और तोहार औजार तो स्साला इतना मस्त है जॉन कच्ची कली लेगी या भोंसड़ी वाली तो दुबारा खुदे ,..."



शीला भाभी की बात सुन के मुझे इत्ता जोश आ रहा था की मैं जोर जोर से धक्के मार रहा था , दो बार तो झड़ चूका था इत्ती जल्दी झड़ने वाला नहीं था , मैंने शीला भाभी से कहा,...

आप जो कह रही हैं न मैंने एक सपना देखा था,... एकदम इसी तरह का गुड्डी की बुआ भी थीं मम्मी के साथ और दोनों,...

" अरे तोहार बुआ सास अगर वो कह दिहिन तो पत्थर की लकीर सोच लो , और सपना कब देखे थे "

" सुबह सुबह " मैं अब झड़ने के करीब था था कस के पुश करते हुए बोला।

" अरे तब तो जरूर सच होगा , लेकिन बताना मत, बताने से सपने का असर कम हो जाता है। " शीला भाभी ने चेताया,...

उन्हें तो मैंने नहीं बताया लेकिन चलिए आप लोगों को पता चल जाएगा क्या था सपना ,

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“ये शादी नहीं हो सकती…” एकदम 60 के दशक के फिल्म की तरह ये आवाज गूंजी, और मैं सकते में आ गया। आज ही मैं बनारस आया था ट्रेनिंग से दो दिन की छुट्टी लेकर। आजमगढ़ से भाभी भी आई थी। कल गुड्डी की दोनों मौसी और मौसेरी बहने भी आने वाली थी।



रुकने को तो मैं पुलिस मेस में रुका था, और वैसे भी मई के दूसरे हफ्ते से मेरी फील्ड ट्रेनिंग भी यहीं होने वाली थी और उसके बाद पोस्टिंग भी।



लेकिन दो बार गुड्डी का फोन गया और मैं यहाँ आ गया। हाँ। तय हुआ था की मैं आज रात वापस पोलिस मेस में जा सकता हूँ लेकिन कल से मेरा बोरिया बिस्तर यहीं गुड्डी के घर लगना था।



बात यह थी की कल मेरा इंगेजमेंट था 16 अप्रेल को। और शादी तो 25 मई की बहुत पहले, तय हो गई थी। सारी तैयारियां बहुत धूम धाम से चल रही थी। और शाम से मेरी दोनों सालियां मेरे पीछे पड़ी थी, मझली और छुटकी। मंझली गुड्डी से सिर्फ एक साल छोटी थी, लेकिन छुटकी उससे दो ढाई साल, कच्चे टिकोरे वाली उम्र की लेकिन थी एकदम तीखी मिर्च।
 

komaalrani

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सपने में- बनारसी ससुराल



छोटी सालियाँ और बुआ

“ये शादी नहीं हो सकती…” एकदम 60 के दशक के फिल्म की तरह ये आवाज गूंजी, और मैं सकते में आ गया। आज ही मैं बनारस आया था ट्रेनिंग से दो दिन की छुट्टी लेकर। आजमगढ़ से भाभी भी आई थी।

कल गुड्डी की दोनों मौसी और मौसेरी बहने भी आने वाली थी।

रुकने को तो मैं पुलिस मेस में रुका था, और वैसे भी मई के दूसरे हफ्ते से मेरी फील्ड ट्रेनिंग भी यहीं होने वाली थी और उसके बाद पोस्टिंग भी।

लेकिन दो बार गुड्डी का फोन गया और मैं यहाँ आ गया। हाँ। तय हुआ था की मैं आज रात वापस पोलिस मेस में जा सकता हूँ लेकिन कल से मेरा बोरिया बिस्तर यहीं गुड्डी के घर लगना था।

बात यह थी की कल मेरा इंगेजमेंट था 16 अप्रेल को। और शादी तो 25 मई की बहुत पहले, तय हो गई थी। सारी तैयारियां बहुत धूम धाम से चल रही थी। और शाम से मेरी दोनों सालियां मेरे पीछे पड़ी थी, मझली और छुटकी। मंझली गुड्डी से सिर्फ एक साल छोटी थी, लेकिन छुटकी उससे दो ढाई साल, कच्चे टिकोरे वाली उम्र की लेकिन थी एकदम तीखी मिर्च।



अब उनके घर में रहकर इंगेजमेंट में आना तो ठीक नहीं लगता। इसलिए आज मुझे मेस में जाने की इजाजत मिली थी और कल से इन्गेजमेंट के बाद ससुराल में ही और मम्मी (गुड्डी की मम्मी, लेकिन मेरी हिम्मत नहीं थी, मम्मी के अलावा कुछ कहूँ उन्हें) के कहने से मैंने छुट्टी भी एक दिन बढ़ा ली थी।

बात असल ये थी की इतने दिनों के बाद गुड्डी मिली थी, तन मन दोनों बेचैन था। एक महीने से ज्यादा हो गया था गुड्डी के साथ ‘कुछ किये’ और वो शोख और अदा दिखा रही थी, ललचा रही थी।


हम चारों (मैं, गुड्डी और उसकी दोनों छोटी बहनें) बैठकर चुहल कर रहे थे, और सामने मम्मी बैठी थी, कल के प्रोग्राम की तैयारी में।

तभी गुड्डी की बुआ आई। गुड्डी की मम्मी से दो-तीन साल बड़ी, 37-38 साल की रही होंगी। थोड़ा स्थूल बदन, दीर्घ नितम्बा, उरोज 38डीडी, रंग थोड़ा गेंहुआ।

“ये शादी नहीं हो सकती। मादरचोद, हरामी, छिनार के जने, पता नहीं कहाँ-कहाँ से चुदवा के तुमको पैदा किया, मुझको तो लगता है कुत्ते के पास गई थी पहले।

बूआ जी जोर से गरजीं।



और तभी गुड्डी ने टुकड़ा लगाया, अरे बुआ आपको ये छिपी बात कैसे पता चली। इनकी बर्थ-डे, कातिक के ठीक 9 महीने बाद पड़ती है। बुआ सिर्फ एक पल के लिए मुश्कुराईं फिर चालू हो गईं।

“पहले कुत्ता, फिर गदहा, घोड़ा। ऐसे को हम लोग अपनी लड़की क्यों दें?”

मुझे लगा बुआ मजाक कर रही हैं, लेकिन उनका चेहरा गुस्से में लग रहा था और फिर साथ ही गुड्डी की मम्मी भी, उन्होंने गुड्डी को हुकुम सुनाया-

‘चल तू आ मेरे पास बैठ…”

और गुड्डी मेरा साथ छोड़कर मेमने की तरह उनके पास चली गई। और उन्होंने जैसे कोई छोटे बच्चे को बैठाये, गुड्डी को अपनी गोद में बैठा लिया और उसे दुलराने लगी। और बुआ फिर चालू हो गईं-

“मादरचोद, साले, तेरे सारे खानदान की फुद्दी मारूं, सोचता है की हमारी इस सोनचिरैया को ऐसे मुफ्त में ले उड़ेगा, इसके बदले में…”





मुझे उम्मीद की एक खिड़की नजर आई और मैंने छलांग लगा दी-

“नहीं बुआजी आप। जी, आप जो कहिये…”

बुआजी हल्के से मुश्कुराईं लेकिन फिर चालू हो गईं- “साले, इसके बदले में मैं क्या तेरी गाण्ड लूंगी, भले ही तू कितना नमकीन चिकना लौंडा क्यों न हो। बोल क्या देगा?”

“आप जो बोलिए, बुआ जी…” मैं आलमोस्ट गिड़गिड़ाने की हालत में था।

“और जो मैंने कुछ माँगा और मादरचोद, तेरी गाण्ड फट गई तो?” बुआजी गरजी।




मेरी सालियां भी अब मैदान में आ गईं और मझली बोली- “अरे बुआजी क्या गारंटी की अब तक नहीं फटी है, वैसे आप कहिये तो मैं और छुटकी चेक कर लें…”

“अरे जाने दे यार, चेक करना हो तो इनकी बहनों की करेंगे न, और वैसे भी जीजू, फटने वाली चीज, कभी न कभी तो फटेगी ही…” छुटकी ने और मिर्च डाली।



तीन बार तिरबाचा भरवाया गया, कसमें दिलवाई गई, की बुआ जो मांगेंगीं मैं हाँ करूंगा और वो भी बिना कुछ सोचे समझे, बिना एक पल भी रुके। मुझे सब मंजूर था, लेकिन इतनी मुश्किल से तय हुई शादी पे आँच आये ये कबूल नहीं था। और अब गेंद बुआजी ने अपनी भाभी, यानी मम्मी के पाले में डाल दी थी। और मम्मी ने शर्त साफ की लेकिन मेरी सालियों के जरिये।


“तू दोनों जीजा की चमची हो गई है अभी से, ये साल्ला तेरी बहन ले जा रहा है, तो उसके बदले में कुछ तो उसे देना चाहिए…” और जब तक वो दोनों कुछ बोलती, मम्मी ने ही बात साफ कर दी- “सीधी बात, बहन के बदले बहन, बोल मंजूर…”
 
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बहन के बदले,...




तीन बार तिरबाचा भरवाया गया, कसमें दिलवाई गई, की बुआ जो मांगेंगीं मैं हाँ करूंगा और वो भी बिना कुछ सोचे समझे, बिना एक पल भी रुके। मुझे सब मंजूर था, लेकिन इतनी मुश्किल से तय हुई शादी पे आँच आये ये कबूल नहीं था। और अब गेंद बुआजी ने अपनी भाभी, यानी मम्मी के पाले में डाल दी थी। और मम्मी ने शर्त साफ की लेकिन मेरी सालियों के जरिये।

“तू दोनों जीजा की चमची हो गई है अभी से, ये साल्ला तेरी बहन ले जा रहा है, तो उसके बदले में कुछ तो उसे देना चाहिए…” और जब तक वो दोनों कुछ बोलती, मम्मी ने ही बात साफ कर दी-


“सीधी बात, बहन के बदले बहन, बोल मंजूर…”

“एकदम सही मम्मी, जीजू जल्दी से हाँ बोल दो न, बहन के बदले बहन…” दोनों एक साथ बोली।



“तेरी सारी बहनों पे गुड्डी के सारे नजदीक के, दूर के, गाँव के, मोहल्ले के सब भाई चढ़ेंगे, मजा लूटेंगे, हचक-हचक के कबड्डी खेलेंगे। और तेरी कोई सगी बहन तो है नहीं इसलिए जितनी, चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी नजदीक की, दूर की बहन है, सब पर, हाँ बोलो जल्दी। बहुत काम है मुझे…”

मम्मी ने शर्त साफ की।



मैं एक पल के लिए हिचका।

और मम्मी फिर आग बबूला। मेरे ऊपर भी, सालियों के ऊपर भी-

“तुम सब न, गुड्डी की तरह इसके झांसे में फँस गई। जरा सी बात नहीं मान सकता है, इसकी बहनें पूरे मोहल्ले में बांटती फिरती हैं, ये बहनचोद खुद चोदता होगा और मैंने जरा सा कहा तो फट गई इस गान्डू की, फोन ले आ। कैटरिंग वालों का आर्डर कैंसल करती हूँ, और जरा अपनी मौसी को भी फोन लगा अभी उनकी ट्रेन नहीं चली होगी। उनको बोल दूँ, इंगेजमेंट कैंसल…”

मम्मी गरजीं।

“जीजू प्लीज जल्दी से हाँ बोल दो न, आपके साथ हम दोनों का भी घाटा हो जाएगा, हाँ बोल दीजिये न…” छुटकी मेरे कान में फुसफुसाई।



“हाँ मम्मी हाँ…” हड़बड़ा के मैं बोला।



और अबकी बुआ का नंबर था, मेरी फाड़ने का- “साले, क्या मम्मी, हाँ मम्मी लगा रखा है, बोल खुलकर क्या करवाना चाहता है अपनी छिनार बहनों का?”

“बुआ जो आप कहें, मेरी बहनों के साथ गुड्डी के सब मायकेवालों का…” और आगे मैं खुलकर नहीं बोल पा रहा था, हालांकि मुझे खुलकर अंदाज लग गया था की बुआ और मम्मी मेरे मुँह से क्या कहलवाना चाहती हैं।

“तेरी बहनों के साथ, क्या? साफ-साफ बोल। गुड्डी के मायकेवाले क्या उनकी आरती करेंगे, जय जयकार करेंगे, क्या करेंगे? तू क्या चाहता है?” बुआजी ने बोला।



और मैं एक पल हिचकिचाया।

तो बुआजी चढ़ गई- “साले, मादरचोद, तेरे मुँह में तेरे साल्लों का मोटा लण्ड घुसा क्या है, जो बोल नहीं पा रहा है या अपनी बहन का भोंसड़ा चूस रहा है, बोल जल्दी…”

मम्मी ने अल्टीमेटम दे दिया- “कोई बात नहीं भैया, तुम्हें अपनी बहनें बचाकर रखनी है उनके मायकेवालों के लिए तो रखो, तुम अपने रास्ते हम अपने रास्ते। मैं तीन तक गिनती गिनती हूँ, उसके बाद गुड्डी की ओर नजर भी मत करना…”

उन्होंने तो नहीं लेकिन मेरी दोनों सालियों ने गिनती शुरू कर दी- 1-2…

मेरी फट गई और मैं सब कुछ भूल के बोल पड़ा-

“मेरी सारी बहनें चुदवायेंगी, ममेरी, चचेरी, मौसेरी, फुफेरी, घर की, रिश्ते की सब। सब गुड्डी के भाइयों से, उसके मायकेवालों से आप जिससे कहेंगी उससे चुदवायेगी। मेरा पक्का वादा। एक बार, दो बार जितनी बार वो चाहें, मेरी ओर से फ्री…”

लेकिन मम्मी इतनी आसानी से कहाँ मानने वाली थी। गरजीं-

“साले, बहन के भंड़ुए सिर्फ चुदवायेंगी, और गाण्ड। वो किसके लिए बचाकर रखी हैं? तेरे लिए। तू तो साला खुद गंड़ुवा है, तेरी ससुराल में हचक-हचक के तेरी मारी जायेगी, बोल…”



“और लण्ड चूसने का काम कौन करेगा?” बुआ ने जोड़ा।

मम्मी का हाथ एक बार फिर मोबाइल पर टहलने लगा। और छुटकी ने जोर से कुहनी मारी साथ में कान में फुसफुसाया- “जीजू, यार जल्दी बोलो वरना कहीं मम्मी ने फिर…”

और मैंने हर चीज के लिए सकार दिया-

“हाँ मम्मी, मेरी बहनें न सिर्फ अपनी चूत चुदवायेंगी, गुड्डी के सब मायकेवालों से, जिससे आप कहेंगी उससे, बल्की गाण्ड भी मरवाएंगी, लण्ड भी चूसेंगी। जो इसके मायकेवालों की मर्जी हो, जैसे वो लेना चाहें, आगे से, पीछे से, ऊपर से, नीचे से। हचक-हचक कर चोदें वो, गाण्ड मारें, अपने मोटे लण्ड से उनका मुँह चोदे, सब मंजूर हैं मुझे, प्लीज…”

और अब मम्मी मुश्कुराईं और मझली से - “भाई, इतना गिड़गिड़ा रहा है, तो इस साल्ल्ले की बहनों का कुछ इंतजाम तो करना पड़ेगा। तूने रिकार्ड किया ना…”

“हाँ मम्मी, और लिख भी लिया है स्टाम्प पेपर पे…”

मुश्कुराकर मंझली बोली और अपने हाथ में छिपा हुआ मोबाइल दिखाया और उसकी रिकार्डिंग आन कर दी, सिर्फ मेरी ही आवाज रिकार्ड हुई थी और लग यही रहा था की मैं रिक्वेस्ट कर रहा हूँ की…”



मंझली, छुटकी के साथ गुड्डी भी जोर से मुश्कुराई और छुटकी बोली- “अरे जीजू आपको खुश होना चाहिए की आप थोक भाव में साले बन गए, और आपकी बहनों को कहीं इधर-उधर भटकना नहीं पड़ेगा। कर्टसी मम्मी, पक्का इंतजाम हो जाएगा। सटासट-सटासट, गपागप-गपागप…”

लेकिन बुआ अभी भी संतुष्ट नहीं थी- “तुम दोनों न, जीजा के देखकर फिसल जाती हो। अरे पहले इस सालेकर बहनों की लिस्ट बनवाओ, एक-एक का नाम लिखो, हुलिया लिखो, उम्र लिखो, कहीं एक-दो को छुपा दे तो?”

अब बहुत देर के बाद गुड्डी खिलखिलाई और बोली- “नहीं बुआ, वो ये नहीं कर सकते। कर्टसी फेसबुक पूरी लिस्ट मेरे पास है और लम्बाई, उंचाई, गहराई का हिसाब भी है…”

“सही भाभी होगी तू, अब चल अपने भाइयों से उनकी चुदाई का भी हिसाब रखना…” बुआ बोली।

“जीजू चलो, अब ‘फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट’ की तरह से अपनी सारी बहनों का नाम बताओ, सबसे कच्ची उम्र वाली सबसे पहले। सिर्फ एक मिनट में एंड योर टाइम स्टार्ट नाउ…” मंझली बोली।

मैंने लिस्ट शुरू ही की थी की जोर से आवाज गूंजी- “फाउल, चीटिंग, झूठे, कौवा काटेगा बड़ी जोर से…” और मेरी पतंग उड़ने से पहले काटने वाली और कौन हो सकती थी। गुड्डी।



और जब मैंने उसकी ओर देखा तो मम्मी के बगल में बैठी, अपनी बड़ी-बड़ी गोल-गोल आँखों से घूर रही थी और मेरे देखते ही बोली- “झूठे, मिनी को कहाँ छुपा दिया, तुम हमें उल्लू नहीं बना सकते, पूरी लिस्ट है मेरे पास फेसबुक और व्हाट्सऐप नंबर के साथ…”



बात तो उसकी सही थी। बुआ, मम्मी, मेरी सालियां सब मेरी ओर देख रही थी, घूर-घूर कर। मैं हिचकते हुए बोला- “असल में मिनी है, है तो, लेकिन। लेकिन वो अभी बहुत छोटी है…”



“कितनी छोटी है?” बुआ ने घूरते हुए मुझसे पूछा।



मेरी हालत खराब थी, इत्ती मुश्किल से मम्मी मानी थी और मैं भी समझ गया था बुआ की बात टालने की हिम्मत किसी में नहीं है। किसी तरह बोली निकली- “असल में, बुआजी, असल में वो… वो छुटकी से भी तीन-चार महीने छोटी है, अभी इसलिए…”
 

Sutradhar

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दो बातें हैं , आपने शीला भाभी के प्रसंग का उल्लेख किया था मैंउसे पोस्ट कर रही हूँ

पहली बात है मैंने काफी कहानियों का जिक्र किया है अगर आप किसी ख़ास कहानी में रूचि रखते हों तो वो बता दें , पर मेरी नयी कहानियों पर कमेंट का टोटा बना रहता है. मोहे रंग दे ऐसी नयी कहानी के कुछ चाहने वाले हैं जो उसे शिद्द्त से चाहते हैं, पर कमेंट और व्यूज की दृष्टि से वो हो या छुटकी,... मुझे उसका कोई अफ़सोस नहीं है। लेकिन अगर पुरानी कहानी हो, तो बहुत से लोग इस नाम पर छोड़ देंगे की यह कहानी पहले से पढ़ी हुयी है तो बहुत कम पढ़ने वाले मिलते हैं और कमेंट तो छोड़ ही दीजिये,... मेरी जो पुरानी कहानियां थोड़ा बदल के भी मैंने इस फोरम में पोस्ट की सबके व्यूज चार लाख के आसपास ही हैं,... और मैं पाठको को दोष नहीं देती, एक कहानी को कितनी बार पढ़ेंगे,...

दूसरी बात मेरी पास मेरी पुरानी कहानियां अधिकतर पी डी ऍफ़ फ़ार्म में ही हैं और देवनागरी लिपि में उन्हें वापस वर्ड फ़ाइल में बदलना बहुत श्रम साध्य है , फिर छुटकी नहीं कहानी है और जोरू का गुलाम जिस मोड़ पे पहुंच गई है अधिकार एपिसोड नए ही होंगे , उस समय यह अतिरिक्त समय और श्रम साध्य होगा,

फिर भी आप नाम सुझाइये मैं देखूंगी

आप शीला भाभी में ही देख लीजिये कितने मित्रों के कमेंट्स आते हैं पर मैं यह भी मानती हूँ की सहृदय पाठकों का एक अधिकार है और मैं यथसम्भव कोशिश भी करती हूँ ,

आभार
पूर्णतया सहमत कोमल जी

मैंने अपने एक कमेंट में भी यह स्वीकार किया है कि लेखक का दृष्टिकोण पाठक की तुलना में अधिक व्यापक होता है और व्यावहारिक भी।

सादर
 

komaalrani

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मिनी और छुटकी



“जीजू चलो, अब ‘फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट’ की तरह से अपनी सारी बहनों का नाम बताओ, सबसे कच्ची उम्र वाली सबसे पहले। सिर्फ एक मिनट में एंड योर टाइम स्टार्ट नाउ…” मंझली बोली।

मैंने लिस्ट शुरू ही की थी की जोर से आवाज गूंजी-

“फाउल, चीटिंग, झूठे, कौवा काटेगा बड़ी जोर से…” और मेरी पतंग उड़ने से पहले काटने वाली और कौन हो सकती थी। गुड्डी।



और जब मैंने उसकी ओर देखा तो मम्मी के बगल में बैठी, अपनी बड़ी-बड़ी गोल-गोल आँखों से घूर रही थी और मेरे देखते ही बोली-

“झूठे, मिनी को कहाँ छुपा दिया, तुम हमें उल्लू नहीं बना सकते, पूरी लिस्ट है मेरे पास फेसबुक और व्हाट्सऐप नंबर के साथ…”

बात तो उसकी सही थी। बुआ, मम्मी, मेरी सालियां सब मेरी ओर देख रही थी, घूर-घूर कर। मैं हिचकते हुए बोला-

“असल में मिनी है, है तो, लेकिन। लेकिन वो अभी बहुत छोटी है…”

“कितनी छोटी है?” बुआ ने घूरते हुए मुझसे पूछा।

मेरी हालत खराब थी, इत्ती मुश्किल से मम्मी मानी थी और मैं भी समझ गया था बुआ की बात टालने की हिम्मत किसी में नहीं है। किसी तरह बोली निकली- “असल में, बुआजी, असल में वो… वो छुटकी से भी तीन-चार महीने छोटी है, अभी इसलिए…”

“तुम क्या सोचते हो हमारी छुटकी अभी चुदवाने लायक नहीं है…” कुछ हड़का के कुछ मुश्कुराकर बुआजी बोली।



“बुआ, जीजा के चक्कर में मुझे क्यों घसीट रही हैं?” छुटकी चीखी।

“अरी बुद्धू, तुम समझती नहीं। तेरे भाइयों का फायदा करवा रही थी, एक मस्त कच्ची कली मिलती उन्हें…” बुआजी ने छुटकी को समझाया।
और छुटकी झट से समझ गई। और उसने पाला बदल लिया। मुझे बाद में पता चला की गुड्डी के मायके में बुआ-भतीजी में उसी तरह खुलकर मजाक होता है जिस तरह से ननद-भौजाई में और सिर्फ बातों से नहीं बल्की ‘हर तरह’ से।

और मेरी नाक पकड़कर बोली-

“जीजू, अभी से बेईमानी। लगता है उस माल पे आपका दिल आ गया है। अरे ये बात थी तो बोलते न हमलोगों से। मैं सच कह रही हूँ, आप कह रहे हो छोटी है, अभी बच्ची है और मैं कह रही हूँ वो एकदम आलरेडी चल रही होगी। लगी शर्त, आपके सामने, कोहबर में मैं खुद उसकी बिल में उंगली, एक बार में दो ठेल दूंगी और गचागच घोंटेगी वो। तब तो आपको विश्वास होगा न की छुटकी बहिनिया पूरे मोहल्ले में बाँट रही है…”



बुआजी मुश्कुराई लेकिन सवाल जवाब उन्होंने जारी रखा। मुझसे पूछा-

“बोलो चूचियां उठान है, तो कितनी बड़ी चूची है उस मिनी की। अब ए मत बोलो की उसकी चूची भी नहीं देखे हो…”
मैं भी अब मूड में आ गया था खास तौर पर छुटकी जिस तरह से खुलकर चिढ़ा रही थी और चिपक के बैठी थी। मेरा हाथ उसके छोटे-छोटे उभारों के पास ही था, साइड से। मैंने उसके हाथ के अंदर से अपना हाथ और अंदर घुसेडा और हल्के से उसके कच्चे टिकोरों पे रखकर दबा दिया और मुश्कुराकर बोला-

“एकदम छुटकी की साइज के होंगे…”




छुटकी ने जोर से मेरी जांघ पे चिकोटी काटी। लेकिन बोली मंझली- “वाह जीजू वाह। अपनी बहन के जोबन पे निगाह रखते हो और…”

लेकिन छुटकी ने बात काट दी।–

“अरे दीदी, मेरे बिचारे जीजू को क्यों दोष देती हो। वो साल्ली छिनार, खुद अपनी छोटी-छोटी चूची उभार-उभार के मेरे जीजू को ललचाती होगी। जीजू क्या करेंगे, मन ललच जाता होगा। अच्छा जीजू सच बताना, दबाया मसला भी होगा न, अपनी उस छुटकी बहिनियां का, तभी तो इतना सही अंदाज है…”

जवाब मेरी उंगलियों ने दिया, छुटकी के मटर के दाने ऐसे निपल को पिंच करके।

मुश्किल से उसने सिसकी और चीख दबाई, लेकिन बात बढ़ाई, लेकिन अबकी बार मम्मी से बोली-

“मम्मी, ऐसा है कि कोहबर में ही उसका निवान करवा दो न जीजू से, बिचारे जीजू का मन भी रह जाएगा और उस मिनी रानी का भी…”



लेकिन बुआजी ने तुरंत वीटो कर दिया-


“एकदम नहीं, ई साल्ला झूठ बोल रहा था न, अब तो जो सबसे मोटा खूंटा होगा न कम से कम एक बित्ते का, और खूब मोटा, उसी से उस मिनी की फड़वाऊँगी, वो भी एकदम सूखे-सूखे। हचक-हचक के चोदेगा जो रगड़-रगड़कर, फाड़कर रख दे। एक रात में छोटी से बड़ी हो जायेगी। ऐसा मस्त माल है तो हमारे लड़के मजा लेंगे…”



छुटकी भी, उसने ऐसा मुँह लटका लिया जैसे उसकी मर्जी की कोई बहुत बड़ी बात नहीं मानी गई हो। बीच बचाव किया मम्मी ने और बिना अपनी ननद की बात काटे-


“बुआ की बात तेरी एकदम सही है। उसकी तो ऐसा फाड़ने वाला हम इंतजाम करंगे, जो पहले धक्के में सीधे बच्चेदानी तक पेलेगा…”

लेकिन फिर उन्होंने बुआ से रास्ता निकालने का आग्रह किया-

“लेकिन अब छुटकी कह रही है तो कुछ उसका भी, आखीरकार, उसके जीजा भी तो अब हम ही लोगों की तरफ के हो गए हैं और फिर अपनी सारी बहनें उन्होंने गुड्डी के मायकेवालों के लिए खुली छूट…”

मतलब समझकर बुआ ने छुटकी को मनाते बोला-

“हे चल मुँह मत लटका, जीजा की चमची। चल तेरे जीजा के लिए भी इंतजाम करती हूँ। अगवाड़ा तेरे भाइयों के लिए और पिछवाड़ा तेरे जीजू के लिए, अब हो जा खुश। अपने हाथ से अपने जीजू का औजार पकड़कर उस ननद छिनार की गाण्ड में खुद लगाना, कोहबर में हम सबके सामने…”

वास्तव में छुटकी के चेहरे पे 440 वाट की मुश्कान चमक उठी और वो मुझसे बोली-

“जीजू आपने सपने में भी नहीं सोचा होगा की ऐसी दिलदार साली मिलेगी। देखा कैसे आपकी मस्त सेटिंग करा दी, अपनी कुँवारी ननद की आपसे, वो भी कोहबर में सबके सामने। बाद में साल्ली मुकर भी नहीं पायेगी, वीडियो रिकार्डिंग भी करवाऊँगी…”




“लेकिन उसने कुछ नखड़ा वखड़ा किया तो?” मंझली ने शक किया।

और जवाब बुआ ने दिया-


“सालियों तुम सब किस मर्ज की दवा हो, मार-मारकर साल्ली छिनार का चूतड़ लाल कर देना चांटे से। हिम्मत उसकी तेरे जीजू को मना करे। अरे कुतिया की तरह निहुराऊँगी, तुम दोनों पकड़े रखना और ये रंडी को। एक धक्के में पूरा पेल देगा, छिनार की गाण्ड में सीधे जड़ तक। ऐसा चिल्लाएगी कि सारे गाँव में सुनाई देगा।

कैसे चूतड़ है उसके?” बुआजी ने अबकी मुझसे पूछा।

दोनों सालियां, गुड्डी, मम्मी मुझे देख रही थी।

“बुआ, छोटे-छोटे हैं, लेकिन मस्त टाइट हैं…” मैं तुरंत बोल पड़ा।



“एकदम लौंडो माफिक…” बुआ ने कनफर्म किया।

“हाँ बुआ एकदम, बिलकुल वैसे…” मैंने ताईद की।

“तब तो खूब मस्त होगी गाण्ड मारने में, क्यों भाभी?” बुआ ने मम्मी की ओर बात मोड़ दी।

और आगे का मोर्चा मम्मी ने सम्हाल लिया-

“तेरी तो किश्मत खुल गई बहन के भंड़ुए, बस एक बात लेकिन समझ लो, कोहबर में हम सबके सामने अपनी छुटकी बहनियां की गाण्ड मारनी होगी, और वो भी खूब हचक-हचक के, हर धक्के में पूरा औजार अंदर होना चाहिए। जब गाण्ड मारकर हथियार बाहर निकले तो साली की गाण्ड रंडी के भोंसड़े से भी चौड़ी होनी चहिए…”

जुगलबंदी में अब बुआ का नंबर था, वो चालू हो गईं-

“अगर एक बार भी तुमने धक्का हल्का लगाया तो सोच ले बबुआ, तोहार लौंड़ा निकालकर हम आपन मुट्ठी पेल देब, उहो पूरे कुहनी तक। सोच लिहा। और एक बार मुट्ठी अंदर घुसेड़ देब गाण्ड में, त रउआ सोच ल, गाण्ड के अंदर कमल खिलाय देब। सोच लिहा…”

“और हम दोनों ननद भौजाई मिलके चढ़ाई करेंगे सारी रात सोच लो, एक की मुट्ठी उस छुटकी की गाण्ड से बाहर निकलेगी तो दूसरे की अंदर। हफ्ते भर तक गाण्ड परपारयेगी जैसे कोई मूसल से डालकर उसके गाण्ड में मिर्चा कूट दिया हो, सोच लो। उसकी गाण्ड में कुहनी तक पेलवाना है, हम दोनों से, या तुम उसकी गाण्ड मारोगे…” मम्मी ने च्वायस दी जो कोई च्वायस नहीं थी।



मंझली के मन में हमेशा सवाल गूंजता था। वो बोली- “हमारे जीजू का गोरा कोरा, उसके पिछवाड़े अंदर जाएगा तो, फिर, बाहर निकलेगा तो…”

उसकी बात पूरा होने के पहले बूआ ने जवाब दे दिया और हड़काया भी-

“तुँहूं न, अरे साफ-साफ काहें न बोलती की लण्ड में गाण्ड का रस, मक्खन लग जाएगा। ता तोहार ननद पंचभतरी कौन मरज की दवा है। गाण्ड मरहैं ऊ, अपने भैया के मोटे लौंड़े क मजा लेइहें ऊ, त साफ कौन करी। उहै छिनरो, रंडी मिनी, चाट चूट के चूस-चूसकर साफ करिहें…”
“लेकिन चूसे चाटे में जीजा का दुबारा टनटना गया तो?” मंझली के सवालों का अंत नहीं था।

“तुम भी न दीदी, जीजू दुबारा उसकी मार लेंगे। कहीं डाक्टर ने कहा है क्या की वो सिर्फ एक बार मरवाएगी। आखीरकार, इनकी सारी बहनों का काम ही यही है…” छुटकी ज्यादा समझदार थी, उसने जवाब दिया।



लेकिन मम्मी के सवाल का जवाब नहीं मिला था और वो मेरे मुँह से सुनना चाहती थी तो उन्होंने फिर पूछा-

“बोल तू मारेगा गाण्ड उस छिनार की, की हम दोनों ननद भौजाई मिलकर उसे मुट्ठी का…”

उन की बात खत्म होने के पहले ही मैं बोल पड़ा- “नहीं मम्मी, मैं मारूंगा मिनी की गाण्ड, आप जैसे कह रही हैं वैसे हचक-हचक कर, पूरा लण्ड पेलकर। उसे चुसाऊँगा भी चटवाऊँगा भी गाण्ड से निकालकर…”

और स्लिप पे छुटकी ने कैच कर लिया- “देखा बुआ, कैसे ये भी अपनी बहनों की तरह छिनरपना कर रहे थे कि छोटी है। अब खुदे कबूल रहे हैं की हम सबके सामने वो इनसे गाण्ड मरवाएगी, हचक-हचक कर…”
 
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लिस्ट - ( सपना बनारस की ससुराल का )




उन की बात खत्म होने के पहले ही मैं बोल पड़ा- “नहीं मम्मी, मैं मारूंगा मिनी की गाण्ड, आप जैसे कह रही हैं वैसे हचक-हचक कर, पूरा लण्ड पेलकर। उसे चुसाऊँगा भी चटवाऊँगा भी गाण्ड से निकालकर…”

और स्लिप पे छुटकी ने कैच कर लिया- “देखा बुआ, कैसे ये भी अपनी बहनों की तरह छिनरपना कर रहे थे कि छोटी है। अब खुदे कबूल रहे हैं की हम सबके सामने वो इनसे गाण्ड मरवाएगी, हचक-हचक कर…”

इसके साथ मिनी का किस्सा खतम हुआ और मैंने लिस्ट आगे बढ़ाई। लेकिन मेरी रगड़ाई कम नहीं हुई। बुआ और मम्मी के हमले थोड़े हल्के पड़े, लेकिन उसकी जगह मेरी दोनों छोटी सालियों के तीरों ने ले लिए। मंझली तो पूरी एकाउंटेंट, वो भी मुंशी टाइप बन गई।

पहले तो नाम, फिर उम्र और रिश्ता, चचेरी, ममेरी मौसेरी या कुछ और, और उसके बाद उभार की साइज। सब कुछ अपने मोबाइल में भी रिकार्ड कर रही थी और एक कागज पर दर्ज भी कर रही थी। और साथ में दोनों के व्यंग्यबाण-

छुटकी बोलती- “दीदी, वाह। एक से एक माल। जीजू ने तो पूरा हरम सजा रखा है…”

और जवाब में मंझली, नोट करते बोलती- “नहीं री छुटकी, हरम नहीं, रंडीखाना है हमारे जीजू का…”



“अरे तो क्या जीजू से भी पैसा लेती हैं?” मुँह पर हाथ रखकर चकित होने का नाटक करती, छुटकी पूछती।

“अरे न जीजू से लेंगी, न हमारे भाइयों, गाँववालों से; बाकी से तो पैसा जीजू ही लेते हैं, आन लाइन बुकिंग, क्रेडिट कार्ड ऐक्सेप्टेड, इंटरनेट वाले भंड़ुए हैं अपने बहनों के, क्यों जीजू?” मंझली जवाब देती।

“जीजू तो मालामाल हो गए होंगे?”

“अरे पगली, इतने माल हैं तो मालामाल तो हो ही जाएंगे…”

बीच में मैंने एक बुआ की लड़की की उम्र बताई 19 साल और फिगर 34सी, तो एक बार फिर मम्मी मैदान में आ गई-

“क्यों तुमने भी दबाया है उसका क्या, जो इस उम्र में इतनी मस्त साइज हो गई?”



“नहीं मम्मी, मैंने नहीं दबाया। बस ऐसे ही है…”

“झूठे, इस उम्र में और ये साइज, पूरे कालेज मोहल्ले में दबवाती मिजवाती होगी, छिनार। लेकिन भैया, मैं अगर तुम्हारी बात मान लेती हूँ की तुमने उसके जोबन का रस नहीं लूटा न, तो इसका मतलब तुम एकदम बुद्धू हो। घर में गंगा बह रही है और तुमने एक डुबकी तक नहीं लगायी। चूतड़ कैसे हैं छिनार के…” मम्मी फुल फार्म में आ गईं।

“भारी-भारी है मम्मी। खूब गदराये कम से कम 35” इंच साइज के होंगे…” मैंने बोला।



“अरे तो उसे कुतिया बनाकर चोदना चाहिए था न…” बुआ बोली।

“मम्मी, मैं आपसे कह रही थी न की ये थोड़े ज्यादा ही सीधे हैं…” इतनी देर से चुप गुड्डी भी बोलने लगी।

“अरे सीधे हैं की बुद्धू हैं, बहने इतनी चुदवासी, चुदक्क्ड़ और ये बिचारा, भूखा प्यासा। चल कोई बात नहीं, एकदम ट्रेनिंग दे दूंगी, तेरी सारी बहनों पर तुझे चढ़ाऊँगी…” मम्मी चहक कर बोली।



“सिर्फ बहनों पर?” बुआ ने अपनी भौजाई से मुश्कुराकर, आँख मारकर पूछा।

मम्मी का जवाब छुटकी की बात में दब गया- “जीजू देखा आपने, मम्मी कित्ती अच्छी हैं। सिर्फ मेरे भाइयों का नहीं मेरे जीजू का भी इतना ख्याल रखती हैं…”

“और जीजू, एक बात सोचिये न, हमारे गाँव के सारे लड़के अब आपके जीजू हो जायंगे…” मंझली चुप रहने वाली थोड़े ही थी।




मैं जो कर सकता था मैंने वही किया। लिस्ट आगे बढ़ाई। और जब शादीशुदा बहनों का नाम आया तो बुआ फिर चालू हो गईं-

“शादी की तारीख, पहला बच्चा कब हुआ? सब कुछ।

और पहली में ही मैं पकड़ा गया।

“अरे साढ़े सात महीने में ही पहला बच्चा, गाभिन करके भेजा था क्या? सही किया, लेकिन बच्चा तुमको मामा बोलता है की पापा? शकल तो जरूर तुमसे मिलती होगी?” बुआ ने छेड़ा।



“आप भी न इसके पीछे पड़ जाती हैं, सही तो किया पराये घर में इसकी बहन के मर्द, देवर ननदोंई सब तो चढ़ते होंगे, तो उसने भी पहले ही पेट फुला कर भेज दिया…” मम्मी बोली।

मंझली क्यों चुप रहती- “जीजू की बहनों की एक्सप्रेस डिलिवरी होती है मम्मी और कोई बात नहीं…” उसने जोड़ा।

लिस्ट पूरी हुई, कुल 14 जिसमें चार शादीशुदा थी।

मंझली ने एक बार फिर से जैसे किसी ने इलेक्शन में री काउंटिंग मांगी हो, उसी तरह फिर से गिना उंगली रखकर, और एक-एक के नाम बोलकर। गुड्डी ने सिर हिला के समर्थन किया कि मैंने कोई बेईमानी नहीं की है, इतनी ही हैं। और मंझली ने फाइनल स्कोर अनाउंस किया, चौदह।

फिर एक साथ बुआ और मम्मी की गालियों की बौछार चालू हो गई-

“गान्डू साले, भँड़वे, बहनचोद, तेरे सारे मायकेवालियों की फुद्दी मारूं, इतनी चाची, मौसी, बुआ और वो भी रंडी को मात करने वाली घर-घर घूम के चुदवाने वाली, और सिर्फ 14 लड़कियां पैदा की। छिनार क्या कंडोम लगाकर चुदवाती थी अपने यारों से, की कम्पाउण्डर यार से मिलकर पेट गिरवाती थी। मैं तो सोच रही थी कम से कम तीन-चार दर्जन होंगी, हमारा गाँव गुलजार हो जाएगा, लेकिन सिर्फ 14…”

मैं इसका जवाब क्या देता, लेकिन नाराजगी का कारण जाहिर हुआ, मम्मी की अगली बात से।

“साले, गंड़ुवे, तेरी इन छिनार लौंड़े की भूखी बहनों के लिए मैंने भरौटी, चमरौटी, ग्वालापूरा यहाँ तक की पठान टोला से भी चुन के 33 लड़कों को इकठ्ठा किया था, सब एक से एक गबरू जवान, पहले धक्के में ही बच्चेदानी तक पेलते, और 4 राउंड से कम कोई नहीं चोदने वाला। हचक-हचक के और मलाई भी सीधे बच्चेदानी में, कोई कंडोम का खर्च नहीं। लेकिन 14 में कैसे?”





और मम्मी ने बात आगे बढ़ाई ,

"अभी से सब सांडे का तेल लगाकर मुठिया रहे हैं अपना बित्ते भर का लण्ड। माना, तेरी बहनों की चूत में आग लगी रहती है, तो एक साथ दो-दो चढ़वाऊँगी सब पे। और दो से कम में छिनरो की चुदवास भी कम नहीं होगी…”

लेकिन बात काटकर अबकी संशय जाहिर किया, छुटकी ने- “मम्मी, दो-दो एक साथ कैसे चढ़ेंगे?”

जवाब दिया बुआजी ने- “अरी मेरी प्यारी बिन्नो, तू क्या समझती है तेरे जीजू साले ही गंड़ुवे है। इसकी बहने भी गाण्ड मराने की उतनी ही शौकीन है। मोटे से मोटा लण्ड गपागप गाण्ड में लिलेंगी। एक चूत में दूसरा गाण्ड में, खूब रगड़ता, दरेरता गाण्ड फाड़ता घुसेगा न उन छिनारन की गाण्ड में तब असली मजा आएगा उन सबको। टांग फैलाये घुमेगीं, पूरी दुनियां को मालूम हो जाएगा हचक के गाण्ड मारी गई है उन सालियों की…”






बुआ जब तक ये समझा रही थी, मंझली कुछ अपने मोबाइल पे जोड़ भाग कर रही थी। चहक कर वो बोली-

“मम्मी सिंपल। एक पे दो-दो चढ़ेंगे न, जीजू की बहनों पे तो चौदह के लिए 28 का इंतजाम हो गया। अब बचे पांच, तो उनपर एक साथ-साथ तीन-तीन। और हाँ वो पांच लकी कौन होगी, या तो लाटरी निकाल लेंगे या फिर जीजू बता देंगे…”



“लाटरी वाटरी कुछ नहीं इहे तय करेंगे और यहाँ से लौटने के पहले नाम बता के जाएंगे…”

मम्मी मेरी ओर इशारा करके बोली। फिर उन्होंने और मिर्च डाली-

“और ऊ जो तोहार सबसे कच्ची कली है, जो तू कह रहे थे छुटकी से भी छोट है, त कहाँ गाँव के लौंडन क मन इतना जल्दी भरी। उसको यहीं छोड़ देना, और चौथी की रसम अबकी 6 दिन के बाद निकली है, त चौथी में तोहार छुटकी बहिनिया भी लौट जाएंगी उनहिंन के साथ।

तब तक गाँव क मजा ले लेगी, गन्ना क खेत, अरहर क खेत, तू कह रहे थे न एकदम छोट है, त देखना जब लौटेगी त तोहार लड़कौर बहिन हैं न उंहु क नंबर डकाय देयी…”



मम्मी बोली।

हमारे इलाके में चौथी की रस्म में, बिदाई के चार दिन बाद, दुल्हन के घर से उनके परिवार के लड़के लड़कियां चौथी लेकर आते हैं.

“हाँ मम्मी हाँ, एकदम सही आइडिया…” मेरी दोनों सालियां समवेत स्वर में बोली।



मेरे पास कोई च्वायस थी क्या, मैंने भी हामी भर दी। मुझे लगा की अब कल के इंगेजमेंट पर कोई खतरा नहीं लेकिन मम्मी ने दूसरा पत्ता फेंक दिया, और वो भी अपनी बेटियों पे।





मेरी सालियों से वो बोली- “अरे सालियों, तुम सबको खाली अपनी ननदों के मजे की पड़ी है, उनके लिए दो-दो, तीन-तीन का इंतजाम कर दिया और मेरी समधनों का क्या होगा? उनकी भी तो लिस्ट बनाओ इस साले से कबूलवाओ की…”
 
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गजब है शीला भाभी भी ।।। पढ़ डाला अब तक का सारा। जबरदस्त हो कोमल तुम।। लाजवाब
बहुत बहुत धन्यवाद,... कभी टाइम निकाल के मोहे रंग दे और मेरी बाकी कहानियां भी पढ़िएगा। 🙏🙏🙏🙏🙏
 

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Or kon kon si story hai tumhari komal

मोहे रंग दे,

छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

 
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