Update 21
अब आगे
दोनो भाई बहन इस तरह पूरे नंगे एक दूसरे की बाहों में समाए हुए चिपके रहते हैं। नंदिनी धीरे धीरे राजा विक्रम के बालों में अपनी उंगली फिराती रहती है और कुछ सोचती रहती है। तभी विक्रम पूछ पड़ते हैं
कैसा लगा आज का सम्भोग दीदी। तुम खुश तो हो न।
हा, विक्रम बहुत आनन्द आया आज। और एक बात कहूं,,,तुम रक्षाबंधन के दिन बहुत अच्छा चोदते हो, पूरे जोश में।
दीदी ये तुम्हारे द्वारा मेरे लिंग पर बंधे गए राखी का कमाल है। आज के दिन मैं तुम्हारी सील और इज्जत की रक्षा करने का वचन देता हूं और तुम्हें हमेशा खुश रखने का वचन देता हूं और कुंवारी बहन की इससे बड़ी खुशी की बात क्या हो सकती है की उसे रक्षबंधन के दिन यौन सुख प्राप्त हो। यह एक भाई का वचन है की तुम्हे कोई तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध नहीं चोद पाएगा, जब तक तुम उसे अनुमति ना दो।
अरे वाह रे, मेरा प्यारा सा छोटा भाई, कितना समझदार हो गया है, कितनी बड़ी बड़ी बातें कर रहा है। लेकिन मेरी खुशनसीबी है कि मुझे तुम जैसा भाई मिला जो मेरे सील की रक्षा करने को किसी हद तक जा सकता है।
और ये कह कर नंदिनी राजा विक्रम को अपनी आगोस में ले लेती है।
इधर राजमाता देवकी के कक्ष में राजा माधो सिंह के राज पुरोहित विवाह की तिथि निश्चित करने को आ पहुंचे थे। राजमाता दासियों को राजकुमारी नंदिनी को बुलाने को भेजती है जो उनके कक्ष में जाती हैं। उन्हें वहां न पाकर वे दरबार में जाती हैं। लेकिन नंदिनी वहां भी नहीं मिलती । तो दासियां वापस आकर राजमाता देवकी को बताती हैं कि नंदिनी उन्हें नहीं मिल पा रही है। राजमाता देवकी समझ जाती है की नंदिनी अवश्य अपने भाई के पास होगी। तो वह स्वयं नंदिनी को लाने राजा विक्रमंके कक्ष की ओर चल देती है ।
राजा बिक्रम अपने कक्ष में इसलिए निश्चित थे कि किसी को उनके कक्ष ने बिना उनकी आज्ञा के प्रवेश की अनुमति नहीं थी। लेकिन राजमाता देवकी आज उनके कक्ष में जा रही थी। द्वारपाल ने देवकी के कक्ष के मुख्य द्वार पर पहुंचते ही उन्हें आदर पूर्वक राज कक्ष के गलियारे के पास लाकर छोड़ दिया।
वहां से देवकी अकेले विक्रम के कक्ष की ओर चल देती है और जैसे ही वह राजा बिक्रम के कक्ष में प्रवेश करती है सामने शैय्या पर राजा विक्रम और नंदिनी को नंगे बदन एक दूसरे से चिपके देखती है और झेंप जाती है।
इधर राजा विक्रम और नंदिनी को कक्ष किसी के कदमों की आहट सुनाई पड़ती है तो उनकी तंद्रा टूट जाती है। दोनो हड़बड़ाहट में जैसे ही उठते हैं सामने राजमाता को देख कर ठंडी सांस लेते हैं। राजा विक्रम कहते हैं
ओह, अच्छा है, आप हैं माते, हम तो डर ही गए थे
ये कह कर दोनो भाई बहन नंगे अपनी माता के सामने खड़े हो जाते हैं । देवकी विक्रम के लंद पर वीर्य की बूंदे और नंदिनी के जननानंगों के आस पास सूखे वीर्य को देख कर समझ जाती है कि दोनो के बीच में जबरदस्त chudai हुई है।
तभी दोनों भाई बहन नंगे ही आगे बढ़ कर साथ में झुक कर अपनी माता देवकी के चरण स्पर्श करते हैं और नंदिनी कहती हैं
माते आज हम भाई बहनों का त्योहार है। हमें आशीर्वाद दे माते।
इस पर देवकी दोनों को उठाती है और राजा बिक्रम को कहती है
आयुष्यमान भव, यशस्वी भव, विश्वविजयी भव पुत्र।
और राजकुमारी नंदिनी को कहती है
दूधो नहाओ पूतो फलो पुत्री, ईश्वर जल्दी तुम्हारी कोख भरे पुत्री। तुम दोनों ऐसे ही खुश रहो मेरे बच्चो, प्रत्येक वर्ष ऐसे ही खुशी खुशी रक्षाबंधन मनाओ।
ये सुन कर नंदिनी शरमा जाती है और विक्रम की आंखों में देखती है और फिर देवकी के गले लग कर अपना मुंह छिपा लेती है। फिर देवकी विक्रम को भी अपने सीने से लगा लेती है ।
नंदिनी शर्म से अपनी आंखे बन्द की रहती है जिसे विक्रम देख लेते हैं और उन्हें मौका मिल जाता है। वे धीरे से एक चुम्बन देवकी के गालों पर दे देते हैं जिससे देवकी सिहर जाती है और राजा विक्रम को आंखे दिखा कर झूठा गुस्सा दिखाती है और दोनों को दबोच लेती है। फिर अचानक विक्रम देवकी के होंठों को चूम लेते हैं जिसे देवकी मना करती है।
लेकिन राजा विक्रम को ऐसे अपनी माता को परेशान करने में मजा आ रहा था और वो अपने एक हाथ से देवकी के चूचुक चोली के ऊपर से ही दबा देते हैं तथा देवकी का एक हाथ अपने लिंग पर रख देते हैं जिससे देवकी गरम होने लगती है।
नंदिनी को अब जोरो की पेशाब लगी थी तो वह अपनी माते से अलग होती है और कहती है
मुझे बहुत जोरों की पेशाब लगी है, मैं स्नानघर में पेशाब करने जा रही हूं और स्नान भी कर लूंगी। पूरे शरीर में चिपचिपा महसूस हो रहा है
और ये कह कर नंदिनी स्नानघर में चली जाती है
इधर नंदिनी के जाते ही राजा विक्रम कस कर अपनी माता देवकी को जकड़ लेते हैं और देवकी भी विक्रम को कस कर पकड़ लेती हैं और अपने वक्ष विक्रम के सीने पे रगड़ने लगती हैं और आहें भरने लगती हैं और राजा विक्रम के लिंग को मुट्ठी में पकड़ कर सहलाने लगती हैं। राजा विक्रम मदहोश हो जाते हैं। तभी स्नानघर से पानी गिरने की आवाज आती है जिससे दोनो का ध्यान भंग होता है और दोनों अलग हो जाते हैं।
अलग होते ही देवकी की नजर राजा विक्रम के खड़े लन्ड पर पड़ती है जिस पर राखी बंधी थी जिसे देख कर देवकी कहती है
अच्छा तो भाई बहन की राखी बंध गई। पुत्र तुम ऐसे ही अपनी बहन की सील की रक्षा करते रहना।
जी माते, जैसा आपका आदेश। वैसे माते यदि आप बुरा न माने तो कुछ पुछु आपसे।
पूछो पुत्र पूछो
माते आपने सहज ही हम भाई बहन का ये रिश्ता स्वीकार कर लिया। इसके लिए हम दोनो सदा आपके आभारी रहेंगे। किंतु आपने कल कहा था कि तुम्हारा लिंग तुम्हारे ननिहाल पर भी गया है। तो क्या माते आपने अपने घर में किसी का, मामा या मौसा, किसी का लिंग देखा है क्या।
राजा विक्रम एक सांस में ये कह जाते हैं। इस पर राजमाता देवकी का चेहरा लाल हो जाता है जिसे देख कर विक्रम कहते हैं।
कोई जबरदस्ती नहीं है माते, आप ना बताए तो कोई बात नहीं।
तब देवकी कहती है
आप बातों को बहुत पकड़ने लगे हैं पुत्र। आपका लिंग तो आपके पिताश्री के समान है
और ये कह कर मुस्कुराने लगती हैं
तब विक्रम कहते हैं
आप बातों को घुमा रही हैं माते, यदि आप ना बताना चाहे तो कोई बात नहीं।
ऐसी कोई बात नहीं है पुत्र। चलो आज रक्षाबंधन है इसलिए मैं बताती हूं। हां, मैने अपने छोटे भाई, तुम्हारे मामा का लिंग देखा है। सच कहूं तो तुम्हारा लिंग बहुत हद तक तुम्हारे मामा से मिलता है, वही गुलाबी सुपाड़ा, सुन्दर सा। आपके पिताश्री के लिंग का सुपाड़ा लाल रंग का था। लेकिन पुत्र जीवन में पहला लिंग मैने आपके पिताश्री का ही देखा है।
ये सुन कर राजा विक्रम रोमांचित हो उठते हैं और कहते हैं
इसका मतलब आपने पिताश्री से शादी होने के बाद अपने छोटे भाई का लिंग देखा था
हा पुत्र, बिल्कुल सही समझा आपने।
इधर काफ़ी विलम्ब होने पर राजपुरोहित रांझा से देवकी के बारे मे पूछते हैं। तब रांझा भी देवकी को खोजती हुई राजा विक्रम के कक्ष की ओर चल देती है और जैसे ही वह कक्ष में दाखिल होती है राजा विक्रम को अपनी मां के सामने लन्ड खड़ा किए देखती है जिस पर राखी बंधी थी। वह मुंहफट तो है ही, सो बोल पड़ती है
मन गई भाई बहन की राखी।
राजा विक्रम भी कोई काम नहीं थे। अपना लन्ड रांझा को दिखाते हुए बोले
हा धाय मां, मन गई हमारी राखी।
जिससे रांझा झेंप जाती है, लेकिन अपनी नजर विक्रम के लन्ड से भी हटा पाती है जिससे विक्रम के लिंग में तनाव आने लगता है।
ये देख कर देवकी मुस्कुराने लगती है और कहती हैं
क्यों रांझा, बहुत पसंद आया क्या तुम्हे मेरे पुत्र का लिंग।
इस पर रांझा झेंप जाती है लेकिन कहती है
राजन का लिंग इतना आकर्षक है कि नजरे ही नहीं हट रही,,,
इस पर देवकी कहती है
तो पकड़ ले ना इसका लिंग, नहीं तो मुझसे बातें करते करते परेशान करेगी
और झट से रांझा का हाथ पकड़ कर विक्रम के लन्ड पर रख देती है जिससे दोनो उत्तेजित महसूस करते हैं। तभी विक्रम आगे बढ़ कर देवकी का लहंगा उठाते हुए कहते हैं
धाय मां, उस दिन मैंने आपकी योनि हल्की हल्की देखी थी। आज रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर अपनी योनि के दर्शन कराइए ना।
इस पर देवकी आगे बढ़ कर रांझा का घाघरा उठा देती है जिससे रांझा की योनि विक्रम के आंखों के सामने आ जाती है जिसे देख कर विक्रम के मुंह से निकल जाता है
सुन्दर, अति सुन्दर,,,तभी मैं कहूं कालू क्यो आपका दीवाना है
और ये कह कर राजा विक्रम रांझा की योनि को सहला देते हैं। और तभी स्नानघर से राजकुमारी नंदिनी के निकलने की आहट होती है तो रांझा विक्रम के लन्ड पर से अपना हाथ हटा लेती है और देवकी भी रांझा का घाघरा छोड़ देती है।