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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Bittoo

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Update 36

रत्ना जब गुफा की ओर बढ़ती है तो बीच में देव को एक शिला पर बैठे देखती हैं और कहती हैं

यहां क्यों बैठे हो देव,,,

देव ,,,,, मां, मै आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था। आज आपने काफी विलम्ब किया स्नान करने में।

रत्ना,,, हां पुत्र, आज कई दिनों के बाद मृदा स्नान किया है, इसलिए आज विलम्ब हुआ है। वैसे तुम इतनी देर से मेरी प्रतीक्षा क्यों कर रहे थे। गुफा में जा कर तुम्हें फलों का सेवन करना चाहिए था।

देव,,,, माते, आपको तो पता ही है कि आपके बिना मैं कुछ भी नहीं खा सकता। तो आज कैसे खा लेता।

रत्ना,,, ओहो, तो इतना प्यार है मेरे पुत्र को मुझसे, जो मेरे बिना खाना भी नहीं खा सकता।

बेचारी रत्ना को क्या पता था कि उसका प्यारा पुत्र उसका इन्तजार नहीं कर रहा था बल्कि अभी उसे नंगी नहाते हुए देख रहा था, और तो और अभी उसने उसके नंगे स्तनों के दर्शन भी कर लिए हैं और अपना लन्ड भी हिला चुका है।

दोनो मां बेटे ऐसे ही बात करते गुफा की ओर चल पड़ते हैं। और ऐसे ही समय भी बीतता रहता है। दोनो मां बेटे सुबह साथ में अगल बगल बैठ कर शौच करते और फिर झील में नहाने जाते। राजकुमार देव का तो यह प्रतिदिन का नियम हो गया था कि जल्दी से नहा कर रानी रत्ना की ओर चले जाते और पेड़ के पीछे से छुप कर रानी रत्ना को नंगी नहाते देखते और उनके नंगे और खूबसूरत स्तनों का दीदार करते। देव अपनी मां के नंगे स्तनों को देखते और धोती में से अपने लन्ड को निकाल कर खुब रगड़ते। धीरे धीरे देव अपनी मां के प्रति आसक्त होते जा रहे थे। होते भी क्यों ना, रानी रत्ना इतनी सुन्दर जो थीं और उस पर से उनके नंगे स्तन कहर बरपाते थे, भले ही देव ने बचपन में उन्हीं स्तनों से दूध पीया था। एक बात और भी थी कि इस घने जंगल में स्त्री के नाम पर एक मात्र रत्ना ही थी जिसे देव देखते थे और धीरे धीरे देव रत्ना को स्त्री वाला प्यार करने लगे थे। वही हाल रानी रत्ना का भी था। रत्ना भी इस घने जंगल में केवल अपने पुत्र देव के साथ ही थी जिसने अपनी जान की बाजी लगा कर रत्ना की जान कई बार बचाई थी। रानी रत्ना भी तो अब अपने पुत्र देव को एक पुरूष के रूप में देखने लगी थी और प्रतिदिन शौच के समय चोरी से नजरे बचा कर देव के लन्ड को देख लिया करती थी। रात में या भोर में जब देव सो रहे होते और उनका लन्ड धोती में खड़ा रहता, तब भी रत्ना देव के लिंग का धोती के ऊपर से ही जी भर कर दीदार कर लेती थी। बेचारे देव को क्या पता था कि उसकी मां रत्ना भी उसी तरह उसकी दीवानी बनती जा रही है जिस तरह से वो अपनी मां का दीवाना बनता जा रहा था। लेकिन अभी तक देव की किस्मत ने इतना साथ नहीं दिया था कि वो अपनी मां रानी रत्ना की नंगी बुर का दीदार कर सकते। क्योंकि रत्ना नहा कर जैसे ही झील से बाहर निकलने वाली होती, देव वहां से चले जाया करते थे। इसलिए वो अभी तक रत्ना की बुर नहीं देख पाए थे।

एक दिन दोनो मां बेटे जंगल में फल फूल संग्रह के लिए घूम रहे थे और काफी आगे निकल गए थे। तो उन्हे कई सारे विभिन्न प्रकार के फल मिले जो उन्होने पहले कभी नहीं देखे थे। तभी देव को एक छाल दिखी जो बहुत ही मुलायम थी और दोनों मां बेटे को ओढ़ने के लिए काफी थी। इस पर देव कहते हैं

देव,,, मां, देखो ना कितना प्यारा छाल है। हमें ओढ़ने के काम आएगा।
रत्ना,,, हां पुत्र, लगता है यह किसी महापुरुष का छोड़ा हुआ है। चलो अच्छा है। अब रात की ठंड में हमे आराम मिलेगा।
रत्ना के कहने पर देव उस छाल को समेट कर तह कर लेते हैं और उसे लेकर वापस लौट चलते हैं। तभी रत्ना को एक पेड़ पर पका आम दिखता है जिसे देख कर रानी रत्ना कहती हैं

रत्ना,,, देखो देव , कितना पका हुआ आम है। कई दिनो बाद ऐसा पका आम देखा है।
देव,,, हां माते, मैं जानता हूं कि आम आपको बहुत प्रिय है। रुकिए, इसे पत्थर मार कर मैं गिरा देता हूं।

रत्ना,,, नहीं पुत्र, पत्थर से आम जमीन पर गिर कर फट जायेगा। या कहीं पत्थर आम पर ही लगा तो आम फिर फट जायेगा।
देव,,, लेकिन ये आम बिल्कुल फूनगी पर लगा है। इसे तो पेड़ पर चढ़ कर भी नहीं तोड़ सकते।
रत्ना,,, तो आओ पुत्र, मैं तुम्हे उठाती हूं और तुम आम तोड़ लेना।
तब देव रत्ना के आगे आते हैं और रत्ना उन्हें कमर पकड़ कर उठाती हैं लेकिन रत्ना देव को उनकी कमर से ज्यादा नही उठा पाती। जिससे देव आम तक नहीं पहुंच पाते हैं। रत्ना ने कई दिनों बाद देव को इतने करीब से दबोच कर पकड़ा था। रत्ना पुरूष संसर्ग के लिए तो तड़प ही रही थी और इस तरह देव को पकड़ने से उसकी स्त्रियोचित भावनाएं जागने लगी। उसे देव को इस तरह जकड़ना अच्छा लग रहा था। लेकिन अभी वो अपनी भावना को समझ नहीं पा रही थी। जब वो देव को ज्यादा नहीं उठा पाई, तब देव को उसने नीचे उतार दिया और कहा

रत्ना,,,, अब इससे उपर मैं तुम्हें नहीं उठा सकती। ऐसा करो, तुम ही मुझे उठा लो ताकि मैं ही आम तोड़ सकूं।

ऐसा बोल कर रत्ना देव की ओर मुड़ जाती हैं तो देव रत्ना को कमर पकड़ कर उठाते हैं। देव ने पहली बार होश में रत्ना को पकड़ कर उठाया था। तभी रत्ना कहती हैं

रत्ना,, थोडा सा और उठाना पड़ेगा देव, थोडा और बचा हुआ है, थोड़ा और उठाओगे तो मैं आम तक पहुंच जाऊंगी।

इस पर देव रत्ना को थोडा उछालते हुए ऊपर करते हैं और रत्ना को उसके घुटनों के पास से जकड़ कर उपर उठाते हैं जिससे रत्ना आम तक पहुंच जाती है और आम तोड़ लेती है । लेकिन इस दौरान रत्ना को पकड़े रहने से देव का चेहरा अपनी मां की नाभी के नीचे पेड़ू से सटा हुआ था जिसकी मादक खुशबू देव को मदहोश कर रही थी। देव ने अपना चेहरा उत्तेजनावश रत्ना की पेडू में दबा लिया था जो उसकी योनि से थोड़ी ही उपर थी और वहां झांटों की हल्की शुरुआत भी हो रही थी जो देव को मदहोश कर रही थी। इस मदहोशी का असर देव के लिंग पर भी हो रहा था। इस वक्त देव ने रत्ना को अपनी मां के रूप में नहीं, बल्कि एक स्त्री के रूप में उठाया हुआ था। उन्हें महसूस हो रहा था कि उन्होंने एक सुन्दर स्त्री को अपनी गोद में उठाया हुआ है और यही सोच कर देव का लन्ड पूरे जोश में खड़ा था।
इधर रत्ना भी जब आम तोड़ लेती है तब उसे इस बात का भान होता है कि उसके पुत्र ने अपना चेहरा उसकी नाभी में दबाया हुआ है। कई दिनों के बाद अपनी नाभी और पेडू पर किसी पुरूष के चेहरे का स्पर्श रत्ना को मस्त कर रहा था। उसके बेटे ने उसे जबरदस्त तरीके से जकड़ा हुआ था। उसे अपने पुत्र की छुवन मतवाला बनाए जा रही थी। वह यह भुल गई कि वह आम तोड़ने के लिए उपर उठी थी। दोनों मां बेटे इसी तरह कुछ देर तक खडे़ रहे और कामाग्नि में जल रहे थे। तभी रत्ना का ध्यान भंग होता है और वह देव से खुद को नीचे उतारने को कहती है। तब देव धीरे धीरे रत्ना को नीचे उतारते हैं लेकिन अपने हाथों का घेरा बनाए रखते हैं। जब रत्ना नीचे उतरती हैं तो देव का चेहरा उनके पेट को छूता हुआ स्तनों के बीच से होते हुए रत्ना के चेहरे के सामने आ जाता है। देव का लन्ड तो खड़ा रहता ही है जो रत्ना के पेडू से सट जाता है जिसे रत्ना भी महसूस करती है। अपने पेट पर अपने पुत्र के लन्ड का अहसास पाते ही रत्ना के मुंह से आह निकल जाती है जिसे देव सुन लेते हैं। देव ने अभी तक रत्ना को अपने बाहों में जकड़ा हुआ था जिससे रत्ना के स्तन देव की छाती में धंसे हुए थे और इस छुवन से उत्तेजनावश रत्ना के स्तन कड़े हो गए थे। ना तो देव रत्ना को छोड़ रहे थे और ना ही रत्ना देव के आगोश से बाहर आ रही थी। आग दोनों ओर बराबर जो लगी थी। दोनों मां बेटे के चेहरे आमने सामने थे और दोनों की सांसे तेज चल रही थी और दोनों एक दूसरे की सांसों की गर्मी को महसूस कर रहे थे। दोनों की नज़रे नीची थी और दोनों को एक दूसरे के होठ दिख रहे थे । अनायास ही देव ने अपने होंठ रत्ना के होठों की ओर बढ़ा दिया और रत्ना ने भी धीरे से अपना मुंह आगे कर चुम्बन की स्वीकृति दे दी। लेकिन जैसे ही देव रत्ना के होंठों पर अपना होंठ रखने वाले होते हैं, रत्ना को यह अहसास होता है कि वह ये क्या कर रही है, अपने ही पुत्र के साथ चुम्बन लेने जा रही है। ऐसा सोचते ही उसने तुरन्त अपना चेहरा पीछे किया और अपने हाथ में लिए आम को देव को दिखाते हुए थोड़ी हकलाती हुई बोली
आम, देखो आ अ आ आम, आम तोड़ लिया मैंने, अच्छे हैं न!!
इस पर देव एक बार आम को देखते हैं और फिर उनकी छाती में धंसे रत्ना के स्तनों को देख कर कहते हैं


हां मां, आम बहुत अच्छे और रसीले हैं!!

अपने स्तनों को देख कर ऐसा बोलते देख रत्ना शरमा जाती है और कहती हैं
अब चलें पुत्र, काफी समय हो गया है।
इस पर दोनों मां बेटे गुफा की ओर चल पड़े। देव के हाथों में छाल थी और रत्ना के हाथ में आम और कुछ दूसरे फल भी थे। देव की धोती में अभी भी उनका लन्ड खड़ा था, तो वहीं रत्ना के स्तनों में अभी भी कड़ापन था। आज की घटना से एक बात तो स्पष्ट हो गई थी कि आग दोनों ओर बराबर लगी थी और आज यदि रत्ना ने स्वयं को ना रोका होता तो दोनों मां बेटे के होंठ चुम्बन कर चुके होते। इस घने एकान्त जंगल में एक स्त्री पुरुष का एकान्त में साथ रहना दोनो के रिश्तों को भुलाकर केवल स्त्री पुरूष के सम्बंध के लिए काफी था। रत्ना भी मन में यही सोच रही थी कि

हाय देव की बाहों में कितना सुखद अहसास हो रहा था। पता नहीं कब तक मैं अपने आप को संभाल पाऊंगी। आज यदि सही समय पर ध्यान नहीं आया होता तो अनर्थ हो सकता था।

इधर देव भी यही सोच रहे थे,,,

वास्तव में मां कितनी सुन्दर है और उनकी शरीर से कैसी मादक खुशबू आ रही थी जो मुझे पागल बना रही थी। उनकी नाभी से तो अप्रतिम सुगन्ध आ रही थी और उनके स्तन मेरी छाती में कितने प्यार से धंसे थे, ये तो वही स्तन हैं जिनका दीदार मैं प्रतिदिन करता हूं। काश मां ने बीच में न टोका होता तो मैं तो उनके होंठों को चूम ही लेता ,!!!!!

यही सोचते सोचते दोनों मां बेटे अपनी गुफा में पहुंच जाते हैं और दोनों फल खा कर छाल ओढ़ कर आराम करने लगते हैं। फिर ऐसे ही समय बीतता गया। दोनों मां बेटे साथ में शौच करते, फिर नहाने जाते और फिर देव छुप कर अपनी मां रानी रत्ना को नहाते देखते। लेकिन कहते हैं ना कि होनी की कोई नही टाल सकता। सो वही हुआ। एक दिन देव रत्ना को नहाते हुए देख रहे थे और रत्ना झील में अपने नंगे स्तनों को रगड़ रगड़ कर नहा रही थी और उन्हें मसल रही थी। देव भी अपना लन्ड मसल रहे थे। जब रत्ना नहा कर बाहर निकलने को हुई तो प्रतिदिन की भांति देव भी पेड़ के पीछे से वापस लौटने को मुड़े। लेकिन आज देव जहां खड़े थे वहां की मिट्टी झील के किनारे होने के कारण कमजोर थी और उनके पीछे घूमते ही वहां की मिट्टी धंस गई और इस कारण से देव भी नीचे गिर गए और मिट्टी के साथ भरभराते हुए नीचे गिर गए और झील के खुले किनारे की ओर आ गए।

इधर रानी रत्ना ने भी जब आवाज सुनी तो आवाज की ओर देखा और देखा कि पेड़ो के पीछे से देव भरभराती मिट्टी के साथ नीचे आ गए। उन्हें यह समझते देर न लगी कि देव पेड़ के पीछे से उन्हें नहाते देख रहे थे। देव उठे तो सामने अपनी मां रानी रत्ना को बिना कपड़ों के इतने नजदीक से देखा। उनके नंगे स्तन देव को साफ दिख रहे थे जिस पर गुलाबी स्तनाग्र स्तन की शोभा बढ़ा रहे थे। कमर के नीचे रानी रत्ना पानी में थी लेकिन पानी की सतह पर उनकी झांटे हल्की हल्की दिख रही थी। रानी रत्ना का ये नग्न रूप देख कर देव को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ कि क्या कोई स्त्री इतनी सुन्दर भी हो सकती है ? देव खड़े होते हैं तो धोती में उनका लन्ड खड़ा रहता है और वो रत्ना को देख कर अपना लन्ड मसल देते हैं। तभी रत्ना की तंद्रा टूटती है और वह अपने दोनों हाथों से अपने स्तनों को छुपा लेती है। इस पर देव को भी होश आता है और वह तुरन्त वहां से गुफा की ओर भाग जाते हैं। इधर रत्ना भी हतप्रभ रह गई की उसका पुत्र ही उसे नंगी नहाते देख रहा था। वह भी कपड़े पहन कर गुफा की ओर चल पड़ती है। आज की घटना के बाद दोनों मां बेटे मे पूरे दिन कोई बात चीत नहीं हो रही थी और दोनों एक दूसरे से नजरें चुरा रहे थे । इसी तरह पूरा दिन बीता और दोनों ने रात का खाना भी खा लिया। अब प्रतिदिन की भांति रत्ना सोने के पहले गुफा के बाहर पेशाब करने जाती है। लेकिन बिक्रम गुफा के अंदर ही रहते हैं। रत्ना अपनी जगह बैठी रहती है लेकिन पेशाब नहीं कर रही होती है। तभी रत्ना को पीछे से किसी के आने का अहसास हुआ। देव भी धीरे से आकर अपनी जगह पर आकर बैठ जाते हैं। जब देव आ जाते हैं तब रत्ना पेशाब करना शुरु करती है और देव भी पेशाब करने लगते हैं। देव आज पेशाब करने में कोई बदमाशी नहीं करते हैं और चुपचाप सराफत से पेशाब करते हैं। पेशाब करने के बाद भी दोनों मां बेटे ऐसे ही बैठे रहते हैं। दोनों कुछ नहीं बोलते हैं, ना ही अपनी जगह से उठते ही हैं। रात का अंधेरा और सन्नाटा था।दोनो कुछ देर तक ऐसे ही चुप बैठे रहते हैं। तब चुप्पी तोड़ते हुए देव कहते हैं

माते, सुबह की घटना के लिए मैं लज्जित हूं।

इस पर रानी रत्ना तो जैसे चौंक जाती हैं मानों किसी चिन्तन से बाहर आई हों और बस इतना ही कहती हैं

ऊ हूं हूं ऊं

और फिर आगे कहती हैं

तुम कबसे मुझे ऐसे देख रहे थे नहाते ।

देव को यह आशा नहीं थी कि उसकी मां उससे ये पूछेंगी। वो तो सोच रहे थे कि पक्का आज डांट पड़ेगी। तब उन्हें सच बोलने के अलावा कोई जवाब नही सुझा और शायद वे भी आपस में खुल कर संवाद करना चाह रहे थे । तब देव कहते हैं
मै उस दिन से आपको नहाते देख रहा हूं माते जिस दिन आपने मृदा स्नान किया था और स्नान करने में विलम्ब किया था। मै आपको खोजते हुए गया और अपको स्नान करते हुए देखा।

तब रत्ना कहती है
लेकिन ये गलत है न पुत्र। अपनी मां को नहाते देखना कितना गलत है। कोई जवान पुत्र अपनी मां को नहाते देखता है क्या भला।

तब देव तपाक से बोल पड़ते हैं
जिसकी मां इतनी सुन्दर हो उसका पुत्र तो उसे नहाते देखेगा ही।

रत्ना,,,, क्या कहा तुमने हां!!! ऐसे कोई अपनी मां के बारे में बोलता है क्या
देव,,,, क्षमा करें माते। यदि आपको मेरी बात का बुरा लगा हो तो। आगे से नहीं बोलूंगा।
लेकिन औरत तो औरत होती है उसे अपनी सुन्दरता की प्रशंसा कैसे बुरी लग सकती है।
रत्ना,,, नहीं पुत्र ऐसी बात नहीं है,, मुझे तुम्हारी बात का बुरा नहीं लगा

देव,,, वही तो मैं कह रहा था, सुंदर को सुन्दर कहने मे गलत क्या है। आप सुन्दर है तो मैने कह दिया।

रत्ना,,, ठीक है, सुंदर को तुमने सुंदर कह दिया। लेकिन मैं यह सोच कर शर्म से गड़ी जा रही हूं कि मेरा पुत्र मुझे इतने दिनों से छुप कर मुझे नंगी नहाते देख रहा था और पता नहीं मेरा क्या क्या देख चुका होगा ।

देव,,, माते , मैं क्या करता , आप नंगी इतनी खूबसूरत दिखती हैं कि मैं आपकी खूबसूरती से बंधता चला गया । आप इतनी सुन्दर है तो इसमें मेरा क्या कसूर है। लेकिन मैंने केवल अपको कमर से ऊपर नंगी देखा है, कमर से नीचे नहीं। आपके पानी के निकलने के पहले ही मैं वहां से चला जाया करता था।

रत्ना,,, छी, तुम कितने बेशर्म हो गए हो देव।

देव,,, इसीलिए तो मै भी शर्मिन्दा हूं मां। लेकिन मै ये कैसे कह दूं कि मुझे अच्छा नहीं लगा। मै खुद ही अपनी भावनाओं को समझ नहीं पा रहा हूं।

ऐसा कह कर देव चुप हो जाते हैं। दोनों कुछ नहीं बोलते। लेकिन रत्ना को भी ये बातें अच्छी लग रही थी। आखिर वो भी तो अंतर्दवंद से जूझ रही थी। अब वो देव को कैसे बताती कि वो छुप छुप कर देव के लिंग को देखती है और तो और वह ये कैसे बता दें कि वह उसके लन्ड को पकड़ भी चुकी है। वह खुद कामवासना की आग में जल रही थी। मन के कोने में कहीं न कहीं रत्ना को इस बात की खुशी भी थी कि उसका पुत्र भी उसके तरफ आकर्षित है और उसे स्त्री के रूप मे देख रहा है क्योंकि रत्ना खुद ही देव के आकर्षण मे बंधी थी। दोनों मां बेटे कुछ देर बैठे रहते हैं और फिर दोनों उठ कर गुफा में सोने चले जाते हैं।
रात में अब हल्की ठंड हो रखी थी और जंगल में तो वैसे भी रात में ठंड हो जाया करती है, तो दोनों मां बेटे छाल ओढ़ कर सो गए थे। अच्छा हुआ था जो ओढ़ने के लिए उन्हें छाल मिल गई थी, नहीं तो ठंड में दोनों को बहुत परेशानी हो जाती। आज की बात से देव के अन्दर इतनी हिम्मत तो आ गई थी कि वह अपनी मां से कुछ खुल कर बातें कर पा रहा था और शायद रत्ना को भी देव के मुंह से अपनी नंगी खुबसूरती की प्रशंसा अच्छी लग रही थी।
दोनों मां बेटे सुबह उठते हैं और फिर दोनों साथ में शौच के लिए जंगल में चले जाते हैं। अब तो दोनों साथ में ही शौच के लिए बैठा करते थे और आपस में बाते भी करते थे। अब तो दोनों थोड़ा खुल भी गए थे। दोनों साथ में बैठ कर शौच कर रहे थे तो रत्ना को लन्ड देखने की इच्छा हुई, उसने अपनी नजरे देव की ओर घुमाई और देव के लिंग का दीदार किया। लेकिन देव रत्ना को देख रहे थे और उनकी नज़रों का पीछा कर वे जान गए कि मां उनका लन्ड देखना चाह रही है। देव को बड़ा अचम्भा भी हुआ और वह ये समझ गए कि मां भी लन्ड के लिए तड़प रही है। उन्होने अपनी कमर थोड़ी आगे कर ली ताकि रत्ना लंड को ठीक से देख सकें। रत्ना भी देव से कल की बात आगे बढ़ाना चाह रही थी लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह बात कैसे आगे बढ़ाए। तभी देव कहते हैं

माते, आप ऐसे नंगी खुले में मत नहाया कीजिए। चलो मैं था तो कोई बात नहीं थी लेकिन यदि कोई और होता तो खुद पर काबू नहीं कर पाता।

इस पर रानी रत्ना कहती हैं
इस घने जंगल में तेरे सिवाय कोई और है कहां, जो मै डरूं
देव,,,, इसका मतलब आपको मेरे देखने से कोई डर नहीं है , मैं अपको नहाते देख सकता हूं, है न!!

रत्ना,,, नहीं , मैंने ऐसा तो नहीं कहा कि तुम मुझे नहाते देख सकते हो। राजकुमार आप बातों में उलझाना बखूबी सीख गए हैं।।।

देव,,, ऐसा नहीं है मां, । लेकिन एक बात तो है मैने आपको नहाते तो देख ही लिया है। एक बात कहूं। पिताश्री बहुत किस्मत वाले हैं जो उन्हें आप जैसी खुबसूरत स्त्री पत्नी के रूप में मिली जो इतनी गोरी सुंदर और आकर्षक रूपवान है। पिताश्री तो आपको देखते ही लट्टू हो गए होंगे।
रत्ना,,, धत्त, अपनी मां से कोई ऐसी बात करता है क्या
देव,,, मैने ऐसा क्या गलत कह दिया मां, सही तो कहा है, आपकी सुन्दरता की प्रशंसा ही की है। कोई भी पुरूष भाग्यशाली ही न होगा जिसकी पत्नी इतनी सुन्दर हो, उसके स्तन इतने गोरे बिल्कुल संगमरमर की तरह हो और उस पर गुलाबी चुचुक तो मन को ही मोह लेते हैं। आप नहीं जानती मां आप के नंगे स्तन कितने सुन्दर लगते हैं। सच में, पिताजी तो आपके इन सुंदर स्तनों को देख कर इन्हें बिना मसले मानते ही नहीं होंगे। शायद पिताजी क्या कोई पुरुष काबू नहीं कर पाता।मां, मैं सही कह रहा हूं ।
रत्ना,,, तो आपने कैसे खुद को काबू किया ,, ( रत्ना बातों बातों में यह बोल तो जाती है लेकिन तभी उसे अहसास हुआ कि उसने गलत बोल दिया)
देव,,, अब क्या कहूं मां कैसे काबू किया मैंने खुद को ।
इस कामुक वार्तालाप से देव का लन्ड पूरा खड़ा हो जाता है और धोती से बाहर निकल आया जिसे तिरछी नजरों से देख कर रानी रत्ना आहें भर रही थी। इधर ये बातें कह कर देव चुप हो जाते हैं। कुछ देर तक दोनों चुप चाप बैठे रहते हैं। लेकिन रत्ना को ये चुप्पी काट रही थी और उसे देव के मुंह से खुली बातें सुनना अच्छी लग रही थी। वह देव के मुंह से और बातें सुनना चाह रही थी, इसलिए वह सन्नाटे को तोड़ते हुए बोली,,,
रत्ना,,, लेकिन एक बात पूछूं पुत्र,,, आपने मुझे कमर के नीचे तो नंगी नहीं देखा ना ,,
देव समझ गए कि रत्ना को उनकी बातें अच्छी लग रही हैं और वो और बात करना चाह रही हैं, तब देव कहते हैं
देव,,,, मैं इतना खुशकिस्मत कहां मां, जो मै आपको कमर के नीचे नंगी देख पाता।
रत्ना,,, छी, कैसी बातें करते हैं आप राजकुमार, वो भी मेरे यानि अपनी मां के बारे में
देव,,, तो इसमें गलत क्या कह रहा हूं मां। कोई भी पुरूष इतनी सुन्दर स्त्री को कमर के नीचे नंगी देखना ही चाहेगा ना।
रत्ना,,, मतलब, तुम मुझे कमर के नीचे भी नंगी देखना चाहते थे
देव इस बार बात को बदल देते हैं और कहते हैं
लेकिन एक बात है माते, मुझे लगता है जब पिता जी ने आपको कमर के नीचे नंगी देखा होगा तब तो वो पागल ही हो गए होंगे। वो तो आपको बिना पकड़े माने ही नहीं होंगे
रत्ना,,, जैसे, तुमने मुझे कल आम तोड़ते हुए जकड़ा हुआ था, है न,,,
यह बोल कर दोनो मां बेटे एक दूसरे को देखते हैं और मुस्कुरा देते हैं। रानी रत्ना की नजर देव के लंड पर पड़ती है जो उत्तेजना के मारे कुलाचें मार रहा था। रानी रत्ना की योनि भी उत्तेजना से पनिया गई थी और देव के खड़े लंड को देख कर पानी छोड़ दी थी।

तब रत्ना कहती हैं
चले पुत्र, आज काफी देर तक बाते हो गई
फिर दोनो मां बेटे प्रतिदिन की भांति नित्य क्रिया हेतु झील की ओर चल देते हैं। दोनों एक बात तो समझ चूके थे कि दोनों को ये बातें अच्छी लग रही हैं और दोनों अब खुल कर बातें भी कर रहे हैं।
दिन भर दोनों मां बेटे फल संग्रह और सुखी लकड़ियों को इकट्ठा करने में व्यस्त रहे और अंधेरा होने के बाद उन्होने खाना खाया और खाना खा कर दोनो गुफा के अंदर एक पत्थर के चबूतरे पर आमने सामने बैठ गए और बाते करने लगे।
रत्ना,,, पता नहीं राज्य में क्या हो रहा होगा

देव,,, सब ठीक होगा माते,

रत्ना,,, मुझे भी पूरा विश्वास है कि महाराज युद्ध में विजयी रहे होंगे, और जल्दी ही हम अपने राज्य वापस लौटेंगे।
देव,,, हां माते, मुझे भी पूरा विश्वास है। माते आपको भी हल्की ठंड लग रही है क्या। आप कहे तो छाल को अपने पैरों पर डाल दे क्या

रत्ना,,, हां पुत्र, डाल दो ना, मुझे भी हल्की ठंड लग रही है
इस पर देव छाल को अपने और रत्ना के पैरों पर डाल देते हैं और दोनों गुफा की दीवार से टेक लेकर बैठ कर बात करते रहते हैं। दोनों आमने सामने बैठे थे इसलिए दोनों के पैर एक दूसरे से छू भी रहे थे।

देव,,, मां यहां जंगल में कितनी शान्ति है न

रत्ना,,,, हां ये तो है और हां कितने तरह के फल हैं यहां जो हम जानते भी नहीं थे

देव,, और कल जो वो आम अपने हाथों से तोड़ा था वो कितने अच्छे थे

रत्ना,,, हां देखा, कितने रसीला और मीठा था

देव,,,, हां, लेकिन आपके आम से अच्छा नहीं था ( देव ने रत्ना के स्तनों के तरफ इशारा करते हुए मुस्कुराते हुए कहा)
पहले तो रत्ना नहीं समझी , लेकिन जब समझी तब वो भी मुस्कुराते हुए बोली
रत्ना,,,,, छी : , बड़े बेशरम होते जा रहे हो तुम, कोई अपनी मां से ऐसे बात करता है भला
और ये बोल कर रत्ना मुस्करा देती है। उसे भी ये बातें अच्छी लग रही थी। इसी बीच छाल के अन्दर देव और रत्ना ने थोड़े पैर फैलाए क्योंकि पहले दोनों पैर चढ़ा कर बैठे थे लेकिन जैसे ही इन्होंने पैर फैलाए ऐसी स्थिति बनी की रत्ना के दोनों पैरों के बीच में देव का पैर और देव के दोनों पैरों के बीच में रत्ना का पैर आ गया। रत्ना के पैर तो छोटे थे और देव के पैर लम्बे।
देव,,, सही कह रहा हूं मां, आपके आम उस पेड़ पर के आम से अच्छे हैं
रत्ना,,, मुस्कुराते हुए,, ठीक है ठीक है, बहुत हो गई मां की प्रशंसा
इसी क्रम में देव अंगड़ाई लेते हुए अपने पैर के पंजों को आगे की ओर मोड़ते है। लेकिन पंजे आगे मोड़ने से ऐसा कुछ हुआ जिसकी कल्पना ना तो देव ने , ना ही रत्ना ने की थी। हुआ ये कि देव का पंजा सीधे रत्ना की बुर से सट गया जिससे रत्ना की सिसकी निकल गई। देव को भी रत्ना की बुर की झांटे अनुभव हुई। देव ने तुरन्त अपने पंजे पीछे कर लिए। लेकिन उसे यह बहुत अच्छा लगा, वही रत्ना को भी यह अच्छा लगा। देव और रत्ना फिर ऐसे ही बाते करते रहे और एक बार फिर देव ने जान बूझ कर अपने पैर का पंजा आगे मोड़ा और फिर से रत्ना की योनि से सटा दिया और इस बार थोड़ा दबा भी दिया जिससे रत्ना चिहुक गई। लेकिन इस बार देब ने अपने पंजे रत्ना की बुर से नहीं हटाया। और अपना पंजा रत्ना की बुर से सटा कर बातें करने लगा।

देव,,, मां मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं। आप हो इतनी सुन्दर!!! आपकी सुन्दरता की ख्याति ऐसे ही सब जगह नहीं है।
रत्ना,,, मुस्कुराते हुए कहती है,, हा ये बात तो है, जब तुम्हारे पिता जी ने मुझे पहली बार देखा था तो वो मुझे देखते ही रह गए थे, वो तो नंदिनी दीदी ने आकर खांसा तब जाकर तेरे पिताजी ने मुझसे नजर हटाई।

देव,, वही तो, मैं जानता था कि जरुर ऐसा ही हुआ होगा
देव ये बोलते रहे और अब धीरे धीर अपने पंजे को जो रत्ना की बुर से सटा था, उससे रत्ना की बुर सहलाने लगे। वो रत्ना से बाते भी कर रहे थे और उसकी बुर भी सहला रहे थे।
देव,,, मां, आप तो दुलहन के जोड़े में और भी सुंदर दिख रही होंगी

रत्ना,,,, ऊ ऊ ऊ हु हू ऊ ऊ,,, अब सभी तो ऐसा ही कह रहे थे

रत्ना के मुंह से अब आवाज नहीं निकल रही थी बल्कि आह निकल रही थीं। क्योंकि देव उनकी योनि को सहला रहे थे। देव को थोड़ा डर भी लगा कि कहीं कुछ ज्यादा तो नहीं हो रहा, तो उन्होने अपने पैर रत्ना की बुर से हटाना चाहा और अपने पैर हल्के से हटाया। इधर रत्ना को जैसे अहसास हुआ कि देव अपने पैर हटा रहा है उसने अपनी जांघों से देव के पैर को दबोच लिया जिससे देव को बड़ा अचंभा हुआ। वो कहते है न कि स्त्री की जब कामभावना प्रबल हो जाती है तो वह सब कुछ भुल जाती है,,,वही अभी रत्ना ने भी किया। देव को तो अच्छा लग ही रहा था, तो अब देव लगातार रत्ना की बुर को अपने पैर से सहलाए जा रहे थे।
दोनों बात तो कर रहे थे लेकिन बुर सहलाई का मजा भी ले रहे थे। दोनो ऐसे व्यवहार कर रहे थे मानों इन्हें पता ही न हो की छाल के नीचे देव अपने पैर से रत्ना की बुर सहला रहा है। दोनों आपस में सामान्य बातचीत भी किए जा रहे थे। देव कहते हैं
मै जानता हूं आप बहुत खूबसूरत लग रही होंगी, जब आज आप इतनी सुन्दर लगती हैं, तो आप अपने विवाह के समय तो और खूबसूरत दिखती होंगी

रत्ना,,, मै इतनी सुन्दर लगती हूं तुम्हें

देव,, ,, हां मां, इस पर भी कोई शक है क्या

इस पर रत्ना हल्का मुस्कुराती है। रत्ना बुर के सहलाने से कामवासना से भर गई थी और वो कहती हैं
क्या अच्छा लगा तुम्हें मुझमें

देव,,, सब कुछ मां, आपका पूरा नंगा बदन, आपके गोरे सुडौल स्तन जो हमेशा कसे रहते हैं और ये गुलाबी चुचुक,,, और,,,,, सब कुछ मां, सब कुछ

रत्ना,, तुम ऐसे ही झूठ बोलते हो, अब मैं बूढ़ी हो गई हूं, मुझमें अब क्या आकर्षण पुत्र

रत्ना अब काम भावना से ओतप्रोत हो गई थी। एक तो देव की कामुक बातें और दूसरा उसके बुर सहलाने से उसकी काम भावनाएं भड़क गई थी और उसे भी अपने पुत्र के साथ कामुक वार्तालाप अच्छा लग रहा था। तब देव कहते हैं
मै झूठ नहीं बोल रहा हूं माते, आप कहां बूढ़ी हुई हैं !!! दो दो बच्चों को जन्म देने के बाद भी आपका बदन अभी भी कसा हुआ है। लगता ही नहीं है कि आप दो जवान बच्चों की मां हो । कोई देखे तो अभी भी आपको कुंवारी ही समझ ले। और अभी भी आपको राजकुमारों के रिश्ते शादी के लिए आ जाएं

रत्ना,,, ,, कहां बदन कसा हुआ है मेरा, । झुर्रियां तो पड़ गई है चेहरे पे

देव,,,,, सही कह रहा हूं मां, अपने स्तन तो देखो कितने कसे और सुडौल हैं। इन्हें ही तो नहाते समय नंगी देख कर मेरा लन्ड खड़ा हो जाता है और मैं अपने हाथों से अपना लन्ड मसल मसल कर आपके नंगे स्तन का दीदार किया करता था।
रत्ना कामुक वार्तालाप और बुर सहलाई से उत्तेजित हो कर अपने चरम के करीब तक पहुंच जाती है और जैसे ही देव ने लन्ड का नाम लिया , वो चुहुक जाती है और झड़ जाती है। आज पहली बार अपनी मां के सामने देव ने लन्ड शब्द का प्रयोग किया था और उत्तेजना के मारे उसकी योनि भलभला कर झड़ जाती है और अपनी योनि से पानी की धार बहा देती है । देव के तलवे पर रानी रत्ना की योनि का योनि रस लग जाता है। रत्ना को अपनी इस हरकत से बहुत आत्मग्लानि होती है। वह अपने पैर समेत कर उठती है और बाहर पेसाब करने चली जाती है। पीछे से देव भी पेशाब करने चले जाते हैं, आखिर दोनो मां बेटे साथ में र्पेशाब जो करते हैं

To be continued
बहुत ही कामुक और उत्तेजक अपडेट
देर से लेकिन अद्भुत धीमा यौन वार्तालाप 👌👌
 

rajeshsurya

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Waah kya vaartalaap chala maa bete mein. Aise hi kaamuk aur ashleel baate hojaaye pyar se aur dono chudai karne ki aasha ek dusre se jataake sex karenge baate karte hue tho aur accha hoga bhai. Aur jungle mein tho bahut jagah hogi chudai ke liye. Mast hoga. Thanks bhai.
 

Ravi2019

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Update 37

दोनों मां बेटे साथ में बैठ कर पेशाब करते हैं। लेकिन कोई कुछ बोलता नहीं है। देव तो कुछ बोलना चाहते थे। लेकिन रत्ना को ग्लानि महसूस हो रही थी और मन में सोच रही थी कि ये मैंने क्या कर दिया!! अपने ही पुत्र के पैर से अपनी योनि सहलवा ली और सहलवाई ही नहीं बल्कि उसके सहलाने से मैं झड़ भी गई। कहते हैं ना कि यौन संतुष्टि प्राप्त के बाद स्त्री हो या पुरूष, उसे संसार से कुछ क्षण के लिए वैराग्य हो जाता है, तो उसी अवस्था में अभी रानी रत्ना भी थी। उसे लग रहा था कि यह संसार तो नश्वर है। उस पर काम भावना इतनी हावी हो गई है कि वह अपने पुत्र से ही अपनी योनि सहलवा ली, जबकि वह एक पतिव्रता नारी है।
रत्ना इसी सोच में डूबी रही और फिर पेशाब कर के चुप चाप गुफा में गई और सो गई। देव आगे बात तो करना चाहते थे लेकिन अपनी मां को चुप देख कर उन्होंने भी कुछ बोलना उचित नहीं समझा। वो भी चाहते थे कि थोड़ा सम्भल कर चलना ही उचित रहेगा । अतः देव भी गुफा में जा कर सो जाते हैं।
सुबह रत्ना की नींद पक्षियों की चहचहाट से खुलती है। आज की सुबह रत्ना को नई सुबह लग रही थी। रात में तो वह झड़ने के बाद ग्लानि महसूस कर रही थी। लेकिन रात भर में वह ग्लानि गायब हो गई थी और अब उसपे काम भावनाएं फिर हावी हो रहीं थी। और ऐसा होना लाजिमी भी था। झड़ने के बाद स्त्री हो या पुरूष उसे वैराग्य हो ही जाता है और यहां रत्ना ने तो अपने पुत्र से ही अपनी योनि सहलवा ली थी इसलिए उसकी वैराग्य की भावना रात में और गहरी हो गई थी। लेकिन रात भर में उसकी ग्लानि और वैराग्य दोनों छूमंतर हो गए थे।
रत्ना जब उठती है तो देव को बगल में सोया पाती है जो निश्छल भाव से सोए हुए थे। रत्ना को देव पर बहुत प्यार आता है और वह मन में सोचती है
कितना प्यारा है मेरा पुत्र। देखो कितने निश्चिंत भाव से सोया हुआ है। इसने कितनी बार अपनी जान पर खेलकर मेरी जान बचाई है। कोई और होता तो मुझे मरता छोड़कर भाग जाता। लेकिन इसने अपने प्राणों की परवाह नहीं की।
यह सोचते सोचते रत्ना भावुक हो जाती है और प्यार से देव के माथे को चूम लेती है। लेकिन तभी उसका ध्यान देव की धोती पर जाता है जिसमें देव का लिंग प्रातः काल के लैंगिक तनाव के कारण पूरा खड़ा था जिसे देख कर रानी रत्ना मुस्करा देती है और मन में सोचती हैं कि मेरा पुत्र तो पूरा जवान हो गया है। एक बार फिर वह प्यार से देव के लिंग को देखती है और फिर देव को उठाने के लिए आवाज लगाती हैं
उठो पुत्र, देखो सुबह हो गई है और पक्षी भी कलरव कर रहे हैं। विलम्ब न करो क्योंकि तुम जानते हो कि मुझे शौच तेज लगती है।
इस पर देव भी आंखें मलते हुए उठ जाते हैं और धोती में अपने खड़े लिंग को देखते हैं और अपने दोनों पैरों को सटा कर अपने खड़े लन्ड को छुपाने की कोशिश करती हैं। वो सोचते हैं कि मां ने अगर ऐसा देख लिया होगा तो क्या सोचती होगी। लेकिन फिर भी अब किया क्या का सकता है। उन्हें क्या पता था कि उनकी मां ने कई बार उनके नंगे लन्ड का दीदार किया है और एक बार तो उसे वो अपने हाथों से पकड़ भी चुकी है। खैर देव उठते है और रत्ना के साथ शौच के लिए गुफा से बाहर निकल जाते हैं।
दोनों मां बेटे फिर जंगल में उचित स्थान चुन कर शौच के लिए बैठ जाते हैं, लेकिन दोनों मे से कोई कुछ नहीं बोल रहा था। देव तो अभी थोड़ा संयम बरतते हुए कुछ नहीं बोल रहे थे, उन्हें इस बात का डर था कि कल उन्होंने हिम्मत कर के जो अपनी मां की बुर सहलाई है, पता नहीं उस कदम का उनकी मां पे क्या असर हुआ है। लेकिन वहीं दूसरी ओर रत्ना अब सामान्य तो हो ही गई थी, बल्कि और तो और उसकी काम भावना प्रबल हो रही थी। उसका मन कर रहा था कि देव उससे कुछ अश्लील बातें बोले। लेकिन वह कुछ बोल ही नहीं रहा था। इसलिए चुप्पी को तोड़ते हुए रत्ना खुद बोलती है
लगता है पुत्र, अब तुम्हारी शादी करनी ही पड़ेगी

देव,,,,: आपको ऐसा क्यों लगता है माते , मै तो अभी बच्चा हूं!!!! मै नहीं करूंगा शादी।

देव ऐसा बोलते हैं और समझ जाते हैं कि मां को भी उनकी नंगी बातों में मजा आ रहा है और वह खुद उससे बात करना चाह रही हैं

रत्ना,,,: क्योंकि अब तुम जवान हो गए हो

देव,,,, अच्छा मैं और जवान !! ऐसा क्या हुआ जो आपको लगता है कि मै जवान हो गया हूं !!!

रत्ना,,,, आप सब कुछ जानते हैं राजकुमार कि मैं ऐसा क्यों कह रही हूं और (फिर मुस्कुराते हुए कहती हैं) नही तो क्या, कौन पुत्र भला अपनी मां को नहाते हुए छुप छुप कर देखता है !!!

देव अब समझ जाते हैं कि उनकी मां को अब खुल कर बातें सुनना पसन्द आ रहा है,। तब वो बात आगे बढ़ा कर बोलते हैं
अब मैं क्या करूं मां, उस दिन मैंने आपको गलती से नहाते देख लिया और फिर आप हो ही इतनी सुन्दर कि मैं खुद को आपको नंगी नहाते देखने से नहीं रोक पाया,
रत्ना,,,,लेकिन मैं आपकी मां हूं देव और कोई जवान पुत्र अपनी मां को नहाते नही देखता !!!!

देव,,, भले ही आप मेरी मां हैं, लेकिन उसके पहले आप एक स्त्री हैं और आप जैसी सुन्दर स्त्री को कोई नंगी नहाते देख ले तो खुद को देखने से नहीं रोक सकेगा

रत्ना,,, अच्छा अच्छा छोड़िए ,,,,बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगे हैं आप। लेकिन देव आपसे मैने ये अपेक्षा नहीं की थी । कहां से आपके अन्दर ये भावनाएं या गई ?

देव,,, क्षमा प्रार्थी हूं माते, यदि मुझसे कोई भुल हुई हो तो। लेकिन माते, मैं भी तो एक पुरूष हूं, मेरी भी काम भावनाएं जागृत होना स्वाभाविक ही है और खास कर आप जैसी कोई सुन्दर स्त्री साथ में हो तो। वैसे माते जब मै गुरुकूल में था तो वहां कई सहपाठी अन्य जनपदों के भी थे और सबकी अपनी अपनी कहानी भी थी। उनमें से कई ने तो अपने घर की स्त्रियों को नंगी देखा था। कुछ ने अपनी बहनों को नदी में नहाते हुए देखा था तो कुछ ने अपनी मां को नंगी नहाते हुए देखा था जब वे अपने साथ उन्हें लेकर नदी किनारे नहाने ले जाया करती थी।

रत्ना,,, छी, बड़े गन्दे सहपाठी थे तुम्हारे। कहीं वो नशा वगैरह तो नहीं करते थे न ?

देव,,,, नहीं माते वो नशा तो नहीं करते थे, लेकिन उन्हें एक चीज का नशा था, खुबसूरती का नशा, वे अपने घर की स्त्रियों की खुबसूरती के नशे से बंधे थे।

रत्ना,,, छी, देव ये आप कैसी बातें कर रहे हैं

देव,,, मै सच बोल रहा हूं माते, उन सबों ने खुद ही ये बातें बताई थी।।।।

इसके बाद देव चुप हो जाते हैं और दोनों कुछ नहीं बोलते हैं। लेकिन रत्ना का मन कर रहा था कि देव अपने मुख से ऐसी बातें बोलती रहें। तब रत्ना कुछ देर बाद कहती है
मतलब ऐसे लड़के भी है जो अपने घर की स्त्रियों की खुबसूरती के दीवाने हैं!!!
इस पर देव समझ जाते हैं कि उनकी मां को भी उनकी ये वासना भरी बातें अच्छी लग रही हैं तो वह बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं

माते, मै अब आपको क्या बताऊं। लगभग सभी ने अपनी घर की औरतों को नंगी देखा था और कुछ के तो अपनी बहनों के साथ शारीरिक संबंध भी थे।

रत्ना,,, ये क्या कह रहे हो पुत्र,, यह सम्भव नहीं है । शारीरिक संबंध !!! , और वह भी अपनी बहन से, ये तो असम्भव सा लगता है। और वैसे भी ये सम्बंध तो शादी के बाद ही सम्भव हो सकता है ।

देव,,, ये मैं कैसे कह सकता हूं कि यह संभव है या नहीं । शादी के पूर्व शारीरिक संबंध क्यों नहीं सम्भव है भला !! वो तो हमने सामाजिक नियम बना लिए हैं कि शादी के बाद ही शारीरिक संबंध बना सकते हैं। किन्तु शारीरिक रूप से तो एक स्त्री और पुरूष तो कभी भी सम्बंध बना सकते हैं। वैसे मां, मेरे मित्र भी बातों में शादी के बाद किसी राअअरात रात की बात करते थे । क्या बोलते हैं उसे ,, हूहूं, देखो मुझे याद है लेकिन अभी जुबान पर नही आ पा रहा है,,,,,
तभी रत्ना न चाहते हुए भी बोल पड़ती है,,,
सु सु सु सुहागरात, सुहागरात बोलते हैं

देव,,, हां माते, वही सुहागरात। लेकिन आखिर शादी के बाद सुहागरात मे विशेष क्या है और उसे मनाते कैसे हैं ।

रत्ना,,, हम्म्म ।

देव,,,, सच बोल रहा हूं माते, मेरे मित्र शादी के बाद सुहागरात की चर्चा करते थे । मां ये सुहागरत में क्या होता है?

रत्ना,,, आप सब जानते हो पुत्र। केवल आप मुझसे शरारत कर रहे हो।

देव,,, नहीं माते, मैं सच मे सही बात नहीं जानता, केवल अधकाचरी सुनी सुनाई बात ही जानता हूं।

रत्ना,,,, पूत्र, सुहागरात में कुछ खास नहीं होता। बस स्त्री और पुरुष की शादी होती है और शादी सम्पन्न होने के बाद की पहली रात मे पति और पत्नी का मिलन होता है, बस ! पति पत्नी एक दुसरे को अच्छे से देखते हैं।

देव,,, तब तो पिताश्री ने आपको अच्छे से देखा होगा सुहागरात को। अच्छा माते, एक बात बताइए, क्या पिताश्री ने शादी के पूर्व आपको देखा था?
रत्ना,,, हां पुत्र, उन्होंने शादी के पूर्व मुझे देखा था, जब हम सभी उनके जन्म दिवस के समारोह पर तेरे नाना नानी के साथ आए थे। बल्कि उसी समारोह में हमारी शादी भी तय हो गई थी।
आज रत्ना को भी अपने पुत्र से अपनी शादी की बात बताना अच्छा लग रहा था। तब देव कहते हैं
पूरे कपड़ों में देखा था पिता श्री ने?

इस पर रानी रत्ना हस देती हैं और हंसते हुए कहती हैं
हां , हां, पूरे कपड़ों में , तुम्हारी तरह थोड़े ही कि छुप छुप कर मुझे नहाते हुए देख लिया

तब देव कहते हैं
तब तो पिता श्री आपकी सुन्दरता को निहारते ही रह गए होंगे

इस पर रत्ना हंसते हुए कहती हैं
हां,ये तो है तेरे पिता श्री तो मुझे देखते ही रह गए थे, उनका तो मुंह खुला का खुला रह गया था। मुझे तो बहुत शर्म आ रही थी। वो तो भला हो नंदिनी दीदी का, कि वो आकर खांसने लगी जिससे तुम्हारे पिता श्री का ध्यान भंग हुआ
इस पर देव कहते हैं
हों क्यों ना माते, आप इतनी सुन्दर जो हो। उस समय तो आप और सुन्दर दिख रही होंगी। की आपको हो देखे देखता ही रह जाए। आपकी सुन्दरता तो किसी को भी मदहोश कर दे।

रत्ना,,,, धत्त, अपनी मां की सुन्दरता की तारीफ कोई पुत्र ऐसे करता है क्या

देव,,, इसमें गलत क्या है, आप इतनी सुन्दर हो तो सुन्दर कह रहा हूं। सुन्दर चीज की प्रशंसा करनी चाहिए माते। सुन्दर चीज को कुरूप थोड़े ही बोल सकता हूं। ,,,,,,,,,,,,,,तो पिताजी ने उसके बाद आपको सुहागरात में देखा
रत्ना,,, उसके पहले शादी के मण्डप में देखा

देव,,,, हां देखा तो होगा ही। लेकिन अच्छे से नहीं देखा होगा?
रत्ना,,, हां
देव,,, अच्छे से तो पिता श्री ने आपको सुहागरात में ही देखा होगा।
रत्ना,,, हां, और मैने भी तो उन्हें पहली बार अच्छे से सुहागरात में ही देखा !!!

रत्ना देव के प्रश्नों का जवाब देते जा रही थी। लेकिन वह ये नही जानती थी कि देव इन बातों को किस ओर मोड़ रहे हैं। तभी देव कहते हैं

पिता श्री ने तो आपके पूरे कपडे निकाल कर देखा होगा ना!!।

यह सुन कर रत्ना का दिल धक से कर जाता है कि देव ने यह क्या कह दिया और वह कुछ नहीं बोलती है,
तो देव फिर बोलते हैं
माते, बताइए ना, पिता श्री ने आपके सारे कपड़े निकाल कर देखा था ना,??

रत्ना,,,, हां हां पुत्र, लेकिन ये बातें आपको किसने बताई?
देव,,, माते, मेरे मित्र ही बताते थे कि सुहागरात की रात पति पत्नी की पहली रात होती है जिसमें दोनों एक दूसरे के कपडे उतार कर एक दूसरे को अच्छे से देखते हैं । तो पिता श्री ने भाई आपके पूरे कपडे निकाल कर बिल्कुल नंगी कर देखा था ना,,,
रत्ना,,, (थोड़ा सकुचाते हुए ),,,, अरे कह तो रही हूं,,,, कि हां, तेरे पिता श्री ने मेरे सारे कपड़े उतार कर देखा था
देव,,, तब तो पिता श्री की आंखें ही चौंधियां गई होंगी
रत्ना,,, क्यों

देव,,, अरे क्यों नहीं, कोई भी पुरूष आप जैसी सुन्दर स्त्री को पूरी नंगी देखेगा तो वह तो मदहोश ही हो जायेगा, अपके नंगे बदन की चमक तो उसे बेहोश कर देगी
रत्ना,,,, धत्त, पूत्र, अब आप फिर से मेरी सुन्दरता के पीछे पड़ गए
देव,,, अब आप सुन्दर है तो आपको सुंदर ही कहूंगा ना, ,,,,,, वैसे माते तब तो आपने भी पिता श्री के कपड़े उतार दिए होंगे सुहागरात में

रत्ना,,, धत, मैंने उनके कपड़े नहीं निकाले, उन्होंने खुद अपने कपड़े उतारे थे, मुझे तो बहुत शर्म आ रही थी
रत्ना देव के प्रश्नों का उत्तर देती है। रत्ना अपने को ये बातें बोलने से रोकना चाह रही थी, लेकिन पता नहीं क्यों, देव की बातों में रत्ना खो सी गई थी , देव की बातों ने उसका मन मोह लिया था, वह देव के मोह पाश में बंध गई थी। तभी देव कहते हैं
आहह ह ह,, कितना प्यारा दृश्य रहा होगा माते, जब आप पिता श्री के सामने पूरी नंगी होंगी और पिता श्री आपके सामने। माते फिर उसके बाद सुहागरात में क्या करते हैं
रत्ना,,, उसके बाद स्त्री पुरूष का मिलन हो जाता है और दोनों गले लग कर सो जाते हैं।
देव,,, नंगे ही
रत्ना,,, हां, नंगे ही
दोनों मां बेटे इन वासनापूर्ण बातों से उत्तेजित हो जाते हैं और उत्तेजना के मारे देव का लन्ड खड़ा हो जाता है तो रत्ना की बुर भी पनिया जाती है और उसकी बुर से पानी टपक पड़ता है। देव का लन्ड तो कुलाचें मार रहा था
देव,,, लेकिन माते, स्त्री पुरूष का मिलन तो केवल नंगे गले लगने से तो नहीं होता है। मैंने सुना है कि स्त्री और पुरूष का मिलन तभी पूर्ण होता है जब पुरूष के लिंग और स्त्री की योनि का मिलन होता है

इस पर रानी रत्ना कुछ नहीं बोलती है और चुप रहती हैं,इनकी सांसे तेज चल रही थी। देव ने भी बड़ी हिम्मत कर के यह बात अपनी मां से कहीं थी कि कहीं मां को यह बात बुरी न लग जाए। इसलिए देव फिर बोलते हैं
हैं न माते, स्त्री पुरूष का मिलन तभी पूर्ण होता है न!!!!
रत्ना,,,, हां, पुत्र, स्त्री पुरूष का मिलन तभी पूर्ण होता है
देव,,, तो मां, इस मिलन मे पुरूष अपना लिंग योनि से केवल सटाता हैं या अपना पूरा लन्ड स्त्री की योनि में घुसा देता है
रत्ना इस बार भी कुछ नहीं बोलती है तो देव फिर बोलते हैं
बताइए ना माते, पूरा अन्दर करते हैं या नहीं
रत्ना,,,, आप मुझसे ऐसे प्रश्न न पूछे पुत्र, इस तरह की बातें एक मां बेटे के बीच शोभा नहीं देती
देव,,, माते जब इतना बता दिया है तो आगे बताने में क्या हर्ज है। मां, मैं मानता हूं कि इस तरह की मुझे आपसे नही करनी चाहिए, लेकिन माते, इस घने और सुनसान जंगल में आपके और मेरे अलावा है कौन जिससे मैं दिल की बात कर सकूं !!! तो बताइए ना माते।
रत्ना,,, पूत्र, मै अपकी बात से सहमत हूं और यह मानती हूं कि इस जंगल में हम दोनों ही अकेले हैं, इसलिए मैने आपसे इतनी बाते कर भी लीं।

देव,,, तो माते बताएं ना। आखिर मैं किससे पूछूंगा।

रत्ना,,, हां, पूत्र, आपका कहना सही है, पुरूष अपना पूरा लिंग स्त्री की योनि में डाल कर मिलन को पूर्ण करता है
देव,,, लेकिन माते इसे मिलन तो कहते नही है

रत्ना,,, तब क्या कहते हैं

देव,,,, इसे तो पुरूष और स्त्री के बीच सम्भोग कहते हैं ना माते, जब स्त्री और पुरूष एक साथ सहवास करते हैं, या उचित शब्दों में कहें तो इसे चूदाई कहते हैं।

इतना कहकर देव चुप हो जाते हैं, रत्ना भी चूदाई शब्द सुनकर सन्न रह जाती है , लेकिन कुछ बोलती नहीं है। उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि उनका पुत्र खुल कर उनके साथ खुल कर इस तरह से संवाद करेगा!!! दोनों कुछ देर चुप रहते हैं। रत्ना को यह संवाद अच्छा तो लग रहा था। लेकिन फिर भी कुछ था जो अभी भी उन्हें आगे बढ़ने से रोक रहा था। तभी फिर देव ने हिम्मत कर के कुछ ऐसा किया जिसकी कल्पना रत्ना ने नही की थी। देव अपनी जगह से उठे और रानी रत्ना के सामने ऐसे ही अपना लन्ड डुलाते और धोती कमर तक उठाए जा कर बैठ गए। अब स्थिति ऐसी थी कि रत्ना और देव एक दूसरे के सामने बैठे थे, और देव का खड़ा लन्ड रत्ना के सामने था जिसे रत्ना एकटक से देखे जा रही थी देव का लन्ड तो रत्ना को देख कर और खड़ा हो गया। रत्ना आज पहली बार देव के सामने ही देव के लिंग को देखे जा रही थी। लेकिन देव रत्ना की योनि नहीं देख पा रहे थे क्योंकि रत्ना ने अपनी साड़ी घुटनों तक की हुई थी जिस कारण से उसकी योनि ढकी हुई थी। इसलिए देव ने हिम्मत जुटा कर के रत्ना की योनि देखने के लिए अपना हाथ बढ़ा कर रत्ना की साड़ी उसके घुटनों से नीचे जांघों तक करनी चाही। लेकिन जैसे ही देव ने रत्ना की साड़ी उसके घुटनों के पास पकड़ी, रत्ना ने देव का हाथ पकड़ लिया और कहा
नहीं पुत्र नहीं। ऐसा मत करो। यह नहीं हो सकता। अब तक ठीक था कि मै तुमसे खुल कर बात कर रही थी और मैं वो बातें भी तुमसे बतिया रही थी जो मुझे तुम्हारे साथ नही करनी चाहिए थी। लेकिन बात करने का यह मतलब नहीं है कि आप मेरे सामने ऐसे नंगे बैठ जाएं और मेरी भी साड़ी नीचे कर दें।!!
रत्ना जब उत्तेजना के शिखर पर पहुंचे देव को मना करती है तो देव का मन बिल्कुल उदास हो जाता है और वह उसी उदासी में वहां से उठते हैं और झील की ओर चले जाते हैं। रत्ना को भी यह सब अच्छा तो लग ही रहा था लेकिन उसके मन में द्वंद चल रहा था। उसे अपने पुत्र के साथ कामुक वार्तालाप अच्छा तो लग रहा था लेकिन दूसरी तरफ यह भी सत्य था कि वह देव की माता है और एक मां अपने पुत्र के साथ इतना खुल कर बात नहीं कर सकती है। लेकिन देवा का इस तरह वहां से उठ कर जाना भी रत्ना को अच्छा नहीं लगा, उसे भी देवा का सान्निध्य और उसकी कामुक बातें अच्छी लग रही थी। रत्ना काफ़ी देर वहा चुप चाप बैठी रहीं और कुछ देर बाद वो भी वहां से उठ कर झील की ओर चली गई।
 

Ravi2019

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Update 38

रत्ना फिर झील के पानी में जाकर नहाने लगी। उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए थे और तब झील में नहा रही थी। झील में उसके कमर के ऊपर का पूरा हिस्सा पानी से उपर था और उसके नंगे स्तन सूर्य की किरणों से देदीप्यमान हो रहे थे। उसने अपना मुंह झील के किनारे की ओर किया हुआ था और उसकी नजरें बार बार झील के किनारे स्थित पेड़ो की ओर जा रहे थे कि शायद देव उसे पेड़ के पीछे से छुप कर नहाते देख रहा हो। लेकिन उसे देव की उपस्थिति का कोई भान नहीं हो रहा था। इस कारण वह और उदास हो गई। वह अपने पुत्र को खुद से दूर जाने देना नही चाहती थी । उदास मन से वह झील से बाहर निकल कर कपड़े पहनती है और गुफा की ओर चल देती हैं। वहां पहुंच कर वह देखती है कि देव गुफा के बाहर बैठे हैं। रत्ना को देख कर वह कुछ नहीं बोलते हैं। थोड़ी देर में रत्ना गुफा से बाहर निकलती है और देव को कहती हैं
चलिए पुत्र, जंगल से कुछ फल तोड़ लिए जाए नही तो फिर भूख लग जाएगी।
इस पर देव कुछ नहीं बोलते हैं। लेकिन रत्ना के निकलने के कुछ देर बाद रत्ना के पीछे जंगल में निकल जाते हैं। लेकिन देव रत्ना के साथ नहीं चल रहे थे, बल्कि रत्ना से कुछ दूरी बना कर चल रहे थे, और तो और वे रत्ना को देख भी नहीं रहे थे। दोनों मां बेटे फलों को तोड़ कर गुफा में आ जाते हैं। लेकिन देव की ये बेरुखी रत्ना को बर्दास्त नहीं हो रही थी। देव चुप चाप गुफा में बैठ कर फल खा रहे थे, तभी रानी रत्ना कहती हैं
पुत्र, आप मुझसे कुछ बात क्यों नहीं कर रहे हैं, आप जानते हैं ना कि मैं आपसे कितना प्यार करती हूं। आपकी बेरुखी मुझसे बर्दास्त नहीं हो पा रही है !!!!
ऐसा बोल कर रत्ना की आंखें डब डबा जाती हैं। लेकिन देव फिर भी रत्ना की ओर नहीं देखते हैं और कुछ फल खा कर गुफा के बाहर चले जाते हैं और बाहर एक शिला पर बैठे रहते हैं। इधर रत्ना गुफ़ा में ही लेटी रहती है और सोचती है कि ये सब क्या से क्या हो गया और अब तो देव भी मुझसे बातें नहीं कर रहा है। ऐसे ही समय बीता, दिन खत्म हुआ और रात हो गई । रात में भी देव ने रत्ना से बात नहीं की । रात में सोने से पहले रत्ना गुफा के बाहर पेशाब करने गई और नियत स्थान पर पेशाब करने बैठ गई और देव का इन्तजार करने लगी की देव तो आयेगा ही। रत्ना बैठी रही, लेकिन देव नहीं आए। तब थक हार कर रत्ना ने पेशाब कर लिया और सोने के लिए गुफा के अंदर आ गई। जब रत्ना गुफा के अंदर सोने आई, तब देव गुफा के बाहर चले गए और तब पेशाब कर के आए। स्पष्ट था कि देव रत्ना के साथ पेशाब भी नहीं करना चाहते थे। रत्ना बहुत दुखी होती है और दुखी मन से सोचते सोचते पता नहीं कब उसकी आंख लग जाती है।
सुबह फिर चिड़ियों की चहचहाहट से रत्ना की नींद खुलती है। वह उठती है और देखती है कि भोर हो गई है। सुबह उठते ही वह शौच के लिए जाती ही है और साथ में देव भी जाते हैं। रत्ना ने देव को उठाने के लिए आवाज लगाई और जैसे देव की ओर देखा, तो उसे देव की धोती में खड़ा लन्ड दिखा जिसे वह कुछ देर तक निहारती रही। कामोत्तेंजना के कारण उनका एक हाथ खुद ही नीचे चला गया और उसने साड़ी के उपर से ही अपनी योनि को सहला दिया और योनि को दबोच कर थोड़ा रगड़ दिया। उसे थोडी शान्ति मिली। फिर वो को आवाज लगाती है,,,
उठो पुत्र उठो, देखो सुबह हो गई है, पक्षी भी कलरव कर रहे हैं, सूर्य की लालिमा भी दिखने लगीं है।
देव भी जग तो गए थे, लेकिन वे कोई जवाब नहीं देते हैं। वह जानबुझ कर कुछ नहीं बोल रहे थे । उन्हें अपनी मां को तड़पना और उन्हें उपेक्षित करना अच्छा तो नहीं लग रहा था लेकिन वह अपने लिए अपनी मां की तड़प देखना चाहते थे। रत्ना देव को उठता नहीं देख उन्हें थोड़ा हिलाती है, लेकिन देव फिर भी नहीं उठते हैं तो रत्ना की आंखों में नमी आ जाती है, वह समझ जाती है कि देव अभी भी उनसे नाराज हो तो फिर रत्ना वहां से उठ कर अकेले ही शौच के लिए चली जाती है। रत्ना जब शौच से निवृत्त होती है तो गुफा आ जाती हैं जहां देव अभी भी सो रहे थे।
रत्ना जब गुफा में आ जाती हैं तब देव वहां से उठते हैं और फिर शौच के लिए चले जाते हैं। रत्ना समझ जाती हैं कि देव जानबूझकर सोने का नाटक कर रहा था, उसे केवल अपनी मां के साथ नहीं जाना था। इधर देव भी सच के लिए बैठे रहते हैं और सोचते हैं
मै कितना गलत कर रहा हूं माते के साथ। यदि उन्हें कुछ चीजें मेरे से नहीं करनी तो उनकी मर्जी। आखिर मैं उन्हें विवश क्यों ही करूं ?
देव यही सोचते रहते हैं, तभी उन्हें अपने पीछे से किसी के आने की आहट सुनाई दी। वह आहट धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी जो उनके तरफ बढ़ते कदमों की आवाज थी। लेकिन वह चुप चाप बैठे रहते हैं। अब उन कदमों की आहट के साथ पायल की छन छन की भी आवाज सुनाई पड़ने लगती है। वो समझ जाते हैं कि मां ही आ रही हैं। इसलिए वो कोई हरकत नहीं करते। लेकिन वो ये नहीं जानते थे कि क्या होने वाला है और रानी रत्ना क्या करने वाली थी।
तभी रानी रत्ना देव के पास पहुंच जाती हैं और देव के सामने खडी हो जाती है और फिर अचानक देव के सामने अपनी साड़ी कमर तक उठा कर शौच के लिए बैठ जाती हैं और थोड़ा झूठ बोलती हैं ,,
मैने अभी शौच नहीं किया है देव
जबकि वह शौच कर चुकी थी। देव अभी रत्ना के तरफ अनमने ढंग से देखते हैं। तभी रत्ना अपनी साड़ी को जो घुटनों तक थी उसे थोड़ा जांघों की ओर सरका दी और शौच के लिए बैठने से जांघें थोडी अलग हो ही जाती हैं जिससे रत्ना की बुर देव के सामने बिल्कुल खुल जाती हैं और तब रत्ना कहती हैं

यही चाहिए था न तुम्हें पुत्र, ,,, आपको अपनी मां की कमर के नीचे का यही हिस्सा देखना था ना,,,जिसके लिए आप कल से ही मुझसे नाराज़ हैं

रत्ना इतना बोलती हैं तो देखती है कि देव उन्हें विस्मित हो कर देख रहे थे। दरअसल रत्ना ने ऐसा काम किया था जिसकी कल्पना देव ने की ही नहीं थी अब स्थिति यह थी कि दोनों मां बेटे एक दूसरे के सामने अपने यौनंगों को खोले शौच की मुद्रा में बैठे थे। रत्ना तो देव के लिंग को देख ही नहीं थी, देव भी अपनी जिन्दगी में पहली बार अपनी मां की योनि के दर्शन कर रहा था। देव अपनी मां क्या, जीवन में किसी भी स्त्री की योनि पहली बार देख रहे थे। रत्ना की योनि पे हल्की हल्की झांटे थी जिसकी लकीर जांघें खुली होने से थोडी खुली हुई थी। देव को अपनी योनि को टकटकी लगाए देखता देख रत्ना कहती हैं

देख लीजिए देव, अच्छे से अपनी मां की योनि को जिसके लिए आप मुझसे रूठे हुए थे

देव,,,, नहीं माते, मैं आपसे रूठा नहीं था, ,,, मै आपसे रूठ सकता हूं भला क्या। वो मां कल अचानक आपने ही मना किया ना, उससे मुझे बहुत दुख पहुंचा

रत्ना,,, अच्छा, आपको दुख पहुंचा पूत्र, उसके लिए मैं खेद प्रकट करती हूं,। लेकिन पुत्र मै एक स्त्री हूं और तो और आपकी मां हूं, । मेरी भी, मां की, कुछ मर्यादाएं होती हैं, कोई मां अपने पुत्र से इतना नहीं खुल सकती जितना मैं तुमसे खुल गई थी । पुत्र, आपने मुझे कुछ समय तो दिया होता,,,, कोई मां इतनी जल्दी अपने पुत्र के सामने योनि खोल कर बैठने को कैसे तैयार हो सकती है। वो तो मै आपसे ऐसे ही इतनी खुल गई थी जितनी की कोई मां अपने पुत्र से नहीं होती।

इधर देव रत्ना की योनि को देख ही रहे थे कि उसका असर देव के लौड़े पर होने लगा जो अपनी मां की योनि को देख कर उत्तेजना के मारे और खड़ा हो गया और खुद ही उपर नीचे इस तरह कम्पन करने लगा मानो अपनी मां की योनि को सलामी दे रहा हो। इधर
रत्ना इतना बोलती है, तभी उत्तेजनावश उसकी बुर से पेशाब की धार बड़ी तेजी से निकलती है जो देव के लन्ड को धो देती है , वही लन्ड जो अपनी मां की योनि को सलामी दे रहा था। देव रत्ना की बुर से निकल रही पेशाब की धार को ध्यान से देख रहे होते हैं और जब रत्ना पेशाब कर लेती है तो उसकी योनि पर पेशाब की बुंदे लगी रह जाती हैं जिस देव देख रहे होते हैं। अनायास ही देव अपना हाथ रत्ना की योनि की तरफ बढ़ा देते हैं और अपनी उंगलियों पर रत्ना की योनि पर लगे पेशाब की बूंदों को ले लेते हैं और रत्ना की आंखों में देखते हुए अपनी उंगलियों पर लगे पेशाब की बूंदों को चाट जाते हैं जिसे देख कर रानी रत्ना कह उठती है
छी:, पुत्र छी:, वह गंदी चीज है, उसे नहीं चाटते

देव,,,, माते, यह आपके लिए गंदी चीज होगी, मेरे लिए तो यह अमृत है माते !!! अभी तक मैं आपके साथ बैठ कर पेशाब करता था लेकिन कभी आपका पेशाब नहीं देखा । आज आपको पेशाब करते हुए आपकी बुर को भी देख लिया।

रत्ना,,, छी, ऐसी बाते मत करो देव, मुझे शर्म आती है। आखिर तुम मेरे पुत्र जो हो। लेकिन चलो, अब तो खुश न।
देव,,, खुश नहीं माते, बहुत खुश !!! लेकिन अभी मुझे पिता श्री की याद आ रही है
रत्ना ,,,, वो क्यूं
देव ,,, इसलिए की पिता श्री कितने खुशकिस्मत हैं जो उन्हें आप जैसी सुन्दर स्त्री पत्नी के रूप में मिली जिसका अंग अंग निखरा हुआ है,। सही मायने में पिता श्री ने जरूर कोई पुण्य कार्य किया होगा जो इतनी सुन्दर योनि वाली स्त्री से उनका विवाह हुआ। ये वही योनि है ना माते, जिसे पिता श्री ने सुहागरात में अपने लन्ड से चूदाई कर के आप दोनो का मिलन पूर्ण किया था।
देव की ये कामुक बातें रत्ना को तो उत्तेजित कर ही रही थी। उत्तेजना के कारण रत्ना कुछ बोल नहीं पाती हैं। इधर देब के लौड़े पर भी ये बातें असर डाल रही थी। देव का लन्ड और कड़ा होकर खड़ा हो गया था। रत्ना की सांसे तेज चल रही थी और सांसे तेज चलने से छाती उपर नीचे हो रही थी। रत्ना लगातार एकटक देव के उपर नीचे करते लन्ड को देख नहीं थी। वह इतनी उत्तेजित हो गई थी कि उन्हें अब स्वयं को रोक पाना सम्भव न हो सका और अनायास ही उन्होंने अपने हाथ बढ़ा कर देव के लन्ड को अपने हाथ से पकड़ लिया और उसके गुलाबी चिकने सुपाड़े को अपनी उंगलियों से सहलाने लगी। देव ने भी इधर अपने हाथ बढ़ा कर हाथ रत्ना की योनि पर रख दिया और धीरे धीरे पूरी योनि को सहलाने लगा जिसमें देव को असीम आनन्द आ रहा था। दोनो अभी एक दूसरे के यौनांगो को छूने में मगन थे, तभी उनका ध्यान तब भंग हुआ जब देव ने एक लम्बी पाद छोड़ी। देव के पाद की आवाज़ सुनकर रत्ना को हंसी आ गई और रत्ना को हस्ता देख देव को भी हंसी आ गई। तब रत्ना देव के लिंग को छोड़ते हुए उठने लगी और कहा कि
पुत्र, आप शौच करके आइए, मै झील किनारे चलती हूं
तब देव कहते हैं
माते, आप भी शौच कर ले, अभी आपने शौच किया ही कहां है
तब रत्ना कहती हैं
मैंने प्रातः ही शौच कर लिया है पुत्र, ! वो तो मै तुम्हारे पास तुमसे बातें करने के लिए शौच के बहाने आ गई थी ताकि मैं अपने पुत्र की नाराजगी दूर कर सकूं

तब देव कहते हैं

और इसी बीच हमारी बात बन गई। है ना माते

यह कह कर दोनों हंस देते हैं। देव फिर बोलते हैं

माते मैने भी शौच कर लिया है

ऐसा बोल कर देव भी रत्ना के साथ उठ जाते हैं और नित्य क्रिया निवृत्त होकर स्नान हेतु दोनों झील की ओर चल पड़ते हैं । दोनों मां बेटे के जीवन में आज की सुबह एक नई सुबह लेकर आई थी और दोनों आज बहुत खुश थे। देव आज इस बात को लेकर खुश थे कि आज रत्ना के साथ उनका सम्बंध एक नई ऊंचाई तक पहुंच गया है और उन्होंने रत्ना की योनि के दर्शन भी कर लिए हैं। वहीं रत्ना मन ही मन इस बात से खुश हो रही थी कि उसने आज देव के सामने ही उसके लन्ड को अपने हाथ से पकड़ लिया था और देव के प्रति उसका आकर्षण एक कदम और आगे बढ़ चुका था। रत्ना तो देव के प्रति उसी दिन से आकर्षित हो गई थी जिस दिन देव ने अपनी जान पर खेलकर शिविर में लगी आग से रत्ना को बचाया था। रत्ना मन ही मन देव के प्रति आकर्षित हो गई थी और इसीलिए तो वह देव को खुली कामुक बातें करने दे रही थी, बल्कि वह इसका आनन्द भी उठा रही थी।
दोनों मां बेटे काफी खुश थे। रत्ना झील के उस किनारे जाती हैं जहां वह नहाया करती हैं और देव भी उसी किनारे रत्ना के साथ पहुंच जाते हैं जिन्हें देख कर रत्ना कहती है
पुत्र, तुम झील के दुसरे किनारे जाकर स्नान करो और यहां मुझे स्नान करने दो
इस पर देव कहते हैं
मुझे भी यहीं स्नान करने दे माते,,
इस पर रत्ना आंखें दिखाते हुए कहती हैं
पुत्र, मै यहां कपड़े उतार कर नहाती हूं, आप जाइए यहां से
इस पर देव कहते हैं
माते, यहीं स्नान करने दीजिए ना, आप कपड़े उतार कर नहाती है तो क्या हुआ,,, अब मैने सब कुछ तो देख ही लिया है आपका,,, आपके स्तन और आपकी योनि भी
इस पर रत्ना कहती हैं
माना आपने मेरे अंगों को देख लिया है, लेकिन मैं आपके सामने पूरी नंगी नहीं हो सकती

और ये कहते हुए रत्ना मुस्कुराते हुए देव को प्यार से ठेलते हुए झील के किनारे से दुर करती हैं और कहती हैं
और हां,, पेड़ों के पीछे से छिप कर मुझे नहाते मत देखिएगा राजकुमार,,,
ये सुन कर देव भी शरमा जाते हैं और मुस्कुराते हुए झील के दुसरे किनारे नहाने चले जाते हैं। दोनों मां बेटे खूब खुश तो थे ही, खूब रगड़ रगड़ कर नहाते हैं। लेकिन वो कहते हैं ना कि होनी को कोई टाल नहीं सकता। तो जो होना था वह हुआ। रत्ना नहा कर झील से नंगी ही बाहर निकलती हैं और अपने बदन को सूखा रही थी और एक झीनी चुन्नी से खुद को ढके रहती है। तभी उधर शिकार की खोज में एक भेड़िया झील के किनारे पहुंच जाता है। भेड़िया काफी दिनों से भूखा था तो उसे रत्ना एक स्वादिष्ट शिकार के रूप में दिख रही थी। इधर रत्ना को कोई खबर ही नहीं थी एक भूखा भेड़िया उसकी ओर आ रहा है। लेकिन थोड़ा नजदीक आने पर सूखे पत्तों पर भेड़िया की पदचाप रत्ना को सुनाई पड़ने लगती है। तब रत्ना उस ओर देखती है जहां वह भेड़िया को अपनी ओर आते हुए देखती है। भेड़िया को देख कर रत्ना के प्राण सुख जाते हैं । भेड़िया भी जब रत्ना की देखता है तो वह रत्ना की ओर दौड़ पड़ता है। भेड़िया को अपनी तरफ दौड़ता देख रत्ना जोर से देव को आवाज देते हुए चिल्लाती है और बेतहाशा चिल्लाते हुए झील के उस किनारे की ओर भागती है जिस ओर देव नहा रहे थे। उधर देव नहा कर नंगे ही धूप में एक शिला पर बैठे थे । जैसे ही उन्होंने अपनी मां रानी रत्ना की चिल्लाने की आवाज़ सुनी, उन्होंने तुरन्त अपनी तलवार उठाई और झील के उस किनारे की ओर दौड़े जिधर रत्ना स्नान करती थी। देव नंगे ही हाथ में तलवार लेकर दौड़ पड़ते हैं और उधर रत्ना भी केवल एक झीनी सी चुन्नी अपने शरीर से सटाए देव की ओर चिल्लाते हुए बदहवास दौड़ पड़ती है। इस बदहवासी में रत्ना देवी की चुन्नी भी अस्त व्यस्त हो जाती है और केवल वह कहने मात्र को ही रहती है। इधर भेड़िया रत्ना के पीछे उसे लपकने के लिए दौड़ रहा था लेकिन जब तक भेड़िया रानी रत्ना के पास पहुंच पाता तब तक रानी रत्ना और देव एक दुसरे के सामने पहुंच जाते हैं और रत्ना बदहवास चिल्लाते हुए देव को पकड़ लेती है और हांफते हुए कहती हैं
पुत्र अ अ ए, पुत्र अ अ, देखो पुत्र, भेड़िया,,,, भेड़िया,, मुझे मारने को मेरे पीछे पड़ा है, बचाओ पुत्र बचाओ मुझे,,,
देव,,,, माते, आप चिन्ता न कीजिए, ,, आप मेरे पास आ गई हैं, घबराइए मत, आपको मैं कुछ नहीं होने दूंगा
तब तक भेड़िया भी रत्ना का पीछा करते हुए वहां पहुंच जाता है, । उसे देख कर देव अपनी तलवार लिए उसकी तरफ आगे बढ़ते हैं। रत्ना देव को पीछे से पकड़ी रहती हैं, आखिर वह इतनी डरी सहमी रहती है कि वह देव को छोड़ती ही नहीं है, बल्कि उनके नंगे बदन से चिपकी रहती हैं। इधर भेड़िया जैसे ही देव को अपनी ओर तलवार लिए खड़ा देखता है, वह वहां से जान बचा कर भाग जाता है। भेड़िया के भाग जाने से दोनों मां बेटे के जान मे जान आती है । लेकिन रत्ना इतनी डरी रहती है कि वह रोने लगती हैं और देव के गले लग कर रोने लगती हैं। इस दौरान उन्हें इस बात का भान ही नहीं रहता है कि वो इस समय नंगी हैं और उनकी झीनी सी चुन्नी भी पूरी तरह से अस्त व्यस्त है जो केवल कहने को उनके शरीर को ढक रही है। वह रोते रोते कहती हैं
पुत्र, आज फिर आपने मेरे प्राणों की रक्षा की। यदि आज आप नही होते तो ये भेड़िया मेरे प्राण ले हो चुका होता। पुत्र, आप हमेशा मुझे अपनी जान पर खेल कर मेरे प्राणों की रक्षा करते हैं। पता नहीं, हमारी खुशियों पे किसकी नज़र लग गई है। आज सुबह मैं कितनी खुश थी कि आज हमारे दिन की शुरूआत कितनी अच्छी हुईं हैं। लेकिन पुत्र देखो, अब ये घटना हो गई !!!
इस पर देव कहते हैं,,,
माते आप चिन्ता न करें। मेरे रहते आपको कुछ नहीं हो सकता। आपके प्राणों की रक्षा के लिए मैं अपने प्राणों की आहुति दे दूंगा।

देव के ऐसा बोलने पर रत्ना देव के होंठों पर अपनी ऊंगली रख देती है और उनकी आंखों में देखते हुए कहती हैं
पुत्र, आपने आज कह दिया सो कह दिया, आगे से अपने प्राण देने वाली बात बिल्कुल न कहना, नहीं तो तुम्हारी ये मां तुम्हारे बिना जीते जी मर जायेगी।

तब देव रत्ना के होंठो पर अपनी ऊंगली रख कर कहते हैं
आप भी अपने मरने की बात न करें माते, । मै आपके बिना कैसे रह पाऊंगा,,,
तब रत्ना कहती है
इतना प्यार करते हो अपनी मां से !!!! मै जानती हूं पुत्र, मुझे तुम्हारे जैसा प्यार करने वाला कोई नहीं मिल सकता जो अपनी जान पर खेलकर मेरी जान बचाया है
इतना सुन कर देव के मुंह से निकलता है
" मातेएए"

और ऐसा बोलकर देव रत्ना को अपने आगोश में भर लेते हैं और रत्ना भी देव को जकड़ लेती है। अभी तक दोनों मां बेटे को इस बात का भान ही नहीं था कि दोनों नंगे हैं लेकिन उनके शरीर को तो इसका अहसास हो रहा था।
फिर धीरे धीरे दोनों को अपनी नग्नता का अहसास होता है। लेकिन दोनों को एक दूसरे का नंगा बदन अच्छा लग रहा था। रत्ना के दोनों नंगे स्तन पहली बार देव की छाती में धंसे हुए थे। काफी समय बाद पुरूष का नग्न अवस्था में आलिंगन रत्ना को बहका रहा था। वह धीरे से अपने स्तनों को देव की छाती पर रगड़ती है जिससे उसके स्तन के चूचुक कड़े हो जाते हैं और मटर के दाने की तरह खिल जाते हैं। वह हौले हौले अपने स्तनों को देव की छाती पर रगड़ते लगती हैं और एक तरह से यौन आनन्द प्राप्त कर रही होती हैं,,, इधर देव को भी रत्ना का नंगा शरीर उनकी उत्तेजना बढ़ा रहा था। उपर से रत्ना का अपने स्तन देव की छाती में रगड़ना उन्हें और उत्तेजित कर रहा था। देव तो इधर कुछ दिनों से रत्ना के नंगे स्तन को देख कर अपना लन्ड हाथ में पकड़ कर हिलाया कर रहे थे, आज वही स्तन उनकी छाती में धंसे थे। दोनों मां बेटे आलिंगनबद्ध थे, कोई कुछ नहीं बोल रहा था। इधर उत्तेजना के मारे देव का लन्ड खड़ा हो गया था और रानी रत्ना के पेट से चिपका हुआ था जिसका अहसास रानी रत्ना को भी था। इधर देव का लन्ड और बड़ा और मोटा होता जा रहा था।।। देव भी रत्ना को अपनी बाहों में भींचने लगते हैं। दोनों मां बेटे उत्तेजना के शिखर पर थे। तभी रत्ना ने अपना हाथ देव के कमर से हटाया और अपना हाथ नीचे ले जाकर सीधे देव के लन्ड को अपने हाथ में पकड़ लिया और उसे पकड़ कर सहलाने लगी और आहें भरने लगी। अपनी मां की इस हरकत से उत्तेजित होकर देव भी अपना हाथ नीचे ले जाते हैं और सीधे रत्ना की योनि पर रख देते हैं और उसे अपने पंजे से दबोच लेते हैं। रत्ना को अपनी योनि पर पुरूष के हाथो का स्पर्श बहुत अच्छा लगता है। देव धीरे धीरे रत्ना की योनि को सहलाने लगते है और कहते हैं
अह्ह्ह्ह, आज मुझे अपनी मां की उस योनि को स्पर्श करने का, सहलाने का मौका मिला है जिसे आज तक केवल पिता श्री ने ही सहलाया है,,, है ना मां,,,
इस पर रत्ना कसमसाते हुए देव से और चिपक जाती है और अपने स्तन देव की छाती में और धंसा कर रगड़ने लगती है। इधर दोनों मां बेटे एक दूसरे के यौनंगो से खेल ही रहे थे । उत्तेजना के मारे देव रत्ना के होंठों पर चुम्बन लेने के लिए जैसे ही थोड़ा अलग हट कर रत्ना के चेहरे को थोड़ा ऊपर उठा कर अपने होंठ रत्ना के होठ पर रखने वाले होते हैं तभी रत्ना देव की आंखों में देखती है और उस समय रत्ना के अन्दर अपने पुत्र के लिए वात्सल्य भाव जागृत हो जाती है और वह झटके से देव से दूर हट जाती है और कहती है
ये मैं क्या कर रही थी, ये तो पाप है । मां और बेटा ऐसा नहीं कर सकते। यह घोर पाप है।
रत्ना ऐसा बोलती तो है लेकिन वह देव के लिंग को पकड़े ही रहती है। एक तरफ़ तो वह कहती है कि यह पाप है और दूसरी तरफ वह देव के लिंग को पकड़े रहती है। वह अपना चेहरा दूसरी ओर घूमा लेती है और कहती है
पुत्र, हम दोनों ऐसा नहीं कर सकते, मां और बेटा का रिश्ता बहुत पवित्र होता है और इस सम्बंध में किसी तरह के यौन संबंधों का कोई स्थान नहीं होता है। यह पाप है पुत्र, पाप
तब देव कहते हैं
अगर यह पाप है, तो यह पाप हो जाने दो मां। आह इस पाप मे कितना आनन्द है मां। यह पाप और पुण्य, तो हम मनुष्यों ने ही बनाया है न माते
इस पर रानी रत्ना कहती हैं
तुम समझने की कोशिश करो पुत्र, हम दोनों राजघराने से हैं , मैं इस राज्य की रानी हूं और आप यहां के राजकुमार। आप ही सोचिए पुत्र, हमारी महती जिम्मेदारी है कि हम दोनों मन मर्यादा की रक्षा करे, उसका ख्याल रखें।।।।

तब देव कहते हैं
माते, इस घने जंगल में जहां हम दोनों के सिवाय कोई नहीं है, वहां हमें कौन जान रहा है कि हम राजघराने से हैं, हमे तो यह भी नही पता की हैं कि हम कभी इस जंगल से बाहर निकल भी पाएंगे या नहीं,,,,, जंगल में कैसी मान मर्यादा मां, यहां हमें कौन देखने वाला है कि हम दोनों आपस मे क्या कर रहे हैं,,,,,,
तब रत्ना कहती हैं
पुत्र, आप वासना की आग में अंधे हो गए हो, आप यह नहीं देख पा रहे हो कि आपके सामने आपकी मां खड़ी है कोई दूसरी स्त्री नही!!! आप हवस में अंधे हो गए हो। ये हवस है पुत्र हवस, एक स्त्री के शरीर को पाने की हवस,,,
इस पर देव कहते हैं
माते , ये हवस नही है माते। ये तो आपके लिए मेरा प्यार है माते। मेरे प्यार को हवस का नाम दे कर मेरे प्यार को गाली ना दो मां । मानता हूं आप मेरी मां हो और मैं आपका पुत्र, लेकिन आप एक मां होने के साथ साथ एक स्त्री भी है और मै पुत्र होने के साथ साथ एक पुरूष भी तो हूं। इस घने जंगल में स्त्री और पुरुष केवल हम दोनों ही हैं और मैं तो मानता हूं कि स्त्री और पुरुष के बीच प्रेम की पराकाष्ठा है उन दोनों के बीच यौन संबंध। यदि कोई स्त्री किसी भी पुरूष को सच्चा प्यार करती है तो उस पुरूष को अपना बेशकीमती अंग अपनी योनि जरूर दिखाएगी और यौन सम्बंध बनाने देगी, भले उस स्त्री पुरूष के बीच किसी भी प्रकार का रिश्ता भले ही क्यों ना हो!!!

इस बात चीत के दौरान रत्ना देव से रिश्तों की दुहाई तो दे रही थी, लेकिन इस दौरान वह अपने हाथ देव के लिंग से नहीं हटाती है क्यों कि उसका दिल देव के लिंग पर से हाथ हटाने का हो नहीं रहा था और हो भी क्यों ना, देव का लन्ड इतना प्यारा जो था,,, देव आगे फिर कहते हैं
माते मैं सच कहता हूं मैं आपसे बहुत प्यार करने लगा हूं और मै यह भी जानता हूं कि आप भी मुझे बहुत प्यार करती है, तो मां आप मेरे प्यार को स्वीकार कर लो,,,, माते आप ठंडे दिमाग से सोच लो आपको मेरा प्यार मंजूर है कि नहीं और आप इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहती है कि नहीं,,, मां ये तो सोचिए,, आपको जो चाहिए वो मेरे पास है और मुझे जो चीज चाहिए वो आपके पास है तो हम दोनों इसके लिए क्यों तड़पते रहे,,, क्यो ना इस सुनसान जंगल में हम दोनों एक दूसरे को संतुष्ट करें और जीवन का आनन्द ले,,,,इस जंगल में हम दोनों क्या कर रहे हैं, यह कोई जान भी नहीं पाएगा माते,,,, यहां की बात यहीं रह जाएगी मां,,,,,,,,आप एक काम कीजिए माते,,,,, आप यहां बैठिए और मैं जंगल से फूल तोड़ कर पुष्प की दो माला बनाता हूं और उसे ले कर आपके सामने आता हूं, यदि आपने मेरे हाथ से एक हार ले लिया तो मै समझूंगा कि आपको मेरा प्यार मंजूर है!!!! कहिए मंजूर है?

इस पर रानी रत्ना कोई जवाब नहीं देती,, इधर रत्ना को कोई जवाब देता नही देख देव कुछ देर खड़े रहते हैं और फिर जंगल में पुष्प चुनने चले जाते हैं, उन्हें दो हार जो बनाने थे,,,
इधर रत्ना एक शिला पर बैठ कर इधर कुछ दिनों में हुए घटना चक्र के बारे में सोच रही होती हैं। वह मन में ही सोचती है
ये तो मै पाप ही कर रही थी। छी, अपने पुत्र के साथ यौन सम्बंध कितना गलत है। लेकिन मेरा पुत्र तो सबसे अलग है। कितना प्यार करता है मुझे। कितनी बार तो उसने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए मेरी जान बचाई। कोई इतना प्यार करने वाला मुझे मिलेगा क्या भला । और पुत्र है तो क्या, एक पुरूष भी तो है ,,, सही तो कहा है देव ने इस सुनसान जंगल में हमें कौन जानता है कि हम दोनों मां बेटे हैं। और उसका लन्ड कितना आकर्षक है। मै तो उसके लन्ड की दीवानी हो गई हूं।,,, यह बात तो सच ही है कि मै स्वयं उसके आकर्षण मे बंध गई हूं,, उससे प्यार करने लगी हूं,, भले ही उसके सामने मैने यह स्वीकार नहीं किया,,,
रत्ना शिला पर ऐसे ही एक झीनी सी चुन्नी ओढ़ कर बैठी रहती है और यही सोचती रहती हैं और उधेड़बुन में पड़ी रहती हैं। उधर देव काफ़ी मेहनत करके पुष्प संग्रह करते हैं लताओं के रेशे को धागा बना कर दो सुंदर माला तैयार करते हैं और दोनो माला ले कर अपनी मां रानी रत्ना देवी के सामने जाकर खड़े हो जाते हैं । रत्ना गंभीर चिन्तन में बैठी रहती हैं, उन्हें इसका भान ही नहीं रहता है कि देव उनके सामने आकर खड़े हैं। तभी देव कहते हैं
" माते "
देव के आवाज देने से रत्ना की तंद्रा टूटती है । वह देखती है कि देव उनके सामने पुष्प की दो माला लिए खड़े हैं। तब रत्ना खड़ी हो जाती है और कुछ देर सोचती रहती हैं। तब देव कहते हैं
देखिए मां, मैने दो मालाएं तैयार कर ली है,अब आप या तो मेरे हाथ से माला ले कर मेरे प्रेम को स्वीकार कर लीजिए या अगर आप ये माला स्वीकार नहीं करती हैं तो मैं तो समझूंगा कि आपने मेरे प्यार को स्वीकार नहीं किया है और आपने मेरे प्यार को ठुकरा दिया है,,,,

इस पर रत्ना देव की ओर अपने कदम आगे बढ़ाती हैं। आज रत्ना को कदम बढ़ाने में ऐसा लग रहा था मानो उसके पैर जमीन में गड़ गए और इतने भारी हो गए हैं कि वो उठ ही नहीं पा रहे हैं,,,,, वो बहुत धीमे कदम से आगे बढ़ती है,,,,,अपनी मां को अपनी ओर आता देख देव बहुत खुश होते हैं कि लगता है उनकी मां ने उनका प्रणय निवेदन स्वीकार कर लिया है।,,, रत्ना आगे तो बढ़ती है लेकिन जब देव को ऐसा लगा कि उसकी मां उसके एकदम करीब आ गई है, ,,,तब रत्ना देव के बिल्कुल बगल से निकल कर आगे बढ़ जाती है,,,,,,,,। अब स्थिति यह थी कि रत्ना की पीठ देव की पीठ के तरफ़ हो गई थी। ,,,,दोनों कुछ नहीं बोलते हैं।,,,,,,,, लेकिन देव को बड़ा दुख होता है कि उसकी मां ने उसका प्रणय निवेदन स्वीकार नहीं किया, उसकी आंखें भर आती हैं और वह सिर झुका कर बड़े भारी मन से वहा से जाने के लिए एक कदम आगे बढ़ाते हैं, ऐसा लग रहा था कि उनका पैर इतना भारी हो गया था कि वह उठ ही नहीं रहा था।,,,, उन्होंने अभी एक कदम आगे बढ़ाया ही था कि उन्हें अहसास होता है कि किसी ने पीछे से उनका हाथ पकड़ लिया है। वो यह देखने के लिए की किसने उनका हाथ पकड़ा है, जैसे ही वह पीछे मुड़ते है, वह देखते हैं कि उनकी मां ने उनका हाथ पकड़ा हुआ है और वह मुस्कुराते हुए देव की आंखों में देखते हुए कहती हैं

पुत्र, आप फूलों की माला तो अच्छी बना लेते हैं, कहां से सीखा आपने इतने सुन्दर हार बनाना,,,

ऐसा बोल कर रत्ना धीरे से देव के हाथ से एक माला ले कर देखने लगती हैं जिसका भान देव को होता ही नहीं है,,,,और फिर रत्ना कहती है,,,,
"बहुत सुन्दर माला है देव"
अभी के घटनाक्रम में देव को इसका ध्यान ही नहीं रहता है कि रत्ना ने उनके हाथ से माला ले ली है। इस दौरान दोनों मां बेटे पूरे नंगे ही रहते हैं, केवल रत्ना के शरीर पर नाम मात्र की एक चुन्नी रहती हैं । तभी देव कहते हैं
माते मैं आपके प्यार मे बंध गया था। लेकिन कोई बात नहीं आपने मेरे प्यार को स्वीकार नहीं किया

तभी रत्ना हंसने लगती है तो देव कहते हैं
आप हंस क्यूं रही हैं माते
तब इस पर रत्ना कहती है
बुद्धू महाराज,,, अरे जरा देखो तो सही, मेरे हाथ में क्या है,,,,, देखो मेरे हाथ में ही तुम्हरी माला है

तब देव अपनी मां के हाथ में देखते हैं तो उन्हें यह ध्यान आता है कि सच में माला तो मां के हाथ में है। मां ने बातों में फसा कर माला अपने हाथ में ले लिया और उदासी में रहने के कारण इसका पता देव को नहीं चल सका!! पहले देव को इसका मतलब ही समझ में नहीं आया कि उनकी मां ने बातों बातों में उनके हाथ से फूलों की जो माला ले ली, उसका मतलब क्या है,,,, लेकिन जैसे ही देव को इसका मतलब पता चला ,,, तब देव अपनी मां के हाथ में माला देख कर खुशी से झूम पड़ते हैं और कहते हैं

धन्यवाद मां, आपने मेरा प्यार स्वीकार किया

और ये कहते हुए खुशी से नंगे ही अपनी मां के गले लग जाते हैं और प्यार से गले पर चुम्बन जड़ देते हैं। फिर थोडी देर में दोनो अलग होते हैं तो रत्ना कहती है

की पुत्र, इस माला को मैने ले तो लिया, अब इसका क्या करें
देव,,, आपको जो उचित लगे माते

इस पर रानी रत्ना कुछ देर सोचती है और फिर वह माला देव के गले में डाल देती है और कहती हैं अब हुआ तुम्हरा प्रेम स्वीकार। तब देव भी थोडी देर सोचते हैं और फिर संकोच करते हुए थोड़ा आगे बढ़ते हैं और फिर अपनी मां के गले में माला डाल कर कहते हैं
मेरा प्यार स्वीकार करने के लिए शुक्रिया मां,

और ऐसा बोलकर देव आगे बढ़ते हैं और अपने होंठ अपनी मां के होंठों पर रख कर चूमने लगते है। रत्ना भी उनका साथ देते हुए देव के होंठों को चूमने लगती हैं। अब दोनों उसी स्थिति में आ जाते हैं जहां कुछ घंटों पूर्व रत्ना ने देव के चुम्बन को अस्वीकार कर दिया था। लेकिन अब वही रत्ना देव के होठों को खुब चाव से चूम रही थी। थोड़ी देर बाद दोनों मां बेटे अलग होते हैं तो रत्ना कहती है
पुत्र, आपके प्रेम को तो मैने स्वीकार कर लिया, लेकिन मैं तुम्हारे लिए अभी अशुद्ध हूं

देव,,, अशुद्ध,, इससे आपका क्या अभिप्राय है, आप मेरे लिए अशुद्ध कैसे हो सकती हैं मां?

रत्ना,,,,, अशुद्ध इसलिए की मैं अभी तुम्हारे लिए अपवित्र हूं

देव,,, अशुद्ध,,, अपवित्र,,, इन सबका क्या मतलब है मां, मै नहीं समझ पा रहा हूं, ,, आप मेरे लिए इस संसार में सबसे पवित्र और शुद्ध हैं माते,,

रत्ना,,, मैं आपके लिए अपवित्र इसलिए हूं क्योंकि आपके पिता श्री ने मुझे अशुद्ध किया है, अपबित्र किया है,, उन्होंने मेरे इस शरीर को भोगा है,, मेरे शरीर के अंतरंग भाग तक उन्होंने मुझे भोगा है पुत्र,, इसलिए मैं आपके पिता श्री के लिए तो पवित्र हूं,,,,,लेकिन मै अभी आपके लिए अशुद्ध हूं



देव,,,, इन सब से क्या फर्क पड़ता है माते



रत्ना,,, फर्क पड़ता है पुत्र, मै अपवित्र स्थिति में अपने पुत्र से प्रेम नहीं कर सकती



देव,,, तो अब किया क्या जा सकता है, इसका उपाय क्या है मां



रत्ना,, उपाय है पुत्र,,, उपाय है,, इसके लिए हमे शुद्धिकरण की क्रिया करनी होगी



देव,,, शुद्धिकरण की प्रक्रिया।!!!



रत्ना,,, हां, शुद्धिकरण की प्रक्रिया,,,



देव,,, लेकिन ये शुद्धिकरण की क्रिया करते कैसे हैं? और इसकी जानकारी आपको कैसे हैं माते ?



रत्ना,,,यह बहुत गुप्त क्रिया है पुत्र, जिसे बहुत कम लोग ही जानते हैं।।। मुझे इस क्रिया की जानकारी विवाह के पूर्व ही राजवैद्य की पत्नी ने बताया था। लेकिन यह शुद्धिकरण की क्रिया बहुत ही जटिल है और इसे सभी नहीं कर पाते हैं।



देव,,, माते, लेकिन यह शुद्धिकरण की क्रिया इतनी कठिन क्यों है और इसे सभी क्यों नहीं कर पाते हैं ?



रत्ना,,, ये क्रिया इसलिए जटिल है पुत्र क्योंकि इस क्रिया में स्त्री को अपने पूरे शरीर को पुरूष के पेशाब से धोना होता है और पुरूष को स्त्री के पेशाब से,,,



देव,,,,, तो यह क्रिया तो वाकई बहुत जटिल है माते,,, और इस सुनसान जंगल में कौन पुरूष होगा जो शरीर धोने के लिए पेशाब देगा,,, और मां, आप इस घिनौनी क्रिया को करने को कैसे तैयार होंगी?



रत्ना,,, पुत्र पेशाब इकट्ठा नहीं करना है,,, बल्कि जब पुरूष पेशाब कर रहा हो तब उसी की धार से ही नंगे शरीर को धोना है,,

देव,,, ओह, तब तो इनमे काफी समय भी लगेगा,,,, क्यों कि एक बार पेशाब करने से पूरा शरीर तो धूल नहीं सकता है,,,

रत्ना,,, सही कहा पुत्र आपने,,, यह क्रिया दो तीन बार मे पूरी होती है

देव,,, लेकिन मां, आप पेशाब से नहाएंगी, तो आपको घिन्न नहीं आएगी क्या?

रत्ना,, नहीं पुत्र,, मुझे अपने शुद्धिकरण के लिए पेशाब से नहाने में कोई घिन्न नहीं आएगी

देव,,, चलो, वो सब तो ठीक है मां,,, लेकिन इस जंगल में पेशाब करने वाला पुरूष मिलेगा कहां ?

रत्ना,, मिलेगा पुत्र मिलेगा और वो यहीं हैं,,,

देव,,, कौन है माते वो,,

रत्ना,,, वो तुम हो देव तुम

देव,,, नहीं माते नहीं,,, मैं ऐसा नहीं कर सकता,,, मै आपके शरीर पर पेशाब नहीं कर सकता,,, आप मेरे लिए पूज्यनीय है माते,, और मै जिसका दिलो जान से इतना सम्मान करता हूं,,, उसके उपर मै पेशाब,,, बिल्कुल नहीं बिल्कुल नहीं कर सकता,,,,

रत्ना,,,,,, मै जानती हूं पुत्र तुम मुझे बहुत प्यार करते हो, मेरा बहुत सम्मान करते हो,,, मैं तो धन्य हो गई तुम जैसे प्यारे आज्ञाकारी पुत्र को पा कर,,, लेकिन पुत्र क्या तुम अपनी मां के शुद्धिकरण के लिए इतना भी नहीं कर सकते,,, जबकि मुझे तुम्हारे पेशाब से नहाने में कोई ऐतराज नहीं है,,, मैने भी तो आज सुबह तुम्हारे उपर पेशाब कर ही दिया था!!!!

देव,,,, वो तो ठीक है मां,, लेकिन मुझसे यह नहीं हो पाएगा,,, भले ही मै आपके प्यार से वंचित रह जाऊं,,, मै आपका अपमान नहीं कर सकता माते,,, यदि मै ऐसा करूंगा तो नरक का भागी बनूंगा माते,,,

रत्ना,,, मै बहुत खुश हूं कि तुम मेरा इतना सम्मान करते हो पुत्र,, लेकिन जब तुम यह क्रिया मेरे साथ मेरी सहमति से करोगे तब कोई नरक के भागी नहीं बनोगे,,, इसीलिए मैंने कहा था न कि यह क्रिया थोडी जटिल है,,, और पुत्र यदि आप सहयोग नहीं करेंगे तो आपकी यह मां प्यासी ही रह जाएगी,, क्या आप नहीं चाहते कि आपकी मां की मंशा पूरी हो,,,

देव,,, चाहता हूं मां, मै तो चाहता ही हूं,, लेकिन यह क्रिया मुझे घिनौनी लग रही थी और खास कर यदि मैं आप पर पेशाब करूं तो,,, वैसे आप चाहती हैं तो मैं तैयार हूं, लेकिन मेरी एक शर्त है

रत्ना,,, शर्त,, कैसी शर्त , पुत्र।।

देव,,, शर्त यह है कि आप भी मेरा शुद्धिकरण करेंगी और मेरे शरीर को अपने पेशाब से धोएंगी।।। हम दोनों मां बेटे एक दूसरे को पेशाब से नहलाएंगे,,,



रत्ना,,, आप तो अशुद्ध हैं नहीं पुत्र, तो फिर आपको शुद्धिकरण की क्या आवश्यकता है?

देव,,, अगर आप मेरा शुद्धिकरण नहीं करेंगी तो मैं भी आपके साथ शुद्धिकरण नहीं करूंगा,,

रत्ना,,, वैसे तो मैंने सुबह में ही आपके लिंग को अपने पेशाब से धो ही दिया है,,, लेकिन अगर आप ऐसा ही चाहते हैं तो मैं आपके साथ शुद्धिकरण करूंगी,,,



देव,,, मां, मुझे तो जोरो की पेशाब लगी है , यदि आप चाहें तो शुद्धिकरण की क्रिया शुरु कर दी जाए

रत्ना,, हाय!!! बड़ी जल्दी है मेरे पुत्र को यह क्रिया पूर्ण करने की !!!

देव,,, जिस पुत्र की मां इतनी सुन्दर हो , वह ये क्रिया जल्दी पूर्ण करना क्यों नहीं चाहेगा

रत्ना,, मुस्कुराते हुए,, चलो मान लिया मै सुन्दर हूं,,,अब चलो यह क्रिया शुरु करते हैं

यह कहते हुए रत्ना वहीं देव के सामने बैठ जाती है और कहती है

पुत्र आप पेशाब करना शुरु करे, मुझे अपने शरीर का जो अंग धोना होगा, मै धो लूंगी

रत्ना के ऐसा कहने पर देव पेशाब करना शुरु करते हैं तो रत्ना देव के पेशाब की धार में अपना चेहरा ले आती है तो स्थिति यह हो जाती है कि देव रत्ना के चेहरे पर पेशाब कर रहें होते हैं और रत्ना अपने दोनों हाथों से रगड़ रगड़ कर अपना चेहरा देव के पेशाब से धोने लगती है , साफ करने लगती हैं,,, देव के गुनगुने पेशाब से चेहरा धोने से रत्ना का चेहरा और चमक उठता है और चंद्रमा की भांति चमकने लगता है,, तभी रत्ना अपना चेहरा हटा कर देव के पेशाब से अपने बाल धूलने लगती है,,,,, देव फिर रत्ना के सिर पर पेशाब करने लगते हैं,,, अब रत्ना देव के पेशाब से अपना सिर धूलती है और फिर अपने लम्बे बालों को आगे कर के अपने बाल दोनो हाथो से रगड़ रगड़ कर धूलने लगती है,,, देव के पेशाब की मादक खुशबू रत्ना को मदहोश किए जा रही थी,,,, एक तो कई दिनों से अनचूदी महिला और उपर से ऐसा कामुक दृश्य, साथ ही एक गबरू जवान पुरूष के पेशाब की मादक गंध रत्ना को पागल किए हुई थी,,,,, रत्ना जब अपने बाल धो लेती हैं तो अपने बालों को निचोड़ कर पीछे पीठ पर कर देती हैं,,, ,,, और फिर अपने स्तनों को देव के पेशाब की धार के सामने ले आती है और अपने दोनों स्तनों को धोने लगती है। रत्ना के स्तन उसके शरीर के दुसरे अंगों की अपेक्षा ज्यादा गोरे तो थे ही देव के पेशाब से धुलने के कारण और चमकने लगे थे ,, ऐसा लग रहा था जैसे संगमरमर को अभी चमकाया गया हो,,,, रत्ना अपने स्तन के चूचुक को भी अपनी उंगलियों से हौले हौले रगड़ कर साफ करती है और फिर दोनों हाथों से अपने पेट और नाभि को साफ करती है,,,,, रत्ना यह सारी क्रिया जल्दी जल्दी ही कर रही थी,,,,, लेकिन कमर तक पहुंचते पहुंचते देव के पेशाब की धार खत्म हो जाती है,,, वे पेशाब कर चुके थे,,,, तब देव कहते हैं

मां, मेरा पेशाब तो खतम हो गया

रत्ना,,,

लेकिन अभी तो शुद्धिकरण की क्रिया आधी ही हुई है आधी क्रिया तो बची ही हुई है,,,, ऐसा करो पुत्र, तुम झरने का पानी पी लो,, थोड़ी देर में फिर से तुम्हें पेशाब लग जायेगी,,,

देव,,

हां, माते, मै पानी पी लेता हूं और जब मेरे सामने विश्व की सबसे खूबसूरत नारी ऐसे मादरजात नंगी खड़ी रहेगी तो पेशाब भी जल्दी ही लग जायेगी

इस पर दोनों मां बेटे हस देते हैं और देव झरने से पानी पीने चले जाते हैं और भर पेट पानी पी कर वो रत्ना के पास आते हैं और थोड़ा टहलने लगते हैं। कुछ देर टहलने के बाद उन्हे फिर पेशाब आ जाता है तो वह कहते हैं

माते, अब मुझे जोरों की पेशाब लगी है,,,

इस पर रत्ना खड़ी ही रहती है, और देव को कहती है

अब तुम पेशाब करो पुत्र

तब देव पेशाब करने लगते है,। रत्ना पहले अपने दोनों पैरों को धोती है और फिर देव को पेशाब रोकने को बोलती है। देव अपना पेशाब रोक लेते हैं। तब रत्ना वही एक शिला पर उकडूं बन कर बैठ जाती हैं। शिला की उंचाई लगभग देव की कमर की ऊंचाई के बराबर थी। रत्ना अब अपने नितम्बों को शिला पर रखती है और अपनी जांघें खोल देती हैं जिससे उनकी योनि स्पष्ट रूप से देव के सामने खुल जाती है। उनकी योनि पे हल्की झांटे थी , उन झांटों को अपने हाथ से हटा कर वे अपनी बुर को फैला देती है जिससे उनके बुर की ललाई दिखने लगती है। अपनी मां की योनि की लालिमा को देख कर देव उत्तेजित हो जाते हैं और उनका लन्ड खड़ा होने लगता है जिसे रत्ना देख लेती हैं,,,, तो रत्ना कहती हैं

पुत्र, आप जल्दी पेशाब करना शुरु कीजिए,, नहीं तो एक बार आपका लिंग अगर खड़ा हो गया तो फिर आप पेशाब नहीं कर पायेंगे । और हां, इस बार आप मेरे बुर पर ही पेशाब कीजिए।

रत्ना के कहते ही देव रत्ना के बुर पर पेशाब करने लगते हैं और रत्ना अपनी योनि को धोने लगती है। वह अपने भग्नाशे को पहले धोती है और फिर अपनी योनि की दोनों फांकों को फैला कर पेशाब से योनि के अंदरूनी भाग को धोने लगती हैं,,,,, वह कोशिश करती हैं कि जितना अंदर तक हो सके उतना योनि अंदर तक देव के पेशाब से धुलाई हो जाए ताकि शुद्धिकरण की क्रिया अच्छे से पूर्ण हो, रत्ना कहती हैं

पुत्र और तेज धार मारो। योनि की गहराई तक आपके पेशाब की धार पहुंचना आवश्यक है क्योंकि योनि का शुद्धिकरण इस क्रिया का सबसे महत्वपूर्ण भाग है और इसका अच्छे से पूर्ण होना इस क्रिया की सफलता के लिए बहुत जरूरी है। योनि ही शरीर का वह भाग होती है जो सबसे ज्यादा अपवित्र होती है क्योंकि पुरूष सही मायने में योनि के माध्यम से ही स्त्री को भोगता है और अपने लिंग का प्रवेश स्त्री की योनि के अन्दर में करता है और स्त्री पुरूष के मिलन को पूर्ण करता है। आपके पेशाब की धार से मेरी योनि अन्दर तक धूल गई है। मेरी यह योनि अब मेरे पुत्र के लिए शुद्ध और पवित्र हो चुकी है।

देव ने काफी पानी पीया था इसलिए वो पेशाब भी ज्यादा कर रहे थे। अपनी मां की योनि अपने लिंग से धोने के बाद भी देव अभी अपनी मां के ऊपर पेशाब कर ही रहे थे कि रत्ना ने अपनी हथेलियों से अंजुल बना कर उसमें देव का पेशाब भरा और उस पेशाब को झट से पी गई। इस पर देव कहते हैं

ये क्या किया माते। आप मेरा पेशाब पी गई।

तब रत्ना कहती है

इस शुद्धिकरण की क्रिया का समापन ऐसे ही होता है पुत्र। मैने कहा था न कि यह क्रिया थोड़ी कठिन और जटिल है। इन्हीं कारणों से यह क्रिया जटिल मानी जाती है पुत्र और इस क्रिया को पूर्ण करना सबके बस की बात नही है। फिर मन में रत्ना कहती है ( मै तो आपके मोह पाश में ऐसे बंधी हूं पुत्र की आपके साथ संसर्ग करने के लिए मैं इस क्रिया को भी पूरी करने की तैयार हो गई!!! )

तब देव कहते हैं

माते अब आप मेरे उपर पेशाब कर के शुद्धिकरण की क्रिया को पूर्ण करें।

रत्ना,,

आप बैठ जाएं पुत्र, ,, मै इस शिला पर ही बैठ कर आपके ऊपर पेशाब करती हूं और आप अपने पूरे शरीर को मेरे पेशाब से धो लीजिए।

देव,,,

जैसा आप कहें माते

इस पर देव वहीं नीचे उकडू बन कर बैठ जाते हैं और रत्ना उस शिला पर उकड़ू बन कर बैठ जाती हैं और अपनी जांघें खोल कर अपनी बुर से पेशाब की धार निकालने लगती हैं जो देव के सिर पर गिरता है। देव पहले अपने सिर को धोते हैं और फिर अपने चेहरे को अपनी मां के पेशाब से धोते हैं जिससे राजकुमार का चेहरा दम दम दमकने लगता है। देव कहते हैं

बड़ा आनन्द आ रहा है माते, आपकी पवित्र योनि से निकले पेशाब से स्नान कर के। यह शुद्धिकरण की क्रिया जटिल भले ही हैं, लेकिन आनंददायी है।

फिर देव अपने हाथ, पेट और पीठ धोते हैं और फिर खड़े हो जाते हैं। उनके खड़ा होने से उनका लन्ड रत्ना की योनि के सामने आ जाता है क्योंकि रत्ना कुछ ऊंचाई पर एक शिला पर बैठी हुई थीं। अब रत्ना के पेशाब की धार देव के लिंग पर पड़ने लगती है। देव अपने लन्ड को अपनी मां के सामने ही उनके पेशाब से धोने लगते हैं और फिर अपने लिंग के ऊपर की चमड़ी को पीछे खींच कर उसके गुलाबी सुपाड़े को अपनी मां के पेशाब से धोने लगते हैं और कहते हैं



माते मैने भी अपने लिंग के अंदरूनी भाग को आपके पेशाब से धूल कर पवित्र कर दिया है। अब मेरा लिंग भी अपनी मां के लिए पवित्र हो गया है।



इस पर रत्ना मुस्कुरा देती है और कहती है

पुत्र आप अपने अंडकोष को भी धो लें।

इस पर देव ने अपने अंड कोष को भी अपने हाथ से धो लिया। और फिर देव ने भी वही काम किया जो रत्ना ने किया था। उसने भी अपने अंजुल में रत्ना का पेशाब लिया और उसे गट गट कर पी गए और कहा

अब पूर्ण हुई शुद्धिकरण की क्रिया!!!



इस पर रानी रत्ना हस पड़ती हैं और नंगे हंसते हुए वह बहुत प्यारी लग रही थी। तब रत्ना कहती हैं

अब हमें साथ में झील में स्नान करना होगा पुत्र।

इस पर दोनो मां बेटे एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए झील की ओर बढ़ चलते हैं,,, वहां झील के पास पहुंच कर दोनों झील के अन्दर साथ साथ चले जाते हैं और वहां कमर तक पानी में जाकर दोनों खड़े हो जाते है। दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते रहते हैं और फिर रत्ना अपने हाथ से झील का पानी उछाल उछाल कर देव के शरीर को भीगो देती हैं और अपने दोनों हाथों से देव को रगड़ रगड़ कर नहलाने लगती हैं। वो अपने हाथ से पानी उठाकर देव के बदन पर डालती हैं और धोने लगती हैं। रत्ना के देखा देखी देव भी झील के पानी से रत्ना के नंगे बदन को गीला कर के नहलाने लगते हैं। अब दोनों मां बेटे एक दूसरे के शरीर पर अपने हाथ फेर फेर कर एक दूसरे के शरीर को धोने लगते हैं। दोनों मां बेटे एक दूसरे के सामने खड़े थे और दोनों का चेहरा एक दूसरे के सामने। दोनों एक दूसरे की आंखों में प्यार से देखे जा रहे थे,,, दोनों के होंठ बिल्कुल एक दूसरे के सामने थे,,,, दोनों में काम भावना उफान मार रही थी,,, तभी रत्ना ने कामभावना से वशीभूत हो कर अपने होंठ देव के होंठ पर रख दिए। देव को भी अपनी मां के होंठों का स्पर्श अच्छा लगा। देव ने भी अपने होंठों का दबाव अपनी मां के होंठों पर बढ़ाया और अपने होंठो को खोल कर अपनी मां के होंठों को चूसने लगा। देव का इस तरह होंठ चूसना रत्ना को भी अच्छा लगा तो वह भी देव का साथ देने लगी और देव के मुंह में जीभ डाल कर उसके जीभ से जीभ लड़ाने लगी। देव भी अपनी जीभ रत्ना की जीभ से लिपटा दे रहे थे और लड़ा भी रहे थे।दोनों मां बेटे आंखे बन्द कर के एक दूसरे के होंठों को चूसने का आनन्द ले रहे थे,,,,, तभी देव जोश में आकर रत्ना के होंठ को चबा जाते हैं,,, तो रत्ना के मुंह से चीख निकल जाती है और वह देव से अलग होती हैं,,, रत्ना कुछ कहती नही है, लेकिन देव को देख कर शरमा जाती है और फिर कहती हैं

कोई ऐसे भी भला होंठ चूसता है क्या भला, देखो तो पुत्र आपने तो मेरे होंठ ही चबा डाले,,,

देव यह सुन कर थोड़ा मुस्कुराते हैं और कहते हैं



आज का दिन हमारे जीवन मे बड़ा महत्वपूर्ण है मां। आज का दिन हमारे जीवन में नई सुबह ले कर आया है। आपका तो मालूम नहीं माते, लेकिन मुझे बड़ा अच्छा लग रहा है, ,,, पहली बार मै किसी नारी के साथ प्रणय कर रहा हूं और वह भी अपनी मां के साथ,,, यह अहसास ही अप्रतिम खुशी दे रहा है,,, दुनिया में बिरले ही पुत्रों को अपनी मां के साथ पुरूष और नारी वाला प्रेम करने का अवसर मिल पाता है,,



तब रत्ना कहती हैं

तुम बिलकुल सही कह रहे हो पुत्र,,, इस सम्बंध का अलग ही आनंद है

रत्ना इतना बोलती हैं और फिर देव को गले लगा लेती हैं। फिर रत्ना देव से थोड़ा अलग होती हैं और सामने से उनके दोनों हाथों को पकड़ कर कहती हैं

आओ पुत्र, अब शुद्धिकरण की क्रिया को पूर्ण कर लिया जाए। आओ पुत्र, हम दोनों एक साथ डुबकी लगा कर इस क्रिया को पूर्ण करें।



ऐसा बोल कर रत्ना और देव दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर एक साथ डुबकी लगाते हैं और कुछ देर पानी में डुबकी लगाने के बाद डुबकी लगा कर बाहर निकल जाते हैं,,,, दोनों आज बहुत खुश रहते हैं। ,,, डुबकी लगाने के बाद दोनों झील के पानी से बाहर निकल कर झील के किनारे एक दूसरे का हाथ पकड़े ही आ जाते हैं,,, दोनों झील के किनारे आकर दिन के दुसरे पहर की सुनहरी धूप में एक दूसरे को गले लगा लेते हैं और दोनों मां बेटे नंगे ही एक दुसरे को आगोश में ले लेती हैं। उत्तेजनावश देव पुनः अपनी मां रानी रत्ना देवी के होंठों को चुसने लगते हैं,। रत्ना भी काम वासना से अभीभूत होकर देव का साथ देने लगती हैं और अपने स्तनों को देव के छाती से रगड़ने लगती हैं। देव काफी देर से अपनी मां के नंगे शरीर का सान्निध्य तो पा ही रहे थे जिसका असर देव के लन्ड पर ही होने लगता है,,, देव का लंड टनटना कर खड़ा हो जाता है जिसका अनुभव रत्ना अपने नाभी के पास करती हैं क्योंकि देव का लंड उत्तेजनावश इस तरह खड़ा हो जाता है मानो वह रत्ना के स्तनों को प्यार से देख रहा हो। अपने पेट पर अपने पुत्र के लिंग की चुभन रत्ना बर्दास्त नहीं कर पाती हैं और उत्तेजनावश अपने हाथ से देव के खड़े लंड को पकड़ कर सहलाने लगती हैं। वो देव के लन्ड की चमड़ी को पीछे खींच कर उसके गुलाबी सुपाड़े को अपनी उंगलियों से सहलाने लगती हैं जिससे देव के लिंग में उत्तेजना का संचार और बढ़ जाता है और वह झटके मारने लगता है। देव भी उत्तेजित होकर अपनी मां की योनि पर अपना हाथ रख देते हैं और उसे बड़े प्यार से सहलाने लगते हैं। दोनों मां बेटे एक दूसरे के आगोश में समाए हुए एक दूसरे के होंठों को चूसते रहते हैं और एक दूसरे के गुप्तांगों को सहला रहे थे। देव एक हाथ उठा कर रत्ना के एक स्तन पर रख कर दबाने लगते हैं। तभी रत्ना अपने होंठ अलग कर देव से कहती हैं

पुत्र, हम सही कर रहे हैं ना ? मुझे कभी कभी लगता है कि हम दोनों के बीच यह सब नहीं होना चाहिए, आखिर हम दोनों मां बेटे जो हैं,,,

रत्ना ऐसा बोलती तो है लेकिन देव के लिंग पर से अपने हाथ को नहीं हटाती है, बल्कि उसे पकड़े रहती है और उनके सुपाड़े को अपनी उंगलियों से सहलाती रहती है

इस पर देव कहते हैं

माते, हम कुछ गलत नहीं कर रहे हैं। हम दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं और प्रेम करना कोई गुनाह नहीं है। भले ही हम दोनों मां बेटे हैं, लेकिन साथ में हम स्त्री पुरूष भी तो है, हमारी भी कुछ जरुरतें हैं। जो आपको चाहिए, वो मेरे पास है और जो मुझे चाहिए वो आपके पास है। मां, हम ये संबंध बना कर अपने प्रेम को एक नई ऊंचाई पर ले जा रहे हैं और मै आपको बता देना चाहता हूं मां कि आज के बाद आपके लिए मेरे मन में सम्मान और बढ़ गया है , ,,, आपके सम्मान में कोई कमी नहीं होगी। और सोचिए माते, इस जंगल में हम दोनों प्यार के लिए कहां भटकते,,, जबकि हम दोनों खुद एक दूसरे की प्यास बुझा सकते हैं,,,,, क्या अब भी आपको लगता है कि हम दोनों गलत कर रहे हैं??

तब इस पर रत्ना कहती है,,,

पुत्र, लेकिन मन के किसी कोने में डर लगता है,,, कहीं किसी को पता चल गया तो क्या होगा,,,, हम किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे,,,,, इस दुनिया में सबसे पवित्र रिश्ता मां बेटे का ही होता है और यह इतना पवित्र माना जाता है कि किसी जवान पुत्र को अपनी मां के साथ एक ही कम्बल में सोते देख लिया जाए, तब भी उन दोनों के रिश्तों पर कोई शक नहीं करेगा,,,,, और उस तरह के रिश्तों में स्त्री और पुरुष का संबंध स्थापित करना कितना निकृष्ट कार्य होगा

तब देव कहते हैं,,

ऐसा आप सोचती है मां,,,,, इस दुनिया में कई ऐसे घर होंगे जहां घर की चहारदीवारी के अंदर मां बेटे स्त्री पुरुष का संबंध बनाते होंगे,, आपस में खुलकर सम्भोग करते होंगे,,,, यौन सम्बंध बनाते होंगे,,,, लेकिन इसकी खबर किसी को नहीं होती,,,, और ये नियम तो हम इंसानों ने बनाए हैं कि मां और बेटा आपस में यौन सम्बंध नहीं बना सकते,,,, चुदाई नहीं कर सकते,,, लेकिन प्राकृतिक रूप से तो वे चुदाई कर ही सकते हैं,,, पुरूष की प्रकृति होती है स्त्री के प्रति आकर्षित होना और स्त्री की प्रकृति होती है पुरूष के प्रति आकर्षित होना और प्रकृति का मूल नियम यही है और यह स्वाभाविक ही है कि मां और बेटा आकर्षित हो सकते हैं,,, हां ये अलग बात है कि ये भावना कोई किसी को बताता नहीं है,,, और मां, जहां तक बात है किसी को हमारे इस अंतरंग रिश्ते की जानकारी होने की,,, तो किसी को कुछ पता कैसे चलेगा,,,, मै तो यह किसी को बताने नहीं जा रहा और न मुझे लगता है कि आप भी किसी को बताएंगी,,, तो किसी को कुछ पता कैसे चलेगा,,,, और हां, इस जंगल में हम दोनों के सिवाय कोई है भी नहीं,, जो किसी को हमारे सम्बन्ध का पता होने का डर ही हो,,,

रानी रत्ना इस संवाद के दौरान भी देव का लन्ड अपने हाथ में पकड़ी रहती है और सहलाती रहती हैं जो अपने मां का स्पर्श पाकर और खड़ा हो गया था। इधर देव भी रत्न की बुर को सहलाए जा रहे थे और कामुक बातें करते जा रहे थे । इससे रतना और उत्तेजित हो गई थी और उत्तेजनावश देव को फिर गले लगा कर अपने स्तन देव की छाती में दबा देती हैं और फिर कहती है

पुत्र, तुमने मेरा संसय दूर कर दिया,,,, मैं तो केवल इस बात से डर रही थी कि यदि हमारे इस अंतरंग रिश्ते की जानकारी किसी को लग गई तो दुनिया हम पे थूकेगी,,, लेकिन चलो अच्छा है इस जंगल में हमारे सिवाय कोई नहीं है,,, लेकिन पुत्र एक बात का हमेशा ख्याल रखना,, हमारे इस अंतरंग संबंध की जानकारी हम दोनों के अलावा किसी को नहीं होनी चाहिए,,,

इस पर देव कुछ नहीं बोलते हैं, बस थोड़ा मुस्कुराते हैं और कहते हैं,,

किसी को कुछ पता नहीं चलेगा मां,,

और ये कहते हुए वो अपनी मां से थोड़ा अलग होते हैं और रत्न को वैसे नंगे ही अपनी बाहों में गोद में उठा लेते हैं और रत्ना की आंखों में देखते हुए कहते हैं

आज के इस शुभ दिन पर मैं अपनी मां को नंगे पैर गुफा में नहीं जाने दूंगा,,, बल्कि अपनी गोद में ही ले चलूंगा क्यूंकि आज मेरी मां ने मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार किया है और आज मेरी प्रियतमा है,,,

और ऐसा बोलकर देव रत्ना को बाहों में उठा कर गुफा की ओर चल पड़ते हैं,,,, गुफा में पहुंच कर देव बड़े प्यार से रत्ना को फूस से बनी शैय्या पर सुला देते हैं और खड़े होकर बड़े प्यार से रत्ना को ऊपर से नीचे देखने लगते हैं, ऐसा लग रहा था कि मानों देव रत्ना के नख से लेकर शिख तक के नंगे बदन की सुन्दरता को अपनी आंखों में समा लेना चाहते हो,,,,देव को ऐसे देखते देख रत्ना कहती है

ऐसे क्या देख रहे हो देव, मुझे, जैसे कभी तुमने अपनी मां को देखा ही न हो,,,

इस पर देव कहते हैं

सही कहा मां आपने, मैंने कभी आपको इस तरह देखा ही नहीं है,,, पूरी नंगी,,,, शैय्या पर लेटी हुई,,, ऐसा लगता है स्वर्ग से कोई अप्सरा धरती पर उतर आई हो,,, जिसे देख कर अच्छे अच्छे ब्रह्मचारियों का भी मन डोल जाए

तब रत्ना कहती है

हटो देव, तुम तो यूं ही मेरी प्रशंसा करते रहते हो,,,, मै इतनी भी सुन्दर नहीं हूं,,,, मेरे शरीर में ऐसा क्या है जो मैं तुम्हे इतनी सुन्दर लगती हूं,,,

रत्ना को अपनी सुन्दरता की प्रशंसा तो अच्छी लग ही रही थी,,, लेकिन वह जान बूझ कर ऐसा बोल रही थी ताकि देव कुछ और बोल सके,,, तभी देव भी बात करते करते रत्ना के बगल में उसकी ओर मुंह करके लेट जाते हैं और फिर कहते हैं,,,

आपमें क्या सुंदर नहीं है माते !!!! आप नख से लेकर शिख तक सुन्दर हैं,,,, यहां तक कि आपकी झांट भी बहुत सुन्दर है,,,, ये गोरी गोरी सुडौल चूची इतनी कड़क हैं कि लगता ही नहीं है कि आप दो दो बच्चों की मां हैं,,,, और उस पर से दोनों चुच्चियो पर ये गुलाबी गुलाबी चुचुक मन को मोह लेते है,,,मन करता है इन्हें प्यार से सहलाता रहूं,,, और मां ये आपकी गहरी नाभी,, सच कहता हूं जब आप इसके नीचे घाघरा या साड़ी बांधती हैं तो लगता है ये प्रेम से बुला रही हैं, कितनों को तो आपने इसी से घायल कर दिया होगा,,,, और,,,,,

ये बोल कर देव थोड़ा रुक जाते हैं, तब रत्ना कहती हैं

और क्या पुत्र

तब देव फिर कहते हैं

और, और आपकी ये बुर,,, बिल्कुल जन्नत का द्वार दिखती है जिसकी खुबसूरती उसके चारों तरफ फैली आपकी झांटे बढ़ाती हैं,,, ऐसा लगता है मानों ये जन्नत के द्वार को छुपा कर रख रही हैं,,, मै यह देख कर सोच में पड़ गया कि क्या कोई चीज इतनी भी सुन्दर हो सकती है !!!! मुझे लगता है पूरे विश्व में आपके बुर से सुन्दर कोई चीज हो ही नहीं सकती है,,,



देव ऐसा बोलते जा रहे थे और अपने हाथ से रत्ना की चूची को पकड़ कर दबाए जा रहे थे और बीच बीच में अपनी उंगलियों से चुचुक को मसल दे रहे थे,,,, जिससे रत्ना के मुंह से आह निकल जा रही थी,, बात करते करते देव ने रत्ना की दूसरी चूची को मुंह में लेकर चूसने लगे जिससे रत्ना की आह निकल गई। एक तरह उसकी एक चूची का मसलना और दूसरी तरफ दूसरी चूची को मुंह में लेकर चूसने से रत्ना की हालत खराब होती जा रही थी और उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,, वह उत्तेजना में देव के बालों में हाथ डाल कर उसे सहलाने लगती हैं और उसके मुंह को अपनी चूची पर दबा देती है,,, रत्ना उत्तेजनावश कहती हैं

अह्ह्ह्हह,, छोड़ो देव,, और कितना चूसोगे अपनी मां की चूची को,,, इन्हीं चुचियों का दूध पी पीकर तुम इतने बड़े हुए हो,,, अह्ह्ह,, पहले भी तुम इन चुचियों को छोड़ते ही नहीं थे,,, अह्ह्ह् देव अह्ह्ह्ह्,, बहुत दिनों बाद किसी मर्द ने इनकों हाथ लगाया है,, इन्हें चूसा है,, आहहहह देव,, ये बहुत दिनों से किसी पुरूष के स्पर्श को तरस रही थी,,,, आह चूसो देव चूसो इन्हें



तभी देव रत्ना की चूंचियों पर से अपना मुंह हटा कर कहते हैं,,,

मां इन्हीं चुचियों से दूध पीकर मैं ही नहीं, मेरा लंड भी बड़ा हो गया है ताकि आपको एक मर्द का मजा दे सके,, देखो ना मां,, अपने बेटे के खड़े लंड को,,,

इस पर रानी रत्ना कहती हैं

हां देखा है पुत्र, तुम्हारे लंड को और उसे अपने हाथ से पकड़ा भी है और सहलाया भी है,,, बहुत प्यारा और कड़क है तुम्हारा मोटा लन्ड,,,

इस पर देव कहते हैं

आपने कब पकड़ लिया मेरा लन्ड माते?

तब रत्ना कहती हैं

भूल गए, आज ही तो पकड़ा था शौच के समय जब मैं तुम्हारे सामने बैठ गई थी,,

अब रत्ना यह कैसे बताती कि उसने इसके पहले भी देव का लन्ड अपने हाथ में लिया था जब देव सुबह मे गहरी नींद में सो रहे थे और उनका लन्ड फन फना कर खड़ा था और देव के खड़े लन्ड को देख कर वह खुद को काबू में नहीं कर पाईं और उनके लंड को पकड़ कर सहला दिया था,,, देव फिर से रत्ना की दूसरी चूची को मुंह में लेकर चूसने लगते हैं ,,, जिससे रत्ना की उत्तेजना और बढ़ जाती है और उसे लंड की लालसा होने लगती है,,, और फिर रत्ना उत्तेजना के वशीभूत होकर अपने हाथ को नीचे ले जाकर देव के लिंग को अपने कोमल हाथों से पकड़ लेती है जो पूरी तरह टन टना कर खड़ा था,,, रत्ना धीरे धीरे देव के लिंग को मुठियाने लगती हैं,,, इससे देव की कामभावना भी बेकाबू होने लगती है और वह भी अपने हाथ को नीचे ले जाकर अपनी मां की बुर पर रख देते हैं और फिर धीरे धीरे हौले हौले बड़े प्यार से अपनी मां की योनि को सहलाने लगते हैं,,, दोनों मां बेटे उत्तेजना के शिखर पर थे। तभी रत्ना कहती है,,,,,,,

देव, एक बात पूछूं,,,

देव कहते हैं,,

पूछिए माते

तब रत्ना कहती है

पुत्र मुझे पता है , हम दोनों जिस रास्ते पर चल रहे हैं उसमें अगला कदम हमारे बीच शारीरिक संबंध ही है जिसमे तुम मुझे, मेरे शरीर को, मेरी बुर को भोगोगे,,,, पुत्र, कहीं तुम मुझे भोगने के बाद मेरा साथ तो नहीं छोड़ोगे न,,,???

तब देव कहते हैं

माते,, आप ऐसा क्यों सोचती है,,, यदि मेरा उद्देश्य केवल आपको भोगना होता,,, तो मैं कबका आपको भोग चुका होता,,, कब का मेरा लन्ड आपकी बुर की गहराइयों को नाप चुका होता,,, लेकिन मां,,, मै आपसे सच्चा प्यार करता हूं और मां बेटे के प्यार को एक नई ऊंचाई तक ले जाना चाहता हूं,,, उस उंचाई तक जहां तक किसी मां बेटे का सम्बंध पहुंच सकता हो,,,, मै तो सपने में भी आपका साथ छोड़ने की नहीं सोच सकता,,, मां, मुझे मर जाना मंजूर है लेकिन आपका साथ छोड़ना नहीं,,, मै पूरी जिन्दगी अपनी मां के साथ ही रहूंगा,,,

देव के ये कहने पर की वह रत्ना का साथ नहीं छोड़ सकता, रत्ना भावुक हो जाती है और कहती हैं

पुत्र, लेकिन तुम्हें पता है न कि हमारे बीच मां बेटे का सम्बंध है और एक पुत्र हमेशा अपनी मां के चरण छू कर आशीर्वाद लेता है,,, ना कि उसके शरीर पर वासना की नज़र रख कर उसे भोगना चाहता है,,



इस पर देव फिर रत्ना की चूची पीना छोड़ देते हैं, लेकिन इस दौरान वह रत्ना की योनि को सहलाते रहते हैं और फिर कहते हैं

मां, आपकी बात मैं मानता हूं,, यह सही है कि बेटा अपनी मां के पैर छू कर आशीर्वाद लेता है,,, लेकिन मां, ,,,,, एक मां चरणों से लेकर घुटनों तक ही मां होती है और घुटनों से उपर वह एक स्त्री होती है,,, उसकी योनि भी लन्ड के लिए मचलती है भले ही वह लन्ड किसी का भी हो,,, जैसे तुम्हारी बुर भी अपने पुत्र के लन्ड के लिए ही मचल रही है,, उसे अपने अंदर समा लेना चाहती है,,, उसे भी अपनी चूची दबवाना उसे चुसवाना उसकी काम भावना को भड़का देती है,,,,,,,,,,,

रत्ना देव की ये कामुक बातें सुनकर उत्तेजित हो जाती है और उत्तेजित हो कर कहती है

देवववअअअ ,,, तुम कितनी प्यारी बातें करते हो,, मन करता है कि तुम्हारी बातें सुनती ही रहूं,,,

रत्ना इधर देव के लिंग को छोड़ ही नहीं रही थी और उसे पकड़ कर सहलाए जा रही थी और इसी उत्तेजना में देव के लिंग को अपने हाथ में लिए हुए बोल पड़ती है

देव, ये क्या है,, क्या है ये देव

तब देव कहते हैं

तुम ही बताओ न, मां

इस पर रत्ना कहती है

नहीं, तुम बताओ ना पुत्र,, मुझे तो शर्म आती है

इस पर देव कहते हैं

लेकिन मां, मै आपके मुंह से सुनना चाहता हूं,, मुझे आपके मुंह से सुन कर अच्छा लगेगा,,

तब रत्ना शरमाते हुए कहती हैं,,

" लंड " "लन्ड",,,, मेरे प्यारे बेटे का लन्ड,,,

तब देव कहते हैं

आह मां,,,तुम्हारे मुंह से लन्ड सुनकर कितना प्यारा लग रहा है मां,,,,, मां क्या पिता श्री का लन्ड भी,,,,

तब रत्ना कहती है

हां पुत्र, उनका भी लन्ड ऐसा ही प्यारा और सख्त है,,, लेकिन पुत्र क्या हम दोनों ये अवैध संबंध बना कर महाराज को धोखा नहीं दे रहे क्या

इस पर देव कहते हैं

बिल्कुल नहीं माते, बिल्कुल नहीं,,, हम दोनों पिता श्री को धोखा नहीं दे रहे हैं,,, माते, हम दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं और उसी प्रेम की परिणति है ये हमारा सम्बंध,,, जैसे पुरुष एक साथ कई रानियों के साथ शादी कर के सभी से प्रेम कर सकता है वैसे ही एक स्त्री एक से अधिक पुरुषों से अलग अलग प्रेम कर सकती है और वो इनमें से किसी को धोखा नहीं दे रही होती है,,, किसी भी व्यक्ति को एक से अधिक लोगों से प्यार हो सकता है माते,, जैसे आप मुझे भी प्यार करती हैं और पिता श्री को भी,,

इस पर रत्ना फिर जोश में आकर उत्तेजनावश देव को अपने ऊपर खींच लेती है और उसके होंठो को चुसने लगती है और फिर कहती है

बेटा, असली मजा तो इस अवैध और अनैतिक संबंध स्थापित करने में ही है,,,, ,,दुनिया जाने की हमारा सम्बंध पवित्र है,, मां बेटे का सम्बंध है और हम दोनों जब एकांत में हों तो ऐसे ही नंगे हो कर सहवास करें,,,,

इस पर देव कहते हैं

उफ्फ मां, आपने तो मेरे दिल की बात कह दी,,, वैसे मां मेरी एक बात मानेंगी???,,, मुझे अपना जन्म स्थान देखना है,, दिखाओगी न मेरा जन्म स्थान,,, जो तुम्हारे पास ही है

तब रत्ना कहती हैं

देखा तो है तुममें अपना जन्म स्थान आज सुबह ही,, तो अब क्यों देखना चाहते हो??

तब देव कहते हैं

देखा तो है माते,,, लेकिन जी भर कर प्यार से नही देखा है,,

तब रत्ना समझ जाती है कि देव उनकी बुर देखे बिना नहीं मानेंगे,,,,,,और तब वह अपनी जांघें खोल कर अपनी बुर देव को दिखाते हुए कहती है

देख लो बेटा,,, अपना जन्म स्थान,,, यहीं से तू पैदा हुआ था,,, तू नौ महीने मेरी कोख में रहा है और फिर इसी बुर से तू इस दुनिया में बाहर आया,,, ये बुर बहुत भाग्यशाली है कि इसने तुम जैसे गबरू जवान को पैदा किया है

तब देव कहते हैं

आह मां कितनी सुन्दर है ये बुर,,ये मेरा जन्म स्थान,,,, ये इतना सुन्दर होगा,, ऐसा तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था,,,, मै तो इसे प्यार करना चाहता हूं और ऐसा बोलकर देव अपना मुंह रत्ना की योनि पर रख देते हैं और उसे चूम लेते हैं और फिर उसकी बुर की पत्तियों को फैला कर अपनी जीभ से बुर को चाटने लगते है,,, बुर के चाटने से रत्ना की योनि पनिया जाती है और वह मदहोश होने लगी,,, और बोली

देव,, तुमने तो केवल बुर को चुमने को बोला था, लेकिन तुम तो उसे चाटने लगे,,, उफ्फ तुम्हारी जीभ मे तो जादू है जादू,,, अह्ह्ह्ह्ह,,,, ये मुझे मदहोश किए जा रही है,,,

रत्ना ऐसा बोलती है और उसकी बुर बार बार पानी छोड़ रही होती है,,, रत्ना कामुकतावश अपनी कमर उठा उठा कर अपनी बुर देव के मुंह पर दबाव बनाती है जिससे देव रत्ना की बुर की गहराइयों तक अपनी जीभ पहुंचा कर चाटने लगते हैं,,,, इधर रत्ना देव के लिंग को हाथ में पकड़ी ही रहती है और सहलाते रहती है,,, आखिर उसे भी काफी दिनों बाद लंड का स्पर्श जो मिला था,,, देव भी अपनी मां की बुर चाटते चाटते अपना हाथ उपर ले जाते हैं और रत्ना की एक चूची की घुंडी पकड़ कर उसे अपनी उंगलियों से मिंजने लगते हैं,,, इससे रत्ना की उत्तेजना और बढ़ गई और उसकी बुर और ज्यादा पनीया गई,,,तब देव अपना मुंह रत्ना की योनि पर से हटा कर कहते हैं

मां, आपकी बुर बहुत पानी छोड़ रही है,, रुको इसका पानी पोछ देता हूं

और ऐसा बोलकर देव अपने होठों को गोल बना कर रत्ना की बुर पर रख देते हैं और ऐसे चूसते हैं जैसे पानी सूरक रहे हो,,, लेकिन उससे रत्ना की योनि और पानी छोड़ने लगती है और इस अहसास से रत्ना शरमा जाती है,,,, तभी देव कहते हैं

माते, मैंने आज तक आपके जैसी सुन्दर स्त्री नहीं देखी है,,,, तुम्हारा नंगा शरीर संगमरमर की तरह चमकता है,,,, तुम्हारी बुर जैसी सुन्दर बुर शायद ही दुनिया में किसी की हो

इस पर रत्ना कहती हैं

देव, तुम मेरी ऐसी ही झूठी तारीफ करते हो,,, मै तुम्हारी मां हूं,,, इसलिए तुम्हें इतनी सुन्दर लगती होंगी,,, नहीं तो हमारे राज्य में ही मुझसे बहुत सुन्दर सुन्दर स्त्रियां है,,

देव फिर रत्ना की योनि को चाटने लगाते हैं और उसकी बुर की गहराइयों को नापने लगते हैं,,, इससे रत्ना और मदहोश होने लगती है,,, देव अपनी मां को इतना कामातुर बना देना चाहते थे कि वो खुद अपने हाथ से देव का लन्ड अपने बुर में घुसा ले,,, और इसमें देव कामयाब भी हो रहे थे,,, रत्ना इतनी उत्तेजित हो गई थी कि देव के बुर चाटने से उसका शरीर अकड़ने लगता है और वह अपनी योनि का दबाव देव के मुंह पर बढ़ा देती है । अचानक ही रानी रत्ना का शरीर झटके खाने लगता है और झटके खाते हुए रत्ना देव के मुंह में ही झड़ जाती है और देव रानी रत्ना का पूरा योनि रस पी जाते हैं,,, रत्ना इस तरह अपने पुत्र के मुंह में ही झड़ जाने से शर्मा जाती हैं और अपना मुंह दूसरी ओर घूमा लेती हैं,,,,, इधर देव रत्ना की बुर चाटकर अपना मुंह हटा लेते हैं,, अपनी जीभ से अपने होंठों पर लगे योनि रस को चाटते हैं और फिर कहते हैं ,,,

मां, आपका योनिरस बहुत स्वादिष्ट है,,, इसका स्वाद तो बिल्कुल अमृत तुल्य है,,,,

इस पर रानी रत्ना देवी शर्म से आंखे बन्द कर लेती हैं और कहती हैं,,,

पुत्र, तुम्हें मेरे साथ ऐसी बातें करते हुए बिल्कुल शर्म नहीं आती न,,,,, बिल्कुल बेशर्म हो गए हो तुम,,, तुम ये भी नहीं सोचते कि मैं तुम्हारे पिता श्री की धर्म पत्नी हूं जिनका हक मेरे शरीर पर पहला है,,,

इस पर देव कहते हैं

नहीं मुझे तो आपके साथ ऐसी बातें करने में असीम आनन्द की अनुभूति होती है माते,,, ऐसी बात जो कोई अपनी मां से नही करता वैसी बात मां से करने का अलग ही मजा है,,,, आप बताइए मां, क्या आपको अच्छा नहीं लगा अपनी बुर चटवाना और वो भी अपने ही पुत्र से !!!

इस पर रत्ना कहती है

बहुत अच्छा लगा पुत्र, बहुत ही आनन्द आया, ,,, मै भी पहले कभी कभी सोचती थी कि लोगों में अवैध संबंध कैसे बन जाते हैं,,, लेकिन अब तुम्हरे साथ नाजायज संबंध स्थापित पर यह पता चल रहा है कि अवैध संबंध में तो अदभुत आनन्द है,,,, पुत्र सही कहूं तो एक मां की बुर की प्यास तब तक नहीं बुझती जब तक वो अपनी बुर का पानी अपने पुत्र को न पीला दे,,,

रत्ना के मुंह से इतनी कामुक बातें सुनकर देव के मुंह से सिर्फ इतना निकलता है,

उफ्फफ्फ,, मांआआअअ !!!

और फिर देव रत्ना के शरीर के उपर लेट कर उनके होंठ चुसने लगते हैं और रत्ना भी देव को अपने आगोश मे जकड़ कर देव के होंठ चूसने लगती है,,, देव एक हाथ से रत्ना का स्तन मर्दन कर ही रहे थे,,, उनका लन्ड खड़ा हो कर रत्ना की योनि के उपर ठोकर मार रहा था,,,,,,, रत्ना इससे फिर उत्तेजित हो जाती हैं और उत्तेजनावश देव का लन्ड पकड़ लेती हैं और उसे अपनी योनि की ओर ले जाकर योनि पर हौले हौले बड़े प्यार से रगड़ने लगती हैं,,, देव को जिन्दगी में पहली बार अपने लिंग का किसी योनि के साथ संसर्ग का अनुभव हो रहा था जो इनको मदमस्त किए जा रहा था,,, इस पर देव उत्तेजित हो जाते हैं और अपनी मां के उपर से उठ कर उनके घुटनों पर बैठ जाते हैं और उनके स्तन को दबाते रहते हैं,,, इधर रत्ना अपनी आंखे बन्द किए देव के लन्ड को अपनी बुर पर रगड़ते रहती हैं,,, वो अपने बेटे लन्ड के सुपाड़े को योनि की पुत्तियों में फसा कर निकाल ले रहीं थीं जिसे देख बड़े ध्यान से देख रहे थे और फिर उत्तेजनावश धीरे से कामुक अंदाज में बोलते हैं,,,,

" मांअंअं"

तब रत्ना अपनी आंख खोलती है और अपने पुत्र को अपनी ये हरकत करते देखते हुए शरमा जाती है और देव के लिंग को अपनी योनि पर रगड़ना रोक देती हैं लेकिन उसे अपनी योनि से सटाए रहती हैं,,, तब देव कहते हैं

देखो मां, कितना सुन्दर लग रहा है बेटे के लन्ड का मां की बुर के साथ सम्पर्क,,, अह्ह्ह्ह अति सुन्दर,, अति कामुक दृश्य है माते,,, देख कर ऐसा लग रहा है मानो मेरा लन्ड आपकी बुर के लिए ही पैदा हुआ है,,, मां,, मैं आपकी बुर में अपना लंड डाल कर अब मां बेटे का यह मिलन पूर्ण करना चाहता हूं,,,, जिससे हम शारीरिक संबंध बना कर अपने प्रेम को एक नई ऊंचाई तक पहुंचा सकें,,, मां, क्या मैं आपकी बुर में अपना लन्ड डाल सकता हूं ,,

इस पर रत्ना कुछ बोलती नहीं है, केवल अपना सिर हिला कर अपनी सहमति दे देती हैं, इस पर देव कहते हैं

ऐसे नहीं माते,, आप मुंह से बोलेंगी तभी मैं आगे बढ़ पाऊंगा। इस पर रत्ना मुस्करा देती हैं और कहती हैं

पुत्र, इसमें भी कोई संसय है क्या,,, मै स्वयं तुम्हारे लन्ड को अपनी बुर की गहराइयों में महसूस करने के लिए तड़प रही हूं,,,, आओ पुत्र आओ,,, अपनी मां की योनि को अपने लन्ड से चोद कर इसकी प्यास बुझा दो,,,,

रत्ना ऐसा बोलती हैं और देव धीरे से अपने लन्ड का दबाव अपनी मां की योनि पर बढ़ा देते हैं वही योनि जो पहले से ही पनियाई हुई थी और चिकनी हो गई थी,,, इधर रत्ना अपने हाथ में देव का लन्ड लिए हुए थी ही,, वह उसी हाथ से देव का लन्ड अपनी योनि में घुसाने लगती है,,, देव का लन्ड का सुपाड़ा रत्ना की योनि की पुत्तियों को फैलाता हुआ अन्दर घुसने लगता है जिससे रत्ना की आह निकल जाती है,,, रत्ना कई दिनों से चुड़वाई नहीं थी और उपर से देव का लन्ड कुछ ज्यादा ही मोटा हो गया था ,,, इसलिए ऐसा लग रहा था मानो देव अपने लन्ड से रत्ना की योनि को चीरते जा रहे हैं,,, इससे रत्ना की चीख निकल जाती है और वह कहती हैं

आह्ह्ह्ह्ह देव निकालो अपने लन्ड को मेरी बुर से,,, यह मेरी बुर को फाड़ता जा रहा है,, कहीं ऐसा ना हो यह मेरी बुर ही फाड़ दे,, मैने ऐसा सोचा नहीं था कि तुम मेरी बुर को अपने लन्ड से चीर ही दोगे,,, आह दर्द हो रहा है देव,, निकालो न अपने लन्ड को मेरी बुर से बाहर,,, आह देव आह



रत्ना की आवाज सुन कर देव अपना लन्ड रत्ना की योनि में आधी दूरी तक जा कर रुक जाते हैं और फिर अपने लन्ड को रत्ना की बुर से बाहर निकाल लेते हैं जिससे रत्ना को सुकुन तो मिलता है,,,,, लेकिन रत्ना के अन्दर लन्ड की तड़प फिर बढ़ जाती है और उनकी बुर लन्ड के लिए पानी छोड़ने लगती है,,,,, फिर रत्ना खुद अपने हाथ से देव के लिंग को पकड़ कर अपनी बुर में घुसा लेती है और देव फिर से एक बार अपना लन्ड रत्ना की योनि के अन्दर डालते हैं तो लन्ड थोड़ा और अंदर चला जाता है,,,, देव जोश में इस बार एक और धक्का देते हैं तो लंड झटके से रत्ना की बुर में समा जाता है,,,,, देव जब नीचे अपने लन्ड की ओर देखते हैं तो पाते हैं कि उनका पूरा खड़ा लन्ड रत्ना की बुर में समा गया है और केवल दोनों की झांटे ऐसे मिली हुई दिख रही है जैसे दोनों एक हो गई हो,,, देव के लन्ड डालने से रत्ना चिहुंक जाती है और देव रत्ना को देख कर कहते हैं,,,

देखो मां,, मेरा पूरा लन्ड आपकी बुर में समा गया है,, उसी बुर में जिससे कभी मैं निकला था,,, उसी बुर में जिसमें आप पिता श्री का लन्ड ले कर मजे लेती थी,,, उसी बुर में जिसमें पिता जी ने अपना लन्ड डाल कर अपना मिलन पूर्ण किया था,,, आज उसी बुर में मै अपना लन्ड घुसा कर आपके साथ अपना मिलन पूर्ण कर रहा हूं,,, आज एक मां और बेटा का रिश्ता एक नई ऊंचाई तक पहुंच रहा है,, आज एक मां और बेटा का मिलन हो रहा है

और ऐसा बोलकर देव अपना लन्ड थोड़ा बाहर निकलते हैं और फिर झटके से अन्दर घुसा कर चुदाई आरम्भ कर देते हैं,, काफ़ी समय बाद चुदाई होने से रत्ना मद मस्त हो जाती है और उसकी बुर पानी फेंकने लगती है और पूरी गुफा चुदाई की फच फाच की आवाज से गूंजने लगती है,, देव भी पूरे जोश में आकर उत्तेजनावश अपनी मां रानी रत्ना देवी की बुर चोदने लगते हैं,,, रत्ना के मुंह से अह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह की आवाज़ निकलने लगती है,,, देव इतने जोश में अपनी मां की बुर चोद रहे थे कि देव का लन्ड रत्ना की बच्चेदानी से टकरा रहा था,,, तभी रत्ना कहती है



देव, तुम्हारा लन्ड मेरी बच्चेदानी से टकरा रहा है



इस पर देव रत्ना की आंखों में देखते हुए कहते हैं,,,,,,,,,

आपको कैसा लग रहा है मां अपने ही बेटे के साथ चुदाई कर के

इस पर रत्ना कहती हैं

बहुत अच्छा लग रहा है देव,,, और जोर से चोदो अपनी मां को,,,,, मै चुदाई के लिए तड़प रही थी,,, मैं क्या जानती थी कि मेरा बेटा ही मुझे इतने मस्त तरीके से चोदेगा,,, मुझे तुमसे प्यार हो गया है देव,,, वैसा प्यार जो औरत मर्द का होता है,,, आह आह,, और चोदो मेरे लाल अपनी प्यारी मां की योनि को,,, यह तुम्हारे लन्ड के लिए तड़प रही थी,,, आह मुझे चोद कर मादरचोद बन जाओ मेरे लाल

देव भी पूरे जोश में आकर रत्ना की चूदाई कहते हैं ,,,,,

ये ले मां अपनी योनि में मेरा लन्ड और बन जा बेटा चोदी,,, बेटे से चुदवाती है तू,,, रण्डी,,, छिनार,,, तू तो रखैल है शाली,,, अपने बेटे की,,, बोल बनेगी ना मेरी कुतीया

इस पर रत्ना कहती हैं

हां, मै हूं छीनार,,, बनूंगी अपने बेटे की कुटिया,,, चोद साले चोद अपनी मां को मादरचोद,,, जिस बुर से निकला उसी को चोद रहा है,, बेशर्म हरमी,,,

दोनों गाली दे कर मस्ती में चूदाई करने लगते हैं और देव का लन्ड रत्ना की बुर की गहराइयों तक पहुंच कर रत्ना को मजे दे रहा था,, तब देव अपना लन्ड बाहर निकाल लेते हैं तो रत्ना कहती हैं

लन्ड बाहर क्यों निकाल लिया कुत्ते,,

देव,,,,

इसलिए निकाला कुत्तिया,,, की अब ये कुत्ता तुम्हें कुत्तिया बना कर चोदेगा,, चल बन जा कुटिया,,



इस पर रत्ना अपनी गांड पीछे कर के कुत्तिया बन जाती हैं और देव उनके गांड को देख कर कहते हैं



किसी मस्त और चौड़ी गांड है तेरी कुत्तिया,,, ले मेरा लन्ड,,

और फिर देव अपने हाथों से रत्ना की बुर की फांकों को खोल कर अपना लन्ड डाल देते हैं और फिर धक्के लगाने लगते हैं। कुत्तिया बन जाने से अब देव का लन्ड सीधे रत्ना की बच्चेदनी तक पहुंच जा रहा था और लन्ड बार बार उसकी बच्चेदानी पर थाप मार रहा था जिससे रत्ना को और मस्ती चढ़ती जा रही थी,,,



लगातार घमासान चुदाई से पूरी गुफा घाप घप की आवाज से गूंज रहा था,,,रत्ना काफ़ी समय बाद चुदाई से सातवें आसमान पर थी और तभी रत्ना का शरीर अकड़ने लगता है और उसकी बुर से अचानक पानी निकलने लगता है और वह झड़ जाती है,,, देव भी चूदाई करते करते जोश में आ जाते हैं और कहते हैं



आह्ह्ह्ह मां, मेरा निकलने वाला है मां,, अह्ह अह्ह्ह्ह्ह,, मै कहां निकालू अपना पानी मां,, अह्ह्ह्ह



और जब तक रत्ना कुछ बोलती तब तक देव अपना पानी रत्ना की बुर में गिरा देते हैं और उसकी बच्चेदानी को अपनी पानी से भीगो देते हैं,,,,
 
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DB Singh

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Bhot hi shaandar update... Akhirkar ratna or dev ka milan Ho hi gya... Kya ab ye dono jangle me pariwar badhayenge..? Inke bacche wagerh Ho toh maza hi ajaye jangle me hansta khelta pariwar...
 

Ravi2019

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सही कह रहा हूं मां, अपने स्तन तो देखो कितने कसे और सुडौल हैं। इन्हें ही तो नहाते समय नंगी देख कर मेरा लन्ड खड़ा हो जाता है और मैं अपने हाथों से अपना लन्ड मसल मसल कर आपके नंगे स्तन का दीदार किया करता था। अद्भुत कामोत्तेजक मस्त कर देने वाला अपडेट था बंधु पर इंतजार और का भी है।

Very nice update Bhai 😊 ☺️

बहुत बढ़िया अब राजकुमार अपनी मां के मोटे भोसड़े में अपना लन्ड ठोक के अपनी मां की रण्डी की तरह चुदायी करेंगे।

बहुत ही कामुक और उत्तेजक अपडेट
देर से लेकिन अद्भुत धीमा यौन वार्तालाप 👌👌

Waah kya vaartalaap chala maa bete mein. Aise hi kaamuk aur ashleel baate hojaaye pyar se aur dono chudai karne ki aasha ek dusre se jataake sex karenge baate karte hue tho aur accha hoga bhai. Aur jungle mein tho bahut jagah hogi chudai ke liye. Mast hoga. Thanks bhai.
Update posted
 

rajeshsurya

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रत्ना फिर झील के पानी में जाकर नहाने लगी। उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए थे और तब झील में नहा रही थी। झील में उसके कमर के ऊपर का पूरा हिस्सा पानी से उपर था और उसके नंगे स्तन सूर्य की किरणों से देदीप्यमान हो रहे थे। उसने अपना मुंह झील के किनारे की ओर किया हुआ था और उसकी नजरें बार बार झील के किनारे स्थित पेड़ो की ओर जा रहे थे कि शायद देव उसे पेड़ के पीछे से छुप कर नहाते देख रहा हो। लेकिन उसे देव की उपस्थिति का कोई भान नहीं हो रहा था। इस कारण वह और उदास हो गई। वह अपने पुत्र को खुद से दूर जाने देना नही चाहती थी । उदास मन से वह झील से बाहर निकल कर कपड़े पहनती है और गुफा की ओर चल देती हैं। वहां पहुंच कर वह देखती है कि देव गुफा के बाहर बैठे हैं। रत्ना को देख कर वह कुछ नहीं बोलते हैं। थोड़ी देर में रत्ना गुफा से बाहर निकलती है और देव को कहती हैं
चलिए पुत्र, जंगल से कुछ फल तोड़ लिए जाए नही तो फिर भूख लग जाएगी।
इस पर देव कुछ नहीं बोलते हैं। लेकिन रत्ना के निकलने के कुछ देर बाद रत्ना के पीछे जंगल में निकल जाते हैं। लेकिन देव रत्ना के साथ नहीं चल रहे थे, बल्कि रत्ना से कुछ दूरी बना कर चल रहे थे, और तो और वे रत्ना को देख भी नहीं रहे थे। दोनों मां बेटे फलों को तोड़ कर गुफा में आ जाते हैं। लेकिन देव की ये बेरुखी रत्ना को बर्दास्त नहीं हो रही थी। देव चुप चाप गुफा में बैठ कर फल खा रहे थे, तभी रानी रत्ना कहती हैं
पुत्र, आप मुझसे कुछ बात क्यों नहीं कर रहे हैं, आप जानते हैं ना कि मैं आपसे कितना प्यार करती हूं। आपकी बेरुखी मुझसे बर्दास्त नहीं हो पा रही है !!!!
ऐसा बोल कर रत्ना की आंखें डब डबा जाती हैं। लेकिन देव फिर भी रत्ना की ओर नहीं देखते हैं और कुछ फल खा कर गुफा के बाहर चले जाते हैं और बाहर एक शिला पर बैठे रहते हैं। इधर रत्ना गुफ़ा में ही लेटी रहती है और सोचती है कि ये सब क्या से क्या हो गया और अब तो देव भी मुझसे बातें नहीं कर रहा है। ऐसे ही समय बीता, दिन खत्म हुआ और रात हो गई । रात में भी देव ने रत्ना से बात नहीं की । रात में सोने से पहले रत्ना गुफा के बाहर पेशाब करने गई और नियत स्थान पर पेशाब करने बैठ गई और देव का इन्तजार करने लगी की देव तो आयेगा ही। रत्ना बैठी रही, लेकिन देव नहीं आए। तब थक हार कर रत्ना ने पेशाब कर लिया और सोने के लिए गुफा के अंदर आ गई। जब रत्ना गुफा के अंदर सोने आई, तब देव गुफा के बाहर चले गए और तब पेशाब कर के आए। स्पष्ट था कि देव रत्ना के साथ पेशाब भी नहीं करना चाहते थे। रत्ना बहुत दुखी होती है और दुखी मन से सोचते सोचते पता नहीं कब उसकी आंख लग जाती है।
सुबह फिर चिड़ियों की चहचहाहट से रत्ना की नींद खुलती है। वह उठती है और देखती है कि भोर हो गई है। सुबह उठते ही वह शौच के लिए जाती ही है और साथ में देव भी जाते हैं। रत्ना ने देव को उठाने के लिए आवाज लगाई और जैसे देव की ओर देखा, तो उसे देव की धोती में खड़ा लन्ड दिखा जिसे वह कुछ देर तक निहारती रही। कामोत्तेंजना के कारण उनका एक हाथ खुद ही नीचे चला गया और उसने साड़ी के उपर से ही अपनी योनि को सहला दिया और योनि को दबोच कर थोड़ा रगड़ दिया। उसे थोडी शान्ति मिली। फिर वो को आवाज लगाती है,,,
उठो पुत्र उठो, देखो सुबह हो गई है, पक्षी भी कलरव कर रहे हैं, सूर्य की लालिमा भी दिखने लगीं है।
देव भी जग तो गए थे, लेकिन वे कोई जवाब नहीं देते हैं। वह जानबुझ कर कुछ नहीं बोल रहे थे । उन्हें अपनी मां को तड़पना और उन्हें उपेक्षित करना अच्छा तो नहीं लग रहा था लेकिन वह अपने लिए अपनी मां की तड़प देखना चाहते थे। रत्ना देव को उठता नहीं देख उन्हें थोड़ा हिलाती है, लेकिन देव फिर भी नहीं उठते हैं तो रत्ना की आंखों में नमी आ जाती है, वह समझ जाती है कि देव अभी भी उनसे नाराज हो तो फिर रत्ना वहां से उठ कर अकेले ही शौच के लिए चली जाती है। रत्ना जब शौच से निवृत्त होती है तो गुफा आ जाती हैं जहां देव अभी भी सो रहे थे।
रत्ना जब गुफा में आ जाती हैं तब देव वहां से उठते हैं और फिर शौच के लिए चले जाते हैं। रत्ना समझ जाती हैं कि देव जानबूझकर सोने का नाटक कर रहा था, उसे केवल अपनी मां के साथ नहीं जाना था। इधर देव भी सच के लिए बैठे रहते हैं और सोचते हैं
मै कितना गलत कर रहा हूं माते के साथ। यदि उन्हें कुछ चीजें मेरे से नहीं करनी तो उनकी मर्जी। आखिर मैं उन्हें विवश क्यों ही करूं ?
देव यही सोचते रहते हैं, तभी उन्हें अपने पीछे से किसी के आने की आहट सुनाई दी। वह आहट धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी जो उनके तरफ बढ़ते कदमों की आवाज थी। लेकिन वह चुप चाप बैठे रहते हैं। अब उन कदमों की आहट के साथ पायल की छन छन की भी आवाज सुनाई पड़ने लगती है। वो समझ जाते हैं कि मां ही आ रही हैं। इसलिए वो कोई हरकत नहीं करते। लेकिन वो ये नहीं जानते थे कि क्या होने वाला है और रानी रत्ना क्या करने वाली थी।
तभी रानी रत्ना देव के पास पहुंच जाती हैं और देव के सामने खडी हो जाती है और फिर अचानक देव के सामने अपनी साड़ी कमर तक उठा कर शौच के लिए बैठ जाती हैं और थोड़ा झूठ बोलती हैं ,,
मैने अभी शौच नहीं किया है देव
जबकि वह शौच कर चुकी थी। देव अभी रत्ना के तरफ अनमने ढंग से देखते हैं। तभी रत्ना अपनी साड़ी को जो घुटनों तक थी उसे थोड़ा जांघों की ओर सरका दी और शौच के लिए बैठने से जांघें थोडी अलग हो ही जाती हैं जिससे रत्ना की बुर देव के सामने बिल्कुल खुल जाती हैं और तब रत्ना कहती हैं

यही चाहिए था न तुम्हें पुत्र, ,,, आपको अपनी मां की कमर के नीचे का यही हिस्सा देखना था ना,,,जिसके लिए आप कल से ही मुझसे नाराज़ हैं


रत्ना इतना बोलती हैं तो देखती है कि देव उन्हें विस्मित हो कर देख रहे थे। दरअसल रत्ना ने ऐसा काम किया था जिसकी कल्पना देव ने की ही नहीं थी अब स्थिति यह थी कि दोनों मां बेटे एक दूसरे के सामने अपने यौनंगों को खोले शौच की मुद्रा में बैठे थे। रत्ना तो देव के लिंग को देख ही नहीं थी, देव भी अपनी जिन्दगी में पहली बार अपनी मां की योनि के दर्शन कर रहा था। देव अपनी मां क्या, जीवन में किसी भी स्त्री की योनि पहली बार देख रहे थे। रत्ना की योनि पे हल्की हल्की झांटे थी जिसकी लकीर जांघें खुली होने से थोडी खुली हुई थी। देव को अपनी योनि को टकटकी लगाए देखता देख रत्ना कहती हैं

देख लीजिए देव, अच्छे से अपनी मां की योनि को जिसके लिए आप मुझसे रूठे हुए थे

देव,,,, नहीं माते, मैं आपसे रूठा नहीं था, ,,, मै आपसे रूठ सकता हूं भला क्या। वो मां कल अचानक आपने ही मना किया ना, उससे मुझे बहुत दुख पहुंचा

रत्ना,,, अच्छा, आपको दुख पहुंचा पूत्र, उसके लिए मैं खेद प्रकट करती हूं,। लेकिन पुत्र मै एक स्त्री हूं और तो और आपकी मां हूं, । मेरी भी, मां की, कुछ मर्यादाएं होती हैं, कोई मां अपने पुत्र से इतना नहीं खुल सकती जितना मैं तुमसे खुल गई थी । पुत्र, आपने मुझे कुछ समय तो दिया होता,,,, कोई मां इतनी जल्दी अपने पुत्र के सामने योनि खोल कर बैठने को कैसे तैयार हो सकती है। वो तो मै आपसे ऐसे ही इतनी खुल गई थी जितनी की कोई मां अपने पुत्र से नहीं होती।

इधर देव रत्ना की योनि को देख ही रहे थे कि उसका असर देव के लौड़े पर होने लगा जो अपनी मां की योनि को देख कर उत्तेजना के मारे और खड़ा हो गया और खुद ही उपर नीचे इस तरह कम्पन करने लगा मानो अपनी मां की योनि को सलामी दे रहा हो। इधर
रत्ना इतना बोलती है, तभी उत्तेजनावश उसकी बुर से पेशाब की धार बड़ी तेजी से निकलती है जो देव के लन्ड को धो देती है , वही लन्ड जो अपनी मां की योनि को सलामी दे रहा था। देव रत्ना की बुर से निकल रही पेशाब की धार को ध्यान से देख रहे होते हैं और जब रत्ना पेशाब कर लेती है तो उसकी योनि पर पेशाब की बुंदे लगी रह जाती हैं जिस देव देख रहे होते हैं। अनायास ही देव अपना हाथ रत्ना की योनि की तरफ बढ़ा देते हैं और अपनी उंगलियों पर रत्ना की योनि पर लगे पेशाब की बूंदों को ले लेते हैं और रत्ना की आंखों में देखते हुए अपनी उंगलियों पर लगे पेशाब की बूंदों को चाट जाते हैं जिसे देख कर रानी रत्ना कह उठती है
छी:, पुत्र छी:, वह गंदी चीज है, उसे नहीं चाटते

देव,,,, माते, यह आपके लिए गंदी चीज होगी, मेरे लिए तो यह अमृत है माते !!! अभी तक मैं आपके साथ बैठ कर पेशाब करता था लेकिन कभी आपका पेशाब नहीं देखा । आज आपको पेशाब करते हुए आपकी बुर को भी देख लिया।

रत्ना,,, छी, ऐसी बाते मत करो देव, मुझे शर्म आती है। आखिर तुम मेरे पुत्र जो हो। लेकिन चलो, अब तो खुश न।
देव,,, खुश नहीं माते, बहुत खुश !!! लेकिन अभी मुझे पिता श्री की याद आ रही है
रत्ना ,,,, वो क्यूं
देव ,,, इसलिए की पिता श्री कितने खुशकिस्मत हैं जो उन्हें आप जैसी सुन्दर स्त्री पत्नी के रूप में मिली जिसका अंग अंग निखरा हुआ है,। सही मायने में पिता श्री ने जरूर कोई पुण्य कार्य किया होगा जो इतनी सुन्दर योनि वाली स्त्री से उनका विवाह हुआ। ये वही योनि है ना माते, जिसे पिता श्री ने सुहागरात में अपने लन्ड से चूदाई कर के आप दोनो का मिलन पूर्ण किया था।
देव की ये कामुक बातें रत्ना को तो उत्तेजित कर ही रही थी। उत्तेजना के कारण रत्ना कुछ बोल नहीं पाती हैं। इधर देब के लौड़े पर भी ये बातें असर डाल रही थी। देव का लन्ड और कड़ा होकर खड़ा हो गया था। रत्ना की सांसे तेज चल रही थी और सांसे तेज चलने से छाती उपर नीचे हो रही थी। रत्ना लगातार एकटक देव के उपर नीचे करते लन्ड को देख नहीं थी। वह इतनी उत्तेजित हो गई थी कि उन्हें अब स्वयं को रोक पाना सम्भव न हो सका और अनायास ही उन्होंने अपने हाथ बढ़ा कर देव के लन्ड को अपने हाथ से पकड़ लिया और उसके गुलाबी चिकने सुपाड़े को अपनी उंगलियों से सहलाने लगी। देव ने भी इधर अपने हाथ बढ़ा कर हाथ रत्ना की योनि पर रख दिया और धीरे धीरे पूरी योनि को सहलाने लगा जिसमें देव को असीम आनन्द आ रहा था। दोनो अभी एक दूसरे के यौनांगो को छूने में मगन थे, तभी उनका ध्यान तब भंग हुआ जब देव ने एक लम्बी पाद छोड़ी। देव के पाद की आवाज़ सुनकर रत्ना को हंसी आ गई और रत्ना को हस्ता देख देव को भी हंसी आ गई। तब रत्ना देव के लिंग को छोड़ते हुए उठने लगी और कहा कि

पुत्र, आप शौच करके आइए, मै झील किनारे चलती हूं
तब देव कहते हैं
माते, आप भी शौच कर ले, अभी आपने शौच किया ही कहां है
तब रत्ना कहती हैं
मैंने प्रातः ही शौच कर लिया है पुत्र, ! वो तो मै तुम्हारे पास तुमसे बातें करने के लिए शौच के बहाने आ गई थी ताकि मैं अपने पुत्र की नाराजगी दूर कर सकूं

तब देव कहते हैं

और इसी बीच हमारी बात बन गई। है ना माते

यह कह कर दोनों हंस देते हैं। देव फिर बोलते हैं


माते मैने भी शौच कर लिया है

ऐसा बोल कर देव भी रत्ना के साथ उठ जाते हैं और नित्य क्रिया निवृत्त होकर स्नान हेतु दोनों झील की ओर चल पड़ते हैं । दोनों मां बेटे के जीवन में आज की सुबह एक नई सुबह लेकर आई थी और दोनों आज बहुत खुश थे। देव आज इस बात को लेकर खुश थे कि आज रत्ना के साथ उनका सम्बंध एक नई ऊंचाई तक पहुंच गया है और उन्होंने रत्ना की योनि के दर्शन भी कर लिए हैं। वहीं रत्ना मन ही मन इस बात से खुश हो रही थी कि उसने आज देव के सामने ही उसके लन्ड को अपने हाथ से पकड़ लिया था और देव के प्रति उसका आकर्षण एक कदम और आगे बढ़ चुका था। रत्ना तो देव के प्रति उसी दिन से आकर्षित हो गई थी जिस दिन देव ने अपनी जान पर खेलकर शिविर में लगी आग से रत्ना को बचाया था। रत्ना मन ही मन देव के प्रति आकर्षित हो गई थी और इसीलिए तो वह देव को खुली कामुक बातें करने दे रही थी, बल्कि वह इसका आनन्द भी उठा रही थी।
दोनों मां बेटे काफी खुश थे। रत्ना झील के उस किनारे जाती हैं जहां वह नहाया करती हैं और देव भी उसी किनारे रत्ना के साथ पहुंच जाते हैं जिन्हें देख कर रत्ना कहती है
पुत्र, तुम झील के दुसरे किनारे जाकर स्नान करो और यहां मुझे स्नान करने दो
इस पर देव कहते हैं
मुझे भी यहीं स्नान करने दे माते,,
इस पर रत्ना आंखें दिखाते हुए कहती हैं
पुत्र, मै यहां कपड़े उतार कर नहाती हूं, आप जाइए यहां से
इस पर देव कहते हैं
माते, यहीं स्नान करने दीजिए ना, आप कपड़े उतार कर नहाती है तो क्या हुआ,,, अब मैने सब कुछ तो देख ही लिया है आपका,,, आपके स्तन और आपकी योनि भी
इस पर रत्ना कहती हैं
माना आपने मेरे अंगों को देख लिया है, लेकिन मैं आपके सामने पूरी नंगी नहीं हो सकती

और ये कहते हुए रत्ना मुस्कुराते हुए देव को प्यार से ठेलते हुए झील के किनारे से दुर करती हैं और कहती हैं
और हां,, पेड़ों के पीछे से छिप कर मुझे नहाते मत देखिएगा राजकुमार,,,
ये सुन कर देव भी शरमा जाते हैं और मुस्कुराते हुए झील के दुसरे किनारे नहाने चले जाते हैं। दोनों मां बेटे खूब खुश तो थे ही, खूब रगड़ रगड़ कर नहाते हैं। लेकिन वो कहते हैं ना कि होनी को कोई टाल नहीं सकता। तो जो होना था वह हुआ। रत्ना नहा कर झील से नंगी ही बाहर निकलती हैं और अपने बदन को सूखा रही थी और एक झीनी चुन्नी से खुद को ढके रहती है। तभी उधर शिकार की खोज में एक भेड़िया झील के किनारे पहुंच जाता है। भेड़िया काफी दिनों से भूखा था तो उसे रत्ना एक स्वादिष्ट शिकार के रूप में दिख रही थी। इधर रत्ना को कोई खबर ही नहीं थी एक भूखा भेड़िया उसकी ओर आ रहा है। लेकिन थोड़ा नजदीक आने पर सूखे पत्तों पर भेड़िया की पदचाप रत्ना को सुनाई पड़ने लगती है। तब रत्ना उस ओर देखती है जहां वह भेड़िया को अपनी ओर आते हुए देखती है। भेड़िया को देख कर रत्ना के प्राण सुख जाते हैं । भेड़िया भी जब रत्ना की देखता है तो वह रत्ना की ओर दौड़ पड़ता है। भेड़िया को अपनी तरफ दौड़ता देख रत्ना जोर से देव को आवाज देते हुए चिल्लाती है और बेतहाशा चिल्लाते हुए झील के उस किनारे की ओर भागती है जिस ओर देव नहा रहे थे। उधर देव नहा कर नंगे ही धूप में एक शिला पर बैठे थे । जैसे ही उन्होंने अपनी मां रानी रत्ना की चिल्लाने की आवाज़ सुनी, उन्होंने तुरन्त अपनी तलवार उठाई और झील के उस किनारे की ओर दौड़े जिधर रत्ना स्नान करती थी। देव नंगे ही हाथ में तलवार लेकर दौड़ पड़ते हैं और उधर रत्ना भी केवल एक झीनी सी चुन्नी अपने शरीर से सटाए देव की ओर चिल्लाते हुए बदहवास दौड़ पड़ती है। इस बदहवासी में रत्ना देवी की चुन्नी भी अस्त व्यस्त हो जाती है और केवल वह कहने मात्र को ही रहती है। इधर भेड़िया रत्ना के पीछे उसे लपकने के लिए दौड़ रहा था लेकिन जब तक भेड़िया रानी रत्ना के पास पहुंच पाता तब तक रानी रत्ना और देव एक दुसरे के सामने पहुंच जाते हैं और रत्ना बदहवास चिल्लाते हुए देव को पकड़ लेती है और हांफते हुए कहती हैं
पुत्र अ अ ए, पुत्र अ अ, देखो पुत्र, भेड़िया,,,, भेड़िया,, मुझे मारने को मेरे पीछे पड़ा है, बचाओ पुत्र बचाओ मुझे,,,
देव,,,, माते, आप चिन्ता न कीजिए, ,, आप मेरे पास आ गई हैं, घबराइए मत, आपको मैं कुछ नहीं होने दूंगा
तब तक भेड़िया भी रत्ना का पीछा करते हुए वहां पहुंच जाता है, । उसे देख कर देव अपनी तलवार लिए उसकी तरफ आगे बढ़ते हैं। रत्ना देव को पीछे से पकड़ी रहती हैं, आखिर वह इतनी डरी सहमी रहती है कि वह देव को छोड़ती ही नहीं है, बल्कि उनके नंगे बदन से चिपकी रहती हैं। इधर भेड़िया जैसे ही देव को अपनी ओर तलवार लिए खड़ा देखता है, वह वहां से जान बचा कर भाग जाता है। भेड़िया के भाग जाने से दोनों मां बेटे के जान मे जान आती है । लेकिन रत्ना इतनी डरी रहती है कि वह रोने लगती हैं और देव के गले लग कर रोने लगती हैं। इस दौरान उन्हें इस बात का भान ही नहीं रहता है कि वो इस समय नंगी हैं और उनकी झीनी सी चुन्नी भी पूरी तरह से अस्त व्यस्त है जो केवल कहने को उनके शरीर को ढक रही है। वह रोते रोते कहती हैं
पुत्र, आज फिर आपने मेरे प्राणों की रक्षा की। यदि आज आप नही होते तो ये भेड़िया मेरे प्राण ले हो चुका होता। पुत्र, आप हमेशा मुझे अपनी जान पर खेल कर मेरे प्राणों की रक्षा करते हैं। पता नहीं, हमारी खुशियों पे किसकी नज़र लग गई है। आज सुबह मैं कितनी खुश थी कि आज हमारे दिन की शुरूआत कितनी अच्छी हुईं हैं। लेकिन पुत्र देखो, अब ये घटना हो गई !!!
इस पर देव कहते हैं,,,
माते आप चिन्ता न करें। मेरे रहते आपको कुछ नहीं हो सकता। आपके प्राणों की रक्षा के लिए मैं अपने प्राणों की आहुति दे दूंगा।

देव के ऐसा बोलने पर रत्ना देव के होंठों पर अपनी ऊंगली रख देती है और उनकी आंखों में देखते हुए कहती हैं

पुत्र, आपने आज कह दिया सो कह दिया, आगे से अपने प्राण देने वाली बात बिल्कुल न कहना, नहीं तो तुम्हारी ये मां तुम्हारे बिना जीते जी मर जायेगी।

तब देव रत्ना के होंठो पर अपनी ऊंगली रख कर कहते हैं
आप भी अपने मरने की बात न करें माते, । मै आपके बिना कैसे रह पाऊंगा,,,
तब रत्ना कहती है
इतना प्यार करते हो अपनी मां से !!!! मै जानती हूं पुत्र, मुझे तुम्हारे जैसा प्यार करने वाला कोई नहीं मिल सकता जो अपनी जान पर खेलकर मेरी जान बचाया है
इतना सुन कर देव के मुंह से निकलता है
" मातेएए"

और ऐसा बोलकर देव रत्ना को अपने आगोश में भर लेते हैं और रत्ना भी देव को जकड़ लेती है। अभी तक दोनों मां बेटे को इस बात का भान ही नहीं था कि दोनों नंगे हैं लेकिन उनके शरीर को तो इसका अहसास हो रहा था।
फिर धीरे धीरे दोनों को अपनी नग्नता का अहसास होता है। लेकिन दोनों को एक दूसरे का नंगा बदन अच्छा लग रहा था। रत्ना के दोनों नंगे स्तन पहली बार देव की छाती में धंसे हुए थे। काफी समय बाद पुरूष का नग्न अवस्था में आलिंगन रत्ना को बहका रहा था। वह धीरे से अपने स्तनों को देव की छाती पर रगड़ती है जिससे उसके स्तन के चूचुक कड़े हो जाते हैं और मटर के दाने की तरह खिल जाते हैं। वह हौले हौले अपने स्तनों को देव की छाती पर रगड़ते लगती हैं और एक तरह से यौन आनन्द प्राप्त कर रही होती हैं,,, इधर देव को भी रत्ना का नंगा शरीर उनकी उत्तेजना बढ़ा रहा था। उपर से रत्ना का अपने स्तन देव की छाती में रगड़ना उन्हें और उत्तेजित कर रहा था। देव तो इधर कुछ दिनों से रत्ना के नंगे स्तन को देख कर अपना लन्ड हाथ में पकड़ कर हिलाया कर रहे थे, आज वही स्तन उनकी छाती में धंसे थे। दोनों मां बेटे आलिंगनबद्ध थे, कोई कुछ नहीं बोल रहा था। इधर उत्तेजना के मारे देव का लन्ड खड़ा हो गया था और रानी रत्ना के पेट से चिपका हुआ था जिसका अहसास रानी रत्ना को भी था। इधर देव का लन्ड और बड़ा और मोटा होता जा रहा था।।। देव भी रत्ना को अपनी बाहों में भींचने लगते हैं। दोनों मां बेटे उत्तेजना के शिखर पर थे। तभी रत्ना ने अपना हाथ देव के कमर से हटाया और अपना हाथ नीचे ले जाकर सीधे देव के लन्ड को अपने हाथ में पकड़ लिया और उसे पकड़ कर सहलाने लगी और आहें भरने लगी। अपनी मां की इस हरकत से उत्तेजित होकर देव भी अपना हाथ नीचे ले जाते हैं और सीधे रत्ना की योनि पर रख देते हैं और उसे अपने पंजे से दबोच लेते हैं। रत्ना को अपनी योनि पर पुरूष के हाथो का स्पर्श बहुत अच्छा लगता है। देव धीरे धीरे रत्ना की योनि को सहलाने लगते है और कहते हैं
अह्ह्ह्ह, आज मुझे अपनी मां की उस योनि को स्पर्श करने का, सहलाने का मौका मिला है जिसे आज तक केवल पिता श्री ने ही सहलाया है,,, है ना मां,,,
इस पर रत्ना कसमसाते हुए देव से और चिपक जाती है और अपने स्तन देव की छाती में और धंसा कर रगड़ने लगती है। इधर दोनों मां बेटे एक दूसरे के यौनंगो से खेल ही रहे थे । उत्तेजना के मारे देव रत्ना के होंठों पर चुम्बन लेने के लिए जैसे ही थोड़ा अलग हट कर रत्ना के चेहरे को थोड़ा ऊपर उठा कर अपने होंठ रत्ना के होठ पर रखने वाले होते हैं तभी रत्ना देव की आंखों में देखती है और उस समय रत्ना के अन्दर अपने पुत्र के लिए वात्सल्य भाव जागृत हो जाती है और वह झटके से देव से दूर हट जाती है और कहती है
ये मैं क्या कर रही थी, ये तो पाप है । मां और बेटा ऐसा नहीं कर सकते। यह घोर पाप है।
रत्ना ऐसा बोलती तो है लेकिन वह देव के लिंग को पकड़े ही रहती है। एक तरफ़ तो वह कहती है कि यह पाप है और दूसरी तरफ वह देव के लिंग को पकड़े रहती है। वह अपना चेहरा दूसरी ओर घूमा लेती है और कहती है
पुत्र, हम दोनों ऐसा नहीं कर सकते, मां और बेटा का रिश्ता बहुत पवित्र होता है और इस सम्बंध में किसी तरह के यौन संबंधों का कोई स्थान नहीं होता है। यह पाप है पुत्र, पाप
तब देव कहते हैं
अगर यह पाप है, तो यह पाप हो जाने दो मां। आह इस पाप मे कितना आनन्द है मां। यह पाप और पुण्य, तो हम मनुष्यों ने ही बनाया है न माते
इस पर रानी रत्ना कहती हैं
तुम समझने की कोशिश करो पुत्र, हम दोनों राजघराने से हैं , मैं इस राज्य की रानी हूं और आप यहां के राजकुमार। आप ही सोचिए पुत्र, हमारी महती जिम्मेदारी है कि हम दोनों मन मर्यादा की रक्षा करे, उसका ख्याल रखें।।।।

तब देव कहते हैं
माते, इस घने जंगल में जहां हम दोनों के सिवाय कोई नहीं है, वहां हमें कौन जान रहा है कि हम राजघराने से हैं, हमे तो यह भी नही पता की हैं कि हम कभी इस जंगल से बाहर निकल भी पाएंगे या नहीं,,,,, जंगल में कैसी मान मर्यादा मां, यहां हमें कौन देखने वाला है कि हम दोनों आपस मे क्या कर रहे हैं,,,,,,
तब रत्ना कहती हैं
पुत्र, आप वासना की आग में अंधे हो गए हो, आप यह नहीं देख पा रहे हो कि आपके सामने आपकी मां खड़ी है कोई दूसरी स्त्री नही!!! आप हवस में अंधे हो गए हो। ये हवस है पुत्र हवस, एक स्त्री के शरीर को पाने की हवस,,,
इस पर देव कहते हैं
माते , ये हवस नही है माते। ये तो आपके लिए मेरा प्यार है माते। मेरे प्यार को हवस का नाम दे कर मेरे प्यार को गाली ना दो मां । मानता हूं आप मेरी मां हो और मैं आपका पुत्र, लेकिन आप एक मां होने के साथ साथ एक स्त्री भी है और मै पुत्र होने के साथ साथ एक पुरूष भी तो हूं। इस घने जंगल में स्त्री और पुरुष केवल हम दोनों ही हैं और मैं तो मानता हूं कि स्त्री और पुरुष के बीच प्रेम की पराकाष्ठा है उन दोनों के बीच यौन संबंध। यदि कोई स्त्री किसी भी पुरूष को सच्चा प्यार करती है तो उस पुरूष को अपना बेशकीमती अंग अपनी योनि जरूर दिखाएगी और यौन सम्बंध बनाने देगी, भले उस स्त्री पुरूष के बीच किसी भी प्रकार का रिश्ता भले ही क्यों ना हो!!!

इस बात चीत के दौरान रत्ना देव से रिश्तों की दुहाई तो दे रही थी, लेकिन इस दौरान वह अपने हाथ देव के लिंग से नहीं हटाती है क्यों कि उसका दिल देव के लिंग पर से हाथ हटाने का हो नहीं रहा था और हो भी क्यों ना, देव का लन्ड इतना प्यारा जो था,,, देव आगे फिर कहते हैं
माते मैं सच कहता हूं मैं आपसे बहुत प्यार करने लगा हूं और मै यह भी जानता हूं कि आप भी मुझे बहुत प्यार करती है, तो मां आप मेरे प्यार को स्वीकार कर लो,,,, माते आप ठंडे दिमाग से सोच लो आपको मेरा प्यार मंजूर है कि नहीं और आप इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहती है कि नहीं,,, मां ये तो सोचिए,, आपको जो चाहिए वो मेरे पास है और मुझे जो चीज चाहिए वो आपके पास है तो हम दोनों इसके लिए क्यों तड़पते रहे,,, क्यो ना इस सुनसान जंगल में हम दोनों एक दूसरे को संतुष्ट करें और जीवन का आनन्द ले,,,,इस जंगल में हम दोनों क्या कर रहे हैं, यह कोई जान भी नहीं पाएगा माते,,,, यहां की बात यहीं रह जाएगी मां,,,,,,,,आप एक काम कीजिए माते,,,,, आप यहां बैठिए और मैं जंगल से फूल तोड़ कर पुष्प की दो माला बनाता हूं और उसे ले कर आपके सामने आता हूं, यदि आपने मेरे हाथ से एक हार ले लिया तो मै समझूंगा कि आपको मेरा प्यार मंजूर है!!!! कहिए मंजूर है?

इस पर रानी रत्ना कोई जवाब नहीं देती,, इधर रत्ना को कोई जवाब देता नही देख देव कुछ देर खड़े रहते हैं और फिर जंगल में पुष्प चुनने चले जाते हैं, उन्हें दो हार जो बनाने थे,,,
इधर रत्ना एक शिला पर बैठ कर इधर कुछ दिनों में हुए घटना चक्र के बारे में सोच रही होती हैं। वह मन में ही सोचती है
ये तो मै पाप ही कर रही थी। छी, अपने पुत्र के साथ यौन सम्बंध कितना गलत है। लेकिन मेरा पुत्र तो सबसे अलग है। कितना प्यार करता है मुझे। कितनी बार तो उसने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए मेरी जान बचाई। कोई इतना प्यार करने वाला मुझे मिलेगा क्या भला । और पुत्र है तो क्या, एक पुरूष भी तो है ,,, सही तो कहा है देव ने इस सुनसान जंगल में हमें कौन जानता है कि हम दोनों मां बेटे हैं। और उसका लन्ड कितना आकर्षक है। मै तो उसके लन्ड की दीवानी हो गई हूं।,,, यह बात तो सच ही है कि मै स्वयं उसके आकर्षण मे बंध गई हूं,, उससे प्यार करने लगी हूं,, भले ही उसके सामने मैने यह स्वीकार नहीं किया,,,

रत्ना शिला पर ऐसे ही एक झीनी सी चुन्नी ओढ़ कर बैठी रहती है और यही सोचती रहती हैं और उधेड़बुन में पड़ी रहती हैं। उधर देव काफ़ी मेहनत करके पुष्प संग्रह करते हैं लताओं के रेशे को धागा बना कर दो सुंदर माला तैयार करते हैं और दोनो माला ले कर अपनी मां रानी रत्ना देवी के सामने जाकर खड़े हो जाते हैं । रत्ना गंभीर चिन्तन में बैठी रहती हैं, उन्हें इसका भान ही नहीं रहता है कि देव उनके सामने आकर खड़े हैं। तभी देव कहते हैं
" माते "
देव के आवाज देने से रत्ना की तंद्रा टूटती है । वह देखती है कि देव उनके सामने पुष्प की दो माला लिए खड़े हैं। तब रत्ना खड़ी हो जाती है और कुछ देर सोचती रहती हैं। तब देव कहते हैं
देखिए मां, मैने दो मालाएं तैयार कर ली है,अब आप या तो मेरे हाथ से माला ले कर मेरे प्रेम को स्वीकार कर लीजिए या अगर आप ये माला स्वीकार नहीं करती हैं तो मैं तो समझूंगा कि आपने मेरे प्यार को स्वीकार नहीं किया है और आपने मेरे प्यार को ठुकरा दिया है,,,,

इस पर रत्ना देव की ओर अपने कदम आगे बढ़ाती हैं। आज रत्ना को कदम बढ़ाने में ऐसा लग रहा था मानो उसके पैर जमीन में गड़ गए और इतने भारी हो गए हैं कि वो उठ ही नहीं पा रहे हैं,,,,, वो बहुत धीमे कदम से आगे बढ़ती है,,,,,अपनी मां को अपनी ओर आता देख देव बहुत खुश होते हैं कि लगता है उनकी मां ने उनका प्रणय निवेदन स्वीकार कर लिया है।,,, रत्ना आगे तो बढ़ती है लेकिन जब देव को ऐसा लगा कि उसकी मां उसके एकदम करीब आ गई है, ,,,तब रत्ना देव के बिल्कुल बगल से निकल कर आगे बढ़ जाती है,,,,,,,,। अब स्थिति यह थी कि रत्ना की पीठ देव की पीठ के तरफ़ हो गई थी। ,,,,दोनों कुछ नहीं बोलते हैं।,,,,,,,, लेकिन देव को बड़ा दुख होता है कि उसकी मां ने उसका प्रणय निवेदन स्वीकार नहीं किया, उसकी आंखें भर आती हैं और वह सिर झुका कर बड़े भारी मन से वहा से जाने के लिए एक कदम आगे बढ़ाते हैं, ऐसा लग रहा था कि उनका पैर इतना भारी हो गया था कि वह उठ ही नहीं रहा था।,,,, उन्होंने अभी एक कदम आगे बढ़ाया ही था कि उन्हें अहसास होता है कि किसी ने पीछे से उनका हाथ पकड़ लिया है। वो यह देखने के लिए की किसने उनका हाथ पकड़ा है, जैसे ही वह पीछे मुड़ते है, वह देखते हैं कि उनकी मां ने उनका हाथ पकड़ा हुआ है और वह मुस्कुराते हुए देव की आंखों में देखते हुए कहती हैं

पुत्र, आप फूलों की माला तो अच्छी बना लेते हैं, कहां से सीखा आपने इतने सुन्दर हार बनाना,,,

ऐसा बोल कर रत्ना धीरे से देव के हाथ से एक माला ले कर देखने लगती हैं जिसका भान देव को होता ही नहीं है,,,,और फिर रत्ना कहती है,,,,
"बहुत सुन्दर माला है देव"
अभी के घटनाक्रम में देव को इसका ध्यान ही नहीं रहता है कि रत्ना ने उनके हाथ से माला ले ली है। इस दौरान दोनों मां बेटे पूरे नंगे ही रहते हैं, केवल रत्ना के शरीर पर नाम मात्र की एक चुन्नी रहती हैं । तभी देव कहते हैं
माते मैं आपके प्यार मे बंध गया था। लेकिन कोई बात नहीं आपने मेरे प्यार को स्वीकार नहीं किया

तभी रत्ना हंसने लगती है तो देव कहते हैं
आप हंस क्यूं रही हैं माते
तब इस पर रत्ना कहती है
बुद्धू महाराज,,, अरे जरा देखो तो सही, मेरे हाथ में क्या है,,,,, देखो मेरे हाथ में ही तुम्हरी माला है

तब देव अपनी मां के हाथ में देखते हैं तो उन्हें यह ध्यान आता है कि सच में माला तो मां के हाथ में है। मां ने बातों में फसा कर माला अपने हाथ में ले लिया और उदासी में रहने के कारण इसका पता देव को नहीं चल सका!! पहले देव को इसका मतलब ही समझ में नहीं आया कि उनकी मां ने बातों बातों में उनके हाथ से फूलों की जो माला ले ली, उसका मतलब क्या है,,,, लेकिन जैसे ही देव को इसका मतलब पता चला ,,, तब देव अपनी मां के हाथ में माला देख कर खुशी से झूम पड़ते हैं और कहते हैं

धन्यवाद मां, आपने मेरा प्यार स्वीकार किया

और ये कहते हुए खुशी से नंगे ही अपनी मां के गले लग जाते हैं और प्यार से गले पर चुम्बन जड़ देते हैं। फिर थोडी देर में दोनो अलग होते हैं तो रत्ना कहती है

की पुत्र, इस माला को मैने ले तो लिया, अब इसका क्या करें
देव,,, आपको जो उचित लगे माते

इस पर रानी रत्ना कुछ देर सोचती है और फिर वह माला देव के गले में डाल देती है और कहती हैं अब हुआ तुम्हरा प्रेम स्वीकार। तब देव भी थोडी देर सोचते हैं और फिर संकोच करते हुए थोड़ा आगे बढ़ते हैं और फिर अपनी मां के गले में माला डाल कर कहते हैं
मेरा प्यार स्वीकार करने के लिए शुक्रिया मां,

और ऐसा बोलकर देव आगे बढ़ते हैं और अपने होंठ अपनी मां के होंठों पर रख कर चूमने लगते है। रत्ना भी उनका साथ देते हुए देव के होंठों को चूमने लगती हैं। अब दोनों उसी स्थिति में आ जाते हैं जहां कुछ घंटों पूर्व रत्ना ने देव के चुम्बन को अस्वीकार कर दिया था। लेकिन अब वही रत्ना देव के होठों को खुब चाव से चूम रही थी। थोड़ी देर बाद दोनों मां बेटे अलग होते हैं तो रत्ना कहती है
पुत्र, आपके प्रेम को तो मैने स्वीकार कर लिया, लेकिन मैं तुम्हारे लिए अभी अशुद्ध हूं

देव,,, अशुद्ध,, इससे आपका क्या अभिप्राय है, आप मेरे लिए अशुद्ध कैसे हो सकती हैं मां?

रत्ना,,,,, अशुद्ध इसलिए की मैं अभी तुम्हारे लिए अपवित्र हूं

देव,,, अशुद्ध,,, अपवित्र,,, इन सबका क्या मतलब है मां, मै नहीं समझ पा रहा हूं, ,, आप मेरे लिए इस संसार में सबसे पवित्र और शुद्ध हैं माते,,

रत्ना,,, मैं आपके लिए अपवित्र इसलिए हूं क्योंकि आपके पिता श्री ने मुझे अशुद्ध किया है, अपबित्र किया है,, उन्होंने मेरे इस शरीर को भोगा है,, मेरे शरीर के अंतरंग भाग तक उन्होंने मुझे भोगा है पुत्र,, इसलिए मैं आपके पिता श्री के लिए तो पवित्र हूं,,,,,लेकिन मै अभी आपके लिए अशुद्ध हूं



देव,,,, इन सब से क्या फर्क पड़ता है माते



रत्ना,,, फर्क पड़ता है पुत्र, मै अपवित्र स्थिति में अपने पुत्र से प्रेम नहीं कर सकती



देव,,, तो अब किया क्या जा सकता है, इसका उपाय क्या है मां



रत्ना,, उपाय है पुत्र,,, उपाय है,, इसके लिए हमे शुद्धिकरण की क्रिया करनी होगी



देव,,, शुद्धिकरण की प्रक्रिया।!!!



रत्ना,,, हां, शुद्धिकरण की प्रक्रिया,,,



देव,,, लेकिन ये शुद्धिकरण की क्रिया करते कैसे हैं? और इसकी जानकारी आपको कैसे हैं माते ?



रत्ना,,,यह बहुत गुप्त क्रिया है पुत्र, जिसे बहुत कम लोग ही जानते हैं।।। मुझे इस क्रिया की जानकारी विवाह के पूर्व ही राजवैद्य की पत्नी ने बताया था। लेकिन यह शुद्धिकरण की क्रिया बहुत ही जटिल है और इसे सभी नहीं कर पाते हैं।



देव,,, माते, लेकिन यह शुद्धिकरण की क्रिया इतनी कठिन क्यों है और इसे सभी क्यों नहीं कर पाते हैं ?



रत्ना,,, ये क्रिया इसलिए जटिल है पुत्र क्योंकि इस क्रिया में स्त्री को अपने पूरे शरीर को पुरूष के पेशाब से धोना होता है और पुरूष को स्त्री के पेशाब से,,,



देव,,,,, तो यह क्रिया तो वाकई बहुत जटिल है माते,,, और इस सुनसान जंगल में कौन पुरूष होगा जो शरीर धोने के लिए पेशाब देगा,,, और मां, आप इस घिनौनी क्रिया को करने को कैसे तैयार होंगी?



रत्ना,,, पुत्र पेशाब इकट्ठा नहीं करना है,,, बल्कि जब पुरूष पेशाब कर रहा हो तब उसी की धार से ही नंगे शरीर को धोना है,,

देव,,, ओह, तब तो इनमे काफी समय भी लगेगा,,,, क्यों कि एक बार पेशाब करने से पूरा शरीर तो धूल नहीं सकता है,,,

रत्ना,,, सही कहा पुत्र आपने,,, यह क्रिया दो तीन बार मे पूरी होती है

देव,,, लेकिन मां, आप पेशाब से नहाएंगी, तो आपको घिन्न नहीं आएगी क्या?

रत्ना,, नहीं पुत्र,, मुझे अपने शुद्धिकरण के लिए पेशाब से नहाने में कोई घिन्न नहीं आएगी

देव,,, चलो, वो सब तो ठीक है मां,,, लेकिन इस जंगल में पेशाब करने वाला पुरूष मिलेगा कहां ?

रत्ना,, मिलेगा पुत्र मिलेगा और वो यहीं हैं,,,

देव,,, कौन है माते वो,,

रत्ना,,, वो तुम हो देव तुम

देव,,, नहीं माते नहीं,,, मैं ऐसा नहीं कर सकता,,, मै आपके शरीर पर पेशाब नहीं कर सकता,,, आप मेरे लिए पूज्यनीय है माते,, और मै जिसका दिलो जान से इतना सम्मान करता हूं,,, उसके उपर मै पेशाब,,, बिल्कुल नहीं बिल्कुल नहीं कर सकता,,,,

रत्ना,,,,,, मै जानती हूं पुत्र तुम मुझे बहुत प्यार करते हो, मेरा बहुत सम्मान करते हो,,, मैं तो धन्य हो गई तुम जैसे प्यारे आज्ञाकारी पुत्र को पा कर,,, लेकिन पुत्र क्या तुम अपनी मां के शुद्धिकरण के लिए इतना भी नहीं कर सकते,,, जबकि मुझे तुम्हारे पेशाब से नहाने में कोई ऐतराज नहीं है,,, मैने भी तो आज सुबह तुम्हारे उपर पेशाब कर ही दिया था!!!!

देव,,,, वो तो ठीक है मां,, लेकिन मुझसे यह नहीं हो पाएगा,,, भले ही मै आपके प्यार से वंचित रह जाऊं,,, मै आपका अपमान नहीं कर सकता माते,,, यदि मै ऐसा करूंगा तो नरक का भागी बनूंगा माते,,,

रत्ना,,, मै बहुत खुश हूं कि तुम मेरा इतना सम्मान करते हो पुत्र,, लेकिन जब तुम यह क्रिया मेरे साथ मेरी सहमति से करोगे तब कोई नरक के भागी नहीं बनोगे,,, इसीलिए मैंने कहा था न कि यह क्रिया थोडी जटिल है,,, और पुत्र यदि आप सहयोग नहीं करेंगे तो आपकी यह मां प्यासी ही रह जाएगी,, क्या आप नहीं चाहते कि आपकी मां की मंशा पूरी हो,,,

देव,,, चाहता हूं मां, मै तो चाहता ही हूं,, लेकिन यह क्रिया मुझे घिनौनी लग रही थी और खास कर यदि मैं आप पर पेशाब करूं तो,,, वैसे आप चाहती हैं तो मैं तैयार हूं, लेकिन मेरी एक शर्त है

रत्ना,,, शर्त,, कैसी शर्त , पुत्र।।

देव,,, शर्त यह है कि आप भी मेरा शुद्धिकरण करेंगी और मेरे शरीर को अपने पेशाब से धोएंगी।।। हम दोनों मां बेटे एक दूसरे को पेशाब से नहलाएंगे,,,



रत्ना,,, आप तो अशुद्ध हैं नहीं पुत्र, तो फिर आपको शुद्धिकरण की क्या आवश्यकता है?

देव,,, अगर आप मेरा शुद्धिकरण नहीं करेंगी तो मैं भी आपके साथ शुद्धिकरण नहीं करूंगा,,

रत्ना,,, वैसे तो मैंने सुबह में ही आपके लिंग को अपने पेशाब से धो ही दिया है,,, लेकिन अगर आप ऐसा ही चाहते हैं तो मैं आपके साथ शुद्धिकरण करूंगी,,,



देव,,, मां, मुझे तो जोरो की पेशाब लगी है , यदि आप चाहें तो शुद्धिकरण की क्रिया शुरु कर दी जाए

रत्ना,, हाय!!! बड़ी जल्दी है मेरे पुत्र को यह क्रिया पूर्ण करने की !!!

देव,,, जिस पुत्र की मां इतनी सुन्दर हो , वह ये क्रिया जल्दी पूर्ण करना क्यों नहीं चाहेगा

रत्ना,, मुस्कुराते हुए,, चलो मान लिया मै सुन्दर हूं,,,अब चलो यह क्रिया शुरु करते हैं

यह कहते हुए रत्ना वहीं देव के सामने बैठ जाती है और कहती है

पुत्र आप पेशाब करना शुरु करे, मुझे अपने शरीर का जो अंग धोना होगा, मै धो लूंगी

रत्ना के ऐसा कहने पर देव पेशाब करना शुरु करते हैं तो रत्ना देव के पेशाब की धार में अपना चेहरा ले आती है तो स्थिति यह हो जाती है कि देव रत्ना के चेहरे पर पेशाब कर रहें होते हैं और रत्ना अपने दोनों हाथों से रगड़ रगड़ कर अपना चेहरा देव के पेशाब से धोने लगती है , साफ करने लगती हैं,,, देव के गुनगुने पेशाब से चेहरा धोने से रत्ना का चेहरा और चमक उठता है और चंद्रमा की भांति चमकने लगता है,, तभी रत्ना अपना चेहरा हटा कर देव के पेशाब से अपने बाल धूलने लगती है,,,,, देव फिर रत्ना के सिर पर पेशाब करने लगते हैं,,, अब रत्ना देव के पेशाब से अपना सिर धूलती है और फिर अपने लम्बे बालों को आगे कर के अपने बाल दोनो हाथो से रगड़ रगड़ कर धूलने लगती है,,, देव के पेशाब की मादक खुशबू रत्ना को मदहोश किए जा रही थी,,,, एक तो कई दिनों से अनचूदी महिला और उपर से ऐसा कामुक दृश्य, साथ ही एक गबरू जवान पुरूष के पेशाब की मादक गंध रत्ना को पागल किए हुई थी,,,,, रत्ना जब अपने बाल धो लेती हैं तो अपने बालों को निचोड़ कर पीछे पीठ पर कर देती हैं,,, ,,, और फिर अपने स्तनों को देव के पेशाब की धार के सामने ले आती है और अपने दोनों स्तनों को धोने लगती है। रत्ना के स्तन उसके शरीर के दुसरे अंगों की अपेक्षा ज्यादा गोरे तो थे ही देव के पेशाब से धुलने के कारण और चमकने लगे थे ,, ऐसा लग रहा था जैसे संगमरमर को अभी चमकाया गया हो,,,, रत्ना अपने स्तन के चूचुक को भी अपनी उंगलियों से हौले हौले रगड़ कर साफ करती है और फिर दोनों हाथों से अपने पेट और नाभि को साफ करती है,,,,, रत्ना यह सारी क्रिया जल्दी जल्दी ही कर रही थी,,,,, लेकिन कमर तक पहुंचते पहुंचते देव के पेशाब की धार खत्म हो जाती है,,, वे पेशाब कर चुके थे,,,, तब देव कहते हैं

मां, मेरा पेशाब तो खतम हो गया

रत्ना,,,

लेकिन अभी तो शुद्धिकरण की क्रिया आधी ही हुई है आधी क्रिया तो बची ही हुई है,,,, ऐसा करो पुत्र, तुम झरने का पानी पी लो,, थोड़ी देर में फिर से तुम्हें पेशाब लग जायेगी,,,

देव,,

हां, माते, मै पानी पी लेता हूं और जब मेरे सामने विश्व की सबसे खूबसूरत नारी ऐसे मादरजात नंगी खड़ी रहेगी तो पेशाब भी जल्दी ही लग जायेगी

इस पर दोनों मां बेटे हस देते हैं और देव झरने से पानी पीने चले जाते हैं और भर पेट पानी पी कर वो रत्ना के पास आते हैं और थोड़ा टहलने लगते हैं। कुछ देर टहलने के बाद उन्हे फिर पेशाब आ जाता है तो वह कहते हैं

माते, अब मुझे जोरों की पेशाब लगी है,,,

इस पर रत्ना खड़ी ही रहती है, और देव को कहती है

अब तुम पेशाब करो पुत्र

तब देव पेशाब करने लगते है,। रत्ना पहले अपने दोनों पैरों को धोती है और फिर देव को पेशाब रोकने को बोलती है। देव अपना पेशाब रोक लेते हैं। तब रत्ना वही एक शिला पर उकडूं बन कर बैठ जाती हैं। शिला की उंचाई लगभग देव की कमर की ऊंचाई के बराबर थी। रत्ना अब अपने नितम्बों को शिला पर रखती है और अपनी जांघें खोल देती हैं जिससे उनकी योनि स्पष्ट रूप से देव के सामने खुल जाती है। उनकी योनि पे हल्की झांटे थी , उन झांटों को अपने हाथ से हटा कर वे अपनी बुर को फैला देती है जिससे उनके बुर की ललाई दिखने लगती है। अपनी मां की योनि की लालिमा को देख कर देव उत्तेजित हो जाते हैं और उनका लन्ड खड़ा होने लगता है जिसे रत्ना देख लेती हैं,,,, तो रत्ना कहती हैं

पुत्र, आप जल्दी पेशाब करना शुरु कीजिए,, नहीं तो एक बार आपका लिंग अगर खड़ा हो गया तो फिर आप पेशाब नहीं कर पायेंगे । और हां, इस बार आप मेरे बुर पर ही पेशाब कीजिए।

रत्ना के कहते ही देव रत्ना के बुर पर पेशाब करने लगते हैं और रत्ना अपनी योनि को धोने लगती है। वह अपने भग्नाशे को पहले धोती है और फिर अपनी योनि की दोनों फांकों को फैला कर पेशाब से योनि के अंदरूनी भाग को धोने लगती हैं,,,,, वह कोशिश करती हैं कि जितना अंदर तक हो सके उतना योनि अंदर तक देव के पेशाब से धुलाई हो जाए ताकि शुद्धिकरण की क्रिया अच्छे से पूर्ण हो, रत्ना कहती हैं

पुत्र और तेज धार मारो। योनि की गहराई तक आपके पेशाब की धार पहुंचना आवश्यक है क्योंकि योनि का शुद्धिकरण इस क्रिया का सबसे महत्वपूर्ण भाग है और इसका अच्छे से पूर्ण होना इस क्रिया की सफलता के लिए बहुत जरूरी है। योनि ही शरीर का वह भाग होती है जो सबसे ज्यादा अपवित्र होती है क्योंकि पुरूष सही मायने में योनि के माध्यम से ही स्त्री को भोगता है और अपने लिंग का प्रवेश स्त्री की योनि के अन्दर में करता है और स्त्री पुरूष के मिलन को पूर्ण करता है। आपके पेशाब की धार से मेरी योनि अन्दर तक धूल गई है। मेरी यह योनि अब मेरे पुत्र के लिए शुद्ध और पवित्र हो चुकी है।

देव ने काफी पानी पीया था इसलिए वो पेशाब भी ज्यादा कर रहे थे। अपनी मां की योनि अपने लिंग से धोने के बाद भी देव अभी अपनी मां के ऊपर पेशाब कर ही रहे थे कि रत्ना ने अपनी हथेलियों से अंजुल बना कर उसमें देव का पेशाब भरा और उस पेशाब को झट से पी गई। इस पर देव कहते हैं

ये क्या किया माते। आप मेरा पेशाब पी गई।

तब रत्ना कहती है

इस शुद्धिकरण की क्रिया का समापन ऐसे ही होता है पुत्र। मैने कहा था न कि यह क्रिया थोड़ी कठिन और जटिल है। इन्हीं कारणों से यह क्रिया जटिल मानी जाती है पुत्र और इस क्रिया को पूर्ण करना सबके बस की बात नही है। फिर मन में रत्ना कहती है ( मै तो आपके मोह पाश में ऐसे बंधी हूं पुत्र की आपके साथ संसर्ग करने के लिए मैं इस क्रिया को भी पूरी करने की तैयार हो गई!!! )

तब देव कहते हैं

माते अब आप मेरे उपर पेशाब कर के शुद्धिकरण की क्रिया को पूर्ण करें।

रत्ना,,

आप बैठ जाएं पुत्र, ,, मै इस शिला पर ही बैठ कर आपके ऊपर पेशाब करती हूं और आप अपने पूरे शरीर को मेरे पेशाब से धो लीजिए।

देव,,,

जैसा आप कहें माते

इस पर देव वहीं नीचे उकडू बन कर बैठ जाते हैं और रत्ना उस शिला पर उकड़ू बन कर बैठ जाती हैं और अपनी जांघें खोल कर अपनी बुर से पेशाब की धार निकालने लगती हैं जो देव के सिर पर गिरता है। देव पहले अपने सिर को धोते हैं और फिर अपने चेहरे को अपनी मां के पेशाब से धोते हैं जिससे राजकुमार का चेहरा दम दम दमकने लगता है। देव कहते हैं

बड़ा आनन्द आ रहा है माते, आपकी पवित्र योनि से निकले पेशाब से स्नान कर के। यह शुद्धिकरण की क्रिया जटिल भले ही हैं, लेकिन आनंददायी है।

फिर देव अपने हाथ, पेट और पीठ धोते हैं और फिर खड़े हो जाते हैं। उनके खड़ा होने से उनका लन्ड रत्ना की योनि के सामने आ जाता है क्योंकि रत्ना कुछ ऊंचाई पर एक शिला पर बैठी हुई थीं। अब रत्ना के पेशाब की धार देव के लिंग पर पड़ने लगती है। देव अपने लन्ड को अपनी मां के सामने ही उनके पेशाब से धोने लगते हैं और फिर अपने लिंग के ऊपर की चमड़ी को पीछे खींच कर उसके गुलाबी सुपाड़े को अपनी मां के पेशाब से धोने लगते हैं और कहते हैं



माते मैने भी अपने लिंग के अंदरूनी भाग को आपके पेशाब से धूल कर पवित्र कर दिया है। अब मेरा लिंग भी अपनी मां के लिए पवित्र हो गया है।



इस पर रत्ना मुस्कुरा देती है और कहती है

पुत्र आप अपने अंडकोष को भी धो लें।

इस पर देव ने अपने अंड कोष को भी अपने हाथ से धो लिया। और फिर देव ने भी वही काम किया जो रत्ना ने किया था। उसने भी अपने अंजुल में रत्ना का पेशाब लिया और उसे गट गट कर पी गए और कहा

अब पूर्ण हुई शुद्धिकरण की क्रिया!!!



इस पर रानी रत्ना हस पड़ती हैं और नंगे हंसते हुए वह बहुत प्यारी लग रही थी। तब रत्ना कहती हैं

अब हमें साथ में झील में स्नान करना होगा पुत्र।

इस पर दोनो मां बेटे एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए झील की ओर बढ़ चलते हैं,,, वहां झील के पास पहुंच कर दोनों झील के अन्दर साथ साथ चले जाते हैं और वहां कमर तक पानी में जाकर दोनों खड़े हो जाते है। दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते रहते हैं और फिर रत्ना अपने हाथ से झील का पानी उछाल उछाल कर देव के शरीर को भीगो देती हैं और अपने दोनों हाथों से देव को रगड़ रगड़ कर नहलाने लगती हैं। वो अपने हाथ से पानी उठाकर देव के बदन पर डालती हैं और धोने लगती हैं। रत्ना के देखा देखी देव भी झील के पानी से रत्ना के नंगे बदन को गीला कर के नहलाने लगते हैं। अब दोनों मां बेटे एक दूसरे के शरीर पर अपने हाथ फेर फेर कर एक दूसरे के शरीर को धोने लगते हैं। दोनों मां बेटे एक दूसरे के सामने खड़े थे और दोनों का चेहरा एक दूसरे के सामने। दोनों एक दूसरे की आंखों में प्यार से देखे जा रहे थे,,, दोनों के होंठ बिल्कुल एक दूसरे के सामने थे,,,, दोनों में काम भावना उफान मार रही थी,,, तभी रत्ना ने कामभावना से वशीभूत हो कर अपने होंठ देव के होंठ पर रख दिए। देव को भी अपनी मां के होंठों का स्पर्श अच्छा लगा। देव ने भी अपने होंठों का दबाव अपनी मां के होंठों पर बढ़ाया और अपने होंठो को खोल कर अपनी मां के होंठों को चूसने लगा। देव का इस तरह होंठ चूसना रत्ना को भी अच्छा लगा तो वह भी देव का साथ देने लगी और देव के मुंह में जीभ डाल कर उसके जीभ से जीभ लड़ाने लगी। देव भी अपनी जीभ रत्ना की जीभ से लिपटा दे रहे थे और लड़ा भी रहे थे।दोनों मां बेटे आंखे बन्द कर के एक दूसरे के होंठों को चूसने का आनन्द ले रहे थे,,,,, तभी देव जोश में आकर रत्ना के होंठ को चबा जाते हैं,,, तो रत्ना के मुंह से चीख निकल जाती है और वह देव से अलग होती हैं,,, रत्ना कुछ कहती नही है, लेकिन देव को देख कर शरमा जाती है और फिर कहती हैं

कोई ऐसे भी भला होंठ चूसता है क्या भला, देखो तो पुत्र आपने तो मेरे होंठ ही चबा डाले,,,

देव यह सुन कर थोड़ा मुस्कुराते हैं और कहते हैं



आज का दिन हमारे जीवन मे बड़ा महत्वपूर्ण है मां। आज का दिन हमारे जीवन में नई सुबह ले कर आया है। आपका तो मालूम नहीं माते, लेकिन मुझे बड़ा अच्छा लग रहा है, ,,, पहली बार मै किसी नारी के साथ प्रणय कर रहा हूं और वह भी अपनी मां के साथ,,, यह अहसास ही अप्रतिम खुशी दे रहा है,,, दुनिया में बिरले ही पुत्रों को अपनी मां के साथ पुरूष और नारी वाला प्रेम करने का अवसर मिल पाता है,,



तब रत्ना कहती हैं

तुम बिलकुल सही कह रहे हो पुत्र,,, इस सम्बंध का अलग ही आनंद है

रत्ना इतना बोलती हैं और फिर देव को गले लगा लेती हैं। फिर रत्ना देव से थोड़ा अलग होती हैं और सामने से उनके दोनों हाथों को पकड़ कर कहती हैं

आओ पुत्र, अब शुद्धिकरण की क्रिया को पूर्ण कर लिया जाए। आओ पुत्र, हम दोनों एक साथ डुबकी लगा कर इस क्रिया को पूर्ण करें।




ऐसा बोल कर रत्ना और देव दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर एक साथ डुबकी लगाते हैं और कुछ देर पानी में डुबकी लगाने के बाद डुबकी लगा कर बाहर निकल जाते हैं,,,, दोनों आज बहुत खुश रहते हैं। ,,, डुबकी लगाने के बाद दोनों झील के पानी से बाहर निकल कर झील के किनारे एक दूसरे का हाथ पकड़े ही आ जाते हैं,,, दोनों झील के किनारे आकर दिन के दुसरे पहर की सुनहरी धूप में एक दूसरे को गले लगा लेते हैं और दोनों मां बेटे नंगे ही एक दुसरे को आगोश में ले लेती हैं। उत्तेजनावश देव पुनः अपनी मां रानी रत्ना देवी के होंठों को चुसने लगते हैं,। रत्ना भी काम वासना से अभीभूत होकर देव का साथ देने लगती हैं और अपने स्तनों को देव के छाती से रगड़ने लगती हैं। देव काफी देर से अपनी मां के नंगे शरीर का सान्निध्य तो पा ही रहे थे जिसका असर देव के लन्ड पर ही होने लगता है,,, देव का लंड टनटना कर खड़ा हो जाता है जिसका अनुभव रत्ना अपने नाभी के पास करती हैं क्योंकि देव का लंड उत्तेजनावश इस तरह खड़ा हो जाता है मानो वह रत्ना के स्तनों को प्यार से देख रहा हो। अपने पेट पर अपने पुत्र के लिंग की चुभन रत्ना बर्दास्त नहीं कर पाती हैं और उत्तेजनावश अपने हाथ से देव के खड़े लंड को पकड़ कर सहलाने लगती हैं। वो देव के लन्ड की चमड़ी को पीछे खींच कर उसके गुलाबी सुपाड़े को अपनी उंगलियों से सहलाने लगती हैं जिससे देव के लिंग में उत्तेजना का संचार और बढ़ जाता है और वह झटके मारने लगता है। देव भी उत्तेजित होकर अपनी मां की योनि पर अपना हाथ रख देते हैं और उसे बड़े प्यार से सहलाने लगते हैं। दोनों मां बेटे एक दूसरे के आगोश में समाए हुए एक दूसरे के होंठों को चूसते रहते हैं और एक दूसरे के गुप्तांगों को सहला रहे थे। देव एक हाथ उठा कर रत्ना के एक स्तन पर रख कर दबाने लगते हैं। तभी रत्ना अपने होंठ अलग कर देव से कहती हैं

पुत्र, हम सही कर रहे हैं ना ? मुझे कभी कभी लगता है कि हम दोनों के बीच यह सब नहीं होना चाहिए, आखिर हम दोनों मां बेटे जो हैं,,,

रत्ना ऐसा बोलती तो है लेकिन देव के लिंग पर से अपने हाथ को नहीं हटाती है, बल्कि उसे पकड़े रहती है और उनके सुपाड़े को अपनी उंगलियों से सहलाती रहती है

इस पर देव कहते हैं

माते, हम कुछ गलत नहीं कर रहे हैं। हम दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं और प्रेम करना कोई गुनाह नहीं है। भले ही हम दोनों मां बेटे हैं, लेकिन साथ में हम स्त्री पुरूष भी तो है, हमारी भी कुछ जरुरतें हैं। जो आपको चाहिए, वो मेरे पास है और जो मुझे चाहिए वो आपके पास है। मां, हम ये संबंध बना कर अपने प्रेम को एक नई ऊंचाई पर ले जा रहे हैं और मै आपको बता देना चाहता हूं मां कि आज के बाद आपके लिए मेरे मन में सम्मान और बढ़ गया है , ,,, आपके सम्मान में कोई कमी नहीं होगी। और सोचिए माते, इस जंगल में हम दोनों प्यार के लिए कहां भटकते,,, जबकि हम दोनों खुद एक दूसरे की प्यास बुझा सकते हैं,,,,, क्या अब भी आपको लगता है कि हम दोनों गलत कर रहे हैं??

तब इस पर रत्ना कहती है,,,

पुत्र, लेकिन मन के किसी कोने में डर लगता है,,, कहीं किसी को पता चल गया तो क्या होगा,,,, हम किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे,,,,, इस दुनिया में सबसे पवित्र रिश्ता मां बेटे का ही होता है और यह इतना पवित्र माना जाता है कि किसी जवान पुत्र को अपनी मां के साथ एक ही कम्बल में सोते देख लिया जाए, तब भी उन दोनों के रिश्तों पर कोई शक नहीं करेगा,,,,, और उस तरह के रिश्तों में स्त्री और पुरुष का संबंध स्थापित करना कितना निकृष्ट कार्य होगा

तब देव कहते हैं,,

ऐसा आप सोचती है मां,,,,, इस दुनिया में कई ऐसे घर होंगे जहां घर की चहारदीवारी के अंदर मां बेटे स्त्री पुरुष का संबंध बनाते होंगे,, आपस में खुलकर सम्भोग करते होंगे,,,, यौन सम्बंध बनाते होंगे,,,, लेकिन इसकी खबर किसी को नहीं होती,,,, और ये नियम तो हम इंसानों ने बनाए हैं कि मां और बेटा आपस में यौन सम्बंध नहीं बना सकते,,,, चुदाई नहीं कर सकते,,, लेकिन प्राकृतिक रूप से तो वे चुदाई कर ही सकते हैं,,, पुरूष की प्रकृति होती है स्त्री के प्रति आकर्षित होना और स्त्री की प्रकृति होती है पुरूष के प्रति आकर्षित होना और प्रकृति का मूल नियम यही है और यह स्वाभाविक ही है कि मां और बेटा आकर्षित हो सकते हैं,,, हां ये अलग बात है कि ये भावना कोई किसी को बताता नहीं है,,, और मां, जहां तक बात है किसी को हमारे इस अंतरंग रिश्ते की जानकारी होने की,,, तो किसी को कुछ पता कैसे चलेगा,,,, मै तो यह किसी को बताने नहीं जा रहा और न मुझे लगता है कि आप भी किसी को बताएंगी,,, तो किसी को कुछ पता कैसे चलेगा,,,, और हां, इस जंगल में हम दोनों के सिवाय कोई है भी नहीं,, जो किसी को हमारे सम्बन्ध का पता होने का डर ही हो,,,

रानी रत्ना इस संवाद के दौरान भी देव का लन्ड अपने हाथ में पकड़ी रहती है और सहलाती रहती हैं जो अपने मां का स्पर्श पाकर और खड़ा हो गया था। इधर देव भी रत्न की बुर को सहलाए जा रहे थे और कामुक बातें करते जा रहे थे । इससे रतना और उत्तेजित हो गई थी और उत्तेजनावश देव को फिर गले लगा कर अपने स्तन देव की छाती में दबा देती हैं और फिर कहती है

पुत्र, तुमने मेरा संसय दूर कर दिया,,,, मैं तो केवल इस बात से डर रही थी कि यदि हमारे इस अंतरंग रिश्ते की जानकारी किसी को लग गई तो दुनिया हम पे थूकेगी,,, लेकिन चलो अच्छा है इस जंगल में हमारे सिवाय कोई नहीं है,,, लेकिन पुत्र एक बात का हमेशा ख्याल रखना,, हमारे इस अंतरंग संबंध की जानकारी हम दोनों के अलावा किसी को नहीं होनी चाहिए,,,

इस पर देव कुछ नहीं बोलते हैं, बस थोड़ा मुस्कुराते हैं और कहते हैं,,

किसी को कुछ पता नहीं चलेगा मां,,

और ये कहते हुए वो अपनी मां से थोड़ा अलग होते हैं और रत्न को वैसे नंगे ही अपनी बाहों में गोद में उठा लेते हैं और रत्ना की आंखों में देखते हुए कहते हैं

आज के इस शुभ दिन पर मैं अपनी मां को नंगे पैर गुफा में नहीं जाने दूंगा,,, बल्कि अपनी गोद में ही ले चलूंगा क्यूंकि आज मेरी मां ने मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार किया है और आज मेरी प्रियतमा है,,,

और ऐसा बोलकर देव रत्ना को बाहों में उठा कर गुफा की ओर चल पड़ते हैं,,,, गुफा में पहुंच कर देव बड़े प्यार से रत्ना को फूस से बनी शैय्या पर सुला देते हैं और खड़े होकर बड़े प्यार से रत्ना को ऊपर से नीचे देखने लगते हैं, ऐसा लग रहा था कि मानों देव रत्ना के नख से लेकर शिख तक के नंगे बदन की सुन्दरता को अपनी आंखों में समा लेना चाहते हो,,,,देव को ऐसे देखते देख रत्ना कहती है

ऐसे क्या देख रहे हो देव, मुझे, जैसे कभी तुमने अपनी मां को देखा ही न हो,,,

इस पर देव कहते हैं

सही कहा मां आपने, मैंने कभी आपको इस तरह देखा ही नहीं है,,, पूरी नंगी,,,, शैय्या पर लेटी हुई,,, ऐसा लगता है स्वर्ग से कोई अप्सरा धरती पर उतर आई हो,,, जिसे देख कर अच्छे अच्छे ब्रह्मचारियों का भी मन डोल जाए

तब रत्ना कहती है

हटो देव, तुम तो यूं ही मेरी प्रशंसा करते रहते हो,,,, मै इतनी भी सुन्दर नहीं हूं,,,, मेरे शरीर में ऐसा क्या है जो मैं तुम्हे इतनी सुन्दर लगती हूं,,,

रत्ना को अपनी सुन्दरता की प्रशंसा तो अच्छी लग ही रही थी,,, लेकिन वह जान बूझ कर ऐसा बोल रही थी ताकि देव कुछ और बोल सके,,, तभी देव भी बात करते करते रत्ना के बगल में उसकी ओर मुंह करके लेट जाते हैं और फिर कहते हैं,,,

आपमें क्या सुंदर नहीं है माते !!!! आप नख से लेकर शिख तक सुन्दर हैं,,,, यहां तक कि आपकी झांट भी बहुत सुन्दर है,,,, ये गोरी गोरी सुडौल चूची इतनी कड़क हैं कि लगता ही नहीं है कि आप दो दो बच्चों की मां हैं,,,, और उस पर से दोनों चुच्चियो पर ये गुलाबी गुलाबी चुचुक मन को मोह लेते है,,,मन करता है इन्हें प्यार से सहलाता रहूं,,, और मां ये आपकी गहरी नाभी,, सच कहता हूं जब आप इसके नीचे घाघरा या साड़ी बांधती हैं तो लगता है ये प्रेम से बुला रही हैं, कितनों को तो आपने इसी से घायल कर दिया होगा,,,, और,,,,,

ये बोल कर देव थोड़ा रुक जाते हैं, तब रत्ना कहती हैं

और क्या पुत्र

तब देव फिर कहते हैं

और, और आपकी ये बुर,,, बिल्कुल जन्नत का द्वार दिखती है जिसकी खुबसूरती उसके चारों तरफ फैली आपकी झांटे बढ़ाती हैं,,, ऐसा लगता है मानों ये जन्नत के द्वार को छुपा कर रख रही हैं,,, मै यह देख कर सोच में पड़ गया कि क्या कोई चीज इतनी भी सुन्दर हो सकती है !!!! मुझे लगता है पूरे विश्व में आपके बुर से सुन्दर कोई चीज हो ही नहीं सकती है,,,



देव ऐसा बोलते जा रहे थे और अपने हाथ से रत्ना की चूची को पकड़ कर दबाए जा रहे थे और बीच बीच में अपनी उंगलियों से चुचुक को मसल दे रहे थे,,,, जिससे रत्ना के मुंह से आह निकल जा रही थी,, बात करते करते देव ने रत्ना की दूसरी चूची को मुंह में लेकर चूसने लगे जिससे रत्ना की आह निकल गई। एक तरह उसकी एक चूची का मसलना और दूसरी तरफ दूसरी चूची को मुंह में लेकर चूसने से रत्ना की हालत खराब होती जा रही थी और उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,, वह उत्तेजना में देव के बालों में हाथ डाल कर उसे सहलाने लगती हैं और उसके मुंह को अपनी चूची पर दबा देती है,,, रत्ना उत्तेजनावश कहती हैं

अह्ह्ह्हह,, छोड़ो देव,, और कितना चूसोगे अपनी मां की चूची को,,, इन्हीं चुचियों का दूध पी पीकर तुम इतने बड़े हुए हो,,, अह्ह्ह,, पहले भी तुम इन चुचियों को छोड़ते ही नहीं थे,,, अह्ह्ह् देव अह्ह्ह्ह्,, बहुत दिनों बाद किसी मर्द ने इनकों हाथ लगाया है,, इन्हें चूसा है,, आहहहह देव,, ये बहुत दिनों से किसी पुरूष के स्पर्श को तरस रही थी,,,, आह चूसो देव चूसो इन्हें



तभी देव रत्ना की चूंचियों पर से अपना मुंह हटा कर कहते हैं,,,

मां इन्हीं चुचियों से दूध पीकर मैं ही नहीं, मेरा लंड भी बड़ा हो गया है ताकि आपको एक मर्द का मजा दे सके,, देखो ना मां,, अपने बेटे के खड़े लंड को,,,

इस पर रानी रत्ना कहती हैं

हां देखा है पुत्र, तुम्हारे लंड को और उसे अपने हाथ से पकड़ा भी है और सहलाया भी है,,, बहुत प्यारा और कड़क है तुम्हारा मोटा लन्ड,,,

इस पर देव कहते हैं

आपने कब पकड़ लिया मेरा लन्ड माते?

तब रत्ना कहती हैं

भूल गए, आज ही तो पकड़ा था शौच के समय जब मैं तुम्हारे सामने बैठ गई थी,,

अब रत्ना यह कैसे बताती कि उसने इसके पहले भी देव का लन्ड अपने हाथ में लिया था जब देव सुबह मे गहरी नींद में सो रहे थे और उनका लन्ड फन फना कर खड़ा था और देव के खड़े लन्ड को देख कर वह खुद को काबू में नहीं कर पाईं और उनके लंड को पकड़ कर सहला दिया था,,, देव फिर से रत्ना की दूसरी चूची को मुंह में लेकर चूसने लगते हैं ,,, जिससे रत्ना की उत्तेजना और बढ़ जाती है और उसे लंड की लालसा होने लगती है,,, और फिर रत्ना उत्तेजना के वशीभूत होकर अपने हाथ को नीचे ले जाकर देव के लिंग को अपने कोमल हाथों से पकड़ लेती है जो पूरी तरह टन टना कर खड़ा था,,, रत्ना धीरे धीरे देव के लिंग को मुठियाने लगती हैं,,, इससे देव की कामभावना भी बेकाबू होने लगती है और वह भी अपने हाथ को नीचे ले जाकर अपनी मां की बुर पर रख देते हैं और फिर धीरे धीरे हौले हौले बड़े प्यार से अपनी मां की योनि को सहलाने लगते हैं,,, दोनों मां बेटे उत्तेजना के शिखर पर थे। तभी रत्ना कहती है,,,,,,,

देव, एक बात पूछूं,,,

देव कहते हैं,,

पूछिए माते

तब रत्ना कहती है

पुत्र मुझे पता है , हम दोनों जिस रास्ते पर चल रहे हैं उसमें अगला कदम हमारे बीच शारीरिक संबंध ही है जिसमे तुम मुझे, मेरे शरीर को, मेरी बुर को भोगोगे,,,, पुत्र, कहीं तुम मुझे भोगने के बाद मेरा साथ तो नहीं छोड़ोगे न,,,???

तब देव कहते हैं

माते,, आप ऐसा क्यों सोचती है,,, यदि मेरा उद्देश्य केवल आपको भोगना होता,,, तो मैं कबका आपको भोग चुका होता,,, कब का मेरा लन्ड आपकी बुर की गहराइयों को नाप चुका होता,,, लेकिन मां,,, मै आपसे सच्चा प्यार करता हूं और मां बेटे के प्यार को एक नई ऊंचाई तक ले जाना चाहता हूं,,, उस उंचाई तक जहां तक किसी मां बेटे का सम्बंध पहुंच सकता हो,,,, मै तो सपने में भी आपका साथ छोड़ने की नहीं सोच सकता,,, मां, मुझे मर जाना मंजूर है लेकिन आपका साथ छोड़ना नहीं,,, मै पूरी जिन्दगी अपनी मां के साथ ही रहूंगा,,,

देव के ये कहने पर की वह रत्ना का साथ नहीं छोड़ सकता, रत्ना भावुक हो जाती है और कहती हैं

पुत्र, लेकिन तुम्हें पता है न कि हमारे बीच मां बेटे का सम्बंध है और एक पुत्र हमेशा अपनी मां के चरण छू कर आशीर्वाद लेता है,,, ना कि उसके शरीर पर वासना की नज़र रख कर उसे भोगना चाहता है,,



इस पर देव फिर रत्ना की चूची पीना छोड़ देते हैं, लेकिन इस दौरान वह रत्ना की योनि को सहलाते रहते हैं और फिर कहते हैं

मां, आपकी बात मैं मानता हूं,, यह सही है कि बेटा अपनी मां के पैर छू कर आशीर्वाद लेता है,,, लेकिन मां, ,,,,, एक मां चरणों से लेकर घुटनों तक ही मां होती है और घुटनों से उपर वह एक स्त्री होती है,,, उसकी योनि भी लन्ड के लिए मचलती है भले ही वह लन्ड किसी का भी हो,,, जैसे तुम्हारी बुर भी अपने पुत्र के लन्ड के लिए ही मचल रही है,, उसे अपने अंदर समा लेना चाहती है,,, उसे भी अपनी चूची दबवाना उसे चुसवाना उसकी काम भावना को भड़का देती है,,,,,,,,,,,

रत्ना देव की ये कामुक बातें सुनकर उत्तेजित हो जाती है और उत्तेजित हो कर कहती है

देवववअअअ ,,, तुम कितनी प्यारी बातें करते हो,, मन करता है कि तुम्हारी बातें सुनती ही रहूं,,,

रत्ना इधर देव के लिंग को छोड़ ही नहीं रही थी और उसे पकड़ कर सहलाए जा रही थी और इसी उत्तेजना में देव के लिंग को अपने हाथ में लिए हुए बोल पड़ती है

देव, ये क्या है,, क्या है ये देव


तब देव कहते हैं

तुम ही बताओ न, मां

इस पर रत्ना कहती है

नहीं, तुम बताओ ना पुत्र,, मुझे तो शर्म आती है

इस पर देव कहते हैं

लेकिन मां, मै आपके मुंह से सुनना चाहता हूं,, मुझे आपके मुंह से सुन कर अच्छा लगेगा,,

तब रत्ना शरमाते हुए कहती हैं,,

" लंड " "लन्ड",,,, मेरे प्यारे बेटे का लन्ड,,,

तब देव कहते हैं

आह मां,,,तुम्हारे मुंह से लन्ड सुनकर कितना प्यारा लग रहा है मां,,,,, मां क्या पिता श्री का लन्ड भी,,,,


तब रत्ना कहती है

हां पुत्र, उनका भी लन्ड ऐसा ही प्यारा और सख्त है,,, लेकिन पुत्र क्या हम दोनों ये अवैध संबंध बना कर महाराज को धोखा नहीं दे रहे क्या

इस पर देव कहते हैं

बिल्कुल नहीं माते, बिल्कुल नहीं,,, हम दोनों पिता श्री को धोखा नहीं दे रहे हैं,,, माते, हम दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं और उसी प्रेम की परिणति है ये हमारा सम्बंध,,, जैसे पुरुष एक साथ कई रानियों के साथ शादी कर के सभी से प्रेम कर सकता है वैसे ही एक स्त्री एक से अधिक पुरुषों से अलग अलग प्रेम कर सकती है और वो इनमें से किसी को धोखा नहीं दे रही होती है,,, किसी भी व्यक्ति को एक से अधिक लोगों से प्यार हो सकता है माते,, जैसे आप मुझे भी प्यार करती हैं और पिता श्री को भी,,

इस पर रत्ना फिर जोश में आकर उत्तेजनावश देव को अपने ऊपर खींच लेती है और उसके होंठो को चुसने लगती है और फिर कहती है

बेटा, असली मजा तो इस अवैध और अनैतिक संबंध स्थापित करने में ही है,,,, ,,दुनिया जाने की हमारा सम्बंध पवित्र है,, मां बेटे का सम्बंध है और हम दोनों जब एकांत में हों तो ऐसे ही नंगे हो कर सहवास करें,,,,


इस पर देव कहते हैं

उफ्फ मां, आपने तो मेरे दिल की बात कह दी,,, वैसे मां मेरी एक बात मानेंगी???,,, मुझे अपना जन्म स्थान देखना है,, दिखाओगी न मेरा जन्म स्थान,,, जो तुम्हारे पास ही है

तब रत्ना कहती हैं

देखा तो है तुममें अपना जन्म स्थान आज सुबह ही,, तो अब क्यों देखना चाहते हो??

तब देव कहते हैं

देखा तो है माते,,, लेकिन जी भर कर प्यार से नही देखा है,,


तब रत्ना समझ जाती है कि देव उनकी बुर देखे बिना नहीं मानेंगे,,,,,,और तब वह अपनी जांघें खोल कर अपनी बुर देव को दिखाते हुए कहती है

देख लो बेटा,,, अपना जन्म स्थान,,, यहीं से तू पैदा हुआ था,,, तू नौ महीने मेरी कोख में रहा है और फिर इसी बुर से तू इस दुनिया में बाहर आया,,, ये बुर बहुत भाग्यशाली है कि इसने तुम जैसे गबरू जवान को पैदा किया है

तब देव कहते हैं

आह मां कितनी सुन्दर है ये बुर,,ये मेरा जन्म स्थान,,,, ये इतना सुन्दर होगा,, ऐसा तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था,,,, मै तो इसे प्यार करना चाहता हूं और ऐसा बोलकर देव अपना मुंह रत्ना की योनि पर रख देते हैं और उसे चूम लेते हैं और फिर उसकी बुर की पत्तियों को फैला कर अपनी जीभ से बुर को चाटने लगते है,,, बुर के चाटने से रत्ना की योनि पनिया जाती है और वह मदहोश होने लगी,,, और बोली

देव,, तुमने तो केवल बुर को चुमने को बोला था, लेकिन तुम तो उसे चाटने लगे,,, उफ्फ तुम्हारी जीभ मे तो जादू है जादू,,, अह्ह्ह्ह्ह,,,, ये मुझे मदहोश किए जा रही है,,,

रत्ना ऐसा बोलती है और उसकी बुर बार बार पानी छोड़ रही होती है,,, रत्ना कामुकतावश अपनी कमर उठा उठा कर अपनी बुर देव के मुंह पर दबाव बनाती है जिससे देव रत्ना की बुर की गहराइयों तक अपनी जीभ पहुंचा कर चाटने लगते हैं,,,, इधर रत्ना देव के लिंग को हाथ में पकड़ी ही रहती है और सहलाते रहती है,,, आखिर उसे भी काफी दिनों बाद लंड का स्पर्श जो मिला था,,, देव भी अपनी मां की बुर चाटते चाटते अपना हाथ उपर ले जाते हैं और रत्ना की एक चूची की घुंडी पकड़ कर उसे अपनी उंगलियों से मिंजने लगते हैं,,, इससे रत्ना की उत्तेजना और बढ़ गई और उसकी बुर और ज्यादा पनीया गई,,,तब देव अपना मुंह रत्ना की योनि पर से हटा कर कहते हैं

मां, आपकी बुर बहुत पानी छोड़ रही है,, रुको इसका पानी पोछ देता हूं

और ऐसा बोलकर देव अपने होठों को गोल बना कर रत्ना की बुर पर रख देते हैं और ऐसे चूसते हैं जैसे पानी सूरक रहे हो,,, लेकिन उससे रत्ना की योनि और पानी छोड़ने लगती है और इस अहसास से रत्ना शरमा जाती है,,,, तभी देव कहते हैं

माते, मैंने आज तक आपके जैसी सुन्दर स्त्री नहीं देखी है,,,, तुम्हारा नंगा शरीर संगमरमर की तरह चमकता है,,,, तुम्हारी बुर जैसी सुन्दर बुर शायद ही दुनिया में किसी की हो

इस पर रत्ना कहती हैं

देव, तुम मेरी ऐसी ही झूठी तारीफ करते हो,,, मै तुम्हारी मां हूं,,, इसलिए तुम्हें इतनी सुन्दर लगती होंगी,,, नहीं तो हमारे राज्य में ही मुझसे बहुत सुन्दर सुन्दर स्त्रियां है,,

देव फिर रत्ना की योनि को चाटने लगाते हैं और उसकी बुर की गहराइयों को नापने लगते हैं,,, इससे रत्ना और मदहोश होने लगती है,,, देव अपनी मां को इतना कामातुर बना देना चाहते थे कि वो खुद अपने हाथ से देव का लन्ड अपने बुर में घुसा ले,,, और इसमें देव कामयाब भी हो रहे थे,,, रत्ना इतनी उत्तेजित हो गई थी कि देव के बुर चाटने से उसका शरीर अकड़ने लगता है और वह अपनी योनि का दबाव देव के मुंह पर बढ़ा देती है । अचानक ही रानी रत्ना का शरीर झटके खाने लगता है और झटके खाते हुए रत्ना देव के मुंह में ही झड़ जाती है और देव रानी रत्ना का पूरा योनि रस पी जाते हैं,,, रत्ना इस तरह अपने पुत्र के मुंह में ही झड़ जाने से शर्मा जाती हैं और अपना मुंह दूसरी ओर घूमा लेती हैं,,,,, इधर देव रत्ना की बुर चाटकर अपना मुंह हटा लेते हैं,, अपनी जीभ से अपने होंठों पर लगे योनि रस को चाटते हैं और फिर कहते हैं ,,,

मां, आपका योनिरस बहुत स्वादिष्ट है,,, इसका स्वाद तो बिल्कुल अमृत तुल्य है,,,,

इस पर रानी रत्ना देवी शर्म से आंखे बन्द कर लेती हैं और कहती हैं,,,

पुत्र, तुम्हें मेरे साथ ऐसी बातें करते हुए बिल्कुल शर्म नहीं आती न,,,,, बिल्कुल बेशर्म हो गए हो तुम,,, तुम ये भी नहीं सोचते कि मैं तुम्हारे पिता श्री की धर्म पत्नी हूं जिनका हक मेरे शरीर पर पहला है,,,

इस पर देव कहते हैं

नहीं मुझे तो आपके साथ ऐसी बातें करने में असीम आनन्द की अनुभूति होती है माते,,, ऐसी बात जो कोई अपनी मां से नही करता वैसी बात मां से करने का अलग ही मजा है,,,, आप बताइए मां, क्या आपको अच्छा नहीं लगा अपनी बुर चटवाना और वो भी अपने ही पुत्र से !!!

इस पर रत्ना कहती है

बहुत अच्छा लगा पुत्र, बहुत ही आनन्द आया, ,,, मै भी पहले कभी कभी सोचती थी कि लोगों में अवैध संबंध कैसे बन जाते हैं,,, लेकिन अब तुम्हरे साथ नाजायज संबंध स्थापित पर यह पता चल रहा है कि अवैध संबंध में तो अदभुत आनन्द है,,,, पुत्र सही कहूं तो एक मां की बुर की प्यास तब तक नहीं बुझती जब तक वो अपनी बुर का पानी अपने पुत्र को न पीला दे,,,

रत्ना के मुंह से इतनी कामुक बातें सुनकर देव के मुंह से सिर्फ इतना निकलता है,

उफ्फफ्फ,, मांआआअअ !!!

और फिर देव रत्ना के शरीर के उपर लेट कर उनके होंठ चुसने लगते हैं और रत्ना भी देव को अपने आगोश मे जकड़ कर देव के होंठ चूसने लगती है,,, देव एक हाथ से रत्ना का स्तन मर्दन कर ही रहे थे,,, उनका लन्ड खड़ा हो कर रत्ना की योनि के उपर ठोकर मार रहा था,,,,,,, रत्ना इससे फिर उत्तेजित हो जाती हैं और उत्तेजनावश देव का लन्ड पकड़ लेती हैं और उसे अपनी योनि की ओर ले जाकर योनि पर हौले हौले बड़े प्यार से रगड़ने लगती हैं,,, देव को जिन्दगी में पहली बार अपने लिंग का किसी योनि के साथ संसर्ग का अनुभव हो रहा था जो इनको मदमस्त किए जा रहा था,,, इस पर देव उत्तेजित हो जाते हैं और अपनी मां के उपर से उठ कर उनके घुटनों पर बैठ जाते हैं और उनके स्तन को दबाते रहते हैं,,, इधर रत्ना अपनी आंखे बन्द किए देव के लन्ड को अपनी बुर पर रगड़ते रहती हैं,,, वो अपने बेटे लन्ड के सुपाड़े को योनि की पुत्तियों में फसा कर निकाल ले रहीं थीं जिसे देख बड़े ध्यान से देख रहे थे और फिर उत्तेजनावश धीरे से कामुक अंदाज में बोलते हैं,,,,

" मांअंअं"

तब रत्ना अपनी आंख खोलती है और अपने पुत्र को अपनी ये हरकत करते देखते हुए शरमा जाती है और देव के लिंग को अपनी योनि पर रगड़ना रोक देती हैं लेकिन उसे अपनी योनि से सटाए रहती हैं,,, तब देव कहते हैं

देखो मां, कितना सुन्दर लग रहा है बेटे के लन्ड का मां की बुर के साथ सम्पर्क,,, अह्ह्ह्ह अति सुन्दर,, अति कामुक दृश्य है माते,,, देख कर ऐसा लग रहा है मानो मेरा लन्ड आपकी बुर के लिए ही पैदा हुआ है,,, मां,, मैं आपकी बुर में अपना लंड डाल कर अब मां बेटे का यह मिलन पूर्ण करना चाहता हूं,,,, जिससे हम शारीरिक संबंध बना कर अपने प्रेम को एक नई ऊंचाई तक पहुंचा सकें,,, मां, क्या मैं आपकी बुर में अपना लन्ड डाल सकता हूं ,,

इस पर रत्ना कुछ बोलती नहीं है, केवल अपना सिर हिला कर अपनी सहमति दे देती हैं, इस पर देव कहते हैं

ऐसे नहीं माते,, आप मुंह से बोलेंगी तभी मैं आगे बढ़ पाऊंगा। इस पर रत्ना मुस्करा देती हैं और कहती हैं

पुत्र, इसमें भी कोई संसय है क्या,,, मै स्वयं तुम्हारे लन्ड को अपनी बुर की गहराइयों में महसूस करने के लिए तड़प रही हूं,,,, आओ पुत्र आओ,,, अपनी मां की योनि को अपने लन्ड से चोद कर इसकी प्यास बुझा दो,,,,

रत्ना ऐसा बोलती हैं और देव धीरे से अपने लन्ड का दबाव अपनी मां की योनि पर बढ़ा देते हैं वही योनि जो पहले से ही पनियाई हुई थी और चिकनी हो गई थी,,, इधर रत्ना अपने हाथ में देव का लन्ड लिए हुए थी ही,, वह उसी हाथ से देव का लन्ड अपनी योनि में घुसाने लगती है,,, देव का लन्ड का सुपाड़ा रत्ना की योनि की पुत्तियों को फैलाता हुआ अन्दर घुसने लगता है जिससे रत्ना की आह निकल जाती है,,, रत्ना कई दिनों से चुड़वाई नहीं थी और उपर से देव का लन्ड कुछ ज्यादा ही मोटा हो गया था ,,, इसलिए ऐसा लग रहा था मानो देव अपने लन्ड से रत्ना की योनि को चीरते जा रहे हैं,,, इससे रत्ना की चीख निकल जाती है और वह कहती हैं

आह्ह्ह्ह्ह देव निकालो अपने लन्ड को मेरी बुर से,,, यह मेरी बुर को फाड़ता जा रहा है,, कहीं ऐसा ना हो यह मेरी बुर ही फाड़ दे,, मैने ऐसा सोचा नहीं था कि तुम मेरी बुर को अपने लन्ड से चीर ही दोगे,,, आह दर्द हो रहा है देव,, निकालो न अपने लन्ड को मेरी बुर से बाहर,,, आह देव आह



रत्ना की आवाज सुन कर देव अपना लन्ड रत्ना की योनि में आधी दूरी तक जा कर रुक जाते हैं और फिर अपने लन्ड को रत्ना की बुर से बाहर निकाल लेते हैं जिससे रत्ना को सुकुन तो मिलता है,,,,, लेकिन रत्ना के अन्दर लन्ड की तड़प फिर बढ़ जाती है और उनकी बुर लन्ड के लिए पानी छोड़ने लगती है,,,,, फिर रत्ना खुद अपने हाथ से देव के लिंग को पकड़ कर अपनी बुर में घुसा लेती है और देव फिर से एक बार अपना लन्ड रत्ना की योनि के अन्दर डालते हैं तो लन्ड थोड़ा और अंदर चला जाता है,,,, देव जोश में इस बार एक और धक्का देते हैं तो लंड झटके से रत्ना की बुर में समा जाता है,,,,, देव जब नीचे अपने लन्ड की ओर देखते हैं तो पाते हैं कि उनका पूरा खड़ा लन्ड रत्ना की बुर में समा गया है और केवल दोनों की झांटे ऐसे मिली हुई दिख रही है जैसे दोनों एक हो गई हो,,, देव के लन्ड डालने से रत्ना चिहुंक जाती है और देव रत्ना को देख कर कहते हैं,,,

देखो मां,, मेरा पूरा लन्ड आपकी बुर में समा गया है,, उसी बुर में जिससे कभी मैं निकला था,,, उसी बुर में जिसमें आप पिता श्री का लन्ड ले कर मजे लेती थी,,, उसी बुर में जिसमें पिता जी ने अपना लन्ड डाल कर अपना मिलन पूर्ण किया था,,, आज उसी बुर में मै अपना लन्ड घुसा कर आपके साथ अपना मिलन पूर्ण कर रहा हूं,,, आज एक मां और बेटा का रिश्ता एक नई ऊंचाई तक पहुंच रहा है,, आज एक मां और बेटा का मिलन हो रहा है

और ऐसा बोलकर देव अपना लन्ड थोड़ा बाहर निकलते हैं और फिर झटके से अन्दर घुसा कर चुदाई आरम्भ कर देते हैं,, काफ़ी समय बाद चुदाई होने से रत्ना मद मस्त हो जाती है और उसकी बुर पानी फेंकने लगती है और पूरी गुफा चुदाई की फच फाच की आवाज से गूंजने लगती है,, देव भी पूरे जोश में आकर उत्तेजनावश अपनी मां रानी रत्ना देवी की बुर चोदने लगते हैं,,, रत्ना के मुंह से अह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह की आवाज़ निकलने लगती है,,, देव इतने जोश में अपनी मां की बुर चोद रहे थे कि देव का लन्ड रत्ना की बच्चेदानी से टकरा रहा था,,, तभी रत्ना कहती है



देव, तुम्हारा लन्ड मेरी बच्चेदानी से टकरा रहा है



इस पर देव रत्ना की आंखों में देखते हुए कहते हैं,,,,,,,,,

आपको कैसा लग रहा है मां अपने ही बेटे के साथ चुदाई कर के

इस पर रत्ना कहती हैं

बहुत अच्छा लग रहा है देव,,, और जोर से चोदो अपनी मां को,,,,, मै चुदाई के लिए तड़प रही थी,,, मैं क्या जानती थी कि मेरा बेटा ही मुझे इतने मस्त तरीके से चोदेगा,,, मुझे तुमसे प्यार हो गया है देव,,, वैसा प्यार जो औरत मर्द का होता है,,, आह आह,, और चोदो मेरे लाल अपनी प्यारी मां की योनि को,,, यह तुम्हारे लन्ड के लिए तड़प रही थी,,, आह मुझे चोद कर मादरचोद बन जाओ मेरे लाल

देव भी पूरे जोश में आकर रत्ना की चूदाई कहते हैं ,,,,,

ये ले मां अपनी योनि में मेरा लन्ड और बन जा बेटा चोदी,,, बेटे से चुदवाती है तू,,, रण्डी,,, छिनार,,, तू तो रखैल है शाली,,, अपने बेटे की,,, बोल बनेगी ना मेरी कुतीया

इस पर रत्ना कहती हैं

हां, मै हूं छीनार,,, बनूंगी अपने बेटे की कुटिया,,, चोद साले चोद अपनी मां को मादरचोद,,, जिस बुर से निकला उसी को चोद रहा है,, बेशर्म हरमी,,,

दोनों गाली दे कर मस्ती में चूदाई करने लगते हैं और देव का लन्ड रत्ना की बुर की गहराइयों तक पहुंच कर रत्ना को मजे दे रहा था,, तब देव अपना लन्ड बाहर निकाल लेते हैं तो रत्ना कहती हैं

लन्ड बाहर क्यों निकाल लिया कुत्ते,,

देव,,,,

इसलिए निकाला कुत्तिया,,, की अब ये कुत्ता तुम्हें कुत्तिया बना कर चोदेगा,, चल बन जा कुटिया,,



इस पर रत्ना अपनी गांड पीछे कर के कुत्तिया बन जाती हैं और देव उनके गांड को देख कर कहते हैं



किसी मस्त और चौड़ी गांड है तेरी कुत्तिया,,, ले मेरा लन्ड,,

और फिर देव अपने हाथों से रत्ना की बुर की फांकों को खोल कर अपना लन्ड डाल देते हैं और फिर धक्के लगाने लगते हैं। कुत्तिया बन जाने से अब देव का लन्ड सीधे रत्ना की बच्चेदनी तक पहुंच जा रहा था और लन्ड बार बार उसकी बच्चेदानी पर थाप मार रहा था जिससे रत्ना को और मस्ती चढ़ती जा रही थी,,,



लगातार घमासान चुदाई से पूरी गुफा घाप घप की आवाज से गूंज रहा था,,,रत्ना काफ़ी समय बाद चुदाई से सातवें आसमान पर थी और तभी रत्ना का शरीर अकड़ने लगता है और उसकी बुर से अचानक पानी निकलने लगता है और वह झड़ जाती है,,, देव भी चूदाई करते करते जोश में आ जाते हैं और कहते हैं



आह्ह्ह्ह मां, मेरा निकलने वाला है मां,, अह्ह अह्ह्ह्ह्ह,, मै कहां निकालू अपना पानी मां,, अह्ह्ह्ह



और जब तक रत्ना कुछ बोलती तब तक देव अपना पानी रत्ना की बुर में गिरा देते हैं और उसकी बच्चेदानी को अपनी पानी से भीगो देते हैं,,,,
Aakhir ho hi gayi title ka saarthak. Nice Bhai very erotic. Ab jungle mein maa bete khul ke karenge chudai. Shauch karte waqt bhi pyar kar sakte hain, superb. Maaa aur beta aaaahhhh.
 

Dev Raj

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Bhai suru mein muhje aapka story acha nahi laga par abhi one of the best maa beta stories woh bhi shudh hindi mein
Waiting for next update
 
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