हाथ में थैला लिए हुए संध्या मार्केट के अंदर की तरफ जाने लगी जहां पर ढेर सारे ठेले लगे हुए थे,,,, सोनू अपनी मां की मटकती हुई गांड देख कर मस्त हो जा रहा था,,, ऐसा नहीं था कि वहां पर और भी मटकती हुई गांड नहीं थी,,, वहां ढेर सारी मदमस्त खूबसूरत औरतों की मदमस्त बड़ी-बड़ी मटकती गांड थी,,,लेकिन सोनू का आकर्षण सबसे ज्यादा अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड पर ही था जो की कसी हुई साड़ी पहने होने के नाते उसकी बड़ी-बड़ी गांड की दोनों फांकें एकदम सटी हुई और उसके उभार साड़ी के ऊपर से भी साफ नजर आ रहे थे,,,,, अंदर के बाजू केवल सब्जियां ही मिलती थी इसलिए सोनू को वहां का इशारा करके वही खड़े रहने के लिए बोली और सोनू वही खड़ा रह गया,,।
सोनू वहीं खड़े होकर मार्केट में आने जाने वाली हर एक औरत को बड़ी बारीकी से निहार रहा था खास करके उनके दोनों खरबूजो को और उनके पिछवाड़े को,, लेकिन जो बात उसकी मां के खरबूजा और पिछवाड़े में था वह बात किसी में उसे नजर नहीं आई,,,,, सोनू को वह पल याद आने लगा जब खड्डे में मोटरसाइकिल का टायर जाकर बाहर निकला और ब्रेक लगाने की वजह से उसकी मां अपने आप को संभाल नहीं पाई और संभालने के लिए उसका सहारा लेने के लिए अनजाने में ही पेंट में बनी तंबू को वह अपने हाथ में लेकर दबोच ली,,,, कुछ पल को याद करके सोनू की हालत खराब होने लगी अनजाने में ही सही अपने लंड को अपनी मां की हथेली में महसूस करके उसे अद्भुत सुख का अहसास हुआ था अपने मन में यही सोच रहा था कि काश उसकी मां के हाथों में उसका नंगा लंड आ जाए तो कितना मजा आ जाए,,,,,
थोड़ी ही देर में संध्या हरी सब्जियां खरीद कर बाहर आने लगी,,,, और सोनू की नजर जैसे ही अपनी मां पर पड़ी उसके चेहरे पर खुशी के भाव झलक ने लगे,,, सोनू का अपनी मां को देखने का रवैया पूरी तरह से बदल चुका था,,,। अपनी मां के अंदर उसे काम की देवी नजर आती थी जिसे देख कर उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगती थी,,,,,,, संध्या सोनू के एकदम करीब पहुंच गई और उसे सब्जियों का थैला थमाते हुए बोली,,,।
मेरे पीछे पीछे आओ,,,, फल खरीदना है,,,,
(इतना कहकर संध्या आगे आगे अपनी गांड को जानबूझकर कुछ ज्यादा ही मटकाते हुए चलने लगी,,, क्योंकि वह यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि जब उसके पीछे सोनू रहता है तो उसकी नजर उसकी बड़ी-बड़ी पिछवाड़े पर ही रहती है,,,वसंत विहार इस बात को भी अच्छी तरह से जानती थी कि मर्दों की सबसे बड़ी कमजोरी औरतों की बड़ी बड़ी गांड होती है जैसा कि सोनू की कमजोरी उसकी खुद की गांड बनती जा रही थी,,, सोनू अपनी मां के कमर के नीचे वाले घेराव को देखता हुआ आगे बढ़ रहा था और संध्या इस बात की तसल्ली करने के लिए रह रह कर अपनी नजर को पीछे की तरफ घुमा कर सोनु की तरफ देख ले रही थी और उसकी नजरों को अपनी कमर के नीचे भारी भरकम घेराव पर पड़ता हुआ देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो जाती थी,,, कुछ दूरी तक चलने के बाद एक ठेला वाला नजर आया,,, जिस के ठेले पर केले संतरे तरबूज खरबूजा सब कुछ थे,,,,। संध्या ठेले के करीब पहुंचकर,,, सोनू की तरफ देखते हुए मोटे तगड़े लंबे केले के गुच्छों की तरफ उंगली से इशारा करते हुए बोली,,,।
भैया यह केले कैसे दिए,,,,
ले लीजिए बहन जी आपसे कैसा भाव तोल करना आप तो हमेशा के ग्राहक हैं,,,,,,,(पहले वाला उम्रदराज बुढा इंसान था संध्या अक्सर उसी के ठेले पर से फल खरीदा करती थी और बिल्कुल भी भाव तोल नहीं करती थी,,,, उसकी बातें सुनकर संध्या के चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी और वह केले के गुच्छे को उठाकर उसे अपने हाथ में लेते हुए सोनू से बोली,,)
देख सोनु केला हो तो ऐसा लंबा तगड़ा और मोटा ताकि एक ही केले में पेट भर जाए,,,, छोटे केले मुझे बिल्कुल भी नहीं पसंद,,,, तेरे पास भी है ना ऐसा,,,( एकाएक उसके मुंह से इस तरह के शब्द निकलते ही वह झट से अपनी बात को बदलते हुए बोली,,) मेरा मतलब है कि तुझे भी इस तरह के कहने पसंद है ना,,,,.
नहीं नहीं मम्मी मुझे अकेला बिल्कुल भी नहीं पसंद मुझे तो खरबूजा पसंद है और वह भी इस तरह के (सोनू उंगली से इशारा बड़े-बड़े खरगोशों की तरफ कर रहा है लेकिन उसकी नजर अपनी मां के दोनों खरबूजो पर थी,,, सोनू की नजरों को देखकर संध्या एकदम से सिहर उठी,,,,)
ओहहहह,,, माफ करना मैं भूल गई थी तुझे केला नहीं पसंद है,,,,( संध्या केले के गुच्छो में से एक केले को पकड़ कर उसे अपनी हथेली में भरली और उसे इधर-उधर घुमा कर देखने लगी सोनू यह देखकर एक दम मस्त हो जाए होता सोनू अपने मन में यही सोच रहा था कि उसकी मां केले को अपनी हथेली में लेकर शायद लंड की मोटाई और लंबाई का अंदाजा लगा रही थी,,,,, और यह बात बिल्कुल सच है थी संध्या केले को हथेली में पकड़ कर कुछ देर पहले जो अनजाने में यह अपने बेटे के तंबू को पकड़े ली थी उससे अंदाजा लगा रही थी कि उसके बेटे का लंड कितना मोटा और लंबा होगा,,,केले की लंबाई और मोटाई को अपने बेटे के लिंग की मोटाई और लंबाई से तुलना करके उसके चेहरे पर तसल्ली खड़ी मुस्कान तैरने लगी,,, वह पूरी तरह से संतुष्ट होते हुए ठेले वाले भैया से बोली,,,।)
लीजिए भैया इसे पेक कर दीजिए,,,,(इतना कहकर अपने बेटे की तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी सोनू के दिल में खलबली मची हुई थी उसकी मां कुछ ज्यादा ही खुलती चली जा रही थी सोनू को अपनी मां की कही बातों का अर्थ तो समझ में आ रहा था लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा था कि उसकी मां की तरफ से उसे यह इशारा है या अनजाने में ही यह सब हो रहा है इसी कशमकश में वह असमंजस में पड़ा हुआ था तभी वह ठेलेवाला केले को एक पॉलीथिन की थैली में डालकर संध्या को थमाते हुए बोला,,,)
और कुछ चाहिए बहन जी,,,
हां ,,, मेरे बेटे को खरबूजा पसंद है और वह भी गोल गोल और बड़े-बड़े,,,,,,(सोनू की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोली)
हां मम्मी मुझे तो बड़े-बड़े खरबूजे ही पसंद है देखते ही पता चल जाता है कि कितना मजा आने वाला है,,,(सोनू अपनी मां की भरी हुई छातियों की तरफ देखते हुए बोला,,,दोनों मां-बेटे जिस तरह से बातें कर रहे थे दोनों एक दूसरे की बातों का मतलब अच्छी तरह से समझ रहे थे लेकिन वह ठेलेवाला बिल्कुल भी उन दोनों मां-बेटे की बातों का मतलब समझ नहीं पा रहा था,,, सोनू अपनी मां की छातियों की तरफ देखते हुए ठेले पर से तो बड़े-बड़े खरबूजे अपने हाथों में उठा लिया और दोनों खरबूजो की जोड़ी को सामने हाथ पर रख कर अपनी मां को दिखाते हुए संध्या की भारी-भरकम छातियों से तकरीबन 1 फीट की दूरी पर लाते हुए बोला,,,)
इस तरह के खरबूजे मम्मी मुझे बहुत पसंद है,,,,।
ठीक है बेटा तेरी खुशी में मेरी खुशी है तुझे तो पसंद है मैं तेरी ख्वाहिश जरूर पुरी करूंगी,,,,(इतना कहते हुए वह अपने बेटे के हाथों में से दोनों खरबुजो को लेकर उस ठेले वालों को थमाते हुए बोली,,,)
लो भैया इसे भी वजन कर दो,,,,
(ठेलेवाला झट से संध्या के हाथों में से बड़े-बड़े खर्चे को लेकर तराजू में रखकर उसे तोलने लगा और तोलने के बाद उसे थेली में भरकर संध्या को थमा दिया,,,दोनों मां-बेटे की तरह से बातें कर रहे थे उन बातों के मतलब को अपने मन में ही समझ कर दोनों अंदर ही अंदर खुश हो रहे थे और मस्त भी हुए जा रहे थे,,, सोनू की खुशी का ठिकाना ना था क्योंकि इस तरह से दो अर्थ वाली बात वह पहली बार कर भी रहा था और अपने मां के मुंह से सुन भी रहा था उसे इस तरह की बातें करने में मजा आ रहा था और काफी उत्तेजना का अनुभव हो रहा था और इसी उत्तेजना के चलते उसके पेंट में धीरे-धीरे तंबू सा बनता चला जा रहा था,, और संध्या अपने बेटे के पेंट में बन रहे तंबू को चोर नजरों से देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे इस बात की संतुष्टि थी कि उसकी गर्म बातों से उसका बेटा गर्म हो रहा था,,,,,,, थोड़ी ही देर में दोनों वापस मोटरसाइकिल पर बैठकर घर आ गए,,, तब तक शगुन घर पर आ चुकी थी,,,,,,,,, इस बात का अंदाजा दोनों को इस बात से लग गया था क्योंकि घर के बाहर उसकी सैंडल रखी हुई थी,,,, संध्या को लगा था कि घर पर शगुन के आ जाने पर उसे गरमा गरम चाय जरूर मिलेगी क्योंकि उसे थोड़ी थकान महसूस हो रही है इसलिए दरवाजा खोल कर जैसे ही वह घर में प्रवेश की,,, वह सोनू से बोली,,,
सोनू देख तो शगुन ने चाय बनाई है कि नहीं,,,, अगर बना दी हो तो मेरे लिए भी एक कप चाय लेते आना और ना बनाई हो तो उसे बनाने के लिए कह देना,,,,
ठीक है मम्मी,,,,( सोनू अपनी मां के ठीक पीछे ही खड़ा था और उसके दाएं और पर कुर्सी रखी हुई थी,,, संध्या सब्जी से भरा थैला अपने दाहिने साइड पर नीचे रख दी और सोनू इतना कहने के साथ ही आगे बढ़ना चाहता था क्योंकि उसे लगा कि उसकी मां दाहिने और घूमेगी और कुर्सी पर बैठे की लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ संध्या तुरंत बांऊ और अपने कदम बढ़ा दी सोनू एकदम से अपने आप को संभाल नहीं पाया और अपने कदम जैसे ही आगे बढ़ाया था वह अपनी मां से टकरा गया,,,, इतनी जल्दी मैं वह अपनी मां के कहे अनुसार किचन में जाने के लिए कदम बढ़ाया था कि काफी जोर से वह अपनी मां से टकरा गया था और उसकी मां धक्का खा कर आगे की तरफ लगभग लगभग गिरने ही वाली थी कि सोनू अपने दोनों हाथ आगे की तरफ लाकर उसे कस के अपनी बाहों में भर लिया जो कि सोनू का लिया गया यह कदम उसे संभालने के लिए था लेकिन जिस तरह से अपना दोनों हाथ आगे की तरफ लाकर अपनी मां को पकड़ा था उसे संभाला था वह बिल्कुल अपनी बाहों में लेने जैसा ही हरकत था,,,, अफरा तफरी में सोनू का हाथ अपनी मां की दोनों चूचियों पर आ गया था,,, और सोनू के पेंट में बना तंबू ठीक उसके पिछवाड़े से जा लगा था जोकि उत्तेजना के मारे काफी कड़क हो चुका था,,,संध्या लगभग आगे की तरफ गिरने ही वाली थी इसलिए उसे संभालने के चक्कर में सोनू कसके अपनी हथेली दबोच कर उसे थाम लिया था लेकिन उसे बचाने के चक्कर में उसकी दोनों हथेलियां कसके संध्या की दोनों चुचियों पर जम गई थी और सोनू उसे अपनी हथेली में जोर से दबाए हुए था और अपना तंबू अपनी मां के पिछवाड़े में एकदम से सटाया हुआ था जिसकी वजह से सोनू के पेंट ने बना तंबू एक बार फिर से,,, साड़ी सहित उसकी बड़ी बड़ी गांड की दोनों फांकों के बीच गहराई में धंसने लगी थी,,,संध्या को अपने बेटे का लंड एक बार फिर से अपने गांड के बीचोबीच धंसता हुआ महसूस हुआ,,, वह एकदम से गनगना गई,,,, पल भर में ही उसे अपने बदन में सोनू की हरकत की वजह से दुगना मजा मिला था एक तो सोनू ने कसके उसकी दोनों चूचियों को अपनी हथेली में दबोच रखा था और दूसरा वह अपने लंड को जानबूझकर ना सही लेकिन उसे बचाने के चक्कर में उसकी गांड के बीचो-बीच दे मारा था,,,, अपने बेटे के जवान लंड को अपनी गांड के बीचो बीच महसूस करके संध्या एकदम से मदहोश हो गई,,, उसे कुछ समझ में नहीं आया कि वह क्या करें,,,,सोनू अपनी मां को संभाल चुका था लेकिन वह काफी उत्तेजित हो चुका था और उत्तेजना बस अपने आप पर काबू ना रखने की वजह से सोनू की कमर अपने आप आगे की तरफ बढ़ गई और सोनू की कमर इस तरह से आगे की तरफ बढी मानो,,, किसी औरत की बुर में लंड डालकर बचे हुए लंड को बड़ी चलाकी से पूरा का पूरा अंदर डाल रहा हो,,, सोनू तो संभोग के हर एक पहलू से अनजान था लेकिन संध्या अच्छे तरीके से संभोग के हर एक पहलू हर एक पृष्ठ को बकायदा पड़ चुकी थी इसलिए सोनू की यह हरकत संध्या को उस पल की याद ताजा करा गया जब ऐसे ही उसका पति संजय बचे हुए लंड को पूरी शिद्दत से उसकी बुर की गहराई में नापने के लिए डाल देता था,,,, सोनू मदहोश हो चुका था अपनी मां की भारी-भरकम गरमा-गरम पिछवाड़े को ठीक अपने लंड के आगे वाले भाग पर एकदम से महसूस करके वह पूरी तरह से गर्म हो चुका था,,, और ऊतेजना बस वह अपनी मां को संभालने के चक्कर में उसकी चूची को अपनी हथेली में भर लिया था और उसे अब जानबूझकर एक बार कस के दबा लिया था सोनू की पांचों ऊंगलियां ऐसा लग रहा था कि मानो घी में नहा रही हो,,,संध्या अपने बेटे की हर एक हरकत को अपने वजन के अंदर अच्छी तरह से महसूस कर रही थी उसे अपने बेटे की यह हरकत बेहद मदहोश कर देने वाली महसूस हो रही थी वह अपने बेटे को बिल्कुल भी रोकना नहीं चाहती थी वह तो चाहती थी कि सोनू इससे आगे बढ़ जाए लेकिन तभी सोनू अगले ही पल अपनी मां को संभाल कर उसके बदन से दूर होता हुआ बोला,,,,।
सॉरी मम्मी अनजाने में हो गया,,,,
ठीक है बेटा जा जल्दी से देख,,,,(इतना कहते हुए संध्या अपने कदम जो कि बाएं तरफ बढ़ा रही थी उसे दाएं तरफ वापस घुमाकर कुर्सी पर बैठ गई,,,, उत्तेजना के मारे उसकी सांसे उखड़ी हुई थी,,, इससे ज्यादा वह अपने बेटे से कुछ भी बोल सकने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं थी वह तो खुद ही अपने अंतर्मन के मनों मंथन में लगी हुई थी,,, सोनू की हर एक हरकत संध्या को मादकता का एहसास दिला रही थी,,, सोनू किचन में जा चुका था और वहां जाकर देखा तो वहां चाय बनी हुई नहीं थी इसलिए वह वापस आकर अपनी मां से बोला,,,।)
मम्मी चाय तो बनी हुई नहीं है,,,,,। (बड़े ही नम्र भाव से वह अपनी मां से बोला लेकिन अपने पेंट में बने तंबू को अपनी मां की नजरों से बचा नहीं सका किचन से निकलते ही संध्या की नजर सीधी अपने बेटे के तंबू पर ही गई थी जो कि अच्छे खासे शक्ल में उभर चुका था,,, उसे देखते ही संध्या अपने मन में बोली,,,)
बाप रे बाप मुझे तो लगता है कि मेरे पति का लंड मेरे पति से भी ज्यादा मोटा तगड़ा और लंबा है,,,,
(संध्या यह सब सोचते हुए ऐसा लग रहा था कि मानो ख्यालों में खो गई हो इसलिए सोनू एक बार फिर बोला)
क्या करूं मम्मी चाय तो बनी नहीं है,,,,।
ठीक है बेटा जैसा जून को उसके कमरे में से बुला कर ले आ और मुझे चाय बनाने के लिए बोल एकदम लापरवाह हो गए हैं ऐसा नहीं कि शाम की चाय बना दुं,,,
(सोनू अपनी मां की बात सुनकर अपनी बड़ी बहन के कमरे की तरफ जाने लगा अपनी मां के ख्यालों में वह पूरी तरह से खोया हुआ था,,,,,थोड़ी ही देर में बस अपनी बड़ी बहन सब उनके कमरे के बाहर खड़ा था दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था शगुन बेफिक्र और एकदम लापरवाह थी और अभी अभी अपने बाथरूम से नहाकर बाहर निकली थी,,, कुर्ती तो पहन चुकी थी लेकिन थोड़ा सा झुक कर अपने अलमारी में से अपनी सलवार ढूंढ रही थी सोनू तो अपनी मां के ख्यालों में मस्त था उसे नहीं मालूम था कि कमरे के अंदर एक बेहद कामुकता भरा दृश्य उसका इंतजार कर रहा है,,,,पर वह बिना दरवाजे पर दस्तक दिए दरवाजे को हल्का सा खोल दिया और जैसे ही उसकी नजर सामने पड़ी वह एकदम से हक्का-बक्का रह गया नीचे उसकी मां और ऊपर कमरे में उसकी जवान बहन उसके बदन में आग लगा रही थी,,,, सोनू की नजर सीधे अपनी बहन की गोल-गोल एकदम दूध से भी गोरी गांड पर चली गई,,, पल भर में ही सोनू के बदन में 4 बोतलों का नशा छा गया इतनी खूबसूरत और कसी हुई गांड वह जिंदगी में पहली बार देख रहा था और वह भी एक दम नंगी भले ही कमर के ऊपर कुर्ती थी लेकिन कमर के नीचे से उसकी बहन पूरी तरह से नंगी थी जो कि अलमारी में अपने कपड़े ढूंढने के लिए झुकी हुई थी जिसकी वजह से उसकी गोल-गोल गांड कुछ ज्यादा ही उभर कर बाहर की तरफ निकली हुई नजर आ रही थी,,, अपनी बहन की मस्त गांड देखकर सोनू के लंड में दर्द होने लगा,,,, सोनू के साथ आनन-फानन में मादकता भरा वाक्या पेश आ चुका था,,, अभी-अभी वह अपनी मां के मदमस्त पिछवाड़े को अपने लंड पर महसूस करके और उसकी गोल गोल खरबूजे को अपनी हथेली में लेकर दबा कर उसका आनंद लेकर आया ही था कि उसकी बहन ने अपनी गोरी गोरी गांड दिखाकर उसके ऊपर बिजलियां गिराने का काम कर दी थी,,, अब होश का बिल्कुल भी ठिकाना ना था सोनू पागलों की तरह अपनी बहन की गांड को घुरे जा रहा था,,,,तभी सगुन को दरवाजे पर कुछ हलचल सी महसूस हुई और वह झट से पलटकर दरवाजे की तरफ देखी तो सोनू को दरवाजे पर खड़ा देखकर और उसकी नजरों को ठीक अपनी गांड पर चुभता हुआ महसूस करके वह एकदम से हक्की बक्की हो गई,,,,,, वह आनन-फानन में सोनू की तरफ मुंह करके खड़ी हो गई और अपनी सलवार को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर उसे अपनी दोनों टांगों के बीच के बेशकीमती खजाने को छुपाने की भरपूर कोशिश करने लगी,,, अपनी बहन की यह हरकत सोनू के तन बदन में वासना की लहर को और ज्यादा उंची उठाने लगी,,, शगुन अपनी बेशकीमती खजाने को छुपाने में कामयाब हो चुकी थी,,,। सोनू के मन में अपनी बहन की बुर देखने की इच्छा हो चुकी है क्योंकि उसे ऐसा ही था कि जिस तरह से वह कमर के नीचे नंगी है अगर वह घूमने की तो उसकी बुर उसे जरूर दिखाई दे जाएगी,,, लेकिन शगुन अपनी तरफ से पूरी फुर्ती दिखाते हुए अपनी बुर को छुपा ले गई थी,,, और वह लगभग हकलाते हुए बोली,,,,।
ततततत,,, तू क्या कर रहा है इधर,,,,,,
मैं तो तुम्हें बुलाने आया था मम्मी बुला रही है चाय बनाने के लिए,,,,,
नोक नहीं कर सकता था दरवाजे पर,,,,
ममममम,,,, मुझे क्या मालूम था कि तुम इस तरह से होगी,,,,
अच्छा ठीक है तू जा मै आती हुं,,,,
ठीक है जल्दी आना,,,,(इतना कहकर सोनू वापस चला गया लेकिन अपने मन में अपने दिलो-दिमाग में अपनी बहन की मदमस्त यौवन से भरी हुई छवि लेता है गया,,, वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था,,, शगुन की भी हालत कम खराब नहीं थी सोनू के जाते ही वह लगभग उसी स्थिति में जल्दी से दरवाजे के लाता कर दरवाजा बंद करके लोग कर दी,,,,)
बाप रे,,,, यह सोनू की मां बिल्कुल भी तमीज नहीं है,,,,
(इतना कहकर वाली सलवार पहनने से पहले बिस्तर पर रखी हुई गुलाबी रंग की पेंटी पहनने लगी,,,, और अपने मन में सोचने लगी कि उसका भाई उसकी गांड जरूर देख लिया होगा तभी तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई थी,,,, इतना अपने मन में सोच के उसके मन में अजीब सी हलचल होने लगी उसे इस बात का ख्याल आया कि उसके भाई ने उसे कमर से नीचे एकदम नंगी देख लिया है खास करके वह उसकी गांड को ही देख रहा था,,,,इसका मतलब साफ था कि वह उसकी गांड को देखकर मस्त हो चुका था तभी तो बार दरवाजे से गया नहीं वरना चला जाता बिना कुछ बोले और उसे पता भी नहीं चलता लेकिन मैं तो पागलों की तरह तेरी नजरों से उसे ही घूर रहा था,,,सलवार पहनते हुए शगुन को इस बात का ख्याल आया कि जब वह सोनू की तरफ मुंह करके खड़ी थी और हाथ में तलवार लेकर अपनी बुर को छुपा रही थी तो सोनू की निगाहें उसकी दोनों टांगों के बीच ही घूम रही थी इसका मतलब साफ था कि वह उसकी बुर देखना चाहता था,,, यह ख्याल मन में आते ही शगुन की हालत खराब होने लगी,,,, अजीब सी हलचल उसके तन बदन में होने लगी पल भर में उसे ऐसा लगा कि जो चीज उसका भाई देखना चाहता था उस चीज को छुपाकर नहीं बल्कि खोल कर दिखा देना चाहिए था,,, शगुन अपने मन में यह सोच रही थी कि ,,, वह भी तो देखें कि उसकी गर्म जवानी और खूबसूरत गोरा बदन लोगों पर किस तरह से बिजलिया गिराता है,,,,इतना तो उसे विश्वास हो चुका था कि उसके पापा के साथ-साथ उसके गोरे बदन को देख कर उसके भाई की भी हालत खराब हो चुकी थी यह ख्याल मन में आते ही उसके चेहरे पर उसके होठों पर मुस्कान तैरने लगी वह जल्दी से कपड़े पहन कर कमरे से बाहर आ गई और चाय बनाने लगी,,, तीन कप चाय बनाकर वह अपनी मां और अपने भाई को धीमा कर उन दोनों के सामने ही बैठकर चाय का मजा लेने लगी सोनू अपनी बहन से नजर नहीं मिला पा रहा था और शगुन अपने भाई के तन बदन में हो रही हलचल को महसूस करके खुश हो रही थी,,। संध्या को तो इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि सोनू अपनी बहन की नंगी गांड के दर्शन करके आया है वह तो सोनू के साथ दो अर्थों में की गई बातों को लेकर मस्त हुए जा रही थी,,,।