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Incest रिश्तो की डोर,,,, (completed)

Dhansu

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हाथ में थैला लिए हुए संध्या मार्केट के अंदर की तरफ जाने लगी जहां पर ढेर सारे ठेले लगे हुए थे,,,, सोनू अपनी मां की मटकती हुई गांड देख कर मस्त हो जा रहा था,,, ऐसा नहीं था कि वहां पर और भी मटकती हुई गांड नहीं थी,,, वहां ढेर सारी मदमस्त खूबसूरत औरतों की मदमस्त बड़ी-बड़ी मटकती गांड थी,,,लेकिन सोनू का आकर्षण सबसे ज्यादा अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड पर ही था जो की कसी हुई साड़ी पहने होने के नाते उसकी बड़ी-बड़ी गांड की दोनों फांकें एकदम सटी हुई और उसके उभार साड़ी के ऊपर से भी साफ नजर आ रहे थे,,,,, अंदर के बाजू केवल सब्जियां ही मिलती थी इसलिए सोनू को वहां का इशारा करके वही खड़े रहने के लिए बोली और सोनू वही खड़ा रह गया,,।
सोनू वहीं खड़े होकर मार्केट में आने जाने वाली हर एक औरत को बड़ी बारीकी से निहार रहा था खास करके उनके दोनों खरबूजो को और उनके पिछवाड़े को,, लेकिन जो बात उसकी मां के खरबूजा और पिछवाड़े में था वह बात किसी में उसे नजर नहीं आई,,,,, सोनू को वह पल याद आने लगा जब खड्डे में मोटरसाइकिल का टायर जाकर बाहर निकला और ब्रेक लगाने की वजह से उसकी मां अपने आप को संभाल नहीं पाई और संभालने के लिए उसका सहारा लेने के लिए अनजाने में ही पेंट में बनी तंबू को वह अपने हाथ में लेकर दबोच ली,,,, कुछ पल को याद करके सोनू की हालत खराब होने लगी अनजाने में ही सही अपने लंड को अपनी मां की हथेली में महसूस करके उसे अद्भुत सुख का अहसास हुआ था अपने मन में यही सोच रहा था कि काश उसकी मां के हाथों में उसका नंगा लंड आ जाए तो कितना मजा आ जाए,,,,,

थोड़ी ही देर में संध्या हरी सब्जियां खरीद कर बाहर आने लगी,,,, और सोनू की नजर जैसे ही अपनी मां पर पड़ी उसके चेहरे पर खुशी के भाव झलक ने लगे,,, सोनू का अपनी मां को देखने का रवैया पूरी तरह से बदल चुका था,,,। अपनी मां के अंदर उसे काम की देवी नजर आती थी जिसे देख कर उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगती थी,,,,,,, संध्या सोनू के एकदम करीब पहुंच गई और उसे सब्जियों का थैला थमाते हुए बोली,,,।

मेरे पीछे पीछे आओ,,,, फल खरीदना है,,,,
(इतना कहकर संध्या आगे आगे अपनी गांड को जानबूझकर कुछ ज्यादा ही मटकाते हुए चलने लगी,,, क्योंकि वह यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि जब उसके पीछे सोनू रहता है तो उसकी नजर उसकी बड़ी-बड़ी पिछवाड़े पर ही रहती है,,,वसंत विहार इस बात को भी अच्छी तरह से जानती थी कि मर्दों की सबसे बड़ी कमजोरी औरतों की बड़ी बड़ी गांड होती है जैसा कि सोनू की कमजोरी उसकी खुद की गांड बनती जा रही थी,,, सोनू अपनी मां के कमर के नीचे वाले घेराव को देखता हुआ आगे बढ़ रहा था और संध्या इस बात की तसल्ली करने के लिए रह रह कर अपनी नजर को पीछे की तरफ घुमा कर सोनु की तरफ देख ले रही थी और उसकी नजरों को अपनी कमर के नीचे भारी भरकम घेराव पर पड़ता हुआ देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो जाती थी,,, कुछ दूरी तक चलने के बाद एक ठेला वाला नजर आया,,, जिस के ठेले पर केले संतरे तरबूज खरबूजा सब कुछ थे,,,,। संध्या ठेले के करीब पहुंचकर,,, सोनू की तरफ देखते हुए मोटे तगड़े लंबे केले के गुच्छों की तरफ उंगली से इशारा करते हुए बोली,,,।

भैया यह केले कैसे दिए,,,,


ले लीजिए बहन जी आपसे कैसा भाव तोल करना आप तो हमेशा के ग्राहक हैं,,,,,,,(पहले वाला उम्रदराज बुढा इंसान था संध्या अक्सर उसी के ठेले पर से फल खरीदा करती थी और बिल्कुल भी भाव तोल नहीं करती थी,,,, उसकी बातें सुनकर संध्या के चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी और वह केले के गुच्छे को उठाकर उसे अपने हाथ में लेते हुए सोनू से बोली,,)

देख सोनु केला हो तो ऐसा लंबा तगड़ा और मोटा ताकि एक ही केले में पेट भर जाए,,,, छोटे केले मुझे बिल्कुल भी नहीं पसंद,,,, तेरे पास भी है ना ऐसा,,,( एकाएक उसके मुंह से इस तरह के शब्द निकलते ही वह झट से अपनी बात को बदलते हुए बोली,,) मेरा मतलब है कि तुझे भी इस तरह के कहने पसंद है ना,,,,.


नहीं नहीं मम्मी मुझे अकेला बिल्कुल भी नहीं पसंद मुझे तो खरबूजा पसंद है और वह भी इस तरह के (सोनू उंगली से इशारा बड़े-बड़े खरगोशों की तरफ कर रहा है लेकिन उसकी नजर अपनी मां के दोनों खरबूजो पर थी,,, सोनू की नजरों को देखकर संध्या एकदम से सिहर उठी,,,,)

ओहहहह,,, माफ करना मैं भूल गई थी तुझे केला नहीं पसंद है,,,,( संध्या केले के गुच्छो में से एक केले को पकड़ कर उसे अपनी हथेली में भरली और उसे इधर-उधर घुमा कर देखने लगी सोनू यह देखकर एक दम मस्त हो जाए होता सोनू अपने मन में यही सोच रहा था कि उसकी मां केले को अपनी हथेली में लेकर शायद लंड की मोटाई और लंबाई का अंदाजा लगा रही थी,,,,, और यह बात बिल्कुल सच है थी संध्या केले को हथेली में पकड़ कर कुछ देर पहले जो अनजाने में यह अपने बेटे के तंबू को पकड़े ली थी उससे अंदाजा लगा रही थी कि उसके बेटे का लंड कितना मोटा और लंबा होगा,,,केले की लंबाई और मोटाई को अपने बेटे के लिंग की मोटाई और लंबाई से तुलना करके उसके चेहरे पर तसल्ली खड़ी मुस्कान तैरने लगी,,, वह पूरी तरह से संतुष्ट होते हुए ठेले वाले भैया से बोली,,,।)

लीजिए भैया इसे पेक कर दीजिए,,,,(इतना कहकर अपने बेटे की तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी सोनू के दिल में खलबली मची हुई थी उसकी मां कुछ ज्यादा ही खुलती चली जा रही थी सोनू को अपनी मां की कही बातों का अर्थ तो समझ में आ रहा था लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा था कि उसकी मां की तरफ से उसे यह इशारा है या अनजाने में ही यह सब हो रहा है इसी कशमकश में वह असमंजस में पड़ा हुआ था तभी वह ठेलेवाला केले को एक पॉलीथिन की थैली में डालकर संध्या को थमाते हुए बोला,,,)

और कुछ चाहिए बहन जी,,,

हां ,,, मेरे बेटे को खरबूजा पसंद है और वह भी गोल गोल और बड़े-बड़े,,,,,,(सोनू की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोली)

हां मम्मी मुझे तो बड़े-बड़े खरबूजे ही पसंद है देखते ही पता चल जाता है कि कितना मजा आने वाला है,,,(सोनू अपनी मां की भरी हुई छातियों की तरफ देखते हुए बोला,,,दोनों मां-बेटे जिस तरह से बातें कर रहे थे दोनों एक दूसरे की बातों का मतलब अच्छी तरह से समझ रहे थे लेकिन वह ठेलेवाला बिल्कुल भी उन दोनों मां-बेटे की बातों का मतलब समझ नहीं पा रहा था,,, सोनू अपनी मां की छातियों की तरफ देखते हुए ठेले पर से तो बड़े-बड़े खरबूजे अपने हाथों में उठा लिया और दोनों खरबूजो की जोड़ी को सामने हाथ पर रख कर अपनी मां को दिखाते हुए संध्या की भारी-भरकम छातियों से तकरीबन 1 फीट की दूरी पर लाते हुए बोला,,,)

इस तरह के खरबूजे मम्मी मुझे बहुत पसंद है,,,,।

ठीक है बेटा तेरी खुशी में मेरी खुशी है तुझे तो पसंद है मैं तेरी ख्वाहिश जरूर पुरी करूंगी,,,,(इतना कहते हुए वह अपने बेटे के हाथों में से दोनों खरबुजो को लेकर उस ठेले वालों को थमाते हुए बोली,,,)

लो भैया इसे भी वजन कर दो,,,,

(ठेलेवाला झट से संध्या के हाथों में से बड़े-बड़े खर्चे को लेकर तराजू में रखकर उसे तोलने लगा और तोलने के बाद उसे थेली में भरकर संध्या को थमा दिया,,,दोनों मां-बेटे की तरह से बातें कर रहे थे उन बातों के मतलब को अपने मन में ही समझ कर दोनों अंदर ही अंदर खुश हो रहे थे और मस्त भी हुए जा रहे थे,,, सोनू की खुशी का ठिकाना ना था क्योंकि इस तरह से दो अर्थ वाली बात वह पहली बार कर भी रहा था और अपने मां के मुंह से सुन भी रहा था उसे इस तरह की बातें करने में मजा आ रहा था और काफी उत्तेजना का अनुभव हो रहा था और इसी उत्तेजना के चलते उसके पेंट में धीरे-धीरे तंबू सा बनता चला जा रहा था,, और संध्या अपने बेटे के पेंट में बन रहे तंबू को चोर नजरों से देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे इस बात की संतुष्टि थी कि उसकी गर्म बातों से उसका बेटा गर्म हो रहा था,,,,,,, थोड़ी ही देर में दोनों वापस मोटरसाइकिल पर बैठकर घर आ गए,,, तब तक शगुन घर पर आ चुकी थी,,,,,,,,, इस बात का अंदाजा दोनों को इस बात से लग गया था क्योंकि घर के बाहर उसकी सैंडल रखी हुई थी,,,, संध्या को लगा था कि घर पर शगुन के आ जाने पर उसे गरमा गरम चाय जरूर मिलेगी क्योंकि उसे थोड़ी थकान महसूस हो रही है इसलिए दरवाजा खोल कर जैसे ही वह घर में प्रवेश की,,, वह सोनू से बोली,,,

सोनू देख तो शगुन ने चाय बनाई है कि नहीं,,,, अगर बना दी हो तो मेरे लिए भी एक कप चाय लेते आना और ना बनाई हो तो उसे बनाने के लिए कह देना,,,,

ठीक है मम्मी,,,,( सोनू अपनी मां के ठीक पीछे ही खड़ा था और उसके दाएं और पर कुर्सी रखी हुई थी,,, संध्या सब्जी से भरा थैला अपने दाहिने साइड पर नीचे रख दी और सोनू इतना कहने के साथ ही आगे बढ़ना चाहता था क्योंकि उसे लगा कि उसकी मां दाहिने और घूमेगी और कुर्सी पर बैठे की लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ संध्या तुरंत बांऊ और अपने कदम बढ़ा दी सोनू एकदम से अपने आप को संभाल नहीं पाया और अपने कदम जैसे ही आगे बढ़ाया था वह अपनी मां से टकरा गया,,,, इतनी जल्दी मैं वह अपनी मां के कहे अनुसार किचन में जाने के लिए कदम बढ़ाया था कि काफी जोर से वह अपनी मां से टकरा गया था और उसकी मां धक्का खा कर आगे की तरफ लगभग लगभग गिरने ही वाली थी कि सोनू अपने दोनों हाथ आगे की तरफ लाकर उसे कस के अपनी बाहों में भर लिया जो कि सोनू का लिया गया यह कदम उसे संभालने के लिए था लेकिन जिस तरह से अपना दोनों हाथ आगे की तरफ लाकर अपनी मां को पकड़ा था उसे संभाला था वह बिल्कुल अपनी बाहों में लेने जैसा ही हरकत था,,,, अफरा तफरी में सोनू का हाथ अपनी मां की दोनों चूचियों पर आ गया था,,, और सोनू के पेंट में बना तंबू ठीक उसके पिछवाड़े से जा लगा था जोकि उत्तेजना के मारे काफी कड़क हो चुका था,,,संध्या लगभग आगे की तरफ गिरने ही वाली थी इसलिए उसे संभालने के चक्कर में सोनू कसके अपनी हथेली दबोच कर उसे थाम लिया था लेकिन उसे बचाने के चक्कर में उसकी दोनों हथेलियां कसके संध्या की दोनों चुचियों पर जम गई थी और सोनू उसे अपनी हथेली में जोर से दबाए हुए था और अपना तंबू अपनी मां के पिछवाड़े में एकदम से सटाया हुआ था जिसकी वजह से सोनू के पेंट ने बना तंबू एक बार फिर से,,, साड़ी सहित उसकी बड़ी बड़ी गांड की दोनों फांकों के बीच गहराई में धंसने लगी थी,,,संध्या को अपने बेटे का लंड एक बार फिर से अपने गांड के बीचोबीच धंसता हुआ महसूस हुआ,,, वह एकदम से गनगना गई,,,, पल भर में ही उसे अपने बदन में सोनू की हरकत की वजह से दुगना मजा मिला था एक तो सोनू ने कसके उसकी दोनों चूचियों को अपनी हथेली में दबोच रखा था और दूसरा वह अपने लंड को जानबूझकर ना सही लेकिन उसे बचाने के चक्कर में उसकी गांड के बीचो-बीच दे मारा था,,,, अपने बेटे के जवान लंड को अपनी गांड के बीचो बीच महसूस करके संध्या एकदम से मदहोश हो गई,,, उसे कुछ समझ में नहीं आया कि वह क्या करें,,,,सोनू अपनी मां को संभाल चुका था लेकिन वह काफी उत्तेजित हो चुका था और उत्तेजना बस अपने आप पर काबू ना रखने की वजह से सोनू की कमर अपने आप आगे की तरफ बढ़ गई और सोनू की कमर इस तरह से आगे की तरफ बढी मानो,,, किसी औरत की बुर में लंड डालकर बचे हुए लंड को बड़ी चलाकी से पूरा का पूरा अंदर डाल रहा हो,,, सोनू तो संभोग के हर एक पहलू से अनजान था लेकिन संध्या अच्छे तरीके से संभोग के हर एक पहलू हर एक पृष्ठ को बकायदा पड़ चुकी थी इसलिए सोनू की यह हरकत संध्या को उस पल की याद ताजा करा गया जब ऐसे ही उसका पति संजय बचे हुए लंड को पूरी शिद्दत से उसकी बुर की गहराई में नापने के लिए डाल देता था,,,, सोनू मदहोश हो चुका था अपनी मां की भारी-भरकम गरमा-गरम पिछवाड़े को ठीक अपने लंड के आगे वाले भाग पर एकदम से महसूस करके वह पूरी तरह से गर्म हो चुका था,,, और ऊतेजना बस वह अपनी मां को संभालने के चक्कर में उसकी चूची को अपनी हथेली में भर लिया था और उसे अब जानबूझकर एक बार कस के दबा लिया था सोनू की पांचों ऊंगलियां ऐसा लग रहा था कि मानो घी में नहा रही हो,,,संध्या अपने बेटे की हर एक हरकत को अपने वजन के अंदर अच्छी तरह से महसूस कर रही थी उसे अपने बेटे की यह हरकत बेहद मदहोश कर देने वाली महसूस हो रही थी वह अपने बेटे को बिल्कुल भी रोकना नहीं चाहती थी वह तो चाहती थी कि सोनू इससे आगे बढ़ जाए लेकिन तभी सोनू अगले ही पल अपनी मां को संभाल कर उसके बदन से दूर होता हुआ बोला,,,,।

सॉरी मम्मी अनजाने में हो गया,,,,


ठीक है बेटा जा जल्दी से देख,,,,(इतना कहते हुए संध्या अपने कदम जो कि बाएं तरफ बढ़ा रही थी उसे दाएं तरफ वापस घुमाकर कुर्सी पर बैठ गई,,,, उत्तेजना के मारे उसकी सांसे उखड़ी हुई थी,,, इससे ज्यादा वह अपने बेटे से कुछ भी बोल सकने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं थी वह तो खुद ही अपने अंतर्मन के मनों मंथन में लगी हुई थी,,, सोनू की हर एक हरकत संध्या को मादकता का एहसास दिला रही थी,,, सोनू किचन में जा चुका था और वहां जाकर देखा तो वहां चाय बनी हुई नहीं थी इसलिए वह वापस आकर अपनी मां से बोला,,,।)

मम्मी चाय तो बनी हुई नहीं है,,,,,। (बड़े ही नम्र भाव से वह अपनी मां से बोला लेकिन अपने पेंट में बने तंबू को अपनी मां की नजरों से बचा नहीं सका किचन से निकलते ही संध्या की नजर सीधी अपने बेटे के तंबू पर ही गई थी जो कि अच्छे खासे शक्ल में उभर चुका था,,, उसे देखते ही संध्या अपने मन में बोली,,,)

बाप रे बाप मुझे तो लगता है कि मेरे पति का लंड मेरे पति से भी ज्यादा मोटा तगड़ा और लंबा है,,,,
(संध्या यह सब सोचते हुए ऐसा लग रहा था कि मानो ख्यालों में खो गई हो इसलिए सोनू एक बार फिर बोला)

क्या करूं मम्मी चाय तो बनी नहीं है,,,,।

ठीक है बेटा जैसा जून को उसके कमरे में से बुला कर ले आ और मुझे चाय बनाने के लिए बोल एकदम लापरवाह हो गए हैं ऐसा नहीं कि शाम की चाय बना दुं,,,

(सोनू अपनी मां की बात सुनकर अपनी बड़ी बहन के कमरे की तरफ जाने लगा अपनी मां के ख्यालों में वह पूरी तरह से खोया हुआ था,,,,,थोड़ी ही देर में बस अपनी बड़ी बहन सब उनके कमरे के बाहर खड़ा था दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था शगुन बेफिक्र और एकदम लापरवाह थी और अभी अभी अपने बाथरूम से नहाकर बाहर निकली थी,,, कुर्ती तो पहन चुकी थी लेकिन थोड़ा सा झुक कर अपने अलमारी में से अपनी सलवार ढूंढ रही थी सोनू तो अपनी मां के ख्यालों में मस्त था उसे नहीं मालूम था कि कमरे के अंदर एक बेहद कामुकता भरा दृश्य उसका इंतजार कर रहा है,,,,पर वह बिना दरवाजे पर दस्तक दिए दरवाजे को हल्का सा खोल दिया और जैसे ही उसकी नजर सामने पड़ी वह एकदम से हक्का-बक्का रह गया नीचे उसकी मां और ऊपर कमरे में उसकी जवान बहन उसके बदन में आग लगा रही थी,,,, सोनू की नजर सीधे अपनी बहन की गोल-गोल एकदम दूध से भी गोरी गांड पर चली गई,,, पल भर में ही सोनू के बदन में 4 बोतलों का नशा छा गया इतनी खूबसूरत और कसी हुई गांड वह जिंदगी में पहली बार देख रहा था और वह भी एक दम नंगी भले ही कमर के ऊपर कुर्ती थी लेकिन कमर के नीचे से उसकी बहन पूरी तरह से नंगी थी जो कि अलमारी में अपने कपड़े ढूंढने के लिए झुकी हुई थी जिसकी वजह से उसकी गोल-गोल गांड कुछ ज्यादा ही उभर कर बाहर की तरफ निकली हुई नजर आ रही थी,,, अपनी बहन की मस्त गांड देखकर सोनू के लंड में दर्द होने लगा,,,, सोनू के साथ आनन-फानन में मादकता भरा वाक्या पेश आ चुका था,,, अभी-अभी वह अपनी मां के मदमस्त पिछवाड़े को अपने लंड पर महसूस करके और उसकी गोल गोल खरबूजे को अपनी हथेली में लेकर दबा कर उसका आनंद लेकर आया ही था कि उसकी बहन ने अपनी गोरी गोरी गांड दिखाकर उसके ऊपर बिजलियां गिराने का काम कर दी थी,,, अब होश का बिल्कुल भी ठिकाना ना था सोनू पागलों की तरह अपनी बहन की गांड को घुरे जा रहा था,,,,तभी सगुन को दरवाजे पर कुछ हलचल सी महसूस हुई और वह झट से पलटकर दरवाजे की तरफ देखी तो सोनू को दरवाजे पर खड़ा देखकर और उसकी नजरों को ठीक अपनी गांड पर चुभता हुआ महसूस करके वह एकदम से हक्की बक्की हो गई,,,,,, वह आनन-फानन में सोनू की तरफ मुंह करके खड़ी हो गई और अपनी सलवार को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर उसे अपनी दोनों टांगों के बीच के बेशकीमती खजाने को छुपाने की भरपूर कोशिश करने लगी,,, अपनी बहन की यह हरकत सोनू के तन बदन में वासना की लहर को और ज्यादा उंची उठाने लगी,,, शगुन अपनी बेशकीमती खजाने को छुपाने में कामयाब हो चुकी थी,,,। सोनू के मन में अपनी बहन की बुर देखने की इच्छा हो चुकी है क्योंकि उसे ऐसा ही था कि जिस तरह से वह कमर के नीचे नंगी है अगर वह घूमने की तो उसकी बुर उसे जरूर दिखाई दे जाएगी,,, लेकिन शगुन अपनी तरफ से पूरी फुर्ती दिखाते हुए अपनी बुर को छुपा ले गई थी,,, और वह लगभग हकलाते हुए बोली,,,,।


ततततत,,, तू क्या कर रहा है इधर,,,,,,

मैं तो तुम्हें बुलाने आया था मम्मी बुला रही है चाय बनाने के लिए,,,,,

नोक नहीं कर सकता था दरवाजे पर,,,,


ममममम,,,, मुझे क्या मालूम था कि तुम इस तरह से होगी,,,,


अच्छा ठीक है तू जा मै आती हुं,,,,

ठीक है जल्दी आना,,,,(इतना कहकर सोनू वापस चला गया लेकिन अपने मन में अपने दिलो-दिमाग में अपनी बहन की मदमस्त यौवन से भरी हुई छवि लेता है गया,,, वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था,,, शगुन की भी हालत कम खराब नहीं थी सोनू के जाते ही वह लगभग उसी स्थिति में जल्दी से दरवाजे के लाता कर दरवाजा बंद करके लोग कर दी,,,,)

बाप रे,,,, यह सोनू की मां बिल्कुल भी तमीज नहीं है,,,,
(इतना कहकर वाली सलवार पहनने से पहले बिस्तर पर रखी हुई गुलाबी रंग की पेंटी पहनने लगी,,,, और अपने मन में सोचने लगी कि उसका भाई उसकी गांड जरूर देख लिया होगा तभी तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई थी,,,, इतना अपने मन में सोच के उसके मन में अजीब सी हलचल होने लगी उसे इस बात का ख्याल आया कि उसके भाई ने उसे कमर से नीचे एकदम नंगी देख लिया है खास करके वह उसकी गांड को ही देख रहा था,,,,इसका मतलब साफ था कि वह उसकी गांड को देखकर मस्त हो चुका था तभी तो बार दरवाजे से गया नहीं वरना चला जाता बिना कुछ बोले और उसे पता भी नहीं चलता लेकिन मैं तो पागलों की तरह तेरी नजरों से उसे ही घूर रहा था,,,सलवार पहनते हुए शगुन को इस बात का ख्याल आया कि जब वह सोनू की तरफ मुंह करके खड़ी थी और हाथ में तलवार लेकर अपनी बुर को छुपा रही थी तो सोनू की निगाहें उसकी दोनों टांगों के बीच ही घूम रही थी इसका मतलब साफ था कि वह उसकी बुर देखना चाहता था,,, यह ख्याल मन में आते ही शगुन की हालत खराब होने लगी,,,, अजीब सी हलचल उसके तन बदन में होने लगी पल भर में उसे ऐसा लगा कि जो चीज उसका भाई देखना चाहता था उस चीज को छुपाकर नहीं बल्कि खोल कर दिखा देना चाहिए था,,, शगुन अपने मन में यह सोच रही थी कि ,,, वह भी तो देखें कि उसकी गर्म जवानी और खूबसूरत गोरा बदन लोगों पर किस तरह से बिजलिया गिराता है,,,,इतना तो उसे विश्वास हो चुका था कि उसके पापा के साथ-साथ उसके गोरे बदन को देख कर उसके भाई की भी हालत खराब हो चुकी थी यह ख्याल मन में आते ही उसके चेहरे पर उसके होठों पर मुस्कान तैरने लगी वह जल्दी से कपड़े पहन कर कमरे से बाहर आ गई और चाय बनाने लगी,,, तीन कप चाय बनाकर वह अपनी मां और अपने भाई को धीमा कर उन दोनों के सामने ही बैठकर चाय का मजा लेने लगी सोनू अपनी बहन से नजर नहीं मिला पा रहा था और शगुन अपने भाई के तन बदन में हो रही हलचल को महसूस करके खुश हो रही थी,,। संध्या को तो इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि सोनू अपनी बहन की नंगी गांड के दर्शन करके आया है वह तो सोनू के साथ दो अर्थों में की गई बातों को लेकर मस्त हुए जा रही थी,,,।
Ekdum mast and hit update
 

Dashing deep

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हाथ में थैला लिए हुए संध्या मार्केट के अंदर की तरफ जाने लगी जहां पर ढेर सारे ठेले लगे हुए थे,,,, सोनू अपनी मां की मटकती हुई गांड देख कर मस्त हो जा रहा था,,, ऐसा नहीं था कि वहां पर और भी मटकती हुई गांड नहीं थी,,, वहां ढेर सारी मदमस्त खूबसूरत औरतों की मदमस्त बड़ी-बड़ी मटकती गांड थी,,,लेकिन सोनू का आकर्षण सबसे ज्यादा अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड पर ही था जो की कसी हुई साड़ी पहने होने के नाते उसकी बड़ी-बड़ी गांड की दोनों फांकें एकदम सटी हुई और उसके उभार साड़ी के ऊपर से भी साफ नजर आ रहे थे,,,,, अंदर के बाजू केवल सब्जियां ही मिलती थी इसलिए सोनू को वहां का इशारा करके वही खड़े रहने के लिए बोली और सोनू वही खड़ा रह गया,,।
सोनू वहीं खड़े होकर मार्केट में आने जाने वाली हर एक औरत को बड़ी बारीकी से निहार रहा था खास करके उनके दोनों खरबूजो को और उनके पिछवाड़े को,, लेकिन जो बात उसकी मां के खरबूजा और पिछवाड़े में था वह बात किसी में उसे नजर नहीं आई,,,,, सोनू को वह पल याद आने लगा जब खड्डे में मोटरसाइकिल का टायर जाकर बाहर निकला और ब्रेक लगाने की वजह से उसकी मां अपने आप को संभाल नहीं पाई और संभालने के लिए उसका सहारा लेने के लिए अनजाने में ही पेंट में बनी तंबू को वह अपने हाथ में लेकर दबोच ली,,,, कुछ पल को याद करके सोनू की हालत खराब होने लगी अनजाने में ही सही अपने लंड को अपनी मां की हथेली में महसूस करके उसे अद्भुत सुख का अहसास हुआ था अपने मन में यही सोच रहा था कि काश उसकी मां के हाथों में उसका नंगा लंड आ जाए तो कितना मजा आ जाए,,,,,

थोड़ी ही देर में संध्या हरी सब्जियां खरीद कर बाहर आने लगी,,,, और सोनू की नजर जैसे ही अपनी मां पर पड़ी उसके चेहरे पर खुशी के भाव झलक ने लगे,,, सोनू का अपनी मां को देखने का रवैया पूरी तरह से बदल चुका था,,,। अपनी मां के अंदर उसे काम की देवी नजर आती थी जिसे देख कर उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगती थी,,,,,,, संध्या सोनू के एकदम करीब पहुंच गई और उसे सब्जियों का थैला थमाते हुए बोली,,,।

मेरे पीछे पीछे आओ,,,, फल खरीदना है,,,,
(इतना कहकर संध्या आगे आगे अपनी गांड को जानबूझकर कुछ ज्यादा ही मटकाते हुए चलने लगी,,, क्योंकि वह यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि जब उसके पीछे सोनू रहता है तो उसकी नजर उसकी बड़ी-बड़ी पिछवाड़े पर ही रहती है,,,वसंत विहार इस बात को भी अच्छी तरह से जानती थी कि मर्दों की सबसे बड़ी कमजोरी औरतों की बड़ी बड़ी गांड होती है जैसा कि सोनू की कमजोरी उसकी खुद की गांड बनती जा रही थी,,, सोनू अपनी मां के कमर के नीचे वाले घेराव को देखता हुआ आगे बढ़ रहा था और संध्या इस बात की तसल्ली करने के लिए रह रह कर अपनी नजर को पीछे की तरफ घुमा कर सोनु की तरफ देख ले रही थी और उसकी नजरों को अपनी कमर के नीचे भारी भरकम घेराव पर पड़ता हुआ देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो जाती थी,,, कुछ दूरी तक चलने के बाद एक ठेला वाला नजर आया,,, जिस के ठेले पर केले संतरे तरबूज खरबूजा सब कुछ थे,,,,। संध्या ठेले के करीब पहुंचकर,,, सोनू की तरफ देखते हुए मोटे तगड़े लंबे केले के गुच्छों की तरफ उंगली से इशारा करते हुए बोली,,,।

भैया यह केले कैसे दिए,,,,


ले लीजिए बहन जी आपसे कैसा भाव तोल करना आप तो हमेशा के ग्राहक हैं,,,,,,,(पहले वाला उम्रदराज बुढा इंसान था संध्या अक्सर उसी के ठेले पर से फल खरीदा करती थी और बिल्कुल भी भाव तोल नहीं करती थी,,,, उसकी बातें सुनकर संध्या के चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी और वह केले के गुच्छे को उठाकर उसे अपने हाथ में लेते हुए सोनू से बोली,,)

देख सोनु केला हो तो ऐसा लंबा तगड़ा और मोटा ताकि एक ही केले में पेट भर जाए,,,, छोटे केले मुझे बिल्कुल भी नहीं पसंद,,,, तेरे पास भी है ना ऐसा,,,( एकाएक उसके मुंह से इस तरह के शब्द निकलते ही वह झट से अपनी बात को बदलते हुए बोली,,) मेरा मतलब है कि तुझे भी इस तरह के कहने पसंद है ना,,,,.


नहीं नहीं मम्मी मुझे अकेला बिल्कुल भी नहीं पसंद मुझे तो खरबूजा पसंद है और वह भी इस तरह के (सोनू उंगली से इशारा बड़े-बड़े खरगोशों की तरफ कर रहा है लेकिन उसकी नजर अपनी मां के दोनों खरबूजो पर थी,,, सोनू की नजरों को देखकर संध्या एकदम से सिहर उठी,,,,)

ओहहहह,,, माफ करना मैं भूल गई थी तुझे केला नहीं पसंद है,,,,( संध्या केले के गुच्छो में से एक केले को पकड़ कर उसे अपनी हथेली में भरली और उसे इधर-उधर घुमा कर देखने लगी सोनू यह देखकर एक दम मस्त हो जाए होता सोनू अपने मन में यही सोच रहा था कि उसकी मां केले को अपनी हथेली में लेकर शायद लंड की मोटाई और लंबाई का अंदाजा लगा रही थी,,,,, और यह बात बिल्कुल सच है थी संध्या केले को हथेली में पकड़ कर कुछ देर पहले जो अनजाने में यह अपने बेटे के तंबू को पकड़े ली थी उससे अंदाजा लगा रही थी कि उसके बेटे का लंड कितना मोटा और लंबा होगा,,,केले की लंबाई और मोटाई को अपने बेटे के लिंग की मोटाई और लंबाई से तुलना करके उसके चेहरे पर तसल्ली खड़ी मुस्कान तैरने लगी,,, वह पूरी तरह से संतुष्ट होते हुए ठेले वाले भैया से बोली,,,।)

लीजिए भैया इसे पेक कर दीजिए,,,,(इतना कहकर अपने बेटे की तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी सोनू के दिल में खलबली मची हुई थी उसकी मां कुछ ज्यादा ही खुलती चली जा रही थी सोनू को अपनी मां की कही बातों का अर्थ तो समझ में आ रहा था लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा था कि उसकी मां की तरफ से उसे यह इशारा है या अनजाने में ही यह सब हो रहा है इसी कशमकश में वह असमंजस में पड़ा हुआ था तभी वह ठेलेवाला केले को एक पॉलीथिन की थैली में डालकर संध्या को थमाते हुए बोला,,,)

और कुछ चाहिए बहन जी,,,

हां ,,, मेरे बेटे को खरबूजा पसंद है और वह भी गोल गोल और बड़े-बड़े,,,,,,(सोनू की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोली)

हां मम्मी मुझे तो बड़े-बड़े खरबूजे ही पसंद है देखते ही पता चल जाता है कि कितना मजा आने वाला है,,,(सोनू अपनी मां की भरी हुई छातियों की तरफ देखते हुए बोला,,,दोनों मां-बेटे जिस तरह से बातें कर रहे थे दोनों एक दूसरे की बातों का मतलब अच्छी तरह से समझ रहे थे लेकिन वह ठेलेवाला बिल्कुल भी उन दोनों मां-बेटे की बातों का मतलब समझ नहीं पा रहा था,,, सोनू अपनी मां की छातियों की तरफ देखते हुए ठेले पर से तो बड़े-बड़े खरबूजे अपने हाथों में उठा लिया और दोनों खरबूजो की जोड़ी को सामने हाथ पर रख कर अपनी मां को दिखाते हुए संध्या की भारी-भरकम छातियों से तकरीबन 1 फीट की दूरी पर लाते हुए बोला,,,)

इस तरह के खरबूजे मम्मी मुझे बहुत पसंद है,,,,।

ठीक है बेटा तेरी खुशी में मेरी खुशी है तुझे तो पसंद है मैं तेरी ख्वाहिश जरूर पुरी करूंगी,,,,(इतना कहते हुए वह अपने बेटे के हाथों में से दोनों खरबुजो को लेकर उस ठेले वालों को थमाते हुए बोली,,,)

लो भैया इसे भी वजन कर दो,,,,

(ठेलेवाला झट से संध्या के हाथों में से बड़े-बड़े खर्चे को लेकर तराजू में रखकर उसे तोलने लगा और तोलने के बाद उसे थेली में भरकर संध्या को थमा दिया,,,दोनों मां-बेटे की तरह से बातें कर रहे थे उन बातों के मतलब को अपने मन में ही समझ कर दोनों अंदर ही अंदर खुश हो रहे थे और मस्त भी हुए जा रहे थे,,, सोनू की खुशी का ठिकाना ना था क्योंकि इस तरह से दो अर्थ वाली बात वह पहली बार कर भी रहा था और अपने मां के मुंह से सुन भी रहा था उसे इस तरह की बातें करने में मजा आ रहा था और काफी उत्तेजना का अनुभव हो रहा था और इसी उत्तेजना के चलते उसके पेंट में धीरे-धीरे तंबू सा बनता चला जा रहा था,, और संध्या अपने बेटे के पेंट में बन रहे तंबू को चोर नजरों से देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे इस बात की संतुष्टि थी कि उसकी गर्म बातों से उसका बेटा गर्म हो रहा था,,,,,,, थोड़ी ही देर में दोनों वापस मोटरसाइकिल पर बैठकर घर आ गए,,, तब तक शगुन घर पर आ चुकी थी,,,,,,,,, इस बात का अंदाजा दोनों को इस बात से लग गया था क्योंकि घर के बाहर उसकी सैंडल रखी हुई थी,,,, संध्या को लगा था कि घर पर शगुन के आ जाने पर उसे गरमा गरम चाय जरूर मिलेगी क्योंकि उसे थोड़ी थकान महसूस हो रही है इसलिए दरवाजा खोल कर जैसे ही वह घर में प्रवेश की,,, वह सोनू से बोली,,,

सोनू देख तो शगुन ने चाय बनाई है कि नहीं,,,, अगर बना दी हो तो मेरे लिए भी एक कप चाय लेते आना और ना बनाई हो तो उसे बनाने के लिए कह देना,,,,

ठीक है मम्मी,,,,( सोनू अपनी मां के ठीक पीछे ही खड़ा था और उसके दाएं और पर कुर्सी रखी हुई थी,,, संध्या सब्जी से भरा थैला अपने दाहिने साइड पर नीचे रख दी और सोनू इतना कहने के साथ ही आगे बढ़ना चाहता था क्योंकि उसे लगा कि उसकी मां दाहिने और घूमेगी और कुर्सी पर बैठे की लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ संध्या तुरंत बांऊ और अपने कदम बढ़ा दी सोनू एकदम से अपने आप को संभाल नहीं पाया और अपने कदम जैसे ही आगे बढ़ाया था वह अपनी मां से टकरा गया,,,, इतनी जल्दी मैं वह अपनी मां के कहे अनुसार किचन में जाने के लिए कदम बढ़ाया था कि काफी जोर से वह अपनी मां से टकरा गया था और उसकी मां धक्का खा कर आगे की तरफ लगभग लगभग गिरने ही वाली थी कि सोनू अपने दोनों हाथ आगे की तरफ लाकर उसे कस के अपनी बाहों में भर लिया जो कि सोनू का लिया गया यह कदम उसे संभालने के लिए था लेकिन जिस तरह से अपना दोनों हाथ आगे की तरफ लाकर अपनी मां को पकड़ा था उसे संभाला था वह बिल्कुल अपनी बाहों में लेने जैसा ही हरकत था,,,, अफरा तफरी में सोनू का हाथ अपनी मां की दोनों चूचियों पर आ गया था,,, और सोनू के पेंट में बना तंबू ठीक उसके पिछवाड़े से जा लगा था जोकि उत्तेजना के मारे काफी कड़क हो चुका था,,,संध्या लगभग आगे की तरफ गिरने ही वाली थी इसलिए उसे संभालने के चक्कर में सोनू कसके अपनी हथेली दबोच कर उसे थाम लिया था लेकिन उसे बचाने के चक्कर में उसकी दोनों हथेलियां कसके संध्या की दोनों चुचियों पर जम गई थी और सोनू उसे अपनी हथेली में जोर से दबाए हुए था और अपना तंबू अपनी मां के पिछवाड़े में एकदम से सटाया हुआ था जिसकी वजह से सोनू के पेंट ने बना तंबू एक बार फिर से,,, साड़ी सहित उसकी बड़ी बड़ी गांड की दोनों फांकों के बीच गहराई में धंसने लगी थी,,,संध्या को अपने बेटे का लंड एक बार फिर से अपने गांड के बीचोबीच धंसता हुआ महसूस हुआ,,, वह एकदम से गनगना गई,,,, पल भर में ही उसे अपने बदन में सोनू की हरकत की वजह से दुगना मजा मिला था एक तो सोनू ने कसके उसकी दोनों चूचियों को अपनी हथेली में दबोच रखा था और दूसरा वह अपने लंड को जानबूझकर ना सही लेकिन उसे बचाने के चक्कर में उसकी गांड के बीचो-बीच दे मारा था,,,, अपने बेटे के जवान लंड को अपनी गांड के बीचो बीच महसूस करके संध्या एकदम से मदहोश हो गई,,, उसे कुछ समझ में नहीं आया कि वह क्या करें,,,,सोनू अपनी मां को संभाल चुका था लेकिन वह काफी उत्तेजित हो चुका था और उत्तेजना बस अपने आप पर काबू ना रखने की वजह से सोनू की कमर अपने आप आगे की तरफ बढ़ गई और सोनू की कमर इस तरह से आगे की तरफ बढी मानो,,, किसी औरत की बुर में लंड डालकर बचे हुए लंड को बड़ी चलाकी से पूरा का पूरा अंदर डाल रहा हो,,, सोनू तो संभोग के हर एक पहलू से अनजान था लेकिन संध्या अच्छे तरीके से संभोग के हर एक पहलू हर एक पृष्ठ को बकायदा पड़ चुकी थी इसलिए सोनू की यह हरकत संध्या को उस पल की याद ताजा करा गया जब ऐसे ही उसका पति संजय बचे हुए लंड को पूरी शिद्दत से उसकी बुर की गहराई में नापने के लिए डाल देता था,,,, सोनू मदहोश हो चुका था अपनी मां की भारी-भरकम गरमा-गरम पिछवाड़े को ठीक अपने लंड के आगे वाले भाग पर एकदम से महसूस करके वह पूरी तरह से गर्म हो चुका था,,, और ऊतेजना बस वह अपनी मां को संभालने के चक्कर में उसकी चूची को अपनी हथेली में भर लिया था और उसे अब जानबूझकर एक बार कस के दबा लिया था सोनू की पांचों ऊंगलियां ऐसा लग रहा था कि मानो घी में नहा रही हो,,,संध्या अपने बेटे की हर एक हरकत को अपने वजन के अंदर अच्छी तरह से महसूस कर रही थी उसे अपने बेटे की यह हरकत बेहद मदहोश कर देने वाली महसूस हो रही थी वह अपने बेटे को बिल्कुल भी रोकना नहीं चाहती थी वह तो चाहती थी कि सोनू इससे आगे बढ़ जाए लेकिन तभी सोनू अगले ही पल अपनी मां को संभाल कर उसके बदन से दूर होता हुआ बोला,,,,।

सॉरी मम्मी अनजाने में हो गया,,,,


ठीक है बेटा जा जल्दी से देख,,,,(इतना कहते हुए संध्या अपने कदम जो कि बाएं तरफ बढ़ा रही थी उसे दाएं तरफ वापस घुमाकर कुर्सी पर बैठ गई,,,, उत्तेजना के मारे उसकी सांसे उखड़ी हुई थी,,, इससे ज्यादा वह अपने बेटे से कुछ भी बोल सकने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं थी वह तो खुद ही अपने अंतर्मन के मनों मंथन में लगी हुई थी,,, सोनू की हर एक हरकत संध्या को मादकता का एहसास दिला रही थी,,, सोनू किचन में जा चुका था और वहां जाकर देखा तो वहां चाय बनी हुई नहीं थी इसलिए वह वापस आकर अपनी मां से बोला,,,।)

मम्मी चाय तो बनी हुई नहीं है,,,,,। (बड़े ही नम्र भाव से वह अपनी मां से बोला लेकिन अपने पेंट में बने तंबू को अपनी मां की नजरों से बचा नहीं सका किचन से निकलते ही संध्या की नजर सीधी अपने बेटे के तंबू पर ही गई थी जो कि अच्छे खासे शक्ल में उभर चुका था,,, उसे देखते ही संध्या अपने मन में बोली,,,)

बाप रे बाप मुझे तो लगता है कि मेरे पति का लंड मेरे पति से भी ज्यादा मोटा तगड़ा और लंबा है,,,,
(संध्या यह सब सोचते हुए ऐसा लग रहा था कि मानो ख्यालों में खो गई हो इसलिए सोनू एक बार फिर बोला)

क्या करूं मम्मी चाय तो बनी नहीं है,,,,।

ठीक है बेटा जैसा जून को उसके कमरे में से बुला कर ले आ और मुझे चाय बनाने के लिए बोल एकदम लापरवाह हो गए हैं ऐसा नहीं कि शाम की चाय बना दुं,,,

(सोनू अपनी मां की बात सुनकर अपनी बड़ी बहन के कमरे की तरफ जाने लगा अपनी मां के ख्यालों में वह पूरी तरह से खोया हुआ था,,,,,थोड़ी ही देर में बस अपनी बड़ी बहन सब उनके कमरे के बाहर खड़ा था दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था शगुन बेफिक्र और एकदम लापरवाह थी और अभी अभी अपने बाथरूम से नहाकर बाहर निकली थी,,, कुर्ती तो पहन चुकी थी लेकिन थोड़ा सा झुक कर अपने अलमारी में से अपनी सलवार ढूंढ रही थी सोनू तो अपनी मां के ख्यालों में मस्त था उसे नहीं मालूम था कि कमरे के अंदर एक बेहद कामुकता भरा दृश्य उसका इंतजार कर रहा है,,,,पर वह बिना दरवाजे पर दस्तक दिए दरवाजे को हल्का सा खोल दिया और जैसे ही उसकी नजर सामने पड़ी वह एकदम से हक्का-बक्का रह गया नीचे उसकी मां और ऊपर कमरे में उसकी जवान बहन उसके बदन में आग लगा रही थी,,,, सोनू की नजर सीधे अपनी बहन की गोल-गोल एकदम दूध से भी गोरी गांड पर चली गई,,, पल भर में ही सोनू के बदन में 4 बोतलों का नशा छा गया इतनी खूबसूरत और कसी हुई गांड वह जिंदगी में पहली बार देख रहा था और वह भी एक दम नंगी भले ही कमर के ऊपर कुर्ती थी लेकिन कमर के नीचे से उसकी बहन पूरी तरह से नंगी थी जो कि अलमारी में अपने कपड़े ढूंढने के लिए झुकी हुई थी जिसकी वजह से उसकी गोल-गोल गांड कुछ ज्यादा ही उभर कर बाहर की तरफ निकली हुई नजर आ रही थी,,, अपनी बहन की मस्त गांड देखकर सोनू के लंड में दर्द होने लगा,,,, सोनू के साथ आनन-फानन में मादकता भरा वाक्या पेश आ चुका था,,, अभी-अभी वह अपनी मां के मदमस्त पिछवाड़े को अपने लंड पर महसूस करके और उसकी गोल गोल खरबूजे को अपनी हथेली में लेकर दबा कर उसका आनंद लेकर आया ही था कि उसकी बहन ने अपनी गोरी गोरी गांड दिखाकर उसके ऊपर बिजलियां गिराने का काम कर दी थी,,, अब होश का बिल्कुल भी ठिकाना ना था सोनू पागलों की तरह अपनी बहन की गांड को घुरे जा रहा था,,,,तभी सगुन को दरवाजे पर कुछ हलचल सी महसूस हुई और वह झट से पलटकर दरवाजे की तरफ देखी तो सोनू को दरवाजे पर खड़ा देखकर और उसकी नजरों को ठीक अपनी गांड पर चुभता हुआ महसूस करके वह एकदम से हक्की बक्की हो गई,,,,,, वह आनन-फानन में सोनू की तरफ मुंह करके खड़ी हो गई और अपनी सलवार को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर उसे अपनी दोनों टांगों के बीच के बेशकीमती खजाने को छुपाने की भरपूर कोशिश करने लगी,,, अपनी बहन की यह हरकत सोनू के तन बदन में वासना की लहर को और ज्यादा उंची उठाने लगी,,, शगुन अपनी बेशकीमती खजाने को छुपाने में कामयाब हो चुकी थी,,,। सोनू के मन में अपनी बहन की बुर देखने की इच्छा हो चुकी है क्योंकि उसे ऐसा ही था कि जिस तरह से वह कमर के नीचे नंगी है अगर वह घूमने की तो उसकी बुर उसे जरूर दिखाई दे जाएगी,,, लेकिन शगुन अपनी तरफ से पूरी फुर्ती दिखाते हुए अपनी बुर को छुपा ले गई थी,,, और वह लगभग हकलाते हुए बोली,,,,।


ततततत,,, तू क्या कर रहा है इधर,,,,,,

मैं तो तुम्हें बुलाने आया था मम्मी बुला रही है चाय बनाने के लिए,,,,,

नोक नहीं कर सकता था दरवाजे पर,,,,


ममममम,,,, मुझे क्या मालूम था कि तुम इस तरह से होगी,,,,


अच्छा ठीक है तू जा मै आती हुं,,,,

ठीक है जल्दी आना,,,,(इतना कहकर सोनू वापस चला गया लेकिन अपने मन में अपने दिलो-दिमाग में अपनी बहन की मदमस्त यौवन से भरी हुई छवि लेता है गया,,, वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था,,, शगुन की भी हालत कम खराब नहीं थी सोनू के जाते ही वह लगभग उसी स्थिति में जल्दी से दरवाजे के लाता कर दरवाजा बंद करके लोग कर दी,,,,)

बाप रे,,,, यह सोनू की मां बिल्कुल भी तमीज नहीं है,,,,
(इतना कहकर वाली सलवार पहनने से पहले बिस्तर पर रखी हुई गुलाबी रंग की पेंटी पहनने लगी,,,, और अपने मन में सोचने लगी कि उसका भाई उसकी गांड जरूर देख लिया होगा तभी तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई थी,,,, इतना अपने मन में सोच के उसके मन में अजीब सी हलचल होने लगी उसे इस बात का ख्याल आया कि उसके भाई ने उसे कमर से नीचे एकदम नंगी देख लिया है खास करके वह उसकी गांड को ही देख रहा था,,,,इसका मतलब साफ था कि वह उसकी गांड को देखकर मस्त हो चुका था तभी तो बार दरवाजे से गया नहीं वरना चला जाता बिना कुछ बोले और उसे पता भी नहीं चलता लेकिन मैं तो पागलों की तरह तेरी नजरों से उसे ही घूर रहा था,,,सलवार पहनते हुए शगुन को इस बात का ख्याल आया कि जब वह सोनू की तरफ मुंह करके खड़ी थी और हाथ में तलवार लेकर अपनी बुर को छुपा रही थी तो सोनू की निगाहें उसकी दोनों टांगों के बीच ही घूम रही थी इसका मतलब साफ था कि वह उसकी बुर देखना चाहता था,,, यह ख्याल मन में आते ही शगुन की हालत खराब होने लगी,,,, अजीब सी हलचल उसके तन बदन में होने लगी पल भर में उसे ऐसा लगा कि जो चीज उसका भाई देखना चाहता था उस चीज को छुपाकर नहीं बल्कि खोल कर दिखा देना चाहिए था,,, शगुन अपने मन में यह सोच रही थी कि ,,, वह भी तो देखें कि उसकी गर्म जवानी और खूबसूरत गोरा बदन लोगों पर किस तरह से बिजलिया गिराता है,,,,इतना तो उसे विश्वास हो चुका था कि उसके पापा के साथ-साथ उसके गोरे बदन को देख कर उसके भाई की भी हालत खराब हो चुकी थी यह ख्याल मन में आते ही उसके चेहरे पर उसके होठों पर मुस्कान तैरने लगी वह जल्दी से कपड़े पहन कर कमरे से बाहर आ गई और चाय बनाने लगी,,, तीन कप चाय बनाकर वह अपनी मां और अपने भाई को धीमा कर उन दोनों के सामने ही बैठकर चाय का मजा लेने लगी सोनू अपनी बहन से नजर नहीं मिला पा रहा था और शगुन अपने भाई के तन बदन में हो रही हलचल को महसूस करके खुश हो रही थी,,। संध्या को तो इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि सोनू अपनी बहन की नंगी गांड के दर्शन करके आया है वह तो सोनू के साथ दो अर्थों में की गई बातों को लेकर मस्त हुए जा रही थी,,,।
मजा आ गया रोहन भाई अब बस सोनू की चुदाई करा दो जल्द
 

doctorchodu

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Rohan bhai aapki sabhi kahani zabardast hoti hain sex aur seduction ke maamle me, maine aapki sabhi kahaniyo ko padha hai aap adbhut writer ho gazab ki lekhni hai aapki.

Aapko bas ek suggestion dena chahunga ki story me chote chote thrill ya suspense ko bhi add kijiye, bina suspense ya mystery ke kahani adhuri si lagti hai

Hope aap meri baat samajh rahe honge
 
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Alka Sharma

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आज हॉस्पिटल में शर्मा जी का ऑपरेशन था जो कि कोई बहुत बड़ा ऑपरेशन नहीं था बहुत ही मामूली सा पथरी का ऑपरेशन था लेकिन इस तरह का सीन क्रिएट किया गया था कि जैसे बहुत ही कठिन और गंभीर बीमारी का ऑपरेशन है,,, इसलिए तो सरिता घबरा गई थी और तुरंत गांव से शहर आई थी अपने पति का ऑपरेशन करवाने के लिए शर्मा जी सरकारी ऑफिस में मामूली से कलर्क थे,,, उसकी हैसियत बिल्कुल भी नहीं थी इतने बड़े हॉस्पिटल में ऑपरेशन करवाने की,,, इसीलिए तो उससे ऑपरेशन के पैसे का जुगाड़ बिल्कुल भी नहीं हो पाया था,,,। लेकिन संजय सिंह की सांत्वना को पाकर वह निश्चिंत हो चुकी थी,, लेकिन संजय सिंह की इस सांत्वना के पीछे छिपे गहरे राज को वह कुछ कुछ समझ रही थी लेकिन अपने पति की भलाई के लिए वह खामोश रहना ही उचित समझ रही थी,,, इसलिए वह घर से नहा धोकर जल्दी से हॉस्पिटल पहुंच चुकी थी,, शर्मा भले ही पैसों के मामले में अमीर नहीं था लेकिन किस्मत के मामले में बेहद धनी था जो उसे सरिता जैसी खूबसूरत बीवी मिली थी,,। भरे बदन की सरिता बेहद खूबसूरत लगती थी,, इसीलिए तो उसकी खूबसूरती पर पूरी तरह से मोह कर संजय सिंह उसके हॉस्पिटल का पूरा खर्चा माफ करने के लिए तैयार हो चुका था जो कि इस बारे में उसके हॉस्पिटल का किसी भी स्टाफ को पता नहीं था यह अंदर की बात थी जो कि सरिता और संजय सिंह को ही मालूम थी,,, घर पर वह करीब रात के 3:00 बजे पहुंचा था और जल्द ही 6:00 बजे ही घर से निकल चुका था,, 10:00 बजे शर्मा जी का ऑपरेशन करना था,,,। ऑपरेशन की पूरी तैयारी हो चुकी थी शर्मा जी को ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया था,,, ऑपरेशन बड़ा नहीं था इसलिए ऑपरेशन थिएटर में केवल 2 नर्श और संजय सिंह खुद था,,, 2 नर्स में रूबी भी थी।

ऑपरेशन थिएटर के बाहर सरिता बहुत परेशान नजर आ रही थी वह बार-बार आंखों को बंद करके भगवान से प्रार्थना कर रही थी बड़ी भोली और मासूम सी नजर आ रही थी और वैसे भी वह बहुत भोली ही थी गांव की होने के साथ-साथ वह बेहद संस्कारी और मर्यादा शील औरत थी,,, लेकिन इस समय ऑपरेशन थिएटर के बाहर उसके साथ कोई भी नहीं था घर के लोग शाम को आने वाले थे तब तक वह अकेली ही थी,,, वह परेशानी में इधर से उधर चहलकदमी कर रही थी,,, जब वह परेशान होकर इधर से इधर चहल कदमी करती थी,, तब उसके गोलाकार नितंबों की थिरकन आते जाते स्टाफ मेंबर और दूसरे मर्दों के तन बदन में हलचल पैदा कर देती थी,,,वह मन ही मन में भगवान से प्रार्थना करते हुए अपने पति की लंबी उम्र की दुआ मांग रही थी और अंदर ऑपरेशन शुरू हो चुका था,,,। संजय सिंह के लिए कोई बहुत बड़ा ऑपरेशन नहीं था या उसके लिए बाएं हाथ का काम था,,,
रूबी बार-बार संजय सिंह को अपनी तरफ रिझाने की कोशिश कर रही थी वैसे भी रूबी बला की खूबसूरत थी,,, ऑपरेशन थिएटर में स्कर्ट पहनी हुई थी और उस पर अपना सफेद रंग का नर्स का यूनिफॉर्म पहनी थी इस यूनिफार्म मे वह बेहद खूबसूरत और आकर्षक लगती थी यह बात संजय भी अच्छी तरह से जानता था,,,, ऑपरेशन शुरू हो चुका था संजय बड़ी ईमानदारी से शर्मा जी के ऑपरेशन को अंजाम दे रहा था,,, और रूबी ठीक उसके बगल में खड़ी होकर ऑपरेशन में उपयोग में लिए जाने वाले औजारों को एक ट्रे में लेकर खड़ी थी,,, तकरीबन 1 घंटे के बाद ऑपरेशन एकदम कामयाब रहा लेकिन रूबी के मन में कुछ और चल रहा था ऐसा नहीं था कि संजय का ध्यान रूबी के ऊपर नहीं जा रहा था संजय का ध्यान बार-बार उसकी मटकती हुई गोलाकार गांड पर जा रहा था उसके तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी लेकिन फिर भी वह अपना सारा ध्यान ऑपरेशन में लगाया हुआ था,,, और उसे यह भी पता था कि रूबी जानबूझकर इस तरह की हरकत कर रही है,,,। संजय चीरे पर टांका लेने की तैयारी कर रहा था,,, दूसरी नर्स टेबल के दूसरे छोर पर अपना काम कर रही थी,,, तभी संजय रूबी से बोला,,,,।

रूबी सुई देना तो,,,
(इतना सुनते ही रूबी को मौका मिल गया और वह जानबूझकर सुई को नीचे गिरा दी उसकी पीठ संजय की तरफ से और सुई के गिरते ही वह नाटक करते हुए बोली,,)

ओहहह शीट,,,,,(इतना कहने के साथ ही वह नीचे सुई उठाने के लिए झुक गई,,, वह जानती थी कि संजय सिंह की नजर उसकी गांड पर जरूर पड़ेगी वो पहले से ही सारी तैयारी कर चुकी थी,,,, वजह से ही सही उठाने के लिए नीचे झुकी वैसे ही संजय सिंह की नजर भी उसके पिछवाड़े पर पड़ी और वह देखकर दंग रहेगा उसकी आंखों के सामने रूबी की एकदम खूबसूरत सुडौल आकार की गोरी गोरी गांड नजर आने लगी उसकी संपूर्ण गांडएकदम नंगी थी ऐसा लग रहा था कि जैसे ही उसने अपनी गांड को ढकने के लिए पैंटी नहीं पहनी है लेकिन ऐसा नहीं था वह पेंट पहनी जरूर थी लेकिन वह पहनती सिर्फ एक पतली सी डोरी के रूप में थी जो कि उसकी गोलाकार गांड के बीचों बीच की दरार में फंसी हुई थी,,, जो कि बेहद ध्यान से देखने पर ही पता चल रही थी इस नजारे को देखकर संजय सिंह का खून एकदम से खोलने लगा उसके तन बदन में वासना की लहर उठने लगी,,,, अगर ऑपरेशन थिएटर में ना होता तो अब तक वह रूबी को उसने भी नहीं दिया होता और उसी पोजीशन में अपने लंड को उसकी बुर में डालकर उसकी चुदाई कर दिया होता जो कि रूबी खुद ऐसा चाहती थी,,, सुई उठाते समय रूबी यह देखने के लिए कि संजय की नजर उस पर पड़ती है या नहीं इसलिए वह अपनी नजरों को पीछे करके संजय की तरफ देखी तो वह उसकी भरी हुई मत मस्त खूबसूरत गांड को ही देख रहा था यह देखकर उसके होठों पर कामुक मुस्कान आ गई और वह संजय की तरफ मुस्कुराते हुए देख कर खड़ी हो गई संजय भीउसकी इस तरह की हरकतों को अच्छी तरह से समझ रहा था और वह मन में ठान लिया था कि मौका मिलने पर रूबी की बुर में लंड जरूर डालेगा,,,,, रूबी सुई उठाकर खड़ी होते हुए बोली,,,)

सॉरी सर लीजिए ,,,,(इतना कहकर सुई संजय सिंह की तरफ बढ़ा दी और संजय सूई अपने हाथ में लेकर टांका लेने लगा,,,, सब कुछ एकदम सही हो चुका था 1 घंटे बाद शर्मा को होश भी आ गया हल्का हल्का दर्द हो रहा था लेकिन कोई दिक्कत की बात नहीं थी,,,, सरिता अपने पति को होश में आया हुआ देखकर बेहद खुश नजर आ रही थी,,, वह अपने पति के पास टेबल पर बैठी हुई थी कि तभी नर्स उसके पास आई है और उसे सर के केबिन मैं उनसे मिलने के लिए बोल कर चली गई,,,)

मैं अभी आती हूं,,,,(इतना कहकर सरिता टेबल पर से उठ खड़ी हुई और संजय के केबिन की तरफ जाने लगी उसका दिल जोरों से धड़क रहा था वह घबराई हुई थी वह अच्छी तरह से जानती थी कि क्या होने वाला है एक पैसा भी उसका नहीं लगा था इसका मतलब साफ था कि उसे पैसों के बदले में कुछ और चुकाना होगा,,,,धीरे-धीरे वह संजय के केबिन के करीब पहुंच गई दरवाजा खुला हुआ था दरवाजे पर सरिता को देखते ही संजय खुश हो गया और उसे अंदर आने के लिए बोला,,,, सरिता डरी सहमी सी कुर्सी के करीब जाकर खड़ी हो गई तो संजय ही उसे बोला)

घबराओ मत बैठ जाओ,,,,(संजय की बात सुनकर सरिता टेबल के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई संजय अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला) देखो सरिता मामला बहुत पेचीदा था लेकिन अब कोई घबराने की बात नहीं है सब कुछ सही हो चुका है अब तुम्हारे पति खतरे से एकदम बाहर है बस अब उनका इलाज ठीक से करवाना है और खाने पीने पर ध्यान देना है 15 दिन में एकदम सही हो जाएंगे,,,

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर साहब,,,

धन्यवाद मेरा नहीं भगवान का कर लो मैं तो सिर्फ अपना फर्ज निभाता हूं बाकी सब मर्जी भगवान की होती है और हां सरिता तुम्हारा कुल मिलाकर ऑपरेशन का खर्चा ₹120000 हुआ है अगर जुगाड़ हो चुका हो तो भर दो आगे भी दो-तीन दिन तक तुम्हारे पति को हॉस्पिटल में ही रहना होगा उसका खर्चा अलग से,,,,।

(इतना सुनते ही सरिता एकदम से घबरा गई इतना पैसा वह कहां से लाएगी यह सोचकर ही उसके पसीने छूटने लगे वह रोने जैसी हो गई उसकी आंखों में आंसू भर आए एकदम निराश हो गई उसके घर वाले भी इतने पैसे वाले नहीं थे की मदद कर सकते वह निराश हो चुकी थी उसके सामने कोई रास्ता नहीं था,, वो रोने लगी उसे रोता हुआ देखकर तुरंत संजय अपनी कुर्सी पर से खड़ा हुआ है और सबसे पहले जाकर दरवाजे को बंद कर दिया,,,, दरवाजे के बंद होने की आवाज कानों में पड़ते ही सरिता का बदन एक अनजान डर से थरथर करके कांपने लगा.. और संजय मौके का फायदा उठाते हुए तुरंत उसके ठीक पीछे कुर्सी के करीब खड़ा होकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला,,,)

डरने की कोई बात नहीं है सरिता अगर पैसों का जुगाड़ नहीं हो पाया हो फिर भी बोल सकती हो तुम्हारे पति का इलाज चलता रहेगा जब तक कि वह बिल्कुल ठीक नहीं हो जाते,,,, लेकिन इसके बदले में तुम्हें मेरी बात माननी होगी,,,


कककक,,,, कैसी बात,,,,,(सरिता संजय की हरकत की वजह से घबराहट भरे स्वर में बोली,,,, उसके बदन की थरथराहट संजय को अपनी हथेली में साफ महसूस हो रही थी सरिता के हाव भाव को देखकर संजय समझ गया कि वह बेहद भोली भाली और एकदम सीधी औरत थी,,,, ओर यह देखकर संजय के होठों पर कामुक मुस्कान तैरने लगी क्योंकि उसकी जिंदगी में इतनी सीधी साधी भोली भाली औरत पहली बार आई थी जिसके साथ वह संभोग करने के लिए व्याकुल होने लगा था,,,)

तुम्हें ज्यादा कुछ नहीं करना है सरिता,,,,(इतना कहने के साथ ही संजय उसके कंधे पर के पल्लू को पकड़कर नीचे की तरफ गिरा दिया और जैसे ही पल्लू उसके कंधे से सरक कर नीचे गिरा उसकी भारी भरकम दूध से भरी हुई छातियां एकदम उजागर हो गई जो कि ब्लाउज में अच्छी तरह से समा नहीं पा रही थी और ब्लाउज का बटन तोडकर बाहर आने के व्याकुल हो रही थी,,,, संजय उसकी बड़ी बड़ी चूचियों के बीच की गहरी लकीर को देखकर एकदम वासना से भर गया उसकी आंखों में खुमारी छाने लगी,,, और सरिता एकदम से शर्मा गई गांव की औरत होने की वजह से वह एकदम से शर्म से गढ़ी जा रही थी अपने बदन को समेटे हुए छुपाने की कोशिश कर रही थी लेकिन संजय शायद जानता था कि उसके आगे समर्पण के सिवा दूसरा कोई रास्ता नहीं है इसलिए अपने दोनों हाथ को कंधों से नीचे की तरफ ले जाकर ब्लाउज के ऊपर से उसकी दोनों चूचियों को अपनी हथेली में भरकर दबाते हुए बोला,,,)
सरिता तुम चाहो तो सब कुछ हो सकता है तुम अपने पति का इलाज आगे भी जारी रख सकती हो जब तक कि वह ठीक नहीं हो जाते।(उत्तेजना वश संजयसरिता की दोनों चूचियों को क्लाउज के ऊपर से इतनी जोर से दबा रहा था कि ना चाहते हुए भी सरिता के मुंह से आह निकल गई,,,) मैं तुमसे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा मैं बस इतना पूछना चाहता हूं कि क्या तुम चाहती हो कि तुम्हारे पति का इलाज आगे भी अच्छी तरह से जारी रहें ताकि बहुत ही जल्दी तुम्हारे पति ठीक हो कर घर जा सके,,,,

(संजय की बातें सुनकर सरिता कुछ बोल नहीं पा रही थी,, उसकी हालत खराब होती जा रही थी वह शर्म से गाड़ी जा रही थी जिंदगी में पहली बार किसी गैर मर्द ने उसके दोनों स्तनों को अपनी हथेली में भरकर दबाया था,,, सरिता का तन बदन उसके बस में बिल्कुल भी नहीं था उसे तो समझ में नहीं आ रहा था कि डॉक्टर की इस हरकत पर कैसे भाव प्रकट करें,, डॉक्टर की दोनों हथेलियां ताकत से भरी हुई थी इस बात का एहसास उसे बहुत जल्द हो गया था,,, चरित्रवान होने की वजह से संजय की कामुक हरकत पर सरिता का तन बदन उत्तेजना वाली हरकत बिल्कुल भी नहीं कर रहा था उसके दिमाग के साथ-साथ उसका बदन भी असमंजस में था कि डॉक्टर के इस तरह की कामुक हरकत के प्रतिभाव में वह कैसा भाव प्रकट करें उत्तेजित हो या क्रोध जता कर उसे दूर कर दे,,,लेकिन सरिता यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि हालात अब उसके बस में बिल्कुल भी नहीं थे 120000 का बिल उसके लिए भुगतान कर पाना बहुत बड़ी बात थी जिसका इंतजाम नामुमकिन था और आगे का इलाज यह सब सोचकर ही उसका दिमाग फटा जा रहा था,,,,सरिता की तरफ से किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया होती ना देख कर संजय अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)
सरिता क्या तुम नहीं चाहती कि तुम्हारे पति का इलाज अच्छी तरह से मुमकिन हो सके,,,,(संजय शायद समझ चुका था कि उसका तीर ठीक निशाने पर लगा है उसकी बात मानने के सिवा सरिता के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था इस बात का अंदाजा लगते ही वह अपनी बात कहते हैं अपने हाथों से उसके ब्लाउज के बटन खोलने लगा क्योंकि वह अपने हाथ में आए इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था सरिता की खूबसूरत दोनों गोलाईयों को अपनी आंखों से नजर भर कर देखना चाहता था,,,,सरिता को इस बात का अहसास था कि डॉक्टर उसके ब्लाउज का बटन अपने हाथों से खोल रहा है यह उसके लिए शर्म से मर जाने वाली बात थी,, लेकिन इस समय वह कुछ भी कर सकने की स्थिति में नहीं थी सवाल उसके पति के सेहत का था उसके इलाज का था जिसका भुगतान कर पाना शायद उसके बस में बिल्कुल भी नहीं था उसके बस में था तो बस डॉक्टर की बात मान लेना,,,, और उसकी बात मान लेने पर उसके पति का इलाज बेहतरीन तरीके से संभव था,,, वह अपने आप को संजय सिंह की बात माल लेने के लिए तैयार कर रही थी और उसकी हामी आती इससे पहले ही संजय उसके ब्लाउज के सारे बटन खोल चुका था,,, संजय सिंह की आंखों में वासना की चमक साफ नजर आने लगी जब उसकी नजर लाल रंग की ब्रा में छुपे हुए दोनों चूचियों पर गई दोनों चूचियां ऐसी लग रही थी मानो सीपी में छुपी हुई मोती,, जिनको पाने के लिए उसकी कीमत अदा कर पाना शायद किसी के बस में नहीं था क्योंकि दोनों चुचियां अनमोल थी,, जीन्हे पाना शायद किस्मत की बात थी,,, लेकिन शायद सरिता की किस्मत खराब थी जो संजय सिंह उसे किस्मत से नहीं बल्कि उसकी मजबूरी का फायदा उठा कर प्राप्त कर रहा था,,, सरिता का प्रति भाव जाने बिना ही संजय अपनी दोनों हथेलियों को सरिता की चुचियों के नीचे की तरफ लाकर उसकी लाल रंग की ब्रा को पकड़कर ऊपर की तरफ खींच दिया और उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां फुटबॉल की तरह उछल कर बाहर आ गई,,,। यह देख कर संजय के मुंह में पानी आ गया ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी आंखों के सामने बेहतरीन किस्म के दो दशहरी आम थाली में सजाकर रखे गए हो और जिस पर सिर्फ संजय का हक है,,, सरिता चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी,,, डॉक्टर उसे पल पल वस्त्र विहीन करता जा रहा था,,, लेकिन वह खामोश थी एकदम शांत थी खामोश थी सिर्फ और सिर्फ अपने पति के लिए क्योंकि जब नर्स उसे डॉक्टर के केबिन में जाने के लिए बोली थी तो वह कुर्सी से उठने के बाद अपने पति की तरफ नजर डाली थी और उसका पति अपनी बीवी को देखकर मुस्कुरा दिया था और सरिता अपने पति के चेहरे पर आई मुस्कुराहट को खोना नहीं चाहती थी क्योंकि इतनी तकलीफ में भी उसे देखकर वह मुस्कुरा रहा था उसकी मुस्कुराहट जीने देना सरिता के बस में बिल्कुल भी नहीं था उसके सामने बस अब डॉक्टर की बात मान लेने के सिवा कोई चारा नहीं था,,, संजय की सांसे ऊपर नीचे हुई जा रही थी,,,, सरिता की चुचियों को देखकर संजय को समझते देर नहीं लगी थी की खूबसूरती अमीरी या गरीबी देखकर नहीं मिलती,,, वह तो भगवान का तोहफा होता है किसी को भी मिल सकता है जैसा कि सामान्य परिवार से आने वाली सरिता को भगवान ने खूबसूरती दोनों हाथों से बटोर कर उसकी झोली में डाल दिया था और उसी झोली में से संजय अपने हिस्से की खुशियां लूटना चाहता था,,,। और यह हिस्सा भी उसने जबर्दस्ती का बनाया हुआ था,,,,,, सरिता मजबूर होकर हां कहना चाहती थी लेकिन हां कहने में भी उसे बेहद शर्म महसूस हो रही थी और संजय उसके जवाब का इंतजार किए बिना ही उसकी सूची के बीचो बीच की खूबसूरती बढ़ाते हुए उसके निप्पल जो कि एकदम किसमिस के दाने की तरह नजर आ रहे थे उसे संजय सिंह अपने दोनों हाथों की उंगलिययों का उपयोग करके उसे ंसलना शुरू कर दिया,,,,, और इस बार सरिता के मुंह से हल्की सी सिसकारी की आवाज फूट पड़ी,,,।

सससहहहहहहहह,,,,।
(यह सिसकारी की आवाज सरिता के मुंह से उत्तेजना बस निकली थी आखिरकार वह भी एक औरत थी तब तक एक पराए मर्द की कामुक हरकतों की वजह से अपने आपको दवाई रह सकती थी,,,, आखिरकार बदन उसके दिमाग का साथ छोड़ रहा था,,, सरिता के मुंह से निकली गरमा-गरम सिसकारी की आवाज उसकी तरफ से पूर्ण समर्पण का एहसास दिला रहा था जिससे संजय बेहद खुश था,,,, देखते ही देखते संजय उसके खूबसूरत गर्दन पर अपने होंठ रख कर उस पर चुंबन लेना शुरू कर दिया साथ ही अपनी नाक से गरमा गरम सांस को उसके गर्दन पर छोड़ने लगा जिससे सरिता ना चाहते हुए भी मदहोशी का एहसास करने लगी,,,, उसका बदन कसमसाने लगा और संजय लगातार उसके निप्पल को मसलता रहा,,,, औरतों को उत्तेजित करने की कला संजय सिंह अच्छी तरह से जानता था संजय उसके कान के बाली पर अपनी जीभ निकालकर उसे चाटना शुरू कर दिया,,, वैसे भी कान के पीछे वाले भाग पर मर्दों के द्वारा उत्तेजित अवस्था में चुंबन लेने पर औरत एकदम काम भावना से ग्रस्त हो जाती है और यही सरिता के साथ हो रहा था,,,, संजय अच्छी तरह से जानता था कि सरिता अपने आप को उसके आगे समर्पित कर दे रही है वरना वह उसे ब्लाउज का बटन खोलने नहीं देती,,,,लेकिन एक बार फिर से सरिता के मन में क्या चल रहा है यह जानने के लिए वह धीरे से उसके कान में बोला,,,।

क्या कहती हो सरिता अपने पति का इलाज जारी रखना चाहती हो या यहीं पर रोक देना चाहती हो,,,

जजजज,,, जारी रखना चाहती हूं,,,,(सरिता कांपते स्वर में बोली,,,, और संजय यह सुनकर एकदम खुश हो गया,,,)

डेट्स गुड गर्ल,,,, यह हुई ना बात,,,,,(इतना कहने के साथ ही संजय उसकी बांह पकड़ कर उसे खड़ी करने लगा और सरिता कुर्सी से उठकर खड़ी हो गई,,,, संजय ठीक उसके सामने खड़े होकर उसकी खूबसूरती को देख रहा था खूबसूरत चेहरा एकदम गोरा लाल लाल होंठ कजरारी आंखें और छातीयो की शोभा बढ़ाती उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां जिसे दबा दबा कर संजय सिंह ने टमाटर की तरह लाल कर दिया था,,, सरिता की लाल लाल दशहरी आम को देखकर उसे मुंह में लेकर चूसने की लालच को संजय दबा नहीं पाया और तुरंत अपना मुंह उसकी चूची पर रख कर उसकी कैडबरी जैसी चॉकलेटी निप्पल को अपने मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया,,,, शर्म और उत्तेजना का असर सरिता के खूबसूरत संस्कारी चेहरे और मन दोनों पर अजीब सी हलचल मचा रहा था,,,, आखिरकार एक औरत होने के नाते संजय जैसे एक बड़े डॉक्टर और उसके मर्दाना ताकत भरे हाथों का असर उसके तन बदन पर हो रहा था लेकिन वह अजीब सी कशमकश में थी,,,, वह अगर मजा लेना चाहती तो उसके पति से उसकी तरफ से दगा होता,,, लेकिन हालात के हाथों मजबूर थी वह यह सब करना नहीं चाहती थी लेकिन मजबूरी बस सब कुछ अपने आप होता चला जा रहा था संजय बारी-बारी से उसकी दोनों चूचियों का स्वाद ले रहा था,,,, सरिता शर्म के मारे अपनी आंखों को बंद कर चुकी थी उसे यह शर्मनाक नजारा देखा नहीं जा रहा था वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि वह किसी पराए मर्द को इस तरह से अपने बदन को हाथ लगाने देगी,,,,,,, लेकिन कर भी क्या सकती थी,,,, ना चाहते हुए भी संजय की कामुक हरकतों की वजह से उसके बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी और देखते ही देखते उसके मुंह से गर्म सिसकारी की आवाज आने लगी,,,उत्तेजना के मारे उसका पूरा बदन कहां पड़ा था उसे इस बात का डर था कि कहीं वह चक्कर खाकर गिर ना जाए इसलिए वह अपना दोनों हाथ संजय के कंधों पर रखकर उसके कंधे का सहारा ले ली थी और संजय उसके समर्पण की भावना को अच्छी तरह से समझ रहा था संजय ज्यादा देर नहीं लगाना चाहता था क्योंकि कोई भी आ सकता था,,, यह लंच का समय का इसलिए उसे कोई डिस्टर्ब नहीं कर रहा था अभी भी उसके पास 10 मिनट का समय था,,,,पेंट के अंदर उसका लंड पूरी तरह से खडा हो चुका था,,,, अब देर करना उचित नहीं था,,,, अब संजय ना तो उसे कुछ समझा रहा था और ना ही सरिता कुछ समझने के लिए तैयार थी वह तो समय की बहाव में बहती चली जा रही थी,,,, देखते ही देखते संजय अपनी स्थिति को पूरी तरह से बदल लिया सरिता नहीं जानती थी कि संजय क्या करने वाला है वह इतना चाहती थी कि वह उस की चुदाई करेगा लेकिन कैसे करेगा यह हुआ बिल्कुल भी नहीं जानती थी,,,, देखते ही देखते संजय उसे टेबल की तरफ मुंह करके खड़ी कर दिया और पीछे खड़ा होकर उसकी साड़ी को उठाना शुरू कर दिया यह पल सरिता के लिए बेहद शर्मनाक था शर्म से गड़ जाने वाली बात थी उसके लिए लेकिन कुछ भी उसके हाथों में नहीं था देखते ही देखते संजय उसकी साड़ी को कमर तक उठा दिया और उसका जबरदस्त भरावदार पिछवाड़ा नजर आने लगा जिस पर अभी भी काली रंग की चड्डी चढ़ी हुई थी,,,,सरिता शर्म के मारे अपनी नजर पीछे करके देख भी नहीं रही थी वह अपनी आंखों को बंद कर ली थी इस शर्मनाक पल कि वह एकलौती गवाह थी,,,लेकिन उसने भी अपनी आंखों को बंद करके इस शर्मनाक हरकत को होने दे रही थी,,,,सरिता को अभी भी यह सब एक सपना जैसा लग रहा था क्योंकि वह सपने में भी नहीं सोची थी कि इतने बड़े हॉस्पिटल का मालिक इतना बड़ा डॉक्टर इतनी गंदी हरकत करेगा,,,, उसे साफ महसूस हो रहा था कि संजय उसके चिकनी मांसल कमर को अपनी हथेली से सहला रहा था,,, सरिता को अच्छी तरह से समझ में आ रहा था कि डॉक्टर बहुत शातिर है औरतों के साथ किस तरह से काम लिया जाता है यह उसे अच्छी तरह से मालूम था तभी तो वह ना चाहते हुए भी मदहोश होने लगी थी,,, तभी उसके बदन में कपकपी सी छा गई जब संजय दोनों हाथों से उसकी काली रंग की चड्डी को पकड़कर उतारना शुरू कर दिया,,,, सरिता जानती थी कि एक ही पल में संजय उसे एकदम नंगी कर देगा और ऐसा हुआ भी संजय तुरंत उसकी चिकनी मांसल टांगो से होती हुई उसकी काली रंग की चड्डी को उतारकर वही डेस्क पर रख दिया,,,, इस बार हिम्मत करके सरिता अपनी नजर पीछे की तरफ करके संजय की तरफ देखी उसकी आंखों में उसकी गोरी गोरी बड़ी-बड़ी गांड को देख कर उसे पाने की लालच साफ नजर आ रही थी,,, उसकी आंखों की लालच को देखकर सरिता को खुद शर्म आ गई और वापस अपनी नजर घुमा ली,,,,,, लेकिन अपनी पोजीशन अपने होदेकी शर्म संजय की आंखों में बिल्कुल नजर नहीं आ रही थी बल्कि अपनी पोजीशन का गलत फायदा उठाना कैसे आता है यह उसकी आंखों में साफ नजर आ रहा था,,, संजय सरिता की मदमस्त गोरी गोरी गांड को देखकर एकदम पागल हो गया था,,, समय का अभाव था वरना सरीता के खूबसूरत जिस्म से वह जी भर कर खेलता,,,, उत्तेजना बस संजय उसकी बड़ी-बड़ी गांड पर दो चार चपत लगा दिया,,,, और सरिता के मुंह से आहह के सिवा और कुछ नहीं निकला,,,,, देखते ही देखते संजय अपने पेंट की बेल्ट और बटन खोल कर अंडरवियर सहित उसे घुटनों तक खींचकर सरका दिया,,,उसका मोटा तगड़ा मर्दाना ताकत से भरा हुआ लंड हवा में गोते खाने लगा,,,

सरिता का संपूर्ण वजूद थरथर कांप रहा था,,, उसके साथ डॉक्टर क्या करने वाला है यह उसे अच्छी तरह से मालूम था,,,, और देखते ही देखते संजय अपना एक हाथ सरिता की पीठ पर रखकर उसे दबाव देते हुए और थोड़ा झुक जाने का इशारा किया और देखते ही देखते सरिता अपनी बड़ी बड़ी चूची यों को झूला ते हुए डेस्क पर झुक गई,,, अब संजय के लिए सरिता की बुर तक पहुंच पाना एकदम आसान हो चुका था,,, बड़ी-बड़ी उभार दार गांड होने की वजह से उसकी बुर की गुलाबी पत्तियां गांड की गहरी दरार के अंदर छिपी हुई थी जिसे खोजने में संजय को ज्यादा वक्त नहीं लगा,,, और अगले ही पल संजय अपनी मोटे तगड़े लंड के सुपाड़े को उसकी गुलाबी बुर की गुलाबी पत्तियों के बीच रखकर हल्के से धक्का लगाया,,, सरिता भले यह सब करना नहीं चाहती थी लेकिन संजय की हरकतों की वजह से वह भी उत्तेजित हो चुकी थी और उसके बदन की गर्मी सहित बनकर उसकी गुलाबी बुर की गुलाबी पत्तियों से टपक रही थी जिसकी चिकनाहट पाकर संजय का मोटा लंड आराम से अपने लक्ष्य को भेदने के लिए अपने निशाने पर आगे बढ़ने लगा,,, संजय का आधा लंड सरिता की बुर में घुस गया था और इतने से ही सरिता को एहसास हो गया था कि,,संजय का लंड काफी मोटा और तगड़ा है तभी तो जैसे जैसे उसका लंड बुर के अंदर घुस रहा था वैसे वैसे सरिता के चेहरे का भाव बदलता जा रहा था,,, संजय की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी इस बार सरिता की कमर को थाम कर एक जोरदार धक्का लगाया और संजय का लंड बुर के अंदरूनी अड़चनों को दूर करता हुआ सीधे जाकर उसके बच्चेदानी से टकरा गया,,, पर इस बार सरिता अपने आप को रोक नहीं पाई और उसके मुंह से दर्द से भरी हुई चीख की आवाज निकल गई,,,।

आहहहहहहह,,,,,, डॉक्टर साहब,,,आहहहहहह,,,, बहुत दर्द कर रहा है प्लीज निकाल लीजिए,,,,,आहहहहहहह,,, मुझे बहुत दर्द कर रहा है,,,,,
( सरिता की दर्द भरी आवाज सुनकर संजय समझ गया कि उसकी तुलना में उसके पति का लंड बहुत ही मामूली किस्म का होगा तभी सरिता को दर्द हो रहा है,,, इसलिए वह सरिता को समझाते हुए बोला,,)

बस बस हो गया सरिता आधे से ज्यादा काम हो चुका है,,, मेरा लंड तुम्हारी बुर की गहराई में पूरा का पूरा घुस चुका है,,, अब थोड़ी देर में तुम्हें भी मजा आने लगेगा,,,


नहीं नहीं डॉक्टर साहब मुझे नहीं लगता कि मैं झेल पाऊंगी प्लीज निकाल लीजिए मुझे बहुत दर्द कर रहा है,,,,(सरिता उसी तरह से डेस्क पर झुकी हुई बोली,,,)

तो बिल्कुल भी मत घबराओ सरिता सब कुछ ठीक हो जाएगा बस थोड़ा समय दो,,,,( इतना कहते हुए संजय हल्के हल्के धक्के लगाता हुआ अपने लंड को सरिता कि बुर में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया था पर थोड़ी ही देर बाद संजय की कही बात और सरिता का धैर्य आनंद में बदलने लगा सरिता के मुंह से आने वाली दर्द से भरी कराहने की आवाज अब गरम सिसकारी में बदलने लगी थी,,, जो कि बड़ी मुश्किल से वह अपने अंदर समेटे हुए थी,,, लेकिन संजय के मर्दाना ताकत के आगे वह लाचार हो चुकी थी कुछ भी उसके बस में नहीं था और देखते ही देखते उसके मुंह से गर्म सिसकारी की आवाज फूटने लगी,,, इसमें कोई दो राय नहीं थी कि सरिता को संजय सिंह के लंड से चोदने में मजा नहीं आ रहा है,,, सरिता को बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी और ऐसा आनंद उसने कभी अपनी जिंदगी में कभी नहीं प्राप्त की थी,,,, चुदाई का असली सुख उसे आज डॉक्टर के केबिन में प्राप्त हो रहा था,,,,,, संजय एकदम से कामोत्तेजना से भर गया जब सरिता की तरफ से जवाबी कार्रवाई में उसे महसूस हुआ कि सरिता अपनी कार को पीछे की तरफ ठेल रही है,,,,अब संजय के लिए रोक पाना बेहद मुश्किल हो रहा था और वह अपनी रफ्तार को बढ़ा दिया देखते ही देखते उसका लंड सरिता की बुर में इंजन की तरह चलना शुरू हो गया सरिता एकदम आनंद से भाव विभोर हुए जा रही थी,,,, उसे अभी भी यह सब कल्पना और सपना की तरह लग रहा था क्योंकि जिंदगी में उसने इस तरह की सुख की कभी भी कामना नहीं की थी जिस तरह का सुख उसे डॉक्टर दे रहा था,,,,, देखते ही देखते सरिता की सांसे तेज चलने लगी संजय समझ गया कि वह एकदम चरम सुख के करीब पहुंच चुकी है इसलिए अपना दोनों हाथ आगे बढ़ाकर उसके दोनों झूलते हुए दशहरी आम को पकड़ लिया और उसे दबाते हुए अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया,,,, आखिरकार सरिता का मदन रस का लावा फूट पड़ा और थोड़ी ही देर में संजय सिंह की गर्मी भी सरिता की बुर में पिघलने लगी और वह निढाल होकर सरिता के ऊपर ही गिर गया,,,,।

सरिता मस्त हो चुकी थी अनजाने में मिलेगी इस सुख को वो जिंदगी भर नहीं भुलने वाली थी भले ही मजबूरी में सही जीवन में असली संभोग सुख को प्राप्त कर चुकी थी,,,, डेस्क पर पड़ी अपनी काली रंग की चड्डी को उठाकर का डॉक्टर से नजर बचाकर पहन ली लेकिन डॉक्टर उसे देख ही रहा था,, सरिता की यह नजाकत भरी हरकत डॉक्टर के मन में गड़ गई,,,, सरिता जाने को हुई तो वह बोला,,,।


सरिता तुमने मुझे खुश कर दिया लेकिन अभी तुमसे संपूर्ण सुख प्राप्त करना बाकी रह गया है,,,, रात को तुम्हें मेरे पास एक बार फिर आना होगा और तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो तुम्हारे पति का ट्रीटमेंट बिल्कुल फ्री होगा,,,,

आना कहां है,,? (सरिता एकदम नजाकत भरे स्वर में बोली।)

यही ऊपर ही मैं अपने आराम करने के लिए कमरा बनवाया हु,,,, रात को 10:00 बजे के बाद चली आना,,,।

इतना सुनकर सरिता केबिन से बाहर निकल गई और संजय उसकी भारी-भरकम मदमस्त गांड को देखता रह गया,,,
Mast story...
 

Alka Sharma

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संजय सिंह जब अपने घर पहुंचा तो रात के 10:00 बज रहे थे,,,,, शगुन और सोनू दोनों खाना खाकर अपने अपने कमरे में जा चुके थे,,,, संध्या डाइनिंग टेबल पर खाना परोसने लगी,,, वह खाना खा चुकी थी क्योंकि पहले से ही उसकी आदत थी कि समय होते ही वह खाना खा लेती थी क्योंकि संजय का कोई ठिकाना नहीं रहता था कि वह कब वापस लौट आएगा इसलिए इंतजार करके कोई मतलब नहीं था,,,,, संध्या नाइट गाउन पहने हुए थी ,,,संजय फ्रेश होने के बाद तुरंत डाइनिंग टेबल पर आया और खाना खाने लगा,, साथ में जो वह बुक लाया था वह टेबल पर रख दिया था,,,, वह अपने हाथों से शगुन को वह बुक देना चाहता था इसलिए वह संध्या से बोला,,,।

संध्या तुम अपने कमरे में जाकर आराम करो मैं थोड़ी देर में आता हूं,,,

ठीक है मैं जा रही हूं मुझे भी नींद आ रही है,,,(इतना कहकर संध्या कुर्सी पर से उठी और सीढ़ियां चढ़कर अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,,खाना खाते खाते संजय की नजर सीढीया पर चढ रही संध्या पर पड़ी तो वह संध्या की मटकती हुई गांड को देखकर एक दम मस्त हो गया,,, एकदम बड़ी-बड़ी गांड की दोनों टांगों के बीच की गहराई में उसका नाइट गाउन फंसा हुआ था,,, उसे देखकर संजय का लंड एक बार फिर से खड़ा होने लगा,,, सीढ़ियों पर अपने कदम उठाकर रखते हुए उसके नितंबों का घेराव कुछ ज्यादा ही बाहर की तरफ निकल जा रहा था जिसे देखकर संजय की हालत खराब होती जा रही थी ऐसा नहीं था कि वह पहले इस तरह का नजारा ना देखा हो लेकिन इस समय उसके तन बदन में अजीब सी हलचल मची हुई थी और वह भी अपनी ही बेटी सगुन को लेकर,,,,,, जब जब उसके जेहन में शगुन को लेकर कोई भी ख्याल आता था तो उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ ने लगती थी खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच उसके लटकते हुए हथियार के अंदर,,,,, अपने बदन में अपनी बेटी को लेकर इस तरह के आए बदलाव को देखकर वह दंग रह जाता था और अपने आप से ग्लानी भी करता था,,, उसे अपने आप पर गुस्सा भी आता था कुछ देर के लिए अपने मन को एकदम शांत कर लेता था लेकिन फिर वही हाल हो जाता था,,,किसी जवान लड़की जो कि उसकी बेटी की हम उम्र हो उसे देखते ही उसके जीवन में एक बार फिर से शगुन की ही छवि उमडने लगती थी लाख कोशिश करने के बाद भी वह अपना नजरिया बदल नहीं पा रहा था,,,,, लेकिन एक बात को अपने अंदर जरूर महसूस करता था कि जब जब वह सब उनके बारे में सोचता था तोउसका लंड खड़ा होकर इतना जबरदस्त टाइट हो जाता था कि वैसा कभी भी नहीं हो पाता था,,,,

संध्या अपने कमरे में जा चुकी थी और संजय खाना खा चुका था,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था टेबल पर रखी बुक जो कि मेडिकल से संबंधित थे उसे उठाकर शगुन के कमरे की तरफ जाने लगा,,, वह अपने मन में यही सोच रहा था कि इस समय अपनी बेटी के कमरे में जाना उचित होगा या नहीं,,, ना जाने वह क्या कर रही होगी पढ़ रही होगी या सो रही होगी इस बारे में वह बिल्कुल भी नहीं जानता था,,,,,,, वह अपने मन में यह सोच रहा था कि वह इस बुक को तो सुबह भी दे सकता है जरूरी तो नहीं कि इतनी रात को वहां अपनी बेटी के कमरे में जाकर अब्बू कर दे उसकी बेटी क्या समझेगी यह सब ख्यालात उसके मन में आ रहे थे और वह अपनी बेटी के कमरे में इस समय नहीं जाना चाहता था लेकिन,,, बार-बार शगुन का खूबसूरत जवान जिसमें उसकी आंखों के सामने नाच उठता था जिसके आकर्षण में वह पूरी तरह से मस्त होकर अपने कदमों को उसके कमरे के अंदर तक जाने के लिए रोक नहीं पा रहा था,,,और वैसे भी जिस तरह से आज वह अपने ऑफिस के अंदर अपनी ही बेटी के हम उम्र रूबी के मदमस्त यौवन का रसपान किया था उसे याद करके उसके तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,, यह सब सोचकर उसके पैंट में तंबू सा बन चुका था,,,, और वह धीरे-धीरे अपनी बेटी के कमरे के दरवाजे तक पहुंच गया,,,
दरवाजे के नीचे से हल्की हल्की रोशनी बाहर की तरफ आ रही थी जिसका मतलब साफ था कि अभी सगुन जाग रही है यह सोच कर संजय के चेहरे पर मुस्कान आ गई,,,, दरवाजा खुला हुआ था इसका एहसास उसे हो गया अब तो वह कमरे में जाने के लिए मचलने लगा क्योंकि वह जानता था कि जवान लड़कियां अपने कमरे में अस्त-व्यस्त हालत में रहती हैं छोटे कपड़ों में तो कभी बिना कपड़ों में,,, यही सोचकर उसका दिल जोर से धड़कने लगा वह अब पूरी तरह से बिना पूछे बिना दरवाजे पर दस्तक दी में दबे पांव कमरे में जाने के लिए तैयार था,,, संजय अपने मन में यह सोच रहा था कि ना जाने उसकी बेटी शगुन कमरे में किस हालत में होगी और वह अपने मन में यही सोच रहा था कि काश शगुन अपने बिस्तर पर बिना कपड़ों के हो एकदम नंगी हो और वह उसके खूबसूरत जवान बदन को अपनी आंखों से देख सके,,,
और धड़कते दिल के साथ वह अपना हाथ आगे बढ़ा कर दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया और दरवाजा अपने आप ही खुलता चला गया,,,, दरवाजे के खुलते ही संजय अपनी नजरों को कमरे के अंदर तक घुमाने लगा ट्यूबलाइट की सफेद रोशनी में पूरा कमरा जगमग आ रहा था ,,,, शगुन बिस्तर पर अस्त-व्यस्त हालत में तो नहीं लेकिन बिस्तर अस्त-व्यस्त हालत में था,,, बुक इधर-उधर बिखरे पड़े हुए थे,,, शगुन बिस्तर पर नहीं थी यह देखकर संजय थोड़ा सा हैरान हो गया और वह दबे पांव कमरे में दाखिल हो गया कि तभी उसे जो आवाज उसके कानों में सुनाई दी उसे सुनकर वह पूरी तरह से मदहोश हो गया उसे तसल्ली करने में बिल्कुल भी समय नहीं लगा कि वह आवाज जो उसके कानों में पढ़ रही है वह किस चीज से आ रही है,,,, उस मधुर आवाज को सुनकर संजय का दिल जोरो से धड़कने लगा उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी क्योंकि वह आवाज ही इतनी मादक और मदहोश कर देने वाली थी कीसंजय की जगह अगर और कोई भी होता तो उस का भी यही हाल होता । वह सु मधुर मादक आवाज़ बाथरूम में से आ रही थी और वह भी वह मधुर संगीत किसी और चीज से नहीं बल्कि शगुन की मदमस्त अनछुई रसीली बुर से आ रही थी,,,, संजय को इस बात का पता चल गया था कि बाथरूम में उसकी बेटी शगुन मुत रही थी,,, और इस बात का एहसास पलक झपकते ही उसके लंड को पूरी तरह से खड़ा कर गया उसके पैंट में अच्छा-खासा तंबू बन चुका था,,,, लगातार बाथरूम के अंदर से आ रही बुर से सीटी की आवाज किसी बांसुरी की मधुर संगीत की तरह संजय को अपने आकर्षण में बांधती चली जा रही थी,,,। संजय अपने मन में सोच रहा था कि उसकी बेटी शगुन कितना मुत रही हैं,,,,, वह अपने मन में कल्पना करने लगा कि कैसे उसकी बेटी अपना पजामा उतार कर और साथ में अपनी पेंटिं उतार कर और बाथरूम में बैठकर कैसे मुत रही होगी,,, इस तरह की कल्पना उसको पूरी तरह से मस्त कर दे रही थी अपनी बेटी के बारे में कल्पना करते हुए वह पैंट के ऊपर से ही अपने खड़े लंड को दबाने लगा,,,,संजय मदहोश होकर अपनी आंखों को बंद कर चुका था और अपनी बेटी के ख्यालों में पूरी तरह से खो चुका था,,,, इतना खो चुका था कि उसे इस बात का पता भी नहीं चला कि,,, शगुन पेशाब कर चुकी है और वह किसी भी वक्त बाथरूम से बाहर आ सकती है,,,, और ऐसा ही हुआ शकुन पेशाब कर चुकी थी और वह तुरंत बाथरूम का दरवाजा खोलकर जैसे ही बाहर अपने कदम रखी वैसे ही उसकी नजर अपने पापा पर चली गई जोकी बाथरूम के एकदम बगल में खड़े होकर कुछ सोच रहे थे ,,,सगुन को ऐसा ही लगा लेकिन जैसे ही उसकी नजर अपने पापा के हाथ पर पड़ी तो वह दंग रह गई क्योंकि उसके पापा का हाथ उसके लंड पर था जो कि वहां पेंट के ऊपर से ही पकड़े हुए था यह देखकर वह पूरी तरह से हैरान हो गए और वह एकाएक बोल पड़ी,,,।

ओहहह पापा आप,,,,(इतना सुनते ही संजय हड़बड़ाहट में अपनी आंख खोलकर जैसे ही बाथरूम की तरफ देखा तो उसकी बेटी शगुन खड़ी थी और वह भी कमर के नीचे एक पेंटी के सिवा उसने कुछ नहीं पहन रखी थी,,, अपनी बेटी का गोरा बदन और उसकी मोटी मोटी सूट और जांघों को देखकर संजय की आंखों में एकदम से चमक आ गई और वह हैरानी से अपनी बेटी के कमर के नीचे अर्ध नग्न बदन को देखते हुए बोला,,,।

सगुन,,,,,,,(वह इतना ही बोल पाया था कि शगुन तुरंत अपनी कमर के नीचे की तरफ देखी तो हुआ एकदम से हड़बड़ा कर अपने नंगे पन को छुपाने के लिए तुरंत बाथरूम में घुस गई और बाथरूम का दरवाजा फटाक से बंद कर दी,,,,बाथरूम के अंदर उसका बुरा हाल था उसकी सबसे बड़ी तेजी से चल रही थी क्योंकि उसकी नजरों ने जो कुछ भी देखी थी वह उसके सोचकर बिल्कुल भी विरुद्ध था क्योंकि वह कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि उस समय उसके पापा उसके कमरे में आएंगे क्योंकि आज तक ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ था और वह जिस हालत में बाथरूम के बाहर कदम रखकर अपने पापा की स्थिति को देखी थी उस से वह काफी हैरान थी,,,, वह समझ गई थी कि उसके पापा को चलो इस बात का एहसास हो गया होगा कि वह बाथरूम के अंदर है और पेशाब कर रही हैं,,,क्योंकि बाथरूम के चारदीवारी के अंदर बैठकर पेशाब करके वह दुनिया की नजरों से तो बच सकती थी और अपने पापा के नजरों से भी लेकिन दूर से आ रही गजब की सीटी की आवाज को वह बाथरूम के चारदीवारी से बाहर जाने से भला कैसे रोक पाती और उसे इस बात का एहसास हो चुका था कि उसके पेशाब करते समय निकलने वाली सीटी की आवाज और उसके पापा के कानों में पहुंच चुकी थी तभी तो उसके पापा एकदम मस्त होकर अपना लंड पकड़े हुए खड़े थे,,, इस बात का ख्याल शगुन को आते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी,,, बस इस बात का भी अच्छी तरह से पता था कि उसके कमर के नीचे के नंगे बदन पर उसके पापा की नजर पड़ गई थी वह थोड़ी घबराई हुई थी लेकिन जिस तरह का हादसा उसके साथ हुआ था उसके तन बदन में मदहोशी की उमंग फैलने लगी थी जिसके चलते उसके होठों पर मुस्कान आ गई थी और वह तुरंत बाथरूम में टंगी अपने पजामे को उतार कर तुरंत पहन ली और बाथरूम से बाहर आ गई तब तक उसके पापा बिस्तर पर बैठ चुके थे,,,, शगुन के बाहर आते ही बात करने का कोई भी बहाना ना देख कर संजय बोल पड़ा।

शगुन तुमने जो फोन करके मुझसे बुक मंगाई थी वह मैं ले आया हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही संजय अपने हाथ में लिए हुए बुक को वहीं बिस्तर पर रख दिया,,, शगुन भी धीरे-धीरे खत्म बढ़ाते हुए अपने पापा के पास गई और बिस्तर पर रखी हुई बुक उठाकर उसे पन्ना पलट कर देखते हुए जब पूरी तरह से संतुष्ट हो गई कि उसके द्वारा मंगाई गई बुक वही है तो वह मुस्कुरा कर बोली,,,)

थैंक्स पापा यह वही बुक है जो में आपसे मंगाई थी,,,
(संजय की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह अपने बेटी से नजरें मिलाकर बात कर सके बंद कर उधर देखता हुआ बोला)

शगुन दरवाजा तो बंद कर लेना चाहिए था,,,,।

जी पापा शायद जल्दबाजी में दरवाजा लॉक करना भूल गई,,,।(इतना कहते हुए वह भी बिस्तर पर बैठ गई,,, और जैसे ही संजय की नजर उसकी छातियों पर पड़ी वह एक बार फिर से मदहोश होने लगा,,,, क्योंकि संजय को साफ दिखाई दे रहा था कि इसलिए विलेज पतली सी कमीज के अंदर उसकी बेटी में ब्रा नहीं पहनी हुई थी जिससे संतरे की तरह गोल गोल उसकी चूचियां पतले से कमीज के अंदर एकदम साफ साफ नजर आ रहे थे,,, और खास करके उसकी दोनों गोलाईयों का हल्का सा भाग भी नजर आ रहा था,,,, संजय का अप वहां बैठ पा ना बिल्कुल मुश्किल हुए जा रहा था,,,क्योंकि उसे इस बात का डर था कि उसकी बेटी की मदहोश कर देने वाली जवानी के आगे वह कहीं अपना आपा ना खोदे,,,, और इसलिए वह हड़बड़ाहट में बिस्तर पर से खड़ा हुआ और वहां से जाने लगा लेकिन वह यह बात भूल गया किउत्तेजना की वजह से उसके पेंट में अच्छा खासा तंबू सा बन गया है और वह जैसे ही खड़ा हुआ वह अपने तंबू को छिपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं किया वह पूरी तरह से भूल चुका था लेकिन सब उनकी नजर में उसके पेंट में बना तंबू पूरी कहां से आ चुका था और वह अपने पापा के पेंट में बने तंबू को देखती ही रह गई,,,

संजय बिना कुछ बोले शगुन के कमरे से बाहर जा चुका था और जाते-जाते एक बड़ा सा तूफान छोड़ गया था अपने अंदर भी और अपनी बेटी के अंदर भी,,,, शगुन को समझ में नहीं आ रहा था कि उसे क्या करना चाहिए लेकिन इस बात का एहसास हो से हो गया था कि उसके पापा उसे देखकर उत्तेजित हो चुके थे तभी तो उनके पेंट में अच्छा खासा तंबू बन गया था,,,, शगुन का दिल जोरों से धड़क रहा था उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि उसके कमरे से निकलकर उसके पापा अपने कमरे में जाकर उसकी मां की चुदाई जरूर करेंगे क्योंकि उनकी हालत देखकर यही लगता था कि वह पूरी तरह से उत्तेजित और चुदवासे हो चुके थे,,,, और यही देखने के लिए सगुन,,5 मिनट बाद अपने कमरे में से बाहर निकल गई और अपने पापा के कमरे की तरफ जाने लगी उसके मन में ना जाने क्यों इस तरह के ख्याल आ रहे थे कि उसके पापा जरूर उसकी मां को चोदेंगे और यह देखने के लिए उसका मन मचल रहा था,,, और वह थोड़ी ही देर मेंअपने पापा के कमरे के बाहर पहुंच गई और उसकी किस्मत अच्छी थी कि खिड़की भी हल्की सी खुली हुई थी खिड़की के अंदर झांक कर देखे तो अंदर ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी में सब कुछ साफ नजर आ रहा था,,, उसकी मां नींद में थी लेकिन फिर भी उसके पापा उसके गाउन को ऊपर तक उठाने लगे और देखते ही देखते उसे कमर तक उठा दिए यह देखकर सगुन उनके दिल की धड़कन बढ़ने लगी,,,,और उसकी आंखों के सामने ही उसके पापा उसकी मां के ऊपर चढ़ गए और उन्हें नींद में ही चोदना शुरु कर दिए,,, यह देख कर सगुन की हालत खराब होने लगी,,, उसकी बुर से भी पानी निकलने लगा और उसकी पैंटी गीली होने लगी,,,, सगुन से रहा नहीं गया और अपने कमरे में जाकर अपने सारे कपड़े उतार कर बिस्तर पर लेट गई और अपनी दोनों टांगों को फैला कर अपनी उंगली का सहारा लेकर अपनी गर्म जवानी की आग बुझाने लगी थोड़ी देर में सब कुछ शांत हो गया वह नींद की आगोश में चली गई,,,।
Nice
 
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