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Incest रिश्तो की डोर,,,, (completed)

Nevil singh

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तुम्हारी यही आदत मुझे बहुत खराब लगती है,,, ऐसे समय तुम नखरा दिखाती हो तो मुझे अच्छा नहीं लगता,,,,,( संजय पीठ के बल बिस्तर पर लेटे लेटे अपने खड़े लंड को हिलाता हुआ बोला,,,)

मैं नखरा नहीं दिखा रही हूं तुम अच्छी तरह से जानते हो कि मुझे शर्म आती है,,,(संध्या बिस्तर के नीचे एक कोने पर खड़ी होकर अपने गाऊन के बटन पर हाथ रखे हुए बोली,,)

यार संध्या मुझे यह समझ में नहीं आता कि तो दो बच्चों की मां होने के बावजूद भी तुम्हें मुझसे ना जाने किस बात की शर्म आती है,,,।ऐसा लग रहा है कि जैसे आज पहली बार चुदवाने जा रही हो,,,।

दो दो बच्चों की मां हो गई तो क्या शर्म लिहाज सब उतार कर फेंक दु क्या,,,,,


अब यार मेरा समय मत बिगाडो जल्दी से गांऊन उतार कर बिस्तर पर आ जाओ,,,,मुझसे रहा नहीं जा रहा है,,, जल्द से जल्द में अपना यह खड़ा लंड तुम्हारी बुर में डालना चाहता हूं,,,(संजय एकदम बेशर्म की तरह बोला,,,)

थोड़ा तो शर्म करो इस तरह की बातें करते हो,,, इतने बड़े डॉक्टर हो लेकिन शर्म जरा सी भी नहीं है,,,।


हां नहीं है मेरी जान आप जल्दी से आओ,,,(संजय अपने हाथों से अपने खड़े लंड को हिलाता हुआ व्याकुल हुआ जा रहा था और उसकी पत्नी संध्या बिस्तर के नीचे एक किनारे पर खड़ी होकर अपने पति की बात मानते हुए गाउन का बटन खोलने लगी,,,।
क्रमशः
Nayi kahani mubarak ho bhai
Khubsurat update bhai
 

Nevil singh

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45 वर्षीय संजय पेसे से माना जाना डॉक्टर था जिसका खुद का हॉस्पिटल था,,,। पैसा रुतबा सब कुछ उसके पास था किसी चीज की कोई कमी नहीं थी,,। रोज सुबह उठकर घर में ही बने जिम में कम से कम 2 घंटे मेहनत करके अपने पसीने निकालता था जिसका फल उसे मिल रहा था इस उम्र में भी उसका बदन हट्टा कट्टा और गठीला था,,। 6 फीट लंबाई लिए हुए वह काफी आकर्षक लगता था,,। संजय काफी रंगीन मिजाज का था उसके ना जाने कितनी औरतों और लड़कियों के साथ नाजायज संबंध थे,,, और इस बारे में किसी को कानो कान खबर नहीं था यहां तक कि उसकी बीवी संध्या भी अपने पति के चरित्र के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी उसे तो यही लगता था कि उसका पति सिर्फ उसी से प्यार करता है,,,। ऐसा नहीं था कि संध्या में किसी बात की कमी थी 38 की उम्र में भी वह बला की खूबसूरत लगती थी एक डॉक्टर की बीवी होने के नाते और ग्रेजुएट होने के कारण वह अपने बदन का अच्छे से ध्यान रखती थी वह भी घर में बने जीवन में योगा और कसरत करके अपने बदन को एकदम फिट रखी थी तभी तो * 30 की उम्र में भी 20 की लगती थी,,, बदन भरा हुआ था गदराया जिस्म लेकिन चर्बी का नामोनिशान नहीं था भगवान ने छाती की सजावट के लिए खरबूजे समान दोनों चूचियां इतनी आकर्षक बनाई थी कि मानो वो खुद अपने हाथों से बनाए हो,,, और इस उम्र में भी एकदम तनी हुई जरा भी लचक नहीं थी ब्लाउज पहनने के बाद मानो ऐसा लगता था कि दुनिया भर का खजाना वह अपने ब्लाउज के अंदर समेट कर रख ली हो,,, औरतों के आकर्षण का केंद्र बिंदु हमेशा से ऊभारदार नितंब ही रहे हैं,,,, और वह भगवान संध्या को तोहफे के रुप में बख्शा था,,,, जिसकी भी नजर संध्या के उभार दार नितंबों पर जाती थी वह बस देखता ही रह जाता था,,, नितंबों का घेराव और उठाव इस कदर आकर्षक लगता था कि मानो छोटी छोटी दो पहाड़िया हो,, जिन पर चढ़ाई करना सबके बस की बात नहीं थी किस्मत वाले ही वहां तक पहुंच पाते थे और संजय उसका पति बेहद किस्मत का धनी था जो कि संजय जैसी खूबसूरत औरत उसकी बीवी थी,,, 5 फुट 4 इंच की लंबाई संजय की खूबसूरती में चार चांद लगा कर रहे थे,,, चिकना समतल पेट और पेट के बीच की गहरी नाभि मानो कुदरत की बनाई हुई कोई घाटी हो,,,
मोटी चिकनी सुडौल जांघें,, इतनी चिकनी कि उस पर से नजर फिसल जाए,,, संध्या को देख कर कोई यह नहीं कह सकता था कि मैं दो बच्चों की मां है और वह भी जवान बच्चे की,,,, धन दौलत के साथ-साथ भगवान ने संजय और संध्या का दो खूबसूरत औलाद भी दिए थे जिसमें बड़ी बेटी शगुन और छोटा बेटा आकाश जीसे प्यार से घर वाले सोनू कहते थे,,,,,,,

ऐसा नहीं था कि संध्या को चुदाई में मजा नहीं आता,,, संध्या भी बिस्तर पर बेहद कामुक और सेक्सी थी जो अपनी संतुष्टि और तृप्ति का अपने तरीके से ख्याल रखती थी लेकिन वहां तक पहुंचने में उसे शर्म के चादर को उतारना पड़ता था वह काफी शर्मिली थी और संस्कारी थी,,। संजय को भी अपनी बीवी के साथ चुदाई करने में बेहद आनंद की प्राप्ति होती थी क्योंकि अच्छी तरह से जानता था कि उसकी बीवी बेहद खूबसूरत और गदराए बदन की मालकीन है,,। लेकिन वह अपनी आदत से मजबूर था घर की मुर्गी दाल बराबर यह कहावत संजय सिंह पर बराबर बैठती थी,,, लेकिन कुछ भी हो जाए उड़ता हुआ पंछी चाहे जितनी दूर चला जाए शाम को घर वापस लौटता ही है,,,।
इसलिए तो,,,, संजय सिंह अपनी बीबी संध्या की खूबसूरती और कामुकता का दीवाना था,,,,,

रात के 1:30 बज रहे थे लेकिन संजय सिंह और संध्या की नींद गायब थी क्योंकि दोनों एक दूसरे में एकाकार होने की भरपूर कोशिश कर रहे थे और संजय सिंह बिस्तर पर पीठ के बल लेटकर अपने मोटे तगड़े लंड़ को अपने हाथ से हिलाते हुए अपनी बीवी को अपना गाऊन निकाल कर बिस्तर पर आने के लिए बोल रहा था,,,। संजय सिंह यह भी जानता था कि उसकी बीवी बिस्तर पर आने से पहले जब तक गर्म नहीं हो जाती तब तक एकदम शर्मीली बनी रहती है लेकिन उसके बाद ऐसा परफॉर्मेंस देती है कि पोर्न मूवी की एक्ट्रेस भी दांतो तले उंगली दबा ले,,, संजय सिंह का दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि उसकी आंखों के सामने उसकी खूबसूरत बीवी संध्या अपने गांऊन का बटन खोल रही थी,,,, यही हाल संध्या का भी था, बार-बार चोर नजरों से वह अपने पति के आसमान की तरफ मुंह उठाकर देखते हुए खड़ी लंड को देख ले रही थी,,उसकी बुर में भी कुलबुलाहट हो रही थी अपने पति के लंड को अपनी बुर की गहराई तक ले लेने के लिए,,,,, कुछ देर पहले वह शर्मा रही थी,,, लेकिन अपने पति के खड़े लंड को देखकर उसके बदन में गर्मी बढ़ने लगी थी इसलिए वह जल्द से जल्द अपे गांऊन को उतार कर नंगी हो जाना चाहती थी,,। आखिरकार वहां अपनी गाउन का आखरी बटन खोल कर जल्द से जल्द उसे अपने बदन से अलग कर दी,,,।
अब अब संध्या केवल ब्रा और पेंटी में बिस्तर के किनारे खड़ी थी,,,, अपने बीवी को केवल ब्रा और पेंटी में देखकर संजय सिंह की आंखों में वासना उतर आई,,, लाल रंग की ब्रा और पेंटी में काम की देवी लग रही थी संध्या,,, ब्रा का साइज चुचियों के साईज से छोटा ही था जिसकी वजह से उसके दोनों खरबूजे आपस में इस कदर चोटे हुए थे की बीच की लकीर कुछ ज्यादा ही लंबी और गहरी नजर आ रही थी,,,,,,।

जल्दी से आओ मेरी जान मुझसे रहा नहीं जा रहा है,,,

अरे थोड़ा तो सब्र करो तुम से तो बिल्कुल भी सब्र नहीं होता,,( इतना कहने के साथ संध्या अपने दोनों हाथ पीछे की तरफ ले जाकर अपनी ब्रा का हुक खोल दिए और अगले ही पल वह अपने बदन से ब्रा को उतार फेंकी,,, फुर्ती दिखाते हुए अपनी लाल रंग की पैंटी को भी अपनी लंबी टांगों से अलग कर दी,,, संजय सिंह की नजर संध्या की दोनों टांगों के बीच की पतली लकीर पर ही टिकी हुई थी जो कि बेहद खूबसूरत और उत्तेजना के मारे सूजी हुई लग रही थी,,, संजय सिंह अपनी बीवी की खूबसूरत बुर को देखकर अपने लंड को जोर-जोर से मुठीया रहा था,,,, और संध्या उत्तेजना में आकर अपनी हथेली को अपनी बुर पर रखकर उसे हल्के से मसलने लगी,,, और खुद ही उसके मुख से गरम सिसकारी फूट पड़ी,,,,ससहहहहहहह आहहहहहहहह,,,,,,, और अपनी बीवी के मुंह से गर्म सिसकारी की आवाज सुनकर संजय सिंह कामुकता भरे स्वर में बोला,,,।

मेरी रानी वही खड़े-खड़े मचलती रहोगी या बिस्तर पर भी आओगी,,,,।

आती हूं मेरे राजा मुझे मजा आता है तुम्हें इस तरह से तड़पते हुए देखने में,,,,।

मुझे कितना तड़पाओगी लंड जाने के बाद ऊतना जोर-जोर से चिल्लाओगी,,,,।

मुझे चिल्लाने में बहुत मजा आता है,,,(इतना कहते हुए संध्या घुटनों के बल बिस्तर पर चढ गई,,,, और देखते ही देखते अपने पति के कमर के इर्द-गिर्द अपने दोनों घुटने रखकर एक हाथ नीचे की तरफ ले जाकर के,,अपने पति के लंड को पकड़े ली और उसे अपनी बुर के गुलाबी छेद का रास्ता दिखाते हुए उसे अपने अंदर लेना शुरू कर दी,,, जैसे-जैसे संध्या आपने भारी-भरकम गोलाकार गांड का दबाव अपने पति के मोटे तगड़े लंबे लंड पर बढ़ा रही थी वैसे वैसे संजय का लंड उसकी गुलाबी बुर की गुलाबी पत्तियों को फैलाता हुआ अंदर की तरफ जा रहा था,,, और वैसे वैसे संजय सिंह के चेहरे का हाव भाव बदलता जा रहा था ऊसे अद्भुत सुख का एहसास हो रहा था,,,देखते ही देखते संध्या अपने पति के लंबे लंड को अपने बुर की गहराई में छुपा ली,,,,।

दूसरी तरफ उसकी बेटी शगुन एमबीबीएस की तैयारी करते हुए पढ़ाई कर रही थी आखिरकार बाप जो मारा जाना डॉक्टर था तो बेटी का भी फर्ज बनता था अपने बाप के नक्शे कदम पर चलना इसलिए वह दिन रात जुटी हुई थी एमबीबीएस की तैयारी करने में रात के 1:30 बजे का अलार्म हुआ हमेशा लगा कर रखी थी क्योंकि इसके बाद वह सो जाते थे और इसीलिए 1:30 का अलार्म बसते हैं अपनी किताब बंद करके सोने की तैयारी कर रही थी कि उसे जोरों की पेशाब लगी और वह अपने कमरे से बाहर आ गई बाथरूम जाने के लिए,,,वैसे तो उसके कमरे में भी बाथरुम था लेकिन उसका क्लास खराब हो चुका था इसलिए वह दूसरे बाथरूम में जाने के लिए अपने कमरे से बाहर आ गई थी,,,, जैसे ही वह अपने मम्मी पापा के कमरे के करीब पहुंची तो खिड़की खुली होने की वजह से हल्की हल्की रोशनी बाहर आती नजर आ रही थी,,, बस ऐसे ही खिड़की के पास पहुंची तो कमरे में से अजीब अजीब सी आवाज आ रही थी जो कि संध्या के सिसकारी लेने की आवाज थी लेकिन यह सब शगुन के लिए नया था,,,,, वह को तुम्हारे पास खिड़की के पास खड़ी हो गई है और हल्की सी खुली खिड़की में से अंदर झांकने की कोशिश करने लगी,,, अंदर ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी पूरे कमरे में फैली हुई थी,,,। जैसे ही उसकी नजर बिस्तर पर पड़ी वह दंग रह गई उसकी सांस रुक गई वह कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे अपनी आंखों से इस तरह का दृश्य देखना पड़ेगा,,, बिस्तर पर का गरमा गरम दृश्य देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई,,,, उसका गला सूखने लगा,, कर भी क्या सकती थी बिस्तर पर का दृश्य ही गरमा गरम था कि वह चाह कर भी उससे नजर नहीं फिरा पा रही थी,,,।
बिस्तर पर उसकी मां जोर-जोर से बाप के मोटे खड़े लंड पर कूद रही थी शगुन की हालत खराब होती जा रही थी क्योंकि उसे अच्छी तरह से दिखाई दे रहा था कि उसकी मां की बुर मैं उसके बाप का मोटा खड़ा लंड बहुत ही जल्दी जल्दी अंदर बाहर हो रहा था,,, जिंदगी में पहली बार ना किसी औरत और मर्द के साथ चुदाई करते हुए देख रही थी वह भी किसी गैर को नहीं बल्कि अपने ही मम्मी पापा को इसलिए तो उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी पहली बार ही उसे इस बात का अहसास हुआ था कि मर्द का लंड कैसा होता है,,,, शगुन की सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,, शगुन वहां से चली जाना चाहती थी लेकिन उसके पैर जवाब दे दिए थे,, वह चाह कर भी वहां से नहीं जा पा रही थी,,, वह अपनी मम्मी को जोर-जोर से अपने बाप के लंड परकुदते हुए देख रही थी,,,, पहली बार उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसकी मां नंगी होने के बाद कितनी ज्यादा खूबसूरत लगती है अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड देखकर उसके तन बदन में भी आग लग रही थी,,, शगुन को अपनी दोनों टांगों के बीच कंपन महसूस हो रही थी,,,। सांसो की गति पर उसका जरा भी नियंत्रण नहीं था,,,,उसकी आंखों के सामने जिस तरह का नजारा था उस नजारे के बारे में उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी,,, अपनी मां को इस अवस्था में देख कर उसे शर्म महसूस हो रही थी और अपने बाप को इस तरह की हरकत करते हुए देख कर उसे अजीब लग रहा था लेकिन ना जाने क्यों उस नजारे में आकर्षण हो रहा था,,,,

शगुन की आंखों के सामने इसकी मां की गुलाबी‌ बुर के अंदर उसके बाप का लंबा लंड बड़ी तेजी से अंदर बाहर हो रहा था, कि तभी उसकी मां की बुर के अंदर से संजय का लंड छटक कर बाहर आ गया,,,, जिसे संध्या फिर से पकड़ कर उसे वापस अपनी बुर के अंदर ले ली,,यह देखकर सब उनकी हालत खराब हो गई तो ऊतेजना के मारे उसका रोम-रोम कांपने लगा,,,,उसकी सांसें और तेज़ चलने लगी क्योंकि जिंदगी में पहली बार वह खड़े लंड को देख रही थी और वह भी अपने बाप के,,, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि लंड इतना मोटा तगड़ा और लंबा भी हो सकता है,,,,वह दोनों के बीच किस तरह की बातें हो रही थी वह शगुन के कानों में तो पड रही थी लेकिन दिमाग तक नहीं पहुंच रही थी,,, क्योंकि उसका सारा ध्यान सिर्फ उसकी मां की बुर और उसके पापा के लंड पर थी,,,अत्यधिक उत्तेजना आत्मक कामुकता से भरे हुए दृश्य को और देर तक देख पाना शगुन के लिए मुश्किल हुआ जा रहा था उसके तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी और वह ज्यादा देर तक वहां रुक नहीं पाई और बाथरूम जाने के बजाय वह वापस अपने कदम मोड़ कर अपने कमरे में आ गई,,,
Lovely update dost
 

Nevil singh

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शगुन का दिल जोरों से धड़क रहा था वह कमरे के अंदर के कामुक दृश्य को बर्दाश्त नहीं कर पाई और वहां से अपने कमरे में आ गई उसे जोरों की पेशाब लगी लेकिन पेशाब करने के लिए भी वह बाथरूम में नहीं गई,,,,, वह अपने कमरे में बिस्तर पर नीचे जमीन पर पांव टीका कर बैठी हुई थी उसका दिल अभी भी जोरों से धड़क रहा था बार-बार उसकी आंखों के सामने उसकी मां की बड़ी बड़ी गांड नजर आ रही थी जो कि वह जोर-जोर से उसके पापा के बड़े मोटे खड़े लंड पर पटक रही थी,,,। शगुन एक खूबसूरत जवान लड़की की लेकिन अब तक वह किताबों में ही अपना दिमाग लगा दी थी ना कि इधर-उधर की बातों में,, वापस अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई को पूरा करना चाहती थी और जल्द से जल्द अपने पापा की तरह डॉक्टर बन जाना चाहती थी इसलिए वह अपनी सहेलियों के साथ इधर-उधर घूमती भी नहीं थी बस मेडिकल कॉलेज से घर और घर से मेडिकल कॉलेज बस उसका यही रूटीन था लव प्यार के चक्कर में वह कभी भी नहीं पड़ी थी ऐसा नहीं था कि उसे लव प्यार यह सब के बारे में मालूम नहीं था उसे यह सब पता तो चलता था लेकिन वह कभी भी प्रेम के चक्कर में नहीं पड़ी थी लड़के उसके पीछे जरूर पड़े हुए थे लेकिन वह किसी को भी भाव नहीं देती थी उसे बस अपने काम से मतलब था अपनी पढ़ाई से मतलब था,,,,।
लेकिन आज उसकी आंखों ने देखा था वह उसकी सोच से विपरीत था एक मेडिकल स्टूडेंट होने के बावजूद भी और एक जवान लड़की होने के बावजूद भी वह कभी अपने मम्मी पापा के बारे में इस तरह की कल्पना नहीं की थी ना ही उन्हें कभी इस तरह से संभोग रत देखी थी लेकिन आज अपनी आंखों से यह सब देख कर उसे बड़ा अजीब लग रहा था उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था वह कभी सोची नहीं थी कि उसकी मां इस तरह की हरकत करती होगी,,,।
शगुन का पूरा वजूद कांप रहा था,,, उसकी मां के मुख से निकलने वाली गर्म सिसकारियां अभी तक उसके कानों में गूंज रही थी उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि जिस तरह कि उसकी मां आवाज निकाल रही थी उसे दर्द हो रहा था या मजा आ रहा था इन दोनों के बीच के मतलब को शगुन समझ नहीं पा रही थी,,, एक औरत होने के नाते वह अपने बदन की बनावट से भलीभांति परिचित थी,, और अपने पापा के लंबे मोटे लंड को देखकर उसे बड़ा ताज्जुब हो रहा था कि छोटी सी बुर के छेद में इतना मोटा लंड बड़े आराम से जा कैसे रहा था,,, यह सोच कर उसका दिल और जोरों से धड़क रहा था,,,, अनजाने में ही वह काफी उत्तेजित हो चुकी थी उसका गला सूख रहा था वह टेबल पर पड़ा पानी का जाग उठा कर उसे कांच के गिलास में उड़ेलने लगी,,,, और एक ही सांस में पूरे गिलास का पानी गटगटा गई,,, वह बिस्तर पर पीठ के बल लेट गई और कुछ देर पहले देखे गए दृश्य के बारे में सोचने लगी,,,। उसकी आंखों के सामने बार-बार उसके पापा का मोटा खड़ा लंड जो कि उसकी सोच के बिल्कुल विपरीत साइज का था वह दृश्य के बारे में सोच कर ही उसकी टांगों के बीच हलचल होने लगती थी,,, और उसकी मां की बड़ी-बड़ी गोरी भरावदार गांड,,,, उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि उसकी मां की गांड इतनी खूबसूरत होगी,,,, यह तो अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी मां बेहद खूबसूरत है लेकिन अब तक उसने अपनी मां को बिना कपड़ों के कभी नहीं देखी थी जिंदगी में पहली बार वह खिड़की से अपनी मां के नंगे बदन को देखकर उत्तेजना के मारे सिहर उठी थी,,, इस बात को भी अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी मां बेहद संस्कारी और मर्यादा सील औरत है हमेशा पूजा-पाठ और अपने बच्चों का ख्याल रखने वाली मां है,,,,। शगुन अपनी मां के इस रूप के बारे में अच्छी तरह से जानती थी लेकिन आज उसकी आंखों के सामने वह अपनी मां का एक अलग नया रूप देख रही थी,,, जो कि उसके सोच के बिल्कुल विपरीत ही था,,,,।

शगुन इतना तो जानती थी कि उसके मम्मी पापा कमरे में जो क्रिया कर रहे थे उसे चुदाई कहते हैं लेकिन आज तक उसने इस शब्द को अपने होठों पर नहीं आने दी थी,,, आज अनायास ही अपने मम्मी पापा को संभोग रत देखकर उसके मन मस्तिष्क में अश्लील शब्द एक-एक करके अपना भेद खोल रहे थे,,,। वह काफी बेचैनी महसूस कर रही थी वह अपनी मम्मी पापा के बारे में सोचते हुए बिस्तर पर इधर से उधर करवट बदल रही थी उसकी टांगों के बीच की पतली दरार में से उसे कुछ रिसता हुआ महसूस हो रहा था,,,, उसे बड़ा अजीब लग रहा था उसे ऐसा समझ में आ रहा था कि कहीं जोर की पेशाब लगने की वजह से कहीं पेशाब की बूंदे तो नहीं टपक रही उसकी बुर से,,, वह नाईट ड्रेस में पैजामा और कुर्ती पहनी हुई थी अनायास ही वह अपनी बुर से निकल रहे पेशाब के बारे में जानने के लिए अपने पजामे को लेटे-लेटे ही दोनों हाथ से आगे की तरफ खींच कर अंदर की तरफ नजर दौड़ाने लगी,,,, इस तरह से उसे कुछ नजर नहीं आ रहा था बस केवल उसकी बुर की दोनों फांके फूली हुई नजर आ रही थी,,,, बस थोड़ा सा अपने पजामे को नीचे की तरफ करके ठीक से देखने के लिए वह थोड़ा सा उठ गई और अपनी दोनों टांगों के बीच की उस पतली दरार को देखने लगी जो कि उस समय एकदम चिकनी और मखमली लग रही थी बालों का रेशा तक उस पर नहीं था इसका कारण यही था कि शगुन हफ्ते में दो बार उस पर क्रीम लगाकर इसे साफ करती थी क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि ढेर सारे बालों की वजह से उसे खुजली हो,,, इसलिए तुम इस समय उसकी पुर दूध जैसी गोरी चिकनी और फूली हुई नजर आ रही थी जैसे कि मानो तवे पर रोटी सेकी गई हो,,, शगुन के लिए अपनी बुर की रचना भले ही सामान्य लग रही हो लेकिन किसी मर्द के लिए उसकी टांगों के बीच नजर डालना किसी अद्भुत अतुल्य खजाने देखने से कम नहीं था,,,
वह बड़े गौर से अपनी बुर को देख रही थी और उसमें से रिस रहे मदन रस को जिसे वह पेशाब समझ रही थी,,, वह उत्सुकता बस अपनी तो उंगली बुर के ऊपर रखकर उस रिस रहे मदन रस के बारे में जानने के लिए रखी तो वह मदन रस उसे बेहद चिपचिपा महसूस होने लगा उसे बड़ा अजीब लगा,,, क्योंकि शायद उसकी जानकारी में पहली बार उसकी बुर से इस तरह का रस निकल रहा था जो कि बेहद चिपचिपा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या है,,,, रुमाल से अपनी उंगली को साफ की और उसी रुमाल को अपनी बुर को भी साफ कि यह सोच कर कि सुबह उसे अच्छे से धो डालेगी,,, और वह पैजामा ऊपर करके वापस पीठ के बल लेट गई,,,, फिर से उसकी आंखों के सामने वही कमरे वाला कामुक दृश्य घूमने लगा वह फिर से उसी देश के बारे में सोचते सोचते गहरी नींद में सो गई,,,

लेकिन अभी भी उसके मम्मी पापा के कमरे में उठापटक चालू थी अब पोजीशन बदल चुकी थी संध्या नीचे पीठ के बल लेटी हुई थी और अपनी दोनों टांगों को जितना हो सकता था उतना फैलाकर अपने पति संजय के मोटे तगड़े लंड को अपनी बुर की गहराई में महसूस कर रही थी,,,।

आहहहह,,आहहहह,आहहहहह,,,( संजय के जबरदस्त प्रहार के साथ संध्या की आह निकल जा रही थी लेकिन उसे बेहद आनंद की प्राप्ति भी हो रही थी,,,।)

मादरचोद रंडी भोसड़ा चोदी जब तक मेरा लंड तेरी बुर की गहराई नहीं नापता तब तक तुझे चोदने का मजा नहीं आता,,, साली रंडी,,,,( गंदी गंदी गालियां देते हुए संजय जोर-जोर से अपनी कमर हिला रहा था और संध्या संजय का हर धक्का बड़े आराम से झेलते हुए आनंद विभोर हुए जा रही थी और वह भी जवाब में गंदी गंदी गालियां दे रही थी,,,)

भोसड़ी के साले कुत्ते तू मेरा गुलाम है मादरचोद मेरी बुर चाट कर ही तुझे मजा आता है और सच कहूं तो जब तू कुत्ते की तरह मेरी बुर चाटता है तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं हवा में उड़ रही हूं मादरचोद,,,


तो क्या करूं कुत्तिया तेरी बुर एकदम मलाईदार है और तेरी बुर से मलाई निकलती है जिसे चाटने के लिए मुझे कुत्ता बनना पड़ता है,,,,,,।


भोसड़ी के मादरचोद मेरी बुर में इतना दम है तभी तो एक जाने-माने इतनी बड़ी डॉक्टर को मेरी टांगों के बीच कुत्ता बनकर बुर चाटना पड़ता है,,,,,आहहहह आहहहहह आहहहहह,,,,, फाड़ दे मेरी बुर को मादरचोद।।
( अपनी बीवी की इतनी गंदी बात सुनकर संजय का जोश दुगुना हो गया और वह जोर-जोर से अपनी कमर हिलाने लगा पूरा पलंग चर मरा रहा था संध्या की गरम सिसकारी की आवाज पूरे कमरे में गूंज रही थी,,,, वह दोनों इस बात से बेखबर थे कि कुछ देर पहले उनकी बड़ी बेटी उन दोनों के संभोग लीला को अपनी आंखों से देख कर गई थी,,, वह दोनों अपनी मस्ती में चुदाई का आनंद ले रहे थे,,, पढ़े-लिखे सज्जन समाज में रहने के बावजूद भी संजय और संध्या संभोग रत होने के बाद,,,, किसी गंदी बस्ती के रंडी और रंडी को छोड़कर अपनी प्यास बुझाने वाला ग्राहक की तरह बातें कर के मजे लेते थे,,,, अच्छा ही हुआ था कि शगुन इस कामोत्तेजना से भरे हुए दृश्य को झेल नहीं पाई और अपने कमरे में चली गई वरना अपने मम्मी पापा के मुंह से इस तरह की गंदी गंदी बातें सुनकर वह अपनी मम्मी पापा के बारे में क्या सोचती उसे तो यकीन ही नहीं आता कि,,, उसकी आंखों के सामने बिस्तर पर चुदाई करने वाले उसके मम्मी और पापा हैं,,,,,।

आखिरकार संजय के जबरदस्त धमाकेदार प्रहार को झेलते हुए संध्या चर्मसुख के करीब पहुंचने लगी जिससे उसकी गर्म सिसकारियां और तेज गूंजने लगी,,, संजय इस नाजुक पल के बारे में अच्छी तरह से परिचित था इसलिए वह अपने धक्कों को और तेज कर दिया और देखते ही देखते दोनों एक दूसरे की बाहों में अपना गर्म पानी छोड़ने लगे,,,, दोनों एक दूसरे को संतुष्ट और तृप्त करने में किसी भी तरह की कसर नहीं छोड़ते थे इसलिए तो दोनों एक दूसरे के साथ बेहद खुश थे,,,, संजय उसी तरह से अपनी बीवी की बुर में गर्म पानी का छिड़काव करते हुए उसके ऊपर लेटा ही रह गया और संध्या भी उसे अपनी बाहों में दबोचे हुए उसकी पीठ को सहलाने लगी,,,।
Jakash update mitr
 

Nevil singh

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सुबह की पहली किरण के साथ शगुन की आंख खुली तो खिड़की मैं से हल्की-हल्की सूरज की रोशनी अंदर बिस्तर पर आ रही थी,,,। शीतल हवा से खिड़की के पर्दे लहरा रहे थे बड़ा ही खुशनुमा मौसम था,,,, शगुन अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर पर बैठ गई,,,, शगुन उसकी मां की तरह ही एकदम गोरी चिकनी और बेहद खूबसूरत थी गाल एकदम लाल टमाटर की तरह,,, गोलाकार चेहरा अच्छी खासी लंबाई पतली सी कमर कमर के नीचे नितंबों का उभार एकदम जानलेवा था ,,, छातियों की शोभा बढ़ाते दोनों संतरे अभी बेहद कोमल और सीमित आकार में थे लेकिन निप्पल का कभी कभार तन कर खड़ा हो जाना ऐसा लगता था कि मानो कोई योद्धा युद्ध के लिए अपने भाले को तैयार कर रहा हो,,,,
वह बिस्तर पर बैठे-बैठे अंगड़ाई ले रही थी कि तभी उसे रात वाली बात याद आ गई जो उसने अपनी आंखों से देखी थी शायद इस बारे में सब उनको भी नहीं पता था लेकिन इस नई सुबह की शुरुआत से ही उसके जीवन में बदलाव आना शुरू हो गया था उसके सोचने समझने की दिशा बदलने लगी थी जिस काम से वह बिल्कुल अनजान थी अब उसे जानने की उत्सुकता उसके अंदर बढ़ने लगी थी,,,। ना चाहते हुए भी बार-बार उसकी मां की मदमस्त बड़ी-बड़ी गांड ऊछलती हुई और वह भी उसके पापा के लंड पर बार-बार यह नजारा उसकी आंखों के सामने तेर जा रहा था,,,, उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसके पापा का मोटा तगड़ा और काफी लंबा लंड उसकी मां की गुलाबी छोटे से छेद में बड़े आराम से अंदर बाहर हो रही थी,,,, सगुन भले ही मेडिकल की छात्रा थी लेकिन संभोग रचना और संभोग क्रिया से बिल्कुल भी अनजान थी उसकी जिंदगी में उसने बहुत सी किताबों का अध्ययन की थी लेकिन संभोग का अध्याय अब तक पठन नहीं कर पाई थी इसीलिए उसकी उत्सुकता संभोग के बारे में जानने की कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही थी,,,। शगुन इस समय एक वृक्ष का बेहद कोमल लापता थी और संभोग उसके लिए एक तूफान की तरह था जो कि उसे वृक्ष की टहनियों से उखाड़ देने की ताकत रखता था अब देखना यह था कि शगुन कब तक अपनी कोमलता को वृक्ष की टहनी पर संजो कर रख पाती है,,,, जो कि शायद इस उम्र में उसके लिए तो क्या उसकी उम्र की सारी लड़कियों के लिए नामुमकिन था,,, इसलिए तो रात वाले दृश्य के बारे में सोचते ही उसके तन बदन में हलचल बचने लगी थी खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच की उस पतली सी दरार के अंदर जो कि इस तरह की हलचल को उसने कभी भी अपने अंदर महसूस नहीं की थी,,,,

किचन में से बर्तनों की आवाज आना शुरू हो गई थी जिसका मतलब साफ था कि उसकी मां कीचन में नाश्ता तैयार कर रही थी,,,। संध्या घर में सबसे पहले उठती थी और सबसे पहले नहा धोकर पूजा पाठ करके तैयार हो जाती थी और कॉलेज जाने और उसके पति के हॉस्पिटल जाने से पहले ही वह नाश्ता तैयार कर देती थी यह उसकी रोज की दिनचर्या थी जिसमें वह कभी भी आनाकानी नहीं दिखाती थी,,,,,

शगुन भी मस्ती भरी ख्यालों के साथ आलस को समेटते हुए बिस्तर पर से उठ खड़ी हुई,,,, और सीधे कमरे से बाहर निकल कर बाथरूम में चली गई,,,, ब्रश करके फ्रेश होने के बाद वह नहाने के लिए अपनी कुर्ती के बटन खोलने लगी,,, उसके जेहन में अभी भी उसके मम्मी पापा के काम क्रीड़ा वाला दृश्य घूम रहा था जिससे उसके बदन में मस्ती भरी लहर उठ रही थी देखते देखते वह अपने कुर्ती के सारे बटन खोल कर कुर्ती को नीचे फर्श पर गिरा दी,,,, बड़े आईने के सामने वह अपने वस्त्र निकाल रही थी आज वह बड़े गौर से अपने बदन की रूपरेखा को निहार रही थी,,, उसके होठों की लाली बेहद खूबसूरत लग रही थी जो कि कृत्रिम नहीं थी कुदरती थी,,,, उसकी नजर अपने दोनों संतरो पर गई तो वह आईने में अपने संतरो को देखकर शरमा गई,,,, काली रंग की ब्रा में जो कि बेहद खूबसूरत दिखाई दे रहे थे एकदम गुलाबी,,,। लेकिन अपनी मां की चुचियों को देखकर वह अपनी मां की चुचियों से अपनी चुचियों की तुलना करते हुए इतना तो समझ गई थी कि साइज में उसकी मां की चूचियां खरबूजे जैसी थी और उसकी संतरे जैसी जिस में जमीन आसमान का फर्क था लेकिन आकर्षण दोनों की चुचियों में था,,, दबाने में और मुंह में लेकर चूसने में दोनों की सूचियों में बेहद आनंद की प्राप्ति की गारंटी निश्चित थी,,,। शगुन की मां की चूचियां न जाने कितने सावन को देख चुकी थी और शगुन की चूचियों का सावन अब शुरू होने वाला था,,,,।
अपने मम्मी पापा के काम क्रीड़ा वाले दृश्य को सोचकर उसके गाल उत्तेजना के मारे लाल गुलाबी होते जा रहे थे और वह अपने दोनों हाथ पीछे की तरफ लाकर अपने ब्रा के हुक को खोल कर एक झटके में ही अपनी ब्रा को खोल दी और उसे अपनी गोरी गोरी बाहों में से आजाद करते हुए नीचे फर्श पर गिरा दी अब उसकी आंखों के सामने आईने में उसकी मौत मस्त चूचियां जो कि संतरे के आकार थी अपनी पूरी रूपरेखा लेकर एकदम उभरकर नजर आ रही थी,,,। जिसे देखकर ना जाने क्यों शगुन के तन बदन में हलचल सी मच रही थी शगुन के लिए यह पहला मौका था जब वह अपनी संतरे जैसे चूचियों को बड़े गौर से देख रही थी,,, ना चाहते हुए भी अपने दोनों हाथ ऊपर की तरफ लाकर दोनों संतो को अपनी हथेली में भर ली और उसे हल्के से दबा दी,,,, और अपनी इस हरकत की वजह से उसके मुख से आनायास ही आह की आवाज निकल गई,,,। अद्भुत तरंग उसके तन बदन में दौड़ने लगी उससे यह तरंग बर्दाश्त नहीं हुई और वह झट से अपना हाथ अपनी चूची पर से हटा ली,,,। उसे अपना बदन बेहद खूबसूरत लग रहा था,,, जो कि हकीकत में वह बला की खूबसूरत थी वह अपने दोनों हाथ नीचे की तरफ लाकर अपने पजामी को दोनों हाथों से पकड़ कर नीचे की तरफ सरकाने लगी,,, लेकिन ऐसा करने में उसके हाथ में उसकी काली रंग की पैंटी नहीं आई तो वह दोबारा अपनी उंगलियों को हरकत देते हुए अपने पजामी के साथ में अपनी पेंटी को भी पकड़ ली और उन दोनों को धीरे-धीरे नीचे की तरफ सरकाने लगी,,,,,। शगुन की यह हरकत बेहद औपचारिक ही था लेकिन इस समय शगुन के तन बदन में मस्ती की लहर उठ रही थी इसलिए यह हरकत बेहद कामुक लग रही थी,,,। वह आईने में अपने प्रतिबिंब को देख रही थी आईने में धीरे-धीरे उसका पूरा वजूद वस्त्र विहीन होता जा रहा था,,, आज उसके दिल की धड़कन बड़ी तेजी से दौड़ रही थी उसके तन बदन में कसमसाहट उत्पन्न हो रही थी, जिसका शायद उसे अंदाजा नहीं था,,,
देखते ही देखते सगुन अपनी नाजुक उंगलियों का सहारा लेकर अपनी पेंटी और पजामी दोनों को अपने घुटनों तक ला दी,,,,, और थोड़ा सा गर्दन को झुका कर अपनी नजरों को अपनी दोनों टांगों के बीच पतली दरार पर स्थिर कर दी जहां का नजारा बेहद लुभावना और कोमलता से भरा हुआ था शगुन की दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी वह अपनी रसीली और मनमोहक बुर के आकार को बड़े गौर से देख रही थी जोकि अपनी बुर के आकार में आए बदलाव को वह अच्छे से देख रही थी और उसे समझने की कोशिश कर रही थी लेकिन शायद सब उनके लिए उसके आकार में आए बदलाव को समझ पाना इस समय मुश्किल था क्योंकि उत्तेजना के मारे उसकी गुलाबी फूल तवे पर पडी गरम रोटी की तरह फूल गई थी और उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी चोट की वजह से या खुजलाने की वजह से उसकी बुर की दोनों फांकों में सूजन आ गई है,,,। और इसी सूजन को समझने के लिए अपना एक हाथ अपनी दोनों टांगों के बीच ले जाकर के अपनी नाजुक नाजुक उंगलियों के पोरों से अपनी फूली हुई मखमली बुर पर रखकर हल्के हल्के दबाने लगी ऐसा करने से उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी जिसके बारे में वह महसूस करते ही एकदम से गन गना गई,,,, कुछ ही देर में उसे अपनी उंगलियों से अपनी बुर को स्पर्श करना अच्छा लगने लगा,,,, उत्तेजना के मारे वह एक बार तो अनजाने में ही अपनी हथेली में अपनी छोटी सी मखमली खूबसूरत बुर को पूरी तरह से दबोच ली और ऐसा करने में उसके तन बदन की आग सुलगने लगी और उसके मुंह से गर्म सिसकारी की आवाज फूट पड़ी,,,,।

ससससहहहह आहहहहह,,,,,,,
( इस तरह की गरमा गरम आवाज उसके मुख से पहली बार निकली थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था लेकिन अपनी इस हरकत की वजह से उसे आनंद की अनुभूति हुई थी जो कि इस तरह की अनुभूति वह कभी भी महसूस नहीं की थी उसे अपनी हरकत दोहराने की इच्छा हो रही थी और वह दोबारा अपनी ऐसी हरकत को दोहराते हुए एक बार फिर से अपनी छोटी सी मखमली गुलाबी बुर को अपनी हथेली में लेकर जोर से दबोच ली और एक बार फिर से उसके मुख से गर्म सिसकारी की आवाज फूट पड़ी,,,। उसे मजा आने लगा था अनजाने नहीं उसके तन बदन में उत्तेजना की आग सुलगने लगी थी जिंदगी में पहली बार वह अपनी बुर के साथ इस तरह की कामुक हरकत कर रही थी,,,, वह बेहद शर्मीले स्वभाव की थी एक मेडिकल स्टूडेंट होने के बावजूद भी उसका यह स्वभाव उसके प्रोफेशन से बिल्कुल भी मैच नहीं खाता था लेकिन शगुन ऐसी ही थी लेकिन रात को जो उसने अपनी मम्मी पापा के कमरे में अपनी आंखों से कामुकता पर एक काम क्रीड़ा के दृश्य को देखी थी तब से उसके अंदर बदलाव आना शुरू हो गया था,,,।

इसलिए तो वह अपनी आंखों को उत्तेजना के आगोश में मुंद ली और आंखों को बंद करते ही उसके जेहन में वही दृश्य गूंजने लगा जब उसकी मम्मी अपनी बड़ी बड़ी बहन को अपने पति के मतलब उसके पापा के लंड पर जोर जोर से पटक रही थी इस दृश्य के बारे में सोचते ही शगुन के तन बदन में कामोत्तेजना की लहर कुछ ज्यादा ही ऊंची उठने लगी वह बड़ी जोर जोर से अपनी छोटी सी बुर को अपनी हथेली में दबाए जा रही थी अब तक उसने दूसरी लड़कियों की तरह हस्तमैथुन नहीं की थी इसलिए उसे नहीं पता था कि अपने आप को किस तरह से संतुष्ट किया जाता है वह बस उसी तरह से अपनी बुर को जोर-जोर से अपनी हथेली में लेकर मसल रही थी,,,,। उसके मुख से ना चाहते हुए भी गर्म सिसकारी की आवाज निकल रही थी,,,

ससहहहह आहहहहह आहहहहहहह,,,,
( शगुन इस मस्ती भरे पल में अपने आप को पूरी तरह से डूबा देना चाहती थी कि तभी उसकी बुर से भल भलाकर मदन रस निकलने लगा,,,,, और उसकी सांसे बड़ी तेजी से चलने लगी,,,,। देखते ही देखते उसकी पूरी हथेली चिपचिपा पदार्थ से एकदम गीली हो गई उसे यह अहसास होते ही समझ में नहीं आया कि उसकी बुर से यह निकला क्या,,,, वह अपनी हथेली को आपस में रगड़ कर देख रही थी कि व चिपचिपा पानी क्या है लेकिन शायद अपने ही इस सवाल का जवाब इस समय मिलना उसके लिए मुश्किल था उसे यह अहसास हो रहा था कि उसे बड़ी जोरों की पेशाब लगी है वैसे भी है वो रात का अपना प्रेशर रोक कर रखी हुई थी इसलिए इस समय बाथरूम के अंदर उसे जोरों की पेशाब लगी हुई थी और वह जल्दी से अपनी पजामी और पेंटि दोनों को अपनी नंगी चिकनी टांगों से निकालकर नीचे फर्श पर रख दी और वहीं पर बैठ गई उसे इतनी जोरो की पिशाब लगी हुई थी कि बैठते बैठते ही उसकी बुर से पेशाब की धार फूट पड़ी और सामने चमकती हुई टाइल्स पर बौछार मारने लगी,,,। पूरे बाथरूम में उसकी बुर से निकल रही सिटी की मधुर आवाज गूंजने लगी,,,। उसकी बुर से निकल रही सीटी की आवाज किसी बांसुरी की मधुर आवाज से कम नहीं थी,,,, इत्मीनान से पेशाब करने के बाद उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसे कॉलेज जाने के लिए देर हो रही है और वहां झटपट नहा कर तैयार होकर बाथरूम से बाहर आ गई,,,,। गुलाबी रंग के सूट सलवार में शगुन का गोरा बदन खेल रहा था वह बेहद खूबसूरत और खिली खिली लग रही थी,,,, डाइनिंग टेबल पर पहले से ही उसका छोटा भाई आकाश जो कि प्यार से सोनू के नाम से जाना जाता था वह और उसके पापा बैठे हुए थे उसके पापा पर नजर पड़ते हैं उसके तन बदन में हलचल होने लगी उसके पापा अखबार पढ़ रहे थे,,,,। अखबार पढ़ते पढ़ते संजय सिंह की नजर सगुन पर पड़ी तो वह उसके खिले हुए खूबसूरत रूप को देखकर मन ही मन प्रसन्न होते वह बोला,,,।

गुड मॉर्निंग बेटा आज बहुत देर कर दी तुमने,,,।

गुड मॉर्निंग पापा आज थोड़ा नींद लग गई थी इसलिए,,,।
( इतना कहते हुए शगुन कुर्सी खींच कर थोड़ा सा बाहर की और उस पर बैठ गई,,,।)

गुड मॉर्निंग दी आज तो आप बहुत खूबसूरत लग रही हो,,,।

आज का क्या मतलब है तुझे में हमेशा क्या खराब लगती हुं,,,


नहीं नहीं दी ऐसा तो नहीं है,,,, आप खूबसूरत हो लेकिन आज कुछ ज्यादा ही खिली खीली लग रही हो,,,।

थैंक यू,,,,,

यू वेलकम दी,,,,,( सोनू मुस्कुराते हुए बोला अभी-अभी सोनू कॉलेज में आया था बहुत ही सीधा साधा लड़का था एकदम संस्कारी अपने से बड़ों की हमेशा इज्जत करता था अपनी दीदी से उसे कुछ ज्यादा ही लगाव था क्योंकि वह हमेशा उसकी मदद करती थी पढ़ाई में या किसी भी और काम में और शगुन भी अपने छोटे भाई सोनू से बेहद प्यार करती थी सोनू काफी आकर्षक और गठन एबदन वाला लड़का था लेकिन अभी तक लड़की के चक्कर में नहीं आया था वह भी सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देता था,,,, उसके ज्यादा दोस्त नहीं थे गिनती के एकाद या दो थे,,,, और उनसे भी सिर्फ कॉलेज में ही मुलाकात होती थी,,,, शगुन बार-बार अपने पापा की तरफ चोर नजरों से देख ले रही थी इस समय वह काफी शरीफ और इज्जतदार इंसान दिखाई दे रहे थे जो संस्कारों से परिपूर्ण थे लेकिन रात वाले अपने पापा के बारे में सोचकर उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगती थी अपने पापा को देखकर उसे यकीन नहीं हो रहा था कि रात को सुबह उसकी मम्मी की चुदाई कर रहे थे,,, डाइनिंग टेबल पर बैठे-बैठे जब भी हो अपने पापा की तरफ देख ली तब तक उसे उसके पापा का लंबा तगड़ा मोटा लंड याद आ जा रहा था जो कि बड़े आराम से उसकी मां की गुलाबी बुर के छेद में अंदर बाहर हो रहा था,,, एक बार फिर से शगुन को अपनी दोनों टांगों के बीच हलचल होती हुई महसूस होने लगी,,, तभी उसकी मम्मी नाश्ते की ट्रे ले करके वहां आ गई और बारी-बारी से सबको नाश्ता देने लगी,,,।

गुड मॉर्निंग शगुन,,,,

मॉर्निंग मम्मी,,,,

गुड मॉर्निंग बेटा चलो नाश्ता करो,,,

मॉर्निंग मम्मी,,,,,

और आप अखबार ही पढ़ते रहेंगे या नाश्ता भी करेंगे हॉस्पिटल नहीं जाना क्या आपका,,,,।


नाश्ता भी करना है हॉस्पिटल भी जाना है,,,,। चलो तुम भी साथ में बैठ कर नाश्ता कर लो,,,,


नहीं मुझे अभी बहुत काम है मैं बाद में कर लूंगी,,,,


अरे ऐसे कैसे मैं कह रहा हूं आज जल्दी से हम हम लोगों के साथ बैठकर नाश्ता करो,,,,


हां मम्मी साथ में नाश्ता कर लो बाद में काम कर लेना,,,( शगुन ब्रेड पर बटर लगाते हुए बोली,,,।)

ठीक है तुम सब कहते हो तो मैं भी आज साथ में नाश्ता कर लेती हूं( इतना कहने के साथ ही शगुन के पास वाली कुर्सी पर संध्या बैठ गई और वह भी नाश्ता करने लगी शगुन को यकीन नहीं हो रहा था कि उसके पास में बैठी हुई उसकी सीधी साधी संस्कारी आज्ञाकारी और उसको दुलार करने वाली मम्मी है जो कि रात को अपने संस्कारों और मर्यादा का चोला उतार कर एकदम नंगी होकर बेशर्म की तरह अपनी बड़ी बड़ी गांड बड़ी मस्ती के साथ उसके पापा के लंड पर पटक रही थी,,,,। शगुन ना जाने क्यों रात वाले वाक्ये की वजह से शर्म के मारे ना तो अपने पापा से और ना ही अपनी मम्मी से ठीक से नजरें मिला पा रही थी शायद वह अपने मम्मी-पापा के बीच के पति पत्नी के रिश्ते को समझ नहीं पा रही थी वह एक बेटी के नजरिए से अपनी मां और अपने पापा को देख रहे थे जो कि उसके नजर में सबसे अच्छे इंसान और अच्छे मम्मी पापा थे लेकिन शायद यह बात वह भूल गई थी कि एक मम्मी पापा होने के पहले वह दोनों पति-पत्नी है जिनके बीच इस तरह के शारीरिक रिश्ते बनते चले आ रहे हैं,,,,, शगुन जल्दी से अपना नाश्ता खत्म की और बैग लेकर जाने को हुई कि तभी संध्या गिलास का दूध लेकर कुर्सी पर से खड़ी हो गई और उसे थमा ते हुए बोली,,,,

अरे भागी कहां चली जा रही है पहले दूध तो पी ले,,,, सेहत का ख्याल नहीं रखेगी तो डॉक्टर कैसे बन पाएगी,,,, चल ले जल्दी से पी जा,,,,।

( यह रोज की बात थी इसलिए शगुन अपनी मां की इस बात से इंकार नहीं कर पाई और दूध का गिलास लेकर पी गई और वह जल्दी से अपने मम्मी पापा को बाय बोल कर घर से निकल गई उसके पास खुद की स्कूटी थी जिससे उसे कॉलेज जाने में किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं आती थी और वह स्कूटी पर बैठकर अपने कॉलेज के लिए निकल गई थोड़ी देर बाद सोनू और उसके पापा भी अपने अपने रास्ते निकल गए,,,,।)
Fine update mitr
 

Naik

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धीरे-धीरे समय अपनी रफ्तार से गुजरता जा रहा था और परिवार के सभी सदस्य अपने अपने काम को करते हुए अपनी वासना के खड़डे को और ज्यादा अपने ही हाथों से खोदते चले जा रहे थे,,, संजय की आंखों के आगे हमेशा उसकी बड़ी बेटी का खूबसूरत बदन नाचता रहता था और संध्या धीरे-धीरे अपने बेटे की तरफ पूरी तरह से आकर्षित होती चली जा रही थी,,, और सोनू भी अपनी मां को प्यासी नजरों से निहारने का एक भी मौका छोड़ता नहीं था,,अपनी मां के बारे में सोच सोच कर उसके खूबसूरत कामुक बदन के कटाव से पूरी तरह से आकर्षित होकर अपने मन में अपनी मां को लेकर गंदे ख्याल लाते हुए वह ना जाने कितनी बार अपने हाथों से हीला कर अपनी गर्मी बाहर निकाल चुका था,,,,,,, रूबी जब एक बार अपनी दोनों टांगे संजय के लिए खोल दी तो फिर वह खुलती चली गई बदले में संजय ने उसे हॉस्पिटल में ढेर सारी रियायतें दे रखा था,,, लेकिन अपनी जवान बेटी के मदमस्त बदन को याद करते हुए वह रूबी की रोज लेता था,,,

जिस दिन से रात के समय संजय बिना बताए शगुन के कमरे में गया था उस दिन से लेकर सकून जिस तरह के हालात में वह बाथरूम से बाहर आई थी और अपने पापा को बाथरूम के एकदम करीब खड़ा हुआ देखी थी साथ ही पारदर्शी स्लीवलेस और केवल पेंटी मैं होने के नाते उसके पापा की नजर उसके ऊपर पूरी तरह से पड़ चुकी थी और चोर नजरों से अपने पापा के पेंट में बने तंबू को देखकर जो हाल सगुन का उस दिन हुआ था,,,, उस दिन से लेकर आज तक वहअपने पापा के मोटे तगड़े लंबे लंड की कल्पना करते हुए अपनी बुर में अपनी दोनों उंगली डालकर अपने बदन की गर्मी को मिटाने की कोशिश कर रही थी लेकिन यह गर्मी थी कि मिटने का नाम ही नहीं लेती थी,,,,,।

ऐसे ही एक दिन शाम को संध्या मार्केट जाने के लिए तैयार हो रही थी,,, तभी सोनू घर आ गया और अपनी मां को तैयार होता हुआ देखकर बोला,,,।

कहां जा रही हो मम्मी,,,


मार्केट जा रही थी सब्जियां और फल खरीदना है,,,,,,,


मेरे लिए खरबूजा खरीदना मम्मी मुझे खरबूजे बहुत पसंद है,,,


ऐसा क्यों कि सब फल छोड़कर तुम्हें सिर्फ खरबूजे पसंद है,,,(आंखों को नचाते हुए वह सोनू की तरफ देखते हुए बोली,,,,)

क्योंकि मम्मी खरबूजा में रस बहुत होता है और सही कहो तो मुझे गोल गोल खरबूजे और वह भी बड़े-बड़े बहुत पसंद है,,,,,(सोनू अपनी मां की छातियों की तरफ उसके चुचियों के उभार को देखते हुए बोला,,,, संध्या अपने बेटे की नजरों को भांप गई थी,,, इसलिए वह एकदम अंदर तक सिहर उठी,,, उसके होठों पर मादक मुस्कान तैरने लगी,,,, सोनू अपनी मां की तरफ खास करके उसकी छातियों की तरफ देखते हुए फिर बोला,,,,)

और तुम्हें क्या पसंद है मम्मी,,,,।

मुझे,,,, मुझे तो केला पसंद है,,,, और वह भी लंबा लंबा और मोटा,,,,,(अपनी मां की बातों को सुनकर सोनू एकदम से गनगना गया,,,,)

ऐसा क्यों मम्मी तुम्हें खरबूजे क्यों नहीं पसंद है,,?

खरबूजे तो तुम्हें पसंद है ना मुझे तो केला ही पसंद है,,,।


केला में ऐसी कौन सी खास बात है जो तुम्हें इतना पसंद है,,।


केला कितना लंबा मोटा और तगड़ा होता है,,,,( संध्या एकदम मदहोश होकर बोल रही थी,,, सोनू भी समझ रहा था कि उसकी मां केला के नाम लेकर किस बारे में बातें कर रहे हैं,,,) और तो और सोनु अंदर जाने के बाद अच्छी तरह से एहसास होता है कि पेट पूरा भरा हुआ है,,,,(संध्या यह बात सोनू के पेंट में बन रहे धीरे धीरे तंबू की तरफ देखते हुए बोली सोनू समझ गया था कि उसकी मां दो अर्थ वाले बातें कर रही है जिसमें अब दोनों को मजा आ रहा था,,,।)

क्या तुम सच कह रही हो मम्मी लंबे मोटे और तगड़े केले में इतना ज्यादा मजा आता है,,,,।


हां रे मैं सच कह रही हूं,,,, वही तो खरीदने जा रही हूं मैं मार्केट में,,,, चलोगे मेरे साथ,,,,

हां हां क्यों नहीं मैं भी चलूंगा मार्केट देखु तो सही तूम्हे किस तरह के केले पसंद है,,,,।

तो चलो मेरे साथ,,,,(इतना कहने के साथ ही संध्या टेबल पर पड़ा अपना पर्स उठाई और आगे आगे चलने लगी सोनू अपनी मां की भारी-भरकम और मटकती गांड को देखकर एक दम मस्त हुआ जा रहा था,,,, सोनू अपनी मां के पीछे पीछे जाने लगा इस तरह से उसकी मां बातें कर रही थी उससे उसके तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही,,,, इतना तो उसे समझ में आई क्या था कि उसकी मां किस बारे में बातें कर रही थी और जिस तरह से बातें कर रही थी उसे सुनकर सोनू हैरान तो था ही लेकिन एकदम मस्त हो गया था,,, देखते ही देखते संध्या गांड मटकाते हुए घर से बाहर निकल गई,,,, और सोनू भी घर से बाहर आ गया,,, दरवाजा लॉक करने के बाद सोनू अपनी मोटरसाइकिल निकालकर स्टार्ट कर दिया और संध्या अपनी बेटी सोने के कंधों का सहारा लेकर अपनी भारी भरकम गांड को उठाकर पिछली सीट पर बैठ गई,,,, जानबूझकर अपने बेटे से कुछ ज्यादा ही सट कर बैठ गई,,, ऐसा नहीं था कि सोनू की पिछली सीट पर उसकी मां से मिला पहली बार बैठ रही हो और पहले भी इसी तरह से बैठ चुकी थी लेकिन आज उसके सोचने समझने और दोनों के बर्ताव में बदलाव आ चुका था इसलिए तो जैसे ही सोनू ने अपनी मां के बदन को अपने बदन से सत्ता हुआ महसूस किया वैसे ही उसके बदन में उत्तेजना की चिंगारी फुटने लगी,,, संध्या सोनू के कंधे पर हाथ रखकर बराबर बैठ गई थी और सोनू को चलने के लिए बोली सोनू भी एक्सीलेटर देकर मोटरसाइकिल को आगे बढ़ा दिया,,,, संध्या जिस तरह से अपना एक हाथ उठाकर सोनू के कंधे पर रखकर बैठी थी उससे उसकी दाहिनी चूची सोनू की पीठ से रगड़ खा रही थी,,, सोनू मदहोश हुआ जा रहा था संध्या की चूची की नुकीली निप्पल किसी भाले की तरह सोनू की पीठ पर चुभ रही थी,,, सोनू को ऐसा लग रहा था कि मानो उसकी मां की चूचियां उसकी पीठ पर गुदगुदी कर रही है,,,,संध्या को भी इस बात का एहसास हो रहा था कि उसकी दाहिनी चूची उसके बेटे की पीठ से रगड़ खा रही है,,, लेकिन यह जानते हुए भी वह बेफिक्र होकर उसी तरह से अपने बेटे के कंधे पर हाथ रखे हुए थी,,,,, क्योंकि संध्या को भी इसमें मजा आ रहा था,,,,,,,,

तभी हवा से उड़ रही अपनी साड़ी के आंचल को ठीक करने के लिए जैसे ही वह सोनू के कंधे पर से हाथ हटाकर अपनी साड़ी को ठीक करना चाह ही रही थी कि ,,, तभी जानबूझकर सोनू छोटे से खड्डे में मोटरसाइकिल के टायर को हल्का सा ब्रेक मार कर उतार कर आगे बढ़ने लगा लेकिन खड्डे और ब्रेक मारने की वजह से सभी अपने आप को संभालने के चक्कर में जल्दबाजी में अपना हाथ सोनू की कमर मैं डालना चाहिए और उसे कस के पकड़ना चाहि लेकिन उसका हाथ सोनू के कमर से होता हुआ सीधे सोनू के पेंट बनाने तंबू पर चला गया अपने आप को संभालने के चक्कर में संध्या सोनू के लंड को जो की पैंट में तंबू की शक्ल ले चुका था उसे पकड़ ली,,,,,

अरे बाप रे,,,,,,(अपने बेटे के तंबू को पकड़कर संध्या तो अपने आप को संभाल ले चुकी थी लेकिन जब उसे इस बात का एहसास हुआ कि वह अनजाने में अपने बेटे के लंड को पकड़ ली है तो एकदम से गनगना गई,,,, संख्या को इस बात का एहसास होते वह तुरंत अपना हाथ सोनू के तंबू पर से हटा कर कंधे पर रख ली लेकिन मदहोशी के आलम में वह अपना हाथ हटाते हटाते जानबूझकर एक बार करके अपने बेटे के लिए अपनी मुट्ठी में लेकर दबा दी उसे इस बात का एहसास हो गया कि उसके बेटे का हथियार कुछ ज्यादा ही मोटा तगड़ा और बड़ा है,,,,संध्या ईतने में काफी उत्तेजित हो चुकी थी और अपने बेटे के कंधे पर हाथ रख कर एक बार फिर से अपने आप को संभाल ले गई थी,,, लेकिन सोनू का बुरा हाल था उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी युक्ति इतना काम कर जाएगी की पहली बार में ही उसकी मां उसके लंड को पकड़ लेगी भले ही पेंट के ऊपर से ही सही लेकिन उसे गरमा गरम एहसास दे गई थी,,, आश्चर्य और उत्तेजना के मारे सोनू का मुंह खुला का खुला रह गया था,,,, लेकिन इस अफरातफरी में सोनू को दुगना मजा भी प्राप्त हो चुका था क्योंकि एकाएक ब्रेक मारने की वजह से संध्या की दाहिनी चूची पूरी की पूरी तरह से दबाव बनाते हुए उसके बेटे की पीठ से चिपक सी गई थी,,,और सोनू को अपनी पीठ के ऊपर अपनी मां की नरम नरम चुची का अहसास बड़ी अच्छी तरह से हुआ था,,,,,,,

इस हरकत को लेकर दोनों एक दूसरे से किसी भी प्रकार की बहस किए बिना ही मार्केट पहुंच गए,,,, सोनू एक अच्छी सी जगह पर मोटरसाइकिल खड़ी करके,,, अपनी मां के पीछे पीछे,,,शब्जी मंडी में जाने लगा,,,।
Bahot behtareen zaberdast shaandaar update bhai lajawab
 

rohnny4545

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हाथ में थैला लिए हुए संध्या मार्केट के अंदर की तरफ जाने लगी जहां पर ढेर सारे ठेले लगे हुए थे,,,, सोनू अपनी मां की मटकती हुई गांड देख कर मस्त हो जा रहा था,,, ऐसा नहीं था कि वहां पर और भी मटकती हुई गांड नहीं थी,,, वहां ढेर सारी मदमस्त खूबसूरत औरतों की मदमस्त बड़ी-बड़ी मटकती गांड थी,,,लेकिन सोनू का आकर्षण सबसे ज्यादा अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड पर ही था जो की कसी हुई साड़ी पहने होने के नाते उसकी बड़ी-बड़ी गांड की दोनों फांकें एकदम सटी हुई और उसके उभार साड़ी के ऊपर से भी साफ नजर आ रहे थे,,,,, अंदर के बाजू केवल सब्जियां ही मिलती थी इसलिए सोनू को वहां का इशारा करके वही खड़े रहने के लिए बोली और सोनू वही खड़ा रह गया,,।
सोनू वहीं खड़े होकर मार्केट में आने जाने वाली हर एक औरत को बड़ी बारीकी से निहार रहा था खास करके उनके दोनों खरबूजो को और उनके पिछवाड़े को,, लेकिन जो बात उसकी मां के खरबूजा और पिछवाड़े में था वह बात किसी में उसे नजर नहीं आई,,,,, सोनू को वह पल याद आने लगा जब खड्डे में मोटरसाइकिल का टायर जाकर बाहर निकला और ब्रेक लगाने की वजह से उसकी मां अपने आप को संभाल नहीं पाई और संभालने के लिए उसका सहारा लेने के लिए अनजाने में ही पेंट में बनी तंबू को वह अपने हाथ में लेकर दबोच ली,,,, कुछ पल को याद करके सोनू की हालत खराब होने लगी अनजाने में ही सही अपने लंड को अपनी मां की हथेली में महसूस करके उसे अद्भुत सुख का अहसास हुआ था अपने मन में यही सोच रहा था कि काश उसकी मां के हाथों में उसका नंगा लंड आ जाए तो कितना मजा आ जाए,,,,,

थोड़ी ही देर में संध्या हरी सब्जियां खरीद कर बाहर आने लगी,,,, और सोनू की नजर जैसे ही अपनी मां पर पड़ी उसके चेहरे पर खुशी के भाव झलक ने लगे,,, सोनू का अपनी मां को देखने का रवैया पूरी तरह से बदल चुका था,,,। अपनी मां के अंदर उसे काम की देवी नजर आती थी जिसे देख कर उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगती थी,,,,,,, संध्या सोनू के एकदम करीब पहुंच गई और उसे सब्जियों का थैला थमाते हुए बोली,,,।

मेरे पीछे पीछे आओ,,,, फल खरीदना है,,,,
(इतना कहकर संध्या आगे आगे अपनी गांड को जानबूझकर कुछ ज्यादा ही मटकाते हुए चलने लगी,,, क्योंकि वह यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि जब उसके पीछे सोनू रहता है तो उसकी नजर उसकी बड़ी-बड़ी पिछवाड़े पर ही रहती है,,,वसंत विहार इस बात को भी अच्छी तरह से जानती थी कि मर्दों की सबसे बड़ी कमजोरी औरतों की बड़ी बड़ी गांड होती है जैसा कि सोनू की कमजोरी उसकी खुद की गांड बनती जा रही थी,,, सोनू अपनी मां के कमर के नीचे वाले घेराव को देखता हुआ आगे बढ़ रहा था और संध्या इस बात की तसल्ली करने के लिए रह रह कर अपनी नजर को पीछे की तरफ घुमा कर सोनु की तरफ देख ले रही थी और उसकी नजरों को अपनी कमर के नीचे भारी भरकम घेराव पर पड़ता हुआ देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो जाती थी,,, कुछ दूरी तक चलने के बाद एक ठेला वाला नजर आया,,, जिस के ठेले पर केले संतरे तरबूज खरबूजा सब कुछ थे,,,,। संध्या ठेले के करीब पहुंचकर,,, सोनू की तरफ देखते हुए मोटे तगड़े लंबे केले के गुच्छों की तरफ उंगली से इशारा करते हुए बोली,,,।

भैया यह केले कैसे दिए,,,,


ले लीजिए बहन जी आपसे कैसा भाव तोल करना आप तो हमेशा के ग्राहक हैं,,,,,,,(पहले वाला उम्रदराज बुढा इंसान था संध्या अक्सर उसी के ठेले पर से फल खरीदा करती थी और बिल्कुल भी भाव तोल नहीं करती थी,,,, उसकी बातें सुनकर संध्या के चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी और वह केले के गुच्छे को उठाकर उसे अपने हाथ में लेते हुए सोनू से बोली,,)

देख सोनु केला हो तो ऐसा लंबा तगड़ा और मोटा ताकि एक ही केले में पेट भर जाए,,,, छोटे केले मुझे बिल्कुल भी नहीं पसंद,,,, तेरे पास भी है ना ऐसा,,,( एकाएक उसके मुंह से इस तरह के शब्द निकलते ही वह झट से अपनी बात को बदलते हुए बोली,,) मेरा मतलब है कि तुझे भी इस तरह के कहने पसंद है ना,,,,.


नहीं नहीं मम्मी मुझे अकेला बिल्कुल भी नहीं पसंद मुझे तो खरबूजा पसंद है और वह भी इस तरह के (सोनू उंगली से इशारा बड़े-बड़े खरगोशों की तरफ कर रहा है लेकिन उसकी नजर अपनी मां के दोनों खरबूजो पर थी,,, सोनू की नजरों को देखकर संध्या एकदम से सिहर उठी,,,,)

ओहहहह,,, माफ करना मैं भूल गई थी तुझे केला नहीं पसंद है,,,,( संध्या केले के गुच्छो में से एक केले को पकड़ कर उसे अपनी हथेली में भरली और उसे इधर-उधर घुमा कर देखने लगी सोनू यह देखकर एक दम मस्त हो जाए होता सोनू अपने मन में यही सोच रहा था कि उसकी मां केले को अपनी हथेली में लेकर शायद लंड की मोटाई और लंबाई का अंदाजा लगा रही थी,,,,, और यह बात बिल्कुल सच है थी संध्या केले को हथेली में पकड़ कर कुछ देर पहले जो अनजाने में यह अपने बेटे के तंबू को पकड़े ली थी उससे अंदाजा लगा रही थी कि उसके बेटे का लंड कितना मोटा और लंबा होगा,,,केले की लंबाई और मोटाई को अपने बेटे के लिंग की मोटाई और लंबाई से तुलना करके उसके चेहरे पर तसल्ली खड़ी मुस्कान तैरने लगी,,, वह पूरी तरह से संतुष्ट होते हुए ठेले वाले भैया से बोली,,,।)

लीजिए भैया इसे पेक कर दीजिए,,,,(इतना कहकर अपने बेटे की तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी सोनू के दिल में खलबली मची हुई थी उसकी मां कुछ ज्यादा ही खुलती चली जा रही थी सोनू को अपनी मां की कही बातों का अर्थ तो समझ में आ रहा था लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा था कि उसकी मां की तरफ से उसे यह इशारा है या अनजाने में ही यह सब हो रहा है इसी कशमकश में वह असमंजस में पड़ा हुआ था तभी वह ठेलेवाला केले को एक पॉलीथिन की थैली में डालकर संध्या को थमाते हुए बोला,,,)

और कुछ चाहिए बहन जी,,,

हां ,,, मेरे बेटे को खरबूजा पसंद है और वह भी गोल गोल और बड़े-बड़े,,,,,,(सोनू की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोली)

हां मम्मी मुझे तो बड़े-बड़े खरबूजे ही पसंद है देखते ही पता चल जाता है कि कितना मजा आने वाला है,,,(सोनू अपनी मां की भरी हुई छातियों की तरफ देखते हुए बोला,,,दोनों मां-बेटे जिस तरह से बातें कर रहे थे दोनों एक दूसरे की बातों का मतलब अच्छी तरह से समझ रहे थे लेकिन वह ठेलेवाला बिल्कुल भी उन दोनों मां-बेटे की बातों का मतलब समझ नहीं पा रहा था,,, सोनू अपनी मां की छातियों की तरफ देखते हुए ठेले पर से तो बड़े-बड़े खरबूजे अपने हाथों में उठा लिया और दोनों खरबूजो की जोड़ी को सामने हाथ पर रख कर अपनी मां को दिखाते हुए संध्या की भारी-भरकम छातियों से तकरीबन 1 फीट की दूरी पर लाते हुए बोला,,,)

इस तरह के खरबूजे मम्मी मुझे बहुत पसंद है,,,,।

ठीक है बेटा तेरी खुशी में मेरी खुशी है तुझे तो पसंद है मैं तेरी ख्वाहिश जरूर पुरी करूंगी,,,,(इतना कहते हुए वह अपने बेटे के हाथों में से दोनों खरबुजो को लेकर उस ठेले वालों को थमाते हुए बोली,,,)

लो भैया इसे भी वजन कर दो,,,,

(ठेलेवाला झट से संध्या के हाथों में से बड़े-बड़े खर्चे को लेकर तराजू में रखकर उसे तोलने लगा और तोलने के बाद उसे थेली में भरकर संध्या को थमा दिया,,,दोनों मां-बेटे की तरह से बातें कर रहे थे उन बातों के मतलब को अपने मन में ही समझ कर दोनों अंदर ही अंदर खुश हो रहे थे और मस्त भी हुए जा रहे थे,,, सोनू की खुशी का ठिकाना ना था क्योंकि इस तरह से दो अर्थ वाली बात वह पहली बार कर भी रहा था और अपने मां के मुंह से सुन भी रहा था उसे इस तरह की बातें करने में मजा आ रहा था और काफी उत्तेजना का अनुभव हो रहा था और इसी उत्तेजना के चलते उसके पेंट में धीरे-धीरे तंबू सा बनता चला जा रहा था,, और संध्या अपने बेटे के पेंट में बन रहे तंबू को चोर नजरों से देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे इस बात की संतुष्टि थी कि उसकी गर्म बातों से उसका बेटा गर्म हो रहा था,,,,,,, थोड़ी ही देर में दोनों वापस मोटरसाइकिल पर बैठकर घर आ गए,,, तब तक शगुन घर पर आ चुकी थी,,,,,,,,, इस बात का अंदाजा दोनों को इस बात से लग गया था क्योंकि घर के बाहर उसकी सैंडल रखी हुई थी,,,, संध्या को लगा था कि घर पर शगुन के आ जाने पर उसे गरमा गरम चाय जरूर मिलेगी क्योंकि उसे थोड़ी थकान महसूस हो रही है इसलिए दरवाजा खोल कर जैसे ही वह घर में प्रवेश की,,, वह सोनू से बोली,,,

सोनू देख तो शगुन ने चाय बनाई है कि नहीं,,,, अगर बना दी हो तो मेरे लिए भी एक कप चाय लेते आना और ना बनाई हो तो उसे बनाने के लिए कह देना,,,,

ठीक है मम्मी,,,,( सोनू अपनी मां के ठीक पीछे ही खड़ा था और उसके दाएं और पर कुर्सी रखी हुई थी,,, संध्या सब्जी से भरा थैला अपने दाहिने साइड पर नीचे रख दी और सोनू इतना कहने के साथ ही आगे बढ़ना चाहता था क्योंकि उसे लगा कि उसकी मां दाहिने और घूमेगी और कुर्सी पर बैठे की लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ संध्या तुरंत बांऊ और अपने कदम बढ़ा दी सोनू एकदम से अपने आप को संभाल नहीं पाया और अपने कदम जैसे ही आगे बढ़ाया था वह अपनी मां से टकरा गया,,,, इतनी जल्दी मैं वह अपनी मां के कहे अनुसार किचन में जाने के लिए कदम बढ़ाया था कि काफी जोर से वह अपनी मां से टकरा गया था और उसकी मां धक्का खा कर आगे की तरफ लगभग लगभग गिरने ही वाली थी कि सोनू अपने दोनों हाथ आगे की तरफ लाकर उसे कस के अपनी बाहों में भर लिया जो कि सोनू का लिया गया यह कदम उसे संभालने के लिए था लेकिन जिस तरह से अपना दोनों हाथ आगे की तरफ लाकर अपनी मां को पकड़ा था उसे संभाला था वह बिल्कुल अपनी बाहों में लेने जैसा ही हरकत था,,,, अफरा तफरी में सोनू का हाथ अपनी मां की दोनों चूचियों पर आ गया था,,, और सोनू के पेंट में बना तंबू ठीक उसके पिछवाड़े से जा लगा था जोकि उत्तेजना के मारे काफी कड़क हो चुका था,,,संध्या लगभग आगे की तरफ गिरने ही वाली थी इसलिए उसे संभालने के चक्कर में सोनू कसके अपनी हथेली दबोच कर उसे थाम लिया था लेकिन उसे बचाने के चक्कर में उसकी दोनों हथेलियां कसके संध्या की दोनों चुचियों पर जम गई थी और सोनू उसे अपनी हथेली में जोर से दबाए हुए था और अपना तंबू अपनी मां के पिछवाड़े में एकदम से सटाया हुआ था जिसकी वजह से सोनू के पेंट ने बना तंबू एक बार फिर से,,, साड़ी सहित उसकी बड़ी बड़ी गांड की दोनों फांकों के बीच गहराई में धंसने लगी थी,,,संध्या को अपने बेटे का लंड एक बार फिर से अपने गांड के बीचोबीच धंसता हुआ महसूस हुआ,,, वह एकदम से गनगना गई,,,, पल भर में ही उसे अपने बदन में सोनू की हरकत की वजह से दुगना मजा मिला था एक तो सोनू ने कसके उसकी दोनों चूचियों को अपनी हथेली में दबोच रखा था और दूसरा वह अपने लंड को जानबूझकर ना सही लेकिन उसे बचाने के चक्कर में उसकी गांड के बीचो-बीच दे मारा था,,,, अपने बेटे के जवान लंड को अपनी गांड के बीचो बीच महसूस करके संध्या एकदम से मदहोश हो गई,,, उसे कुछ समझ में नहीं आया कि वह क्या करें,,,,सोनू अपनी मां को संभाल चुका था लेकिन वह काफी उत्तेजित हो चुका था और उत्तेजना बस अपने आप पर काबू ना रखने की वजह से सोनू की कमर अपने आप आगे की तरफ बढ़ गई और सोनू की कमर इस तरह से आगे की तरफ बढी मानो,,, किसी औरत की बुर में लंड डालकर बचे हुए लंड को बड़ी चलाकी से पूरा का पूरा अंदर डाल रहा हो,,, सोनू तो संभोग के हर एक पहलू से अनजान था लेकिन संध्या अच्छे तरीके से संभोग के हर एक पहलू हर एक पृष्ठ को बकायदा पड़ चुकी थी इसलिए सोनू की यह हरकत संध्या को उस पल की याद ताजा करा गया जब ऐसे ही उसका पति संजय बचे हुए लंड को पूरी शिद्दत से उसकी बुर की गहराई में नापने के लिए डाल देता था,,,, सोनू मदहोश हो चुका था अपनी मां की भारी-भरकम गरमा-गरम पिछवाड़े को ठीक अपने लंड के आगे वाले भाग पर एकदम से महसूस करके वह पूरी तरह से गर्म हो चुका था,,, और ऊतेजना बस वह अपनी मां को संभालने के चक्कर में उसकी चूची को अपनी हथेली में भर लिया था और उसे अब जानबूझकर एक बार कस के दबा लिया था सोनू की पांचों ऊंगलियां ऐसा लग रहा था कि मानो घी में नहा रही हो,,,संध्या अपने बेटे की हर एक हरकत को अपने वजन के अंदर अच्छी तरह से महसूस कर रही थी उसे अपने बेटे की यह हरकत बेहद मदहोश कर देने वाली महसूस हो रही थी वह अपने बेटे को बिल्कुल भी रोकना नहीं चाहती थी वह तो चाहती थी कि सोनू इससे आगे बढ़ जाए लेकिन तभी सोनू अगले ही पल अपनी मां को संभाल कर उसके बदन से दूर होता हुआ बोला,,,,।

सॉरी मम्मी अनजाने में हो गया,,,,


ठीक है बेटा जा जल्दी से देख,,,,(इतना कहते हुए संध्या अपने कदम जो कि बाएं तरफ बढ़ा रही थी उसे दाएं तरफ वापस घुमाकर कुर्सी पर बैठ गई,,,, उत्तेजना के मारे उसकी सांसे उखड़ी हुई थी,,, इससे ज्यादा वह अपने बेटे से कुछ भी बोल सकने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं थी वह तो खुद ही अपने अंतर्मन के मनों मंथन में लगी हुई थी,,, सोनू की हर एक हरकत संध्या को मादकता का एहसास दिला रही थी,,, सोनू किचन में जा चुका था और वहां जाकर देखा तो वहां चाय बनी हुई नहीं थी इसलिए वह वापस आकर अपनी मां से बोला,,,।)

मम्मी चाय तो बनी हुई नहीं है,,,,,। (बड़े ही नम्र भाव से वह अपनी मां से बोला लेकिन अपने पेंट में बने तंबू को अपनी मां की नजरों से बचा नहीं सका किचन से निकलते ही संध्या की नजर सीधी अपने बेटे के तंबू पर ही गई थी जो कि अच्छे खासे शक्ल में उभर चुका था,,, उसे देखते ही संध्या अपने मन में बोली,,,)

बाप रे बाप मुझे तो लगता है कि मेरे पति का लंड मेरे पति से भी ज्यादा मोटा तगड़ा और लंबा है,,,,
(संध्या यह सब सोचते हुए ऐसा लग रहा था कि मानो ख्यालों में खो गई हो इसलिए सोनू एक बार फिर बोला)

क्या करूं मम्मी चाय तो बनी नहीं है,,,,।

ठीक है बेटा जैसा जून को उसके कमरे में से बुला कर ले आ और मुझे चाय बनाने के लिए बोल एकदम लापरवाह हो गए हैं ऐसा नहीं कि शाम की चाय बना दुं,,,

(सोनू अपनी मां की बात सुनकर अपनी बड़ी बहन के कमरे की तरफ जाने लगा अपनी मां के ख्यालों में वह पूरी तरह से खोया हुआ था,,,,,थोड़ी ही देर में बस अपनी बड़ी बहन सब उनके कमरे के बाहर खड़ा था दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था शगुन बेफिक्र और एकदम लापरवाह थी और अभी अभी अपने बाथरूम से नहाकर बाहर निकली थी,,, कुर्ती तो पहन चुकी थी लेकिन थोड़ा सा झुक कर अपने अलमारी में से अपनी सलवार ढूंढ रही थी सोनू तो अपनी मां के ख्यालों में मस्त था उसे नहीं मालूम था कि कमरे के अंदर एक बेहद कामुकता भरा दृश्य उसका इंतजार कर रहा है,,,,पर वह बिना दरवाजे पर दस्तक दिए दरवाजे को हल्का सा खोल दिया और जैसे ही उसकी नजर सामने पड़ी वह एकदम से हक्का-बक्का रह गया नीचे उसकी मां और ऊपर कमरे में उसकी जवान बहन उसके बदन में आग लगा रही थी,,,, सोनू की नजर सीधे अपनी बहन की गोल-गोल एकदम दूध से भी गोरी गांड पर चली गई,,, पल भर में ही सोनू के बदन में 4 बोतलों का नशा छा गया इतनी खूबसूरत और कसी हुई गांड वह जिंदगी में पहली बार देख रहा था और वह भी एक दम नंगी भले ही कमर के ऊपर कुर्ती थी लेकिन कमर के नीचे से उसकी बहन पूरी तरह से नंगी थी जो कि अलमारी में अपने कपड़े ढूंढने के लिए झुकी हुई थी जिसकी वजह से उसकी गोल-गोल गांड कुछ ज्यादा ही उभर कर बाहर की तरफ निकली हुई नजर आ रही थी,,, अपनी बहन की मस्त गांड देखकर सोनू के लंड में दर्द होने लगा,,,, सोनू के साथ आनन-फानन में मादकता भरा वाक्या पेश आ चुका था,,, अभी-अभी वह अपनी मां के मदमस्त पिछवाड़े को अपने लंड पर महसूस करके और उसकी गोल गोल खरबूजे को अपनी हथेली में लेकर दबा कर उसका आनंद लेकर आया ही था कि उसकी बहन ने अपनी गोरी गोरी गांड दिखाकर उसके ऊपर बिजलियां गिराने का काम कर दी थी,,, अब होश का बिल्कुल भी ठिकाना ना था सोनू पागलों की तरह अपनी बहन की गांड को घुरे जा रहा था,,,,तभी सगुन को दरवाजे पर कुछ हलचल सी महसूस हुई और वह झट से पलटकर दरवाजे की तरफ देखी तो सोनू को दरवाजे पर खड़ा देखकर और उसकी नजरों को ठीक अपनी गांड पर चुभता हुआ महसूस करके वह एकदम से हक्की बक्की हो गई,,,,,, वह आनन-फानन में सोनू की तरफ मुंह करके खड़ी हो गई और अपनी सलवार को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर उसे अपनी दोनों टांगों के बीच के बेशकीमती खजाने को छुपाने की भरपूर कोशिश करने लगी,,, अपनी बहन की यह हरकत सोनू के तन बदन में वासना की लहर को और ज्यादा उंची उठाने लगी,,, शगुन अपनी बेशकीमती खजाने को छुपाने में कामयाब हो चुकी थी,,,। सोनू के मन में अपनी बहन की बुर देखने की इच्छा हो चुकी है क्योंकि उसे ऐसा ही था कि जिस तरह से वह कमर के नीचे नंगी है अगर वह घूमने की तो उसकी बुर उसे जरूर दिखाई दे जाएगी,,, लेकिन शगुन अपनी तरफ से पूरी फुर्ती दिखाते हुए अपनी बुर को छुपा ले गई थी,,, और वह लगभग हकलाते हुए बोली,,,,।


ततततत,,, तू क्या कर रहा है इधर,,,,,,

मैं तो तुम्हें बुलाने आया था मम्मी बुला रही है चाय बनाने के लिए,,,,,

नोक नहीं कर सकता था दरवाजे पर,,,,


ममममम,,,, मुझे क्या मालूम था कि तुम इस तरह से होगी,,,,


अच्छा ठीक है तू जा मै आती हुं,,,,

ठीक है जल्दी आना,,,,(इतना कहकर सोनू वापस चला गया लेकिन अपने मन में अपने दिलो-दिमाग में अपनी बहन की मदमस्त यौवन से भरी हुई छवि लेता है गया,,, वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था,,, शगुन की भी हालत कम खराब नहीं थी सोनू के जाते ही वह लगभग उसी स्थिति में जल्दी से दरवाजे के लाता कर दरवाजा बंद करके लोग कर दी,,,,)

बाप रे,,,, यह सोनू की मां बिल्कुल भी तमीज नहीं है,,,,
(इतना कहकर वाली सलवार पहनने से पहले बिस्तर पर रखी हुई गुलाबी रंग की पेंटी पहनने लगी,,,, और अपने मन में सोचने लगी कि उसका भाई उसकी गांड जरूर देख लिया होगा तभी तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई थी,,,, इतना अपने मन में सोच के उसके मन में अजीब सी हलचल होने लगी उसे इस बात का ख्याल आया कि उसके भाई ने उसे कमर से नीचे एकदम नंगी देख लिया है खास करके वह उसकी गांड को ही देख रहा था,,,,इसका मतलब साफ था कि वह उसकी गांड को देखकर मस्त हो चुका था तभी तो बार दरवाजे से गया नहीं वरना चला जाता बिना कुछ बोले और उसे पता भी नहीं चलता लेकिन मैं तो पागलों की तरह तेरी नजरों से उसे ही घूर रहा था,,,सलवार पहनते हुए शगुन को इस बात का ख्याल आया कि जब वह सोनू की तरफ मुंह करके खड़ी थी और हाथ में तलवार लेकर अपनी बुर को छुपा रही थी तो सोनू की निगाहें उसकी दोनों टांगों के बीच ही घूम रही थी इसका मतलब साफ था कि वह उसकी बुर देखना चाहता था,,, यह ख्याल मन में आते ही शगुन की हालत खराब होने लगी,,,, अजीब सी हलचल उसके तन बदन में होने लगी पल भर में उसे ऐसा लगा कि जो चीज उसका भाई देखना चाहता था उस चीज को छुपाकर नहीं बल्कि खोल कर दिखा देना चाहिए था,,, शगुन अपने मन में यह सोच रही थी कि ,,, वह भी तो देखें कि उसकी गर्म जवानी और खूबसूरत गोरा बदन लोगों पर किस तरह से बिजलिया गिराता है,,,,इतना तो उसे विश्वास हो चुका था कि उसके पापा के साथ-साथ उसके गोरे बदन को देख कर उसके भाई की भी हालत खराब हो चुकी थी यह ख्याल मन में आते ही उसके चेहरे पर उसके होठों पर मुस्कान तैरने लगी वह जल्दी से कपड़े पहन कर कमरे से बाहर आ गई और चाय बनाने लगी,,, तीन कप चाय बनाकर वह अपनी मां और अपने भाई को धीमा कर उन दोनों के सामने ही बैठकर चाय का मजा लेने लगी सोनू अपनी बहन से नजर नहीं मिला पा रहा था और शगुन अपने भाई के तन बदन में हो रही हलचल को महसूस करके खुश हो रही थी,,। संध्या को तो इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि सोनू अपनी बहन की नंगी गांड के दर्शन करके आया है वह तो सोनू के साथ दो अर्थों में की गई बातों को लेकर मस्त हुए जा रही थी,,,।
 
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