फिर एक कुर्ती के नीचे, अपनी ब्रा और पैंटी डाली, और एक पेटिकोट के नीचे माँ की पैंटी डाल दी सूखेने , माँ को भी ऐसे ही देखा था , ब्रा - पैंटी ढक कर सूखाते हुए, सो मैंने भी वही किया।
अलग से सुखाते हुए शर्म आ रही थी, पड़ोस वाली भाभी देख लेंगी तो क्या सोचेंगी।
फिर जल्दी से, अंदर आ गयी, सोचा अब नहा लेती हु,
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प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
हम्म , आज लिखते हुए यह सोच रही थी, आज भी मेरी वो ही आदत है , पेटीकोट के निचे ब्रा और पैंटी सूखाने की, जवानी से आज तक यही होता आया है , हिम्मत ही नहीं हुई की ब्रा - पैंटी अलग से सूखा दू, अगर सिर्फ ब्रा - पैंटी धोकर रखती हु तो बाथरूम मैं ही, बाहर डालने ही हिम्मत नहीं होती।
सभी, महिला पाठको से गुंजारिश, क्या आप भी मेरी जैसे , - कपड़ो [जैसे - पेटीकोट या साड़ी ] के नीचे सुखाती है हाँ या न , प्लीज शेयर करे यदि नहीं, तो मेरा सलाम है आपको, पर यह जरूर बताये की इतनी हिम्मत कहाँ से ला पायी आप.
फिर, अपनी दुनिया से बीती यादो मैं। ..... एक सफर सुनहरी यादो का।
बाथरूम मैं आकर, दरवाजा बंद किया , जल्दी से फिर उतारी कुर्ती जो काफी भीग गयी थी फिर सलवार भी उसका भी वो ही हाल था, गीली। दोनों को "निरमा" डाल दी, ब्रा खोली फिर आईने मैं अपने जोबन को देखा एकदम उठे हुए , गोल हल्का भूरा कलर था निप्पल का , फिर माँ की बात याद आयी "शादी" की , "सच्ची" निप्पल कड़े व् खड़े हो गए थे और वो "नीचे वाली" एक करंट सा अहसास हुआ था , पता नहीं क्या हुआ था. फिर मैंने पैंटी उतार दी, देखा "चाशनी " से भरी हुई थी, उफ़, इतना हाय यह क्या।
फिर , कुछ होश आया, पागल अभी नहाना भी है, कुर्ती भी धोनी है. जल्दी कर नहीं तो माँ की आवाज आने वाली है.
फिर , जल्दी से "रिन" लगाया कपड़ो [ कुर्ती,सलवार, -ब्रा पैंटी] मैं, निकले साफ़ पानी से और टांग दिए खूंटी पर फिर बालो मैं शैम्पू लगया, पाउच था "सिनसिल्क" का खोला उसे, फिर झाग से खेलना ही , ही। ....
बाल्टी से पानी लिया , आँख बंद और लगी बाल धोने , फिर बालो का हल्का जुड़ा बनाया और साबुन लिया, "संतूर" था, हाँ , माँ को वो ही पसंद था, अक्सर वो यही लाया करती थी, मुझे लक्स, या लिरिल पसंद था पर कभी - कभी ही ला पाती थी.
लगाने लगी "संतूर" जोबन पर , उफ़,क्या अहसास था , साबुन जब जोबन पर उतरता व् चढ़ता था , क्या बताऊ कैसा लगता था , करीब पांच मिनिट्स थक यही करती रही. फिर पीठ और पैर पर लगाने लगी, जहंघो के बीच "वहां" ,सब साफ़ था , अक्सर पीरियड्स से पहले "वीट " से सब साफ़.
साबुन हाथ मैं मला और लगाने लगी "वहां" नीचे आज तो कुछ अजीब ही था , करंट चल रहा हो जैसे , हर बार हात लगते हुए जोबन तक.
उफ़, क्या परेशानी है ये , फिर जल्दी से पानी डाला बदन पर , कुछ करंट कम हुआ, फिर नहा कर जैसे उठी देखा,
"टॉवल" उफ़,वो तो लायी ही नहीं। अब , मुश्किल , सुनो माँ के भजन.
दो मिनिट्स तक, खड़ी रही "निप्पल" भी खड़े थे ठंडी से, हलके कड़क भी थे , फिर हिम्मत कर के माँ को आवाज लगायी।
मैं - माँ, माँ , आना जरा इधर।
कुछ देर मैं माँ आयी, बाथरूम के दरवाजे के बाहर , बोली।
माँ - क्या हुआ, निहारिका , सब ठीक.
मैं है, माँ , सब ठीक, पर मैं "टॉवल" लाना भूल गयी , ला दो न।
माँ - पागल लड़की , ऐसे कोई जाता है बाथरूम मैं नहाने को, बिना टॉवल के. सुधर ले अपनी आदतों को , जवान हो गई , शादी के लायक और ये हरकत , उफ़ भगवान जाने क्या होगा इस लड़की का.
और भी " सुवचन" "भजन" जो अब शायद दिन भर ही सुनने थे , कुछ - कुछ बोलती चली गयी, कुछ सुनाई दिया कुछ नहीं। फिर टॉवल देकर बोली, जल्दी आ.
मैं - हाँ, माँ.
फिर गड़बड़, अब तो पीटना ही है माँ के हाथ से, निहारिका गयी आज तो तू.
कपडे नहीं लायी, कैसे भूल गई, ओह, कपडे सुखाने के बाद शर्म से सीधा बाथरूम मैं भाग आयी, कोई ब्रा - पैंटी न सूखाते देख ले.
फिर सुखाया बदन को, जोबन पर लपेटा , आईने मैं देखा "सेक्सी" लग रही थी, निप्पल फिर कड़े हो गए , धत्त, अब बाहर यह सोच कर धीरे से दरवाजा खोला बाथरूम का , देखा माँ नहीं दिखी , बच गए।
तेज़ी से , अपने रूम मैं भागी। किया दरवाजा बंद , पीछे मुड़ी
सांस ऊपर की उप्पर और निचे की नीचे , माँ खड़ी थी सामने , हाथ मैं नयी बेडशीट लेकर खड़ी थी, शायद चेंज करनी आयी थी।
माँ - निहारिका। ....................