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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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कहानी वापस वर्तमान में आ गई!
ये अनु भले ही भोली/मूर्ख लगती है, लेकिन न जाने क्यों लगता है कि वीर जैसे को वो ही सीधी पटरी पर ला सकती है! भोलापन हमेशा कमज़ोरी नहीं होता। देखते हैं! उधर रूप को पढ़ कर लगता है कि रॉकी जैसा लफ़ंगा उसकी लाइफ में आना ही नहीं चाहिए। प्रतिभा ऑन्टी के लिए मेरी पहले कही हुई बात सही बैठी है - वैसे भी यह बात सच है। माएँ जल्दी खुल जाती हैं अपनी ममता बरसाने! लेकिन बाप को अपनी बापता दिखाने में समय लगता है।
बढ़िया अपडेट! कीप इट अप!
 

Kala Nag

Mr. X
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कहानी वापस वर्तमान में आ गई!
ये अनु भले ही भोली/मूर्ख लगती है, लेकिन न जाने क्यों लगता है कि वीर जैसे को वो ही सीधी पटरी पर ला सकती है! भोलापन हमेशा कमज़ोरी नहीं होता। देखते हैं! उधर रूप को पढ़ कर लगता है कि रॉकी जैसा लफ़ंगा उसकी लाइफ में आना ही नहीं चाहिए। प्रतिभा ऑन्टी के लिए मेरी पहले कही हुई बात सही बैठी है - वैसे भी यह बात सच है। माएँ जल्दी खुल जाती हैं अपनी ममता बरसाने! लेकिन बाप को अपनी बापता दिखाने में समय लगता है।
बढ़िया अपडेट! कीप इट अप!
आपका विश्लेषण एवं अनुमान एकदम सटीक है l कहानी में हर चरित्र एक दुसरे को उठा रहे हैं, निखार रहे हैं l हर एक दृश्य एवं परिदृश्य को उभारने के लिए अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियाँ बना रहे हैं l कहानी का नायक विश्व है और जाहिर है रूप उसकी नायिका है l बाकी आप समझदार हैं
❤️❤️❤️❤️❤️
 

Rajesh

Well-Known Member
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👉 आठवां अपडेट
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अपने चैम्बर में बैठे खान अपने टाई को थोड़ा ढीला करता है, और रुमाल से अपना चेहरा पोंछता है, फ़िर अचानक - ओ ह्... व्हाट आइ आम डुइंग.... एक मुज़रिम ही तो आ रहा है..... कौन सा VIP आ रहा है... यह... यह मुझे क्या.... हो गया है.... म.. मैं इतना नर्वस क्यूँ फिल कर रहा हूँ.... या.... आ.. आ.. क्या मैं डर रहा हूँ...
ओह... शीट...(टेबल पर एक घूंसा मारता है, फिर अपने दोनों मुट्ठीयों को भिंच कर टेबल पर रगड़ने लगता है )

इतने में एक आवाज़ उसे सुनाई देती है - क्या मैं अंदर आ सकता हूँ....
खान दरवाज़े पर खड़े विश्वा को देखता है और देखता ही रह जाता है l

सुंदर, सौम्य, शांत व सुदर्शन पर भाव हीन चेहरा लिए एक नौजवान उसके सामने खड़ा था, खान अपने आपको संभाला और कहा
खान - आओ विश्व प्रताप... आओ.. बैठो..
विश्वा - (अपना सर ना में हिलाते हुए) नहीं... सर... आप इस कारागृह के सरकारी अधिकारी हैं... और मैं एक सजायाफ्ता अपराधी.. हाँ अगर साधारण नागरिक होता तो ज़रूर बैठता... माफ लीजिए
मैं नहीं बैठ सकता...
खान - अरे नहीं... देखो बेशक यह केंद्रीय कारागृह है.... पर मैं अभी तुम्हें सरकारी काम से ही बुलाया है.. और क्यूँकी तुम अब यहाँ कुछ ही दिनों में रिहा हो कर जाने वाले हो... तो मुझे तुम पर एक रिपोर्ट बना कर हेड ऑफिस व गृहमंत्रालय को भेजना पड़ेगा... यह प्रोसिजर और प्रोटोकोल भी है ... इसलिए बैठ जाओ...
विश्वा आगे बढ़ता है और एक कुर्सी खिंच कर खान के सामने बैठ जाता है l
खान - सो.. विश्वा... उर्फ़ श्री विश्व प्रताप महापात्र
मेरे लिए यह रिपोर्ट बनाना जितना महत्वपूर्ण है उससे भी ज्यादा तुम्हारे बारे में जानने के लिए मेरी उत्सुकता भी है.......
अगर... बुरा ना मानों तो कुछ पुछ सकता हूँ...
विश्वा - जी...
खान - विश्वा... मुझे पुलिस में नौकरी करते हुए पच्चीस साल से अधिक हो चुका है.... और मेरा कई तरह के लोगों से सामना हुआ है... तुम कुछ अलग हो... शायद बहुत... तुमने जैल में रहकर अपना ग्रेजुएशन किया और लॉ भी...
विश्वा- नहीं मैं जैल में आने से पहले करेस्पंडींग डिस्टेंसिंग एजुकेशन में ग्रेजुएशन शुरु कर चुका था.... यहाँ पर रह कर पुरा किया....
खान - ओह अच्छा... पर तुमने लॉ तो यहाँ रहते शुरू भी किया और पुरा भी किया...
विश्वा - जी.....
खान - वैसे रिहा होने के बाद.... मेरा मतलब है कि तुम दुसरे स्किल में भी माहिर हो.. जैसे कारपेंटरी, प्लंबिंग, गैरेज मेकैनिक तो तुम... उनमें क्यूँ अपना प्रफेशन नहीं बनाना चाहा....
विश्वा - समाज इतना खुला हुआ नहीं है खान साहब..... कि वह किसी सजायाफ्ता मुज़रिम को काम दे...
खान - तो क्या... तुमने
लॉ में ही अपना... आई मिन... यु आर कंविक्टेड... तुम लॉ में अपना प्रोफेशनल कैरियर कैसे बनाओगे...
विश्वा - किसी बड़े एडवोकेट के असिस्टेंट बन कर....
खान - ओह... हाँ... बस एक आखिरी सवाल...
विश्वा -.............
खान - तुम्हारे बैंक अकाउंट में सात लाख पंद्रह हजार एक सौ पैंसठ रुपये है...
जब कि तुमने... सरकारी स्किल युटीलाइजेशन स्कीम में ही काम किया है... जिसमें शायद दो लाख तक बनते हैं... पर अकाउंट में इतना पैसा....
विश्वा - मैंने लॉ करते वक़्त मिसेज़ प्रतिभा सेनापति जी के साथ एक कंट्राक्ट साइन किया था.... उनके कुछ केसस् में उन्हें असिस्ट किया और मदत भी... उसके बदले में उन्होंने मेरे अकाउंट में वह पैसे जमा कराए हैं....

यह खान के लिए एक और झटका था l

खान - ओह... अच्छा....
ह्म्म्म्म... ठीक है... अब तुम जा सकते
हो.....
इतना सुनते ही विश्वा चुप चाप उठ कर बाहर निकल जाता है, उसके जाते ही खान ऐसे गहरी सांस लेता है जैसे कितने घंटों से सांस दबाए रखा हो फिर उस दरवाजे पर खान की नजर रुक जाती है और बड़बड़ाता है - क्या है यह... जैसे कोई बिजली की नंगी तार... जितना ज्यादा जानने लगा हूँ इसके बारे में... उतना ही ज़ोर का झटका लग रहा है.....

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गाड़ी से उतरते ही नंदिनी तेजी से घर के अंदर जाती है l उसकी खुशी छुपाये नहीं छुप रही है l ऐसा लग रहा है जैसे नंदिनी किसी मजबूरी के तहत चलते हुए घर के भीतर जा रही है, वर्ना वह उड़ते हुए चली जाती l नंदिनी जैसे ही अपनी भाभी के कमरे में पहुंचती है तुरंत ही दरवाज़ा बंद कर देती है और चहकते हुए शुभ्रा के पास आ कर उसे अपने दोनों हाथों से उठा कर नाचने लगती है l
शुभ्रा - अरे.. रुक... देख मैं गिर जाऊँगी... आ.. ह... अरे नीचे उतार मुझे..
नंदिनी शुभ्रा को नीचे उतार देती है और खुद शुभ्रा के बिस्तर पर पीठ के बल गिर जाती है l
शुभ्रा - अरे... रूप.. य.. यह.. तुझे क्या हुआ...
देखा... कहा था उतार दे मुझे... अब तु मेरी वजन नहीं.. सम्भाल पाई ना...
नंदिनी उठ कर बैठती है और शुभ्रा के गालों पर एक चुंबन जड़ देती है l
शुभ्रा - छि... रूप... आज कॉलेज कुछ हुआ क्या... बिगड़ रही तु आज कल...
नंदिनी - अरे भाभी आज मैं बहुत खुश हूँ.... आपने मुझे जैसा कहा था मैंने वैसा ही किया....(गाते हुए कहती है) और मुझे मेरे दोस्त वापस मिल गए.....
शुभ्रा - अच्छा.... ह्म्म्म्म... यह तो बहुत अच्छी खबर सुनाई तुने...
नंदिनी - और यह क्या भाभी.... आपकी वजन तो फूलों की तरह है... मैं तो अभी भी आपको उठा कर नाच कुद कर सकती हूँ....
शुभ्रा - हाँ... हाँ मालुम है.. पहलवान भाई की बहन जो है....
दोनों हंसते हैं l नंदिनी शुभ्रा के गले लग जाती है और कहती है - थैंक्स भाभी...
शुभ्रा - (उसके गालों को सहलाते हुए) जो किया तूने ही तो किया... मुझे क्यूँ थैंक्स कह रही है....
नंदिनी - आप आज मेरी माँ, दीदी, सहेली बन कर राह दिखाई और मुझे कामयाबी हासिल हुई.... थैंक्यू.... थैंक्यू... थैंक्यू..
शुभ्रा - बस बस आज तेरी गाड़ी वहीँ.... थैंक्यू पर ही रुक गई है....
नंदिनी - तो क्या हुआ भाभी.... जो है.. सो है.. भाभी आज चाची माँ से बात करने को मन कर रहा है.... उनको लगाईये न फोन...
नंदिनी की बात सुन कर शुभ्रा थोड़ा मुस्कराती है और अपना सर हिलाकर सुषमा को फोन लगाती है l
शुभ्रा - प्रणाम चाची माँ...
सुषमा - (फोन से ) जीती रह बहु... और बता... मेरी गुड़िया नंदिनी कैसी है... और कैसी गई उसकी, आज की कॉलेज की दिन.....
शुभ्रा - लो आप ही पुछ लो.... (इतना कहकर फोन नंदिनी को थमा देती है)
नंदिनी - चाची माँ.... प्रणाम... (खुशी से गला थर्रा गई) क.. कैसी हैं आप....
सुषमा - जुग जुग जिए मेरी बच्ची... मैं बहुत अच्छी हूँ... तु बोल.. जाते ही मुझे भूल गई....(नंदिनी अपनी जीभ निकाल कर दांतों तले दबा देती है) आज कैसे याद आ गयी तेरी चाची माँ... ह्म्म्म्म..
नंदिनी - वह चाची माँ. .. सॉरी... वह यहाँ... मेरा मूड हमेशा ख़राब ही रहता था.... इसलिए...
सुषमा - ठीक है... ठीक है.... अब तो मेरी लाडो सहर की रंग में रंग रही है...
नंदिनी - सॉरी... चाची माँ... कसम से... मैं कभी आपको भुला
नहीं सकती हूँ... प्लीज(गला भर आती है)
सुषमा - हे... अरे... पागल लड़की... मैं तो तुझे.. ऐसे ही छेड़ रही थी.... वरना तेरी हर दिन की खबर मैं बहु से लेती रहती थी... और हाँ आज जो तुझे तेरे दोस्त वापस मिले हैं ना.. वह मेरा ही आईडिया था... समझी...
नंदिनी - व्हाट.... मेरा मतलब.. ठीक है कि आप ने भाभी को आईडिया दिया होगा... पर आपको कैसे मालुम हुआ कि मुझे.... आज मेरे दोस्त वापस मिल गए....
सुषमा - बचपन से तुझे पाला है मैंने.... तेरी नस नस से वाकिफ़ हूँ.... तु कब खुलती है और कब सिमट जाती है....
नंदिनी - हाँ... अखिर माँ जो हो आप मेरे..
सुषमा - कोई शक़....
नंदिनी - नहीं.... बिल्कुल नहीं.... फ़िर भी एक शिकायत है और प्रार्थना भी... उपर वाले से... अगले जनम में मुझे आपकी ही कोख से भेजे...
सुषमा - देख यही तेरी अच्छी बात नहीं है... अब तु रोयेगी और मुझे भी रुलाएगी.....अब... अपनी भाभी को फोन दे...
नंदिनी कुछ कह नहीं पाती, उसके आँखों से आंसुओं के धार फुट पड़ते हैं वह चुपचाप फ़ोन शुभ्रा को दे देती है l शुभ्रा उसकी मनःस्थिति को समझ जाती है और नंदिनी से फ़ोन ले लेती है l
शुभ्रा - ह.. हे.. हैलो..
सुषमा - (सिसकते हुए) देखा बहु ऐसी ही है मेरी रूप.. पर मुझे खुशी है कि की तेरे संग रहकर उसके भीतर की लड़की बाहर आ रही है... उसे चहकने दे, उड़ने दे पर थाम के रखना.... बेचारी आजादी मेहसूस कर रही है... बस देखना मेरी बच्ची को.. के वह कहीं बहक ना जाए... कोई उसे बहका ना दे....
शुभ्रा - (बड़ी मुश्किल से भारी गले में) जी... जी... चाची माँ...
शायद सुषमा से और बातेँ करना संभव ना हुआ इसलिए सुषमा उधर से फ़ोन रख देती है l इधर अपने हाथों से अपना मुहँ छुपाये नंदिनी सिसक रही है l
शुभ्रा - (भारी गले में) देखा आते वक्त चहकते हुए आई थी पर अब माहौल देख... तूने क्या कर दिआ...
नंदिनी - (अपनी आँखे पोछते हुए और खुद को सही करते हुए) सॉरी भाभी... पर जानती हो भाभी...(हंसने की कोशिश करते हुए) आज से हम पांच नहीं छह लड़कियों का ग्रुप है...
शुभ्रा - अच्छा....
नंदिनी - एक नई लड़की.. आज ही मुझसे दोस्ती की... नाम है दीप्ति...
शुभ्रा - अरे वाह कल तक एक एक के लाले पड़ गए थे.... आज तो ऊपर वाले ने छप्पर फाड़ कर छह छह दोस्तों को भेज दिया...
नंदिनी - हाँ भाभी... पर वह दीप्ति ना... (मुहँ बनाते हुए) कुछ ज्यादा ही बोलती है... हाँ...
शुभ्रा - ओ हो... ऐसा क्या कह दिआ उसने...
नंदिनी - वह आज ही दोस्त हुई... मगर सबको सर्टिफिकेट देते घूम रही है.... हूं ह
शुभ्रा - ओ... ह्म्म्म्म... मतलब यह हुआ कि... आज उसने तुम्हें भी कुछ सर्टिफिकेट दिया है...
नंदिनी - हाँ... (कहकर नंदिनी अपना मुहँ फूला कर बिस्तर पर आलती पालती मार कर बैठ जाती है)
उसकी ऐसी हालत देख कर शुभ्रा की हंसी छूट जाती है l शुभ्रा को अपने ऊपर हंसते हुए देख कर नंदिनी भड़क जाती है और
नंदिनी - भाभी....
शुभ्रा नंदिनी के चेहरे को अपने दोनों हाथों से ले कर उसके माथे को चूम लेती है और कहती है - रूप... जरा याद करके बताना.... आखिरी बार... तुमने किस पर मुहँ बनाया था या रूठ गई थी...
नंदिनी इतना सुनते ही शुभ्रा को देखती है और कहती है - पता नहीं भाभी....
शुभ्रा - देखा रूप जब दोस्त जीवन में आते हैं.... विरान जीवन में भी बाहर ले आते हैं.... हर रंग में रंग देते हैं... वैसे.. वह दीप्ति ने तुझे कौनसा सर्टिफिकेट दे दिया है....
नंदिनी - (अपनी दोनों मुट्ठी को कस कर भींच लेती है) वह.... वह... मुहं जली कहती है.... कि मैं जब बातेँ शुरू करती हूँ... तो नन स्टॉप मैं ही बातेँ करती हूँ बिना किसीको मौका दिए....
शुभ्रा जोर जोर से हंसने लगती है नंदिनी को देखते हुए फ़िर अपना पेट पकड़ कर हंसने लगती है और कहती है - सच ही कहा है उसने... हा हा हा...
उसे ऐसे हंसता हुआ देख नंदिनी चिढ़ जाती है और चिल्लाती है- भा.... भी
शुभ्रा अपनी हंसी को काबु करती है l बात बदलने के लिए नंदिनी कहती है - जानती हो भाभी... आज हमने अपने ग्रुप का नाम करण किया है... और नाम भी मैंने दिआ है..
इस वार शुभ्रा फ़िर से हंसने लगी - हाँ... हाँ मालुम है... छटी गैंग...
इतना कहते ही शुभ्रा की हंसी रुक जाती है l उसे लगता है कि उसने यह कह कर गलती कर दी l उधर यह सुनकर हैरानी से नंदिनी की आंखे चौड़ी हो जाती है l
नंदिनी - भाभी क्या आपने मेरे पीछे जासूस लगाए हैं.... या फ़िर किसी और के जरिए मुझ पर नजर रखे हुए हैं....
शुभ्रा -शुभ्रा - देख रूप इस सहर में... जब तक तु है... तब तक तु मेरी जिम्मेदारी है.... और हाँ अभी के लिए बस इतना जान ले... मैंने किसी और को तेरे पीछे नहीं लगाया है.... पर हाँ जो तेरी खबर मुझ तक पहुंचा रही है... वह मेरी और तेरी अपनी है.... और मेरे होते हुए... तुझे कुछ भी होने नहीं दूंगी.... अभी फिलहाल इसे सस्पेंस रखते हैं... पर तुझे एक दिन मिलवाउंगी उससे....
नंदिनी - ठीक है भाभी... सारा मजा किरकिरा कर दिया... अब जब कॉलेज से लौटुंगी तब आपसे शेयर करते वह मजा नहीं आएगा....
शुभ्रा - धत पागल.... मुझे थोड़े ना हर दिन की खबर मिलेगी.... वह तो कभी कभी.... फिर भी रूप... मेरे पास अपने दिल में कभी कुछ मत रखना.... क्यूंकि दिल में कोई बात घर कर गई तो वह रिश्तों पर बुरा असर करती है...
नंदिनी - ठीक है भाभी... अच्छा भाभी.... क्यूँ न आज अपने हाथों से कुछ मीठा बना कर खिलाओ.....
शुभ्रा - श् श्श्श श्श्श.... रूप ऐसी बातें तब करना जब इस घर के मर्द इस सहर में ना हो.....
यह जो क्षेत्रपाल परिवार के मर्द मूछों पर ताव देते रहते हैं ना.... वह असल में एक तरफ दौलत की धौंस और दूसरी तरफ खानदानी पहचान का रौब....
उनको मालुम हुआ तो अपने मूछों पर ताव देते कहेंगे.... क्षेत्रपाल परिवार की औरतें क्यूँ कर रसोई में जाएं... हमने इतने नौकर चाकर रखे किसलिए हैं.....
नंदिनी - सौ फीसद सच कह रही हो आप.... तो आप ही बताओ... कब खाएं... मुझे तो आपके हाथ से खाने को बड़ा मन कर रहा है... चाहे खाना कैसे भी बना हो... पर खाना है...
शुभ्रा - ऐ चाहे कैसे भी बना हो मतलब... मैं खाना बहुत अच्छा बनाती हूँ... अगर मेरे हाथ का बना खाना है..... तो फिर कुछ दिन इंतजार कर..... जब तेरे भाई यहाँ नहीं होंगे.... उस दिन तुझे खिलाउंगी...
नंदिनी - वैसे भाभी..... मेरे दोनों भाई पूनम के चांद हो गए हैं..... कभी कभी ही दिखते हैं इस घर में .... देर रात घर आते हैं.... फिर पता नहीं कब उठते हैं और कहां चले जाते हैं.....
शुभ्रा - हाँ इस घर की नियति यही है.... पता नहीं कहाँ कहाँ घूमते फिरते हैं.... सिर्फ़ रात को आते हैं... जब मन किया खाते हैं वरना....
नंदिनी - अब वे लोग कहाँ हो सकते हैं....
शुभ्रा - पता नहीं.... ज़रूरत भी नहीं....

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शाम ढल रही है और रात गहरी हो रही है l एक फाइट रिंग में विक्रम पांच पांच फाइटरों के साथ लड़ रहा है l
नीचे चेयर पर बैठ कर वीर और एक अधेड़ आदमी बैठ कर विक्रम को लड़ते हुए देख रहे हैं l
वह आदमी - वाह क्या लड़ रहे हैं युवराज....
वीर - हाँ... महांती.... यह तो दूध, बादाम, घि से जो चर्बी बनाया जाता है, फिर उसे उतारने के लिए जबर्दस्त कसरत कर पसीना बहाना पड़ता है और यह रिंग व फाइट उसीका परिणाम है.... जितना ज्यादा खाओगे.... उतना ही ज्यादा पसीना बहाओगे.... यह नियम है.... अच्छे स्वास्थ्य के लिए चुस्त-दुरुस्त रहने के लिए....
महांती - पर माफ कीजिएगा राजकुमार जी... मैंने आपको ना तो कभी पसीना बहाते देखा है ना ही लड़ते हुए...
वीर - अरे मैं भी पसीना खूब बहाता हूँ.... और कसरत भी बहुत करता हूँ... अरे महांती.... कसरत तो मैं इतना करता हूं ऐसी के ठंडक में भी पसीना पानी की तरह निकालता रहता है....
महांती - क्या.... आप बहुत कसरत भी करते हैं.... कब और कहां...
वीर - तुझे बड़ी उत्सुकता है महांती.... मुझे कसरत व पसीना बहाते हुए.... देखने के लिए... ह्म्म्म्म
महांती - नहीं ऐसी बात नहीं है.... मेरा मतलब है... आपको कभी युवराज जी की तरह रिंग में नहीं देखा है...
महांती - अबे वे युवराज हैं.... आने वाले समय में वे राज करेंगे.... और हमारे हिस्से में सारी काज ही आएंगे....
महांती - मैं कुछ समझा नहीं....
वीर - यह बहुत हाई लेवल की बातेँ है... इसे समझने के लिए लेवल बराबरी का होना चाहिए...
उधर फाइट खतम होता है, सारे फाइटर्स जो विक्रम के साथ लड़ रहे थे,सबके सब नीचे गिरे पड़े हैं l
वीर-(ताली मारते हुए) वाह युवराज जी वाह l
महांती - क्या बात है युवराज जी.... आपने तो इन प्रोफेशनल्स को धुल चटा दिआ....
विक्रम - (चेयर पर बैठते हुए) महांती सिर्फ इन सबकी ही नहीं... बल्कि हमारे सिक्युरिटी सर्विस में काम करने वाले सभी गार्ड्स की ट्रेनिंग थोड़ा टफ कर दो.... इन प्रफेशनल्स के रिफ्लेक्सेस अगर इतने स्लो रहेंगे तो.... हमारे सिक्युरिटी सर्विस की डिमांड कम ही जायेगी....
महांती - जी समझ गया युवराज....
विक्रम - अच्छा... अब बताओ.... वह... नभ वाणी के ऑफिस में जो लड़की प्रवीण के बारे में जानकारी जुटा रही थी.... उसका क्या हुआ...
महांती - जी.... अबतक हमारे हाथ खाली है....
विक्रम - जानता हूँ.... मैं बस यह जानना चाहता हूँ... अब तक तुम लोगों ने क्या क्या उखाड़ा है... वह बता....
महांती - सर माफ़ी के साथ.... पहली बात, हमने सिर्फ एक महीने पहले नभ वाणी ऑफिस की सिक्युरिटी को टेक ओवर किया है.... वह लड़की जरूर पहले आ कर रेकी कर जा चुकी थी... इसलिए पिछली बार जब वह आई थी तब चेहरे को अपने दुपट्टे से ढक कर आई थी.... और उसे पहले से ही कैमरा का अंदाजा था... वह जब भी कैमरा के सामने गुजरी... वह अपनी वैनिटी बैग का सहारा लिया था.... इसलिए वह कैमरा से बच पाई थी.... किसीने उसका चेहरा देखा नहीं था तो स्केच आर्टिस्ट के पास जाना बेकार था...
और राम मंदिर एक पब्लिक प्लेस था वहाँ पर झगड़ा कर अंदर जाना मुश्किल था.... क्यूंकि वह जगह एक धार्मिक जगह है.... और सबसे अहम बात.. बेशक इस सहर में राजा साहब का दबदबा है., दखल भी है ... पर यह भी सच है कि यह यश पुर नहीं है.....
विक्रम - बहुत लंबा चौड़ा एक्सप्लेनेशन दे दिया तूने....
महांती - सर फ़िर भी हमने सभी संस्थाओं में अपने आदमी छोड़ रखे हैं.... अगर उस केस में कहीं भी हलचल होती है... तो हम फौरन एक्शन में आयेंगे....
वीर - पर मुझे नहीं लगता है कि.... अब कोई भी प्रवीण की खैरियत पूछेगा.... तक जितने एक्शन हुए हैं.... पूछ ताछ करने वाले को अब अक्ल आ चुकी होगी.... इसलिए अब वह हमसे टकराने से पहले सौ बार सोचेगा.....
विक्रम - अगर तुम्हारी और महांती की लॉजिक सही है.... तो चलो हम जाल बिछायेंगे.... प्रवीण के इंफॉर्मेशन का रुमर उड़ाओ... तो शायद कुछ हाथ लगे....
वीर - हाँ यह हो सकता है.... क्यों महांती..
महांती - जी सर.... ऐसा हम कर सकते हैं...
विक्रम - तो फिर लग जाओ अपने काम पर....
महांती - जी सर... कहकर सैल्यूट ठोक कर चला जाता है,उसके जाते ही
विक्रम - हाँ तो राज कुमार जी.... वैसे आप कौन कौन से कसरत और कहाँ करते हैं कि आप दूध, बादाम व घि की चर्वी उतारते हैं....
वीर - क्या युवराज जी.... आप भी...
विक्रम - महांती ठीक कह रहा था... तुम्हें खुद को कॅंबैट के तैयार करना चाहिए....
वीर - युवराज जी मैं जब भी कॅंबैट करता हूँ... बहुत ही भयंकर घमासान करता हूं....
विक्रम - (उसे घूरते हुए देखता है)......
वीर - देखिए युवराज जी मैं वात्स्यायन के सभी आसनों को बड़ी शिद्दत के साथ करता हूँ.... और ऐसी कमरे में भी जमकर पसीना बहाता हूँ....
विक्रम - राजकुमार..... आप महांती की एक बात ना भूलें.... भले ही हमारा दबदबा यहाँ पर बहुत है.... फ़िर भी यह ना भूलें... यह भुवनेश्वर है यश पुर नहीं..... जो भी करो.. सोच समझ कर करो...
वीर - हाँ यह आपने सही कही.... पर युवराज एक बात पूछूं....
विक्रम - हाँ पूछिए....
वीर - पिछले कई महीनों से देख रहा हूँ.... आप रंग महल के लिए प्रबंधन करते तो हैं ..... पर डेरा नहीं डाल रहे हैं.... क्या मन भर गया आपका या रावण अब राम के राह पर निकला है....
विक्रम - (कुछ देर खामोश रह कर एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मैं कभी राम नहीं बन सकता.... इस जनम में तो बिलकुल नहीं..... जब तक मैं विक्रम सिंह क्षेत्रपाल हूँ.... मैं रावण ही हूँ....
वीर - तभी तो आप मुझे मेरी तरह रहने दें....
विक्रम - जो मर्जी आए वह करो.... पर इतना ध्यान रहे यहां हमरे दुश्मनों की तादात बहुत है..... आज तक हमने किसी को मौका नहीं दिया है.... तुम भी किसीको मौका मत देना...
वीर - ना ना ना.... मैं सिर्फ अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की परिवार को देखता हूँ.... बहुत मदत भी करता हूँ... बदले में वह भी अपनी मर्जी से... मेरी मदत के बदले भेंट देते हैं.... जिन्हें में दिल व बाहें खोल कर स्वीकार करता हूँ....
विक्रम - इसलिए तुम्हें सम्भलने को कह रहा
हूँ.... रंग महल की रस्म हमारे दुश्मनों के लिए है... और यहां पार्टी के कार्यकर्ता अपने हैं.... यह यशपुर नहीं है.... यशपुर में कुछ भी हो जाए कोई नजर नहीं उठा सकता..... पर यहाँ, कहीं उनका गुस्सा हमला तक तो नहीं.... पर कहीं भड़ास गाली बनकर ना निकले....
वीर - हाँ तो क्या हुआ...मैं कौनसा सुदर्शन चक्र धारी भगवान हूँ.... अगर गाली बर्दास्त ना हुआ तो सुदर्शन चक्र निकाल कर छोड़ दूँ.... मैं जो भी कर रहा हूँ गालियाँ बर्दास्त करने के लिए....... अब कोई मुझे मादरचोद या बहनचोद कहेगा.... तो मुझे बड़ा दुख होगा.... इससे पहले कि वह इस तरह की गालियाँ दे कर मेरा मन दुखा दे इसलिए मैं उन सबकी माँ बहन चोद रहा हूँ....
विक्रम - तुमसे बात करना भी बेकार है....
वीर - ठीक है युवराज जी आप घर जाइए.... मैं किसी पार्टी के कार्यकर्ता के घर जा रहा हूँ...
इतना कह कर वीर निकल जाता है, पर वहीं चेयर पर बैठे विक्रम रह जाता है

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रात को डिनर के टेबल पर तापस व प्रतिभा दोनों डिनर कर रहे हैं l
प्रतिभा - तो सेनापति जी आपके VRS का क्या स्टेटस है....
तापस - क्यूँ वकील साहिबा... लगता है मुझसे भी ज्यादा जल्दी है आपको....
प्रतिभा - आपसे बात करना मतलब अपना सर फोड़ना.... अगर बताना नहीं है तो मत बताओ...
तापस - ऐ मेरी जानेमन...
तुमको इस डिनर की कसम....
रूठा ना करो.....
रूठा ना करो...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - हाँ हाँ क्यूँ नहीं...
प्रतिभा - अब तो बता दीजिए...
तापस - अरे जान... विजिलेंस क्लियरेंस हो गया है l अब सिर्फ खान से नो ड्यू और नो ऑबजेक्सन सर्टिफिकेट लेना है.... उसे लेने में अगले हफ्ते जाऊँगा...
प्रतिभा - क्यूँ... अगले हफ्ते क्यूँ....
तापस - क्यूँकी मैंने वहाँ जैल छोड़ कर जाने से पहले किसीको कुछ देने का वादा किया है.....
प्रतिभा - क्या वादा किया था और किसइस....
तापस - अरे प्रिये प्राणेश्वरी हमारा अर्दली था ना... वह जगन... उसकी हेल्पर कांस्टेबल पोस्ट की अप्रूवल जो बाकी है.....
प्रतिभा - क्या इस हफ्ते हो जाएगा.....
तापस- हाँ लगभग हो चुका है.... बस लेटर मिलते ही.. मैं अपना नो ड्यू व एनओसी ले आऊंगा....
प्रतिभा - अच्छा (कुछ देर रुक कर) और.... वह... नभ वाणी न्यूज रिपोर्टर....
तापस - (गहरी सांस लेते हुए) सच्चाई बहुत कड़वी और पीड़ा दायक होती है.... और सच यह है कि वह और उसके परिवार में से कोई भी जिंदा नहीं हैं...
प्रतिभा - (हैरानी व दुखी हो कर) क्या........
तापस - मुझे पुरा यकीन है... उनकी लाशें ढूंढने से भी नहीं मिलेंगी....
प्रतिभा - मतलब..
तापस - (अपना खाना खतम कर उठते हुए) मैंने कुछ फैक्टस पर गौर किया और अपने सोर्सेस को इस्तेमाल कर के यह नतीज़ा निकाला के.... जिनको क्षेत्रपाल सहर या दुनिया से ग़ायब करता है... उनके गायब होने के एक ही स्थान है...
प्रतिभा - कौनसी जगह....
तापस - राजगड़....
प्रतिभा - (कुछ चिंतित होते हुए) क्या....
तापस - मैं समझता हूँ तुम्हें अब कौनसी चिंता सता रही है....(प्रतिभा के कंधे पर हाथ रखते हुए) उसे कुछ नहीं होगा... कुछ होने नहीं दूँगा... कम से कम मेरे जीते जी तो नहीं....
तुमने जितना उसे देखा है, समझा है ... मैंने उसे तुमसे कहीं ज्यादा किसी और सांचे में ढलते हुए देखा है.....
और उसकी हिफाज़त के लिए हम दोनों तो हैं ना.... हमने अपनी औलाद के लिए भले ही कुछ ना कर पाए.... पर इसबार ऐसा नहीं होगा.... अपना सब कुछ बाजी लगा देंगे... पर उसे कुछ नहीं होने देंगे..
प्रतिभा तापस के हाथ को पकड़ कर उसे पलकें झपका कर अपनी सम्मति देती है....
Superb update bro
 

Kala Nag

Mr. X
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144
👉सत्तावनवां अपडेट
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XXXXX कॉलेज
बुधवार

कॉलेज अभी शुरू नहीं हुआ है l अभी तक कोई नहीं आया है l पर असेंबली हॉल के स्टेज पर रॉकी अपने दोस्तों के साथ लकी ड्रॉ निकालने वाली ग्लोब नुमा जालीदार बॉल को चेक कर रहा है l

रॉकी - सुशील... क्या यह अब ठीक है...
सुशील - (खीज कर) अबे ऑए.. मजनू की छटी औलाद... सुबह सुबह हमारी नींद खराब कर यहाँ लेकर आया है... कमीने हमें कुली की तरह लगया हुआ है... साले कमीने आशिकी तेरी... पर नींद और चैन हमारी खराब है....
रॉकी - तो क्या हुआ कमीने... बदले में खाने पीने की पार्टी भी तो देता हूँ.... वह भी अपने होटल के रॉयल शूट में...
सुशील - उसकी कीमत भी तो वसूल करता है... हमे गधे की तरह दौड़ा कर काम करवा कर....
रॉकी - ठीक है... ठीक है.. वक़्त जाया ना करो... बोलो कहाँ तक यह प्लान वर्क आउट करेगा...
सुशील - अबे जब प्लान आशीष का है... तो काम उससे ही लेना चाहिए था...
आशीष - ऑए... कब से बड़बड़ कर रहा है... काम पुरा कर अपना...
रवि - हाँ यार सुबह से लगा हुआ है... पर उखड़ा उससे कुछ भी नहीं...
सुशील - अबे तुम सब काओं काओं बंद करो... लो यह अब हो गया...
सब - क्या... हो गया...
सुशील - हाँ... हो गया..
रॉकी - चलो डेमो दिखाओ...

सुशील - यह देखो... इसमें कुछ काग़ज़ के चिट डालेंगे.... ऐसे (काग़ज़ के चिट डालते हुए) अब मैं स्विच ऑन करता हूँ...

स्विच ऑन करते ही वह ग्लोब आढ़ा टेढ़ा सीधा उल्टा हो कर घूमने लगता है फिर उसमें से एक चिट बाहर निकालता है l रॉकी वह चिट उठा कर देखता है उसमें नंदिनी का नाम लिखा हुआ है l यह देख कर सभी ताली बजाते हैं l

आशीष - फ़िर भी एक लोचा है...
सब - क्या...
आशीष - बीएससी फर्स्ट ईयर बैच के स्टूडेंट्स के बीच यह कंपटीशन है... क्या सभी अपना नाम चिट पर लिख कर डालेंगे...
रवी - हाँ.. यह एक पॉइंट है...
रॉकी - ठीक है... एक तरकीब लगाऊंगा... प्रिन्सिपल से करवाऊंगा...
राजु - क्या तेरा तरकीब... काम करेगा... वह रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल है...
रॉकी - मुझे तो लगता है... जरूर करेगी... पहले से ही हम जानते हैं... वह अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में है... इसलिए मेरा दिल कहता है... वह ज़रूर करेगी...
रवि - लो कर लो बात... दिल कह रहा है इसका...
आशीष - हाँ उसके दिल के हिसाब से चलते हैं... आखिर यह तो मानना ही पड़ेगा... लड़की अपने हीरो से अभी अभी इम्प्रेस तो हुई है...
सब - ह्म्म्म्म... तो फिर ठीक है...
रॉकी - कोई दुसरा पॉइंट भी है क्या...
आशीष - हाँ... वह खुद को रूप कहलाना पसंद नहीं करती... तो उसकी चिट में वह अपना क्या नाम लिखेगी... रूप नंदिनी.. या सिर्फ़ नंदिनी...
रवि - वह जो भी लिखे... नाम तो उसका ही आना है ना...
सुशील - लो लग गए लौड़े.... अबे तो अब तक मैं क्या यहाँ झक् मार रहा था... (रॉकी के तरफ देख कर) आशीष सही बोल रहा है हीरो... लड़की पहले ही दिन से अपने नाम पर सबको कंफ्यूज कर रखा है...
रॉकी - हाँ यह भी पॉइंट है...
आशीष - और एक बात... चिट निकलने के बाद... अगर लड़की ने यह कहा कि... चिट उसकी नहीं है... तो...
रॉकी - ह्म्म्म्म... फ़िर...
राजु - फ़िर क्या... उसका भाई वीर सिंह और विक्रम सिंह... हमारी ही हाथों से... हमारी मैयत उठवाएंगे...
रॉकी - हम्म्म....
सभी - देख रॉकी... हम कहीं जोश जोश में... लोचा कर गए... तो लेने के देने पड़ जाएंगे...
रॉकी - ठीक है... देखो अपना सिस्टम तैयार है... बाकी उन लड़कियों की बैच.... कैसे इनवल्व होगी... मैं प्रिन्सिपल से मिलकर कोई रास्ता बनाता हूँ....

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ESS ऑफिस

वीर अपनी कैबिन में चहल कदम कर रहा है l उसे एक कोने से दुसरे कोने तक चहल कदम करते हुए अनु अपने दाएं हाथ की नाखुन को दांतों तले दबा कर देख रही है I वीर अपनी दाएं हाथ की मुट्ठी को बाएं हाथ की हथेली पर मारते हुए घूमना शुरू कर देता है l यह देख कर अनु घबराते हुए अपनी वैनिटी पर्स से स्माइली बॉल्स झट से निकाल कर वीर को देखने लगती है l जब वीर उसे नहीं देखता तो धीरे से अनु वीर को आवाज देती है

अनु - राज कुमार जी... (वीर नहीं सुनता) अहेम... अहेम... (वीर फिर भी नहीं सुनता) राजकुमार जी... (थोड़ी ऊँची आवाज़ में)
वीर - (अनु की ओर देखते हुए) क्या हुआ अनु जी...
अनु - (रुक रुक कर) वह.. आप... कुछ... त.. तनाव में दिख रहे हैं... (बॉल दिखा कर) यह.. यह लीजिए...
वीर - (उसे देखने लगता है, क्या कहे उसे कुछ समझ में नहीं आता) हूँ... (बस इतना ही कह पाता है)
अनु - लीजिए ना...
वीर - (थोड़ा मुस्कराते हुए) अनु.. जी.. मैं एक दिन बॉल पकड़ुंगा... पर अभी टाइम नहीं आया है... जब आएगा... जमके पकड़ुंगा... कसके पकड़ुंगा और दबाके पकड़ुंगा.... वादा रहा... पर अब मैं कुछ और सोच रहा हूँ...
अनु - क्या.. आप और क्या सोच रहे हैं...
वीर - मैं यह सोच रहा हूँ... की कौनसा भेष बदलुं... और कितने बजे जाऊँ... सब को चेक करने के लिए...
अनु - (अपना सिर हिलाते हुए) ओ... ह्म्म्म्म...

तभी टेबल पर रखी वीर की मोबाइल बजने लगती है l अनु जाती है और मोबाइल फोन लाकर वीर को देती है l

वीर - अरे अनु जी... आप हमारी पीए हैं... आप रीसीव लीजिए... और बात कीजिए... पूछिए कौन है... क्या काम है... सब समझने के बाद... हमे दीजिए...
अनु - जी... (तब तक रिंग बंद हो जाती है) ओह... लगता है फोन कट गया...
वीर - कोई नहीं... मोबाइल पर नाम दिखा तो होगा ना...
अनु - हाँ... महांती कमीना... ऐसा कुछ लिखा था...
वीर - (फौरन अनु की हाथ से मोबाइल ले लेता है) देखो अनु... अब मैं जो कहूँ... उसे ध्यान से सुनना और याद रखना... महांती, युवराज और छोटे राजा नाम दिखे तो सीधे फोन को मुझे दे देना... बाकी जिसकी भी आए... तो तुम ही उठाना... बात करना... समझना और मुझे समझा कर दे देना... समझी...

अनु अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, फोन फिर से बजने लगती है, इसबार भी डिस्प्ले में महांती कमीना दिखता है l अनु वीर को मोबाइल बढ़ा देती है l

वीर - (मोबाइल लेते हुए) गुड... (महांती का कॉल उठाते हुए) हाँ महांती बोल... क्या बात है...
महांती - एक बहुत बड़ी इंफॉर्मेशन हाथ लगी है... मेयर साहब... मेरा मतलब छोटे राजाजी पर आज हमला हो सकता है... युवराज जी को फोन लगा रहा हूँ पर पर वह मिल नहीं रहे हैं... वह कहाँ हैं...
वीर - हाँ वह... छोटे राजा जी के साथ पार्टी मीटिंग अटेंड करने... पुरी में स्थित पार्टी ऑफिस गए हैं... वह छोटे राजाजी के साथ हैं...
महांती - छोटे राजा जी पर हमला हो सकता है... उन लोगों ने स्पॉट देख ली है... रूट पर वह लोग थोड़े कंफ्यूज हैं... यह बात युवराज जी का जानना जरूरी है...
वीर - ठीक है... वह लोग पार्टी मीटिंग में होंगे... इसलिए उनके फोन शायद रीसेप्शन में डिपोजिट होंगे... मैं मैसेज किए देता हूँ... आप भी कर कीजिए...
महांती - क्या हम पार्टी ऑफिस में मैसेज कर दें...
वीर - नहीं... नहीं हो सकता है... कोई वहाँ पर उनकी रेकी कर रहा हो... मैं मैसेज कर देता हूँ... और कोशिश करता हूँ... वहाँ मीटिंग में पहुंचने की...
महांती - हाँ यह बढ़िया है... पर जल्दबाजी में मत जाइएगा... हो सकता है.... आपकी जल्दबाजी देख कर वह अपना प्लान बदल दें... एक काम लीजिए... आप पूरी कनाल रोड पर जाइए.... मैं ओल्ड भुवनेश्वर रोड से पूरी जाता हूँ...
वीर - ठीक है...(फोन काट देता है, और अनु को देखते हुए) तुम यहाँ पर रुको... और फोन वगैरह आए तो अटेंड करो... ठीक है...
अनु - जी ठीक है...

वीर वहाँ से हल्दी में निकल जाता है l

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XXX पार्टी ऑफिस
मीटिंग खतम हो जाता है l उसके बाद पिनाक सिंह और विक्रम सिंह रीसेप्शन में जमा किए हुए अपने फोन वापस लेते हैं l विक्रम अपने फोन पर देखता है महांती और वीर के बहुत से मिस कॉल हैं l विक्रम महांती को फोन लगाता है l

महांती - (फोन उठाकर) हैलो युवराज जी...
विक्रम - हाँ महांती... इतने मिस कॉल...
महांती - सर... उन्होंने... अपना स्पॉट चुन लिया है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... एक मिनट... पहले मैं गाड़ी में पहुँच जाऊँ... (विक्रम अपनी गाड़ी में आ जाता है) हाँ अब बोलो...
महांती - मैं यह कह रहा था... उन लोगों ने स्पॉट फिक्स कर लिया है...
विक्रम - कौनसे रूट पर...
महांती - वे लोग दो रूट पर... घात लगाएंगे... पहला पुरी कनाल रोड पर... दुसरी भुवनेश्वर पुरी रोड पर...
विक्रम - मतलब... छोटे राजा जी के पुरी से आते वक़्त... हमला हो सकता है...(मोबाइल पर वीर की कॉल आ रहा है) यह राजकुमार भी बार बार फोन कर रहे हैं...
महांती - वह आप ही के पास जा रहे हैं... मैं भी ऑन द रोड हूँ...
विक्रम - ठीक है... मैं उन्हें भी कंफेरेंश में ले लेता हूँ.... (वीर को कंफेरेंश में ऐड करने के बाद) हाँ राजकुमार जी...
वीर - क्या आपकी महांती से बात हो गई...
विक्रम - हाँ हो रहा है... और आप अभी कांफ्रेंस में हैं...
वीर - ठीक है... फिर आप छोटे राजा जी को... कांफ्रेंस में ले लीजिए... हम भी अपना प्लान सेट करते हैं...
विक्रम - ओके... लाइन पर रहीए... (विक्रम पिनाक को कंफेरेंश में लेने की कोशिश करता है पर उसका फोन बिजी आता है) शीट...
महांती और वीर - क्या हुआ...
विक्रम - उनका फोन बिजी आ रहा है...
महांती - ठीक है... आप तो उनके साथ हैं ना...
विक्रम - हाँ.. पर दुसरे गाड़ी में...
महांती - ठीक है... अब हमें मालूम है क्या होने वाला है... वह लोग हमारे सर्विलांस में हैं... अब बताइए हमे क्या करना है...
विक्रम - महांती... हम उन्हें इसबार फैल करते हैं....
वीर - फैल करते हैं मतलब...
विक्रम - इस बार हम उन्हें नहीं दबोचेंगे... बल्कि हम रास्ता बदल देंगे...
महांती - कौनसा रास्ता लेंगे फिर...
विक्रम - पुरी रामेश्वर रोड पर... हम रामेश्वर रोड से जा कर एनएच पर निकलेंगे...
वीर - इससे फायदा...
विक्रम - हमारा दुश्मन एक घोस्ट है... वह कौन है... उसकी प्लानिंग क्या है... हम नहीं जानते... जैसा कि महांती ने पहले ही बता चुका है... वह घोस्ट, अपने ही आदमियों से भी छुपा हुआ है... उसके एक दो प्लान ऐसे फैल कर देने से... वह बौखलाएगा... बिलबिलाएगा... तब वह गलती करेगा...
महांती - तब शायद वह बाहर भी निकल सकता है...
विक्रम - हाँ...
वीर - बढ़िया... तो अब हम क्या करें...
विक्रम - एक मिनट छोटे राजा जी का कॉल आ रहा है... मैं उन्हें कांफ्रेंस में लेता हूँ... (कांफ्रेंस में लेने के बाद) छोटे राजा जी... आज आप पर दोबारा हमला होने वाला है...
पिनाक - तो चलो धर दबोच कर नर्क दिखाते हैं उन्हें...
विक्रम - नहीं छोटे राजा जी... हमे उस हराम खोर के चमचों के बारे में पता है... पर उस अदृश्य दुश्मन के बारे में नहीं... हम उसका प्लान फैल कर देते हैं...
पिनाक - नहीं ऐसा नहीं हो सकता... अगर उसे मालुम हुआ तो खिल्ली उड़ाएगा...
विक्रम - नहीं उड़ाएगा... हम एक रुटीन प्रोसिजर बना कर रूट बदलेंगे... आज उसका प्लान फैल हुआ तो... वह चिढ़ जाएगा... तब शायद कोई गलती भी करेगा... हो सकता है... उसे सामने आना पड़े...
पिनाक - ठीक है युवराज... चाहे कुछ भी हो... मुझ पर भगोड़ा का छाप लगनी नहीं चाहिए...
विक्रम - नहीं लगेगा... आप अपने ड्राइवर से कहिए... वह गाड़ी को रामेश्वर रोड पर ले जाए... और राजकुमार... आप वापस ऑफिस जाओ... महांती तुम भी पहुंचो... हम रामेश्वर रोड पर छोटे राजा जी को लेकर ऑफिस पहुँचते हैं....
दोनों - ओके...

विक्रम फोन काट देता है l पिनाक सिंह अपने ड्राइवर को रामेश्वर रोड पर ले जाने को बोलता है l ड्राइवर भी अपनी गाड़ी को रामेश्वर रोड की ओर मोड़ देता है l

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कॉलेज की कैन्टीन में छटी गैंग मस्ती कर रही है l तभी कैन्टीन की माइक पर प्रिन्सिपल की आवाज गूंजने लगती है l

प्रिन्सिपल - हैलो स्टूडेंट्स... मैं आपका प्रिन्सिपल बोल रहा हूँ... बीएससी फर्स्ट ईयर स्टूडेंट्स आप लोग तुरंत असेंबली हॉल में पहुंचे... आपके पास सिर्फ़ दस मिनट है... जो नहीं आयेंगे... उनको पनीश्मेंट दी जाएगी... सो डोंट बी लेट... बी हर्री...
बनानी - व्हाट... लो फ्रेंड्स... ब्रेक का सत्यानाश हो गया...
दीप्ति - कुछ भी हो... जाना तो पड़ेगा ही... वरना पता नहीं बुढ़उ ने क्या पनीश्मेंट सोचा होगा...
तब्बसुम - हाँ यार... बुड्ढे को सिर्फ बनानी को ही शॉक से उबार ने का प्लान बनाना चाहिए था... क्यूँ के शॉक तो उसे लगा था ना...
बनानी - अपना मुहँ बंद रख... यह मत भूलो... मेरे साथ तुम सभी भी शॉक्ड थे...
भाश्वती - पर फायदा क्या... चिट में तो किसी एक का नाम आएगा... कितना अच्छा होता ना... अगर हम सब मिलकर एफएम में टास्क पुरा करते...
इतिश्री - कमाल है... हम सब तब से चपड़ चपड़ करते जा रहे हैं... पर राजकुमारी जी हैं कि चुप्पी साधे हुए हैं...
नंदिनी - (इतिश्री की हाथ में जोर से चिकोटी काटते हुए) कमीनी अगर फिर कभी नंदिनी के वजाए...
इतिश्री - आ... आ... ह्ह्ह्... (चिल्लाने लगती है)
नंदिनी - राजकुमारी कहा तो... तेरी ऐसी कुटाई करूंगी के तुझे तेरी छटी का दुध याद आ जाएगी...(छोड़ देती है)
इतिश्री - उई माँ... (अपने हाथ को मलते हुए) डायन कहीं की... थोड़ी देर और ऐसे ही रहती तो... मांस ही बाहर आ जाती...
बनानी - ओह ओ... अब छोड़ो भी यह सब... इससे पहले कि प्रिन्सिपल दोबारा माइक पर भोंकने लगे... हमें असेंबली हॉल में पहुँच जाना चाहिए...
दीप्ति - हाँ हाँ... जल्दी चलो... देखें तो सही वहाँ होता क्या है...
नंदिनी - ठीक है.. चलो... अपनी पंचायत हम कल बिठायेंगे...
सब - हाँ हाँ चलो चलो...

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सेंट्रल जैल
लाइब्रेरी

दास एक अर्दली के साथ अंदर आता है l अर्दली के हाथ में खाने की थाली है वह विश्व के पास थाली रखते कर बाहर चला जाता है l विश्व एक नजर दास को देखता है फ़िर किताबों में घुस जाता है l

दास - विश्व... खाना खा लो यार...
विश्व - (किताबों से सिर बाहर निकाल कर) दास बाबु... जो आप कहने आए हैं... वह कह दीजिए... मैं बाद में खा लूँगा...
दास - तुम्हें कैसे मालुम हुआ... मैं कुछ कहने आया हूँ...
विश्व - रोज आप अर्दली के साथ चले जाते थे... आज आप रुक गए हैं...
दास - तकल्लुफ मत करो... तुम खाना खा लो... मैं... मैं यहाँ इंतजार कर लेता हूँ...
विश्व - दास बाबु... बात तकल्लुफ की ही है... साथ खाना खाने बैठे होते... तो बात अलग थी... मैं खाना खाऊँ और आप खड़े हो कर देखते रहें... मुझे ऐंबार्समेंट फील होगा... प्लीज... आप ही का जैल है... और मैं यहाँ कुछ ही दिनों का मेहमान हूँ...
दास - हमारे संस्कार में... मेहमान का दर्जा जानते हो ना...
विश्व - गलती हो गई... खुद को मेहमान कह गया... मुहँ से निकल गया... फिर भी... खाना बाद में हो जाएगा... आप पहले क्या कहने आए थे... यह बताइए...
दास - ओके... तुम जीते मैं हारा... (कह कर विश्व के सामने बैठ जाता है)
विश्व - अब तो कह ही दीजिए... बात क्या है...
दास - यह... आज... हमारा... आखिरी मुलाकात है...
विश्व - क्यूँ... आपका कहीं ट्रांसफ़र हो गया क्या....
दास - हाँ... मैंने पहले भी... सेनापति सर जी से मना किया था... पर उन्होंने मेरे बारे में कुछ रिपोर्ट बना कर... डीपीसी भेज दिया था...
विश्व - डीपीसी... यह डीपीसी क्या होता है...
दास - डिपार्टमेंटल प्रमोशन कमेटी...
विश्व - ओ... तो... आप प्रमोशन में जा रहे हैं...
दास - हाँ... डबल प्रमोशन... आईआईसी बन जाऊँगा... कल ही मुझे अंगुल ट्रेनिंग ऑफिस में तीन महीने ट्रेनिंग के लिए रिपोर्ट करना है... और जब ट्रेनिंग खतम होगी... पता नहीं फिर कहाँ पर पोस्टिंग होगी... फिर मिलना होगा या नहीं... इसलिए...
विश्व - ओ.. वाव... कंग्रेचुलेशन दास सर... यह तो खुशी की बात है...
दास - (चुप रहता है)
विश्व - (उसे देख कर) क्यूँ आपको यह प्रोमोशन नहीं चाहिए था क्या...
दास - नहीं ऐसी बात नहीं... मुझे यह थोड़ी देर बाद मिलता तो अच्छा लगता...
विश्व - (अपना सिर थोड़ा पीछे लेता फिर आगे कर हँसते हुए कहता है) दास बाबु... थैंक्यू... थैंक्यू वेरी मच...
दास - किस बात के लिए थैंक्यू...
विश्व - दास बाबु... आपने मुझे अपना दोस्त समझा इसलिए...
दास - (अपना सिर नीचे कर लेता है)
विश्व - सच पूछिये तो आप जैसा ईमानदार, साहसी लोग.. समाज के उन हिस्सों में होना चाहिए... जहां... लोग पुलिस के बारे में चुटकुले बनाने के वजाए...या गाली देने के वजाए.. उसकी तारीफ़ में कसीदे पढ़ें...
दास - (चुप रहता है)
विश्व - आप तो जानते हैं ना दास बाबु... सैनिकों को प्रथम पंक्ति के सुरक्षा बल कहा जाता है... क्यूंकि वह लोग देश की सीमा व अखंडता का रक्षा करते हैं... और पुलिस को द्वितीय पंक्ति के सुरक्षा बल... क्यूंकि वह आंतरिक धर्म, विश्वास व न्याय की रक्षा करते हैं... जरा सोचिए अगर राजगड़ में एक ऑफिसर आप जैसा होता... तो... आज विश्व कभी यहाँ विश्वा भाई ना होता...
दास - (चुप रहता है)
विश्व - जानते हैं... मुझे दीदी हमेशा एक बात कहा करती थी... हम जिस समाज का हिस्सा हैं... वह समाज भले ही हमें छोड़ दे... पर उस समाज को हम छोड़ नहीं सकते... खास कर तब.. जब समाज को हमारी जरूरत हो... पर यह निर्णय समाज को नहीं हमे खुद करना चाहिए...
दास - ठीक है ... ठीक है... अगर ज्यादा देर यहाँ बैठा... तो तुम्हारा भाषण बंद नहीं होगा... मैं चलता हूँ... मैं बस यह कहने आया था... की मैं कहीं भी रहूँ... किसी तरह की काम पड़ जाए... तो हिचकिचाना मत... (आवाज़ भर्रा जाता है)

बड़ी कोशिशों के बावजूद दास अपनी आँखों से आंसू नहीं रोक पाता इसलिए जल्दी से उठ कर वहाँ से जाने लगता है l विश्व अपनी जगह से उठ कर दास के बैठे हुए जगह पर जाता है l वहाँ टेबल पर कुछ आँसुओं के बूंद दिखाई देती है l विश्व उन बूँदों पर अपना हाथ फेरते हुए

विश्व - एक मिनट दास बाबु... (दास रुक जाता है) आप का मैं आभारी रहूँगा...
दास - (बिना पीछे मुड़े) वह क्यूँ...
विश्व - आप चौथे व्यक्ति हैं... जो मेरे लिए दिल से आँसू बहाए हैं...

दास ना कुछ कहता है ना ही कुछ सुनता है l बिना पीछे मुड़े बिना विश्व को देखे उस लाइब्रेरी से निकल जाता है l

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असेंबली हॉल,
स्टेज पर माइक पर प्रिन्सिपल खड़ा है और स्टेज के बीचों-बीच रॉकी एंड ग्रुप खड़े हैं l उनके सामने एक बड़ा सा ग्लोब जैसा जाली नुमा बॉल एक स्टैंड के साथ अटैच है l

प्रिन्सिपल - वेलकम टु ऑल... अब एक काम कीजिए... मेरे बाएँ तरफ सभी लड़के आ जाएं... और मेरे दाएँ तरफ सभी लड़कियाँ आ जाएं...

हॉल में मौजूद सभी स्टूडेंट्स वही करते हैं l लड़के एक तरफ आ जाते हैं और लड़किया एक तरफ हो जाती हैं l

प्रिन्सिपल - अब आप सबको वल्युंटीयर्स एक एक चिट देंगे... आप सब अपने अपने दोस्त का नाम लिखें... और हाँ जो भी यहाँ मौजूद है उनके नाम की चिट हमारे पास मिलनी चाहिए... अगर नहीं मिली... तो उनको पनीश किया जाएगा...

स्टेज से राजू और सुशील काग़ज़ लेकर सभी स्टूडेंट्स को देने लगते हैं l

आशीष - तो यह तेरा प्लान था... जाहिर सी बात है उसके दोस्त उसका नाम जो लिखेंगे... तुमको खबर हो जाएगा...
रॉकी - (हँसते हुए) हाँ...
आशीष - अगर उसकी चिट गायब हो गई तो...
रॉकी - नहीं होगी...
आशीष - कैसे....
रॉकी - तु बस देखता जा...

राजु और सुशील सारे चिट बांट कर वापस स्टेज पर पहुँच जाते हैं l

प्रिन्सिपल - अब सब अपने अपने दोस्त के नाम लिखो... और ध्यान रहे जिसका नाम नहीं मिलेगा... उसको पनीश्मेंट मिलेगा...

ल़डकियों के बीच
तब्बसुम - चलो चलो हम में से डिसाइड करो... कौन किसका नाम लिखेगा...
दीप्ति - हाँ... हम छह हैं... पर हमे तीन जोड़ी में बंट जाना है...
नंदिनी - ठीक है... मैं बनानी का नाम लिखती हूँ... बनानी मेरा नाम लिखेगी... तब्बसुम दीप्ति का नाम लिखेगी और दीप्ति तब्बसुम का नाम... और फाइनली.. भाश्वती इतिश्री का नाम और इतिश्री भाश्वती का नाम...
सभी - ओके

लड़कियाँ अपनी अपनी चिट लिख कर फ़ोल्ड कर देते हैं l

प्रिन्सिपल - अब उन चिट को... ल़डकियों के तरफ से नंदिनी कलेक्ट करेंगी... और लड़कों के तरफ से xxxxx कलेक्ट करेंगे... इसलिए आप सब उन्हें अपनी अपनी चिट दें....

नंदिनी पहले हैरान हो जाती है फिर खुशी से सबकी चिट कलेक्ट करती है l दोनों ग्रुप की चिट कलेक्शन हो जाने के बाद नंदिनी और xxxxx स्टेज पर आते हैं l रॉकी उस ग्लोब का ढक्कन खोल देता है l और सारे चिट्स उसमें डालने को कहता है l दोनों वही करते हैं l

प्रिन्सिपल - अब आप दोनों अपने दोस्तों के पास जा कर बैठ जाएं... (दोनों स्टेज से उतर कर अपने अपने दोस्तों के पास चले जाते हैं) आज इन चिट्स के बीच एक नाम को लकी ड्रॉ के जरिए एफएम रेडियो के जॉकी सुरेश साहब निकलेंगे... (सभी स्टूडेंट्स तालियां बजाने लगते हैं) आइए सुरेश साहब...

सुरेश स्टेज पर आता है l और उस सिस्टम को ऑन करता है जिसमें वह ग्लोब अटैच था l ग्लोब थोड़ी देर घूमने के बाद एक चिट बाहर गिरती है l सुरेश वह चिट प्रिन्सिपल को दे देता है l

प्रिन्सिपल - हाँ तो इस चिट में जिनका नाम आया है... मैं उनको पहले बधाई देता हूँ... आप हैं... मिस रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल...

सभी स्टूडेंट्स तालियाँ बजाने लगते हैं l स्टेज पर मौजूद सभी लोग और प्रिन्सिपल भी ताली बजाने लगते हैं l लड़कियाँ सभी नंदिनी को बधाई देते हैं और चीयर करने लगते हैं l

नंदिनी अपना नाम सुन कर पहले से ही शॉक थी l उस पर सब उसे जिस तरह से बधाई दे रहे हैं l वह नर्वस फिल करने लगती है l

प्रिन्सिपल - आइए नंदिनी जी... स्टेज पर आइए...

नंदिनी बड़ी नर्वस नेस के साथ स्टेज पर जाति है l स्टेज पर पहुंचते ही उसके सारे दोस्त चीयर करते हुए हूटिंग करते हैं l

प्रिन्सिपल - मिस. नंदिनी.. क्या आप नर्वस फिल कर रही हैं...
नंदिनी - जी.. जी सर...
प्रिन्सिपल - जीवन में कई चुनौतियाँ आयेंगी... इससे भी बड़े बड़े... इसे आप स्वीकार करने का साहस करें... फिर सभी आसान हो जाएगा...
नंदिनी - जी...
प्रिन्सिपल - तो आपको आज टास्क सुरेश जी देंगे... और इन दो दिनों में यहाँ पर एक टेंपोररी साउंड प्रूफ़ स्टूडियो बनाया जाएगा... आप लोग यहाँ पर लाइव देख व सुन सकें... (सभी स्टूडेंट्स फिर से तालियां बजाने लगते हैं) (प्रिन्सिपल हाथ दिखा कर इशारे से ताली रोकने को कहता है, ताली रुक जाती है) हाँ... तो सुरेश साहब... दीजिए इन्हें एक टास्क...(माइक से हट जाता है)
सुरेश - (माइक पर आकर) पहली बात... नंदिनी जी आप घबराएँ नहीं... यह टास्क ही सही... पर यह एक एक्सपोजर भी है... आप अपने भीतर एक नए व्यक्तित्व को ढूंढेंगी... सो प्लीज बी नॉर्मल... शांत हो जाइए...
नंदिनी - जी... जी मैं.. ठीक हुँ...
सुरेश - गुड... तो क्या मैं आपको टास्क दूँ...
नंदिनी - श्योर...
सुरेश - तो दोस्तों... मैं आज आपके सामने मिस नंदिनी जी को... एक टास्क दे रहा हूँ... वह शनिवार को बारह बजे के बाद... रेडियो एफएम 97 में... मेरे साथ लाइव रहेंगी... और उस दिन वह प्रेजेंट करेंगी एक विषय
"HUMAN EVOLUTION TWENTY FIRST CENTURY AND THE WOMEN"
यानी मानव क्रमिक विकास, इक्कीसवीं सदी और औरत...

कुछ देर के लिए हॉल में सन्नाटा पसर जाता है l पहले प्रिन्सिपल ताली बजाता है फिर सभी लोग ताली बजाने लगते हैं l पुरा का पुरा हॉल तालियों से गूंजने लगती है l

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ESS ऑफिस
कंफेरेंश रूम में महांती, विक्रम, वीर और पिनाक बैठे हुए हैं l पिनाक सिंह अपनी मुट्ठी को टेबल पर धीरे धीरे ठोक रहा है l

विक्रम - आप इतना खीज क्यूँ रहे हैं...
पिनाक - आप समझ नहीं रहे हैं युवराज... ऐसा लग रहा है... जैसे हम अपना रास्ता इसलिए बदल दिया... वह भी किसीके डर से...
विक्रम - हम चाहे कितने भी सहरी क्यूँ ना हो जाये... हम हैं तो जंगली ही... यह खेल शिकार और शिकारी वाला है... हमारा शिकार छुपा हुआ है... वह हमे छकाये हुए है... बस एक बार वह बाहर निकल जाए... फिर ऐसा शिकार होगा कि उसके पुश्तों तक के रूह कांप उठेगी...
पिनाक - खेल अगर शिकार और शिकारी वाला है... तो हमें उसे मौका देना चाहिए था... हम उसे बाहर निकालने के लिए चारा बनने के लिए तैयार हैं... पर बेचारा बन कर नहीं रह सकते...
महांती - गुस्ताखी माफ छोटे राजा जी... शेर भी कभी कभी शिकार करने से पहले दो कदम पीछे जाता ही है... हम डर कर नहीं... बल्कि उसे बौखलाने के लिए रास्ता बदला है... वह आपको ज़रूर फोन करेगा... आप बस उसे एहसास मत होने दीजियेगा... के हमें उसके प्लान का अंदाजा हो चुका था... वह आपको उसकायेगा... पर आप शांत रहें... आपका शांत रहना उसे और भी बौखलाएगा... और बौखलाहट उससे गलती करवाएगा...
वीर - हाँ... बहुत ही बढ़िया प्लान है... महांती बिल्कुल सही कह रहा है...
पिनाक - बस महफ़िल में आप ही की कमी थी... अच्छा हुआ... उगल दिए आपने वरना बदहजमी हो जाती आपको...
वीर - ओ... मेरे कुछ कहने से आपको अगर पसंद नहीं आ रहा... तो मेरा यहाँ रुकना बेकार है...
पिनाक - मैं नहीं हम कहिए... आप राजकुमार हैं...
वीर - हम का दम तब भरते... जब बंदे का इज़्ज़त हो...
विक्रम - राजकुमार... आप आपे से बाहर हो रहे हैं...
वीर - नहीं... अपने आप में आ रहे हैं... सॉरी

वीर वहाँ पर सबको बैठा छोड़ कर कांफ्रेंस रूम से निकल जाता है l

विक्रम - (पिनाक सिंह से) आखिर आप अपनी खीज... राजकुमार पर उतार ही दिया...
महांती - हाँ छोटे राजा जी... खबर मिलते ही... राजकुमार जी फौरन पुरी के लिए निकल पड़े थे...
पिनाक - वह हम थोड़ा... सॉरी... हम बाद में उनसे बात कर लेंगे...

तभी पिनाक सिंह की मोबाइल बजने लगता है l पिनाक मोबाइल के डिस्प्ले पर अन नोन कॉल देखता है l उस पर कोई नंबर नहीं दिखता है वह उस डिस्प्ले को विक्रम और महांती को दिखाता है l दोनों इशारे में बात करते रहने के लिए कहते हैं I

पिनाक - हैलो...
-X- क्या बात है... फोन उठाने में इतनी देरी... क्यूँ फट रही थी क्या...
पिनाक - फट तो तेरी रही है हरामजादे... सामने नहीं आ रहा है...
-X- बहुत जल्दी है मुझसे मिलने की... जिस देखेगा... उस दिन आगे से गिला और पीछे से पीला हो जाएगा...
पिनाक - अब एक बात का कंफर्म हो गया... तु ज़रूर किसी फटीचर सर्कस में जोकर रहा होगा... सिर्फ़ जोक मारने के सिवा कुछ भी नहीं आता तुझे...
-X- उस दिन की गोली बारी मजाक लग रहा है तुझे... याद है ना... गाड़ी बदली थी तुने... हाँ यह बात और है... घर जा कर चड्डी भी बदला होगा तुने... जो न्यूज वालों ने बताया नहीं किसी को...
पिनाक - तो भोषड़ी के... फिर हमला क्यूँ नहीं करवा रहा है... कौनसे बिल में छुप कर भौंक रहा है....
-X- भौंक नहीं रहा हूँ... दहाड़ रहा हूँ... बहुत जल्द... सारा सहर देखेगा... तु रोड पर जान बचा कर भाग रहा होगा.... और कसम से टीवी पर यह लाइव चल रहा होगा...
पिनाक - क्षेत्रपाल से बात कर रहा है... मादरचोद क्षेत्रपाल से... बस एक बार मेरे सामने आजा... तुझे तेरी ही जुबान से फांसी पर टांग ना दिया... तो हम क्षेत्रपाल नहीं...
-X- ठीक है फिर बहुत जल्द तेरे सामने आऊँगा... पहचानना तो दूर तु जान भी नहीं पाएगा... तेरी ऐसी गांड मार कर जाऊँगा...
पिनाक - ठीक है आजा फिर...
-X- अरे वाह... बड़ी जल्दी है... मुझसे मरवाने की...
पिनाक - (चिल्लाता है) हरामजादे.... (फोन कट हो जाता है) तु बस एक बार सामने आ... हैलो.. हैलो...
विक्रम - क्या पता चला महांती....
महांती - यह एक इंटेरनेट कॉल था... बहुत चालाक है.... ना सिर्फ़ इसकी लोकेशन हर दस सेकंड में बाउंस कर रहा था... बल्कि उलझाने के लिए अपनी कॉल को हर नेटवर्क पर बारी बारी से शिफ्ट कर रहा था...
विक्रम - तो क्या हम उसे ट्रेस नहीं कर सकते...
महांती - क्यूँ नहीं कर सकते... अगली बार कॉल करेगा तो... उसकी एक्जाक्ट लोकेशन मिल जाएगी...
पिनाक - ठीक है... महांती... तुम बस उसका लोकेशन का पता लगाओ... फ़िर हम उसकी वह हश्र करेंगे... वह हश्र करेंगे....

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वीर गुस्सा और नाराज होकर कांफ्रेंस रूम से निकल कर अपने कैबिन में आ कर बैठा हुआ है l कुछ देर बाद उसके कमरे में अनु कॉफी की कप लेकर अंदर आती है और वीर के सामने रख देती है l वीर के मन में पिनाक की कही बातें चल रही है l इसलिए उसे ध्यान नहीं रहता की उसके टेबल पर अनु ने कॉफी रख दिया है l अनु को एहसास होता है, वीर का मन ठीक नहीं है इसलिए वह फिर से अपनी पर्स से स्माइली बॉल निकाल कर वीर देखती है l उसे समझ में नहीं आता कि कैसे उन बॉल्स को वीर के हाथों में दे l इसलिए टेंशन में वह बॉल्स को दबाने लगती है l
कुछ देर बाद वीर अपनी ख़यालों से बाहर आता है तो अनु को स्माइली बॉल्स को दबाते हुए देखता है l

वीर - यह तुम क्या कर रही हो...
अनु - जी (अपने हाथ में बॉल देख कर) जी यह.. मैं वह.. आप.. कैसे...
वीर - क्या कह रही हो...
अनु - जी...मु.. मम्म्म्म.. मुझे समझ में नहीं आया.. यह बॉल कब और क.. कैसे.. आपके हाथ में दूँ...
वीर - (चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) लाओ बॉल दो... (अनु दे देती है)(वीर बॉल्स दबाने लगता है) तुम अभी दबा रही थी ना... क्यूँ...
अनु - वह आपको टेंशन में देख कर... मेरे समझ में नहीं आया मैं क्या करूं...
वीर - (बॉल्स को दबाते हुए) अच्छा जब मैं यहाँ नहीं था... कुछ फोन वगैरह आया था...
अनु - जी.. जी नहीं... नहीं आया था...
वीर - (बॉल्स अनु को देते हुए) ह्म्म्म्म यह लो... रख लो... (अनु बॉल्स रख लेती है) अच्छा अनु... तुम मेरी क्या हो...
अनु - जी मैं आपकी... पीएस और पीए दोनों हूँ..
वीर - अच्छा.. तुम मेरे लिए यहाँ क्या करती हो...
अनु - जी आपके खाने पीने से लेकर वह सभी काम... जो आप मुझसे कहते हैं...
वीर - और छुट्टी के दिन...
अनु - छुट्टी के दिन तो छुट्टी होता है ना...
वीर - हाँ होता तो है... पर जानती हो... जो पर्सनल सेक्रेटरी या पर्सनल अस्सिटेंट होते हैं... वह चौबीस घंटे ड्यूटी पर होते हैं...
अनु - (हैरान हो कर) हे भगवान... तो फिर वह लोग खाते पीते सोते कब होंगे...
वीर - सब उनके बॉस के साथ ही करते हैं...
अनु - क्या...(और भी हैरान हो जाती है) सब उनके बॉस के साथ करते हैं...
वीर - अरे मेरा मतलब है... जब वह लोग अपने बॉस के साथ होते हैं... तो खयाल रखते हैं... और जब साथ नहीं होते तो फोन पर बात करते हुए खयाल रखते हैं...
अनु - ओ.. अच्छा... पर मेरे पास तो फोन है ही नहीं...
वीर - (अपनी टेबल का ड्रयर खिंचता है उसमे से एक मोबाइल निकाल कर अनु को देता है) यह लो... यह कंपनी के तरफ से... अपने बॉस के साथ चौबीसों घंटे टच में रहने के लिए...
अनु - (झिझकते हुए फोन लेती है) वह... असल में... मुझे मोबाइल चलानी नहीं आती...
वीर - क्या... तुम मेरी असिस्टेंट हो... सेक्रेटरी हो... तुम को यह सब नहीं आती...
अनु - (अपना सिर हिला कर ना कहती है)
वीर - व्हाट... तुम्हारा पनीश्मेंट में एक और पनीश्मेंट ऐड हुआ...
अनु - (रुआँसी हो जाती है)
वीर - (उसकी रुआँसी सुरत देख कर) ठीक है ठीक है... मैं इसबार माफ करता हूँ... यहाँ मेरे पास आकर बैठो... मैं तुम्हें मोबाइल चलाना सीखा देता हूँ... आओ यहाँ...

वीर अनु के हाथ खिंच कर अपनी कुर्सी के आर्म रेस्ट पर बिठा देता है और अनु के हाथ में मोबाइल थमा कर उसे चैटिंग और कॉल करने के बारे में समझाने लगता है
 
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