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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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ANUJ KUMAR

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👉पचपनवां अपडेट(A)
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तापस और प्रतिभा खान को ऐसे देखने लगते हैं जैसे उनके सामने कोई भूत बैठा हो l दोनों का मुहँ खुला रह जाता है और हैरानी से कभी एक दुसरे को तो कभी खान को देखने लगते हैं I

तापस - ये.. यह... क्या मज़ाक है... खान... तुम विश्व पर आरोप मढ रहे हो...
खान - नहीं बिल्कुल नहीं... तुम्हें लगता है कि मैं मज़ाक करने के मूड में हूँ...
तापस - देन... व्हाट रॉब्बीश... तुम जानते हो... जैल में जितने भी कैदी सुधार प्रोग्राम हो रहे हैं.... सब विश्व की दी हुई आइडिया से है... सुधरने की कोशिश करने वाले क़ैदियों को स्वरोजगार और स्वावलंब की जितनी भी प्रोग्राम है... सब के सब विश्व के आइडिया है.... आज कैन्टीन में जो टीवी और न्यूज पेपर उपलब्ध है वह भी विश्व का आइडिया है.... और अभी अभी मैंने तुमको बताया कैसे... कैसे विश्व ने जैल में दंगा भड़कने से रोका और कैदियों के साथ साथ हम पुलिस वालों की भी जान बचाई... बाय द वे... तुम जिसे हत्या कह रहे हो.... वह एक हादसा था... यह इंक्वायरी में साबित भी हो चुका है... तो फिर किस बिनाह पर तुम उसे क़ातिल बता रहे हो...(एक ही सांस में बिना रुके बोलता है)
खान - रिलैक्स... रिलैक्स... तुम इतना हाइपर क्यूँ हो रहे हो...
तापस - (खुदको संभालते हुए) सॉरी... पर तुम बिना सबुत के कैसे किसी पर आरोप लगा सकते हो...
खान - हाँ सबुत तो है नहीं... पर मैं लॉजिक बिठा सकता हूँ....
प्रतिभा - अगर सबुत ही नहीं है... तो हम क्यूँ बे फिजूल डिस्कस कर रहे हैं...
खान - सबुत तो... यश ने भी नहीं छोड़ा था...
तापस - इनॉफ...(आवाज़ में थोड़ा गुस्सा झलकता है) तुम विश्व और यश को मत मिलाओ... तुम यह सब इसलिए कह रहे हो... क्यूंकि यश ने हम सबका कुछ ना कुछ बिगाड़ा था.... पर वह... जो भी हुआ था... वह एक हादसा था... उस वक़्त मैं था भी नहीं... और उस हादसे पर रिपोर्ट.... इंटरनल इनवेस्टिगेशन पैनल ने बनाई थी... और वह इंफ्लुयंस्ड नहीं थे...
खान - आई नो... पर मैंने कहा ना मैं लॉजिक बिठा सकता हूँ...

तापस वाकई हाइपर होने लगा था l उसकी सांस ऊपर नीचे होने लगी थी l प्रतिभा ने उसका हाथ थाम लिया l

तापस - (थोड़ा नॉर्मल होते हुए) ठीक है... बताओ तुम क्या जानते हो...
खान - (मुस्कराकर) तुमने खुद बताया... विश्व... एक मासूम गाँव वाला... पर अब.... अब कहाँ से कहाँ पहुँच गया है...
तापस - खान प्लीज...
खान - ओके ओके... ठीक है... तो मैं बताता हूँ.... जैसा कि विश्व अगले महीने छूटने वाला है... तो जाहिर सी बात है... मुझे उसके अब तक जितने दिन भी रहा है... उसके चाल चलन पर रिपोर्ट बना कर मंत्रालय को भेजना था... तभी मैंने उसके फाइल में यह भी देखा था... की उसे एक इंटरनल इंक्वायरी का सामना करना पड़ा है... रिपोर्ट में उसके साथ और पाँच सस्पेक्ट और भी थे... बट ऑल क्लीयर... पर तुम्हारे कहानी सुनने के बाद.... मुझे न्यूज पेपर पर पढ़े... और टीवी पर देखे सुने न्यूज... कुछ कुछ याद आने लगे... आख़िर पुलिस वाला हूँ... मैंने अपना लॉजिक बिठा दिया...
तापस - पर ऐसे कैसे...
खान - सेनापति... हम दोनों एक दुसरे को... अच्छी तरह से जानते हैं... हमने कई कंभींग ऑपरेशन साथ किया है... तुम जानते हो... मैं बे फिजूल कोई बात करता नहीं...
तापस - (चुप रहता है)
खान - वह हादसा था या हत्या... यह बाद की बात है... पर सच यह भी है... की यश से बदला लेने के लिए... विश्व के पास दो दो वजह थे.... एक जयंत राउत और दुसरा प्रत्युष....

तापस और प्रतिभा चुप रहते हैं l खान भी उनकी प्रतिक्रिया देखने के लिए कुछ दूर चुप रहता है l फ़िर ख़ामोशियों को तोड़ते हुए तापस पूछता है

तापस - ओ... तो तुम अपना लॉजिक बिठा रहे हो...
खान - सिर्फ़ लॉजिक नहीं... एक दम सलिड लॉजिक...
तापस - ठीक है... असल मुद्दे पर आओ...
खान - बताता हूँ... जैसे कि मैंने कहा तुम्हारे और विश्व के अतीत में झांकने के बाद ही.... मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ... इसलिए मैं भी तुम्हें... दो साल पहले लिए चलता हूँ... जो उस वक़्त पेपर के हेडलाइंस बने हुए थे... दो साल पहले... चेट्टीस् ओर क्षेत्रपालों की बीच दूरियां आ चुकी थी.... वजह का तो पता नहीं... पर क्यूँकी जब विक्रम सिंह क्षेत्रपाल की शादी हुई थी तब... तब उसके शादी में चेट्टीस् का ना जाना बहुत ही बड़ी न्यूज थी... आखिर क्षेत्रपाल परिवार को राजनीति में लाने वाले चेट्टीस् जो थे.... उसके बाद तो जैसे... चेट्टीस् के सियासत और निजी जिंदगी में पतझड़ो का सिलसिला ही शुरू हो गया... वजह... वही लोग जानें... मगर उसके बाद से ही ओंकार चेट्टी की सियासत को और यश चेट्टी की व्यापार सब को ग्रहण लगना शुरू हो गया था.... दो साल पहले... नयी नयी एक उभरती मीडिया चैनल... नभ वाणी के रिपोर्टर प्रवीण रथ ने... पहले यश पर सनसनी आरोप लगाया कि... यश एक लड़की बाज और ऐयाश किस्म का आदमी है... तब मीडिया में वॉर छिड़ गई थी... यश के बचाव में कुछ आ गए थे... और हमले में सिर्फ कुछ एक ही मीडिया थे.... और उन सबमें सबसे आगे था... नभ वाणी... फिर एक दिन प्राइम टाइम न्यूज में.... निहारिका नाम की एक टॉप मॉडल आकर यश पर इल्ज़ाम लगा देती है... की पाँच सालों से वह और यश लिव इन रिलेशनशिप में थे... अब जब वह उसके बच्चे की माँ बनने वाली है... तब यश ने उसे धक्के मार कर घर से निकाल दिया है.... इस पर यश ने काउंटर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए... निहारिका पर पाँच सौ करोड़ रुपए की... डिफेम केस शूट कर दिया.....
क्यूँ है ना....
प्रतिभा - हाँ... यह तो सब जानते हैं... इसमें नया क्या है...
खान - नया क्या है... वह मैं आखिर में कहूँगा... फ़िलहाल में कड़ी से कड़ी जोड़ रहा हूँ....
तापस - ठीक है... कहो....
खान - जब यश जैसा बिजनस टाईकुन... पांच सौ करोड़ की डिफेम शूट किया हो... तो उससे बचने के लिए... कोई नामी या फिर दमदार वकील होना चाहिए कि नहीं.... भाभीजी तभी धीरे धीरे ग्रूम कर रही थीं... इतनी नामी तो थी नहीं.... पर फ़िर भी... निहारिका ने अपनी केस लड़ने के लिए.... आपके पास आई... और आप यश के खिलाफ केस लड़ने के लिए.... किसी भी हद तक जा सकती थीं.... यह बात निहारिका अच्छी तरह से जानती थी.... आपने भी हाथ में केस लेने की जरा भी देरी ना लगाई.... और कोर्ट में... आपकी क्लाएंट को यश से जान की खतरा है.... और अगर निहारिका को कुछ भी हो जाता है तो.... उसका जिम्मेदार सिर्फ़ व सिर्फ़ यश ही होगा... ऐसा हलफनामा दायर किया....
है ना....
प्रतिभा - हाँ यह सच है और यह बात सबको पता है...
खान - हाँ... इस बार यश बौरा गया था... अपनी आदत के अनुसार दुश्मन को खुद मारने निकला और इसलिए... खुद ही अपनी गाड़ी से निहारिका की एक्सीडेंट कर दिया... पुलिस की तफ्तीश आगे बढ़ी तो शक़ यश पर आया... चूंकि आपने पहले से ही अदालत में हलफनामा दायर कर चुकीं थी... तो यश के नाम पर वारंट अदालत से निकली... तब मज़बूर हो कर यश ने खुद को अदालत में सरेंडर करा दिया... पर अदालत में यह भी कहा.... उसको जैल सुपरिटेंडेंट तापस सेनापति से जान का खतरा हो सकता है... इसलिए उसे किसी और जैल में रखा जाए... और अदालत ने आपकी और यश के अतीत को देख कर.... यश को झारपड़ा जैल में भेज दिया....
है ना...
तापसा - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) हूँ...
खान - झारपड़ा जैल में जब यश चौदह दिनों की रिमांड पर था... तब...

अब खान की जुबानी फ्लैशबैक जो वह बीच बीच में ब्रेक लेकर सुनाएगा

सेंट्रल जैल
विश्व स्किल अपग्रेडेशन सेंटर में कारपेंट्री का काम कर रहा है l उसके पास सीलु आता है पर विश्व को कुछ नहीं कहता वहीँ जगह देख कर बैठ जाता है l

विश्व - क्या बात है... ऐसे मुहँ लटकाये क्यूँ बैठा है...
सीलु - वह भाई तुमसे एक बात करनी है...
विश्व - हाँ तो कहो...
सीलु - भाई... वह...
विश्व - (अपना काम रोक देता है, और सीलु को अपने साथ सेंटर से बाहर आता है) अब बोलो क्या बात है... बेझिझक बोलो...
सीलु - भाई मैं और जिलु यहाँ साथ हैं.. मिलु और टीलु बाहर हैं... तो वही इंसपेक्टर ने उन दोनों को एक बड़ा ऑफर दिया है...
विश्व - क्या ऑफर दिया है....
सीलु - भाई हम हमेशा हिट एंड रन केस को... अपने ऊपर ले लेते हैं... बदले में हमारी तगड़ी कमाई भी हो जाती है... पर हर हिट एंड रन केस में... कभी किसीकी जान नहीं गई थी... पर इस बार मामला थोड़ा अलग है...
विश्व - मतलब अब इस बार किसीकी जान गई है...
सीलु - हाँ... हम कभी पाँच या छह महीने से ज्यादा जैल में रुके भी नहीं है... पर इसबार बात अलग है...
विश्व - क्या अलग है...
सीलु -.. वह इंस्पेक्टर... इसबार कह रहा है... की हिट एंड रन केस में... पाँच साल की सजा हो सकती है.... अनइंटेंश्नली मर्डर चार्जर्स लग सकते हैं... पर हर एक साल की ऐवज में दो करोड़... मतलब हम चारों को दस दस करोड़ रुपये...
विश्व - ह्म्म्म्म... तो तुम लोग मुझसे चाहते क्या हो...
सीलु - भाई... हमने पहले भी कहा था... की हम यह काम छोड़ देंगे... और तुम्हारे साथ ही रहेंगे... बात अगर दो साल की होती तो हम मान लेते... पर पाँच साल...
विश्व - (सीलु को घूर कर देखता है) सीलु... मैं तब भी चाहता था... और अब भी चाहता हूँ... तुम लोग यह काम छोड़ दो...
सीलु - हम छोड़ तो दें... पर वह इंस्पेक्टर हमे नहीं छोड़ रहा है ना...
विश्व - वैसे यह किस बंदे के लिए... कह रहा है...
सीलु - मालुम नहीं भाई... हमारे उस इंस्पेक्टर के साथ पहले ही डील है... हमको उनके बारे में... कोई जानकारी नहीं दी जाती...
विश्व - अच्छा... पहले कितना ऑफर होता था...
सीलु - यही कोई पचास हजार या लाख या ज्यादा से ज्यादा डेढ़ लाख...
विश्व - (भवें तन जाती है) इस बार करोड़ों...
सीलु - हाँ भाई....
विश्व - (सीलु को अपने तरफ घुमाता है और उसके दोनों कंधे पर अपना हाथ रख कर) सीलु मुझसे सच सच कहो... क्या वाकई तुम लोग इस दल दल से निकालना चाहते हो...
सीलु - हाँ भाई कसम से...
विश्व - तो मुझे कल तक का समय दो... फिर मैं जैसा कहूँगा... तुम मिलु और टीलु से कहना... वह लोग सब बिल्कुल वैसे ही करेंगे...
सीलु - ठीक है भाई...

फिर वहीँ, सीलु को छोड़ कर तापस के कैबिन की ओर जाता है l वहाँ पहुँच कर देखता है तापस किसी गहरी सोच में डूबा हुआ है l

विश्व - क्या मैं अंदर आ सकता हूँ...
तापस - (होश में आते हुए) हूँ... हाँ... विश्व आओ... कहो क्या बात है...
विश्व - मुझे आपका फोन चाहिए...
तापस - क्यूँ प्रतिभा से बात करनी है क्या...
विश्व - हाँ...
तापस - यह लो...
विश्व - (फोन लगाता है)...
प्रतिभा - (दुसरी तरफ से) हाँ बेटा बोल...
विश्व - अरे माँ.. तुमको कैसे पता... मैंने आपको फोन लगाया है...
प्रतिभा - बेटे को कब माँ की जरूरत पड़ती है... माँ समझ जाती है... अच्छा अब बोल... तूने फोन क्यूँ किया...
विश्व - माँ.. वह यश... बचने के लिए... जुगाड़ लगा रहा है... वह अपने बदले किसी और से इकबालिया बयान दिला कर... खुद को बचाने के चक्कर में है... आपको कुछ करना पड़ेगा...
प्रतिभा - (हैरान होते हुए) तुझे कैसे पता....
विश्व - माँ... यहाँ पर मेरे चार दोस्त हैं (विश्व उनके बारे में और वह लोग कैसे जैल में आते हैं सब बता देता है) माँ... मैंने उनसे वादा किया था... की उनको एक दिन उस दल दल से निकालूँगा... अब वक़्त आ गया है...
प्रतिभा - ठीक है पर कैसे...
विश्व - आप उस इंस्पेक्टर की स्टिंग ऑपरेशन करोगे... मेरे दोस्तों के जरिए... मेरे यही दोस्त सरकारी गवाह बनकर... यश के खिलाफ सबूत बन जाएंगे...
प्रतिभा - (आवाज़ में खुशी जाहिर करते हुए) बहुत ही बढ़िया आइडिया दिया है तुमने... एक काम करो... तुम अपने दोस्तों के डिटेल्स दो... और जो बाहर हैं... उन्हें कहो मुझसे कहीं... न्यूट्रल वेन्यू पर मिले...
विश्व - ठीक है माँ... अच्छा अब बस इतना ही... बाद में कभी...
प्रतिभा - बाय बेटा... लव यू...
विश्व - लव यू ठु माँ...

कह कर फोन काट देता है और तापस को दे देता है l विश्व गौर करता है तापस उसे घूर कर देख रहा है l

विश्व - आप ऐसे क्यूँ घूर रहे हैं...
तापस - कितना दिमाग चला लेते हो... एक दिन बहुत बड़ा वकील बनोगे...

विश्व थोड़ा शर्मा कर सकुचाते हुए बाहर चला जाता है l
कुछ दिनों बाद स्टिंग ऑपरेशन में चन्द्रशेखर पुर थाने के इंस्पेक्टर यश का नाम खुलासा करते हुए पाया जाता है l उसके बाद वह इंस्पेक्टर सस्पेंड कर दिया जाता है l चौदह दिन की रिमांड के बाद अदालत की पेशी में यश की रिमांड और चौदह दिन और बढ़ जाता है l अदालत के बाहर यश और प्रतिभा का मुलाकात होती है

यश - यह स्टिंग ऑपरेशन तुने ही कराया था ना बुढ़िया.... अच्छी चाल थी... पर तेरे हाथ कुछ नहीं लगेगा....
प्रतिभा - यह तो शुरुआत है... यश वर्धन... तुम्हें अंजाम तक पहुंचाने के लिए... मैं किसी भी हद तक जा सकती हूँ...
यश - ठीक है बुढ़िया... ठीक है... पहली चाल तूने चल दी... अब मेरी चाल बाकी है...
प्रतिभा - ठीक है... देखते हैं...

दो दिन बाद
कमिश्नर ऑफिस में

तापस - व्हाट इज़ दिस सर... मेरी ईमानदारी और वफ़ादारी का यह सिला दे रहा है मुझे... मेरी डिपार्टमेंट...
कमिश्नर - देखो सेनापति... यह अदालती प्रोसिजर है...
तापस - सर यह क्या नॉनसेंस है... एक कंविक्टेड अदालत में... पिटीशन फाइल कर कर कहता है... बाकी के रिमांड दिन... स्पेशल सेल में रहना है... और जब तक उसकी रिमांड पूरी नहीं होती... तब तक उस जैल की अधिकारी तापस सेनापति नहीं रहेगा.... और अदालत उसकी यह अर्जी मान भी लेती है...
कमिश्नर - तुम ऐसे क्यूँ रिएक्ट हो रहे हो... ऐसा नहीं कि मैं तुम्हारे लिए नहीं लड़ा... पर हम इस सिस्टम में अपनी अपनी सीमा में बंधे हुए हैं... हमारी अपनी लिमिटेशन है... एंड डोंट फॉरगेट वह एक मिनिस्टर का बेटा है और खुद में बड़ा बिजनेसमैन है... अभी भी उनके इंफ्लुयंस कम नहीं हुए हैं.... इसलिए मैंने स्पेशयली तुम्हारे लिए डिपार्टमेंटल लिव सांकशन किया है... अभी तुम अपनी पत्नी को लेकर... कहीं भी जाओ... एंजॉय करो... टीए, डीए और स्टे सब डिपार्टमेंट देगी...
तापस - सर इससे बढ़िया होता.. के आप मुझे सस्पेंड कर दें...
कमिश्नर - बस... बहुत हो गया.... यह अदालत का ऑर्डर है... डिपार्टमेंट का कोई रोल नहीं है... तुम इतने सीनियर ऑफिसर हो.... फ़िर भी तुम एक नासमझ की तरह आर्गयु कर रहे हो...
तापस - सॉरी सर...
कमिश्नर - देखो... सब जानते हैं... यश पर सबसे पहले एफआईआर दर्ज कराने वाले सेनापति दंपति हैं... और इस बात को मान कर ही अदालत ने यह फैसला दिया है....
तापस - ठीक है सर... यह वाकई पहली बार ऐसा हो रहा है.... मुजरिम के अर्जी पर... एक पुलिस वाले का तड़ीपार किया जा रहा है...
कमिश्नर - तुम फ़िर शुरू हो गए.... यश ने यह चार्जर्स लगाया है... की तुम जैल में उसके खिलाफ कभी भी.. वायलंट हो सकते हो... इसीलिए अदालत ने यह ऑर्डर निकाला है...
तापस - अगैंन सॉरी...
कमिश्नर - नाउ... नो मोर डिस्कशन... डिसमिस...

तापस सैल्यूट दे कर चला जाता है l और अपने ऑफिस में पहुंच कर दास को बुलाता है l दास आकर उसे सैल्यूट मारता है तो तापस उसे एक चिट्ठी थमा देता है l

दास - यह क्या है सर...
तापस - सिर्फ़ दो दिन में... स्पेशल सेल तैयार रखो.... एक बहुत बड़ा बिजनैस टाईकुन आने वाला है...
दास - ओ...
तापस - दास... मुझे फ़िलहाल एक महीने के लिए... दिल्ली डेपुटेशन में भेजा जा रहा है... इस एक एक महीने के लिए झारपड़ा जैल के इनचार्ज इस जैल के एडीशनल चार्ज में रहेंगे... तब तक यश तुम्हारा मेहमान है...
दास - ओ अच्छा... यह बात है...
तापस - हूँ... एक बात और... कोशिश करना... विश्व और यश का आमना सामना जितना कम हो...
दास - ठीक है सर... मैं समझ सकता हूँ...

अगले दिन प्रतिभा को लेकर तापस दिल्ली चला जाता है l उधर स्पेशल सेल के एक दो रूम को तैयार किया जा रहा है l जैल में सबको मालूम हो चुका है कि यश वर्धन आ रहा है l यश के आने की खबर मिलने के बाद विश्व अपनी सेल से निकला नहीं है l यह बात दास नोटिस कर लेता है l फ़िर एक दिन बीत जाता है दास देखता है कि दो दिन हो चुका है फ़िर भी विश्व अपने सेल से बाहर नहीं आया है l दास से रहा नहीं जाता तो वह विश्व के पास आता है l

दास - क्या बात है विश्व... तुम अपने सेल से बाहर क्यूँ नहीं निकल रहे हो...
विश्व - क्या यह सच है... की सुपरिटेंडेंट सर की डेपुटेशन के पीछे यश का हाथ है...
दास - देखो विश्व... मैं समझ सकता हूँ... पर तुम रिएक्ट मत हो... हमने जैल की उस वारदात को कितनी अच्छी तरह से हैंडल किया है... की कोई अब तक नहीं जानता कि... तुम्हारा क्या रोल था उसमें... वरना यश कभी भी स्पेशल सेल के लिए यहाँ नहीं आता... और यहाँ कैदियों में... तुम्हारा और सुपरिटेंडेंट सर जी के बीच क्या रिस्ता है... कोई नहीं जानता... इसलिए तुम अगर यश को देख भी लो तो... रिएक्ट मत हो जाना... प्लीज...
विश्व - ठीक है...
दास - तो तुम बाहर निकलो... इससे पहले कि कोई मतलब निकाले..
विश्व - ठीक है... दास बाबु... आपकी बात सर आँखों पर...
दास - इतनी सी बात मान लेने के लिए थैंक्स... अच्छा मैं चलता हूँ... अब बाहर निकलो... सबके साथ वैसे ही मिलो... जैसे मिलते थे...
विश्व - ठीक है... आप जाइए...

दास वहाँ से चला जाता है l विश्व भी तैयार हो कर बाहर आता है l सारे कैदी विश्व की इज़्ज़त करते हैं वजह था कि इन दिनों में जितने भी शैटर डे स्कैरी नाइट सोल्यूशन फाइट हुए हैं उनमें विश्व ही जीता है अब तक l विश्व स्किल डिवेलपमेंट सेंटर जा कर अपना काम करने लगता है l काम करने के समय उससे सीलु और जिलु मिलने आते हैं l

सीलु - क्या बात है भाई... दो दिन से दिखे नहीं आप...
विश्व - कुछ नहीं... मैं कुछ प्लान कर रहा था... अब अमल करने का वक़्त आ गया है... तुम दोनों को साथ देना है...
जिलु - बोलो भाई... क्या करना है...
विश्व - यहाँ पर सबको यह यक़ीन दिलाओ... के जैल से छूटने के बाद... विश्वा भाई... सेनापति दंपती से बदला लेने वाला है...
सीलु - यह क्या बोल रहे हो भाई... आपके कहने पर तो... सेनापति मैडम ने हमें... अंडर कवर सरकारी गवाह बनाया... और इस बार छूटने के बाद... हम पर अब तक के सभी चार्जर्स हटा देंगे... फिर आप...
विश्व - (बीच में बात को काट कर) पहले यह बताओ... मैंने जो कहा... वह करोगे या नहीं...
जिलु - क्या बात कर रहे हो भाई... हम आपके लिए... जान भी दे सकते हैं...
विश्व - तो फ़िर यहाँ के सारे कैदी... अपनी जुबान पर हर दिन सौ बातेँ भले ही करते हों... पर उसमें एक बात ज़रूर कहें... के विश्व जब छूटेगा... तब वह इस जैलर की पत्नी से बदला लेगा...
दोनों - ठीक है... भाई... आपने प्लान किया है तो कुछ ना कुछ सोचा जरूर होगा... अब देखिए हमारा कमाल...
विश्व - यह बात.. दुसरे कैदी कितना कहेंगे जरूरी नहीं... पर कल जो नया मेहमान आ रहा है... उसके दिल दिमाग में यह बात पूरी तरह से छप जानी चाहिए...
दोनों - मतलब...
विश्व - मतलब यह है कि... तुम दोनों उसके पक्के चापलूस बन जाओगे...
दोनों - इससे क्या होगा...
विश्व - अब तक मैंने यहाँ जैसा सेट उप किया हुआ है... अंदर से और बाहर से.... समझ लो उसका एसिड टेस्ट होने वाला है...
दोनों - ओ... तो ठीक है भाई...
विश्व - और आखिरी बात... यह नया मेहमान जितना भी दिन यहाँ रुकेगा... तुम दोनों उसके पक्के चमचे बन जाओगे... और मेरे खिलाफ जितना हो सके... उसके कान भरोगे...
दोनों - वह क्यूँ... (विश्व उनको घूर के देखता है) ठीक है भाई.... ठीक है...

अगले दिन यश को लाया जाता है और उसे सीधे स्पेशल सेल में रखा जाता है l सीलु ओर जिलु दोनों पुरे जैल में यह बात फैलाने में कामयाब हो गए थे कि विश्व और सेनापति दंपति के बीच जानी दुश्मनी है l ऐसे ही दो दिन गुजर जाते हैं l यश भी अपने सेल से बाहर निकल कर डायनिंग हॉल और लाइब्रेरी जाने लगता है l विश्व के प्लान के मुताबिक सीलु और जिलु यश की चापलूसी और चमचागीरी जम कर करने लगते हैं और दुसरे कैदियों पर यश का इम्प्रेशन ज़माने लगते हैं l यश भी विश्व के बारे में कुछ कैदियों से जानकारी लेने लगता है l तीसरे दिन लंच के वक़्त वह देखता है कि विश्व एक कोने में टेबल पर अपना लंच ले रहा है l यश के साथ सीलु और जिलु बैठ कर खाना खा रहे हैं l

यश - यह....यह विश्वा है क्या...
सीलु - (उस तरफ देख कर) हाँ भाई... वही विश्वा है...
यश - हूँ... किस जुर्म में है...
जिलु - पता नहीं बॉस.... पर इतना मालुम है... की चार सौ बीस का लफड़ा है...
यश - हम्म...

फिर यश देखता है के विश्व अपना खाना खतम कर वॉश रूम जा रहा है l यश भी अपनी जगह से उठता है और वॉश रूम में पहुँचता है l वहाँ देखता है विश्व अपना थाली साफ कर हाथ मुहँ धो रहा है l यश उस पर नजर गड़ाए देखता है l विश्व उसे देखता है और फिर वहाँ से जा कर थाली वापस कर बाहर चला जाता है l विश्व के जाने के बाद यश भी वहाँ से निकल कर लाइब्रेरी जाता है l लाइब्रेरी में कुछ वक़्त गुजारने के बाद वह लाइब्रेरी से निकल कर स्किल सेंटर जाता है l वहाँ पहुँच कर देखता है l वहाँ पर मौजूद सारे कैदी कामों में लगे हुए हैं l कोई मोटर वाइंडींग कर रहा है, कोई कार्पेंट्री का काम कर रहा है, कोई गाड़ी रिपेयर का काम l सभी किसी ना किसी काम में लगे हुए हैं l पर यश की नजरें विश्व को ढूंढ रहे थे l वह देखता है एक जगह विश्व वेल्डिंग मशीन से रॉड काटने और जोड़ने का काम कर रहा है l यश वहाँ पहुँचता है और विश्व को घूरने लगता है l विश्व उसे देखता है फिर अपने काम में लग जाता है l खुद को ऐसे घूरे जाने पर विश्व का ध्यान भटकने लगता है l विश्व अपना काम रोक देता है l पहले अपना एप्रन उतार देता है फ़िर गॉगल l

विश्व - क्या... क्या हुआ... सुबह से मेरे पीछे क्यूँ पड़े हो...
यश - पता नहीं... मैंने तुम्हारे बारे में जो सुना... वह तुम्हारे शख्सियत के साथ मैच नहीं कर रहा...
विश्व - ऐ... इधर मेरे बारे में... कोई बकचोदी कर रहा है... तो उसका कंफर्मेशन के लिए आया है... चल निकल यहाँ से...
यश - तुम ऊपर से जितना दिख रहे हो... तुम उतने ही गहरे में छुपे हुए हो... मतलब चेहरे के एक हिस्सा उजाले में दिख रहा है... तो दुसरा हिस्सा अंधेरे में छुपा हुआ है...
विश्व - (उसके पास आकर) ज्यादा मत सोचो... मेरे बारे में जानोगे... तो तुम्हारे दिमाग की नसें फट जाएंगी... और तुम स्पेशल सेल के वजाए... किसी पागल खाने में नजर आओगे....
यश - (उसे गौर से देखते हुए, अपना सर ना में हिलाते हुए) एक आदमी जिसके कहने पर... सेनापति यहाँ स्किल सेंटर बनवाता है... वह उसकी बीवी से बदला लेगा... ऐसे लगते नहीं हो तुम..
विश्व - तु होता कौन है... मुझे सर्टिफिकेट देने वाला...
यश - तुम्हारे बारे में यहाँ बहुत गॉसिप हो रहे हैं... इसलिए तुम्हें समझना चाहता था...
विश्व - सुन बे स्पेशल सेल के कबूतर... कुछ ही दिनों में तुझे उड़ जाना है ना... तो अपनी उड़ने की तैयारी कर... यहाँ दिमाग़ का दही मत कर... एक बात भेजे में डाल ले... मैं एक नाग हूँ... काला नाग... और फ़िलहाल मैं ऐकडीशिस में हूँ... जिस दिन मेरी केंचुली उतरेगी... उस दिन शिकार को निकलूँगा... उस दिन मैं इतना जहरीला हुंगा... के किसीको डंस दिया ना.. वह पानी भी नहीं मांगेगा... इसलिए मुझसे दूर रह समझा....

इतना कह कर विश्व उसे वहीँ छोड़ कर चला जाता है l उसे जाते देख कर यश के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है l उधर विश्व के चेहरे पर भी एक मुस्कान आ कर गायब हो जाती है l
और तीन दिन गुजर जाता है
विश्व लाइब्रेरी में बैठ कर दरवाजे की तरफ पीठ कर पेपर पढ़ रहा है l विश्व को लगता है कोई उसे दरवाजे के पास खड़े हो कर देख रहा है l

विश्व - कहो यश बाबु... आज फिर क्यूँ खुजली हो रही है... तुम्हारी...
यश - वाव... क्या बात है... बिना देखे ही जान गए... की मैं हूँ... (कहते कहते विश्व के सामने वाली चेयर पर बैठ जाता है)
विश्व - कहिए... अब आपको क्या प्रॉब्लम है...
यश - मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ...
विश्व - आप गलत जगह आए हैं... मिस्टर यश वर्धन... मैं ना तो किसीसे आसानी से दोस्ती करता हूँ... ना ही दुश्मनी छोड़ता हूँ... आई एम अ रौंग गय... फॉर यु... नीदर यु कैन हैंडल... नर यु कैन डील वीथ...
यश - यु नो वन थिंग... तुम जितने मिस्ट्रीयस हो... उतने ही इंट्रेस्टिंग... मुझे पहले तुम पर शक हुआ... इसलिए अपने वकील से... एक जासूस को हायर किया... अब जब सब जान गया हूँ... इसलिए तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ....
विश्व - क्या पता किया तुमने...
यश - तुम... राजगड़ से हो... तुम्हारी ज्याती दुश्मनी... क्षेत्रपाल से है... तुमने डैनी की वकील की मदत से बीए किया है... और अपने आप लॉ भी कर रहे हो...
विश्व - और कुछ...
यश - मैंने बस उतना ही जाना... जितना मुझे जानना चाहिए था...
विश्व - (मन ही मन) कैसे जानेगा भड़वे... पेरोल पर बाहर निकालने के लिए... मैंने हमेशा माँ को मना करता रहा... दुसरे वकील को अपने अकाउंट से हायर करके... लॉ की एक्जाम दे रहा हूँ... तु क्या तेरा बाप भी नहीं जान सकता... यही तो एसिड टेस्ट थी... मैं पास तु फैल...
यश - क्या सोचने लगे...
विश्व - यही के... तुम मेरे बारे में... इतना इंक्वायरी क्यूँ करवा रहे हो... कहीं अपनी बहन का रिस्ता तो मुझसे नहीं करवाना चाहते....
यश - शायद करवा देता... पर मेरी कोई बहन नहीं है...
विश्व - फ़िर किस बात के लिए इंक्वायरी करवा रहे थे...
यश - तुमसे दोस्ती करनी चाहिए या नहीं...
विश्व - मुझसे दोस्ती के लिये... क्यूँ इतना मरे जा रहे हो...
यश - क्यूँकी... एक मशहूर कहावत है... दुश्मन का दुश्मन दोस्त हो सकता है... तुम्हारी दुश्मनी क्षेत्रपाल से है... और मेरी भी... तुम्हारी रंजिश प्रतिभा सेनापति से है... मेरी भी...
विश्व - मेरी तो ठीक है... प्रतिभा जी से... तुम्हारी क्या प्रॉब्लम है...
यश - उनकी स्टिंग ऑपरेशन के वजह से ही... मैं यहाँ पर हुँ... और वह मेरे पीछे हाथ धो कर पड़े हुए हैं...
विश्व - कहीं तुम वह तो नहीं... जिसने.. उनके बेटे की हत्या की थी...
यश - (सकपका जाता है) ये.. य... यह तुम क.. क्या कह रहे हो... मैं भला ऐसा क्यूँ करूंगा...
विश्व - तो फिर तुम मुझसे किस बिनाह पर दोस्ती चाहते हो...
यश - कहा ना दुश्मनी...
विश्व - तुम मुझसे क्या चाहते हो...
यश - फ़िलहाल तुम मेरे लिए जैल के अंदर काम करोगे... और जब बाहर आओगे... मेरे फार्म में लॉ सेक्शन संभालोगे...
विश्व - (चुप रहता है)
यश - क्या सोच रहे हो...
विश्व - यही की अंदर से क्या मदत चाहिए तुम्हें...
यश - देखो अब मैं तुमको पूरा डिटेल्स में बताता हूँ... सुनो...
मुझसे एक अनइंटेंशनली एक्सीडेंट हो गया है... उसमें किसीकी जान चली गई है...
विश्व - तो...
यश - मुझे एक आदमी चाहिए... जो मेरी जगह ले और सजा भुगते... बदले में... मैं उसे पच्चीस करोड़ दे सकता हूँ...
विश्व - तो फिर तुम गलत जगह आए हो... मैं पहले से ही सजायाफ्ता हूँ... दो साल बाद निकलना है... और उसके बाद मैं कभी वापस नहीं आना चाहता...
यश - नहीं नहीं... मैंने इस बारे में... किसी और से बात की है... पर वह मान नहीं रहा है...
विश्व - हाँ तो... कोई मानेगा क्यूँ...
यश - देखो विश्व... तुम्हारा बाहर कोई नेटवर्क नहीं है... पर यहाँ एक बंदा है... बाहर जिसका अपना गैंग है और नेट वर्क भी...
विश्व - कौन है वह...
यश - देखो विश्व... इस जैल में बहुत से ग्रुप हैं... पर उन ग्रुपस् में लेनीन ग्रुप बहुत स्ट्रॉन्ग है और लोकल में अच्छा इंफ्लुयंश रखते हैं... पर उसके गैंग को तैयार तुम कर सकते हो...
विश्व - किस चीज़ के लिए...
यश - उनके किसी गैंग मेंबर से इकबालिया बयान दिलवा कर... मैं... मैं उन्हें मुहँ मांगा रकम दे सकता हूँ...
विश्व - तो तुम चाहते हो... मैं तुम्हारे लिए लेनिन को राजी करूँ....
यश - हाँ मैं जानता हूँ... तुम अगर उसे मनाओगे... वह तुमसे नहीं मना नहीं... क्यूंकि यहाँ पर सभी कैदियों पर तुम्हारा जबरदस्त इंप्रेशन और कमांड है... वजह यह है कि... यहाँ पर तुमने अब तक चार फाइट लड़ चुके हो.... और हर फाइट में तुमने सबको धुल चटाया है... और पहले भी लेनिन तुमसे मुहं की खा चुका है...
विश्व - तो फिर...
यश - देखो विश्व... मेरी रिमांड का टाइम खतम हो रहा है... मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है... इसलिए तुम से मदत मांग रहा हूँ...
विश्व - जो भी कहना है... साफ साफ कहो...
यश - मैं चाहता हूँ... के तुम किसी तरह से लेनिन को राजी करो... वह तुम्हारी बात मान सकता है...
विश्व - ठीक है... मैं बात करता हूँ... पर अगर राजी नहीं हुआ तो....
यश - (विश्व के हाथ को पकड़ लेता है) यार विश्व... मैंने इतने दिनों में... सारे कैदियों पर तुम्हार इम्प्रेशन को जज किया है... इसलिए प्लीज... तुम मेरे लिए यह काम कर दो... मैं... मैं बाहर जाने के बाद... तुम्हारा हर तरह से मदत करूँगा... प्लीज प्लीज... (गिड़गिड़ाने लगता है)
विश्व - ठीक है... मैं लेनिन से बात करूँगा...

यश - थैंक्स दोस्त.... सच कहता हूँ दोस्त... मैं इस जैल में नहीं रह सकता.... अगर कुछ और दिन रहा तो मर जाऊँगा... मैं इस बार किसी भी तरह बाहर निकल जाऊँ.... फिर कभी इस जैल में नहीं रहूँगा... इस जैल में क्या... मैं इस मुल्क में नहीं रहूँगा... तुमने अगर मेरा इतना सा काम कर दिया... तो वादा करता हूं दोस्त... तुम्हारे बाकी की जिंदगी ऐश से गुजरेगी... थैंक्स... थैंक्स.. (कहकर यश वहाँ से उठ कर जाने लगता है)
विश्व - यश (बुलाता है, यश पीछे मुड़ कर विश्व को देखता है) मैं वादा करता हूँ... यह तुम्हारा आखिरी रिमांड होगा... प्रॉमिस...

विश्व इस बात पर यश गदगद हो जाता है और अपनी खुशी को आँखों से जाहिर कर वहाँ से चला जाता है l उसके जाते ही विश्व का चेहरे का रंग बदल जाता है l
उसी दिन शाम को गेम हॉल में यश आता है l गेम हॉल के अंदर वह देखता है कि विश्व और लेनिन कुछ बात कर रहे हैं l विश्व दरवाजे की तरफ देखता है और यश के देख कर अपने पास बुलाता है l विश्व यश और लेनिन एक टेबल पर बैठ जाते हैं l

लेनिन - हाँ तो यश बाबु... तुम को मेरे से हेल्प चाहिए...
यश - हाँ...
लेनिन - देखो यश बाबु... मैं इधर विश्वा भाई का इज़्ज़त करता है... क्यूँ... क्यूंकि उन्होंने मेरे को हराया था... इसलिए... अब देखो मैं तुम्हारे लिए किसीको बलि पर चढ़ायेगा.... माना कि तुम उसको.. मुहँ मांगा रकम देगा... पर इसमें मेरे को क्या...
यश - देखो... मैं इसके लिए भी तुमको... मुहँ माँगा रकम दूँगा...
लेनिन - बात रकम की नहीं... बात इज़्ज़त की है... मैं उसके लिए कुछ करता है... जिसके लिए मेरे दिल में इज़्ज़त हो...
यश - तो तुम समझ लो यह विश्व कह रहा है तुमसे...
लेनिन - हाँ... सच में... क्या विश्वा भाई...
विश्व - देखो लेनिन... मुझे कोई मतलब नहीं है... तुमको पैसा चाहिए... और यह पैसा देने को तैयार है... मैं बीच में... सिर्फ़ मांडवाली करा रहा हूँ... मेरा रोल यहीं तक है... यश बाबु... बात को आगे बढ़ाओ...
यश - (कसमसा जाता है) मैं.. मैं... मैं कैसे... (विश्व के तरफ देखने लगता है)
विश्व - लेनिन... तुम इसके लिए अपने गैंग से किसीको कह सकते हो... जो इसका गुनाह अपने सर लेले...
लेनिन - भाई... मैं किसीको बोल के देखता हूँ...
विश्व - देखो यह कल या परसों तक हो जाना चाहिए...
लेनिन - हूँ... मैं जानता हूँ... यश बाबु... आप पहले मेरे को एडवांस्ड दिलाओ... अगर कल शाम तक पैसे मिला तो रात तक मेरा एक बंदा जाकर अपनी गिरफ्तारी देगा...
यश - कितना चाहिए...
लेनिन - दस करोड़...
यश - डन... कल मेरा वकील आएगा... मैं उसे कह दूँगा... वह पैसे कब कहाँ और कैसे देगा यह डिटेल् मुजे बता दो...
लेनिन - ठीक है...
विश्व - रुको... मेरा रोल यहीं पर खतम होता है... अब जो भी करो... तुम दोनों आपस में बात चित कर खतम करो...
दोनों - ठीक है
विश्व - तुम दोनों को... मेरे बेस्ट ऑफ लक...

विश्व उन दोनों को छोड़ कर वहाँ से उठ जाता है l विश्व की पीठ उन दोनों के तरफ था और चेहरा धीरे धीरे कठोर होता जा रहा था l
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Jaguaar

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द हैल
विक्रम सिंह का बंगला

डायनिंग टेबल पर बैठ कर विक्रम, शुभ्रा को एक नौकरानी के साथ नास्ता लेकर रूप कि कमरे की ओर जाते हुए देखता है तो वह अपना सिर नीचे कर खाली प्लेट को देखता है और डायनिंग टेबल के चारों तरफ अपनी नजरें घुमाता है l नौकर ट्रॉली में नाश्ता ला कर टेबल के पास पहुँचा ही था कि विक्रम पानी की ग्लास उठा कर पिता है और बाहर चला जाता है l नौकर उसे जाते हुए देखता है l उधर शुभ्रा रूप के कमरे के सामने पहुँच कर दरवाज़ा खटखटाने लगती है l

रूप - (अंदर से) आइए भाभी.... आप मेरे कमरे में आने के लिए कबसे दरवाजा खटखटाने लगीं...

शुभ्रा और नौकरानी दोनों कमरे के भीतर आते हैं l शुभ्रा नौकरानी को नाश्ता लगाने के लिए इशारा करती है l नौकरानी खाना लगा देती है तब

शुभ्रा - (नौकरानी से) अब तुम जाओ... (नौकरानी सर झुका कर बिना पीठ पीछे किए वापस चली जाती है) (रूप से) हाँ तो क्या पूछ रही थी....
रूप - (नाश्ते के लिए बैठते हुए) क्या भाभी... आप को मेरे कमरे में आने के लिए... दरवाज़ा कब से खटखटाने लगीं... और क्यूँ भला...
शुभ्रा - (उसके साथ बैठ कर) वह क्या है कि... शायद राजकुमारी जी किसीके लिए तैयार हो रहे हों... ऐसे मोमेंट के लिए प्राइवेसी की जरूरत होती है ना...
रूप - (खीजते हुए) भाभी....
शुभ्रा - हा हा हा... (खिल खिला कर हँस देती है)
रूप - (उसकी हँसी देख कर) वा... व.... भाभी तुम हँसती हो तो कितनी खूबसूरत दिखती हो... सच भाभी आपके चेहरे पर हँसी शूट करती है...
शुभ्रा - (हँसी रुक जाती है)
रूप - (मुहँ उतर जाता है) सॉरी भाभी... अगर गलत कह दिया तो...
शुभ्रा - तुमने गलत तो नहीं कहा... पर... (रुक जाती है)
रूप - पर क्या भाभी... हाँ इससे पहले मैंने आपको... इतना खुलकर हँसते हुए देखा नहीं था... सच भाभी आप हँसते हुए... बहुत खूबसूरत लगती हैं...
शुभ्रा - मैं तो दो सालों से... हँसना भूल चुकी थी... रूप... तुम्हारे वजह से... कभी कभी मेरे चेहरे पर हँसी और खुशी के पल मिल जाते हैं...
रूप - (शुभ्रा की हाथ पकड़ कर) देखो भाभी... प्लीज... आप मुझे रूप ना बुलाओ... नंदिनी कहो...
शुभ्रा - (हँसते हुए) ठीक है ठीक है... नंदिनी जी...
शुभ्रा - (खीज कर) आ.आ..ह्... भाभी... प्लीज...
शुभ्रा - (हँसते हुए) ओके.. ओके... नंदिनी...
रूप - हाँ यह ठीक है...
(शुभ्रा बड़े प्यार से रूप के गालों पर हाथ फेरती है, रूप उसके हाथों को पकड़ लेती है) और भाभी... अगर आप मेरे वजह से हँस पा रही हो.. खुश हो पा रही हो... तो प्लीज भाभी... आप ऐसे ही रहिए... सच आप हँसते हुए कोई देवी लगती हो...
शुभ्रा - बस बस... बहुत हुआ हाँ... तुम कॉलेज जा कर बहुत बातेँ सीखने लगी हो...
रूप - राजगड़ छुटा... तो बातेँ दिलसे निकल रही हैं... वरना राजगड़ में तो... बातेँ सिर्फ़ जुबान से ही निकलती थीं...

नाश्ता खतम हो जाता है l दोनों अपने हाथों को साफ करते हैं l शुभ्रा जूठे बर्तनों को ट्रॉली के नीचे वाले सेल्फ पर रख देती है l रूप अपनी बैग में कुछ किताबें और नोट बुक्स रखती है और मोबाइल लेकर

रूप - अच्छा भाभी... चलती हूँ...
शुभ्रा - (टोक कर) एक मिनट नंदिनी... (पास आकर) तुम कॉलेज जा रही हो... यह क्या कोई मेक अप नहीं... ऐसे कैसे... और देखो तुमने घड़ी भी नहीं पहना है... (ड्रेसिंग टेबल से घड़ी ला कर पहनाते हुए) कितनी सुंदर हो... थोड़ा सज संवर जाओगी... तो अप्सरा लगोगी...
रूप - भाभी... आपने अभी कहा ना मैं सुंदर हूँ... बस यही काफी है... और सजने संवरने की बात तो भाभी... मुझे किसी को रिझाने की जरूरत नहीं...
शुभ्रा - अरे ऐसे कैसे नहीं... (खिंच कर उसे ड्रेसिंग टेबल के सामने बिठा देती है) अरे लड़की हो... थोड़ा सज संवर जाओगी तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा... (रूप को संवारने लगती है) उल्टा कितनों के दिलों पर छुरी चलेगी जानती हो...
रूप - अच्छा... यह सब जानने में... मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं है... तो पता कैसे चलेगा...
शुभ्रा - कितनों पर छुरीयाँ चली... कितने घायल हो गए... इसकी खबर तुझे तेरे दोस्त देंगे... (रूप के कानों के पास धीरे से) मेरा एक्सपेरियंस है... (आईना को दिखाते हुए) देखो तो कितनी खूबसूरत लग रही हो...
शुभ्रा - भाभी..(शर्मा कर) प्लीज... (फ़िर उदास हो कर) मेरी शादी तय हो चुकी है... यह आप जानती हैं... मैं यहाँ पढ़ने भी इसी वज़ह से आई हूँ... (झट से अपनी जगह से उठ जाती है) क्षेत्रपाल घर की औरतों को... सपने देखना मना है... (कह कर शुभ्रा के गले लग जाती है) अच्छा चलती हूँ... बाय...
शुभ्रा - (उसे जाते हुए देखती है और मुरझाए स्वर में कहती है) बाय

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सेंट्रल जैल

दास और विश्व दोनों जल्दी जल्दी लाइब्रेरी की ओर जा रहे हैं l

दास - पता नहीं... यह खान सर के दिमाग में क्या चल रहा है... कल सेनापति सर जी घर गए थे... दोपहर का और रात का खाना कुटने... बस यही समझ में नहीं आ रहा है... की बदहजमी हुआ है या सब हज़म कर आए हैं...
विश्व - यह आप क्या बोल रहे हैं... दास बाबु...
दास - अरे भाई... सच कह रहा हूँ... सुबह सुबह ऑफिस आकर कहने लगे... जाओ विश्व को बुलाओ... मैं लाइब्रेरी में उसका इंतजार कर रहा हूँ... पर क्यूँ यह नहीं बताया... पहली बार अपने चैम्बर... मतलब कैबिन के वजाए लाइब्रेरी...
विश्व - होगा कोई काम... पर उसके लिए... यूँ भाग कर जाना जरूरी है क्या...
दास - क्या बताऊँ... मैं आज खान सर का मुड़ पढ़ नहीं पाया...
विश्व - ठीक है... कोई बात नहीं...

दोनों यूँही तेज तेज चलते हुए लाइब्रेरी में आते हैं l खान टेबल पर कुछ किताबें पढ़ रहा था l विश्व को देख कर


खान - आओ विश्वा... आओ... क्या तुम जानते हो... तुम्हारा AIB एक्जाम कब है...
विश्व - नहीं... शायद... अगले हफ्ते...
खान - हाँ... अगले इतवार को.... इसलिए तुम्हारे पास सिर्फ पांच दिन है... तैयारी करने के लिए... मतलब जुमे रात तक....
विश्व - क्यूँ... शनिवार भी तो है...
खान - हाँ है... पर उस दिन तुम पेरोल पर बाहर जाने वाले हो... और मुझे नहीं लगता उस दिन पढ़ पाओगे... इसलिए... तुम्हारे पास यह पांच दिन है... तैयारी कर लो... हर रोज दोपहर को... तुम्हारी माँ आएँगी... शाम तक तुम्हें ट्यूशन देंगी...
विश्व - ओ... मतलब माँ ने ऐसा कहा है...
खान - हाँ भाई... वह तुम्हारी माँ हैं तो... मेरी बहन भी हैं... अगर उनकी बेटे की खातिर दारी में कोई कमी रह गई... तो वह मेरी हालत खराब कर देंगी...

खान के यह कहने के बाद विश्व और दास एक दुसरे को मुहँ फाड़े देखने लगते हैं l

खान - दास...
दास - यस सर...
खान - विश्व के खाने का इंतजाम यहीं कर देना...
दास - क्या... मेरा मतलब है... यस.. यस सर...
खान - गुड... सो... विश्वा... बेस्ट ऑफ लक...
विश्व - जी... जी सर... थैंक्यू...

खान लाइब्रेरी से निकल कर चला जाता है l दास और विश्व एक दुसरे को देखते हैं l

दास - अच्छा विश्व तुम पढ़ो... तैयारी करो... बस खाने के समय तुम्हारे पास खाना पहुँच जाएगा...

यह कह कर दास वहाँ से निकल जाता है l विश्व लाइब्रेरी में लॉ के किताबों के सामने बैठ जाता है l

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ESS ऑफिस

विक्रम अपने चैम्बर मैं पहुँच कर टेबल पर रखे बेल बजाता है l एक गार्ड अंदर आता है और सैल्यूट देता है l

विक्रम - देखो... महांती अगर आया होगा तो उसे कहो... कंफेरेंस हॉल में थोड़ी देर बाद पहुँचने के लिए कहना....

गार्ड वहाँ से चला जाता है l विक्रम अपना मोबाइल निकाल कर फोन लिस्ट में नंबर ढूंढने लगता है I बार बार स्कोलींग करने के बावजूद उसकी तलाश वीर की नंबर पर आकर रुक जाती है l कुछ देर तक वीर की नंबर को देखने के बाद वह वीर की नंबर पर कॉल लगा देता है l थोड़ी देर की रिंग के बाद वीर फोन उठाता है l

वीर - जी कहिए युवराज जी....
विक्रम - आप ऑफिस कब आ रहे हैं... राज कुमार...
वीर - अभी तो निकले हैं... बीच रास्ते में हैं... दस पंद्रह मिनट में... पहुँच रहे हैं....
विक्रम - ठीक है... आप आते ही... कंफेरेंस रुम में पहुँच जाइए...
वीर - ओके... कुछ जरूरी काम आ गया क्या...
विक्रम - हाँ... (कह कर फोन काट देता है)

विक्रम अपनी जगह से उठता है और कंफेरेंस रूम की तरफ जाता है l थोड़ी देर बाद उसे महांती दिख जाता है l फिर दोनों कमरे में आकर बैठ जाते हैं l

महांती - कहिए... युवराज जी... क्या काम निकल आया...
विक्रम - महांती... हमने इन कुछ दिनों में... उस हमलावर के बारे में गौर किया है... हमें कुछ शक़ सा हो रहा है...
महांती - युवराज जी... मैं समझ सकता हूँ.... आपको लगता है... कोई घर का भेदी है...
विक्रम - हाँ...
महांती - युवराज जी... मैं आपके शक़ को नकार नहीं सकता... इसलिए मैंने अपने हर आदमी पर... नजर रखने की कोशिश कर दिया है... पर्सनली...
विक्रम - यह आसान नहीं होगा महांती... हम ने जो आर्मी तैयार किया है... उस पर हमे खुद ही नजर रखनी पड़ रही है...
महांती - मज़बूरी है... दुश्मन वार तभी कर सकता है.... जब उसके साथ कोई घर का भेदी हो... पर छोटे राजा जी की वह प्रोग्राम फिक्स थी...
विक्रम - हाँ... पर हम जब कंफेरेंस हॉल में मौजूद थे... तभी फोन आया था... लैंडलाइन पर... इसलिए उस दिन जो भी यहाँ पर मौजूद था... उन्हीं पर निगरानी रखो...
महांती - वह मैं पहले ही कर चुका हूँ....
विक्रम - और कोई खास खबर...
महांती - सिवाय इसके कि... वह चार शूटर... हमारे सर्विलांस मैं हैं... उनका अगला कदम हमे उठाने की देर है...
विक्रम - गुड... ओके... तुम जा सकते हो...
महांती - थैंक्यू... सर... (कह कर चला जाता है)

उसके जाते ही कंफेरेंस रुम में विक्रम अकेला बैठा दरवाजे की ओर देखने लगता है l

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XXXX कॉलेज

नंदिनी कॉलेज में पहुँचती है l वह गाड़ी से उतर कर चारो ओर नजर दौड़ाती है l उसे उसके दोस्त दिख जाते हैं l वह उनके तरफ जाने लगती है l वहीँ दुसरे कोने पर रॉकी अपने दोस्तों के साथ बाइक पार्किंग में अपनी बाइक पर बैठा हुआ है l जैसे ही उसकी नजर नंदिनी पर पड़ती है

रॉकी - वाव... वहाँ देखो दोस्तों... क़यामत... हुस्न की मल्लिका... रूप कि देवी... उफ्फ... क्या कहूँ.... आज नंदिनी क्या दिख रही है... यारों...

रॉकी के सभी दोस्त नंदिनी की ओर देखने लगते हैं l असल में आज कॉलेज में सभी नंदिनी को चोर नजर से देख रहे हैं l ना जाने कितने तड़प तड़प कर आहें भर रहे हैं पर कोई भी जाहिर नहीं कर रहा है l क्यूँकी सभी जानते हैं नंदिनी कॉलेज के प्रेसिडेंट वीर सिंह की बहन है I उनकी जरा सी नादानी उनको खतरनाक अंजाम तक पहुँचा सकता है l रॉकी और उसके दोस्तों का भी वही हाल है l नंदिनी अपने दोस्तों के पास जाती है और सब से हाय फाय करती है l

रवि - काश यह अपने रॉकी के साथ भी... हाय फाय करती...
रॉकी - कोई नहीं... वह टाइम भी बहुत जल्द आएगा....
राजु - पता नहीं किसका टाइम आएगा...
रॉकी - आबे चुप... काली जुबान वाले... कुछ अच्छा सोच... वह कहते हैं ना... पहले सोच बदलो... फ़िर दुनिया बदलेगी...
आशीष - आबे रॉकी... याद है ना... आज तुझे प्रिन्सिपल के पास जाना है...
रॉकी - हाँ मालूम है रे... पाँच मिनट का काम है... और पूरा दिन पड़ा है... वह फूलों की रानी... बहारों की मल्लिका... उसका यूँ संवर के आना ग़ज़ब ढा रहा है...

सभी देखते हैं नंदिनी और उसके दोस्त उन्हीं के पास आ रहे हैं l सभी अपनी अपनी गाड़ी से उतर जाते हैं और अपने अपने हाथों को सीने पर मोड़ कर रख देते हैं l

नंदिनी - हैलो बॉयज...
सभी - हैलो...
नंदिनी - (रॉकी से) आपके हीरोइजम के चर्चे पूरे शहर में हैं... और कुछ लोग तो काफी इम्प्रेस भी हुए हैं...
रॉकी - (कुछ नहीं कहता, सिर्फ़ मुस्करा देता है)

तभी नंदिनी को बनानी कान में कुछ कहती है l नंदिनी उसकी बात पर हल्का सा मुस्करा देती है और

नंदिनी - अच्छा दोस्तों... हम क्लास जा रहे हैं... ब्रेक में मिलते हैं... बाय... सी यु अगेन...
सभी - बाय...

लड़कियों की टोली वहाँ से चली जाती है l रॉकी के सभी दोस्त रॉकी को देखते हैं l रॉकी उनके रिएक्शन देख कर शर्माने लगता है तो

सभी - ऑए होय... क्या बात है... टमाटर के भाव गिरने वाले हैं... लौंडे के गाल तो देखो...
रॉकी - चुप हो जाओ सालों...
आशीष - ऑए... तु पहले तय कर ले... हम साले हैं के भाई...
रॉकी - आरे कमीनों वह दिलदार है.. पर तुम लोग तो अपने यार हो....
रवि - तो इस बात पर क्यूँ ना किसी बीच पर पार्टी रखा जाए...
रॉकी - जरूर... पर पार्टी... इस हफ्ते की मिशन पुरी होने के बाद ही...
सभी - डन...

उनकी बातचीत के बीच प्रिन्सिपल ऑफिस का पीयोन वहाँ पहुँचता है l

पीयोन - रॉकी बाबु...
रॉकी - हाँ भाई बोल...
पीयोन - आपको प्रिन्सिपल सर ने याद किया...
रॉकी - अभी...
पीयोन - जी अभी...
रॉकी - ठीक है... आप चलो... मैं दो मिनट में... पहुँचता हूँ...
पीयोन - ठीक है...

पीयोन चला जाता है l उसके जाते ही रॉकी आशीष के तरफ देखता है l आशीष समझ जाता है, उनसे थोड़ा दूर जाकर अपने मोबाइल पर एक कॉल लगाता है l कुछ देर बात करने के बाद रॉकी को अपना अंगूठा दिखा कर हाँ में इशारा करता है l आशीष का चेहरा एकदम से चमक उठता है l

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ESS ऑफिस
कंफेरेंस रुम
विक्रम अपनी रीवॉल्वींग चेयर पर घुमते हुए किन्हीं ख़यालों में खोया हुआ है l वह ख़यालों से बाहर निकालता है तो अपने सामने वीर को बैठा पाता है l

विक्रम - (सीधा होकर बैठता है) अररे... राज कुमार... आप....आप कब आए...
वीर - ज्यादा नहीं.. सिर्फ़ पाँच मिनट ही हुए हैं...
विक्रम - व्हाट... आप....यहाँ पाँच मिनट से बैठे हुए हैं....
वीर - हाँ... हमे लगा... आप किसी गहरी सोच में खोए हुए हैं....
विक्रम - ओ हाँ... (फिर अपने सर को चेयर पर टिका कर छत की देखते हुए) हम खुद में खोए हुए थे... और खुद ही में खुद को ढूंढ रहे थे...
वीर - आज कल आप... बहुत खोए खोए रहने लगे हैं...
विक्रम - (चुप रहता है)
वीर - हम कुछ और बात करें...
विक्रम - अगर है... तो लीजिए....
वीर - नहीं.... आप कीजिए... हम साथ देंगे...
विक्रम - (अपना सिर वीर की ओर मोड़ते हुए) क्या कहें...
वीर - युवराज जी.... आप राजकुमार को तभी ढूंढते हैं... जब आपके दिल में कुछ चुभ रहा हो... क्यूंकि मुझसे.... आपने कभी काम की बातेँ तो कि ही नहीं...
विक्रम - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) जब हम कलकत्ता से आए थे... तब हमें छोटे राजा जी ने एक टास्क दिया था... हमने भी जोश जोश में... उस टास्क में अपना मंज़िल तय करने की ठान ली... अपनी वज़ूद बनाने की ठान ली... यही अब हम पर भारी पड़ने लगा है....
वीर - (चुप रहता है)
विक्रम - (वीर की ओर देखता है, फिर छत की ओर देख कर) पता नहीं क्या सोच कर... हमने अपने बंगले का नाम... द हैल रखा... अब सच में वह हैल ही लग रहा है... अब थकने लगा है... यह जिस्म... यह रूह... क्षेत्रपाल नाम को... ढोते ढोते... ना हम क्षेत्रपाल बन पाए... ना हम विक्रम सिंह बने रह पाए... एक सीने से लगना चाहते हैं.... उसकी धड़कनों में अपना नाम सुनना चाहते हैं... कभी कंधे पर... सर रख कर... शिकायत करना चाहते हैं.... पर नहीं... वह हमारी किस्मत हैं... ठुकरा चुकी हैं हमें...(कह कर वीर को देखता है)
वीर - (चुप रहता है)
विक्रम - क्या बात है राज कुमार.... कम से कम आप तो कुछ कहिए..
वीर - क्या कहें... बस एक सवाल.... क्या हम पूछें...
विक्रम - पूछिये...
वीर - आप को जब होश आया होगा... तब से आप जानते होंगे... के आप... विक्रम सिंह क्षेत्रपाल हैं... ऐसा दिन आएगा... क्या आप नहीं जानते थे...
विक्रम - (चुप रहता है)
वीर - आप अच्छी तरह से जानते थे... फिर किस बात पर अफ़सोस कर रहे हैं... तब हमने आप से कहा था... दिल प्यार इश्क़ वगैरह वगैरह की बातेँ ना किया कीजिए... पर आपने की... फिर उसका परिणाम झेलते हुए तकलीफ क्यूँ हो रही है आपको....
विक्रम - (चुप रहता है)
वीर - आपके और भाभी जी के बीच क्या हुआ... यह आपकी पर्सनल मैटर है... चार दीवारों के बीच की बात कभी चार लोगों के बीच ना होनी चाहिए... ना ही आनी चाहिए... यु चुज योर डेस्टीनी.. यु मेड योर फेट... नाउ यु कैंट अवॉइड इट... अब आपके पास आर या पार ऑप्शन है... या तो पूरी तरह क्षेत्रपाल बन जाइए... या फिर सब कुछ छोड़ दीजिए.... अपनी मज़बूरी का नाम लेकर... खुद से एसक्युज लेना छोड़ दीजिए.... आगे आपकी मर्जी....

इतना कह कर वीर वहाँ से उठ जाता है l विक्रम उसी तरह चेयर पर टेक लगाए वीर को जाते हुए देखता है l वीर के कमरे से निकल जाने के बाद विक्रम बुदबुदाने लगता है
- सच कह रहे हैं मेरे भाई...आप सच कह रहे हैं.... मैं दुनिया से कम... खुद से जुझ रहा हूँ... इसलिए अपनी तकलीफ कभी कभी आपसे कह देता हूँ.... घर अपनों से होती है... सपनों का होता है... ईंट सीमेंट के बंगले में.... ना कोई अपना है... ना कोई सपना है... यह हमने खुद चुना है... इसे हम छोड़ेंगे भी नहीं....

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XXXX कॉलेज
प्रिन्सिपल की ऑफिस में

प्रिन्सिपल - तो राकेश पहले तो थैंक्स... तुम्हारे वजह से हमारे कालेज में एक्सीडेंट होते होते रह गई... तुमने अपनी जान पर खेल कर एक जान भी बचाई...
रॉकी - सर... इसमें थैंक्स कहने की क्या जरूरत है... मेरी जगह कोई और होता... तो वह भी वही करता...
प्रिन्सिपल - वेल... यु मे बी राइट... लेकिन हमारे अपील के बाद भी... वह वीडियो वायरल हो ही गया.... खैर सबकी मन पर या हरकत पर तो हमारा वश भी नहीं है... अब तुम अपनी कॉलेज में ही नहीं... दुसरे कॉलेज में भी टॉक ऑफ द टॉपिक हो...
रॉकी - (शर्मा कर चुप रहता है और अपना सिर नीचे कर लेता है)
प्रिन्सिपल - डोंट बी साय... इटस् फैक्ट...
रॉकी - बस भी कीजिए सर... आप बे फिजूल इतनी तारीफ ना करें... वरना उसकी बोझ से सर उठाना भी मुश्किल हो जाए...
प्रिन्सिपल - ओके ओके... अच्छा तुम जानते ही होगे... मैंने तुम्हें यहाँ पर क्यूँ बुलाया है...
रॉकी - जी जानता हूँ... आपने कहा था कि... उस एक्सीडेंट के वजह से.... कुछ स्टूडेंट्स ट्रॉमा में हैं.... कुछ ऐसी ऐक्टिविटी हो... जिससे... सभी स्टूडेंट्स के मन से उस हादसे की छाप मीट जाए...
प्रिन्सिपल - देन... डु यु हेव एनी आइडिया...
रॉकी - यस सर...
प्रिन्सिपल - देन... स्पीक... लेट मि नो... व्हाट इज द आइडिया..
रॉकी - सर आपने एफएम 97 सुना होगा...
प्रिन्सिपल - हाँ...
रॉकी - सर उसमें मेरा दोस्त आशीष का कॉजीन सुरेश काम करता है...
प्रिन्सिपल - हाँ... पर... एफएम रेडियो से क्या मतलब है तुम्हारा...
रॉकी - सर... वह... रेडियो एफएम में... ऑडियंस के बीच कुछ भी इशू के ऊपर... लाइव प्रोग्राम करता है... उसका यह प्रोग्राम... हर शनिवार को दिन के बारह बजे आता है... लाइव...
प्रिन्सिपल - हाँ तो...
रॉकी - तो सर हम बुधवार को सभी स्टूडेंट्स को असेंबली हॉल में इकट्ठे होने के लिए कहेंगे... फिर सबको उनके अपने नाम एक चिट पर लिख कर देने को कहेंगे... फ़िर लकी ड्रॉ के जरिए... हम किसी एक का नाम निकाल कर डिक्लेर करेंगे... और सुरेश उसी दिन उस स्टूडेंट को एक टास्क देंगे... और शनिवार को सभी स्टूडेंट्स के सामने... लकी ड्रॉ में नाम जितने वाले स्टूडेंट को टास्क कंप्लीट करना पड़ेगा... वह सिर्फ़ हमारे कालेज के स्टूडेंट्स के सामने ही नहीं बल्कि हर उस एफएम सुनने वालों के सामने लाइव सेशन होगा...
प्रिन्सिपल - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अच्छा कांसेप्ट है... गुड... मैं पहले अपने स्टाफस् को इन्फॉर्म कर दूँ... फ़िर मैं लास्ट आवर में... अनाउंसमेंट कर दूँगा...
रॉकी - ठीक है सर...
प्रिन्सिपल - देखो रॉकी... इस प्रोग्राम की तैयारी और कामयाबी की जिम्मेवारी तुम्हारी...
रॉकी - श्योर सर...

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वीर अपने कैबिन में चेयर पर बैठ कर, आँखे मूँद कर अपनी सोच में खोया हुआ है l दाएँ हाथ से पेपर वेट को टेबल पर घुमा रहा है l उसे होश ही नहीं है कब से वह ऐसा कर रहा है l अचानक उसका पेपर वेट घुमाना बंद हो जाता है, उसे एहसास होता है कि उसे कोई देख रहा है l वह आँखे खोल कर देखता है l अनु अपने हाथ में दो स्माइली बॉल लिए उसे आँखे फाड़े हैरानी भरी नजरों से देख रही है l अनु सामने ऐसे देखते ही वीर के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है l

वीर - क्या बात है अनु जी... आप हमें ऐसे क्यूँ देख रहे हैं...
अनु - जी आप... जब से यहाँ आए हैं... तबसे... यह... पेपर वेट घुमा रहे हैं... मुझे लगा कि... शायद आपको... (स्माइली बॉलस् को दिखा कर) इन बॉलस् की ज़रूरत है...
वीर - (मुस्कान गहरी हो जाती है) है तो... पर तुमने देर कर दी...
अनु - क्या... (हैरानी से आँखे बड़ी हो जाती हैं) यह तो मुझसे बड़ी गलती हो गई... (रोनी सुरत जैसी हो जाती है) आप गुस्सा हो गए ना...
वीर - (पिघल जाता है) आरे नहीं... मैं यह पेपर वेट घुमा कर ठीक हो गया देखो...
अनु - फ़िर भी मैंने गलती की है... सजा तो बनती है...
वीर - (मन ही मन हँसने लगता है) हूँ... सजा तो बनती है... अब तुम ही बोलो मैं तुम्हें क्या सजा दूँ....
अनु - अब मैं क्या बताऊँ...
वीर - अच्छा... कैसी सजा दूँ... जो तुम अपने ऊपर ले सको...
अनु - मैं... कान पकड़ कर... उठक बैठक करूँ...(बड़ी मासूमियत के साथ पूछती है)
वीर - (अपनी हँसी को रोकते हुए) हूँ करो...

अनु झट से अपनी कान पकड़ लेती है और उठक बैठक लगाना शुरू कर देता है l विश्व उसके उठक बैठक देख कर अपनी हँसी और रोक नहीं पाता अपना पेट पकड़ कर जोर जोर से हँसने लगता है l वीर हँसते हँसते हुए देखता है अनु अपनी कान को पकड़े वीर को हैरान हो कर देख रही है l

वीर - (अपनी हँसी को काबु करते हुए) रुको रुको... यहाँ मत करो... लोग देखेंगे तो उन्हें बुरा लगेगा... तुम पर सजा उधार रहा... ठीक है... फ़िर कभी अकेले में... जब कोई ना देखता हो तब... तब.. तुम सौ उठक बैठक कर लेना... ठीक है...
अनु - (खुशी से दमकते हुए) ठीक है... (फ़िर भी कान पकड़ी हुई है)
वीर - आरे... अब तो अपने कान छोड़ो...
अनु - (शर्मा जाती है) ओ हाँ... (कान छोड़ कर) सर...
वीर - हूँ...
अनु - वह आप किसलिए... तनाव में थे...
वीर - तनाव... हाँ वह.. (उसे कुछ सूझता नहीं) वह... मैं...

वीर अनु को देखता है, अनु अपनी भवें तन कर मुहँ खोले जिज्ञासा भरे नजरों से देख रही है l उसकी ऐसी हालत देख कर वीर अपनी हँसी को फिर से काबु करते हुए

वीर - वह... युवराज जी ने... कहा है कि... हमारी (खराश लेते हुए) सिक्युरिटी सर्विस जहां जहां तैनात है... वहाँ भेष बदल कर जाओ... और... प्रतिपुष्टि करो... मतलब फीडबैक दो... वह लोग कैसे अपने ड्यूटी को अंजाम दे रहे हैं....
अनु - ओ... (प्रतिक्रिया ऐसे देती है जैसे सब समझ में आ गया)
वीर - तो बताओ... मुझे क्या करना चाहिए...
अनु - अगर युवराज मालिक ने कहा है... तो ठीक ही कहा होगा... आपको अपना भेष बदल कर उसकी प्रतिपुष्टि करनी चाहिए....
वीर - पर अगर मैं अकेला जाऊँगा... तो...
अनु - तो आप किसी को साथ ले जाइए...
वीर - (अपना सर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... क्या तुम चलोगी...
अनु - हाँ... (फिर जोर से) क्या... न न नहीं... म म.. मैं कैसे...
वीर - क्यूँ... डर लग रहा है मुझसे......

अनु पहले हाँ में सिर हिलती है फिर ना में फिर ऐसे हिलाती है जिसे ना हाँ में समझ आए ना, ना में समझ आए l

वीर - अच्छा एक काम करते हैं...
अनु - क्या...
वीर - तुम्हारी सजा... बदल देते हैं...
अनु - (चेहरे पर हैरानी भरे भाव में अपनी भवें तन कर) क्या... मतलब अब क्या करना होगा...
वीर - कुछ नहीं... मैं अब रोज अपनी सिक्युरिटी जवानों की चुस्ती... और ड्यूटी के प्रति समर्पण देखने जाऊँगा... और तुम मेरे साथ जाओगी....
अनु - आप भेष बदल लोगे... तो आप नहीं पहचाने जाओगे... पर मुझे तो लोग पहचान जाएंगे...
वीर - नहीं पहचानेंगे... तुम भी मेरे साथ अपना भेष बदलोगी...
अनु - भेष बदलने से... कोई आपको पहचान नहीं पाएगा... तो मैं आपको कैसे पहचान पाऊँगी... और मैं कौनसा भेष बदलुंगी... और अगर आप भी मुझे नहीं पहचान पाए तो...

वीर अपने अंदर ही अंदर जो हँस रहा था, उसकी हँसी बंद हो जाती है l वह अनु को मुहँ फाड़े हल्के हल्के से पलकें झपकाते हुए अनु को देखने लगता है l

वीर - कोई नहीं... मैं तुम्हारे सामने भेष बदलुंगा... और तुम... मेरे सामने भेष बदल लेना.... ठीक है...
अनु - (खुश होते हुए) हाँ यह ठीक रहेगा....

वीर उसे देखते हुए सोचने लगता है l यह लड़की मासूम है यह बेवकूफ़ या फिर दोनों l जो कह रही है या कर रही है मासूमियत भरा बेवकूफ़ी या बेवकूफ़ी भरा मासूमियत I

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कॉलेज से आकर रुप अपनी कमरे में आती है l अपनी किताबें टेबल पर रख कर बाथरूम फ्रेश होने चली जाती है l जब फ्रेश होकर कमरे में वापस आती है तो देखती है शुभ्रा उसके बेड पर बैठे उसका इंतजार कर रही है l

रुप - आरे... भाभी.. आप...
शुभ्रा - क्यूँ.. नहीं आना चाहिए था... तुम्हारा प्राइवेसी डिस्टर्ब हो रहा है... अच्छा ठीक है... मैं अब चलती हूँ...
रुप - क्या... भाभी... आपसे कभी मेरी प्राइवेसी डिस्टर्ब हो सकती है....
शुभ्रा - हाँ... हो सकती है...
रुप - (शुभ्रा के पास बैठते हुए) कैसे...
शुभ्रा - जब कमरे में तुम... अपने साजन के साथ होती...
रुप - आ.. ह् (तकिया उठा कर शुभ्रा की ओर फेंकती है) भाभी...
शुभ्रा - हा हा हा... क्यूँ मेरे होने के बाद भी... अपने साजन के साथ... हाँ... कमरे में... उम्म...
रूप - (शुभ्रा पर झपटते हुए) भाभी.... आज मैं आपको नहीं छोड़ुंगी...

शुभ्रा हँसते हँसते पहले कुछ प्रतिरोध करती है पर फिर रुक जाती है l और रुप को अपने गले से लगा लेती है l

शुभ्रा - थैंक्स रुप...
रुप - किस बात के लिए भाभी...
शुभ्रा - बहुत दिन हो गए थे... मैं हँसना भूल गई थी.... आज बेवजह ही सही पर खुलकर हँसी हूँ...
रुप - अगर मुझे छेड़ने पर... आपको खुशी और हँसी मिल रहा है... (शुभ्रा के गले से अलग हो कर) तो आप मुझे रोज छेड़ा करें...
शुभ्रा - वही तो कर रही हूँ...

रुप - अच्छा... तब तो आपकी सौ खता माफ...
शुभ्रा - (मासूम सा चेहरा बना कर) अच्छा अगर गलती से... एक सौ एक खता हो गई तो...
रुप - (थोड़ा चेहरा उतर जाता है) क्या सच में भाभी... आपको लगता है... मेरी बीएससी खतम होते होते... आप एक सौ एक खता कर पाओगे...
शुभ्रा - (थोड़ी सीरियस हो कर) तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है... रुप...
रुप - (अपनी विस्तर से उठ कर पढ़ाई के टेबल के पास बैठ जाती है) काश कि मैं कभी... पढ़ी ही ना होती....
शुभ्रा - ओ...(चुप हो जाती है)
रुप - देखा... आपको भी मेरा दर्द का एहसास हो गया...
शुभ्रा - हूँ...
रुप - पढ़ाई जितना आगे जा रहा है... ख्वाहिशों को पंख उतने ही मिल रहे हैं... जब कि उसकी उड़ान सिर्फ़ पिंजरे के भीतर ही सीमित रहने वाली है... अपने हिस्से का आकाश... क्षेत्रपाल नाम में कहीं छुप गया है....
शुभ्रा - (बड़ी मुश्किल से) हूँ... (आँखे नम हो जाती हैं)
रुप - (शुभ्रा की आँखों में नमी देख कर) ओह... सॉरी... सॉरी भाभी... प्लीज सॉरी...
शुभ्रा - (अपनी आँखों को पोछते हुए) चलो छोड़ो... किस बात के लिए सॉरी... इस सच्चाई को मैंने स्वीकार कर लिया है... अब तुम स्वीकार कर रही हो... फिर भी तसल्ली इस बात की है... तुम एकदिन क्षेत्रपाल नहीं रहोगी...
शुभ्रा - (मुस्कराने की कोशिश करती है, पर मुस्करा नहीं पाती)
शुभ्रा - (रुप की भावनाओं को समझ पाती है) खैर छोड़ो... हम किस बे सिर पैर वाली बातों में वक़्त जाया कर रहे हैं... अच्छा यह बताओ... आज कितने घायल हुए... कितने शायर हुए...
रुप - (चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) क्या... भाभी... जो हो नहीं सकता... हम उसकी आशा क्यूँ करें...
शुभ्रा - (सीरियस मुड़ बना कर) क्या बात कर रही हो... (छेड़ते हुए) यह तो हो ही नहीं सकता... के हुस्न राह से गुजरे और दीवाने आह ना भरें...
रुप - छोड़ो ना भाभी...(शर्माते हुए) क्यूँ छेड़ रही हैं...
शुभ्रा - अच्छा चलो... किसी लड़के ने... हिम्मत ना दिखाई... पर तुम्हारे दोस्त तो तुमको बताए होंगे...
रुप - हूँ... (शर्मा कर अपना चेहरा घुमा लेती है)
शुभ्रा - (जिज्ञासा भरे चहकते हुए) कितने लोग घायल होने की बात कही...
रुप - बहुत... (शुभ्रा को नहीं देखती)
शुभ्रा - उम्म्म... उनमें वह लड़का भी होगा शायद... (अपनी ठुड्डी पर दाएं हाथ की तर्जनी उंगली लगा कर) आँ... शायद... हाँ... हाँ (चुटकी बजा कर) रॉकी... रॉकी... उसकी क्या हालत हुई होगी...
रुप - (थोड़ी सीरियस होते हुए) पता नहीं भाभी....
शुभ्रा - क्या मतलब पता नहीं.....
रुप - वह चारा तो डाल रहा है... पर किसके लिए... यही कंफ्यूजन है...
शुभ्रा - तुम्हारे सिवा... किसी ओर के लिए चारा डाल सकता है क्या....
रुप - शायद...
शुभ्रा - क्या मतलब है शायद... मुझे तो लगता है कि वह तुम पर... चांस मार रहा है...
रुप - पहली बात... भाभी... कॉलेज में सभी मुझसे कतराते हैं... वजह... क्षेत्रपाल... हाँ यह रॉकी कुछ खिचड़ी पका जरूर रहा है... इस पर मैं शनिवार तक... शायद कंफर्म हो जाऊँगी...
शुभ्रा - शनिवार तक... ऐसा क्यूँ...

रुप - आज प्रिन्सिपल ने बताया... जिस बैच के साथ वह आग वाला हादसा हुआ था... उसी बैच के लिए... रेडियो 97 एफएम का प्रोग्राम कंडक्ट किया जाएगा... बुधवार को लॉकी ड्रॉ से नाम चुना जाएगा... जिसका नाम आएगा... बुधवार को ही उसे एक टास्क दिया जाएगा... उसे उस टास्क पर... टॉपिक बना कर... रेडियो पर लाइव प्रेजेंटेशन देना होगा...
शुभ्रा - हाँ तो इसमें... उस रॉकी का क्या रोल है...
रुप - यह सारा प्रोग्राम रॉकी ही कर रहा है... या फिर करवा रहा है... मुझे बस यह पता करना है... वह किसे टार्गेट कर रहा है....


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तापस और प्रतिभा दोनों डायनिंग टेबल पर बैठे हुए हैं l दोनों के सामने थाली पर खाना परोसा हुआ है पर खा कोई नहीं रहा है l दोनों ही किसी सोच में डूबे हुए हैं l फिर दोनों एक दुसरे को देखते हैं l

दोनों - मुझे कुछ कहना है... (एक दुसरे को देख कर)
तापस - मुझे तुम्हारे प्रताप के बारे में बात करनी है...
प्रतिभा - मैं भी आपसे... प्रताप के बारे में बात करना चाहती हूँ....
तापस - (अपना दाहिना हाथ प्रतिभा के बाएँ हाथ पर रखते हुए) ठीक है... पहले तुम कहो...
प्रतिभा - (अपने दोनों हाथों से तापस के हाथ को जोर से पकड़ कर) अब जब प्रताप... कुछ ही दिनों बाद छूटने वाला है.... तो मेरे मन में... आपके और प्रताप के बीच की... ख़ामोशी वाला रिस्ते को लेकर एक असमंजस की स्थिति है....
तापस - (अपना दुसरा हाथ लाकर प्रतिभा के दोनों हाथों पर रख देता है) देखो जान... कभी यह मत समझना मुझे वह पसंद नहीं है... या मुझे उसे लेकर कोई शिकायत है.... मैं उसे तब से पसंद करता था... जब तुमने उसे देखा भी नहीं था.... दिन व दिन वह मेरे अजीज होता चला गया... जब प्रत्युष हमसे छिन गया... तुम पुरी तरह से बिखर गई थी.... तुम्हें उससे माफ़ी माँगनी थी... पर उस पर तुमने अपना ममता लुटा दिया... प्यार और ज़ज्बात इंसान को इंसान बनाए रखते हैं... तुमको उसमें अपने प्रताप को महसुस किया... इसलिए तुमने उसे गले से लगा लिया... तुम्हारे गले से लगते ही... जिस प्यार से वह महरूम था... उस प्यार की उष्मा को उसने महसुस किया और तुम्हें भी अपनी माँ स्वीकार कर लिया... उस रात तुम सोई वह भी बिना नींद की गोली लिए... तुम्हें अपना माँ मानता है... तभी तो फिर कभी कानून को अपने हाथ में ना लेने की कसम लीआ और वादा भी किया.... मैं अब उसका ऋणी हो चुका हूँ... उसने पहले मेरी इज़्ज़त बचाई... फिर जान... और फिर उसके बाद उसके वजह से... मुझे मेरी जान मिल गई...
तुम दोनों आपस में जितने खुल गए... मेरे और विश्व में वह नहीं हो पाया है अब तक... इसलिए एक ख़ामोशी की रिस्ता है... वह तुम्हारे लिए सिर्फ़ प्रताप है... पर मेरे लिए वह विश्व प्रताप है... शायद यह ख़ामोशी किसी दिन टूटेगी... उस दिन हमारे रिश्ते पर रंग चढ़ेगा...
प्रतिभा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मुझे उस दिन का इंतजार रहेगा.... अब आप बताओ... आप प्रताप के बारे में क्या कहना चाहते थे...
तापस - तुम अच्छी तरह से जानती हो... विश्व छूटने के बाद हमारे साथ सिर्फ़ एक महीना रहेगा... उसके बाद वह अपना गांव चला जाएगा... हाँ बीच बीच में आता रहेगा... जैसे अब वैदेही आती है... जब तक वह अपने मकसद पर कामयाब नहीं हो जाता... (तापस प्रतिभा की हाथों को जोर से पकड़ लेता है) मुझे डर है... कहीं प्रताप के दूर जाने से... मैं....
प्रतिभा - आप आगे कुछ मत कहिए.... आपको डर है... कहीं उसकी जुदाई मुझसे बर्दास्त ना हुआ... और मैं फ़िर से पागलों की तरह हो गई तो... यही सोच रहे हैं ना आप...
तापस - (अपना सिर झुका लेता है और कुछ नहीं कहता है)
प्रतिभा - आप फ़िक्र ना करें... पहली बात... मेरे प्रताप को कुछ नहीं होगा... कुछ भी नहीं होगा... एक एक माँ का विश्वास बोल रहा है.... वह बहुत जल्द अपना मकसद पुरा करेगा... फिर हमेशा के लिए हमारे पास आ जाएगा...
Jabardasttt Updateee. Maza aagaya.

Mujhe aisa kyo lag raha hai. Iss shanivaar ko hero(Vishwa) aur Heroine(Roop) ki pehli mulakat hogi uss radio 97 ke program ke through
 

ANUJ KUMAR

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👉पचपनवां अपडेट(B)
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अगले दिन
शाम को डिनर के समय
डायनिंग हॉल में

सारे कैदी खाना खा रहे हैं l अचानक टीवी पर न्यूज स्क्रोलींग चलने लगा -
ब्रेकिंग न्यूज - आज शाम धउली गिरी के पास एडवोकेट श्री xxxxx और एक गैंगस्टर xxxxx के बीच दस करोड़ रुपये की लेन देन होते हुए दर दबोचे गए l अब मिली हुई रकम को ईडी ने अपने कब्जे में लेकर पूछताछ कर रही है l

यह खबर सुनकर यश के हाथों से थाली छुट जाता है l थाली के गिरने से सबका ध्यान यश के तरफ हो जाता है l यश खुद को संभालता है और अपनी थाली उठा कर वॉश रूम चला जाता है l वहाँ अपना हाथ मुहँ को बार बार धोने लगता है l फिर वह डायनिंग हॉल में नजर घुमाता है तो देखता है लेनिन उसे गुस्से से घूर रहा है l वह फिर विश्व को ढूंढने लगता है I विश्व उसे एक कोने में अपना खाना खाते दिखता है l यश उसके सामने बैठ जाता है l

यश - अब तो... किस्मत भी दगा कर रहा है... विश्वा मैं क्या करूं अब...
विश्व - (खाना खाते हुए) तुम्हारे पास टाइम अभी कुछ और है... फिरसे कोशिश कर सकते हो...
यश - तुम समझ नहीं रहे हो... (तभी वहाँ पर लेनिन आकर बैठ जाता है) यह केस अब ईडी के हाथ चला गया है... (वह लेनिन को देखने लगता है)
लेनिन - (विश्व से) देखा विश्वा भाई.... कैसा लोचा हो गया...
विश्व - पहली बात... इस टेबल पर कोई सीन नहीं होनी चाहिए.... दुसरी बात... यश बाबु... जो रकम जप्त की गई है... वह आपकी दौलत की दरिया का छोटी सी बूंद भी नहीं है.... और लेनिन... तेरा आदमी पकड़ा गया है... तो वजह कुछ और भी हो सकता है... इसके लिए कोई हल्ला नहीं... क्यूंकि वहाँ कोई... बेकसूर गिरफ्तार नहीं हुआ है...
यश - विश्वा तुम समझ नहीं रहे हो... अब ईडी पैसों की सोर्स का पता लगाएगी... तब मैं और भी मुश्किल में आ जाऊँगा... मुझे अब हर हाल में बाहर जाना होगा... नहीं तो कुछ भी ठीक नहीं होगा... मैं बाहर जाते ही सब संभाल सकता हूँ...
विश्व - तुमसे संभला नहीं... तभी तो अंदर आए हो... वैसे भी तुम अरब या खरब पति हो... बहुत बड़े बिजनेसमैन हो... फिर किस सोर्स की बात कर रहे हो...
यश - ( जेब से एक च्वींगम निकाल कर चबाने लगता है) विश्व... (एक हल्का सा सांस लेता है) पैसा हमेशा एक ही सोर्स से नहीं आता... जरा सोचो... किसीके कहने पर दस करोड़ रुपये सामने लाया गया... कैसे... कहाँ से... यहीं पर सब पेच है... जितना व्हाइट मनी... उसके बैकअप के लिए उससे कहीं ज्यादा ब्लैक मनी....
लेनिन - मतलब... तुम्हारे पास पैसों का झाड़ होगा... हिलाओ तो झड़ने लगेगा...
यश - (चुप रहता है)
विश्व - पैसा... दुनिया में जिनके पास पैसे नहीं होते... वह लोग.. हाय पैसा.. हाय पैसा करते-करते मरते हैं... और जिनके पास पैसा ही पैसा होता है... वह लोग उफ पैसा.. ओह पैसा... कर मर रहे हैं... पैसों की भुख... कितना कमा लो... फिर भी... पैसों की भुख मरने के वजाए बढ़ती ही जा रही है...
यश - (होठों पर हल्की सी हँसी झलकती है) पैसा है ही ऐसा... कम हो... मन नहीं भरता और ज्यादा हो तो दिल नहीं भरता... पैसा खुदा ना सही पर खुदा से कम भी तो नहीं है....
विश्व - और पैसा जहां जरूरत से ज्यादा होता है... वहाँ पैसा अपना इज़्ज़त खो देता है... वरना पैसा खुदा के बराबर हो सकता है... खैर अब जो भी है... वह तुम लोगों को... करनी है... (यश से) तुमको बाहर बस (लेनिन को दिखा कर) यही आदमी निकाल सकता है... (लेनिन से) तुम्हारे पैसों की जरूरत (यश को दिखा कर) यही पूरा कर सकता है... इसलिए तुम दोनों अब एक हो कर सोचो.... कहाँ गलती हो गई... कहाँ तुम चूक गए... तभी तुम क़ामयाब हो सकते हो...

विश्व यह कह कर वहाँ से अपना थाली उठा कर वॉशरुम चला जाता है l यश और लेनिन वहीँ पर बैठे रह जाते हैं l

अगले दिन
सेंट्रल जैल की स्किल डिवेलपमेंट सेंटर में

विश्व एक गाड़ी की इंजिन में लगा हुआ है l तभी उसके पीछे यश आकर खड़ा होता है l विश्व बिना पीछे मुड़े ही

विश्व - क्या है यश बाबु... कैसे आना हुआ...
यश - आज मैंने अपने दुसरे कॉन्टेक्ट के जरिए... रिमांड और सात दिन बढ़ाने के लिए कह दिया है...
विश्व - हम्म... क्यूँ बढ़ाया अपना रिमांड...
यश - इसलिए के तुम झूठे ना हो जाओ....
विश्व - कैसा झूठ...
यश - यही... के तुमने कहा था... की यह स्टे... मेरा आखिरी स्टे होगा...
विश्व - हाँ पहले तो थैंक्स... मुझे तुमने झूठा होने से बचा लिया... और सॉरी... पुलिस ने तुम्हारी किस्मत पर भाजी मारी...
यश - इटस् ओके... मेरी फ्रस्ट्रेशन लेवल बढ़ती जा रही है... दिमाग में आइडियास् आ नहीं रहे हैं... (कह कर एक च्वींगम का पैकेट फाड़ कर उनमें से चार पाँच च्वींगम एक साथ चबाने लगता है) क्या करूँ समझ में नहीं आ रहा है...
विश्व - क्या तुम जब भी नर्वस होते हो... ऐसे ही च्वींगम चबाते हो...
यश - हाँ... यह मुझे शांत रखते हैं...
विश्व - यह च्वींगम पहली बार देख रहा हूँ...
यश - यह मार्केट के लिए नहीं है... यह मेरे लिए है... इसे मैंने बनाया है...
विश्व - जब खतम हो जाएगी...
यश - मेरे पास पहुँचा दिया जाएगा...
विश्व - अच्छा... तुम अपने पिताजी के जरिए... बाहर मांडवाली क्यूँ नहीं करते...
यश - अभी इलेक्शन नजदीक है... मेरी गिरफ्तारी पर जोश जोश में कह दिया था... इसमें किसी प्रकार की... इंटरफेरेंश नहीं करेंगे... अब वह अगर इस मामले में घुसे... और मीडिया में तूल पकड़ा... तो हो सकता है... उनको टिकट भी ना मिले... इसलिए... वह चाहते हैं... की इलेक्शन खतम होने तक मैं रिमांड में रहूँ.... पर... मैं जैल में नहीं रह सकता... बिल्कुल भी नहीं...
विश्व - ह्म्म्म्म... क्या नसीब है... जब जरूरत पड़ी... ना बाप काम आ रहा है... ना पैसा... जब कि दोनों ही पास मौजूद हैं... पर साथ नहीं...
यश - (और एक च्वींगम चबाता है) वह एक कहावत है.... जब तकदीर हो गांडु... तब क्या करेगा पाण्डु...
विश्व - तो अब तुमने क्या डिसाइड किया...
यश - अब मैं पैसे के लिए... किसके पास संदेशा भेजना चाहता हूँ...
विश्व - तो भेजो...
यश - पर कैसे... किसके जरिए....
विश्व - देखो इस मामले में... लेनिन ही तुम्हारा मदत कर सकता है... मैंने तुम दोनों को मिला दिया है... तुम भी जानते हो... बाहर का नेटवर्क लेनिन अपनी जेब में रखता है...
यश - ठीक है... अगर मैं मदत के लिए तुम्हारे आया... तो...
विश्व - मैं अपनी जुबान दी है... तुम यहाँ से अबकी बार जो जाओगे... फिर कभी लौट कर ना आओगे...
यश - थैंक्स... दोस्त थैंक्स...

विश्व अपनी पलकें झपका कर यश का थैंक्स स्वीकार करता है l यश वहाँ से चला जाता है l उसके जाने के बाद एक संत्री विश्व के पास पहुंचता है

संत्री - विश्वा...
विश्व - जी कहिए... कैसे आना हुआ...
संत्री - वह कपड़े साफ करते हुए... बालू का पैर फ़िसल गया है... उसने खबर भिजवाया है... क्या तुम...
विश्व - (बीच में टोक कर) हाँ हाँ क्यूँ नहीं...

फिर विश्व संत्री के साथ चल कर कपड़े साफ करने वाली पानी की टंकी के नीचे पहुँचता है l वहाँ बालू को एक संत्री और उसके दो चेले उठा कर ले जा रहे हैं l विश्व वहाँ पहुँच कर बचे हुए कपड़े धोने के लिए पत्थर के पास पहुँचता है l वहाँ पर जिलु पहले से ही कपड़े निचोड़ रहा है l


विश्व - संत्री जी आप जाइए... मैं जिलु के साथ कपड़े धो दूँगा...
संत्री - पक्का...
विश्व - आप जानते हैं... संत्री जी...
संत्री - आरे मैं तो मजाक कर रहा था... मैं आधे घंटे बाद आता हूँ...
विश्व - जी... (संत्री के जाते ही, जिलु से) यह तुमने किया...
जिलु - हाँ विश्व भाई.. मैंने ही बालू को गिरा दिया... बेचारा जान नहीं पाया....
विश्व - ह्म्म्म्म....(कपड़ा उठा कर पत्थर पर पटकता है) तो फिर बोलो क्या खबर है...
जिलु - जैसा आपने कहा था... सीलु ने उनके दिमाग में.. वैसा ही बो दिया है...
विश्व - अच्छा... पर बड़ा मासूम बन कर मेरे पास आया था... वह यश...
जिलु - हाँ गया होगा... आपको शीशे में उतारने के लिए...
विश्व - तो अब वह लोग क्या करने वाले हैं...
जिलु - वह तो मालुम नहीं... पर जब सीलु ने यह कहा कि... उनका पैसा पकड़े जाने के पीछे विश्व हो सकता है... तब से आपसे बदला लेने के लिए... दोनों कोई ना कोई खिचड़ी पकाने वाले हैं...
विश्व - गुड... बहुत अच्छे...
जिलु - अब आगे क्या करना है....
विश्व - करना उन्हें है... मुझे साथ देना है...
जिलु - ठीक है भाई... बेस्ट ऑफ लक...

उसी दिन शाम को
डायनिंग हॉल डिनर के वक़्त और एक बुरी खबर आती है l सभी थाली लेकर हॉल में बैठ कर खाना खा रहे होते हैं तभी नभ वाणी न्यूज चैनल में रिपोर्टर प्रवीण रथ कहता है - मेरे राज्य वासियों... हमारी युवा पीढ़ी... जिसे यूथ आईकॉन समझ कर पुज रहा है... असल में वह अपने पिता की राजनीतिक पदवी का दुरूपयोग कर यहाँ तक पहुँचे हैं... चूँकि स्वस्थ्य व्यवस्था उनके आधीन आता है... इसीलिए बाप और बेटा मिलकर स्वस्थ्य का व्यापार और स्वस्थ से खिलवाड़ करना आरंभ कर दिया... हाँ दोस्तों मैं किसी और की नहीं... राज्य के स्वस्थ्य मंत्री श्री ओंकार चेट्टी और उनके सुपुत्र यश वर्धन चेट्टी जी के विषय में कह रहा हूँ... अभी हमारे हाथ में वाइआइसी फार्मास्युटिकल के दवाओं की सरकारी जाँच रिपोर्ट है... जिसमें साफ लिखा है कि उनके द्वारा वितरित किए गए दवाओं में.... प्रतिबंधित दवाओं का मात्र मिला है... जी हाँ दर्शकों आपने ठीक सुना है...विश्व स्वस्थ्य संगठन द्वारा प्रतिबंधित दवाओं का मिश्रण पाया गया है... इस खबर और रिपोर्ट की पुष्टि होते ही... फूड सैफटी एंड ड्रग्स अथॉरिटी वालों से तुरंत कारवाई करते हुए.... वाइआइसी फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड को सीज कर दिया है...

यह ख़बर सुनने के बाद सारे कैदी यश के तरफ देखने लगते हैं l यश वहाँ से उठ कर अपने सेल की ओर चला जाता है l सारे कैदी अब यश के खिलाफ खुसुर-पुसुर करने लगते हैं l विश्व सब सुनता है और मन ही मन अपने आप से यह कहते हुए हँसने लगता है
"वाह रे ऊपर वाले... तेरे खेल गजब और निराले... यह कैद खाना एक हमाम है... सब कैदी यहाँ नंगे हैं... फिरभी जो पहले उठा... उँगलियाँ उस पर उठाई गई.... वह देखो... वह हमसे ज्यादा नंगा है भाई...

अगले दिन
सेंट्रल जैल के लाइब्रेरी में विश्व अपनी किताबों में खोया हुआ है l उसे एहसास हो जाता है के दरवाजे पर यश खड़ा है l

विश्व - आइए यश बाबु... आइए...
यश - (अंदर आते हुए) क्यूँ विश्वा... पहले दिन तु जा... फिर तुम आओ... आज आइए... हाँ भाई... तुम भी ताने मार लो...
विश्व - कपड़े उतारे जाने पर नंगा पन का एहसास होता है.... पर असली नंगा पन यही होता है... कपड़ों से भी ढका नहीं जा सकता है... मैं इस दौर से गुजर चुका हूँ...
यश - ह्म्म्म्म... तब तो तुम मेरे दर्द को समझ सकते हो...
विश्व - (अपनी किताबें रख देता है और यश को बैठने के लिए इशारा करता है) कहिए... मैं अब आपके लिया क्या कर सकता हूँ... जब कि मैं अच्छी तरह से जानता हूँ... की आप भी अच्छी तरह से जानते हैं... मैं आपके लिए कुछ भी नहीं कर सकता....
यश - नहीं विश्वा नहीं... (गिड़गिड़ाते हुए) तुम मेरी आखिरी उम्मीद हो... जानते हो... उस दिन जब मेरा वकील और लेनिन का आदमी पकड़े गए... तो वह लड़का... क्या नाम है उसका... हाँ सीलु.. सीलु ने लेनिन के कान भरे थे... के.. हो ना हो... उन पैसों के पकड़े जाने के पीछे तुम्हारा ही हाथ है...
विश्व - व्हाट... और लेनिन ने मान लिया... और तुम...
यश - ना... मुझे पहले भी तुम पर भरोसा था.. और अब भी है...
विश्व - पर अब मैं आपके किस काम आ सकता हूँ..
यश - सिर्फ तुम ही आ सकते हो...
विश्व - क्या... क्या काम आ सकता हूँ...
यश - देखो विश्वा... अब मेरे अकाउंट सब फ्रिज कर दिया गया है... मेरे वकील अब ईडी के रेडार पर है... इसलिए मैं अब लेनिन के लिए पैसा भी अरेंज नहीं कर सकता...
विश्व - किस्मत कैसे पलट गया देखो.... ऊफ पैसा से... हाय पैसा तक के सफर पर पहुँचा दिया... पर यश बाबु... पैसे तो मेरे पास नहीं है...
यश - बात पैसे की नहीं है....
विश्व - तो...
यश - देखो विश्व... मुझे सिर्फ़ लेनिन ही मदत कर सकता है... यह तो मानते हो ना तुम...
विश्व - हाँ...
यश - तो उसने मुझसे एक... काम करने के लिए कहा है....
विश्व - तो करो...
यश - एक्चुएली... वह तुमसे एक बार...
विश्व - (चेयर पर सीधा हो कर बैठता है) हाँ मुझसे... एक बार... क्या..
यश - देखो.... मैं यह... घुमा फिरा कर बात नहीं कर सकता... वह तुम्हें एक बार हराना चाहता है...
विश्व - ओ... तो वह... मुझे...... हराना चाहता है... हम्म... क्या फाइट में...
यश - नहीं...
विश्व - तो फिर... किसमें...
यश - वह... हँसना मत...
विश्व - नहीं.. बिल्कुल नहीं...
यश - कबड्डी में...
विश्व - क्या... क्या मैंने सही सुना...
यश - हाँ... कबड्डी में...
विश्व - अच्छा... तो अकेले अकेले में कबड्डी मैच खेलेगा मुझसे....
यश - नहीं... लेनिन की टीम... वर्सेस... विश्वा की टीम...
विश्व - और तुम क्या... रेफरी बनोगे...
यश - नहीं... मैं भी टीम में हूँ... पर लेनिन के...
विश्व - ओ... तो तुम लोगों ने... टीम भी बना लिया है...
यश - हाँ... मेरे उसके टीम में होने से... उसको जितने का ग्यारंटी मिल जाएगा...
विश्व - अच्छा ऐसा क्यूँ...
यश - चूंकि मैं तुम्हारे अगेंस्ट खेलुंगा... तो तुम मुझे हारने नहीं दोगे...
विश्व - ह्म्म्म्म ऐसा तुमने सोच लिया... या...
यश - नहीं... यह मैंने सोचा है...
विश्व - ठीक है... पर पहले बताओ... कभी पहले भी कबड्डी खेला है...
यश - नहीं... पर कालेज बहुत बार... रग्बी खेला है... और मेरे हिसाब से... कबड्डी रग्बी का देशी वर्जन है...
विश्व - वाह... क्या बात है.... चलो यह बात आज मुझे पता चला... की कबड्डी... रग्बी का देशी वर्जन है... खैर उनकी बात छोड़ो... क्या तुम खेल पाओगे... इसमे सांस पर बहुत कंट्रोल करना पड़ता है... ताकत के साथ साथ स्टेमिना और स्फूर्ति की जरूरत पड़ती है... तुम्हारा फील्ड में क्या काम... कम से कम तुम खुद को... इस खेल से दूर रखना चाहिए...
यश - (अपनी दाँतों को चबा कर) तुम मुझे बहुत कम आंक रहे हो...
विश्व - जाहिर सी बात है... चौबीसों घंटे ऐसी में रहने वाले... कभी भी पसीना ना बहाने वाले... वह क्या कहते हैं.... अरे हाँ... ना बेटा...(खिल्ली उड़ाते हुए) तुमसे ना हो पाएगा...
यश - (अपने चेयर से उठ खड़ा होता है) तुमने मुझे बहुत कम आंका है... इसका ज़वाब तुम्हें मैदान में दूँगा... (फ़िर खुद को संभाल कर) देखो दोस्त तैस में आकर कह दिया... दिल पर मत ले लेना... हार जरूर जाना... प्लीज....
विश्व - ठीक है... जाओ तैयारी करो...
यश - थैंक्स...

कह कर वापस मुड़ जाता है, और लाइब्रेरी से बाहर निकल कर जाने लगता है l उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ जाती है पर वह नहीं देख पाया विश्व के चेहरे पर भी वैसी ही मुस्कान आकर गायब हो जाती है l यश लाइब्रेरी से निकल कर गेम हॉल में पहुँचता है l गेम हॉल में लेनिन और उसके पट्ठे कैरम खेल रहे हैं l उसके पास ही सीलु और जिलु खड़े होकर खेल देख रहे हैं l यश को देख कर दोनों उसे चीयर करते हैं l यश एक स्टूल खिंच कर वहाँ बैठ जाता है l लेनिन उसे देखता है तो यश अपना सर हिला कर हाँ में इशारा करता है l लेनिन मुस्कराते हुए एक शॉट मारता है लाल गोटी गिर जाता है l सब ताली बजाते हैं l

लेनिन - देखा... आखिर लाल गोटी गिर गया ना...
सीलु - कैसे नहीं गिरेगा लेनिन भाई... आखिर बॉस ने उसे शीशे में उतार जो लिया है..
यश - पर... लेनिन... यह कैसा शर्त... उसके साथ कबड्डी खेलना है... क्यूँ...
लेनिन - यश बाबु... तुम जानते नहीं हो... विश्वा ग़ज़ब का फाइटर है... हमेशा अकेला रहता है... किसी से उसकी दोस्ती नहीं है... दुश्मनी से घबराता नहीं है... इस जैल में हम जैसा... जो भी आता है... वह बाप बनने की कोशिश करता है... पर विश्वा सबका बाप बना हुआ है...और है भी... मैंने उसे चैलेंज किया था... सिर्फ़ एक मिनट... पूरा महीना लगा था.. ठीक होने में... सिर्फ़ एक मिनट में... मैं नीचे गिरा पड़ा था... तब से उसे टपकाने कई प्लान किया... पर बहुत ही ढीठ जान है उसकी....
यश - तुम मुझे बाहर भेज कर भी पैसे ले सकते थे...
लेनिन - हाँ... पर वह कहावत है ना... यह मुहँ और मसूर की दाल... (लेनिन यश की और देखता है, यश के जबड़े सख्त हो गए हैं) तुम्हारे पास सिर्फ फटा हुआ ढोल ही होगा... क्यूंकि.. (एक शॉट मारते हुए) तुम्हारे सारे अकाउंट तो फ्रिज हैं... तुम पैसे लाओगे कहाँ से...
यश - मेरे पास दुसरे भी सोर्स हैं...
लेनिन - हाँ तुम्हारा वह वकील... अभी भी... अंदर ही है ना... (यश कुछ नहीं कहता, बस कसमसा कर रह जाता है, यशकी हालत देख कर) अच्छा छोड़ो यह बात... क्या क्या बातें हुई... यह तो बताओ...

यश बताता है कैसे उसने विश्व को तैयार किया l सब सुनने के बाद लेनिन कुछ सोचने लगता है l उसे सोचता देख कर यश पूछता है

यश - किस सोच में पड़ गए...
लेनिन - बात तो उसने सही कहा है... तुम क्या उसी ताकत और स्टेमिना लेकर खेल सकते हो...
लेनिन - तुम ही जबरदस्ती मुझे खेलने के लिए कह रहे हो...
लेनिन - ऑए... कबड्डी का आइडिया मेरा नहीं था... यह तेरा चमचा सीलु... इसी ने आइडिया दिया था... पर मेरे को भा गया... मेरा बदला पुरा हो सकता है... तुझे अपना इंश्योरेंस बना कर अपनी टीम में रखा है... तु रहेगा तो... मेरे इरादों पर विश्व को शक़ नहीँ होगा....
यश - गुस्सा क्यूँ हो रहे हो... हम एक दूसरे के काम तो आ रहे हैं ना... पर अगर मैं पूरी ताकत से ना खेला तो प्रॉब्लम क्या है...
लेनिन - पहली बात... विश्व को थोड़ा थकाना है... तब अपना प्लान को काम में लाना है... तुमको थोड़ा दम लगा कर खेलना होगा... क्यूंकि देखने वालों की हूटिंग और ताने सुनने पड़ेंगे... बर्दास्त कर सको तो कोई बात नहीं...
जिलु - हाँ बॉस... दो चार च्वींगम मुहँ में ठूँस लेना... फिर दम लगा देना बॉस...
सीलु - हाँ भाई... मेरा मतलब है बॉस... आप आप नर्वस फिल मत करना...
यश - हूँ... (कुछ सोचते हुए अपना सर हिलाता है) ठीक है... तो मैं ऐसे खेलुंगा के विश्व भी हैरान रह जाएगा... (खड़ा हो जाता है) घबराओ मत.... अब टाइम आ गया है... असली यश को बाहर लाने की... (लेनिन को देख कर) मैच कब रखेंगे....
लेनिन - तीन दिन बाद....

दास सुपरिटेंडेंट के कैबिन में घुस पर सैल्यूट देता है और पूछता है

दास - आपने मुझे बुलाया सर...

अशोक बेहरा टेंपररी इनचार्ज अपना सर उठा कर देखता है और कहता है

बेहरा - हाँ दास... देखो मैं यहाँ टेंपररी इनचार्ज हूँ... इस जैल के बारे में और यहाँ के कैदियों के बारे में तुम मुझसे ज्यादा जानते हो... अभी अभी यश वर्धन चेट्टी आया था... तीन दिन बाद इस जैल में कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन के लिए कह रहा था...
दास - सर अचानक... कबड्डी... कुछ समझ में नहीं आ रहा...
बेहरा - मैंने भी यश से यही सवाल किया... पर जवाब में उसने कहा कि... यह उसका लास्ट स्टे है... इसे यादगार बना कर जाना चाहता है...
दास - क्या सर आप भी... वह रिमांड पर है... अगर कंवीक्शन प्रुव हुआ तो परमानेंटली यहीं रहेगा...
बेहरा - आरे यार उसे हमें क्या लेना देना... अगर नहीं राजी हुए... तो कल उसका बाप यहाँ पर ड्रामा करेगा...
दास - धमकी दी है क्या उसने...
बेहरा - दी तो नहीं पर... कल उसका बाप आ रहा है... यश से मिलने... कहीं बखेड़ा ना खड़ा कर दे...
दास - ओ.. तो यह बात है... सर अगर यश प्रपोजल दिया है... तो क्या टीम भी बना लिया है...
बेहरा - हाँ... दो टीम... यह देखो...

कह कर एक काग़ज़ दास की ओर बढ़ा देता है l दास देखता है पहली टीम में लेनिन, यश और लेनिन के पाँच हट्टे कट्टे आदमी l दुसरी टीम में सिर्फ़ विश्व और उसके साथ औने-पौने छह आदमी l टीम देख कर दास को हैरानी होती है l

दास - (काग़ज़ लौटाते हुए) ठीक है सर... हमें क्या करना है...
बेहरा - तैयारी.. हमें.. कैदियों के मनोरंजन के लिए... तैयारी करनी है... तुम कुछ स्टाफस् को रेडी करो रेफरी और लाइन मैन बानो...
दास - ओके.. ओके सर...

सैल्यूट मार कर दास सुपरिटेंडेंट के कैबिन से निकल कर अपनी घड़ी देखता है फिर जगन को भेज कर विश्व को अपने कैबिन में बुलाने को कहता है I दास अपने कैबिन में विश्व का इंतजार कर रहा है l थोड़ी देर बाद विश्व उसके कैबिन में पहुँच जाता है l

दास - यह क्या है विश्व... तुम एक टीम लेकर लेनिन और यश के खिलाफ कबड्डी में उतरोगे...
विश्व - यश अपनी विदाई को यादगार बनाना चाहता है... इसलिए मुझसे कबड्डी मैच के लिए कहा... मैंने भी हाँ कर दिया...
दास - पता नहीं क्यूँ मुझे... उसके और लेनिन के इंटेंशन मुझे ठीक नहीं लग रहे हैं... ऐसा लगता है... उनके मन में कुछ और ही चल रहा है...
विश्व - अच्छा... तो आपको ऐसा लग रहा है.... मतलब हर कोई अपने मन में अपनी अपनी इंटेंशन पाले हुए हैं... पर दास सर... यह खेल है... यहाँ टाइमिंग और टेक्निक मायने रखते हैं... जो खेल गया... वह जीत गया...
दास - ह्म्म्म्म... कह तो तुम ठीक रहे हो.... पर... खैर... मैं वहाँ रेफरी बन कर साथ रहूँगा... (हाथ बढ़ाता है) ऑल द बेस्ट...
विश्व - थैंक्यू सर... (हाथ मिला कर)

उसी दिन शाम को डिनर के समय डायनिंग हॉल में

यश सीलु और जिलु के साथ अंदर आता है l विश्व वहाँ अपनी रेगुलर कोने में बैठा खाना खा रहा है l वहीँ दुसरे कोने में लेनिन अपने पट्ठों के बीच बैठा खाना खा रहा है l जैसे ही लेनिन यश को देखता है अपना सर हिला कर इशारे से कुछ कहता है l यश भी अनुरूप अपना सर हिला कर इशारे से जवाब देता है l ठीक उसी समय विश्व सीलु को अपना बायाँ भवां उठा कर हल्का इशारा करता है, ज़वाब में सीलु अपने दाएँ हाथ की अंगूठे से नाक खुजा कर इशारा करता है l यश डायनिंग हॉल के बीच में एक टेबल पर खड़ा हो जाता है और कहना शुरू करता है

यश - सुनो.. सुनो... यहाँ पर जो भी हैं गौर से सुनो... आज से तीन दिन बाद हमारे जैल के ग्राउंड में... एक कबड्डी मैच का आयोजन किया गया है.... एक टीम है... लेनिन पोद्दार की... और दुसरी टीम है... विश्व प्रताप महापात्र की... हमारे पास तैयारी के लिए दो दिन है... सो कलसे हम जमकर तैयारी करेंगे और प्रैक्टिस करेंगे...

यह घोषणा सुन कर सब एक दुसरे के मुहँ ताकने लगते हैं l यह देख कर सीलु सबसे पहले ताली मारता है l उसके देखा देखी सभी ताली बजाने लगते हैं l

यश - सो दोस्तों इस मैच को... मेरा फ़ेरवेल समझ कर... सब देखने जरूर आयें... पहली बार विश्वा हारेगा... (सब की ताली रुक जाती है) हाँ.. हा हा हा... हाँ हाँ हाँ... आपका विश्वा भाई... इसबार हारने वाला है... सो फॉर नाउ एंजॉय द नाइट...

कह कर विश्व को आँख मारते हुए यश अपना थाली लेने काउन्टर पर जाता है l सब कैदी विश्व के तरफ चोर नजर से देखने लगते हैं l विश्व किसी की ओर ध्यान दिए वगैर अपना खाना जारी रखता है l

तीन दिन बाद

गेम हॉल से सटे ग्राउंड में सारे कैदी आयताकार में जमे हुए हैं l पहली बार ऐसा खेल हो रहा था इसलिए एक ट्रायपड पर दास अपनी मोबाइल को मैच की रिकॉर्डिंग के लिए सेट कर दिया है l दास खुद रेफरी बना हुआ है और चार संत्री लाइन मेन बने हुए हैं l दोनों तरफ बारह बारह प्लेयरस् चुने गए हैं l जज के रूप में खुद अशोक बेहरा बैठा हुआ है l

मैदान में दोनों ग्रुप के सात सात खिलाड़ी उतरते हैं l दास खेल शुरु करा देता है l खेल ज्यूं ज्यूं आगे बढ़ने लगती है खिलाडियों के साथ साथ दर्शकों का भी खुन गरमाने लगती है l दर्शक भी अब दो हिस्सों में बंट चुके हैं l जब कोई स्कोर करता है पक्ष के दर्शक चीयर करने लगते हैं और विपक्ष के दर्शक चिढ़ाने लगते हैं l ऐसा माहौल ना लेनिन के लिए नया था ना ही विश्व के लिए l पर धीरे धीरे यश की खीज बढ़ रही थी l ऐसे में हाफ टाइम होता है l स्कोर था विश्व ग्रुप 48 और लेनिन ग्रुप 36 l हाफ टाइम में विश्व के पास यश आता है l विश्व देखता है यश बहुत थका थका लग रहा है l

यश - यह क्या विश्व.. तुम्हारा स्कोर हमसे ज्यादा है...
विश्व - यह सेकंड हाफ में मेक अप हो जाएगा... पर मैंने तुमसे पहले ही कहा था... तुमको बाहर देखने वालों में होना चाहिए था... एक काम करो... तुम सबस्टीच्युट लेलो और बाहर बैठ जाओ...
यश - अभी हाफ टाइम हुआ है... और आधा खेल बाकी है... मैंने बड़बोलेपन से सही तुम्हें हराने की बात कह दी थी... अब इज़्ज़त का सवाल है... प्लीज विश्वा हार जाओ...
विश्व - ठीक है... सेकंड हाफ में... मैं शांत हो जाता हूँ... तुम्हें स्कोर मेक अप करने में तकलीफ़ नहीं होगी... ठीक आखिरी मोमेंट में... तुम्हारे पास मौका होगा... स्कोर उपर ले जाने के लिए...
यश - ठीक है...


इतना कह कर यश बाथरूम चला जाता है l उसके आने के बाद फ़िर से खेल शुरु हो जाता है l इस बार स्कोर विश्व के 70 और लेनिन के 72 हो चुका है l अब विश्व के साइड में विश्व के साथ और एक बंदा है पर लेनिन के साइड में सिर्फ यश और दो बंदे हैं l अंतिम दौर शुरू होती है, विश्व अब कबड्डी कबड्डी रटते हुए आगे बढ़ता है l यश विश्व के पैरों पर छलांग लगा कर उसे गिरा देता है, फिर विश्व के उपर आकर विश्व के गले में बांह की फाँस बना कर कसने लगता है l विश्व की साँसे घुटने लगती हैं l

यश - (दांतों को चबा चबा कर विश्व के कानों में) विश्व... यार आज तु मेरे हाथों से मर जा... क्यूंकि लेनिन मेरे लिए आदमी इसी शर्त पर देने वाला है... तुझे मारने के लिए... मैंने स्टेरॉयड और ड्रग्स ली है... आज मेरे फंदे से तु बच नहीं पाएगा... तेरा एहसान होगा मुझ पर... तु अगर मर गया... तो वादा करता हूँ... तेरा बदला... मेरा बदला... मैं उन क्षेत्रपालों को तेरा नाम ले लेकर बरबाद करुंगा... इसलिए आज मेरे हाथों से... तु... कुत्ते की मौत मर जा...
विश्व - (आवाज़ को मुस्किल से हलक से निकालते हुए) मैं जानता हूँ... हराम जादे... पर आज मेरी नहीं... तेरी मौत होगी... और नर्क में... क्षेत्रपालों का इंतजार करना... तेरे पीछे पीछे मैं ही उन्हें भेजूंगा...

कह कर विश्व अपने बाएं हाथ को वहाँ लेता है जहाँ यश ने ग्रीप बनाया था I फिर किसी तरह उसके हाथ की छोटी उंगली पकड़ उल्टा मोड़ देता है l यश चिल्ला कर ग्रीप लूज कर देता है ऐसे में विश्व लकीर की ओर घिसटते हुए आगे बढ़ने लगता है, यश विश्व को पकड़ कर पलट जाता है l अब यश नीचे पीठ के बल और विश्व पीठ के बल उसके ऊपर, पर यश और जोर से अपनी बांह कस लेता है और चिल्लाता है
- लेनिन... आओ पकड़ लो इसे... मेरे पकड़.... छूट रहा है... यह... छूट गया तो.. तू गया...

लेनिन और उसके साथी सब एक साथ दोनों के उपर छलांग लगा देते हैं l ऐन वक़्त पर विश्व घुम जाता है l जब सब लोग उन दोनों पर गिरते हैं तब विश्व नीचे होता है और यश ऊपर होता है l इसे फाउल करार देकर दास व्हीसल बजाता है l सभी लाइन मेन और दुसरे कैदी आकर लेनिन और उसके साथियों को उन दोनों के ऊपर से हटाते हैं l पर दो लोग वैसे ही पड़े रहते हैं l नीचे मुहँ के विश्व और उसके ऊपर यश l दास मुस्किल से यश के हाथों को विश्व के गले से अलग करता है l यश का शरीर बेज़ान हो चुका है और वह एक तरफ लुढ़क जाता है l उसके होंठ और नाक के पास खुन आकर जमा हुआ है l पर विश्व वैसे ही मुहँ के बल पड़ा हुआ है l दास उसे पलटता है, विश्व की सांस देखता है, विश्व के चेहरे पर थप्पड़ पर थप्पड़ मारने लगता है l फिर अचानक से एक गहरी सांस लेते हुए विश्व उठाता है और खांसने लगता है l फिर खांसते खांसते अपने बगल में देखता है यश मरा पड़ा है l

खान अपनी बात को यहीं रोक देता है, चुप हो कर दोनों को देखने लगता है l

प्रतिभा - हाँ तो इसमे हत्या कहाँ है... यह तो हादसा हुआ ना... आपने कहाँ और कैसे ऑब्जर्व कर लिया...
खान - उस मैदान में उस दिन जो हुआ... वहाँ सिर्फ दो लोग ही जानते थे... वह हादसा नहीं मर्डर था... पहला विश्व और दुसरा लेनिन... चूंकि जिस वक़्त सारे खिलाड़ी विश्व को मारने के लिए उस पर कुदे थे... तभी विश्व पलट गया था... उसकी कोहनी ठीक यश के छाती के नीचे खड़ा कर रखा था... जब सभी उस पर गिरे तो यश की पसलियाँ टुट गईं थीं... जिसके कारण उसकी सांस रुक गई... और यश दम तोड़ दिया l
तापस - तुमने अभी भी जो कहा... वह एक्सीडेंट ही है... मर्डर नहीं... उल्टा यश विश्व का गला दबा कर मारने कोशिश किया था...
खान - हाँ... वीडियो रिकॉर्डिंग में तो यही जाहिर हुआ... यश के पोस्ट मॉर्टेम रिपोर्ट में... रेस्ट्रीक्टेड ड्रग्स और स्टेरॉयड की ओवर डोज मिला था... जिसके वजह से वह खेल के दौरान वायलेंट हो गया था... यह सब उसके बाप ने उसे मुहैया कराया था... जब वह मिलने आया था... पर यह सब लेने का आइडिया यश को इनडायरेक्टली... विश्व और उसके जासूसों ने दिया था... यश जिस तरह से विश्व का गला दबाया था... उसे फाइट रिंग में चोक कहते हैं... डैनी ने उसे पक्का सिखाया होगा... चोक से कैसे बचा जाए...
तापस - फिर भी तुम अंदाजा लगा रहे हो... साबित कुछ नहीं कर सकते...
खान - मैंने कहा था.. मैं लॉजिक बिठा रहा हूँ...
तापस - हत्या कहने की वजह...
खान - जैसा कि मैंने पहले ही कहा था... उस दिन सिर्फ दो लोगों को ही मालुम था... पहला विश्व और दुसरा लेनिन... उस दिन के बाद लेनिन विश्व से दूर रहने लगा... और रिहा होने के बाद फिर कभी भुवनेश्वर में नहीं दिखा.... यश एक राज नेता का बेटा था... बॉर्न वीथ गोल्डेन स्पून इन माउथ... उसने कभी लाइफ में रॉफ पैचेस नहीं देखे थे... इसलिए जैल में उसकी सोचने समझने की काबलियत को विश्व ने हाइजैक कर लिया था.... यश वही सब करता गया... जो विश्व ने उससे करवाया... विश्व ने उसका पैसा पकड़वाया... उसकी फार्मास्यूटिकल्स कंपनी पर रैड भी करवाया....
तापस - रैड ना तो विश्व ने करवाया ना ही हमने... यह तुक्का तुम्हारा गलत है....
खान - ठीक है... पर उस वक़्त जो भी हुआ... वह विश्व के मुताबिक और यश के खिलाफ होता गया.... लेनिन के बाद इसे कत्ल जानने और समझने वाले... तीसरे शख्स थी भाभीजी...
प्रतिभा - (बिदक कर) यह... यह आप कैसे कह सकते हैं... खान भाई साहब...
तापस - खान तुम बेवजह अंधेरे में तीर चला रहे हो... और वक़्त खामखा बर्बाद कर रहे हो...
खान - दिल्ली में आपको खबर मिलती है... यश की जान चली गई है... सेनापति सारी डिटेल्स दास से लेकर भुवनेश्वर आते हो.... तब भाभीजी विश्व से अकेले में मिलती हैं...

फ्लैशबैक में

लाइब्रेरी में
प्रतिभा विश्व के हाथ अपने सर पर रख कर

प्रतिभा - तु मेरी कसम खा कर बोल... यश कैसे मरा...

विश्व अपने हाथ खिंच लेता है l जिससे प्रतिभा को गुस्सा आता है और वह एक चांटा मार देती है l

प्रतिभा - तुने यह सिला दिया... मैंने तुझे अपने दिल से बेटा माना है.. पर लगता है... तुने मुझे दिल से माँ नहीं माना...
विश्व - (प्रतिभा के दोनों हाथों को पकड़ लेता है) ऐसी बात मत करो माँ... चाहो तो और मार लो... मगर यह गाली मत दो...
प्रतिभा - उसे मारते वक़्त तुझे... जयंत सर याद नहीं आए... अरे उन्होंने तुझे कानून की राह पकड़ने के लिए अपनी पूंजी तेरे हवाले कर दी... ताकि तु बदले की आग में कभी... कानून की राह ना छोड़े... आज उनकी आत्मा को कितनी तकलीफ़ पहुंची होगी सोचा भी है तुमने...
विश्व - क्या करूँ माँ... काश के उस वक्त तुम मेरे पास होती... साथ होती... तो शायद यह हरगिज नहीं होता...पर जब जब उसे देखता था... मैं तड़प उठता था... कैसे जयंत सर भरी अदालत में चल बसे... कैसे प्रत्युष हमारे बीच नहीं है... बस बर्दास्त नहीं हुआ... तब डैनी भाई की एक बात याद आई... दिखाओ कुछ... लोग देखें कुछ... बताओ कुछ... लोग समझें कुछ... करवाओ कुछ... और हो जाए कुछ... जिस कानून और सिस्टम को उसने अपनी करनी से बेबस कर दिया था... उसी बेबस कानून और सिस्टम को उसकी मौत का गवाह बना दिया...
प्रतिभा - (अपनी जबड़े भींच लेती है)
विश्व - माँ.. तुम कुछ भी सजा दे दो माँ... प्लीज मुझसे बात करो... प्लीज (विश्व के आँखों में आँसू आ जाती है)
प्रतिभा - ठीक है... मुझे वचन दे... तु... चाहे किसी से भी बदला लेगा तब भी... खुदको कानून की दायरे में रख कर... उसे कानून की सजा देगा... वचन दे...
विश्व - (प्रतिभा के सर पर हाथ रख कर) मैं वचन देता हूँ... अब जिसे भी सजा देनी होगी... उसे कानून की सजा कानून से दिलवाउंगा...

फ्लैशबैक खतम

प्रतिभा - यह... यह बात आपको कैसे मालुम हुआ... यह तो मेरे और प्रताप के बीच की बातेँ थीं...
खान - एक दिन मैं.... अपने पुलिस हॉस्टल में विश्व की फाइल को ले जा कर.... उसकी प्रोफाइल चेक कर रहा था... उस दिन जगन मेरे साथ था... मेरे मुहँ से निकल गया कि... यह जैल से निकलने के बाद भी... क्रिमिनल बनेगा... तब जगन ने कहा था... की विश्व ने आपसे से वादा किया है... कभी क्राइम नहीं करेगा... मैंने पूछा कब... जगन ने कहा था दो साल पहले... इसलिए मैं सभी लॉजिक बिठा पाया...

इतना कह कर खान चुप हो जाता है l प्रतिभा और तापस भी चुप हो जाते हैं l कुछ देर ख़ामोशी के बाद

तापस - तुम अब क्या करोगे खान...
खान - कुछ नहीं... कुछ भी नहीं... क्यूंकि भाभी जी ने उसे अपनी कसम दे कर कानून के खिलाफ जाने से रोका है... इसलिए मैंने कुछ कहा नहीं और तुमने कुछ सुना नहीं....

प्रतिभा और तापस के चेहरे पर रौनक आ जाती है l खान अपनी जेब से विश्व का AIBE एक्जाम एंट्रेंस की एडमिट कार्ड और लेटर निकाल कर प्रतिभा की ओर बढ़ाता है l प्रतिभा उसे ले लेती है l

खान - भाभी यह रहा आपके बेटे का AIBE एंट्रेंस लेटर... आप फिक्र ना करें... आपने एक बेटा खोया है... तो एक अच्छा बेटा पाया भी है... प्रत्युष सिर्फ़ शरीर के रोगों का इलाज कर सकता था... पर आपका प्रताप तो समाज के रोगों का इलाज करने वाला है... आप यूँ समझ लीजिए... आपका बेटा अभी उसके मामा के यहाँ मेहमान है... अगले शनिवार सुबह आकर अपने प्रताप को पेरोल में ले जाइए... और इतवार शाम को लौटा दीजियेगा...

प्रतिभा - (खुशी से चहकते हुए) शुक्रिया.. शुक्रिया खान भाई... शुक्रिया...
Awesome update
 

Lib am

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👉छप्पनवां अपडेट
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द हैल
विक्रम सिंह का बंगला

डायनिंग टेबल पर बैठ कर विक्रम, शुभ्रा को एक नौकरानी के साथ नास्ता लेकर रूप कि कमरे की ओर जाते हुए देखता है तो वह अपना सिर नीचे कर खाली प्लेट को देखता है और डायनिंग टेबल के चारों तरफ अपनी नजरें घुमाता है l नौकर ट्रॉली में नाश्ता ला कर टेबल के पास पहुँचा ही था कि विक्रम पानी की ग्लास उठा कर पिता है और बाहर चला जाता है l नौकर उसे जाते हुए देखता है l उधर शुभ्रा रूप के कमरे के सामने पहुँच कर दरवाज़ा खटखटाने लगती है l

रूप - (अंदर से) आइए भाभी.... आप मेरे कमरे में आने के लिए कबसे दरवाजा खटखटाने लगीं...

शुभ्रा और नौकरानी दोनों कमरे के भीतर आते हैं l शुभ्रा नौकरानी को नाश्ता लगाने के लिए इशारा करती है l नौकरानी खाना लगा देती है तब

शुभ्रा - (नौकरानी से) अब तुम जाओ... (नौकरानी सर झुका कर बिना पीठ पीछे किए वापस चली जाती है) (रूप से) हाँ तो क्या पूछ रही थी....
रूप - (नाश्ते के लिए बैठते हुए) क्या भाभी... आप को मेरे कमरे में आने के लिए... दरवाज़ा कब से खटखटाने लगीं... और क्यूँ भला...
शुभ्रा - (उसके साथ बैठ कर) वह क्या है कि... शायद राजकुमारी जी किसीके लिए तैयार हो रहे हों... ऐसे मोमेंट के लिए प्राइवेसी की जरूरत होती है ना...
रूप - (खीजते हुए) भाभी....
शुभ्रा - हा हा हा... (खिल खिला कर हँस देती है)
रूप - (उसकी हँसी देख कर) वा... व.... भाभी तुम हँसती हो तो कितनी खूबसूरत दिखती हो... सच भाभी आपके चेहरे पर हँसी शूट करती है...
शुभ्रा - (हँसी रुक जाती है)
रूप - (मुहँ उतर जाता है) सॉरी भाभी... अगर गलत कह दिया तो...
शुभ्रा - तुमने गलत तो नहीं कहा... पर... (रुक जाती है)
रूप - पर क्या भाभी... हाँ इससे पहले मैंने आपको... इतना खुलकर हँसते हुए देखा नहीं था... सच भाभी आप हँसते हुए... बहुत खूबसूरत लगती हैं...
शुभ्रा - मैं तो दो सालों से... हँसना भूल चुकी थी... रूप... तुम्हारे वजह से... कभी कभी मेरे चेहरे पर हँसी और खुशी के पल मिल जाते हैं...
रूप - (शुभ्रा की हाथ पकड़ कर) देखो भाभी... प्लीज... आप मुझे रूप ना बुलाओ... नंदिनी कहो...
शुभ्रा - (हँसते हुए) ठीक है ठीक है... नंदिनी जी...
शुभ्रा - (खीज कर) आ.आ..ह्... भाभी... प्लीज...
शुभ्रा - (हँसते हुए) ओके.. ओके... नंदिनी...
रूप - हाँ यह ठीक है...
(शुभ्रा बड़े प्यार से रूप के गालों पर हाथ फेरती है, रूप उसके हाथों को पकड़ लेती है) और भाभी... अगर आप मेरे वजह से हँस पा रही हो.. खुश हो पा रही हो... तो प्लीज भाभी... आप ऐसे ही रहिए... सच आप हँसते हुए कोई देवी लगती हो...
शुभ्रा - बस बस... बहुत हुआ हाँ... तुम कॉलेज जा कर बहुत बातेँ सीखने लगी हो...
रूप - राजगड़ छुटा... तो बातेँ दिलसे निकल रही हैं... वरना राजगड़ में तो... बातेँ सिर्फ़ जुबान से ही निकलती थीं...

नाश्ता खतम हो जाता है l दोनों अपने हाथों को साफ करते हैं l शुभ्रा जूठे बर्तनों को ट्रॉली के नीचे वाले सेल्फ पर रख देती है l रूप अपनी बैग में कुछ किताबें और नोट बुक्स रखती है और मोबाइल लेकर

रूप - अच्छा भाभी... चलती हूँ...
शुभ्रा - (टोक कर) एक मिनट नंदिनी... (पास आकर) तुम कॉलेज जा रही हो... यह क्या कोई मेक अप नहीं... ऐसे कैसे... और देखो तुमने घड़ी भी नहीं पहना है... (ड्रेसिंग टेबल से घड़ी ला कर पहनाते हुए) कितनी सुंदर हो... थोड़ा सज संवर जाओगी... तो अप्सरा लगोगी...
रूप - भाभी... आपने अभी कहा ना मैं सुंदर हूँ... बस यही काफी है... और सजने संवरने की बात तो भाभी... मुझे किसी को रिझाने की जरूरत नहीं...
शुभ्रा - अरे ऐसे कैसे नहीं... (खिंच कर उसे ड्रेसिंग टेबल के सामने बिठा देती है) अरे लड़की हो... थोड़ा सज संवर जाओगी तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा... (रूप को संवारने लगती है) उल्टा कितनों के दिलों पर छुरी चलेगी जानती हो...
रूप - अच्छा... यह सब जानने में... मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं है... तो पता कैसे चलेगा...
शुभ्रा - कितनों पर छुरीयाँ चली... कितने घायल हो गए... इसकी खबर तुझे तेरे दोस्त देंगे... (रूप के कानों के पास धीरे से) मेरा एक्सपेरियंस है... (आईना को दिखाते हुए) देखो तो कितनी खूबसूरत लग रही हो...
शुभ्रा - भाभी..(शर्मा कर) प्लीज... (फ़िर उदास हो कर) मेरी शादी तय हो चुकी है... यह आप जानती हैं... मैं यहाँ पढ़ने भी इसी वज़ह से आई हूँ... (झट से अपनी जगह से उठ जाती है) क्षेत्रपाल घर की औरतों को... सपने देखना मना है... (कह कर शुभ्रा के गले लग जाती है) अच्छा चलती हूँ... बाय...
शुभ्रा - (उसे जाते हुए देखती है और मुरझाए स्वर में कहती है) बाय

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सेंट्रल जैल

दास और विश्व दोनों जल्दी जल्दी लाइब्रेरी की ओर जा रहे हैं l

दास - पता नहीं... यह खान सर के दिमाग में क्या चल रहा है... कल सेनापति सर जी घर गए थे... दोपहर का और रात का खाना कुटने... बस यही समझ में नहीं आ रहा है... की बदहजमी हुआ है या सब हज़म कर आए हैं...
विश्व - यह आप क्या बोल रहे हैं... दास बाबु...
दास - अरे भाई... सच कह रहा हूँ... सुबह सुबह ऑफिस आकर कहने लगे... जाओ विश्व को बुलाओ... मैं लाइब्रेरी में उसका इंतजार कर रहा हूँ... पर क्यूँ यह नहीं बताया... पहली बार अपने चैम्बर... मतलब कैबिन के वजाए लाइब्रेरी...
विश्व - होगा कोई काम... पर उसके लिए... यूँ भाग कर जाना जरूरी है क्या...
दास - क्या बताऊँ... मैं आज खान सर का मुड़ पढ़ नहीं पाया...
विश्व - ठीक है... कोई बात नहीं...

दोनों यूँही तेज तेज चलते हुए लाइब्रेरी में आते हैं l खान टेबल पर कुछ किताबें पढ़ रहा था l विश्व को देख कर


खान - आओ विश्वा... आओ... क्या तुम जानते हो... तुम्हारा AIB एक्जाम कब है...
विश्व - नहीं... शायद... अगले हफ्ते...
खान - हाँ... अगले इतवार को.... इसलिए तुम्हारे पास सिर्फ पांच दिन है... तैयारी करने के लिए... मतलब जुमे रात तक....
विश्व - क्यूँ... शनिवार भी तो है...
खान - हाँ है... पर उस दिन तुम पेरोल पर बाहर जाने वाले हो... और मुझे नहीं लगता उस दिन पढ़ पाओगे... इसलिए... तुम्हारे पास यह पांच दिन है... तैयारी कर लो... हर रोज दोपहर को... तुम्हारी माँ आएँगी... शाम तक तुम्हें ट्यूशन देंगी...
विश्व - ओ... मतलब माँ ने ऐसा कहा है...
खान - हाँ भाई... वह तुम्हारी माँ हैं तो... मेरी बहन भी हैं... अगर उनकी बेटे की खातिर दारी में कोई कमी रह गई... तो वह मेरी हालत खराब कर देंगी...

खान के यह कहने के बाद विश्व और दास एक दुसरे को मुहँ फाड़े देखने लगते हैं l

खान - दास...
दास - यस सर...
खान - विश्व के खाने का इंतजाम यहीं कर देना...
दास - क्या... मेरा मतलब है... यस.. यस सर...
खान - गुड... सो... विश्वा... बेस्ट ऑफ लक...
विश्व - जी... जी सर... थैंक्यू...

खान लाइब्रेरी से निकल कर चला जाता है l दास और विश्व एक दुसरे को देखते हैं l

दास - अच्छा विश्व तुम पढ़ो... तैयारी करो... बस खाने के समय तुम्हारे पास खाना पहुँच जाएगा...

यह कह कर दास वहाँ से निकल जाता है l विश्व लाइब्रेरी में लॉ के किताबों के सामने बैठ जाता है l

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ESS ऑफिस

विक्रम अपने चैम्बर मैं पहुँच कर टेबल पर रखे बेल बजाता है l एक गार्ड अंदर आता है और सैल्यूट देता है l

विक्रम - देखो... महांती अगर आया होगा तो उसे कहो... कंफेरेंस हॉल में थोड़ी देर बाद पहुँचने के लिए कहना....

गार्ड वहाँ से चला जाता है l विक्रम अपना मोबाइल निकाल कर फोन लिस्ट में नंबर ढूंढने लगता है I बार बार स्कोलींग करने के बावजूद उसकी तलाश वीर की नंबर पर आकर रुक जाती है l कुछ देर तक वीर की नंबर को देखने के बाद वह वीर की नंबर पर कॉल लगा देता है l थोड़ी देर की रिंग के बाद वीर फोन उठाता है l

वीर - जी कहिए युवराज जी....
विक्रम - आप ऑफिस कब आ रहे हैं... राज कुमार...
वीर - अभी तो निकले हैं... बीच रास्ते में हैं... दस पंद्रह मिनट में... पहुँच रहे हैं....
विक्रम - ठीक है... आप आते ही... कंफेरेंस रुम में पहुँच जाइए...
वीर - ओके... कुछ जरूरी काम आ गया क्या...
विक्रम - हाँ... (कह कर फोन काट देता है)

विक्रम अपनी जगह से उठता है और कंफेरेंस रूम की तरफ जाता है l थोड़ी देर बाद उसे महांती दिख जाता है l फिर दोनों कमरे में आकर बैठ जाते हैं l

महांती - कहिए... युवराज जी... क्या काम निकल आया...
विक्रम - महांती... हमने इन कुछ दिनों में... उस हमलावर के बारे में गौर किया है... हमें कुछ शक़ सा हो रहा है...
महांती - युवराज जी... मैं समझ सकता हूँ.... आपको लगता है... कोई घर का भेदी है...
विक्रम - हाँ...
महांती - युवराज जी... मैं आपके शक़ को नकार नहीं सकता... इसलिए मैंने अपने हर आदमी पर... नजर रखने की कोशिश कर दिया है... पर्सनली...
विक्रम - यह आसान नहीं होगा महांती... हम ने जो आर्मी तैयार किया है... उस पर हमे खुद ही नजर रखनी पड़ रही है...
महांती - मज़बूरी है... दुश्मन वार तभी कर सकता है.... जब उसके साथ कोई घर का भेदी हो... पर छोटे राजा जी की वह प्रोग्राम फिक्स थी...
विक्रम - हाँ... पर हम जब कंफेरेंस हॉल में मौजूद थे... तभी फोन आया था... लैंडलाइन पर... इसलिए उस दिन जो भी यहाँ पर मौजूद था... उन्हीं पर निगरानी रखो...
महांती - वह मैं पहले ही कर चुका हूँ....
विक्रम - और कोई खास खबर...
महांती - सिवाय इसके कि... वह चार शूटर... हमारे सर्विलांस मैं हैं... उनका अगला कदम हमे उठाने की देर है...
विक्रम - गुड... ओके... तुम जा सकते हो...
महांती - थैंक्यू... सर... (कह कर चला जाता है)

उसके जाते ही कंफेरेंस रुम में विक्रम अकेला बैठा दरवाजे की ओर देखने लगता है l

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XXXX कॉलेज

नंदिनी कॉलेज में पहुँचती है l वह गाड़ी से उतर कर चारो ओर नजर दौड़ाती है l उसे उसके दोस्त दिख जाते हैं l वह उनके तरफ जाने लगती है l वहीँ दुसरे कोने पर रॉकी अपने दोस्तों के साथ बाइक पार्किंग में अपनी बाइक पर बैठा हुआ है l जैसे ही उसकी नजर नंदिनी पर पड़ती है

रॉकी - वाव... वहाँ देखो दोस्तों... क़यामत... हुस्न की मल्लिका... रूप कि देवी... उफ्फ... क्या कहूँ.... आज नंदिनी क्या दिख रही है... यारों...

रॉकी के सभी दोस्त नंदिनी की ओर देखने लगते हैं l असल में आज कॉलेज में सभी नंदिनी को चोर नजर से देख रहे हैं l ना जाने कितने तड़प तड़प कर आहें भर रहे हैं पर कोई भी जाहिर नहीं कर रहा है l क्यूँकी सभी जानते हैं नंदिनी कॉलेज के प्रेसिडेंट वीर सिंह की बहन है I उनकी जरा सी नादानी उनको खतरनाक अंजाम तक पहुँचा सकता है l रॉकी और उसके दोस्तों का भी वही हाल है l नंदिनी अपने दोस्तों के पास जाती है और सब से हाय फाय करती है l

रवि - काश यह अपने रॉकी के साथ भी... हाय फाय करती...
रॉकी - कोई नहीं... वह टाइम भी बहुत जल्द आएगा....
राजु - पता नहीं किसका टाइम आएगा...
रॉकी - आबे चुप... काली जुबान वाले... कुछ अच्छा सोच... वह कहते हैं ना... पहले सोच बदलो... फ़िर दुनिया बदलेगी...
आशीष - आबे रॉकी... याद है ना... आज तुझे प्रिन्सिपल के पास जाना है...
रॉकी - हाँ मालूम है रे... पाँच मिनट का काम है... और पूरा दिन पड़ा है... वह फूलों की रानी... बहारों की मल्लिका... उसका यूँ संवर के आना ग़ज़ब ढा रहा है...

सभी देखते हैं नंदिनी और उसके दोस्त उन्हीं के पास आ रहे हैं l सभी अपनी अपनी गाड़ी से उतर जाते हैं और अपने अपने हाथों को सीने पर मोड़ कर रख देते हैं l

नंदिनी - हैलो बॉयज...
सभी - हैलो...
नंदिनी - (रॉकी से) आपके हीरोइजम के चर्चे पूरे शहर में हैं... और कुछ लोग तो काफी इम्प्रेस भी हुए हैं...
रॉकी - (कुछ नहीं कहता, सिर्फ़ मुस्करा देता है)

तभी नंदिनी को बनानी कान में कुछ कहती है l नंदिनी उसकी बात पर हल्का सा मुस्करा देती है और

नंदिनी - अच्छा दोस्तों... हम क्लास जा रहे हैं... ब्रेक में मिलते हैं... बाय... सी यु अगेन...
सभी - बाय...

लड़कियों की टोली वहाँ से चली जाती है l रॉकी के सभी दोस्त रॉकी को देखते हैं l रॉकी उनके रिएक्शन देख कर शर्माने लगता है तो

सभी - ऑए होय... क्या बात है... टमाटर के भाव गिरने वाले हैं... लौंडे के गाल तो देखो...
रॉकी - चुप हो जाओ सालों...
आशीष - ऑए... तु पहले तय कर ले... हम साले हैं के भाई...
रॉकी - आरे कमीनों वह दिलदार है.. पर तुम लोग तो अपने यार हो....
रवि - तो इस बात पर क्यूँ ना किसी बीच पर पार्टी रखा जाए...
रॉकी - जरूर... पर पार्टी... इस हफ्ते की मिशन पुरी होने के बाद ही...
सभी - डन...

उनकी बातचीत के बीच प्रिन्सिपल ऑफिस का पीयोन वहाँ पहुँचता है l

पीयोन - रॉकी बाबु...
रॉकी - हाँ भाई बोल...
पीयोन - आपको प्रिन्सिपल सर ने याद किया...
रॉकी - अभी...
पीयोन - जी अभी...
रॉकी - ठीक है... आप चलो... मैं दो मिनट में... पहुँचता हूँ...
पीयोन - ठीक है...

पीयोन चला जाता है l उसके जाते ही रॉकी आशीष के तरफ देखता है l आशीष समझ जाता है, उनसे थोड़ा दूर जाकर अपने मोबाइल पर एक कॉल लगाता है l कुछ देर बात करने के बाद रॉकी को अपना अंगूठा दिखा कर हाँ में इशारा करता है l आशीष का चेहरा एकदम से चमक उठता है l

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ESS ऑफिस
कंफेरेंस रुम
विक्रम अपनी रीवॉल्वींग चेयर पर घुमते हुए किन्हीं ख़यालों में खोया हुआ है l वह ख़यालों से बाहर निकालता है तो अपने सामने वीर को बैठा पाता है l

विक्रम - (सीधा होकर बैठता है) अररे... राज कुमार... आप....आप कब आए...
वीर - ज्यादा नहीं.. सिर्फ़ पाँच मिनट ही हुए हैं...
विक्रम - व्हाट... आप....यहाँ पाँच मिनट से बैठे हुए हैं....
वीर - हाँ... हमे लगा... आप किसी गहरी सोच में खोए हुए हैं....
विक्रम - ओ हाँ... (फिर अपने सर को चेयर पर टिका कर छत की देखते हुए) हम खुद में खोए हुए थे... और खुद ही में खुद को ढूंढ रहे थे...
वीर - आज कल आप... बहुत खोए खोए रहने लगे हैं...
विक्रम - (चुप रहता है)
वीर - हम कुछ और बात करें...
विक्रम - अगर है... तो लीजिए....
वीर - नहीं.... आप कीजिए... हम साथ देंगे...
विक्रम - (अपना सिर वीर की ओर मोड़ते हुए) क्या कहें...
वीर - युवराज जी.... आप राजकुमार को तभी ढूंढते हैं... जब आपके दिल में कुछ चुभ रहा हो... क्यूंकि मुझसे.... आपने कभी काम की बातेँ तो कि ही नहीं...
विक्रम - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) जब हम कलकत्ता से आए थे... तब हमें छोटे राजा जी ने एक टास्क दिया था... हमने भी जोश जोश में... उस टास्क में अपना मंज़िल तय करने की ठान ली... अपनी वज़ूद बनाने की ठान ली... यही अब हम पर भारी पड़ने लगा है....
वीर - (चुप रहता है)
विक्रम - (वीर की ओर देखता है, फिर छत की ओर देख कर) पता नहीं क्या सोच कर... हमने अपने बंगले का नाम... द हैल रखा... अब सच में वह हैल ही लग रहा है... अब थकने लगा है... यह जिस्म... यह रूह... क्षेत्रपाल नाम को... ढोते ढोते... ना हम क्षेत्रपाल बन पाए... ना हम विक्रम सिंह बने रह पाए... एक सीने से लगना चाहते हैं.... उसकी धड़कनों में अपना नाम सुनना चाहते हैं... कभी कंधे पर... सर रख कर... शिकायत करना चाहते हैं.... पर नहीं... वह हमारी किस्मत हैं... ठुकरा चुकी हैं हमें...(कह कर वीर को देखता है)
वीर - (चुप रहता है)
विक्रम - क्या बात है राज कुमार.... कम से कम आप तो कुछ कहिए..
वीर - क्या कहें... बस एक सवाल.... क्या हम पूछें...
विक्रम - पूछिये...
वीर - आप को जब होश आया होगा... तब से आप जानते होंगे... के आप... विक्रम सिंह क्षेत्रपाल हैं... ऐसा दिन आएगा... क्या आप नहीं जानते थे...
विक्रम - (चुप रहता है)
वीर - आप अच्छी तरह से जानते थे... फिर किस बात पर अफ़सोस कर रहे हैं... तब हमने आप से कहा था... दिल प्यार इश्क़ वगैरह वगैरह की बातेँ ना किया कीजिए... पर आपने की... फिर उसका परिणाम झेलते हुए तकलीफ क्यूँ हो रही है आपको....
विक्रम - (चुप रहता है)
वीर - आपके और भाभी जी के बीच क्या हुआ... यह आपकी पर्सनल मैटर है... चार दीवारों के बीच की बात कभी चार लोगों के बीच ना होनी चाहिए... ना ही आनी चाहिए... यु चुज योर डेस्टीनी.. यु मेड योर फेट... नाउ यु कैंट अवॉइड इट... अब आपके पास आर या पार ऑप्शन है... या तो पूरी तरह क्षेत्रपाल बन जाइए... या फिर सब कुछ छोड़ दीजिए.... अपनी मज़बूरी का नाम लेकर... खुद से एसक्युज लेना छोड़ दीजिए.... आगे आपकी मर्जी....

इतना कह कर वीर वहाँ से उठ जाता है l विक्रम उसी तरह चेयर पर टेक लगाए वीर को जाते हुए देखता है l वीर के कमरे से निकल जाने के बाद विक्रम बुदबुदाने लगता है
- सच कह रहे हैं मेरे भाई...आप सच कह रहे हैं.... मैं दुनिया से कम... खुद से जुझ रहा हूँ... इसलिए अपनी तकलीफ कभी कभी आपसे कह देता हूँ.... घर अपनों से होती है... सपनों का होता है... ईंट सीमेंट के बंगले में.... ना कोई अपना है... ना कोई सपना है... यह हमने खुद चुना है... इसे हम छोड़ेंगे भी नहीं....

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XXXX कॉलेज
प्रिन्सिपल की ऑफिस में

प्रिन्सिपल - तो राकेश पहले तो थैंक्स... तुम्हारे वजह से हमारे कालेज में एक्सीडेंट होते होते रह गई... तुमने अपनी जान पर खेल कर एक जान भी बचाई...
रॉकी - सर... इसमें थैंक्स कहने की क्या जरूरत है... मेरी जगह कोई और होता... तो वह भी वही करता...
प्रिन्सिपल - वेल... यु मे बी राइट... लेकिन हमारे अपील के बाद भी... वह वीडियो वायरल हो ही गया.... खैर सबकी मन पर या हरकत पर तो हमारा वश भी नहीं है... अब तुम अपनी कॉलेज में ही नहीं... दुसरे कॉलेज में भी टॉक ऑफ द टॉपिक हो...
रॉकी - (शर्मा कर चुप रहता है और अपना सिर नीचे कर लेता है)
प्रिन्सिपल - डोंट बी साय... इटस् फैक्ट...
रॉकी - बस भी कीजिए सर... आप बे फिजूल इतनी तारीफ ना करें... वरना उसकी बोझ से सर उठाना भी मुश्किल हो जाए...
प्रिन्सिपल - ओके ओके... अच्छा तुम जानते ही होगे... मैंने तुम्हें यहाँ पर क्यूँ बुलाया है...
रॉकी - जी जानता हूँ... आपने कहा था कि... उस एक्सीडेंट के वजह से.... कुछ स्टूडेंट्स ट्रॉमा में हैं.... कुछ ऐसी ऐक्टिविटी हो... जिससे... सभी स्टूडेंट्स के मन से उस हादसे की छाप मीट जाए...
प्रिन्सिपल - देन... डु यु हेव एनी आइडिया...
रॉकी - यस सर...
प्रिन्सिपल - देन... स्पीक... लेट मि नो... व्हाट इज द आइडिया..
रॉकी - सर आपने एफएम 97 सुना होगा...
प्रिन्सिपल - हाँ...
रॉकी - सर उसमें मेरा दोस्त आशीष का कॉजीन सुरेश काम करता है...
प्रिन्सिपल - हाँ... पर... एफएम रेडियो से क्या मतलब है तुम्हारा...
रॉकी - सर... वह... रेडियो एफएम में... ऑडियंस के बीच कुछ भी इशू के ऊपर... लाइव प्रोग्राम करता है... उसका यह प्रोग्राम... हर शनिवार को दिन के बारह बजे आता है... लाइव...
प्रिन्सिपल - हाँ तो...
रॉकी - तो सर हम बुधवार को सभी स्टूडेंट्स को असेंबली हॉल में इकट्ठे होने के लिए कहेंगे... फिर सबको उनके अपने नाम एक चिट पर लिख कर देने को कहेंगे... फ़िर लकी ड्रॉ के जरिए... हम किसी एक का नाम निकाल कर डिक्लेर करेंगे... और सुरेश उसी दिन उस स्टूडेंट को एक टास्क देंगे... और शनिवार को सभी स्टूडेंट्स के सामने... लकी ड्रॉ में नाम जितने वाले स्टूडेंट को टास्क कंप्लीट करना पड़ेगा... वह सिर्फ़ हमारे कालेज के स्टूडेंट्स के सामने ही नहीं बल्कि हर उस एफएम सुनने वालों के सामने लाइव सेशन होगा...
प्रिन्सिपल - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अच्छा कांसेप्ट है... गुड... मैं पहले अपने स्टाफस् को इन्फॉर्म कर दूँ... फ़िर मैं लास्ट आवर में... अनाउंसमेंट कर दूँगा...
रॉकी - ठीक है सर...
प्रिन्सिपल - देखो रॉकी... इस प्रोग्राम की तैयारी और कामयाबी की जिम्मेवारी तुम्हारी...
रॉकी - श्योर सर...

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वीर अपने कैबिन में चेयर पर बैठ कर, आँखे मूँद कर अपनी सोच में खोया हुआ है l दाएँ हाथ से पेपर वेट को टेबल पर घुमा रहा है l उसे होश ही नहीं है कब से वह ऐसा कर रहा है l अचानक उसका पेपर वेट घुमाना बंद हो जाता है, उसे एहसास होता है कि उसे कोई देख रहा है l वह आँखे खोल कर देखता है l अनु अपने हाथ में दो स्माइली बॉल लिए उसे आँखे फाड़े हैरानी भरी नजरों से देख रही है l अनु सामने ऐसे देखते ही वीर के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है l

वीर - क्या बात है अनु जी... आप हमें ऐसे क्यूँ देख रहे हैं...
अनु - जी आप... जब से यहाँ आए हैं... तबसे... यह... पेपर वेट घुमा रहे हैं... मुझे लगा कि... शायद आपको... (स्माइली बॉलस् को दिखा कर) इन बॉलस् की ज़रूरत है...
वीर - (मुस्कान गहरी हो जाती है) है तो... पर तुमने देर कर दी...
अनु - क्या... (हैरानी से आँखे बड़ी हो जाती हैं) यह तो मुझसे बड़ी गलती हो गई... (रोनी सुरत जैसी हो जाती है) आप गुस्सा हो गए ना...
वीर - (पिघल जाता है) आरे नहीं... मैं यह पेपर वेट घुमा कर ठीक हो गया देखो...
अनु - फ़िर भी मैंने गलती की है... सजा तो बनती है...
वीर - (मन ही मन हँसने लगता है) हूँ... सजा तो बनती है... अब तुम ही बोलो मैं तुम्हें क्या सजा दूँ....
अनु - अब मैं क्या बताऊँ...
वीर - अच्छा... कैसी सजा दूँ... जो तुम अपने ऊपर ले सको...
अनु - मैं... कान पकड़ कर... उठक बैठक करूँ...(बड़ी मासूमियत के साथ पूछती है)
वीर - (अपनी हँसी को रोकते हुए) हूँ करो...

अनु झट से अपनी कान पकड़ लेती है और उठक बैठक लगाना शुरू कर देता है l विश्व उसके उठक बैठक देख कर अपनी हँसी और रोक नहीं पाता अपना पेट पकड़ कर जोर जोर से हँसने लगता है l वीर हँसते हँसते हुए देखता है अनु अपनी कान को पकड़े वीर को हैरान हो कर देख रही है l

वीर - (अपनी हँसी को काबु करते हुए) रुको रुको... यहाँ मत करो... लोग देखेंगे तो उन्हें बुरा लगेगा... तुम पर सजा उधार रहा... ठीक है... फ़िर कभी अकेले में... जब कोई ना देखता हो तब... तब.. तुम सौ उठक बैठक कर लेना... ठीक है...
अनु - (खुशी से दमकते हुए) ठीक है... (फ़िर भी कान पकड़ी हुई है)
वीर - आरे... अब तो अपने कान छोड़ो...
अनु - (शर्मा जाती है) ओ हाँ... (कान छोड़ कर) सर...
वीर - हूँ...
अनु - वह आप किसलिए... तनाव में थे...
वीर - तनाव... हाँ वह.. (उसे कुछ सूझता नहीं) वह... मैं...

वीर अनु को देखता है, अनु अपनी भवें तन कर मुहँ खोले जिज्ञासा भरे नजरों से देख रही है l उसकी ऐसी हालत देख कर वीर अपनी हँसी को फिर से काबु करते हुए

वीर - वह... युवराज जी ने... कहा है कि... हमारी (खराश लेते हुए) सिक्युरिटी सर्विस जहां जहां तैनात है... वहाँ भेष बदल कर जाओ... और... प्रतिपुष्टि करो... मतलब फीडबैक दो... वह लोग कैसे अपने ड्यूटी को अंजाम दे रहे हैं....
अनु - ओ... (प्रतिक्रिया ऐसे देती है जैसे सब समझ में आ गया)
वीर - तो बताओ... मुझे क्या करना चाहिए...
अनु - अगर युवराज मालिक ने कहा है... तो ठीक ही कहा होगा... आपको अपना भेष बदल कर उसकी प्रतिपुष्टि करनी चाहिए....
वीर - पर अगर मैं अकेला जाऊँगा... तो...
अनु - तो आप किसी को साथ ले जाइए...
वीर - (अपना सर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... क्या तुम चलोगी...
अनु - हाँ... (फिर जोर से) क्या... न न नहीं... म म.. मैं कैसे...
वीर - क्यूँ... डर लग रहा है मुझसे......

अनु पहले हाँ में सिर हिलती है फिर ना में फिर ऐसे हिलाती है जिसे ना हाँ में समझ आए ना, ना में समझ आए l

वीर - अच्छा एक काम करते हैं...
अनु - क्या...
वीर - तुम्हारी सजा... बदल देते हैं...
अनु - (चेहरे पर हैरानी भरे भाव में अपनी भवें तन कर) क्या... मतलब अब क्या करना होगा...
वीर - कुछ नहीं... मैं अब रोज अपनी सिक्युरिटी जवानों की चुस्ती... और ड्यूटी के प्रति समर्पण देखने जाऊँगा... और तुम मेरे साथ जाओगी....
अनु - आप भेष बदल लोगे... तो आप नहीं पहचाने जाओगे... पर मुझे तो लोग पहचान जाएंगे...
वीर - नहीं पहचानेंगे... तुम भी मेरे साथ अपना भेष बदलोगी...
अनु - भेष बदलने से... कोई आपको पहचान नहीं पाएगा... तो मैं आपको कैसे पहचान पाऊँगी... और मैं कौनसा भेष बदलुंगी... और अगर आप भी मुझे नहीं पहचान पाए तो...

वीर अपने अंदर ही अंदर जो हँस रहा था, उसकी हँसी बंद हो जाती है l वह अनु को मुहँ फाड़े हल्के हल्के से पलकें झपकाते हुए अनु को देखने लगता है l

वीर - कोई नहीं... मैं तुम्हारे सामने भेष बदलुंगा... और तुम... मेरे सामने भेष बदल लेना.... ठीक है...
अनु - (खुश होते हुए) हाँ यह ठीक रहेगा....

वीर उसे देखते हुए सोचने लगता है l यह लड़की मासूम है यह बेवकूफ़ या फिर दोनों l जो कह रही है या कर रही है मासूमियत भरा बेवकूफ़ी या बेवकूफ़ी भरा मासूमियत I

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कॉलेज से आकर रुप अपनी कमरे में आती है l अपनी किताबें टेबल पर रख कर बाथरूम फ्रेश होने चली जाती है l जब फ्रेश होकर कमरे में वापस आती है तो देखती है शुभ्रा उसके बेड पर बैठे उसका इंतजार कर रही है l

रुप - आरे... भाभी.. आप...
शुभ्रा - क्यूँ.. नहीं आना चाहिए था... तुम्हारा प्राइवेसी डिस्टर्ब हो रहा है... अच्छा ठीक है... मैं अब चलती हूँ...
रुप - क्या... भाभी... आपसे कभी मेरी प्राइवेसी डिस्टर्ब हो सकती है....
शुभ्रा - हाँ... हो सकती है...
रुप - (शुभ्रा के पास बैठते हुए) कैसे...
शुभ्रा - जब कमरे में तुम... अपने साजन के साथ होती...
रुप - आ.. ह् (तकिया उठा कर शुभ्रा की ओर फेंकती है) भाभी...
शुभ्रा - हा हा हा... क्यूँ मेरे होने के बाद भी... अपने साजन के साथ... हाँ... कमरे में... उम्म...
रूप - (शुभ्रा पर झपटते हुए) भाभी.... आज मैं आपको नहीं छोड़ुंगी...

शुभ्रा हँसते हँसते पहले कुछ प्रतिरोध करती है पर फिर रुक जाती है l और रुप को अपने गले से लगा लेती है l

शुभ्रा - थैंक्स रुप...
रुप - किस बात के लिए भाभी...
शुभ्रा - बहुत दिन हो गए थे... मैं हँसना भूल गई थी.... आज बेवजह ही सही पर खुलकर हँसी हूँ...
रुप - अगर मुझे छेड़ने पर... आपको खुशी और हँसी मिल रहा है... (शुभ्रा के गले से अलग हो कर) तो आप मुझे रोज छेड़ा करें...
शुभ्रा - वही तो कर रही हूँ...

रुप - अच्छा... तब तो आपकी सौ खता माफ...
शुभ्रा - (मासूम सा चेहरा बना कर) अच्छा अगर गलती से... एक सौ एक खता हो गई तो...
रुप - (थोड़ा चेहरा उतर जाता है) क्या सच में भाभी... आपको लगता है... मेरी बीएससी खतम होते होते... आप एक सौ एक खता कर पाओगे...
शुभ्रा - (थोड़ी सीरियस हो कर) तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है... रुप...
रुप - (अपनी विस्तर से उठ कर पढ़ाई के टेबल के पास बैठ जाती है) काश कि मैं कभी... पढ़ी ही ना होती....
शुभ्रा - ओ...(चुप हो जाती है)
रुप - देखा... आपको भी मेरा दर्द का एहसास हो गया...
शुभ्रा - हूँ...
रुप - पढ़ाई जितना आगे जा रहा है... ख्वाहिशों को पंख उतने ही मिल रहे हैं... जब कि उसकी उड़ान सिर्फ़ पिंजरे के भीतर ही सीमित रहने वाली है... अपने हिस्से का आकाश... क्षेत्रपाल नाम में कहीं छुप गया है....
शुभ्रा - (बड़ी मुश्किल से) हूँ... (आँखे नम हो जाती हैं)
रुप - (शुभ्रा की आँखों में नमी देख कर) ओह... सॉरी... सॉरी भाभी... प्लीज सॉरी...
शुभ्रा - (अपनी आँखों को पोछते हुए) चलो छोड़ो... किस बात के लिए सॉरी... इस सच्चाई को मैंने स्वीकार कर लिया है... अब तुम स्वीकार कर रही हो... फिर भी तसल्ली इस बात की है... तुम एकदिन क्षेत्रपाल नहीं रहोगी...
शुभ्रा - (मुस्कराने की कोशिश करती है, पर मुस्करा नहीं पाती)
शुभ्रा - (रुप की भावनाओं को समझ पाती है) खैर छोड़ो... हम किस बे सिर पैर वाली बातों में वक़्त जाया कर रहे हैं... अच्छा यह बताओ... आज कितने घायल हुए... कितने शायर हुए...
रुप - (चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) क्या... भाभी... जो हो नहीं सकता... हम उसकी आशा क्यूँ करें...
शुभ्रा - (सीरियस मुड़ बना कर) क्या बात कर रही हो... (छेड़ते हुए) यह तो हो ही नहीं सकता... के हुस्न राह से गुजरे और दीवाने आह ना भरें...
रुप - छोड़ो ना भाभी...(शर्माते हुए) क्यूँ छेड़ रही हैं...
शुभ्रा - अच्छा चलो... किसी लड़के ने... हिम्मत ना दिखाई... पर तुम्हारे दोस्त तो तुमको बताए होंगे...
रुप - हूँ... (शर्मा कर अपना चेहरा घुमा लेती है)
शुभ्रा - (जिज्ञासा भरे चहकते हुए) कितने लोग घायल होने की बात कही...
रुप - बहुत... (शुभ्रा को नहीं देखती)
शुभ्रा - उम्म्म... उनमें वह लड़का भी होगा शायद... (अपनी ठुड्डी पर दाएं हाथ की तर्जनी उंगली लगा कर) आँ... शायद... हाँ... हाँ (चुटकी बजा कर) रॉकी... रॉकी... उसकी क्या हालत हुई होगी...
रुप - (थोड़ी सीरियस होते हुए) पता नहीं भाभी....
शुभ्रा - क्या मतलब पता नहीं.....
रुप - वह चारा तो डाल रहा है... पर किसके लिए... यही कंफ्यूजन है...
शुभ्रा - तुम्हारे सिवा... किसी ओर के लिए चारा डाल सकता है क्या....
रुप - शायद...
शुभ्रा - क्या मतलब है शायद... मुझे तो लगता है कि वह तुम पर... चांस मार रहा है...
रुप - पहली बात... भाभी... कॉलेज में सभी मुझसे कतराते हैं... वजह... क्षेत्रपाल... हाँ यह रॉकी कुछ खिचड़ी पका जरूर रहा है... इस पर मैं शनिवार तक... शायद कंफर्म हो जाऊँगी...
शुभ्रा - शनिवार तक... ऐसा क्यूँ...

रुप - आज प्रिन्सिपल ने बताया... जिस बैच के साथ वह आग वाला हादसा हुआ था... उसी बैच के लिए... रेडियो 97 एफएम का प्रोग्राम कंडक्ट किया जाएगा... बुधवार को लॉकी ड्रॉ से नाम चुना जाएगा... जिसका नाम आएगा... बुधवार को ही उसे एक टास्क दिया जाएगा... उसे उस टास्क पर... टॉपिक बना कर... रेडियो पर लाइव प्रेजेंटेशन देना होगा...
शुभ्रा - हाँ तो इसमें... उस रॉकी का क्या रोल है...
रुप - यह सारा प्रोग्राम रॉकी ही कर रहा है... या फिर करवा रहा है... मुझे बस यह पता करना है... वह किसे टार्गेट कर रहा है....


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तापस और प्रतिभा दोनों डायनिंग टेबल पर बैठे हुए हैं l दोनों के सामने थाली पर खाना परोसा हुआ है पर खा कोई नहीं रहा है l दोनों ही किसी सोच में डूबे हुए हैं l फिर दोनों एक दुसरे को देखते हैं l

दोनों - मुझे कुछ कहना है... (एक दुसरे को देख कर)
तापस - मुझे तुम्हारे प्रताप के बारे में बात करनी है...
प्रतिभा - मैं भी आपसे... प्रताप के बारे में बात करना चाहती हूँ....
तापस - (अपना दाहिना हाथ प्रतिभा के बाएँ हाथ पर रखते हुए) ठीक है... पहले तुम कहो...
प्रतिभा - (अपने दोनों हाथों से तापस के हाथ को जोर से पकड़ कर) अब जब प्रताप... कुछ ही दिनों बाद छूटने वाला है.... तो मेरे मन में... आपके और प्रताप के बीच की... ख़ामोशी वाला रिस्ते को लेकर एक असमंजस की स्थिति है....
तापस - (अपना दुसरा हाथ लाकर प्रतिभा के दोनों हाथों पर रख देता है) देखो जान... कभी यह मत समझना मुझे वह पसंद नहीं है... या मुझे उसे लेकर कोई शिकायत है.... मैं उसे तब से पसंद करता था... जब तुमने उसे देखा भी नहीं था.... दिन व दिन वह मेरे अजीज होता चला गया... जब प्रत्युष हमसे छिन गया... तुम पुरी तरह से बिखर गई थी.... तुम्हें उससे माफ़ी माँगनी थी... पर उस पर तुमने अपना ममता लुटा दिया... प्यार और ज़ज्बात इंसान को इंसान बनाए रखते हैं... तुमको उसमें अपने प्रताप को महसुस किया... इसलिए तुमने उसे गले से लगा लिया... तुम्हारे गले से लगते ही... जिस प्यार से वह महरूम था... उस प्यार की उष्मा को उसने महसुस किया और तुम्हें भी अपनी माँ स्वीकार कर लिया... उस रात तुम सोई वह भी बिना नींद की गोली लिए... तुम्हें अपना माँ मानता है... तभी तो फिर कभी कानून को अपने हाथ में ना लेने की कसम लीआ और वादा भी किया.... मैं अब उसका ऋणी हो चुका हूँ... उसने पहले मेरी इज़्ज़त बचाई... फिर जान... और फिर उसके बाद उसके वजह से... मुझे मेरी जान मिल गई...
तुम दोनों आपस में जितने खुल गए... मेरे और विश्व में वह नहीं हो पाया है अब तक... इसलिए एक ख़ामोशी की रिस्ता है... वह तुम्हारे लिए सिर्फ़ प्रताप है... पर मेरे लिए वह विश्व प्रताप है... शायद यह ख़ामोशी किसी दिन टूटेगी... उस दिन हमारे रिश्ते पर रंग चढ़ेगा...
प्रतिभा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मुझे उस दिन का इंतजार रहेगा.... अब आप बताओ... आप प्रताप के बारे में क्या कहना चाहते थे...
तापस - तुम अच्छी तरह से जानती हो... विश्व छूटने के बाद हमारे साथ सिर्फ़ एक महीना रहेगा... उसके बाद वह अपना गांव चला जाएगा... हाँ बीच बीच में आता रहेगा... जैसे अब वैदेही आती है... जब तक वह अपने मकसद पर कामयाब नहीं हो जाता... (तापस प्रतिभा की हाथों को जोर से पकड़ लेता है) मुझे डर है... कहीं प्रताप के दूर जाने से... मैं....
प्रतिभा - आप आगे कुछ मत कहिए.... आपको डर है... कहीं उसकी जुदाई मुझसे बर्दास्त ना हुआ... और मैं फ़िर से पागलों की तरह हो गई तो... यही सोच रहे हैं ना आप...
तापस - (अपना सिर झुका लेता है और कुछ नहीं कहता है)
प्रतिभा - आप फ़िक्र ना करें... पहली बात... मेरे प्रताप को कुछ नहीं होगा... कुछ भी नहीं होगा... एक एक माँ का विश्वास बोल रहा है.... वह बहुत जल्द अपना मकसद पुरा करेगा... फिर हमेशा के लिए हमारे पास आ जाएगा...
बहुत ही बढ़िया और बड़ा अपडेट। सब अपनी अपनी जमीन का आसमान ढूंढ रहे है। विश्व और वैदेही अपने बदले में, सेनापति दंपत्ति विश्व में, विक्रम अपनी वही पुरानी मोहब्बत को पाने में, रूप अपनी नई मिली आजादी में, शुभ्रा अपने आप को क्षेत्रपाल नाम के कलंक को मिटाने में और शायद वीर को इस अनु नाम के खिलौने में। बेहतरीन लेखन।
 

Kala Nag

Mr. X
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बहुत ही बढ़िया और बड़ा अपडेट। सब अपनी अपनी जमीन का आसमान ढूंढ रहे है। विश्व और वैदेही अपने बदले में, सेनापति दंपत्ति विश्व में, विक्रम अपनी वही पुरानी मोहब्बत को पाने में, रूप अपनी नई मिली आजादी में, शुभ्रा अपने आप को क्षेत्रपाल नाम के कलंक को मिटाने में और शायद वीर को इस अनु नाम के खिलौने में। बेहतरीन लेखन।
धन्यबाद दोस्त
इस भावनात्मक अंक पर आपको एक अच्छी विश्लेषण के लिए
धन्यबाद व आभार
 
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