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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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*Index *
 
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Kala Nag

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Ek sawaal tha Lekhak Saahab, Superintendent saahab ki biwi ne jail mein kisi ko Raakhi baandhi thi joki Vaidaihi ne bheji thi... Par wahaan shayad uss vyakti ka naam Pratap likha tha aapne... Wo koyi aur tha ya fir Vishwa hi tha... Meri ye shanka door kar dijiyega...
राखी बांधी नहीं थी बस वैदेही की राखी पहुंचायी थी
और वह विश्व प्रताप महापात्र है
 

Sauravb

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SYNOPSIS

अहंकार के संरक्षण में अत्याचार, अनाचार, दुराचार, व्याभिचार पलता है.....

अहंकार के परछाई में अच्छाई छुप जाती है l अहंकार जो अपने वर्चस्व के लिए न्याय, सत्य धर्म को कुचल के रखने की कोशिश करता रहता है,
उसी अहंकार को अगर रूप व स्वरुप दें तो वह भैरव सिंह क्षेत्रपाल कहलाएगा जिसे पुरा राज्य राजा साहब के नाम से संबोधन करता है l भैरव सिंह क्षेत्रपाल का रौब रुतबा व दखल राज्य के शासन व प्रशासन तंत्र में भीतर तक है l
वह इतनी हैसियत रखता है कि जब चाहे राज्य की सरकार की स्थिति को डांवाडोल कर सकता है l
ऐसे ही व्यक्तित्व से भीड़ जाता है एक आम आदमी विश्व प्रताप महापात्र जिसे लोग विश्वा कहते हैं l उसी धर्म युद्ध में विश्वा भारी कीमत भी चुकाता है l

युद्ध में हथियार ही स्थिर व स्थाई रहता है जब कि हथियार चलाने वाले व हथियार से मरने वाले यानी कि हथियार के पीछे वाला व हथियार के सामने वालों की स्थान व पात्र काल के अनुसार बदलते रहते हैं, जिसके कारण युद्ध के परिणाम प्रभावित होता है l

जो कल हथियार को ले कर शिकार कर रहा था आज उसी हथियार से वह खुद शिकार हो रहा है l

इसी धर्म युद्ध के यही दो मुख्य किरदार हैं l बाकी सभी इनके सह किरदार हैं l इन्हीं के युद्ध का प्रतिफल ही "विश्वरूप" है l
यह कहानी सम्पूर्ण रूप से काल्पनिक है l इसके स्थान, पात्र व घटनायें सभी मेरी कल्पना ही है जो किसी जिवित या मृत व्यक्ति अथवा स्थान से किसी भी प्रकार से संबंधित नहीं है l

चूंकि मैं ओड़िशा से हूँ इसलिए इस कहानी का भौगोलिक विवरण एवं चरित्र चित्रण व संचालन ओड़िशा के पहचान से करूंगा l

मित्रों साथ जुड़े रहें
मैं अगले रवि वार को पहला अंक प्रस्तुत करूंगा l


🙏 🙏 🙏 धन्यवाद🙏🙏🙏
Amazing start...
Me bhi odisha se Hnu
 

Kala Nag

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कहानी का अपडेट लिखना मुश्किल भरा काम है
पहले प्लॉट का Skeleton मतलब कंकाल बनाना पड़ता है
फिर उसमें घटना, संघटन व वार्तालाप का मांस व लहू भरना पड़ता है
फिर उसे आकार देना पड़ता है फिर उसे सबके समक्ष लाना पड़ता है
फिर भी उसमें कुछ खामियां रह जाती हैं
हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्कार करता हूं जो इस थ्रेड में एक प्रोफेशनल की तरह कहानी प्रस्तुत करते हैं...
मैं कोई लेखक नहीं हूँ फिरभी कहानी अपनी धारा से भटक ना जाए इसलिए उतना ही प्रयत्नशील हूँ
कल ही रोमांच व रहस्य को बरकरार रखते हुए अगला अपडेट प्रस्तुत करूंगा
🙏 धन्यबाद 🙏
 

Sauravb

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👉पहला अपडेट
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मित्रों चूंकि रवि वार को मैं बहुत व्यस्त रहने वाला हूँ इसलिए मैं आज ही पहला अपडेट प्रस्तुत कर रहा हूं l


सेंट्रल जेल भुवनेश्वर
आधी रात का समय है l बैरक नंबर 3 कोठरी नंबर 11 में फर्श पर पड़े बिस्तर पर एक कैदी छटपटा रहा है बदहवास सा हो रहा है जैसे कोई बुरा सपना देख रहा है....


सपने में......

एक नौजवान को दस हट्टे कट्टे पहलवान जैसे लोग एक महल के अंदर दबोच रखे हुए हैं
इतने में एक आदमी महल के सीढियों से नीचे उतर कर आता है l शायद वह उस महल का मालिक है, जिसके पहनावे, चाल व चेहरे से कठोरता व रौब झलक रहा है l

वह आदमी उस नौजवान को देख कर कहता है
आदमी - तेरी इतनी खातिरदारी हुई फिर भी तेरी हैकड़ी नहीं गई तेरी गर्मी भी नहीं उतरी l अबे हराम के जने पुरे यशपुर में लोग जिस चौखट के बाहर ही अपना घुटने व नाक रगड़ कर बिना पीठ दिखाए वापस लौट जाते हैं l तुने हिम्मत कैसे की इसे लांघ कर भीतर आने की l

वह नौजवान उन आदमियों के चंगुल से छूटने की फ़िर कोशिश करता है l इतने में एक आदमी जो शायद उन पहलवानों का लीडर था एक घूंसा मारता है जिसके वजह से वह नौजवान का शरीर कुछ देर के लिए शांत हो जाता है l

जिसे देखकर उस घर का मालिक के चेहरे का भाव और कठोर हो जाता है, फिर उस नौ जवान को कहता है - बहुत छटपटा रहा है मुझ तक पहुंचने के लिए l बे हरामी सुवर की औलाद तू मेरा क्या कर लेगा या कर पाएगा l

इतना कह कर वह पास पड़ी एक कुर्सी पर बैठता है और उन आदमियों से इशारे से उस नौजवान को छोड़ने के लिए कहता है l

वह नौजवान छूटते ही नीचे गिर जाता है बड़ी मुश्किल से अपना सर उठा कर उस घर के मालिक की तरफ देखता है l
जैसे तैसे खड़ा होता है और पूरी ताकत से कुर्सी पर बैठे आदमी पर छलांग लगा देता है l पर यह क्या उसका शरीर हवा में ही अटक जाता है l वह देखता है कि उसे हवा में ही वह दस लोग फिरसे दबोच लिया है l वह नौजवान हवा में हाथ मारने लगता है पर उसके हाथ उस कुर्सी पर बैठे आदमी तक नहीं पहुंच पाते l यह देखकर कुर्सी पर बैठा उस आदमी के चेहरे पर एक हल्की सी सर्द मुस्कराहट नाच उठता है l जिससे वह नौजवान भड़क कर चिल्लाता है - भैरव सिंह......


भैरव सिंह उन पहलवानों के लीडर को पूछता है - भीमा,
भीमा-ज - जी मालिक l
भैरव सिंह - हम कौन हैं l


भीमा- मालिक, मालिक आप हमारे माईबाप हैं, अन्न दाता हैं हमारे, आप तो हमारे पालन हार हैं l

भैरव सिंह - देख हराम के जने देख यह है हमारी शख्सियत, हम पूरे यशपुर के भगवान हैं और हमारा नाम लेकर हमे सिर्फ वही बुला सकता है जिसकी हमसे या तो दोस्ती हो या दुश्मनी l वरना पूरे स्टेट में हमे राजा साहब कह कर बुलाया जाता है l तू यह कैसे भूल गया बे कुत्ते, गंदी नाली के कीड़े l

वह नौजवान चिल्लाता है - आ - आ हा......... हा.. आ

भैरव सिंह - चर्बी उतर गई मगर अभी भी तेरी गर्मी उतरी नहीं है l जब चीटियों के पर निकल आने से उन्हें बचने के लिए उड़ना चाहिए ना कि बाज से पंजे लड़ाने चाहिए l
छिपकली अगर पानी में गिर जाए तो पानी से निकलने की कोशिश करनी चाहिए ना कि मगरमच्छ को ललकारे l तेरी औकात क्या है बे....
ना हमसे दोस्ती की हैसियत है और ना ही दुश्मनी के लिए औकात है तेरी
तु किस बिनाह पर हम से दुश्मनी करने की सोच लिया l हाँ आज अगर हमे छू भी लेता तो हमारे बराबर हो जाता कम-से-कम दुश्मनी के लिए l

इतना कह कर भैरव सिंह खड़ा होता है और सीढियों के तरफ मुड़ कर जाने लगता है l सीढ़ियां चढ़ते हुए कहता है

भैरव सिंह - अब तू जिन के चंगुल में फंसा हुआ है वह हमारे पालतू हैं जो हमारी सुरक्षा के पहली पंक्ति हैं l हमारे वंश का वैभव, हमरे नाम का गौरव पूरे राज्य में हमे वह रौब वह रुतबा व सम्मान प्रदान करते हैं कि समूचा राज्य का शासन व प्रशासन का सम्पूर्ण तंत्र न केवल हमे राजा साहब कहता है बल्कि हमारी सुरक्षा के लिए जी जान लगा देते हैं l तू जानता है हमारा वंश के परिचय ही हमे पूरे राज्य के समूचा तंत्र वह ऊचाई दे रखा है.....

इतना कह कर भैरव सिंह सीढ़ियों पर रुक जाता है और मुड़ कर फिर से नौजवान के तरफ देख कर बोलता है

भैरव सिंह - जिस ऊचाई में हमे तू तो क्या तेरे आने वाली सात पुश्तें भी मिलकर सर उठा कर देखने की कोशिश करेंगे तो तुम सब के रीढ़ की हड्डीयां टुट जाएंगी l
देख हम कहाँ खड़ा हैं देख, सर उठा कर देख सकता है तो देख l

नौजवान सर उठाकर देखने की कोशिश करता है ठीक उसी समय उसके जबड़े पर भीमा घूंसा जड़ देता है l
वह नौजवान के मुहँ से खून की धार निकलने लगता है l


भैरव सिंह - हम तक पहुंचते पहुंचते हमारी पहली ही पंक्ति पर तेरी यह दशा है l तो सोच हम तक पहुंचने के लिए तुझे कितने सारे पंक्तियाँ भेदने होंगे और उन्हें तोड़ कर हम तक कैसे पहुँचेगा l चल आज हम तुझे हमारी सारी पंक्तियों के बारे जानकारी मिलेगी l तुझे मालूम था तू किससे टकराने की ज़ुर्रत कर रहा है पर मालूम नहीं था कि वह हस्ती वह शख्सियत क्या है l आज तु भैरव सिंह क्षेत्रपाल का विश्वरूप देखेगा l तुझे मालूम होगा जिससे टकराने की तूने ग़लती से सोच लीआ था उसके विश्वरूप के सैलाब के सामने तेरी हस्ती तेरा वज़ूद तिनके की तरह कैसे बह जाएगा l

नहीं...


कह कर वह कैदी चिल्ला कर उठ जाता है l उसके उठते ही हाथ लग कर बिस्तर के पास कुछ किताबें छिटक कर दूर पड़ती है और इतने में एक संत्री भाग कर आता है और कोठरी के दरवाजे पर खड़े हो कर नौजवान से पूछता है - क्या हुआ विश्वा l

विश्वा उस संत्री को बदहवास हो कर देखता है फ़िर चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान ले कर कहता है - क.. कुछ नहीं काका एक डरावना सपना आया था इसलिए थोड़ा नर्वस फिल हुआ तो चिल्ला बैठा l

संत्री - हा हा हा, सपना देख कर डर गए l चलो कोई नहीं यह सुबह थोड़े ही है जो सच हो जाएगा l हा हा हा हा

विश्वा धीरे से बुदबुदाया - वह सच ही था काका जो सपने में आया था l एक नासूर सच l

संत्री - कुछ कहा तुमने

विश्वा - नहीं काका कुछ नहीं l

इतने में दरवाजे के पास पड़ी एक किताब को वह संत्री उठा लेता है और एक दो पन्ने पलटता है फिर कहता है

संत्री - वाह विश्वा यह चौपाया तुमने लिखा है l बहुत बढ़िया है..

काल के द्वार पर इतिहास खड़ा है
प्राण निरास जीवन कर रहा हाहाकार है
अंधकार चहुंओर घनघोर है
प्रातः की प्रतीक्षा है चंद घड़ी दूर भोर है

वाह क्या बात है बहुत अच्छे पर विश्वा यह कानून की किताब है इसे ऐसे तो ना फेंको l


विश्वा - सॉरी काका अगली बार ध्यान रखूँगा क्यूंकि वह सिर्फ कानून की किताब नहीं है मेरे लिए भगवत गीता है l

संत्री - अच्छा अच्छा अब सो जाओ l कल रात ड्यूटी पर भेंट होगी l शुभरात्रि l

विश्वा - शुभरात्रि

इतना कहकर विश्वा संत्री से किताब लेकर अपने बिस्तर पर आके लेट जाता है l

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सुबह सुबह का समय एक सरकारी क्वार्टर में प्रातः काल का जगन्नाथ भजन बज रहा है l एक पचास वर्षीय व्यक्ति दीवार पर लगे एक नौजवान के तस्वीर के आगे खड़ा है l इतने में एक अड़तालीस वर्षीय औरत आरती की थाली लिए उस कमरे में प्रवेश करती है और उस आदमी को कहती है - लीजिए आरती ले लीजिए l

आदमी का ध्यान टूटता है और वह आरती ले लेता है l फ़िर वह औरत थाली लेकर भीतर चली जाती है l
वह आदमी जा कर सीधे डायनिंग टेबल पर बैठ जाता है l थोड़ी देर बाद वह औरत भी आकर उसके पास बैठ जाती है और कहती है - क्या हुआ सुपरिटेंडेंट साब अभी से भूक लग गई क्या आपको l अभी तो हमे पूरी जाना है फ़िर जगन्नाथ दर्शन के बाद आपको खाना मिलेगा l
आदमी - जानता हूँ भाग्यवान तुम तो जनती हो l आज का दिन मुझे मेरे नाकामयाबी याद दिलाता रहता है l

औरत - देखिए वक्त ने हमसे एक बेटा छीना तो एक को बेटा बना कर लौटाया भी तो है l और आज का दिन हम कैसे भूल सकते हैं l उसीके याद में ही तो हम आज बच्चों के, बूढ़ों के आश्रम को जा रहे हैं l

आदमी - हाँ ठीक कह रहे हो भाग्यवान l अच्छा तुम तो तैयार लग रही हो l थोड़ा चाय बना दो मैं जा कर ढंग के कपड़े पहन कर आता हूँ l फिर पीकर निकालते हैं l

इतना कह कर वह आदमी वहाँ से अपने कमरे को निकाल जाता है l
इतने में वह औरत उठ कर किचन की जा रही थी कि कॉलिंग बेल बजती है l तो अब वह औरत बाहर के दरवाजे के तरफ मुड़ जाती है l दरवाजा खोलती है तो कोई नहीं था नीचे देखा तो आज का न्यूज पेपर मिला उसे उठा कर मुड़ती है तो उसे दरवाजे के पास लगे लेटते बॉक्स पर कुछ दिखता है l वह लेटर बॉक्स खोलते ही उसे एक खाकी रंग की सरकारी लिफाफा मिलता है l जिस पर पता तापस सेनापति जेल सुपरिटेंडेंट लिखा था, और वह पत्र डायरेक्टर जनरल पुलिस के ऑफिस से आया था l

वह औरत चिट्ठी खोल कर देखती है l चिट्ठी को देखते ही उसकी आँखे आश्चर्य से बड़ी हो जाती है l वह गुस्से से घर में घुसती है और अपने पति चिठ्ठी दिखा कर पूछती है यह क्या है...?
Ladai sach aur jooth k bich .biswa ne dekha hua sapna uske past se related he kese uske sath wo hadsa hua tha.
Fantastic writing skills bhai...
 

Sauravb

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👉दुसरा अपडेट
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यह क्या है....? वह खाकी रंग के चिट्ठी को दिखाते हुए पूछती है वह औरत l
अपना टाई बांधते हुए तापस मुस्कराता है l औरत खीज जाती है, फ़िर चिढ़ कर पूछती है - आप हंस क्यूँ रहे हैं.....?

तापस उस औरत के तरफ मुड़ कर कहता है - अरे यार तुमने तो पढ़ लिया होगा l फ़िर पूछ क्यूँ रहे हो l

वह औरत पूछती है - इसका मतलब आप अपने जॉब से VRS ले रहे हैं l
तापस - हाँ....
औरत - पर क्यूँ...
तापस- अरे मेरे साथी जीवन साथी मैंने इस्तीफा तो नहीं दी है ना l मैंने नौकरी से VRS मांगा, यह उसकी क्लीयरेंस है l
औरत - हाँ... दिख रही है मुझे l पर क्यूँ...? और एक बार भी आपने मुझसे कहा भी नहीं l (दुखी स्वर में) क्या हमारे बीच इतना गैप आ गया है l
तापस - (कुछ सीरियस होते हुए) नौकरी में रहकर मैंने क्या उखाड़ लिया l पहले फील्ड में था l वहां से प्रमोशन दे कर मुझे जैल सुप्रीनटेंडेंट बना कर डम्मी बना कर बिठा दिया l जब अपने बच्चे के लिए कुछ करना चाहा तब.....
तब भी एक डम्मी ही रहा
अब नहीं.... हाँ अब और नहीं
मैं नौकरी में रहकर शायद तुम्हारे प्रताप को वह मदद नहीं दे सकता था जो अब मैं उसके लिए कर सकता हूँ प्रतिभा l
प्रतिभा - क्यूँ नहीं कर सकते थे......
नौकरी में रहकर अपने कनेक्शन से भी तो मदद किया जा सकता है l
तापस- नहीं कर सकता था l तुम जानती हो..
मैं सरकारी तंत्र से बंधा हुआ था और तब मैं खुद भी तन मन से सरकारी मशीनरी का पुर्जा ही होता l लेकीन अब वह बंदिश नहीं है मुझ पर l कहने को मैं इस्तीफा भी दे सकता था, पर दस साल और नौकरी रहते हुए अगर इस्तीफा देता तो इंक्वायरी विंग के रेडार में रहता l अब मैं निश्चिंत हो कर अपना काम कर सकता हूं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म .... आप शायद ठीक कर रहे हैं l लेकिन मुझे इतना गैर क्यूँ कर दिया
तापस - इस बात के लिए मुझे माफ कर दो l मुझे अंदाजा नहीं था कि तुम इस बात से इस हद तक दुखी होगी l सॉरी प्रतिभा मुझे माफ़ नहीं करोगी.....

प्रतिभा - ठीक है, ठीक है... अब इतना सीन बढ़ाने की जरूरत नहीं है l लेकिन हमे आगे चलते कनेक्शनस की जरूरत पड़ेगी..... तब
तापस-तुम मुझ पर भरोसा रखो मैंने इन डेढ़ सालों में अपना जो कनेक्शनस डिवेलप किया है l तुम्हें आगे चलते अंदाज़ा हो जाएगा l
इतना सुनते ही प्रतिभा के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और चेयर से उठ कर तापस से कहती है - ठीक है सेनापति जी तो क्या अब पूरी चलें l
तापस - अरे सीधे सुप्रीनटेंडेंट से सेनापति जी....
प्रतिभा - जी... क्यूँ के अब आप जैल सुप्रीनटेंडेंट तो रहे नहीं...
तापस - ठीक है वकील साहिबा चलें...
हा हा हा हा दोनों हंसते हुए घर से बाहर निकालते हैं..

×××××××××××××××××××××××××××
ठीक उसी समय भुवनेश्वर से पांच सौ किलोमीटर दूर पश्चिम में यशपुर प्रांत के राजगड़ कस्बे में एक बड़ी सी महल है l उसी महल के एक कमरे में एक बहुत ही सुंदर सी लड़की रीडिंग टेबल के पास रखे चेयर पर कोई किताब पढ़ रही है.....
तभी उस कमरे के दरवाजे पर दस्तक होती है l
वह लड़की - कौन है
बाहर से आवाज आती है - जी राज कुमारी जी मैं सेबती.
लड़की - हाँ सेबती अंदर आओ (सेबती अंदर आती है) हाँ अब बोलो क्या हुआ l
सेबती- जी वह राजा साहब ने आपको नाश्ते के लिए बुलाया है...
लड़की - अच्छा l तो आज कमरे तक नाश्ता नहीं आएगा...
बहुत दिनों बाद नाश्ते के टेबल पर जाना पड़ेगा...
सेबती- अब मैं क्या कह सकती हूँ..
लड़की - हाँ ठीक कहा..
तुम चलो मैं पहुँचती हूँ..
सेबती कमरे से निकल जाती है l उसके जाते ही लड़की अपनी किताब टेबल पर रख देती है और कमरे से निकल कर नीचे डायनिंग हॉल में पहुंचती है
तो देखती है उसके परिवार के सभी सदस्य टेबल पर बैठे हैं

( राजगड़ इस महल में रह रहे सदस्यों के बारे में थोड़ा-सा विवरण

लड़की - रूप नंदिनी क्षेत्रपाल
लड़की के पिता - भैरव सिंह क्षेत्रपाल/राजा साहब
लड़की के दादाजी - नागेंद्र सिंह क्षेत्रपाल/बड़े राजा जी
लड़की के चाचा - पिनाक सिंह क्षेत्रपाल/छोटे राजा जी
लड़की की चाची- सुषमा सिंह क्षेत्रपाल
लड़की की बड़ा भाई - विक्रम सिंह क्षेत्रपाल/युवराज
लड़की की भाभी - शुभ्रा सिंह क्षेत्रपाल

लड़की की चचेरा भाई और पिनाक सिंह का बेटा - वीर सिंह क्षेत्रपाल/राज कुमार )
रूप जब डायनिंग टेबल के पास शुभ्रा को देखती है खुशी के मारे भाभी कह कर उसके गले लग जाती है l और पूछती है - क्या भाभी आप कब आईं और मुझे बताया भी नहीं l
शुभ्रा - वह कल अचानक से राजा साहब का फोन आया और कहा तुरंत राजगड़ पहुंचो l तो सीधे यहां आ गए l पर तब तक आप सो चुकीं थी....
रूप - चलो अच्छा हुआ...
इतना कह कर रूप शुभ्रा से ज़ोर से गले मिली

यह देख कर पिनाक सिंह कहता है - यह क्या है रूप.... ऐसे क्यूँ गले मिल रही हैं ... मत भूलिए आप राज कुमारी हैं और राजकुमारी जैसी एटिट्यूड रखिए l अपने इमोशंस को काबु में रखें l
यह सुन कर रूप का चेहरा उतर जाता है l शुभ्रा उसके कंधे पर हाथ रखकर रूप को अपने पास बिठाती है l
इतने में राजा साहब उर्फ़ भैरव सिंह क्षेत्रपाल डायनिंग हॉल में प्रवेश करता है और रूप से कहता है - छोटे राजा जी ने ठीक कहा है......
आपको अपने एटिट्यूड पर ध्यान देना चाहिए l कल को आपके विवाह के बाद यही एटिट्यूड आगे चलकर आप ही के काम आएगी....
रूप - जी राजा साहब...
फिर भैरव सिंह एक नौकर को कहता है- है तु... जा कर बड़े राजा जी को ले कर आ l
वह नौकर दौड़ कर जाता है और एक बुजुर्ग को व्हीलचेयर पर बिठा कर लता है l
बुजुर्ग के हॉल में प्रवेश करते ही सभी सदस्य अपने चेयर से खड़े हो जाते हैं
नागेंद्र की व्हीलचेयर डायनिंग टेबल पर लगते ही भैरव सिंह पहले बैठता है और उसके बाद सभी अपने अपने चेयर पर बैठ जाते हैं
कुछ नौकर आ कर सबको नाश्ता परोस देते हैं..
भैरव सिंह एक चम्मच से निवाला उठा कर नागेंद्र के मुहं पर देता है, नागेंद्र के निवाला खाते ही पास खड़े नौकर से नागेंद्र को खिलते रहने को बोलता है फिर अपना नाश्ता शुरू करता है l भैरव सिंह के नाश्ता शुरू करने के बाद सभी अपना नाश्ता शुरू करते हैं l
नाश्ता सभी का लगभग ख़त्म होते ही भैरव सिंह बोलता है - आज बहुत दिनों बाद हम सब इक्कठे हो कर यहाँ बैठ कर खा रहे हैं इसकी एक विशेष वजह है l
सब के चेहरे पर आश्चर्य झलक रहा है.. शुभ्रा और रूप एक दूसरे को देख कर आँखों आंखों पूछ रहे हैं क्या खबर हो सकती है और एक दूसरे को सर हिला कर ना में जवाब देते हैं l
भैरव सिंह - रूप आज शाम को युवराज व आपने भाभी के संग भुवनेश्वर जाएंगी l और वीर सिंह जिस कॉलेज में MA कर रहे हैं उसी कॉलेज में ग्रेजुएशन करेंगी l
यह सुनते ही रूप, शुभ्रा और सुषमा के चेहरे पर खुशी छा जाती है, पर वहीं सारे पुरुषों के चेहरे पर सवाल तैर रहे होते हैं l
विक्रम - माफी चाहूँगा राजा साहब पर आप तो रूप के आगे पढ़ने के विरुद्ध थे, फिर अचानक l
भैरव - हाँ अब वही बताने जा रहा हूँ... परसों हमारे यहाँ स्टेट के उद्योग मंत्री श्री गजेंद्र सिंह देव आये थे बड़े राजा जी से मिलने l मिलकर जाते वक्त वे रूप को देखे l उन्हें रूप उनके सुपुत्र दिव्य शंकर सिंह देव के लिए पसंद कर लिया और बातों बातों में मुझसे कह भी दिया l हमारे जैसे ही रजवाड़ों से संबंधित हैं l उनका परिवार दसपल्ला रजवाड़ों से है और देश विदेश में कारोबार फैला हुआ है बिल्कुल हमारी तरह l पर उनके सुपुत्र दिव्य शंकर फ़िलहाल अपनी उच्च शिक्षा के लिए तीन वर्षो के लिए विदेश जा रहे हैं l इसलिए रूप उनके आने तक भुवनेश्वर में अपना ग्रेजुएशन पूरी करेंगी l
वीर - ठीक है यह बहुत ही अच्छी ख़बर है पर इस विवाह से और रूप के ग्रेजुएशन से क्या सम्बंध है l

भैरव - (अपने चेहरे पर थोड़ी कठोरता ला कर) मुझे इस विवाह से मतलब है ना कि रूप कि ग्रेजुएशन से l उनको एक ग्रेजुएट बहु चाहिए और हमे हमारी बेटी के लिए एक रजवाड़ा खानदानी परिवार l
यह सुन कर सब खामोश हो जाते हैं l सभी औरतें जिनके चेहरे कुछ देर पहले जो खिली हुई थी अब मुर्झा जाती है l
भैरव सिंह - वीर आपके कॉलेज में रूप जाएंगी तो आपकी जिम्मेदारी बढ़ गई है l मैंने प्रिन्सिपल से बात कर ली है l आपको सीधे जा कर रूप का एडमिशन कराना है l
वीर - जैसी आपकी आज्ञा....
भैरव - युवराज आप रूलिंग पार्टी के युवा मंच के अध्यक्ष हैं फ़िर भी आप जितना ध्यान पार्टी को देंगे उतना ही रूप का खयाल रखेंगे l
विक्रम - जी राजा साहब
भैरव - एक बात याद रहे आप सबको, वहाँ कोई रूप को नजर उठाकर भी नहीं देखेगा ऐसा खौफ होना चाहिए उस कॉलेज के हर छात्रों में l
वीर व विक्रम - जी राजा साहब.....
भैरव - (सुषमा व शुभ्रा से) आप दोनों रूप कि सामान वगैरह पैकिग में सहायता करें l और बहू रानी खास कर आपके लिए हिदायत है.....
इतना सुनते ही शुभ्रा के माथे पर कुछ पसीने की बूंदे दिखने लगी l
भैरव - आपके यहाँ रूप हमारे घर की बेटी से ज्यादा सिंह देव परिवार की होने वाली बहु की तरह रहनी चाहिए l
शुभ्रा - (बड़ी मुश्किल से हलक से आवाज़ निकालती है) ज..... ज... जी राजा साहब l
भैरव - ठीक है अब आप जनानी लोग यहाँ से प्रस्थान करें l
यह सुनते ही तीनों औरतें तुरंत प्लेट में हाथ साफ कर रूप कि कमरे की चले जाते हैं l
उनके जाते ही भैरव सिंह उस नौकर से जो नागेंद्र को खिला रहा था, कहता है - जाओ बड़े राजा जी को उनके कमरे तक ले कर आराम से सुला देना l
"जी मालिक " कहकर वह नौकर नागेंद्र को ले कर चला जाता है l
अब भैरव पिनाक, विक्रम व वीर से कहता है मुझे थोड़ी देर में आप सब बैठक में आ कर मिलें l
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इधर रूप के कमरे में बिस्तर पर बैठ कर रूप सिसक रही है l पास बैठ कर सुषमा उसे दिलासा दे रही है और कमरे में शुभ्रा चहल कदम कर रही है l
रूप - चाची माँ मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ होता है.... दो साल पहले मैंने कितने चाव से इंटर किया था पूरे जिला मे फर्स्ट आए और राज्य में सेवेंथ l हम सोचे जो उपलब्धियां भाईयों हासिल नहीं हुआ तो मेरे उपलब्धी शायद राजा साहब को खुश करदे l मगर ऐसा न हुआ उल्टा मेरे आगे की पढ़ाई बंद करवा दी... और अब शादी के लिए मुझे आगे पढ़ाया जा रहा है l
सुषमा - बेटी तू अगर कम मार्क से पास हो रही होती तो शायद आगे पढ़ाई में कोई असुविधा ना होती पर तेरी अच्छी पढ़ाई उनके अहं को ठेस पहुंचाई l इसलिए उन्हों ने तेरी पढ़ाई रोक दी थी l अब इसी बहाने इस कैद खाने से बाहर जाएगी तीन साल के लिए ही सही बाहर तो जाएगी ना बेटी l
शुभ्रा - हाँ रूप चाची माँ सही कह रही हैं l तुझे अब जीवन भर की बंधन में बंधने से पहले तीन साल की आजादी की ज़मानत मिली है l चल उसे जी भर के जी l तेरे साथ मैं पुरी तरह से खड़ी रहूंगी l तेरी भाभी बन कर नहीं बल्कि तेरी दोस्त बन कर l
सुषमा - अच्छी बात कही बहु l युग युग जियो l इस परिवार में हम तीन ही हैं जो आपस में रिश्ते निभा रहे हैं l वरना राजा साहब, छोटे राजा, बड़े राजा, युवराज व राज कुमार में बंधे हुए इन मर्दों को और किसी रिश्तों से कोई मतलब ही नहीं है l
रूप- हाँ चाची माँ, आप ठीक कह रही हैं l हम इस घर से रिश्तों से बंधे हुए हैं इसलिए बचे हुए हैं वरना....
सुषमा- ना मेरी बच्ची यह बात अपने मुँह से मत कह...
शुभ्रा - चाची माँ ठीक कह रहे हैं l यहाँ उनके खिलाफ हवा भी नहीं बह सकता और हम कह कैसे सकते हैं l
रूप - ठीक है चाची माँ l पर आप भी मेरे साथ चलिए ना l
सुषमा - नहीं मैं नहीं जा सकती l तेरे दादाजी की देखभाल मुझे ही करना है l पर तू जा मेरा आशीर्वाद तेरे साथ हमेशा रहेगी l जा...... (सुषमा की आंखों से आंसू निकल जाते हैं)
यह देख कर रूप सुषमा के गले लग जाती है
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पिनाक, विक्रम और वीर डायनिंग हॉल से निकल कर बैठक में पहुंचते हैं l वीर अपना चेयर पर बैठ कर आवाज़ देता है - अरे कोई है.....
भीमा आता है - हुकुम मालिक
वीर - राजा साहब दिख नहीं रहे हैं
भीमा-जी राजा साहब ने कहा है आप थोड़ी देर बैठे वह शीघ्र ही पधार रहे हैं l
पिनाक-लगता है कुछ विशेष है...
भैरव - हाँ विशेष तो है (बैठक के अंदर आते हुए) पर चिंता करने लायक नहीं है
विक्रम - अगर चिंता की बात नहीं तो हम सब यहाँ पर किस विषय पर चर्चा करेंगे l
भैरव - हमारे लीगल एडवाइजर बल्लभ प्रधान को किसी बात की चिंता है l इसलिए यश पुर के अपने लाव-लश्कर को लेकर आ रहा है l इसलिए हमे देखना होगा कि उसकी चिंता क्या है....
विक्रम - हमारा लीगल एडवाइजर किसी घोर चिंता में है और उसकी चिंता वह आपसे दूर करवाएगा l तो हम उसे अपना लीगल एडवाइजर क्यूँ रखे l
भैरव - हमे उसकी चिंता दूर करना होगा ताकि भविष्य में हमे चिंतित न होना पड़े....
भीमा-मालिक दस गाड़ियों से बारह लोग आए हैं l अंदर आने की इजाजत मांग रहे हैं l
भैरव - हाँ वे सब खास महमान हैं l उन्हें भीतर ले आओ और सबको बिठाओ l
भीमा सारे लोगों को अंदर लाता है
भैरव - आओ प्रधान आओ l कुछ तो ऐसा हुआ है जो पूरे लश्कर लेकर आए हो l आओ और आप सब विराजे l
सब के बैठने के बाद प्रधान बोलता है - राजा साहब यह महाशय हमारे नए BDO हैं सुधांशु मिश्र हमारे यहां अभी इनकी सरकारी पोस्टिंग हुई है.....
भैरव - ह्म्म्म्म रुक क्यों गए बोलते रहो
प्रधान - जी अब मेरे पास कुछ नहीं है कहने के लिए...... अब अगर मिश्र जी कहेंगे l
भैरव, सुधांशु मिश्र को देखता है l सुधांशु भैरव को अपने तरफ देखते हुए पाया तो कहाना शुरू किया - राजा साहब मैं यश पुर के लिए नया हूँ पर इस प्रोफेशन में नया नहीं हूँ l ब्लॉक के डेवलपमेंट के खर्चों पर NOC व UC देना हमारा काम होता है l मैंने ऑडिट कराने के बाद पाया कि दो साल पहले जितने भी ब्लॉक प्रोजेक्ट व मनरेगा के काम दिखाया गया है सब में दस से पंद्रह प्रतिशत ही काम हुआ है जब कि UC में मेरा मतलब युटीलाइजेशन सर्टिफिकेट में सौ फीसदी दिखाया गया है....
बैठक में इतनी शांति थी के अगर एक सुई भी गिर जाए तो जोर से सुनाई देती l
मिश्र - इन दो वर्षो में कोई भी प्रोजेक्ट नहीं लाया गया क्यूंकि भारत सरकार ने जब से डिजिटल इंडिया का मुहीम शुरू की है और मनरेगा में काम करने वालों की बैंक अकाउंट आधार कार्ड से जुड़ गया है तब से आप सबके हाथ खाली हैं......
भैरव सिंह के चेहरे पर ना तो कोई शिकन था ना कोई चिंता एक दम भाव हीन l भैरव सिंह के चेहरे पर कोई भाव न देख कर मिश्र के चेहरे पर थोड़ी सी निराशा दिखा
मिश्र फिर कहने लगा - राजा साहब भले ही भारत सरकार डिजिटल इंडिया की मुहिम चलाएं है पर पिछले दो साल पहले की तरह अब भी सबके हाथ में पैसा आ सकता है l मेरे पास इसका फूल प्रूफ़ प्लान है l पर इसके बदले में पिछला BDO जितना लेता था मुझे उससे डबल चाहिए l
बड़ी आशा भरी नजर से मिश्र भैरव सिंह को देख रहा था l पर उसकी बात सुन कर पिनाक कुछ कहना चाहता था l भैरव पिनाक को हाथ दिखा कर चुप रहने को इशारा किया और मिश्र से कहा - आपने आज हमे खुश कर दिया है l आप सबको हम दावत का निमंत्रण दे रहे हैं l आप सब आज रंग महल में दोपहर का भोजन करें और शाम को हम मिश्र से प्लान सुनेंगे l भीमा यह सब आज हमरे मेहमान हैं l इन्हें रंग महल में ठहराव और खाने पीने का पूरा ध्यान रखो l
भीमा- जी मालिक
भीमा सबको अपने साथ लेकर रंग महल की और चला जाता है l
अब पिनाक भैरव सिंह से पूछता है - यह क्या राजा साहब एक अदना सा मुलाजिम हमारे सामने इतना कह गया और हमसे हिस्से की सौदा भी कर गया फिर भी आपने उसे छोड़ दिया और मेहमान बना कर दावत दे रहे हैं l
विक्रम - हाँ छोटे राजा ठीक कह रहे हैं l हमारी आँखों में आँख डाल कर बात कर रहा था l कहीं यह उसकी आदत ना बन जाये......
भैरव - इच्छायें जितनी बड़ी होती हैं उतनी ही खूबसूरत होती हैं........
लालच बहुत बुरी बला है फ़िर भी इंसानी फितरत है........
वक्त कम हो या झोली छोटी फिर भी सब समेट लेना इंसानी आदत है.......
यह स्टेट हमारी मिल्कियत है और सारा सिस्टम पानी, हम इस पानी के मगरमच्छ हैं
यह वह सुना है,
पर जाना नहीं है

यह अब जानना उसकी जरूरत है....
Excellent update..Rup aur biswa ka koi connection he jo bad me pata chalegaa.Prativa aur tapas sayad biswa k koi risthedar honge jo usko help karna ka plan banaya he.😍😍😍
 

Sauravb

Victory 💯
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174
👉तीसरा अपडेट
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रूप के कमरे में एक नौकरानी के साथ शुभ्रा प्रवेश करती है l एक छोटे से रोलिंग टेबल पर खाना लेकर आती है
नौकरानी खाना दे कर चली जाती है l
शुभ्रा - रूप चलो खाना खाते हैं l
रूप - चाची माँ को आने दो ना l कल से आपके साथ ही तो खाना व रहना है l
शुभ्रा - चाची माँ बड़े राजा जी को खिलाने गए हैं l और उन्हें आते आते देर हो जाएगी....
रूप - ह्म्म्म्म चलिए फिर खाना शुरू करते हैं....
दोनों ने खाना खतम किया तो रूप ने सेबती को प्लेट ले जाने को बोला l
सेबती के जाने के बाद रूप ने दरवाजा अंदर से लॉक किया और पूछा - हाँ तो भाभी कहिए आप मुझसे क्या कहाना चाहती हैं l
शुभ्रा - म... मैं मैं क्या कहना चाहती हूं... क क कुछ नहीं....
रूप - भाभी छोटी हूँ पर बच्ची नहीं हूँ.... खाना खाते वक़्त मैंने महसूस किया है कि आप मुझसे कुछ कहना चाह रही हैं l
शुभ्रा चुप रहती है और अपना सर झुका देती है...
रूप - भाभी आज आपने वादा किया था कि आप मेरे साथ डट कर खड़ी रहेंगी l अब ऐसे ही साथ छोड़ देंगी क्या....?
शुभ्रा - नहीं रूप नहीं मैंने तुमसे जो वादा किया है उसे जान दे कर भी निभाउंगी l पर इससे पहले कल कोई बात तुम्हारे सामने आए मैं आज तुम्हारे पास कुछ कंफैस करना चाहती हूँ l बस वादा करो के यह बात सिर्फ तुम्हारे और मेरे बीच रहेगी l
रूप उसे गौर से देख रही है.....
शुभ्रा - देखो मेरे कह लेने के बाद तुम मेरे वारे में कुछ भी सोच सकती हो पर मुझे लगता है कि तुमसे वह बात शेयर करूँ जो शायद मुझे तुम्हारी नजरों में गिरा दे...
रूप - भाभी मैंने आपको भाभी कहा है और भाभी हमेशा माँ की जगह होती है...
अगर आपको लगता है कि मुझे बुरा लगेगा आपको मेरी नजर से गिरा देगा तो मत कहिए l मैं कभी भी आपसे नहीं पूछूँगी.... आप पर मुझे इतना भरोसा है कि आप अगर जहर को जहर कहकर देंगी तो भी आपकी कसम मैं खा लुंगी....
शुभ्रा-(रूप के मुहँ पर हाथ रखकर चुप कराते) नहीं रूप नहीं तुम्हें मेरी उमर लग जाए... भगवान तुम्हें हर बुरी नजर से बचाए रखे.. मुझे इतनी इज़्ज़त देने के लिए शुक्रिया...
एक लंबी सांस छोड़ते हुए शुभ्रा उठती है और खिड़की के पास रुकती है, फिर पीछे मुड़ कर रूप से पूछती है - रूप देखो बुरा मत मानना... तुम्हें कभी दुःख नहीं होता के तुम अपनों को उनके रिश्तों से नहीं बुला पा रही हो....
रूप - सच पूछो तो नहीं.... बिल्कुल नहीं l जब छोटी थी तब दुख हुआ करता था पर जैसे जैसे बड़ी होती गई मुझे एहसास हुआ कि बचपन से मुझे सही कहा गया था.... वह मेरा बाप नहीं राजा साहब है, वह दादा नहीं बड़े राजा है, वह चाचा नहीं छोटे राजा है और भाई नहीं युवराज व राजकुमार हैं....
शुभ्रा - तुम और चाची माँ इस परिवार से जुड़े हुए हो पर मैं तो डेढ़ सालों से आई हूँ l और मैं किसी रजवाड़े से नहीं
रूप - हाँ तो...
शुभ्रा - रूप क्या तुम जानती हो किन हालातों में मेरी शादी हुई थी....
रूप - ओह तो यह बात है.... भाभी मैं जानती हूँ... हाँ भाभी जानती हूँ..
शुभ्रा - इसलिए मैं शायद वफादार नहीं हो सकती...
रूप - भाभी मैंने आपको माँ का दर्जा दिया है.. आप तो बाहर से हैं पर हम तो इस घर के हैं...
बेशक आपके जैसी हालात नहीं है मगर हम इस घर के मर्दों के लिए कुछ मायने रखते नहीं है...भाभी सारी बातें छोड़ो मुझे जरा भी गिला नहीं है आप मेरे बारे में या इस घर के मर्दों के बारे में क्या राय रखते हैं... आप मेरे लिए भाभी हैं और मेरी सबसे प्यारी सहेली भी रहेंगी...
शुभ्रा-थैंक्स रूप आज मुझे बहुत हल्का लग रहा है... फिर भी एक टीस चुभ रही है दिल में..
रूप - भाभी अगर मुझ पर विश्वास
है तो बेझिझक कह दीजिए...
शुभ्रा - जानती हो रूप आज सुबह से मुझे रोना आ रहा है...
रूप - किस बात के लिए भाभी...
शुभ्रा- नभ वाणी न्यूज चैनल के बारे क्या तुमने सुना है...
रूप - हाँ सुना है..
शुभ्रा - मैंने इस परिवार से बदला लेने के लिए किसी के जरिए उस चैनल के एक रिपोर्टर से राजगड़ रिपोर्ट बनाने के लिए उकसाया था....
मुझे कुछ दिनों पहले मालूम हुआ कि वह रिपोर्टर अपने परिवार सहित लापता है...
रूप - आप धीरज रखें भाभी भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा...
शुभ्रा - मेरे मन को पाप छू रहा है... अगर उनके परिवार को कुछ हुआ तो मैं कभी अपने आप को माफ नहीं कर पाऊँगी

रूप- भाभी अगर आपकी आशंका सही निकली तो समझ लो उनकी पाप का घड़ा भर चुका है सिर्फ़ फुटना बाकी रह गया है...
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तभी पुरी रास्ते पर एक कार भुवनेश्वर की और दौड़ रही थी l कार के भीतर तापस व प्रतिभा बैठे हुए थे l
दोनों एक दूसरे से मज़ाक करते हुए लौट रहे थे l तभी प्रतिभा को रास्ते में एक राखी की दुकान दिखती है तो वह अचानक से बोलने लगती है- ओह माय गॉड... (कार के डैश बोर्ड पर हाथ पटकते हुए कहा) ओह शीट शीट शीट...
तापस- क्या हुआ टेंपल सिटी के साइट पर होंडा सिटी के सीट पर तुम सीट हुए हो फ़िर भी शीट शीट शीट चिल्ला रहे हो....
प्रतिभा - हो गया आपका...
तापस - हाँ हो गया...
प्रतिभा - अरे आज वैदेही भुवनेश्वर आई होगी... छी... मुझे याद भी नहीं रहा कल रक्षा बंधन है और वह अपने भाई के लिए रखी लाई होगी...
तापस-अरे हाँ इस साल रक्षा बंधन थोड़ी जल्दी आ गया नहीं...
प्रतिभा - अच्छा एक काम करना प्लीज.... वैदेही जरूर राम मंदिर में मेरी प्रतीक्षा कर रही होगी l चलिए ना उसे मिल लेते हैं...
तापस - देखिए वकील साहिबा आज मैंने आधी दिन की छुट्टी ली थी जिसकी टाइम खतम हो गया है इसलिए मुझे ड्यूटी जॉइन करनी है और वैसे भी जब से आपकी उससे बनने लगी है वह सिर्फ़ आपसे मिलने ही आती है, वैसे भी मैंने आज आधी दिन की छुट्टी ली थी इसलिए उससे आप मिल लीजिए मैं कार और आपको छोड़ कर ड्यूटी जा रहा हूं l
प्रतिभा - क्यूँ ऐसा क्यूँ.. अब आपको ड्यूटी बजाने की क्यूँ पड़ी है जब VRS क्लीयरेंस मिल चुकी है....
तापस - अरे समझा करो VRS क्लीयरेंस हुआ है अभी रिटायर्मेंट को टाइम है...और जब तक ड्यूटी पर हुँ l ड्यूटी के लिए तन मन से समर्पित हूँ....
प्रतिभा - ठीक है...
तापस गाड़ी को राम मंदिर के बाहर पार्किंग में लगा देता है, फिर उतर कर चाबी प्रतिभा को देता है और ऑटो कर जैल को निकाल जाता है l
आँखों से ऑटो ओझल होते ही प्रतिभा मंदिर के अंदर जाती है l मुख्य द्वार पार करते ही वह देखती है कुछ लोग पुजारी को हड़का रहे हैं l प्रतिभा सीधे जा कर उनके पास पहुंचती है और उन लोगों को गौर से देखती है वे सारे लोग किसी प्राइवेट सिक्युरिटी गार्डस लग रहे थे l उनके बाज़ुओं में ESS लिखा था मतलब सब एक्जीक्यूटिव सिक्युरिटी सर्विस से थे l
प्रतिभा - रुको तुम सब
(सब चुप हो गए) तुम लोग पुजारी जी को क्यूँ परेशान कर रहे हो l
उन गार्ड्स में से एक बोला - तु कौन होती है बुढ़िया हमसे सवाल करने की....
पुजारी - देखिए वकील जी यह लोग कैसे गुंडागर्दी दिखा रहे हैं l अभी भगवान के विश्राम का समय है पर यह लोग जबरदस्ती द्वार खुलवाना चाहते हैं.......
एक गार्ड - तु चुप कर बे बुड्ढे I और सुन बुढ़िया यहां तेरी पंचायत नहीं चलेगी निकल यहाँ से l
प्रतिभा - ह्म्म्म्म तुम लोगों की बातों से तो तमीज झलक रही है...
वैसे मेरे बारे में बता दूँ मेरा नाम प्रतिभा सेनापति है, हाई कोर्ट बार काउंसिल में असिस्टैंट सेक्रेटरी हूँ और वुमन लयर एसोसिएशन की प्रेसिडेंट हूँ l अब आगे तुम लोग क्या करोगे या कहोगे थोड़ी तमीज रख कर करना l मत भूलो यह पब्लिक प्लेस है....
गार्ड्स प्रतिभा के बारे में जानने के बाद सभी एक दूसरे को देख कर चुप चाप चले जाते हैं l उनके जाने के बाद प्रतिभा - किस बात के लिए पुजारी जी यह लोग इतने जिद पर अड़े थे l
पुजारी - क्या बताऊँ वकील साहेब मंदिर में दोपहर की सारी रस्में खतम होने के बाद मंदिर का गर्भ गृह द्वार बंद कर रहा था कि वैदेही भागते हुए आई और मुझे छुपा देने के लिए अनुरोध कर रही थी l मैंने देखा वह हाँफ रही थी और बदहवास लग रही थी इसलिए मैंने उसे अंदर छुपा कर मुख्य द्वार बंद कर ही रहा था कि वह गार्ड्स ना जाने कहाँ से आकर झगड़ा करने लगे और मंदिर का द्वार खोलने के लिए दबाव देने लगे थे के ऐन मौके पर आप आ गईं l
प्रतिभा-क्या वैदेही के पीछा करते हुए वह गार्ड्स आए थे....
पुजारी - जी...
प्रतिभा - ठीक है पुजारी जी पर अब हम मुख्य द्वार से नहीं पीछे की द्वार से जाएंगे...
हो सकता है कि हम पर नजर रखी जा रही हो...
पुजारी - जी वकील जी जैसा आपको ठीक लगे...
प्रतिभा - पुजारी जी आपका धन्यबाद करना तो भूल ही गई जो आपने वैदेही के लिए किया... (हाथ जोड़ते हुए) धन्यबाद...
पुजारी - यह क्या कर रही हैं वकील जी वैदेही को मैं सात वर्षों से जानता हूँ l वह हर दस या पंद्रह दिन में आती रहती है l और भगवान के घर में भक्तों के साथ कुछ बुरा नहीं होनी चाहिए, इसलिए मैंने बस इतना ही किया l
प्रतिभा - फिर भी आपका धन्यबाद...
दोनों मंदिर के पीछे पहुंचते हैं और पुजारी मंदिर की रसोई के अंदर ले जाता है l उस रसोई से एक भूतल रास्ता मंदिर के गर्भ गृह तक जाता है l उसी रास्ते से प्रतिभा को लेकर मंदिर के भीतर जाता है l दोनों देखते हैं कि बड़ी फैन के नीचे दीवार के सहारे बैठी हुई थी वैदेही (एक बहुत ही सुंदर पर अड़तीस वर्षीय औरत)
प्रतिभा - वैदेही.....
वैदेही - (खुश होते हुए) अरे मासी आप कब आईं...
प्रतिभा - मेरी छोड़ यह बता आज क्या कर आई के तेरे पीछे कुछ फैनस हाथ धोखे पूछे पड़ गए थे ह्म्म्म्म..
वैदेही - (मुस्कराकर) क्या मासी आप भी न...यह लीजिये (एक राखी को बढ़ाती है) मेरे भाई तक पहुंचा दीजिए...
प्रतिभा - (राखी को लेते हुए) पहले यह बता क्या बखेड़ा कर आई है...
वैदेही पुजारी को देखती है तो पुजारी उनसे इजाजत ले कर बाहर चला जाता है l
पुजारी के जाते ही वैदेही - मासी वह मैं किसी का पता लगा रही थी तो यह सब हो गया l
प्रतिभा - चल अब दोनों बैठ जाते हैं और तू मुझे इत्मीनान से सारी बातें बता l
वैदेही - मासी आज से ढाई महीने पहले मैं जब यश पुर ट्रेन से जा रही थी तब एक आदमी मेरे ही बर्थ के पास आ कर बैठा l मुझसे पूछने लगा कि मैं कहाँ जा रही हूँ तो मैंने उसे राजगड़ बताया तो वह मुझसे क्षेत्रपाल के परिवार से लेकर कारोबार तक बहुत से सवाल किया था l मैंने उसे झिड़क दिआ था l बीच सफर में वह टॉयलेट गया तब उसके सीट पर मुझे उसका ID कार्ड मिला जिससे मुझे मालूम हुआ कि वह एक रिपोर्टर था l उसके आने के बाद मैंने उसे उसका कार्ड थमाते हुए पूछा था कि वह क्यूँ राजगड़ जा रहा है और क्षेत्रपाल के बारे में क्या रिपोर्टिंग करने वाला है l तो उसने मुझे बताया था कि वह क्षेत्रपाल जो ओड़िशा में किंग मेकर बना हुआ है उसकी पोल पट्टी खोल कर दुनिया के सामने क्षेत्रपाल की असलीयत लाएगा l
मैं यह सुन कर उसे समझाया था कि वह इन सब से दूर रहे और अपनी जान व परिवार की फिक्र करे l
पर वह नहीं सुना था, वह राजगड़ गया था वहाँ दो तीन दिन रुका फिर वापस भुवनेश्वर आ गया था l पर उसके बाद उसका या उसके परिवार का पता नहीं चल रहा है l मैं उसके ऑफिस में पिछले डेढ़ महीने से खबर लेने की कोशिश कर रही थी तो आज यह लोग मेरे ऊपर हमला कर पकड़ने की कोशिश किए तो वहाँ से भाग निकली l
प्रतिभा - तू क्यूँ हर मामले में अपनी मुंडी घुषेड़ती रहती है...
वैदेही - उसे देखा तो भाई की याद आ गई इसलिए उसकी खैरियत जानना चाहा l
प्रतिभा - देख हो सकता है कि वह डर के मारे कहीं बाहर चला गया हो..
अछा चल शाम होने को है थोड़ा नाश्ता वगैरह करते हैं और तुझे स्टेशन पर छोड़ दूंगी...
वैदेही - ह्म्म्म्म ठीक है
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इधर राजगड़ में रंग महल में खाने पीने की महफ़िल अभी भी रंग में है l क्षेत्रपाल परिवार के कोई सदस्य नहीं है बस सारे सरकारी अधिकारी व भीमा और उसके साथी चुपचाप वहीं पर खड़े थे l

सबसे ज्यादा खुश व नशे में सुधांशु मिश्र दिख रहा था l बल्लभ प्रधान से रहा नहीं जाता और पूछता है - अबे साले कुत्ते मिश्र तु तेरे साथ हमको भी फंसा कर माना... साले तेरा प्लान अगर पसंद नहीं आई राजा साहब को तो पता नहीं क्या होगा...
मिश्र - रिलाक्स सब दिमाग का खेल है l और दिमाग से कुछ भी किया जा सकता है...
दिमाग से पैसा बनाया जा सकता है और ताक़त को झुकाया भी जा सकता है...
देख लेना आज मैं राजा साहब को अपने दिमाग़ का कायल ना बनाया तो कहना....
तभी एक नौकर भीमा के कान में कुछ कहता है तो भीमा सबसे कहता है - राजा साहब अभी पांच मिनट में पहुंच रहे हैं l आप लोग अपना हालत ठीक कर लें l
यह सुनते ही मिश्र को छोड़ सब भाग कर बाथरूम में अपना हालत सुधार कर कमरे में पहुंचते हैं l
भैरव सिंह अपना भाई पिनाक, विक्रम
व वीर के साथ अंदर आता है l
शुभ संध्या राजा साहब कह कर हाथ जोड़ कर मिश्र कहता है l ज़वाब में भैरव - लगता है दावत का सही लुफ्त आपने ही उठाया है...
मिश्र - राजा साहब आपके महल का खाना वाह क्या कहना.... उस पर यह शराब और कबाब.... म्म्म्म्म्म् वाह...
भैरव सिंह - शराब व कबाब के साथ जो मिसीं है वह है सबाब....
चलिए उससे भी मिल लीजिए....aaa
इतना सुनते ही मिश्र की आंखे चौड़ी हो जाती है... हवश के मारे आँखे और भी लाल हो जाती हैं l भैरव सिंह सबको अपने पीछे आने को कहता है
सब एक बालकनी में पहुंचते हैं l सब देखते हैं कि बालकनी के नीचे एक बड़ा सा स्वीमिंग पूल है l कुछ देर बाद नीचे एक किनारे भीमा एक आदमी को लाकर एक चेयर पर बिठाता है l उस आदमी के चेयर पर बैठते ही वहीँ पर मरघट की शांति छा जाती है... I क्यूंकि ऐसा दिख रहा था जैसे वह आदमी बहुत दिनों से टॉर्चर हो रहा है l उसके बाल जैसे खींचे गए हैं और जहाँ से उसके
सर से जहां जहां बाल उखड़ गए हैं वहाँ पर खुन बह कर जम गया है और उसके सारे हाथ व पैरों की उँगलियों से नाखुन खींचे गए हैं ऐसा दिख रहा है, और आदमी आधी बेहोश जैसे चेयर पर बैठा है
मिश्र की नशा अब काफूर हो चुकी थी, हिम्मत करके पूछता है - यह क्या है राजा साहब और यह कौन है....
पिनाक कहता है - मिश्र जी यह है आखेट l अभी तो शुरू हुआ है आगे आगे देखिये होता क्या है...
तभी दूसरे किनारे पर दूसरा नौकर एक नंगी मगर खूबसूरत औरत को लाकर फेंक देता है l वह औरत शायद नशे की हालत में है l कोई होश नहीं है जैसे, वह स्वीमिंग पूल के दूसरे किनारे पर वैसे ही पड़ी हुई है l तभी वह घायल आदमी चिल्लाने की कोशिश करता है - विजया....
पर उस औरत पर कोई असर नहीं पड़ा वह वैसे ही वहीँ पड़ी रही l भैरव सिंह उस दूसरे नौकर को इशारा करता है तो वह नौकर स्वीमिंग पूल से थोड़ी दूर हट जाता है और एक दीवार के पास आकर कोई स्वीच दबाता है l दो लोहे की बड़ी बड़ी गेट नुमा दीवार सरक कर बाहर स्वीमिंग पूल तक आती हैं और नीचे पड़ी हुई औरत के दोनों तरफ खड़ी हो जाती हैं l इतना देख कर मिश्र पसीने से डूब चुका था वह पीछे हटने लगता है पर वह पीछे वीर से टकरा जाता है l वीर उसके कंधे पर हाथ रख कर जबरदस्ती बालकनी पर मिश्र को अपने साथ खड़ा रखता है l
तभी मिश्र देखता है कि जिस दीवार से वह दो लोहे की गेट निकलीं थी वही एक छोटा सा दरवाजा खुल जाता है l थोड़ी देर बाद दो लकड़बग्घे आ जाते हैं यह देखकर दो लोग चिल्लाते हैं पहला मिश्र-आ.... और दूसरा स्वीमिंग पूल के दूसरे किनारे पर बदहवास बैठा वह आदमी - विजया....
पर तब तक वह लकड़बग्घे उस बेहोश पड़ी औरत पर झपटते हैं, एक लकड़बग्घा उस औरत की जांघ पर जबड़ा लगाता है तो औरत को होश आती है तो वह चिल्लाती है - प्रवीण...

तभी दूसरा लकड़बग्घा उस औरत की पेट फाड़ देता है इस बार औरत चिल्ला नहीं पाती छटपटाती रहती है, पर दूसरे किनारे पर बैठे आदमी से रहा नहीं जाता और स्विमिंग पुल में छलांग लगा कर तैर कर उस औरत वाली किनारे की जाता है l किनारे पर पहुंच कर स्विमिंग पुल से निकलने कोशिश कर ही रहा था कि एक बड़े से मगरमच्छ के जबड़े में उसका कमर आ जाता है और वह मगरमच्छ के साथ पानी में गिर जाता है l यह देखकर बालकनी में मिश्र फर्श पर गिर जाता है...
Fantastic update...
 

Nevil singh

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रूप के कमरे में एक नौकरानी के साथ शुभ्रा प्रवेश करती है l एक छोटे से रोलिंग टेबल पर खाना लेकर आती है
नौकरानी खाना दे कर चली जाती है l
शुभ्रा - रूप चलो खाना खाते हैं l
रूप - चाची माँ को आने दो ना l कल से आपके साथ ही तो खाना व रहना है l
शुभ्रा - चाची माँ बड़े राजा जी को खिलाने गए हैं l और उन्हें आते आते देर हो जाएगी....
रूप - ह्म्म्म्म चलिए फिर खाना शुरू करते हैं....
दोनों ने खाना खतम किया तो रूप ने सेबती को प्लेट ले जाने को बोला l
सेबती के जाने के बाद रूप ने दरवाजा अंदर से लॉक किया और पूछा - हाँ तो भाभी कहिए आप मुझसे क्या कहाना चाहती हैं l
शुभ्रा - म... मैं मैं क्या कहना चाहती हूं... क क कुछ नहीं....
रूप - भाभी छोटी हूँ पर बच्ची नहीं हूँ.... खाना खाते वक़्त मैंने महसूस किया है कि आप मुझसे कुछ कहना चाह रही हैं l
शुभ्रा चुप रहती है और अपना सर झुका देती है...
रूप - भाभी आज आपने वादा किया था कि आप मेरे साथ डट कर खड़ी रहेंगी l अब ऐसे ही साथ छोड़ देंगी क्या....?
शुभ्रा - नहीं रूप नहीं मैंने तुमसे जो वादा किया है उसे जान दे कर भी निभाउंगी l पर इससे पहले कल कोई बात तुम्हारे सामने आए मैं आज तुम्हारे पास कुछ कंफैस करना चाहती हूँ l बस वादा करो के यह बात सिर्फ तुम्हारे और मेरे बीच रहेगी l
रूप उसे गौर से देख रही है.....
शुभ्रा - देखो मेरे कह लेने के बाद तुम मेरे वारे में कुछ भी सोच सकती हो पर मुझे लगता है कि तुमसे वह बात शेयर करूँ जो शायद मुझे तुम्हारी नजरों में गिरा दे...
रूप - भाभी मैंने आपको भाभी कहा है और भाभी हमेशा माँ की जगह होती है...
अगर आपको लगता है कि मुझे बुरा लगेगा आपको मेरी नजर से गिरा देगा तो मत कहिए l मैं कभी भी आपसे नहीं पूछूँगी.... आप पर मुझे इतना भरोसा है कि आप अगर जहर को जहर कहकर देंगी तो भी आपकी कसम मैं खा लुंगी....
शुभ्रा-(रूप के मुहँ पर हाथ रखकर चुप कराते) नहीं रूप नहीं तुम्हें मेरी उमर लग जाए... भगवान तुम्हें हर बुरी नजर से बचाए रखे.. मुझे इतनी इज़्ज़त देने के लिए शुक्रिया...
एक लंबी सांस छोड़ते हुए शुभ्रा उठती है और खिड़की के पास रुकती है, फिर पीछे मुड़ कर रूप से पूछती है - रूप देखो बुरा मत मानना... तुम्हें कभी दुःख नहीं होता के तुम अपनों को उनके रिश्तों से नहीं बुला पा रही हो....
रूप - सच पूछो तो नहीं.... बिल्कुल नहीं l जब छोटी थी तब दुख हुआ करता था पर जैसे जैसे बड़ी होती गई मुझे एहसास हुआ कि बचपन से मुझे सही कहा गया था.... वह मेरा बाप नहीं राजा साहब है, वह दादा नहीं बड़े राजा है, वह चाचा नहीं छोटे राजा है और भाई नहीं युवराज व राजकुमार हैं....
शुभ्रा - तुम और चाची माँ इस परिवार से जुड़े हुए हो पर मैं तो डेढ़ सालों से आई हूँ l और मैं किसी रजवाड़े से नहीं
रूप - हाँ तो...
शुभ्रा - रूप क्या तुम जानती हो किन हालातों में मेरी शादी हुई थी....
रूप - ओह तो यह बात है.... भाभी मैं जानती हूँ... हाँ भाभी जानती हूँ..
शुभ्रा - इसलिए मैं शायद वफादार नहीं हो सकती...
रूप - भाभी मैंने आपको माँ का दर्जा दिया है.. आप तो बाहर से हैं पर हम तो इस घर के हैं...
बेशक आपके जैसी हालात नहीं है मगर हम इस घर के मर्दों के लिए कुछ मायने रखते नहीं है...भाभी सारी बातें छोड़ो मुझे जरा भी गिला नहीं है आप मेरे बारे में या इस घर के मर्दों के बारे में क्या राय रखते हैं... आप मेरे लिए भाभी हैं और मेरी सबसे प्यारी सहेली भी रहेंगी...
शुभ्रा-थैंक्स रूप आज मुझे बहुत हल्का लग रहा है... फिर भी एक टीस चुभ रही है दिल में..
रूप - भाभी अगर मुझ पर विश्वास
है तो बेझिझक कह दीजिए...
शुभ्रा - जानती हो रूप आज सुबह से मुझे रोना आ रहा है...
रूप - किस बात के लिए भाभी...
शुभ्रा- नभ वाणी न्यूज चैनल के बारे क्या तुमने सुना है...
रूप - हाँ सुना है..
शुभ्रा - मैंने इस परिवार से बदला लेने के लिए किसी के जरिए उस चैनल के एक रिपोर्टर से राजगड़ रिपोर्ट बनाने के लिए उकसाया था....
मुझे कुछ दिनों पहले मालूम हुआ कि वह रिपोर्टर अपने परिवार सहित लापता है...
रूप - आप धीरज रखें भाभी भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा...
शुभ्रा - मेरे मन को पाप छू रहा है... अगर उनके परिवार को कुछ हुआ तो मैं कभी अपने आप को माफ नहीं कर पाऊँगी

रूप- भाभी अगर आपकी आशंका सही निकली तो समझ लो उनकी पाप का घड़ा भर चुका है सिर्फ़ फुटना बाकी रह गया है...
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तभी पुरी रास्ते पर एक कार भुवनेश्वर की और दौड़ रही थी l कार के भीतर तापस व प्रतिभा बैठे हुए थे l
दोनों एक दूसरे से मज़ाक करते हुए लौट रहे थे l तभी प्रतिभा को रास्ते में एक राखी की दुकान दिखती है तो वह अचानक से बोलने लगती है- ओह माय गॉड... (कार के डैश बोर्ड पर हाथ पटकते हुए कहा) ओह शीट शीट शीट...
तापस- क्या हुआ टेंपल सिटी के साइट पर होंडा सिटी के सीट पर तुम सीट हुए हो फ़िर भी शीट शीट शीट चिल्ला रहे हो....
प्रतिभा - हो गया आपका...
तापस - हाँ हो गया...
प्रतिभा - अरे आज वैदेही भुवनेश्वर आई होगी... छी... मुझे याद भी नहीं रहा कल रक्षा बंधन है और वह अपने भाई के लिए रखी लाई होगी...
तापस-अरे हाँ इस साल रक्षा बंधन थोड़ी जल्दी आ गया नहीं...
प्रतिभा - अच्छा एक काम करना प्लीज.... वैदेही जरूर राम मंदिर में मेरी प्रतीक्षा कर रही होगी l चलिए ना उसे मिल लेते हैं...
तापस - देखिए वकील साहिबा आज मैंने आधी दिन की छुट्टी ली थी जिसकी टाइम खतम हो गया है इसलिए मुझे ड्यूटी जॉइन करनी है और वैसे भी जब से आपकी उससे बनने लगी है वह सिर्फ़ आपसे मिलने ही आती है, वैसे भी मैंने आज आधी दिन की छुट्टी ली थी इसलिए उससे आप मिल लीजिए मैं कार और आपको छोड़ कर ड्यूटी जा रहा हूं l
प्रतिभा - क्यूँ ऐसा क्यूँ.. अब आपको ड्यूटी बजाने की क्यूँ पड़ी है जब VRS क्लीयरेंस मिल चुकी है....
तापस - अरे समझा करो VRS क्लीयरेंस हुआ है अभी रिटायर्मेंट को टाइम है...और जब तक ड्यूटी पर हुँ l ड्यूटी के लिए तन मन से समर्पित हूँ....
प्रतिभा - ठीक है...
तापस गाड़ी को राम मंदिर के बाहर पार्किंग में लगा देता है, फिर उतर कर चाबी प्रतिभा को देता है और ऑटो कर जैल को निकाल जाता है l
आँखों से ऑटो ओझल होते ही प्रतिभा मंदिर के अंदर जाती है l मुख्य द्वार पार करते ही वह देखती है कुछ लोग पुजारी को हड़का रहे हैं l प्रतिभा सीधे जा कर उनके पास पहुंचती है और उन लोगों को गौर से देखती है वे सारे लोग किसी प्राइवेट सिक्युरिटी गार्डस लग रहे थे l उनके बाज़ुओं में ESS लिखा था मतलब सब एक्जीक्यूटिव सिक्युरिटी सर्विस से थे l
प्रतिभा - रुको तुम सब
(सब चुप हो गए) तुम लोग पुजारी जी को क्यूँ परेशान कर रहे हो l
उन गार्ड्स में से एक बोला - तु कौन होती है बुढ़िया हमसे सवाल करने की....
पुजारी - देखिए वकील जी यह लोग कैसे गुंडागर्दी दिखा रहे हैं l अभी भगवान के विश्राम का समय है पर यह लोग जबरदस्ती द्वार खुलवाना चाहते हैं.......
एक गार्ड - तु चुप कर बे बुड्ढे I और सुन बुढ़िया यहां तेरी पंचायत नहीं चलेगी निकल यहाँ से l
प्रतिभा - ह्म्म्म्म तुम लोगों की बातों से तो तमीज झलक रही है...
वैसे मेरे बारे में बता दूँ मेरा नाम प्रतिभा सेनापति है, हाई कोर्ट बार काउंसिल में असिस्टैंट सेक्रेटरी हूँ और वुमन लयर एसोसिएशन की प्रेसिडेंट हूँ l अब आगे तुम लोग क्या करोगे या कहोगे थोड़ी तमीज रख कर करना l मत भूलो यह पब्लिक प्लेस है....
गार्ड्स प्रतिभा के बारे में जानने के बाद सभी एक दूसरे को देख कर चुप चाप चले जाते हैं l उनके जाने के बाद प्रतिभा - किस बात के लिए पुजारी जी यह लोग इतने जिद पर अड़े थे l
पुजारी - क्या बताऊँ वकील साहेब मंदिर में दोपहर की सारी रस्में खतम होने के बाद मंदिर का गर्भ गृह द्वार बंद कर रहा था कि वैदेही भागते हुए आई और मुझे छुपा देने के लिए अनुरोध कर रही थी l मैंने देखा वह हाँफ रही थी और बदहवास लग रही थी इसलिए मैंने उसे अंदर छुपा कर मुख्य द्वार बंद कर ही रहा था कि वह गार्ड्स ना जाने कहाँ से आकर झगड़ा करने लगे और मंदिर का द्वार खोलने के लिए दबाव देने लगे थे के ऐन मौके पर आप आ गईं l
प्रतिभा-क्या वैदेही के पीछा करते हुए वह गार्ड्स आए थे....
पुजारी - जी...
प्रतिभा - ठीक है पुजारी जी पर अब हम मुख्य द्वार से नहीं पीछे की द्वार से जाएंगे...
हो सकता है कि हम पर नजर रखी जा रही हो...
पुजारी - जी वकील जी जैसा आपको ठीक लगे...
प्रतिभा - पुजारी जी आपका धन्यबाद करना तो भूल ही गई जो आपने वैदेही के लिए किया... (हाथ जोड़ते हुए) धन्यबाद...
पुजारी - यह क्या कर रही हैं वकील जी वैदेही को मैं सात वर्षों से जानता हूँ l वह हर दस या पंद्रह दिन में आती रहती है l और भगवान के घर में भक्तों के साथ कुछ बुरा नहीं होनी चाहिए, इसलिए मैंने बस इतना ही किया l
प्रतिभा - फिर भी आपका धन्यबाद...
दोनों मंदिर के पीछे पहुंचते हैं और पुजारी मंदिर की रसोई के अंदर ले जाता है l उस रसोई से एक भूतल रास्ता मंदिर के गर्भ गृह तक जाता है l उसी रास्ते से प्रतिभा को लेकर मंदिर के भीतर जाता है l दोनों देखते हैं कि बड़ी फैन के नीचे दीवार के सहारे बैठी हुई थी वैदेही (एक बहुत ही सुंदर पर अड़तीस वर्षीय औरत)
प्रतिभा - वैदेही.....
वैदेही - (खुश होते हुए) अरे मासी आप कब आईं...
प्रतिभा - मेरी छोड़ यह बता आज क्या कर आई के तेरे पीछे कुछ फैनस हाथ धोखे पूछे पड़ गए थे ह्म्म्म्म..
वैदेही - (मुस्कराकर) क्या मासी आप भी न...यह लीजिये (एक राखी को बढ़ाती है) मेरे भाई तक पहुंचा दीजिए...
प्रतिभा - (राखी को लेते हुए) पहले यह बता क्या बखेड़ा कर आई है...
वैदेही पुजारी को देखती है तो पुजारी उनसे इजाजत ले कर बाहर चला जाता है l
पुजारी के जाते ही वैदेही - मासी वह मैं किसी का पता लगा रही थी तो यह सब हो गया l
प्रतिभा - चल अब दोनों बैठ जाते हैं और तू मुझे इत्मीनान से सारी बातें बता l
वैदेही - मासी आज से ढाई महीने पहले मैं जब यश पुर ट्रेन से जा रही थी तब एक आदमी मेरे ही बर्थ के पास आ कर बैठा l मुझसे पूछने लगा कि मैं कहाँ जा रही हूँ तो मैंने उसे राजगड़ बताया तो वह मुझसे क्षेत्रपाल के परिवार से लेकर कारोबार तक बहुत से सवाल किया था l मैंने उसे झिड़क दिआ था l बीच सफर में वह टॉयलेट गया तब उसके सीट पर मुझे उसका ID कार्ड मिला जिससे मुझे मालूम हुआ कि वह एक रिपोर्टर था l उसके आने के बाद मैंने उसे उसका कार्ड थमाते हुए पूछा था कि वह क्यूँ राजगड़ जा रहा है और क्षेत्रपाल के बारे में क्या रिपोर्टिंग करने वाला है l तो उसने मुझे बताया था कि वह क्षेत्रपाल जो ओड़िशा में किंग मेकर बना हुआ है उसकी पोल पट्टी खोल कर दुनिया के सामने क्षेत्रपाल की असलीयत लाएगा l
मैं यह सुन कर उसे समझाया था कि वह इन सब से दूर रहे और अपनी जान व परिवार की फिक्र करे l
पर वह नहीं सुना था, वह राजगड़ गया था वहाँ दो तीन दिन रुका फिर वापस भुवनेश्वर आ गया था l पर उसके बाद उसका या उसके परिवार का पता नहीं चल रहा है l मैं उसके ऑफिस में पिछले डेढ़ महीने से खबर लेने की कोशिश कर रही थी तो आज यह लोग मेरे ऊपर हमला कर पकड़ने की कोशिश किए तो वहाँ से भाग निकली l
प्रतिभा - तू क्यूँ हर मामले में अपनी मुंडी घुषेड़ती रहती है...
वैदेही - उसे देखा तो भाई की याद आ गई इसलिए उसकी खैरियत जानना चाहा l
प्रतिभा - देख हो सकता है कि वह डर के मारे कहीं बाहर चला गया हो..
अछा चल शाम होने को है थोड़ा नाश्ता वगैरह करते हैं और तुझे स्टेशन पर छोड़ दूंगी...
वैदेही - ह्म्म्म्म ठीक है
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इधर राजगड़ में रंग महल में खाने पीने की महफ़िल अभी भी रंग में है l क्षेत्रपाल परिवार के कोई सदस्य नहीं है बस सारे सरकारी अधिकारी व भीमा और उसके साथी चुपचाप वहीं पर खड़े थे l

सबसे ज्यादा खुश व नशे में सुधांशु मिश्र दिख रहा था l बल्लभ प्रधान से रहा नहीं जाता और पूछता है - अबे साले कुत्ते मिश्र तु तेरे साथ हमको भी फंसा कर माना... साले तेरा प्लान अगर पसंद नहीं आई राजा साहब को तो पता नहीं क्या होगा...
मिश्र - रिलाक्स सब दिमाग का खेल है l और दिमाग से कुछ भी किया जा सकता है...
दिमाग से पैसा बनाया जा सकता है और ताक़त को झुकाया भी जा सकता है...
देख लेना आज मैं राजा साहब को अपने दिमाग़ का कायल ना बनाया तो कहना....
तभी एक नौकर भीमा के कान में कुछ कहता है तो भीमा सबसे कहता है - राजा साहब अभी पांच मिनट में पहुंच रहे हैं l आप लोग अपना हालत ठीक कर लें l
यह सुनते ही मिश्र को छोड़ सब भाग कर बाथरूम में अपना हालत सुधार कर कमरे में पहुंचते हैं l
भैरव सिंह अपना भाई पिनाक, विक्रम
व वीर के साथ अंदर आता है l
शुभ संध्या राजा साहब कह कर हाथ जोड़ कर मिश्र कहता है l ज़वाब में भैरव - लगता है दावत का सही लुफ्त आपने ही उठाया है...
मिश्र - राजा साहब आपके महल का खाना वाह क्या कहना.... उस पर यह शराब और कबाब.... म्म्म्म्म्म् वाह...
भैरव सिंह - शराब व कबाब के साथ जो मिसीं है वह है सबाब....
चलिए उससे भी मिल लीजिए....aaa
इतना सुनते ही मिश्र की आंखे चौड़ी हो जाती है... हवश के मारे आँखे और भी लाल हो जाती हैं l भैरव सिंह सबको अपने पीछे आने को कहता है
सब एक बालकनी में पहुंचते हैं l सब देखते हैं कि बालकनी के नीचे एक बड़ा सा स्वीमिंग पूल है l कुछ देर बाद नीचे एक किनारे भीमा एक आदमी को लाकर एक चेयर पर बिठाता है l उस आदमी के चेयर पर बैठते ही वहीँ पर मरघट की शांति छा जाती है... I क्यूंकि ऐसा दिख रहा था जैसे वह आदमी बहुत दिनों से टॉर्चर हो रहा है l उसके बाल जैसे खींचे गए हैं और जहाँ से उसके
सर से जहां जहां बाल उखड़ गए हैं वहाँ पर खुन बह कर जम गया है और उसके सारे हाथ व पैरों की उँगलियों से नाखुन खींचे गए हैं ऐसा दिख रहा है, और आदमी आधी बेहोश जैसे चेयर पर बैठा है
मिश्र की नशा अब काफूर हो चुकी थी, हिम्मत करके पूछता है - यह क्या है राजा साहब और यह कौन है....
पिनाक कहता है - मिश्र जी यह है आखेट l अभी तो शुरू हुआ है आगे आगे देखिये होता क्या है...
तभी दूसरे किनारे पर दूसरा नौकर एक नंगी मगर खूबसूरत औरत को लाकर फेंक देता है l वह औरत शायद नशे की हालत में है l कोई होश नहीं है जैसे, वह स्वीमिंग पूल के दूसरे किनारे पर वैसे ही पड़ी हुई है l तभी वह घायल आदमी चिल्लाने की कोशिश करता है - विजया....
पर उस औरत पर कोई असर नहीं पड़ा वह वैसे ही वहीँ पड़ी रही l भैरव सिंह उस दूसरे नौकर को इशारा करता है तो वह नौकर स्वीमिंग पूल से थोड़ी दूर हट जाता है और एक दीवार के पास आकर कोई स्वीच दबाता है l दो लोहे की बड़ी बड़ी गेट नुमा दीवार सरक कर बाहर स्वीमिंग पूल तक आती हैं और नीचे पड़ी हुई औरत के दोनों तरफ खड़ी हो जाती हैं l इतना देख कर मिश्र पसीने से डूब चुका था वह पीछे हटने लगता है पर वह पीछे वीर से टकरा जाता है l वीर उसके कंधे पर हाथ रख कर जबरदस्ती बालकनी पर मिश्र को अपने साथ खड़ा रखता है l
तभी मिश्र देखता है कि जिस दीवार से वह दो लोहे की गेट निकलीं थी वही एक छोटा सा दरवाजा खुल जाता है l थोड़ी देर बाद दो लकड़बग्घे आ जाते हैं यह देखकर दो लोग चिल्लाते हैं पहला मिश्र-आ.... और दूसरा स्वीमिंग पूल के दूसरे किनारे पर बदहवास बैठा वह आदमी - विजया....
पर तब तक वह लकड़बग्घे उस बेहोश पड़ी औरत पर झपटते हैं, एक लकड़बग्घा उस औरत की जांघ पर जबड़ा लगाता है तो औरत को होश आती है तो वह चिल्लाती है - प्रवीण...

तभी दूसरा लकड़बग्घा उस औरत की पेट फाड़ देता है इस बार औरत चिल्ला नहीं पाती छटपटाती रहती है, पर दूसरे किनारे पर बैठे आदमी से रहा नहीं जाता और स्विमिंग पुल में छलांग लगा कर तैर कर उस औरत वाली किनारे की जाता है l किनारे पर पहुंच कर स्विमिंग पुल से निकलने कोशिश कर ही रहा था कि एक बड़े से मगरमच्छ के जबड़े में उसका कमर आ जाता है और वह मगरमच्छ के साथ पानी में गिर जाता है l यह देखकर बालकनी में मिश्र फर्श पर गिर जाता है...
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Nevil singh

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सुधांशु मिश्र धीरे धीरे अपनी आँखे खोलता है l चेहरा भिगा हुआ उसे मेहसूस हो रहा है, नजर उठा कर देखता है तो देखा कि भीमा उसे टवेल दे रहा है l मिश्र जो हुआ उसे समझने की कोशिश करता है कि जो वह देखा सपना था या सच...
वह अपना नजर घुमा कर देखता है राजा साहब अपने कुर्सी पर बैठे हुए बालकनी के बाहर देख रहे हैं, उनके चेहरे पर कोई भाव ही नहीं है l बाकी सारे लोग उसकी तरफ देख ऐसे रहे हैं जैसे उसने रंग में भंग डाल दिया l वह झटपट उठ कर बालकनी से नीचे झांकता है तो पाता है कि स्वीमिंग पुल का पानी लाल दिख रहा है और स्विमिंग पुल के दूसरी तरफ का फर्श भी लाल ही लाल दिख रहा है l मिश्र के चेहरे पर डर और पसीने के साथ साथ उभर आते हैं l वह भैरव सिंह के तरफ देखता है पर भैरव सिंह निर्विकार हो कर बालकनी के नीचे देख रहा होता है l
मिश्र चिल्लाता है - यह.... यह क... क्या था...
विक्रम - यही तो था हमारा आखेट....
मिश्र - आ आ आखेट...?
वीर - हाँ रे आखेट, साला बेहोश हो कर सारा मज़ा किरकिरा कर दिआ....
मिश्र - म.....म मुझे जाने दीजिए प्लीज...
पिनाक - यशपुर में आपका स्वागत है नये BDO साहब.... यहाँ आना इंसीडेंट या एक्सीडेंट हो सकता है पर यहाँ से जाना राजा साहब की मर्जी से होता है...
मिश्र -(हाथ जोड़ कर घुटनों पर बैठ कर) राजा साहब मैं अपनी औकात भूल कर गुस्ताख़ी कर बैठा मुझे माफ कर दीजिए मैं यशपुर छोड़ कर चला जाउंगा...
विक्रम यह सुन कर जोर जोर से हंसने लगा l उसकी हंसी मिश्र की जान निकाल रही थी l
विक्रम - यह समूचा स्टेट क्षेत्रपाल परिवार की मिल्कियत है, इस स्टेट का सिस्टम पानी है और हम इस पानी के मगरमच्छ......
पिनाक - तु जानना नहीं चाहता वह कौन था क्या था...
मिश्र - नहीं नहीं मुझे नहीं जानना...
वीर - फिर भी हम तुझे बताएंगे l तुने नभ वाणी न्यूस चैनल सुना है... यह उसका असिस्टैंट एडीटर था "प्रवीण कुमार रथ" l इसके रिपोर्टिंग से नभ वाणी के TRP आसमान छुते थे l
पिनाक - तो इसने सोचा क्षेत्रपाल के परिवार की करतूतों को दुनिया को दिखाएगा....
विक्रम - उसे मालुम नहीं था कि पुरा सिस्टम हमारी है... तो उसको हमारे सिस्टम के जरिए ही उसकी बीवी साथ उठा लाए..
वीर - उसके आँखों के सामने सबसे पहले हमने उसकी बीवी की बारी बारी से ऐसी कोई छेद नहीं जिसको हमने फाड़ा नहीं
विक्रम - और जब हमारे मन भर गया तो इन सभी ऑफिसरांन के हवाले इनके मन भरने उसकी बीवी को करदिया .... सबने जी भरके उसकी बीवी के चुत में अपना योगदान दिया पर इस इंस्पेक्टर का मन भरा ही नहीं क्यूँ बे....

वह इंस्पेक्टर शर्मा रहा था और बत्तीसी निकाल कर हंस रहा था
वीर - हा हा हा अबे बोल कितनी बार ली है
इंस्पेक्टर - (शर्माते हुए) जी ग्यारह बार...
वीर ताली मारते हुए - देखा फ़िर भी कमीने का मन नहीं भरा... हा हा हा
अब कड़कती आवाज़ गुंजी भैरव सिंह की - अब उनका दिन भर गया तो हमने आखेट के हवाले कर दिआ l जंगल में लकड़बग्घे और पानी में मगरमच्छ गजब के जानवर होते हैं हड्डीयां तक नहीं छोड़ते हैं..
अब महल में उनकी जगह खाली पड़ी है... अरे हाँ तेरी बीवी भुवनेश्वर DPS में फिजीक्स पढ़ाती है न ह्म्म्म्म....
मिश्र - नहीं राजा साहब नहीं मुझे बक्स दीजिए... (अपना जुता निकालता है) मैं अपना जुता अपने मुहँ पर मारता हूँ.. (खुद के चेहरे पर मारते हुए) मुझे पागल कुत्ते ने काटा था जो गुस्ताखी कर बैठा...(गिड़गिड़ाते हुए) मुझे कुछ नहीं चाहिए मैं अब बस आपके लिए काम करूंगा... (रोते हुए) मुझे माफ कर दीजिए राजा साहब...
भैरव - ह्म्म्म्म पहले अपना प्लान बताओ अगर पसंद आया तो तु यहाँ से जिंदा वापस जाएगा और अगर तेरी प्लान पसंद नहीं आया तो समझले तु जान से गया और जहान से गया...

मिश्र बड़ी मुश्किल से खुद को काबु किया फिर सबको प्लान बताने लगा l
भैरव - प्रधान तुम्हारा क्या राय है मुझे प्लान पसंद आया....
प्रधान - परफेक्ट.. बढ़िया है... हमारा टीम वर्क के आगे सारे एजेंसी फैल हो जाएंगे...

भैरव सिंह - बढ़िया फिर सुन बे चिरगोजे... जो तुझे दिआ जाए उसे आशीर्वाद समझ कर ले लेना l ज्यादा की कभी सोचना भी मत वरना उस रंग महल के पिंजरे में तु फड़फड़ाएगा और तेरी बीवी हम सबकी बिस्तर होगी और हम उसके चादर...
पिनाक - तो इसके साथ आज का कार्यक्रम समाप्त हुए l जाओ सब अपने अपने ठिकाने को जाओ l
यह सुनते ही सब ऐसे निकले जैसे गधे के सिर से सिंग l
भैरव सिंह- छोटे राजा पुरे स्टेट में ढूंढो किसकी हमारे खिलाफ खुजली हो रही है... रंग महल ऐसे खाली नहीं रहना चाहिए ...
पिनाक - जी राजा साहब
भैरव - युवराज आज आप रूप को लेकर भुवनेश्वर जाएंगे...

विक्रम - जी राजा साहब

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उधर भुवनेश्वर में रात को खाने के टेबल पर तापस - क्या बात है वकील साहिबा आज आपकी और वैदेही की मीटिंग कैसी रही...

प्रतिभा - कुछ नहीं आप कभी नभ वाणी न्यूस देखते हैं..
तापस - हाँ देखता था पर उसका एक न्यूज प्रेजेंटर प्रवीण न्यूस चैनल छोड़ दिया है तबसे उस चैनल की क्वालिटी उतनी रही नहीं इसलिए आज कल नहीं देख रहा हूँ....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म मुझे आज वैदेही के बातों से ऐसा लगा कि शायद प्रवीण क्षेत्रपाल के अहं का भेट चढ़ गया है...
तापस - व्हाट यह तुम किस बिना पर कह सकती हो
प्रतिभा - आज वैदेही ने कहा कि ढाई महीने पहले प्रवीण राजगड़ गया था... और गौर करो तब से वह गायब है... वैदेही कह रही थी उसका परिवार भी गायब है...
तापस - ह्म्म्म्म इसका मतलब वह सच में क्षेत्रपाल के अहं का शिकार हो गया है..
प्रतिभा - सुनिए आप इस केस को निजी तौर पर तहकीकात कीजिए ना..
तापस-देखिए मिसेज सेनापति जी मैं अब वुड बी रिटायर्ड जैल सुपरिटेंडेंट होने वाला हूँ l मुझे सिर्फ कैदियों का देख भाल आता है... यह तहकीकात...
प्रतिभा - नहीं करना चाहते हो बोल दीजिए ना.. बहाना क्यूँ बना रहे हैं... आप पहले थाने में ही ड्युटी करते थे यह मत भूलिए..
तापस-ऐ मेरी जानेमन
तुमको इस डिनर की कसम
रूठा ना करो रूठा ना करो...
तापस-चलिए आपके लिए मिसेज सेनापति जी हम पर्सनली इस केस की तह तक जाएंगे...
अब तो हंस दीजिए..
प्रतिभा मुस्करा देती है...


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अगली सुबह भुवनेश्वर xxx कॉलेज

कैम्पस में एक जगह कुछ लड़के बात कर रहे हैं I
ल 1- अब बोलो, कहा था ना मैंने ऑस्ट्रेलिया हॉकी जीतेगी l
ल 2- हाँ फ़िर भी साउथ अफ्रीका ने जबरदस्त टक्कर दी थी वह तो पेनल्टी शूट आउट में साउथ अफ्रीका चूक गई l
L3- अरे छोड़ो ना यार परसों इंडिया और पाकिस्तान का मैच है उस पर बैट लगाते हैं l
L1 - यू नो गयस रॉकी ऑलवेज करेक्ट... आइ एम डैम श्योर इंडिया ही जीतेगी l
L2- यह तो कोई भी कह सकता है... बैट लगानी है तो बोलो गोल कितने होंगे या कौन गोल करेगा l
L2- हाँ यह होती है बैट क्या कहते हो रॉकी...
रॉकी - ओके आज क्लास खतम होते ही हम बैट करेंगे
सभी - ठीक है
तभी सबकी नजर मैन गेट की तरफ जाती है l कुछ कारों का काफ़िला आ कर कॉलेज में रुकती है l सबसे बीच वाले कार में अध्यक्ष XXX युवा मोर्चा लिखा हुआ था l उस कार से विक्रम और वीर उतरते हैं l फ़िर रूप उतरती है l जैसे ही रूप उतरती है सभी लड़के चोर नजर से रूप को देख रहे हैं l उनमें रॉकी सामिल है l
रॉकी - वाव क्या आइटॉम है बाप.... पर यह वीर के साथ क्या कर रही है...
L3- यह इनकी बहन है रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल..
रॉकी - तुझे कैसे मालुम है बे राजू....
राजु - क्यूंकि कभी हम भी राजगड़ में रहते थे l आगे की पढ़ाई के लिए हमे गांव व घर बार छोड़ना पड़ा l
रॉकी - दोनों भाई अपनी बहन को लेकर अपनी कॉलेज में क्यूँ आए हैं... कहीं एडमिशन के लिए तो नहीं... अगर ऐसा हो जाए तो मजा आ जाएगा l
राजु - पता नहीं अगर तुम्हारी बात सच है तो भाई मैं तेरे गैंग से आउट...
रॉकी - क्यूँ बे फट्टु फट गई तेरी...
राजु - तु मेरी बात छोड़... तु अपना बता वीर के सामने तेरी चलती है क्या...
रॉकी - अपन थोड़े उससे डरता है..
राजु - रहने दे... रहने दे... यह क्षेत्रपाल परिवार क्या है तु अच्छी तरह से जानता है...
इनके सामने कोई आँखे उठाकर बात नहीं कर पाता है और उनके घर की बेटी से आँख लड़ेयेगा.. चल रहने दे

रॉकी - अबे वह तो बाद में देखा जाएगा पहले पता तो चले यह क्षेत्रपाल तिकड़ी यहाँ आई क्यूँ है......
कॉलेज प्रिन्सिपल के चैम्बर में
प्रिन्सिपल खड़ा हुआ है और तीनों भाई बहन उसके सामने बैठे हुए हैं
वीर कहता है - राजा साहब ने बता दिआ होगा... इसलिए एडमिशन की फर्मोंलिटि पूरी कर इन्हें सीधे क्लास तक एस्कॉट करते हुए ले जाओ और हाँ तुरंत सबको ख़बर हो जानी चाहिए कि राजा साहब की बेटी, वीर की बहन इस कॉलेज में पढ़ रही हैं l सब उसके साथ अदब से पेश आयें... बाकी कहने की कोई जरूरत नहीं समझे..
प्रिन्सिपल - जी जी
विक्रम व वीर उठते हैं l
विक्रम - रूप आपके लिए एक गाड़ी व ड्राइवर छोड़े जा रहे हैं l अब से वह कार आपकी है... हर रोज ड्राइवर आपको लाएगा और ले जाएगा l
रूप - जी युवराज

वीर - जाओ और अपना क्लास एंजॉय करो
प्रिन्सिपल - आइए राज कुमारी जी मैं आपको आपके क्लास तक पहुंचाता हूँ...

रूप - जी सर
रूप प्रिन्सिपल के साथ क्लास चली जाती है और विक्रम व वीर भी अपने गाड़ी से बाहर चले जाते हैं l
प्रिन्सिपल को बीच रास्ते में रोक कर रूप कहती है - सर
प्रिन्सिपल - जी राज कुमारी जी
रूप - देखिए सर पहली बात आप मुझे राजकुमारी ना कहें और मेरी असली परिचय किसी को ना बताएं l
प्रिन्सिपल - यह कैसे हो सकता है राज कुमारी जी... अगर राज कुमार जी को मालुम पड़ा तो हम कहीं के नहीं रहेंगे...
रूप - अगर आपने मेरी बात नहीं मानी तो मैं राजा साहब से सीधे आपके खिलाफ शिकायत करूंगी l
प्रिन्सिपल - नहीं नहीं ऐसा न कहिए... क्या करूँ एक तरफ खाई है दूसरी तरफ कुआं..
रूप - देखिए सर राजकुमार कभी कभी कॉलेज आते हैं... इसलिए उन्हें मैं सम्भाल लुंगी, बस आप मेरी बात मान कर मेरा साथ दीजिए...
आप मेरा परिचय नंदिनी कहकर दीजिएगा... कहीं पर भी आप मेरी पारिवारिक परिचय मत दीजियेगा... और हाँ आप भी मुझे राज कुमारी मत बुलाएंगे...
प्रिन्सिपल - ठीक है.. अब आपके हवाले मैं और मेरा परिवार है...

रूप - चलिए सर आपकी सुरक्षा मेरी जिम्मेवारी है.......

प्रिन्सिपल रूप को लेकर BSc फर्स्ट ईयर के क्लास में पहुंचा और पढ़ा रहे लेक्चरर व सारे स्टूडेंट्स से रूप का परिचय कराते हुए - गुड मॉर्निंग बच्चों...

सबने कहा - गुड मॉर्निंग..
प्रिन्सिपल - यह हैं रु... मेरा मतलब है नंदिनी सिंह... आपकी नई दोस्त व सहपाठी..
और मिस नंदिनी जी यह आपकी क्लास...
इतना कह कर प्रिन्सिपल वहाँ से जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी से निकल गया l
फिर लेक्चरर ने नंदिनी को बैठ जाने को कहा l नंदिनी बीच के रो में एक लड़की के पास बैठ गई l
लड़की - हाय मैं बनानी महांती..
नंदिनी - मैं नंदिनी सिंह...
बनानी - ऐसे मिड सेशन में कैसे जॉइन किया तुमने...
नंदिनी - एक्चुआली मैं बीमार थी इसलिए शुरू में जॉइन नहीं हो पाई थी पर जब हेल्थ ठीक है तो जॉइन कर ली
लेक्चरर - साईलेंस प्लीज...
दोनों चुप हो गए और नंदिनी यादों में खो गई
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घर में शुभ्रा और रूप आज सुबह सुबह बातेँ कर रही हैं
शुभ्रा-क्या बात है रूप..
रूप - भाभी मैं क्षेत्रपाल सरनेम से यहां किसीसे पहचान या दोस्ती नहीं करना चाहती...
शुभ्रा - ऐसे कैसे हो सकता है... मत भूल कॉलेज में वीर भी है और यह सरनेम तुझे कॉलेज के लोफरों से भी बचाएगी...
रूप - नहीं भाभी मैं इस सरनेम के बगैर इस दुनिया का अनुभव लेना चाहती हूँ चाहे अच्छी हो या बुरी...
शुभ्रा - देखो रूप तु फ़िर से सोच ले...
रूप - भाभी मुझसे क्षेत्रपाल सरनेम जुड़ा रहा तो कोई मुझसे दोस्ती नहीं करेगा अगर यह सरनेम नहीं रहा तो मुझे दोस्त जरूर मील जाएंगे..
शुभ्रा - ठीक है कोशिश कर के देख ले... और शाम को घर आकर बताना क्या हुआ...
तभी क्लास खतम होने की बेल बजती है और रूप अतीत से बाहर आती है l
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
उधर प्रतिभा और तापस चलते हुए जैल की और जा रहे हैं l प्रतिभा साड़ी में थी और तापस अपने जैल सुपरिटेंड के वर्दी में l दोनों सेंट्रल जैल के मुख्य द्वार पर आ पहुँचे l तापस संत्री से प्रवेश द्वार खोलने के लिए कहता है l संत्री चाबी लेने पास के की स्टैंड तक जाता है l इतने में
प्रतिभा - और कितनी देर लगेगी
तापस- जी देवीजी बस उतनी ही देर जितनी मुझे रोज ऑफिस जाते वक़्त लगता है...
प्रतिभा - (अपनी मुहँ को सिकुड़ते हुए) हो गया
तापस - जी बिल्कुल हो गया...
संत्री द्वार खोल देता है l तापस संत्री से विजिटर रजिस्टर लाने को कहता है l संत्री रजिस्टर लता है प्रतिभा उसमें अपना दस्तखत कर कारण लिख देती है l तापस संत्री से कहता है - इन्हें मीटिंग रूम में पहुंचा दो और कैदी नंबर छह सौ आठ से मिलवा दो......
संत्री साल्युट मार कर प्रतिभा को अपने साथ ले कर मीटिंग रूम में इंतजार करने को कहा l
थोड़ी देर वाद एक कैदी उस कमरे में आता है प्रतिभा उसे देख कर बहुत खुश हो जाती है और पूछती है - कैसा है प्रताप...
प्रताप - सच कहूँ तो सुबह से आपको ही याद कर रहा था l
प्रतिभा - चल चल झूट मत बोल.... तुझे आज वैदेही की भेजी रखी कि इंतजार था....
प्रताप - पर रखी आपके सिवा लाएगा ही कौन....
प्रतिभा - इसी बहाने तुझसे मिलने भी तो आ जाती हूँ...
प्रताप - आपका आना भी मेरे लिए किसी पर्व से कम है क्या.....
प्रतिभा - बाप रे कितना बोलने लग गया है तु....
प्रताप - सब आपकी महिमा है मैया..
प्रतिभा - अब तु भी मुझे उनकी तरह छेड़ने लगा.....
प्रताप- अरे माँ दस बाई आठ के कमरे से जब भी बाहर निकल कर आपके सामने आता हूँ तो जी करता है आपसे मन भरने तक बात करूँ....
प्रतिभा - तो फिर मेरे बच्चे ढाई महीने बाद रिहा हो कर मेरे पास ही क्यूँ नहीं रुक जाता...
प्रताप का चेहरा थोड़ा उदास हो जाता है - माँ मुझ पर रिश्तों की कर्ज व बोझ है.... जब तक मैं उन सबको निभा कर कर्ज़ मुक्त नहीं हो जाता तब तक मुझसे कोई वादा मत माँगों.... प्लीज...
प्रतिभा - ठीक है बेटा इस माहौल को ग़मगीन मत करो चलो यह राखी पहन लो...
प्रताप अपना हाथ बढ़ा देता है तो राखी प्रतिभा बांधती है
प्रताप - बुरा लगा....
प्रतिभा - नहीं...
प्रताप - माँ मैं पहले भी कह चुका हूँ... आज फिर से कह रहा हूं... मेरा मक़सद पुरा होते ही मैं पुरी तरह से आपका हो जाऊँगा...

प्रतिभा - (राखी बांधने के बाद) मैं जानती हूँ पर दिल थोड़े मानता भी तो नहीं....अच्छा यह बता वह तेरे साथ कैसे हैं....
प्रताप- तुम प्यार जताते थकती नहीं हो और वह जुड़ाव, लगाव रखते बहुत हैं मगर जताते या दिखाते नहीं हैं..
दोनों हंस पड़ते हैं l प्रतिभा थोड़ी गम्भीर हो जाती है और प्रताप के चेहरे को दोनों हाथों से झुका कर माथे को चूमती है l
प्रतिभा - अच्छा बेटा चलती हूँ... अपना खयाल रखना....
प्रताप - आप भी अपना और अपने उनका खयाल रखियेगा...
इतना कहकर प्रताप अंदर चला जाता है l उसके जाते ही प्रतिभा कमरे से बाहर निकालती है l दरवाजे से थोड़ी दूर आ कर रुक जाती है और बिना पीछे मुड़े पीछे की ओर कहती है - छुपकर सुनने से अच्छा होता कि आप भी हम माँ बेटे के साथ थोड़ा वक़्त बिताते और दो बातेँ भी कर लेते....
दरवाजे के ओट में छिपा तापस बाहर निकलता है और कहता है - दरअसल मेरा पेन यहाँ गिर गया था... वह ढूंढ कर निकाल रहा था कि तुम बाहर निकल आई....
प्रतिभा - हो गया....
तापस - हाँ हो गया देवी जी हो गया...
प्रतिभा - तो चलिए मुझे बाहर तक छोड़ दीजिए...
तापस- चलिए...

XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
उधर तीसरा क्लास खतम होते ही लंच ब्रेक की बेल बजती है

बनानी - अच्छा नंदिनी क्यूँ ना अभी हम कैन्टीन चलें..

नंदिनी - हाँ हाँ चलो चलते हैं...
फिर दोनों क्लास से निकल कर कैन्टीन चल देते हैं l
कैन्टीन में रॉकी अपने ग्रुप के साथ बैठा हुआ था l जैसे नंदिनी कैन्टीन में आती है वैसे ही सबकी नजर उसकी तरफ घुम जाती है l नंदिनी व बनानी दोनों जा कर एक टेबल पर बैठ जाते हैं l तभी रॉकी अपने जगह से उठता है और नंदिनी के तरफ आकर पूछता है - न्यू जॉइनींग
नंदिनी - येस...
रॉकी- आपका नाम जान सकता हूँ..
नंदिनी - क्यूँ नहीं.... मेरा नाम नंदिनी सिंह है..
रॉकी - (हाथ बढ़ाता है) हाय मैं राकेश पाढ़ी और दोस्त सभी मुझे रॉकी कहते हैं...
नंदिनी - (उससे हाथ मिलती है) ओके रॉकी..
हाथ मिलाते ही रॉकी शुन हो जाता है और नंदिनी की हाथ को वैसे ही पकड़े रहता है l नंदिनी अपनी हाथ छुड़ा कर पूछती है - ओ हैलो क्या हुआ..
रॉकी - क क कुछ नहीं अच्छा तुम कौन से स्ट्रीम में हो
नंदिनी - साइंस....
रॉकी - ओह मैं कॉमर्स फाइनल ईयर... अच्छा नंदिनी बाद में मिलते... हैं..

नंदिनी - ओके श्योर...
रॉकी नंदिनी को देखते हुए अपने पट्ठो के पास वापस जा रहा होता है,के तभी प्रिन्सिपल ऑफिस के पीओन आ कर नंदिनी को पूछता है - क्या आप मिस नंदिनी हैं....
नंदिनी - जी मैं ही हूँ...
पीओन - आपको प्रिन्सिपल जी ने बुलाया है...
नंदिनी - अच्छा बनानी मैं प्रिन्सिपल सर से मिलकर आती हूँ..

बनानी - ओके तो फ़िर हम क्लास में मिलते हैं...
उधर रॉकी अपने पट्ठों के साथ बैठा हुआ है और अपने हाथ को देख रहा है l
एक बंदा पूछता है - क्या बात है रॉकी अपने हाथ को ऐसे क्या घुर रहे हो...
रॉकी - अबे क्या बताऊँ यार कितने नरम हाथ थे उस नंदिनी के.... साला लंड अकेला नहीं खड़ा हो रहा है साला साथ साथ मैं रोयां रोयां भी खड़े हो गए...
सारे बंदे रॉकी को ऐसे घूरते हैं जैसे कोई बम फोड़ दिआ हो l
उधर प्रिन्सिपल के रूम में
प्रिन्सिपल - देखिए नंदिनी जी अपने जैसा कहा मैंने वैसा किया है पर आपके ID कार्ड में नाम तो पुरा और सही लिखना पड़ेगा...
नंदिनी - सर आपने मुझे इतना फेवर किया है तो एक छोटा सा और कर दीजिए...
प्रिन्सिपल - (अपने जेब से रुमाल निकाल कर अपना चेहरा पोछता है) देखा आपने ऐसी रूम में भी कितना पसीना निकल रहा है.... अगर आपके भाईयों को जरा सा भी भान हुआ तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा (कहकर हाथ जोड़ देता है)
नंदिनी - अरे अरे सर यह आप क्या कर रहे हैं.... सर आप पर कुछ नहीं आएगा... यह मेरा वादा है...
प्रिन्सिपल - ठीक है बताइए...
नंदिनी - मुझे आप दो ID कार्ड इशू कीजिए.... एक मेरी असली पहचान की और दुसरी वह जिसे मैं अपनी पहचान बनाना चाहती हूँ...
प्रिन्सिपल - ठीक है कॉलेज खतम होते ही ऑफिस से ले लीजियेगा... और इतनी कृपा बनाए रखियेगा के मेरे ऑफिस में जितना हो सके उतना कम आइयेगा... (कह कर वह अपने कुर्सी से उठ खड़ा होता है और हाथ जोड़ देता है)
नंदिनी को थोड़ा बुरा लगता है और बिना पीछे मुड़े अपनों क्लास के तरफ निकल जाती है...
उधर कैन्टीन में रॉकी को वही बंदा पूछता है - अबे मरवायेगा क्या.... सुबह राजु ने उसके बारे में तुझे बताया तो था....
रॉकी - हाँ तो क्या हुआ अबे तूने देखा नहीं उसने मुझसे हाथ भी मिलाया और फिर से मिलने की बात पर हाँ भी कहा....
समझा कर आशीष..
आशीष - फ़िर भी एक मुलाकात मैं इतना आगे मत बढ़... अगर कहीं लेने के देने पड़ जाएं...
रॉकी थोड़ी देर सोचता है और अपने पास बैठे सारे दोस्तों को देखता है, वहाँ राजु नहीं था, फिर मन में कुछ सोचता है और सबसे पूछता है- सुनो बे चड्डी बड्डी कमीनों क्या करना है आईडीआ दो सालों...
आशीष - देख बे सुबह राजु ने खाली क़िताब का कवर दिखाया है पर मेरा मान कुछ टाइम ले थोड़ा अवजरभ कर कम से कम एक हफ्ते के लिए.... फिर मिलकर सोचते हैं क्या किया जाए....
रॉकी - चलो तुम लोगों की बात मान लेता हूँ.... छोकरी की कुंडली इतिहास व भूगोल के बारे में सब पता लगाता हूँ....
पर कमीनों किसी महापुरुष ने कहा था की इतिहास गवाह है इंसान या तो बेहिसाब दौलत के लिए या फिर बेहद खूबसूरत लड़की के लिए... अपनी जान की बाजी लगा देता है...और राजू की बताई डिटेल्स अगर सही है तो यह जितनी खूबसूरत है इसके बाप के पास उतनी ही ज्यादा दौलत है...तो अबसे "मिशन नंदिनी" शुरू और ऐसे समय में बड़े बड़े कमीने कह गये हैं नो रिस्क नो गैन....
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Nevil singh

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एक आलीशान बंगलों में एक बड़ी सी गाड़ी आती है l एक आदमी शूट बूट पहने उतरता है l वह उस बंगले में लगे नाम का फलक देखता है जिसमें लिखा है *THE HELL" वह आदमी एक गहरी सांस छोड़ता है और वहाँ खड़े एक गार्ड से पूछता है - युवराज विक्रम सिंह क्षेत्रपाल जी हैं....
गार्ड - हाँ हैँ अपने जीम में व्यस्त हैं....
आदमी - जीम कहाँ पर है....
गार्ड हाथ उठाकर एक तरफ दिखाता है l वह आदमी तेजी से जीम के तरफ भागता हुआ जाता है l
जैसे ही वह जीम के भीतर आता है तो देखता है विक्रम सिंह एक पंच बैग पर किक बॉक्सिंग प्रेक्टिस कर रहा है l पास एक कुर्सी पर वीर बैठकर जूस पी रहा है l और कुछ दूर दस से बारह गार्ड्स खड़े हुए हैं l
उस आदमी को देखते ही वीर - अरे क्या बात है.... कंस्ट्रक्शन किंग्स KK... यहाँ कैसे आना हुआ....
KK - वह युवराज जी से काम है...
विक्रम - क्या काम है....
KK- वह कुछ दिन हुए हैं... एक गुंडा मुझे.... परेशान कर रहा है...
विक्रम - क्या कर रहा है...?
KK- रेत की ख़ुदाई की टेंडर इस बार ना डालने के लिए दबाव बना रहा था.... मैंने सोचा कि मैं उससे निपट लूँगा... पर लगता है वह किसी की संरक्षण में ऐसा कर रहा है... क्यूंकि अब NH Bybass टेंडर भी ना डालने को बोल रहा है...
मैंने उसे आपके बारे में आगाह किया था... पर उसने उल्टा आपको देख लेने की....
इतना ही कहा था KK विक्रम के पंच व किकस में तेजी और ताकत बढ़ गया l
विक्रम - और कुछ....
KK - हाँ अगर मैंने इसबार टेंडर की प्रक्रिया में हिस्सा लिया तो वह मेरी बेटी को उठा लेगा... ऐसा बोला...
विक्रम - तुम क्या चाहते हो...
KK - मैं तो आपका सेवक हूँ... मैं क्या चाह सकता हूँ...(दोनों हाथ जोड़ कर) मेरी बिजनैस आपकी कृपा छाया में फल फुल रहा है.... मैं जानता हूँ यह सब आइकॉन ग्रुप्स वालों की है जो ओड़िशा में आपके पैरालल ताकत बनने की कोशिश में हैं...
विक्रम अब अपनी पुरी ताकत से पंच मारता है l अब वह गार्ड्स से टवेल ले कर अपना चेहरा साफ करता है और पास पड़ी एक कुर्सी पर बैठता है और KK को पूछता है - भोषड़ी के मैंने पूछा तू क्या चाहता है...
KK - थूक निगल कर युवराज जी आप मुझे इस मुसीबत से निकाल दीजिए...... बदले में आप मुझसे कुछ भी मांग लीजिए...
विक्रम गुस्से से कुर्सी से उठता है और KK को अपने हाथ से एक धक्का लगाता है, पास पड़े एक बड़े से आर्म चेयर में KK गिरता है l विक्रम अपना दाहिना पैर उठा का सीधे KK के टट्टों पर रख देता है l KK की आंखें दर्द से बड़ी हो जाती हैं l
विक्रम - पहली बात जो पूछा जाए उसका जबाव दे..... (KK के टट्टों पर दबाव और बढ़ाता है, KK चिल्ला नहीं रहा है,पर असहनीय दर्द चेहरे पर झलकता है) भोषड़ी के हम क्षेत्रपाल हैं.... जिस क्षेत्र में पाँव रख दें वह क्षेत्र हमारा हो जाता है....... हम पैसों के लिए नहीं अपनी अहंकार के लिए जीते हैं... और हम इसके बदले सरकार व लोगों से टैक्स लेते हैं...... (गोटियों पर दबाव बढ़ाते हुए) हमारा हाथ कभी आसमान नहीं देखता है.... हमारा हाथ हमेशा ज़मीन की और देखता है....

हम किसीसे मांगते नहीं है..... हम या तो दे देते हैं या फिर छीन लेते हैं.....
साले दो टके का इंसान मुझे मांगने को बोल रहा है....

KK - (दर्द से कराहते हुए) गलती हो गई युवराज..... माफ़ कर दीजिए.....
विक्रम अपना पैर उठा देता है और पास खड़े एक गार्ड को - ऐ जूस पीला रे इसको....
गार्ड तुरंत KK को जूस बढ़ाता है पर KK मना कर देता है l हाथ जोड़ कर विक्रम को देखता है l विक्रम पूछता है - क्या नाम था उस गुंडे का....
KK- सुरा....

विक्रम एक गार्ड को इशारा करता है तो वह गार्ड भागते हुए पंच बैग तक जाता है और पंच बैग का जिप खोल देता है l KK की आँखे हैरानी से चौड़ी हो जाती है l पंच बैग के अंदर एक अधमरा आदमी गिरता है l
KK- ये... य... यह तो सुरा है....
वीर - हाँ तो.... तू क्षेत्रपाल के राज में क्षेत्रपाल के शरण में है... बच्चा तुझ पर कैसे कोई आपदा आ सकती है...
क्यूँकी क्षेत्रपाल के भक्तों के लिए युवराज सदैव आपदा प्रबंधन का भार सम्भाले हुए रहते हैं....
KK - मुझे माफ कर दीजिए... थोड़ा डर गया था...
विक्रम - लोग डर के मारे औकात भूल जाते हैं यह पहली बार देखा....
KK - सॉरी अब आप हुकुम कीजिए....

वीर - हाँ तो बारंग और आठगड़ रोड पर तेरा जो एकाम्र रिसॉर्ट है वह राजा साहब भैरव सिंह क्षेत्रपाल के नाम कर दे.....
KK - पर वह तो दो सौ करोड़ की है...
विक्रम उसे घूरता है
KK - ठीक है ठीक है मैं उसका कागजात बनवा देता हूँ...
अंदर उसी समय आते हुए पिनाक - और बहुत जल्द करना.... राजा साहब दो तीन दिन में भुवनेश्वर आने वाले हैं....
KK पिनाक को देखते ही सर झुका कर नमस्कार करता है और सबसे इजाज़त लेकर वहाँ से निकल जाता है....
विक्रम - कहिए छोटे राजा जी... कैसे आना हुआ
पिनाक - यह याद है ना रंग महल खाली रहे यह राजा साहब को पसंद नहीं
विक्रम एक गार्ड को इशारा करता है तो वह गार्ड एक फाइल को लाकर विक्रम के हाथ में देता है l विक्रम वह फाइल पिनाक के हाथ में देता है l पिनाक वह फाइल हाथ ले कर खोलता है तो उस में एक खूबसूरत लड़की की फोटो दिखती है l

पिनाक - यह कौन है.... यह इस सुरा की महबूबा है.... एक बी ग्रेड की मॉडल और म्यूजिक वीडियोज़ में कमर हिलाती है...
पिनाक - अच्छी है... चलो राजा साहब खुश हो जाएं बस..
वीर - (गार्ड्स को इशारा कर कहता है) अरे इसको देखो यह जिंदा है या नहीं...
गार्ड्स उसे चेक कर कहते हैं जिंदा है पर हालत बहुत खराब है.
विक्रम - इसे और इसकी महबूबा दोनों को राजगड़ पार्सल कर दो...
कुछ गार्ड्स सुरा को स्ट्रैचर पर डाल कर ले जाते हैं l उनके जाते ही एक गार्ड अंदर आकर वीर के कान कुछ कहता है l
वीर - (उस गार्ड को कहता है) जाओ बुलाओ उसे....
गार्ड बाहर जा कर एक लड़के को लेकर वापस आता है l वीर उसे एक चिट्ठी दे कर कहता है - जाओ ESS ऑफिस जाओ वहाँ पर तुम्हें भर्ती कर लेंगे...

वह लड़का यह सुन कर वीर के पैरों में गिर जाता है l वीर उसे दिलासा दे कर गार्ड के साथ भेज देता है l विक्रम और पिनाक उसे सवालिया दृष्टि से देखते हैं तो वह कहता है
वीर - वह हमारी पार्टी का एक कार्यकर्ता का बेटा है.... बिचारा अनाथ हो गया उसकी एक विधवा माँ है और एक छोटी बहन है.... इसलिए मैंने उसे नौकरी में लगा दिआ....

पिनाक - सच सच बोलो राज कुमार आपको किसी का डर है क्या...
वीर - क्या बात कर रहे हैं... मुझे किसका दर वह तो एक कार्यकर्ता था दिन रात पार्टी के सेवा में लगा हुआ था एक दिन अपना घर पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी बीवी मेरे साथ लगी हुई थी l बेचारा मुझे बहुत गाली दिआ... मुझे उसका दुख देखा नहीं गया..... तब उसने अपने आपको फांसी लगा ली... मेरा मतलब है कि मैंने उसके दुख को महसुस कर उसे पंखे से टांग कर मुक्ति दे दी...
पिनाक - ह्म्म्म्म मतलब उसकी बीवी बहुत कड़क है क्या....
वीर - मैं आपकी स्टेनो, सेक्रेटरी के बारे में कभी नहीं पूछा है....
पिनाक - वह पर्सनल है....
वीर - यह भी पर्सनल है और वह कोई रंग महल की नहीं.....
विक्रम - ठीक है... अब बहस बंद कीजिए....
दोनों चुप हो जाते हैं, फिर पिनाक कहता है - अच्छा मैं जाता हूँ पार्टी के काम से l

इतना कह कर पिनाक निकल जाता है और दोनों भाई घर के भीतर चले जाते हैं, और ड्रॉइंग रूम में आकर कुछ बात कर रहे होते हैं कि कॉलेज से नंदिनी घर के अंदर पहुंचती है तो पाती है ड्रॉइंग हॉल में विक्रम वीर के साथ बैठ कर कुछ डिस्कस कर रहा है l नंदिनी को देखते ही - कैसा रहा आज का पहला दिन...
नंदिनी - बहुत ही अच्छा... जैसा सोचा था उससे कहीं बेहतर...
वीर - अच्छा कोई दोस्त वोस्त बनाए की नहीं....?
नंदिनी उन दोनों को गौर से देखती है और फिर कहती है - क्षेत्रपाल परिवार से दोस्ती कौन कर सकता है युवराज जी.... सब हम से ऐसी दूरी बना रहे हैं जैसे समाज में लोग अछूतों से रखता है....
वीर - बहुत बढ़ीआ यह लोग बहुत छोटे व ओछे होते हैं... तभी तो प्रिन्सिपल से कहा कि आपका परिचय सिर्फ़ स्टूडेंट्स तक ही नहीं बल्कि सभी लेक्चरर को भी दे देने के लिए....
ताकि कोई अपना औकात ना भूले...
नंदिनी - जी राजकुमार जी... क्या अब मैं अंदर जाऊँ....
वीर - हाँ हाँ जाइए.... और पढ़ाई में ध्यान दे या ना दें आप पास तो आप हो ही जाएंगी... बस अपना एटिट्यूड बनाएं रखें....
नंदिनी - जी जरूर...
इतना कह कर नंदिनी घर के अंदर चली जाती है l
विक्रम - तुम्हें क्या लगता है राजकुमार... नंदिनी सच कह रही है..
वीर - वह झूठ क्यूँ बोलेगी... वैसे भी मैंने सुबह प्रिन्सिपल को अच्छे से समझा दिया है.....
विक्रम - हाँ वह तो है... फिर भी अपनी तसल्ली के लिए हर दस पंद्रह दिन में एक बार कॉलेज का चक्कर लगाते रहना...
वीर - जी युवराज...
नंदिनी शुभ्रा के रूम में आती है l शुभ्रा विस्तर पर बैठ कर कोई मैगाजिन पढ़ रही थी l शुभ्रा को देख कर खुशी से झूमती हुई नाचते हुए शुभ्रा के पास आती है
नंदिनी - आ हा आह भाभी क्या बताऊँ आज कॉलेज में कितना मजा आया...
शुभ्रा - वह तो तुझे देखते ही पता चल गया है.... अच्छा बता आज कॉलेज में क्या क्या हुआ...
नंदिनी आज कॉलेज में क्या क्या हुआ सब बता देती है l सब सुनने के बाद शुभ्रा - यह रॉकी कुछ ज्यादा ही तेज है
नंदिनी - हाँ अपनी गाड़ी बिना ब्रेक के दौड़ा रहा है...

शुभ्रा- नंदिनी के चेहरे को गौर से देखती है जैसे खुशी के मारे एक तेज नुर झलक रही थी l उसके गालों को हाथों में ले कर कहती है - रुप कितनी खुश है तु... पर ध्यान रखना अपना..... पहली बार तु सही मायनों में घर से बाहर निकली है.... बाहर की दुनिया जितनी अच्छी दिखती या लगती है... उतनी ही छलावे होती हैं....
नंदिनी - भाभी मैंने रुप बन कर जितना देखा देख लीआ.... आज नंदिनी बन कर देखा जिंदगी में रुप ने कितना कुछ खोया है...जितना नंदिनी ने एक दिन में पाया है..... और रही दुनिया की बात तो वह मुझे तोल ने दीजिए... और आप तो मेरे साथ हो ना मेरी सबसे अच्छी सहेली....
यह सुन कर शुभ्रा उसे गले से लगा लेती है l
इसी तरह पंद्रह दिन ऐसे ही गुजर जाते हैं l
जैल के ऑफिस में तापस अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ है तभी एक संत्री एक लेटर ला कर देता है l लेटर पढ़ते ही संत्री को कहता है - अरे जाओ उन्हें अंदर लाओ... कलसे तुम लोगों को उन्ही की ड्यूटी बजानी है...
संत्री तापस को सैल्यूट कर बाहर निकल जाता है और एक पचास वर्षीय आदमी के साथ अंदर आता है l
तापस उस आदमी को देख कर बहुत खुश होता है और उसे सैल्यूट करता है बदले में वह आदमी भी उसे सैल्यूट करता है और कहता है - जान निसार खान रिपोर्टिंग सर...
फ़िर सैल्यूट तोड़ कर दोनों एक दूसरे के गले मिलते हैं l
तापस-क्या बात है खान बहुत दिनों बाद मिले... कैसे हो मेरे दोस्त... आओ बैठो यार...

खान - हाँ बहुत दिनों बाद मिले तो है (बैठते हुए) पर यह क्या.... (हैरानी से) तुम अभी से VRS ले रहे हो...
तापस - अरे यार अब नौकरी में रह कर क्या करूंगा l पुस्तैनी घर और जमीन को कब तक किसी और के भरोसे देख भाल में छोड़ सकते हैं l
खान - क्या यार मुझसे भी छुपा रहा है... हाँ बताना नहीं चाहता तो बात अलग है....
तापस - देख... हम पति पत्नी बहुत कमाया है पर हमारी कमाई खाने वाला कोई है ही नहीं.....मैं इसलिए उब गया हूँ नौकरी बजाते बजाते... मुझसे अब आगे हो नहीं पाएगा दोस्त....
खान - यार सेनापति हम पुलिस ट्रेनिंग समय से दोस्त हैं.... और जितना मैं तुझे जानता था.... तु कभी इतना कमज़ोर तो नहीं था....
तापस- उम्र मेरे दोस्त उम्र... मैं और मेरी पत्नी जिसके लिए इतना कमाया वह हमारे जीवन से चला गया हमे बेसहारा कर.... अब घर और जीवन में हम पति पत्नी एक दुसरे के सहारा बने हुए हैं.... ना अब अपनी नौकरी खिंच पा रहा हूँ और ना ही प्रतिभा अपनी वकालत नामा....
खान - समझ सकता हूँ यार... सॉरी अगर दिल दुखा तो...
तापस - छोड़ यार.... अच्छा क्यूँ न तु एक राउंड ले ले मैं तब तक चार्ज हैंड ओवर फाइल तैयार कर लेता हूँ...
खान - (हंसते हुए) तुझे चार्ज हैंड ओवर करने की जल्दी पड़ी है...
तापस - अरे यार आज मैं जल्दी घर जाना चाहता हूँ.... इतने वर्षो बाद मुझे लगना चाहिए कि घर जैल सुपरिटेंडेंट नहीं जैल से छूट कर तापस सेनापति जा रहा है....
दोनों साथ हंसते हैं l तापस बेल बजता है तो उसका अर्दली आता है l तापस उसे कहता है - तुम्हारे नए साहब को राउंड पर ले जाओ....
खान - अच्छा मैं राउंड से आता हूँ..... फ़िर बात करते हैं....
खान और अर्दली बाहर निकल जाते हैं और तापस फाइल बनाने में लग जाता है l
उधर कॉलेज की कैन्टीन में नंदिता अपनी कुछ दोस्तों के साथ बैठी थी l अब उसके सिर्फ बनानी ही नहीं बल्कि और तीन दोस्त बन चुके हैं l सारे के सारे कैन्टीन में मजे से बात कर रहे हैं l कैन्टीन में जितने भी लड़के थे सब बड़ी आशा भरी नजर से नंदिता को देख रहे हैं कि कास इस हसीना की नजरें इनायत हो जाए l तभी वीर कैन्टीन आता है जिसे देख कर जितने भी स्टूडेंट्स थे सभी धीरे धीरे खिसक गए, नंदिता के दोस्त भी l वीर आकर सीधे नंदिता के सामने बैठता है और पूछता है - कहिए राज कुमारी जी पढ़ाई कैसी चल रही है l
नंदिता - अच्छी चल रही है...
वीर - ह्म्म्म्म कुछ दोस्त बनालिए हैं तुमने l
नंदिता - सिर्फ़ चार दोस्त वह भी मैंने बनाएं हैं l वरना मुझसे दोस्ती कोई कर ही नहीं रहा है यहां पर l
वीर - हाँ तो दोस्त बनाने की जरूरत ही क्या है...आप अपनी पढ़ाई एंजॉय करो...
नंदिता - सुबह नौ बजे से दो पहर तीन बजे तक अकेले.... छह घंटे तक अकेले किसी से बात ना करूँ सिर्फ लेक्चर सुनूँ या लाइब्रेरी में बैठूं...
वीर - अच्छा चलो ठीक है... पर दोस्ती इतनी रखो की तुम्हें कोई अपने घर ना बुलाए....
नंदिता - जी...
वीर - ह्म्म्म्म अच्छा कोई लड़का तुमसे दोस्ती नहीं की है अब तक....
नंदिता - किसी में इतनी हिम्मत नहीं है कि कोई मुझसे दोस्ती करे... बात करने से ही कन्नी काट कर निकल जाते हैं...
वीर - (अपनी भौवें उठा कर) क्यूँ तुम्हें लड़कों से बात करने की क्यूँ जरूरत पड़ रही है....
नंदिता - जरूरत.... कैन्टीन में, लाइब्रेरी में या क्लास में किसी को अगर साइड देने को कहते ही ऐसे गायब होते हैं जैसे गधे के सिर से सिंग...
वीर - हा हा हा हा... अच्छी बात है... अच्छा मैं चलता हूँ... कोई तकलीफ़ हो तो मुझे फोन कर देना...
इतना कह कर वीर चला जाता है l वैसे कॉलेज में सबको यह मालुम था कि यह लड़की ज़रूर खास है जिसे विक्रम सिंह क्षेत्रपाल व वीर सिंह क्षेत्रपाल छोड़ने आए थे l बहुतों ने कोशिस की पता लगाने की पर क्यूंकि नंदिता ने प्रिन्सिपल के ज़रिए सेट कर दिया था इसलिए किसको ज्यादा कुछ पता लगा नहीं l वीर के जाने के बाद भी जब कैन्टीन में कोई नहीं आया तो नंदिता बिल दे कर क्लास की और निकल पड़ी l
उधर जैल के अंदर खान अर्दली के साथ राउंड ले रहा था l सारे बैरक घुम लेने के बाद स्किल डेवलपमेंट वर्क शॉप पहुंचा जहां सरकार द्वारा कैदी सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत क़ैदियों को काम सिखाया जाता है l खान ने देखा एक कैदी कुछ क़ैदियों को कारपेंटरी के बारे में सीखा रहा है l
खान - यह कौन है.. जगन..
अर्दली उर्फ़ जगन - साहब यह विश्वा है...
खान - कितने सालों से है...
जगन - सात सालों से... और दो महीने बाद रिहाई है उसकी...
खान - कैदी सुधार कार्यक्रम को बड़े अच्छे से निभा रहा है....
जगन - सर यह बहुत ही अच्छा आदमी है....
खान - क्या बात है... एक कैदी की इतनी तारीफ....
जगन - वैसी बात नहीं है सर... मैंने तो सच ही कहा है...
खान - अच्छा यह बताओ अर्दली को घर में होना चाहिए तुम यहाँ क्या कर रहे हो
जगन - वह सर उनके बेटे के देहांत के बाद सेनापति सर क्वार्टर में दो ही कमरे इस्तमाल करते हैं... उन्होंने कहा कि मैं उनके कुछ काम सिर्फ ऑफिस मैं ही कर दिआ करूँ......
खान - ह्म्म्म्म वैसे तुम्हारी नौकरी यहाँ पर कैसे लगी
जगन - मेरे पिता हेल्पर कांस्टेबल थे ड्यूटी के दौरान उनकी देहांत हुई तो कंपेसेसन के तहत सेनापति सर ने ही मुझे यहाँ लगवा दिया था और मुझसे कहा भी था के जाने से पहले मुझे हेल्पर कांस्टेबल बना कर ही जायेंगे....
खान - अगर सेनापति ने कहा है तो वह जरूर तुम्हारे लिए जरूर करेगा.... वैसे विश्वा की और क्या खासियत है....
जगन - सर विश्वा ने इसी जैल में रहकर अपना ग्रैजुएशन खतम किया और अपनी वकालत भी जैल में रहकर पुरी की है...
खान - क्या.... ह्म्म्म्म... इंट्रेस्टिंग... जैल में रह कर वकालत किया है...
जगन - अब क्या बताऊँ सर बस आदमी बहुत अच्छा है और सबकी मदत को हमेशा तैयार रहता है...
खान - इतना ही अच्छा है तो यहाँ चक्की पीसने आया क्यूँ... ह्म्म्म्म
जगन - किस्मत साहब किस्मत
खान - क्या मतलब है तुम्हारा....
जगन - सर अच्छे बर्ताव के लिए विश्वा का नाम सिफारिश किया जाने वाला था... जब विश्वा को मालुम हुआ तो सेनापति सर को ऐसा करने से मना कर दिया... सेनापति सर ने वज़ह पुछा तो विश्वा ने कहा कि उसे कानून से इंसाफ़ चाहिए ना रहम ना एहसान या हमदर्दी...
खान - ओह.... ह्म्म्म्म... अच्छा यह बताओ के यह तुम्हें कैसे मालूम हुआ जगन - एक बार सर जी के घर गया था तो उन्हें मैडम जी से कहते सुना था....
खान - अच्छा आपके सेनापति सर वक्त से पहले रिटायर्मेंट क्यूँ ले रहे हैं....
जगन -पता नहीं पर मुझे लगता है उसकी वजह भी विश्वा है सर....
खान का मुहँ खुला रह जाता है l जैसे जगन ने कोई बम फोड़ दिया हो l
खान - क.. का... क्या.....
जगन - जी सर विश्वा चूँकि दो महीने बाद जैल से छुट रहा है.... तो प्लान करके सेनापति सर रिटायर्मेंट ले रहे हैं... ऐसा मुझे लगता है..
खान - क्यूँ... मेरा मतलब.. आख़िर क्यूँ... विश्वा से क्या संबंध...
जगन - सेनापति सर बेवजह उससे लगाव नहीं रखे हैं...
खान सवालिया नजरों से देखता है
जगन - विश्वा ने जैल में एक बड़ा कांड होने से पहले सेनापति सर को आगाह किया था और फ़िर जब उससे भी बड़ा कांड हुआ तब सेनापति सर ही नहीं बहुत से पुलिस वालों की जान भी बचाया था... इसलिए विश्वा से उनका बहुत लगाव भी है और जुड़ाव भी...
खान आपनी आँखे सिकुड़ कर जगन को ऐसे देख रहा था, जैसे जगन कोई झूठ बोल रहा हो, पर जगन बिना कोई शिकन चेहरे पर लाए कहने लगा
जगन - सर आप जान कर हैरान रह जाएंगे विश्वा को सजा कराने वाली कोई और नहीं... बल्कि सेनापति सर की पत्नी ही थीं.. जिन्होंने विश्वा के खिलाफ़ मुकद्दमा लड़ा और उसे सजा दिलाई...
खान - अरे रुको यार... झटके पर झटके दिए जा रहे हो... एक दिन में इतना सब कुछ हज़म नहीं हो सकता है भाई...
चलो पहले सेनापति को रिलीव करते हैं...
फिर दोनों ऑफिस के तरफ चल पड़ते हैं l
उधर कॉलेज कैन्टीन में रॉकी आ पहुंचता है देखता है कैन्टीन पूरा खाली पड़ा है l तो वह वहाँ के एक वेटर से पूछता है - क्यूँ रे गोलू.. यह कैन्टीन ऐसे खाली खाली क्यूँ लग रहा है... अपना कोई बंदा भी नहीं दिख रहा है....
गोलू - रॉकी भाई... वह प्रेसिडेंट वीर सिंह जी आए थे... इसलिए सभी उठ कर चले गए..
रॉकी - अच्छा... वह क्यूँ आया था यहाँ...
गोलू - क्या पता क्यूँ आया था... वह बस उस नए लड़की से बात कर रहा था... एक बात बोलूँ भाई... वीर सिंह से बात करते सबकी फटती है.. पर क्या लड़की थी वह वीर सिंह के आंखों में आंखें डाल कर बात कर रही थी....
रॉकी - ह्म्म्म्म...
गोलू - मेरे को तो लगता है.... कि वह जरूर वीर सिंह की कोई आइटम होगी....
रॉकी - अबे मुहँ सम्भाल अपना... वीर सिंह की पहचान की है वह.... वीर उसे अपना बहन मानता है... समझा और हाँ यह राज अपने अंदर ही रख किसीको बोला... तो वीर सिंह तुझे बीच से फाड़ देगा...
गोलू अपना हाथ अपने मुहँ पर ले कर चुप रहने के लिए अपना सर हिलाता है l
रॉकी - कैन्टीन से बाहर आ कर सब दोस्तों को फोन पर कॉन्फ्रेंसिंग में लेकर कहता है - मेरे चड्डी बड्डी कमीनों... आज शाम हमारे होटल में मेरी प्राइवेट शूट में तुम सालों के लिए पार्टी है.. आ जाना....मिशन नंदिनी को ऑपरेट करना है...
इतना कह कर अपना फोन जेब में रखता है और अपनी गाड़ी से बाहर निकल जाता है l उधर जैसे ही क्लास में नंदिनी आती है सारे स्टूडेंट्स एक दम से चुप हो जाते हैं l नंदिनी देखती है बनानी के आखों में भी डर है l नंदिनी चुप चाप अपनी सीट पर बैठ जाती है l थोड़ी देर बाद एक लेक्चरर आता है और पढ़ाना शुरू करता है l नंदिनी इस बार देखती है कि लेक्चरर भी नजरें मिलने से कतरा रहा है l किसी तरह क्लास खतम होता है तो लेक्चरर के साथ सारे स्टूडेंट्स जल्दी जल्दी क्लास रूम से निकल जाते हैं l क्लास में नंदिनी अकेली बैठी हुई है, उसे बुरा भी लग रहा है, वह सर उठाकर अपनी चारों और देखती है और कुछ सोच में डुब जाती है, उधर रॉकी आज रात की पार्टी में अपने दोस्तों के साथ मिशन नंदिनी को कैसे आगे बढाए उस प्लान के बारे में सोच रहा है और जैल से तापस जा चुका है और उसकी कुर्सी पर अब खान बैठा हुआ है l चार्ज हैंड ओवर के बाद तापस तुरंत निकल गया l अब जगन ने खान के मन में क्युरोसिटी जगा दिया था कि सेनापति को एक कैदी से इतना जुड़ाव हो गया है कि उसकी रिहाई के चलते सेनापति अपनी नौकरी से VRS ले लिया है, और उसी कैदी को सज़ा भी सेनापति की बीवी ने करवाया था l
खान - या आल्हा पता लगाना पड़ेगा माजरा क्या है....
यह कह कर अपनी सोच में गुम हो जाता है
Kaatil update bhai
 
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