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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag

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क्या प्रताप नंदनी की लव स्टोरी बनेगी
बस बीज पड़ने वाली है l उसके बाद पौधा फिर बड़ा वृक्ष
टाइम लगेगा पर रुप इम्प्रेस जरूर होगी
 
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horny j

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Yes my friend
But for conversation with each other I think some special turns and twists may required.
What do you say...???
Ofcourse Tike excitement bi darkar meeting re, they must wonder about eachother more, falling for each other's ideology. That'll obviously make the story more and more interesting. Madi chala bro. Waiting for next dhmaka
 

Kala Nag

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Ofcourse Tike excitement bi darkar meeting re, they must wonder about eachother more, falling for each other's ideology. That'll obviously make the story more and more interesting. Madi chala bro. Waiting for next dhmaka
Thanks and Nishchaya
 

Kala Nag

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Super update hai Bhai
थैंक्स मेरे भाई
 
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Rajesh

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👉चौदहवां अपडेट
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पिनाक पर हुए हमले को एक दिन हो चुका है l सभी अखबार व सभी न्यूज चैनलों में इस हादसे को लेकर कॉलम लिखे गए हैं और डिबेट भी हो रहे हैं l
वीर गाड़ी चला रहा है कि उसका मोबाइल बजने लगता है l गाड़ी के डिस्प्ले में छोटे राजा जी का नाम दिखता है, वीर अपने स्टेयरिंग मैं फोन रिसीव स्विच ऑन करता है l
वीर - हैलो....
पिनाक - कहाँ हो राज कुमार जी....
वीर - जी ऑफिस जा रहा हूँ.....
पिनाक - आज शाम तक राजा साहब भुवनेश्वर पहुंच रहे हैं....
वीर - क्या.... पर क्यूँ... जो भी हुआ.... उसे युवराज जी सम्भाल लेंगे.... फिर इस बात का स्ट्रेस राजा साहब जी क्यूँ ले रहे हैं.....
पिनाक - पहले बात सुनो.... फ़िर उस पर अपना कोई मंतव्य रखो...
वीर - जी कहिए....
पिनाक - आज रात एकाम्र रिसॉर्ट का मालिकाना हक ट्रांसफ़र होगा.... KK सारे कागजात हमे सौंपेगा... इसलिए आज रात अगर तुम्हारा कोई कार्यक्रम हो तो उसे रद्द कर देना....
वीर - जी...
पिनाक - बहुत अच्छे.... (इतना कह कर पिनाक फोन काट देता है)
इतने में वीर की गाड़ी ESS दफ्तर के पार्किंग में पहुंच जाती है l वीर गाड़ी से उतर कर पास खड़े एक गार्ड को चाबी देता है l गार्ड सैल्यूट कर वीर से गाड़ी की चाबी ले लेता है l वीर जैसे ही ऑफिस की सीढ़ी चढ़ने को होता है उधर से महांती सीढ़ी उतरते हुए - गुड मॉर्निंग राजकुमार जी....
वीर - गुड मॉर्निंग महांती....
महांती - राजकुमार जी एक बात कहाना चाहूँगा.... अगर आप बुरा ना माने तो...
वीर - आप उगल ही दो... वरना तुम्हें आज बदहजमी रहेगी दिन भर...
महांती - सर कल ही छोटे राजा जी के उपर हमला हुआ है... आप को ड्राइवर के साथ-साथ सेक्यूरिटी भी ले कर चलना चाहिए....
वीर - वह जिसकी गांड में सुलेमानी कीड़ा कुलबुला रहा है... उससे डर कर मैं अपना लाइफ स्टाइल बदल दूँ.... क्यूँ भई.... उसे चूल मची है... इसलिए छोटे राजा जी के पीछे लगा है... मेरे पीछे तो नहीं है ना...
महांती - मैं वही तो समझा रहा हूँ.... उसकी दुश्मनी छोटे राजाजी से है.... और आप उनके बेटे हैं.... क्यूंकि अब वह छोटे राजा जी के सेक्यूरिटी को देख कर समझ चुका होगा... उन्हें अब छेड़ नहीं सकता है.... तो कहीं आप को वह टार्गेट ना कर दे...
वीर - थैंक्यू... महांती.... मेरे लिए इतना सोचने के लिए... पर यकीन मानों... मैं भी दिल से चाहता हूँ... की वह मेरे पीछे आए... साला लाइफ में चूल और चील तो है पर थ्रिल मिसींग है... वैसे तुम यहाँ आए किस लिए थे...
महांती - आज राजा साहब आ रहे हैं... उनके लिए सेक्योरिटी सेक्यूर करना है... इसलिए प्लान का ब्लू प्रिंट लेकर युवराज जी के पास जा रहा हूँ....
वीर - ओ...
महांती - और महीना खतम हो रहा है... सबका एटेंडेंस और ड्यूटी रोस्टर चेक करने आया था....
वीर - तो सब चेक कर लिए...
महांती - जी...
वीर - ठीक है... जाओ युवराज जी आपका इंतजार कर रहे होंगे...
महांती वहाँ से चला जाता है

वीर मन ही मन बुदबुदाता है ("साला बाहर ही खड़े खड़े पका दिआ" ) और अंदर जाता है l अंदर उसे अनु दिखती है जो किसी से हंस हंस कर बात कर रही है l वीर l अनु का हंसता हुआ चेहरा देख कर वीर के चेहरे पर अपने आप मुस्कान आ जाती है l वह अनु के तरफ बढ़ने लगता है कि उसे लगता है कि अनु किसी लड़के से बात कर रही है l वीर के चेहरे पर जो मुस्कान आई थी वह गायब हो जाता है l वीर पास आ कर देखता है के वह लड़का जिससे अनु बात कर रही है, वह ESS का ही एक गार्ड है l वीर के पास पहुंचते ही वह लड़का वीर को सैल्यूट करता है l उसकी देखा देखी अनु भी वीर को सैल्यूट करती है l
वीर - कौन हो तुम... और यहाँ क्या कर रहे हो...
लड़का - राजकुमार जी आपने मुझे पहचाना नहीं...
वीर ना मे सर हिलाता है
लड़का - राजकुमार जी मैं आपके घर गया था जॉब के लिए... और आपने मुझे एक लेटर दे कर ESS ऑफिस में जॉइन करने के लिए भेजा था...
वीर - तो तुम्हें नौकरी मिल गया है ना.. फिर प्रॉब्लम क्या है तुम्हारा... एक मिनिट तुम गदाधर नायक के बेटे हो ना...
लड़का - जी राजकुमार जी... मैं... उनका बेटा मृत्युंजय नायक...
वीर - हाँ.... और तुम्हारी माँ और बहन कैसी हैं...
मृत्युंजय - सब आपकी कृपा है... राजकुमार जी..
वीर - तुम यहाँ.... इस वक्त...
मृत्युंजय - जी.. वह... मैं... असल में अपना ड्यूटी रोस्टर थोड़ा बदलवाना चाहता था... इसलिए महांती सर से अनुरोध करने आया था... तो महांती सर ने आपसे बात करने के लिए कहा...
वीर - ह्म्म्म्म... चलो अंदर चल कर बात करते हैं....
तीनों कैबिन के अंदर आते हैं l वीर अपनी चेयर पर बैठ जाता है l दोनों खड़े रहे हैं l
वीर - हाँ... अब बोलो...
मृत्युंजय - वह राज कुमार जी.... मैं जब से नौकरी में जॉइन किया हूँ... तब से मुझे "सॉफ्ट कंप्यू सॉल्यूशन" कॉल सेंटर में नाइट् शिफ्ट की ड्यूटी दी गई है l
वीर - हाँ इसलिए ना... ताकि तुम दिन भर अपने घर पर ध्यान दे सको और अपनी पढ़ाई कर सको.... और रात में ड्यूटी कर सको....
मृत्युंजय - जी राज कुमार जी... तब चूंकि नौकरी नई नई थी इसलिए मैं सब में राजी हो गया था..
वीर - अच्छा तो अब पुराने हो गए हो...
मृत्युंजय - जी ऐसी बात नहीं है राजकुमार जी....
वीर - फिर कैसी बात है....
मृत्युंजय - रात भर ड्यूटी के बाद दिन में सो जाता हूँ... इसलिए ना तो ठीक से पढ़ाई हो पा रहा है... और ना ही घर की ध्यान...
वीर - ह्म्म्म्म तो... तुम ही बताओ... तुम्हारी ड्यूटी कब लगानी चाहिए....
मृत्युंजय - वह....
वीर - हाँ... हाँ.... बोलो...
मृत्युंजय - अगर मेरी ड्यूटी बी शिफ्ट यानी दिन के तीन बजे से ले कर रात ग्यारह बजे तक लगा देते... तो...
वीर - अच्छा जाओ... मैं देखता हूँ... क्या हो सकता है...
मृत्युंजय वीर को सैल्यूट कर बाहर निकल जाता है l वीर अनु को घूरता है l
अनु वीर को अपने तरफ ऐसे घूरते हुए देख कर अनु थोड़ी नर्वस हो जाती है l
अनु - क.. क्या.. ह... हुआ राज कुमार जी...

वीर - यह तुम उस मृत्युंजय को पहले से जानती हो...
अनु - नहीं... नहीं.. तो... क्यूँ... क्या हुआ...
वीर - तो फिर... तुम उसके साथ इस तरह से हंस हंस कर बात क्यूँ कर रही थी... जैसे बरसों को पहचान हो...
अनु - वह तो अभी आया... और हम दोनों आपके ही बारे में बात कर रहे थे... मुझे मेरे कम पढ़े लिखे होने के बावजूद नौकरी दी...
वीर - ह्म्म्म्म.... तो तुम... क्या चाहती हो....
अनु - म.. मे.. मैं क्या चाहती हूँ मतलब....
वीर - मुझे... उस लड़के... हाँ.. मृत्युंजय के लिए क्या करना चाहिए....
अनु - जी... बात उसके परिवार की है... वह रात भर बाहर रहता है... उसे.. अपनी माँ और बहन की चिंता होती होगी.... पर नौकरी की मजबूरी भी है.... आप दाता हैं... आपकी जो मर्जी...
वीर - तुम क्या चाहती हो...
अनु - (वीर को देखती है) आप उसके परिवार के ख़ातिर मृत्युंजय की बात रख लीजिए...
वीर - अगर मैं उसकी बात रख लूँ.... तो तुम्हें खुशी होगी...
अनु - जी...(मुस्कराते हुए)
वीर - तुम खुश किसके लिए होगी....क्या मृत्युंजय के लिए
अनु - (अपना सर ना में हिलाते हुए) इसलिए कि मैंने आपके बारे में जो भी कहा है... वह सच है... इसलिए...
वीर - चलो मैं तुम्हारा मन रख लेता हूँ....
अनु खुश हो जाती है और मुस्करा कर पूछती है - मैं कॉफी लाऊँ...
वीर हाँ में अपना सर हिलाता है l अनु चहकते हुए कॉफी लेने बाहर निकल जाती है l वीर मन ही मन सोचता है "कितनों को अपने नीचे लिटाया है...परवाह किसीकी नहीं की....तुझ में ऐसा क्या खास है.. के तेरी एक मुस्कान के लिए मैंने दगा अपनी उसूलों कर ली...
तभी वीर की मोबाइल बजने लगी l वीर मोबाइल के स्क्रीन पर युवराज देखता है l
वीर - हैलो...
विक्रम - आप कहाँ हो राजकुमार....
वीर - ऑफिस में...
विक्रम - (हैरान हो कर) ऑफिस को लेकर तुम कबसे इतने सिरीयस होने लगे...
वीर - कहीं पर तो सिरीयस होना पड़ेगा....
वैसे इस टाइम पर आपने मुझे कैसे याद किया...
विक्रम - तुमने नास्ता किए बगैर इतनी जल्दी घर से निकल गए...
वीर - हाँ मैं यहीं नास्ता कर लूँगा.... पर आपने बताया नहीं किसलिए याद किया...
विक्रम - हाँ आज राजा साहब आ रहे हैं...
वीर - हाँ मालूम है... मुझे छोटे राजा जी ने बताया है... और अभी अभी यहाँ पर महांती ने बताया... और वह शायद आप से ही मिलने गया होगा..
विक्रम - ओह अच्छा.
ठीक है... आज शाम को वक़्त पर पहुंच जाना...
वीर - जी युवराज...

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विक्रम फोन रख कर अपने कमरे से बाहर निकल कर डायनिंग हॉल में आता है l डायनिंग टेबल पर शुभ्रा और नंदिनी बैठ कर अपना नास्ता कर रहे हैं l विक्रम आ कर डायनिंग टेबल बैठ जाता है, थोड़ा खरास लेता है l शुभ्रा और नंदिनी उसे देखते हैं l
विक्रम - वो आज रात... एकाम्र रिसॉर्ट की ओनर शिप राजा साहब जी को ट्रांसफर होने वाली है... इसलिए आज वहीं पर रात पार्टी है... सहर के जानेमाने लोग आये होंगे... आप लोग चलेंगे तो अच्छा होगा....
शुभ्रा - मुझे पार्टियों में बोर लगती है... इसलिए मैं जाना नहीं चाहती... हाँ राजकुमारी जाना चाहें तो उन्हें आप ले जा सकते हैं...
विक्रम - यह आप कैसी बातेँ कर रही हैं... यह हमारे परिवार की फंक्शन है... और हम ही ना रहे वहां पर... ठीक नहीं लगेगा...
शुभ्रा - यह हम का क्या मतलब.....
विक्रम - हम मतलब हम... मतलब आप, राजकुमारी जी और मैं ...
शुभ्रा - और हम किसलिए जाएं....
विक्रम - हमारे परिवार की फंक्शन है... इसलिए...
शुभ्रा - युवराज जी... परिवार...? इस घर में चार लोग रह रहे हैं... आप, राजकुमार, राजकुमारी और मैं.... हम चारों में आपस में क्या सम्बंध है... युवराज जी...
विक्रम - यह आप कैसी बातेँ कर रहे हैं... आप इस परिवार की बहू हैं... हमारी अर्धांगिनी हैं... राजकुमारी जी और राजकुमार जी की भाभी हैं...
शुभ्रा - क्या मैं अपने देवर को कभी देवर जी बुलाया है, क्या आप अपनी बहन को बहन बुलाया है... क्या आप अपने पिता जी को पिताजी कह कर बुलाया है... क्षेत्रपाल परिवार के सभी पुरुष बाहर जिस परिचय लिए परिचित हैं... वे उसी परिचय लिए परिवार वालों के साथ रहते हैं... हम घर में हैं या बाहर हैं यह मालूम नहीं पड़ता..... यह
रिश्ते, यह नाते वास्तव में आपकी राजसी रुतबे के नीचे दब कर दम तोड़ चुकी हैं... इसलिए उन रिश्तों का हवाला मत दीजिए... क्यूंकि ऐसी खोखली रुतबों को ढ़ो कर आपके उस हाई सोसाइटी में मुझे दम घुटने लगती है.... इसलिए आप ही वह पार्टी अटेंड कीजिए... मुझे माफ करें... और आपके उस पार्टी में आने वाली बड़े घरों की औरतों... पार्टी में फैशन परेड करने आती हैं ना कि कोई पार्टी अटेंड करने.... मुझे किसीको देखने या दिखाने नहीं जाना है....
विक्रम खामोश रहता है l वह नंदिनी की तरफ देखता है l नंदिनी बेफिक्री से अपना नास्ता कर रही है l
विक्रम - राज कुमारी जी... क्या आप जाना नहीं चाहेंगी...
नंदिनी - जी नहीं.. युवराज जी...
विक्रम - क्यूँ...
नंदिनी - वह जिनके पार्टी में जाने की बात कर रहे हैं... क्या उन्होंने कोई न्योता भेजा है...
विक्रम - वह हमारे पिता राजा साहब हैं...
नंदिनी - हमारे...? वह सिर्फ हमारे नहीं... बल्कि पूरे स्टेट के राजा साहब हैं.... और जैसा कि भाभी ने कहा राजसी रुतबे, जरूरतें रिश्तों को अपने नीचे दबा कर खत्म कर चुकी हैं.... इसलिए रिश्तों की आड़ में उन राजसी ढकोसलों को ढोने की बात ना करें... वैसे भी हमारे लिए कोई नियम बदला नहीं है... ना राजगड़ में ना भुवनेश्वर में...
इतना कह कर नंदिनी वहाँ से उठ कर चली जाती है l शुभ्रा भी विक्रम को बिना देखे वहाँ से उठ कर चली जाती है l विक्रम मन मसोस कर रहा जाता है l तभी एक नौकर आकर महांती की आने की खबर करता है l विक्रम बिना खाए वहाँ से उठ कर चला जाता है l
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खान फाइलों पर झुक कर बड़े ध्यान से कुछ पढ़ कर पास रखे डायरी में नोट बना कर लिख रहा है l
"मे आई कम इन सर" सुनकर खान दरवाजे के तरफ देखता है l
खान - आओ दास आओ.. कुछ खास....
दास - जी सर... (एक लिफाफा टेबल पर रखते हुए) इसे देखिए.... शायद आपको इंट्रेस्ट हो...
खान दास को देखते हुए लिफाफा अपने हाथ में लेता है l पाने वाले के नाम "विश्व प्रताप महापात्र" और भेजने वाली संस्थान का नाम पढ़ते ही खान की आँखे बड़ी हो जाती हैं और भौवें तन जाती हैं l
खान - दास यह आदमी क्या है.... मैं जितना सोचता हूँ के इसे समझ गया... हर दूसरे पल यह आदमी उतना ही मुझे चौंका देता है....
दास - xxxxxxxx
खान बेल बजाता है l एक संत्री अंदर आ कर सलामी देता है l
खान - विश्वा को जानते हो....
संत्री - जी सर....
खान - ह्म्म्म्म मैं भी यही सोच रहा था... जाओ उसे कहो... इसके काम की एक खत मेरे पास आया है.... आकर मुझसे ले ले....
संत्री - जी सर.... (इतना कह कर वह संत्री चला जाता है)
दास - एसक्युज मी सर, आई मैं लिव नाउ...
खान - ओह येस.... एंड थैंक्यू....
दास सैल्यूट दे कर बाहर निकल जाता है l खान उस लिफ़ाफ़े को देख कर सोच में डूब जाता है l
कुछ देर बाद "क्या मैं अंदर आ सकता हूँ"
खान - हाँ विश्व प्रताप आइए.... और बिना कोई तकल्लुफ के बैठ जाईए....
विश्वा बिना कोई विरोध किए खान के सामने बैठ जाता है l
विश्वा कुछ नहीं कहता है, खान भी चुप रहता है l जब विश्वा ना खान से लिफाफा मांगता है ना कुछ बात करता है, तो खान विश्वा को देखने लगता है l विश्वा के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखता है l खान को उसकी ख़ामोशी कचोटती है, तो रह नहीं पता, इसलिए ख़ामोशी तोड़ते हुए - जानते हैं विश्व बाबु... मैंने आपको क्यूँ बुलाया है....
विश्वा - जी...
खान - क्या.... सच में...
विश्वा - आपके पास मेरा AIBE की एंट्रेस एडमिट कार्ड आया होगा...
खान - हाँ... म.. मतलब... कैसे...
विश्वा - जो भी वकालत करता है.... AIBE उसका अगला पड़ाव होता है...
खान - हाँ.... पर... तुम सजायाफ्ता हो... आई मिन.. यू आर कंवीक्टेड...
विश्वा - स्टेट बार काउंसिल के जरिए रजिस्ट्रेशन और रिकॉमेंडेशन से...
और आप ने उस एडमिट कार्ड में ऐनेक्सचर जो अटैच है उसमें टर्मस एंड कंडीशन में साफ लिखा है......शायद पढ़ा नहीं है...
खान - ओह...
विश्वा - सर अगर आप ने इसी लेटर के लिए बुलाया था तो एक फेवर कर दीजिए...
खान - हाँ... क्या...
विश्वा - इस एडमिट कार्ड को... सेनापति सर जी तक पहुंचा दीजिए... बाकी वह देख लेंगे...
खान - हाँ.. जरूर... (थोड़ा सा हंसी आ गई) मुझे पच्चीस साल से ज्यादा हो गए कानून को सेवा देते हुए.... पर कानून की इतनी बारीकीयों से पुरी तरह से अनजान रहा....
विश्वा - यह भारतीय संविधान व कानून व्यवस्था है.... जिसके छेद में चूहा भले ही ना निकल पाए मगर हाती जरूर निकल जाता है....
खान - तुम्हें कानून की डिग्री हासिल किया कौनसे छेद की तलाश में ... और तुम कौन हो... चूहा या हाती...
विश्वा - कानून की डिग्री इसलिए हासिल की... ताकि उन छेदों को बंद कर दूँ जिससे ना चूहे निकल सके ना हाती... और रही मेरी बात तो अब मैं शिकारी बन गया हूँ...

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होटल ब्लू इन की छत पर रॉकी खुशी से चिल्ला रहा है,उछल रहा है, नाच रहा है, कूद रहा है, गाना गा रहा है l
उसके सारे दोस्त उसे देख रहे हैं l
रॉकी - आ.. ह.... हा हा हा... हो हो हो ओ...
राजू - बस रॉकी बस...
रवि - अरे यार इसे पकड़ लो.... इसकी खुशी बेकाबू हो गई है... पागल हो गया है...
सुशील और आशीष रॉकी को पकड़ लेते हैं l उसे पकड़ कर बिठा देते हैं l
राजू - अबे तुझे क्या हो गया है.... यार खुद को सम्भाल... क्यूँ हमे डरा रहा है...
रॉकी - ऑए राजू... प्यार तुम करियो... मत डरियो... यह प्यार बड़ा मजा देता है...
रवि - ऑए पागल... होश में आ... एक तो बुलाया है और हमे डरा भी रहा है...
आशीष - हाँ यार... प्लान के मुताबिक... हमे तो कल इकट्ठे होना चाहिए था... अचानक एक दिन पहले क्यूँ...
रॉकी - ऑए.. मित्रों.. कमीनों... आज मुझे उड़ना है... यारों मैं आज बहुत खुश हूँ...
रॉकी रवि को खिंच कर उसके गाल पर एक लंबा चुम्मा लेता है l रवि उससे छूटने की कोशिश करता है l
रवि - अबे छोड़.. छी.. छी.. छोड़ मुझे...
सुशील - अबे सब धीरे से खिसक लो... साला पागल हो गया है...
रवि - चिल्लाता है... बचाओ...
रॉकी उसे छोड़ देता है l
रॉकी - चील यारों चील...
मेरे दिल, जिगर, फेफड़ों के टुकड़ों तुम जियो हज़ारों साल यह दुआ है मेरी...
रवि - ऑए... बता ना फिर क्या हुआ....
रॉकी - जैसा कि पहले प्लान सेट था... मैंने अपना काम कर दिआ था... तुम लोगों जो भविष्य वाणी की थी वह सच हो गया था...
अरे यार... मेरे हीरो गिरी के चर्चे घर तक पहुंच गया था... कल ही प्रिन्सिपल बुढ़ोउ ने पापा को फोन पर बता दिआ था... और जैसे कि प्लान के मुताबिक.. मैं हेयर कट कर घर पहुंचा..... पहले तो गालियों की बौछार हुई... फिर टिपीकल इंडियन मॉम की एंट्री.... थोड़े आँसू.. थोड़े रोने के बाद.... पापा ने मुझे शाबासी दी...... फिर पापा बोले कि कल यानी आज कॉलेज में पहले प्रिन्सिपल से मिल लूँ...
मैं आज सुबह तैयार हो कर प्रिन्सिपल के ऑफिस गया था... ऑए होय.... क्या बताऊँ मित्रों.... प्रिन्सिपल ने मेरी इतनी तारीफ की... मुझे बहुत शर्म आने लगी.... खैर... फिर प्रिन्सिपल ने कहा कि उन्हें मालूम है कि उनके मना करने के बावजूद वह अग्नि कांड का विडिओ वायरल हो चुका है.... वेल कॉलेज के रेपुटेशन पर कोई आंच तो नहीं आई.... पर तरह तरह की गॉसिपींग हो रही है.... क्यूंकि तुम आज के जेनरेशन के हो तो कुछ ऐसा करो की लोग वह गॉसिपींग को भूल जाएं.... मैंने भी जोश में आकर कहा ठीक है सर मनडे को मैं आपके सामने एक प्लान ले कर आऊंगा... अगर आपको पसंद आए तो उस पर हम आगे बढ़ेंगे.... इतना सुन कर बुड्ढा बहुत खुश हुआ और मुझे बेस्ट ऑफ लक बोल कर मुझे जाने को कहा.... मैं भी अपनी खुशी को दबाये बाहर आया.... ऑए यारों अब मैं क्या कहूँ.... प्रिन्सिपल ऑफिस के बाहर ही छटी गैंग मेरा इंतजार कर रही थी.... मुझे देखते ही सब मेरे पास आए और मुझे सबने थैंक्स कहा... फिर सबने मुझसे हाथ भी मिलाया.... और जाने जिगर के छल्लो मुझसे नंदिनी भी हाथ मिलाई.... आह.... यारों मैं तब से सिर्फ उड़ ही रहा हूँ....
राजू - चल अब तक सब सही गया है... अच्छा रवि तूने मनोज को पैसे दे दिए...
रवि - हाँ उसे पांच लाख रुपये दे दिए......
सुशील - ह्म्म्म्म तो.. रॉकी साहब.... अब आप प्रिन्सिपल को कौनसी टोपी पहनाने वाले हो...
रॉकी - यह मुझे क्या पता.... यारों तुम लोगों को बुलाया भी इसीलिए है...
सब - क्या..... क्या मतलब है तेरा....
रॉकी - देखो पहला स्टेप था उनके ग्रुप में किसीको सेट करना सो हो गया.... दूसरा स्टेप था उनके नजर में आना... वह भी इम्प्रेशन के साथ... वह भी हो गया....
आरे मित्रों, बंधुओं अब प्रिन्सिपल ने हमे मौका दे रहा है.... इस मौके को भुनाना है... हम कुछ ऐसा करते हैं कि हमारे इस प्रोग्राम में वह छटी गैंग भी सामिल हो जाए...
आशीष - अबे ऑए येड़े.... यह मन ही मन पेड़े खाना छोड़... साले इतने में ही हमारे ब्लड प्रेशर इधर की उधर हो गई...
राजू - और नहीं तो क्या.... तुझे इतनी जल्दी किस बात की है.... अबे हम पहले भी बता चुके हैं.... रेस में तू अकेला है...
रवि - भई... अब मेरा दिमाग शुन्य हो चुका है.... मुझे माफ करो....
रॉकी - क्या यार... अब मौका खुद किस्मत दे रहा है... और तुम लोग कुछ कर नहीं रहे हो...
आशीष - वैसे मेरे पास एक प्लान तो है....
सब - क्या...
आशीष - हाँ... है तो.. पर पता नहीं... प्रिन्सिपल को पसंद आएगा या नहीं....
रॉकी - तो बोल ना... अगर हम सबको पसंद आ गया.. तो प्रिन्सिपल तक पहुंचा देंगे...
आशीष - देख... मेरा चचेरा भाई है... जो एफएम 97 में रेडियो जॉकी है...
रवि - हाँ तो...
आशीष - देखो अब मेरी प्लान ध्यान से सुनो.... मेरा कजीन सुरेश नाम है उसका.... वह एक थ्रिलींग मोमेंट को सब के पास पहुंचाना चाहता है... मतलब एफ एम स्टूडियो को बाहर लोगों के बीच लाना चाहता है पब्लिक में से किसी एक को रैंडमली सिलेक्टेड कोई सब्जेक्ट चुन कर एक दिन की मोहलत देते हैं प्रेजेंटेशन के लिए.... तो क्यूँ ना हम अगले हफ्ते उसे बुलाए..... ऐसा किसी भी कॉलेज में नहीं हुआ है.... हमारी कॉलेज में पहली बार होगा.. तो यह भी टॉक ऑफ द यूथ होगा....
रॉकी - वाह क्या बात है... सालों दिमाग रखे हो या सुपर कंप्युटर...
राजू - इसमें हम उन ल़डकियों को कैसे सामिल करेंगे... और किसे और कैसे मौका देंगे....
सुशील - हाँ... यह पॉइंट है...
आशीष - उन ल़डकियों को सामिल कराने का जिम्मा... रवि की गर्ल फ्रेंड की है.....
रवि - अबे... यह क्या बोल रहा है...
रॉकी - हाँ... आशीष... ठीक कह रहा है....
आशीष - तो इसबार टॉपिक कोई भी हो रेडियो एफ एम पर नंदिनी प्रेजेंटेशन देगी...
रवि - कैसे...
आशीष - सारे स्टूडेंट्स से कहा जाएगा कि वे सब अपना नाम एक चिट पर लिख कर हमें दें... हम उसकी नामकी लॉटरी निकलेंगे...क्यूंकि रूल यही है कि जिसका नाम आयेगा... वही प्रेजेंटेशन देगा... सिम्पल...
रॉकी - वाव तो इसबार.... नंदिनी का नाम आयेगा... वाह... पर अगर प्रोग्राम फ्लॉप हो गया तो...
आशीष - अगर फ्लॉप रहा तो नंदिनी का दिल टुटेगा... और उसकी टुटे हुए दिल को सहारा दे देना.... और प्रोग्राम हिट हुआ... तो चिकने.... वह तुझे फिरसे थैंक्स कहेगी और हाथ भी मिलाएगी....
रॉकी - वाव... ओ.... हो... हो
Gazab update bro maza aa gaya
 

Lib am

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👉उनसठवां अपडेट
--------------------
XXXX कॉलेज
असेंबली हॉल
नंदिनी चुप हो जाती है और वह महसूस करती है उसके आसपास का माहौल एक दम खामोश है I असेंबली हॉल में मौजूद सभी लेक्चरर, सभी स्टूडेंट्स, सब, यहाँ तक सुरेश भी स्तब्ध हो गए हैं l इतनी ख़ामोशी पसरी हुई है कि अगर एक सुई भी गिर जाए तो उसकी भी आवाज़ जोर से सुनाई देगा l फिर सुरेश अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है और ताली बजाने लगता है l उसके बाद सभी ताली बजाने लगते हैं l पूरा का पूरा असेंबली हॉल तालियों के गड़गड़ाहट से थर्राने लगता है l बनानी अपनी दोस्तों के साथ चिल्लाने लगती है l

बनानी - थ्री चियर्स फॉर नंदिनी... हिप हिप
सभी - हुर्रे...
बनानी - हिप हिप
सभी - हुर्रे...
बनानी - हिप हिप
सभी - हुर्रे...

उधर रॉकी के सभी दोस्त जोर जोर से ताली बजा रहे हैं पर रॉकी ऐसे हैरान और खामोश है जैसे कोई अद्भुत देख लिया हो l एक तरह से रॉकी शॉक्ड था जैसे उसके कल्पना से परे कुछ और हो गया है l

रवि - वाव... क्या बात है रॉकी... जो तु चाहता था... जैसा तु चाहता था.. वही और वैसे ही हो गया...
आशीष - हाँ यार... तूने तो उसे लाइम लाइट दे दिया यार... तुने उसको.. उसके भीतर के एक नए शख्सियत से मुलाकात कराया है... कुछ नहीं तो... कम से कम दोस्ती तो पक्की...
सुशील - नहीं नहीं... पहले इम्प्रेस थी... अब अपना यार उसके दिल दिमाग पर छा जाएगा... (रॉकी को खामोश देख कर) क्या बात है हीरो... किन खयालों में खोया है...
रॉकी - क.. कु.. कुछ नहीं...

जब ताली बजना बंद होता है तो सबको पता चलता है कि वहाँ पर नंदिनी है ही नहीं l सबको असेंबली हॉल में छोड़ कर नंदिनी बाहर जा कर अपनी गाड़ी में बैठ जाती है l

नंदिनी - (ड्राइवर से) गुरु काका....
गुरु - जी... बेटी जी...
नंदिनी - मेरा यहाँ दम घुट रहा है... मुझे इस कैंपस से बाहर ले चलिए...
गुरु - बाहर मतलब कहाँ... बेटी जी...
नंदिनी - ओहो.... पहले इस कैपस से तो निकालिए...
गुरु - जी.... जी बेटी जी...

गुरु गाड़ी को कैंपस से बाहर निकाल कर रोड पर ले जाता है l

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ओरायन मॉल में फ़ूड कोर्ट हो या ड्रेस बुटीक हर जगह जैसे ही नंदिनी की प्रेजेंटेशन खतम हुई मॉल में मौजूद सभी लोग भी ताली बजाने लगे l पुरी की पुरी मॉल तालियों से गुंजने लगी l अनु भी सबको ताली बजाते देख वह भी ताली बजाने लगती है l अनु देखती है वीर किन्हीं ख़यालों में खोया हुआ है l वह अपना हाथ आगे बढ़ा कर वीर की हाथों को हिलाती है l वीर अपनी ख़यालों से बाहर आता है देखता है वहाँ पर मौजूद सभी लोग ताली बजा रहे हैं, अनु भी इधर उधर देख कर ताली बजा रही है I अनु इशारे से ताली बजाने को कहती है, वीर अपने चेहरे पर एक मुस्कान लाने की कोशिश करते हुए ताली बजाने लगता है l

बुटीक में भी जितने कस्टमर थे सेल्स मेन व गर्ल्स के साथ साथ विश्व और प्रतिभा भी ताली बजाने हैं l सबकी ताली रुक जाने के बाद

विश्व - वाव... माँ यह नंदिनी जो भी हैं... कितनी खूबी से और आसानी से.... समाज को आईना दिखा दिया...
प्रतिभा - हाँ बेटा... वाकई... छोटी सी कहानी में... कितना कुछ कह दिया... समाज और सभ्यता को...
विश्व - कभी मौका मिला तो उनसे मिलना जरूर चाहूँगा...
प्रतिभा - क्यूँ...(भवें नचा कर) प्रपोज करेगा...
विश्व - ओह माँ... तुमसे कुछ भी कहना.... छोड़ो... यहाँ पर काम खतम हुआ... अब कहीं और चलें...
प्रतिभा - हाँ रुक... पहले मैं पेमेंट तो कर लूँ...
विश्व - तब तक मैं... ड्रेस चेंज कर लेता हूँ...
प्रतिभा - अरे... क्यूँ... अब दिन भर इसी में रह... घर जाकर बदलना...
विश्व - पर यह तो आपने कल के लिए खरीदा है ना...
प्रतिभा - तो क्या हुआ... घर जाकर देख लेंगे... (चहकते हुए) अभी इन कपड़ों में कितना अच्छा दिख रहा है... ऐसे ही रह...
विश्व - (हथियार डालने वाले अंदाज में) ठीक है माँ... आप पेमेंट तो कर लो...

प्रतिभा काउंटर पर जा कर पेमेंट कर देती है और एक रसीद ले लेती है l वहीँ काउंटर पर विश्व की पुराने कपड़े बाद में लेंगे बोल कर पैकेट में रखवा देती है l उसके बाद बुटीक से विश्व को लेकर उसी फ्लोर पर एक बड़े शू स्टोर की ओर जाती है l प्रतिभा विश्व को देखती है, विश्व अपना सिर हिलाते हुए कुछ सोच रहा है l

प्रतिभा - क्या सोच रहा है...
विश्व - कुछ नहीं माँ... पहली बार... अपने से कम उम्र के... किसीके विचारों से प्रभावित हुआ हूँ... बार बार वह रेडियो वाली नंदिनी की बातेँ मेरे कानों में गूँज रही है... अगर कभी उनसे मिलना हुआ तो... (विश्व रुक जाता है)
प्रतिभा - तो... (अपनी भवें नचा कर)
विश्व - ओह माँ... तुम भी ना... फ़िर से शुरू मत हो जाना... मैं यह कह रहा था... अगर कभी उन नंदिनी जी से मिलना हुआ... तो मैं उन्हें... एप्राइज करूंगा... एप्रीसिएट करूंगा...
प्रतिभा - हाँ हाँ... जरूर करना... पर एक बड़ा सा फ्लॉवर बुके देते हुए करना...
विश्व - हाँ.... (फिर अचानक चौंकते हुए) क्या.... क्यूँ...
प्रतिभा - हा हा हा हा...
विश्व - ओह... माँ... तुम्हारे पास ना... किसी लड़की का जिक्र करना मतलब...
प्रतिभा - हाँ... मतलब...
विश्व - यह लीजिए... शू स्टोर आ गया...
प्रतिभा - तुने मतलब बताया नहीं (विश्व कुछ जवाब नहीं देता, स्टोर में घुस जाता है) अरे सुन तो...

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गुरु एक पार्क देख कर गाड़ी रोक देता है l गुरु देखता है नंदिनी की आँखे डबडबाई हुई हैं l

गुरु - क्या हुआ बेटी जी...
नंदिनी - (खुद को संभालते हुए) कुछ नहीं काका... मन थोड़ा भारी लग रहा है... (गाड़ी से उतर कर) मैं यहीं पर थोड़ा चहल कदम कर रही हूँ... आप इंतजार कीजिए...
गुरु - पर बेटी जी...
नंदिनी - घबराईए नहीं काका... मैं आपकी नजरों से दूर नहीं हूँ... मैं (सामने दिखाते हुए) पार्क के बाहर वाली बेंच पर थोड़ी देर के लिए बैठना चाहती हूँ...
गुरु - ठीक है बेटी जी...

नंदिनी जाकर उस बेंच पर बैठ जाती है l उसकी आँखे फिरसे नम हो जाती है l अपनी आँखों को पोछते हुए वह शुभ्रा को फोन लगाती है

शुभ्रा - (फोन पीक अप करते ही) वाह मेरी शेरनी वाह... आज तो तुमने मैदान मार ली... वाव क्या प्रेजेंटेशन दिया... माइंड ब्लोइंग... तुमने आज ना जाने कितनों को स्पेलबउंड कर दिया...
नंदिनी - (भर्राते हुए) छो... छोड़िए ना भाभी...
शुभ्रा - रूप... तुम रो क्यूँ रही हो...
नंदिनी - मैं नहीं जानती भाभी... बस रोना आ रहा है... प्लीज भाभी... आप आ जाओ... मुझे इस वक़्त आपकी सख्त जरूरत है...
शुभ्रा - अच्छा अच्छा आ रही हूँ... तुम अभी हो कहाँ पर...
नंदनी - वह मैं यहाँ xxxx पार्क के बाहर बेंच पर बैठी हूँ...
शुभ्रा - ओके ओके... तुम वहीँ पर रुको... मैं अभी दस मिनट में पहुँच रही हूँ....
नंदिनी - हाँ भाभी... मैं यहाँ पर आपका इंतजार कर रही हूँ...

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ESS ऑफिस

विक्रम अपने कैबिन में बैठा कुछ सोच रहा है l तभी उसका मोबाइल फोन बजने लगती है l डिस्प्ले में शुभ्रा का नाम देख कर उसे अंदर ही अंदर एक खुशी महसुस होती है l वह फोन उठाता है

विक्रम - (खुशी और झिझक के साथ) हैलो...
शुभ्रा - जी मैं राजकुमारी जी को लेकर... यहीं आसपास किसी मॉल में जा रही हूँ...
विक्रम - मॉल... पर क्यूँ.. आपके और उनके लिए हर सामान पहुँचा दिया जाएगा... आप उन्हें लेकर क्यूँ जाना चाहती हैं...
शुभ्रा - सुनिए... औरतों के कुछ चीजें... अगर वही खरीदारी करें तो ठीक रहती है... आप समझने की कोशिश करें... यह औरतों वाली बातेँ हैं...
विक्रम - ओ... ठीक है... पर कौनसे मॉल...
शुभ्रा - शायद ओरायन...
विक्रम - ठीक है... सू (फोन कट जाती है)...


विक्रम मायूस हो जाता है और अपनी आँखे मूँद लेता है l दरवाजे पर दस्तक होती है l विक्रम दरवाजे की तरफ देखता है तो उसे महांती दिखता है

विक्रम - क्या हुआ महांती...
महांती - सर कुछ इंफॉर्मेशन हाथ लगे हैं...
विक्रम - अंदर आओ... (महांती अंदर आता है) तुम यहाँ पार्टनर हो... बॉस भी हो... मेरे कैबिन में आने के लिए कम से कम तुम्हें मेरी परमिशन की ज़रूरत नहीं...
महांती - (बैठते हुए) युवराज जी... कुछ भी हो... मैं उम्र में भले ही आपसे बड़ा हूँ... पर मेरे गॉड फादर तो आप ही हैं...
विक्रम - लीव इट... अभी वह बताओ... जो कहने आए हो...
महांती - सर... छोटे राजा जी पर जो हमले हुए हैं... वह हमले में कुछ तथ्य सामने आए हैं...

यह सुन कर विक्रम अपनी कुर्सी पर सीधा हो कर बैठ जाता है,

विक्रम - क्या पता चला है... कौन है इसके पीछे
महांती - सर इसके पीछे कौन है... यह तो अभी तक पता नहीं चला है... लेकिन जो भी पता चला है... हम शायद किसी निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं...
विक्रम - ह्म्म्म्म... आगे बोलो...
महांती - सर वह जो शूट आउट हुआ था... तब उनका मेन मोटीव कत्ल तो था नहीं...
विक्रम - पर फोन पर कहा था कि...
महांती - यही के इतना डरायेगा... इतना मज़बूर कर देगा... की छोटे राजा जी खुद अपने लिए मौत मांगेंगे...
विक्रम - हाँ...
महांती - इसका मतलब यह हुआ... वह पहले सनसनी फैलाना चाहता है... फिर दहशत भर देना चाहता है...
विक्रम - हूँ...
महांती - इस काम के लिए उसने बाहर से चार शुटर बुलवाया है...
विक्रम - हूँ....
महांती - पर उन्हें सपोर्ट लोकल मिल रहा है...
विक्रम - व्हाट...
महांती - जी सर... और जिनसे सपोर्ट मिल रहा है... उनका स्टाइल ऑफ वर्क कुछ कुछ हमारे जैसे हैं...
विक्रम - (उछल पड़ता है) व्हाट...
महांती - पर वह लोग हमारे आदमी नहीं हैं...
विक्रम - देखो महांती... अब तुम मुझे कंफ्यूज कर रहे हो...
महांती - नहीं सर...
विक्रम - ठीक है... अब बिना रुके पुरी बात बताओ...
महांती - सर... पहली बात... जो भी है... वह अभी भी बीहाइंड द स्क्रीन है... पर हम सबके दुश्मनों को इकट्ठा कर रहा है... और उन्हें ऑपरेट कर रहा है...
विक्रम - मतलब...
महांती - रॉय ग्रुप सिक्युरिटी सर्विस याद है...
विक्रम - एक मिनट... तुम कहना चाहते हो कि रॉय इसके पीछे है...
महांती - नहीं... वह भी एक मोहरा है... क्यूंकि हमने उसे बर्बाद कर दिया है... इसलिए उनके साथ हो लिया है... इसलिए तो मैंने कहा... उनका स्टाइल कुछ कुछ हमारे जैसे है... क्यूंकि वहाँ पर... गार्ड्स को ट्रेनिंग मैं ही दिया करता था...
विक्रम - ओ... तो अब...
महांती - सर मैंने पिछले कुछ दिनों से... स्टडी कर रहा था... कुछ फैक्ट्स सामने आए हैं... आपको सुरा याद है... जो केके को धमकी दिया करता था... अपने उसे और उसकी माशुका को रंग महल भेज दिया था...
विक्रम - हाँ...
महांती - सर मैंने पता लगाया है... उसका बड़ा भाई कुछ दिन हुए भुवनेश्वर में है... केशव... केशव नाम है उसका...
विक्रम - और तुम यह कहोगे... वह भी मोहरा है...
महांती - यस सर... अभी भी जो असली खिलाड़ी है.. वह... पर्दे के पीछे है... और सबसे खास बात...
विक्रम - क्या...
महांती - वह लोग अब सिर्फ़ छोटे राजा साहब की रेकी नहीं कर रहे हैं... बल्कि भुवनेश्वर में आपके परिवार के सभी लोगों पर नजर रखे हुए हैं... रेकी कर रहे हैं...
विक्रम - व्हाट...
महांती - जी सर...

विक्रम की आँखों में खुन उतर आता है l और गुस्से भरे नजरों से महांती के ओर देखता है l

महांती - सर डोंट वरी... इफ दे आर स्मार्ट... देन वी आर मच स्मार्टर देन देम...
विक्रम - तो हम किसका इंतजार कर रहे हैं...
महांती - सर अगर हम एक्शन लेंगे... तो वह जो पर्दे के पीछे से ऑपरेट कर रहा है... उसका सिर्फ नेटवर्क ही बर्बाद होगा... पर वह सामने नहीं आएगा... वह फिरसे अपना नेट वर्क सेट कर लेगा... सर मैं कहता हूँ थोड़ा और इंतजार करते हैं....
विक्रम - पर महांती... तुमने अभी अभी कहा... उसके आदमी हमारे फॅमिली के हर सदस्य पर नजर रखे हुए हैं...
महांती - सर वह लोग हमारे नजरों में हैं...
विक्रम - हमारी बात तो ठीक है.. पर घर के औरतों पर... इसका मतलब यह हुआ... उसने क्षेत्रपाल परिवार के पुरूषार्थ को ललकारा है...
महांती - युवराज जी... आप... इतने इमोशनल ना होइए...
विक्रम - महांती... अभी अभी युवराणी और राजकुमारी दोनों वह क्या है.... हाँ ओरायन... ओरायन मॉल को जाने वाले हैं...
महांती - सर प्लीज... डोंट बी पैनीक... उस मॉल की सिक्युरिटी हमारे ही अंडर है...
विक्रम - अच्छा महांती... राजकुमार कहाँ हैं... वह दिखाई नहीं दे रहे हैं...
महांती - सर... वह भी ओरायन मॉल में हैं...
विक्रम - क्या... वह और मॉल...
महांती - सर उनके साथ एक लड़की भी है...
विक्रम - लड़की... कौन लड़की...
महांती - सर वही लड़की... जिसे उन्होंने खुद रिक्रूट किया था...

विक्रम मन ही मन सोचने लगता है - हूँ... छोटे राजा जी ठीक कह रहे थे... वह अपना दिल बहलाने के लिए किसी लड़की को साथ लेगा... हम्म... अब क्या होगा उस लड़की का....

महांती - ( विक्रम को कुछ सोचते देख) सर आप फिक्र ना करें.... आपकी फॅमिली के हर मेंबर हमारे निगरानी में हैं... कोई गड़बड़ नहीं होगी...

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अनु देखती है जब से रेडियो पर नंदिनी नाम की लड़की को सुना है तभी से वीर कुछ सोच में डुबा हुआ है, खोया खोया सा है l

अनु - क्या हुआ राजकुमार जी...
वीर - (ध्यान टुटता है) हम्म... नहीं... कुछ नहीं..
अनु - क्या आप... अपने पहचाने जाने से डर रहे हैं.... सच कहती हूँ... मुझे शायद कोई पहचान ले... पर आप बिल्कुल भी पहचाने नहीं जा रहे हैं...
वीर - (अनु की बात सुनकर थोड़ा हँसते हुए) नहीं... मैं उस लड़की... नंदिनी की कही हर बात को याद कर रहा हूँ... या यूँ कहूँ... मैं महसूस कर रहा हूँ...

तभी वही दो लड़के वीर और अनु के पास आते हैं l वीर और अनु उन दोनों को देखते हैं l

वीर - क्या हुआ
एक लड़का - वह... हम... आप दोनों से माफी मांगने आए हैं...
वीर - (उन्हें घुरता है पर कुछ नहीं कहता है)
दुसरा लड़का - वह आपने हमे कहा था... की हम चांस मार रहे थे... वह सच था...
पहला लड़का - वह रेडियो में... सुनने के बाद... हमें जिम्मेदारी और मौका में फर्क़ समझ में आ गया...
दोनों लड़के - सॉरी.. (अनु से) सॉरी... (कह कर वह लड़के चले जाते हैं)
अनु - (उनके जाते ही) वाह... उन नंदिनी जी को मानना पड़ेगा... कितना असरदार है उनकी बातें... उनके परिवार वालों को भी मानना पड़ेगा... कितनी क्रांतिकारी विचार व संस्कार दिए हैं अपनी बेटी को... जरूर उनके भाई होंगे जो मजबुत और नेक इरादों वाले होंगे... हाथ जोड़ कर नमस्कार करना पड़ेगा...
वीर - (हल्के से खांसने लगता है) अब चलें...
अनु - कहाँ...
वीर - कुछ खरीदारी करते हैं...
अनु - ठीक है चलिए...

वीर अनु के साथ जूस मार्ट से निकलता है और इधर उधर देखने लगता है l उसे एक खिलौने की दुकान दिखता है l वह अनु को लेकर वहाँ जाने लगता है l जब दोनों उस दुकान पर पहुँचते हैं कुछ छोटे छोटे बच्चे उनके पास एक रेडक्रॉस डोनेशन बॉक्स लेकर आते हैं l उन बच्चों में से एक छोटी लड़की डोनेशन बॉक्स को वीर के सामने कर देती है l

लड़की - भैया.. कुछ डोनेशन दीजिए ना...

अनु बड़ी उत्सुकता से वीर की ओर देखती है, वीर भी अनु के चेहरे को देखता है l इससे पहले वह कुछ रिएक्ट करती वीर अपना पर्स अनु के हाथ में रख देता है l अनु वीर को हैरान हो कर देखती है l

वीर - (अनु के कान में) घबराओ मत... दे दो... तुम मेरी पीएस हो... मेरी सेक्रेटरी हो... इसलिए ऐसे काम के लिए मेरी पर्स निकाल कर पैसे दे सकती हो... आखिर मेरी इज़्ज़त तुम्हारी इज़्ज़त है....

अनु एक नजर वीर को देखती है और कांपते हुए हाथ से एक दो हजार का नोट निकाल कर बच्चों की डोनेशन बॉक्स में डाल देती है l बच्चे खुशी से उछल कर ताली बजाने लगते हैं l
वह छोटी लड़की खुशी के मारे अनु को खिंच कर नीचे बिठा देती है और अनु के गाल पर किस करती है और अनु भी उसके गालों पर किस करती है l फिर वह लड़की वीर को नीचे खींचती है और वीर को भी किस करती है फिर धीरे से वीर के कान में
- भैया... भाभी बहुत अच्छी हैं... और मीठी भी...

वीर यह सुन कर स्तब्ध हो कर खड़ा हो जाता है l बच्चे वहाँ से दुसरी और चले जाते हैं l वीर अनु से झेंपने लगता है और नजरें नहीं मिला पाता l अनु इशारे से पूछती है l वीर हँसने की कोशिश करते हुए सिर ना में हिलाता है l तभी वह लड़की ऊंची आवाज में पुकारती है
- भैया....

वीर और अनु उस लड़की की तरफ देखते हैं, वह लड़की अपने हाथ के अंगूठे और तर्जनी से ओ बना कर इशारा करती है और फिर हाथ हिला कर बाय कहती है l वीर फ़िर से झेंप जाता है l पर बदले में अनु मुस्कराते हुए उस लड़की को हाथ हिला कर बाय करती है l वीर भी हाथ हिला कर बाय करता है के तभी आगे की ओर से वीर को शुभ्रा और रुप अंदर दाखिल होते हुए दिखते हैं l वह झटपट अनु के हाथ पकड़ कर उसे खिंचते हुए दुसरी तरफ एक्जिट की ओर चला जाता है l

अनु - हम कहीं जाने वाले हैं क्या...
वीर - हाँ... नहीं... आज का काम खतम हो गया... चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर पर छोड़ दूँ...
अनु - इन कपड़ों में... नहीं... मैं घर इन कपड़ों में नहीं जा सकती...
वीर - ठीक है... तुम्हारे कपड़े उसी दुकान पर होंगी... वहाँ पर चेंज कर लेना...
अनु - जी बढ़िया...
वीर - तो चलो फिर...

वीर अनु के हाथ थाम कर खिंचते हुए बाहर ले जाता है l उधर शुभ्रा रूप को लेकर वहीँ फूड एंड रिफ्रेशमेंट फ्लोर आती है l

शुभ्रा - चलो अभी पहले पार्टी करते हैं...
रूप - भाभी... थैंक्स... अच्छा हुआ आप अकेली गाड़ी लेकर आईं... और गुरु काका को वापस भेज दिया...
शुभ्रा - कैसे नहीं आती... जब मुझे मेहसूस हुआ कि तुम्हें मेरी सख्त जरूरत है... तो क्यूँ नहीं आती... आखिर रेडियो पर तुमने मुझे... माँ, सहेली गुरु... नजाने क्या क्या कहा...
रूप - पर मैंने जो भी कहा सच ही तो कहा था... वैसे भाभी... क्या आप अकेली कभी आती हैं... यहाँ पर...
शुभ्रा - अरे नहीं... शादी के बाद...पहली बार आई हूँ... वह भी अपनी ननद के साथ...
रूप - क्या...
शुभ्रा - हूँ...
रूप - तो अब हम जा कहाँ रहे हैं...
शुभ्रा - आइसक्रीम पार्लर...

दोनों एक आइसक्रीम पार्लर में आते हैं और एक खाली टेबल देख कर बैठ जाते हैं l एक वेटर आता है तो शुभ्रा उस पार्लर की सैटर डे स्पेशल दो आइसक्रीम ऑर्डर कर देती है l

शुभ्रा - अच्छा यह बताओ... तुम्हारा प्रोग्राम सबसे बेस्ट प्रेजेंटेशन था... तुम्हें एप्रीसिएशन भी मिला होगा ना...
रुप - बहुतों ने फोन किया.. पर मैंने किसीका फोन नहीं उठाया...
शुभ्रा - क्यूँ...
रुप - भाभी... मैं अंदर से ऐसी एक्सपोजर के लिए तैयार नहीं थी... एक चैलेंज था... इसलिए पार्टीसीपेट किया... वरना...
शुभ्रा - पर क्यूँ रुप... तुमने छोटी सी कहानी में इतना कुछ कह दिया.... मैं चैलेंज के साथ कह सकती हूँ... चाहे देखने वाले हों.. या सुनने वाले... हर कोई स्पेलबउंड हुआ होगा... रॉकी ने भले ही तिकड़म लगाया... पर तुमने भी अपना मौका सही तरीके भुनाया है... रॉकी के लिए इनाम तो बनता ही है...
रुप - आपने सही कहा भाभी... इनाम तो बनता है... और डेफिनेटली मिलेगा... वैसे भाभी...(पार्लर में बैठे सारे कपल्स को देख कर) इन लोगों को देख कर नहीं लगता... इन इवन लोगों के बीच हम ऑड लोग बैठ गए हैं... कोई कोई हमें देख रहे हैं और... घूर भी रहे हैं...
शुभ्रा - हाँ... हैं तो हम ऑड... आखिर यहाँ सब लव बर्ड्स जो बैठे हुए हैं... लेकिन ऑड हम नहीं हैं... सारे लड़के तुम्हारी तरफ देख रहे हैं... और इसलिए लड़कियाँ तुम्हें देख कर जल रही हैं...
रूप - क्या भाभी... यह बात तो आप पर भी लागू होती है...
शुभ्रा - हाँ कह सकती हो... पर ऑड वाला थ्योरी.. वह देख ( एक अधेड़ औरत अपने साथ एक नौजवान के हाथ पकड़ कर खिंचते हुए पार्लर में दाखिल होती है ) बुढ़ी घोड़ी... लाल लगाम... मतलब जवान घोड़ा...
रुप - (उन दोनों को देख कर) भाभी... यह अपने कैसे सोच लिया... के वे लोग भी... लव बर्ड्स हैं... कुछ और भी... मेरा मतलब है कि माँ बेटे भी तो हो सकते हैं ना...
शुभ्रा - नहीं.. बिल्कुल नहीं हो सकते... अगर माँ बेटे होते भी... उन्हें क्या जरूरत पड़ी है... यहाँ पर आने की... तुम जानती हो रुप... मैं तुम्हारे भैया के साथ पार्टियों में क्यूँ नहीं जाती...
रुप - (अपनी गर्दन हिला कर मना करती है)
शुभ्रा - उन पार्टियों में... हाई क्लास सोसाईटी की जो भी औरतें आती हैं.... उनमें एक होड़ लगी रहती है... एक दुसरे से उम्र में कम दिखने की और कम बताने की... कभी कभी लगेगा जैसे अभी अभी पैदा हो कर हस्पताल से आए हैं... उनके बीच डिस्कशन में.. साड़ीयों के प्राइस पर... स्टाइल पर.. गहनों के डिजाईन पर... कीमत पर... होती रहती है... चलो वहाँ तक भी ठीक है... पर शादीशुदा होने के बावजूद... अपने पैसों के दम पर... वह लोग कितनी कम उम्र लड़के के साथ संबंध बनाए... यह सब उनके बीच हॉट टॉपिक होते हैं...
रूप - (हैरान हो कर सुन रही थी) इइइयय... क्या सच में ऐसा होता है...
शुभ्रा - हाँ... और वह औरतें बड़ी बेशरमी के साथ... वह बातें कहते हैं..
रूप - व्हाट....

वह अधेड़ औरत उस नौजवान के हाथ पकड़ कर इन दोनों के बगल वाली एक खाली टेबल पर बैठ जाती है

शुभ्रा - और नहीं तो...(धीरे से) उस औरत को देख कर मुझे तो यही लगता है... वह जरूर हाई सोसाइटी की होगी... और वह लड़का जरूर पैसों के चक्कर में उससे फंसा होगा...
रूप - ह्म्म्म्म... शायद आप ठीक कह रहे हैं...

वेटर दो बड़े कप में आइसक्रीम लाकर रख देता है l दोनों खाना शुरु करते हैं l तभी उसी वेटर को वह अधेड़ औरत आवाज देती है l वेटर उनके पास जाता है l

औरत - (नौजवान से) कहो क्या खाओगे...
नौजवान - कुछ भी... मुझे इन सब पर कोई भी आइडिया नहीं है...
औरत - अरे... कैसे लड़के हो.. आइसक्रीम के बारे में आइडिया नहीं है... कोई नहीं (वेटर से) जाओ बेटे... आज का स्पेशल ले आओ... आज हमारा डेट है भाई..

वेटर उनकी बात सुन कर हँसते हुए चला जाता है l रुप डेट शब्द सुन कर खांसने लगती है l शुभ्रा उसके सिर पर धीरे धीरे चपत लगाती है l

रुप - सुना भाभी...(धीरे से) डेट...

शुभ्रा भी अपनी पलकें झुका कर हामी भरती है l पर तभी

नौजवान - ओ हो.... माँ.. कहीं भी कुछ भी... कभी माँ और बेटे डेट पर जाते हैं क्या... वह वेटर और दुसरे लोग क्या सोचेंगे...

नौजवान की बात सुन कर शुभ्रा को खांसी आ जाती है l रुप उठ कर शुभ्रा के सिर पर धीरे धीरे चपत लगाती है l शुभ्रा थोड़ा गिल्टी फिल करती हुई रूप को देखती है l रुप भी पलकें झपका कर आश्वासन देती है l तभी वह अधेड़ औरत अपनी चेयर से उठ कर पार्लर में सभी लोगों से मुखातिब हो कर

औरत - सुनिए सुनिए सुनिए... अटेंशन प्लीज... यह नौजवान... मेरा बेटा है... ताड़ के पेड़ जितना लंबा हो गया... पर दिमाग खिसक कर इसके घुटने पर आ गया... कह रहा है... माँ बेटे कभी डेट करते हैं क्या... अरे... डेट का मतलब क्या है... दो लोग एक दूसरे को समय देने को ही तो डेट कहते हैं... हैं ना...
कुछ जोड़े - जी हाँ...
औरत - तो अब मैं अपने बेटे के साथ किसी ख़ुशनुमा माहौल में पल दो पल बिताने आई हूँ... क्या गलत है...
सभी - नहीं... बिल्कुल नहीं...
औरत - क्या यह डेट नहीं है...
सभी - जी.. बिल्कुल है...

तभी कुछ ल़डकियों ने उस औरत को पूछते हैं l
- आंटी... वैसे आपके बेटे का नाम क्या है... बड़ा हैंडसम है...

औरत अपने बेटे को खड़ा करती है और उसे गले से लगा कर
- है ना बड़ा हैंडसम... यह मेरा बेटा है... नाम है प्रताप... कैसा है...
लड़कियाँ - वाव... आंटी.. झकास...
प्रताप - (विश्व भी गले लगाते हुए) और यह मेरी माँ...
प्रतिभा - (अलग होते हुए) बस... बस.... चल बैठ...
प्रताप - आपका इंट्रोडक्शन खतम हो गया ना...
प्रतिभा - हाँ...
प्रताप - माँ.. लेकिन इस वक़्त आइसक्रीम खाना बकवास नहीं लग रहा... अभी अगर आइसक्रीम खाए... तो भूक मर जाएगी... फिर खाने के टाइम ठीक से खा भी नहीं पाएंगे... (तभी वेटर आइसक्रीम कप रख देता है)
प्रतिभा - एक कप आइसक्रीम खा लेने से कहाँ भूक मर जाएगी... खाने के टाइम में भी हम जम कर खाएंगे...

दोनों आइसक्रीम खाना चालू करते हैं l शुभ्रा और रुप आइसक्रीम जल्दी जल्दी खतम कर बिल दे कर पार्लर के बाहर चले जाते हैं l

रुप - एक बात तो है भाभी... किसीको देख कर ओपीनियन बना लेना नहीं चाहिए...
शुभ्रा - सच कहा... मैं अपनी कड़वे अनुभवों को आधार बनाकर... माँ बेटे की रिश्ते पर उंगली उठा दी... छी...
रूप - कोई बात नहीं भाभी... पर माँ बेटे की जोड़ी बहुत जबरदस्त थी ना... देख कर मन खुश हो गया...
शुभ्रा - हाँ.... वाकई... अनोखी जोड़ी है..

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वीरअपनी गाड़ी के बाहर इंतजार कर रहा है l अनु उसी दुकान में गई है अपनी सुबह वाली ड्रेस पहनने के लिए l थोड़ी देर बाद अनु अपनी सुबह वाली ड्रेस में वापस आती है l वीर को अब उसकी सादगी में भी अनु बहुत खूबसूरत लगती है l अनु एक पैकेट वीर को देती है l

वीर - यह क्या है अनु...
अनु - जी वह कपड़े... जिससे मैंने भेष बदले थे...
वीर - रख लो...
अनु - नहीं नहीं... दादी पूछेगी तो क्या कहूँगी...
वीर - कुछ भी कह लेना...
अनु - नहीं... मैं नहीं ले सकती...
वीर - हूँ... (एक गहरी सांस छोड़ता है) ठीक है... गाड़ी में डाल दो...

अनु बैक सीट पर वह ड्रेस का पैकेट रख देती है और वीर के बगल में बैठ जाती है l वीर अनु को उसी जगह पर उतार देता है जहाँ से पीक अप किया था l अनु उतर कर जाने लगती है

वीर - अनु... (अनु पीछे मुड़ कर देखती है, वीर वह पैकेट हाथ में लिया हुआ है) ले लोना... प्लीज...

अनु वीर की चेहरे को देखती है फिर धीरे से पास आकर पैकेट ले लेती है और तुरंत मुड़ कर जाने लगती है l

वीर - अनु... (फिर से पीछे मुड़ कर देखती है) फोन पर... खैरियत पूछती रहना...

अनु एक दमकती मुस्कराहट के साथ अपना सिर हिला कर हाँ कहती है l

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शबरी क्रास कॉफी स्टॉल पर रुप बैठी हुई है l शुभ्रा कॉफी लेने काउंटर पर गई है l रुप जिस टेबल पर बैठी है ठीक उसके पीछे वाली टेबल पर रुप की ओर पीठ करके विश्व आकर बैठता है और उसके बगल दाएँ वाली सीट पर प्रतिभा बैठ जाती है l

प्रतिभा - अच्छा अब बता... इतने देर से मॉल में हैं... कोई पसंद आई..
विश्व - माँ... क्यूँ मज़ाक कर रही हो... जो कभी होना ही नहीं है... तुम उसकी उम्मीद क्यूँ पाल रही हो...
प्रतिभा - क्यूँ.. क्यूँ ना पालुँ... मेरी खुशियाँ जिसमें है... उसकी ख्वाहिश भी ना करूँ...
विश्व - पर.... माँ... कोई भी हो... उसे क्या कह कर मेरे लिए तैयार करोगी... (प्रतिभा कुछ नहीं कह पाती) देखा... तुम्हारे पास भी कोई जवाब नहीं है...
प्रतिभा - ठीक है मेरी गलती है... माफ कर दे मुझे...
विश्व - (प्रतिभा की हाथ को पकड़ कर) माँ... मेरी अच्छी माँ... मेरी भोली माँ... मेरी प्यारी माँ... मन छोटा ना करो... वह सेनापति सर... कभी कभी कहते हैं ना... जब जब जो जो होना है... तब तब सो सो होता है...
प्रतिभा - (विश्व की कान को खिंच कर) तु मुझे मनाने में माहिर हो गया है...
विश्व - आह... माँ कान मत खिंचो... लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे...
(इनकी बातचीत सुन कर रुप मन ही मन हँसने लगती है) (प्रतिभा विश्व की कान छोड़ देती है)
प्रतिभा - अच्छा... एक बात बता... हम दोनों कई बार कई जगह गए हैं... ना जाने कितने लड़कियों को देखा है तुने... क्या कभी भी कोई.. तेरे आँखों को भी अच्छी नहीं लगी...
विश्व - माँ... फिर बात को घुमा कर वहीँ ला रही हो...
प्रतिभा - नहीं तो...
विश्व - तो अब क्या कर रही हो....
प्रतिभा - मैंने तुझे इसलिए पुछा... के मान ले... अगर... वह रेडियो वाली नंदिनी कहीं मिली... तो तब... तु क्या करेगा... (रूप अपने बारे में सुन कर कान खड़े कर लेती है)
विश्व - (थोड़ा हँसते हुए) माँ वह रेडियो वाली... अरे माँ... मैं उसे पहचानुंगा कैसे...
प्रतिभा - मान ले... अगर मिल गई.. तो...
विश्व - तो... मैं उनको.. उनके विचार धारा के लिए... साधुवाद दूँगा... उनको... कहूँगा के वह अपनी विचार धारा को कभी ना छिड़े.... और... और... बस इतना ही..
प्रतिभा - बस... इतना ही...
विश्व - हाँ... और क्या करूँगा...
प्रतिभा - हे भगवान... इस लड़के से कुछ नहीं होगा... उठा ले...उठा ले रे देवा... मुझे उठा ले... मगर उससे पहले... मुझे पोते पोतीयों का मुहँ दिखा दे...

यह सुन कर रुप बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी को रोकती है

विश्व - माँ... मैं जा रहा हूँ...
प्रतिभा - कहाँ...
विश्व - काउंटर पर... कुछ ऑर्डर कर ले आऊँ.. तुम्हारे पास बैठा रहा तो पागल हो जाऊँगा..

विश्व मन मन बड़बड़ाते हुए काउंटर पर जाता है, वहाँ शुभ्रा अपनी ऑर्डर की प्रतीक्षा कर रही है l शुभ्रा विश्व को देखते ही झेंप जाती है और एक किनारे हो जाती है l विश्व को बड़बड़ाते देख शुभ्रा उत्सुकता वश विश्व से पूछती है

शुभ्रा - आप किसी को गाली दे रहे हैं क्या..
विश्व - नहीं... नहीं बहनजी नहीं... सॉरी ...अगर आपको ऐसा लगा तो.. उधर देखिए..(शुभ्रा उस तरफ देखती है) वह मेरी माँ है... आपको क्या लगता है... कितनी उम्र होगी उनकी...
शुभ्रा - (प्रतिभा को देख कर, हँसते हुए ) होगी वह कोई पैंतालीस या पचास की...
विश्व - नहीं वह बाहर से ऐसी दिखती है... असल में वह पाँच या छह साल की हैं...
शुभ्रा - (हिचकिचाते हुए) कोई मेंटल डीस-ऑर्डर है क्या...
विश्व - नहीं नहीं... वह अपनी सोसायटी की बड़ी रीनॉउन पर्सन हैं... बस मैं कभी कभी इनके पास आता हूँ... और जब भी आता हूँ... ना जगह देखती हैं ना वक़्त... उनकी बचपना शुरू हो जाती है...
शुभ्रा - हा हा हा.. सॉरी.. बट.. यु बोथ आर ठु गुड...

उधर विश्व के जाने के बाद रुप उन माँ बेटे की बात याद करते हँसी को दबाने की कोशिश में उसकी पर्स गीर जाती है तो पीछे से प्रतिभा वह पर्स उठा कर रुप को वापस देती है l

रुप - थैंक्यू... आंटी..
प्रतिभा - इसमे थैंक्यू की क्या बात है बेटी... क्या अकेली आई हो...
रुप - जी... जी नहीं आंटी...
प्रतिभा - ओ... अपने किसी दोस्त के साथ आई हो...
रूप - नहीं आंटी... मैं अपनी भाभी के साथ आई हूँ...
प्रतिभा - ओ... अच्छा... क्या नाम है तुम्हारा बेटा...
रुप - (कुछ पल के लिए सोच में पड़ जाती है, फ़िर) जी... जी.. मेरा नाम... नंदिनी है...
प्रतिभा - (बहुत खुश होते हुए) क्या... नंदिनी... रेडियो वाली...
रूप - जी.... जी नहीं... आंटी... मैं... कोई रेडियो वाली नहीं हूँ...
प्रतिभा - ओह... कोई बात नहीं बेटा... वह (विश्व को दिखाते हुए) मेरा बेटा है... प्रताप... आज रेडियो में... नंदिनी को सुन कर... बहुत इम्प्रेस हुआ है... इसलिए एक्साइटमेंट पुछ बैठी... बुरा मत मानना...
रूप - जी... जी नहीं आंटी...

फिर रूप सामने की ओर पलट जाती है और देखती है जैसे ही शुभ्रा ऑर्डर किए कॉफी हाथ में लेती है रुप उठ कर वहाँ चली जाती है और इशारे से एक ओर बुलाती है l शुभ्रा रुप के पास चली जाती है l

शुभ्रा - क्या हुआ...
रूप - भाभी... मैं थोड़ी देर वहाँ बैठती तो... वह आंटी है ना... मुझे अपनी बहु बना कर ही दम लेती... एक दम पागल है... पता नहीं उन्हें उनका बेटा कैसे झेलता है...
शुभ्रा - हाँ ठीक कहा... उनका बेटा अभी अभी काउंटर पर मिला था... मैंने उससे... उसकी माँ के बारे में बात की... वह भी उसकी माँ की पागलपन से परेसान है... अब तुम्हारी बात सुन कर उस बेचारे पर तरस आ रहा है... हा हा हा...

रूप भी शुभ्रा के साथ हँसने लगती है l तभी शुभ्रा की मोबाइल बजने लगती है l शुभ्रा अपनी कॉफी ग्लास रुप को थमा कर देखती है विक्रम का कॉल है l

शुभ्रा - हैलो...
विक्रम - आप मॉल पर ही रुकी रहिए... हम थोड़ी ही देर में पहुँच रहे हैं...
शुभ्रा - क्यूँ कोई प्रॉब्लम है क्या...
विक्रम - हाँ... है.. हमारे दुश्मन आप लोगों की रेकी कर रहे थे... अब शायद घेराबंदी कर रहे हैं... पिछली बार छोटे राजा जी पर हमला हुआ था... इसलिए हम कोई रिस्क नहीं ले सकते... हम आ रहे हैं... आप और राजकुमारी हमारी ही ऐसकॉट में घर जाएंगी...
मस्त अपडेट, प्रतिभा और विश्व की नोक झोंक एक दम मस्त थी। मजा आ गया। क्या नंदिनी के विचारो से रॉकी के विचार उसके लिए बदलेंगे। लगता है विश्व नंदिनी को दुश्मनों से बचा कर उसके दिल में अपनी जगह बना ही लेगा।
 

Ajju Landwalia

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Shandar update he bhai, bahut hi umda update hai ye, isme pehli baar comedy aai aapki story me....
Kisi dushman ke aane ki aahat lag rahi hain

Waiting for the next update
 

Kala Nag

Mr. X
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मस्त अपडेट, प्रतिभा और विश्व की नोक झोंक एक दम मस्त थी। मजा आ गया। क्या नंदिनी के विचारो से रॉकी के विचार उसके लिए बदलेंगे। लगता है विश्व नंदिनी को दुश्मनों से बचा कर उसके दिल में अपनी जगह बना ही लेगा।
शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया
विश्व इम्प्रेस तो करेगा जरूर पर
कैसे...
अगला अपडेट में पता चलेगा
 
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