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Fantasy वो कौन था

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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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पहली बार रात में श्मशान का अनुभव, दिन की अपेक्षा कुछ अलग लग रहा था, रात में श्मशान कुछ ज्यादा ही शांत रहता है, छोटे-छोटे जन्तुओ की आवाज कुछ ज्यादा ही गहरा जाती है, हर समय ऐसा लग रहा था जैसे की कोई आस-पास ही है लेकिन कोई होता नहीं था, जैसे की कोई नजर रहा हो, जैसे की हवा भी कुछ कहना चाह रही हो लेकिन मुर्दों की ख़ामोशी में सब कुछ मौन रह जाता है !

‘झाड़ियो में कुछ हलचल-सी होती है,’

सप्तोश उस तरफ देखता है,

‘कोई उकडू बैठा हुआ था’

‘वही था’

‘हा’

‘ये वही बुड्ढा था’

‘लेकिन’

‘लेकिन, ये क्या’

स्प्तोश उसे देखकर इतना नहीं चौकता है जितना की उसके हाथ में कुछ देखकर ! उसके हाथ में एक मानव के हाथ का टुकड़ा था जो अभी-अभी खोदे गए छोटे से गड्ढे से पता चल रहा था की उस बुड्ढ़े ने उस हाथ को वही से निकला है !

वो पागल बुड्ढा बिना किसी और ध्यान दिए अपनी मस्ती में उस मानव हाथ को नोच रहा था, खा रहा था !

उस पागल का इतना वीभत्स रूप देख कर सप्तोश को जैसे की साप सूंघ लिया हो, खून जैसे जम सा गया हो ! एक पल के लिए जैसे वह भूल ही गया था की वह यहाँ इस रात को श्मशान में क्यों आया था !

उस बुड्ढ़े ने सप्तोश की तरफ देखा, दोनों की आख ने आख मिली, पागल उकडू बैठे-बैठे ही थोडा पीछे हटता है, उस मानव हाथ को अपने पीछे छिपा देता है जैसे की कोई बच्चा अपने खाने की वस्तु किसी के मांगने पर छुपा देता है ! फिर धीरे-धीरे वो पागल उस हाथ को सामने सप्तोश की तरफ करके बोलता है

“भूख लगी है, खओंगे”

इतना सुनते है सप्तोश का डर भंग होता है, अपने वस्तु-स्तिथि का बोध होते ही वह सहज होने की कोशिश करता है

“तुम हो कौन” सप्तोश सहज होते-होते बोलता है लेकिन उसकी नजर अभी-भी उस नोचे गए हाथ की तरफ थी !

“क्या”

“भूख नहीं लगी है”

“खाना नहीं चाहिए”

“तो क्यों आये हो”

“भागो यहाँ से”

“भागो”

वो पागल क्रोध से और उत्तेजित होते हुए सप्तोश पर चिल्लाता है और वहा से उछलते-कूदते हुए भाग जाता है !

जैसे ही वो पागल वहा से भागता है सप्तोश की तन्द्रा टूटती है और वो भी उस पागल का पीछा करने लग जाता है ! सप्तोश ने इस तरह का आदमी या पागल कभी नहीं देखा था जो उसे एक मास का टुकड़ा खाने का देगा और वो भी एक मानव-मास का !

बहुत देर हो गई लेकिन वो पागल बुड्ढा अभी तक नहीं मिला सप्तोश को ! वो सप्तोश के सामने से कब और किस तरफ भाग गया उसे पता ही नहीं चला ! रात्रि का अंतिम चरण चल रहा था ! आखिर सप्तोश ने हार मान ही ली ! वो वापस जाने के लिए चल पड़ा !

वापस उसी रास्ते चल पड़ता है जहा से उसने श्मशान में प्रवेश किया है ! भीखू डोम अभी-भी वही बैठे-बैठे बीडी पी रहा था, लेकिन सप्तोश उस पर ध्यान नहीं देते हुए उसके पास से बाहर निकल जाता है !

सप्तोश का दिमाग थोड़े समय के लिए सुन्न-सा पड़ गया था, लेकिन अब उसने अपनी हालात पर काबू पा लिया था और वापस सोच-विचार की क्षमता आ गई थी !

सप्तोश प्रौढ़ था, वह उम्र की अपनी उस दहलीज पर था जहा से लोग बूढ़े होने शुरू होने लगते है, लेकिन सप्तोश ने कुछ नया सीखने और जानने में अपनी उम्र को कभी बीच में नहीं लाया था, ३२ वर्ष की उम्र में उसने शिष्यत्व ग्रहण किया था, बीबी-बच्चे सब थे उसके पास !

‘लेकिन’

‘एक बार उसने कुछ देख लिया’

‘कुछ अलग’

‘अलौकिक’

‘जो एक बार कोई अलौकिक घटना को देख लेता है’

‘वो व्यक्ति अपने में नहीं रहता है’

‘अपने ही अस्तित्व से सवाल करने लगता है’

‘वापस उसी अलौकिक घटना को देखना चाहता है’

‘उसी अलौकिकता को महसूस करना चाहता है’

बस इसी प्रबल जिज्ञासा के कारण सब छोड़ दिया उसने !

‘अपना परिवार’

बीवी-बच्चे

बूढ़े माँ-बाप

सब कुछ !

बाबा बसोठा का शिष्यत्व के बाद उसने काफी कुछ घटनाये देखी ! उसकी जिज्ञासा शांत होने लगी लेकिन मिट नहीं गयी, वो कुछ महसूस करना चाहता था लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था की वो अभी तक क्या है जो उसे चाहिए, क्या है जो उसे उसके अधूरेपन का अहसास करवाती है !

लेकिन,

लेकिन कल से जो सब कुछ घटनाये हो रही थी उससे उसकी जिज्ञासा की लों धीरे-धीरे एक दावानल का रूप ले रही थी, उसने फिर ने जाना की इस प्रकति में और भी है, बहुत-कुछ है, जो उसे जानना है, समझना है, महसूस करना है, उसके मन में, छाती पर एक भारीपन आ चूका था जिसे हल्का करने के लिए वह चलते-चलते मुड जाता है एक रास्ते पर !

विचारो की उधेड़बुन में वो चलता जाता है लेकिन ये रास्ता मंदिर की तरफ नहीं जा रहा था,वो जा रहा था गाव के पच्शिम में ! जहा पर......
बहुत ही खूब मनोज भाई,,,,, :claps:
सबकुछ बहुत ही बढ़िया चल रहा है और अब ज़रूरत है कहानी में थोड़ा तेजी लाने की तथा अपडेट के साइज़ को बड़ा करने की।
 

harshit1890

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Pehla hi update padha. Bahut hi professionally likha hai. Kahani ke bare mei to kehna abhi uchit nahi hoga par lekhan baht hi umda hai. I guess XF needs more writers like you.

Kahani aage padne ki icha hai par samay aaj ka jda ho gaya to kal fursat mein paduga. Keep going bhai :rock:
 

TheBlackBlood

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मनोज भाई, अपडेट का बड़ी शिद्दत से इन्तज़ार है। :waiting1:
 

manojmn37

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विचारो की उधेड़बुन में वो चलता जाता है लेकिन ये रास्ता मंदिर की तरफ नहीं जा रहा था,वो जा रहा था गाव के पच्शिम में ! जहा पर एक बार जा चूका था – दोजू के झोपड़े की और !



सुबह अब हो ही चुकी थी ! सूर्यदेव के सारथि अरुण अपनी लालिमा चारो ओर फैलाते हुए पुरे जगत को अपने अस्तित्व का बोध करा रहे थे ! गाव के सुबह की बात ही निराली होती है

‘इसमें एक तरह की खुशबु होती है’

‘एक तरह का एहसास होता है’

‘उर्जा का संचार होता है, जो दिन-भर की कड़ी मेहनत की प्रेरणा का स्त्रोत होती है’

लोगो का आवागमन शुरू हो चूका था, औरते पानी के लिए नदी के तरफ आ जा रही थी, मछुआरे अपने-अपने जालो को सही कर रहे थे, सप्तोश उसी की तरफ जा रहा था, नदी किनारे, दोजू की तरफ !

इस बार सप्तोश झोपड़े के दरवाजे की तरफ ना जा कर झोपड़े के पीछे की तरफ चला जाता है नदी किनारे ! वहा दोजू पीठ के बल लेटा हुआ था, नहीं सोया हुआ था या उसको अचेत कहना सही रहेगा ! एक कुत्ता उसके पैरो के पास पड़ा वो भी सुस्ता रहा था और एक उसके कपड़ो को चाट रहा था !

पास में अभी बुझे हुए अंगारों अधजली लकडियो और कुछ खाली बोतलों से पता चल रहा था की वो देर रात तक मदिरा का लुफ्त उठा रहा था ! सप्तोश उसके पास जाकर पहले कुत्तो को वहा से भगा देता है फिर वहा उसके पास बैठ जाता है !

थोड़ी देर बैठने के बाद कुछ विचार करके वह उठता है फिर वह उसके झोपड़े की तरफ जाता है, बाल्टी लेने, जो उसके झोपड़े के पीछे ही एक कील से लटकी हुयी थी, लेकिन जैसे-जैसे वह झोपड़े के पास जाता है उसे पिछली रात्रि का वैसे ही डर का अहसास होता है, बाल्टी नदी पर भरकर पूरी-की –पूरी दोजू पर उड़ेल देता है...

.

.

.

.

“आप मेरी बात समझ क्यों नहीं रहे हो” एक व्यक्ति बोल पड़ता है

“तेरी बाते कुछ मतलब की ही नहीं है” दूसरा व्यक्ति बोलता है

“मेरी तो आप दोनों की ही बाते समझ में नहीं आती है, बार-बार रणनीति बनाते हो और बार-बार उसे फिर से तैयार करते हो”

वापस पहला व्यक्ति बोलता है

“हमारी रणनीति तैयार हो ही चुकी थी महाराज लेकिन अंतिम वक्त पर वो आ गया” तभी तीसरा व्यक्ति एक की तरफ इशारा करके बोलता है जो छत पर खड़े-खड़े उगते हुए सूर्य को देख रहा था !

दूसरा व्यक्ति कुछ उलजन में एक बार उस तीसरे को देखता है और एक बार उस आदमी को जो थोडा गंभीर मुद्रा में सूरज को देख रहा था !

“आप लोग रणनीति-रणनीति खेलते रहो पिताजी में जा रहा हु” पहला व्यक्ति वापस बोलते हुए अपनी जगह से उठता है और सीढियों से नीचे चला जाता है

.

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.

.

सुबह की पूजा-अर्चना कर चेत्री, भगवान शिव की प्रतिमा को निहार रही थी, वैसे तो वो कई बार इस महान प्रतिमा को देख चुकी थी जब वह राजा के साथ महीने में एक बार यहाँ आती थी लेकिन आज, आज कुछ विशेष लग रही थी !

यहाँ विशेष शब्द का प्रयोजन, उस प्रतिमा को लेकर नहीं था..
 

manojmn37

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bade dino se gayab ho gaye ho writer sahab :peep:
अभी 3-4 दिनों से बहुत व्यस्तता चल रही है
कहानी के लिए समय ही नहीं निकाल पा रहा हु
 
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