विचारो की उधेड़बुन में वो चलता जाता है लेकिन ये रास्ता मंदिर की तरफ नहीं जा रहा था,वो जा रहा था गाव के पच्शिम में ! जहा पर एक बार जा चूका था – दोजू के झोपड़े की और !
सुबह अब हो ही चुकी थी ! सूर्यदेव के सारथि अरुण अपनी लालिमा चारो ओर फैलाते हुए पुरे जगत को अपने अस्तित्व का बोध करा रहे थे ! गाव के सुबह की बात ही निराली होती है
‘इसमें एक तरह की खुशबु होती है’
‘एक तरह का एहसास होता है’
‘उर्जा का संचार होता है, जो दिन-भर की कड़ी मेहनत की प्रेरणा का स्त्रोत होती है’
लोगो का आवागमन शुरू हो चूका था, औरते पानी के लिए नदी के तरफ आ जा रही थी, मछुआरे अपने-अपने जालो को सही कर रहे थे, सप्तोश उसी की तरफ जा रहा था, नदी किनारे, दोजू की तरफ !
इस बार सप्तोश झोपड़े के दरवाजे की तरफ ना जा कर झोपड़े के पीछे की तरफ चला जाता है नदी किनारे ! वहा दोजू पीठ के बल लेटा हुआ था, नहीं सोया हुआ था या उसको अचेत कहना सही रहेगा ! एक कुत्ता उसके पैरो के पास पड़ा वो भी सुस्ता रहा था और एक उसके कपड़ो को चाट रहा था !
पास में अभी बुझे हुए अंगारों अधजली लकडियो और कुछ खाली बोतलों से पता चल रहा था की वो देर रात तक मदिरा का लुफ्त उठा रहा था ! सप्तोश उसके पास जाकर पहले कुत्तो को वहा से भगा देता है फिर वहा उसके पास बैठ जाता है !
थोड़ी देर बैठने के बाद कुछ विचार करके वह उठता है फिर वह उसके झोपड़े की तरफ जाता है, बाल्टी लेने, जो उसके झोपड़े के पीछे ही एक कील से लटकी हुयी थी, लेकिन जैसे-जैसे वह झोपड़े के पास जाता है उसे पिछली रात्रि का वैसे ही डर का अहसास होता है, बाल्टी नदी पर भरकर पूरी-की –पूरी दोजू पर उड़ेल देता है...
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“आप मेरी बात समझ क्यों नहीं रहे हो” एक व्यक्ति बोल पड़ता है
“तेरी बाते कुछ मतलब की ही नहीं है” दूसरा व्यक्ति बोलता है
“मेरी तो आप दोनों की ही बाते समझ में नहीं आती है, बार-बार रणनीति बनाते हो और बार-बार उसे फिर से तैयार करते हो”
वापस पहला व्यक्ति बोलता है
“हमारी रणनीति तैयार हो ही चुकी थी महाराज लेकिन अंतिम वक्त पर वो आ गया” तभी तीसरा व्यक्ति एक की तरफ इशारा करके बोलता है जो छत पर खड़े-खड़े उगते हुए सूर्य को देख रहा था !
दूसरा व्यक्ति कुछ उलजन में एक बार उस तीसरे को देखता है और एक बार उस आदमी को जो थोडा गंभीर मुद्रा में सूरज को देख रहा था !
“आप लोग रणनीति-रणनीति खेलते रहो पिताजी में जा रहा हु” पहला व्यक्ति वापस बोलते हुए अपनी जगह से उठता है और सीढियों से नीचे चला जाता है
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सुबह की पूजा-अर्चना कर चेत्री, भगवान शिव की प्रतिमा को निहार रही थी, वैसे तो वो कई बार इस महान प्रतिमा को देख चुकी थी जब वह राजा के साथ महीने में एक बार यहाँ आती थी लेकिन आज, आज कुछ विशेष लग रही थी !
यहाँ विशेष शब्द का प्रयोजन, उस प्रतिमा को लेकर नहीं था..