“क्या चाहिए आपको” माणिकलाल को बस कहने भर की ही देरी थी वो इस समय अपना पूरा घर, यहाँ तक की सब कुछ उस दोजू की झोली में डाल देता !
‘सप्तोश दोजू को देखता है की क्या मांगेगा’
दोजू हल्के से मुस्कुराता है, आखो में चमक लिए बोलता है
“बारह दिन”
“बारह दिन ?” सप्तोश और माणिकलाल दोनों ही असमंजस में एक साथ बोल पड़ते है
“हा, बारह दिन”
“मतलब” माणिकलाल बोलता है
“बारह दिनों तक तुम्हे मेरे साथ चलना होगा, जो भी तुम अर्जित करोंगे उन बारह दिनों तक, वो सब मेरा होगा, बोलो मंजूर है” दोजू माणिकलाल को देखते हुए बोलता है
“ठीक है, में तैयार हु” माणिकलाल बिना सोचे-समझे ही बोल पड़ता है, उसको तो इस क्षण बस अपनी बच्ची के ठीक होने के इन्तेजार में था, भला एक बाप को और क्या चाहिए !
“लेकिन” बिच में निर्मला बोल पड़ती है
“तुम इसकी चिंता मत करो, ये मेरे साथ सुरक्षित रहेगा, वचन देता हु” दोजू माणिकलाल की ओर इशारा करते हुए निर्मला से कहता है, और अपने झोले में से एक पोटली माणिकलाल की और फेक देता है “और ये लो”
“ये क्या है, वैद्यजी” माणिकलाल वापस असमंजस में बोलता है !
“तुम्हारे यहाँ पर नहीं रहने पर ये धन तुम्हारी पत्नी के काम आएगा”
माणिकलाल उस पोटली को खोलकर देखता है, उसमे ४०-५० सोनो और चांदी के सिक्के थे !
वास्तव में राजवैद्यीजी ने सच ही कहा था दोजू का धन से कोई सरोकार नहीं था, धन उसके लिए कोई मायने नहीं रखता था !
सप्तोश ये सब देख कर अब सोचने लगता है, इन बारह दिनों में ऐसा क्या चाहिए दोजू को माणिकलाल से जो बिना सोचे-समझे ही इतना धन दे दिया ! सप्तोश के लिए दोजू भी अब रहस्य बन चूका था !
माणिकलाल को समझ नहीं आ रहा था की ये धन वो दोजू से ले या ना ले !
“इतना मत सोच माणिकलाल, इन बारह दिनों में तुम जो मुझको देने वाले हो उसके बदले में ये धन तो कुछ भी नहीं है” दोजू ऐसे बोल पड़ता है जैसे ये सौदा उसके हाथ से न निकल जाये !
“लेकिन हमारी बच्ची, वो तो ठीक हो जाएगी न ?” निर्मला बोलती है
तभी दरवाजे पर दस्तक होती है
“राजवैद्यीजी आप” माणिकलाल बोल पड़ता है
“अनुमति हो तो अन्दर आ सकते है”
चेत्री ये सब बाते बाहर से सुन रही थी ! जैसे ही सुरभि के इलाज की बात आई वो रह न सकी, क्योकि उसे जानना था की जिसका उपचार में 1 साल तक न कर सकी, उसको दोजू एक दिन में कैसे कर सकता है
“अब तुम क्यों आयी हो ?” दोजू थोडा गुस्से से बोल पड़ता है
“देखना चाहती हु में भी की तुम इलाज कैसे करते हो”
“ले आओ बच्ची को” दोजू बोल देता है माणिकलाल को !
माणिकलाल और निर्मला दोनों जाकर अन्दर से सुरभि को, खाट समेत बाहर ले आते है !
चेत्री निरिक्षण करती है,
सुरभि की हालत अब पहले से ज्यादा ख़राब हो चुकी थी, त्वचा की लगभग आखिरी परत बची थी और वो भी सूखती जा रही थी, त्वचा में से मास और शिराए साफ-साफ देख सकते थे, जैसे लगता था अंतिम क्षण है उसका ! फिर चेत्री थोडा पीछे हट जाती है !
“अपनी आखो को सम्भाल कर रखना” मजाक भरे अंदाज में दोजू चेत्री को बोलता है
दोजू अपने झोले में से वही मिश्र धातु का गोल डिब्बा निकालता है जो उसने सप्तोश से लिया था,
“बच्ची को नीचे लिटा दो” दोजू चेत्री को बोलता है
चेत्री सावधानीपूर्वक सुरभि को नीचे लिटा देती है !
“नाम क्या है बच्ची का” दोजू पूछता है
“सुरभि” माणिकलाल झट से बोल देता है
दोजू अब नाटकीय अंदाज में आखे बंद करके उस डिब्बे के ऊपर उंगली धुमाते हुए कुछ मंत्र सा बोलता है उसकी आवाज बहुत धीरे थी किसी को भी सुनाई नहीं दे रही थी बस फुसफुसाने की आवाज आ रही है और अंत में दोजू डिब्बी को नीचे रखते हुए बोलता है “सुरभि”
सभी लोगो की आखे उस डिब्बी को घुर रही थी, खास कर चेत्री की, वो काफी उत्सुक थी, क्या है कौडम !
तभी उस डिब्बी का ढक्कन खुलता है,
उसमे से एक काले रंग का चमकीला बिच्छू निकलता है,
वो धीरे-धीरे सुरभि के पास जाता है,
सप्तोश अपने पुरे ९ साल के मेहनत को अपने सामने से जाते हुए देख रहा था,
सब लोग आखे फाड़े उसे देख रहे थे,
बिच्छू सुरभि के पास जाता है,
उसके हाथ की शिरा को ढूंडता है
और,
और
डंक मार लेता है !
उसके पश्चात् वो बिच्छू हवा के साथ धुँआ बन जाता है !
सभी लोगो की आखे अभी तक सुरभि के उस डंक पर ही थी !
तभी अचानक उसके शरीर पर कुछ परिवर्तन होता है,
वो परिवर्तन बहुत ही तीव्र था,
बहुत ही जल्दी से नयी कोशिकाए उत्पन्न होकर अपनी जगह ले रही थी,
और कुछ ही क्षण में सुरभि का शरीर बिलकुल ठीक हो जाता है !
दोजू के अलावा जैसे सभी लोगो ने वहा सपना देख रहे थे, सब जड़ मूर्ति से बने हुए थे अब तक !
दोजू वहा से उठता है और दरवाजे के पास जाकर खटखटाता है जिससे की सबका ध्यान उसकी तरफ आ जाता है
“माणिकलाल, कल भोर के पहले प्रहर तक झोपड़े पर आ जाना, वचन दिया है” दोजू माणिकलाल को आदेशपूर्ण आवाज में बोलता है “सुरभि की चेतना संध्या तक लौट आएगी” कहते हुए दोजू अपने झोपड़े की ओर चल पड़ता है !
उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था की जैसे किसी बड़े युद्ध की पूर्ण तैयारी पूर्ण कर ली हो और कल युद्ध के लिए रवाना होना हो !
लेकिन अभी भी कोई था दूर देश में जिनकी रणनीति अभी भी पूर्ण नहीं हुयी थी, वो अभी भी अपने सन्देश का इन्तेजार कर रहा था..