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Fantasy वो कौन था

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ashish_1982_in

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पहला आध्याय

दोहपर का समय था सूर्य देवता अपना पूरा अस्तित्व बता रहे थे ! पुरे जगत को अपने किरणों से प्रकाशमान करने वाले और सभी जीवो और प्रकति को संतुलित रखने वाले सूर्य देवता आज एसा लग रहे थे जैसे कुध्र होकर बरस रहे हो ! लगता है जैसे हवा भी आज सूर्यदेव के क्रोध का शिकार हो गयी है आसमान से जैसे अंगार बरस रहे है ! कुछ पक्षी अपने घोसलों में बैठे या तो अपने साथियों की प्रतीक्षा रहे थे या सूर्य के कम होने का इंतेजार कर रहे थे और कुछ पक्षी पानी की तलाश में अपनी खोजी व्यक्तित्व की पहचान दे रहे थे ! पालतू मवेशी अपने अपने बेड़े में बैठकर अपने मालिको की प्रतीक्षा कर रहे थे की कब उनके मालिक आकर चारा पानी की व्यवस्था कर दे ! कुत्ते यहाँ वहा चाव देखकर सुस्ता रहे थे ! सारे लोग अपने अपने घरो में आराम कर रहे थे और खेतो में काम करने वाले मजदुर भी पेड़ो के निचे बैठ है अपनी शुधा शांत कर रहे थे !

अभी- अभी एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति अपने घर से निकलकर हाट की तरफ जा रहा था उस व्यक्ति का हुलिया और अभी अभी आ रहे सफेद बालो की वजह से एसा लग रहा था की जैसे उसके भाग्य ने उसे समय से पहले ही काफी कुछ सिखा दिया हो ! हाथ में उसने एक कपडे की जोली लटका थी, फटे कपड़ो के चप्पल और पुराने बेरंग कपडे उसकी जर्जर स्तिथि का वर्णन कर रही थी ! वो व्यक्ति धीरे-धीरे अपने कदम हाट की तरफ ले जा रहा था और मन में उसके काफी विचार उभर रहे थे कुछ थोड़े से सिक्को और ढेर सारी जरूरतों को लेकर वो चल रहा था ! एसा इसलिए नहीं की दोहपर को वह खाली पड़ा रहता था या कुछ करने के लिए काम नहीं था बल्कि उसने इस भरी दोहपर को इसीलिए हाट जाने के लिए चुना था क्युकी इस समय एक्का दुक्का लोग ही हाट में रहते है ताकि लोग उससे अपना उधार मांग कर वो परेशान न हो ! परेशानी उसे इस बात की नहीं थी की लोग उस से अपना मांगेंगे बल्कि इस बात से थी की वो इन सब का धन कैसे लौटाएगा ! आखिरकार वो हाट पहुच ही गया !

हाट पहुचते ही उसने नजर इधर उधर घुमाई और एक दुकान की तरफ चल पड़ा ! वो एक धागों की दुकान थी ! वो व्यक्ति अपनी आजीविका और घर का पेट पालने के लिए कपड़ो की बुनाई करता था इसीलिए वो हाट में धागे और कुछ अनाज लेने आया था !

“कैसे हो माणिकलाल” उस दुकानदार ने कहा !

दुकानदार के कटाक्ष ने माणिकलाल का ध्यान खीचा

“माफ़ करना हरिराम, में तेरा धन जल्द ही चूकता कर दूंगा “

“अरे में तो बस ऐसे ही पूछ रहा था, बताओ क्या खरीदने आये हो “

माणिकलाल ने दुकान में रखे धागों पर एक नजरभर दौड़ाई और कुछ हरे सूत के धागों का मोल पूछा

“हरे रंग का सूत, ये किसके लिए ले जा रहे हो”

“आज सुबह ही एक बुढा आया था घर पर, उसने कहा की उसको हरे रंग के कुर्ते के लिए एक कपडा चाहिए था”

“माफ़ करना माणिकलाल, लेकिन इन रंग के धागों का में उधारी नहीं रख सकता ! पहली बात तो ये है की इन रंग के धागे बहुत कम आते है और दूसरी की आजकल तुम्हारी उधारी कुछ ज्यादा ही हो रही है” हरिराम ने बनावटी उदास भाव में कहा !

“आज इसकी कोई जरुरत नहीं पड़ेगी”

“मतलब क्या है तुम्हारा ?” हरिराम उसकी जर्जर हालात से पूरा वाखिफ था और वो उसको और उधारी का माल नहीं देना चाहता था इस लिए वह माणिकलाल की इस बात से थोडा चौक गया था

“मतलब ये है की इन धागों की आज में पूरा मूल्य चूका के जाऊंगा”

“लगता है कुछ खजाना हाथ लग गया है”

“अरे नहीं भाई, सुबह उस बूढ़े ने कपडे की सारी रकम पहले ही दे दी और ३ दिन बाद आने को कहा है”

“कोन है वो बुढा, जिसने माल से पहले ही पूरी रकम दे दी “

“में भी हैरान हु, वो अपने गॉव का तो नहीं था ! उसका पहनावा भी अलग था ढाढ़ी थोड़ी लम्बी और सर पर कुछ अजीब सा पहन रखा था शायद धुप से बचने के लिए होगा, और तो और उसके कहा ही कपडे के लिए हरे रंग के धागों का ही इस्तेमाल करना, कपडा बुनने के बाद रंगना मत”

“लगता है कोई परदेसी होगा”

“वो सब बाते छोड़ो, कपडे का कितना मूल्य हुआ”

“पुरे ७ ताम्बे के सिक्के”

माणिकलाल ने सिक्के दिए और धागों को अपने झोले में डालने लगा तभी अचानक एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और माणिकलाल से टकरा गया जिससे वो दोनों गिर पड़े और वो धागे निचे मिट्टी में गिर गए !

“हा हा हा हा बदल जायेगा, बदल जायेगा, सब बदल जायेगा”

ये गॉव का पागल बुढा था जो दिन भर चिल्लाता हुआ गॉव में घूमता रहता था फटे कपडे, बालो से भरा चेहरा, पिली और लाल मिश्रित आखे, जैसे कई रातो से वह सोया नहीं था कोई भी उसको देखकर भय से काफ उठे ! उसकी उस हालात से उसकी उम्र का कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता था की वह कितना बुड्डा था ! वो बहुत सालो से ऐसे ही दिख रहा था जैसे की उसकी उम्र थम सी गयी हो !

दुकानदार ने पास में रखे डंडे को उठाया और उस पागल को मारने के अंदाज में ऊपर लहराया, वो पागल वहा से चिल्लाता हुआ भाग गया !

“चोट तो नहीं लगी माणिकलाल”

गिरने की वजह से माणिकलाल के हाथो और पीठ पर कंकड़ की वजह से कुछ खरोचे आ गयी थी

“नहीं, कोई बात नहीं, में ठीक हु”

“पता नहीं इस पागल से कब छुटकारा मिलेगा, ना तो ये गॉव से जाता है और ना ही मरता है” दुकानदार ने घृणा भरे अंदाज में कहा

माणिकलाल उठा और अपने जोले को सही करके जमीन पर गिरे धागों को उठाकर जोले में डाल देता है और चलने लगता है

वो हाट में इधर उधर देखता है और कुछ अनाज और धान लेकर अपने घर की और निकल पड़ता है

माणिकलाल का घर गॉव के उत्तरी दिशा में सबसे अंत में था और इसके आगे से जंगल शुरू होता था ! माणिकलाल धीरे धीरे घर की और बढ़ता है तभी उसे अचानक एक पेड़ के निचे कुछ दिखाई देता है वो चौका !! उसको जैसे यकीन नहीं हुआ, और धीरे धीरे पेड़ के नजदीक पंहुचा ! लेकिन अब वहा कोई नहीं था ! शायद मेरा भ्रम था – उसने मन में सोचा और अपने घर की और निकल पड़ा !

अगली सुबह गॉव में कुछ हलचल सी मची थी, सभी लोग शिव मंदिर में जाने को उत्सुक हो रहे थे बहुत बड़ी मात्र में भीड़ उमड रही थी

मंदिर गॉव के लगभग बिच में ही था ! शिव मंदिर बहुत ही भव्य और प्राचीन था ! मंदिर के २ मुख्य द्वार थे, एक दक्षिणी द्वार और दूसरा पूर्वी द्वार ! मंदिर के दक्षिणी द्वार में प्रवेश करते ही नंदी की एक विशाल प्रतिमा (लगभग २० फीट ऊची ) और पूर्वी द्वार में एक बिच्छु की प्रतिमा दिखाई पड़ती है ! मंदिर का प्रांगण बहुत ही बड़ा था जिसमे १२०० से भी अधिक लोग एक साथ आ सकते थे ! इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता ये थी की इसमें कोई गर्भ गृह नहीं था और ना ही शिवलिंग, बस एक शिव की विशाल प्रतिमा खुले आकाश के निचे ध्यानस्थ अवस्था में थी ! ये प्रतिमा इतनी बड़ी थी की दूर के उत्त्तरी पहाडियों से भी हल्की सी दिखाई पड़ती थी ! इस मंदिर में इस क्षेत्र का राजा धूम्रकेतु हर अमावस्या पर आकर अभिषेक करता था ! यद्यपि यह गॉव और राजधानी के बिच का रास्ता २ दिन का पड़ता था फिर भी राजा अपने पूर्वजो की प्रथा को आगे बढ़ाने पर बिलकुल विलम्ब नहीं करता था

माणिकलाल अपने घर में बुनाई का कम बस शुरू ही कर रहा था की उसको कुछ ध्वनि सुनाई दी ! ये ढोल और नगाडो की आवाजे थी ! ये आवाजे सुनकर उसकी पत्नी भी खाना बनाते बनाते बिच में छोड़कर माणिकलाल के पास आ गयी !

“ सुनो जी, आज गॉव में कोई उत्सव है क्या “ उसकी पत्नी बोली

“मुझे तो इस बात की कोई खबर नहीं है, रुको में अभी देखकर आता हु “ माणिकलाल ने अपना बुनाई का सामान निचे रखते हुए बोला

“ठीक है लेनिक जल्दी आना, सुरभि को दोहपर से पहले वैध जी के यहाँ भी ले चलना है “ उसकी पत्नी ने कहा

सुरभि का नाम सुनते ही उसका उत्साह थोडा कम हो गया !

“ठीक है, में जल्द ही आ जाऊंगा” ये कहते ही माणिकलाल अपने घर से उस ढोल की आवाजो की तरफ चल पड़ा !

पुरे गॉव में उत्सव की लहर दौड़ चुकी थी, हर कोई अपना अपना काम छोड़कर ढोल की आवाज की और जा रहा था ! भीड़ बढ़ चुकी थी और तो और राजा धूम्रकेतु भी अपने पुरे परिवार के साथ वहा आ चूका था ! पूरी भीड़ आचर्यचाकित थी की आज ना ही अमावस्या है और न ही कोई विशेष त्यौहार फिर भी आज वहा राजा आया हुआ था !

राजा धूम्रकेतु वहा किसी की साधू बाबा की पूजा कर रहे थे ! उनके चहरे पर चिंता और प्रसन्नता के मिक्ष्रित भाव थे, मन में उधेड़बुन चल रही थी !

माणिकलाल भी भीड़ को चीरता हुआ वहा आ पंहुचा ! वो भी चौक गया, उसने भी राजा को उस हालात में पहली बार देखा था ! जो राजा कभी किसी के सामने झुका नहीं, पता नहीं कितने ही साधू महात्मा उनकी राजधानी में आकर चले भी गए परन्तु धूम्रकेतु ने कभी किसी को नमस्कार तक भी नहीं किया ! इसलिए माणिकलाल को अपने आखो पर विश्वास नहीं हो रहा था की राजा धूम्रकेतु किसी साधू बाबा की सेवा कर सकता है !

वो साधू बाबा दिखने में हष्ट पुष्ट था, उम्र में बहुत बूढ़े थे लगभग १२०-१४० वर्ष के, लेकिन उनकी उम्र का उनके शरीर से पता नहीं चल रहा था ! लम्बी सफेद दाढ़ी, काली धोती और उपर कुछ नहीं, ललाट पर भबूत से कुछ निशान बना और लम्बी जटाए ! लगभग १५० से ज्यादा उनके शिष्य और शिष्याए उनके आस पास बैठे हुए थे ! सभी मंदिर के प्रांगण में शिव की प्रतिमा के समकक्ष बैठे थे !

“तुम भी यह आये हो माणिक” माणिकलाल का ध्यान भंग हुआ, किसी ने उसके पीठ पर हाथ फेरते हुये कहा

“रमन, तो ये तुम हो “ माणिकलाल ने कहा !

रमन माणिकलाल का बचपन का मित्र था जिसने अब तक उसका साथ नहीं छोड़ा था !

“तुम यहाँ क्या कर रहे हों” रमन ने पूछा !

“कुछ नहीं, बस ढोल और नगाडो की आवाज बहुत जोरो से आ रही थी तो सोचा की देख आऊ ! लेकिन यहाँ आया तो कुछ पता भी रही चल रहा है की क्या हो रहा है”

“सामने से हट, मुझे देखने दे “

रमन माणिकलाल को उधर करके भीड़ से थोडा आये चला गया और सामने का द्रश्य देखता है ! एक बार में तो वो भी चौक गया लेकिन उसे कुछ याद आया “अच्छा तो ये बात है “

“क्या हुआ, क्या तुम जानते हो “

“पूरा तो नहीं, लेकिन थोडा थोडा “

“में जब छोटा था तब मेरे दादाजी ने इनके बारे कुछ बताया था “ रमन ने कहा

“ क्या बताया था, जल्दी कहो”

“बहुत समय पहले की बात है जब राजाजी की उम्र ३-४ साल होगी ! तब उनको एक साप ने डस लिया था ! बड़े राजा साहब ने इनका बहुत इलाज करवाया लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा और अन्त में राजाजी की मौत हो गयी ! उस समय पुरे राज्य में मातम सा छाया हुआ था क्युकी बड़े राजाजी की एक ही संतान थी और वो भी बहुत समय बाद काफी मन्नतो के बाद पैदा हुई थी ! बड़े राजाजी इनको बहुत प्यार करते थे और अब वे पूरी तरह टूट चुके थे ! २ दिनों बाद शव का अंतिम संस्कार था और पूरा राज घराना शौक में डूबा हुआ था “

“ यदि राजाजी मर चुके थे तो ये कौन है “ बिच में ही माणिकलाल ने पूछा !

“अरे मेरी पहले पूरी बात तो सुन लिया करो ! अब सुनो “

“जैसे ही शव का अंतिम संस्कार करने के लिए नदी के पास वाले शमसान में जा रहे थे तभी एक काले कपड़ो वाला एक साधू दिखाई दिया ! उस साधू ने बड़े राजाजी से कहा ही वह उस शव को वापस जिन्दा कर देगा लेकिन उसकी एक शर्त थी ! और उसकी शर्त............”

अचानक रमन और माणिकलाल को भीड़ में से किसी ने धक्का दिया !
nice story
 

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“बहुत समय पहले की बात है जब राजाजी की उम्र ३-४ साल होगी ! तब उनको एक साप ने डस लिया था ! बड़े राजा साहब ने इनका बहुत इलाज करवाया लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा और अन्त में राजाजी की मौत हो गयी ! उस समय पुरे राज्य में मातम सा छाया हुआ था क्युकी बड़े राजाजी की एक ही संतान थी और वो भी बहुत समय बाद काफी मन्नतो के बाद पैदा हुई थी ! बड़े राजाजी इनको बहुत प्यार करते थे और अब वे पूरी तरह टूट चुके थे ! २ दिनों बाद शव का अंतिम संस्कार था और पूरा राज घराना शौक में डूबा हुआ था “

“ यदि राजाजी मर चुके थे तो ये कौन है “ बिच में ही माणिकलाल ने पूछा !

“अरे मेरी पहले पूरी बात तो सुन लिया करो ! अब सुनो “

“जैसे ही शव का अंतिम संस्कार करने के लिए नदी के पास वाले शमसान में जा रहे थे तभी एक काले कपड़ो वाला एक साधू दिखाई दिया ! उस साधू ने बड़े राजाजी से कहा ही वह उस शव को वापस जिन्दा कर देगा लेकिन उसकी एक शर्त थी ! और उसकी शर्त............”

अचानक रमन और माणिकलाल को भीड़ में से किसी ने धक्का दिया !

“धन का इंतजाम हो गया माणिक चाचा ?” एक लड़के ने कहा !

इस आवाज को सुनते ही रमन के आख में एक मिर्ची सी लगी ! ये इस गाव के एकमात्र साहूकार का एकमात्र बेटा था, कालू : बहुत ही अड़ियल और बेशर्म था ! अपने पिता, राजन सेठ से बिलकुल विपरीत था !

राजन सेठ, इनका व्यहार अपने साहूकार के व्यक्तिव्य से बिलकुल अलग था ! साधारण सा दिखने वाला शरीर, सरल वेशभूषा और सहज ही उसकी भाषा ! कोई भी अनजान व्यक्ति ये सोच भी नहीं सकता की उसका दूर-दूर तक कोई साहूकार का सम्बन्ध भी हो सकता था ! वह कर बार निर्धनों को बिना सूद के ही धन दे दिया करता था और समय ख़तम होने पर उन पर जोर भी नहीं देता था ! एसा नहीं की राजन सेठ के इस व्यहार से उसे साहुकारी में बहुत फायदा बल्कि कभी-कभी तो वह घाटे में भी चला जाता था लेकिन अपने पूर्वजो की छोड़ी गई इतनी धन सम्पदा, जो लोगो के खून पसीने से वसूली गई थी, कभी कम नहीं पड़ी थी !

कालू, जिसका सही नाम कालिसेठ था, उसके इस अड़ियल स्वाभाव के कारण सब उसके पीठ पीछे उसे कालू ही कहते थे ! वैसे कालू की गाव में कोई खास इज्जत नहीं थी,बल्कि राजन सेठ से द्वारा दिया गया धन के कारण लोगो को कालू को इज्जत देनी पड़ती थी ! कालू का स्वाभाव अपने पुरखो के जैसा ही था : वाक-पटुकता, लालची, लोगो से जबरदस्ती धन वसूलना, कभी कभार अचानक सूद बढ़ा देना ! लेकिन उसके पिता के कारण उसकी बिलकुल नहीं चलती थी !



“सुन कालू सेठ, धन का सम्बन्ध तेरे पिता और माणिक के बिच है, उससे तेरा कोई सम्बन्ध नहीं है” रमन ने थोडा उग्र होते हुए कहा !

“अरे अरे रमन चाचा, जरा शांत, में तो बस पूछ रहा था” कालू ने अपना बचाव करते हुए कहा !

पुरे गाव में सिर्फ एक्का-दुक्का लोग ही थे जिसने राजनसेठ ने उधार धन नहीं लिया था जिनमे से एक था रमन ! रमन प्रकति से थोडा उग्र था, उसके बाप-दादा सभी सेना में थे लेकिन रमन को खेती-बाड़ी ही पसंद थी इसीलिए वो सेना में नहीं गया, लेकिन वह एक सेनिक जीवट वाला ही था ! कालू अपने बुरे बर्ताव के कारण कई बार रमन से पिट भी चूका था

इसीलिए वो रमन से संभलकर ही रहता है !

कालू रमन के उग्र स्वाभाव को देखकर थोडा भीड़ से आगे चला जाता है !

“हा तो रमन, तुम साधूबाबा के बारे में क्या शर्त बता रहे थे ?” माणिक ने रमन को शांत कराने के लिए पूछा ताकि उसका ध्यान कालू से हट जाये !

“अरे ये कालू भी ना, पूरा दिमाख ख़राब कर देता है” रमन ने अपने गुस्से को शांत करते हुए कहा

“उसको छोड़ो, तुम आगे उस शर्त के बारे में बताओ” माणिक ने कहा

‘अब सुनो, साधुबाबा की शर्त ये थी की जब भी वो वापस आये तो बड़े राजाजी या उनके वंश को उनकी बात मानकर उनका एक काम करना होगा नहीं तो वो उनकी वंशबेली को समाप्त कर देंगे’

‘आखिर, उस बूढ़े बाप के पुत्र मोह ने उनकी इस शर्त को मानने से मजबूर कर दिया’

‘बाद में साधुबाबा ने उस शव को लेकर चले गए और पुरे 3 दिनों ले बाद उसको जीवित कर वापस महल ले आये’

तब से लेकर आज तक साधुबाबा कभी नहीं आये, उनका सीधा आज ही दर्शन हो पाया है

‘अच्छा, तभी राजाजी इतने उलजन में दिख रहे है’ माणिक मन में सोच रहा था

“अरे हां माणिक, तुम सुरभि के बारे में इनसे क्यों नहीं पूछ लेते, कोई तो रास्ता जरुर होगा इनके पास” रमन ने भरोसा दिलाते हुए कहा

ये बात सुनकर माणिकलाल के मन में एक आशा की किरण सी जाग गई

‘हा हा ये साधुबाबा सुरभि को जरुर ठीक कर देंगे, ये तो मुर्दों को भी ठीक कर सकते है, आखिरकार बरसो के बाद मेरी बच्ची ठीक हो सकेगी’ अपनी मन की कल्पनाओ में माणिकलाल खुश हो रहा था

तभी अचानक भीड़ में कुछ हल्ला सा हो उठा ! माणिकलाल अपने मन की कल्पनाओ से बहार आकर देखता है की अचानक वो गाव का पागल बुड्ढा उस विशाल शिव प्रतिमा के पीछे से बहार निकलता है और इतनी फुर्ती के साथ वो राजा के सैनिको के बीच से निकलकर उस साधू के पास पहुच जाता है जिससे सारे लोग और राजा भी चौक जाते है ! इस पागल बुड्ढ़े को एसा गाव में करते हुए किसी ने कभी नहीं देखा था

तभी वो होता है जिसे देख कर सारे लोग और यहाँ तक की राजा भी हक्का-बक्का रह जाता है
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तभी अचानक भीड़ में कुछ हल्ला सा हो उठा ! माणिकलाल अपने मन की कल्पनाओ से बहार आकर देखता है की अचानक वो गाव का पागल बुड्ढा उस विशाल शिव प्रतिमा के पीछे से बहार निकलता है और इतनी फुर्ती के साथ वो राजा के सैनिको के बीच से निकलकर उस साधू के पास पहुच जाता है जिससे सारे लोग और राजा भी चौक जाते है ! इस पागल बुड्ढ़े को एसा गाव में करते हुए किसी ने कभी नहीं देखा था

तभी वो होता है जिसे देख कर सारे लोग और यहाँ तक की राजा भी हक्का-बक्का रह जाता है

वो पागल बुड्ढा, साधू के आखो में आखे डालता हुआ, धीरे-धीरे उसके होठ साधू के कानो के पास ले जाकर कुछ बोलता है और अचानक से चिल्लाता और हसता हुआ वो बुड्ढा तेजी से दौड़ता हुआ मंदिर से बहार चला जाता है !

वो साधू डर के मारे जड़वत हो जाता है मानो अभी उसके सामने मौत नाचकर चली गयी हो ! धीरे-धीरे उसके आखो के सामने अन्धकार छा जाता है और वो वही बैठे-बैठे नीचे गिर पड़ता है





रात्रि का दूसरा प्रहर, निशिथ चल रहा था ! मंदिर के प्रांगण में राजा और उन साधुबाबा का तम्बू लगा दिया गया था और राजा के सैनिक, मंदिर की चारदीवारी की सुरक्षा कर रहे थे, कुछ सैनिक अपना प्रहर ख़त्म होते ही अपनी स्तिथि छोड़ रहे थे उसकी जगह पर नए सैनिक जगह ले रहे थे !

सप्तोश, जो उस साधूबाबा का सबसे पुराना शिष्य था वो राजवैद्यीके साथ साधू की जडीबुटी कर रहा था ! राजवैद्यी, सुबह से कई बार साधू की नाडी देख चुकी थी, कई परिक्षण कर चुकी थी लेकिन उसको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की उनको हुआ क्या था !

सप्तोश भी आयुर्वेद का परम ज्ञाता था उसके गुरु ने उसको अपना सारा ज्ञान उसको दिया हुआ था लेकिन आज उसे अपने गुरु की हालात उसके पुरे ज्ञान के विपरीत दिखाई पड़ रही थी इसीलिए उसने राजवैद्यी का सहारा लिया था !

राजवैद्यी चेत्री, वह हमेशा यात्रा के दौरान राजा के साथ ही रहती थी ! वो दिखने में कुरूप थी लेकिन उसको कुरूप कहना उसके ज्ञान का अपमान था ! उसका सौन्दर्य, उसका ज्ञान और उसकी वैज्ञानिक सोच थी जो उसको हमेशा दुसरो से महान रखती थी ! वह हमेशा हर किसी की मदद के लिए तत्पर रहती थी ! राजा को उसकी वजह से कभी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था ! लेकिन आज जैसे उसकी ज्ञान की परीक्षा थी !

लगभग रात्रि का दूसरा प्रहर भी बीत चूका था ! दोनों को समझ नहीं आ रहा था की अब क्या करे ! दोनों अपनी-अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे, दोनों ही तरफ से मामला सर के उपर था !

सप्तोश, जो की प्रधान शिष्य भी था, वो तम्बू से बाहर निकलता है और उपर आसमान को देखता है, आज उसने तारो की गणना भी सही करी थी लेकिन एसी अनहोनी का अंदाजा उसे बिलकुल नहीं था ! साधू के सारे शिष्य और शिष्याऐ, मंदिर प्रांगण में खुले आकाश के नीचे बैठे हुए थे ! सभी के आखो से नींद गायब थी !

“कुछ पता चला, गुरूजी को क्या हुआ है” डामरी ने पूछा !

डामरी, साधूबाबा की शिष्याओ में से एक थी जिसने अभी-अभी साधुबाबा का शिष्यत्व स्वीकार किया था !

“नहीं डामरी, अभी तक उनकी अवस्था का कुछ पता नहीं चला” सप्तोश ने हताश होते हुए कहा !

“और राजवैद्यी, उनका क्या कहना है” डामरी ने फिर पूछा !

“वो भी अपनी पूरी कोशिश कर रही है”

सप्तोश ने डामरी को नजरंदाज करते हुए शिव की प्रतिमा को देखते हुए कहा ! अचानक सप्तोश को कुछ याद आया और वो जल्दी से राजा के तम्बू की और चल पड़ा और डामरी उसको देखती ही रह गयी !

राजा धूम्रकेतु, अपने तम्बू में कुछ परेशान से उधेड़बुन में इधर-उधर टहल रहे थे ! राजा सुबह से ही चिंतित थे, पहली तो ये की उनको जल्दी-जल्दी में अपनी राजधानी से यहाँ आना पड़ा था जिससे उसने अपने राज्य का कार्यभाल अपने बड़े बेटे अश्वनी को सौप कर आया था जो अभी राज्य, नीति और व्यवहार सिख ही रहा था और दूसरा साधुबाबा के यहाँ आने का और तीसरा और सबसे बड़ी परेशानी यह थी की अब क्या करा जाये ! इस अवस्था में वो, साधुबाबा और उनके शिष्यों को छोड़ भी नहीं सकता था और ना ही साधुबाबा के कुछ उपचार का पता चल रहा था तभी सप्तोश बिना राजा को सूचना दिए सीधे ही राजा के सामने आ जाता है ! जिससे राजा का ध्यान भंग हो जाता है ! राजा के द्वारपालों में हिम्मत नहीं थी थी वो साधुबाबा के प्रधान शिष्य, सप्तोश को रोक सके !

“सुन राजन, अगर मेरे गुरु को कुछ भी हुआ तो में इस पुरे गाव का नाश कर दूंगा” अपने शक्तियों के अभिमान और क्रोधवश सप्तोश बोल उठा, जिससे राजा थोडा डर गया !

राजा का डरना भी जायज था क्योकि ५५ से ६० वर्ष का सप्तोश को उसके गुरु ने काफी कुछ सिखा भी दिया था और काफी परालौकिक शक्तिया भी अर्जित कर ली थी

“सुन, उस पागल बुड्ढ़े के बारे के कुछ पता चला, जिसके कारण ये सब घटित हुआ है” सप्तोश ने उसी क्रोध में कहा

“हमारे गुप्तचर और खोजी, सुबह से उस की तलाश में है लेकिन उसका अब तक कोई पता नहीं चला” राजा ने कहा

इसके आगे सप्तोश भी कुछ नहीं कह सकता था क्योकि उसने भी अपनी तरफ से, अपनी शक्तियों की सहायता से पूरी कोशिश कर ली थी लेकिन उस पागल का कोई पता नहीं चला था मानो उसका अस्तित्व ही नहीं हो

“चेत्री का इसके बारे में क्या कहना है” राजा ने माहोल को थोडा शांत करने के लिए कहा !

सप्तोश कुछ कहने ही वाला था की एक सैनिक दौड़ता हुआ आता है और कहता है की......
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इसके आगे सप्तोश भी कुछ नहीं कह सकता था क्योकि उसने भी अपनी तरफ से, अपनी शक्तियों की सहायता से पूरी कोशिश कर ली थी लेकिन उस पागल का कोई पता नहीं चला था मानो उसका अस्तित्व ही नहीं हो

“चेत्री का इसके बारे में क्या कहना है” राजा ने माहोल को थोडा शांत करने के लिए कहा !

सप्तोश कुछ कहने ही वाला था की एक सैनिक दौड़ता हुआ आता है और कहता है की

“महाराज की जय हो, अभी-अभी राजवैद्यीजी ने बाबा सप्तोश को जल्द ही साधुबाबा के तम्बू में बुलाया है”

साधुबाबा की बात सुनकर सप्तोश शांत हो गया और जल्दी से उनके तम्बू की और चल पड़ा, पीछे-पीछे राजा भी चल पड़ा !



आज की रात पुरे गाव में ख़ामोशी छाई हुई थी, यहाँ तक की कुत्ते भी, जो रात भर भौकते रहते थे वे भी शांत थे जैसे वे भी कुछ होने की प्रतीक्षा कर रहे हो ! सुबह जो मंदिर में घटना हुई थी उससे पूरा गाव डरा हुआ था, राजा के सैनिक पुरे गाव में उस पागल बुड्ढ़े को तलाश कर रहे थे उस वजह से लोग आज अपनी दैनिक जरूरतों को भी पूरा नहीं कर सके थे ! पूरा गाव सोया हुआ था लेकिन कुछ लोग ऐसे थे जिनके आखो से नींद कोसो दूर थी, और उनमे से एक था-माणिकलाल !

माणिकलाल अपने खाट पर लेटे-लेटे करवटे बदल रहा था ! खुली छत के नीचे अपने आँगन में चाँद को देखकर सुबह से भी घटनाओ के बारे में सोच रहा था ! आज चाँद पूर्ण था, पूर्णिमा का दिन था फिर भी चन्द्रमा की शीतलता उसको चुभ रही थी !

‘पिछले ३ साल माणिकलाल के बहुत बुरे बीते थे, वह ऐसे धनवान से इतना दरिद्र हो गया था जैसे किसी की नजर लग गई हो ! नहीं, उसे ना तो शराब या जुए की लत लगी थी और ना ही उसका किसी असामाजिक तत्वों से सम्बन्ध था !’

‘माणिकलाल कपड़ो का एक बहुत बड़ा व्यापारी था, वो खुद ही कपडे बनाता था और कई दूर के गावो और अपने और दुसरे देश की राजधानियों में उसे बेच आता था, लगभग १०० से भी ज्यादा मजदुर उसके नीचे काम किया करते थे, उसका बुना हुआ कपडा बहुत मशहूर था लेकिन एक दिन अचानक उसकी बेटी सुरभि खेलते-खेलते बेहोश हो गई फिर उसके बाद तो जैसे माणिकलाल की दुनिया ही बदल सी गयी ! उसने बहुत से वैद्य को भी दिखलाया, अपना सारा धन पानी की तरह बहा दिया फिर भी सुरभि को कुछ राहत नहीं मिल पा रही थी’

‘सुरभि, जो महज अभी १९ वर्ष की ही थी, बिस्तर से उठ भी नहीं पा रही थी, राजवैद्यी का कहना था की उसकी त्वचा धीरे-धीरे छुट रही है और हड्डिया भी भंगुर हो रही है ! सुरभि के इलाज के लिए उसके बाप ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी, सुरभि की बीमारी का असर उसकी कारोबारी पर भी पड़ रहा था ! धीरे-धीरे उसका कारोबार ख़त्म सा हो गया था और उसका घर-हवेली सब बिक गए थे, इसलिए उसने गाव से दूर जंगल की तरफ एक छोटी सी झोपडी बना ली थी ! उसकी इस जर्जर हालात के कारण उसके सारे मित्रो अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था लेकिन रमन ही एक एसा व्यक्ति था जो उसकी सहायता करता था और उसके साथ मित्रवत व्यवहार करता था’


‘अब पुरे ३ साल के बाद माणिकलाल के मन में एक आशा की किरण जगी थी साधूबाबा को देख कर, लेकिन उसको अब ऐसा लग रहा था की शायद परमात्मा भी मेरी बच्ची को ठीक नहीं देखना चाहते है, तभी मुझे सुरभि का ख्याल आते ही साधुबाबा का ये हाल हो गया, माणिकलाल साधुबाबा की इस हालत का थोडा बहुत जिम्मेदार खुद को भी मान रहा था-वाकई बहुत साफ़ हृदय का था माणिक !’

उधर दूसरी तरफ साधुबाबा के तम्बू में

“क्या हुआ राजवैद्यीजी, आपने हमें...”सप्तोश के इतना कहते ही चेत्री ने अपने होठ पर अंगुली रखते हुए सबको चुप करते हुए कहा !

वैसे तो सप्तोश बहुत अहंकारी और निर्दयी था लेकिन वह स्त्रियों की हमेशा सम्मान करता था, ऐसा इसीलिए नहीं की किसी ने उसको ऐसा कहा हुआ था, वह स्वाभाव से ही था !

“शांति से सुनो आप लोग” चेत्री ने अपना कान साधुबाबा के मुख के पास ले जाकर सप्तोश और राजा को इशारे से कहा !

सब लोग शांति से साधुबाबा के मुख के पास कान ले जाकर सुनने लगे

साधुबाबा कुछ अजीब सी भाषा में कुछ बडबडा रहे थे जैसा कोई बीमार और कमजोर व्यक्ति कराह रहा हो ! यह सुनते ही सप्तोश तो जैसे थोड़ी रहत सी मिली !

“बाबा ये कब से बोल रहे है” सप्तोश ने उत्तेजित होते हुए पूछा

“अभी कुछ ही पल पहले” चेत्री ने जवाब दिया “लेकिन ये बोल क्या रहे है और ऐसी भाषा मेरे पहले कभी नहीं सुनी” चेत्री ने जिज्ञासवश पूछा !

“ये एक प्राचीन भाषा है जो गुरु-शिष्य परंपरा से ही इसका आदान-प्रदान होता है इसके आगे बताना वैध नहीं है” सप्तोश ने अनुभवी अंदाज में कहा

“लेकिन ये कह क्या रहे है ?” इस बार राजा ने बिच में दखल देते हुए पूछा

सप्तोश फिर से माहोल हो गंभीर बनाते हुए कहता है की “एक पोधा है ‘जीजुशी’ जिसके धुएं की गंध से बाबा हो होश आ सकता है लेकिन उसका मिलना बहुत ही मुश्किल है”

“जीजुशी मेरे पुष्प शाला में उपलब्ध है” राजवैद्यी ने कहा

लेकिन जैसे सप्तोश उसके इस उत्तर से खुश नहीं था वो फिर कहता है “रात्रि के अंतिम प्रहर, उषा के ख़त्म होने से पहले इसकी आवशकता होगी”

गाव से राजधानी का सफ़र लगभग २ दिन का था, और बिना विश्राम के भी सफ़र करे तो भी डेढ़ दिन तो लगेगा ही, लेकिन इतना जल्दी, वो भी उषा के ख़त्म होने से पहले वहा जाकर आना असंभव ही था ! यही बात सबको परेशान कर रही थी !

इस बार सप्तोश को अपने ऊपर बहुत गुस्सा आ रहा था, क्योकि.....
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गाव से राजधानी का सफ़र लगभग २ दिन का था, और बिना विश्राम के भी सफ़र करे तो भी डेढ़ दिन तो लगेगा ही, लेकिन इतना जल्दी, वो भी उषा के ख़त्म होने से पहले वहा जाकर आना असंभव ही था ! यही बात सबको परेशान कर रही थी !

इस बार सप्तोश को अपने उपर बहुत गुस्सा आ रहा था, क्योकि उसके शक्तियों की गतिसीमा निश्चित थी, १ दिन का सफ़र वो १ प्रहर तक कर सकता था, वो अपनी इस सीमा को बढ़ा सकता था लेकिन मद, प्रमाद एवं आडम्बर के चलते उसने कभी ध्यान नहीं दिया था, इसी प्रमाद के कारण आज वो हताश हो चूका था, उपाय सामने होते हुए भी वो कुछ नहीं कर सकता था

उषा के समाप्त होने में अभी डेढ़ प्रहर ही बाकि था, सभी लोग गंभीर मुद्रा में साधुबाबा के तम्बू में उस जीजुशी का हल खोज रहे थे, माहोल बहुत शांत और समय बहुत तेजी से बीत रहा था

यकायक राजा बोल उठा

“क्या वो पोधा इस गाव के जंगलो में नहीं मिल सकता है”

“नहीं महाराज, जीजुशी केवल बहुत ही ठन्डे इलाको में ही पनपता है, इसका यहाँ मिलना असंभव है, जबतक की ‘अरे हा’ “ कहते हुए चेत्री उचल सी पड़ी !

“क्या हुआ राजवैद्यीजी ?” चौकते हुए सप्तोश बोल उठा

“मेने जीजुशी की ४ खुराक अर्थात जीजुशी की पत्तियों का चूर्ण की पुडिया, इस गाव के वैद्य को दे रखी है जो एक लड़की के उपचार के लिए पिछले महीने ही ले गया है” चेत्री ने अपनी दूरद्रष्टता का परिचय देते हुए कहा !

“हम अभी अपने सैनिक को भेजते है” राजा तत्काल बोल उठता है !

“रुकिए महाराज, उसे में ही लेकर आती हु, वो थोडा अड़ियल स्वाभाव का है” चेत्री अपना कपडे का छोटा झोला उठाकर चल पड़ती है !

“में भी साथ आता हु” कहते हुए सप्तोश भी पीछे-पीछे चल पड़ता है !

राजा मन ही मन भगवान् से प्रार्थना कर रहा था की कल सुबह तक सब कुछ ठीक हो जाये ताकि वो अपनी राजधानी चलकर शासन व्यस्था को संभाल सके ! युवराज अश्वनी अभी तक शासन सँभालने के योग्य नहीं हुआ था, राज्य का विस्तार बड़ा होने के साथ-साथ जिम्मेदारी और खतरा भी बहुत बढ़ जाता है ! घुसपैठी, कब और कहा से हमला कर दे कोई पता नहीं चल सकता और मंत्रियो के हाथ भी सत्ता सौपना भी सही नहीं है कब कोई तख्तापलट कर दे कुछ अंदाजा नहीं लगा सकते है ! धन के लालच में विश्वासपात्र भी कम होते जा रहे थे, और राजा का अधिक समय तक राजधानी से बाहर रहना वैसा ही लग रहा था जैसे बिना पानी से कोई कंठ तड़प रहा हो !



आज चाँद की रोशनी में सारे रास्ते दिख रहे थे, चाँद अपने पूर्ण यौवन पर था लेकिन इस यौवन की आग में आज कोई जल रहा था और इस जलन को सिर्फ जीजुशी का धुँआ ही मिटा सकती थी जिसको लेने के लिए राजवैद्यी चेत्री और सप्तोश निकल चुके थे उस गाव के बुड्ढ़े वैद्य के पास, जिसका नाम था-दोजू !

गाव के पच्शिम में ही दोजू का झोपड़ा था, नदी किनारे ! मंदिर से ज्यादा दूर नहीं था !

“अड़ियल से क्या मतलब है आपका, और नाम क्या है उसका ?” सप्तोश ने चलते-चलते राजवैद्यी से पूछा !

“दोजू, जैसा की नाम से भी अजीब है, उसके मोलभाव करने का तरीका थोडा अलग है, धन से उसका कोई मतलब नहीं है, वो वस्तु के बदले वस्तु की मांग करता है”

“तो आप उनसे मोलभाव कैसे करती है”

“मै धन के बदले उससे जानकारिया लेती हु, जो उसके अलावा और कही नहीं मिलती है, पता नहीं वो कहा से लाता है सब कुछ”

आज चेत्री पहली बार दोजू से कुछ मांगने जा रही है, पता नहीं वो बदले में क्या मांगेगा ! इसी उधेड़बुन में वो आखिरकार दोजू के झोपड़े तक पहुच ही जाती है !

दोजू का झोपड़ा कुछ ज्यादा बड़ा नहीं था और ना ही कुछ ज्यादा छोटा ! नदी के किनारे ज्यादा लोग भी नही रहते थे, जिनका गुजारा मछलियों से होता था वो ही वहा रहते थे, दोजू के झोपड़े को मिलाकर वहा मुश्किल से ५-७ कच्चे घर थे ! उस समय दोजू अपने झोपड़े के पीछे नदी के किनारे कुछ पका रहा था शायद कोई बूटी वगेरह होगी !

तभी उसके दरवाजे पर जोर से दस्तक हुयी ! उसने पहले तो उसे अनसुना पर दिया फिर थोडा सा मुस्कुराते हुए वो अपनी जगह से धीरे से उठा और अपने झोपड़े के पिछले दरवाजे से अन्दर चला जाता है

सप्तोश एक बार फिर थोडा और जोर से दरवाजा खटखटाता है, दरवाजे के उस तरफ से कोई आवाज आती है और धीरे से दरवाजा खुल जाता है !

“कोन हो भाई, इस बुड्ढ़े को कोई शांति से आराम भी नहीं करने देते हो” कहते हुए दोजू दरवाजा खोल देता है और वापस अन्दर की और चल देता है

“माफ़ करना दोजू, लेकिन हालात ही कुछ ऐसे बने की इस वक्त आपको परेशनी हुयी” कहते हुए चेत्री अन्दर चली है और उसके पीछे सप्तोश !

जैसे ही सप्तोश अन्दर जाता है उसका मन किसी आशंका से भयभीत हो उठता है, वो अपने को थोडा भारी महसूस करता है जैसे किसी ने उसको जंजीरों से जकड लिया हो

“माफ़ी और परेशानी, ये शब्द किसी वैद्य के मुह पर अच्छे नहीं लगते राजवैद्यी” दोजू अपने हाथ से लकड़ी के गठ्ठा पर बैठने का इशारा करते हुए कहा !

इतना सुनते ही चेत्री को थोड़ी ग्लानी सी हुयी ! उसे एसा लगा की मोलभाव के प्रथम चरण में वो पराजित हो गयी हो !

दोजू के झोपड़े में कुछ ज्यादा सामान नहीं था लेकिन जितना भी था वो सब व्यस्थित और ऐसा की वो कही नहीं मिले ! सप्तोश ये सब देख कुछ सोच रहा था की अचानक दोजू ने उसकी तरफ इशारा करते हुए प्रश्न पूछा !

“तेरे यहाँ आने का प्रयोजन बता ऐ मांत्रिक”

इतना सुनते ही सप्तोश भय से व्याकुल हो उठा ! उसने एसा कभी महसूस नहीं किया था,

‘इसको कैसे पता की में कौन हु ?’

‘आखिर कौन हैं ये ?’

‘कही यही वो तो पागल बुड्ढा तो नहीं जो वेश बदल कर सुबह मंदिर में आया था ?’

‘कही इसी ने तो अपना कुछ स्वार्थ सिद्ध करने के चक्कर में ये सब तो नहीं किया ?’

“तेरे मन की सारी शंकाए व्यर्थ है ऐ मांत्रिक, जिस बुड्ढ़े की तुम सुबह से खोज कर रहे हो वो तो अभी शमशान में कही विचर रहा होगा” दोजू सब कुछ जानने के अंदाज में कहा

‘शमशान’ ये शब्द सुनते ही सप्तोश के कान खड़े हो गए ‘हा, शायद ये सही कह रहे है मेरी मांत्रिक शक्तिया शमशान में प्रवेश नहीं कर सकती, तभी वो बुड्ढा अब तक बचा रहा है’

“हमें जीजुशी चाहिए दोजू” समय की कमी को देखते हुए चेत्री तुरंत मुद्दे पर आ जाती है “क्या तुम्हारे पास वो अभी भी है”

दोजू ‘हा’ में सर जुकाता है

“जल्दी से अपना दाम बताओ, हमें जल्दी से निकलना है” चेत्री बिलकुल भी समय व्यर्थ नहीं गवाना नहीं चाहती थी !

“लेकिन जीजुशी की जरुरत तुम्हे नही इस मांत्रिक को है, मोल इसे ही चुकाना होगा” दोजू ने कहा जैसे कोई खजाना हाथ में लग गया हो !

“क्या चाहिए तुम्हे ?” सप्तोश मुश्किल से पहली बार इस झोपड़े में आकर कुछ बोला था !

इस पर दोजू ने सप्तोश के आखो में आखे डालकर मुस्कुराते हुए धीरे ने कहा


“कौड़म”
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‘शमशान’ ये शब्द सुनते ही सप्तोश के कान खड़े हो गए ‘हा, शायद ये सही कह रहे है मेरी मांत्रिक शक्तिया शमशान में प्रवेश नहीं कर सकती, तभी वो बुड्ढा अब तक बचा रहा है’

“हमें जीजुशी चाहिए दोजू” समय की कमी को देखते हुए चेत्री तुरंत मुद्दे पर आ जाती है “क्या तुम्हारे पास वो अभी भी है”

दोजू ‘हा’ में सर जुकाता है

“जल्दी से अपना दाम बताओ, हमें जल्दी से निकलना है” चेत्री बिलकुल भी समय व्यर्थ नहीं गवाना नहीं चाहती थी !

“लेकिन जीजुशी की जरुरत तुम्हे नही इस मांत्रिक को है, मोल इसे ही चुकाना होगा” दोजू ने कहा जैसे कोई खजाना हाथ में लग गया हो !

“क्या चाहिए तुम्हे ?” सप्तोश मुश्किल से पहली बार इस झोपड़े में आकर कुछ बोला था !

इस पर दोजू ने सप्तोश के आखो में आखे डालकर मुस्कुराते हुए धीरे ने कहा


“कौड़म”

ये सुनते ही जैसे सप्तोश की जान हलक में आ गई !

‘पुरे ८ साल लगे थे इसे हासिल करने में’

‘कितनी मेहनत से प्राप्त किया था’

‘पूरी जान लगा दी थी’

‘और आज इसे कुछ पत्तो के बदले में मेरी ८ साल की कमाई दे दू’

“इतना मत सोचो मांत्रिक, तेरे गुरु की जान की कीमत ये तो कुछ भी नहीं है, तेरी जगह अगर तेरा गुरु होता तो उससे तो में कुमुदिनी ही मांग लेता” दोजू ने बड़े ही आत्मविश्वास और चतुराई के साथ कहा !

‘क्या !!!’

‘बाबा के पास कुमुदिनी भी है’

‘लेकिन कैसे’

‘इतने वर्षो से में बाबा के साथ रहा हु मुझे तक पता नहीं चला’

‘आखिर है कौन ये आदमी’

“ये दुनिया तेरी सोच से परे है बालक, आखिर तू है तो एक मानव का बच्चा” दोजू ने ये शब्द गोपनीयता ढंग से कहा और हल्का का मुस्कुरा दिया !

पहली बार दोजू ने सप्तोश को ‘बालक’ कह के संबोधित किया था ! सप्तोश अपने आप को बहुत ही हीन और छोटा महसूस कर रहा था, इतना छोटा तो वह अपने गुरु के सामने भी कभी महसूस नहीं किया था !

चेत्री को दोजू की बाते कुछ भी समझ नहीं आ रही थी लेकिन एक वैद्य होने के नाते उसे समय की कद्र भी उसे पता था की दोजू की रहस्यमयी बाते कभी पूरी नहीं होगी और वो अपनी कीमत लेकर ही मानेगा पर उषा का प्रहर शुरू ही हुआ था

“दोजू को जो भी चाहिए उसे दे दो बाबा सप्तोश, हमारे पास समय बहुत कम है”

सप्तोश भी समय की चाल समाज रहा था लेकिन वह कौड़म को इतनी आसानी के साथ नहीं गवाना चाहता था, वो उसको बचने की कम-से-मन एक आखिरी कोशिश तो करना ही चाहता था !

यही तो सिखाया था उसके गुरु ने, “चाहे समय कैसा भी हो, स्तिथि कैसी भी हो, हालत कितना भी मझबूर कर दे झुकाने को लेकिन जो आसानी से हार मान लेना है उसी समय उसकी आत्मा भी मर जाती है, फिर जीवन के हर कदम पर उसको चैन नहीं मिलता है” इसी के साथ वह एक कोशिश करता है

‘अपने इष्टदेव को याद कर, मन-ही-मन एक मंत्र का स्मरण करता है’

“तेरी सारी कोशिशे यहाँ व्यर्थ है बालक, तू अभी भी उस मुकाम तक नहीं पंहुचा है, तेरा कंसौल यहाँ कुछ काम नहीं करेगा” दोजू थोडा उत्तेजित स्वर में बोलता है


कंसौल एक अनिष्ट मंत्र है जिससे शत्रु के गुर्दे में अचानक दर्द उत्पन्न होता है और वो खून की उल्टिया करने लगता है, २ सप्ताह तक वो शय्या से नहीं उठ पाता है

सप्तोश अपनी पहली शुरुआत ही अपने सबसे शक्तिशाली मंत्र से करता है लेकिन उसका मन्त्र जागने से पहले ही उसकी काट हो जाती है, इससे वह हक्का-बक्का रह जाता है

“लेकिन आपको उसकी क्यों जरुरत है”

पहली बार सप्तोश उसको सम्मान के साथ बोलता है

“इलाज के मोल में इलाज, मुझे भी एक लड़की के इलाज के लिए इसकी जरुरत है, जिसके लिए में जीजुशी ली थी” दोजू चेत्री की तरफ देखकर बोलता है

“लेकिन उस लड़की का कोई इलाज संभव नहीं है दोजू, तुम उसे जीवन भर शय्या पर ही देख पाओगे !

“ये प्रकति बहुत ही अजीब और रहस्यों से भी भरी है राजवैद्यीजी” उसी रहस्यपूर्ण ढंग से दोजू बोलता है

समय की कमी को देखता हुआ सप्तोश आखिर कौड़म देने को तैयार हो जाता है

वह अपने थैले से एक मिश्र धातु का एक छोटा सा गोल डिब्बा निकलता है और उसे धीरे से देखते हुए दोजू के आगे बढाता है

दोजू मुस्कुराता हुआ वो डिब्बा ले लेता है और उसके बदले में उसे जीजुशी दे देता है !

अब ज्यादा देर ना करते हुए वह जीजुशी को चेत्री के हाथो में थमा देता है और जल्दी दे उस झोपड़े से बाहर निकलता है

बाहर निकलते ही वह अपने आप को एक स्वतंत्र कैदी के रूप में महसूस करता है ! चेत्री के मन अभी अनेको सवाल थे लेकिन समय की गंभीरता को समझते हुए वो मंदिर की दिशा में चल पड़ती है

दोजू वही अपने झोपड़े में बैठा हुआ मुस्कुराते हुए उन दोनों को जाते हुए देखता है

थोड़ी देर बाद वह अपनी जगह से उठता है और वापस अपने झोपड़े के पीछे चला जाता है, वहा आधे जले अंगारों के पास बैठकर सुबह की हलकी ठंडी में थोड़ी तपीश महसूस करता है ! वह लकड़ी से अंगारों को थोडा साफ़ करके उसे अपनी छोटी सी मिटटी की चिलम में भरता है और पास में ही मछुआरो द्वारा आ रहे सुबह के लोकगीतों की आवाज का आनंद लेते हुए धीरे-धीरे चिलम का कश खिचता है !

सुबह की लालिमा का उदय होता है




पहला अध्याय समाप्त
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मंदिर में बड़े-बड़े घंटो और नगाडो के साथ सुबह की पूजा हो रही थी लेकिन वो आवाजे जैसे बाबा को सुनाई भी नहीं पड़ रही थी, उसको तो बस एक ही वाक्य उसके सर में गूंज रहा था जो उस पागल ने कहा था

“स्वर्णलेखा, नहीं आई ना ? हा हां हा .......”

‘हा’

‘स्वर्णलेखा ही कहा था उसने’

‘मेरे कानो ने साफ-साफ सुना था’

‘स्वर्णलेखा’

‘लेकिन’

‘उसको कैसे पता’

‘वो भी एक गाव में रहने वाले को’

‘एक पागल को’

‘नहीं-नहीं’

‘वो तो पागल था’

‘पागल तो कुछ भी बोल लेता है’

‘फिर भी स्वर्णलेखा ही क्यों बोला ?’

बाबा बसोठा के मन में अंतर्द्वंद्ध चल रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था की वो किस बात पर यकीन करे, उसके गुरु की बात पर या उस पागल ने जो कहा था उस पर !

‘गुरु ने तो कहा था की स्वर्णलेखा का जिक्र ना तो कोई पुस्तकों में है और ना ही कोई अन्य ग्रंथो में, और ना की किसी व्यक्ति के पास, ये तो सिर्फ गुरु के पिता को ही पता थी जिन्होंने २५० वर्षो की तपस्या से उस वेताल से प्राप्त की थी जो अपनी जाति का आखिरी ही बचा था, लेकिन पुत्रमोह के कारण उस अज्ञानी ने वो ज्ञान मेरे गुरु को दे दिया और उनसे मेने छीन लिया था’

‘आखिर स्वर्णलेखा की जानकारी उस पागल के पास आई कैसे ?’

‘क्या मुझे उस पागल के पीछे जाना चाहिए’

‘नहीं-नहीं’

‘क्या पता ये कोई चाल हो’

‘किसकी हिम्मत जो मुझे छल सके’

‘लेकिन फिर भी’

इस प्रकार की उधेड़बुन उसके मन में एक चक्र की भांति गोल-गोल घूम कर वापस उसी स्थान पर ले आता है जहा से उसने सोचना शुरू किया था “स्वर्णलेखा”

बाबा बसोठा को अपने जीवन में कभी भी भय नहीं लगा था, अपने गुरु की हत्या करते समय भी उसको तनिक भी भय नहीं लगा था, लेकिन कल की घटना से वो अचानक भय से व्याकुल हो गया जिससे उसके मस्तिस्क की नाडिया पहली बार ऐसा अनुभव करने पर कार्य करना रुक सी गयी थी, इस वजह से वो बेहोश हो गया था ! पहली बार उसने अपने जीवन में डर का अनुभव किया था क्योकि बात उसके ७९ वर्ष की तपस्या और सारी सिद्धियों के व्यर्थ जाने की थी और साथ में १००० वर्षो तक गुलामी की थी ! उसके लिए समय इतना महत्वपूर्ण नहीं था जितना गुलामी थी ! क्योकि उसने समय को तो जीत ही लिया था लेकिन “स्वर्णलेखा” की गुलामी स्वयं उस वेताल के लिए दुष्कर थी !

इन सभी विचारो से वह इतना उलझ सा गया की उसे पता भी नहीं चला था ! अपरान्ह, हो चूका था लेकिन इतनी गर्मी में भी धुप की तपीश और गर्म हवा का मानो उसे कुछ भी अनुभव नहीं हो रहा था वो अभी भी वही बैठा हुआ था !

‘अचानक उसने आखे खोली’

‘जैसे उसको कुछ सुझा’

‘जैसे इस अंतर्द्वंद से विजय सी पा ली हो’

वो तुरंत उठा और अपने तम्बू में चला गया और साथ ही सबको ये चेताया की कोई भी अगले ३ प्रहर तक उस से संपर्क नहीं करेगा !

.

.

.

कही दूर देश के पर्वतो पर कोई बहुत ही जल्दी-जल्दी नीचे उतर रहा था ! उतर क्या रहा था, दौड़ रहा था, गिर रहा था, उठकर वापस भाग रहा था, सियार की सी फुर्ती थी उसमे ! बड़ी-बड़ी भूरी आखे, कंधो तक बाल, बड़ा-सा कद, पिचका हुआ शरीर, रीड झुकी हुयी, बड़ी सी ललाट, चेहरे पर भय, बस भागे ही जा रहा था और बस एक ही वाक्य रटे जा रहा था –


“वो आ गया है”

“वो आ गया है”

.

.

.



आज तीसरा दिन था, अंतिम दिन था माणिकलाल के लिए, उस अजनबी का कपडा बुनकर तैयार करने में, जो तीसरे दिन बाद आने वाला था, कल का दिन उस बाबा के चक्कर में सबका व्यर्थ चला गया था, आज सुबह से माणिकलाल उस अजनबी का कपडा बुनने में व्यस्त था

“सुनो जी, अब खाना भी खा लो, सुबह से बुन रहे हो, बचा-कुछ शाम को तैयार कर लेना” बकरी को चारा देने के बाद निर्मला, आँगन में आकर माणिकलाल को आवाज देती है !

निर्मला, माणिकलाल की भार्या, बहुत ही सुलझी हुयी और विदुषी महिला थी, वो माणिकलाल जितनी भोली नहीं थी दीन-दुनिया की अच्छी समझ थी उसे ! मुसीबत के समय, उसी की सोच से माणिकलाल अपने आप को सुरक्षित समजता था !

काफी अच्छी और सुगठित देह वाली थी निर्मला की !

‘यौवन से पूर्ण’

‘लालिमा लिए हुए चेहरा ‘

‘चौड़ी-सुन्दर आखे’

‘विशाल वक्ष-स्थल’

‘मांसल देह’

‘गौर-वर्ण ‘

वाकई में पत्नी को लेकर बहुत ही भाग्यशाली था माणिकलाल !

निर्मला की आवाज सुनकर माणिकलाल, विचारो से बाहर आकर, हाथ-पैर धोकर नीचे चटाई पर बैठता है जो निर्मला ने अभी-अभी बिछाई थीं !

“में सोच रहा था की जल्दी से इस कपडे का काम ख़त्म करने सुरभि को वैद्यजी के यहाँ ले चलू” माणिकलाल बैठता हुआ बोलता है

“अब उसकी कोई जरुरत नहीं है” निर्मला भी पास में बैठती हुयी बोलती है !

ये सुनकर माणिकलाल चौक जाता है “क्या हुआ, वैद्यजी को देने के लिए घर में कुछ नहीं है क्या ??” अपनी हालत पर तरस खाकर बोलता है

“नहीं-नहीं, वो मछुआरा दक्खन बोल रहा था की वैद्यजी ने कहा है की कल वो यही आने वाले है” खाना परोसते हुए निर्मला बोली !

“कल वैद्यजी आ रहे है !!” माणिकलाल के मन में कुछ शंका सी होने लगी

दोजू, ज्यादातर झोपड़े से बाहर नहीं निकलता है, जब तक की कोई महत्वपूर्ण कार्य ना हो ! कल दोजू का माणिकलाल के यहाँ आना, माणिकलाल को अजीब सा लग रहा था और कुछ ख़ुशी भी थी, लेकिन इन सब बातो को नजरअंदाज करके माणिकलाल खाना खाकर वापस काम पर लग जाता है !

लेकिन माणिकलाल से थोडा दूर दक्षिण में कोई था जो अभी चल रही समस्या को नजरअंदाज नहीं कर सकता था ! पुरे तम्बू में अँधेरा कर रखा था ! अभी-अभी संध्याकाळ शुरू ही हुआ था लेकिन सूर्य की किरण तम्बू में आने को बेताब, उसे जबरदस्ती रोका गया था ! अँधेरे में चारो तरफ सब कुछ-ना-कुछ व्यवस्थित ढंग से बिखेरा गया था, राख से धरती पर कुछ आकृतिया बनायीं गयी थी !

बाबा बसोठा एक तरफ मानव चर्म के आसन पर बैठ कुछ मंत्र का उच्चारण कर रहा था, धीरे-धीरे मंत्र घोर होते जा रहे थे, एक तरफ सूर्य सबको अंतिम दर्शन देकर चन्द्र को आशीर्वाद दे रहा था तो दूसरी तरफ तम्बू में रहस्यमयी रोशनी की उदय हो रहा था, और वो रोशनी प्रकट हो रही थी एक मानव कपाल से, उसके गुरु के कपाल से !

‘हा, वो बाबा बसोठा एक कपालिक था’

‘लेकिन सब उसे अबतक मांत्रिक ही समझ रहे थे’

‘कपालिक’

‘वो भी उच्चकोटि का’

‘एक सिद्ध’

‘एक दम्भी’

‘उसने सप्तोश को एक हेतु के रूप में चुना था, जो राजा के द्वारा पूर्ण होता था’

‘लेकिन अब वो उस पागल बुड्ढ़े का पता लगाने में व्यस्त था, और उसका पता बस लग ही गया’

बाबा बसोठ मंत्रो में व्यस्त था, उस कपाल से धीरे-धीरे सफ़ेद रंग की रोशनी स्प्फुरित होती है, और वो रोशनी पुरे तम्बू में फ़ैल जाती है, बाबा कपाल को उठा कर उसके कान में प्रश्न पूछता है और उसे जवाब मिलता है – “ब्रह्म शमशान”

बाबा बसोठ चौक जाता है

ब्रह्म-शमशान

‘वो भी इस गाव में’

‘और क्या-क्या छिपा पड़ा है इस गाव में’

‘वो बुड्ढा उस श्मशान में वास करता है’

‘तब तो मुझे आवश्यक जानकारिया जुटानी होगी’

‘आवश्यक सामग्री चाहिए होगी’

‘पूर्ण रात्रि तैयारी करनी होगी’

‘तब जाकर उसका सामना करना होगा’

थोड़े समय पहले उस बुड्ढ़े को पागल समझने वाला बाबा बसोठा, अब उससे सचेत हो गया था, उस उसके सामने जाने पर भी उसे रात्रि भर तैयारी करनी पड़ रही थी

कल पूर्णिमा थी, आज कृष्ण-पक्ष की पहली तिथि है, बाबा बसोठ पूर्ण रात्रि की तैयारी कल दूसरी तिथि में ही कर सकता था

रात्रि का पहला प्रहर, प्रदोष शुरू हो चूका था ! बाबा बसोठ तम्बू से बाहर निकल कर सप्तोश तो उस आवश्यक सामग्री के बारे में बताता है जो कल संध्या तक उसे उपलब्ध कराना था !

सप्तोश बार-बार आज सुबह से बाबा का निरक्षण कर रहा था उसे बाबा कुछ बदले-बदले से लग रहे थे, ऐसा उसने पहले कभी नहीं देखा था

‘वो तेज’

‘वो अभिमान से युक्त बोली’

‘एक तरह का अदम्य साहस’

सब कुछ जैसे कही खो सा गया था ! सप्तोश इसी बात से परेशान था, वो कुछ निश्चय कर चूका था, बस उसे इन्तेजार था सब के सो जाने का !

सब के अर्थात बाबा बसोठ, चेत्री और डामरी के !

‘डामरी भी यही रुकी हुयी है’

‘बाबा ने उसको और सप्तोश को छोड़कर सबको जाने के लिए कह दिया था’

‘डामरी से कुछ विशेष प्रयोजन था उसका’

वैसे भोजन आदि की व्यवस्था सब डामरी ही करती थी, वो एक गाव की अनाथ बच्ची थी जो अपने मामा के साथ रहती थी, लेकिन उसका मामा बहुत लोभी था, लालची था !

उसे मनुष्य और वस्तुओ में भेद करना नहीं आता था,

बेच दिया उसने डामरी को उस बाबा बसोठ को,

बेच दिया उसने अपनी बहिन की आखिरी निशानी को,

अपनी बहिन की आत्मा को !

‘चार साल हो गए डामरी को’

‘बाबा की साध्वी हुए’

’२४ वर्ष की थी डामरी’

‘चेहरे से भोलापन और आखो से चंचलता साफ झलकती थी उसके’

‘श्याम-वर्ण’

‘मांसल देह’

‘कसे हुए अंडाकार वृक्ष-स्थल’

‘कसा हुआ बदन था उसका’

‘भारी कसे नितम्ब’

‘उसके बाह्य अंग अपना यौवन चीख-चीख के मादकता जता रहे थे’

‘गज-गामिनी सी मस्त चाल थी उसकी’

सुरक्षित था उसका यौवन अभी-तक ! बाबा बसोठा की साध्वी होने के कारण कोई भी उस पर आख उठा कर नहीं देख सकता था ! बाबा ने भी उसको हाथ नहीं लगाया था अभी तक ! सुरक्षित थी वो अभी-तक, बाबा के एक गुप्त कार्य के लिए !

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रात हो चुकी थी, लेकिन वो शख्स अभी-भी भागे जा रहा था, थकान उसके चेहरे पर किंचित मात्र भी नहीं थी, सहसा वो रुका जैसे उसे कुछ याद आया हो !


‘वो रुका’

‘कुछ क्षण विचार किया’

‘और पुनः दौड़ने लगा लेकिन’

‘इस बार उसने दिशा बदल दी’

‘अब वो उन्ही पहाड़ो के पूर्वी और रुख कर लेता है’

‘अब जैसे थोडा भय शांत हुआ लेकिन उसके होठो पर एक ही वाक्य’


“वो आ गया है”

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मध्य रात्रि, लेकिन वातावरण चन्द्र की रोशनी से प्रकाशमान था ! सारे जीव अपने-अपने आशियाने में बैठे आराम कर रहे थे ! रात्रि के जीव विचरण कर रहे थे ! अभी-अभी एक व्यक्ति, सर और चेहरे पर गमछा बांधे, धीरे-धीरे चलता हुआ मंदिर की दिवार को फांद कर बाहर निकल जाता है और रुख करता है गाव के पश्चिम की और ! गाव के शमशान की और !

अभी चंद ही पल बीते होंगे की, बाबा को कुछ सुनाई सा देता है ! बाबा अपने तम्बू के उठ बैठते है और ध्यान से सुनते है !

‘हा ये नगाडो की ही आवाज है’

‘लेकिन इस वक्त’

बाबा अपने तम्बू से बाहर निकलता है, उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता है ! एक हल्की सी गीली चन्दन की खुशबु उसके नथुनों में भर जाती है, खुशबु इतनी स्पष्ट थी की वो उसे नकार नहीं सकता था ! उसे कुछ आलौकिकता का अहसास होता है !

बाबा आखे बंद करता है और कुछ मंत्र बुदबुदाता है और फिर आखे खोलता है

“अद्भुत” उसके मुह से ये शब्द निकल पड़ता है

उसके सामने जो द्रश्य था उसकी कल्पना करना भी सामान्य मनुष्य के लिए असंभव सा था, कोई इस समय इसे देख ले तो चारो खाने चित हो जाये !

लेकिन बाबा को अनुभव था

‘पूरा मंदिर, अलोकिक दीपो से देदीप्यमान रखा था’

‘बड़े-बड़े चांदी के नगाडो से पूरा मंदिर जैसे जागृत हो रहा हो’

तभी बाबा देखता है

‘एक आदमी शिव की भव्य प्रतिमा के सामने खड़ा था’

‘लम्बा-चौड़ा’

‘हष्ट-पुष्ट’

‘सामान्य व्यक्ति से दुगुनी उचाई का’

‘स्वर्णआभूषणों से युक्त’

‘हाथो में’

‘पैरे में’

‘गले में’

‘छाती पर आभूषण धारण किये’

‘गौर-वर्ण था उसका’

‘सौम्य’

‘सुनहरे-श्याम केश’

‘अतुलित बलशाली’

‘अलोकिक देहधारी’

‘जैसे प्रथ्वी पर उसके जैसा सानी कोई नहीं’

यक्ष-पुरुष” सहसा बाबा के मुह से शब्द फुट पड़ा !

जैसे यक्ष ने उसकी आवाज सुन ली हो ! यकायक यक्ष ने बाबा की तरफ देखा ! दोनों की नजरे आपस में मिली ! एक पल के लिए जैसे यक्ष मुस्कुराया

और

फिर

जैसे कोई सपना टुटा ! बाबा धडाम से शय्या से नीचे गिरा और नींद से जाग गया !

‘ये कोई सपना था या हकीकत’

‘यक्षो के लिए ऐसी माया रचना कोई बड़ी बात नहीं’

‘फिर भी’

जैसे बाबा को अभी-अभी जो हुआ उस पर यकीन नहीं हुआ ! वो उठा और बाहर चला गया, देखा, ‘जांचा’ , ‘परखा’ लेकिन सब सामान्य था पूरा सुनसान मंदिर का प्रांगण !

दूसरी तरफ, जो अपने गंतव्य की और बढ़ रहा था और वह था सप्तोश !

सप्तोश, उस पागल को पकड़ कर उसे सब कुछ पूछना चाहता था की आखिर कौन है वो, क्या किया था उसने कल और अपनी पूरी जिज्ञासा शांत करना चाहता था, और उसके लिए वो निकल पड़ा था गाव के शमशान की तरफ उस पागल को खोजने, जिसका जिक्र दोजू ने कहा था !

चन्द्र की रोशनी में सब कुछ स्पष्ट दिखाई दे रहा था, शमशान में बहुत-सी झाडिया और वृक्ष थे ! ज्यादातर कंटीली झाडिया, बबूल और देवदार के वृक्ष थे, नदी के किनारे होने के कारण कुछ ज्यादा ही फल-फुल रहे थे !

आज शमशान कुछ ज्यादा ही शांत था, रात्रि के जीव भी ख़ामोशी से बैठे थे ! अचानक जैसे सप्तोश को अपने पीछे लकड़ी की आवाज सुनाई दी, वो पीछे देखता है की एक बुड्ढा, हाथ में लाठी और मशाल लिए खड़ा था !

ये इस शमशान का डोम था-भीकू ! शरीर से बुड्ढा हो चूका था, पहनावे में सिर्फ एक नीचे धोती पहन रखी थी और कुछ नहीं ! हाथ में एक लकड़ी जो जानवरों को भागने और उसके सहारे के लिए काम आती थी, और दुसरे हाथ में मशाल थी वो आदतन उसने जलाये रखी थी !

“कौन हो तुम, और इस वक्त यहाँ क्या कर रहे हो” भीकू अपनी आवाज को मुश्किल से उची करके बोलता है !

“तुम कोन हो” सप्तोश उल्टा सवाल पूछ बैठता है !

“में, में इस श्मशान का डोम हु, इस वक्त क्या काम है” दुबारा वही सवाल पूछता है !

“में वो पागल बुड्ढ़े को ढूढ़ रहा हु सुना है वो इसी श्मशान में रहता है”

“हा, रहता तो यही है, लेकिन इस श्मशान में यदि कोई कार्य है तो उसके लिए मुझे वसूली देनी पड़ेगी” भीकू वही नीचे जमीन पर बैठते हुए बोलता है !

सप्तोश, भीकू की बात को नजरअंदाज करके वापस उस बुड्ढ़े को ढूंडने आगे चला जाता है !

पहली बार रात में श्मशान का अनुभव, दिन की अपेक्षा कुछ अलग लग रहा था, रात में श्मशान कुछ ज्यादा ही शांत रहता है, छोटे-छोटे जन्तुओ की आवाज कुछ ज्यादा ही गहरा जाती है, हर समय ऐसा लग रहा था जैसे की कोई आस-पास ही है लेकिन कोई होता नहीं था, जैसे की कोई नजर रहा हो, जैसे की हवा भी कुछ कहना चाह रही हो लेकिन मुर्दों की ख़ामोशी में सब कुछ मौन रह जाता है !

‘झाड़ियो में कुछ हलचल-सी होती है,’

सप्तोश उस तरफ देखता है,

‘कोई उकडू बैठा हुआ था’

‘वही था’

‘हा’

‘ये वही बुड्ढा था’

‘लेकिन’

‘लेकिन, ये क्या’

स्प्तोश उसे देखकर इतना नहीं चौकता है जितना की उसके हाथ में कुछ देखकर ! उसके हाथ में.....





very nice update bhai maza aa gya
 

manojmn37

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हेल्लो दोस्तो,
कैसे हो
सबसे पहले तो आप सब से माफी चाहता हु की इतने दिनों से ना तो कोई अपडेट आया, और ना ही कोई रिप्लाई

हालात ही कुछ ऐसे थे, परिवार में थोड़ी परेशानी आ गयी थी, लेकिन अब सब कुछ ठीक है

एक बार फिर से आप सब से माफी चाहता हु

जैसा की मेने आपसे कहा था, की कहानी को अधूरा नही छोडूंगा
रविवार शाम तक एक बड़ा अपडेट आपके सामने हाजिर होगा

धन्यवाद
 

ashish_1982_in

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हेल्लो दोस्तो,
कैसे हो
सबसे पहले तो आप सब से माफी चाहता हु की इतने दिनों से ना तो कोई अपडेट आया, और ना ही कोई रिप्लाई

हालात ही कुछ ऐसे थे, परिवार में थोड़ी परेशानी आ गयी थी, लेकिन अब सब कुछ ठीक है

एक बार फिर से आप सब से माफी चाहता हु

जैसा की मेने आपसे कहा था, की कहानी को अधूरा नही छोडूंगा
रविवार शाम तक एक बड़ा अपडेट आपके सामने हाजिर होगा


धन्यवाद
thanks for your reply
 

kamdev99008

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हेल्लो दोस्तो,
कैसे हो
सबसे पहले तो आप सब से माफी चाहता हु की इतने दिनों से ना तो कोई अपडेट आया, और ना ही कोई रिप्लाई

हालात ही कुछ ऐसे थे, परिवार में थोड़ी परेशानी आ गयी थी, लेकिन अब सब कुछ ठीक है

एक बार फिर से आप सब से माफी चाहता हु

जैसा की मेने आपसे कहा था, की कहानी को अधूरा नही छोडूंगा
रविवार शाम तक एक बड़ा अपडेट आपके सामने हाजिर होगा


धन्यवाद
एक बार पुनः आपका स्वागत है....................
आशा है कि आपको अपनी मुश्किलों से कुछ राहत मिली होगी

प्रतीक्षा रहेगी रविवार के अपडेट की
 
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