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Fantasy वो कौन था

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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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ये कहानी मेरी अपनी लिखी हुई कहानी
यदि ये कहानी आपको इस fourm पर मेरे अलावा नही मिल सकती है
यदि आपने कही और देखी है तो उसने यही से कॉपी करी हुई है
मेने ही बीच मे कुछ परेशानी की वजह से ये कहानी को लिखना बंद कर लिया था, मेने कल से ही लिखना वापस शुरू किया है


और हा , ये मेरी कहानी कॉपीराइट के अंडर आती है, कोई भी मुझे पूछे बिना इसको पोस्ट नही कर सकता है वार्ना उसको प्रोब्लम हो सकती है :what2:
Hame to laga tha ki aapke darshan hi nahi honge manoj bhai. Yaar aisa gazab na kiya karo, aapko shayad pata nahi ki aapki yaad me ro ro kar hamne kitna apne aanshuo ka sharbat bana kar piya hai,,,,, :cry2:

Khair ab to aap aa hi gaye hain to sabse pahle aapse yahi request hai ki is tarah ab dubara chhod kar mat jaaiyega. Kahani ko continue rakhte huye jaldi jaldi uodate dijiye aur zara update ka size bhi bada kijiye. kamdev99008 bhai ki tarah lollypop mat dena warna 404 bhai ko aapke pichhe laga duga. Wo aapke sare error thik kar denge. Ye alag baat hai ki unhone khud ko hi 404 ka error lagwa liya hai. jane kaise kaise shauk hain bhai ke,,,,, :dazed:

Note:- Meri baato par serious nahi hona bhai,,,,, :dost:
 

Chutiyadr

Well-Known Member
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अध्याय ३

खंड १

"शून्य"
रात्रि का समय

दूर कही नदी किनारे लकडियो के जलने की रोशनी दिख रही थी,

कोई वहा बैठे कुछ कर रहा था

वो अपने झोले में से कुछ वस्तुए निकाल कर वहा आग में डाल रहा था,

आग भड़क रही थी जैसे की इंधन डाला जा रहा हो,

मंत्रो की ध्वनिया धीरे-धीरे घोर होती जा रही थी,

मंत्र क्लिष्ट होते जा रहे थे,

तभी आग अचानक से भड़क उठी, एक पल के लिए चारो तरफ प्रकाश फ़ैल गया,

उसी प्रकाश में उस व्यक्ति का चेहरा दिख पड़ता है,

ये बसोठा था |

बाबा बसोठा,

कापालिक बसोठा |

वो उस पागल के बारे में जानने को उत्सुक और उस से सब कुछ उगलवाने के हेतु ही ये सारा कृत्य कर रहा था,

सप्तोश के मना करने पर भी वो नहीं माना था,

उसे अपनी शक्तियों पर गुरुर था,

फिर भी इस बार सप्तोश को अपने गुरु के लिए एक अंजाना भय सता रहा था,

शायद इसीलिए की दोजू ने मना किया था या इस बार ये सारा मामला उसके परे था | लेकिन फिर भी अपने गुरु के प्रति भय के कारण वो आज की रात्रि उसको अकेले नहीं छोड़ने वाला था, वो दूर बैठे अपने गुरु पर नजर रख रहा था !

पल भर के लिए भड़की आग्नि वापस शांत हो गयी,

अब सप्तोश को वापस हल्की-हल्की जल रही आग के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था,

ऐसा नहीं था की रात्रि अन्धकार वाली थी,

अभी पूर्णिमा के गए मात्र २ ही दिन बीते थे लेकिन,

आज आसमान में बादल छाए हुए थे, चंद्रदेव कभी-कभी दर्शन दे वापस बदलो में लुप्त हो जाते थे |

मंत्र धीरे-धीरे शांत होते जा रहे थे, और अग्नि धीरे-धीरे अपना अस्तित्व बढ़ा रही थी, मंत्रो की ध्वनि शांत हो गयी थी, जैसे बाबा बसोठा की प्राम्भिक तैयारी पूर्ण हो चुकी थी |

अब बाबा बसोठा को सबसे पहले उस पागल के स्तिथि के बारे में जानकारी चाहिए थी,

और उसके लिए उसे अपनी द्रष्टि प्रसारित करनी थी

जैसे ही उसने अपने द्रष्टि प्रसारित की उसको एक धक्का-सा लगा,

उसको अपने पहले ही चरण के जैसे हार का सामना करना पड़ा |

वैसे उसकी शक्तिया अलख के उठने पर कई गुना बढ़ जाती है लेकिन आज कुछ विशेष फर्क नहीं लग रहा था |

जैसे ही उसने अपनी द्रष्टि प्रसारित की,

उसकी देख सीमित हो गयी,

वो गाव के कुछ हिस्सों को ही देख पा रहा था,

बाकि सभी हिस्से अन्धकार में थे,

जिसमे वो गाव का शिव मंदिर और शमशान दोनों आ रहे थे |

उसने वापस अपने देख लगाई,

विफल,

उसने सामने जल रही अलख में से राख उठाई,

मंत्र से फुका,

अपनी आखो पर लगाई,

वापस कोशिश की – फिर भी विफलता |

वो अपने पहले ही चरण में आगे नहीं बढ़ पा रहा था,

जब तक बाबा बसोठा उस पागल की स्तिथि का बोध नहीं कर पाता, तब तक वो कुछ नहीं कर सकता था |

आखिरकार उसे अपने गुरु की शक्तियों का सहारा लेना ही पड़ा,

उसने अलख में इंधन डाला, कुछ मंत्रो के साथ अपने झोले में से एक कपाल निकला,

अपने गुरु का कपाल को,

नमन किया अपने गुरु के कपाल को,

और रख दिया सामने राख के आसन पर,

अब उसने फिर से मंत्र बोलने शुरू किये,

कुछ समय पश्चात् अलख भड़क उठी,

और उसमें से निकलता है एक छोटा-सा बौना जीव,

जो लगभग एक सामान्य मनुष्य के हथेली जितना ही बड़ा था |

ये मंग्रक था,

एक बौनी-पुरुष शक्ति,

मोटा-भद्दा और बिना आखो के,

अपने साधक के कान में उसके उसके प्रतिध्वंदी की वस्तु-स्तिथि का पल-पल का बोध करवाता है

वो धीरे-धीरे आगे बढ़ता है,

और अपने छोटे-छोटे नुकीले हाथो और पंजो की सहायता से बाबा बसोठा के ऊपर चढ़ कर उसके कंधो पर बैठ जाता है, और अपने हाथो की मानसिक तरंगो की सहायता से बाबा बसोठा के मस्तिस्क से उस पागल के हुलिए का बोध करता है, एक क्षण की भी देरी किये बिना मंग्रक, बसोठा के कानो में बोल पड़ता है – ब्रह्म श्मशान और उस पागल की वस्तु स्तिथि का बोध करा देता है |

उधर,

श्मशान में वो पागल हल्का सा मुस्कुरा देता है जैसे की उसने मंग्रक की बाते सुन ली हो,

अब वो एक पेड़ से अपनी पीठ टिकाकर उस बाबा बसोठा की दिशा में मुख करके बैठ जाता है, और मुस्कुराते हुए उस दिशा में देखता है जैसे की कोई नाटक में गया है देखने के लिए |

किसी ने सच ही कहा है, जो जितना ऊचे मुकाम पर होता है, वो उतना ही, सहनशील और शांत हो जाता है, गहरे पानी में लहरे नहीं बनती, छिथले पानी में बनती है |

बाबा बसोठा को अब रक्षा चक्र खीचने का ध्यान में आया,

पहले तो वह निश्छल था,

लेकिन अपने देख काम नहीं करने की वजह से अब वह सतर्क हो चूका था, वो अपने स्थान से उठा और अपने चारो और अष्ट-चक्रिका का आव्हान किया,

ये अष्ट-चक्रिका अपने साधक के चारो और एक चक्र की भांति रक्षा करती है, अष्ट-चक्रिका का भेदन करना अत्यंत क्लिष्ट कार्य है

अब बाबा बसोठा तैयार हुआ वार करने को,

बाबा बसोठा की रणनीति एक दम स्पष्ट थी, वह अपने प्रतिद्वंदी पर अचानक वार करता है और फिर उसे घायल कर उससे अपना काम निकलवाता है, यदि वो उसके काम का है तो ठीक वर्ना उसे मृत्यु के घाट उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ता है,

उसने आव्हान किया एक पिचाचिनी का,

उसको नमन किया,

भोग दिया,

और

फिर अपना लक्ष्य बताया,

सुनते ही चल पड़ी पिचाचिनी अपने लक्ष्य की ओर

प्रकाश की गति से

लेकिन,

ये क्या !!!

२ पल बीते

५ पल बीते

१४ पल बीते

चारो तरफ सन्नाटा,

ना तो पिचाचिनी वापस आयी, और ना ही मंग्रक ने उसको वस्तु स्तिथि का बोध करवाया,

उस पिचाचिनी का क्या हुआ,

ये उस मंग्रक के शक्ति के परे की बात थी,

मंग्रक ने बस एक ही शब्द कहा

“शुन्य”

मतलब की अब बाबा बसोठा उस पिचाचिनी से रिक्त हो चूका था,

अब वो वापस उसके कुछ काम नहीं आ सकती थी,

छीन ली थी किसी ने उस पिचाचिनी को,

अब बाबा बसोठा पड़ा मुश्किल में,

पहला ही शक्ति वार किया और उससे भी रिक्त हो गया,

दूसरा वार करने के लिए अपनी मनः-स्तिथि को तैयार किया और इस समय उसने डंकिनी का आव्हान किया

चीर-फाड़ करने को आतुर,

सर्व-काल बलि

अपने शत्रु को भेदने में तत्पर,

“शून्य” – अचानक मंग्रक बोल पड़ता है,

सुन्न!!

बाबा बसोठा सुन्न !!

अब ये क्या हुआ उसे कुछ भी समझ में नहीं आया

डंकिनी के प्रकट होने ने पहले ही वह उस से रिक्त हो गया,

ये भी छीन ली उससे किसी ने,

जैसे शुन्य ने निगल लिया हो उसको,

ये उसके साथ ऐसा पहली बार हुआ है,

और ना ही किसी से उसने ऐसा सुना,

ये उसके लिए एक चेतावनी थी,

की अभी वो हट जाये पीछे,

जिद्द ना करे,

लेकिन उसे भी दंभ था,



घमंड था उसे अपनी शक्तियों पर,

वो तो अच्छा है की यह मानस देह नश्वर है,


नहीं तो,

नहीं तो ये मानव,

उस परम शक्तिशाली

को भी चुनौती दे देता,


अपने दंभ में,

खैर,

लेकिन इस बार उसका घमंड कुछ काम नहीं आने वाला था,

वापस उसने कुछ मंत्र बुदबुदाये,

“शुन्य”

इसी तरह वह जम्भाल, दंद्धौल आदि सभी शक्तियो और पता नहीं कितने ही महाप्रेत और महाभट्ट से रिक्त हो चूका था,

रात्रि का दूसरा प्रहर बीत चूका था,

स्तिथि पूरी तरह से बाबा बसोठा के विपरीत थी,

वो लगभग अपनी सारी शक्तियों से रिक्त हो चूका था,

अब वो अपना मानसिक संतुलन खो चूका था, ऐसा पहली बार एसा उसके साथ हुआ और सबसे बुरी बात तो ये थी की अब उसके पास कुछ नहीं बचा था,

वह अब अपना आखिरी दाव खेलने वाला था, उसका आखिरी दाव था उसके गुरु,

उसने अपने गुरु की रूह को अब तक कैद किये हुए रखा था, उनकी शक्तियों को इस्तेमाल कर रहा था, लेकिन अब मामला उल्टा हो गया था, इसके अलावा उसके पास अब कोई चारा ही नहीं बचा था, हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना चाह रहा था,

प्रकति के विरुद्ध कार्य,

उसने अपने गुरु के कपाल जो हाथ में उठाया, और दोनों हाथो से पकड़ कर मंत्र बोल रहा था, कुछ ही समय शेष था बाण के छुटने में,

तभी दूसरी तरफ श्मशान में, वो पागल उठा अपनी जगह से और अपने शरीर को मोड़कर आलस झाडा,

मंदिर की तरफ देखकर उसने.....




















bahut hi behtareen writing
 

Chutiyadr

Well-Known Member
16,890
41,454
259
अध्याय ३
खंड २

"कर्म-फल"
वह अब अपना आखिरी दाव खेलने वाला था, उसका आखिरी दाव था उसके गुरु,

उसने अपने गुरु की रूह को अब तक कैद किये हुए रखा था, उनकी शक्तियों को इस्तेमाल कर रहा था, लेकिन अब मामला उल्टा हो गया था, इसके अलावा उसके पास अब कोई चारा ही नहीं बचा था, हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना चाह रहा था,

प्रकति के विरुद्ध कार्य,

उसने अपने गुरु के कपाल जो हाथ में उठाया, और दोनों हाथो से पकड़ कर मंत्र बोल रहा था, कुछ ही समय शेष था बाण के छुटने में,

तभी दूसरी तरफ श्मशान में, वो पागल उठा अपनी जगह से और अपने शरीर को मोड़कर आलस झाडा,

मंदिर की तरफ देखकर उसने कहा “बहुत नाटक हो गया उसका, जा उसको बंद कर दे”

उसका इतना कहना ही था की वहा उस बाबा बसोठा की अलख बुझ गयी,

मंग्रक वही हवा में लोप हो गया,

अब बाबा बसोठा को भय सताने लगा,

बीच धार में ही अलख का बुझ जाना, उसकी शक्तियों के लोप होने का संकेत था

तभी अचानक से उसके सामने वही यक्ष प्रकट हुआ,

पहले की तरह वो शांत और मुस्कुरा नहीं रहा था,

बल्कि लेकिन इस बार वो गुस्से में लग रहा था,

यक्ष के प्रकट होते ही अष्ट-चक्रिका रक्षा सूत्र खण्ड-खण्ड हो गया,

जैसे की यक्ष के शक्तियों का ताप वो सहन नहीं कर सकी,

दूर पर कोई था जो इन सब क्रियाकलाप को देख रहा था,

सप्तोश !

अब वो पूरी तरह जड़-मूर्त हो चूका था,

उसने अपने गुरु की इस तरह की हार पहली बार देखी थी,

उसे समझ नहीं आ रहा था की अब क्या किया जाए,

और जैसे ही उसने यक्ष के प्रकट होने को देखा,

वो शून्य हो गया !

उसने यक्षो के बारे में सुना बहुत था, बहुत कहानिया भी पढ़ रखी थी,

लेकिन,

लेकिन, देखा पहली बार था,

क्या रूप था उसका !!

और उससे भी ज्यादा उसका तेज,

सप्तोश के इतना दूर दे देखने पर भी उसे उसके तेज का अहसास हो रहा था,

बेचारा,

सप्तोश का छोटा-सा मस्तिष्क इतना सब कुछ सहन न कर सका और वही
अचेत हो गिर पड़ा

लेकिन उस तरफ बसोठा को अचेत होने तक का आदेश नहीं था,

उसके सामने जैसे साक्षात् यमराज खड़े हो,

अब मृत्यु के अलावा उसके सामने कोई विकल्प नहीं था,

या तो मृत्यु का वरण कर ले या उस क्रोधित यक्ष से लडे,

लडे,

वो भी यक्ष से,

एक उप-उप-देवयोनी से,

यक्ष जब तक आप पर प्रसन्न रहे तो तब जैसे पूरी प्रथिवी पर आपके जैसा सानी कोई नहीं,

और यदि क्रोधित हो जाये तो आपकी दसो पुस्तो तक कोई पीछे पानी देने वाला तक नहीं बचे,

ऐसा प्रबल था वो यक्ष,

जैसे ही यक्ष ने अट्ठाहस लगाया,

वहा से सब कुछ उड़ चला,

सिवाए उस बाबा बसोठा और उसके गुरु के कपाल के,

यक्ष थोडा आगे बढ़ा,

उसने उसके उसके गुरु के कपाल को आदर सहित हाथ में उठाया,

कुछ क्षण देखता रहा और गायब,

लुप्त हो गया वो कपाल उस यक्ष के हाथ से,

मुक्त हो गयी उस गुरु की आत्मा,

चल पड़ी अपने अगले पड़ाव की ओर,

बाबा बसोठा,

भय के मारे अपलक ये सब देख रहा था,

“सुन साधक”

इतना सुनते ही वापस वो भय के मारे काप उठा

“तेरे
कर्म-फल अभी समाप्त नहीं हुए है”

“तेरी मृत्यु अभी तक बहुत दूर है”

“में तो बस उस सच्चे साधक को मुक्त कराने को आया था”

वो नहीं चाहते की कोई भी प्राणी किसी भी सच्चे साधक की शक्तियों का गलत फायदा उठाये”

“मेने कल तुम्हे यही इशारे से समझाया था की अभी भी वक्त है, छोड़ दो ये सब, बाकि का समय इतना कष्टपूर्ण नहीं बीतेगा”

“लेकिन तुमने अपनी नियति खुद ही चुनी है”

इतना कहते ही वह धम्म की आवाज के साथ लोप हो जाता है,

बसोठा के आखो के सामने अँधेरा छा जाता है और वो वही गिर पड़ता है |

.

.

..

...

रात्रि का तीसरा प्रहर बीत चूका था,

यहाँ से कही दूर,

किसी दुसरे देश में,

अमान, राजमहल के मखमली बिस्तरों पर सो रहा था,

तभी अचानक,

जोर से खिड़की खुलने की आवाज आयी,

आख खुली अमान की,

उठा,

देखा सामने,

उसके सामने खड़ा था......


:good:
 

manojmn37

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Hame to laga tha ki aapke darshan hi nahi honge manoj bhai. Yaar aisa gazab na kiya karo, aapko shayad pata nahi ki aapki yaad me ro ro kar hamne kitna apne aanshuo ka sharbat bana kar piya hai,,,,, :cry2:

Khair ab to aap aa hi gaye hain to sabse pahle aapse yahi request hai ki is tarah ab dubara chhod kar mat jaaiyega. Kahani ko continue rakhte huye jaldi jaldi uodate dijiye aur zara update ka size bhi bada kijiye. kamdev99008 bhai ki tarah lollypop mat dena warna 404 bhai ko aapke pichhe laga duga. Wo aapke sare error thik kar denge. Ye alag baat hai ki unhone khud ko hi 404 ka error lagwa liya hai. jane kaise kaise shauk hain bhai ke,,,,, :dazed:

Note:- Meri baato par serious nahi hona bhai,,,,, :dost:

धन्यवाद आपका

आप बिल्कुल चिंता ना करे
कहानी को अधूरा नही छोडूंगा
हा, बीच मे थोड़ी "प्रोब्लम" हो गयीं थी लेकिन अब सब सही है
 

manojmn37

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अपडेट शाम को आएगा भाई
"working days" में समय कम ही मिल पाता है इसीलिए अपडेट लिखने में और पोस्ट करने में 1-2 दिन का समय लग सकता है लेकिन "Saturday" "Sunday" को 3-4 अपडेट एक साथ मिल जायेंगे
 
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