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Fantasy वो कौन था

आपको ये कहानी कैसी लग रही है

  • बेकार है

    Votes: 2 5.3%
  • कुछ कह नही सकते

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  • अच्छी है

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  • बहुत अच्छी है

    Votes: 24 63.2%

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manojmn37

Member
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अध्याय ३
खंड २

"कर्म-फल"
वह अब अपना आखिरी दाव खेलने वाला था, उसका आखिरी दाव था उसके गुरु,

उसने अपने गुरु की रूह को अब तक कैद किये हुए रखा था, उनकी शक्तियों को इस्तेमाल कर रहा था, लेकिन अब मामला उल्टा हो गया था, इसके अलावा उसके पास अब कोई चारा ही नहीं बचा था, हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना चाह रहा था,

प्रकति के विरुद्ध कार्य,

उसने अपने गुरु के कपाल जो हाथ में उठाया, और दोनों हाथो से पकड़ कर मंत्र बोल रहा था, कुछ ही समय शेष था बाण के छुटने में,

तभी दूसरी तरफ श्मशान में, वो पागल उठा अपनी जगह से और अपने शरीर को मोड़कर आलस झाडा,

मंदिर की तरफ देखकर उसने कहा “बहुत नाटक हो गया उसका, जा उसको बंद कर दे”

उसका इतना कहना ही था की वहा उस बाबा बसोठा की अलख बुझ गयी,

मंग्रक वही हवा में लोप हो गया,

अब बाबा बसोठा को भय सताने लगा,

बीच धार में ही अलख का बुझ जाना, उसकी शक्तियों के लोप होने का संकेत था

तभी अचानक से उसके सामने वही यक्ष प्रकट हुआ,

पहले की तरह वो शांत और मुस्कुरा नहीं रहा था,

बल्कि लेकिन इस बार वो गुस्से में लग रहा था,

यक्ष के प्रकट होते ही अष्ट-चक्रिका रक्षा सूत्र खण्ड-खण्ड हो गया,

जैसे की यक्ष के शक्तियों का ताप वो सहन नहीं कर सकी,

दूर पर कोई था जो इन सब क्रियाकलाप को देख रहा था,

सप्तोश !

अब वो पूरी तरह जड़-मूर्त हो चूका था,

उसने अपने गुरु की इस तरह की हार पहली बार देखी थी,

उसे समझ नहीं आ रहा था की अब क्या किया जाए,

और जैसे ही उसने यक्ष के प्रकट होने को देखा,

वो शून्य हो गया !

उसने यक्षो के बारे में सुना बहुत था, बहुत कहानिया भी पढ़ रखी थी,

लेकिन,

लेकिन, देखा पहली बार था,

क्या रूप था उसका !!

और उससे भी ज्यादा उसका तेज,

सप्तोश के इतना दूर दे देखने पर भी उसे उसके तेज का अहसास हो रहा था,

बेचारा,

सप्तोश का छोटा-सा मस्तिष्क इतना सब कुछ सहन न कर सका और वही
अचेत हो गिर पड़ा

लेकिन उस तरफ बसोठा को अचेत होने तक का आदेश नहीं था,

उसके सामने जैसे साक्षात् यमराज खड़े हो,

अब मृत्यु के अलावा उसके सामने कोई विकल्प नहीं था,

या तो मृत्यु का वरण कर ले या उस क्रोधित यक्ष से लडे,

लडे,

वो भी यक्ष से,

एक उप-उप-देवयोनी से,

यक्ष जब तक आप पर प्रसन्न रहे तो तब जैसे पूरी प्रथिवी पर आपके जैसा सानी कोई नहीं,

और यदि क्रोधित हो जाये तो आपकी दसो पुस्तो तक कोई पीछे पानी देने वाला तक नहीं बचे,

ऐसा प्रबल था वो यक्ष,

जैसे ही यक्ष ने अट्ठाहस लगाया,

वहा से सब कुछ उड़ चला,

सिवाए उस बाबा बसोठा और उसके गुरु के कपाल के,

यक्ष थोडा आगे बढ़ा,

उसने उसके उसके गुरु के कपाल को आदर सहित हाथ में उठाया,

कुछ क्षण देखता रहा और गायब,

लुप्त हो गया वो कपाल उस यक्ष के हाथ से,

मुक्त हो गयी उस गुरु की आत्मा,

चल पड़ी अपने अगले पड़ाव की ओर,

बाबा बसोठा,

भय के मारे अपलक ये सब देख रहा था,

“सुन साधक”

इतना सुनते ही वापस वो भय के मारे काप उठा

“तेरे
कर्म-फल अभी समाप्त नहीं हुए है”

“तेरी मृत्यु अभी तक बहुत दूर है”

“में तो बस उस सच्चे साधक को मुक्त कराने को आया था”

वो नहीं चाहते की कोई भी प्राणी किसी भी सच्चे साधक की शक्तियों का गलत फायदा उठाये”

“मेने कल तुम्हे यही इशारे से समझाया था की अभी भी वक्त है, छोड़ दो ये सब, बाकि का समय इतना कष्टपूर्ण नहीं बीतेगा”

“लेकिन तुमने अपनी नियति खुद ही चुनी है”

इतना कहते ही वह धम्म की आवाज के साथ लोप हो जाता है,

बसोठा के आखो के सामने अँधेरा छा जाता है और वो वही गिर पड़ता है |

.

.

..

...

रात्रि का तीसरा प्रहर बीत चूका था,

यहाँ से कही दूर,

किसी दुसरे देश में,

अमान, राजमहल के मखमली बिस्तरों पर सो रहा था,

तभी अचानक,

जोर से खिड़की खुलने की आवाज आयी,

आख खुली अमान की,

उठा,

देखा सामने,

उसके सामने खड़ा था......


 

ashish_1982_in

Well-Known Member
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अध्याय ३
खंड २

"कर्म-फल"
वह अब अपना आखिरी दाव खेलने वाला था, उसका आखिरी दाव था उसके गुरु,

उसने अपने गुरु की रूह को अब तक कैद किये हुए रखा था, उनकी शक्तियों को इस्तेमाल कर रहा था, लेकिन अब मामला उल्टा हो गया था, इसके अलावा उसके पास अब कोई चारा ही नहीं बचा था, हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना चाह रहा था,

प्रकति के विरुद्ध कार्य,

उसने अपने गुरु के कपाल जो हाथ में उठाया, और दोनों हाथो से पकड़ कर मंत्र बोल रहा था, कुछ ही समय शेष था बाण के छुटने में,

तभी दूसरी तरफ श्मशान में, वो पागल उठा अपनी जगह से और अपने शरीर को मोड़कर आलस झाडा,


मंदिर की तरफ देखकर उसने कहा “बहुत नाटक हो गया उसका, जा उसको बंद कर दे”

उसका इतना कहना ही था की वहा उस बाबा बसोठा की अलख बुझ गयी,

मंग्रक वही हवा में लोप हो गया,

अब बाबा बसोठा को भय सताने लगा,

बीच धार में ही अलख का बुझ जाना, उसकी शक्तियों के लोप होने का संकेत था

तभी अचानक से उसके सामने वही यक्ष प्रकट हुआ,

पहले की तरह वो शांत और मुस्कुरा नहीं रहा था,

बल्कि लेकिन इस बार वो गुस्से में लग रहा था,

यक्ष के प्रकट होते ही अष्ट-चक्रिका रक्षा सूत्र खण्ड-खण्ड हो गया,

जैसे की यक्ष के शक्तियों का ताप वो सहन नहीं कर सकी,

दूर पर कोई था जो इन सब क्रियाकलाप को देख रहा था,

सप्तोश !

अब वो पूरी तरह जड़-मूर्त हो चूका था,

उसने अपने गुरु की इस तरह की हार पहली बार देखी थी,

उसे समझ नहीं आ रहा था की अब क्या किया जाए,

और जैसे ही उसने यक्ष के प्रकट होने को देखा,

वो शून्य हो गया !

उसने यक्षो के बारे में सुना बहुत था, बहुत कहानिया भी पढ़ रखी थी,

लेकिन,

लेकिन, देखा पहली बार था,

क्या रूप था उसका !!

और उससे भी ज्यादा उसका तेज,

सप्तोश के इतना दूर दे देखने पर भी उसे उसके तेज का अहसास हो रहा था,

बेचारा,

सप्तोश का छोटा-सा मस्तिष्क इतना सब कुछ सहन न कर सका और वही
अचेत हो गिर पड़ा

लेकिन उस तरफ बसोठा को अचेत होने तक का आदेश नहीं था,

उसके सामने जैसे साक्षात् यमराज खड़े हो,

अब मृत्यु के अलावा उसके सामने कोई विकल्प नहीं था,

या तो मृत्यु का वरण कर ले या उस क्रोधित यक्ष से लडे,

लडे,

वो भी यक्ष से,

एक उप-उप-देवयोनी से,

यक्ष जब तक आप पर प्रसन्न रहे तो तब जैसे पूरी प्रथिवी पर आपके जैसा सानी कोई नहीं,

और यदि क्रोधित हो जाये तो आपकी दसो पुस्तो तक कोई पीछे पानी देने वाला तक नहीं बचे,

ऐसा प्रबल था वो यक्ष,

जैसे ही यक्ष ने अट्ठाहस लगाया,

वहा से सब कुछ उड़ चला,

सिवाए उस बाबा बसोठा और उसके गुरु के कपाल के,

यक्ष थोडा आगे बढ़ा,

उसने उसके उसके गुरु के कपाल को आदर सहित हाथ में उठाया,

कुछ क्षण देखता रहा और गायब,

लुप्त हो गया वो कपाल उस यक्ष के हाथ से,

मुक्त हो गयी उस गुरु की आत्मा,

चल पड़ी अपने अगले पड़ाव की ओर,

बाबा बसोठा,

भय के मारे अपलक ये सब देख रहा था,

“सुन साधक”

इतना सुनते ही वापस वो भय के मारे काप उठा

“तेरे
कर्म-फल अभी समाप्त नहीं हुए है”

“तेरी मृत्यु अभी तक बहुत दूर है”

“में तो बस उस सच्चे साधक को मुक्त कराने को आया था”

वो नहीं चाहते की कोई भी प्राणी किसी भी सच्चे साधक की शक्तियों का गलत फायदा उठाये”

“मेने कल तुम्हे यही इशारे से समझाया था की अभी भी वक्त है, छोड़ दो ये सब, बाकि का समय इतना कष्टपूर्ण नहीं बीतेगा”

“लेकिन तुमने अपनी नियति खुद ही चुनी है”

इतना कहते ही वह धम्म की आवाज के साथ लोप हो जाता है,

बसोठा के आखो के सामने अँधेरा छा जाता है और वो वही गिर पड़ता है |

.

.

..

...

रात्रि का तीसरा प्रहर बीत चूका था,

यहाँ से कही दूर,

किसी दुसरे देश में,

अमान, राजमहल के मखमली बिस्तरों पर सो रहा था,

तभी अचानक,

जोर से खिड़की खुलने की आवाज आयी,

आख खुली अमान की,

उठा,

देखा सामने,

उसके सामने खड़ा था......
Fantastic update bhai maza aa gya ab dekhte hai ki aage kya hota hai
 
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