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Fantasy वो कौन था

आपको ये कहानी कैसी लग रही है

  • बेकार है

    Votes: 2 5.3%
  • कुछ कह नही सकते

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  • अच्छी है

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  • बहुत अच्छी है

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manojmn37

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Nice but short update... Jab padne ka maza aane lagta hai to update hee khatam Ho jata hai... Phir 2-3 din ke baad update aata hai

माफ़ करना भाई
ये में भी मानता हु की अपडेट थोड़े छोटे आ रहे है
लेकिन में अभी इस कहानी के 'Character' और 'Scene' के 'illustrator' पर काम कर रहा हु ताकि सभी का 'visualization' और अच्छा हो सके और आगे की कहानी को पढ़ने में और मजा आये, सारा समय यही चला जाता है ☹
 

manojmn37

Member
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अध्याय ३
खंड ५
आरम्भ
“सुनिए वैद्यजी, किसे ढूंड रहे हो ?” कबसे दोजू को इधर-उधर मंदिर में किसी की तलाश करते हुए पुजारी देखता है, आखिरकार वो पूछ ही पड़ता है “या कुछ खो गया है”

“वो राजवैद्यीजी और उनकी सहायिका हो”

“अरे, वो दोनों तो कल सुबह से वापस ही नहीं आयी है”

इतना सुनते ही दोजू दौड़ पड़ता है माणिकलाल की घर की तरफ

कल सुबह से चेत्री और डामरी मंदिर की तरफ नहीं लौटी, इसका मतलब की वे दोनों अभी भी माणिकलाल के घर पर ही होगी, इसीलिए दोजू बिना समय गवाए माणिकलाल के घर की तरफ चल पड़ता है |

उधर माणिकलाल के घर पर डामरी निर्मला की खाना बनाने में मदद कर रही थी,

और चेत्री,

चेत्री सुरभि में हुए इस अचानक परिवर्तन का निरिक्षण कर रही थी,

चेत्री अचंभित थी सुरभि को अब इस हालत में देख कर,

उसे अभी भी इस सब पर विश्वाश नहीं हो रहा था,

लेकिन विश्वास करना भी जरुरी था

और हुआ भी सब उसके सामने था,

आखिर क्या था वो कौड़म,

जिससे इतना सब कुछ हो गया,

क्या वो वो साधारण सा बिच्छु था,

नहीं

बिच्छु का जहर इसकी काया सहन नहीं कर पाती

आखिर...

अभी बीच में दरवाजे पर दस्तक होती है

ये दोजू था,

दस्तक सुनते ही निर्मला बाहर की तरफ देखती है, “क्या हुआ वैद्यजी, वो अभी तक पहुचे नहीं क्या ?” निर्मला थोडा असमंजस में बोलती है

“वो तो कब का पहुच गया” अन्दर आते ही दोजू बोलता है “अभी मेरे झोपड़े पर ही बैठा है”

“इतना जल्दी कैसे आ गया दोजू” दोजू के अन्दर आते ही चेत्री बोल पड़ती है

“मेरे पास तुम्हारे और डामरी के लिए एक निमंत्रण है”

“निमंत्रण”

“कैसा निमंत्रण”

“हमारे साथ यात्रा पर चलने का”

“तुम्हारे साथ यात्रा पर, लेकिन हमें क्या मिलेगा”

सौदा !!!

अब सौदा करने की बारी चेत्री की थी

“क्या चाहिए तुम्हे ?” दोजू बोल पड़ता है

“ज्ञान चाहिए है” चेत्री बोलती है “जो तुम्हारे पास है वो सब कुछ”

“मंजूर है” बिना कुछ सोचे समझे ही दोजू ने हा कह दिया जैसे की उसके लिए ये यात्रा ही सब कुछ है

“तो ठीक है” चेत्री भी हतप्रभ थी की दोजू इतनी आसानी से मान लेगा

“चलो चलते है” इतना कहते ही दोजू चल पड़ता है, और पीछे-पीछे चेत्री और डामरी बिह चल पड़ते है

इसी के साथ दोजू, माणिकलाल, सप्तोश, रमन, चेत्री और डामरी की यात्रा
आरम्भ होती है, जो ‘कदर्पी’ से उन ‘उत्तरी’ पहाड़ो की तरफ थी जिसका उद्देश्य सिर्फ दोजू को ही पता था,

क्या है वो उद्देश्य जिसके लिए सभी ने कुछ-न-कुछ दाव पर लगाया है

या उस वचन के लिए,

आखिर क्या है उस वचन में,

ये सब बताएगी इन सब की बारह दिनों की यात्रा,


इसी यात्रा का आरम्भ इस अध्याय की समाप्ति पर होता है

 
Last edited:

ashish_1982_in

Well-Known Member
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अध्याय ३
खंड ५
आरम्भ
“सुनिए वैद्यजी, किसे ढूंड रहे हो ?” कबसे दोजू को इधर-उधर मंदिर में किसी की तलाश करते हुए पुजारी देखता है, आखिरकार वो पूछ ही पड़ता है “या कुछ खो गया है”

“वो राजवैद्यीजी और उनकी सहायिका हो”

“अरे, वो दोनों तो कल सुबह से वापस ही नहीं आयी है”

इतना सुनते ही दोजू दौड़ पड़ता है माणिकलाल की घर की तरफ

कल सुबह से चेत्री और डामरी मंदिर की तरफ नहीं लौटी, इसका मतलब की वे दोनों अभी भी माणिकलाल के घर पर ही होगी, इसीलिए दोजू बिना समय गवाए माणिकलाल के घर की तरफ चल पड़ता है |

उधर माणिकलाल के घर पर डामरी निर्मला की खाना बनाने में मदद कर रही थी,

और चेत्री,

चेत्री सुरभि में हुए इस अचानक परिवर्तन का निरिक्षण कर रही थी,

चेत्री अचंभित थी सुरभि को अब इस हालत में देख कर,

उसे अभी भी इस सब पर विश्वाश नहीं हो रहा था,

लेकिन विश्वास करना भी जरुरी था

और हुआ भी सब उसके सामने था,

आखिर क्या था वो कौड़म,

जिससे इतना सब कुछ हो गया,

क्या वो वो साधारण सा बिच्छु था,

नहीं

बिच्छु का जहर इसकी काया सहन नहीं कर पाती

आखिर...

अभी बीच में दरवाजे पर दस्तक होती है

ये दोजू था,

दस्तक सुनते ही निर्मला बाहर की तरफ देखती है, “क्या हुआ वैद्यजी, वो अभी तक पहुचे नहीं क्या ?” निर्मला थोडा असमंजस में बोलती है

“वो तो कब का पहुच गया” अन्दर आते ही दोजू बोलता है “अभी मेरे झोपड़े पर ही बैठा है”

“इतना जल्दी कैसे आ गया दोजू” दोजू के अन्दर आते ही चेत्री बोल पड़ती है

“मेरे पास तुम्हारे और डामरी के लिए एक निमंत्रण है”

“निमंत्रण”

“कैसा निमंत्रण”

“हमारे साथ यात्रा पर चलने का”

“तुम्हारे साथ यात्रा पर, लेकिन हमें क्या मिलेगा”

सौदा !!!

अब सौदा करने की बारी चेत्री की थी

“क्या चाहिए तुम्हे ?” दोजू बोल पड़ता है

“ज्ञान चाहिए है” चेत्री बोलती है “जो तुम्हारे पास है वो सब कुछ”

“मंजूर है” बिना कुछ सोचे समझे ही दोजू ने हा कह दिया जैसे की उसके लिए ये यात्रा ही सब कुछ है

“तो ठीक है” चेत्री भी हतप्रभ थी की दोजू इतनी आसानी से मान लेगा

“चलो चलते है” इतना कहते ही दोजू चल पड़ता है, और पीछे-पीछे चेत्री और डामरी बिह चल पड़ते है

इसी के साथ दोजू, माणिकलाल, सप्तोश, रमन, चेत्री और डामरी की यात्रा
आरम्भ होती है, जो ‘कदर्पी’ से उन ‘उत्तरी’ पहाड़ो की तरफ थी जिसका उद्देश्य सिर्फ दोजू को ही पता था,

क्या है वो उद्देश्य जिसके लिए सभी ने कुछ-न-कुछ दाव पर लगाया है

या उस वचन के लिए,

आखिर क्या है उस वचन में,

ये सब बताएगी इन सब की बारह दिनों की यात्रा,


इसी यात्रा का आरम्भ इस अध्याय की समाप्ति पर होता है

very nice update bhai maza aa gya ab dekhte hai ki aage kya hota hai
 

Chutiyadr

Well-Known Member
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अध्याय ३
खंड ५
आरम्भ
“सुनिए वैद्यजी, किसे ढूंड रहे हो ?” कबसे दोजू को इधर-उधर मंदिर में किसी की तलाश करते हुए पुजारी देखता है, आखिरकार वो पूछ ही पड़ता है “या कुछ खो गया है”

“वो राजवैद्यीजी और उनकी सहायिका हो”

“अरे, वो दोनों तो कल सुबह से वापस ही नहीं आयी है”

इतना सुनते ही दोजू दौड़ पड़ता है माणिकलाल की घर की तरफ

कल सुबह से चेत्री और डामरी मंदिर की तरफ नहीं लौटी, इसका मतलब की वे दोनों अभी भी माणिकलाल के घर पर ही होगी, इसीलिए दोजू बिना समय गवाए माणिकलाल के घर की तरफ चल पड़ता है |

उधर माणिकलाल के घर पर डामरी निर्मला की खाना बनाने में मदद कर रही थी,

और चेत्री,

चेत्री सुरभि में हुए इस अचानक परिवर्तन का निरिक्षण कर रही थी,

चेत्री अचंभित थी सुरभि को अब इस हालत में देख कर,

उसे अभी भी इस सब पर विश्वाश नहीं हो रहा था,

लेकिन विश्वास करना भी जरुरी था

और हुआ भी सब उसके सामने था,

आखिर क्या था वो कौड़म,

जिससे इतना सब कुछ हो गया,

क्या वो वो साधारण सा बिच्छु था,

नहीं

बिच्छु का जहर इसकी काया सहन नहीं कर पाती

आखिर...

अभी बीच में दरवाजे पर दस्तक होती है

ये दोजू था,

दस्तक सुनते ही निर्मला बाहर की तरफ देखती है, “क्या हुआ वैद्यजी, वो अभी तक पहुचे नहीं क्या ?” निर्मला थोडा असमंजस में बोलती है

“वो तो कब का पहुच गया” अन्दर आते ही दोजू बोलता है “अभी मेरे झोपड़े पर ही बैठा है”

“इतना जल्दी कैसे आ गया दोजू” दोजू के अन्दर आते ही चेत्री बोल पड़ती है

“मेरे पास तुम्हारे और डामरी के लिए एक निमंत्रण है”

“निमंत्रण”

“कैसा निमंत्रण”

“हमारे साथ यात्रा पर चलने का”

“तुम्हारे साथ यात्रा पर, लेकिन हमें क्या मिलेगा”

सौदा !!!

अब सौदा करने की बारी चेत्री की थी

“क्या चाहिए तुम्हे ?” दोजू बोल पड़ता है

“ज्ञान चाहिए है” चेत्री बोलती है “जो तुम्हारे पास है वो सब कुछ”

“मंजूर है” बिना कुछ सोचे समझे ही दोजू ने हा कह दिया जैसे की उसके लिए ये यात्रा ही सब कुछ है

“तो ठीक है” चेत्री भी हतप्रभ थी की दोजू इतनी आसानी से मान लेगा

“चलो चलते है” इतना कहते ही दोजू चल पड़ता है, और पीछे-पीछे चेत्री और डामरी बिह चल पड़ते है

इसी के साथ दोजू, माणिकलाल, सप्तोश, रमन, चेत्री और डामरी की यात्रा
आरम्भ होती है, जो ‘कदर्पी’ से उन ‘उत्तरी’ पहाड़ो की तरफ थी जिसका उद्देश्य सिर्फ दोजू को ही पता था,

क्या है वो उद्देश्य जिसके लिए सभी ने कुछ-न-कुछ दाव पर लगाया है

या उस वचन के लिए,

आखिर क्या है उस वचन में,

ये सब बताएगी इन सब की बारह दिनों की यात्रा,


इसी यात्रा का आरम्भ इस अध्याय की समाप्ति पर होता है

itana chhota update :yikes:
jaldi se yatra ka prarambh karo bhaiya
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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बहुत -बहुत धन्यवाद आपका :thankyou:
आप जैसे 'readers' की वहज से ही हम जैसो को लिखने का प्रोत्साहन मिलता है :love3:
Fikar not bhai, aap bas likhte raho ham jaiise readers aapke sath bane rahege,,,,, :yo:
 

nain11ster

Prime
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अलौकिक
आप की राइटिंग अलौकिक हैं मनोज भाई,
इस स्टोरी को पढ़ने के लिए एक और अलौकिक राइटर को इनवाइट करना चाहूंगा ,
nain11ster
Bhai ye story jarur padhiyega , is forum ka sabse behtreen writer(in term of writing skills) main aapko manta tha ,lekin manoj bhai to ek kadam aage nikal gaye hai,pls read this story aur mera wada hai nirash nahi hoge..
Ji jaroor doc babu ... :thanks:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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धन्यवाद दोस्तों इस कहानी को पसंद करने के लिए

अध्याय ३ तक इस कहानी की भूमिका पूर्ण रूप से पूरी हो चुकी है, अध्याय ४ से इस कहानी में आपको रोमांचकारी यात्रा, राजनीति, युद्ध, मजाक के साथ-साथ काम और मद का भी आनंद आएगा
Bahut khoob, badi shiddat se intzaar hai,,,,, :waiting: (
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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अध्याय ३
खंड ५
आरम्भ
“सुनिए वैद्यजी, किसे ढूंड रहे हो ?” कबसे दोजू को इधर-उधर मंदिर में किसी की तलाश करते हुए पुजारी देखता है, आखिरकार वो पूछ ही पड़ता है “या कुछ खो गया है”

“वो राजवैद्यीजी और उनकी सहायिका हो”

“अरे, वो दोनों तो कल सुबह से वापस ही नहीं आयी है”

इतना सुनते ही दोजू दौड़ पड़ता है माणिकलाल की घर की तरफ

कल सुबह से चेत्री और डामरी मंदिर की तरफ नहीं लौटी, इसका मतलब की वे दोनों अभी भी माणिकलाल के घर पर ही होगी, इसीलिए दोजू बिना समय गवाए माणिकलाल के घर की तरफ चल पड़ता है |

उधर माणिकलाल के घर पर डामरी निर्मला की खाना बनाने में मदद कर रही थी,

और चेत्री,

चेत्री सुरभि में हुए इस अचानक परिवर्तन का निरिक्षण कर रही थी,

चेत्री अचंभित थी सुरभि को अब इस हालत में देख कर,

उसे अभी भी इस सब पर विश्वाश नहीं हो रहा था,

लेकिन विश्वास करना भी जरुरी था

और हुआ भी सब उसके सामने था,

आखिर क्या था वो कौड़म,

जिससे इतना सब कुछ हो गया,

क्या वो वो साधारण सा बिच्छु था,

नहीं

बिच्छु का जहर इसकी काया सहन नहीं कर पाती

आखिर...

अभी बीच में दरवाजे पर दस्तक होती है

ये दोजू था,

दस्तक सुनते ही निर्मला बाहर की तरफ देखती है, “क्या हुआ वैद्यजी, वो अभी तक पहुचे नहीं क्या ?” निर्मला थोडा असमंजस में बोलती है

“वो तो कब का पहुच गया” अन्दर आते ही दोजू बोलता है “अभी मेरे झोपड़े पर ही बैठा है”

“इतना जल्दी कैसे आ गया दोजू” दोजू के अन्दर आते ही चेत्री बोल पड़ती है

“मेरे पास तुम्हारे और डामरी के लिए एक निमंत्रण है”

“निमंत्रण”

“कैसा निमंत्रण”

“हमारे साथ यात्रा पर चलने का”

“तुम्हारे साथ यात्रा पर, लेकिन हमें क्या मिलेगा”

सौदा !!!

अब सौदा करने की बारी चेत्री की थी

“क्या चाहिए तुम्हे ?” दोजू बोल पड़ता है

“ज्ञान चाहिए है” चेत्री बोलती है “जो तुम्हारे पास है वो सब कुछ”

“मंजूर है” बिना कुछ सोचे समझे ही दोजू ने हा कह दिया जैसे की उसके लिए ये यात्रा ही सब कुछ है

“तो ठीक है” चेत्री भी हतप्रभ थी की दोजू इतनी आसानी से मान लेगा

“चलो चलते है” इतना कहते ही दोजू चल पड़ता है, और पीछे-पीछे चेत्री और डामरी बिह चल पड़ते है

इसी के साथ दोजू, माणिकलाल, सप्तोश, रमन, चेत्री और डामरी की यात्रा
आरम्भ होती है, जो ‘कदर्पी’ से उन ‘उत्तरी’ पहाड़ो की तरफ थी जिसका उद्देश्य सिर्फ दोजू को ही पता था,

क्या है वो उद्देश्य जिसके लिए सभी ने कुछ-न-कुछ दाव पर लगाया है

या उस वचन के लिए,

आखिर क्या है उस वचन में,

ये सब बताएगी इन सब की बारह दिनों की यात्रा,


इसी यात्रा का आरम्भ इस अध्याय की समाप्ति पर होता है

Yu to update chhota tha manoj bhai kintu koi baat nahi. Kahani ki roop rekha taiyaar karna aur apne paathko ke liye saral banane ka kaarya saraahneeya raha,,,, :claps:

Ab dekhna ye hai ki 12 dino ki is yaatra me kahani me kya kya hota hai. Abhi tak to kahani ki ek tarah se bhoomika hi ban rahi thi. Is liye ye baat suspense me hi rahi ki aakhir in kirdaro ke bich chal kya raha tha aur kis vajah se chal raha tha. Khair ab asal kahani shuru hogi to yakeenan pata chalega ki ye sab kya tha aur kis vajah se tha,,,, :dazed:
 
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अपडेट कहाँ है कब तक आएगा।
 
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