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Fantasy वो कौन था

आपको ये कहानी कैसी लग रही है

  • बेकार है

    Votes: 2 5.3%
  • कुछ कह नही सकते

    Votes: 4 10.5%
  • अच्छी है

    Votes: 8 21.1%
  • बहुत अच्छी है

    Votes: 24 63.2%

  • Total voters
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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अलौकिक
आप की राइटिंग अलौकिक हैं मनोज भाई,
इस स्टोरी को पढ़ने के लिए एक और अलौकिक राइटर को इनवाइट करना चाहूंगा ,
nain11ster
Bhai ye story jarur padhiyega , is forum ka sabse behtreen writer(in term of writing skills) main aapko manta tha ,lekin manoj bhai to ek kadam aage nikal gaye hai,pls read this story aur mera wada hai nirash nahi hoge..
Bilkul sahi kaha aapne dr sahab,,,,,:approve:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय ३
खंड ३
श्राप या वरदान

रात्रि का तीसरा प्रहर बीत चूका था,

यहाँ से कही दूर,

किसी दुसरे देश में,


अमान, राजमहल के मखमली बिस्तरों पर सो रहा था,

तभी अचानक,

जोर से खिड़की खुलने की आवाज आयी,

आख खुली अमान की,

उठा,

देखा सामने,

उसके सामने खड़ा था एक गिद्ध जैसा दिखने वाला व्यक्ति,

मध्यम कद,

लम्बी-सी नाक,

जैसे किसी गिद्ध की चोच हो,

बहुत छोटे-छोटे कान और

और पुरे शरीर बाल ही बाल

जैसे उसको कपडे पहहने की आवश्यकता ही नहीं हो,

हल्की सी दुर्गन्ध लिए वो बोल पड़ता है “ मालिक . . .”

“वो .. वो ...” डरते हुए

“बोलते रहो नामिक, में सुन रहा हु”

“और थोडा जल्दी” इस बार थोडा क्रोध में बोल पड़ता है

“मालिक, वो बसोठा...”

बसोठा का नाम सुनते ही अमान थोडा सतर्क हो गया

“क्या, बसोठा का सन्देश है” उत्तेजित होकर

“क्या कहा उसने”

“मालिक, वो बसोठा, रि..रि...रिक्त हो गया”

“क्या” चौकते हुए

“वो रिक्त हो गया”

“पर कैसे”

“इतनी तो हमारे पास
जानकारी नहीं है, मेरे मालिक”

“अब वो हमारे कुछ काम का नहीं है”

“ख़त्म कर दो, उसे”

“माफ़ करना मालिक, लेकिन..”

“अब क्या हुआ” अमान बिस्तर पर बैठते हुए, इस बार वो क्रोधित नहीं था

“लेकिन उसका अब तक पता नहीं लगा है की वो अभी कहा है”

“तो यहाँ क्या कर रहे हो अभी, जाओ और ढूंड कर ख़त्म कर दो उसे”

“जी मालिक”

वापस एक बार खिडकियों के टकराने की आवाज आती है, अब कमरे में अमान के अलावा कोई नहीं था, अमान बिस्तर पर बैठे कुछ देर तक सोचता है फिर कमरे से बहार निकाल जाता है

.

.

.

.

भोर लगभग हो ही चुकी थी, सूर्य की पहली किरण धरा से मिलने को बेताब थी, बादल भी इस बेताबी को बढाकर सूर्यदेव से वैर नहीं लेना चाहते थे, वो भी धीरे-धीरे छट रहे थे

नदी किनारे,

सप्तोश,

धीरे-धीरे उसको होश आ रहा था, लेकिन सर उसका बहुत भरी था, रात्रि की बात का स्मरण आते ही वो झट से उठ बैठता है,

सामने देखता है,

कोई आदमी उसके गुरु को खीच कर एक पेड़ के पास ले जा रहा था, इतना देखते ही वो उस तरफ दौड़ पड़ता है

ये दोजू था, जो बसोठा को खीच का एक पेड़ के सहारे लिटा देता है, दोजू भी थकते हुये वही बैठ जाता है ‘बसोठा के भारी शरीर को खीचना इतना आसन भी नहीं था, मेहनत लगा दी थी पूरी दोजू की’

सप्तोश को उसकी तरफ आते ही दोजू उठ जाता है,

“उठ गए तुम” उठते हुए दोजू बोलता है

“हा”

“लेकिन”

“गुरूजी को क्या हुआ है”

“कुछ नहीं, बस अपने कर्मो की सजा काट रहा है, जो इतने वर्षो से अटकी पड़ी थी” कहते हुए दोजू अपने थैले में से एक चमड़े की थैली निकलता है और सप्तोश को पीने को देता है
“ले, पी ले इसे, सारा सरदर्द और शरीर का ताप उतर जायेगा”

सप्तोश, दोजू के हाथ से वो पेय लेकर पीने लगता है

“मै नहीं चाहता की कोई बीमार और थका हारा व्यक्ति मेरे साथ यात्रा पर चले” दोजू ऐसे ही मजाक में बोल पड़ता है

“में कही नहीं चलने वाला, मुझे अब इनकी देखभाल करनी है” सप्तोश, अपने गुरु की और देखते हुए बोलता है

“तुम अब इसकी चिंता करना छोड़ दो, अब तेरा गुरु उस मंदिर के रक्षक या यु कहो की उस मंदिर के
प्रधान पुजारी की गुलामी में है”

सुनते ही सप्तोश चौक पड़ता है “क्या मतलब है आपका”

“यही की अब बसोठा लकवा ग्रस्त है, और इसको मौत तब तक नहीं आ सकती जब तक इसके कर्म ख़त्म नहीं हो जाते, और दुनिया की कोई भी ओषधी इसको ठीक नहीं कर सकती” बसोठा की तरफ देखते हुए दोजू बोलता है

“इतनी कठोर सजा देने का क्या तात्पर्य है”

“सजा !! , मै तो इसको वरदान कहूँगा”

वरदान !!!”

“हा”

“ये वरदान, कैसे हो सकता है ?” सप्तोश दोजू की बातो को अभी तक समझने में सक्षम नहीं था

“क्योकि, यदि इसने अपने कर्मो के फल के बिना देह त्याग दिया तो, ना जाने कितने ही और जन्म लेने पड़ेंगे इस अनवरत जीवनधारा से छुटने में, इस तरह का वरदान हर किसी को नहीं मिलता, वाकई में कितना सहृदय है वो रक्षक” इतना कहते ही दोजू मंदिर की दिशा में आदर सहित झुक जाता है

अब सप्तोश के पास दोजू के साथ चलने के अलावा और कोई चारा नहीं था,

अब उसने अपने मन को तैयार कर लिया था दोजू के साथ चलने में,

और गटक लिया वो पेय पदार्थ जो दोजू ने दिया था,

पल भर के बाद

शांति,

सबकुछ गायब


सरदर्द,

बदनदर्द,

तपिश

सबकुछ,

जितनी रहस्यपूर्ण दोजू की बाते थी,

उतनी ही चमत्कारी उसकी औषधीय भी थी

दे देख दोजू मुस्कुरा पड़ता है,

और दोनों चल पड़ते है उसके झोपड़े की ओर,

...

उधर दोजू के झोपड़े पर, दोजू की प्रतीक्षा कर रहे थे, माणिकलाल और रमन !

हा,

ये रमन था,

निर्मला, माणिकलाल को दोजू के साथ अकेले नहीं जाने देना चाहती थी, आखिरकार अपनी पत्नी से हारकर माणिकलाल ने रमन को अपने साथ चलने का प्रस्ताव रखा, जो रमन ने सहर्ष मान लिया, ये थी सच्ची दोस्ती !

दोजू के अपनी तरफ आते हुए माणिकलाल और रमन दोनों खड़े हो जाते है,

“हम चलने को तैयार है” दोजू के आते ही माणिकलाल बोल पड़ता है,

“तुम भी चल रहो साथ में” दोजू ने रमन की तरफ इशारा करते हुए कहा “ अच्छा है, तीन से भले चार

“तुम सब रुको, में कुछ जरुरी सामान लेकर आता हु” कहते हुए दोजू झोपड़े में घुस जाता है

थोड़ी देर बाद दोजू झोपड़े से बाहर आकर रमन से बोलता है “तुम्हे तलवार चलाना तो आता है ना?”

रमन झट से ‘हा’ बोल पड़ता है, रमन ये सुनकर थोडा उत्साह से भर जाता है, उसके बाप-दादा सब सेना में जो थे,

दोजू ने अपने झोले में से एक तलवार निकाल कर रमन को दे देता है,

जैसे ही रमन तलवार हाथ में लेता है, वो चौक पड़ता है

“ये तो लकड़ी की है” रमन दोजू से बोल पड़ता है

“हा”

“तेरे लिए ये ही काफी है” इतना सुनते ही रमन थोडा चिढ जाता है, और ये देखकर सप्तोश हल्का सा मुस्कुरा देता है

“हमारी यात्रा उत्तर दिशा की तरफ पहाड़ो की ओर चलेगी”

“चलो तो अब चलते है” इतना कहते ही दोजू चलने लगता है

सूर्य अब उदय हो चूका था, और वे चारो लोग लगभग गाव की सीमा पार कर ही चुके थे,

तभी,

वो गाव का पागल बुड्ढा,

उनकी तरफ पत्थर फेकते हुए,

और
गालिया बोलते हुए उनके सामने आ पड़ता है

“मादर**”

“सालो”

“तुम लोग अपने आपको समझते क्या हो”

“हरा* के जनों”

“रं* की औलाद”

.

.


.
Bahut hi khubsurat update the manoj bhai aur usse bhi behtareen thi aapki lekhni,,,, :claps:

Bure kaam ka bura hi anjaam hota hai. Baba basota ne apne guru ki rooh ko kaid kar rakha tha aur uski hi shaktiyo ka najayaz upyog kar raha tha. Khair jis baat ka paagalpan aur ghamand tha use wo chaknachoor ho gaya aur aakhir uski ye durgati ho gayi,,,,, :dazed:

Ye paagal buddha waakai me kamaal ka hai. Isme to alag hi baat hai. Khair idhar saptos apne guru ki haalat dekh kar hairan pareshan aur dukhi hai. Udhar doju saptos aur maaniklal ko sath le kar chal pada hai. Dekhte hain aage kya hai,,,,, :waiting:
 

manojmn37

Member
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Bahut hi khubsurat update the manoj bhai aur usse bhi behtareen thi aapki lekhni,,,, :claps:

:thankyou::thankyou::thankyou::thankyou::thankyou::thankyou::thankyou::thankyou::thankyou::thankyou:

Ye paagal buddha waakai me kamaal ka hai. Isme to alag hi baat hai. Khair idhar saptos apne guru ki haalat dekh kar hairan pareshan aur dukhi hai. Udhar doju saptos aur maaniklal ko sath le kar chal pada hai. Dekhte hain aage kya hai,,,,, :waiting:

क्या ?? :ecs:
दोजू चल पड़ा क्या ?? :horseride:


चलो देखते है अगले अपडेट में :hinthint2:
 

manojmn37

Member
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अध्याय ३

खंड ४

शक्ति



तभी,

वो गाव का पागल बुड्ढा,

उनकी तरफ पत्थर फेकते हुए,

और गालिया बोलते हुए उनके सामने आ पड़ता है

“मादर**”

“सालो”

“तुम लोग अपने आपको समझते क्या हो”

“हरा* के जनों”

“रं* की औलाद”

“बिना
शक्ति के जा रहे हो”

“मान लो मेरी बात”

“नहीं तो गां* मर*ते अओंगे मेरे पास”

ऐसे ही वो पागल गलिया देते हुए और पत्थर फेकते हुए उनके सामने आ रहा था

अचानक कुछ सुझा दोजू को,

उलटे कदम भाग लिया वापस गाव की ओर,

और उसके पीछे माणिकलाल, रमन और सप्तोश भी,

दोजू भागते हुए वापस अपने झोपड़े पर आ जाता है, और झोपड़े के बाहर ही बैठ जाता है, हालाँकि दोजू दिखने में बुड्ढा जरुर था लेकिन उसकी फुर्ती देखने लायक थी, सप्तोश माणिकलाल और रमन ‘अब’ पहुचे थे उसके पास !

“आखिर परेशानी क्या है उस बुड्ढे को, पीछे ही पड़ गया” रमन ने हाफते हुए कहा “अब जाकर उसने पीछा छोड़ा ”

कहते हुए रमन और वे दोनों भी वही नीचे मिट्टी में बैठ जाते है,

वैसे तो दोजू उस पागल बुड्ढे के बारे में जानता था,

लेकीन सच तो यही था की वो भी उसके बारे में पूरी तरह से वाकिफ नहीं था, इसीलिए जहा तक हो वो उससे बच कर रहता था !

दोजू सोंच रहा था की आखिर क्या गलती हो गयी, जो उसको हमारे पीछे आना पड़ा,

क्योकि उसे पता है की बिना गलती के वो इतनी दूर तक नहीं आएगा

“वो तो मेरी भी समझ से परे है” सप्तोश बैठे-बैठे ही बोलता है “बड़ा ही तेज भागता है वो, पता नहीं कौनसे
वचन की बात कर रहा था”

वचन !!

अचानक दोजू के मस्तिस्क में ‘
वचन’ का नाम सुनते ही कुछ याद आया

‘हा’

‘वचन’

‘सही कहा उसने’

‘और’

‘और हा’

शक्ति’

शक्ति भी कहा था उसने’

‘आखिर मै भूल कैसे गया’

दोजू अपनी नादानी पर हल्का सा मुस्कुराया, दोजू उठा और चल पड़ा मंदिर की ओर

.

.

.

.


उधर राजा धूम्रकेतु अपनी राजधानी पहुच चूका था,

लेकिन राजधानी पहुचते ही उसे एक धक्का लगा,

एक बुरी खबर ने उसका स्वागत किया,

और ये खबर ये थी की उसका प्रधान सेनापति मार्केश गायब था,

मतलब की
अगवा कर लिया गया था

मार्केश उसका प्रधान सेनापति ही नहीं अपितु उसका बचपन का मित्र और सबसे करीबी विश्वासु भी था, उसके अगवा होने की खबर से अब उसको दो बातो का भय सता रहा था,

पहली तो ये की अब वो जिन्दा भी है या नहीं,

और

दूसरी ये की राजा की सारी रणनीति और गुप्त ठिकानो से वो पूरी तरह अवगत था कही वो दुश्मन के हाथो ना लग जाये

दूसरी बात का भय राजा को इतना नहीं था जितना की पहली बात के,

राजा जानता था की मार्केश जान दे देगा लेकिन
गुप्त सूत्र किसी के हाथ नहीं लगने देगा

माहौल की गंभीरता को देखते हुए राजा धूम्रकेतु जल्दी ही राजसभा की बैठक के लिए सबको जल्द-से-जल्द उपस्थित होने का आदेश देता है

.

.

.

.

दोजू मंदिर में जिसके लिए आया था उसको हर जगह देख चूका था, लेकिन वो कही नहीं दिख रही थी

दरअसल, दोजू आया था चेत्री और डामरी के लिए,

आखिरकार दोजू उस पागल बुड्ढे को अब तक नहीं समझ पा रहा था, जितना वो उसको समझता और उससे दूर होता जाता,

‘बिना
शक्ति के जा रहे हो’

‘हा’

यही कहा था उसने,

कितने प्रतीकात्मक ढंग से कहा था उसने,

‘स्त्री शक्ति का स्वरुप है’


ज्ञानियों ने स्त्री को मान दिया,

सम्मान दिया,

क्यों ?

किसलिए ?

क्या वो कमझोर है इसीलिए,

या फिर वो अपनी रक्षा करने में असमर्थ है,

नहीं,

‘स्त्री तो शक्ति का स्वरुप है’

‘कौनसी शक्ति ?’

‘सृजन की शक्ति’

‘हा’

‘स्त्री तो सृजनात्म्कता का प्रतिरूप है’

‘सृजन के बिना कुछ भी संभव नहीं”

‘पुरुष नहीं’

‘प्रकति ने पुरुष को बल दिया’

‘किसलिए’

‘स्त्री की रक्षा के लिए’

‘उसके शोषण के लिए नहीं’

“सुनिए वैद्यजी, किसे ढूंड रहे हो ?” कबसे दोजू को इधर-उधर मंदिर में किसी की तलाश करते हुए पुजारी देखता है, आखिरकार वो पूछ ही पड़ता है “या कुछ खो गया है”

“वो राजवैद्यीजी और उनकी सहायिका हो”

“अरे, वो दोनों तो कल सुबह से वापस ही नहीं आयी है”

ये सुनते ही.....


 

ashish_1982_in

Well-Known Member
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अध्याय ३

खंड ४


शक्ति



तभी,

वो गाव का पागल बुड्ढा,

उनकी तरफ पत्थर फेकते हुए,

और गालिया बोलते हुए उनके सामने आ पड़ता है

“मादर**”

“सालो”

“तुम लोग अपने आपको समझते क्या हो”

“हरा* के जनों”

“रं* की औलाद”

“बिना
शक्ति के जा रहे हो”

“मान लो मेरी बात”

“नहीं तो गां* मर*ते अओंगे मेरे पास”

ऐसे ही वो पागल गलिया देते हुए और पत्थर फेकते हुए उनके सामने आ रहा था

अचानक कुछ सुझा दोजू को,

उलटे कदम भाग लिया वापस गाव की ओर,

और उसके पीछे माणिकलाल, रमन और सप्तोश भी,

दोजू भागते हुए वापस अपने झोपड़े पर आ जाता है, और झोपड़े के बाहर ही बैठ जाता है, हालाँकि दोजू दिखने में बुड्ढा जरुर था लेकिन उसकी फुर्ती देखने लायक थी, सप्तोश माणिकलाल और रमन ‘अब’ पहुचे थे उसके पास !

“आखिर परेशानी क्या है उस बुड्ढे को, पीछे ही पड़ गया” रमन ने हाफते हुए कहा “अब जाकर उसने पीछा छोड़ा ”

कहते हुए रमन और वे दोनों भी वही नीचे मिट्टी में बैठ जाते है,

वैसे तो दोजू उस पागल बुड्ढे के बारे में जानता था,

लेकीन सच तो यही था की वो भी उसके बारे में पूरी तरह से वाकिफ नहीं था, इसीलिए जहा तक हो वो उससे बच कर रहता था !

दोजू सोंच रहा था की आखिर क्या गलती हो गयी, जो उसको हमारे पीछे आना पड़ा,

क्योकि उसे पता है की बिना गलती के वो इतनी दूर तक नहीं आएगा

“वो तो मेरी भी समझ से परे है” सप्तोश बैठे-बैठे ही बोलता है “बड़ा ही तेज भागता है वो, पता नहीं कौनसे
वचन की बात कर रहा था”

वचन !!

अचानक दोजू के मस्तिस्क में ‘वचन’ का नाम सुनते ही कुछ याद आया

‘हा’


‘वचन’

‘सही कहा उसने’

‘और’

‘और हा’

शक्ति’

शक्ति भी कहा था उसने’

‘आखिर मै भूल कैसे गया’

दोजू अपनी नादानी पर हल्का सा मुस्कुराया, दोजू उठा और चल पड़ा मंदिर की ओर

.

.

.

.


उधर राजा धूम्रकेतु अपनी राजधानी पहुच चूका था,

लेकिन राजधानी पहुचते ही उसे एक धक्का लगा,

एक बुरी खबर ने उसका स्वागत किया,

और ये खबर ये थी की उसका प्रधान सेनापति मार्केश गायब था,

मतलब की
अगवा कर लिया गया था

मार्केश उसका प्रधान सेनापति ही नहीं अपितु उसका बचपन का मित्र और सबसे करीबी विश्वासु भी था, उसके अगवा होने की खबर से अब उसको दो बातो का भय सता रहा था,

पहली तो ये की अब वो जिन्दा भी है या नहीं,

और

दूसरी ये की राजा की सारी रणनीति और गुप्त ठिकानो से वो पूरी तरह अवगत था कही वो दुश्मन के हाथो ना लग जाये

दूसरी बात का भय राजा को इतना नहीं था जितना की पहली बात के,

राजा जानता था की मार्केश जान दे देगा लेकिन
गुप्त सूत्र किसी के हाथ नहीं लगने देगा

माहौल की गंभीरता को देखते हुए राजा धूम्रकेतु जल्दी ही राजसभा की बैठक के लिए सबको जल्द-से-जल्द उपस्थित होने का आदेश देता है

.

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.

दोजू मंदिर में जिसके लिए आया था उसको हर जगह देख चूका था, लेकिन वो कही नहीं दिख रही थी

दरअसल, दोजू आया था चेत्री और डामरी के लिए,

आखिरकार दोजू उस पागल बुड्ढे को अब तक नहीं समझ पा रहा था, जितना वो उसको समझता और उससे दूर होता जाता,

‘बिना
शक्ति के जा रहे हो’

‘हा’

यही कहा था उसने,

कितने प्रतीकात्मक ढंग से कहा था उसने,


‘स्त्री शक्ति का स्वरुप है’


ज्ञानियों ने स्त्री को मान दिया,

सम्मान दिया,

क्यों ?

किसलिए ?

क्या वो कमझोर है इसीलिए,

या फिर वो अपनी रक्षा करने में असमर्थ है,

नहीं,

‘स्त्री तो शक्ति का स्वरुप है’

‘कौनसी शक्ति ?’

‘सृजन की शक्ति’

‘हा’

‘स्त्री तो सृजनात्म्कता का प्रतिरूप है’

‘सृजन के बिना कुछ भी संभव नहीं”

‘पुरुष नहीं’

‘प्रकति ने पुरुष को बल दिया’

‘किसलिए’

‘स्त्री की रक्षा के लिए’


‘उसके शोषण के लिए नहीं’

“सुनिए वैद्यजी, किसे ढूंड रहे हो ?” कबसे दोजू को इधर-उधर मंदिर में किसी की तलाश करते हुए पुजारी देखता है, आखिरकार वो पूछ ही पड़ता है “या कुछ खो गया है”

“वो राजवैद्यीजी और उनकी सहायिका हो”

“अरे, वो दोनों तो कल सुबह से वापस ही नहीं आयी है”

ये सुनते ही.....
Nice but short update... Jab padne ka maza aane lagta hai to update hee khatam Ho jata hai... Phir 2-3 din ke baad update aata hai
 
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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
115,976
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अध्याय ३

खंड ४


शक्ति



तभी,

वो गाव का पागल बुड्ढा,

उनकी तरफ पत्थर फेकते हुए,

और गालिया बोलते हुए उनके सामने आ पड़ता है

“मादर**”

“सालो”

“तुम लोग अपने आपको समझते क्या हो”

“हरा* के जनों”

“रं* की औलाद”

“बिना
शक्ति के जा रहे हो”

“मान लो मेरी बात”

“नहीं तो गां* मर*ते अओंगे मेरे पास”

ऐसे ही वो पागल गलिया देते हुए और पत्थर फेकते हुए उनके सामने आ रहा था

अचानक कुछ सुझा दोजू को,

उलटे कदम भाग लिया वापस गाव की ओर,

और उसके पीछे माणिकलाल, रमन और सप्तोश भी,

दोजू भागते हुए वापस अपने झोपड़े पर आ जाता है, और झोपड़े के बाहर ही बैठ जाता है, हालाँकि दोजू दिखने में बुड्ढा जरुर था लेकिन उसकी फुर्ती देखने लायक थी, सप्तोश माणिकलाल और रमन ‘अब’ पहुचे थे उसके पास !

“आखिर परेशानी क्या है उस बुड्ढे को, पीछे ही पड़ गया” रमन ने हाफते हुए कहा “अब जाकर उसने पीछा छोड़ा ”

कहते हुए रमन और वे दोनों भी वही नीचे मिट्टी में बैठ जाते है,

वैसे तो दोजू उस पागल बुड्ढे के बारे में जानता था,

लेकीन सच तो यही था की वो भी उसके बारे में पूरी तरह से वाकिफ नहीं था, इसीलिए जहा तक हो वो उससे बच कर रहता था !

दोजू सोंच रहा था की आखिर क्या गलती हो गयी, जो उसको हमारे पीछे आना पड़ा,

क्योकि उसे पता है की बिना गलती के वो इतनी दूर तक नहीं आएगा

“वो तो मेरी भी समझ से परे है” सप्तोश बैठे-बैठे ही बोलता है “बड़ा ही तेज भागता है वो, पता नहीं कौनसे
वचन की बात कर रहा था”

वचन !!

अचानक दोजू के मस्तिस्क में ‘वचन’ का नाम सुनते ही कुछ याद आया

‘हा’


‘वचन’

‘सही कहा उसने’

‘और’

‘और हा’

शक्ति’

शक्ति भी कहा था उसने’

‘आखिर मै भूल कैसे गया’

दोजू अपनी नादानी पर हल्का सा मुस्कुराया, दोजू उठा और चल पड़ा मंदिर की ओर

.

.

.

.


उधर राजा धूम्रकेतु अपनी राजधानी पहुच चूका था,

लेकिन राजधानी पहुचते ही उसे एक धक्का लगा,

एक बुरी खबर ने उसका स्वागत किया,

और ये खबर ये थी की उसका प्रधान सेनापति मार्केश गायब था,

मतलब की
अगवा कर लिया गया था

मार्केश उसका प्रधान सेनापति ही नहीं अपितु उसका बचपन का मित्र और सबसे करीबी विश्वासु भी था, उसके अगवा होने की खबर से अब उसको दो बातो का भय सता रहा था,

पहली तो ये की अब वो जिन्दा भी है या नहीं,

और

दूसरी ये की राजा की सारी रणनीति और गुप्त ठिकानो से वो पूरी तरह अवगत था कही वो दुश्मन के हाथो ना लग जाये

दूसरी बात का भय राजा को इतना नहीं था जितना की पहली बात के,

राजा जानता था की मार्केश जान दे देगा लेकिन
गुप्त सूत्र किसी के हाथ नहीं लगने देगा

माहौल की गंभीरता को देखते हुए राजा धूम्रकेतु जल्दी ही राजसभा की बैठक के लिए सबको जल्द-से-जल्द उपस्थित होने का आदेश देता है

.

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दोजू मंदिर में जिसके लिए आया था उसको हर जगह देख चूका था, लेकिन वो कही नहीं दिख रही थी

दरअसल, दोजू आया था चेत्री और डामरी के लिए,

आखिरकार दोजू उस पागल बुड्ढे को अब तक नहीं समझ पा रहा था, जितना वो उसको समझता और उससे दूर होता जाता,

‘बिना
शक्ति के जा रहे हो’

‘हा’

यही कहा था उसने,

कितने प्रतीकात्मक ढंग से कहा था उसने,


‘स्त्री शक्ति का स्वरुप है’


ज्ञानियों ने स्त्री को मान दिया,

सम्मान दिया,

क्यों ?

किसलिए ?

क्या वो कमझोर है इसीलिए,

या फिर वो अपनी रक्षा करने में असमर्थ है,

नहीं,

‘स्त्री तो शक्ति का स्वरुप है’

‘कौनसी शक्ति ?’

‘सृजन की शक्ति’

‘हा’

‘स्त्री तो सृजनात्म्कता का प्रतिरूप है’

‘सृजन के बिना कुछ भी संभव नहीं”

‘पुरुष नहीं’

‘प्रकति ने पुरुष को बल दिया’

‘किसलिए’

‘स्त्री की रक्षा के लिए’


‘उसके शोषण के लिए नहीं’

“सुनिए वैद्यजी, किसे ढूंड रहे हो ?” कबसे दोजू को इधर-उधर मंदिर में किसी की तलाश करते हुए पुजारी देखता है, आखिरकार वो पूछ ही पड़ता है “या कुछ खो गया है”

“वो राजवैद्यीजी और उनकी सहायिका हो”

“अरे, वो दोनों तो कल सुबह से वापस ही नहीं आयी है”

ये सुनते ही.....
Waaah bahut khoob manoj bhai. Shuddh hindi ka prayog behad saraahneeya hai,,,,, :claps:

Apne aapko teesmaar khaan samajsamajhte huye nikle the doju, saptosh aur madiklal magar pagal buddhe se khadeda to seedha jhopdi me hi ruke. Doju ko samajh me to a chuka hai ki wo paagal koi mamuli cheez nahi hai, agar hota to uske bare me wo itna anbhigya na hota. Us paagal ki gaaliyo ke bich jo kuch doju ne suna tha usme use koi bhed nazar aaya hai use jisko samajh kar wo ab chetri aur daamri ko khoj raha hai,,,,, :hmm:

Manoj bhai kahani to bahut hi behtareen chal rahi hai kintu is baat ka suspense puri tarah bana ke rakha hua hai aapne ki ye sab chal kya raha hai aur kis uddesya se chal raha hai.?? Khair dekhte hain aage kya hota hai,,,, :dazed:
 

manojmn37

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Waaah bahut khoob manoj bhai. Shuddh hindi ka prayog behad saraahneeya hai,,,,, :claps:

Apne aapko teesmaar khaan samajsamajhte huye nikle the doju, saptosh aur madiklal magar pagal buddhe se khadeda to seedha jhopdi me hi ruke. Doju ko samajh me to a chuka hai ki wo paagal koi mamuli cheez nahi hai, agar hota to uske bare me wo itna anbhigya na hota. Us paagal ki gaaliyo ke bich jo kuch doju ne suna tha usme use koi bhed nazar aaya hai use jisko samajh kar wo ab chetri aur daamri ko khoj raha hai,,,,, :hmm:

Manoj bhai kahani to bahut hi behtareen chal rahi hai kintu is baat ka suspense puri tarah bana ke rakha hua hai aapne ki ye sab chal kya raha hai aur kis uddesya se chal raha hai.?? Khair dekhte hain aage kya hota hai,,,, :dazed:


बहुत -बहुत धन्यवाद आपका :thankyou:
आप जैसे 'readers' की वहज से ही हम जैसो को लिखने का प्रोत्साहन मिलता है :love3:
 
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