अध्याय - 44
जब मुझ को इतमीनान हो गया के सुनील घर से बाहर जा चुका है। तो मैने सुख का साँस लिया और अपने घर के काम काज में दुबारा बिजी हो गई।
किचिन वाले वाकये के बाद मैने अपने भाई से सगाई और शादी तक दूरी बना कर घर में रहने का इरादा कर लिया।
इस तरह तीन चार दिन गुजर गये और इन तीन चार दिनों के दौरान घर के तीनो सदस्यों के लंड और चूत की गर्मी कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही थी।
शनिवार के दिन यानी मेरी सगाई के एक दिन पहले सुनील तड़के सुबह सवेरे नहाने के लिए बाथरूम गया। तो नहाने के दौरान अपनी मम्मी और बहन के मोटे मोटे मम्मो और चुतड़ों को याद कर के सुनील का लंड अकड कर खड़ा होने लगा।
इधर दूसरी तरफ मम्मी भी तड़के सुबह सब से पहले उठ कर किचन में आई। और अपने बच्चों के लिए नाश्ता बनाने लगी।
"क्यों न में सुनील को उस के कमरे में ही चाय दे आऊ" गैस पर पड़ी चाय (टी) ज्यों ही बन कर तैयार हुई तो मम्मी ने सोचा। इस के साथ ही मम्मी ने चाय को एक कप में डाला और फिर कप अपने हाथ में थामे अपने बेटे सुनील के कमरे की तरफ चल पड़ी।
ज्यों ही मम्मी ने अपने बेटे सुनील के कमरे के दरवाज़े को हाथ लगाया। तो सुनील के कमरे का दरवाजा अंदर से लॉक ना होने की वजह से खुलता चला गया।
"लगता है सुनील रात को अपने दरवाज़े की कुण्डी लगा कर नही सोया" अपने बेटे के दरवाजे को यूँ खुला पा कर मम्मी ने सोचा।
मम्मी दरवाजा खोल कर सुनील के कमरे में दाखिल हुई। तो उसे सुनील तो अपने बिस्तर पर नज़र नही आया। मगर मम्मी को अपने कान में बाथरूम से पानी गिरने की आवाज़ सुनाई दी।
"लगता है कि सुनील बाथरूम में नहा रहा है" बाथरूम से पानी गिरने की आवाज़ सुन कर मम्मी समझ गई।
मम्मी ने चाय का कप सुनील के बिस्तर की साइड टेबल पर रखा और मूड कर वापिस किचन में जाने लगी।
" सभी अभी सो रहे है, तो क्यों ना आज सुबह सुबह में अपने बेटे के लंड का दीदार कर लूँ" मम्मी ज्यों ही किचन में जाने के लिए सुनील के बाथरूम के दरवाज़े के सामने से गुज़री। तो उन को ख्याल आया।अपने बेटे के मोटे लंड का ख्याल आते ही मम्मी की मोटी फुद्दि गर्म होने लगी। और उस के साथ ही मम्मी ने एक दम झुक कर बाथरूम के की होल पर अपनी आँख लगा कर बाथरूम में झाँका।
मम्मी की आँख ने ज्यों ही बाथरूम के अंदर का मंज़र देखा। तो बाथरूम का का नज़ारा देख कर मम्मी की साँसें गले में अटकने लगीं। मम्मी की सांस गले में अटकने की वजह से मम्मी की भारी छातियाँ भी बिखरी सांसो के साथ ताल से ताल मिलाते हुए उपर नीचे होने लगी।
मम्मी ने देखा कि बाथरूम में उस का बेटा उस वक्त अपने लंड पर साबुन लगा कर नहाते वक्त साथ ही साथ अपने लंड से भी खेल रहा था। ज्यों ही मम्मी ने अपने बेटे को नहाने के दौरान यूँ अपने मोटे और बड़े लंड से खेलते देखा। तो अपनी उपर नीचे होने वाली सांसो के साथ मम्मी भी दरवाज़े के बाहर खड़े हो कर अपनी शलवार के उपर से ही अपनी फुद्दि पर अपना हाथ फेरने लगी।
"काश मेरा बेटा मुझे भी एक दिन अपने लंड से यूँ खेलने का मोका दे" अपने बेटे के लंड को हसरत भरी निगाहों से देखते हुए मम्मी का दिल कर रहा था। कि वो अपना हाथ बढ़ा कर अपने बेटे के तगड़े लंड को अपने काबू में कर ले।
मगर मम्मी जानती थी कि ये उस की एक ऐसी ख्वाहिश है। जो शायद कभी पूरी ना हो सकेगी।
इसीलिए अपनी तमन्नाओ को अपने दिल में ही मार कर मम्मी खामोशी से अपने बेटे को अपना लंड रगड़ता देखती रही। और साथ साथ अपनी फुद्दि को भी अपने हाथ से छेड़ती रही।
उधर सुनील को आज काम के सिलसिले में शहर से बाहर जाना था। इसीलिए उस के पास सुबह सुबह अपने लंड की मूठ लगाने का भी टाइम नही था।
इसीलिए सुनील ने जल्दी से अपना शवर बंद किया। और अपने जिस्म को तोलिये से सॉफ करने लगा। अपने जिस्म को पोंछ कर के ज्यों ही सुनील ने अपने चारो ओर अपनी कमर पर टवल लपेटा। तो मम्मी समझ गई कि अब सुनील किसी भी वक्त बाथरूम से बाहर निकल सकता है।
इसीलिए मम्मी जल्दी से पलटी और कमरे के बाहर निकलने लगी। मगर इस जल्दी के दौरान मम्मी कमरे का दरवाजा खुला छोड़ गई। ज्यों ही मम्मी कमरे से बाहर आई। तो उसे अपने पीछे अपने बेटे के बाथ रूम का दरवाजा खुलने की आवाज़ सुनाई दी।
"कहीं सुनील ने मेरी चोरी पकड़ ना ली हो" मम्मी के ज़हन में ना जाने क्यों ये डर बैठ गया। और इसी डर के मारे उसे पता नही किया सूझा कि मम्मी कमरे के सामने बने हुए एक छोटे से कमरे नुमा स्टोर में जा घुसी।
स्टोर में जाते ही मम्मी की नज़र सामने बनी हुई कपड़ों की अलमारी पर पड़ी। इस अलमारी में कपड़े गुंजाइश से ज़्यादा होने की वजह से अलमारी का दरवाजा ठीक से बंद नही हुआ था। मम्मी को जल्दी में कुछ और ना सूझा तो वो कपड़े की अलमारी के खुले हुए दरवाज़े को ज़ोर से बंद करने लगी।
इधर बाथरूम से बाहर निकलते ही सुनील ने देखा कि उस के कमरे का दरवाजा खुला हुआ है।
"ये मेरे कमरे का दरवाजा किस ने खोल दिया है। "अपने कमरे के खुले दरवाज़े को देख कर सुनील ने सोचा।
इस के साथ ही सुनील की नज़र अपने बिस्तर के साइड टेबल पर पड़े हुए "चाय" के कप पर पड़ी।
"ओह्ह्ह्ह! अच्छा लगता है कि मम्मी या रेखा चाय का कप रखने के बाद दरवाजा खुला छोड़ गईं हैं" साइड टेबल पर रखे हुए कप को देखते ही सुनील ने दुबारा सोचा।
इस के साथ ही अपनी अलमारी की तरफ गया और अलमारी में से अपनी एक पॅंट निकाल कर पहन ली। अपनी पॅंट पहन कर टेबल पर पड़ा हुआ चाय का कप अपने हाथ में उठाया। तो उस की नज़र अपने कमरे के खुले दरवाज़े से सामने के कमरे में जा कर अपनी मम्मी पर पड़ी।
जो उस वक्त कपड़ों वाली अलमारी के सामने खड़ी हो कर उस अलमारी को बंद करने की कॉसिश कर रही थी। अलमारी को बंद करने के दोरान मम्मी का मुँह तो अलमारी की तरफ था। जब कि उस की पीठ अपने बेटे की तरफ थी।
स्टोर की अलमारी को बंद करने की गर्ज से मम्मी को चूँकि अलमारी के दरवाज़े पर अपना पूरा ज़ोर लगाना पड़ रहा था। इस दौरान मम्मी आगे को झुकी हुई थी, जिस वजह से मम्मी की मोटी और भारी गान्ड पीछे से उपर की तरफ उठ गई थी।
मुझे मम्मी की मदद करनी चाहिए, "लगता है मम्मी से शायद अलमारी बंद नही हो पा रही, इसी लिए वो अलमारी को बंद करने के लिए अपने जिस्म का पूरा ज़ोर लगा रही हैं"अपनी मम्मी को ज़ोर लगा कर अपने कपड़ों वाली अलमारी को बंद करते हुए देख कर सुनील को अंदाज़ा हुआ।
"मुझे जा कर अपनी मम्मी की मदद करने चाहिए" उस के दिल में ख्याल आया।
"रुक जा इधर और अपनी मम्मी की पीछे से उठी हुई चौड़ी और भारी गान्ड लुफ्त उठा यार।" दूसरे ही लम्हे सुनील के लंड ने उस के दिमाग़ में ख्याल डाला और अपने लंड की मान कर अपनी मम्मी के मोटे चुतड़ों को पीछे से देख कर मस्त होने लगा।
" साले सुनील, बेह्न्चोद, अपनी सग़ी बहन को तो तुम चोद नही सकते हो और अब अपनी ही सग़ी मम्मी को हवस भरी नज़रों से देख रहे हो, शरम आनी चाहिए तुम,अगर पापा को इस बात का पता चल गया तो वो क्या सोचेंगे ?" सुनील के दिल में इन ख्यालों ने जनम लिया। लेकिन चाहने के बावजूद सुनील के ज़हन से अपनी मम्मी के भरे हुए जिस्म का नशा नही उतर रहा था।
इसीलिए हर बात और सोच को नज़रअंदाज कर के अपनी मम्मी के मस्त मोटे जिस्म को देखने में मशगूल रहा। अपने कमरे में खड़े हो कर भी अपनी मम्मी के मस्त चूतड़ और उन चुतड़ों के दरमियाँ अपनी मम्मी की गान्ड की दरार सॉफ नज़र आ रही थी।
अपनी मम्मी की शलवार कमीज़ में कसी हुई गान्ड को यूँ सुबह सुबह देख कर सुनील का लंड एक बार फिर अपनी मम्मी के मोटे और भारी जिस्म के लिए उस की पॅंट में खड़ा होने लगा था।
(जैसे के आप सब जानते हैं कि क़ुदरत ने औरत में ये खासहियत रखी है, कि वो अपने जिस्म पर पड़ने वाली मर्द की निगाह का मतलब फॉरन समझ जाती है।)
इसीलिए दूसरी तरफ मम्मी बे शक अपने बेटे की तरफ पानी पीठ किए खड़ी थी।
मगर इस के बावजूद मम्मी को अपने बेटे की गरम नज़रें पीछे से अपनी गान्ड में चुबती हुई बिल्कुल सही तरीके से महसूस हो रही थी।
मम्मी बे शक सुनील की माँ थी। मगर माँ होने के साथ साथ मम्मी आख़िर कर एक औरत भी थी। और हर औरत की तरह मम्मी भी मर्दों को तड़पाने का खेल खेलने का फन अच्छी तरह आता था। अपनी जवानी और शादीशुदा जिंदगी में मम्मी के दिल में किसी मर्द को अपनी जवानी के जलवे दिखा कर लुभाने का ख्याल नही आया था।
मगर आज अपनी गान्ड और जिस्म पर अपने ही जवान बेटे की पड़ती हुई गरम निगाहों ने मम्मी के अंदर की चुड़क्कड़ औरत को बाहर कर दिया। और वो जान बूझ कर अपनी भारी गान्ड की पहाड़ियों को इस अंदाज़ में हिलाने लगी। जिसे देख देख कर उस के बेटे की अपनी मम्मी के जिस्म के लिए दीवानगी बढ़ती जा रही थी।
इधर जिस वक्त मम्मी अलमारी को बंद करने में मसरूफ़ थी। तो दूसरी तरफ उसी वक्त मै कमरे से निकल कर अपने भाई के कमरे की तरफ आ गई थी।
जब आहिस्ता आहिस्ता कदमों से चलती हुई अपने भाई के कमरे की खिड़की के करीब पहुँची। तो मेरी नज़र अपने भाई पर पड़ी। जो इस वक्त चाय का कप अपने हाथ में कपड़े हुए हर बात से बे खबर अपनी मम्मी के गरम जिस्म को अपनी प्यासी आँखों से सैंक कर गरम हो रहा था।
जिस वजह से नीचे से उस का मोटा बड़ा लंड उस की पॅंट में पूरी शिद्दत से अकड कर खड़ा हो चुका था।
मै कमरे के बाहर जिस जगह खड़ी थी। वहाँ से अपने भाई के कमरे और उसके सामने बने स्टोर को देख सकती थी। मगर स्टोर में मौजूद मम्मी को मेरी बरामदे में मौजूदगी का अहसास नही हो सकता था।
"ये सुबह सुबह चाय पीते वक्त भाई का लंड क्यों और किस के लिए इतना अकड कर खड़ा है" ज्यों ही कमरे के बाहर से मेरी नज़र अपने भाई के लंड पर पड़ी। तो अपने भाई का लंड यूँ खड़ा देख कर हैरत हुई।
सुनील को अपनी बहन के कमरे के बाहर मौजूदगी का अहसास ना हुआ। और वो यूँ ही खड़े खड़े अपनी मम्मी की भारी गान्ड की पहाड़ियों को आँखे फाड़ फाड़ कर देख रहा था।
"देखूं तो सही मेरे भाई का लंड, आज किस फुददी के लिए इतना मचल रहा है भला" मेरे दिल में ख्याल आया।
मेरी नज़रें ज्यों ही अपने भाई की नज़रों का पीछा करती हुई दूसरे कमरे की तरफ गईं। तो मेरी नज़र भी दूसरे कमरे में मौजूद अपनी मम्मी पर पड़ी। जो इस वक्त अपनी अलमारी खोल कर उस में बिखरे हुए कपड़ों को समेटने में लगी थी।
अपनी मम्मी को दूसरे कमरे में मौजूद पा कर मेरा मुँह हैरत से खुला का खुला रह गया।
"उफफफफफफफफ्फ़ ये कैसे हो सकता है, मेरे भाई का लंड अपनी सग़ी मम्मी की गान्ड के लिए भला कैसे मचल सकता है" मैने अपनी मम्मी की मोटी गान्ड से अपनी नज़रें वापिस अपने भाई के खड़े हुए लंड की तरफ मोडी।
अपने भाई की पॅंट में खड़े हुए लंड को देख कर मुझ को यकीन नही हो रहा था कि जो देख रही है। वो कोई ख्वाब नही बल्कि एक हक़ीकत है।
इसी दौरान सुनील अपना चाय का कप टेबल पर रख कर अपनी अलमारी से अपनी शर्ट निकालने लगा । तो मेरी नज़र दुबारा स्टोर में खड़ी हुई अपनी मम्मी की तरफ गई।
इधर मम्मी भी अपनी कनखियों से अपने बेटे की सब हरकतों का जायज़ा ले रही थी।
अपने बेटे को बाथरूम में नहाते देख मम्मी की चूत तो पहले की गरम हो चुकी थी। और अब अपने बेटे को यूँ भूकि नज़रों से अपने शरीर का जायज़ा लेते देख कर मम्मी की फुद्दि अपना पानी पूरी तरह छोड़ रही थी।
इसीलिए सुनील का ध्यान मम्मी से हटा। तो स्टोर में मौजूद मम्मी एक दम से थोड़ा सा वापिस मूडी और उस ने सुनील के कमरे की तरफ अपनी नज़र दौड़ाई । ।
इस के साथ मम्मी ने अपना एक हाथ नीचे ले जा कर अपनी शलवार के ऊपर से अपनी फुद्दि को छुआ तो मम्मी के मुँह से एक "सिसकी" सी निकल गई।
"उफफफफफफफफफफफफफफ्फ़!
ये तो मम्मी की सिसकी की आवाज़ है अपनी मम्मी को यूँ अपने बेटे के कमरे की तरफ देख कर अपनी चूत से खेलते देख कर मैने राहत की सांस ली, मेरे घर में घूम रहे हवसी सांड को अब मेरी मम्मी जैसी दुधारू गाय चढ़ने के लिए मिल गयी। और मैने ठान लिया बस अब जो भी हो कल जो लड़का मुझे देखने आ रहा है, चाहे जैसा भी हो मुझे उसके साथ शादी कर इस रण्डी खाने से बहुत दूर चले जाना है मै अपनी मम्मी की इस हरकत पर अंद्रूनी शर्मीदा हो गई। और जोर से खासते हुए आहिस्ता आहिस्ता कदमों से चलती हुई छत पर चली गई।
नेक्स्ट डे........सगाई के दिन घर में सगाई की तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही थी। आखिर वो दिन भी आ गया था जो हर लड़की कि जिंदगी में जरुरी होता है, सगाई के दिन मैंने पहली बार संजय को देखा, संजय सच में मुझसे कम सुंदर, उम्र में बड़ा और जोड़े में मैच नही खा रहा था। चूँकि लड़के वाले बहुत अमीर थे और पैसा सभी कमियाँ छिपा देता है, अच्छी बात ये थी कि
वो चाहते थे कि शादी का पूरा खर्चा वो करें, उन्हें तो बस लड़की चाहिए थी, इसलिए उनकी तरफ से बहुत सी ज्वैलरी आई उन्होंने एक बहुत महंगी साड़ी भी मेरे लिए भेजी।
बुजुर्गों की तरफ से तो रिश्ता तय हो चुका था. कुंडली मिलान, लेनदेन सब कुछ. बस, अब सब लड़का लड़की की आपसी बातचीत पर निर्भर था. बुजुर्गों ने तय किया कि लड़का लड़की आपस में बात कर एकदूसरे को समझ लें. कुछ पूछना हो तो आपस में पूछ लें. और हमें छत पर एकांत में भेज दिया गया.
संजय को शांत देख मैने कहा, ‘‘आप कुछ पूछना चाहते हैं?’’ संजय शरमीला था. संस्कारी परिवार से था. उस ने कहा, ‘‘नहीं, बुजुर्गों ने तो सब देख परख लिया है. उन्होंने तय किया है तो सब ठीक ही होगा. आप दिखने में अच्छी हैं. मुझे पसंद हैं, बस इतना पूछना था कि…’’ संजय पूछने में लड़खड़ाने लगा तो मुझ जैसी चुप छिनार, दुनियादारी की पढाई पढ़ी हुयी सभ्य, खेली खाई, हद से ज्यादा संस्कारी लड़की ने हँस कर कहा.....
‘‘पूछिए, निस्संकोच पूछिए, आखिर हमारी आप की जिंदगी का सवाल है.’’
संजय ने पूछा, ‘‘यह शादी आप की मरजी से… मेरे कहने का अर्थ यह है कि आप राजी हैं, आप खुश हैं न.’’
‘‘हां, मैने बड़ी सरलता और सहजता से कहा. नहीं होती तो पहले ही मना कर देती.’’
संजय चुप रहा. अब मैने कहा, ‘‘मैं भी कुछ पूछना चाहती हूं आखिर मेरी भी जिंदगी का सवाल है. उम्मीद है कि आप बुरा नहीं मानेंगे.’’
‘‘नहीं नहीं, निस्संकोच पूछिए,’’ संजय ने कहा. वह मन ही मन सोचने लगा, ‘लड़की पढ़ी लिखी है तो तेज तो होगी ही लेकिन इतनी बिंदास और बेबाक.’
‘‘आप का शादी के पहले कोई चक्कर, मेरा मतलब कोई अफेयर था क्या?’’
‘‘क्या,’’ संजय ने मेरी तरफ देखा.
‘‘अरे, आप घबरा क्यों गए? अमीर घराने से हो. इश्क वगैरा का शौक हो जाता है. इस में आश्चर्य की क्या बात है? सच बताना. एकदूसरे से क्या छिपाना?’’
‘‘जी, वह एक लड़की से. बस, यों ही कुछ दिन तक. अब सब खत्म है,’’ संजय ने झेंपते हुए कहा.
‘‘मेरा भी था,’’ मैने बेझिझक कहा. ‘‘अब नहीं है.’’
वो मेरा मुंह ताकने लगा.
‘‘क्यों, क्या हुआ? जब आप ने कहा तब
मैंने तो ऐसा रिएक्ट नहीं किया जैसा आप कर रहे हैं. आप ने तो पूछने पर बताया, मैं ने तो ईमानदारी से बिना पूछे ही बता दिया.’’
‘‘अच्छा, यह बताओ कि फैमिली बिजनेस ही संभालते हो या कोई और भी काम धंधा करते हो????
फेमिली बिजनिस् तो पूरा पापा और बड़ा भाई ही देखते हैं, मै तो अभी अभी फैक्ट्री में जाना शुरु किया है।
महीने में कितना कमा लेते हो?’’ मैने आगे पूछा.
‘‘जी, पापा 10 हजार रुपए.’’ खर्चा के देते है।
‘‘मैंने वेतन नहीं पूछा, टोटल कमाई पूछी है.’’
‘‘जी,‘‘यह क्या कह रही हैं आप?’’’’ संजय ने आश्चर्य से कहा.
‘‘फिर घर कैसे चलाएंगे 10 हजार रुपए में, खासकर शादी के बाद. कम से कम 5 हजार रुपए तो मेरे ऊपर ही खर्च होंगे. क्या शादी के बाद अपनी पत्नी को घुमाने नहीं ले जाएंगे. बाजार, सिनेमा, कपड़े, जेवर वगैरावगैरा.’’ संजय बेचारे के तो होश गुम थे. अच्छाखासा इंटरव्यू हो रहा था उस का. अब उसे लड़की बड़ी बेशर्म और उजड्ड मालूम हुई.
‘‘अच्छा, पापा से पगार बढ़ाने की बात बोलनी पड़ेगी.......... मै हंस कर बोली.
‘‘जी, बिलकुल.’’
फिर मैंने कहा, ‘‘देखो, शादी के बाद मुझे कोई झंझट नहीं चाहिए. अपनी मां भाभी को पहले ही समझा कर रखना. मुझे सुबह आराम से उठने की आदत है और हां, शादी के बाद अकसर लड़झगड़ कर लड़के अलग हो जाते हैं. और सारी गलती बहुओं की गिना दी जाती है. सो अच्छा है कि हम पहले ही तय कर लें कि किसी भी बहाने से बिना लड़ाईझगड़े के अलग हो जाएं. दूसरी बात रही पहनावे की तो मुझे साड़ी पहनने की आदत नहीं है. कभी शौक से, कभी मजबूरी में पहन ली तो और बात है. मैं सलवारसूट, पहनती हूं और घर में बरमूड़ा, रात में नाइटी. बाद की टैंशन नहीं चाहिए, यह मत पहनो, वह मत करो, पहले ही बता देती हूं कि पूजापाठ मैं करती नहीं.’’
मै कहे जा रही थी और संजय सुने जा रहा था. संजय को लगा कि वह भी क्या समय था कि जब लड़की लजाते, शरमाते उत्तर देती थी, हां या न में. लड़का पूछता था, खाना बनाना आता है, गाना गाना जानती हो, कोई वाद्ययंत्र गिटार, सितार वगैरा बजा लेती हो, सिलाईबुनाई आती है, मेरे मातापिता का ध्यान रखना होगा और लड़की जीजी, हांहां करती रहती थी और अब जमाना इतना बदल गया.
उसे तो यह लगा मानो वह साक्षात्कार दे रहा हो. यह भी सही है कि अधिकतर जोड़े शादी के बाद अलग हो जाते हैं. दुल्हनें अपनी मांगों पर अड़ कर परिवार के 2 टुकड़े कर देती हैं. फिर अपनी मनमरजी का ओढ़नेपहनने से ले कर खाने में नमक, मिर्च कम ज्यादा होने पर सासबहू की खिचखिच शुरू हो जाती है. यह कह तो ठीक ही रही है, लेकिन शादी से पहले ही इतनी बेखौफ और निडर हो कर बात कर रही है तो बाद में न जाने क्या करेगी? यह तो नीति और मर्यादा के विरुद्ध हो गया. अभी पत्नी बनी नहीं और पहले से ही ये रंगढंग. संजय तो फिर लड़का था.
उस ने भी कहा, ‘‘शादी से पहले का भी बता दिया और शादी के बाद का भी. तुम से शादी करने का मतलब मांबाप, भाईबहन सब छोड़ दूं, तुम्हारे शौक पूरे करता रहूं. कर्तव्य एक भी नहीं और अधिकार गिना दिए. यह क्या बात हुई?’’
मैने कहा, ‘‘जो होता ही है वह बता दिया तो क्या गुनाह किया. सच ही तो कहा है, इस में क्या जुर्म हो गया.’’
‘‘यह कोई तरीका है कहने का. यह कहती कि तुम्हारा घर संभालूंगी, बड़ेबूढ़ों का आदर करूंगी, सब का ध्यान रखूंगी तो अच्छा लगता.’’
‘‘ये सब तो आया के काम हैं. बाई है घर पर काम वाली या हमेशा मुझ से ही सब करवाने के चक्कर में हो. धोबिन भी मैं, बरतन, झाड़ूपोंछा वाली भी मैं. पत्नी चाहिए या नौकरानी,’’
संजय भी उत्तर देने लगा, ‘‘क्या जो पत्नियां अपने घर का काम करती हैं वे नौकरानी होती हैं?’’
‘‘अरे, आप तो नाराज हो गए,’’ मैने अपनी हंसी दबाते हुए कहा. अमीर फैमिली से हो, कमाई तो होगी ही. फिर मेरे पिता दहेज में वाशिंग मशीन तो देंगे ही, कपड़े धुलाई का काम आसान हो जाएगा. मैं तो कुछ बातें पहले से ही स्पष्ट कर रही हूं जैसे मुझे 3-4 सीरियल देखने का शौक है और उन्हें मैं कभी मिस नहीं करती. अब ऐसे में कोई काम बताए तो मैं तो टस से मस नहीं होने वाली, अपने दहेज के टीवी पर देखूंगी. चिंता मत करना. किसी और के मनपसंद सीरियल के बीच में नहीं घुसूंगी.
संजय के चेहरे के बदलते रंग को देख कर मैने कहा, ‘‘आप को बुरा तो लग रहा होगा, लेकिन ये सब नौर्मल बातें हैं जो हर घर में होती हैं. मेरी ईमानदारी और साफगोई पर आप को खुश होना चाहिए और आप हैं कि नाराज दिख रहे हैं.’’
‘‘नहीं, मैं नाराज नहीं हूं ना मुझे कुछ कहना है,’’ संजय ने कहा.... . !
‘‘हां, मुझे गोलगप्पे, चाट, पकोड़ी खाने का बड़ा शौक है, कम से कम हफ्ते में एक बार तो ले ही जाना होगा.’’ मै बोले जा रही थी, बोले जा रही थी. बेवकूफ थी, कमअक्ल थी. समझ नहीं आ रहा था संजय को.
मैने फिर पूछा, ‘‘सुनो, तुम शराब, सिगरेट तो नहीं पीते. तंबाकू तो नहीं खाते.’’
‘‘जी…जी…’’ संजय की जबान फिर लड़खड़ाई.
‘‘जी…जी, क्या हां या नहीं,’’ मैने थोड़े तेज स्वर में पूछा.
अब आप ने इतना सच बोला है तो मैं भी क्यों झूठ बोलूं. कभीकभी दोस्तों के साथ पार्टी वगैरा में. संजय ने जबाब दिया।
‘‘देखो, मुझे शराब और सिगरेट से सख्त नफरत है. इस की बदबू से जी मिचलाने लगता है. तंबाकू खा कर बारबार थूकने वालों से तो मुझे घिन आती है. सब छोड़ना होगा. पहले सोच लो.
संजय ने एक लंबी सांस ली और कुछ शर्ते, नियम कहना बांकी रह गया हो तो वो भी बता दीजिये..... रेखा जी...??
उस समय संजय की शकल देखकर मुझे हँसी आ गयी। ह्म्म्म ह्म्म्म ह्म्म्म नही और कुछ नहीं बस मेरे को जो जानना था जान लिया और आपको कुछ और पूछना हो तो आप पूछ सकते है.....???
नही जी मुझे भी नही पूछना... संजय भी मुस्कुरा कर बोला।
तो फिर चले नीचे...???? और हम दोनों नीचे आ गये। सगाई किसी तरह अच्छे से निपट गई, सगाई की थकावट में पूरा शरीर टूट रहा था इसलिए मैं अपने कमरे मे गई और भविष्य के सपनो का आनन्द लेने लगी।
हम दोनों की 15 दिन बाद शादी की बात पक्की हो चुकी थी तीन चार दिन बाद फोन पर देर तक रातों में बातों का दौर भी शुरु हो गया था, इसलिए संजय ने मुझ से मिलने की जिद की, जिसे मैने मान लिया।
मैंने संजय को फोन किया और उसे सन् सिटी माल पर बुलाया, जब मैं संजय से मिली तो मैं बहुत खुश हुई क्योंकि संजय को देखने का मेरा नजरिया बदल गया था। मुझे लगा अब मुझे कहीं बाहर मुँह मारने की और घर में घूम रहे भाई रूपी सांड से गांड मराने की जरुरत नहीं होगी।
कुछ वक्त साथ बिताने के बाद मैंने संजय से विदा मांगी तो संजय बोला- तुम मेरी होने वाली पत्नी हो, तुम share ऑटो में जाओ, अच्छा नहीं लगता !
संजय ने किसी को फोन मिलाया और थोड़ी ही देर में एस.यू.वी. हमारे सामने थी। मैं और संजय पीछे बैठ गए और ड्राईवर कार चला रहा था। सबसे पहले संजय ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, यह मेरे लिए कोई नया नहीं था और मैं जानती थी कि संजय क्या करना चाहता है मैंने कोई विरोध नहीं किया और धीरे-धीरे मेरे होंठो की तरफ बढ़ा और मेरे होंठों को चूम लिया।
मैंने कोई विरोध नहीं किया, मगर फिर भी संजय मुझे सॉरी बोलने लगा।
मैंने कहा- कोई बात नहीं ! कुछ ही दिनों में हमारी शादी होने वाली है और मैं तुम्हारी होने वाली पत्नी हूँ।
इसके बाद संजय मेरे टॉप के ऊपर से मेरे बूब्स दबाने लगा तो मैंने तुरंत ही उसे हटा दिया, मैंने सोचा कहीं उसे यह ना लगे कि मैं चरित्रहीन हूँ। ह्म्म्म..... थोड़ी ही देर में मेरा घर आ गया, संजय शरमा रहा था इसलिए मैने खुद ही उसे गुडबाय किस दे दिया। उस शाम में ही मैंने संजय को अपना दीवाना बना दिया था।
उधर घर के अंदर एक ड्रामा शुरू हो चुका था। घर में सिर्फ माँ और बेटे ही थे। सुनील चाहता था उसकी बहन रेखा की शादी हो और ये रिश्ता टूट जाये लेकिन वो सामने से साफ मना तो नही कर सकता था क्योकि रिश्तें में कोई कमी नही थी। तो उसने मम्मी को बातों में फँसाने का सोचा। और ऐसी शर्मनाक हरकत की जिसे कोई भी भाई कभी सोच नही सकता।