अध्याय -- 49
गाँव से बहुत लोग आए थे और माहौल मे जैसे पुराने ढंग का माहौल हो और जहा तक लोकचार और रीति रिवाज का सवाल है ज़्यादा कन्सेशन नही था, इसमे लास्ट वर्ड, दादी और घर की और बुज़ुर्ग औरतों का ही था.
रात मे भी, ज़बरदस्ती सभी ने मुझे 10 बजे मेरे कमरे मे ले जा के सुला दिया और कहा कि,आज सो ले. आज के बाद सबसे मुश्किल से तुम्हे जो चीज़ नेसीब होगी वो सोना ही होगी.
अगला दिन यानी कि शादी वाले दिन भी हालाकि बहुत काम था, और बहुत सारा समय ब्यूटी पार्लर वालीयो ने ले लिया, लेकिन भाभी ने इंश्योर किया था कि मेरे कमरे मे सिर्फ़ मेरी कुछ सहेलिया ही जाएँगी. दिन मे भी मेने मौका पा के सो लिया और खूब आराम किया. इसका नतीजा हुआ कि शाम को मे एकदम ताज़ा दम थी. और जैसे ही बारात आई मुझे पुरानी रस्म के तहत मेरी सहेलिया, भाभीया अक्षत (चावल) फेंकने के लिए ले आई और मेरा निशाना सीधे संजय पे पड़ा.
जयमाला के समय चूड़ीदार और सुनेहरी शेरवानी मे वो बहुत ही हैडसम लग रहे थे ( और उनका कहना था, सुर्ख 24 कली के लहँगे मे, मे भी बहुत हसीन लग रही थी. मेरे जोड़े मे जो सोने के तारों का काम था वो उनकी शेरवानी से मैंच कर रहा था). मेरी सहेलियों को सिर्फ़ एक प्राब्लम लग रही थी,और वो थी उनकी छोटी बेहन और मेरी छोटी ननद, सपना. वो उनके साथ स्टैम्प टिकिट की तरह चिपकी थी. और मेरी सहेलिया न तो खुल के अपने जीजा से बात कर पा रही थी ना उन्हे बना पा रही थी.
पर सवाल था, अभी क्या करे इस वार गाँव से आई हुयी भाभी ने ही रास्ता निकाला. उन्होने सुनील और उसके दोस्तों को बुलाया और कहा की इत्ता मस्त माल शादी मे आया है और तुम लोग टाइम वेस्ट कर रहे हो. गाँव वाली भाभी मेरी नन्द को बुला के एक कोने मे ले आई कि उसे कोई बुला रही है और वहाँ उसे सुनील और उसके दोस्तों ने घेर लिया और उसके लाख कोशिश करने पे भी घंटे भर घेरे रहे, छेड़ते रहे.
जब 'वो' आए तो सबसे पहले 'स्वागत' पापा और मम्मी ने ही किया, जो हमारे यहाँ क़ी 'पारंपरिक' परम्परा थी. फिर वरमाला का प्रोग्राम शुरु हुआ, वो ही धीरे धीरे से चलते हुए एक दूसरे के गले में माला डालना।
. मेरी नंंद और , उसकी सहेलिया कुछ ज़्यादा ही चहक रहे थे, इसलिए की उन्हें जूता चुराने का प्रोग्राम फेल करना था. मेरी नंंद ने खुद जूते उतारे और अपनी स्कर्ट मे छिपा के, सब लोगों को चिढ़ाते हुए, दिखा के बैठ गयी. अब वहाँ से कौन ले आए. बाराती भी खूब मज़े ले रहे थे. लेकिन जूते चुराने वाली बात बन नही पा रही थी. भाभी ने सुनील को पानी ले के बारातियों के पास भेजा और जब वो मेरी नन्द के पास पहुँचा तो उसके लाख मना करने पे भी उसने पानी थामने की कोशिश नही की.उसी मे पानी गिर गया.वो बेचारी चिहुकी पर मेरी अंजू दीदी और उसकी सहेलिया पहले से ही तैयार थी.वो तुरंत जूता ले के चंपत हो गई.
वरमाला के बाद फेरो की रसम थी. लेकिन दरवाजा पे भाभीया, मेरी बहन अंजू और सहेलिया दरवाजा रोक के खड़ी थी, शर्त थी 1000 रूपरे, जूते की. 'उनके' साथ, उनके दोस्त भाई, बहनें भाभीया. नन्द कह रही थी जूता चुराया नही गया फाउल तरीके से लिया गया है इसलिए नेग नही बनता. वो बेचारे खड़े. खैर. मेरे लिए तो सुनील एक कुर्सी ले आया और मे आराम से बैठ गयी. एकदम डेडलॉक की स्तिथि थी.
बहुत देर तक वो लोग खड़े रहे. किसी औरत ने कहा,"खड़े रहने दो, देखो कितनी देर खड़े रहते है."
"अर्रे आप लोगों को नही मालूम, हम लोग कितनी देर तक खड़े रह सकते है."
द्विअर्थि ढंग से उनका एक दोस्त बोला.
"अर्रे खड़े रहो, खड़े रहो बाहर. असली बात तो अंदर घुसने की है." उसी अंदाज़ मे आँख नचाके अंजू ने जवाब दिया.
"अर्रे आप को नही मालूम, भैया, धक्के मार के अंदर घुस जाएँगे."
मुस्करा के मेरी नंद भी उसी अंदाज़ मे बोली.
"अर्रे बहुत अंदाज़ है इनको अपने भैया के धक्को की ताक़त का. लगता है बहुत धक्के खाए है अपने भैया से." मेरी सहेली अंजलि भी मैदान मे आ गई. किसी ने कहा कुछ कम करो 1000 बहुत ज़्यादा है,किसी और ने बीच बचाव की कोशिश की. किसी ने कहा कि लगता है, इनेके पास है नही उधार कर दो तो मेरी एक भाभी, अंजलि और उनकी और बहनो की ओर, इशारा कर के बोली,
"अर्रे पैसो की क्या कमी है, ये टकसाल तो सामने दिख रही है. बस एक रात रेशमपुरा ( हमारे शहेर की रेड लाइट एरिया) मे बैठा दें, पैसो की बौछार हो जाएगी, या यही मान जाए मेरे देवरो (सुनील और उसके दोस्त) के लिए, एक रात का मे ही दे दूँगी."
ज़्यादातर बड़े बुजुर्ग तो शादी ख़तम होने के बाद बाहर चले गये थे, लेकिन एक कोई शायद 'उनके' चाचा थे. उन्होने सबको हड़काया, और कहा कि जूते का तो साली का नेग होता ही है, और उन्होने कैसे लिया इससे कोई फ़र्क थोड़े ही पढ़ता है, और 1000 रूपरे निकाल के अंजू को पकड़ा दिए. एक साथ ही सारी लड़कियाँ, मेरी बहनें सहेलिया, भाभीया, बोल उठीं,हिप्प हिप्प हुर्रे, लड़की वालों की. अब बची बात गाना गाने की तो उनकी ओर से सारे लड़के लड़कियाँ एक साथ गाने लगे,
"ले जाएँगे, ले जाएँगे दिल वाले दुलहानिया ले जाएँगे"
अंजू, अंजलि सब एक साथ बोली नही नही हमे दूल्हे का गाना सुनना है. पर उन साहब ने गाना पूरा किया ही.
मेरी नंद बोली, अच्छा भैया कुछ भी सुना दीजिए तो उनका मूह खुला,
"वीर तुम बढ़े चलो, सामने पहाड़ हो,सिंह की दहाड़ हो, वीर तुम रूको नही, वीर तुम झुको नही"
उन्होने सालियों और सलहजो की ओर देख के सुनाया. उनका मतलब साफ था लेकिन उनके एक जीजा ने और सॉफ कर दिया,
"देखा ये सिंह झुकने वाला नही है, सीधे गुफा मे घुस जाएगा. बच के रहने तुम लोग."
"अर्रे यहाँ बचना कौन चाहता है," अंजू की सहेली ज्योत्सना बोली, "लेकिन जो सिंह के साथ गीदड़ है ना उनकी आने की मना ही है."
मेरी चाची बोली. " अर्रे लड़कियो पैसा तो तुम लोगों को मिल गया है, रहा गाना तो
ये रही ढोलक ये गाना क्या, अपनी मा बहनो का सब सुर मे सुनाएँगे एक बार फेरों को तो हो जाने दो, " मंडप में ब्याह पढ़ा जाने लगा।
सुबह के चार बज गये, अब बस मंडप के समीप मे 14 से 44 तक की 25-30 लड़कियाँ, औरते (भाभी की भाषा मे कहु तो, 30बी से ले के 38डी तक की) और सब की सब एक दम मूड मे, जिनमे आधे से ज़्यादा उनकी सालिया (मेरी सहेलिया, मेरी बहने और उनकी सहेलिया), सलहजे और बाकी उनकी सास (मम्मी, मेरी चाचिया, मामिया, बुआ, मौसीया और मम्मी की सहेलिया) लगती थी लेकिन जो जोश मे लड़कियो से भी वो दो हाथ आगे थी. वो ही जाग रही थी। ज्यादतर बाराती घराती सोने चले गए थे।
फेरे संपन होने के बाद मेरी गाँव की भाभियों ने उनसे कुल देवी के आगे सिर झुकानेको कहा. एक मूर्ति सी पर्दे के अंदर रखी गई थी. उन्होने कहा कि नही पहले मे पूजा करू तो वो करेंगे.
मौसी ने कहा कि लगता है तुम्हे सिखाया गया है, कि हर चीज़ खोल के देखना. वो हंस के बोले एकदम. भाभी ने कहा ठीक है हम आपकी दोनो शर्ते मान लेते है, लेकिन हमे दुख है कि आप को हम पे विश्वास नही. पहले मेने सर झुकाया और फिर इन्होने. जब वो झुके तो मेरी चाची ने आके पीछे से इनेके नितंबो पे हाथ फेर के कहा,
"लगता है, इसको झुकने से डर लगता है. बचपन मे कोई हादसा तो नही हो गया था, कि ये झुके हो और पीछे से किसी ने गांड मार ली हो." मेरी मामी और मौसीया भी मैदान मे आ गयी.
मौसी भी हाथ फिरा के बोली,
"अर्रे आपको मालूम नही क्या वो हादसा. जिसके कारण वो जो इसकी छिनाल बेहन है, सपना (मेरी नन्द) इसके साथ चिपकी रहती है, 'बता दूं बुरा तो नही मनोगे. उनसे पूछते हुए वो चालू रही, " हुआ ये. ये बात सच है कि एक लौंडेबाज इनके पीछे पड़ गया था, और वो तो इनकी गांड मार ही लेता पर उसका मोटा हथियार देख के इसकी हालत खराब हो गयी. तब तक सपना (मेरी नन्द) वहाँ पहुँची और उसने कहा कि मेरे भैया के बदले मेरी मार लो. तो उसने बोला कि ठीक है लेकिन मे आगे और पीछे दोनो ओर की लूँगा. वो मान गई इसी लिए बस ये उस की"
उन की बात काट के मेरी मामी बोली,
"अर्रे तुम कहाँ उस के चक्कर मे पड़ गये.अहसान की कोई बात नही. ये कहो कि मोटा लौंडा देख के उस छिनाल सपना (मेरी नन्द) की चूत पनिया गयी होगी, इसलिए उस चुदवासि ने चुदवा लिया." मम्मी ने बहुत देर तक अपने को रोका था लेकिन वो अब रोक नही पाई. उनके बाल सहलाते हुए वो बोली,
"अर्रे यहाँ डरने की कोई बात नही है. यहाँ हम सब औरते ही है, तुम्हारे पिछवाड़े पे कोई ख़तरा नही है."
और तब तक जैसे ही इन्होंने सर झुकाया, भाभियों ने कपड़ा हटा दिया. हस्ते हस्ते सब की बुरी हालत हो गई. उसमे मेरी सारी चप्पलो सेंडलों का ढेर था, इस्तेमाल की हुई बाथ रूम स्लिपर से, हाई हिल तक. और साथ मे अंजू, मम्मी की भी. भाभी बोली,
"ठीक से पूजा कर लीजिए, ये आपकी असली कुल देवी है. ये सब आपकी बीबी की है और ये साली, और सास की.आज से इस घर की औरतों की चप्पलो को सर लग के, छू के." किसी ने बोला अर्रे बीबी के पैर भी छू लो चप्पल तो छू ही लिया, तो कोई बोला अर्रे वो तो कल रात से रात भर सर लगाना पड़ेगा, तो किसी ने कहा अर्रे सिर्फ़ रात मे क्यों दिन मे भी. (उसका मतलब मुझे सुहाग रात के बाद समझ मे आया). अंजलि ने अंजू से कहा कहा अर्रे जीजू ने तेरी चप्पल छुई है ज़रा आशीर्वाद तो दे दे. अंजू से पहले भाभी ने आशीर्वाद दे दिया,
"सदा सुहागिन रहो, दुधो नहाओ पुतो फलो." पीछे से मामी ने टुकड़ा लगाया,
"अर्रे तुम्हारे घर मे आज से ठीक 9 महीने बाद सोहर (स्वर) हो. सपना और तेरी जितनी बहनें यहाँ आई है, सबका यहाँ आना फले और सब ठीक 9 महीने बाद बच्चा जने, और तुम मामा कहलाओ.
भाभी ने वापस उन्हे लाकर पटे पे बैठाया.
आख़िरी रस्म चल रही थी, कुंवर कलेउ, पलंग पूजा छाती पान की. थोड़ी देर मे विदाई होनी थी. बारात पहले ही जा चुकी थी. मेने सुना मेरी नन्द सपना किसी से कह रही थी कि वो हम लोगो के साथ ही गाड़ी मे जाएगी.
विदाई के समय पूरा माहौल बदल गया था. मेने लाख सोचा था कि ज़रा भी नही रोऊंगी पर मम्मी से मिलते समय मेरी आँखे भर आई .किसी तरह मैं आँसू रोक पाई, लेकिन पापा से गले मिलते समय, सारे बाँध टूट गये. पापा से मेरे ना जाने कितने तरह के रिश्ते और शादी तय होने से अब तक तो हम दोनो के आँखो से आँसू बिन बोले, झर रहे थे और हम दोनो एक दूसरे को कस के बाहों मे भिच के, मना भी कर रहे थे ना रोने के लिए. और ये देख के मम्मी की भी आँखे जो अब तक किसी तरह उन्होने रोका था, गंगा जमुना हो गयी.
'माहौल को मजाकिया बनाते हुए विनय जीजा बोले "अगर रोने से गले मिलने का मौका मिले तो मैं भी रोना चाहूँगा. "पल भर मे माहौल बदल गया और मैं भी मुस्कान रोक नही पाई. अंजू ने हंस कर कहा एकदम. जैसे ही वो आगे बढ़ी, उन्होने अंजू को कस के गले लगा लिया, और अंजू भी वो मौका क्यो छोड़ती. और फिर अंजू ने हम दोनो को कार मे बैठा दिया. मेने देखा कि आगे कार मे, अगली सीट पे नन्द बैठी थी. तब तक अंजू मेरे पास पानी का गिलास ले आई. मैं जैसे ही पीने लगी, उसने धीरे से कहा, बस थोडा सा पीना. मेने कनेखियो से देखा कि कुछ समझ के वापस वो ग्लास अंजू के हवाले कर दिया. अंजू ने मुस्करा कर वो ही ग्लास ' इन्हे ' दिया. साली कुछ दे और जीजा मना कर दें. इन्होंने पूरा ग्लास गटक लिया.
कार जैसे ही हमारे मोहल्ले से बाहर निकली, उन्होने मुझसे कहा क़ि तुम चप्पल उतार दो और अपने हाथ से घूँघट थोड़ा सरका के मेरा सर अपने कंधे पे कर लिया. हलके से मेरे कान मे उन्होने मुझे समझाया कि मैं रिलेक्स कर लू, अभी एक दो घंटे का रास्ता है, और वहाँ पहुँच के फिर सारी रस्मे रीत चालू हो जाएँगे. कुछ रात भर के जागने की थकान, कुछ उन के साथ की गरमी और कुछ उनके कंधे का सहारा, मैं थोड़ी देर मे ही पूरी तरह नीद मे तो नही तंद्रा मे खो गयी. एक आध बार मेरी झपकी खुली, तो मेने देखा कि उनका हाथ मेरे कंधे पे है. और एकाध बार चोर चोरी से जाए हेरा फेरी से ने जाए मैने महसूस किया कि उनकी अंगुली का हल्का सा दबाव दिया मेरी चोली पे जान बुझ के मेने आँखे नही खोली लेकिन मेरे सारी देह मे एक सिहरन सी दौड़ गई. उन्होने मुझे हल्के से हिलाया, तो मेरी आँख खुल गई. वो बोले, बस हम लोग 10 मिनेट मे पहुँचने वाले है तुम पानी पी लो और फ्रेश हो जाओ.. इतना लंबा सफ़र और पता भी नही चला और नीद इतनी अच्छी थी कि रात भर जागने की सारी थकान उतर गयी.