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Incest शक या अधूरा सच( incest+adultery)

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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Fir bhi aapse anurodh hai ki kahani ko vajandar banaye rakhne ke liye cheap chije add ka karo
भाई लेखिका की पहली कहानी है और बहुत सही कहानी है पढ़ ले मजा कर, वजन के लिए क्या बाट रख दे कंप्युटर पर.
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Last upadate me arun ka mummy ke sath ka varnan mujhe thoda thik nahi ye ekdam cheap story jaisa thoda feel huaa mujhe ..
Arun ki aisi personalty par aisi bate use shobha nahi deti thi....
Arun ka charitra jaisa dikhaya aapne uske anusar aisi varnan uske muh se sunnna thoda nagwar gujra mujhe...


Bas yahi ek update mujhe thodi si sasti lagi or wo bhi arun ki pichhe ki life story
जीवन मे लोगों की कुछ डार्क साइड भी होती है मध्यम वर्ग के परिवार मे बहुत सी चीजे ना चाहते हुए भी हो जाती है जो मन पर गहरा प्रभाव छोड़ जाती है.
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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ye sahi jawab hai...........................

एक पुरानी कहानी है......................
एक पेंटर ने पेंटिंग बनाकर चौराहे पर रख दी साथ में लिख दिया की इसमें गलतियाँ बताएं, निशान लगाकर.......... शाम तक पेंटिंग की बजाय सिर्फ निशान ही बाकी रह गए......... इतनी गलतियाँ बतायीं लोगों ने
दूसरे दिन उसने फिर से पेंटिंग बनाकर रख दी और लिख दिया की अगर कोई गलती दिखे तो सुधार कर दें,........... एक हफ्ते बाद भी पेंटिंग ज्यों की त्यों रखी मिली............

दूसरे के किए में गलतियाँ हर कोई निकाल लेता है......... उसके लिए काबिलियत नहीं चाहिए
लेकिन......... खुद किसी की गलती का सुधार करना मुश्किल काम होता है......... उसके लिए उससे भी ज्यादा काबिलियत चाहिए...........
मेरा ये मानना है कि ईन फोरम पर लेखक खुद के लिए लिखते है. ये फोरम माध्यम है लेखकों के विचारो को जनता तक पहुंचाने का. हम लिखते है क्योंकि हमे ऐसा करने से सकून मिलता है. आलोचना प्रशंसा दोनों ही महत्व नहीं रखते. रेखा जी से निवेदन है बस प्रयास करते रहिए मुझे खुशी है कि इस विरासत को काबिल हाथो मे छोड़ कर जाएंगे
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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अपडेट पढा, रेखा की उन्नत उरोजो और गीली पेंटि ने कान गर्म कर दिए. अभीं अरुण और रेखा का रिश्ता नाजुक स्टेज मे है. दोनों को थोड़ा और समय देना चाहिए जिस प्रकार से अरुण ने रेखा को डार्क सच बताया उसके लिए दोनों का रिश्ता बहुत मजबूत दिखाना होगा लेखिका को. क्योंकि मन का बोझ जिसके आगे बताया जाए वो जीवन मे बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है. अरुण के माता पिता का झगड़ा कोई नयी बात नहीं तकरीबन घरों की कहानी है. अरुण के पिता ने जिस स्तिथि मे माँ बेटे को देखा वो सामान्य होकर भी सामान्य नहीं थी. जिसका प्रभाव परिवार की खुसहाली पर पड़ेगा.
एक बात और रेखा जी कभी अगर मुलाकात हुई तो चूम लूँगा आपको :love:
 

prasha_tam

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मै एक उलझन में पड़ गयी थी आखिर सुनील भैया को उनके हिस्से की खुशी कैसे मिलेगी????


अध्याय -- 8 -----


कहते है हर बुरे समय के बाद एक खुशी आती हैं, ठीक वैसा ही हुआ नूतन के जाने के आधे घंटे बाद मुझे सामने से बुलेट पर आता हुआ अरुण दिखने लगा!!अरुण को देखकर मेरे चेहरे पर चमक आ गयी!! अरुण गाड़ी स्टैंड पर खड़ी कर काउंटर के बाहर ही खड़ा रहा...... सुनील भैया होते तो दुकान के अंदर आ जाता! लेकिन मुझे अकेला देखकर भी उसकी अंदर आने की हिम्मत नही हो रही थी।


"" शायद वो दौर ही ऐसा था कि लड़को में कुछ तो शर्म बांकी थी ""


भले ही हम दूसरे के लिए अंजान नही थे, हम दोनो ही एक दूसरे की जान थे, एक दूसरे को छूना चाहते थे, प्यार करना चाहते थे, पर कुछ मर्यादा अभी भी बची हुई थी!! हम दोनों के बीच काउंटर की लक्ष्मण रेखा को पार करने की शक्ति नही थी।


अरुण ने अपनी ढीली सी शर्ट के अंदर हाथ डालकर एक लाल गुलाब का फूल निकाल कर मुझे दे दिया!!! ये मेरी जिंदगी का पहला रेड रोज था जो किसी लड़के ने मुझे दिया था........ ! !
मै अरुण से बोली कैसे हो??
वो बोला ठीक नही हू, किसी शायर कि तरह पुराना फिल्मी गाणे कि लाइन गुनगुनाते हुए बोला....... " ये दिल तुम बिन कहीं लगता नही, हाय क्या करे ""
मुझे हल्की सी हँसी आ गयी...... हाहाहा


वो मेरे जिस्म को ऊपर से नीचे तक किसी शिकारी शेर की तरह देख रहा था!!! उसके आँखों में एक अजीब सा नशा था, हालांकि अभी तक उसने एक भी सिगरेट नही पी थी। किसी भूखे भेड़िये की कामलोलुप चमक और उसके हल्के गुलाबी मोटे होंठों पर वासनापूर्ण मुस्कुराहट देख कर मेरा मन एक बार तो वितृष्णा से भर उठा,


अरुण मेरे व्यक्तित्व के आकर्षण से अछूता नहीं था। इतनी ही देर में मैंने महसूस किया कि उसकी तीक्ष्ण दृष्टि मेरे अंग प्रत्यंग को मेरे कपड़ों के ऊपर से ही भेदती हुई मुआयना कर रही है। उसकी दृष्टि की ताब न ला सकी मैं और तनिक संकोच का अनुभव करने लगी।

मैने उससे एक बार फिर कहा अपना नही तो मेरा हाल ही पूछ लीजिये???

उसने जब बोलना शुरू किया तो उसकी धीर गंभीर आवाज ने मुझे सम्मोहित कर लिया। एक तो उसका आकर्षक व्यक्तित्व, उस पर उसकी ठहरी हुई गंभीर आवाज और बोलने का अंदाज मुझे प्रभावित कर गया। उसकी आवाज में गजब का आकर्षण था। बोलते वक्त उसकी नजरें मेरे चेहरे पर ही टिकी हुई थीं। ऐसा लग रहा था मैं भीतर ही भीतर पिघल रही हूं। उसकी नजरों में पता नहीं ऐसा क्या था कि मेरे शरीर में रक्त संचार की गति बढ़ने लगी। वही मादरजात शरीर की प्राकृतिक भूख, पुरुष संसर्ग की, मेरे अंदर जागने लगी।

मैं क्रीम रंग की सलवार और बिना बाहों वाले कुर्ती में थी। मेरे बदन से चिपका हुआ कुरता जिसमे से मेरे उरोज बाहर की तरफ निकल रहे थे जिनको मैने अपनी चुन्नी से ढक रखा था , मेरी जांघ और नितंबो से चिपकी हुई सलवार जिसमे से मेरे सेक्सी पैरो और झांघो की सुन्दरता साफ़ नजर आ रही थी मेरी काजल लगी हुई आँखें नाक में छोटी सी नोज रिंग, बाल ढीले clutcher से बंधे हुए बाल जिनमे से साइड से सामने के बालो की 2 लम्बी लटें जो बार बार आकर मेरे गालों पे गिरती जिन्हें मै बार बार अपनी उँगलियों से अपने कान के पीछे करती। मेरे उरोज लो कट बिना बांहों के कुर्ती में सख्त होने लगे, चुचुक खड़े हो गए। ऐसा लग रहा था मानो दो कबूतरियां कसे हुए ब्रा और कुर्ती के पिंजरे से तड़प कर बाहर निकल पड़ने को बेताब हों।

मैंने अपनी दोनों जांघों को कस कर सटा लिया लेकिन कुछ ही मिनट बाद मैं अपनी कुर्सी पर ही कसमसा कर जांघ पर जांघ चढ़ा कर बैठने को मजबूर हो गई। मेरी योनी पैंटी के अंदर फकफक करती हुई लसलसा पानी छोड़ने लगी, नतीजतन मेरी पैंटी के सामने का हिस्सा भीग गया। मेरी स्थिति से अरुण अनभिज्ञ नहीं था। मेरे हाव भाव से ऐसा लग रहा था मानो अगर उसका वश चलता तो दुकान के काउंटर पर पटक कर मुझे भोगने लग जाता।

अरुण काफी धैर्यवान लग रहा था, सबकुछ समझते हुए भी सिर्फ हौले हौले मुस्कुराते हुए मुझसे बात कर रहा था। बीच बीच में मेरी आवाज मेंं मेरी जुबान की हल्की लड़खड़ाहट मेरी स्थिति की चुगली कर रही थी। जब अरुण अपनी बात पूरी करने ही वाला था कि उसी वक्त दुकान पर ग्राहक आ गया। ये ग्राहक महाशय कोई और नही हमारे पड़ोसी चौधरी ताऊ थे!

""कहते है ग्राहक भगवान का रूप होता है, मगर इस वक्त मुझे ग्राहक शैतान नजर आ रहा था""
मै कामवासना में डूबी कामुक कन्या चौधरी ताऊ से तुनकते हुए बोली क्या चाहिए???
चौधरी ताऊ -- छोरी इक बीड़ी का बंडल दे !!

मै उनको बीड़ी का बंडल देने लगी, चौधरी ताऊ अरुण से बोले छोरा मै काफी देर से तुझे देख रहा हूँ, तू अपनी बुलेट चमकाता हुआ यहाँ आया और अभी भी तू आधे घंटे से ज्यादा छोरी से बातें करने में लगा है... एक रुपए का तो सामान तूने लिया नही....... कोनसा गाणा सुना रहा है छोरी से ???? सांची बोले छोरे किस चक्कर में है???

" मोहल्ले की मोहब्बत में सबसे बड़े कैमरे पड़ोसी होते है, इन्हे अपनी बहन, बेटी, लुगाई, की खबर ना हो पर पड़ोसी के घर दुकान में कौन आ रहा है, पूरी जानकारी रखते है ""

अरुण थोड़ा घबरा गया और अटकते हुए बोला त त् त ताऊ चक्कर, कैसा चक्कर??? मै तो यहाँ...........
अरुण की घबराहट देखकर मै बीच में बोल पड़ी चौधरी ताऊ ये सुनील भैया के दोस्त से, ""अरुण भैया"" उनसे ही मिलने आते हैं, अभी उन्ही का इंतजार कर रहे है!!

रे छोरी सुनील का दोस्त है, तो दुकान के बाहर क्यो खड़ा किये हो, उसको अंदर बैठा, कुछ चाय पानी पिला??? अरुण की पीठ पर थपकी लगाते हुए जाते जाते चौधरी ताऊ बोले !!

मै हाँ चौधरी ताऊ बस बैठाने ही वाली थी, मै अरुण से हस्ती हुई बोली आइये इस काउंटर की रेखा को लांघ कर अपनी रेखा के छोटे से आशियाने में........रेखा को रेखा गणित सिखाईये.........हाहाहा
ये "रेखा गणित" शब्द सुनकर अरुण बड़ी जोर से हँस पड़ा! हाहाहा हाहाहा

अरुण दुकान के अंदर आने से पहले अपनी बुलेट पर टंगी थैली लेने चला गया। अरुण ने अपनी थैली से एक पैकेट निकाल कर मुझे थमा दिया....उसके हाथ में एक और बड़ा सा पॅकेट था.......और उसके उपर एक ब्लॅक कलर की प्लास्टिक कवर चढ़ा हुआ था........मुझे तो कुछ ज़्यादा समझ में नहीं आया मगर उसके ज़्यादा ज़ोर देने पर मैं ने वो पॅकेट चुप चाप अपने गोद में रख ली......

मुझसे बोला ये दूसरा पैकेट सुनील के लिए है, इसे तुम उसको दे देना!!!
मैने सुनील भैया वाला पैकेट अलमारी के अंदर रख दिया।

फिर मुझसे बोला ये तुम्हारी गोद में जो पैकेट है ये तुम्हारे लिए है, जानती है रेखा ये जो मैने तुझे अभी अभी दिया है ये मैं तेरे लिए ही ख़ास तौर पर लाया हूँ....... जब घर के अंदर जाना तब आराम से इस पॅकेट को अकेले में खोलना........ये तेरे लिए बहुत ख़ास है.......मैं अरुण को सवाल भरी नज़रो से देखती रही मगर मेरे लाख पूछने पर भी उसने मुझे कुछ नहीं बताया......आख़िर ऐसी क्या ख़ास चीज़ थी उस पॅकेट में.......मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था.......पता नहीं ऐसी कौन सी ख़ास चीज़ है जो अरुण मेरे लिए ही लाया है..........बार बार मेरा ध्यान उस पॅकेट पर जा रहा था......दिल में बार बार यही इच्छा हो रही थी कि मैं अभी उस पॅकेट को खोल लूँ और तसल्ली से देखूं मगर अरुण ने मुझे अकेले में ही खोलने के लिए कहा था और मै उसका दिल नही तोड़ना चाहती थी, और मेरे लिए ये मुमकिन भी नहीं था..... जब अरुण ने प्यार से मुझे कुछ surprise गिफ्ट सौंप दिया है तो जल्दबाजी में ख्वमोखवाह बात बिगड़ जाती.......

वैसे तो दुकान का दायरा बहुत छोटा है, लेकिन प्यार करने वालो के लिए बहुत जगह है, हमारे बीच दो फुट की दूरी का फ़ासला था। हम एक दूसरे के सामने बैठे हुए बस एक दूसरे को देख रहे थे!! मै मन ही मन ऊपर वाले से प्राथना कर रही कि कोई भी कबाब में हड्डी ग्राहक के रूप में मत भेजना........।।


पूरी दुकान में एक खामोशी भरा सन्नाटा छाया हुआ था, अरुण ने उस खामोशी को तोड़ते हुए कहा रेखा तुमने ताऊ के सामने मुझे ""अरुण भैया"" क्यो बोला??
मुझे अरुण बोल सकती थी, या फिर दोस्त बोल देती..... या भैया छोड़ कर कुछ भी बोल देती..... ये तुम्हारे मुह से "अरुण भैया"" सुनकर मै टेंशन में आ गया हू।


मै अरुण से बोली अरे यार वो तो मैने जल्दी जल्दी में बोल दिया था...... तुम्हें तो पता ही है ताऊ को हमारे ऊपर शक हो गया था!!अगर भैया के अलावा कुछ भी बोलती तो ताऊ और सौ सवाल करने लगता......
मै अरुण को आँख मारते हुए हस्ती हुयी बोली तुम टेंशन ना लो तुम भैया नही सैया ही हो..... हाहाहा हाहाहा


अरुण भी थोड़ा हस्ता हुआ बोला रेखा सच कहु तो मै तुझे बेहण ना मानने वाला...... और जब तूने मुझे "अरुण भैया"" बोला तो मै इसलिए टेंशन में आ गया "" साला अब मुझे तीन तीन "भात" देना पड़ेगा।
(भात एक तरह का रिवाज है जो भाई अपनी बहन के बच्चों की शादी पर गिफ्ट,रुपए के रूप में देता है)


अरुण के मुह से "भात" भरने वाली बात सुनकर मेरी हँसी छूट गयी...... हाहाहा


((हाहाहा कमाल का छोरा मिला है मुझे उसे इस बात की टेंशन नही थी मैने उसे भैया बोला था उसे भात देने की टेंशन थी।))


मेरी हँसी ही नही रुक रही थी.... हाहाहा
पूरा खामोश माहौल हँसी से खिल गया!
थोड़ी देर हम दोनो हस्ते रहे, और मैने उससे कहा अरुण तुम तीन तीन "भात" देने की बोल रहे थे, ऐसा क्यों???
मैने तो अपनी जिंदगी की हर बात तुम्हे बता दी है, पर अभी तक तुमने मुझे अपनी फैमिली के बारे में कुछ नहीं बताया.......... तुम्हारी फैमिली में कौन कौन है....?
अरुण मेरा सवाल सुन एक दम से serious हो गया, और कुछ सोचने लगा...
उसका सोचना भी लाजमी है!!!

(( जब कोई लड़का अपनी प्रेमिका से उसकी फैमिली के बारे में पूछता है, तो वो अपनी प्रेम कहानी में आने वाले खतरे का अंदाजा लगा कर अपनी प्रेम कहानी का अंत तय करता है;; लेकिन
जब कोई भी लड़की अपने प्रेमी से उसकी फैमिली के बारे में पूछे तो ये इशारा होता है, कि लड़की अब प्रेमिका बनकर नही रहना चाहती है, वो अब प्रेमी की पत्नी बनना चाहती है, और अपने प्रेमी की फैमिली के लोगो के बारे सुन समझ कर उन्हे अपने होने वाले ससुराल वालों के रूप स्वीकार करने के लिए तैयार होना चाहती है))


अरुण मुझसे बोला रेखा ये बीच में मेरी फैमिली की बात कहाँ से याद आ गयी, इरादे तो नेक है तुम्हारे.......
मैने कहा तुम ऐसा क्यो बोल रहे हो?? मै तो बस पूछ रही हूँ, और मै तो ये जानना चाहती हूँ कि तुम्हारी फैमिली accept करेगी मुझे?? मै थोड़ी serious हो गयी!


अरुण कुछ पल शांत रहा, फिर मेरे हाथ को अपने हाथ में थाम कर बोला मुझे किसी की कोई चिंता नहीं है, हम एक दूसरे को पसंद है और हम एक दूसरे प्यार करते है। मेरे लिए इतना ही काफी है। रही बात फैमिली की तो मेरे घर में मै, मम्मी, और दो बहने है!


मैने कहा और अरुण तुम्हारे पापा मर चुके है क्या ??
पापा का नाम सुनकर उसकी आँखों में पानी आ गया!!
मैने उसे sorry बोलते हुए कहा मेरा वो मतलब नही था, मै तो बस ऐसे ही बोल दी....!
रेखा मेरे पापा ठीक है पर वो पिछले पांच छे साल से हमारे साथ नही रहते..... वो धीरे से बोला!!


मै भी अरुण की मुरझाई हुई शक्ल देखकर चुप हो गयी...... पर अपनी सामने वाले के पिछवाडे में उंगली करने की आदत से मजबूर थी...... मैने कुछ पल बाद अरुण के गांड में फिर उंगली कर दी..... पर इस बार उंगली करके हिला भी दी. . ....?? हाहाहा


मै अरुण से बोलि pls अपने दिल का थोड़ा सा बोझ मुझे दे दो, मुझे जानना है, आखिर ऐसा क्या हुआ था जो तुम्हारी मम्मी पापा के बीच जिसकी सजा तुम्हें और तुम्हारी बहनो को मिली?? Pls अरुण मुझे सब कुछ बताओ...... शुरु से......????


अरुण ने मेरे चेहरे की तरफ देखा और एक मुस्कुराहट देते हुए बोला ये मेरी जिंदगी का वो राज है जिसे मैने आज तक अपने सीने में ही दबा कर रखा है पर आज तुम्हे हमराज बना रहा हूँ.........???


मैने बचपन से ही अपने मम्मी पापा को हमेशा लड़ते झगरते हुए देखा है, हम तीनो भाई बहन मम्मी पापा की लड़ाई देखकर रात रात भर डर के कारण अपने कमरे मे दुबके रहते थे!! हम लोगो से पापा ने कभी भी प्यार से बात नही की!! बचपन में पापा के होते हुए भी हमें कभी उनका प्यार नही मिला!! मम्मी ने ही हम तीनो को पापा का भी प्यार देकर बड़ा किया। धीरे धीरे समय निकलता गया और हम बड़े हो गए। मुझसे बड़ी दीदी देल्ही में (bds) doctor की पढाई और छोटी बहन bsc computer Science कर रही है।


मैने होश संभाला तब मुझे अपनी मम्मी पापा की झगड़े की वजह ठीक ठीक समझ आने लगी...... मेरे पापा मेरी मम्मी पर शक करते थे, यू कहे तो उनको "शक की बीमारी" थी, जिसकी वजह से वो छोटी छोटी सी बात पर भयानक गुस्से में आ जाते और पापा अपना आपा खो देते थे।
पापा खुद ही किसी पार्टी, शादी funtion वगेरा में मम्मी को सज सवर कर चलने के लिए कहते और जब पार्टी फंक्शन या शादी में कोई भी भले ही हमारे जान पहचान वाले, यहाँ तक कि रिश्तेदार ही क्यो ना हो अगर मम्मी की जरा सी भी तारिफ कर दे तो पापा की झांट सुलग जाती!! घर आकर मम्मी पापा का झगडा शुरु हो जाता.... कभी कभी तो fuction में ही तारीफ करने वाले से लड़ने लगते।

एक बारी मम्मी ने मुझे बताया था कि मम्मी पापा गुड़गांव में एक ही ऑफिस में काम करते थे उन दोनों का नैन मटका हुआ और एक महीने के affair में ही दोनों ने शादी कर ली। शादी के एक हफ्ते बाद जब हनीमून से दोनों ने वापस ऑफिस जॉइन किया तो पापा को मम्मी के ऑफिस में कलिग से बात करते हुए देख पापा को शक होता, जबकि शादी के पहले से वो खुद उन्ही ऑफिस कलिग से हेल्प लेकर मम्मी को पटाये थे। आखिर में दोनों ने जॉब छोड़ दी और मम्मी पापा यहाँ आ गए। मम्मी पापा दोनों ही पढ़े लिखे थे तो कुछ दिनो के बाद पापा ने दोबारा से फिर से गुड़गांव मे mnc co. में जॉब कर ली और मम्मी ने यहाँ बैंक में नौकरी कर ली। पापा अब वीकेंड पर घर आते, मम्मी वीकेंड पर पापा को रिझाने के लिए हर वो हथकंडा try करती जिससे दोनों की शारीरिक जरूरत पूरी हो सके लेकिन पापा मम्मी से प्यार कम झगडा ज्यादा करते, दिन ऐसे ही लड़ते झगरते निकल रहे थे। पापा की शक की बीमारी का कोई इलाज मम्मी को समझ नही आ रहा था?????


मेरी मम्मी मॉडर्न ख्यालात की है, वो हमेशा से ही मॉडर्न लाइफ जीना पसंद करती हैं!!
मम्मी घर के कामो के बाद टीवी पर रोमांटिक और सेक्सी फिल्म देखना पसंद करती. ज्यादातर घर मे मम्मी गाउन या साड़ी पहनती थी. जिसमे से उनका मादक गोरा बदन साफ नजर आता था. मम्मी घर मे अपने कपड़ो के बारे मे ज़्यादा ध्यान नही रखती, जेसे झाड़ू या साफ़ सफाई के दोरान उनका पूरा मांसल बदन उनके गहरे गले के ब्लाउज से बाहर झाँकता, मम्मी के घर मे पहनने वाली ब्लाउज या गाउन के उपर और नीचे के हुक और बटन अक्सर टूट जाते थे, जिस कारण मम्मी भी जल्दबाजी मे उसे ही पहन लेती, पापा मम्मी के इस तरह कपड़े पहनकर रहने पर भी उन्हे अक्सर गालिया देते...... कभी कभी ब्लाउज के हुक बार-बार टूट जाने के कारण उन्हें मोटी भैंस बोलकर मम्मी को ताना देकर दुखी करते!!!

पांच छे साल पहले की बात है मेरी दोनों बहन हमारी बुआजी के यहाँ फतेहाबाद गयी हुई थी, वीकेंड था पापा घर आये हुए थे । उन्होंने हर बार की तरह ही इस वीकेंड पर भी रात के समय पापा को रिझाने के लिए शिफोन की सेक्सी नाइटी पहनी हुई थी, जिसमें उनके बदन का कामुक
एक एक अंग साफ़ साफ दिख रहा था। मै खाना खा कर अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रहा था।

रात के दस सवा दस का समय होगा
"" हर औरत ये अच्छी तरह से जानती है, पति को हमेशा दो ही चीज सबसे ज्यादा खुशी देती है, अच्छा भोजन और जबरदस्त चोदन ""
मेरी मम्मी ने भी पापा की पसंदीदा कटहल की तेज मसालेदार गरमा गर्म सब्जी बना कर उन्हें परोस कर उन्हें प्यार से खाना खिला रही थी। मुझे नही पता अचानक पापा को क्या हुआ उन्होंने गरमा गर्म सब्जी की बरतन मम्मी के छाती पर उलट दिया और गुस्से में गालिया देते हुए घर से चले गए।

मे दौड़ कर हाल मे गया, तो देखा की मम्मी उस गर्म कटहल की सब्जी से भीग गयी थी, और उन्हे बहुत पीड़ा हो रही थी. मेने तत्काल उन्हे फ्रीज़ के ठंडे पानी से गीला किया और उन्हे बाथरूम मे शावर मे खड़ा कर दिया. जल्दी से उन्हे चादर से ढककर मे उन्हे बेडरूम में ले गया, गर्म सब्जी से जलने के कारण और बदन पर पानी से भरे फफोले हो गये थे,

मम्मी का बदन छाती जाघो पर, ज़्यादा जला था शायद शिफोन की ट्रांसपेरेंट नाइटी में वह हिस्सा ज़्यादा देर गर्म सब्जी के टच मे रहा होगा. मम्मी तो कपड़े भी नही पहन पा रही थी। इसलिये मेने कहा की मे पूरे घर की खिड़की, दरवाजे, बंद कर देता हू, ताकि कोई देख ना पाये, और आप चाहे तो मे भी अपने आपको रूम को बंद कर लेता हूँ. तो मम्मी बोली की पागल ऐसी बात नही हे, मुझे तुझसे केसी शर्म????

इसलिये मैने जो एक ओपन गाउन था वही मम्मी को पहना दिया. लेकिन जब पानी से भरे फफोले बड़ने लगे, तो उन पर कपड़े से भी जलन हो रही थी। मम्मी गाउन पहनकर खुद बोरोलीन क्रीम लगाना चाहती थी लेकिन फफोले मे जलन होने के कारण यह संभव नही था, मम्मी मुझसे बोली की बेटा ज़रा मेरी बोरोलीन क्रीम लगा दो, मम्मी ने बदन पर इस समय एक कॉटन की चुन्नी डाल रखी थी. जिसमे से उनका गोरा,मांसल बदन देख मे स्तब्ध सा हो गया, उपर से मुझे उसे छूना भी था. खेर मे अपनी भावनाओ पर काबू कर मम्मी के बदन पर बोरोलीन क्रीम लगाने लगा. .....!

मम्मी ने अपने मोटे ताजे स्तनो को तो हाथो और नरम कपड़े से ढक रखा था, लेकिन उनका आकर मुझे साफ दिखाई पड रहा था, मम्मी के भारी-भारी स्तन इतनी उम्र मे भी ज़रा भी नही लटके थे और एकदम टाइट रहते थे...... मम्मी की कमर, जाघो पर भी पानी के फफोले हो रहे थे, जिस कारण वह ठीक से ना तो बेठ पा रही थी और नही लेट पा रही थी. मम्मी मुझसे शर्म के कारण अपने कुल्हो आदि पर क्रीम नही लगवा रही थी लेकिन मेरे द्वारा कहने पर वह राज़ी हो गयी और धीरे से पीठ के बल लेट गयी.

जिस कारण मुझे उनके स्तनो का खूबसूरत नज़ारा देखने को मिल ही गया, मम्मी ने तो अपने स्तनो को छुपाने की काफी कोशिश की लेकिन मुझे मम्मी के निपल देखने का सोभाग्य मिल ही गया.


मम्मी ने कुल्हो पर कपड़ा डाल रखा था, जिसे मेने आहिस्ता से हटाया और हल्की फुल्की बाते करते हुये माहोल नॉर्मल बनाने की कोशिश करता रहा, अब मम्मी मेरे सामने पूरी तरह नंगी थी, मम्मी की जाघो के जोड़ो के बीच भी फफोला हो रहा था, लेकिन मम्मी अपनी टाँगे ज़रा भी चोड़ी नही कर रही थी जिसके कारण मुझे अपनी जन्मस्थली नही दिखाई पड रही थी,

मेने बड़े आहिस्ता से बातो ही बातो मे मम्मी के दोनो पेर चोड़े कर दिये जिससे मुझे मम्मी की हल्के रेश्मि रुये दार चूत साफ दिखाई पड़ने लगी! मम्मी की चूत के पास का जो छोटा सा फफोला था वह फट गया, तो मेने उसका पानी कॉटन से पोछ कर बोरोलीन लगानी चाही तो मम्मी बोली की इसकी ऊपरी स्किन पकड़ कर धीरे से खीच दे, मैं बोला मम्मी मेरे हाथ गलत जगह लग गए और कही आप को लग गया तो तकलीफ़ होगी, तो मम्मी बोली की कोई बात नही, अब इतनी तकलीफ़ नही हे।

एक दो बार तो मम्मी ने अपनी जाघो को पूरा मेरे सामने खोल कर अपनी गुलाबी मांसल चूत का जो नज़ारा मुझे कराया, वो तो शायद पापा ने भी नही किया होगा, मम्मी खुद आगे होकर मुझसे अपनी जाघो कुल्हो, और स्तनो तक पर क्रीम लगवा रही थी.

ऐसा करने के पर मुझे मम्मी की चूत पर कई बार हाथ फेरने का मोका मिला, और कई बार तो मेने उसे जी भरकर दबाया. इस समय मम्मी अपनी आँखें बंद करके हल्की सी कराह रही थी. लेकिन मेने अपनी सभ्यता और सेवा भावना का परिचय देते हुये बिना ग़लती किये बोरोलीन क्रीम लगाई.

मम्मी ने मुझे ढेर सारे आशीर्वाद दिये और बोला की मैने शायद बहुत पुण्य कर्म किये होगे जो इस जीवन मे तेरे समान बेटा मिला.
फिर हम दोनो सो गये,

करीब रात के बारह या साढ़े बारह के करीब जोर जोर से हमारे घर के दरवाजे कोई पीट रहा था..... मैने खिड़की में से झाँकर देखा तो पापा खड़े थे,

((मेरे पापा को शक की बीमारी अलावा कोई और दोष नही है, जैसे शराब,जुआ, वेश्या गमन, कोई भी दूसरा ऐब नही है))

मैने तुरंत जल्दी से दरवाजे खोले और पापा अपने बेडरूम में चले गए। जैसे ही पापा ने मम्मी को नागनावस्था मै देखा तो चिल्ला कर बोले........

वाह रण्डी गण्ड मरी अपने ही बेटे से

मुह काला कर रही है. ..??????
Bhaut Bhadiya
:perfect:
:rock1:
Superb Update
:superb:
:wave:
👌

Please keep it up
👍

Waiting for next update
 

manu@84

Well-Known Member
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रेखा जी आप उच्च दर्जे की लेखिका होने के साथ ही एक अद्भुत सोच रखने वाली महिला भी है। इस अध्याय में ये आपने साबित कर दिया है, ये आपका अध्याय 8 था। जो किसी गर्भवती स्त्री के 8 वे महीने की गर्भा अवस्था की तरह था। 8 वा महिना स्त्री के लिए सबसे ज्यादा मुश्किल समय होता है, क्योकि आने वाले 9 वे महीने में स्त्री एक नये जीवन की शुरुआत करती है, वो एक माँ बनती है।

ठीक उसी तरह आपके 8 वे अध्याय का ये मुश्किल समय था, मुझे लगता है अब आने वाला अध्याय 9 आपकी कहानी में एक नये आयाम की शुरुआत होने वाली है। इसकी वजह आपकी अकल्पनीय incest lover की love स्टोरी है, जिसमे दोनों प्रेमी युगल incest रिश्तों के इर्द गिर्द रहकर अपनी love स्टोरी को एक नये आयाम तक ले जाने वाले है। जो आपकी कहानी के शीर्षक "शक और अधूरा सच" से समझ आता है.

कामदेव सर ने आपसे जो कहा वो सही था आप बेकार की कॉमेंट की बहस में ना पड़ कर अपनी अकल्पनीय, कहानी पर फोकस करे, वही लिखे जो आपको ठीक लगता है।

अब बात करते हैं इस अद्भुत update की जिस पर दो तीन दिनों से बहस छिड़ी हुई है। उसके लिए मै तो आपसे वो ही कहूंगा जो हमारे पड़ोसी देश के क्रिकेट खिलाड़ी मैच हारने के बाद कहते है "" सबसे पहले तो आपने घबराना नही है """ हाहा हाहा

आपने बहुत बढ़िया लिखा था किसी ने पूछा है कि रेखा को अरुण की फैमिली के बारे इस गरमा गर्म माहौल में नही पूछना चाहिए था तो भाई साहब रेखा ने अरुण की "बहनों के तीन भात"" वाली बात सुनकर उत्सुकता वश पूछा था और उसका वरन भी कहानी में है।
किसी ने अरुण की मम्मी के साथ हुयी घटना के बारे में कुछ कहा है....
भाई जी अरुण ने ये बात बोली है घटना 5-6 साल पुरानी है और उस समय अरुण की उम्र महज उतनी होगी जो xfourm पर नही लिख सकते है। और उस उम्र में 22 साल पहले अरुण माँ की नजर में बच्चा ही था। और उस घटना को वो अब रेखा को बता रहा है, जब वो दुनिया दारी समझ चुका है।

अंत में मै रेखा जी आपसे यही कहूंगा आपने एक pure सेक्सी शब्दो का प्रयोग किया था, वो बहुत अच्छा था। और हर एक आप जैसे बड़े लेखक को कुछ ना कुछ कहानी में प्रयोग करते रहना चाहिए।
एक मशहूर गीतकार ने एक गीत के माध्यम से एक प्रयोग करते हुए सवाल किया था "" चोली के पीछे क्या है "" उस पर उन्ही लोगो ने आपत्ति की थी जो इस गाने को सुनते थे, पर गैरो की बहन लुगाई के सामने।

Best of luck
 

Muniuma

सरयू सिंह
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सच कहूं रेखा जी तो मैं कोई लेखक नही हूं, लेकिन हां आपके प्रथम अध्याय से मेरे कॉमेंट देने तक की update बिल्कुल सच्ची लगता है पर जैसे ही आप अरुण के मां के बारे में शब्दो द्वारा चित्रण किए हो कहानी थोड़ी सी आपकी झूठी महसूस होने लगती है ।
 

Muniuma

सरयू सिंह
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कहानी को आगे ले जाने के लिए शुक्रिया
 
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