• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest शक या अधूरा सच( incest+adultery)

Status
Not open for further replies.

Rekha rani

Well-Known Member
2,485
10,526
159
मैने तुरंत जल्दी से दरवाजे खोले और पापा अपने बेडरूम में चले गए। जैसे ही पापा ने मम्मी को नागनावस्था मै देखा तो चिल्ला कर बोले........

वाह रण्डी गण्ड मरी अपने ही बेटे से

मुह काला कर रही है. ..??????

अध्याय -- 9 ---

आज पापा के मुह से मम्मी के लिए इस तरह गाली देना मुझसे बर्दाश्त नही हुआ और मैने पहली बार पापा पर चिल्लाते हुए गुस्से में बोला....... पापा आपको शर्म आनी चाहिए, मम्मी का नंगा जिस्म आपको दिख रहा है???? लेकिन मम्मी के नंगे जिस्म पर लगा मरहम नही दिख रहा है??? आप तो मम्मी को जखम देकर चले गए??? मैने मम्मी के जख्मो पर जरा मरहम क्या लगा दिया??? आपकी झांट सुलग गयी??

पापा निशब्द थे, शायद वो अपनी ही नजरो में शर्मिंदा थे उन्होंने आगे एक शब्द नहीं कहा अलमारी से अपना बैग निकाला और घर से चले गये........!

अरुण बोलते बोलते शांत हो गया, उसकी आँखों में आँसू भर आये, मुझसे उसका दर्द देखा नही गया....... हमारे बीच के दो फुट के फ़ासले को खतम कर मैने उसे आधे फुट की दूरी का फ़ासला बना कर अरुण की हथेली अपनी हाथो में ले कर बोली.......

""तेरे हर दुःख न अपना बना लु
तेरे हर गम न अपना बना लु
मने आंदि कोणी चोरी करनी।
वरना तेरे दिल न चुरा लू।""

अरुण ने मेरे शब्द सुनकर हल्का सा मुस्कुराहट देते हुए बिना सड़क पर आने जाने वालो के डर के मुझे कसकर अपनी सीने से चिपका कर आलिंगन में जकड़ लिया। मैं इस आकस्मिक हमले के लिए तैयार नहीं थी। उसके मजबूत बांहों में कैद हो कर रह गई और छटपटाने लगी।

“छोड़ो मुझे छोड़ो, यह क्या करते हो?” मैं छटपटते हुए धीरे धीरे से बोली। “देखिए ना अभी कही किसी ने देख लिया तो प्रोब्ल्म हो जायेगी। प्लीज मुझे छोड़ दीजिए।” अंदर ही अंदर अरुण की बांहों में पिघलती हुई मेरा विरोध जारी रहा।

मेरे बोलते हुए होंठो के बीच में ही उसने मेरा मुहं अपने मुहं से ढक लिया। मैं पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी कि मुझे इस वक्त अरुण को किस करना चाहिए या नहीं। इसलिए किस करने से महज एक सेकंड पहले मैंने अपना चेहरा हटा लिया। इस वजह से मेरी ठुड्डी उसकी नाक से टकरा गई और यह हम दोनों के लिए बेहद असहज कर देने वाली स्थिति थी। इसके बाद मुझे इतना संकोच हुआ कि अरुण से बिना कुछ कहे मैं फिर से दो फुट के फासले की दूरी पर बैठ गई।

((ज्यादातर लोग फर्स्ट किस से पहले कोई रिहर्सल या तैयारी नहीं कर पाते। मेरा साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। चुम्बन करना हवस की निशानी नही है। चुम्बन प्यार की निशानी है, न कि हवस की ।आप जिसे भी ज्यादा प्यार करते हो,तो संभावित हम उसे चुम्बन करते है। ऐक चुम्बन है, जिसे हम हवस की निशानी कह सकते है। वह है,लबो को चूमना.........))

लेकिन उसके बाद जो अजीब सा सन्नाटा था, वो मेरे इस चुम्बन से भी ज़्यादा बेकार था!! हालांकि ये सब कुछ चंद सेकंड के लिए हुआ था।

अजीब से सन्नाटे की चुप्पी दुकान के काउंटर पर खट खट की आवाज से टूटी... मैने अपनी कुर्सी पर उठकर देखा तो दो छोटे छोटे बच्चे हाथ में सिक्का लेकर काउंटर बजा रहे थे???? मैने कहा क्या चाहिए?? एक "चुटकी" (मीठी छुहारे वाली बच्चो की सुपारी) दे दो?? मैने उन्हें "चुटकी" (मीठी छुहारे वाली बच्चो की सुपारी) देकर रवाना किया!!

अरुण से हस्ती हुयी बोली आप भी बता दीजिये आपको क्या चाहिए???
वो अपने होंठो पर उंगली रखकर इशारे में बोला एक kiss. मुझे अरुण की शकल देखकर हँसी आ गयी... हाहा हाहा

सच कहु तो दिल ही दिल उसको किस करने की बहुत इच्छा हो रही थी, लेकिन मुझे अभी शराफत का ढोंग तो करना ही था। मैने उसे आँखे दिखाते हुए कातिल मुस्कान देकर कहा "चुप" अभी नही,
अरुण फिर बोला बस एक kiss...
मै फिर से आँख के इशारे से सड़क पर आते जाते लोगो की तरफ मुह कर के बोली
'इबब्ब करवा दु तन्ने चुम्मी, बड़ा आया. .. '

अरुण जिद पर अड़ गया फिर से बोला हे रेखड़नी बस एक kiss ओनली pls......
मै उसकी जिद भरी बातो से irritaate होते हुए बोली अभी ताऊ कही फिर से टपक गया तो हो जायेगा सत्यानाश.......... तुम पागल हो गये हो क्या...... पहले अपना इलाज कराओ......???
इलाज की बात सुनकर पट्ठा गाणा गाने लगा!!!
""ये रोग पुराना है जरा देर लगेगी""

गाणा सुनकर मुझे हँसी आ गयी...... हाहा
मै बोलि हाँ बाबा पक्का थोड़ा टाइम दे अपनी इस प्यारी रेखा को वो सब करेगी जो तू बोलेगा!!

(( उस दौर की एक कुंवारी लड़की जो चाहे कितनी भी प्यार करने, रोमांस करने की, किस करने की, यहाँ तक की चुदने की चाहत रखती हो, लेकिन ठीक समय, ठीक जगह, ठीक मौका, ठीक सुरक्षित, माहौल जब तक नही भांप लेगी वो हाँ नही करेगी) )

ठीक है फिर तो एक सिगरेट ही पिला दो??
मैने उसे सिगरेट दे दी!!
वो सिगरेट को अपनी पुरानी style में जलाते हुए बोला......
"" ये सिगरेट जो खून को जलाती है,
लेकिन मेरे मेहबूब से तो अच्छी है!
जलाने से पहले कम्बखत होठो
तक आती है """


मुझे अरुण की शायरी सुनकर जोरों से हँसी आ गयी........ हाहा, उससे बोली
छोरा घणां शायर हो रहा से.........
अरुण भी मुस्कुरा गया और मेरी तरफ बड़े प्यार से देखते हुए सिगरेट पीने लगा....!!


कुछ मिनिट ही बीते होंगे मैने एक बार फिर से अपनी कमीनी आदतवश उसके गांड में उंगली करते हुए बोली..... अरुण उस रात के बाद तुम्हारे पापा के जाने के बाद क्या हुआ ????


अरुण शायद मेरी आदत समझ चुका था, वो जान गया था मुझे लोगों के फटे मे टांग देने की गंदी (गांड में उंगली) आदत है, इसलिए वो तैयार था और हस्ते हुए बोला....
रेखा तेरे को मास्टरनी होना चाहिए था...रह रह कर सवाल जो पूछती है????
मै थोड़ी सी चिड़ते हुए हँसी और बोली नही बताना तो मत बताओ मै कोणी जबरदस्ती थोड़े ही कर रही हूँ....!!!
और सड़क की तरफ देखने लगी।


"लड़को की यही कमजोरी है जरा सी लड़की मुह क्या फुला ले तो वो उसे तुरंत मनाने लग जाते है!"


अरुण सिगरेट का कश लेते हुए बोला बताता हूँ रेखड़ी सुन........ पापा के जाने के बाद मेरा और मम्मी का मूड खराब हो चुका था, मम्मी ने कहा बेटा जा तू अपने कमरे में मै ठीक हू..... और मै अपने कमरे में चला गया! सुबह तक मम्मी के काफ़ी सारे फफोले साफ हो गये, शायद बोरोलीन क्रीम एक एंटीसेप्टिक मेडिसिन की तरह काम कर रही थी। मम्मी की स्किन भी ठीक सी हो रही थी लेकिन नई स्किन आने तक उन्हे कपड़े पहनने मे तकलीफ़ हो रही थी, लेकिन उन्होने मेरे मना करने के बावजूद घर का काम काज संभाल लिया,


हम दोनों ही पापा की खबर लेने के लिए टेंशन में थे, आखिर वो कहाँ गये है??? हमने अपने टेलीफोन से जान पचाण् वालो से बात की पर पापा की कोई खबर नही मिली। दोपहर से शाम होने को आयी.....
और हमारे फोन की रिंग बजी.... मैने फोन पिक किया सामने से पापा की आवाज आई!! वो मुझसे माफी मांग रहे थे, उनकी आवाज में भारीपन था, वो बोले में ठीक हू, और देल्ही में ही हू,....
तेरी मम्मी कैसी है????
मैने कहा अब पहले से ठीक है, क्रीम से जखम पर आराम मिल रहा है! आपकी बात कराउ क्या मम्मी से????

पापा बोले नही बेटा मैंने तेरी मम्मी को जो जखम दिये है, उसके बाद से मै उनसे बात करने का अधिकार खो चुका हूँ.....
मै तुझे जो बता रहा हूँ वो तुम अपनी मम्मी से बोल देना! उनसे कहना............
"" मै उन पर शक नही करता हूँ, मै तो उनसे दिल ओ जान से प्यार करता हूँ, बस मेरी ये ही सबसे बड़ी गलती है, मै जब उन्हे किसी से बात करते हुए, हस्ते हुए, मजाक करते हुए, देखता हूँ तो ऐसा लगता है, कि वो मुझसे दूर जा रही है, वो मेरे बिना भी खुश रह सकती है, और मुझे नही पता ना जाने क्या हो जाता हैं, मै उनको खोने के डर से उन पर चिल्लाने लगता हू...... अब इसे मेरा पागलपन समझे वो या मेरा प्यार........ तेरी मम्मी को खोने का ...........""डर""........... ही मेरा......... शक....... है ।

"" कोई भी हद से ज्यादा प्यार करने वाला हमेशा मेरी तरह शक ही करता है, हर शक के पीछे की वजह अधूरा सच ही होता है, जिसे वो जानने की कोशिश नही करता है, क्योकि वो अधूरा सच शक करने वाले की कमजोरी होती है....... चाहे वो कमजोरी उसकी पैसे की कमी, उसकी रंग, रूप, सुंदरता की कमी, उसके बिस्तर पर performance की कमी, उसकी बीवी की इच्छाओ को पूरा ना कर पाने की कमी.....

शक करने वाला अपनी कमियों खामियों को नही सुधारता बल्कि अपनी पत्नी पर शक करता है, उसको हमेशा यही डर लगता है कि उसकी ये कमियाँ अगर उसकी पत्नी को पता चल गयी तो वो किसी और के साथ चली जायेगी , और पत्नी को पता तब चलेगा जब वो पति के अलावा किसी और से बात करेगी, हँसेगी...... तभी तो वो compare करेगी और dicide करेगी who is the best???

बेटा मै तेरा बाप हू शायद तुम जब बड़े होंगे तब मेरी शक करने की वजह ठीक से समझ आयेगी। मम्मी से बस ये कहना कि एक गाना वो अक्सर गुनगुनाती थी..... काश उस गाणे की गहराई समझ जाये......

""एक पल भी तुम्हे तन्हा छोड़ दू कैसे??
किसी सौतन से पाला ना पड़ जाये""

ये गाणे की लाइन सुनकर मेरी हँसी छूट गयी...... हाहा हाहा....... पता नही मेरे मुह फट होने की एक और बुरी आदत की वजह से निकल पड़ा..... अरुण थारा बाबा बडा ठरकी है...............लुगाई के पल्लू से बन्दा रहता है..........!!

मेरी ये हास्यप्रद बात सुनकर अरुण चिड़ता हुआ बोला रेखा तू बोलने से पहले सोचती नही है................ जो मुह में आया बक दिया........ हिहि हिहि बस हँसने के अलावा कभी और चीज पर ध्यान दिया करो????

ऐसा क्या बोल दी मै जो इतने भड़क रहे हो??? और क्या चीज चाहिए तुम्हे बोलो तो सही??? मै भी अरुण से तुनकते हुए बोली.......?
(((मुझे ये बात समझ आ गयी थी, पैर के घूटने हमेशा पेट की तरफ क्यो झुकते है....??.
अरुण के लिए अपने पापा मुझसे ज्यादा important थे, उसने मेरी छोटी सी मजाक वाली बात को दिल से जो लगा लिया)))

अरुण बोला मै इतनी देर से बैठा हूँ तुमने मुझे पानी तक पूछा??? मै उसको पानी जग देते हुए बोली...... लो पी लो..... बुझा लो अपनी प्यास.....?

वो पानी पीकर बोला एक चुयगम दे दो?? कोनसी??? Boomer या big babool
मै बोली???
जो तुम्हे पसंद हो??? वो बोला...??
मैने एक boomer निकाली और उसे दे दी।
मेरा मूड ऑफ हो गया था और मै उठी अपनी गोद में रखा हुआ अरुण का गिफ्ट कमरे में रखने के लिए जाने लगी.......

मुझे जाता देख अरुण मुस्कुराते हुए बोला हे रेखड़ी किधर???? मै दरवाजे के पर डली पर्दा की आड़ में से मुह बाहर निकाल कर बोली ये तुम्हारा तोहफा रख आउ!!
वो बोला एक मिनिट सुन तो सही....??
उसने खाली सड़क की तरफ देखा और पर्दे के पास आ कर खड़ा हो गया.......

इस से पहले की मैं कुछ समझ पाती और कुछ करती, उसने अपनी जीभ मेरे मुहं में डाली और उसको तेज़ से अन्दर बाहर करने लगा। उसकी जीभ पागलपन से मेरे मुहं में अन्दर बाहर हो रही थी। मैंने सोचा था की मेरा पहला चुम्बन थोडा धीरे धीरे होगा और उसका हर पल का मैं आनंद लुंगी, लेकिन हुआ बिलकुल उल्टा। यह एहसास था बहुत बेकार और मैं चुंबन के लिए बिलकुल भी तैयार और उतेजित नहीं थी। लेकिन, जैसे ही मैं उस झटके से बाहर निकली, मैंने उसे हल्का सा धक्का दिया और घर के अंदर चली गई. ....... उस वक्त अरुण के मुंह में च्युइंग गम था। जब हमारी किस पूरी हुई तो हम दोनों के मुंह में च्युइंग गम के छोटे-छोटे टुकड़े थे।

((एक सलाह : अगर आपको जीभ को इस्तेमाल करना नहीं आता, तो अपनी जीभ अपने पास ही रखें। हाहा हाहा )))

""मुझे अरुण पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन मेरे गुस्से पर अरुण का तोहफा भारी पड़ रहा था।"""

अपने कमरे पहुँच कर सबसे पहले अरुण के तोहफे को अपने स्कूल बैग में रख दिया! और शीशे में अपने आपको देखकर शर्मा गयी.......... मै एक सोच में डूबी थी.... मेरा पहला चुंबन ऐसा होगा जिसकी मैने सपने में भी कल्पना नही की थी.......?? मुझे अरुण से शिकायत और शिकवा दोनों ही थे, वो मुझे एक बार इशारा कर देता तो उसका क्या बिगड़ जाता???

((चुम्बन शब्द को सुनते हीअनायास ही एक मुस्कान होठों पर बिखर जाती है । खास तौर से यह शब्द मेरे लिए बहुत ही प्रिय है मुझे अरुण की इस हालत पर एक शायरी याद आती है) )

""और भला क्या इश्क़ का मारा करता है
बस मेरा ही नाम पुकारा करता है
चार दिनों में केवल दो चुम्बन
इतने कम में कौन गुजारा करता है""

तभी मम्मी की आवाज से मेरी सोच टूटी, रेखड़ी ओ छोरी सुनील आ गया क्या??? नही मम्मी, मै कमरे से बाहर निकलते हुए मम्मी से बोलि........

मम्मी --- दुकान पर कौन है??
मै -- सुनील भैया के दोस्त अरुण है.....
मम्मी --- पता नही कब तक आयेगा सुनील? ??
भूख लगी है, तुझे कुछ खाना हो तो ले जा दुकान पर बैठ कर खा लेना???
नही मम्मी...... कहते हुए मै वापस दुकान पर चली गई...!!!
अरुण किसी ग्राहक को दिल बाग गुटखा की पुड़िया दे कर पैसे ले रहा था....!!

मै जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गयी.... मुझे समझ नही आ रहा था मै उसको क्या बोलू????
तभी अरुण ने ग्राहक से लिए पैसे मेरे आँखों के सामने काउंटर के ऊपर रख दिये!!!!!
हम दोनो ही खामोश थे.... ये खामोशी भरे पल बहुत कुछ पूछ रहे थे..... अभी जो हुआ वो सही था या गलत??? क्या उससे ज्यादा भी कुछ हो सकता था??? पांच मिनिट तक हम यू ही खामोश बैठे रहे...........
तभी दुकान के सामने एक पानी पूरी का ठेला वाला खड़ा हो गया,।

अरुण मुझसे बोला रेखा चल पानी पूरी खाते है........................??
मुझे नही खाना मै नखरे दिखाते हुए बोली!
खा.......ले..... राणी......वो फिर से मुस्कराता हुआ बोला!!!
नही खाना मुझे.........तुम्हे खाना हो तो खा लो...........मै फिर से नखरे दिखाती हुयी बोली!!

अचानक से अरुण ने मेरा हाथ पकड़ लिया.........!! चल ना....... साथ साथ खाते है......??

यो के करण लाग रा है, मरवावे गा के
ताऊ ने देख लिया तो दोनो की सामत आनी से.......
दूर हट ले......
खुद ने तो मरना है मेरी भी देह तुड़वा वे गां,
मै हस्ती हुयी बोली............ हाहाहा


ठीक है तो फिर में अकेला ही खा लेता हूँ, ये केहकर अरुण ठेले पर जाकर खड़ा हो गया........ और ठेले वाले से हँस हँस कर बातें करने लगा जैसे उसका पुराना याराना हो!!
(( प्रेम में डूबा लड़का, प्रेमिका के मोहल्ले के ठेले वालो तक से दोस्ती कर लेता है...... हाहा हाहा))))


ठेले वाला मेरी तरफ देखकर अरुण से कुछ कह रहा था........ उसकी बात सुनकर अरुण दुकान पर आ गया और काउंटर पर रखे जग में से बचा हुआ पानी फैला कर उसमें जलजीरा का पानी और पानी पूरी पैक करवा कर पैसे देकर वापस दुकान में आ गया.....ठेला वाला चला जाता है....


रेखा अब तो साथ साथ खा सकती है??क्या यहाँ भी ताऊ आकर कूट देगा.....?थैली में से एक पानी पूरी जलजीरे में डूबा कर खाते हुए......!! मुझसे हस्ते हुए बोला........ हाहा हाहा


यहाँ ना कूटने दूँगी मै किसी को भी तुझे...मै
उसके ठुड्डी पर जलजीरे के टपकते हुए पानी को पोछते हुए कातिल मुस्कान देते हुए बोली..........
"वो मेरी इस अदा पर जैसे तो फिदा ही हो गया" मारे खुशी के वो मुझसे बोला रेखा चूमने को दिल कर रहा है मेरा.......!!umma, umma, (kiss)
हम दोनों प्यार, रोमांस के साथ साथ पानी पूरी खाने लगे....... ! ! !


थोड़ी सी देर बाद मुझे पायलो की चलती हुई आवाज सुनाई दी, मै समझ गयी मम्मी आ रही है........ मैंने अरुण को इशारा किया और हम दुकान की मर्यादित फ़ासले की दूरी से बैठ गये। मम्मी को देखकर अरुण कुर्सी से खड़ा हो गया, और मम्मी को कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा करते हुए बोला ऑन्टी नमस्ते........ लीजिये आप भी पानी पूरी खाइये.... ?????
मम्मी हँसकर कुर्सी पर बैठते हुए बोली.... ना छोरा खाने का टेम हो गया से.... सुनील आता ही होगा फिर साथ में खाना खाते है.....!!
अरे आंटी कोनसी पेट भर खाने के लिए बोल रहा हूँ मै..... दस बारह ही तो है.... आप भी खा कर मुह का स्वाद बदलिये..... मै तो खा चुका हूँ..... बस हाथ धोना है.....!!
(("" पानी पूरी (गोल गप्पे) लड़की या औरत सबकी पंसदीदा होती हैं, जलजीरे की खुशबू से ही मुह में पानी में आ जाता है ""))


मम्मी के मुह में भी पानी आ गया था, वो तुरंत ही एक गोल गप्पा जग में जलजीरे से भर कर मुह में रखते हुए अरुण से बोली छोरा ऊपर छत पर चला जा..... बाथरूम में जाकर हाथ धो ले....!!!


दूसरा गोल गप्पा मुह रखते हुए मुझसे बोली रेखड़ी तुझे और खाना है तो खा ले..... नही तो छत पर से आलू के पापड़ सूख गए होंगे उन्हे बटोर ले आ। और दो चार किचिन में जाकर आंच पर सेख ले...... फिर मै खाना लगाती हू........!!!


मेरी तो मानो मन की मुराद ही पूरी हो गयी ये सुनकर...........

दोपहर के लगभग दो बजे का समय था, आधी छत पर धूप और आधी पर छाँव पसरी थी, आसपास की सारी छ्ते सुनसान, वीरान पड़ी थी!! मै पापड़ बटोरती हुयी बाथरूम के अंदर घुसे अरुण का दीदार करने का इंतजार कर रही थी..........!!!!


((हमारे बाथरूम में लकड़ी के पुराने जमाने के दरवाजे लगे है, जिनकी एक खासियत है उनके दरवाजे की अगर अंदर से सांकर ना लगाओ तो आधे ज्यादा खुले रहते है। ))
""अरुण ने वो ही गलती कर दी थी........""


मै काँपती टाँगो से चलती हुई बाथरूम के दरवाजे के पास पहुची और बाथरूम के अंदर नजर गयी तो मुझे सामने से अरुण का लिंग सोई हुई अवस्था में ही करीब छ: इंच लंबा मूतता दिख रहा था। ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप सोया हुआ है और उसके ऊपर झुर्रियों भरा चमड़े का आवरण ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप अपनी केंचुली छोड़ने वाला हो। उसका अंडकोश भी काफी बड़ा था करीब आधा किलो के बांट जैसा।


मै बिना किसी लाज शर्म के चुपचाप अरुण के लिंग को देख रही थी, मगर मैं क्यों ऐसा कर रही थी ये शायद मैं भी नहीं जानती थी शायद कहीं ना कहीं मेरे जिस्म को एक मर्दाने शरीर की चाहत थी.......और वो भूक को मिटाने के लिए चाहे मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े मुझे उसके खातिर सब मंज़ूर था............मैं फिर बाथरूम के दरवाजे के पास से हट गयी और छत पर रखी पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर आकर बैठ गयी.........


मैने अपने सीने से चुनरी हटा दी और उसे एक साइड पर रख दिया......इस वक़्त मैं सूट और पजामी में थी.......जो हमेशा की तरह टाइट थी और मेरे बदन से पूरी तरह चिपकी हुई थी........जैसे ही मेरे सीने से चुनरी हटी मेरी बड़ी बड़ी छातियाँ मचल कर बाहर को आने लगी......दुपट्टा हट जाने से मेरा क्लीवेज काफ़ी हद तक बाहर की ओर दिखाई दे रहा था.....वैसे तो अरुण इस वक्त बाथरूम में था मगर मुझे इस हाल में वो मुझे देख लेता तो कहीं ना कहीं उसके दिल में मेरे लिए भी कुछ तो अरमान जनम ले ही लेते......


थोड़ी देर बाद अरुण पेशाब कर के बाथरूम से बाहर आ गया। मेरी नज़र जब अरुण के चेहरे पर पड़ी तो वो भी मुझे एक पल देखने लगा........मैं उसकी आँखों में आँखें डाले देखती रही जैसे मैं उससे ये पूछ रही थी कि वो इतना अच्छा मौका अपने हाथ से क्यों जाने दे रहा है.........???


अरुण मेरे पास आकर खड़ा होकर बोला सॉरी रेखा............मैने जाने अंजाने में तुम्हारे साथ कुछ ज़्यादती की.......
मै किसी और ही सोच में थी..... और हँस कर बोली its ok dear....... रेखा, तूने सब कुछ देख लिया ना?” अरुण ने अगला सवाल किया।


“हां, वैसे तो काफी प्रभावशाली है, देखते हैं उसकी अंतिम रूपरेखा क्या होती है।” मैने आँख मारते हुए हँस कर कहा। हाहा हाहा


“अंतिम रूपरेखा कैसी होगी वह बाद की बात है। फिलहाल तो हमें रेखा का रूप दिखा दे।”


मै कुछ बोलती इससे पहले कि अरुण ने बिना किसी पूर्वाभास दिए ही मुझे अपनी बांहों में दबोच लिया और मुझ पर चुंबनों की झड़ी लगाने लगा, बिल्कुल फिल्मी अंदाज में। “आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह मम्मी, छोड़िए ना मुझे प्लीज। प्लीज मुझे जाने दीजिए।” मैं अब तक गरम हो चुकी थी लेकिन मुझे फिर से शराफत का ढोंग तो करना ही था। मेरी योनी पानी छोड़ने लगी थी और पैंटी योनी के लसलसे द्रव्य से भीग चुकी थी। मेरे उरोज उत्तेजना के मारे सख्त हो कर तन गए थे।

मै किसी छोटे बच्चे की तरह अपने अरुण की बाहो में ऐसे समा गई जैसे अब मुझे अपने अरुण से कोई अलग नहीं कर सकता था | मेरे स्तन पूरी तरह से दबकर चपटे अकार में फैले हुए थे जिससे अरुण की ताकत का अंदाज मुझ को हो रहा था | ऐसा लग रहा था की अगर अरुण ने अपना दबाव थोड़ा सा भी और बढ़ाया तो मेरे स्तन कही फट न जाए | मैने अपनी झुकी हुई निगाहो को अपने अरुण की निगाहो से मिलाया और अपना मुँह हलके से खोल दिया | ये देखकर अरुण की दिल की धड़कने बढ़ गई , अरुण का मुँह अपने आप खुल गया और आश्चर्य उसके चेहरे पर साफ़ साफ़ दिखने लगा | अरुण ने मेरे खुले मुँह में अपनी जीभ डाली और मेरी जीभ को जकड कर चूसने लगा | किस इतना जोरदार था की मेरे मुँह से लार की कुछ बुँदे मेरे सूट से बाहर झांकते स्तनों पे आ गिरी | मेरा पूरा बदन काँप रहा था और अरुण ने मेरी कमर को अपने हाथ से पकड़ रखा था ताकि मै पीछे न जा सकूँ | किस २ मिनट तक चला अरुण ने आखिरकार हार मान ली और अपनी जीभ अंदर लेते हुए अपने हाथो को मेरी कमर से हटा दिया | मै तो जैसे दिवास्वप्न से बाहर निकली |

अरुण ने मेरे गाल पर हलके से किस किया और कान में इक बात कही जिसे मैने अपनी गर्दन हाँ में हिलाकर स्वीकार कर लिया |
इसके बाद अरुण को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया मेरे लिए। अब अरुण मुझे और अधिक उत्तेजित करने के लिए फिर से मेेेरे होठों को चूमने लगा, मेरे मुह में अपनी जीभ डालकर चुभलाने लगा। उसके मजबूत पंजे मेरे उरोजों को मेरे कुर्ती के ऊपर से सहला रहे थे, हल्के हल्के दबा रहे थे।

मैं बनावटी असहाय भाव और बनावटी बेबसी का नाटक करती हुई छटपटाती रही लेकिन अरुण भी माहिर खिलाड़ी था, उसे आभास हो गया था कि मैं उत्तेजित हो चुकी हूं क्योंकि अनजाने में उत्तेजना के आवेग में मैं अरुण की जीभ को चूसने लग गई थी।

धीरे धीरे अरुण का एक हाथ मेरी पजामी के अंदर योनी तक पहुंच गया और अपनी हथेली से मेरी योनी को सहलाने लगा। उसकी उंगलियां मेरी योनी के भगांकुर को छेड़ने लगीं तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरी वासना की भूख अपने चरम पर पहुंच गई, कामुकता की तरंगें मेरे शरीर में बिजली बन कर दौड़ने लगीं। मैं तो पागल ही हो गई थी। मेरी आंखें बंद हो गयी थीं।

“आह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह, मार ही डालोगे क्या? अब …..” मैं बेसाख्ता बोल पड़ी।

अभी मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अरुण बोल पड़ा “अब क्या? तू तो अभी से मरने की बात कर रही है, अरुण के गठे हुए कसरती शरीर और उसके मजबूत बांहों के बंधन में मुझे अद्वितीय सुख का अहसास हो रहा था मेरी स्थिति अरुण ने ऐसी कर दी थी कि अब मैं सिर्फ पुरुष संसर्ग के लिए मरी जा रही थी। वह पुरुष, कैसा भी हो , मोटा, पतला, सुंदर, कुरूप, बेढब या लंगड़ा लूला, मुझे परवाह नहीं थी। वह मेेेरे साथ जो कुछ कर रहा था वह बिल्कुल फिल्मी अंदाज में था, बिल्कुल भावहीन, एकदम किसी हुक्म के गुलाम की तरह।

अंततः उस समय मेरी आश्चर्य का पारावार न रहा जब उतावलेपन और आनन फानन में मैने अरुण के जीन्स को मय अंडरवियर केले के छिलके की तरह उसके पैरों के बंधन से आजाद कर और किसी भूखी "चुप छिनाल" की तरह अरुण के सोये हुए छ: इंच लिंग पर टूट पड़ी और गप्प से अपने मुंह में ले लिया। फिर मैं लग गई जी जान से उनके लिंग को चपाचप चूसने ताकि वह जल्द से जल्द खड़ा हो सके और मेरी प्यासी योनी की धधकती ज्वाला को बुझा सके।

मेरे उतावलेपन को देख कर आह ओह कितनी मस्त है रे तू। कहते हुए दोनों हाथ से मेरी कुर्ती के ऊपर से चूचियां दबाने लगा । करीब दो मिनट बाद ही मैंने महसूस किया कि अरुण का लिंग सख्त , बड़ा , लंबा हो रहा है और मोटा भी। अगले एक मिनट बाद तो मैं उसके लिंग को मुंह में रखने में असमर्थ हो गई। जैसे ही मैंने उसके लिंग को चूसना छोड़ कर मुह से निकाला मैं चौंक उठी। हे प्रभू ! इतना भयावह और दहशतनाक मंजर था। मेरे चेहरे के सामने करीब साढ़े सात इंच लंबा और करीब तीन इंच मोटा किसी काले सांप की तरह फनफनाता अरुण का अमानवीय लिंग मेरे मुह के लार से लिथड़ा, अपने पूरे जलाल के साथ झूम रहा था।

""कोई कितनी भी बड़ी "चुप छिनाल" हो, ऐसे लिंग का दीदार ही काफी था भयभीत करने के लिए। मैं कोई अपवाद तो थी नहीं, उस दहशतनाक मंजर को देख कर मेरी भी घिग्घी बंध गई।""

“हाय राम, इत्ता बड़ा!” मेरे मुंह से अनायास निकल पड़ा। मैं दो कदम पीछे हट गई।

“डर मत पगली, कुछ नहीं होगा! तुम करो जो करना है, तू घबरा मत, तुझमें दम है। अरुण मुझे डरा रहा था कि हौसला बढ़ा रहा था, मुझे समझ नहीं आ रहा था।

“नहीं नहीं प्लीज मैं मर जाऊंगी।” मैं घबरा कर बोली। उसने अपने मूसल जैसे लिंग को पकड़कर मेरे मुह में जबदस्ती ठूसने लगा...
लिंग का आधा टोपा ही मेरे मुह में घुसा था, उसने अपने हाथ लिंग से हटा लिए..... और आधे लिंग के टोपा को मुह में फासाये असहाय कुर्सी पर बैठी थी........

तभी एकदम जोर जोर से तालियों के साथ हँसी की गड़गड़ाहट हमारे कानों में गूजने लगी........ हमारी नजर उधर गयी..... तो हमारी आँखे खुली रह गई............ हम दंग रह गये........ सामने मेरी सगी बहन अंजू दीदी खिलखिला कर ताली बजाते हुए
बोली -------
"" वाह रेखा रानी ""
"" मा खावे पताशा बेटी दिखावे तमाशा ""
"" मम्मी के मुह में गोलगप्पा.......... बेटी के मुह में लंड का टोपा ""
 
Last edited:

Rekha rani

Well-Known Member
2,485
10,526
159
अच्छा अधिवक्ता साथ में अच्छा श्रोता और लेखक भी होता है।

बस कई बार संदूक के बाहर सोचने का सामर्थ नही कर पाता।

रेखा जी ने कर दिया।
Aa gai rama ab aayega maza

शब्दो का क्या ही गजब का इस्तेमाल करती है आप। बहुत ही बेहतरीन लिखा आपने।
रेखा गणित के साथ रेखा का लाजवाब सामंजस्य बैठाया आपने।
यह भी बिल्कुल सही कहा , पड़ोस से बढ़कर दूसरा सी. सी. टी. वी. कैमरा नही।
पड़ोस मे रहने के कारण लड़के और लड़कियां प्रायः नैन मटक्का कर ही बैठते है और उसके बाद फिर उनकी लव स्टोरी शुरू हो जाती है। लेकिन अधिकांशतः यह प्रेम कहानी मझधार मे ही दम तोड़ देती है और फिर यही लड़के उस लड़की की शादी के वक्त भाई का फर्ज निभाते हुए दुल्हे पक्ष की सेवा करते नजर आते है।
अब पड़ोसी है तो लड़की की शादी मे काम धाम तो करने ही पड़ेगे न !
बहुत हास्यास्पद स्थिति बन जाती है उन बेचारे लड़कों के साथ।

अरूण के पिताजी काफी शक्की मिजाज के है और इसलिए अपनी पत्नी को जब तब प्रताड़ित करते रहते है।
सबसे खराब लक्षण ही होता है अपनी बीवी के साथ मारपीट करना । वो कोई नशा वैगेरह नही करते है जो कि काफी अच्छी बात है लेकिन इस का मतलब यह नही हुआ कि शक के बुनियाद पर अपनी पत्नि पर हाथ उठाए !
बहुत लोग है जो नशे के लत के बावजूद भी अपनी उतरदायित्व सही तरह से निभाते है।
अरूण के फादर संकीर्ण और ओछी मानसिकता के इंसान लगे मुझे। और क्रूर भी।
अरूण ने एक्सिडेंटली अपनी मां के प्राइवेट पार्ट को न सिर्फ देखा बल्कि महसूस भी किया और वो भी उसकी मां के जानकारी मे आए हुए।
अब पता नही , यहां से उनके लाइफ मे क्या परिवर्तन आता है ! या तो मेडिकल सम्बन्धि चीजे समझदार इग्नोर कर देंगे या वो एक दूसरे को एक जवान मर्द एवं स्त्री समझदार देखना शुरू कर देंगे।

बहुत ही शानदार और जबरदस्त अपडेट था यह।
फोरम एडल्ट का है और कहानी भी एडल्ट एवं इन्सेस्ट पर आधारित है इसलिए बिना संकोच किए अपनी पटकथा के अनुसार कहानी लिखती जाएं रेखा जी !

Outstanding & Amazing & brilliant.

Are dear aap to aisa likhti hain ki apan logo ko aapse sikhne ki zarurat hai...aur ye koi byang ya mazaak ki baat nahi hai balki real me kah raha hu main... :declare:

wow Rekha ka role as a young girl bahut hi bold develop hua hai

story becoming curiously interesting

Bhaut Bhadiya
:perfect:
:rock1:
Superb Update
:superb:
:wave:
👌

Please keep it up
👍

Waiting for next update

Different way if writing

You are right bro
But bf ka gf ke sath first convesation hai to ye arun ka kuch jyada ho gya tha Rekha ke sath ।।।

Agree with thst point,

भाई साहब रेखा ने अरुण की "बहनों के तीन भात"" वाली बात सुनकर उत्सुकता वश पूछा था और उसका वरन भी कहानी में है।
अरुण की मम्मी के साथ हुयी घटना के बारे में कुछ कहा है....
भाई जी अरुण ने ये बात बोली है घटना 5-6 साल पुरानी है और उस समय अरुण की उम्र महज उतनी होगी जो xfourm पर नही लिख सकते है। और उस उम्र में 22 साल पहले अरुण माँ की नजर में बच्चा ही था। और उस घटना को वो अब रेखा को बता रहा है, जब वो दुनिया दारी समझ चुका है।

लेखिका महोदया क्या आज अपडेट आएगा
Update posted
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
19,149
39,490
259
मैने तुरंत जल्दी से दरवाजे खोले और पापा अपने बेडरूम में चले गए। जैसे ही पापा ने मम्मी को नागनावस्था मै देखा तो चिल्ला कर बोले........

वाह रण्डी गण्ड मरी अपने ही बेटे से

मुह काला कर रही है. ..??????

अध्याय -- 9 ---

आज पापा के मुह से मम्मी के लिए इस तरह गाली देना मुझसे बर्दाश्त नही हुआ और मैने पहली बार पापा पर चिल्लाते हुए गुस्से में बोला....... पापा आपको शर्म आनी चाहिए, मम्मी का नंगा जिस्म आपको दिख रहा है???? लेकिन मम्मी के नंगे जिस्म पर लगा मरहम नही दिख रहा है??? आप तो मम्मी को जखम देकर चले गए??? मैने मम्मी के जख्मो पर जरा मरहम क्या लगा दिया??? आपकी झांट सुलग गयी??

पापा निशब्द थे, शायद वो अपनी ही नजरो में शर्मिंदा थे उन्होंने आगे एक शब्द नहीं कहा अलमारी से अपना बैग निकाला और घर से चले गये........!

अरुण बोलते बोलते शांत हो गया, उसकी आँखों में आँसू भर आये, मुझसे उसका दर्द देखा नही गया....... हमारे बीच के दो फुट के फ़ासले को खतम कर मैने उसे आधे फुट की दूरी का फ़ासला बना कर अरुण की हथेली अपनी हाथो में ले कर बोली.......

""तेरे हर दुःख न अपना बना लु
तेरे हर गम न अपना बना लु
मने आंदि कोणी चोरी करनी।
वरना तेरे दिल न चुरा लू।""

अरुण ने मेरे शब्द सुनकर हल्का सा मुस्कुराहट देते हुए बिना सड़क पर आने जाने वालो के डर के मुझे कसकर अपनी सीने से चिपका कर आलिंगन में जकड़ लिया। मैं इस आकस्मिक हमले के लिए तैयार नहीं थी। उसके मजबूत बांहों में कैद हो कर रह गई और छटपटाने लगी।

“छोड़ो मुझे छोड़ो, यह क्या करते हो?” मैं छटपटते हुए धीरे धीरे से बोली। “देखिए ना अभी कही किसी ने देख लिया तो प्रोब्ल्म हो जायेगी। प्लीज मुझे छोड़ दीजिए।” अंदर ही अंदर अरुण की बांहों में पिघलती हुई मेरा विरोध जारी रहा।

मेरे बोलते हुए होंठो के बीच में ही उसने मेरा मुहं अपने मुहं से ढक लिया। मैं पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी कि मुझे इस वक्त अरुण को किस करना चाहिए या नहीं। इसलिए किस करने से महज एक सेकंड पहले मैंने अपना चेहरा हटा लिया। इस वजह से मेरी ठुड्डी उसकी नाक से टकरा गई और यह हम दोनों के लिए बेहद असहज कर देने वाली स्थिति थी। इसके बाद मुझे इतना संकोच हुआ कि अरुण से बिना कुछ कहे मैं फिर से दो फुट के फासले की दूरी पर बैठ गई।

((ज्यादातर लोग फर्स्ट किस से पहले कोई रिहर्सल या तैयारी नहीं कर पाते। मेरा साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। चुम्बन करना हवस की निशानी नही है। चुम्बन प्यार की निशानी है, न कि हवस की ।आप जिसे भी ज्यादा प्यार करते हो,तो संभावित हम उसे चुम्बन करते है। ऐक चुम्बन है, जिसे हम हवस की निशानी कह सकते है। वह है,लबो को चूमना.........))

लेकिन उसके बाद जो अजीब सा सन्नाटा था, वो मेरे इस चुम्बन से भी ज़्यादा बेकार था!! हालांकि ये सब कुछ चंद सेकंड के लिए हुआ था।

अजीब से सन्नाटे की चुप्पी दुकान के काउंटर पर खट खट की आवाज से टूटी... मैने अपनी कुर्सी पर उठकर देखा तो दो छोटे छोटे बच्चे हाथ में सिक्का लेकर काउंटर बजा रहे थे???? मैने कहा क्या चाहिए?? एक "चुटकी" (मीठी छुहारे वाली बच्चो की सुपारी) दे दो?? मैने उन्हें "चुटकी" (मीठी छुहारे वाली बच्चो की सुपारी) देकर रवाना किया!!

अरुण से हस्ती हुयी बोली आप भी बता दीजिये आपको क्या चाहिए???
वो अपने होंठो पर उंगली रखकर इशारे में बोला एक kiss. मुझे अरुण की शकल देखकर हँसी आ गयी... हाहा हाहा

सच कहु तो दिल ही दिल उसको किस करने की बहुत इच्छा हो रही थी, लेकिन मुझे अभी शराफत का ढोंग तो करना ही था। मैने उसे आँखे दिखाते हुए कातिल मुस्कान देकर कहा "चुप" अभी नही,
अरुण फिर बोला बस एक kiss...
मै फिर से आँख के इशारे से सड़क पर आते जाते लोगो की तरफ मुह कर के बोली
'इबब्ब करवा दु तन्ने चुम्मी, बड़ा आया. .. '

अरुण जिद पर अड़ गया फिर से बोला हे रेखड़नी बस एक kiss ओनली pls......
मै उसकी जिद भरी बातो से irritaate होते हुए बोली अभी ताऊ कही फिर से टपक गया तो हो जायेगा सत्यानाश.......... तुम पागल हो गये हो क्या...... पहले अपना इलाज कराओ......???
इलाज की बात सुनकर पट्ठा गाणा गाने लगा!!!
""ये रोग पुराना है जरा देर लगेगी""

गाणा सुनकर मुझे हँसी आ गयी...... हाहा
मै बोलि हाँ बाबा पक्का थोड़ा टाइम दे अपनी इस प्यारी रेखा को वो सब करेगी जो तू बोलेगा!!

(( उस दौर की एक कुंवारी लड़की जो चाहे कितनी भी प्यार करने, रोमांस करने की, किस करने की, यहाँ तक की चुदने की चाहत रखती हो, लेकिन ठीक समय, ठीक जगह, ठीक मौका, ठीक सुरक्षित, माहौल जब तक नही भांप लेगी वो हाँ नही करेगी) )

ठीक है फिर तो एक सिगरेट ही पिला दो??
मैने उसे सिगरेट दे दी!!
वो सिगरेट को अपनी पुरानी style में जलाते हुए बोला......
"" ये सिगरेट जो खून को जलाती है,
लेकिन मेरे मेहबूब से तो अच्छी है!
जलाने से पहले कम्बखत होठो
तक आती है """


मुझे अरुण की शायरी सुनकर जोरों से हँसी आ गयी........ हाहा, उससे बोली
छोरा घणां शायर हो रहा से.........
अरुण भी मुस्कुरा गया और मेरी तरफ बड़े प्यार से देखते हुए सिगरेट पीने लगा....!!


कुछ मिनिट ही बीते होंगे मैने एक बार फिर से अपनी कमीनी आदतवश उसके गांड में उंगली करते हुए बोली..... अरुण उस रात के बाद तुम्हारे पापा के जाने के बाद क्या हुआ ????


अरुण शायद मेरी आदत समझ चुका था, वो जान गया था मुझे लोगों के फटे मे टांग देने की गंदी (गांड में उंगली) आदत है, इसलिए वो तैयार था और हस्ते हुए बोला....
रेखा तेरे को मास्टरनी होना चाहिए था...रह रह कर सवाल जो पूछती है????
मै थोड़ी सी चिड़ते हुए हँसी और बोली नही बताना तो मत बताओ मै कोणी जबरदस्ती थोड़े ही कर रही हूँ....!!!
और सड़क की तरफ देखने लगी।


"लड़को की यही कमजोरी है जरा सी लड़की मुह क्या फुला ले तो वो उसे तुरंत मनाने लग जाते है!"


अरुण सिगरेट का कश लेते हुए बोला बताता हूँ रेखड़ी सुन........ पापा के जाने के बाद मेरा और मम्मी का मूड खराब हो चुका था, मम्मी ने कहा बेटा जा तू अपने कमरे में मै ठीक हू..... और मै अपने कमरे में चला गया! सुबह तक मम्मी के काफ़ी सारे फफोले साफ हो गये, शायद बोरोलीन क्रीम एक एंटीसेप्टिक मेडिसिन की तरह काम कर रही थी। मम्मी की स्किन भी ठीक सी हो रही थी लेकिन नई स्किन आने तक उन्हे कपड़े पहनने मे तकलीफ़ हो रही थी, लेकिन उन्होने मेरे मना करने के बावजूद घर का काम काज संभाल लिया,


हम दोनों ही पापा की खबर लेने के लिए टेंशन में थे, आखिर वो कहाँ गये है??? हमने अपने टेलीफोन से जान पचाण् वालो से बात की पर पापा की कोई खबर नही मिली। दोपहर से शाम होने को आयी.....
और हमारे फोन की रिंग बजी.... मैने फोन पिक किया सामने से पापा की आवाज आई!! वो मुझसे माफी मांग रहे थे, उनकी आवाज में भारीपन था, वो बोले में ठीक हू, और देल्ही में ही हू,....
तेरी मम्मी कैसी है????
मैने कहा अब पहले से ठीक है, क्रीम से जखम पर आराम मिल रहा है! आपकी बात कराउ क्या मम्मी से????

पापा बोले नही बेटा मैंने तेरी मम्मी को जो जखम दिये है, उसके बाद से मै उनसे बात करने का अधिकार खो चुका हूँ.....
मै तुझे जो बता रहा हूँ वो तुम अपनी मम्मी से बोल देना! उनसे कहना............
"" मै उन पर शक नही करता हूँ, मै तो उनसे दिल ओ जान से प्यार करता हूँ, बस मेरी ये ही सबसे बड़ी गलती है, मै जब उन्हे किसी से बात करते हुए, हस्ते हुए, मजाक करते हुए, देखता हूँ तो ऐसा लगता है, कि वो मुझसे दूर जा रही है, वो मेरे बिना भी खुश रह सकती है, और मुझे नही पता ना जाने क्या हो जाता हैं, मै उनको खोने के डर से उन पर चिल्लाने लगता हू...... अब इसे मेरा पागलपन समझे वो या मेरा प्यार........ तेरी मम्मी को खोने का ...........""डर""........... ही मेरा......... शक....... है ।

"" कोई भी हद से ज्यादा प्यार करने वाला हमेशा मेरी तरह शक ही करता है, हर शक के पीछे की वजह अधूरा सच ही होता है, जिसे वो जानने की कोशिश नही करता है, क्योकि वो अधूरा सच शक करने वाले की कमजोरी होती है....... चाहे वो कमजोरी उसकी पैसे की कमी, उसकी रंग, रूप, सुंदरता की कमी, उसके बिस्तर पर performance की कमी, उसकी बीवी की इच्छाओ को पूरा ना कर पाने की कमी.....

शक करने वाला अपनी कमियों खामियों को नही सुधारता बल्कि अपनी पत्नी पर शक करता है, उसको हमेशा यही डर लगता है कि उसकी ये कमियाँ अगर उसकी पत्नी को पता चल गयी तो वो किसी और के साथ चली जायेगी , और पत्नी को पता तब चलेगा जब वो पति के अलावा किसी और से बात करेगी, हँसेगी...... तभी तो वो compare करेगी और dicide करेगी who is the best???

बेटा मै तेरा बाप हू शायद तुम जब बड़े होंगे तब मेरी शक करने की वजह ठीक से समझ आयेगी। मम्मी से बस ये कहना कि एक गाना वो अक्सर गुनगुनाती थी..... काश उस गाणे की गहराई समझ जाये......

""एक पल भी तुम्हे तन्हा छोड़ दू कैसे??
किसी सौतन से पाला ना पड़ जाये""

ये गाणे की लाइन सुनकर मेरी हँसी छूट गयी...... हाहा हाहा....... पता नही मेरे मुह फट होने की एक और बुरी आदत की वजह से निकल पड़ा..... अरुण थारा बाबा बडा ठरकी है...............लुगाई के पल्लू से बन्दा रहता है..........!!

मेरी ये हास्यप्रद बात सुनकर अरुण चिड़ता हुआ बोला रेखा तू बोलने से पहले सोचती नही है................ जो मुह में आया बक दिया........ हिहि हिहि बस हँसने के अलावा कभी और चीज पर ध्यान दिया करो????

ऐसा क्या बोल दी मै जो इतने भड़क रहे हो??? और क्या चीज चाहिए तुम्हे बोलो तो सही??? मै भी अरुण से तुनकते हुए बोली.......?
(((मुझे ये बात समझ आ गयी थी, पैर के घूटने हमेशा पेट की तरफ क्यो झुकते है....??.
अरुण के लिए अपने पापा मुझसे ज्यादा important थे, उसने मेरी छोटी सी मजाक वाली बात को दिल से जो लगा लिया)))

अरुण बोला मै इतनी देर से बैठा हूँ तुमने मुझे पानी तक पूछा??? मै उसको पानी जग देते हुए बोली...... लो पी लो..... बुझा लो अपनी प्यास.....?

वो पानी पीकर बोला एक चुयगम दे दो?? कोनसी??? Boomer या big babool
मै बोली???
जो तुम्हे पसंद हो??? वो बोला...??
मैने एक boomer निकाली और उसे दे दी।
मेरा मूड ऑफ हो गया था और मै उठी अपनी गोद में रखा हुआ अरुण का गिफ्ट कमरे में रखने के लिए जाने लगी.......

मुझे जाता देख अरुण मुस्कुराते हुए बोला हे रेखड़ी किधर???? मै दरवाजे के पर डली पर्दा की आड़ में से मुह बाहर निकाल कर बोली ये तुम्हारा तोहफा रख आउ!!
वो बोला एक मिनिट सुन तो सही....??
उसने खाली सड़क की तरफ देखा और पर्दे के पास आ कर खड़ा हो गया.......

इस से पहले की मैं कुछ समझ पाती और कुछ करती, उसने अपनी जीभ मेरे मुहं में डाली और उसको तेज़ से अन्दर बाहर करने लगा। उसकी जीभ पागलपन से मेरे मुहं में अन्दर बाहर हो रही थी। मैंने सोचा था की मेरा पहला चुम्बन थोडा धीरे धीरे होगा और उसका हर पल का मैं आनंद लुंगी, लेकिन हुआ बिलकुल उल्टा। यह एहसास था बहुत बेकार और मैं चुंबन के लिए बिलकुल भी तैयार और उतेजित नहीं थी। लेकिन, जैसे ही मैं उस झटके से बाहर निकली, मैंने उसे हल्का सा धक्का दिया और घर के अंदर चली गई. ....... उस वक्त अरुण के मुंह में च्युइंग गम था। जब हमारी किस पूरी हुई तो हम दोनों के मुंह में च्युइंग गम के छोटे-छोटे टुकड़े थे।

((एक सलाह : अगर आपको जीभ को इस्तेमाल करना नहीं आता, तो अपनी जीभ अपने पास ही रखें। हाहा हाहा )))

""मुझे अरुण पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन मेरे गुस्से पर अरुण का तोहफा भारी पड़ रहा था।"""

अपने कमरे पहुँच कर सबसे पहले अरुण के तोहफे को अपने स्कूल बैग में रख दिया! और शीशे में अपने आपको देखकर शर्मा गयी.......... मै एक सोच में डूबी थी.... मेरा पहला चुंबन ऐसा होगा जिसकी मैने सपने में भी कल्पना नही की थी.......?? मुझे अरुण से शिकायत और शिकवा दोनों ही थे, वो मुझे एक बार इशारा कर देता तो उसका क्या बिगड़ जाता???

((चुम्बन शब्द को सुनते हीअनायास ही एक मुस्कान होठों पर बिखर जाती है । खास तौर से यह शब्द मेरे लिए बहुत ही प्रिय है मुझे अरुण की इस हालत पर एक शायरी याद आती है) )

""और भला क्या इश्क़ का मारा करता है
बस मेरा ही नाम पुकारा करता है
चार दिनों में केवल दो चुम्बन
इतने कम में कौन गुजारा करता है""

तभी मम्मी की आवाज से मेरी सोच टूटी, रेखड़ी ओ छोरी सुनील आ गया क्या??? नही मम्मी, मै कमरे से बाहर निकलते हुए मम्मी से बोलि........

मम्मी --- दुकान पर कौन है??
मै -- सुनील भैया के दोस्त अरुण है.....
मम्मी --- पता नही कब तक आयेगा सुनील? ??
भूख लगी है, तुझे कुछ खाना हो तो ले जा दुकान पर बैठ कर खा लेना???
नही मम्मी...... कहते हुए मै वापस दुकान पर चली गई...!!!
अरुण किसी ग्राहक को दिल बाग गुटखा की पुड़िया दे कर पैसे ले रहा था....!!

मै जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गयी.... मुझे समझ नही आ रहा था मै उसको क्या बोलू????
तभी अरुण ने ग्राहक से लिए पैसे मेरे आँखों के सामने काउंटर के ऊपर रख दिये!!!!!
हम दोनो ही खामोश थे.... ये खामोशी भरे पल बहुत कुछ पूछ रहे थे..... अभी जो हुआ वो सही था या गलत??? क्या उससे ज्यादा भी कुछ हो सकता था??? पांच मिनिट तक हम यू ही खामोश बैठे रहे...........
तभी दुकान के सामने एक पानी पूरी का ठेला वाला खड़ा हो गया,।

अरुण मुझसे बोला रेखा चल पानी पूरी खाते है........................??
मुझे नही खाना मै नखरे दिखाते हुए बोली!
खा.......ले..... राणी......वो फिर से मुस्कराता हुआ बोला!!!
नही खाना मुझे.........तुम्हे खाना हो तो खा लो...........मै फिर से नखरे दिखाती हुयी बोली!!

अचानक से अरुण ने मेरा हाथ पकड़ लिया.........!! चल ना....... साथ साथ खाते है......??

यो के करण लाग रा है, मरवावे गा के
ताऊ ने देख लिया तो दोनो की सामत आनी से.......
दूर हट ले......
खुद ने तो मरना है मेरी भी देह तुड़वा वे गां,
मै हस्ती हुयी बोली............ हाहाहा


ठीक है तो फिर में अकेला ही खा लेता हूँ, ये केहकर अरुण ठेले पर जाकर खड़ा हो गया........ और ठेले वाले से हँस हँस कर बातें करने लगा जैसे उसका पुराना याराना हो!!
(( प्रेम में डूबा लड़का, प्रेमिका के मोहल्ले के ठेले वालो तक से दोस्ती कर लेता है...... हाहा हाहा))))


ठेले वाला मेरी तरफ देखकर अरुण से कुछ कह रहा था........ उसकी बात सुनकर अरुण दुकान पर आ गया और काउंटर पर रखे जग में से बचा हुआ पानी फैला कर उसमें जलजीरा का पानी और पानी पूरी पैक करवा कर पैसे देकर वापस दुकान में आ गया.....ठेला वाला चला जाता है....


रेखा अब तो साथ साथ खा सकती है??क्या यहाँ भी ताऊ आकर कूट देगा.....?थैली में से एक पानी पूरी जलजीरे में डूबा कर खाते हुए......!! मुझसे हस्ते हुए बोला........ हाहा हाहा


यहाँ ना कूटने दूँगी मै किसी को भी तुझे...मै
उसके ठुड्डी पर जलजीरे के टपकते हुए पानी को पोछते हुए कातिल मुस्कान देते हुए बोली..........
"वो मेरी इस अदा पर जैसे तो फिदा ही हो गया" मारे खुशी के वो मुझसे बोला रेखा चूमने को दिल कर रहा है मेरा.......!!umma, umma, (kiss)
हम दोनों प्यार, रोमांस के साथ साथ पानी पूरी खाने लगे....... ! ! !


थोड़ी सी देर बाद मुझे पायलो की चलती हुई आवाज सुनाई दी, मै समझ गयी मम्मी आ रही है........ मैंने अरुण को इशारा किया और हम दुकान की मर्यादित फ़ासले की दूरी से बैठ गये। मम्मी को देखकर अरुण कुर्सी से खड़ा हो गया, और मम्मी को कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा करते हुए बोला ऑन्टी नमस्ते........ लीजिये आप भी पानी पूरी खाइये.... ?????
मम्मी हँसकर कुर्सी पर बैठते हुए बोली.... ना छोरा खाने का टेम हो गया से.... सुनील आता ही होगा फिर साथ में खाना खाते है.....!!
अरे आंटी कोनसी पेट भर खाने के लिए बोल रहा हूँ मै..... दस बारह ही तो है.... आप भी खा कर मुह का स्वाद बदलिये..... मै तो खा चुका हूँ..... बस हाथ धोना है.....!!
(("" पानी पूरी (गोल गप्पे) लड़की या औरत सबकी पंसदीदा होती हैं, जलजीरे की खुशबू से ही मुह में पानी में आ जाता है ""))


मम्मी के मुह में भी पानी आ गया था, वो तुरंत ही एक गोल गप्पा जग में जलजीरे से भर कर मुह में रखते हुए अरुण से बोली छोरा ऊपर छत पर चला जा..... बाथरूम में जाकर हाथ धो ले....!!!


दूसरा गोल गप्पा मुह रखते हुए मुझसे बोली रेखड़ी तुझे और खाना है तो खा ले..... नही तो छत पर से आलू के पापड़ सूख गए होंगे उन्हे बटोर ले आ। और दो चार किचिन में जाकर आंच पर सेख ले...... फिर मै खाना लगाती हू........!!!


मेरी तो मानो मन की मुराद ही पूरी हो गयी ये सुनकर...........

दोपहर के लगभग दो बजे का समय था, आधी छत पर धूप और आधी पर छाँव पसरी थी, आसपास की सारी छ्ते सुनसान, वीरान पड़ी थी!! मै पापड़ बटोरती हुयी बाथरूम के अंदर घुसे अरुण का दीदार करने का इंतजार कर रही थी..........!!!!


((हमारे बाथरूम में लकड़ी के पुराने जमाने के दरवाजे लगे है, जिनकी एक खासियत है उनके दरवाजे की अगर अंदर से सांकर ना लगाओ तो आधे ज्यादा खुले रहते है। ))
""अरुण ने वो ही गलती कर दी थी........""


मै काँपती टाँगो से चलती हुई बाथरूम के दरवाजे के पास पहुची और बाथरूम के अंदर नजर गयी तो मुझे सामने से अरुण का लिंग सोई हुई अवस्था में ही करीब छ: इंच लंबा मूतता दिख रहा था। ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप सोया हुआ है और उसके ऊपर झुर्रियों भरा चमड़े का आवरण ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप अपनी केंचुली छोड़ने वाला हो। उसका अंडकोश भी काफी बड़ा था करीब आधा किलो के बांट जैसा।


मै बिना किसी लाज शर्म के चुपचाप अरुण के लिंग को देख रही थी, मगर मैं क्यों ऐसा कर रही थी ये शायद मैं भी नहीं जानती थी शायद कहीं ना कहीं मेरे जिस्म को एक मर्दाने शरीर की चाहत थी.......और वो भूक को मिटाने के लिए चाहे मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े मुझे उसके खातिर सब मंज़ूर था............मैं फिर बाथरूम के दरवाजे के पास से हट गयी और छत पर रखी पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर आकर बैठ गयी.........


मैने अपने सीने से चुनरी हटा दी और उसे एक साइड पर रख दिया......इस वक़्त मैं सूट और पजामी में थी.......जो हमेशा की तरह टाइट थी और मेरे बदन से पूरी तरह चिपकी हुई थी........जैसे ही मेरे सीने से चुनरी हटी मेरी बड़ी बड़ी छातियाँ मचल कर बाहर को आने लगी......दुपट्टा हट जाने से मेरा क्लीवेज काफ़ी हद तक बाहर की ओर दिखाई दे रहा था.....वैसे तो अरुण इस वक्त बाथरूम में था मगर मुझे इस हाल में वो मुझे देख लेता तो कहीं ना कहीं उसके दिल में मेरे लिए भी कुछ तो अरमान जनम ले ही लेते......


थोड़ी देर बाद अरुण पेशाब कर के बाथरूम से बाहर आ गया। मेरी नज़र जब अरुण के चेहरे पर पड़ी तो वो भी मुझे एक पल देखने लगा........मैं उसकी आँखों में आँखें डाले देखती रही जैसे मैं उससे ये पूछ रही थी कि वो इतना अच्छा मौका अपने हाथ से क्यों जाने दे रहा है.........???


अरुण मेरे पास आकर खड़ा होकर बोला सॉरी रेखा............मैने जाने अंजाने में तुम्हारे साथ कुछ ज़्यादती की.......
मै किसी और ही सोच में थी..... और हँस कर बोली its ok dear....... रेखा, तूने सब कुछ देख लिया ना?” अरुण ने अगला सवाल किया।


“हां, वैसे तो काफी प्रभावशाली है, देखते हैं उसकी अंतिम रूपरेखा क्या होती है।” मैने आँख मारते हुए हँस कर कहा। हाहा हाहा


“अंतिम रूपरेखा कैसी होगी वह बाद की बात है। फिलहाल तो हमें रेखा का रूप दिखा दे।”


मै कुछ बोलती इससे पहले कि अरुण ने बिना किसी पूर्वाभास दिए ही मुझे अपनी बांहों में दबोच लिया और मुझ पर चुंबनों की झड़ी लगाने लगा, बिल्कुल फिल्मी अंदाज में। “आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह मम्मी, छोड़िए ना मुझे प्लीज। प्लीज मुझे जाने दीजिए।” मैं अब तक गरम हो चुकी थी लेकिन मुझे फिर से शराफत का ढोंग तो करना ही था। मेरी योनी पानी छोड़ने लगी थी और पैंटी योनी के लसलसे द्रव्य से भीग चुकी थी। मेरे उरोज उत्तेजना के मारे सख्त हो कर तन गए थे।

मै किसी छोटे बच्चे की तरह अपने अरुण की बाहो में ऐसे समा गई जैसे अब मुझे अपने अरुण से कोई अलग नहीं कर सकता था | मेरे स्तन पूरी तरह से दबकर चपटे अकार में फैले हुए थे जिससे अरुण की ताकत का अंदाज मुझ को हो रहा था | ऐसा लग रहा था की अगर अरुण ने अपना दबाव थोड़ा सा भी और बढ़ाया तो मेरे स्तन कही फट न जाए | मैने अपनी झुकी हुई निगाहो को अपने अरुण की निगाहो से मिलाया और अपना मुँह हलके से खोल दिया | ये देखकर अरुण की दिल की धड़कने बढ़ गई , अरुण का मुँह अपने आप खुल गया और आश्चर्य उसके चेहरे पर साफ़ साफ़ दिखने लगा | अरुण ने मेरे खुले मुँह में अपनी जीभ डाली और मेरी जीभ को जकड कर चूसने लगा | किस इतना जोरदार था की मेरे मुँह से लार की कुछ बुँदे मेरे सूट से बाहर झांकते स्तनों पे आ गिरी | मेरा पूरा बदन काँप रहा था और अरुण ने मेरी कमर को अपने हाथ से पकड़ रखा था ताकि मै पीछे न जा सकूँ | किस २ मिनट तक चला अरुण ने आखिरकार हार मान ली और अपनी जीभ अंदर लेते हुए अपने हाथो को मेरी कमर से हटा दिया | मै तो जैसे दिवास्वप्न से बाहर निकली |

अरुण ने मेरे गाल पर हलके से किस किया और कान में इक बात कही जिसे मैने अपनी गर्दन हाँ में हिलाकर स्वीकार कर लिया |
इसके बाद अरुण को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया मेरे लिए। अब अरुण मुझे और अधिक उत्तेजित करने के लिए फिर से मेेेरे होठों को चूमने लगा, मेरे मुह में अपनी जीभ डालकर चुभलाने लगा। उसके मजबूत पंजे मेरे उरोजों को मेरे कुर्ती के ऊपर से सहला रहे थे, हल्के हल्के दबा रहे थे।

मैं बनावटी असहाय भाव और बनावटी बेबसी का नाटक करती हुई छटपटाती रही लेकिन अरुण भी माहिर खिलाड़ी था, उसे आभास हो गया था कि मैं उत्तेजित हो चुकी हूं क्योंकि अनजाने में उत्तेजना के आवेग में मैं अरुण की जीभ को चूसने लग गई थी।

धीरे धीरे अरुण का एक हाथ मेरी पजामी के अंदर योनी तक पहुंच गया और अपनी हथेली से मेरी योनी को सहलाने लगा। उसकी उंगलियां मेरी योनी के भगांकुर को छेड़ने लगीं तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरी वासना की भूख अपने चरम पर पहुंच गई, कामुकता की तरंगें मेरे शरीर में बिजली बन कर दौड़ने लगीं। मैं तो पागल ही हो गई थी। मेरी आंखें बंद हो गयी थीं।

“आह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह, मार ही डालोगे क्या? अब …..” मैं बेसाख्ता बोल पड़ी।

अभी मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अरुण बोल पड़ा “अब क्या? तू तो अभी से मरने की बात कर रही है, अरुण के गठे हुए कसरती शरीर और उसके मजबूत बांहों के बंधन में मुझे अद्वितीय सुख का अहसास हो रहा था मेरी स्थिति अरुण ने ऐसी कर दी थी कि अब मैं सिर्फ पुरुष संसर्ग के लिए मरी जा रही थी। वह पुरुष, कैसा भी हो , मोटा, पतला, सुंदर, कुरूप, बेढब या लंगड़ा लूला, मुझे परवाह नहीं थी। वह मेेेरे साथ जो कुछ कर रहा था वह बिल्कुल फिल्मी अंदाज में था, बिल्कुल भावहीन, एकदम किसी हुक्म के गुलाम की तरह।

अंततः उस समय मेरी आश्चर्य का पारावार न रहा जब उतावलेपन और आनन फानन में मैने अरुण के जीन्स को मय अंडरवियर केले के छिलके की तरह उसके पैरों के बंधन से आजाद कर और किसी भूखी "चुप छिनाल" की तरह अरुण के सोये हुए छ: इंच लिंग पर टूट पड़ी और गप्प से अपने मुंह में ले लिया। फिर मैं लग गई जी जान से उनके लिंग को चपाचप चूसने ताकि वह जल्द से जल्द खड़ा हो सके और मेरी प्यासी योनी की धधकती ज्वाला को बुझा सके।

मेरे उतावलेपन को देख कर आह ओह कितनी मस्त है रे तू। कहते हुए दोनों हाथ से मेरी कुर्ती के ऊपर से चूचियां दबाने लगा । करीब दो मिनट बाद ही मैंने महसूस किया कि अरुण का लिंग सख्त , बड़ा , लंबा हो रहा है और मोटा भी। अगले एक मिनट बाद तो मैं उसके लिंग को मुंह में रखने में असमर्थ हो गई। जैसे ही मैंने उसके लिंग को चूसना छोड़ कर मुह से निकाला मैं चौंक उठी। हे प्रभू ! इतना भयावह और दहशतनाक मंजर था। मेरे चेहरे के सामने करीब साढ़े ग्यारह इंच लंबा और करीब चार इंच मोटा किसी काले सांप की तरह फनफनाता अरुण का अमानवीय लिंग मेरे मुह के लार से लिथड़ा, अपने पूरे जलाल के साथ झूम रहा था।

""कोई कितनी भी बड़ी "चुप छिनाल" हो, ऐसे लिंग का दीदार ही काफी था भयभीत करने के लिए। मैं कोई अपवाद तो थी नहीं, उस दहशतनाक मंजर को देख कर मेरी भी घिग्घी बंध गई।""

“हाय राम, इत्ता बड़ा!” मेरे मुंह से अनायास निकल पड़ा। मैं दो कदम पीछे हट गई।

“डर मत पगली, कुछ नहीं होगा! तुम करो जो करना है, तू घबरा मत, तुझमें दम है। अरुण मुझे डरा रहा था कि हौसला बढ़ा रहा था, मुझे समझ नहीं आ रहा था।

“नहीं नहीं प्लीज मैं मर जाऊंगी।” मैं घबरा कर बोली। उसने अपने मूसल जैसे लिंग को पकड़कर मेरे मुह में जबदस्ती ठूसने लगा...
लिंग का आधा टोपा ही मेरे मुह में घुसा था, उसने अपने हाथ लिंग से हटा लिए..... और आधे लिंग के टोपा को मुह में फासाये असहाय कुर्सी पर बैठी थी........

तभी एकदम जोर जोर से तालियों के साथ हँसी की गड़गड़ाहट हमारे कानों में गूजने लगी........ हमारी नजर उधर गयी..... तो हमारी आँखे खुली रह गई............ हम दंग रह गये........ सामने मेरी सगी बहन अंजू दीदी खिलखिला कर ताली बजाते हुए
बोली -------
"" वाह रेखा रानी ""
"" मा खावे पताशा बेटी दिखावे तमाशा ""
"" मम्मी के मुह में गोलगप्पा.......... बेटी के मुह में लंड का टोपा ""
सिर मुंडाते ही ओले पड़ने लगे...
 

Ek number

Well-Known Member
8,458
18,247
173
मैने तुरंत जल्दी से दरवाजे खोले और पापा अपने बेडरूम में चले गए। जैसे ही पापा ने मम्मी को नागनावस्था मै देखा तो चिल्ला कर बोले........

वाह रण्डी गण्ड मरी अपने ही बेटे से

मुह काला कर रही है. ..??????

अध्याय -- 9 ---

आज पापा के मुह से मम्मी के लिए इस तरह गाली देना मुझसे बर्दाश्त नही हुआ और मैने पहली बार पापा पर चिल्लाते हुए गुस्से में बोला....... पापा आपको शर्म आनी चाहिए, मम्मी का नंगा जिस्म आपको दिख रहा है???? लेकिन मम्मी के नंगे जिस्म पर लगा मरहम नही दिख रहा है??? आप तो मम्मी को जखम देकर चले गए??? मैने मम्मी के जख्मो पर जरा मरहम क्या लगा दिया??? आपकी झांट सुलग गयी??

पापा निशब्द थे, शायद वो अपनी ही नजरो में शर्मिंदा थे उन्होंने आगे एक शब्द नहीं कहा अलमारी से अपना बैग निकाला और घर से चले गये........!

अरुण बोलते बोलते शांत हो गया, उसकी आँखों में आँसू भर आये, मुझसे उसका दर्द देखा नही गया....... हमारे बीच के दो फुट के फ़ासले को खतम कर मैने उसे आधे फुट की दूरी का फ़ासला बना कर अरुण की हथेली अपनी हाथो में ले कर बोली.......

""तेरे हर दुःख न अपना बना लु
तेरे हर गम न अपना बना लु
मने आंदि कोणी चोरी करनी।
वरना तेरे दिल न चुरा लू।""

अरुण ने मेरे शब्द सुनकर हल्का सा मुस्कुराहट देते हुए बिना सड़क पर आने जाने वालो के डर के मुझे कसकर अपनी सीने से चिपका कर आलिंगन में जकड़ लिया। मैं इस आकस्मिक हमले के लिए तैयार नहीं थी। उसके मजबूत बांहों में कैद हो कर रह गई और छटपटाने लगी।

“छोड़ो मुझे छोड़ो, यह क्या करते हो?” मैं छटपटते हुए धीरे धीरे से बोली। “देखिए ना अभी कही किसी ने देख लिया तो प्रोब्ल्म हो जायेगी। प्लीज मुझे छोड़ दीजिए।” अंदर ही अंदर अरुण की बांहों में पिघलती हुई मेरा विरोध जारी रहा।

मेरे बोलते हुए होंठो के बीच में ही उसने मेरा मुहं अपने मुहं से ढक लिया। मैं पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी कि मुझे इस वक्त अरुण को किस करना चाहिए या नहीं। इसलिए किस करने से महज एक सेकंड पहले मैंने अपना चेहरा हटा लिया। इस वजह से मेरी ठुड्डी उसकी नाक से टकरा गई और यह हम दोनों के लिए बेहद असहज कर देने वाली स्थिति थी। इसके बाद मुझे इतना संकोच हुआ कि अरुण से बिना कुछ कहे मैं फिर से दो फुट के फासले की दूरी पर बैठ गई।

((ज्यादातर लोग फर्स्ट किस से पहले कोई रिहर्सल या तैयारी नहीं कर पाते। मेरा साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। चुम्बन करना हवस की निशानी नही है। चुम्बन प्यार की निशानी है, न कि हवस की ।आप जिसे भी ज्यादा प्यार करते हो,तो संभावित हम उसे चुम्बन करते है। ऐक चुम्बन है, जिसे हम हवस की निशानी कह सकते है। वह है,लबो को चूमना.........))

लेकिन उसके बाद जो अजीब सा सन्नाटा था, वो मेरे इस चुम्बन से भी ज़्यादा बेकार था!! हालांकि ये सब कुछ चंद सेकंड के लिए हुआ था।

अजीब से सन्नाटे की चुप्पी दुकान के काउंटर पर खट खट की आवाज से टूटी... मैने अपनी कुर्सी पर उठकर देखा तो दो छोटे छोटे बच्चे हाथ में सिक्का लेकर काउंटर बजा रहे थे???? मैने कहा क्या चाहिए?? एक "चुटकी" (मीठी छुहारे वाली बच्चो की सुपारी) दे दो?? मैने उन्हें "चुटकी" (मीठी छुहारे वाली बच्चो की सुपारी) देकर रवाना किया!!

अरुण से हस्ती हुयी बोली आप भी बता दीजिये आपको क्या चाहिए???
वो अपने होंठो पर उंगली रखकर इशारे में बोला एक kiss. मुझे अरुण की शकल देखकर हँसी आ गयी... हाहा हाहा

सच कहु तो दिल ही दिल उसको किस करने की बहुत इच्छा हो रही थी, लेकिन मुझे अभी शराफत का ढोंग तो करना ही था। मैने उसे आँखे दिखाते हुए कातिल मुस्कान देकर कहा "चुप" अभी नही,
अरुण फिर बोला बस एक kiss...
मै फिर से आँख के इशारे से सड़क पर आते जाते लोगो की तरफ मुह कर के बोली
'इबब्ब करवा दु तन्ने चुम्मी, बड़ा आया. .. '

अरुण जिद पर अड़ गया फिर से बोला हे रेखड़नी बस एक kiss ओनली pls......
मै उसकी जिद भरी बातो से irritaate होते हुए बोली अभी ताऊ कही फिर से टपक गया तो हो जायेगा सत्यानाश.......... तुम पागल हो गये हो क्या...... पहले अपना इलाज कराओ......???
इलाज की बात सुनकर पट्ठा गाणा गाने लगा!!!
""ये रोग पुराना है जरा देर लगेगी""

गाणा सुनकर मुझे हँसी आ गयी...... हाहा
मै बोलि हाँ बाबा पक्का थोड़ा टाइम दे अपनी इस प्यारी रेखा को वो सब करेगी जो तू बोलेगा!!

(( उस दौर की एक कुंवारी लड़की जो चाहे कितनी भी प्यार करने, रोमांस करने की, किस करने की, यहाँ तक की चुदने की चाहत रखती हो, लेकिन ठीक समय, ठीक जगह, ठीक मौका, ठीक सुरक्षित, माहौल जब तक नही भांप लेगी वो हाँ नही करेगी) )

ठीक है फिर तो एक सिगरेट ही पिला दो??
मैने उसे सिगरेट दे दी!!
वो सिगरेट को अपनी पुरानी style में जलाते हुए बोला......
"" ये सिगरेट जो खून को जलाती है,
लेकिन मेरे मेहबूब से तो अच्छी है!
जलाने से पहले कम्बखत होठो
तक आती है """


मुझे अरुण की शायरी सुनकर जोरों से हँसी आ गयी........ हाहा, उससे बोली
छोरा घणां शायर हो रहा से.........
अरुण भी मुस्कुरा गया और मेरी तरफ बड़े प्यार से देखते हुए सिगरेट पीने लगा....!!


कुछ मिनिट ही बीते होंगे मैने एक बार फिर से अपनी कमीनी आदतवश उसके गांड में उंगली करते हुए बोली..... अरुण उस रात के बाद तुम्हारे पापा के जाने के बाद क्या हुआ ????


अरुण शायद मेरी आदत समझ चुका था, वो जान गया था मुझे लोगों के फटे मे टांग देने की गंदी (गांड में उंगली) आदत है, इसलिए वो तैयार था और हस्ते हुए बोला....
रेखा तेरे को मास्टरनी होना चाहिए था...रह रह कर सवाल जो पूछती है????
मै थोड़ी सी चिड़ते हुए हँसी और बोली नही बताना तो मत बताओ मै कोणी जबरदस्ती थोड़े ही कर रही हूँ....!!!
और सड़क की तरफ देखने लगी।


"लड़को की यही कमजोरी है जरा सी लड़की मुह क्या फुला ले तो वो उसे तुरंत मनाने लग जाते है!"


अरुण सिगरेट का कश लेते हुए बोला बताता हूँ रेखड़ी सुन........ पापा के जाने के बाद मेरा और मम्मी का मूड खराब हो चुका था, मम्मी ने कहा बेटा जा तू अपने कमरे में मै ठीक हू..... और मै अपने कमरे में चला गया! सुबह तक मम्मी के काफ़ी सारे फफोले साफ हो गये, शायद बोरोलीन क्रीम एक एंटीसेप्टिक मेडिसिन की तरह काम कर रही थी। मम्मी की स्किन भी ठीक सी हो रही थी लेकिन नई स्किन आने तक उन्हे कपड़े पहनने मे तकलीफ़ हो रही थी, लेकिन उन्होने मेरे मना करने के बावजूद घर का काम काज संभाल लिया,


हम दोनों ही पापा की खबर लेने के लिए टेंशन में थे, आखिर वो कहाँ गये है??? हमने अपने टेलीफोन से जान पचाण् वालो से बात की पर पापा की कोई खबर नही मिली। दोपहर से शाम होने को आयी.....
और हमारे फोन की रिंग बजी.... मैने फोन पिक किया सामने से पापा की आवाज आई!! वो मुझसे माफी मांग रहे थे, उनकी आवाज में भारीपन था, वो बोले में ठीक हू, और देल्ही में ही हू,....
तेरी मम्मी कैसी है????
मैने कहा अब पहले से ठीक है, क्रीम से जखम पर आराम मिल रहा है! आपकी बात कराउ क्या मम्मी से????

पापा बोले नही बेटा मैंने तेरी मम्मी को जो जखम दिये है, उसके बाद से मै उनसे बात करने का अधिकार खो चुका हूँ.....
मै तुझे जो बता रहा हूँ वो तुम अपनी मम्मी से बोल देना! उनसे कहना............
"" मै उन पर शक नही करता हूँ, मै तो उनसे दिल ओ जान से प्यार करता हूँ, बस मेरी ये ही सबसे बड़ी गलती है, मै जब उन्हे किसी से बात करते हुए, हस्ते हुए, मजाक करते हुए, देखता हूँ तो ऐसा लगता है, कि वो मुझसे दूर जा रही है, वो मेरे बिना भी खुश रह सकती है, और मुझे नही पता ना जाने क्या हो जाता हैं, मै उनको खोने के डर से उन पर चिल्लाने लगता हू...... अब इसे मेरा पागलपन समझे वो या मेरा प्यार........ तेरी मम्मी को खोने का ...........""डर""........... ही मेरा......... शक....... है ।

"" कोई भी हद से ज्यादा प्यार करने वाला हमेशा मेरी तरह शक ही करता है, हर शक के पीछे की वजह अधूरा सच ही होता है, जिसे वो जानने की कोशिश नही करता है, क्योकि वो अधूरा सच शक करने वाले की कमजोरी होती है....... चाहे वो कमजोरी उसकी पैसे की कमी, उसकी रंग, रूप, सुंदरता की कमी, उसके बिस्तर पर performance की कमी, उसकी बीवी की इच्छाओ को पूरा ना कर पाने की कमी.....

शक करने वाला अपनी कमियों खामियों को नही सुधारता बल्कि अपनी पत्नी पर शक करता है, उसको हमेशा यही डर लगता है कि उसकी ये कमियाँ अगर उसकी पत्नी को पता चल गयी तो वो किसी और के साथ चली जायेगी , और पत्नी को पता तब चलेगा जब वो पति के अलावा किसी और से बात करेगी, हँसेगी...... तभी तो वो compare करेगी और dicide करेगी who is the best???

बेटा मै तेरा बाप हू शायद तुम जब बड़े होंगे तब मेरी शक करने की वजह ठीक से समझ आयेगी। मम्मी से बस ये कहना कि एक गाना वो अक्सर गुनगुनाती थी..... काश उस गाणे की गहराई समझ जाये......

""एक पल भी तुम्हे तन्हा छोड़ दू कैसे??
किसी सौतन से पाला ना पड़ जाये""

ये गाणे की लाइन सुनकर मेरी हँसी छूट गयी...... हाहा हाहा....... पता नही मेरे मुह फट होने की एक और बुरी आदत की वजह से निकल पड़ा..... अरुण थारा बाबा बडा ठरकी है...............लुगाई के पल्लू से बन्दा रहता है..........!!

मेरी ये हास्यप्रद बात सुनकर अरुण चिड़ता हुआ बोला रेखा तू बोलने से पहले सोचती नही है................ जो मुह में आया बक दिया........ हिहि हिहि बस हँसने के अलावा कभी और चीज पर ध्यान दिया करो????

ऐसा क्या बोल दी मै जो इतने भड़क रहे हो??? और क्या चीज चाहिए तुम्हे बोलो तो सही??? मै भी अरुण से तुनकते हुए बोली.......?
(((मुझे ये बात समझ आ गयी थी, पैर के घूटने हमेशा पेट की तरफ क्यो झुकते है....??.
अरुण के लिए अपने पापा मुझसे ज्यादा important थे, उसने मेरी छोटी सी मजाक वाली बात को दिल से जो लगा लिया)))

अरुण बोला मै इतनी देर से बैठा हूँ तुमने मुझे पानी तक पूछा??? मै उसको पानी जग देते हुए बोली...... लो पी लो..... बुझा लो अपनी प्यास.....?

वो पानी पीकर बोला एक चुयगम दे दो?? कोनसी??? Boomer या big babool
मै बोली???
जो तुम्हे पसंद हो??? वो बोला...??
मैने एक boomer निकाली और उसे दे दी।
मेरा मूड ऑफ हो गया था और मै उठी अपनी गोद में रखा हुआ अरुण का गिफ्ट कमरे में रखने के लिए जाने लगी.......

मुझे जाता देख अरुण मुस्कुराते हुए बोला हे रेखड़ी किधर???? मै दरवाजे के पर डली पर्दा की आड़ में से मुह बाहर निकाल कर बोली ये तुम्हारा तोहफा रख आउ!!
वो बोला एक मिनिट सुन तो सही....??
उसने खाली सड़क की तरफ देखा और पर्दे के पास आ कर खड़ा हो गया.......

इस से पहले की मैं कुछ समझ पाती और कुछ करती, उसने अपनी जीभ मेरे मुहं में डाली और उसको तेज़ से अन्दर बाहर करने लगा। उसकी जीभ पागलपन से मेरे मुहं में अन्दर बाहर हो रही थी। मैंने सोचा था की मेरा पहला चुम्बन थोडा धीरे धीरे होगा और उसका हर पल का मैं आनंद लुंगी, लेकिन हुआ बिलकुल उल्टा। यह एहसास था बहुत बेकार और मैं चुंबन के लिए बिलकुल भी तैयार और उतेजित नहीं थी। लेकिन, जैसे ही मैं उस झटके से बाहर निकली, मैंने उसे हल्का सा धक्का दिया और घर के अंदर चली गई. ....... उस वक्त अरुण के मुंह में च्युइंग गम था। जब हमारी किस पूरी हुई तो हम दोनों के मुंह में च्युइंग गम के छोटे-छोटे टुकड़े थे।

((एक सलाह : अगर आपको जीभ को इस्तेमाल करना नहीं आता, तो अपनी जीभ अपने पास ही रखें। हाहा हाहा )))

""मुझे अरुण पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन मेरे गुस्से पर अरुण का तोहफा भारी पड़ रहा था।"""

अपने कमरे पहुँच कर सबसे पहले अरुण के तोहफे को अपने स्कूल बैग में रख दिया! और शीशे में अपने आपको देखकर शर्मा गयी.......... मै एक सोच में डूबी थी.... मेरा पहला चुंबन ऐसा होगा जिसकी मैने सपने में भी कल्पना नही की थी.......?? मुझे अरुण से शिकायत और शिकवा दोनों ही थे, वो मुझे एक बार इशारा कर देता तो उसका क्या बिगड़ जाता???

((चुम्बन शब्द को सुनते हीअनायास ही एक मुस्कान होठों पर बिखर जाती है । खास तौर से यह शब्द मेरे लिए बहुत ही प्रिय है मुझे अरुण की इस हालत पर एक शायरी याद आती है) )

""और भला क्या इश्क़ का मारा करता है
बस मेरा ही नाम पुकारा करता है
चार दिनों में केवल दो चुम्बन
इतने कम में कौन गुजारा करता है""

तभी मम्मी की आवाज से मेरी सोच टूटी, रेखड़ी ओ छोरी सुनील आ गया क्या??? नही मम्मी, मै कमरे से बाहर निकलते हुए मम्मी से बोलि........

मम्मी --- दुकान पर कौन है??
मै -- सुनील भैया के दोस्त अरुण है.....
मम्मी --- पता नही कब तक आयेगा सुनील? ??
भूख लगी है, तुझे कुछ खाना हो तो ले जा दुकान पर बैठ कर खा लेना???
नही मम्मी...... कहते हुए मै वापस दुकान पर चली गई...!!!
अरुण किसी ग्राहक को दिल बाग गुटखा की पुड़िया दे कर पैसे ले रहा था....!!

मै जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गयी.... मुझे समझ नही आ रहा था मै उसको क्या बोलू????
तभी अरुण ने ग्राहक से लिए पैसे मेरे आँखों के सामने काउंटर के ऊपर रख दिये!!!!!
हम दोनो ही खामोश थे.... ये खामोशी भरे पल बहुत कुछ पूछ रहे थे..... अभी जो हुआ वो सही था या गलत??? क्या उससे ज्यादा भी कुछ हो सकता था??? पांच मिनिट तक हम यू ही खामोश बैठे रहे...........
तभी दुकान के सामने एक पानी पूरी का ठेला वाला खड़ा हो गया,।

अरुण मुझसे बोला रेखा चल पानी पूरी खाते है........................??
मुझे नही खाना मै नखरे दिखाते हुए बोली!
खा.......ले..... राणी......वो फिर से मुस्कराता हुआ बोला!!!
नही खाना मुझे.........तुम्हे खाना हो तो खा लो...........मै फिर से नखरे दिखाती हुयी बोली!!

अचानक से अरुण ने मेरा हाथ पकड़ लिया.........!! चल ना....... साथ साथ खाते है......??

यो के करण लाग रा है, मरवावे गा के
ताऊ ने देख लिया तो दोनो की सामत आनी से.......
दूर हट ले......
खुद ने तो मरना है मेरी भी देह तुड़वा वे गां,
मै हस्ती हुयी बोली............ हाहाहा


ठीक है तो फिर में अकेला ही खा लेता हूँ, ये केहकर अरुण ठेले पर जाकर खड़ा हो गया........ और ठेले वाले से हँस हँस कर बातें करने लगा जैसे उसका पुराना याराना हो!!
(( प्रेम में डूबा लड़का, प्रेमिका के मोहल्ले के ठेले वालो तक से दोस्ती कर लेता है...... हाहा हाहा))))


ठेले वाला मेरी तरफ देखकर अरुण से कुछ कह रहा था........ उसकी बात सुनकर अरुण दुकान पर आ गया और काउंटर पर रखे जग में से बचा हुआ पानी फैला कर उसमें जलजीरा का पानी और पानी पूरी पैक करवा कर पैसे देकर वापस दुकान में आ गया.....ठेला वाला चला जाता है....


रेखा अब तो साथ साथ खा सकती है??क्या यहाँ भी ताऊ आकर कूट देगा.....?थैली में से एक पानी पूरी जलजीरे में डूबा कर खाते हुए......!! मुझसे हस्ते हुए बोला........ हाहा हाहा


यहाँ ना कूटने दूँगी मै किसी को भी तुझे...मै
उसके ठुड्डी पर जलजीरे के टपकते हुए पानी को पोछते हुए कातिल मुस्कान देते हुए बोली..........
"वो मेरी इस अदा पर जैसे तो फिदा ही हो गया" मारे खुशी के वो मुझसे बोला रेखा चूमने को दिल कर रहा है मेरा.......!!umma, umma, (kiss)
हम दोनों प्यार, रोमांस के साथ साथ पानी पूरी खाने लगे....... ! ! !


थोड़ी सी देर बाद मुझे पायलो की चलती हुई आवाज सुनाई दी, मै समझ गयी मम्मी आ रही है........ मैंने अरुण को इशारा किया और हम दुकान की मर्यादित फ़ासले की दूरी से बैठ गये। मम्मी को देखकर अरुण कुर्सी से खड़ा हो गया, और मम्मी को कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा करते हुए बोला ऑन्टी नमस्ते........ लीजिये आप भी पानी पूरी खाइये.... ?????
मम्मी हँसकर कुर्सी पर बैठते हुए बोली.... ना छोरा खाने का टेम हो गया से.... सुनील आता ही होगा फिर साथ में खाना खाते है.....!!
अरे आंटी कोनसी पेट भर खाने के लिए बोल रहा हूँ मै..... दस बारह ही तो है.... आप भी खा कर मुह का स्वाद बदलिये..... मै तो खा चुका हूँ..... बस हाथ धोना है.....!!
(("" पानी पूरी (गोल गप्पे) लड़की या औरत सबकी पंसदीदा होती हैं, जलजीरे की खुशबू से ही मुह में पानी में आ जाता है ""))


मम्मी के मुह में भी पानी आ गया था, वो तुरंत ही एक गोल गप्पा जग में जलजीरे से भर कर मुह में रखते हुए अरुण से बोली छोरा ऊपर छत पर चला जा..... बाथरूम में जाकर हाथ धो ले....!!!


दूसरा गोल गप्पा मुह रखते हुए मुझसे बोली रेखड़ी तुझे और खाना है तो खा ले..... नही तो छत पर से आलू के पापड़ सूख गए होंगे उन्हे बटोर ले आ। और दो चार किचिन में जाकर आंच पर सेख ले...... फिर मै खाना लगाती हू........!!!


मेरी तो मानो मन की मुराद ही पूरी हो गयी ये सुनकर...........

दोपहर के लगभग दो बजे का समय था, आधी छत पर धूप और आधी पर छाँव पसरी थी, आसपास की सारी छ्ते सुनसान, वीरान पड़ी थी!! मै पापड़ बटोरती हुयी बाथरूम के अंदर घुसे अरुण का दीदार करने का इंतजार कर रही थी..........!!!!


((हमारे बाथरूम में लकड़ी के पुराने जमाने के दरवाजे लगे है, जिनकी एक खासियत है उनके दरवाजे की अगर अंदर से सांकर ना लगाओ तो आधे ज्यादा खुले रहते है। ))
""अरुण ने वो ही गलती कर दी थी........""


मै काँपती टाँगो से चलती हुई बाथरूम के दरवाजे के पास पहुची और बाथरूम के अंदर नजर गयी तो मुझे सामने से अरुण का लिंग सोई हुई अवस्था में ही करीब छ: इंच लंबा मूतता दिख रहा था। ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप सोया हुआ है और उसके ऊपर झुर्रियों भरा चमड़े का आवरण ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप अपनी केंचुली छोड़ने वाला हो। उसका अंडकोश भी काफी बड़ा था करीब आधा किलो के बांट जैसा।


मै बिना किसी लाज शर्म के चुपचाप अरुण के लिंग को देख रही थी, मगर मैं क्यों ऐसा कर रही थी ये शायद मैं भी नहीं जानती थी शायद कहीं ना कहीं मेरे जिस्म को एक मर्दाने शरीर की चाहत थी.......और वो भूक को मिटाने के लिए चाहे मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े मुझे उसके खातिर सब मंज़ूर था............मैं फिर बाथरूम के दरवाजे के पास से हट गयी और छत पर रखी पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर आकर बैठ गयी.........


मैने अपने सीने से चुनरी हटा दी और उसे एक साइड पर रख दिया......इस वक़्त मैं सूट और पजामी में थी.......जो हमेशा की तरह टाइट थी और मेरे बदन से पूरी तरह चिपकी हुई थी........जैसे ही मेरे सीने से चुनरी हटी मेरी बड़ी बड़ी छातियाँ मचल कर बाहर को आने लगी......दुपट्टा हट जाने से मेरा क्लीवेज काफ़ी हद तक बाहर की ओर दिखाई दे रहा था.....वैसे तो अरुण इस वक्त बाथरूम में था मगर मुझे इस हाल में वो मुझे देख लेता तो कहीं ना कहीं उसके दिल में मेरे लिए भी कुछ तो अरमान जनम ले ही लेते......


थोड़ी देर बाद अरुण पेशाब कर के बाथरूम से बाहर आ गया। मेरी नज़र जब अरुण के चेहरे पर पड़ी तो वो भी मुझे एक पल देखने लगा........मैं उसकी आँखों में आँखें डाले देखती रही जैसे मैं उससे ये पूछ रही थी कि वो इतना अच्छा मौका अपने हाथ से क्यों जाने दे रहा है.........???


अरुण मेरे पास आकर खड़ा होकर बोला सॉरी रेखा............मैने जाने अंजाने में तुम्हारे साथ कुछ ज़्यादती की.......
मै किसी और ही सोच में थी..... और हँस कर बोली its ok dear....... रेखा, तूने सब कुछ देख लिया ना?” अरुण ने अगला सवाल किया।


“हां, वैसे तो काफी प्रभावशाली है, देखते हैं उसकी अंतिम रूपरेखा क्या होती है।” मैने आँख मारते हुए हँस कर कहा। हाहा हाहा


“अंतिम रूपरेखा कैसी होगी वह बाद की बात है। फिलहाल तो हमें रेखा का रूप दिखा दे।”


मै कुछ बोलती इससे पहले कि अरुण ने बिना किसी पूर्वाभास दिए ही मुझे अपनी बांहों में दबोच लिया और मुझ पर चुंबनों की झड़ी लगाने लगा, बिल्कुल फिल्मी अंदाज में। “आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह मम्मी, छोड़िए ना मुझे प्लीज। प्लीज मुझे जाने दीजिए।” मैं अब तक गरम हो चुकी थी लेकिन मुझे फिर से शराफत का ढोंग तो करना ही था। मेरी योनी पानी छोड़ने लगी थी और पैंटी योनी के लसलसे द्रव्य से भीग चुकी थी। मेरे उरोज उत्तेजना के मारे सख्त हो कर तन गए थे।

मै किसी छोटे बच्चे की तरह अपने अरुण की बाहो में ऐसे समा गई जैसे अब मुझे अपने अरुण से कोई अलग नहीं कर सकता था | मेरे स्तन पूरी तरह से दबकर चपटे अकार में फैले हुए थे जिससे अरुण की ताकत का अंदाज मुझ को हो रहा था | ऐसा लग रहा था की अगर अरुण ने अपना दबाव थोड़ा सा भी और बढ़ाया तो मेरे स्तन कही फट न जाए | मैने अपनी झुकी हुई निगाहो को अपने अरुण की निगाहो से मिलाया और अपना मुँह हलके से खोल दिया | ये देखकर अरुण की दिल की धड़कने बढ़ गई , अरुण का मुँह अपने आप खुल गया और आश्चर्य उसके चेहरे पर साफ़ साफ़ दिखने लगा | अरुण ने मेरे खुले मुँह में अपनी जीभ डाली और मेरी जीभ को जकड कर चूसने लगा | किस इतना जोरदार था की मेरे मुँह से लार की कुछ बुँदे मेरे सूट से बाहर झांकते स्तनों पे आ गिरी | मेरा पूरा बदन काँप रहा था और अरुण ने मेरी कमर को अपने हाथ से पकड़ रखा था ताकि मै पीछे न जा सकूँ | किस २ मिनट तक चला अरुण ने आखिरकार हार मान ली और अपनी जीभ अंदर लेते हुए अपने हाथो को मेरी कमर से हटा दिया | मै तो जैसे दिवास्वप्न से बाहर निकली |

अरुण ने मेरे गाल पर हलके से किस किया और कान में इक बात कही जिसे मैने अपनी गर्दन हाँ में हिलाकर स्वीकार कर लिया |
इसके बाद अरुण को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया मेरे लिए। अब अरुण मुझे और अधिक उत्तेजित करने के लिए फिर से मेेेरे होठों को चूमने लगा, मेरे मुह में अपनी जीभ डालकर चुभलाने लगा। उसके मजबूत पंजे मेरे उरोजों को मेरे कुर्ती के ऊपर से सहला रहे थे, हल्के हल्के दबा रहे थे।

मैं बनावटी असहाय भाव और बनावटी बेबसी का नाटक करती हुई छटपटाती रही लेकिन अरुण भी माहिर खिलाड़ी था, उसे आभास हो गया था कि मैं उत्तेजित हो चुकी हूं क्योंकि अनजाने में उत्तेजना के आवेग में मैं अरुण की जीभ को चूसने लग गई थी।

धीरे धीरे अरुण का एक हाथ मेरी पजामी के अंदर योनी तक पहुंच गया और अपनी हथेली से मेरी योनी को सहलाने लगा। उसकी उंगलियां मेरी योनी के भगांकुर को छेड़ने लगीं तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरी वासना की भूख अपने चरम पर पहुंच गई, कामुकता की तरंगें मेरे शरीर में बिजली बन कर दौड़ने लगीं। मैं तो पागल ही हो गई थी। मेरी आंखें बंद हो गयी थीं।

“आह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह, मार ही डालोगे क्या? अब …..” मैं बेसाख्ता बोल पड़ी।

अभी मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अरुण बोल पड़ा “अब क्या? तू तो अभी से मरने की बात कर रही है, अरुण के गठे हुए कसरती शरीर और उसके मजबूत बांहों के बंधन में मुझे अद्वितीय सुख का अहसास हो रहा था मेरी स्थिति अरुण ने ऐसी कर दी थी कि अब मैं सिर्फ पुरुष संसर्ग के लिए मरी जा रही थी। वह पुरुष, कैसा भी हो , मोटा, पतला, सुंदर, कुरूप, बेढब या लंगड़ा लूला, मुझे परवाह नहीं थी। वह मेेेरे साथ जो कुछ कर रहा था वह बिल्कुल फिल्मी अंदाज में था, बिल्कुल भावहीन, एकदम किसी हुक्म के गुलाम की तरह।

अंततः उस समय मेरी आश्चर्य का पारावार न रहा जब उतावलेपन और आनन फानन में मैने अरुण के जीन्स को मय अंडरवियर केले के छिलके की तरह उसके पैरों के बंधन से आजाद कर और किसी भूखी "चुप छिनाल" की तरह अरुण के सोये हुए छ: इंच लिंग पर टूट पड़ी और गप्प से अपने मुंह में ले लिया। फिर मैं लग गई जी जान से उनके लिंग को चपाचप चूसने ताकि वह जल्द से जल्द खड़ा हो सके और मेरी प्यासी योनी की धधकती ज्वाला को बुझा सके।

मेरे उतावलेपन को देख कर आह ओह कितनी मस्त है रे तू। कहते हुए दोनों हाथ से मेरी कुर्ती के ऊपर से चूचियां दबाने लगा । करीब दो मिनट बाद ही मैंने महसूस किया कि अरुण का लिंग सख्त , बड़ा , लंबा हो रहा है और मोटा भी। अगले एक मिनट बाद तो मैं उसके लिंग को मुंह में रखने में असमर्थ हो गई। जैसे ही मैंने उसके लिंग को चूसना छोड़ कर मुह से निकाला मैं चौंक उठी। हे प्रभू ! इतना भयावह और दहशतनाक मंजर था। मेरे चेहरे के सामने करीब साढ़े ग्यारह इंच लंबा और करीब चार इंच मोटा किसी काले सांप की तरह फनफनाता अरुण का अमानवीय लिंग मेरे मुह के लार से लिथड़ा, अपने पूरे जलाल के साथ झूम रहा था।

""कोई कितनी भी बड़ी "चुप छिनाल" हो, ऐसे लिंग का दीदार ही काफी था भयभीत करने के लिए। मैं कोई अपवाद तो थी नहीं, उस दहशतनाक मंजर को देख कर मेरी भी घिग्घी बंध गई।""

“हाय राम, इत्ता बड़ा!” मेरे मुंह से अनायास निकल पड़ा। मैं दो कदम पीछे हट गई।

“डर मत पगली, कुछ नहीं होगा! तुम करो जो करना है, तू घबरा मत, तुझमें दम है। अरुण मुझे डरा रहा था कि हौसला बढ़ा रहा था, मुझे समझ नहीं आ रहा था।

“नहीं नहीं प्लीज मैं मर जाऊंगी।” मैं घबरा कर बोली। उसने अपने मूसल जैसे लिंग को पकड़कर मेरे मुह में जबदस्ती ठूसने लगा...
लिंग का आधा टोपा ही मेरे मुह में घुसा था, उसने अपने हाथ लिंग से हटा लिए..... और आधे लिंग के टोपा को मुह में फासाये असहाय कुर्सी पर बैठी थी........

तभी एकदम जोर जोर से तालियों के साथ हँसी की गड़गड़ाहट हमारे कानों में गूजने लगी........ हमारी नजर उधर गयी..... तो हमारी आँखे खुली रह गई............ हम दंग रह गये........ सामने मेरी सगी बहन अंजू दीदी खिलखिला कर ताली बजाते हुए
बोली -------
"" वाह रेखा रानी ""
"" मा खावे पताशा बेटी दिखावे तमाशा ""
"" मम्मी के मुह में गोलगप्पा.......... बेटी के मुह में लंड का टोपा ""
Behtreen update
 

Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
6,665
25,376
204
मैने तुरंत जल्दी से दरवाजे खोले और पापा अपने बेडरूम में चले गए। जैसे ही पापा ने मम्मी को नागनावस्था मै देखा तो चिल्ला कर बोले........

वाह रण्डी गण्ड मरी अपने ही बेटे से

मुह काला कर रही है. ..??????

अध्याय -- 9 ---

आज पापा के मुह से मम्मी के लिए इस तरह गाली देना मुझसे बर्दाश्त नही हुआ और मैने पहली बार पापा पर चिल्लाते हुए गुस्से में बोला....... पापा आपको शर्म आनी चाहिए, मम्मी का नंगा जिस्म आपको दिख रहा है???? लेकिन मम्मी के नंगे जिस्म पर लगा मरहम नही दिख रहा है??? आप तो मम्मी को जखम देकर चले गए??? मैने मम्मी के जख्मो पर जरा मरहम क्या लगा दिया??? आपकी झांट सुलग गयी??

पापा निशब्द थे, शायद वो अपनी ही नजरो में शर्मिंदा थे उन्होंने आगे एक शब्द नहीं कहा अलमारी से अपना बैग निकाला और घर से चले गये........!

अरुण बोलते बोलते शांत हो गया, उसकी आँखों में आँसू भर आये, मुझसे उसका दर्द देखा नही गया....... हमारे बीच के दो फुट के फ़ासले को खतम कर मैने उसे आधे फुट की दूरी का फ़ासला बना कर अरुण की हथेली अपनी हाथो में ले कर बोली.......

""तेरे हर दुःख न अपना बना लु
तेरे हर गम न अपना बना लु
मने आंदि कोणी चोरी करनी।
वरना तेरे दिल न चुरा लू।""

अरुण ने मेरे शब्द सुनकर हल्का सा मुस्कुराहट देते हुए बिना सड़क पर आने जाने वालो के डर के मुझे कसकर अपनी सीने से चिपका कर आलिंगन में जकड़ लिया। मैं इस आकस्मिक हमले के लिए तैयार नहीं थी। उसके मजबूत बांहों में कैद हो कर रह गई और छटपटाने लगी।

“छोड़ो मुझे छोड़ो, यह क्या करते हो?” मैं छटपटते हुए धीरे धीरे से बोली। “देखिए ना अभी कही किसी ने देख लिया तो प्रोब्ल्म हो जायेगी। प्लीज मुझे छोड़ दीजिए।” अंदर ही अंदर अरुण की बांहों में पिघलती हुई मेरा विरोध जारी रहा।

मेरे बोलते हुए होंठो के बीच में ही उसने मेरा मुहं अपने मुहं से ढक लिया। मैं पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी कि मुझे इस वक्त अरुण को किस करना चाहिए या नहीं। इसलिए किस करने से महज एक सेकंड पहले मैंने अपना चेहरा हटा लिया। इस वजह से मेरी ठुड्डी उसकी नाक से टकरा गई और यह हम दोनों के लिए बेहद असहज कर देने वाली स्थिति थी। इसके बाद मुझे इतना संकोच हुआ कि अरुण से बिना कुछ कहे मैं फिर से दो फुट के फासले की दूरी पर बैठ गई।

((ज्यादातर लोग फर्स्ट किस से पहले कोई रिहर्सल या तैयारी नहीं कर पाते। मेरा साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। चुम्बन करना हवस की निशानी नही है। चुम्बन प्यार की निशानी है, न कि हवस की ।आप जिसे भी ज्यादा प्यार करते हो,तो संभावित हम उसे चुम्बन करते है। ऐक चुम्बन है, जिसे हम हवस की निशानी कह सकते है। वह है,लबो को चूमना.........))

लेकिन उसके बाद जो अजीब सा सन्नाटा था, वो मेरे इस चुम्बन से भी ज़्यादा बेकार था!! हालांकि ये सब कुछ चंद सेकंड के लिए हुआ था।

अजीब से सन्नाटे की चुप्पी दुकान के काउंटर पर खट खट की आवाज से टूटी... मैने अपनी कुर्सी पर उठकर देखा तो दो छोटे छोटे बच्चे हाथ में सिक्का लेकर काउंटर बजा रहे थे???? मैने कहा क्या चाहिए?? एक "चुटकी" (मीठी छुहारे वाली बच्चो की सुपारी) दे दो?? मैने उन्हें "चुटकी" (मीठी छुहारे वाली बच्चो की सुपारी) देकर रवाना किया!!

अरुण से हस्ती हुयी बोली आप भी बता दीजिये आपको क्या चाहिए???
वो अपने होंठो पर उंगली रखकर इशारे में बोला एक kiss. मुझे अरुण की शकल देखकर हँसी आ गयी... हाहा हाहा

सच कहु तो दिल ही दिल उसको किस करने की बहुत इच्छा हो रही थी, लेकिन मुझे अभी शराफत का ढोंग तो करना ही था। मैने उसे आँखे दिखाते हुए कातिल मुस्कान देकर कहा "चुप" अभी नही,
अरुण फिर बोला बस एक kiss...
मै फिर से आँख के इशारे से सड़क पर आते जाते लोगो की तरफ मुह कर के बोली
'इबब्ब करवा दु तन्ने चुम्मी, बड़ा आया. .. '

अरुण जिद पर अड़ गया फिर से बोला हे रेखड़नी बस एक kiss ओनली pls......
मै उसकी जिद भरी बातो से irritaate होते हुए बोली अभी ताऊ कही फिर से टपक गया तो हो जायेगा सत्यानाश.......... तुम पागल हो गये हो क्या...... पहले अपना इलाज कराओ......???
इलाज की बात सुनकर पट्ठा गाणा गाने लगा!!!
""ये रोग पुराना है जरा देर लगेगी""

गाणा सुनकर मुझे हँसी आ गयी...... हाहा
मै बोलि हाँ बाबा पक्का थोड़ा टाइम दे अपनी इस प्यारी रेखा को वो सब करेगी जो तू बोलेगा!!

(( उस दौर की एक कुंवारी लड़की जो चाहे कितनी भी प्यार करने, रोमांस करने की, किस करने की, यहाँ तक की चुदने की चाहत रखती हो, लेकिन ठीक समय, ठीक जगह, ठीक मौका, ठीक सुरक्षित, माहौल जब तक नही भांप लेगी वो हाँ नही करेगी) )

ठीक है फिर तो एक सिगरेट ही पिला दो??
मैने उसे सिगरेट दे दी!!
वो सिगरेट को अपनी पुरानी style में जलाते हुए बोला......
"" ये सिगरेट जो खून को जलाती है,
लेकिन मेरे मेहबूब से तो अच्छी है!
जलाने से पहले कम्बखत होठो
तक आती है """


मुझे अरुण की शायरी सुनकर जोरों से हँसी आ गयी........ हाहा, उससे बोली
छोरा घणां शायर हो रहा से.........
अरुण भी मुस्कुरा गया और मेरी तरफ बड़े प्यार से देखते हुए सिगरेट पीने लगा....!!


कुछ मिनिट ही बीते होंगे मैने एक बार फिर से अपनी कमीनी आदतवश उसके गांड में उंगली करते हुए बोली..... अरुण उस रात के बाद तुम्हारे पापा के जाने के बाद क्या हुआ ????


अरुण शायद मेरी आदत समझ चुका था, वो जान गया था मुझे लोगों के फटे मे टांग देने की गंदी (गांड में उंगली) आदत है, इसलिए वो तैयार था और हस्ते हुए बोला....
रेखा तेरे को मास्टरनी होना चाहिए था...रह रह कर सवाल जो पूछती है????
मै थोड़ी सी चिड़ते हुए हँसी और बोली नही बताना तो मत बताओ मै कोणी जबरदस्ती थोड़े ही कर रही हूँ....!!!
और सड़क की तरफ देखने लगी।


"लड़को की यही कमजोरी है जरा सी लड़की मुह क्या फुला ले तो वो उसे तुरंत मनाने लग जाते है!"


अरुण सिगरेट का कश लेते हुए बोला बताता हूँ रेखड़ी सुन........ पापा के जाने के बाद मेरा और मम्मी का मूड खराब हो चुका था, मम्मी ने कहा बेटा जा तू अपने कमरे में मै ठीक हू..... और मै अपने कमरे में चला गया! सुबह तक मम्मी के काफ़ी सारे फफोले साफ हो गये, शायद बोरोलीन क्रीम एक एंटीसेप्टिक मेडिसिन की तरह काम कर रही थी। मम्मी की स्किन भी ठीक सी हो रही थी लेकिन नई स्किन आने तक उन्हे कपड़े पहनने मे तकलीफ़ हो रही थी, लेकिन उन्होने मेरे मना करने के बावजूद घर का काम काज संभाल लिया,


हम दोनों ही पापा की खबर लेने के लिए टेंशन में थे, आखिर वो कहाँ गये है??? हमने अपने टेलीफोन से जान पचाण् वालो से बात की पर पापा की कोई खबर नही मिली। दोपहर से शाम होने को आयी.....
और हमारे फोन की रिंग बजी.... मैने फोन पिक किया सामने से पापा की आवाज आई!! वो मुझसे माफी मांग रहे थे, उनकी आवाज में भारीपन था, वो बोले में ठीक हू, और देल्ही में ही हू,....
तेरी मम्मी कैसी है????
मैने कहा अब पहले से ठीक है, क्रीम से जखम पर आराम मिल रहा है! आपकी बात कराउ क्या मम्मी से????

पापा बोले नही बेटा मैंने तेरी मम्मी को जो जखम दिये है, उसके बाद से मै उनसे बात करने का अधिकार खो चुका हूँ.....
मै तुझे जो बता रहा हूँ वो तुम अपनी मम्मी से बोल देना! उनसे कहना............
"" मै उन पर शक नही करता हूँ, मै तो उनसे दिल ओ जान से प्यार करता हूँ, बस मेरी ये ही सबसे बड़ी गलती है, मै जब उन्हे किसी से बात करते हुए, हस्ते हुए, मजाक करते हुए, देखता हूँ तो ऐसा लगता है, कि वो मुझसे दूर जा रही है, वो मेरे बिना भी खुश रह सकती है, और मुझे नही पता ना जाने क्या हो जाता हैं, मै उनको खोने के डर से उन पर चिल्लाने लगता हू...... अब इसे मेरा पागलपन समझे वो या मेरा प्यार........ तेरी मम्मी को खोने का ...........""डर""........... ही मेरा......... शक....... है ।

"" कोई भी हद से ज्यादा प्यार करने वाला हमेशा मेरी तरह शक ही करता है, हर शक के पीछे की वजह अधूरा सच ही होता है, जिसे वो जानने की कोशिश नही करता है, क्योकि वो अधूरा सच शक करने वाले की कमजोरी होती है....... चाहे वो कमजोरी उसकी पैसे की कमी, उसकी रंग, रूप, सुंदरता की कमी, उसके बिस्तर पर performance की कमी, उसकी बीवी की इच्छाओ को पूरा ना कर पाने की कमी.....

शक करने वाला अपनी कमियों खामियों को नही सुधारता बल्कि अपनी पत्नी पर शक करता है, उसको हमेशा यही डर लगता है कि उसकी ये कमियाँ अगर उसकी पत्नी को पता चल गयी तो वो किसी और के साथ चली जायेगी , और पत्नी को पता तब चलेगा जब वो पति के अलावा किसी और से बात करेगी, हँसेगी...... तभी तो वो compare करेगी और dicide करेगी who is the best???

बेटा मै तेरा बाप हू शायद तुम जब बड़े होंगे तब मेरी शक करने की वजह ठीक से समझ आयेगी। मम्मी से बस ये कहना कि एक गाना वो अक्सर गुनगुनाती थी..... काश उस गाणे की गहराई समझ जाये......

""एक पल भी तुम्हे तन्हा छोड़ दू कैसे??
किसी सौतन से पाला ना पड़ जाये""

ये गाणे की लाइन सुनकर मेरी हँसी छूट गयी...... हाहा हाहा....... पता नही मेरे मुह फट होने की एक और बुरी आदत की वजह से निकल पड़ा..... अरुण थारा बाबा बडा ठरकी है...............लुगाई के पल्लू से बन्दा रहता है..........!!

मेरी ये हास्यप्रद बात सुनकर अरुण चिड़ता हुआ बोला रेखा तू बोलने से पहले सोचती नही है................ जो मुह में आया बक दिया........ हिहि हिहि बस हँसने के अलावा कभी और चीज पर ध्यान दिया करो????

ऐसा क्या बोल दी मै जो इतने भड़क रहे हो??? और क्या चीज चाहिए तुम्हे बोलो तो सही??? मै भी अरुण से तुनकते हुए बोली.......?
(((मुझे ये बात समझ आ गयी थी, पैर के घूटने हमेशा पेट की तरफ क्यो झुकते है....??.
अरुण के लिए अपने पापा मुझसे ज्यादा important थे, उसने मेरी छोटी सी मजाक वाली बात को दिल से जो लगा लिया)))

अरुण बोला मै इतनी देर से बैठा हूँ तुमने मुझे पानी तक पूछा??? मै उसको पानी जग देते हुए बोली...... लो पी लो..... बुझा लो अपनी प्यास.....?

वो पानी पीकर बोला एक चुयगम दे दो?? कोनसी??? Boomer या big babool
मै बोली???
जो तुम्हे पसंद हो??? वो बोला...??
मैने एक boomer निकाली और उसे दे दी।
मेरा मूड ऑफ हो गया था और मै उठी अपनी गोद में रखा हुआ अरुण का गिफ्ट कमरे में रखने के लिए जाने लगी.......

मुझे जाता देख अरुण मुस्कुराते हुए बोला हे रेखड़ी किधर???? मै दरवाजे के पर डली पर्दा की आड़ में से मुह बाहर निकाल कर बोली ये तुम्हारा तोहफा रख आउ!!
वो बोला एक मिनिट सुन तो सही....??
उसने खाली सड़क की तरफ देखा और पर्दे के पास आ कर खड़ा हो गया.......

इस से पहले की मैं कुछ समझ पाती और कुछ करती, उसने अपनी जीभ मेरे मुहं में डाली और उसको तेज़ से अन्दर बाहर करने लगा। उसकी जीभ पागलपन से मेरे मुहं में अन्दर बाहर हो रही थी। मैंने सोचा था की मेरा पहला चुम्बन थोडा धीरे धीरे होगा और उसका हर पल का मैं आनंद लुंगी, लेकिन हुआ बिलकुल उल्टा। यह एहसास था बहुत बेकार और मैं चुंबन के लिए बिलकुल भी तैयार और उतेजित नहीं थी। लेकिन, जैसे ही मैं उस झटके से बाहर निकली, मैंने उसे हल्का सा धक्का दिया और घर के अंदर चली गई. ....... उस वक्त अरुण के मुंह में च्युइंग गम था। जब हमारी किस पूरी हुई तो हम दोनों के मुंह में च्युइंग गम के छोटे-छोटे टुकड़े थे।

((एक सलाह : अगर आपको जीभ को इस्तेमाल करना नहीं आता, तो अपनी जीभ अपने पास ही रखें। हाहा हाहा )))

""मुझे अरुण पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन मेरे गुस्से पर अरुण का तोहफा भारी पड़ रहा था।"""

अपने कमरे पहुँच कर सबसे पहले अरुण के तोहफे को अपने स्कूल बैग में रख दिया! और शीशे में अपने आपको देखकर शर्मा गयी.......... मै एक सोच में डूबी थी.... मेरा पहला चुंबन ऐसा होगा जिसकी मैने सपने में भी कल्पना नही की थी.......?? मुझे अरुण से शिकायत और शिकवा दोनों ही थे, वो मुझे एक बार इशारा कर देता तो उसका क्या बिगड़ जाता???

((चुम्बन शब्द को सुनते हीअनायास ही एक मुस्कान होठों पर बिखर जाती है । खास तौर से यह शब्द मेरे लिए बहुत ही प्रिय है मुझे अरुण की इस हालत पर एक शायरी याद आती है) )

""और भला क्या इश्क़ का मारा करता है
बस मेरा ही नाम पुकारा करता है
चार दिनों में केवल दो चुम्बन
इतने कम में कौन गुजारा करता है""

तभी मम्मी की आवाज से मेरी सोच टूटी, रेखड़ी ओ छोरी सुनील आ गया क्या??? नही मम्मी, मै कमरे से बाहर निकलते हुए मम्मी से बोलि........

मम्मी --- दुकान पर कौन है??
मै -- सुनील भैया के दोस्त अरुण है.....
मम्मी --- पता नही कब तक आयेगा सुनील? ??
भूख लगी है, तुझे कुछ खाना हो तो ले जा दुकान पर बैठ कर खा लेना???
नही मम्मी...... कहते हुए मै वापस दुकान पर चली गई...!!!
अरुण किसी ग्राहक को दिल बाग गुटखा की पुड़िया दे कर पैसे ले रहा था....!!

मै जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गयी.... मुझे समझ नही आ रहा था मै उसको क्या बोलू????
तभी अरुण ने ग्राहक से लिए पैसे मेरे आँखों के सामने काउंटर के ऊपर रख दिये!!!!!
हम दोनो ही खामोश थे.... ये खामोशी भरे पल बहुत कुछ पूछ रहे थे..... अभी जो हुआ वो सही था या गलत??? क्या उससे ज्यादा भी कुछ हो सकता था??? पांच मिनिट तक हम यू ही खामोश बैठे रहे...........
तभी दुकान के सामने एक पानी पूरी का ठेला वाला खड़ा हो गया,।

अरुण मुझसे बोला रेखा चल पानी पूरी खाते है........................??
मुझे नही खाना मै नखरे दिखाते हुए बोली!
खा.......ले..... राणी......वो फिर से मुस्कराता हुआ बोला!!!
नही खाना मुझे.........तुम्हे खाना हो तो खा लो...........मै फिर से नखरे दिखाती हुयी बोली!!

अचानक से अरुण ने मेरा हाथ पकड़ लिया.........!! चल ना....... साथ साथ खाते है......??

यो के करण लाग रा है, मरवावे गा के
ताऊ ने देख लिया तो दोनो की सामत आनी से.......
दूर हट ले......
खुद ने तो मरना है मेरी भी देह तुड़वा वे गां,
मै हस्ती हुयी बोली............ हाहाहा


ठीक है तो फिर में अकेला ही खा लेता हूँ, ये केहकर अरुण ठेले पर जाकर खड़ा हो गया........ और ठेले वाले से हँस हँस कर बातें करने लगा जैसे उसका पुराना याराना हो!!
(( प्रेम में डूबा लड़का, प्रेमिका के मोहल्ले के ठेले वालो तक से दोस्ती कर लेता है...... हाहा हाहा))))


ठेले वाला मेरी तरफ देखकर अरुण से कुछ कह रहा था........ उसकी बात सुनकर अरुण दुकान पर आ गया और काउंटर पर रखे जग में से बचा हुआ पानी फैला कर उसमें जलजीरा का पानी और पानी पूरी पैक करवा कर पैसे देकर वापस दुकान में आ गया.....ठेला वाला चला जाता है....


रेखा अब तो साथ साथ खा सकती है??क्या यहाँ भी ताऊ आकर कूट देगा.....?थैली में से एक पानी पूरी जलजीरे में डूबा कर खाते हुए......!! मुझसे हस्ते हुए बोला........ हाहा हाहा


यहाँ ना कूटने दूँगी मै किसी को भी तुझे...मै
उसके ठुड्डी पर जलजीरे के टपकते हुए पानी को पोछते हुए कातिल मुस्कान देते हुए बोली..........
"वो मेरी इस अदा पर जैसे तो फिदा ही हो गया" मारे खुशी के वो मुझसे बोला रेखा चूमने को दिल कर रहा है मेरा.......!!umma, umma, (kiss)
हम दोनों प्यार, रोमांस के साथ साथ पानी पूरी खाने लगे....... ! ! !


थोड़ी सी देर बाद मुझे पायलो की चलती हुई आवाज सुनाई दी, मै समझ गयी मम्मी आ रही है........ मैंने अरुण को इशारा किया और हम दुकान की मर्यादित फ़ासले की दूरी से बैठ गये। मम्मी को देखकर अरुण कुर्सी से खड़ा हो गया, और मम्मी को कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा करते हुए बोला ऑन्टी नमस्ते........ लीजिये आप भी पानी पूरी खाइये.... ?????
मम्मी हँसकर कुर्सी पर बैठते हुए बोली.... ना छोरा खाने का टेम हो गया से.... सुनील आता ही होगा फिर साथ में खाना खाते है.....!!
अरे आंटी कोनसी पेट भर खाने के लिए बोल रहा हूँ मै..... दस बारह ही तो है.... आप भी खा कर मुह का स्वाद बदलिये..... मै तो खा चुका हूँ..... बस हाथ धोना है.....!!
(("" पानी पूरी (गोल गप्पे) लड़की या औरत सबकी पंसदीदा होती हैं, जलजीरे की खुशबू से ही मुह में पानी में आ जाता है ""))


मम्मी के मुह में भी पानी आ गया था, वो तुरंत ही एक गोल गप्पा जग में जलजीरे से भर कर मुह में रखते हुए अरुण से बोली छोरा ऊपर छत पर चला जा..... बाथरूम में जाकर हाथ धो ले....!!!


दूसरा गोल गप्पा मुह रखते हुए मुझसे बोली रेखड़ी तुझे और खाना है तो खा ले..... नही तो छत पर से आलू के पापड़ सूख गए होंगे उन्हे बटोर ले आ। और दो चार किचिन में जाकर आंच पर सेख ले...... फिर मै खाना लगाती हू........!!!


मेरी तो मानो मन की मुराद ही पूरी हो गयी ये सुनकर...........

दोपहर के लगभग दो बजे का समय था, आधी छत पर धूप और आधी पर छाँव पसरी थी, आसपास की सारी छ्ते सुनसान, वीरान पड़ी थी!! मै पापड़ बटोरती हुयी बाथरूम के अंदर घुसे अरुण का दीदार करने का इंतजार कर रही थी..........!!!!


((हमारे बाथरूम में लकड़ी के पुराने जमाने के दरवाजे लगे है, जिनकी एक खासियत है उनके दरवाजे की अगर अंदर से सांकर ना लगाओ तो आधे ज्यादा खुले रहते है। ))
""अरुण ने वो ही गलती कर दी थी........""


मै काँपती टाँगो से चलती हुई बाथरूम के दरवाजे के पास पहुची और बाथरूम के अंदर नजर गयी तो मुझे सामने से अरुण का लिंग सोई हुई अवस्था में ही करीब छ: इंच लंबा मूतता दिख रहा था। ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप सोया हुआ है और उसके ऊपर झुर्रियों भरा चमड़े का आवरण ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप अपनी केंचुली छोड़ने वाला हो। उसका अंडकोश भी काफी बड़ा था करीब आधा किलो के बांट जैसा।


मै बिना किसी लाज शर्म के चुपचाप अरुण के लिंग को देख रही थी, मगर मैं क्यों ऐसा कर रही थी ये शायद मैं भी नहीं जानती थी शायद कहीं ना कहीं मेरे जिस्म को एक मर्दाने शरीर की चाहत थी.......और वो भूक को मिटाने के लिए चाहे मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े मुझे उसके खातिर सब मंज़ूर था............मैं फिर बाथरूम के दरवाजे के पास से हट गयी और छत पर रखी पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर आकर बैठ गयी.........


मैने अपने सीने से चुनरी हटा दी और उसे एक साइड पर रख दिया......इस वक़्त मैं सूट और पजामी में थी.......जो हमेशा की तरह टाइट थी और मेरे बदन से पूरी तरह चिपकी हुई थी........जैसे ही मेरे सीने से चुनरी हटी मेरी बड़ी बड़ी छातियाँ मचल कर बाहर को आने लगी......दुपट्टा हट जाने से मेरा क्लीवेज काफ़ी हद तक बाहर की ओर दिखाई दे रहा था.....वैसे तो अरुण इस वक्त बाथरूम में था मगर मुझे इस हाल में वो मुझे देख लेता तो कहीं ना कहीं उसके दिल में मेरे लिए भी कुछ तो अरमान जनम ले ही लेते......


थोड़ी देर बाद अरुण पेशाब कर के बाथरूम से बाहर आ गया। मेरी नज़र जब अरुण के चेहरे पर पड़ी तो वो भी मुझे एक पल देखने लगा........मैं उसकी आँखों में आँखें डाले देखती रही जैसे मैं उससे ये पूछ रही थी कि वो इतना अच्छा मौका अपने हाथ से क्यों जाने दे रहा है.........???


अरुण मेरे पास आकर खड़ा होकर बोला सॉरी रेखा............मैने जाने अंजाने में तुम्हारे साथ कुछ ज़्यादती की.......
मै किसी और ही सोच में थी..... और हँस कर बोली its ok dear....... रेखा, तूने सब कुछ देख लिया ना?” अरुण ने अगला सवाल किया।


“हां, वैसे तो काफी प्रभावशाली है, देखते हैं उसकी अंतिम रूपरेखा क्या होती है।” मैने आँख मारते हुए हँस कर कहा। हाहा हाहा


“अंतिम रूपरेखा कैसी होगी वह बाद की बात है। फिलहाल तो हमें रेखा का रूप दिखा दे।”


मै कुछ बोलती इससे पहले कि अरुण ने बिना किसी पूर्वाभास दिए ही मुझे अपनी बांहों में दबोच लिया और मुझ पर चुंबनों की झड़ी लगाने लगा, बिल्कुल फिल्मी अंदाज में। “आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह मम्मी, छोड़िए ना मुझे प्लीज। प्लीज मुझे जाने दीजिए।” मैं अब तक गरम हो चुकी थी लेकिन मुझे फिर से शराफत का ढोंग तो करना ही था। मेरी योनी पानी छोड़ने लगी थी और पैंटी योनी के लसलसे द्रव्य से भीग चुकी थी। मेरे उरोज उत्तेजना के मारे सख्त हो कर तन गए थे।

मै किसी छोटे बच्चे की तरह अपने अरुण की बाहो में ऐसे समा गई जैसे अब मुझे अपने अरुण से कोई अलग नहीं कर सकता था | मेरे स्तन पूरी तरह से दबकर चपटे अकार में फैले हुए थे जिससे अरुण की ताकत का अंदाज मुझ को हो रहा था | ऐसा लग रहा था की अगर अरुण ने अपना दबाव थोड़ा सा भी और बढ़ाया तो मेरे स्तन कही फट न जाए | मैने अपनी झुकी हुई निगाहो को अपने अरुण की निगाहो से मिलाया और अपना मुँह हलके से खोल दिया | ये देखकर अरुण की दिल की धड़कने बढ़ गई , अरुण का मुँह अपने आप खुल गया और आश्चर्य उसके चेहरे पर साफ़ साफ़ दिखने लगा | अरुण ने मेरे खुले मुँह में अपनी जीभ डाली और मेरी जीभ को जकड कर चूसने लगा | किस इतना जोरदार था की मेरे मुँह से लार की कुछ बुँदे मेरे सूट से बाहर झांकते स्तनों पे आ गिरी | मेरा पूरा बदन काँप रहा था और अरुण ने मेरी कमर को अपने हाथ से पकड़ रखा था ताकि मै पीछे न जा सकूँ | किस २ मिनट तक चला अरुण ने आखिरकार हार मान ली और अपनी जीभ अंदर लेते हुए अपने हाथो को मेरी कमर से हटा दिया | मै तो जैसे दिवास्वप्न से बाहर निकली |

अरुण ने मेरे गाल पर हलके से किस किया और कान में इक बात कही जिसे मैने अपनी गर्दन हाँ में हिलाकर स्वीकार कर लिया |
इसके बाद अरुण को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया मेरे लिए। अब अरुण मुझे और अधिक उत्तेजित करने के लिए फिर से मेेेरे होठों को चूमने लगा, मेरे मुह में अपनी जीभ डालकर चुभलाने लगा। उसके मजबूत पंजे मेरे उरोजों को मेरे कुर्ती के ऊपर से सहला रहे थे, हल्के हल्के दबा रहे थे।

मैं बनावटी असहाय भाव और बनावटी बेबसी का नाटक करती हुई छटपटाती रही लेकिन अरुण भी माहिर खिलाड़ी था, उसे आभास हो गया था कि मैं उत्तेजित हो चुकी हूं क्योंकि अनजाने में उत्तेजना के आवेग में मैं अरुण की जीभ को चूसने लग गई थी।

धीरे धीरे अरुण का एक हाथ मेरी पजामी के अंदर योनी तक पहुंच गया और अपनी हथेली से मेरी योनी को सहलाने लगा। उसकी उंगलियां मेरी योनी के भगांकुर को छेड़ने लगीं तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरी वासना की भूख अपने चरम पर पहुंच गई, कामुकता की तरंगें मेरे शरीर में बिजली बन कर दौड़ने लगीं। मैं तो पागल ही हो गई थी। मेरी आंखें बंद हो गयी थीं।

“आह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह, मार ही डालोगे क्या? अब …..” मैं बेसाख्ता बोल पड़ी।

अभी मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अरुण बोल पड़ा “अब क्या? तू तो अभी से मरने की बात कर रही है, अरुण के गठे हुए कसरती शरीर और उसके मजबूत बांहों के बंधन में मुझे अद्वितीय सुख का अहसास हो रहा था मेरी स्थिति अरुण ने ऐसी कर दी थी कि अब मैं सिर्फ पुरुष संसर्ग के लिए मरी जा रही थी। वह पुरुष, कैसा भी हो , मोटा, पतला, सुंदर, कुरूप, बेढब या लंगड़ा लूला, मुझे परवाह नहीं थी। वह मेेेरे साथ जो कुछ कर रहा था वह बिल्कुल फिल्मी अंदाज में था, बिल्कुल भावहीन, एकदम किसी हुक्म के गुलाम की तरह।

अंततः उस समय मेरी आश्चर्य का पारावार न रहा जब उतावलेपन और आनन फानन में मैने अरुण के जीन्स को मय अंडरवियर केले के छिलके की तरह उसके पैरों के बंधन से आजाद कर और किसी भूखी "चुप छिनाल" की तरह अरुण के सोये हुए छ: इंच लिंग पर टूट पड़ी और गप्प से अपने मुंह में ले लिया। फिर मैं लग गई जी जान से उनके लिंग को चपाचप चूसने ताकि वह जल्द से जल्द खड़ा हो सके और मेरी प्यासी योनी की धधकती ज्वाला को बुझा सके।

मेरे उतावलेपन को देख कर आह ओह कितनी मस्त है रे तू। कहते हुए दोनों हाथ से मेरी कुर्ती के ऊपर से चूचियां दबाने लगा । करीब दो मिनट बाद ही मैंने महसूस किया कि अरुण का लिंग सख्त , बड़ा , लंबा हो रहा है और मोटा भी। अगले एक मिनट बाद तो मैं उसके लिंग को मुंह में रखने में असमर्थ हो गई। जैसे ही मैंने उसके लिंग को चूसना छोड़ कर मुह से निकाला मैं चौंक उठी। हे प्रभू ! इतना भयावह और दहशतनाक मंजर था। मेरे चेहरे के सामने करीब साढ़े ग्यारह इंच लंबा और करीब चार इंच मोटा किसी काले सांप की तरह फनफनाता अरुण का अमानवीय लिंग मेरे मुह के लार से लिथड़ा, अपने पूरे जलाल के साथ झूम रहा था।

""कोई कितनी भी बड़ी "चुप छिनाल" हो, ऐसे लिंग का दीदार ही काफी था भयभीत करने के लिए। मैं कोई अपवाद तो थी नहीं, उस दहशतनाक मंजर को देख कर मेरी भी घिग्घी बंध गई।""

“हाय राम, इत्ता बड़ा!” मेरे मुंह से अनायास निकल पड़ा। मैं दो कदम पीछे हट गई।

“डर मत पगली, कुछ नहीं होगा! तुम करो जो करना है, तू घबरा मत, तुझमें दम है। अरुण मुझे डरा रहा था कि हौसला बढ़ा रहा था, मुझे समझ नहीं आ रहा था।

“नहीं नहीं प्लीज मैं मर जाऊंगी।” मैं घबरा कर बोली। उसने अपने मूसल जैसे लिंग को पकड़कर मेरे मुह में जबदस्ती ठूसने लगा...
लिंग का आधा टोपा ही मेरे मुह में घुसा था, उसने अपने हाथ लिंग से हटा लिए..... और आधे लिंग के टोपा को मुह में फासाये असहाय कुर्सी पर बैठी थी........

तभी एकदम जोर जोर से तालियों के साथ हँसी की गड़गड़ाहट हमारे कानों में गूजने लगी........ हमारी नजर उधर गयी..... तो हमारी आँखे खुली रह गई............ हम दंग रह गये........ सामने मेरी सगी बहन अंजू दीदी खिलखिला कर ताली बजाते हुए
बोली -------
"" वाह रेखा रानी ""
"" मा खावे पताशा बेटी दिखावे तमाशा ""
"" मम्मी के मुह में गोलगप्पा.......... बेटी के मुह में लंड का टोपा ""
Super update.
 

Sanju@

Well-Known Member
4,812
19,399
158
मैने तुरंत जल्दी से दरवाजे खोले और पापा अपने बेडरूम में चले गए। जैसे ही पापा ने मम्मी को नागनावस्था मै देखा तो चिल्ला कर बोले........

वाह रण्डी गण्ड मरी अपने ही बेटे से

मुह काला कर रही है. ..??????

अध्याय -- 9 ---

आज पापा के मुह से मम्मी के लिए इस तरह गाली देना मुझसे बर्दाश्त नही हुआ और मैने पहली बार पापा पर चिल्लाते हुए गुस्से में बोला....... पापा आपको शर्म आनी चाहिए, मम्मी का नंगा जिस्म आपको दिख रहा है???? लेकिन मम्मी के नंगे जिस्म पर लगा मरहम नही दिख रहा है??? आप तो मम्मी को जखम देकर चले गए??? मैने मम्मी के जख्मो पर जरा मरहम क्या लगा दिया??? आपकी झांट सुलग गयी??

पापा निशब्द थे, शायद वो अपनी ही नजरो में शर्मिंदा थे उन्होंने आगे एक शब्द नहीं कहा अलमारी से अपना बैग निकाला और घर से चले गये........!

अरुण बोलते बोलते शांत हो गया, उसकी आँखों में आँसू भर आये, मुझसे उसका दर्द देखा नही गया....... हमारे बीच के दो फुट के फ़ासले को खतम कर मैने उसे आधे फुट की दूरी का फ़ासला बना कर अरुण की हथेली अपनी हाथो में ले कर बोली.......

""तेरे हर दुःख न अपना बना लु
तेरे हर गम न अपना बना लु
मने आंदि कोणी चोरी करनी।
वरना तेरे दिल न चुरा लू।""

अरुण ने मेरे शब्द सुनकर हल्का सा मुस्कुराहट देते हुए बिना सड़क पर आने जाने वालो के डर के मुझे कसकर अपनी सीने से चिपका कर आलिंगन में जकड़ लिया। मैं इस आकस्मिक हमले के लिए तैयार नहीं थी। उसके मजबूत बांहों में कैद हो कर रह गई और छटपटाने लगी।

“छोड़ो मुझे छोड़ो, यह क्या करते हो?” मैं छटपटते हुए धीरे धीरे से बोली। “देखिए ना अभी कही किसी ने देख लिया तो प्रोब्ल्म हो जायेगी। प्लीज मुझे छोड़ दीजिए।” अंदर ही अंदर अरुण की बांहों में पिघलती हुई मेरा विरोध जारी रहा।

मेरे बोलते हुए होंठो के बीच में ही उसने मेरा मुहं अपने मुहं से ढक लिया। मैं पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी कि मुझे इस वक्त अरुण को किस करना चाहिए या नहीं। इसलिए किस करने से महज एक सेकंड पहले मैंने अपना चेहरा हटा लिया। इस वजह से मेरी ठुड्डी उसकी नाक से टकरा गई और यह हम दोनों के लिए बेहद असहज कर देने वाली स्थिति थी। इसके बाद मुझे इतना संकोच हुआ कि अरुण से बिना कुछ कहे मैं फिर से दो फुट के फासले की दूरी पर बैठ गई।

((ज्यादातर लोग फर्स्ट किस से पहले कोई रिहर्सल या तैयारी नहीं कर पाते। मेरा साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। चुम्बन करना हवस की निशानी नही है। चुम्बन प्यार की निशानी है, न कि हवस की ।आप जिसे भी ज्यादा प्यार करते हो,तो संभावित हम उसे चुम्बन करते है। ऐक चुम्बन है, जिसे हम हवस की निशानी कह सकते है। वह है,लबो को चूमना.........))

लेकिन उसके बाद जो अजीब सा सन्नाटा था, वो मेरे इस चुम्बन से भी ज़्यादा बेकार था!! हालांकि ये सब कुछ चंद सेकंड के लिए हुआ था।

अजीब से सन्नाटे की चुप्पी दुकान के काउंटर पर खट खट की आवाज से टूटी... मैने अपनी कुर्सी पर उठकर देखा तो दो छोटे छोटे बच्चे हाथ में सिक्का लेकर काउंटर बजा रहे थे???? मैने कहा क्या चाहिए?? एक "चुटकी" (मीठी छुहारे वाली बच्चो की सुपारी) दे दो?? मैने उन्हें "चुटकी" (मीठी छुहारे वाली बच्चो की सुपारी) देकर रवाना किया!!

अरुण से हस्ती हुयी बोली आप भी बता दीजिये आपको क्या चाहिए???
वो अपने होंठो पर उंगली रखकर इशारे में बोला एक kiss. मुझे अरुण की शकल देखकर हँसी आ गयी... हाहा हाहा

सच कहु तो दिल ही दिल उसको किस करने की बहुत इच्छा हो रही थी, लेकिन मुझे अभी शराफत का ढोंग तो करना ही था। मैने उसे आँखे दिखाते हुए कातिल मुस्कान देकर कहा "चुप" अभी नही,
अरुण फिर बोला बस एक kiss...
मै फिर से आँख के इशारे से सड़क पर आते जाते लोगो की तरफ मुह कर के बोली
'इबब्ब करवा दु तन्ने चुम्मी, बड़ा आया. .. '

अरुण जिद पर अड़ गया फिर से बोला हे रेखड़नी बस एक kiss ओनली pls......
मै उसकी जिद भरी बातो से irritaate होते हुए बोली अभी ताऊ कही फिर से टपक गया तो हो जायेगा सत्यानाश.......... तुम पागल हो गये हो क्या...... पहले अपना इलाज कराओ......???
इलाज की बात सुनकर पट्ठा गाणा गाने लगा!!!
""ये रोग पुराना है जरा देर लगेगी""

गाणा सुनकर मुझे हँसी आ गयी...... हाहा
मै बोलि हाँ बाबा पक्का थोड़ा टाइम दे अपनी इस प्यारी रेखा को वो सब करेगी जो तू बोलेगा!!

(( उस दौर की एक कुंवारी लड़की जो चाहे कितनी भी प्यार करने, रोमांस करने की, किस करने की, यहाँ तक की चुदने की चाहत रखती हो, लेकिन ठीक समय, ठीक जगह, ठीक मौका, ठीक सुरक्षित, माहौल जब तक नही भांप लेगी वो हाँ नही करेगी) )

ठीक है फिर तो एक सिगरेट ही पिला दो??
मैने उसे सिगरेट दे दी!!
वो सिगरेट को अपनी पुरानी style में जलाते हुए बोला......
"" ये सिगरेट जो खून को जलाती है,
लेकिन मेरे मेहबूब से तो अच्छी है!
जलाने से पहले कम्बखत होठो
तक आती है """


मुझे अरुण की शायरी सुनकर जोरों से हँसी आ गयी........ हाहा, उससे बोली
छोरा घणां शायर हो रहा से.........
अरुण भी मुस्कुरा गया और मेरी तरफ बड़े प्यार से देखते हुए सिगरेट पीने लगा....!!


कुछ मिनिट ही बीते होंगे मैने एक बार फिर से अपनी कमीनी आदतवश उसके गांड में उंगली करते हुए बोली..... अरुण उस रात के बाद तुम्हारे पापा के जाने के बाद क्या हुआ ????


अरुण शायद मेरी आदत समझ चुका था, वो जान गया था मुझे लोगों के फटे मे टांग देने की गंदी (गांड में उंगली) आदत है, इसलिए वो तैयार था और हस्ते हुए बोला....
रेखा तेरे को मास्टरनी होना चाहिए था...रह रह कर सवाल जो पूछती है????
मै थोड़ी सी चिड़ते हुए हँसी और बोली नही बताना तो मत बताओ मै कोणी जबरदस्ती थोड़े ही कर रही हूँ....!!!
और सड़क की तरफ देखने लगी।


"लड़को की यही कमजोरी है जरा सी लड़की मुह क्या फुला ले तो वो उसे तुरंत मनाने लग जाते है!"


अरुण सिगरेट का कश लेते हुए बोला बताता हूँ रेखड़ी सुन........ पापा के जाने के बाद मेरा और मम्मी का मूड खराब हो चुका था, मम्मी ने कहा बेटा जा तू अपने कमरे में मै ठीक हू..... और मै अपने कमरे में चला गया! सुबह तक मम्मी के काफ़ी सारे फफोले साफ हो गये, शायद बोरोलीन क्रीम एक एंटीसेप्टिक मेडिसिन की तरह काम कर रही थी। मम्मी की स्किन भी ठीक सी हो रही थी लेकिन नई स्किन आने तक उन्हे कपड़े पहनने मे तकलीफ़ हो रही थी, लेकिन उन्होने मेरे मना करने के बावजूद घर का काम काज संभाल लिया,


हम दोनों ही पापा की खबर लेने के लिए टेंशन में थे, आखिर वो कहाँ गये है??? हमने अपने टेलीफोन से जान पचाण् वालो से बात की पर पापा की कोई खबर नही मिली। दोपहर से शाम होने को आयी.....
और हमारे फोन की रिंग बजी.... मैने फोन पिक किया सामने से पापा की आवाज आई!! वो मुझसे माफी मांग रहे थे, उनकी आवाज में भारीपन था, वो बोले में ठीक हू, और देल्ही में ही हू,....
तेरी मम्मी कैसी है????
मैने कहा अब पहले से ठीक है, क्रीम से जखम पर आराम मिल रहा है! आपकी बात कराउ क्या मम्मी से????

पापा बोले नही बेटा मैंने तेरी मम्मी को जो जखम दिये है, उसके बाद से मै उनसे बात करने का अधिकार खो चुका हूँ.....
मै तुझे जो बता रहा हूँ वो तुम अपनी मम्मी से बोल देना! उनसे कहना............
"" मै उन पर शक नही करता हूँ, मै तो उनसे दिल ओ जान से प्यार करता हूँ, बस मेरी ये ही सबसे बड़ी गलती है, मै जब उन्हे किसी से बात करते हुए, हस्ते हुए, मजाक करते हुए, देखता हूँ तो ऐसा लगता है, कि वो मुझसे दूर जा रही है, वो मेरे बिना भी खुश रह सकती है, और मुझे नही पता ना जाने क्या हो जाता हैं, मै उनको खोने के डर से उन पर चिल्लाने लगता हू...... अब इसे मेरा पागलपन समझे वो या मेरा प्यार........ तेरी मम्मी को खोने का ...........""डर""........... ही मेरा......... शक....... है ।

"" कोई भी हद से ज्यादा प्यार करने वाला हमेशा मेरी तरह शक ही करता है, हर शक के पीछे की वजह अधूरा सच ही होता है, जिसे वो जानने की कोशिश नही करता है, क्योकि वो अधूरा सच शक करने वाले की कमजोरी होती है....... चाहे वो कमजोरी उसकी पैसे की कमी, उसकी रंग, रूप, सुंदरता की कमी, उसके बिस्तर पर performance की कमी, उसकी बीवी की इच्छाओ को पूरा ना कर पाने की कमी.....

शक करने वाला अपनी कमियों खामियों को नही सुधारता बल्कि अपनी पत्नी पर शक करता है, उसको हमेशा यही डर लगता है कि उसकी ये कमियाँ अगर उसकी पत्नी को पता चल गयी तो वो किसी और के साथ चली जायेगी , और पत्नी को पता तब चलेगा जब वो पति के अलावा किसी और से बात करेगी, हँसेगी...... तभी तो वो compare करेगी और dicide करेगी who is the best???

बेटा मै तेरा बाप हू शायद तुम जब बड़े होंगे तब मेरी शक करने की वजह ठीक से समझ आयेगी। मम्मी से बस ये कहना कि एक गाना वो अक्सर गुनगुनाती थी..... काश उस गाणे की गहराई समझ जाये......

""एक पल भी तुम्हे तन्हा छोड़ दू कैसे??
किसी सौतन से पाला ना पड़ जाये""

ये गाणे की लाइन सुनकर मेरी हँसी छूट गयी...... हाहा हाहा....... पता नही मेरे मुह फट होने की एक और बुरी आदत की वजह से निकल पड़ा..... अरुण थारा बाबा बडा ठरकी है...............लुगाई के पल्लू से बन्दा रहता है..........!!

मेरी ये हास्यप्रद बात सुनकर अरुण चिड़ता हुआ बोला रेखा तू बोलने से पहले सोचती नही है................ जो मुह में आया बक दिया........ हिहि हिहि बस हँसने के अलावा कभी और चीज पर ध्यान दिया करो????

ऐसा क्या बोल दी मै जो इतने भड़क रहे हो??? और क्या चीज चाहिए तुम्हे बोलो तो सही??? मै भी अरुण से तुनकते हुए बोली.......?
(((मुझे ये बात समझ आ गयी थी, पैर के घूटने हमेशा पेट की तरफ क्यो झुकते है....??.
अरुण के लिए अपने पापा मुझसे ज्यादा important थे, उसने मेरी छोटी सी मजाक वाली बात को दिल से जो लगा लिया)))

अरुण बोला मै इतनी देर से बैठा हूँ तुमने मुझे पानी तक पूछा??? मै उसको पानी जग देते हुए बोली...... लो पी लो..... बुझा लो अपनी प्यास.....?

वो पानी पीकर बोला एक चुयगम दे दो?? कोनसी??? Boomer या big babool
मै बोली???
जो तुम्हे पसंद हो??? वो बोला...??
मैने एक boomer निकाली और उसे दे दी।
मेरा मूड ऑफ हो गया था और मै उठी अपनी गोद में रखा हुआ अरुण का गिफ्ट कमरे में रखने के लिए जाने लगी.......

मुझे जाता देख अरुण मुस्कुराते हुए बोला हे रेखड़ी किधर???? मै दरवाजे के पर डली पर्दा की आड़ में से मुह बाहर निकाल कर बोली ये तुम्हारा तोहफा रख आउ!!
वो बोला एक मिनिट सुन तो सही....??
उसने खाली सड़क की तरफ देखा और पर्दे के पास आ कर खड़ा हो गया.......

इस से पहले की मैं कुछ समझ पाती और कुछ करती, उसने अपनी जीभ मेरे मुहं में डाली और उसको तेज़ से अन्दर बाहर करने लगा। उसकी जीभ पागलपन से मेरे मुहं में अन्दर बाहर हो रही थी। मैंने सोचा था की मेरा पहला चुम्बन थोडा धीरे धीरे होगा और उसका हर पल का मैं आनंद लुंगी, लेकिन हुआ बिलकुल उल्टा। यह एहसास था बहुत बेकार और मैं चुंबन के लिए बिलकुल भी तैयार और उतेजित नहीं थी। लेकिन, जैसे ही मैं उस झटके से बाहर निकली, मैंने उसे हल्का सा धक्का दिया और घर के अंदर चली गई. ....... उस वक्त अरुण के मुंह में च्युइंग गम था। जब हमारी किस पूरी हुई तो हम दोनों के मुंह में च्युइंग गम के छोटे-छोटे टुकड़े थे।

((एक सलाह : अगर आपको जीभ को इस्तेमाल करना नहीं आता, तो अपनी जीभ अपने पास ही रखें। हाहा हाहा )))

""मुझे अरुण पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन मेरे गुस्से पर अरुण का तोहफा भारी पड़ रहा था।"""

अपने कमरे पहुँच कर सबसे पहले अरुण के तोहफे को अपने स्कूल बैग में रख दिया! और शीशे में अपने आपको देखकर शर्मा गयी.......... मै एक सोच में डूबी थी.... मेरा पहला चुंबन ऐसा होगा जिसकी मैने सपने में भी कल्पना नही की थी.......?? मुझे अरुण से शिकायत और शिकवा दोनों ही थे, वो मुझे एक बार इशारा कर देता तो उसका क्या बिगड़ जाता???

((चुम्बन शब्द को सुनते हीअनायास ही एक मुस्कान होठों पर बिखर जाती है । खास तौर से यह शब्द मेरे लिए बहुत ही प्रिय है मुझे अरुण की इस हालत पर एक शायरी याद आती है) )

""और भला क्या इश्क़ का मारा करता है
बस मेरा ही नाम पुकारा करता है
चार दिनों में केवल दो चुम्बन
इतने कम में कौन गुजारा करता है""

तभी मम्मी की आवाज से मेरी सोच टूटी, रेखड़ी ओ छोरी सुनील आ गया क्या??? नही मम्मी, मै कमरे से बाहर निकलते हुए मम्मी से बोलि........

मम्मी --- दुकान पर कौन है??
मै -- सुनील भैया के दोस्त अरुण है.....
मम्मी --- पता नही कब तक आयेगा सुनील? ??
भूख लगी है, तुझे कुछ खाना हो तो ले जा दुकान पर बैठ कर खा लेना???
नही मम्मी...... कहते हुए मै वापस दुकान पर चली गई...!!!
अरुण किसी ग्राहक को दिल बाग गुटखा की पुड़िया दे कर पैसे ले रहा था....!!

मै जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गयी.... मुझे समझ नही आ रहा था मै उसको क्या बोलू????
तभी अरुण ने ग्राहक से लिए पैसे मेरे आँखों के सामने काउंटर के ऊपर रख दिये!!!!!
हम दोनो ही खामोश थे.... ये खामोशी भरे पल बहुत कुछ पूछ रहे थे..... अभी जो हुआ वो सही था या गलत??? क्या उससे ज्यादा भी कुछ हो सकता था??? पांच मिनिट तक हम यू ही खामोश बैठे रहे...........
तभी दुकान के सामने एक पानी पूरी का ठेला वाला खड़ा हो गया,।

अरुण मुझसे बोला रेखा चल पानी पूरी खाते है........................??
मुझे नही खाना मै नखरे दिखाते हुए बोली!
खा.......ले..... राणी......वो फिर से मुस्कराता हुआ बोला!!!
नही खाना मुझे.........तुम्हे खाना हो तो खा लो...........मै फिर से नखरे दिखाती हुयी बोली!!

अचानक से अरुण ने मेरा हाथ पकड़ लिया.........!! चल ना....... साथ साथ खाते है......??

यो के करण लाग रा है, मरवावे गा के
ताऊ ने देख लिया तो दोनो की सामत आनी से.......
दूर हट ले......
खुद ने तो मरना है मेरी भी देह तुड़वा वे गां,
मै हस्ती हुयी बोली............ हाहाहा


ठीक है तो फिर में अकेला ही खा लेता हूँ, ये केहकर अरुण ठेले पर जाकर खड़ा हो गया........ और ठेले वाले से हँस हँस कर बातें करने लगा जैसे उसका पुराना याराना हो!!
(( प्रेम में डूबा लड़का, प्रेमिका के मोहल्ले के ठेले वालो तक से दोस्ती कर लेता है...... हाहा हाहा))))


ठेले वाला मेरी तरफ देखकर अरुण से कुछ कह रहा था........ उसकी बात सुनकर अरुण दुकान पर आ गया और काउंटर पर रखे जग में से बचा हुआ पानी फैला कर उसमें जलजीरा का पानी और पानी पूरी पैक करवा कर पैसे देकर वापस दुकान में आ गया.....ठेला वाला चला जाता है....


रेखा अब तो साथ साथ खा सकती है??क्या यहाँ भी ताऊ आकर कूट देगा.....?थैली में से एक पानी पूरी जलजीरे में डूबा कर खाते हुए......!! मुझसे हस्ते हुए बोला........ हाहा हाहा


यहाँ ना कूटने दूँगी मै किसी को भी तुझे...मै
उसके ठुड्डी पर जलजीरे के टपकते हुए पानी को पोछते हुए कातिल मुस्कान देते हुए बोली..........
"वो मेरी इस अदा पर जैसे तो फिदा ही हो गया" मारे खुशी के वो मुझसे बोला रेखा चूमने को दिल कर रहा है मेरा.......!!umma, umma, (kiss)
हम दोनों प्यार, रोमांस के साथ साथ पानी पूरी खाने लगे....... ! ! !


थोड़ी सी देर बाद मुझे पायलो की चलती हुई आवाज सुनाई दी, मै समझ गयी मम्मी आ रही है........ मैंने अरुण को इशारा किया और हम दुकान की मर्यादित फ़ासले की दूरी से बैठ गये। मम्मी को देखकर अरुण कुर्सी से खड़ा हो गया, और मम्मी को कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा करते हुए बोला ऑन्टी नमस्ते........ लीजिये आप भी पानी पूरी खाइये.... ?????
मम्मी हँसकर कुर्सी पर बैठते हुए बोली.... ना छोरा खाने का टेम हो गया से.... सुनील आता ही होगा फिर साथ में खाना खाते है.....!!
अरे आंटी कोनसी पेट भर खाने के लिए बोल रहा हूँ मै..... दस बारह ही तो है.... आप भी खा कर मुह का स्वाद बदलिये..... मै तो खा चुका हूँ..... बस हाथ धोना है.....!!
(("" पानी पूरी (गोल गप्पे) लड़की या औरत सबकी पंसदीदा होती हैं, जलजीरे की खुशबू से ही मुह में पानी में आ जाता है ""))


मम्मी के मुह में भी पानी आ गया था, वो तुरंत ही एक गोल गप्पा जग में जलजीरे से भर कर मुह में रखते हुए अरुण से बोली छोरा ऊपर छत पर चला जा..... बाथरूम में जाकर हाथ धो ले....!!!


दूसरा गोल गप्पा मुह रखते हुए मुझसे बोली रेखड़ी तुझे और खाना है तो खा ले..... नही तो छत पर से आलू के पापड़ सूख गए होंगे उन्हे बटोर ले आ। और दो चार किचिन में जाकर आंच पर सेख ले...... फिर मै खाना लगाती हू........!!!


मेरी तो मानो मन की मुराद ही पूरी हो गयी ये सुनकर...........

दोपहर के लगभग दो बजे का समय था, आधी छत पर धूप और आधी पर छाँव पसरी थी, आसपास की सारी छ्ते सुनसान, वीरान पड़ी थी!! मै पापड़ बटोरती हुयी बाथरूम के अंदर घुसे अरुण का दीदार करने का इंतजार कर रही थी..........!!!!


((हमारे बाथरूम में लकड़ी के पुराने जमाने के दरवाजे लगे है, जिनकी एक खासियत है उनके दरवाजे की अगर अंदर से सांकर ना लगाओ तो आधे ज्यादा खुले रहते है। ))
""अरुण ने वो ही गलती कर दी थी........""


मै काँपती टाँगो से चलती हुई बाथरूम के दरवाजे के पास पहुची और बाथरूम के अंदर नजर गयी तो मुझे सामने से अरुण का लिंग सोई हुई अवस्था में ही करीब छ: इंच लंबा मूतता दिख रहा था। ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप सोया हुआ है और उसके ऊपर झुर्रियों भरा चमड़े का आवरण ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप अपनी केंचुली छोड़ने वाला हो। उसका अंडकोश भी काफी बड़ा था करीब आधा किलो के बांट जैसा।


मै बिना किसी लाज शर्म के चुपचाप अरुण के लिंग को देख रही थी, मगर मैं क्यों ऐसा कर रही थी ये शायद मैं भी नहीं जानती थी शायद कहीं ना कहीं मेरे जिस्म को एक मर्दाने शरीर की चाहत थी.......और वो भूक को मिटाने के लिए चाहे मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े मुझे उसके खातिर सब मंज़ूर था............मैं फिर बाथरूम के दरवाजे के पास से हट गयी और छत पर रखी पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर आकर बैठ गयी.........


मैने अपने सीने से चुनरी हटा दी और उसे एक साइड पर रख दिया......इस वक़्त मैं सूट और पजामी में थी.......जो हमेशा की तरह टाइट थी और मेरे बदन से पूरी तरह चिपकी हुई थी........जैसे ही मेरे सीने से चुनरी हटी मेरी बड़ी बड़ी छातियाँ मचल कर बाहर को आने लगी......दुपट्टा हट जाने से मेरा क्लीवेज काफ़ी हद तक बाहर की ओर दिखाई दे रहा था.....वैसे तो अरुण इस वक्त बाथरूम में था मगर मुझे इस हाल में वो मुझे देख लेता तो कहीं ना कहीं उसके दिल में मेरे लिए भी कुछ तो अरमान जनम ले ही लेते......


थोड़ी देर बाद अरुण पेशाब कर के बाथरूम से बाहर आ गया। मेरी नज़र जब अरुण के चेहरे पर पड़ी तो वो भी मुझे एक पल देखने लगा........मैं उसकी आँखों में आँखें डाले देखती रही जैसे मैं उससे ये पूछ रही थी कि वो इतना अच्छा मौका अपने हाथ से क्यों जाने दे रहा है.........???


अरुण मेरे पास आकर खड़ा होकर बोला सॉरी रेखा............मैने जाने अंजाने में तुम्हारे साथ कुछ ज़्यादती की.......
मै किसी और ही सोच में थी..... और हँस कर बोली its ok dear....... रेखा, तूने सब कुछ देख लिया ना?” अरुण ने अगला सवाल किया।


“हां, वैसे तो काफी प्रभावशाली है, देखते हैं उसकी अंतिम रूपरेखा क्या होती है।” मैने आँख मारते हुए हँस कर कहा। हाहा हाहा


“अंतिम रूपरेखा कैसी होगी वह बाद की बात है। फिलहाल तो हमें रेखा का रूप दिखा दे।”


मै कुछ बोलती इससे पहले कि अरुण ने बिना किसी पूर्वाभास दिए ही मुझे अपनी बांहों में दबोच लिया और मुझ पर चुंबनों की झड़ी लगाने लगा, बिल्कुल फिल्मी अंदाज में। “आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह मम्मी, छोड़िए ना मुझे प्लीज। प्लीज मुझे जाने दीजिए।” मैं अब तक गरम हो चुकी थी लेकिन मुझे फिर से शराफत का ढोंग तो करना ही था। मेरी योनी पानी छोड़ने लगी थी और पैंटी योनी के लसलसे द्रव्य से भीग चुकी थी। मेरे उरोज उत्तेजना के मारे सख्त हो कर तन गए थे।

मै किसी छोटे बच्चे की तरह अपने अरुण की बाहो में ऐसे समा गई जैसे अब मुझे अपने अरुण से कोई अलग नहीं कर सकता था | मेरे स्तन पूरी तरह से दबकर चपटे अकार में फैले हुए थे जिससे अरुण की ताकत का अंदाज मुझ को हो रहा था | ऐसा लग रहा था की अगर अरुण ने अपना दबाव थोड़ा सा भी और बढ़ाया तो मेरे स्तन कही फट न जाए | मैने अपनी झुकी हुई निगाहो को अपने अरुण की निगाहो से मिलाया और अपना मुँह हलके से खोल दिया | ये देखकर अरुण की दिल की धड़कने बढ़ गई , अरुण का मुँह अपने आप खुल गया और आश्चर्य उसके चेहरे पर साफ़ साफ़ दिखने लगा | अरुण ने मेरे खुले मुँह में अपनी जीभ डाली और मेरी जीभ को जकड कर चूसने लगा | किस इतना जोरदार था की मेरे मुँह से लार की कुछ बुँदे मेरे सूट से बाहर झांकते स्तनों पे आ गिरी | मेरा पूरा बदन काँप रहा था और अरुण ने मेरी कमर को अपने हाथ से पकड़ रखा था ताकि मै पीछे न जा सकूँ | किस २ मिनट तक चला अरुण ने आखिरकार हार मान ली और अपनी जीभ अंदर लेते हुए अपने हाथो को मेरी कमर से हटा दिया | मै तो जैसे दिवास्वप्न से बाहर निकली |

अरुण ने मेरे गाल पर हलके से किस किया और कान में इक बात कही जिसे मैने अपनी गर्दन हाँ में हिलाकर स्वीकार कर लिया |
इसके बाद अरुण को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया मेरे लिए। अब अरुण मुझे और अधिक उत्तेजित करने के लिए फिर से मेेेरे होठों को चूमने लगा, मेरे मुह में अपनी जीभ डालकर चुभलाने लगा। उसके मजबूत पंजे मेरे उरोजों को मेरे कुर्ती के ऊपर से सहला रहे थे, हल्के हल्के दबा रहे थे।

मैं बनावटी असहाय भाव और बनावटी बेबसी का नाटक करती हुई छटपटाती रही लेकिन अरुण भी माहिर खिलाड़ी था, उसे आभास हो गया था कि मैं उत्तेजित हो चुकी हूं क्योंकि अनजाने में उत्तेजना के आवेग में मैं अरुण की जीभ को चूसने लग गई थी।

धीरे धीरे अरुण का एक हाथ मेरी पजामी के अंदर योनी तक पहुंच गया और अपनी हथेली से मेरी योनी को सहलाने लगा। उसकी उंगलियां मेरी योनी के भगांकुर को छेड़ने लगीं तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरी वासना की भूख अपने चरम पर पहुंच गई, कामुकता की तरंगें मेरे शरीर में बिजली बन कर दौड़ने लगीं। मैं तो पागल ही हो गई थी। मेरी आंखें बंद हो गयी थीं।

“आह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह, मार ही डालोगे क्या? अब …..” मैं बेसाख्ता बोल पड़ी।

अभी मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अरुण बोल पड़ा “अब क्या? तू तो अभी से मरने की बात कर रही है, अरुण के गठे हुए कसरती शरीर और उसके मजबूत बांहों के बंधन में मुझे अद्वितीय सुख का अहसास हो रहा था मेरी स्थिति अरुण ने ऐसी कर दी थी कि अब मैं सिर्फ पुरुष संसर्ग के लिए मरी जा रही थी। वह पुरुष, कैसा भी हो , मोटा, पतला, सुंदर, कुरूप, बेढब या लंगड़ा लूला, मुझे परवाह नहीं थी। वह मेेेरे साथ जो कुछ कर रहा था वह बिल्कुल फिल्मी अंदाज में था, बिल्कुल भावहीन, एकदम किसी हुक्म के गुलाम की तरह।

अंततः उस समय मेरी आश्चर्य का पारावार न रहा जब उतावलेपन और आनन फानन में मैने अरुण के जीन्स को मय अंडरवियर केले के छिलके की तरह उसके पैरों के बंधन से आजाद कर और किसी भूखी "चुप छिनाल" की तरह अरुण के सोये हुए छ: इंच लिंग पर टूट पड़ी और गप्प से अपने मुंह में ले लिया। फिर मैं लग गई जी जान से उनके लिंग को चपाचप चूसने ताकि वह जल्द से जल्द खड़ा हो सके और मेरी प्यासी योनी की धधकती ज्वाला को बुझा सके।

मेरे उतावलेपन को देख कर आह ओह कितनी मस्त है रे तू। कहते हुए दोनों हाथ से मेरी कुर्ती के ऊपर से चूचियां दबाने लगा । करीब दो मिनट बाद ही मैंने महसूस किया कि अरुण का लिंग सख्त , बड़ा , लंबा हो रहा है और मोटा भी। अगले एक मिनट बाद तो मैं उसके लिंग को मुंह में रखने में असमर्थ हो गई। जैसे ही मैंने उसके लिंग को चूसना छोड़ कर मुह से निकाला मैं चौंक उठी। हे प्रभू ! इतना भयावह और दहशतनाक मंजर था। मेरे चेहरे के सामने करीब साढ़े ग्यारह इंच लंबा और करीब चार इंच मोटा किसी काले सांप की तरह फनफनाता अरुण का अमानवीय लिंग मेरे मुह के लार से लिथड़ा, अपने पूरे जलाल के साथ झूम रहा था।

""कोई कितनी भी बड़ी "चुप छिनाल" हो, ऐसे लिंग का दीदार ही काफी था भयभीत करने के लिए। मैं कोई अपवाद तो थी नहीं, उस दहशतनाक मंजर को देख कर मेरी भी घिग्घी बंध गई।""

“हाय राम, इत्ता बड़ा!” मेरे मुंह से अनायास निकल पड़ा। मैं दो कदम पीछे हट गई।

“डर मत पगली, कुछ नहीं होगा! तुम करो जो करना है, तू घबरा मत, तुझमें दम है। अरुण मुझे डरा रहा था कि हौसला बढ़ा रहा था, मुझे समझ नहीं आ रहा था।

“नहीं नहीं प्लीज मैं मर जाऊंगी।” मैं घबरा कर बोली। उसने अपने मूसल जैसे लिंग को पकड़कर मेरे मुह में जबदस्ती ठूसने लगा...
लिंग का आधा टोपा ही मेरे मुह में घुसा था, उसने अपने हाथ लिंग से हटा लिए..... और आधे लिंग के टोपा को मुह में फासाये असहाय कुर्सी पर बैठी थी........

तभी एकदम जोर जोर से तालियों के साथ हँसी की गड़गड़ाहट हमारे कानों में गूजने लगी........ हमारी नजर उधर गयी..... तो हमारी आँखे खुली रह गई............ हम दंग रह गये........ सामने मेरी सगी बहन अंजू दीदी खिलखिला कर ताली बजाते हुए
बोली -------
"" वाह रेखा रानी ""
"" मा खावे पताशा बेटी दिखावे तमाशा ""
"" मम्मी के मुह में गोलगप्पा.......... बेटी के मुह में लंड का टोपा ""
Behtreen update
आखिर रेखड़ी मजे ले रही है लेकिन अंजू ने पकड़ लिया है देखते हैं अब वो भी अपना हिस्सा लेती है या पूरा हिस्सा रेखडी को ही मिलेगा
 
Last edited:

hypernova

New Member
55
181
33
आपका पिछला अपडेट बहुत अच्छा लगा। मैंने आपकी लेखन क्षमता और लेखन शैली की प्रशंसा पहले भी की थी, उसे दुहराना जरूरी है।

शरीर में सेक्स हॉर्मोन्स की उत्पत्ति और उसके प्रभाव के कारण नवयुवती या नवयुवक के दिलो-दिमाग पर विपरीत सेक्स के व्यक्ति के लिए जन्मे तीव्र आकर्षण, यौनक्रिया की अथाह लालसा, और उस उम्र की उथल-पुथल का वर्णन आपने प्रभावपूर्ण ढंग से किया है।

में नहीं जानता मेरे अभिप्राय से कितने सहमत होंगे। एक आधारहीन झूठी धारणा यह बना दी गई है कि केवल पुरुष वर्ग ही ऊपर बताई उम्र में सेक्स के लिए लालायित होते हैं। आपने इस झूठी धारणा को भंग किया है और ना केवल पुरुष परंतु लड़कियों/ स्त्रियों में भी यह इच्छा उतनी ही तीव्र होती है इसे उजागर किया है।
 

Studxyz

Well-Known Member
2,933
16,301
158
रेखा तो मदमस्त जवानी का भरपूर मज़ा उठा रही है गीली वाली चुम्मा भी कर ली चुत व् दुधु भी मसलवा लिए यही तो बेलगाम चढ़ती जवानी होती है और तो और लंड के चुसे भी मार लिए

हाहाहा पर 11.5 इंच लम्बा व् 4 इंच मोटा लंड कुछ ज़्यादा ही लिख दिया :vhappy1:


मम्मी के मुह में गोलगप्पा.......... बेटी के मुह में लंड का टोपा "" :laugh::laugh:..... बहिन ने ये डायलॉग तो नहले पे दहला वाला मारा है
 
Last edited:
Status
Not open for further replies.
Top