Nice and superb update....अगले दिन सुबह एक तरफ विक्रम को राज्य का सर्वेसर्वा बनाने की तैयारी जोर शोर से चल रही थी वहीं दूसरी तरफ मेनका विक्रम से मिलने के लिए महल पहुंच गई! दरबान ने विक्रम के सूचना दी तो मेनका अंदर चली गई और मेनका को देखते ही विक्रम खुशी से बोला:"
" आइए अच्छा किया आपने जो आज सुबह सुबह ही आप राजमहल चली आई! अब आप पूरे कार्यक्रम तक यही रहना!
मेनका बड़े प्यार से उसका चेहरा देख रही थी मानो आज उस जी भरकर देखना चाहती हो! मेनका के मुंह से शब्द नही निकल पा रहे थे और विक्रम हैरान था कि आखिर मेनका को हो गया हैं और बोला:"
" आपकी तबियत तो ठीक है? ऐसे मुझे क्यों देख रही हो आप?
मेनका के होंठ कुछ बोलते हुए भी कांप रहे थे और धीरे से बोली:"
" विक्रम मैं ठीक हु!
मेनका ने बड़ी मुश्किल से कहा और विक्रम ने उसका हाथ पकड़कर प्यार से बेड पर बिठाया और बोला:" आप शायद कुछ कहना चाहती है लेकिन बोल नही पा रही है! आप बिलकुल निश्चित होकर बोलिए!
मेनका की आंखो में आंसू आ गए और भरे गले के साथ विक्रम का हाथ पकड़ कर बोली:"
" आ अ आप जानना चाहते थे कि हमारी खानदानी तलवार आपने कैसे उठा ली थी !
विक्रम की आंखो में चमक आ गई और बोला:" बिलकुल जानना चाहता हूं क्योंकि मैं खुद उस दिन के बाद से चैन से नही सो पा रहा हु एक पल के लिए भी!
मेनका के बोलने से पहले ही उसकी आंखे भर आई और आंसू छलक पड़े और रुंधे हुए गले से बड़ी मुश्किल से कह पाई
" आप आप मेरे पुत्र हो ! मेरा अपना खून हो!
मेनका ने बड़ी मुश्किल से अपनी बात कही और विक्रम से लिपटकर रोने लगी और उसका मुंह चूमने लगी! विक्रम के दिमाग में धमाका सा हुआ और रोती हुई मेनका को संभालते हुए उसके आंसू साफ करते हुए बोला:"
" क्या क्या आप मेरी मां माता हैं ? हे भगवान!! आपको कैसे पता चला ?
मेनका जोर से सुबक पड़ी और बोली:" हान पुत्र! कल रात दाई माता आई थी और उन्होंने मुझे सारी बाते बताई!
उसके बाद मेनका ने सब कुछ विक्रम को बताया तो विक्रम की भी आंखे छलक उठी और वो भी कसकर मेनका से लिपट गया! दोनो मां बेटे एक दूसरे से लिपटकर रोते रहे और एक दूसरे को संभालते रहे! आखिरकार विक्रम ने जैसे तैसे खुद को संभाला और अपनी माता मेनका के आंसुओं को साफ करते हुए बोला:"
" मुझे आप मिल गई तो सब कुछ मिल गया! थोड़ी देर बाद राज्य सभा लगेगी तो मैं सबके बीच में सारी सच्चाई बता दूंगा!
मेनका को भला क्या आपत्ति होती तो वो बोली:"
" मुझे आप मिल गए पुत्र तो मुझे अब इससे ज्यादा कुछ नही चाहिए!
थोड़ी देर बाद जैसे ही राज्य सभा लगा और सभी मंत्री दल की बैठक शुरू हुई तो विक्रम के कुछ बोलने से पहले ही दाई माता आ गई और उन्होंने सभा को सब कुछ बताया तो हर कोई हैरान हो गया और विक्रम ने दाई माता को बात को बल देने के लिए सबके बीच में मेनका की खानदानी तलवार उठाकर दाई माता की बात को सही साबित किया और बोला:"
" चूंकि सबके सामने साबित हो ही गया है कि मैं राज पुत्र नही बल्कि मेनका पुत्र हु तो ऐसे हालत में मेरे राज्याभिषेक का कोई औचित्य ही नही रहा! मैं अब आप सबकी तरह उदयगढ़ का एक आम सेवक हु और मेरे लिए ये बेहद फख्र की बात हैं कि मैं राज्य के सबसे ईमानदार और ऐसे बलिदानी परिवार से हु जिसने उदयगढ़ की तरह उठने वाले हर तीर को अपने सीने पर खाया हैं!
विक्रम इतना बोलकर राजगद्दी से उतरा और नीचे आकर सभा में बैठ गया तो सारे मंत्री गण अपनी सीटों से खड़े हो गए क्योंकि उन्हे समझ नही आ रहा था कि आखिर ये सब क्या हो रहा है!
आखिर में हिम्मत करके मानसिंह बोला:"
" बेशक आप राज परिवार से नही हो लेकिन राज्य के लिए राजमाता ने आपको ही चुना था और उस हिसाब से आपको राज माता की आज्ञा का पालन करते हुए गद्दी को ग्रहण करना चाहिए!
विक्रम:" जब राजमाता ने ये निर्णय लिया था तो उस समय उन्हें सच्चाई का ज्ञान नहीं था लेकिन चूंकि अब सच्चाई सामने आ गई है तो उस निर्णय का कोई मतलब ही नही रह जाता !
मंगल सिंह:" लेकिन युवराज राजमाता का अंतिम निर्णय यही था और हमे इसका सम्मान करना चाहिए!
विक्रम:" राजमाता मेरे लिए हमेशा से पूजनीय रही हैं लेकिन किसी और के अधिकार को सब सच्चाई जानते हुए अपनाने के लिए मेरा स्वाभिमान मुझे रोक रहा है!
भीमा सिंह:" मेरे ख्याल से हमें सब को आपस मे मिलकर इसका समाधान निकालना चाहिए!
विक्रम:" मैं आप की बात से सहमत हु! आप जैसे आदेश करेंगे मेरे किए सर्वोपरी होगा!
भीमा सिंह:" ठीक हैं फिर आप अपने कक्ष में जाकर आराम कीजिए और मंत्री दल की आज की बैठक में फैसला लिया जाएगा कि आगे राज्य की बागडौर किसके हाथ में देनी चाहिए!
विक्रम बिना कुछ कहे अपनी सीट से उठा और चला गया और उसके साथ ही मेनका भी चली गई! विक्रम राज कक्ष में न जाकर सीधे अपने घर मेनका के साथ आ गया!
घर आकर विक्रम और मेनका आपस मे बात करने लगे और मेनका बोली:"
" आपने सही किया पुत्र जो महाराज का पद ठुकरा दिया! हमारे पूर्वजों ने तो राज्य की सेवा करने के लिए वचन दिया था न कि राज करने के लिए !
विक्रम:" सत्य वचन माता! मुझे किसी राज पाठ की अभिलाषा नही है! सच कहूं तो पहली बार आपके गले से लगकर एहसास हुआ कि माता का प्रेम क्या हैं ! जिंदगी में पहली बार ऐसा अद्भुत एहसास हुआ हैं!
मेनका उसकी बात सुनकर प्रेम भाव से भर गई और फिर से अपनी बांहे फैलाई और बोली:"
" सच में विक्रम तो फिर से आओ और अपनी माता के गले लग जाओ मेरे पुत्र!
विक्रम एक बार फिर से मेनका की बांहों में समा गया और मेनका ने भी उसे अपने आगोश में ले लिया और भावुक होते हुए बोली:"
" बस पुत्र अब मुझे छोड़कर मत जाना! आपके सिवा अब मेरा कोई और नहीं हैं इस दुनिया में! मैं अपनी सारी ममता आप पर लूटा दूंगी!
विक्रम भी उससे कसकर लिपट गया और बोला:" कभी नहीं कभी नही माता! आपका भी तो मेरे सिवा कोई नही हैं! मैं हमेशा आपकी परछाई बनकर आपके साथ रहूंगा!
मेनका ने खुशी खुशी विक्रम का मुंह चूम लिया और बोली:"
" आप बैठो मैं आपके लिए कुछ खाने को लाती हूं!
इतना कहकर मेनका अंदर चली गई और वहीं दूसरी तरफ राज दरबार लगा हुआ था और ऐसा पहली बार हो रहा था कि राज गद्दी पर कोई नही बैठा हुआ था!
भीमा सिंह:" राज गद्दी का खाली रहना अपशकुन माना जाता हैं! मेरे विचार से हमे जल्दी ही राज गद्दी के लिए राजा देखना चाहिए!
मानसिंह:" बिलकुल सही बात लेकिन सवाल यही हैं कि राज गद्दी किसे दी जाए? राजमाता ने तो विक्रम को राजा बनाने का फैसला किया था लेकिन विक्रम तो साफ मना करके चले गए!
सतपाल सिंह:" मेरे विचार से तो विक्रम ही इस गद्दी के लिए उपयुक्त हैं क्यूंकि राज महल में बड़े होने के कारण वो राज पाठ चलाने के सारे तरीके आते हैं और फिर दूसरी बात उन्हे राजा बनाना भी तो राजमाता का ही फैसला था!
भीमा:* लेकिन उस समय पर राजमाता को सच्चाई नही पता थी और दूसरी सबसे बड़ी बात विक्रम खुद राजा बनने से मना कर चुके हैं!
सतपाल:" विक्रम एक ऐसे परिवार परिवार से हैं जिसमे आत्म सम्मान कूट कूट कर भरा हुआ है फिर ऐसी हालत में जब उन्हें पता हैं कि वो राज परिवार से नही हैं तो वो किसी भी दशा में राज गद्दी स्वीकार नही करेंगे!
मानसिंह:" विक्रम नही तो फिर किसे राजा बनाया जाए ? किसी के पास कोई नाम हो तो बताए?
जसवंत सिंह:" मेरे खयाल से राज्य में अभी विक्रम से बड़ा योद्धा की नही हैं और फिर राजमाता भी यही चाहती थी कि विक्रम को ही राजा बनाए तो मुझे विक्रम के नाम पर कोई आपत्ति नही हैं! अगर नही तो विक्रम से बहादुर और शक्तिशाली कौन है उसका नाम बताया जाए ?
थोड़ी देर शांति रही और सब एक दूसरे का मुंह देखते रहे! किसी को कोई नाम समझ नही आ रहा था तो अंततः भीमा सिंह बोला:"
" मेरे ख्याल से हमें विक्रम को ही राजगद्दी देनी चाहिए! जब हम सब मिलकर फैसला लेंगे तो विक्रम को वो मानना ही पड़ेगा क्योंकि विक्रम कभी भी राज्य के अहित के बारे में नही सोच सकते!
भीमा की बात का सबने समर्थन किया और अंत में फैसला लिया गया कि विक्रम को ही राजा बनाया जायेगा!
भीमा:" जब हम सबने तय कर लिया है तो फिर आज ही विक्रम को राजा बनाना चाहिए क्योंकि आज का शुभ मुहूर्त राजमाता ने निकलवाया था!
भीमा की इस बात से सभी सहमत थे और थोड़ी देर बाद ही भीमा अपने साथ सतपाल और मानसिंह के लेकर विक्रम के घर पहुंचे और बोले:"
" विक्रम बेटा हमने सबकी सहमति से ये फैसला किया हैं कि आपको ही राजा बनाया जाए क्योंकि आपमें एक राजा के सारे गुण हैं!
विक्रम :" लेकिन मैं तो आप सबको अपना फैसला बता चुका हु कि मैं ऐसे खानदान से हु जो राज्य की सेवा के लिए वचनबद्ध हैं ना कि राज करने के लिए!
भीमा:" हम आपकी भावनाओं की कद्र करते हैं युवराज! लेकिन आपको समझना चाहिए कि आपके पिता श्री ने ही आपको महाराज की गोद में दिया था ताकि आप बड़े होकर उदयगढ़ को सही दिशा में ले सके! अब आप अपने पिता और स्वर्गीय महराज के फैसले के खिलाफ तो नही जा सकते और फिर राजमाता का अंतिम फैसला ही यही था!
विक्रम:* ठीक है लेकिन फिर भी मैं..........
विक्रम की बात खत्म होने से पहले ही सतपाल बोला:" राजा बनकर आप अपने पिता और महाराज के वचन को पूरा करेंगे तो निश्चित रूप से उनकी आत्मा आपको आशीर्वाद देंगी!
विक्रम ने हैरानी भरी नजरो से मेनका की तरफ देखा तो मेनका ने हालात को समझते हुए स्वीकृति में आपनी गर्दन को झुका दिया और विक्रम ने भी अपनी माता की आज्ञा का पालन किया! शाम होते होते विक्रम का राज तिलक किया गया और पूरे राज्य की बागडोर उसके हाथ में दे दी गई!